Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-८
अथ ज्ञानमार्गणा ज्ञानमार्गणासम्बन्धी कुमति-कश्रुत और कुअवधि इन तीनों ज्ञानों में बन्धयोग्यप्रकृति ११:७, क्योंकि तीर्थङ्कर और आहारकद्विकका बन्ध नहीं है। गुणस्थान दो। मिथ्यात्वगुणस्थान में ब्युछित्तिरूप १६ प्रकृति, बन्धरूप प्रकृति ११५ तथा अबन्धप्रकृति शून्य । सासादनगुणरस्थान में व्युच्छित्ति २५ प्रकृतिकी, बन्ध १०१ प्रकृतिका तथा अबन्धरूप प्रकृति १६ है।
शंका - मिथ्यादृष्टिजीवों के भले ही कुमति-कुश्रुत दोनों ही अज्ञान होवें क्योंकि वहाँ मिथ्यात्वकर्मका उदय पाया जाता है, किन्तु सासादनगुणस्थान में मिथ्यात्वका उदय नहीं पाया जाता
इसलिए सासादनगुणस्थान में कुमति. कुश्रुतरूप अज्ञान कैसे संभव हो सकते हैं? mer :-सभाधान विधाताभिनिवेशकी विध्यात्व कहते हैं और वह विपरीताभिनिवेश मिथ्यात्न और
अनन्तानुबन्धी के निमित्त से उत्पन्न होता है। सासादनगुणस्थान में अनन्तानुबन्धी का उदय होने से वहाँ कुमति-कुश्रुत ये दो अज्ञान पाए जाते हैं।'
असञ्जीजीदों में भी कुश्रुतज्ञान होता है, क्योंकि मनके बिना वनस्पतिकायिक-जीवों के हित में प्रवृत्ति और अहित से निवृत्ति देखी जाती है। कुमति-कुश्रुत-कुअवधिज्ञानसम्बन्धी बन्ध-अबन्धादिकी सन्दृष्टि
बन्धयोग्य ११७ प्रकृति । गुणस्थान २१ गुणस्थान | बन्ध | अबन्ध | व्युच्छित्ति | विशेष मिथ्यात्व | ११७ | ० । १६ । १६ (गुणस्थानोक्त) सासादन १०१ । १६ । २५ । २५ (गुणस्थानोक्त)
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में बन्धयोग्यप्रकृति ७९ है, क्योंकि मिथ्यात्वसम्बन्धी १६ तथा सासादनकी २५ इस प्रकार ४१ प्रकृतियोंकी व्युच्छित्ति हो जाने से इनका यहाँ अभाव है। गुणस्थान असंयतसे क्षीणकषायपर्यन्त ९ हैं। असंयत्तगुणस्थान में व्युच्छिन्न प्रकृति १०, बन्धप्रकृति ७७ और अबन्धप्रकृति २ हैं। देशसंयतगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति ४, बन्धरूप प्रकृति ६७, अबन्धरूप प्रकृति १२ । प्रमत्तगुणस्थानमें व्युच्छित्ति ६ प्रकृति की, बन्ध ६३ प्रकृतिका तथा अबन्ध १६ प्रकृतिका
१. ध, पु. १, सूत्र ११६ की टोका। २. ध. पु. १. सूत्र ११६ की टीका।