Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ७१
सनत्कुमारादि १० स्वर्गीमें बन्ध आदिकी सन्दृष्टि -
यहाँ निर्वृत्त्यपर्याप्तावस्था में बन्धयोग्य ९९ । गुणस्थान तीन ।
अबन्ध व्युच्छित्ति
१
विशेष
१ ( तीर्थङ्कर) ४ ( मिथ्यात्व, हुण्डकसंस्थान, नपुंसक - वेद, पाटिकासंहनन )
२४ ( गुणस्थानोक्त २५ - १ तिर्यञ्चायु)
२८ (२४+५-१ तीर्थङ्कर) ९ ( गुणस्थानोक्त
१०- १ मनुष्यायु)
आनतादि चारस्वर्गौमें तथा नवग्रैवेयकमें तिर्यञ्चद्विक उद्योतरहित बन्धयोग्य ९६ प्रकृति । गुणस्थान तीन हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थानमें व्युच्छित्तिरूप प्रकृति ४. बन्धप्रकृति ९५, अबन्धप्रकृति १ । सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति शतारचतुष्कबिना २१ प्रकृतिकी, बन्ध ९१ प्रकृतिका, अबन्ध ५ प्रकृति है असंयतगुणस्थानमें व्युच्छिन्न - प्रकृति ९, बन्धरूपप्रकृति ७१ तथा अबन्ध २५ प्रकृति का जानना |
गुणस्थान
बन्ध
मिथ्यात्व ९८
सासादन
९४
५.
असंयत ७१ २८
गुणस्थान
मिथ्यात्व
सासादन
आनत-प्राणत- आरण-अच्युतस्वर्ग तथा नवग्रैवेयकसम्बन्धी बन्ध - अबन्ध और व्युच्छित्तिरूप प्रकृतियों की सन्दृष्टि
यहाँ निर्वृत्त्यपर्याप्तावस्थामें बन्धयोग्य प्रकृति ९६ । गुणस्थान ३ ।
असंयत ७१
४
बन्ध अबन्ध व्युच्छित्ति
९५
१
९१
S
२४
९
२५
४
२१
९
विशेष
१ ( तीर्थकर ) ४ ( मिथ्यात्वादि पूर्वोक्त)
२१ ( गुणस्थानोक्त २५-४ तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चायु और उद्योतरूप शतारचतुष्क)
२५ (२१+५-१ तीर्थङ्कर) ९ ( गुणस्थानोक्त १०१ मनुष्यायु)
अनुदिश और अनुत्तरवासी सभी देव असंयत होते हैं। इनके निर्वृत्त्यपर्याप्त अवस्था में ७१ प्रकृति बन्धयोग्य जानना तथा गुणस्थान एक असंयत है।
॥ इति गति मार्गणा ।।