Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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***** गोम्मटसार कर्मकाण्ड - १७४
नोकषाय, निद्रा प्रचला और तीर्थङ्करका उत्कृष्टप्रदेशबन्ध करता है। मनुष्यायु, देवायु, असातावेदनीयदेवगति - देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर वैक्रियिकअङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर व आदेय इन १३ प्रकृतियों का उत्कृष्टप्रदेशबन्ध सम्यग्दृष्टि या मिध्यादृष्टि जीव करता है और आहारकद्विकका उत्कृष्टप्रदेशबन्ध अप्रमत्तगुणस्थान में होता है। इन ५४ प्रकृतिबिना शेष ६६ प्रकृतियों का उत्कृष्टप्रदेशबन्ध मिध्यादृष्टिजीव करता है ।। २१२-२१३-२१४ ॥
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विशेषार्थ - छह ' मूलप्रकृतियों का बन्ध करने वाला उत्कृष्टयोग से युक्त और उत्कृष्टप्रदेशबन्ध में अवस्थित अन्यतर उपशामक और क्षपक सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत पांच ज्ञानावरण, चक्षु, अचक्षु, अवधि व केवल इन चारदर्शनावरण, सातावेदनीय, यश: कीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इन प्रकृतियों के उत्कृष्टप्रदेश बन्ध का स्वामी है। सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त सातमूल प्रकृतियों का बन्ध करने वाला उत्कृष्टयोग से युक्त और उत्कृष्टप्रदेशबन्ध में वर्तमान अन्यतर चारगतिका सञ्ज्ञीपञ्चेन्द्रिय-मिथ्यादृष्टिजीव स्त्यानगृद्धि आदि तीनदर्शनावरण, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और नीचगोत्रके उत्कृष्टप्रदेशबन्ध का स्वामी है। निद्रा, प्रचला, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा के उत्कृष्टप्रदेशबन्ध का स्वामी सर्वपर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ सातप्रकार के कर्मों का बन्ध करनेवाला उत्कृष्टयोगयुक्त और उत्कृष्टप्रदेशबन्ध में अवस्थित अन्यतर चारगतिका सम्यग्दृष्टिजीव है। सर्वपर्याप्तियोंसे पर्याप्त सातमूल प्रकृतियों का बन्ध करनेवाला उत्कृष्टयोगसे युक्त और उत्कृष्टप्रदेशबन्ध में वर्तमान अन्यतर चारगतिका सञ्जी मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि असातावेदनीय के उत्कृष्टप्रदेशबन्धका स्वामी है तथा अप्रत्याख्यानावरण कषायचतुष्क के उत्कृष्टप्रदेशबन्धका स्वामी सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्त सातमूल प्रकृतियों का बन्ध करनेवाला उत्कृष्टयोग से युक्त और उत्कृष्टप्रदेशबन्ध में वर्तमान अन्यतर चारगतिका असंयतजीव है। प्रत्याख्यानावरण कषायचतुष्कके उत्कृष्टप्रदेशबन्धका स्वामी सातमूल प्रकृतियों का बन्ध करनेवाला उत्कृष्टयोग से युक्त और उत्कृष्टप्रदेशबन्ध में वर्तमान अन्यतर तिर्यञ्च या मनुष्य संयतासंयतजीव है। चार सज्ज्वलनकषायों का बंध करनेवाला और उत्कृष्टयोग से युक्त अन्यतर अनिवृत्तिकरणउपशामक या क्षपक क्रोधसज्ज्वलन के उत्कृष्टप्रदेशबन्ध का स्वामी है। तीन सञ्ज्वलनकषायों का, दो सज्ज्वलन कषायों का और एक सञ्चलन कषाय का बन्ध करने वाला उक्त अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती उपशमक या क्षपक क्रमशः मान, माया व लोभ के उत्कृष्टप्रदेशबन्ध का स्वामी है। इसी प्रकार पुरुषवेद की अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्व जानना । इतनी विशेषता है कि जो मोहनीयकर्म की पाँच प्रकृतियों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट योग से युक्त है, वह पुरुषवेद के उत्कृष्टप्रदेशबन्ध का स्वामी है। सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त आठ कर्मों का बन्ध करनेवाला उत्कृष्टयोग से युक्त मिथ्यादृष्टि सञ्ज्ञीतिर्यञ्च या मनुष्य नरकायु के उत्कृष्टप्रदेशबन्ध का स्वामी है। सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्त आठों कर्मों का बन्ध करने वाला और
१. महाबन्ध पुस्तक ६ पृष्ठ ९२ के पेरा नं. १७२ से प्रारम्भ