Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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मन:पर्ययज्ञानसम्बन्धी सन्दृष्टि इस प्रकार है।
६३
५९
गुणस्थान बन्ध अबन्ध बन्ध
| व्युच्छित्ति
ह
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ८७
बन्धयोग्यप्रकृति ६५ । गुणस्थान ७ हैं।
विशेष
प्रमत्त
अप्रमत्त
७
अपूर्वकरण ५८ अनिवृत्तिकरण २२ ४३
४८
६४
६४
सूक्ष्मसाम्पराय १७
उपशान्तमोह १
क्षीणमोह १
२
६
६
१
३६
५
१६
O
0
S
२ (आहारकद्विक) ६ ( गुणस्थानोक्त)
६ (६+२ - २ आहारकद्विक) १ (देवायु)
३६ ( गुणस्थानोक्त)
४३ (३६+७) ५ ( गुणस्थानोक्त)
१६ ( गुणस्थानोक्त)
केवलज्ञान में बन्धयोग्य १ सातावेदनीय प्रकृति है । गुणस्थान दो हैं । सयोगी के व्युच्छित्तिरूप प्रकृति १, बन्धरूप प्रकृति १, अबन्ध का अभाव है। अयोगी के व्युच्छित्ति व बन्ध का अभाव है, किन्तु अबन्ध प्रकृति एक है।
॥ इति ज्ञानमार्गणा ।।
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अथ संयममार्गणा
सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय यथाख्यात, संयमासंयम और असंयमके भेद से संयममार्गणा ७ प्रकार की है।
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यहाँ सामायिक व छेदोपस्थापना संयम में बन्धयोग्यप्रकृति ६५ । गुणस्थान प्रमत्तआदि चार हैं। प्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति ६, बन्ध आहारकद्विकबिना ६३ तथा अबन्ध २ प्रकृतिका है । अप्रमत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १ बन्धप्रकृति ५९ और अबन्धप्रकृति ६ हैं । अपूर्वकरणगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति ३६, बन्धरूप प्रकृति ५८ तथा अबन्धप्रकृति ७ हैं। अनिवृत्तिकरणगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति ५, बन्धप्रकृति २२ अबन्धप्रकृति ४३ हैं ।