Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६१
प्रथम नरक सम्बन्धी अपर्याप्तकाल में मिश्रकाययोगी के समान मनुष्य एवं तिर्यञ्चायु के बिना बन्धयोग्य ९९ प्रकृतियाँ हैं, क्योंकि वैक्रियिक मिश्रकाययोग में आयुबन्ध नहीं है। यहाँ गुणस्थान मिथ्यात्व और असंयत ये दो ही हैं; क्योंकि नारकी के अपर्याप्तावस्था में सासादनगुणस्थान नहीं होता है। यहाँ मिध्यात्वगुणस्थान में मिध्यात्वादि चार तथा सासादनगुणस्थान में व्युच्छिन्न होने वाली २४ प्रकृतियाँ, ये मिलकर २८ प्रकृति व्युच्छिन्न होती हैं, बन्ध तीर्थकर बिना ९८ प्रकृति का, अबन्ध एकप्रकृति का है। असंयतगुणस्थान में मनुष्यायु बिना गुणस्थानोक्त ९ प्रकृति की व्युच्छित्ति, बन्ध तीर्थकर सहित ७१ एवं अबन्ध २८ प्रकृति का जानना ।
प्रथम रकसम्बन्धी अपर्याप्तावस्था में बन्ध-अबन्ध- - बन्धव्युच्छित्ति की संदृष्टि - प्रथमनरक की अपर्याप्तावस्था में बन्धयोग्य ९९ प्रकृति । गुणस्थान दो 1
विशेष
गुणस्थान बन्ध अबन्ध
मिथ्यात्व
९८
बन्ध
व्युच्छित्ति
२८
१ ( तीर्थकर ) २८ (४ मिथ्यात्व एवं २४ सासादन गुणस्थान की )
२८ (२९-१ तीर्थकर ) ९ ( पूर्वोक्त)
असंयत
७१ २८
वंशा को आदि लेकर पाँचपृथ्वियों की अपर्याप्तावस्था में ९८ प्रकृति बन्धयोग्य हैं तथा गुणस्थान एक मिथ्यात्व ही पाया जाता है। (मिथ्यात्वगुणस्थान में तीर्थंकर प्रकृति का बंध नहीं होता है) अन्तिम माघवीनामक पृथ्वी में भी अपर्याप्तावस्था में बंधयोग्य ९५ प्रकृति एवं एक मिध्यात्वगुणस्थान है क्योंकि यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में उच्चगोत्र और मनुष्यद्विक का बन्ध नहीं होता । ( गाथा १०७ ) आगे तिर्यञ्चगति सम्बन्धी बन्धव्युच्छित्ति, बन्ध-अबन्ध का कथन करते हैं -
९
तिरिये ओघो तित्थाहारूणो अविरिदे छिदी चउरो ।
उवरिम छण्हं च छिदी सासणसम्मे हवे णियमा ॥ १०८ ॥
अर्थ - तिर्यञ्चगति में बन्ध-अबन्ध बन्धव्युच्छिति गुणस्थानवत् ही जानना, किन्तु विशेषता यह है कि यहाँ तीर्थकर और आहारकद्विकका बन्ध नहीं होता है इसलिए बन्धयोग्य प्रकृति ११७ हैं तथा असंयतगुणस्थान में अप्रत्याख्यानरूप चार कषायकी ही व्युच्छित्ति है, शेष वज्रर्षभनाराचादि छहप्रकृतियों की व्युच्छित्ति सासादनगुणस्थान में ही हो जाती है, क्योंकि तिर्यञ्चगति के मिश्र और असंयतगुणस्थान में तिर्यञ्च और मनुष्यगतिसम्बन्धी प्रकृतियों का बन्ध नहीं है।