Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१६७
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सभीद्रव्य पुरुषवेदको ही देना । देशघातिरूप सञ्चलनकषाय के देशधातिद्रव्य को जितनी प्रकृतियाँ बँधे उनमें हीनक्रमप्से देना । इस प्रकार मिथ्यात्वगुणस्थान से अनिवृत्तिकरणके दूसरे (क्रोध) भागपर्यन्त चारों कषायों में विभाग करना, तीसरे भाग में जहाँ क्रोधका बन्ध नहीं है यहाँ तीन प्रकृतियों में तथा चतुर्थभागमें जहाँ मानका भी बन्ध नहीं है वहाँ दो प्रकृतियों में और पञ्चमभाग में जहाँ मायाजा भी बन्ध नहीं है वहाँ सज्वलनका देशघानिरूप सर्वद्रव्य एक लोभप्रकृतिको ही देना। इस प्रकार पूर्वोक्त क्रम से हीन-हीन द्रव्य जानना।
अब नोकषायका बन्ध निरन्तर कितने कालपर्यन्त होता है यह कहते हैं - .. पुंबंधऽद्धा अंतोमुहुत्त इथिम्हि हस्स जुगले य।
अरदेिदुर्ग संखगुणा णपुंसकऽद्धा विसेसहिया॥२०५॥ अर्थ - (मिथ्यात्वगुणस्थान में) पुरुषवेदके निरन्तर बँधने का काल अन्तर्मुहूर्त है। स्त्रीवेदका उससे संख्यातगुणा, हास्य और रतिका उससे भी संख्यातगुणा, अरति व शोकका उससे संख्यातगुणा और नपुंसकवेदका काल उससे भी कुछ अधिक जानना । (यह सर्वकाल पृथक्-पृथक् रूप से भी अन्तर्मुहूर्त ही है।)
विशेषार्थ - मिथ्यादृष्टिजीव के पुरुषवेदका निरन्तर बँधने का काल (बीच में किसी अन्यवेदका बन्ध न हो) अन्तर्मुहूर्त है अर्थात् वह संख्यातगुणा संख्यातआवली प्रमाण है और इसकी सहमानी दोगुणा अन्तर्मुहूर्त है। स्त्रीवेदके निरन्तर बंधने का काल उससे भी संख्यातगुणा है उसकी सहनानी ४ गुणा अन्तर्मुहर्त है। हास्य और रतिका उससे भी संख्यातगुणा है और उसकी सहनानी १६ गुणा अन्तर्मुहूर्त है, अरति व शोकके बँधने का काल उससे भी संख्यातगुणा है जिसकी सहनानी ३२ गुणा अन्तर्मुहूर्त है। नपुंसकवेद के निरन्तर बंधने का काल उससे भी कुछ अधिक है इसकी सहनानी ४२ गुणा अन्तर्मुहूर्त है। इस प्रकार तीनों वेदों का काल मिलाने पर उसकी सहनानी की अपेक्षा ४८ अन्तर्मुहूर्त तथा हास्यशोक और रति-अरतिका काल मिलाने पर भी ४८ अन्तर्मुहूर्त होते हैं। यहाँ मिले हुए कालको प्रमाणराशि मानकर और पिण्डरूपद्रव्य को फलराशि तथा अपने-अपने कालको इच्छाराशि मानकर त्रैराशिकद्वारा लब्धराशि में अपने-अपने द्रव्य का प्रमाण प्राप्त होता है।
यहाँ सत्ता में स्थित तीनोंवेदसम्बन्धीद्रव्य में मिले हुए कालकी सहनानीरूप ४८ अन्तर्मुहूर्तका भाग देने पर जो प्रमाण हो उसको पुरुषत्रेदके काल को सहनानी दो अन्तर्मुहूर्त से गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना पुरुषवेदसम्बन्धी द्रव्य जानना, यह द्रव्य सबसे स्तोक है तथा स्त्रीवेद के काल की सहनानी ४ अन्तर्मुहूर्त से गुणा करनेपर जो प्रमाण आवे उतना स्त्रीवेदका द्रव्य है, यह द्रव्य पुरुषवेदके द्रव्य से संख्यातगुणा है। नपुसकवेदसम्बन्धी कालकी सहनानी ४२ अन्तर्मुहुर्त से गुणा करने पर जो प्रमाण प्राप्त