Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१४२
विशेषार्थ - ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तरायरूप घातियाकर्मों की शक्ति (स्पर्धक) लता, दारु, अस्थि, शैलकी उपमा के समान चार प्रकार की है। जिस प्रकार लता आदि में क्रम से अधिक-अधिक कठोरता पाई जाती है, उसी प्रकार इन कर्म स्पर्धक अर्थात् कर्मवर्गणाके समूहों में अपने फल देने की शक्तिरूप अनुभाग क्रम से अधिक-अधिक पाया जाता है।
लताभाग से दारुभाग के अनन्तर्वभागपयेन्त स्पर्धकदेशधाति हैं, इसके उदय होने पर भी आत्मा के गुण एकदेशरूप से प्रगट रहते हैं तथा दारुभाग के अनन्तभागों में से एक भाग बिना शेष बहुभाग से शैलभागपर्यन्त जो स्पर्धक हैं वे सर्वघाति हैं, क्योंकि इनके उदय रहने पर आत्मगुणों का एक अंश भी प्रगट नहीं होता अथवा पूर्णगुण प्रकट नहीं होते। जैसे- जहाँ अवधिज्ञान का अंश भी प्रकट न हो वहाँ अवधिज्ञानावरण के सर्वघातिस्पर्धकों का उदय जानना चाहिए तथा जहाँ पर अवधिज्ञान और अवधिज्ञानावरण भी पाया जाता है वहाँ अवधिज्ञानावरण के देशघातिस्पर्धकों का उदय जानना। इसी प्रकार अन्य प्रकृतियों में भी कथन समझना चाहिए । अब मिथ्यात्वप्रकृति में विशेषता बताते हैं -
देसोत्ति हवे सम्मं तत्तो दारु अणंतिमे मिस्सं ।
सेसा अणंतभागा अट्टिसिलाफट्या मिच्छे ।।१८१॥ अर्थ - दर्शनमोहनीयकर्मके लताभाग से दारुभाग के अनन्तभागों में से एक भाग पर्यन्त देशघातिके सभी स्पर्धक सम्यक्त्वप्रकृतिरूप हैं तथा दारुभाग के एक भाग बिना शेष बहुभाग के अनन्तखण्ड करके उनमें से अधस्तन एक खण्ड प्रमाण भिन्नजाति के सर्वघाति स्पर्धक मिश्रप्रकृतिरूप जानना तथा शेष दारुभाग के बहुभाग में एक भागबिना बहुभाग से अस्थिभाग-शैलभाग पर्यन्त जो स्पर्धक हैं वे सर्वघातिमिथ्यात्वरूप जानने।
विशेषार्थ - माना कि दर्शनमोहनीयकर्मकी अनुभागशक्ति के स्पर्धक १२० हैं और अनन्त की संख्या ४ मानी, लताभाग की शक्ति के स्पर्धक ८, दारुभाग के स्पर्धक १६, अस्थिभाग के स्पर्धक ३२ तथा शैलभाग के स्पर्धक ६४ हैं। अर्थात् ८+१६+३२+६४ = १२० ये दर्शनमोहनीयकर्म की अनुभागशक्ति के स्पर्धक हैं। इनमें से मिथ्यात्वप्रकृति को कितना भाग मिलेगा? मिश्र को कितना मिलेगा? सम्यक्त्वप्रकृति को कितना भाग मिलेगा? लता भाग के ८+ दारुभाग का अनन्तवांभाग अर्थात् १६.४ = ४ इस प्रकार ८+४ - १२ भाग सम्यक्त्व प्रकृति को मिलेंगे। मिश्रप्रकृतिको दारुभाग के १६४ = १२ भाग जो शेष था उसका अनन्तबांभाग अर्थात् १२६४ =३ भाग। मिथ्यात्वप्रकृतिको दारुभाग में से ९ भाग बचे तथा अस्थिभाग की अनुभाग शक्ति के स्पर्धक ३२ व शैलभागके के स्पर्धक ६४ मिलाकर (९+३२+६४ = १०५) स्पर्धक मिलेंगे।