Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - १३१
विदिये विदियणिसेगे हाणी पुव्विल्लहाणि अद्धं तु । एवं गुणहाणि पsि हाणि अद्धद्धयं होदि ।। १६२ ।।
अर्थ - द्वितीयगुणहानि के दूसरे निषेक में प्रथमगुणहानि के चयसे आधा चयरूप हानि होती है। इसी प्रकार प्रत्येकगुणहानि में आधा-आधा चय प्रमाण घटता द्रव्य जानना |
विशेषार्थ - गाथोक्त बात को अङ्कसदृष्टिद्वारा स्पष्ट करते हैं कि विवक्षित कर्म के परमाणु ६३००, आबाधाको छोड़कर स्थिति का प्रमाण ४८ समय, एक गुणहानिआयाम ८ समय, सर्वस्थिति
गुणानि ६, दोगुणहानि १६ और अन्योन्याभ्यस्त राशि ६४ है। इनमें से प्रथमगुणहानि में ३२०० परमाणु तथा द्वितीयादिक गुणहानियों में आधे-आधे परगुण हैं। जैसे- ३२००, १६००, ८००, ४००, २०० और १०० | एककम अन्योन्याभ्यस्तराशि (६४-१ = ६३ ) का सर्वद्रव्य (६३००) में भाग देने पर अन्तिमगुणहानि के (६३०० : ६३ = १०० ) परमाणु प्राप्त होते हैं, इससे दूने-दूने परमाणु (द्रव्य) आदिकी गुणहानिपर्यन्त जानना तथा प्रथमगुणहानि के सर्वद्रव्य ३२०० में प्रथमगुणहानिके गच्छ ८ का भाग देनेपर ३२००÷८ = ४०० और यह मध्य है इसमें एककम गच्छ के आधे प्रमाण ३३ को निषेकभागहार १६ में से घटाने पर (१६-३३) १२ शेष रहे, इसका भाग मध्य धन में देने पर (४००: १२ ई) = ३२ आए, यह चय का प्रमाण है। इसको दोगुणहानि (१६) से गुणाकरने से ३२×१६ ५१२ हुए सो यह प्रथमनिषेकका द्रव्य जानना । इससे एक-एक चय घटाने पर द्वितीयादि निषेकसम्बन्धी द्रव्य होता है । ५१२-४८०-४४८-४१६-३८४-३५२-३२०-२८८ । २८८ में से एकचय (३२) कम करनेपर (२८८-३२) २५६ होते हैं सो यह प्रथमगुणहानि के प्रथमनिषेक से आधा प्रमाण हुआ, इसको द्वितीयगुणहानिका प्रथमनिषेक जानना । यहाँ हानिरूप चयका प्रमाण पहले से आधे (१६) को तृतीयगुणहानि के प्रथमनिषेकपर्यन्त घटाना । २५६-२४०-२२४-२०८-१९२-१७६-१६० और १४४ । १४४ में से एकचय (१६) घटाने पर १२८ आया सो यह द्वितीयगुणहानि के प्रथमनिषकसे आधा हुआ और यह तृतीयगुणहानिका प्रथमनिषेक है। यहाँ चयका प्रमाण आधा (८) जानना । इस प्रकार अन्तिमगुणहानिपर्यन्त सर्वधनका, निषेकों में द्रव्यका तथा चयका आधा-आधा प्रमाण जानना । इस अनुक्रम से सर्वद्रव्य ६३०० परमाणुओंकी निषेक रचना होती है। इसप्रकार इस दृष्टान्तसे यथायोग्य सर्वकर्मनिषेकों में कथन जानना ।
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बन्ध के समय यह समयप्रबद्ध की निषेकरचना का दृष्टान्त है। पश्चात् उत्कर्षण, अपकर्षण और संक्रमण के द्वारा उन निषेकपरमाणुओं की संख्या में हीनाधिकता हो जाती है । बन्ध के समय जितने परमाणुओं का एक निषेक बना था उतने ही परमगुण खिरें ऐसा कोई नियम नहीं है ।