Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७३
मिथ्यात्वादिगुणस्थानों में व्युच्छित्ति क्रमसे १६-२५-०-१०-४-६-१-३६ तथा ५-१६-००-५- शून्यरूप प्रकृतियों की है। मिथ्यात्वादिगुणस्थानों में ११५-१०१-७४-७७-६७-६३-५९-५८२२-१७-१-१-१ और शून्यरूप प्रकृतियों का बन्ध यथाक्रमसे जानना चाहिए तथा मिथ्यात्वादिगुणस्थानोंमें अबन्धरूप प्रकृति यथाक्रमसे ३-१९-४६-४३-५३ और ५७-६१-६२-९८१०३-११९-११९-११९ एवं १२० जानना । इसकी सन्दृष्टि गुणस्थानोक्त सन्दृष्टिके समान ही जानना ।
. पञ्चेन्द्रिय सिमुल्याएक में बन्धयोग्य प्रकति ११२ (१२०-४ आयु+ नरकद्विक+ आहारकद्विक) हैं। गुणस्थानपाँच। तीर्थङ्कर और सुरचतुष्कका बन्ध असंयतगुणस्थान में ही है, अत: निवृत्त्यपर्याप्तक मनुष्य के समान समस्त कथन है, किन्तु विशेषता यह है कि औदारिकद्विक, मनुष्यद्विक, वज्रर्षभनाराचसंहनन इन पाँच प्रकृतियों की व्युच्छित्ति मनुष्यगतिमें तो द्वितीयगुणस्थान में कही थी, किन्तु यहाँ चतुर्थगुणस्थान में ही इनकी व्युच्छित्ति होती है क्योंकि पंचेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तक में चारों गति के निर्वृत्त्यपर्याप्तक जीव सम्भव हैं। देव और नारकी के चतुर्थ गुणस्थान में औदारिकद्विक, मनुष्यद्विक और वज्रर्षभनाराचसंहनन की बंधव्युच्छित्ति होती है। सामान्यसे बन्धयोग्य ५२० प्रकृतियों में से ४ आयु, आहारकद्विक और नरकद्विक इन आठ प्रकृतियों को कम करने से बन्धयोग्य ११२ प्रकृतियां कही गई हैं। गुणस्थान मिथ्यात्व, सासादन, असंयत, प्रमत्त और सयोगी ये पांच हैं।
__यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छित्ति १३ की, बन्धप्रकृति १०७ तथा अबन्धरूप प्रकृति ५ हैं। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति २४ की, बन्ध ९४ प्रकृतिका, अबन्ध १८ प्रकृतिका है। असयंतगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूपप्रकृति १३, बन्धप्रकृति ७५ तथा अबन्ध ३७ प्रकृतिका है। प्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छित्ति ६१ की, बन्ध ६२ का तथा अनन्धरूप प्रकृति ५० । सयोगकेवलीगुणस्थान में व्युच्छित्ति १ प्रकृतिकी, बन्धप्रकृति १ तथा अबन्धप्रकृति १११ है। निर्वृत्त्यपर्याप्तपञ्चेन्द्रियसम्बन्धी यह कथन चारोंगति की अपेक्षा से जानना। पंचेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तक जीव में बन्ध-अबन्ध-बन्ध व्युच्छित्ति की संदृष्टि
बन्धयोग्य प्रकृति ११२ । गुणस्थान ५ । गुणस्थान | | बन्ध | अबन्ध | बन्ध
विशेष
व्युच्छित्ति
मिथ्यात्व
| १०७
५ (देवचतुष्क, तीर्थङ्कर) १३ (गुणस्थानोक्त १६३ नरकद्विक, नरकायु) २४ (गुणस्थानोक्त २५-१ तिर्यब्वायु)
सासादन
९४ | १८ |
२४
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