Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-९३
में शतारचतुष्कका बन्ध नहीं होता है। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ४, बन्धप्रकृति १०१, अनन्ध प्रकृति ३। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति र तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चायु और उद्यातरूप शतारचतुष्कबिना), बन्धप्रकृति ९७, अबन्धप्रकृति ७। मिश्रगुणस्थान में व्युच्छित्ति शून्य की, बन्ध ७४ प्रकृतिका, अबन्ध ३० प्रकृतिका। असंयतगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति १०, बन्धरूप प्रकृति ७७. अबन्धरूप प्रकृति २५ । देशसंयतगुणस्थान में व्युच्छित्ति ४ प्रकृति की, बन्ध ६७ प्रकृतिका और अबन्ध ३७ प्रकृतिका है। प्रमनगुणस्थान में व्युच्छित्ति रूप प्रकृति ६, बन्धप्रकृति ६३. अबन्धप्रकृति ४५ हैं। अप्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्न प्रकृति १, बन्धप्रकृति ५९, अबन्धप्रकृति ४५। अपूर्वकरणगुणस्थान में व्युच्छित्ति ३६ प्रकृतिकी, बन्ध ५८ प्रकृतिका, अबन्ध ४६ प्रकृतिका है। अनिवृत्तिकरणगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ५, बन्धप्रकृति २२ तथा अबन्धप्रकृति ८२ हैं। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १६, बन्धप्रकृति १७ और अबन्धप्रकृति ८७ हैं। उपशान्तमोहगुणस्थान में न्युच्छित्तिरूप प्रकृति शून्य, बन्धप्रकृति १, अबन्धप्रकृति १०३। क्षीणमोहगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति शून्य, बन्धप्रकृति १, अबन्धप्रकृति १०३। सयोगीगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति १, बन्धरूप प्रकृति १ तथा अबन्धरूप प्रकृति १०३ हैं। शुक्ललेश्या में बन्ध-अबन्ध-व्युच्छित्ति के कथन की सन्दृष्टि
बन्धयोग्यप्रकृति १०४ । गुणस्थान आदि के १३। गुणस्थान | बन्ध | अबन्ध | व्युच्छित्ति विशेष मिथ्यात्व
३ (तीर्थक्कर, आहारकट्टिक) ४ (मिथ्यात्व, हुण्डक संस्थान, नपुंसकवेद और असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन)
२१ (गुणस्थानोक्त २५-४ शतारचतुष्क) मिश्र
३० (२१+७+२, मनुष्यायु व देवायु असंयत
२७ (३०-३ मनुष्यायु, देवायु, तीर्थकर) ४ (गुणस्थानोक्त प्रत्याख्यानावरण की चारकषाय)
६ (गुणस्थानोक्त) अप्रमत्त
१ (देवायु) ४५ (४१+६-२, आहारकद्विक) अपूर्वकरण
३६ (गुणस्थानोत) अनिवृत्तिकरण
५ (गुणस्थानोक्त) सूक्ष्मसाम्पराय
| १६ (गुणस्थानोक्त)
सासादन
देशसंयत
प्रमत्त