Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - १५९
श्रुतज्ञानावरणका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे अभिनिबोधिकज्ञानावरण का उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे मानसज्वलन का उत्कृष्टप्रदेशात विशेष अधिक है, उससे अवधिदर्शनावरणका उत्कृष्टप्रदेशा विशेष अधिक है, उससे अचक्षुदर्शनावरण का उत्कृष्टप्रदेशात विशेष अधिक है, उससे चक्षुदर्शनावरणका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे पुरुषवेदका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे मायासञ्ज्वलनका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे अन्यतर आयुका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे नीचगोत्र का उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे लोभसञ्चलनका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे असातावेदनीयका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे यशस्कीर्ति और उच्चगोत्रका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है और उससे सातावेदनीयका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है ।
अब सर्वघाति - देशघातिद्रव्य का विशेष विभाग दिखाते हैं -
सव्वावरणं दव्वं विभंजणिज्जं तु उभयपयडीसु । देसावरणं दव्वं देसावरणेस विदरे ।। १९९ ।
अर्थ - धातियाकर्मों के अपने-अपने द्रव्यको अनन्तका भाग देने पर एकभागप्रमाण सर्वघातिद्रव्य है और बहुभागप्रमाण देशघातिद्रव्य है इनमें सर्वघातिद्रव्य तो सर्वघाति और देशघातिप्रकृतियों को देना तथा देशघातिद्रव्य देशघातिप्रकृति में ही देना, केवलज्ञानावरणादि सर्वधाति प्रकृतियों में नहीं देना ।
अब उत्तरप्रकृतियों में विभाग कहते हैं -
बहुभागे समभागोबंधाणं होदि एक्कभागम्हि ।
उत्तकमो तत्थवि बहुभागो बहुगस्स देओ दु ॥ २०० ॥
में
अर्थ - जिनका एकसमय में बन्ध हो ऐसी उत्तर प्रकृतियों के अपने-अपने पिण्डरूप द्रव्य आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर बहुभाग के समानभाग करके अपनी-अपनी उत्तरप्रकृतियों में समानद्रव्य देना और एकभाग में से मोहनीय - ज्ञानावरण व दर्शनावरण की प्रकृतियों को क्रमसे घटताघटता और नामकर्म तथा अन्तरायकर्म की प्रकृतियों को क्रमसे अधिक अधिक द्रव्य देना इस प्रकार क्रम कहा । इनमें भी जिसका बहुत द्रव्य कहा उसको पृथक् रखे हुए एक भागका बहुभाग देना ।
अर्थ
घादितियाणं सगसगसव्वावरणीयसव्वदव्वं तु ।
उत्तकमेण च देयं विवरीदं णामविग्धाणं ॥ २०९ ॥
ज्ञानावरण- दर्शनावरण और मोहनीयरूप घातिया कर्मों का क्रमशः आदि से