Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - १६१
और प्रचलाके तथा चक्षु - अचक्षु और अवधिदर्शनावरण को हीनक्रमसे देना। अन्त में जो शेष एक भाग बचे वह केवलदर्शनावरण का द्रव्य जानना । इस प्राप्त द्रव्य को पूर्व में जो समानरूप से भाग किए थे । उस द्रव्य में यथाक्रम मिलाने से स्त्यानगृद्धि आदि कर्मों के सर्वघातिद्रव्यका प्रमाण होता है तथा दर्शनावरणसम्बन्धीद्रव्य के अनन्त भागों में से एकभाग बिना शेष बहुभाग प्रमाण देशघातिद्रव्य है उसमें प्रतिभाग का भाग देने पर जो प्रमाण आवे उसमें से एक भागविना बहुभाग के समान भाग करके एक - एकभाग चक्षु अचक्षु और अवधिदर्शनावरण को देना तथा जो एकभाग शेष रहा था उसमें प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग चक्षुदर्शनावरणको एवं शेष रहे एकभागमें पुनश्च प्रतिभाग का भाग देकर एकभागबिना शेष बहुभाग अचक्षुदर्शनावरणको देना तथा जो एक भाग शेष रहा वह अवधिदर्शनावरणका द्रव्य जानना। पहले जो समानरूपसे तीनभाग किए थे उनमें प्रतिभागविधि से प्राप्त द्रव्यको मिलाने से क्रमश: चक्षुदर्शनावरणादिका देशघातिरूपद्रव्य होता है एवं चक्षु अचक्षु अवधिदर्शनावरणसम्बन्धी सर्वघाति और देशघातिद्रव्य को परस्पर में जोड़ देने से चक्षुदर्शनावरणादि तीन प्रकृतियों का सर्वद्रव्य का प्रमाण होता है। शेष ५ निद्रा और केवलदर्शनावरण प्रकृतियों का सर्वद्रव्य सर्वघातिरूप ही है ।
अन्तरायकर्मसम्बन्धी सर्वद्रव्य के प्रमाण में प्रतिभाग का भाग देने पर प्राप्त हुई राशि में से एक भाग बिना बहुभाग के पाँचसमानभाग करके एक-एक भाग अन्तरायकर्म की पाँचों प्रकृतियों को देना । शेष एक भाग में प्रतिभाग का भाग देकर एकभागबिना शेष बहुभाग वीर्यान्तरायको और शेष एकभाग में प्रतिभाग का भाग देकर एकभागबिना बहुभाग उपभोगान्तराय को देना । इसी प्रकार जो एक-एक भाग शेष रहे उसमें प्रतिभाग का भाग देकर बहुभाग भोगान्तराय और लाभान्तराय को देना एवं अन्त में जो एकभाग शेष रहा वह दानान्तराय का द्रव्य जानना । पूर्वमें जो पाँचों प्रकृतिसम्बन्धी समान भाग किए उनमें प्रतिभाग विधि से प्राप्त प्रत्येक प्रकृति के द्रव्य को मिलाने पर तद् - तद् प्रकृतिसम्बन्धी द्रव्य का प्रमाण होता है। इस प्रकार अन्तरायकर्म की उत्तरप्रकृतियों का क्रम जानना ।
अब उपर्युक्त कथन को असन्दृष्टि द्वारा स्पष्ट करते हैं -
माना कि ज्ञानावरणकर्मसम्बन्धी सर्वद्रव्य ४५००० है और अनन्तकी संख्या ५ है । यहाँ सर्वद्रव्य ४५००० में अनन्त की संख्या ५ का भाग देने से (४५००० : ५) ९००० प्रमाणद्रव्य सर्वघातिका जानना। अब सर्वद्रव्य ४५००० में से सर्वघातिसम्बन्धी द्रव्य १००० को घटा देने पर (४५०००९०००) ३६००० प्रमाण जो द्रव्य आया सो देशघातिका द्रव्य है । ज्ञानावरण के सर्वघातिद्रव्य ९०००
प्रतिभाग (आवली असंख्यातवें भाग के प्रमाण ३) से भाग देने पर ९०००: ३ = ३००० प्राप्त हुआ इसको ९००० में से कम करने पर ९०००-३००० = ६००० प्रमाण बहुभागरूप द्रव्य को ज्ञानावरणकी पाँचों प्रकृतियों को सुभानरूप से बाँट देने पर ६०००: ५ = १२०० प्रमाण द्रव्य प्रत्येक प्रकृतिको मिलेगा तथा शेषभाग प्रमाणं द्रव्य ( ३०००) को प्रतिभाग (३) से भाग देने से
३०००_
"लब्ध आया इसमें से एक
३