Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१८४
कथन किया, अत: सीधाक्रम इस प्रकार है कि अविभागप्रतिच्छेदों का समूह वर्ग, वर्ग का समूह वर्गणा, वर्गणाका समूह स्पर्धक, स्पर्धकका समूह गुणहानि, गुणहानिका समूह नानागुणहानि और नानागुणहानि का समूह स्थान है ऐसा समझना चाहिए। अथानन्तर योगस्थानों में सर्वस्पर्धकादिकों का प्रमाण कहते हैं -
इगिठाणफड्ढयाओ, वग्गणसंखा पदेसगुणहाणी।
सेढि असंखेज्जदिमा, असंखलोगा हु अविभागा॥२२७ ।। अर्थ - एकयोगस्थान में सर्वस्पर्धक, सर्व वर्गणाओं की संख्या और प्रदेशगुणहानिआयाम का प्रमाण सामान्य से जगच्छेणी के असंख्यातवें भाग मात्र है। अत: इन सभी का प्रमाण भी सामान्य से श्रेणी के असंख्यातवें भाग मात्र ही कहा है। किन्तु वास्तव में वे परस्पर हीनाधिक हैं। एकयोगस्थान में अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातलोकप्रमाण होते हैं।
विशेषार्थ - एकगुणहानि में जो स्पर्धक का प्रमाण है, उसको एकस्थानगत नानागुणहानिके प्रमाण से गुणा करने पर जो लब्ध आया उतने प्रमाण एकयोगस्थान में स्पर्धक हैं। एकस्पर्धकगत वर्गणाओं को एकयोगस्थान में पाये जानेवाले स्पर्धकके प्रमाण से गुणा करने से जो लब्ध आया उतने प्रमाण एकयोगस्थान में वर्गणाएँ होती हैं।
एक स्पर्धक में वर्गणा का प्रमाण जगच्छ्रेणीके असंख्यातवेंभागमात्र है उसको एकगुणहानिगत स्पर्धकके प्रमाण से गुणा करने पर जो लब्ध आवे उतने प्रमाण एकगुणहानिसम्बन्धी वर्गणाएँ हैं। यहाँ पर गुणकारका प्रमाण जगत्श्रेणीके भागहारप्रमाण से असंख्यातगुणाहीन है, अन्यथा श्रेणीके असंख्यातवें भाग की सिद्धि नहीं हो सकती सो उक्त प्रमाण ही गुणहानिआयाम कहलाता है तथा इन सभी को सामान्य से जगच्छ्रेणीका असंख्यातवाँभाग कहते हैं, क्योंकि असंख्यातके बहुत भेद हैं। एक योगस्थानमें समस्तअविभागप्रतिच्छेद असंख्यातलोकप्रमाण ही हैं, कर्मपरमाणुके समान अथवा जघन्यज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदों के समान अनन्त नहीं है, क्योंकि जीवके प्रदेश लोकप्रमाण हैं। तथैव एकस्थानमें नानागुणहानि, पल्यको दोबार असंख्यात का भाग देने पर जो प्रमाण आवे उतने प्रमाण है। नानागुणहानि के बराबर दो के अङ्क लिखकर परस्पर गुणाकरने पर जो लब्ध आया वह अन्योन्याभ्यस्तराशि है,इसका प्रमाण एकबार असंख्यातसे भाजित पल्यके बराबर है। एक गुणहानिसम्बन्धी स्पर्धकका प्रमाण दोबार असंख्यातसे भाजित जगच्छ्रेणीप्रमाण है तथा एक बार असंख्यातका भाग जगत्श्रेणी में देने पर जो लब्ध आवे उतने प्रमाण एक स्पर्धक में वर्गणाएँ हैं। एकगुणहानिसम्बन्धीस्पर्धकों में एकस्पर्धक की वर्गणा के प्रमाण से गुणित प्रमाणराशि एकगुणहानि की सर्ववर्गणाएँ हैं। इन वर्गणाओं को एकयोगस्थानगत नानागुणहानि से गुणा करनेपर एकयोगस्थानसम्बन्धी समस्तवर्गणाओं का प्रमाण प्राप्त होता है। इस प्रकार इन नानागुणहानियों को आदि लेकर क्रम से असंख्यातगुणा-असंख्यातगुणा जानना।