Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१२१
के कथन में आठस्थान कहे और सातअन्तरालों में भेदों का प्रमाण जानने के लिए सातत्रैराशिक किये हैं उसी प्रकार आबाधा के कथन में आठस्थान और सातअन्तराल में भेदों का प्रमाण जानने के लिए सातत्रैराशिक करना चाहिए।
यहाँ प्रमाणराशि तो पूर्वोक्तप्रकार सातो त्रैराशिक में ३४३ शलाकाप्रमाण जानना और फलराशि एकेन्द्रियके सर्वस्थितिभेदों का प्रमाण कहा था, किन्तु यहाँ जघन्यसे लेकर उत्कृष्टपर्यन्त एकेन्द्रियजीव के मिथ्यात्व की आबाधाके भेदों का प्रमाण हो उतना अर्थात् आवली का असंख्यातवांभाग फलराशि का प्रमाण जानना और इच्छाराशि १९६-२८-४-१-२-१४-९८ शलाका प्रमाण अनुक्रमसे जानना । यहाँ सर्वत्र फलको इच्छासे गुणा करके प्रमाण का भाग देनेपर जो प्रमाण आवे वह अन्तराल में आबाधा के भेदोंका प्रमाण जानना।
प्रथम त्रैराशिक में भेदों का जितना प्रमाण आया उसमें से एक घटाने से जो शेष रहा उतनासमय बादरपर्याप्तकसम्बन्धी उत्कृष्टस्थितिकी उत्कृष्ट आबाधा में से घटाने पर सूक्ष्मपर्याप्तकी उत्कृष्टस्थितिबन्धसम्बन्धी आबाधाकाल का प्रमाण होता है।
पुनः उसमें से द्वितीय त्रैराशिकमें भेदों का जितना प्रमाण आवे उतने समय घटाने पर बादर अपर्याप्तककी उत्कृष्टस्थिति की आबाधाका प्रमाण होता है। इसी प्रकार तृतीयादिक त्रैराशिक में जितने भेद आवें उतने-उतने समय घटाने पर उस उस स्थान में जो स्थितिबन्ध का प्रमाण कहा उस-उस बन्ध की आबाधा का प्रमाण जानना। इस प्रकार एकेन्द्रियजीव के स्थितिबन्धका और आबाधाके भेदों का व कालका प्रमाण कहा। इसीप्रकार द्वीन्द्रियसे असझी-पञ्चेन्द्रियपर्यन्त आबाधाकालको जान लेना चाहिए। अब स्थितिशलाकाओं को जानने के लिए गाथासूत्र कहते हैं -
मझे थोवसलागा हेला उवरिं च संखगुणिदकमा।
सव्वजुदी संखगुणा हेटुवरि संखगुणमसण्णित्ति ॥१४९ ॥ अर्थ - सञ्जीजीवसम्बन्धी स्थितिके ४ भेदों को छोड़कर शेष जीवों की स्थिति के २४ भेदों की जो संख्यास्वरूप शलाकाएँ हैं वे मध्यभागमें सबसे स्तोक हैं। मध्यभाग से नीचे की शलाका संख्यातगुणी तथा इससे भी संख्यातगुणी शलाका मध्यभागसे ऊपर के भाग में है, जिनकी अंकसन्दृष्टि ४-१-२ रूप है। इन तीनों को जोड़ देने पर जो लब्ध आवे उससे संख्यातगुणी अधस्तनवर्ती दूसरे भाग में और उससे संख्यातगुणी उपरितन-द्वितीयभाग में है। जैसे -