Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१५४
उन पूर्वोक्त प्रकृतियों के परमाणुओं का प्रमाण वही द्रव्य जानना। तीनबार अनन्तको परस्परगुणा करने पर जो प्रमाण हो उतना अनुभागसम्बन्धी द्रव्य का परिमाण जानना । दोबार अनन्तको परस्परगुणा करने पर जो प्रमाण आवे उतनी गुणहानि जाननी, इससे दोगुणी दोगुणहानि जानना, नानागुणहानि अनन्त हा नागुणहानि प्रमाण २ के अ लिखकर परस्पर में गुणा करने पर जो लब्ध आवे उतनी अन्योन्याभ्यस्तराशि है। यहाँ जो अन्योन्याभ्यस्तराशि का प्रमाण है वही सर्वघातिद्रव्य का प्रमाण निकालने के लिए प्रतिभाग है। इसी को स्पष्ट करते हैं -
मतिज्ञानावरणादि चारका द्रव्य केवलज्ञान के हिस्से बिना अपने सर्वघातिद्रव्य सहित देशघाति के द्रव्य प्रमाण है। (अर्थात् इनदेशघाती प्रकृतियों का देशघातीद्रव्य तो अपना ही है, सर्वघातीद्रव्य भी है। वह सर्वघाती द्रव्य केवलज्ञानावरण का जितना भाग है उससे हीन है, सब नहीं है। इस तरह देशघाती
और सर्वघाती द्रव्य मिलकर मतिज्ञानावरणादिक का द्रव्य होता है, जो) कुछ अधिक समय प्रबद्धके आठवेंभाग प्रमाण है। इसमें (द्रव्य में) एककम अन्योन्याभ्यस्तराशि का भाग देने से शैलभाग की अन्तिम गुणहानि में द्रव्य का प्रमाण होता है। पश्चात् नीचे एक-एक गुणहानि प्रति दूना-दूनाद्रव्य होकर दारुभाग की प्रथमगुणहानि पर्यन्त जाता है। दारुभाग के अनन्तभागों में एक भाग (देशघाति) बिना शेष बहुभागसम्बन्धी द्रव्य उनकी प्रथमगुणहानि में शैलभाग की चरमगुणहानिके द्रव्य को यथायोग्य आधे अनन्त (अन्योन्याभ्यस्तराशिका आधाभाग) से गुणा करने पर जो प्रमाण हो उतना द्रव्य है। इस प्रकार शैलभाग की चरमगुणहानि से दारु बहुभाग की प्रथमगुणहानि पर्यन्त जितनी गुणहानि हुई उसे गच्छ जानना । सो एक कम गच्छ मात्र दो के अंकों को गुणा करने पर सर्वघातिसम्बन्धी अन्योन्याभ्यस्त राशि अनन्त प्रमाण होती है। उसका आधा यहाँ गुणकाररूप जानना। इन सर्वगुणहानियों के द्रव्यों को जोड़ने पर जो प्रमाण हो उतने परमाणु सर्वघाति सम्बन्धी जानना इसलिए सर्वघातिद्रव्य प्राप्त करने के लिए अन्योन्याभ्यस्तराशि का प्रतिभाग कहा।
सन्दृष्टि इस प्रकार है शैलभाग की | शैलभाग की | अस्थिभागकी | अस्थिभागकी | दारुभागकी | दारुके सर्वघाति चरमगुणहानि | अन्य गुणहानि | चरमगणहानि | अन्य गुणहानि | चरम गुणहानि | भाग की प्रथम का द्रव्य का द्रव्य | का द्रव्य काद्रव्य का द्रव्य गुणहानिका द्रव्य
३६
२८८
१४४ १६० १७६
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