Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१४०
का ग्रहण नहीं करना तथा सर्वोत्कृष्टपरिणामों से भी जघन्यअनुभागबन्ध नहीं होता, क्योंकि तीव्रसंक्ले से अशुभप्रकृतियोंका अनुभाग वृद्धिरूप होता है। यहाँ जघन्यअनुभाग का कथन होने । सर्वोत्कृष्टसंक्लेशपरिणामों का भी ग्रहण नहीं करना।) इस प्रकार जघन्य अथवा उत्कृष्ट परिणामों का निराकरण करने के लिए परिवर्तमान मध्यमपरिणामों से पूर्वोक्त प्रकृतियों का जघन्यअनुभागबन्ध हो ।
आगे मूलप्रकृतियों के उत्कृष्टादि अनुभागके सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव भेदों को कहते हैं -
घादीणं अजहण्णोऽणुक्कस्सो वेयणीयणामाणं। :. .....: अजायण पुकस्सो, मो चदुधा दुधा सेसा ।।१७८ ॥
अर्थ - घातियाकर्मों का अजघन्यअनुभागबन्ध वेदनीय व नामकर्मका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध और गोत्रकर्म का अजघन्य व अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध भी सादि, अनादि, ध्रुव एवं अध्रुवरूप है तथा घातियाकर्मों का उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट व जघन्यअनुभाग, वेदनीय व नामकर्मका उत्कृष्ट, अजघन्य व जघन्यअनुभाग, गोत्रकर्मका उत्कृष्ट, जघन्यअनुभाग एवं आयुकर्म का उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, अजघन्य वः | जघन्यअनुभागबन्ध सादि और अध्रुवके भेदों से दो प्रकार है।
मूलप्रकृतियों में अनुभागसम्बन्धी सन्दृष्टि अनुभाग बन्ध | ज्ञानावरण दर्शनावरण | वेदनीय | मोहनीय आयु , नाम | गोत्र अंतराय के भेद
उत्कृष्ट
अनुत्कृष्ट
अजघन्य
जघन्य
ध्रुवप्रकृतियों में प्रशस्त, अप्रशस्त एवं अधुवप्रकृतियों के जघन्य, अजघन्य, अनुत्कृष्ट व उत्कृष्ट अनुभागसम्बन्धी सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुवभेदों का कथन करते हैं -
सत्थाणं धुवियाणमणुकस्समसत्थगाण धुवियाणं । अजहण्णं च य चदुधा सेसा सेसाणयं च दुधा ॥१७९।।