Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६७ । ऐसे सर्व १६ प्रकृतियाँ बन्धयोग्य न होने से १०४ प्रकृति का ही यहाँ बन्ध है। भवनत्रिकदेवों के । तीर्थक्करप्रकृति का बन्ध नहीं होता है।
विशेषार्थ - देवगतिसम्बन्धी मिथ्यात्वगुणस्थान में सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, नरकद्विक और नरकायु ये ९ प्रकृतियाँ बन्धयोग्य नहीं हैं, अत: ९ तो ये तथा । देवगति-देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर-वैक्रियिकअङ्गोपाङ्ग, देवायु, आहारकशरीर-आहारकअङ्गोपाङ्ग ये सात मिलकर १६ प्रकृति देवगति में नागोग नहीं है अतः सामान्य गो. १.१४ का ही बन्ध है।
सर्वभवनत्रिक में तथा "कप्पित्थीसु ण तित्थं' गाथा ११२ के इन वचनों के अनुसार कल्पवासीदेवाङ्गनाओं में तीर्थङ्करप्रकृति का बन्ध नहीं होता। अत: यहाँ बन्धयोग्य १०३ प्रकृति हैं तथा गुणस्थान चार होते हैं। मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छिन्ति मिथ्यात्व, हुण्डकसंस्थान, नपुंसकवेद, सुपाटिकासंहनन, एकेन्द्रिय, स्थावर और आतप की; बन्धप्रकृति १०३, अबन्ध शून्य । सासादनगुणस्थान में व्युच्छित्ति गुणस्थानोक्त २५, बंध ९६ और अबन्ध ७ प्रकृति का है। मिश्रगुणस्थान में व्युच्छित्ति शून्य, बन्ध मनुष्यायुबिना ७०, अबन्धप्रकृति ३३। असंयतगुणस्थाान में व्युच्छित्ति १० की, बन्ध प्रकृति मनुष्यायुसहित ७१, अबन्धप्रकृति ३२ हैं। सर्वभवनत्रिक की तथा कल्पवासिनीदेवाङ्गनाओं की पर्याप्तावस्था की संदृष्टि
___ बन्धयोग्य प्रकृति १०३। गुणस्थान चार।। गुणस्थान | बन्ध अबन्ध व्युच्छित्ति
विशेष मिथ्यात्व
७ (मिथ्यात्व हुण्ड कसंस्थान, नपुंसकवेद,
सृपाटिकासंहनन, एकेन्द्रिय, स्थावर, आतप) सासादन
२५ (गुणस्थानोक्त)
३३ (२५+७+१ मनुष्यायु) असंयत । ७१ | ३२
३२ (३३-१ मनुष्यायु)
मिश्र
७०
सौधर्म-ईशानस्वर्ग में बन्धयोग्य प्रकृति १०४ हैं। गुणस्थान चार। यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में व्युच्छित्ति ७, बन्ध तीर्थङ्करबिना १०३, अबन्धप्रकृति १। सासादनगुणस्थान में व्युच्छिन्नप्रकृत्ति २५, बन्धप्रकृति ९६ तथा अबन्धप्रकृति ८। मिश्न-गुणस्थान में ब्युच्छित्ति शून्य, बन्ध मनुष्यायुबिना ७०, अबन्ध ३४ । असंयतगुणस्थान में व्युच्छित्ति १०, बन्ध मनुष्यायु-तीर्थङ्करसहित ७२, अबन्धप्रकति
३२॥