Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ७९
वैक्रियिककाययोग में बन्धयोग्यप्रकृतियाँ १०४ । गुणस्थान ४ ।
विशेष
गुणस्थान बन्ध अबन्ध व्युच्छित्ति मिथ्यात्व १०३ १
सासादन
मिश्र
७०
असंयत ७२
९६
८
३४
३२
सासादन
९४
असंयत ७१
৬
८
२५
x
०
वैक्रेयिकाभित्रकावयोगीयोग्यप्रकृतिपूर्वोक्त १०४ में से मनुष्यायु व तिर्यञ्चायुबिना १०२ हैं । गुणस्थान १-२ और ४ ये तीन हैं। इसका सर्वकथन सौधर्म ईशानस्वर्ग के अपर्याप्तदेवों के समान है।
बन्धयोग्यप्रकृति १०२ । गुणस्थान ३ । गुणस्थान बन्ध अबन्ध | व्युच्छित्ति
मिथ्यात्व १०१ १
३१
१०
यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्न प्रकृति ७, बन्धरूपप्रकृति १०१ तथा अबन्ध एक तीर्थरप्रकृतिका है। सासादनगुणस्थान में तिर्यञ्चायुविना व्युच्छित्ति २४ प्रकृति की, बन्ध ९४ प्रकृति का तथा अबन्ध ८ प्रकृतिका जानना । असंयतगुणस्थान में मनुष्यायुबिना व्युच्छित्ति ९ की, बन्धरूप प्रकृति तीर्थङ्करसहित ७१ और अबन्ध तीर्थङ्कररहित ३१ प्रकृतियों का है।
वैक्रियिकमिश्रकाययोग सम्बन्धी सन्दृष्टि इस प्रकार है
१ (तीर्थ) ७ ( गुणस्थानोक्त १६-९ सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त, विकलत्रय, नरकद्विक, नरकायु)
७
८ (७+१) २५ ( गुणस्थानोक्त)
३४ (२५+८+१ मनुष्यायु)
१० ( गुणस्थानोक्त ) ३२ (३४ - २ तीर्थङ्कर,
मनुष्यायु)
२४
९
विशेष
७ ( मिथ्यात्व हुण्डकसंस्थान, नपुंसक वेद, स्पाटिका - संहनन, एकेन्द्रिय, स्थावर, आतप ) १ ( तीर्थङ्कर)
२४ ( गुणस्थानोक्त २५-१ तिर्यञ्चायु)
३१ ( तिर्यञ्चति में कथित ३२ - १ तीर्थङ्कर ) ९ ( गुणस्थानोक्त १०-१ मनुष्यायु)