Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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....... कोर. ... ... ... . आवली के असंख्यातवेंभाग का भाग देकर बहुभाग मिथ्यात्व को देना, शेष एक भाग में उसी प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग अनन्तानुबन्धीलोभको देना तथा शेष एकभाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग अनन्तानुबन्धी मायाको देना। इसी क्रम से जो एक-एक भाग शेष रहता जाय उसमें प्रतिभागका भाग देकर बहुभाग-बहुभाग अनन्तानुबन्धी क्रोधको, अनन्तानुबन्धीमानको, सज्वलनलोभको, सज्वलनमायाको, सज्वलनक्रोधको, सज्वलनमानको, प्रत्याख्यानलोभको, प्रत्याख्यानमायाको प्रत्याख्यानक्रोधको, प्रत्याख्यानमानको तथा अप्रत्याख्यानलोभ-माया और क्रोध को देना शेष एक भाग रहा उसे अप्रत्याख्यानमानको देना। पहले जो १७ भाग किए थे उनमें इन दिये हुए भागों को मिलाने पर अपनी-अपनी प्रकृति के सर्वघातिद्रव्यका प्रमाण होता है।
सज्वलनके देशधातिद्रव्यका जो प्रमाण कहा उसमें प्रतिभागका भाग देकर एकभाग को पृथक् रख शेष बहुभाग के चार समानभाग करके एक-एक भाग चारों सज्वलनकषायों को तथा जो शेन एक भाग रहा उसमें प्रतिभाग का भाग देकर लब्धराशि में से बहुभाग सज्वलनलोभको देना और शेष एकभाग में प्रतिभागका भाग देकर बहुभाग सञ्ज्वलनमाया को देना शेष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग सज्वलनक्रोध को देना एवं जो एकभाग शेष रहा वह सचलनमानको देना : इस प्रकार प्रत्येक प्रकृतिको जो भाग दिये गये हैं उनको पूर्व में समानरूप से विभाजित भागों में क्रम से मिलाने पर तद्-तद् प्रकृतिसम्बन्धी देशघातिद्रव्य होता है। इसप्रकार सज्वलनकी चारकषाय का देशवाति और सर्वघातिद्रव्य मिलाने पर सर्वद्रव्य होता है।
मिथ्यात्व और बारहकषायका द्रव्य सर्वघातिरूप ही है और नोकषाय का द्रव्य देशघातिरूप ही है, अतः अब इन ९ नोकषायों के द्रव्य का विभाग कहते हैं -
सर्वप्रथम जो नोकषायसम्बन्धीद्रव्य कहा था उसमें प्रतिभाग का भाग देकर एकभाग बिना बहुभाग के पांचभाग करके एक-एक भाग पाँचों प्रकृतियों को देना तथा जो एक भाग शेष बचा था उसमें प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग तीनों वेदों में से जिसका बन्ध हो उसको देना, शेष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग रति-अरति में से जिसका बन्य हो उसको देना तथा शेष एकभाग में प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग हास्य-शोक में से जिसका बन्ध हो उसको देना, शेष एक भाग में प्रतिभागका भाग देकर बहुभाग भयको देना एवं शेष एकभाग जुगुप्सा को देना। पूर्व में जो समानरूप से पाँचभाग किये थे उनमें उपर्युक्त प्रतिभागविधि से प्राप्त द्रव्य तत्-तत् प्रकृति के द्रव्य में मिलाने पर अपना-अपना 'द्रव्य होता है।