Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-८६
है। अप्रमत्त गुणस्थान में व्युच्छिन्न प्रकृति १, बन्धप्रकृति ५९, अबन्धप्रकृति २० । अपूर्वकरणगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप ३६ प्रकृति, बन्धरूप ५८ प्रकृति और अबन्धरूप २१ प्रकृति हैं। अनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें व्युच्छित्ति ५ प्रकृति की, बन्ध २२ प्रकृतिका तथा अबन्ध ५७ प्रकृतिका है। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृति १६, बन्ध प्रकृति १७ और अबन्धप्रकृति ६२ हैं। उपशान्तमोहगुणस्थान में व्युच्छित्ति शून्य की, बन्ध १ प्रकृतिका और अबन्ध ७८ प्रकृतिका है। क्षीणमोहगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति शून्य, बन्धरूपप्रकृति एक तथा अबन्धरूप प्रकृति ७८ हैं। मति भुरक्ष-अवधिज्ञान सम्बन्धी बन्ध-अधन्धादि की संदृष्टि
बन्धयोग्य ७९ प्रकृति। गुणस्थान ९। गुणस्थान | बन्ध | अबन्ध | व्युच्छित्ति | विशेष असंयत
२ (आहारकद्विक)
ওও
देशसंयत
प्रमत्त
५९ (६३-६ - ५७+२आहारकद्धिक)
अप्रमत्त अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण, २२ सूक्ष्मसाम्पराय | १७ उपशान्तमोह क्षीणमोह
मन:पर्ययज्ञान में बन्धयोग्यप्रकृति ६५ । गुणस्थान प्रमत्तसे क्षीणमोहपर्यन्त ७ हैं। यहाँ व्युच्छित्ति और बन्धका कथन तो गुणस्थानवत् जानना, किन्तु अबन्ध क्रमसे २-६-७-४३-४८-६४ और ६४ प्रकृति का है।