Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१५५
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२०८ २२४ २४० २५६
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इस प्रकार गुणहानि गुणहानिप्रति दुगुना द्रव्य होता गया है। नानागुणहानि ६ अन्योन्याभ्यस्तराशि २४२४२४२४२४१ - ६४ का आधा ३२, शै: की चरण गुग हानि द्रव्य १०० को ३२ से गुणा करने पर ३२०० दारुरूप सर्वघातिभाग की प्रथम गुणहानि का द्रव्य ।
अब देशघातिद्रव्य को कहते हैं -
दारुभाग के बहुभाग की प्रथमगुणहानि के द्रव्यसे नीचे दारुभाग के अनन्तभागों में एक भाग की अन्तिमगुणहानि का द्रव्य दूना है तथा नीचे गुणहानि-गुणहानिप्रति दूना-दूना द्रव्य होकर लताभागकी प्रथमगुणहानिपर्यन्त जाता है। एक कम सर्व (नाना) गुणहानि का जो प्रमाण है उतनी बार दो के अङ्क लिखकर परस्पर में गुणा करने पर जो लब्ध प्राप्त हो वह अन्योन्याभ्यस्तराशि है। उसके आधेप्रमाण से शैलभाग की अन्तिमगुणहानि के द्रव्य को गुणा करने पर जो प्रमाण हो उतना लताभाग की प्रथमगुणहानिका द्रव्य जानना। इन गुणहानियों को जोड़ने पर जो प्रमाण हो उतने परमाणु देशघाती सम्बन्धी जानने ।
यहाँ अङ्कसन्दृष्टि में सर्वद्रव्य ३१०० में अन्योन्याभ्यस्तराशि ३२ में से एक कम करके (३२१ = ३१) लब्धराशि का भाग देने पर (३१००३१) १०० आए, यह शैलभाग की अन्तिमगुणहानिका द्रव्य जानना, पश्चात् गुणहानि-गुणहानिप्रति दूना होकर २००-४००-८००, एककम नानागुणहानि ४, इतनी बार दोके अङ्क लिखकर (२४२४२४२) परस्पर गुणा करने पर १६ हुए। यह अन्योन्याभ्यस्तराशि ३२ का आधाप्रमाण है। इससे शैलभाग की अन्तिमगुणहानि के द्रव्य १०० को गुणा करने पर (१००x१६) १६०० हुए, यह लताभाग की प्रथमगुणहानिका द्रव्य जानना | इसी प्रकार दर्शनावरणादि के द्रव्यों में भी सर्वघाति-देशघातिरूप द्रव्य का प्रमाण जानना ।
इस गाथा सूत्र में कर्म प्रकृतियों के प्रदेशों का प्रमाण ज्ञात करने का विधान बताया गया है जिससे यह ज्ञात हो सके कि किस कर्मप्रकृतिके प्रदेश अल्प हैं और किस कर्मप्रकृतिके अधिक हैं, इसी ग्रन्थ की संस्कृतटीका में इसका कथन किया गया है, किन्तु प्रदेशबन्ध की अपेक्षा अल्पबहुल्यका कथन महाबन्ध पु. ७ पृष्ट ६५ में भी किया है उसी के अनुसार यहाँ लिखते हैं। तद्यथा -
अल्पबहुत्व दो प्रकार का है - १. स्वस्थान अल्पबहुत्व २. परस्थान अल्बहुत्व । स्वस्थानअल्पबहुत्व दो प्रकार का है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्ट का प्रकरण है - निर्देश दो प्रकार का है - ओघ और आदेश। ओघ से केवलज्ञानावरणीय का उत्कृष्ट प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है, उससे मन: