Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१५६
पर्ययज्ञानावरणीय का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है। उससे अवधिज्ञानावरणीय का उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे श्रुतज्ञानावरणीयका उत्कृष्ट प्रदेशाग्न विशेष अधिक है। उससे आभिनिबोधिकज्ञानावरणीयका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है।
प्रचला का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है, उससे निद्राका उत्कृष्टप्रदेशाग्न विशेष अधिक है, उससे प्रचलाप्रचलाका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे निद्रा-निद्रा का उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे स्त्यानगृद्धिका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे केवलदर्शनावरणका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, इससे अवधिदावाल्मृण का उत्कृतपरदेशष्य अनन्तगुणा है, उससे अचक्षुदर्शनावरण का उत्कृष्ट प्रदेशाग्न विशेष अधिक है और उससे चक्षुदर्शनावरण का उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है।
__ असातावेदनीय का उत्कृष्टप्रदेशाग्र सबसे स्तोक है, उससे सातावेदनीयका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है।
अप्रत्याख्यानावरणमानका उत्कृष्टप्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे अप्रत्याख्यानावरणक्रोध का प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरणमाया का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र अधिक है। इससे अप्रत्याख्यानावरणलोभका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरणमानका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे प्रत्याख्यानावरणक्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे प्रत्याख्यानावरणमाया का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे प्रत्याख्यानावरणलोभ का उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे अनन्तानुबन्धीमानका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है उससे अनन्तानुबन्धीक्रोधका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है उससे अनन्तानुबन्धीमाया का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे अनन्तानुबन्धीलोभ का उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे मिथ्यात्व का उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे जुगुप्सा का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है, उससे भयका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे हास्य-शोकका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे रति-अरतिका उत्कृष्टप्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे स्त्रीवेद-नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे क्रोधसञवलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है, उससे मानसञ्जवलनका उत्कृष्टपदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है, उससे मायासज्वलनका उत्कृष्टप्रदेशाग्न विशेष अधिक है, उससे लोभसज्वलन का उत्कृष्टप्रदेशाग्र संख्यातगुणा है।
चार आयुओं का उत्कृष्टप्रदेशाग्र परस्पर में समान है।
नरकगति-देवगति का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे मनुष्यगति का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे तिर्यञ्चगति का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। चार जातियों का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे एकेन्द्रिय जातिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। आहारक शरीर