Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६९ सनत्कुमार से सहस्रारस्वर्गपर्यन्त बन्धादि की सन्दृष्टि यहाँ पर्याप्तावस्था में बन्धयोग्यप्रकृति १०१ । गुणस्थान चार । गुणस्थान | बन्ध | अबन्ध व्युच्छित्ति | विशेष
१ (तीर्थक्कर) ४ (मिथ्यात्व, हुण्डकसंस्थान, नपुंसकवेद और सृपाटिकासंहनन)
मिध्यात्व
१००
सासादन मिश्र असंयत
३१ (२५+५+१ मनष्यायु) २९ (३१-२ तीर्थकर-मनुष्यायु)
शतारचतुष्क का बन्ध शतार-सहस्रारस्वर्गयुगल तक ही होता है, अत: आनतादि चारस्वर्गों में तथा नवग्रैवेयक में बन्धयोग्य प्रकृति (१०१-४) ९७ हैं। गुणस्थान चार हैं। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में तीर्थकरबिना बन्धप्रकृति ९६, अबन्धप्रकृति १ और बन्धव्युच्छित्ति ४ । सासादनगुणस्थान में शतारचतुष्क के बिना व्युच्छित्ति २१, बन्ध ९२ का तथा अबन्धप्रकृति ५ हैं। मिश्रगुणस्थान में व्युच्छित्ति शून्य, मनुष्यायुबिना बन्धप्रकृति ७०, अबन्धप्रकृति २७ । असंयतगुणस्थान में व्युच्छित्तिरूप प्रकृति १०, बन्ध तीर्थक्कर-मनुष्यायुसहित ७२ का और अबन्ध प्रकृति २५ हैं।
आनतादि चार स्वर्गों तथा नवग्रैवेयक सम्बन्धी सन्दृष्टि यहाँ पर्याप्तावस्था में बन्धयोग्य प्रकृति ९७ । गुणस्थान चार ।
गुणस्थान | बन्ध
| अबन्ध
विशेष
०
मिथ्यात्व
१ (तीर्थङ्कर) ४ (मिथ्यात्वादि पूर्वोक्त) सासादन
२१ (२५-४ शतारचतुष्क) मिश्न
२७ (२१+५+१ मनुष्यायु) असंयत
२५ (२७-२ तीर्थङ्कर-मनुष्यायु) अनुत्तरविमानवासी अहमिन्द्रदेव सभी सम्यग्दृष्टि होते हैं। इनमें बन्धयोग्य प्रकृति ७२ तथा गुणस्थान एक असंयत ही होता है।
सर्वभवनत्रिक में और कल्पवासीदेवाजनाओं के बन्धयोग्य १०३ प्रकृति हैं, किन्तु इनकी निर्वृत्यपर्याप्तावस्था में तिर्यञ्च-मनुष्यायु का बन्ध न होने से बन्धयोग्य प्रकृति १०१ है। गुणस्थान दो हैं, क्योंकि असंयत सम्यग्दृष्टि मरणकर यहाँ उत्पन्न नहीं होता।