Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२८,
३.
अथ सञ्जीमार्गणा सज्ञीमार्गणाा में बन्धयोग्यप्रकृति १२० । गुणस्थान मिथ्यात्व से क्षीणकषायपर्यन्त १२ । यहाँ बन्ध-अबन्ध-व्युच्छित्तिसम्बन्धी सर्वकधन गुणस्थानवत् जानना ।
असञ्जीके बन्धयोग्यप्रकृति ११७ (तीर्थंकर और आहारकद्विक बिना) और गुणस्थान २ हैं। मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छित्ति १९ प्रकृतिकी, बन्ध ११७ एवं अबन्ध शून्य है। सासादन गुणस्थान में असञ्जीजीव मिश्रकाययोगी ही होते हैं अत: यहां चारों आयुका बन्ध नहीं होता है। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति विकलेन्द्रियवत् २९ प्रकृतिकी, बन्ध ९८ प्रकृतिका एवं अबन्ध १९ प्रकृतिका जानना। असञीसम्बन्धी बन्ध-अबन्ध-व्युच्छित्तिकी सन्दृष्टि
बन्धयोग्यप्रकृति ११७ और गुणस्थान २ हैं। गुणस्थान |बन्ध | अबन्ध व्युच्छित्ति विशेष मिथ्यात्व | ० | १९ - १९ (गुणस्थानोक्त १६+३, मनुष्यायु, देवायु,
तिर्यञ्चायु) ९८ । १९ । २९ । २९ (गुणस्थानोक्त २५+६ वर्षभनाराचादि - २
मनुष्यायु व तिर्यञ्चायु)
सासादन
॥ इति सज्ञीमार्गणा॥
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अथ आहारमार्गणा आहारमार्गणा में आहारकजीव के बन्धयोग्यप्रकृति १२० हैं। गुणस्थान मिथ्यात्व से सयोगीपर्यन्त १३ हैं। यहां बन्ध-अबन्ध-व्युच्छित्तिसम्बन्धी सर्वकथन गुणस्थानोक्त ही जानना।
अनाहारकके चार आयु, आहारकद्विक और नरकद्विकके बिना बन्धयोग्यप्रकृति कार्मणकााययोग के समान ११२ हैं। गुणस्थान मिथ्यात्व, सासादन, असंयत, सयोगी और अयोगी ये पाँच हैं। यहाँ मिथ्यात्व, सासादन, असंयत और सयोगीगुणस्थान में व्युच्छित्ति, बन्ध और अबन्धका कथन कार्मणकाययोग के समान ही है, किन्तु अयोगी के बन्ध और व्युच्छित्ति का तो अभाव है, अबन्ध ११२ प्रकृतिका जानना । इस प्रकार वेदमार्गणा से आहारमार्गणा पर्यन्त व्युच्छित्ति, बन्ध व अबन्ध का कथन किया।