Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ८८
सामायिक - छेदोपस्थापनासंयम में बन्ध- अबन्धादिकी सन्दृष्टि
बन्धयोग्यप्रकृति ६५ । गुणस्थान ४ ।
गुणस्थान बन्ध अबन्ध व्युच्छित्ति
प्रमत्त
६३
अप्रमत्त
५९
७
अपूर्वकरण ५८ अनिवृत्तिकरण २२ ४३
२
६
६
५९
विशेष
२ (आहारकद्विक) ६ ( गुणस्थानोक्त ) १ (देवायु) ६ (६+२ - २ आहारकद्विक) ३६ (गुणस्थानोक्त)
५ (गुणस्थानोक्त)
परिहारविशुद्धिसंयम में बन्धयोग्यप्रकृति ६५ । गुणस्थान दो हैं। यहाँ (परिहारविशुद्धि संयम में) आहारकद्विकका बन्ध विरुद्ध नहीं, किन्तु उदय अवश्य विरुद्ध है। अर्थात् परिहारविशुद्धिके साथ आहारकद्विकका उदय नहीं है। प्रमत्तगुणस्थानमें व्युच्छिन्नप्रकृति ६ बन्धप्रकृति ६३ अबन्धप्रकृति २ हैं । अप्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १, बन्धप्रकृति ५९ और अबन्धप्रकृति ६ हैं ।
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परिहारविशुद्धिसंयममें बन्ध-अबन्ध और व्युच्छित्तिसम्बन्धी सन्दृष्टि
गुणस्थान बन्ध अबन्ध | व्युच्छित्ति
प्रमत्त
६३
२
६
अप्रमत्त
६
१
विशेष
६ ( गुणस्थानोक्त) २ (आहारकद्विक)
१ (देवायु) ६ (६+२ - २ आहारकद्विक)
सूक्ष्मसाम्परायसंयमसम्बन्धी बन्ध- अबन्ध-व्युच्छित्तिका कथन सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानके समान जानना । बन्ध १७, अबन्ध १०३ और बन्ध व्युच्छित्ति १६ ।
यथाख्यातसंयम में बन्धयोग्यप्रकृति १ सातावेदनीय ही है। यहाँ उपशान्तमोह, क्षीणमोह, सयोगी और अयोगी ये चार गुणस्थान पाए जाते हैं। व्युच्छित्ति और बन्धरूपप्रकृति गुणस्थानवत् जानना, किन्तु अयोग गुणस्थान में तो अबन्धप्रकृति १ है शेष तीनगुणस्थानों में अबन्ध नहीं है।