Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-९०
अथ दर्शनमार्गणा दर्शनमार्गणा में चक्षुदर्शन-अचक्षुदर्शन में बन्धयोग्य प्रकृति १२० । गुणस्थान मिथ्यात्वसे · क्षीणमोहपर्यन्त १२ हैं। इनमें बन्ध-अवन्ध और व्युच्छित्ति का कथन गुणस्थानवत् जानना |
अवधिदर्शनसम्बन्धी व्युच्छित्ति आदिका कथन अवधिज्ञानवत है। बन्धयोग्यप्रकृति ७९ तथा असंयत से क्षीणकषायपर्यन्त गुणस्थान ९ हैं। केवलदर्शनसम्बन्धी सर्वकथन केवलज्ञानवत् जानना । बन्धयोग्यप्रकृति १ सातावेदनीय तथा गुणस्थान दो हैं।
॥ इति दर्शनमार्गणा॥
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अथ लेश्यामार्गणा लेश्यामार्गणामें कृष्ण-नील और कापोत, इन तीनलेश्याओं में बन्धयोग्य ११८ प्रकृति हैं, क्योंकि यहाँ आहारकद्विकका बन्ध नहीं है। गुणस्थानआदि के चार। यहाँ मिथ्यात्वादि चारों गुणस्थानों में व्युच्छित्ति और बन्ध गुणस्थानवत् जानना । तीर्थक्करप्रकृति का बन्ध इन लेश्याओं में चतुर्थगुणस्थान में हो सकता है। कृष्ण-नील कापोतलेश्या में बन्ध अबन्धादिकी सन्दृष्टि
बन्धयोग्य प्रकृति ११८ । गुणस्थान चार हैं। गुणस्थान
बन्ध | अबन्ध व्युच्छित्ति मिथ्यात्व
१ (तीर्थङ्कर) १६ (गुणस्थानोक्त) २५ (गुणस्थानोक्त)
४४ (२५+१७+२ मनुष्यायु, देवायु) असंयत ७७
१० (गुणस्थानोक्त)
विशेष
सासादन
१०१
अथानन्तर सम्यक्त्वमार्गणा में तथा तीन शुभलेश्याओं में और आहारमार्गणामें कुछ विशेषता है सो दो गाथाओं द्वारा कहते हैं -
णवरि य सव्वुवसम्मे णरसुरआऊणि णत्थि णियमेण । मिच्छस्संतिम णवयं बारं णहि तेउपम्मेसु ॥१२०॥