Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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मिश्र
असंयत
देशसंयत
प्रमत्
अप्रमत्त
७४
७७
६७
६३
वा wyse w
५९
३७
३४
४.८
सासादन
मिश्र
५२
प्रमत्त
अप्रमत्त
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ९२
०
पद्मश्या में बन्धयोग्यप्रकृति १०८ हैं । गुणस्थान आदि के सात हैं। मिथ्यात्वादि १६ प्रकृतियों में से अंतिम १२ प्रकृतियाँ बन्धयोग्य नहीं है। मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ४, बन्धप्रकृति १०५, अबन्धप्रकृति ३। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति २५ प्रकृतिकी, बन्ध १०१ प्रकृतिका तथा अबन्ध ७ प्रकृतिका है। मिश्रगुणस्थानमें व्युच्छित्तिरूपप्रकृति शून्य, बन्धरूपप्रकृति ७४ और अबन्धप्रकृति '३४ हैं। असंयत - गुणस्थान में व्युच्छित्ति १० प्रकृतिकी, बन्ध ७७ प्रकृतिका, अबन्ध ३१ प्रकृतिका । देशसंयतगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ४. बन्धप्रकृति ६७ और अबन्धप्रकृति ४१ हैं । प्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति ६, बन्धप्रकृति ६३ तथा अबन्धप्रकृति ४५ हैं । अप्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति १, बन्धप्रकृति ५९ तथा अबन्धप्रकृति ४९ है ।
१०१ ७
७४
३४
७७ ३१
असंयत देशसंयत ६८ ४१
६३
४५
५९ ४१
४
६
१
पद्मलेश्यामें बन्ध-अबन्ध और व्युच्छित्तिकी सन्दृष्टि इस प्रकार है
गुणस्थान बन्ध अबन्ध व्युच्छित्ति
मिथ्यात्व १०५
३
बन्धयोग्यप्रकृति १०८ । गुणस्थान ७ ।
विशेष
४
३७ (२५+१०+२ मनुष्यायु, देवायु)
३४ (३७ - ३ तीर्थङ्कर, मनुष्यायु और देवायु)
४ ( गुणस्थानोक्त)
६ ( गुणस्थानोक्त)
५२ (४८+६ - २ आहारकद्विक)
२५
१०
४
६
१.
-
३ ( तीर्थकर आहारक द्विक) ४ ( मिथ्यात्व. हुण्डकसंस्थान, नपुंसकवेद, असंग्रामासृपाटिका संहनन )
४ ( गुणस्थानोक्त)
६ ( गुणस्थानोक्त)
४९ (४५+६-२ आहारकहिक)
शुक्ललेश्या में बन्धयोग्यप्रकृति १०४ । गुणस्थान मिथ्यात्व से सयोगीपर्यन्त १३ । शुक्ललेश्या
३४ (२५+७+२ मनुष्यायु व देवायु)
३१ (३४-३ तीर्थङ्कर. देवायु व मनुष्यायु)