Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-७८
औदारिकमिश्रकाययोग में बन्ध-अबन्ध आदि की सन्दृष्टि निम्नप्रकार है -
बन्धयोग्य प्रकृति ११४ । गुणस्थान ४। गुणस्थान | बन्ध | अबन्ध व्युच्छित्ति विशेष मिथ्यात्व
५ (तीर्थकर, देवचतुष्क) १५ (गुणस्थानोक्त १६
नरकद्विक व नरकायु +२ मनुष्यायु, तिर्यञ्चायु) सासादन
२९ (तिर्यञ्चगति में कथित ३५-२ तिर्यञ्चायु
मनुष्यायु) असंयत
४४ (२९+२०-५ तीर्थङ्कर व देव-चतुष्क) ६९
(७०-१ सातावेदनीय) सयोगी
५ (सातावेदनीय) इसकी व्युच्छित्ति औदारिक काययोग में होती है औदारिकमिश्र में नहीं।
देवे या वेगुव्वे मिस्से णरतिरियआउगं णत्थि।
छट्टगुणंवाहारे तम्मिस्से णत्थि देवाऊ॥११८।। अर्थ - वैक्रियिककाययोग में बन्धप्रकृति देवगति के समान ही है। वैक्रियिकमिश्रकाययोग में मनुष्यायु और तिर्यञ्चायुका बन्ध नहीं होता है। आहारककाययोग में छठेगुणस्थानके समान रचना है, किन्तु आहारक-मिश्रकाययोग में देवायुका बन्ध नहीं होता है।
विशेषार्थ - वैक्रियिककाययोग में बन्ध प्रकृतियाँ देवगतिके समान १०४ ही हैं। सूक्ष्मत्रय (सूक्ष्म-साधारण-अपर्याप्त), विकलत्रय, नरकद्विक, नरकायु, सुरचतुष्क, देवायु और आहारकद्विक का बन्ध नहीं होता है। गुणस्थान आदि के चार हैं।
यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में सूक्ष्मत्रय आदि नौप्रकृतिबिना व्युच्छित्ति ७ की होती है। बन्धप्रकृति १०३ हैं तथा अम्बन्धरूप प्रकृति एक तीर्थकर है। सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति २५. की, बन्धप्रकृति ९६ तथा अबन्धप्रकृतियाँ ८ हैं। मिश्रगुणस्थान में व्युच्छित्ति शून्य, मनुष्यायुबिना बन्ध ७० और अबन्ध ३४ प्रकृतिका है। असंयतगुणस्थान में ब्युच्छित्ति १० की, बन्धतीर्थङ्कर व मनुष्यायु सहित ७२ प्रकृतियोंका और अबन्ध ३२ प्रकृतियोंका (तीर्थङ्कर एवं मनुष्यायुबिना) है।