Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ८९
यथाख्यातसंयम में बन्ध - अबन्ध और व्युच्छित्तिसम्बन्धी सन्दृष्टि
बन्धयोग्यप्रकृति १ । गुणस्थान चार ।
विशेष
गुणस्थान बन्ध अबन्ध व्युच्छित्ति
उपशान्तमोह
क्षीणमोह
सयोगी
अयोगी
गुणस्थान
मिथ्यात्व
सासादन
मिश्र
असंयत
ปี
0
बन्ध
D
११७
१०१
७४
७७
प्र
संयमासंयम में बन्ध-अबन्ध और व्युच्छित्तिसम्बन्धी सर्वकथन देशसंयतगुणस्थानके समान जानना चाहिए। बन्ध ६७, अबन्ध ५३ और बन्ध व्यु. ४ |
०
असंयममें आहारकद्विकबिना बन्धयोग्यप्रकृति ११८ हैं । गुणस्थान आदि के चार हैं । यहाँ चारों ही गुणस्थानों में च्छित्ति एवं रूप प्रकृतियाँ गुणस्थानं के कयनवत् जानना, किन्तु अबन्धरूप प्रकृति क्रमसे १-१७-४४ और ४१ जानना । मिश्रगुणस्थान में तीर्थङ्कर, देवायु और मनुष्यायुका अबन्ध है।
०
x x
५
१७
0
असंयममें बन्ध-अबन्ध - व्युच्छित्तिकी सन्दृष्टि
बन्धयोग्यप्रकृति १९८ । गुणस्थान ४ ।
विशेष
४४
४१
अबन्ध व्युच्छित्ति
१६
२५
१ प्रकृति यहाँ सर्वत्र 'सातावेदनीय' ही जानना ।
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१०
१ ( तीर्थङ्कर) १६ ( गुणस्थानोक्त) २५ ( गुणस्थानोक्त)
४४ (२५+१७+२ मनुष्यायु व देवायु)
४१ (४४ - ३ तीर्थङ्कर, मनुष्यायु, देवायु)
।। इति संयममार्गणा ।।