Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१२९ आगे उदीरणा की अपेक्षा आबाधा कहते हैं -
आवलियं आबाहा उदिरणमासिज्ज सत्तकम्माणं।
परभवियआउगस्स य उदीरणा णस्थि णियमेण ॥१५९॥' अर्थ - उदीरणाकी अपेक्षा साताकर्मों की आबाधा एकआवलीमात्र है और परभवसम्बन्धी बध्यमानआयुकी उदीरणा नियमसे नहीं होती।।
विशेषार्थ - जो कर्म बंधता है वह एक आवली (अचलावली) प्रमाण कालतक उदय अथवा उदीरणारूप नहीं होता, आबाधाकाल के व्यतीत होने पर ही उदयरूप होता है। जो कर्म उदीरणारूप होता है वह बन्ध के पश्चात् एकआवलीप्रमाण कालके व्यतीत होने पर उदीरणारूप होता है अतः उदीरणा की अपेक्षा आबाधा एकआवलीप्रमाण है। आयु में भुज्यमानआयु की उदीरणा होती है। बध्यमान अर्थात् आगामीभव सम्बन्धी आयुकी उदीरणा नियमसे नहीं होती, उसका तो अवलम्बनकरण होता है।
कर्म आवलीप्रमाण कालपर्यन्त तो जैसे बँधे हैं, वैसे ही रहते हैं। उदय, उत्कर्षण, अपकर्षण, संक्रमण और उदीरणारूप नहीं होते इसलिए इस आवलीको अचलावली कहते हैं, उस आवलि को छोड़कर पश्चात् उदयरूप प्रकृतियों के उदयावली से उपरितन स्थितियों के कर्मपरमाणुओं के समुदाय में से कितने ही कर्मपरमाणुओं का अपकर्षण करके उदयावली में लाता है जो आवलिकाल में उदय होकर खिर जाते हैं यही उदीरणा है और जो उपरितनस्थिति में दिये हैं वे ऊपर की स्थिति के अनुसार खिरते हैं तथा अन्तिम आवलीप्रमाण अतिस्थापनावली को छोड़कर जो कर्मपरमाणु हैं वे नानागुणहानिरूप सभी निषेकों में खिरते हैं। उदयावली को प्राप्त उदीरणाद्रव्य किस प्रकार खिरता है उसे कहते हैं -
अद्धाणेण सव्वधणे खंडिदे मज्झिमधणमागच्छदितं रूऊणद्धाणद्धेण ऊणेण णिसेय भागहारेण मज्झिमधणमवहरदे पचयं तं दो गुणहाणिणा गुणिदे आदिणिसेयं तत्तो विसेसहीणकमं....।
चयको दो गुणहानि प्रमाणसे गुणा करने पर आदिनिषेकमें दिये जाने वाले द्रव्य का प्रमाण प्राप्त होता है। द्वितीयादिक समयसम्बन्धी निक्षिप्तद्रव्य एक-एक चयप्रमाण कम है, इनसभी का विशेषस्वरूप गाथा १६२ के विशेषार्थ से जानना चाहिए। १. यही गाथा आगे गाथा ९१८ के रूप में आई है। २. परभव सम्बन्धी आयु की उपरिमस्थिति में स्थित द्रव्य का अपकर्षण द्वारा (आबाधा से बाहर) नीचे पतन करना
अवलम्बनकरण है। (ध.पु. १० पृ. ३३०-३१)