Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्पारगार कर्मकाण्ड-५५..
मिश्र असंयत
देशसंयत प्रमत्त
अप्रभ
अप्रत्याख्यान की चार कषाय, वज्रर्षभनाराचसंहनन, औदारिकशरीर, औदारिकअङ्गोपाङ्ग, मनुष्यगतिमनुष्यगत्यानुपूर्वी और मनुष्यायु। प्रत्याख्यानावरण की चार कषाय। अस्थिर, अशुभ, असातावेदनीय, अयश कीर्ति, अरति और शोक। दे वायु (यहाँ स्वस्थानअप्रमत्त में देवायु की बन्धनिष्ठापनाव्युच्छित्ति जानना | सातिशयअप्रमत्त में देवायु की व्युच्छित्ति नहीं होती, क्योंकि सातिशयअप्रमत्त में देवायु का बन्ध ही नहीं होता है।) निद्रा और प्रचला। इ' भाग में उपशमश्रेणि चढ़ते समय
मरण नहीं होता। | तीर्थक्कर, निर्माण, प्रशस्तविहायोगति, पञ्चेन्द्रियजाति, तेजस, कार्मण, माहारकशरीर-आहारकअङ्गोपाङ्ग, समचतुरस्रसंस्थान, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकअङ्गोपाङ्ग वर्णादि ४, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरी., स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर और आदेय । हास्य, रति, भय और जगुप्सा.
अपूर्वकरण (प्रथमभाग) षष्ठभाग
सम्मभाग अनिवृत्तिकरण : प्रथमभाग द्वितीयभाग तृतीयभाग चतुर्थभाग पंचमभाग सूक्ष्मसाम्पराय
पुरुषवेद सज्वलनक्रोध सज्वलनमान सञ्जवलनमाया सञ्चलनलोभ ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४, अन्तराय ५, यश:कीर्ति और उच्चगोत्र ।
उपशान्तमोह क्षीणमोह सयोगी
सातावेदनीय। ___इस प्रकार सर्व १२० प्रकृतियाँ बन्धयोग्य कही गई हैं इनकी बन्धव्युच्छित्ति उपर्युक्त क्रम से जानना चाहिए।