Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-११८ १५.अपर्याप्त त्रीन्द्रियकी जघन्यस्थिति २२. अपर्याप्त असञ्जीपञ्चेन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति १६.पर्याप्त त्रीन्द्रियकी जघन्यस्थिति २३. अपर्याप्त असञ्जीपञ्चेन्द्रियकी जघन्यस्थिति १७. पर्याप्तचतुरिन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति २४. पर्याप्त असञ्जीपञ्चेन्द्रियकी जघन्यस्थिति १८. अपर्याप्तचतुरिन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति २५. पर्यास सञ्जीपञ्चेन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति १९.अपर्याप्तचतुरिन्द्रियकी जघन्यस्थिति २६. अपर्याप्त सञीपञ्चेन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति २०.पर्याप्तचतुरिन्द्रियकी जघन्यस्थिति २७. अपर्याप्त सञ्जीपञ्चेन्द्रिय की जघन्यस्थिति २१.पर्याप्त असञ्जीपञ्चेन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति २८. पर्याप्त सञ्जीपञ्चेन्द्रियकी जघन्यस्थिति
___ उपर्युक्त २८ भेदोंमेंसे सञ्जीपञ्चेन्द्रियसम्बन्धी चारभेदों का कथन आगे पृथक्रूप से करेंगे। अवशिष्ट २४ भेदोंकी स्थिति का आयाम जानने के लिए अन्तराल-सम्बन्धी भेदों को त्रैराशिकद्वारा कहते हैं। तद्यथा -
स्थितिबन्धमें जो कालका प्रमाण है उसे आयाम कहते हैं, आयामका अर्थ लम्बाई है। यहाँ एकेन्द्रियजीवके मिथ्यात्वकी उत्कृष्टस्थिति एक सागरप्रमाण है और जघन्यस्थिति पल्यके असंख्यातवेंभाग को एकसागर में से घटाने पर जो काल शेष रहा उतने प्रमाण है।
_ 'आदि अंते सुद्धे वहिहिदे रूव संजुदे ठाणा' इस करणसूत्र के अनुसार आदि (जघन्यस्थिति) को अन्त अर्थात् उत्कृष्टस्थिति में से घटाने पर जो प्रमाण शेष रहे उसमें (एक-एकस्थितिके भेदों में एकएक समय बढ़ता है इसलिए) वृद्धि के प्रमाण एकका भाग देने पर उतना ही प्राप्त हुआ उसमें एक अधिक करने से एकेन्द्रियजीव के मिथ्यात्वकी स्थितिके भेद पल्यके असंख्यातवेंभागप्रमाण होते हैं। इस गाथा के अनन्तरवर्ती गाथार्थ में एकेन्द्रियजीव की स्थिति के अन्तराल में अङ्कोंकी सन्दृष्टिकी अपेक्षा १-२४-१४-२८-९८-१९६ इस प्रकार शलाका कहेंगे उन सर्वशलाकाओं को जोड़ने पर ३४३ शलाका होती है। जैसे साझेके व्यापार में हिस्से होते हैं उसी प्रकार शलाका भी जाननी। एकेन्द्रियजीव के पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थिति के विकल्प कहे उनमें ३४३ का भाग देने पर जो प्रमाण आवे उतने एकशलाका में स्थितिके विकल्प जानना। इनको अपनी-अपनी शलाकाके प्रमाण से गुणा करने पर अपनी-अपनी स्थिति के भेदों का प्रमाण निकलता है। इसी को त्रैराशिकद्वारा कहते हैं -
३४३ शलाका में एकेन्द्रियजीव सम्बन्धी मिथ्यात्वके सर्वभेद पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण पाए जाते हैं तो १९६ शलाकाओं में कितने भेद होंगे? यहाँ प्रमाणराशि ३४३ शलाका, फलराशि एकेन्द्रियजीव के मिथ्यात्वकी स्थिति के भेदों का प्रमाण (पल्यके असंख्यातवें भागमात्र), इच्छा राशि