Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - १४१
अर्थ - प्रशस्तध्रुव प्रकृतियों का अनुत्कृष्ट तथा अप्रशस्तध्रुव प्रकृतियों का अजघन्य अनुभागबन्ध सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव के भेद से चार प्रकार का है। प्रशस्तध्रुवप्रकृतियों का उत्कृष्ट, अजघन्य, जघन्य एवं अप्रशस्तध्रुवप्रकृतियों का जघन्य, अनुत्कृष्ट, उत्कृष्ट तथा अध्रुवप्रकृतियों का जघन्यादि चारों प्रकार का अनुभागबन्ध सादि और अध्रुव के भेद से दो प्रकार का है।
विशेषार्थ - तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, निर्माण ये चार प्रकृतियाँ प्रशस्तध्रुवबन्धी हैं । ५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, ५ अन्तराय, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा और उपघात ये ३९ अप्रशस्तध्रुवबन्धी प्रकृतियाँ हैं तथा शेष ७३ प्रकृतियाँ अध्रुवबन्धी हैं। सामान्यरूप वर्णादि ४ तो ध्रुवबन्धी हैं, किन्तु प्रशस्त व अप्रशस्तरूप वर्णादि ४ ध्रुवबन्धी नहीं हैं।
यहाँ वर्णचतुष्ककी शुभ-अशुभरूप दोनों ही स्थानों पर गणना होने से १२०+४ = १२४-५१ ( ध्रुवबन्धी ) = ७३ प्रकृतियाँ अध्रुवबन्धी जानना । वैसे तो बन्धयोग्य प्रकृति १२० ही हैं। उत्तरप्रकृतिसम्बन्धी अनुभागबन्ध की सन्दृष्टि
अनुभागबन्ध के भेद
उत्कृष्ट
अनुत्कृष्ट
अजघन्य
जघन्य
-
प्रशस्तध्रुव
प्रकृति ४
२
મ
२
२
अप्रशस्तध्रुव
प्रकृति ३९
२
२
४
२
अथानन्तर अनुभागबन्ध का लक्षण घातियाकर्मों में कहते हैं
अध्ध्रुवप्रकृति
७३
२
नोट - यहाँ २ का अङ्क सादि व अध्रुव एवं ४ का अ सादि, अनादि, ध्रुव, और अध्रुव को सूचित करता है।
२
२
२
-
सत्ती य लदादारूअट्ठीसेलोवमाहु घादीणं । दारुणंतिम भागोत्ति देसघादी तदो सव्वं ॥ १८० ॥
अर्थ घातियाकर्मोंकी शक्ति (स्पर्धक) लता, काष्ठ, हड्डी और पाषाण के समान है तथा
दारुभाग के अनन्तवें भागपर्यन्त शक्तिरूपस्पर्धक देशघाति हैं। शेष बहुभाग से शैलभागपर्यन्त स्पर्धक सर्वघाति हैं ।