Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१८९
असंख्यातवेंभाग प्रमाण स्पर्धक कहे हैं। इसकी सन्दृष्टि '९' का अङ्क जानना । इसके ऊपर द्वितीयगुणहानि के प्रथमस्पर्धककी प्रथमवर्गणा में वर्गों की संख्या प्रथमगुणहानि के प्रथमस्पर्धककी प्रथमवर्गणासे आधी समझनी। इस वर्गणा के वर्गों में अविभागप्रतिच्छेदों का प्रमाण एक अधिक गुणहानि के स्पर्धकों की संख्याप्रमाण से जघन्यवर्ग के अविभागप्रतिच्छेदों को गुणा करने पर जो प्रमाण प्राप्त हो उतना जानना तथा अविभागप्रतिच्छेदों का क्रम पूर्वोक्त ही जानना एवं प्रदेशरूप वर्गों की संख्याप्रमाण प्रथमगुणहानिके प्रथमस्पर्धकसम्बन्धी प्रथमवर्गणा के प्रमाण से द्वितीयगुणहानिसम्बन्धी प्रथमस्पर्धककी प्रथमवर्गणाका प्रमाण आधा है और इसमें एक विशेष (चय) घटाने पर द्वितीयवर्गणा का प्रमाण होता है। द्वितीयगुणहानि में विशेष (चय) का प्रमाण प्रथमगुणहानि के विशेष (चय) प्रमाण से आधा जानना। इसी प्रकार एकएक विशेष घटाने पर तृतीयादि वर्गणा का प्रमाण जानना, तथैव द्वितीयगुणहानि की प्रथमवर्गणा से तृतीयगुणहानिकी प्रथमवर्गणा में वर्गों की संख्याका प्रमाण और विशेष (चय) का प्रमाण आधा-आधा जानना । ऐसे ही गुणहानि-गुणहानिप्रति आधा-आधा प्रमाण जानना । इस प्रकार पल्य के असंख्यातवेंभाग प्रमाण नानागुणहानि होती है तब एकयोगस्थान होता है, इसीलिए एकस्थान में पल्य के असंख्यातवेंभाग प्रमाण नानागुणहानि कही है। यही सर्वकथन जघन्ययोगस्थान का जानना। इस प्रकार यह कथन शक्ति की प्रधानता से किया है, अब प्रदेशों की प्रधानता से सन्दृष्टि द्रास कथन को हैं..
माना कि सर्वजीवप्रदेश ३१००, नानागुणहानि ५, एकगुणहानि में वर्गणा का प्रमाणरूप गुणहानिआयाम ८, नानागुणहानिप्रमाण दो के अङ्क लिखकर परस्परगुणा करने पर (२x२x२x२x२) अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण = ३२ । एक कम अन्योन्याभ्यस्तराशि ३१ का भाग सर्वद्रव्य ३१०० में देनेपर ३१०० ३१ = १०० सो यह अन्तिमगुणहानिका प्रमाण है इससे आदिगुणहानि पर्यन्त दूने-दूने प्रमाण जीवप्रदेश हैं। अर्थात् १००, २००, ४००, ८००, १६०० इसलिए आदिगुणहानि से आगे प्रत्येक गुणहानि प्रति आधा-आधा द्रव्य कहा है। यहाँ सर्वद्रव्य ३१०० में कुछ अधिक डेढगुणहानिका भाग देने पर गुणहानिआयाम ८ का डेढ़गुणा (१२) और कुछ अधिक कहने से एकके ६४ भागों में से ७ भाग अधिक १२६४ इसका भाग देने पर ३१०० १२४ = २५६ प्राप्त हुए। यह प्रथमगुणहानि के प्रथमस्पर्धकसम्बन्धी प्रथमवर्गणा में जीवप्रदेशों की संख्या जाननी। दो गुणहानि (१६) का भाग प्रथमवर्गणा २५६ में देने पर (२५६:१६) १६ आए यह विशेष (चय) का प्रमाण जानना। विशेषके दो गुणहानि से गुणा करने पर प्रथमवर्गणा का प्रमाण होता है। इस प्रकार प्रथमवर्गणा में से एक-एक विशेष घटाने पर द्वितीयादिवर्गणा होती है। ऐसे एककम गुणहानिआयाम (७), इस विशेष को घटानेपर १. एकगुणहानि जगत्श्रेणी के असंख्यातāभागमात्र है,क्योंकि नानागुणहानि शलाकाओं से योगस्थान को भाजित करने ___ पर अध्वान का प्रमाण जगत्श्रेणी के असंख्यातवेंभाग प्राप्त होता है।(ध. पु. १० पृ. ७४) २. गाणागुणहाणिसलागाओ पलिदोवमरस असंखेजदिभागमेत्ताओ" धवल पु. १० पृ. ७४ ३. धवल पु. १० पृ. ४४६-४४७