Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-११७
आबाधाकाण्डक ४ का आबाधाके भेद ५ से गुणा करने पर (५४४) = २० ये स्थिति के भेद ६४ से ४५ पर्यन्त हुए। यहाँ उत्कृष्टस्थिति का प्रमाण ६४ है और ४५ जघन्यस्थितिका प्रमाण है। स्थितिका प्रमाण अथवा आबाधाकाण्डकका प्रमाण यहाँ कहा। इसप्रकार एकेन्द्रियादि जीवों के सर्वप्रकृतियोंका स्थितिबन्ध, आबाधा, आबाधाकाण्डक, आबाधाके भेद व स्थितिभेद जानने।
एकेन्द्रियादिजीवों की स्थितिका इसप्रकार वर्णन किया, इनमें जघन्यसे उत्कृष्ट पर्यन्त जितने भेद हों उनका स्थापनकर उनमें बादर व सूक्ष्म तो एकेन्द्रियों और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असञी व सझीपञ्चेन्द्रियके पर्याप्त-अपर्याप्तके भेदसे १४ जीवसमास होते हैं।
जीवोंके उपर्युक्त १४ भेदों की जघन्य-उत्कृष्टस्थितिको पृथक्-पृथक् कहते हैं - बासूप-बासूआ-वरहिदीओ सूबाअ-सूबाप-जहण्णकालो। . बीबीवरो बीविजहण्णकालो सेशामागेलं वशीयमे !!१ .
अर्थ - बादरपर्याप्त व अपर्याप्त, सूक्ष्मपर्याप्त-अपर्याप्त इन चार प्रकार के जीवों के कर्मों की उत्कृष्टस्थिति तथा सूक्ष्म व बादरअपर्याप्त और सूक्ष्म व बादरपर्याप्त जीवोंकी जघन्यस्थिति, इसप्रकार एकेन्द्रियजीवकी कर्मस्थितिके आठभेद हुए। द्वीन्द्रियके पर्याप्त-अपर्याप्त तथा इन दोनोंके जघन्य-उत्कृष्ट, इस प्रकार स्थिति के चारभेद द्वीन्द्रियसम्बन्धी जानना। तथैव त्रीन्द्रियसे सञ्जीपञ्चेन्द्रियपर्यन्त स्थिति के चार-चार भेद हैं। ये सर्व ८+४+४+४+४+४=२८, स्थितिके भेद १४ प्रकारके जीवों की अपेक्षा से होते है।
विशेषार्थ - एकेन्द्रियादिके १४ भेदोंकी उत्कृष्ट व जघन्यस्थितिभेदों की अपेक्षा २८ प्रकार निम्नलिखित जानना। १. बादरपर्याप्त एकेन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति ८. बादरपर्याप्त एकेन्द्रियकी जघन्यस्थिति २. सूक्ष्मपर्याप्त एकेन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति ९. पर्याप्त द्वीन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति ३. बादरअपर्याप्त एकेन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति १०. अपर्याप्त द्वीन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति ४. सूक्ष्मअपर्याप्त एकेन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति ११. अपर्याप्त द्वीन्द्रियकी जघन्यस्थिति ५. सूक्ष्मअपर्याप्त एकेन्द्रियकी जघन्यस्थिति १२. पर्याप्त द्वीन्द्रियकी जघन्यस्थिति ६. बादरअपर्याप्त एकेन्द्रियकी जघन्यस्थिति १३. पर्याप्तत्रीन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति ७. सूक्ष्मपर्याप्त एकेन्द्रियकी जघन्यस्थिति १४. अपर्याप्तित्रीन्द्रियकी उत्कृष्टस्थिति
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