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प्राकृत ग्रन्थ परिषद् ग्रन्थाङ्कः ४१
सिरिसोमप्पहायरिय-विरइयं
सुमइनाहचरियं
संपादक डॉ. रमणीक शाह
द. मा. प्राकृत ग्रन्थ परिषद्
अहमदाबाद ई.स. २००४
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Prakrit Text Society Series No. 41
General Editors
Dr. N. J. Shah Dr. R. M. Shah
SIRISOMAPPAHĀYARIYA-VIRAIYAM SUMAINĀHACARIYAM
Edited by Dr. RAMANIK SHAH
D. M. PRAKRIT TEXT SOCIETY
AHMEDABAD
2004
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Published by:
Ramanik Shah, Secretary
D. M. PRAKRIT TEXT SOCIETY Shree Vijay-Nemisurishvarjee Jain Swadhyay Mandir,
12, Bhagatbaug Society, Sharada Mandir Road, Paldi, Ahmedabad - 380 007.
First Edition : 2004
Price Rs. 250/
Available From:
1. Saraswati Pustak Bhandar, Ratanpole, Ahmedabad-1. 2. Parshwa Prakashan, Zaveriwad, Relief Road, Ahmedabad-1. 3. Motilal Banarasi Das, Delhi, Varansi.
Printed by:
Mayank Shah
Laser Impressions,
215, Gold Souk, Off. C.G.Road,
Ahmedabad-380015
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प्राकृत ग्रन्थ परिषद् ग्रन्थाङ्क : ४१
सिरिसोमप्पहायरिय-विरइयं
पाइयभासाबद्धं
सुमइनाह-चरियं
: संपादक : डॉ. रमणीक शाह
द. मा. प्राकृत ग्रन्थ परिषद्
अहमदाबाद ई. स. २००४
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प्रकाशक: रमणीक शाह, सेक्रेटरी द. मा. प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी जैन स्वाध्याय मंदिर, १२, भगतबाग सोसायटी, शारदामंदिर रोड, पालडी, अहमदाबाद - ३८० ००७
प्रथमावृत्ति : जनवरी २००४
मूल्य : रू. २५०/
मुद्रक : मयंक शाह लेसर इम्प्रेशन्स, २१५, गोल्ड सौक, सी. जी. रोड, अहमदाबाद - ३८० ०१५
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સાચાદેવ શ્રી સુમતિનાથ ભગવાન (માતર )
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बवाना कहायो। निर्वाणाच समस्यातार समूहाला हा सावकः श्रीस निवेंद्र पर श्रीमानादनुशिष्य
प्यार जित दिवइति सिद्धः॥ सूरिः स मय्गु रन्न नित्य तदाप्रीतिय दे कि मालमुनिगरा जिरास्यादित तर सात रसा ||| १ श्री दिवस रिश्मुखावद व राज्य पितत्पा दया या जे हे मागायाम वा धारविरचितीन नालीक मत्री मुमाततान ॥वि शारदशिरा माण रजित दिवम् रिमालाविनयतिलाको सव द्विजयसिंहस रिशुद्धिः ॥ जगत्र्यविजन निर्विमलशीलवूम तव्यात दिनकदाचन स्मरश रिर्यदीयमन ॥४॥ गुरास्त्रस्य यदी लाज सादान्मदधीरपि॥श्रीमान् सामपसाचा घ रिजसुमति॥ प्राग्वाटराचयमा गरि रसम प्रज्ञः समी वाग्मीसूक मुनिधानमज्ञनिश्री पालनामा मान्याला कातर काव्य रेजिनमतिः साहित्यविद्यारतिः॥ श्री सिद्दाधि पति: के वीडतिल कुत्ता तितिव्याहरन् ॥ ६सनुसाऊ मारपाल प्रतिप्रीतिः पधीमता मुसके विचक्रम स्त्रकमाए : श्री सिपाला नवे तु । यया लाक्पारा पकारक रु ला सोजन्य सन्मादाहि रामः कलिने कुलि रचत युगार सजानामन्यात् ॥ तस्य मधशालाया एाहिलपाटाका निष्यूहमिदा परमा समर्धित॥ नालागा चिकिमपिमतिविकल्पवरातः। कुनामा स किन स्मृतिविरहादा किमया साधा सूत्रे शास्त्रय दिहकिमपि प्राक्क्रम खिल क्षमताधी मसूद समद्या ह्रदया।।। पायसहस्रशत ६२२ ॥ ॥ इतिसुमतिनाधचरित्रं समन्ते ॥ ॥ श्री ॥ ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ ॥ श्री ॥ ॥
विमलगच्छ उपाश्रय, अहमदाबाद की हस्तप्रत का अंतिम पत्र
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प्रकाशकीय
प्राकृत ग्रंथ परिषद्-ग्रंथमाला के ४१वें पुष्प के रूपमें सुमइनाहचरियं (सुमतिनाथचरित)का प्रकाशन करते हुए हमें हर्ष अनुभव हो रहा है। प्राकृत गद्य-पद्यबद्ध सुमतिनाथचरित आचार्य सोमप्रभसूरि की रचना है । आचार्य सोमप्रभसूरि श्वेताम्बर परम्परा में ४३वें पट्टधर थे। गूर्जरनरेश कुमारपाल एवं आचार्य हेमचन्द्रसूरि के समकालीन आचार्य सोमप्रभसूरि प्रतिभावंत कवि भी थे। उनकी प्रसिद्ध रचना 'कुमारपाल प्रतिबोध' गायकवाड ओरिएण्टल सिरीझ में प्रसिद्ध हो चूकी है। सुमितनाथचरित अद्यापि अप्रकाशित था। कुमारपालप्रतिबोध की तरह यह भी एक उपदेशात्मक कथाओं का कोश है। प्राकृत भाषा, जैन धर्म और दर्शन, लौकिक कथापरंपरा और समसामयिक सांस्कृतिक सामग्री के अध्ययन के लिए सुमतिनाथचरित एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। प्राकृत ग्रंथ परिषद् के मंत्री एवं प्राकृत भाषासाहित्य के विद्वान डॉ. रमणीक शाहने इसका संशोधन-संपादन किया है। डॉ. शाह को प्राकृत ग्रंथ परिषद् की ओर से मैं धन्यवाद देता हूँ।
इस ग्रंथ के प्रकाशन के लिए पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजयनरचंद्रसूरीश्वरजी म. सा. के उपदेशसे हसमुखलाल चुनीलाल मोदी चेरिटेबल ट्रस्ट, मुंबई ने रू.८०,०००/दिया है। एतदर्थ प. पू. आचार्यश्री एवं दाताश्री के हम आभारी हैं। सुचारु मुद्रांकन के लिए श्री मयंक शाह को धन्यवाद ।
द. मा. प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अहमदाबाद - ३८० ००७. दिनांक : १-१-२००४
नगीन शाह अध्यक्ष
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अनुक्रमणिका
७-२१
संपादकीय मूल सुमइनाह-चरियं पढमो पत्थावो
१-५१३
१-२४
बिइओ पत्थावो
२५-४८
तइओ पत्थावो
४९-६८
चउत्थो पत्थावो
६९-१२४
पंचमो पत्थावो
१२५-२१४
२१५-२४८
छट्ठो पत्थावो सत्तमो पत्थावो अट्ठमो पत्थावो
२४९-३२७
३२८-३८४
नवमो पत्थावो
३८५-४९४
दसमो पत्थावो
४९५-५१४
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संपादकीय
'कुमारपालप्रतिबोध' जैसी विशिष्ट कृति के रचयिता, राजा कुमारपाल एवं आचार्य हेमचन्द्रसूरिके समकालीन, आचार्य सोमप्रभसूरि विरचित प्राकृतभाषाबद्ध अनुपम चंपूरचना सुमइनाह - चरियं ( सुमतिनाथ - चरित) यहाँ प्रथमबार संशोधितसंपादित करके प्रकाशित करते हुए अत्यंत आनंद अनुभव कर रहा हूँ ।
स्व. आगमप्रभाकर पूज्य मुनिराज श्री पुण्यविजयजी ने इसकी नकल अहमदाबाद के 'लवारनी पोळ जैन ज्ञान- भंडार' की हस्तप्रत पर से करवाई थी और दूसरी तीन हस्तप्रतों से पाठान्तर भी लिखवाये थे । उसी सामग्री की सहाय से प्रस्तुत संपादन किया गया है। परम पूज्य आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजीने यह जानकर की मैं इस ग्रंथका संपादन कर रहा हूँ, महती कृपा करके दूसरी दो हस्तप्रतों की झेरोक्ष नकलें मुझे दी। ग्रंथका संपादन कार्य पूर्ण होने आया था अतः इन दोनो हस्तप्रतों के पाठान्तर तो मैं लिख नहीं पाया, किन्तु मूल में आते अपभ्रंश अंश की शुद्धि करने के लिए ये दोनों झेरोक्ष कापियाँ मुझे अत्यंत सहायभूत बनी ।
उपरोक्त सभी प्रतियों का परिचय इस प्रकार है
( १ ) ल. प्रति :
'लवारनी पोळ जैन ज्ञान भंडार', अहमदाबाद की १८० पत्रों की कागजी प्रत । कविप्रशस्ति के अंत में लिपिकार - प्रशस्ति इस प्रकार है
॥ ग्रंथाग्रं ९८२१ ॥ छ ॥ इति सुमतिनाथपुस्तकं लिखितं समाप्तमिति ॥ छ || शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ चिरंजीवी ॥
(२) पा. प्रति :
पूज्यपाद मुनिराज पुण्यविजयजी ने इस प्रति के पत्रों की संख्या २३६ दीखाई है (इन में पत्र १०८ दुबारा लिखा गया है ।)
ग्रंथ के अंत में लिपिकार - प्रशस्ति इस प्रकार है
एवं ग्रंथाग्रं सहस्र ९ शत ६२१ || छ । सुमतिनाथचरित्रं समत्तं ॥ छ ॥ श्री ॥ शुभं भवतु ॥
१. यह हस्तप्रत हेमचंद्राचार्य ज्ञान मंदिर, पाटन के संग्रह की प्रत नं. १६६२ होने की संभावना है ।
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यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयते ।। भग्नपृष्ठि कटि ग्रीवा बद्धमुष्ठिरधोमुखे ।
कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ॥ ॥ छ । संवत् १६५४ वर्षे पोस शद १० शं. लखितम् ॥ छ । (३) रा. प्रति :
यह प्रति राधनपुर(गुजरात) के किसी भंडार की होने के पू. पुण्यविजयजी के उल्लेख के अलावा अन्य कुछ विगतें मिली नहीं हैं। (४) दे. प्रति :
इस प्रति अहमदाबाद के 'देवशानो पाडो ज्ञान भंडार' की प्रत होने का स्व. पूज्य मुनिजी ने लिखा है, इसके अलावा कुछ विगतें प्राप्त नहीं हैं । (५) हे. प्रति :
__पूज्य आचार्यश्री प्रद्युम्नसूरिजी से प्राप्त दो झेरोक्ष में से एक यह प्रत पाटन(उ. गुज.) के हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभंडार की १५६५७ नंबर की प्रत है । उसका आदि-अंत इस प्रकार है
आदि :
दि०॥ ॐ नमो श्री वीतरागाय ॥ ॐ नमो श्री सारदायै नमः ॥ ॐ नमो श्री गुरुभ्यो नमः ॥
जयइ जयकप्परुक्खो पढमजिणो जस्स खंधसिहरेसु । सउणाण वल्लहा वालवल्लरी सहइ सिद्धिफला ॥१॥
अंत :___ ग्रंथाग्रं ॥ ९८५१ ॥ श्री सुनतिनाथ पुस्तकं लिखितं, समाप्तमिति ॥छ। संवत् १८४४ रा वर्षे काती वदी १० दिने लिखतं । पं. दौला ॥ श्री पाटणमध्ये ॥ (६) वि. प्रत :
पूज्य आचार्यश्री प्रद्युम्नसूरिजी से प्राप्त झरोक्ष कापियों में से दूसरी २०५ पत्र की यह कागजी प्रत श्रीमत् पंन्यास श्री दयाविमलजी गणी शिष्य पंन्यासजी सौभाग्यविमलजी गणी ज्ञानभंडार, कालुशीकी पोळ, विमलगच्छ उपाश्रय, अहमदाबाद की है। उसका नं. ३३८० है ।
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आदि :॥०॥ ॐ नमः श्री सुमतिजिनाय ॥ जयइ जय कप्परुक्खो पढम-जिणो जस्स खंधसिहरेसु । सउणाण वल्लहा वालवल्लरी सहइ सिद्धिफला ॥१॥ .
अन्त :कवि-प्रशस्ति के अनन्तर प्राप्त लिपिकार-प्रशस्ति निम्न है
एवं ग्रंथाग्रं सहस्र ९ शत ६२१ ॥ छ ॥ इति सुमतिनाथचरित्रं समत्तं ।। छ ॥ श्री ॥ छ ॥ श्री ॥ छ ॥ श्री ॥ छ ॥ श्री ॥ छ ॥ श्री ॥ छ ।
संपादन-पद्धति इन हस्तप्रतों में ल., रा. और हे. प्रतों के पाठ समान हैं और पा., दे. तथा वि. प्रतों के पाठ समान हैं। इस तरह इगों दो पाठ-परंपरा प्राप्त होती हैं। किन्तु दोनों परंपरामें पाठभेद नगण्य ही हैं।
ग्रंथकार ने मूल ग्रंथ को पूर्वार्ध-उत्तरार्ध स्वरूप दो भागो में ही विभाजित किया था । पूर्वार्ध में सुमतिनाथ तीर्थंकर के पूर्वजन्म के दो भवों का निरूपण किया गया था और उत्तरार्धमें तीर्थंकर- भव का । प्रस्तुत संपादन में पूर्वाध-उत्तरार्ध दोनों को पाँच-पाँच प्रस्तावों में विभाजित कर कुल दश प्रस्तावों में समग्र ग्रंथ विभाजित किया गया है। प्रत्येक प्रस्ताव के पाठान्तर प्रस्ताव के अंत में दिये गये हैं। पद्यों के क्रमांक नये सिरे से दिये गये हैं।
आ. सोमप्रभसूरि और उनकी कृतियाँ __ सुमतिनाथचरित्र के रचयिता आचार्य सोमप्रभसूरि राजा कुमारपाल और आचार्य हेमचन्द्रसूरि के समकालीन थे। सुमतिनाथचरित्र की प्रशस्ति(प्रस्तुत ग्रंथ, पृ. ५१३५१४) में उन्होंने अपनी गुरु-परंपराका एवं अपने समकालीन अन्य महानुभावो का ब्योरा दिया है । प्रशस्ति का अनुवाद इस प्रकार है
"विशाल वृद्धगच्छ(चन्द्रगच्छ)स्वरूप गगनमण्डलके चंद्र और सूर्य समान, पृथ्वी के कर्णाभूषणरूप, धर्मरूपी रथ के दो धौरेय समान, संपूर्ण जगत के तत्त्वका अवलोकन करनेवाले दो नयन के समान, निर्वाणरूप महालय के तोरणद्वार के दो महास्तंभ समान थे श्रीमुनिचन्द्रसूरि और दूसरे श्रीमानदेवसूरि । उन दोनों के शिष्य, समग्र गुणरत्नों के निधि समान, प्रसिद्ध आचार्य हो गये अजितदेवसूरि, जिनके चरणकमलमें मुनिगणरूपी भ्रमर-पंक्ति श्रुत -रस के आस्वाद के लिए लगी रहती थी ।
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(१०) श्रीदेवसूरि प्रमुख अन्य भी उनके चरणकमलों में हंस समान आचार्य हो गये, जिनकी निराबाध स्थिर सत्यपूर्ण मैत्री प्रमोद का विस्तार करती थी ।
___विशारद-शिरोमणि अजितदेवसूरि-प्रभु के विनेयतिलक समान विजयसिंह गुरु हुए जिनके मन को विमल शीलरूप कवच से आवृत्त होने के कारण कभी भी तीनों जगत के विजेता कामदेव के शर भी भेद नहीं पाये थे।
ऐसे गुरु के चरणकमल की कृपासे मन्दबुद्धि होने पर भी श्रीमान् सोमप्रभाचार्य ने सुमतिनाथचरित्र की रचना की।
प्राग्वाटवंशरूप सागर की वृद्धि करने में चन्द्र समान, असाधारण प्रज्ञावाले, कृतज्ञ, क्षमाशील, वाग्मी, सूक्ति-सुधानिधि श्रीपाल नामक कवि हुए ।
उनके लोकोत्तर काव्यों से प्रसन्न, साहित्य और विद्या के रसिक श्री सिद्धराज इस कवीन्द्रतिलक को भ्राता समान मानते थे ।
उनके पुत्र कविचक्रमस्तकमणिरूप, बुद्धिमानों में अग्रणी, श्री सिद्धपाल हुए, जो कुमारपाल नृपति के प्रीतिपात्र थे । परोपकार, करुणा, सौजन्य, सत्य, क्षमा, दाक्षिण्य आदिसे युक्त उनको देख के लोक कलियुग में कृतयुग का आरंभ हुआ मानते थे ।
अणहिलपुर-पाटनकी उनकी पौषधशाला में रहते हुए यह परमार्थ-समर्थित चरित की रचना मैंने की है।
कुछ अज्ञान के कारण, कुछ मतिमंदता के कारण, कुछ अति उत्सुकता के कारण और क्वचित् स्मृति दोष के कारण मैंने शास्त्र-विरुद्ध जो कुछ भी कह दिया हो, तो मुझे सब दयापूर्ण हृदयवाले बुद्धिमान जन क्षमा करें।"
इस प्रशस्ति से दो निर्देश प्राप्त होते हैं
(१) सोमप्रभसूरि चन्द्रगच्छ के आचार्यद्वय मुनिचन्द्रसूरि-मानदेवसूरि के शिष्य अजितदेवसूरि (जिनके गुरुबंधु देवसूरि-प्रसिद्ध वादिदेवसूरि थे) के शिष्य विजयसिंहसूरि के शिष्य थे।
(२) प्रसिद्ध चौलुक्य राजा सिद्धराज जयसिंह के मित्र कवि श्रीपाल का पुत्र कवि सिद्धपाल राजा कुमारपालका मित्र था। उनकी पौषधशाला में अणहिलपुर पट्टन में रह कर सोमप्रभाचार्य ने सुमतिनाथचरित की रचना की थी।
सोमप्रभाचार्य की दूसरी प्रसिद्ध रचना 'कुमारपालप्रतिबोध' की प्रशस्ति से भी यही तथ्य उजागर होते हैं । वहाँ पर कर्ता ने कुमारपालप्रतिबोध-अपरनाम जिनधर्मप्रतिबोध-का रचना समय विक्रम संवत १२४१ (ई. स. ११८५) बताया है। अर्थात् कुमारपाल के अवसान वर्ष वि. सं. १२३० (ई. स. ११७४) के ग्यारह वर्ष के बाद इसकी रचना हुई थी।
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सोमप्रभाचार्य के किसी शिष्यने आचार्य के शतार्थ काव्य में गुरुस्तुतिरूप जो पद्य जोड़ दिये हैं, उन से उनके पूर्व जीवन पर थोडा प्रकाश पडता है
"मंत्रियों में मुकुटरूप प्राग्वाट जाति के जैन श्रावक जिनदेव थे। उनके सज्जनशिरोमणि पुत्र सर्वदेव थे। सर्वदेवके पुत्र सोमप्रभने कुमारावस्था में जिनदीक्षा ली थी। वे शास्त्रोंके पारगामी, तर्कपटु, शीघ्रकवि और उत्तम व्याख्याता थे।"१
सुमतिनाथप्रभुचरित्र-भाषांतर की अपनी प्रस्तावना में पू. मुनिश्री रवीन्द्रसागरजी ने सोमप्रभसूरि के जीवन के बारेमें लिखा है- "वि. सं. १२३८ महा सुदी ४ शनिवार के दिन आचार्यश्री के करकमलों से प्रतिष्ठित चतुर्विंशति जिन मातृकापट श्री शंखेश्वर तीर्थ में विद्यमान है ।
वि. सं. १२८३ का चातुर्मास वडाली में करके, चातुर्मास पूर्ण होने पर छ'री पालक संघ के साथ वि. सं. १२८४ में सिद्धाचल की यात्रा आचार्यश्री ने की थी। वि. सं. १२८४ का चातुर्मास अंकेवालिया में किया, उसी चातुर्मास समयमें ही आचार्यश्रीका स्वर्गवास हुआ ।"२
उपरोक्त तथ्यों के स्रोत का मुनिजी ने उल्लेख नहीं किया है। यदि उपरोक्त उल्लेख सही हैं, तो हम सोमप्रभसूरि का जीवन-काल विक्रमीय १३वीं सदी के प्रारंभ से वि. सं. १२८४ तक का मान सकते हैं।
इस तरह आचार्य सोमप्रभसूरि अपने समय के एक समर्थ प्रभावक आचार्य थे । उनका तत्कालीन जैन आचार्यों से एवं अन्य विद्वानोसे घनिष्ठ संबंध था । उनके १. प्राग्वाटान्वयनीरराशिरजनीजानिर्जिना पर:
संजातो जिनदेव इत्यभिधया चूडामणिर्मन्त्रिणाम् । यस्यौदार्य-विवेक-विक्रम-दया-दाक्षिण्यपुण्यैर्गुणैः साम्यं लब्धुमहर्निशं जगदपि क्लिश्यन् विश्राम्यति । तस्याऽऽत्मजः सुजनमण्डलमौलिरत्नमुज्जृम्भितेन्द्रियजयोऽजनि सर्वदेवः । एकस्थसर्वगुणनिर्मतकौतुकेन धात्रा कृतोऽयमिति यः प्रथितः पृथिव्याम् ॥ सूनुस्तस्य प्रथमकमलादर्पण: पुण्यकायः कौमारेऽपि स्मरमदजयी जैनदीक्षां प्रपन्नः । विश्वस्यापि श्रुतजलनिधे: पारमासाद्य जज्ञे श्रीमान् सोमप्रभ इति लसत्कीर्तिराचार्यवर्यः ॥ यो गृह्णाति समश्रुतं वहति यस्तऽद्भुतं पाटवं
काव्यं यस्त्वरितं करोति तनुते यः पावनी देशनाम् । २. सुमतिनाथप्रभुचरित्र, भाग-२, अनुवादक मुनि रवीन्द्रसागरजी, आत्मानंद जैन सभा,
भावनगर, प्रस्तावना पृ. १२ ।
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समय के गूर्जरनरेश कुमारपाल आदि भी उनका बहुमान करते थे। उन्होंने अपनी विशिष्ट कविप्रतिभासे कई संस्कृत, प्राकृत ग्रंथों की रचना की थी।
वे भगवान महावीर से चलनेवाली अपने गच्छ की पट्टपरंपरा के ४३वें पट्टधर आचार्य थे। उनके बाद उनकी पट्ट-परंपरा में ४४ वें पट्टधर आचार्य जगच्चन्द्रसूरि हुए, जिन्हें प्रकृष्ट तपश्चर्या के कारण उदयपुर के राणा ने 'तपा' बिरुद दिया था। उन्हीं के समय से बृहद्गच्छ 'तपगच्छ' नाम से प्रसिद्ध हुआ। सोमप्रभसूरिकी कृतियाँ -
__सोमप्रभसूरि की पाँच रचनाएँ - (१)सुमतिनाथ चरित्र (२) सूक्ति-मुक्तावली, (३) शतार्थ काव्य, (४) शृंगारवैराग्यतरंगिणी, (५) कुमारपालप्रतिबोध मिलती हैं।
सोमप्रभसूरिकी पाँच प्राप्त रचनाओं में सुमतिनाथचरित प्रथम रचना है और संभवतः वह कुमारपाल के शासनकाल में रची गई थी। अंतिम रचना कुमारपालप्रतिबोध वि. सं. १२४१(ई. स. ११८५)में लिखी गई होने का उल्लेख खुद कर्ताने किया है। अन्य रचनाएँ इन दो रचनाओं के मध्य में रची गई थी। इनमें क्रमशः सूक्तिमुक्तावली, शतार्थकाव्य तथा शृंगारवैराग्यतरंगिणी का समावेश होता है।
सुमतिनाथचरित्र का विस्तृत परिचय देने से पूर्व दूसरी रचनाओं का साधारण परिचय दिया जा रहा है। (२) सूक्तिमुक्तावली
१०० संस्कृत श्लोक प्रमाण यह रचनाका दूसरा नाम 'सिंदूरप्रकर' है। भर्तृहरि के वैराग्यशतक की शैली से रची गई इस कृति में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शील, सौजन्य, क्षमा, त्याग, वैराग्य आदि के बोधक सरल एवं सरस सुभाषितों का संग्रह है। हृदयहारि कोमल पदावली के कारण जैन एवं जैनेतरों में भी यह सूक्तिसंग्रह ने स्थान बनाया था। कर्ता सोमप्रभ की सौ पद्योंकी कृति होने के कारण इसका ‘सोमशतक' नाम भी प्रचलित था। 'सिन्दूरप्रकर' शब्द से प्रारंभ होने के कारण इसका 'सिन्दूरप्रकर' नाम अधिक प्रसिद्ध
हुआ।
(३) शतार्थ-काव्य -
शतार्थ काव्य आचार्य की तृतीय कृति है । इस चमत्कृतिपूर्ण रचना में एक सौ अर्थ जिसमें निहित हैं ऐसे एक श्लोक की रचना करके उस पर आचार्य ने अपनी टीका लिखी है । श्लोक इस प्रकार है१. कुमारपाल-प्रतिबोध- संपा. आ. जिनविजयजी, प्रस्तावना । २. अनेकार्थ-साहित्य-संग्रह, प्राचीन साहित्योद्धार ग्रंथावली, पुष्प-२, अहमदाबाद से
प्रकाशित ।
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कल्याणसारसवितानहरेक्षमोह कान्तारवारणसमानजयाद्यदेव । धर्मार्थकामदमहोदयवीरधीर सोमप्रभावपरमागमसिद्धसूरे ।।
वसंततिलका छंद में रचे गये इस एक श्लोक की टीका में उन्होंने उस एक पद्य के १०६ विभिन्न अर्थ निकाल के दिखलाये हैं, जिनमें २४ तीर्थंकर, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीन हिन्दु देव तथा चौलुक्यनृप जयसिंह, कुमारपाल, अजयपाल आदि परक अर्थ शामिल हैं। शतार्थ काव्य की रचना के कारण सोमप्रभ का 'शतार्थिक' उपनाम भी हो गया था । ( ४ ) शृंगारवैराग्यतरंगिणी -
इसमें विविध छंदों के ४६ पद्यों में नैतिक उपदेशोंका संकलन है । इसमें कामशास्त्रानुसार स्त्रियों के हाव-भाव व लीलाओं का वर्णन कर उनसे सतर्क रहने का उपदेश दिया गया है । इस पर आगरा के पं. नन्दलाल ने संस्कृत टीका लिखी है । (५) कुमारवालपडिबोह -
कुमारपालप्रतिबोध-इसे जिनधर्मप्रतिबोध और हेमकुमारचरित भी कहते हैं। इसमें पाँच प्रस्ताव हैं। यह प्रधानतः प्राकृत में लिखी गद्य-पद्यमयी रचना है। पाँचवाँ प्रस्ताव अपभ्रंश तथा संस्कृत में है। इसमें ५४ कहानियों का संग्रह है । ग्रंथकारने दिखलाया है कि इन कहानियों के द्वारा हेमचन्द्रसूरि ने कुमारपाल को जैनधर्म के सिद्धान्त और नियम समझाये थे । इसकी अधिकांश कहानियाँ प्राचीन जैन शास्त्रों से ली गइ हैं। इसमें श्रावक के १२ व्रतों का महत्त्व सूचित करने के लिए तथा पाँचपाँच अतिचारों के दुष्परिणामों को सूचित करने के लिए कहानियाँ दी गई हैं। अहिंसाव्रत के महत्त्व के लिए अमरसिंह, दामनक आदि, देवपूजा का माहात्म्य बताने के लिए देवपाल-पद्मोत्तर आदि, सुपात्रदान के लिए चन्दनबाला-मृगावती आदि, द्युतक्रीडा का दोष दिखलाने के लिए नल, परस्त्री-सेवन का दोष बतलाने के लिए द्वारिकादहन तथा यादवकथा आदि कथाएँ दी गई हैं। अन्तमें विक्रमादित्य, स्थूलभद्र, दशार्णभद्र की कथाएँ भी दी गई हैं । अपने समय में प्रचलित कई लोककथाओं का भी कर्ताने कुशलतापूर्वक धर्मबोध के लिए विनियोग किया है।
१. “सोमप्रभोमुनिपतिविदितः शतार्थी" । -मुनिसुंदरसूरिकृतगुर्वावली,
"ततः शतार्थिकः ख्यातः श्रीसोमप्रभसूरिराट् ।" -गुणरत्नसूरिकृत क्रियारत्नसमुच्चय । २. निर्णयसागर प्रेस, मुंबई, ई.स. १९४२ । ३. श्री सोमप्रभाचार्य - विरचितः कुमारपालप्रतिबोधः - संपा. मुनि जिनविजय, गायकवाड
ओरिएन्टल सिरीझ, बरोडा, १९२० ।
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इसकी रचना सोमप्रभसूरिने वि. स. १२४१ में की थी। आचार्य हेमचंद्रसूरि के शिष्य श्रीमहेन्द्रमुनि और वर्धमानगणि एवं गुणचंद्रगणि ने इस ग्रंथ का श्रवण ग्रंथकारके मुखसे किया था ।
उपरोक्त रचनाओं के उपरांत एक 'लघुत्रिषष्टि की रचना सोमप्रभ की होने का उल्लेख मेघविजयकृत 'लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'की गुजराती प्रस्तावनामें पं. मफतलालने किया है ।३ ।
- शान्तिनाथ पर एक लघु रचना सोमप्रभकी होने का उल्लेख जिनरत्नकोशमें (पृ. ३८०)में मिलता है ।
सुमतिनाथचरित सुमइनाहचरियं(सं. सुमतिनाथचरितम्) सोमप्रभसूरिकी प्रथम कृति मानी जाती है। पंचम तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ के जीवनचरित्र का आलेखन करनेवाली समग्र प्राकृतसंस्कृत साहित्य की यह प्रथम कृति है। ९८०० से अधिक ग्रंथाग्र प्रमाणकी यह कृति महाराष्ट्री प्राकृत भाषामें रची गई है, तथापि पंचम प्रस्तावमें आठ कर्मों के प्रभाव के वर्णनमें संस्कृत गद्य का प्रयोग किया गया है (पृ. १२५-१२७) और नवम प्रस्तावमें नमस्कारविषयक पुलिंद-मिथुन की कथा में संस्कृत गद्य-पद्य दोनों का प्रयोग किया गया है (पृ. ४७१-४८५) । सप्तम प्रस्ताव में जिनभक्ति-विषयक सुंदरकथा नामक विस्तृत कथा अपभ्रंश पद्यमें लिखी गई है। तदुपरांत एकाधिक स्थानोंमें संस्कृत और अपभ्रंश पद्य प्राप्त होते
हैं।
आचार्य का संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं पर समान प्रभुत्व है । अक्षरवृत्त और मात्रावृत्त दोनों प्रकार के छंद में भी उनकी निपुणता प्रत्येक पद में दिखाई देती है।
९८२१ ग्रंथान के इस ग्रंथमें ३७०७ पद्य हैं। अर्थात् एक तृतीयांश से अधिक भाग पद्य है।
ग्रंथ का नाम एवं केन्द्रवर्ती विषय सुमतिनाथ तीर्थंकर का चरित है, किन्तु ग्रंथ एक प्रकार का कथाकोश ही बन गया है ।
१. शशिजलधिसूर्यवर्षे शुचिमासे रविदिने सिताष्टम्याम् ।। __जिनधर्मप्रतिबोधः क्लृप्तोऽयं गूजरेन्द्रपुरे ॥ (कुमारपालप्रतिबोध- प्रशस्ति) २. हेमसूरिपदपङ्कजहंसैः श्रीमहेन्द्रमुनिपैः श्रुतमेतत् । __ वर्द्धमान-गुणचन्द्र-गणिभ्यां साकमाकलितशास्त्ररहस्यैः॥(कुमार. प्रति.- प्रशस्ति) ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, खंड - ६, पृ. ७९ । ४. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, खंड - ६, पृ. ८५ ।
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कवि ने इस रचना का हेतु दिखाते हुए कहा है- “न कवियश के लिए, न पूजा-स्थान बनूं ऐसी बुद्धि से और न लोक के चित्त में चमत्कार पैदा करूं ऐसी इच्छा से इस प्रबंध की रचना मैं करता हूँ, केवल आंतरिक दुश्मनो के चक्र को नष्ट करनेवाले श्रीसुमतिप्रभु के चरितांश के किर्तन से मैं स्वयं को प्रसन्न करूं ऐसा सोचके इस कथा-प्रबंध की रचना करने को उद्यत हुआ हूँ। ऐसा करने पर दूसरों को भी लाभ हो तो अधिक अच्छा है ।" (पृ. ३, गा. ३६-३८)
__ इस तरह पंचम तीर्थंकर सुमतिनाथ के जीवनचरित्र को केन्द्रवर्ती विषय बनाकर ग्रंथकारने चालीस से अधिक रसप्रद उपदेश कथाओ द्वारा जैन धर्म और दर्शन के अनेक तत्त्वों को अत्यंत मधुर प्रांजल भाषामें कौशल्यपूर्ण रीति से पेश किया है ।
इन कथाओ में ग्रंथकार ने अपनी कल्पना से रची कथाओं के साथ लोकसाहित्यमें प्रचलित कथाओं का विनियोग भी किया है।
संक्षिप्त कथासार प्रस्ताव १ (पृ. १-२४)- प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, पंचम तीर्थंकर सुमतिनाथ, तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर तथा शेष जिनों को वंदन करके (पद्य १-५) एवं श्रुतदेवी, गुरुजनों, गौतम गणधर को नमस्कार करके (५-९) ग्रंथकार कथाका प्रारंभ करते हैं, जिनधर्मकी प्रशंसा करके निर्जरा हेतु सुमतिनाथ भगवान के तीन भवों में बद्ध चरित्र की रचना का संकल्प करते हैं (१०-२७), फिर सज्जनस्तुति आदि करके कथाप्रबंध का प्रारंभ करते हैं (२८-३८) ।
। भगवान सुमतिनाथ के तीन भवों में प्रथम भव पुरुषसिंह नामक राजकुमार का था । पुरुषसिंह-भवकी कथा प्रथमार्धमें अतिविस्तार से दी गई हैं।
पुरुषसिंह के पिता शंखपुर नगर के राजा विजयसेन थे । विजयसेन की सभा में एकबार सुमंगल नामक एक सार्थवाह आता है। वह बताता है कि गंधपुरनगर के राजा तारापीठकी पुत्री राजकन्या सुदर्शना विजयसेन राजा को वरण करने के लिए सार्थ के साथ आ रही थी तब रास्तेमें कोइ अदृष्ट तत्त्व द्वारा उसका अपहरण हो गया है। इस से राजा आनंद और दुःख दोनों का भाव अनुभव करता है । शुभ शकुनों द्वारा इस कन्या से विजयसेन का वरण होगा ऐसा आश्वासन मतिसागर मंत्री राजा को देता है।
एकदा मृगया के लिए निकले विजयसेन को अश्व उठा के एक अरण्यमें ले गया। वहां एक सरोवर के किनारे पहुँचा तब किसी स्त्री का सहाय के लिए शब्द सुना । वहां पहुंचने पर एक सुंदरीने उसके पास भोग के लिए प्रार्थना की । शीलवान राजा ने उसे इनकार कर दिया । सुंदरीरूप धारण करनेवाली व्यंतरी ने अपने पति
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( १६ )
पिंगलाक्ष नामक व्यंतर को असत्य कहकर उसके विरुद्ध उकसाया । व्यंतर के साथ राजाका युद्ध हुआ, शील के कारण राजाकी जीत हुई, व्यंतरने उसे चमत्कारिक महा हार और औषधि दी ।
आगे चलते राजा का रथनूपुरचक्रवाल नगर के विद्याधर चक्रवर्ती महेन्द्रसिंह के पुत्र मणिचूडके साथ मिलन होता है ।
प्रस्ताव २ (पृ. २५-४८)- मणिचूड अपने पूर्वभव की कथा सुनाता है । उनके साथ भी वैसी ही घटना घटी थी । विजयसेन और मणिचूड मित्र बन गये । राजाने मणिचूड को सुदर्शना की शोध का कार्य सोंपा । दोनों विमान विकुर्वित करके निकल पडे ।
प्रस्ताव ३ (पृ. ४९-६८) - इधर सुदर्शना का अपहरण करके क्षुद्र व्यंतरीने उसे भयंकर अटवी में छोड दिया । वहां उसे कायोत्सर्ग स्थित चारण श्रमण का दर्शन हुआ । उनके द्वारा धर्मोपदेश और पंचपरमेष्ठि मंत्र की प्राप्ति करके उसके प्रताप से वह निर्भय बनके आगे चली । हाथी पकडने के लिए वन में आया हुआ चक्रपुर नरेश सिंहराजा उसे अपने नगरमें ले जाता है, उससे बलात् विवाह करने का प्रयत्न करता है इसी बीच विजयसेन और मणिचूड वहां आ पहुंचते हैं । आत्महत्या करती हुइ राजकुमारीको विजयसेन बचाता है, सिंह के साथ उसका युद्ध होता है, सिंह को परास्त कर सुदर्शना के साथ विवाह करके मणिचूड द्वारा विकुर्वित विमानसे राजा विजयसेन स्वनगर में आ पहुंचता है । नगर में आनंदोत्सव मनाया जाता है ।
प्रस्ताव ४ (पृ. ६९-१२४) - जीवानंदसूरि नामक आचार्य का नगर में आगमन होता है । राजा द्वारा सुदर्शना के लिए प्रश्न पूछने पर आचार्य ने उसके पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाया । पूर्वजन्म में विजयसेन जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुशपुर नगर में दत्त नामक धर्मपरायण वणिक था, व्यंतरी उसकी पद्मा नामक कुशील भार्या थी और सुदर्शना उसकी भद्रा नामक धर्मिष्ठ भार्या थी । मुनि के उपदेश से विजयसेन और सुदर्शना को जातिस्मरण ज्ञान हुआ और दोनों श्रावक व्रत का पालन करते हुए अनेकविध धर्मकार्य करने लगे ।
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एक दिन उद्यानयात्रा के लिए राजा-रानी गए हुए थे तब रानी सुदर्शना को पुत्र न होने का दुःख हुआ । अविवेकी मंत्री द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए माणिभद्र नामक यक्ष को पशुबलि आदि चढ़ाने का सूचन हुआ, परंतु राजा द्वारा इनकार होने पर माणिभद्र यक्ष द्वारा अनेक उपसर्ग किये गये । किन्तु राजा निश्चल रहा । मतिसागर मंत्री द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए पुण्योपार्जनकी आवश्यकता समझा के पुण्योपार्जन के लिए धार्मिक उपायका सूचन किया गया । धार्मिक उपायों सें पुण्योपार्जन के कारण देवलोकसे च्यवित होकर रानी के गर्भ में एक देव का पुत्र रूपमें आगमन हुआ। वही भगवान सुमितनाथ का जीव था । पुत्र का
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( १७ )
पुरुषसिंह नाम दिया जाता है । क्रमशः कुमार युवास्थाको प्राप्त होता है ।
एकदा कुमार ने वधनिमित्त ले जाते हुए चोर को दयाके कारण छुडवाया । राजाने उसे उपालंभ दिया । अपमान समझकर कुमार गृहत्याग कर देता है । परिभ्रमण करता हुआ कुमार श्रीपुर नगर पहुँचता है । वहां के राजा पुरंदरकी पुत्री चंद्रलेखा पुरुषद्वेषिणी थी, किन्तु कुमार को देख उसे प्रेम करने लगी । कुमार द्वारा राजहस्ती को वश करने के पराक्रम को देखते हुए राजा ने उसके साथ चंद्रलेखा का विवाह कर दिया ।
तत्पश्चात् पुरुषसिंह कुमार अनेक नगरोंमें घुमता हुआ, अनेक पराक्रम करता हुआ, अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह करता है— सिंहपुर नगर - सिंहविक्रम राजाजयावली देवी की कन्या मदनलेखा, कंचनपुर नगर - राजा वैरसिंह - रानी नयनावली की राजकन्या कनकावली, विजयपुर नगर- अरिदमनराजा - जय श्री रानी की कन्या रत्नावली, हस्तिनापुरनगर - नरसिंह राजा - विलासवती महारानी की पुत्री राजकन्या लीलावती, मदनपुरनगर-विद्युत्वेग विद्याधर राजा - विद्युन्मालिका रानीकी कन्या कमलावती, पोतनपुर नगर- श्रेष्ठ राजा- सौभाग्यसुंदरी रानी की पुत्री सौभाग्यमंजरी इस तरह अनेकों कन्याओं को प्राप्त करके अंतमें विद्याधर सैन्य के साथ युद्ध करके रत्नपुर नगर की रत्नमंजरी नामक कन्या का पाणिग्रहण करके, पिता विजयसेन द्वारा भेजे गए पुरुषों के प्रयत्न से शंखपुर नगर पुनः आया और प्रियाओं के साथ अनेकविध विनोदों से अपना समय पसार करने लगा ।
यहां पर प्रहेलिका प्रश्नोत्तरादि का विशद वर्णन (पृ. ११६ - १२२) दिया गया
है ।
प्रस्ताव
५ (पृ. १२५ - २१४) -- इसी मध्य विनतानन्द और विनयनन्दन नामक दो आचार्य पधारे। उनका मनुष्य जीवनमें आठ कर्मो के प्रभाव विषयक हृदयस्पर्शी व्याख्यान सुनकर पुरुषसिंह कुमारने महाव्रत ग्रहणका निश्चय किया, माता-पिताकी अनुमति ली और भार्याओं से निवेदन किया। उस समय एक के बाद एक भार्याने उनको अपनी बातका समर्थन करते हुए दृष्टांत के साथ यह आग्रह छोडने को कहा । कुमारने प्रत्येक दृष्टांत के विरुद्ध अपने दृष्टांत रखे। इस तरह इस प्रस्तावमें छोटी बडी १६ रोचक कथाएँ दी गई है
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[ दुग्गय १ चिंतामणी २ चूय ३ कूयनर ४ ससुर ५ सूरसेण निवा ६ । वरदत्तो ७ जयवम्मो ८ कज्जो य ९ कुबेरदत्तो य १० ॥ १२७१।
(१) दुग्गय
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अक्का ११ समुद्ददत्तो १२जंबुग १३ मित्ततिय १४ अक्क १५ वणिपुसा १६ । भज्जाहिं कुमारेण य कहियाओ कहाओ एयाओ || १२७२ ॥ ]
प्रियतमा चन्द्रलेखा द्वारा अधीरता के विषय में पुण्यहीन श्रावक की
कथा (पृ. १३० - १३२)
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(२) चिंतामणी - कुमार द्वारा प्रमाद विषय में चिन्तामणि प्राप्त करके गवाँनेवाले
वणिकपुत्र की कथा (पृ. १३३-१३६) (३) चूय - मदनरेखा द्वारा अविचारी कृत्य विषयक सहकारछेदक नरेन्द्र की कथा (पृ.
१३६-१४४) (४) कूयनर - कुमार द्वारा विषयकामना से दुःख विषयक मधुबिंदु दृष्टांत (पृ. १४५ --
१४८) (५) ससुर - कनकावली द्वारा परिणाम का विचार करके कार्य करने के लिए मित्रवती
के श्वसुर की कथा (पृ. १४८-१५३) (६) सूरसेण निव - कुमार द्वारा राज्यलोभ के कारण जीववध करनेवाले को नरकप्राप्ति
विषयक शूरसेन की कथा (पृ. १५४-१६१) (७) वरदत्त - रत्नावली द्वारा अविचारिता विषयक वरदत्त की कथा (पृ. १६१-१६६) (८) जयवम्म - कुमार द्वारा स्त्रीचरित्र-गहनता विषयक जयवर्म की कथा (पृ. १६७
१७१) (९) कज्ज - लीलावती द्वारा अतिलोभ विषयक कार्यवेष्ठि-कथा (पृ. १७१-१७४) (१०) कुबेरदत्त - कुमार द्वारा संबंधों की विचित्रता विषयक कुबेरसेन-कुबेरसेना कथा
(पृ. १७५-१७७) (११) अक्का - कमलावती द्वारा अतिलोभ विषयक कुट्टिनी कथा (पृ. १७७-१८६) (१२) समुद्ददत्त - कुमार द्वारा संबंधों की कुटिलता विषयक समुद्रदत्त-कथा (पृ.
१८८-१९१) (१३) जंबुग - सौभाग्यमंजरी द्वारा लोभविषयक जंबुक-कथा (पृ. १९१-१९५) (१४) मित्ततिय - कुमार द्वारा अन्याय-उपार्जित धन विषयक तीन मित्रों की कथा
(पृ. १९७-१९९) (१५) अक्का - रत्नमंजरी द्वारा अतिलोभ विषयक कुट्टिनी की कथा (पृ. १९९-२०५) (१६) वणिपुत्त - कुमार द्वारा स्नेह की निरर्थकता विषयक वणिकपुत्र-कथा (पृ. २०६-२०८)
इस वार्तालाप के अंतमें सभी वधूएं संविग्न हुई, सभीने महाव्रतग्रहण का संकल्प किया ।
महादान के बाद कुमार और सभी भार्याओंने दीक्षा ली । तत्पश्चात् कुमार अनेकविध तपश्चर्या करके, एकवीश स्थान द्वारा तीर्थंकर कर्म उपार्जित करके, संलेखनापूर्वक समाधिमरण प्राप्त करके वैजयंतविमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ ।
___ यहां पर कर्ताने ग्रंथ के पूर्वार्ध के पूर्ण होने की सूचक गाथा दी है (गाथा १३१४, पृ.२१२)- श्रीसोमप्रभसूरि विरचित सुमतिस्वामीचरितमें तीर्थंकर कर्म
अर्जन-प्रवर नर- सुर- भवोंका वर्णन पूर्ण हुआ ।
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(११) प्रस्ताव - ६ -. (पृ. २१५-२४७) - पुरुषसिंह का जीव वैजयंत विमान से च्यवित होकर अयोध्या नगरी के राजा मेघ की महारानी मंगलादेवी के गर्भ में पुत्र रूप से अवतीर्ण हुआ । पुत्र जब गर्भ में था तभी मंगलादेवी के जीवन में एक अद्भुत घटना घटी । एक पुत्र के लिए लड़ती दो माताओं में से सच्ची माता का निर्णय मंगलादेवी ने अपने बुद्धिकौशल्य से कर दिखाया (पृ. २२०-२१) ।
पुत्रजन्म के बाद कुमारका सुमति नाम दिया जाता है । देवों द्वारा स्नानादि उत्सव किए जाते हैं । बचपन, शिक्षा और परिणयन के वर्णन के पश्चात् पिता मेघ की श्रमणदीक्षा और सुमति द्वारा राज्यसंचालन का वर्णन आता है । स्वयंबुद्धत्व, केवलज्ञानप्राप्ति, उपदेश, चमरप्रमुख मुनिगण, चमर गणधर इत्यादि के वर्णन के साथ प्रस्ताव पूर्ण होता है (पृ. २३०-२४७) ।
प्रस्ताव - ७ (पृ. २४९-३२७) -यहां से गणधर चमर द्वारा दिए गए उपदेश का वर्णन आता है । इस उपदेश के अंतर्गत विविध उपदेशात्मक कथाएं आती हैं
(१) जिनभक्ति विषय में सुन्दर-कथा (पृ. २४८.-२५९) (२) विधिदान विषयक सुदत्त-कथा (पृ. २६२-२७२) (३) शील विषयक शीलवती कथा (पृ. २७३-२८१) (४) तपश्चरण विषयक निर्भाग्य-कथा (पृ. २८४-३२०)
(५) भावना विषयक क्षुल्लकादि कथा (पृ. ३२०-३२६) प्रस्ताव - ८ (पृ. ३२८-३८४) -
(१) अहिंसा विषयक देवप्रसाद-कथा (पृ. ३२८-३४०) (२) सत्य विषयक कुलाल-कथा (पृ. ३४१-३५०) (३) अस्तेय विषयक नागदत्त-कथा (पृ. ३५०-३५६) (४) शील विषयक रणवीर-कथा (पृ. ३५७-३६८)
(५) परिग्रहविरति विषयक देवदत्त-कथा (पृ. ३६८-३८३) प्रस्ताव - ९ (पृ. ३८५-४९४) - (१) आगम-विराधना-आराधना विषयक नरसुदरराज-कथा (पृ.
३८५-३९३) (२) उत्तम-सेवा विषयक दिवाकर-कथा (पृ. ३९३-३९८) (३) गुरु-आराधन विषयक विमलमति-कथा (पृ. ३९८-४०८) (४) कोप-उपशमन विषयक कपिल-केशव-कथा (पृ. ४०९-४४७) (५) मानविपाक विषयक लीलावती कथा (पृ. ४४९ ४५४)
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(६) मायानिग्रह विषयक शंख कथा (पृ. ४५५ ४५९)
(७) लोभ- विपाक तथा जयाजय विषयक सुरासुर - कथा (पृ. ४६०
४६७)
(८) नमस्कार विषयक पुलिन्द - मिथुन कथा (पृ. ४६८-४९३)
इस प्रकार चमर गणधरने मोक्षमार्ग के अठारह सोपानरूप अठारह कथाओं द्वारा अनुपम धर्मदेशना की ।
ܝ ܕ
प्रस्ताव
१० (पृ. ४८५ -५१४) - तीर्थंकर भगवंत सुमतिनाथ का विहार एवं साकेत नगर में समवसरण का वर्णन । वहां के राजा निधिकुंडल के प्रश्न के उत्तर में भूत एवं भविष्य विषय का कथन, पुनः विहार ।
-
निर्वाण - समय समीप जानकर भगवान समेतशिखर गिरि पधारते है, देवों का आगमन होता है, समवसरण एवं धर्मदेशना के बाद १,००० मुनियों के साथ भगवंत का सर्वोपरि शिखर पर आरोहण एवं अनशनपूर्वक निर्वाण होता है । ३२ इन्द्रों द्वारा अग्निसंस्कार किया जाता है और चमर गणधर द्वारा संघ का अनुशासन प्रारंभ होता हैं ।
ग्रंथकार - प्रशस्ति के साथ ग्रंथ समाप्त होता है ।
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आज से करीब पच्चीस वर्ष पूर्व भावनगर (सौराष्ट्र) स्थित जैन आत्मानंद सभा ने मुझे सुमतिनाथचरित के गुजराती भाषान्तर का कार्य सौंपा था। संस्था के पास सुमतिनाथचरित की एक प्रेसकापी थी, जो वहां के किसी ज्ञानभण्डार की हस्तप्रत के आधार से लिखी गई थी और अत्यन्त अशुद्ध थी। मुझे भाषान्तर उसी के आधार से करना था । अत्यन्त कठिनाई से मैनें एक खंड का भाषान्तर कर दिया, जो १९८० में प्रकाशित हो गया । भाषान्तर करते समय मुझे मूल ग्रन्थ के संशोधन-संपादन की आवश्यकता महसूस हुई। आदरणीय स्व. पं. दलसुखभाई मालवणिया से इस बारे में बात हुई तो उन्होंने प्राकृत ग्रन्थ परिषद के संग्रह में सुरक्षित स्व. पू. आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी द्वारा करवाई गई सुमतिनाथचरित की नकल मुझे दी । प्रस्तुत संपादन के लिए मैंने उसी नकल का उपयोग किया है। आज कई वर्षों के बाद यह ग्रन्थ प्रकट हो रहा है तब मैं स्व. पू. आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी और स्व. पं. दलसुखभाई दोनों महानुभावों का स्मरण करके हृदयपूर्वक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ । अपने पास की सुमतिनाथचरित की दो हस्तप्रतों की झेराक्स नकलें बिना मांगे ही मुझे देकर और इस संपादनकार्य में रस दिखाकर जो प्रेरणा दी है इसके लिए परम पूज्य आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजी म. सा. के प्रति भी वंदनपूर्वक आभार व्यक्त करता हूँ । बार बार संपादनकार्य शीघ्रता से सम्पन्न करने का आग्रह करके प्रेरित करने के
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( २१ ) लिए प्राकृत ग्रन्थ परिषद के अध्यक्ष डॉ. नगीनभाई शाह का भी यहाँ आभार मानता हूँ । जिनकी प्रेरणा से इस ग्रन्थ के प्रकाशन खर्च की व्यवस्था हो सकी वे परम पूज्य आचार्य श्री नरचन्द्रसूरिजी म. सा. के प्रति भी वंदनापूर्वक आभार व्यक्त करता हूँ ।
अनेक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण इस ग्रन्थ की विस्तृत अभ्यासपूर्ण प्रस्तावना लिखने की इच्छा होने पर भी अनेक कार्यों में व्यस्त होने से अभी लिख नहीं पाया हूँ इस लिए विद्वद्जनों का क्षमाप्रार्थी हूँ ।
दि. २५-१२-२००३ अहमदाबाद
रमणीक शाह
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सिरि-सोमप्पहसूरि-विरइयं
सुमइनाह-चरियं
पढमो पत्थावो
जयइ जय-कप्परुक्खो पढम-जिणो जस्स खंध-सिहरेसु । सउणाण वल्लहा वाल-वल्लरी सहइ सिद्धि-फला !!१|| महिऊण मोह-जलहिं लद्धं केवल-सिरिं च जो जाओ । पायडिय-सत्त-तत्तो तं अच्चह अच्चुयं सुमइं ||२|| पासो पियंगुकंती फणि-फण-मणि-किरण-रंजिय-सरीरो । पल्लविओ कप्पतरु व्व कुणउ मण-वंछियं मज्झ ||३|| दंसिय-सिवपुर-मग्गं सुरिंद-मणि-मउड-मसणिय-कमग्गं । पसम-सुहामय-मग्गं नमामि वीरं गुणसमग्गं ||४|| असमे वि सम-समिद्धे अमए वि ह बहुमए बुहयणस्स । संग-रहिए वि निग्गहिय-संगरे नमह सेस-जिणे ||५|| परिणमउ पवयणामयमेयं मह मोह-विस-विणासखमं । लेसं पि जस्स पाऊण पाविया निव्वुइं विबुहा ||६|| कवि-चक्क-चित्त-रयणायरेसु पसरंति वयण-कल्लोला । जीइ मुहचंद-दसणवसेण सा जयउ सुयएवी ||७|| जेसिं तुहिं लडिं व लहिय मंदो वि अखलिय-पएहिं । विसमे वि कव्व-मग्गे संचरइ जयंतु ते गुरुणो ||८|| जत्तो दुवालसंगी गंग व्व हिमालयाओ संभूया । सुरसत्थ-सेवियपया तुंगं तं गोयमं नमह ||9|| कविपुंगवाण वाणी मयंक-जोण्ह व्व निम्मला जयइ । नवनव-कविचक्व-चगोर-पिज्जमाणा वि अपमाणे ||१०|| इत्थं थोयव्व-पयत्थसत्थ-संथव-गलत्थियाणत्थो । वित्थारिय-परमत्थं पत्थुयमत्थं पवक्खामि ||११।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं जस्स पुरिसत्थ-साहणपरस्स पुरिसस्स जंति दियहाई । मणुयत्तणाइ-लाभं सहलं तरसेव बिंति बुहा ||१२|| तत्थ वि समत्थ-पुरिसत्थ-मत्थय-मणी समथिओ धम्मो । संपज्जते जम्हा सेसा सव्वे वि धम्माओ ||१३|| सो उण परिक्खिऊणं गहियव्वो कंचणं व कसवढे । अन्नह विसंवयंतो कज्जे संजणइ संतावं ||१४|| धम्मो न नाम-तुल्लत्तणेण सव्वो वि वंछियं कुणइ । दुद्धं ति भणिय पीयं किमक्कछीरं दिहिं जणइ ? ||१५|| चंदो गहाण मेरू गिरीण चिंतामणी मणीण जहा । तह जिणवरिंद-धम्मो सिरोमणी सेस-धम्माणं ।।१६।। जह वा जल-जलणाणं पीऊस-विसाण तेय-तिमिराणं । जिणधम्म-सेसधम्माणमंतंर तह इहं नेयं ||१७|| मण-वाया-काएहिं छक्वाय-वहो न जम्मि कायन्वो । सो मोक्ख-सुक्ख-हेऊ जह जिण-धम्मो न तह सेसा ||१८|| ता उज्झिऊण सेसे भवाडवी-भमणहेउणो धम्मे । कल्लाण-वल्लि-जलकुल्ल-तुल्लमल्लियह जिणधम्मं ||११|| सग्गो ताण घरंगणं सहयरी सव्वा सुहा संपया,
सोहग्गाइ-गुणावली विरयए सव्वंगमालिंगणं । संसारो न दुरुत्तरो सिव-सुहं पत्तं करंभोरुहे,
जे सम्मं जिणधम्म-कम्मकरणे वदृति बदायरा ||२०|| जम्हा जिणेण वुत्तो कित्तिज्जइ तो बुहेहिं जिणधम्मो । एसो वि जह जिणेणं पन्नत्तो भवियसत्ताण ||२१|| जह तेणावि जिणत्तं पत्तं काऊण कम्म-निम्महणं । सम्मत्त-नाण-चारित्त-पगरिसारोहण-कमेण ||२२|| तं सव्वमिणं सम्मं जाणिज्जइ जिणचरित्त-सवणेण । जंपेमि अओ चरियं जिणस्स सिरि-सुमइनाहस्स ||२३|| तं पुण जह- सो भयवं पुव्वभवे पाविऊण सम्मत्तं । सव्वविरइं' पवज्जिय समुवज्जिय-तित्थयर-कम्मो ।।२४।।
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सुमइनाह-चरियं
पत्तो य वेजयंतं विमाणमणुभविय तत्थ सुर-रिद्धिं । तत्तो चुओ समाणो सुमइ-जिणिंदो समुप्पलो ||२५|| गाढंतरंग-रिउवग्ग-निग्गहुप्पन्न-केवलल्लाणो । पडिबोहिऊण भुवणत्तयं पि निव्वाणमणुपत्तो ।।२६।। तं तह समग्गमेयं संखेवेणं सुयाणुसारेण ।। ति-भव-ग्गहण-निबद्धं विरइज्जइ निज्जरा-हेउं ||२७|| एत्थावसरे जं सज्जणाण कइणो कुणंति थुइवायं । तत्थ न दोसो त्ति अओ अहमवि तं किंपि काहामि ||२८|| सुयणा जयंतु ते जाण माणसे माणसे व्व विमलम्मि । पिसुण-घण-रसिय-नहा हंस व्व गुणा निलीयंति ||२१|| जं दुज्जणाण कीरइ दोस-समुक्वित्तणं महापावं । तं कह करेमि फुडमप्पणो वि पिसुणत्त-संजणणं ||३०|| सो कह न दुज्जणो दुज्जणाण जो दोस-पयडणं कुणइ । परदोस-भासणं चिय चवंति' जं दुज्जण-सरुवं ।।३१|| जइ दुज्जणो न हुँतो सुयणो वि लभेज्ज तो न माहप्पं । छाया आयव-तवियाण' होइ सुहया विसेसेण ||३२|| पिसुणाण सज्जणाण व जं कीरइ पत्थणा न तं उचियं । जं पत्थिया वि पिसुणा कुडिल च्चिय कसिण-सप्प व्व ।।३३।। सुयणा अपत्थिया वि हु परगुण-बहुमाणिणो मह पबंधं । जइ पेच्छिहंति सगुणं तो गिहिरसंति सयमेव ||३४|| अह निग्गुणं मुणिस्संति ते इमं तो न आयरिस्संति । तह वि न होही मह एस निप्फलो नूणमारंभो ||३५|| न कइ ति कित्तिकामो न होमि पूयापयं ति कयबुद्धी । जणचित्त-चमक्कारं काहं ति न वा विहियवंछो ||३६।। किंतु सिरिसुमइ-पहुणो पहीण-सयलंतरारि-चक्करस । चरियलव-कित्तणेणं विणोयमहमप्पणो काहं ।।३७|| इय चिंतिऊण' काउं कहापबंधं इमं पयट्टो हं । एवं कए परेसिं पि जइ गुणो होज्ज ता भई ।।३८।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सुरसेल-कणय-कलसं जलनिहि-नीलंबराभिरामं तं ।
भुयगिंद-रुंद-दंडं छत्तं व महीयलं सहइ ||३|| तत्थऽस्थि वित्थिन - लवणो यहि-महल्ल- कल्लोल-पेल्लणुल्लसिय-महग्य-रयणुक्केर-किरण-दिप्पंत-पेरंतो पुनिमा-मयंको व्व संपन्न-परिवेस-मंडलो जंबुद्दीवो नाम दीवो | तम्मि य पुव्वविदेहावयंसय-सरिच्छ-सुकच्छविजय-वसुंधरालंकारकप्पं, कप्पिय-पयत्थपयाण-' कप्पडुम-समाण-माणव-समूह-भूसियं, सियकर-किरणसंभार-भासुर-सुरागार-सिंगार-गारवियं, वियड-कूव-वावी-सरोवरसहा-सहस्स-संकुलं, कुलभवणं व कला-कामिणीणं, उप्पत्ति-पयं पिव संपयाणं, आगरो' व्व गरुयच्छरय-रयणाणं, विस्सामहाणं व धम्मस्स, पडिबिंबं व पुरंदरपुरस्स, असंख-तरुसंड-मंडिय-परिसरं संखउरं नाम नयरं, जं च संचरंताणेग-गोरी-महेसर-पलोयण-कुऊहलागएण हिमालएणेव फलिहसिला-संघाय-घडिएण तुंग-पायारेण परिक्खित्तं, निस्सीमसामुद्दियवाणियाणीय-नाणारयणरासि-लोभागएण ‘गयणग्ग-लग्गपायार-प्पडिरुद्ध-प्पवेसे ण, पारावारेणेव परिहा-वलएण अतुच्छसच्छ-सलिल-संपुल्लेण परिवेढिय-पेरंतं । तासो कुसुद्ध-रयणेसु अरिह-सद्दो भूमीरुहेसु सुरधाम-सिरेसु दंडो । केसेसु बंधणविहीं कलहोवलंभो गेहम्मि भूमिवइणो न जणेसु जम्मि ||४|| मंज-लवलि-रमणिज्जा असोगजुत्ता' पियाल-वण-पवरा । बाहिँ जत्थाऽऽरामा सहति रामा-गणा मज्हो |४१।। तं पालए पणयभूव-पडत-चूडा-माणिक्क-चक्क-टिवडिक्तिय-पायवीढो । पच्चत्थि-पत्थिव-वहू-वयणारविंद-चंदुग्गमो विजयसेण-महानरिंदो॥४२||
तरला वि रज्जलच्छी जस्स भूयालाणखंभ-मूलम्मि । निबिड-गुणेहिं निबद्धा करणि व्व थिरत्तणं पत्ता ||४३|| "भुवणवणं पल्लवियं व सहइ जस्स प्पयाव-पिंजरियं । चंदकिरणुज्जलेणं जसेण धवलं कुसुमियं व ॥४४|| गयवाहणाओ हयपरियराओ हारावरुद्धकंठाओ । "दीसंति जस्स अंतेउरीओ रिउसुंदरीओ य ।।४।।
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सुमइनाह-चरियं
सो य राया निय-सुंदेरिमोहामिय-मयणो सयल-कलाकलावकुलहरं परकलत्त-पलोयण-परम्मुहो, महत्थ-पसत्थ-सत्थ-परिकम्मियमई सु मइ-माहप्प-निज्जियामरगुरू सु सामिक ज्ज-साहणाहीणजीवियव्वेसु मइसायर-प्पमुह-महामंतीसु समारोविय-रज्जभारो, कयाइ मंजु-गुंजंत-पणव-वेणु-वीणा-रवाणुगय-गेय-मणहरं बहुपयार-चारुचारी-करणंगहार-हीरंत-लोय-लोयणं रभसभर-भमिर-भूयवल्लिवेल्लिर-रणंत-कणय-कं कणं पणंगणाण नहँ पलो यए, कयाइ करकमल-कलियंकुसो मत्त-करि-कंधराधिरूढो गाढ-विम्हय-रसाउत्तनर-नारी-नयण-नीलुप्पल-मालोरुमालिज्जमाण-मुहकमलो विउलरायमग्गमोगाढो कीला-सोक्खमणुहवइ, कयाइ सुहासियामयरस-परवसो कवियण- वयणाइं सवणगोयरीकरेइ, कयाइ पइक्खणं पेक्खगजणजणिय-साहवाओ तुरंगवग्ग-वग्गण-विणोयमणुचिहइ, कयाइ पसत्थधम्मसत्थ-वियारमायरइ ।
इय पुव्वभवज्जिय-पुन-पगरिसागरिसियं गरुय-सोक्खं । सेवंतस्स नरिंदरस वासरा तस्स वोलंति ||४६||
अन्नया अत्थाणसहा-सुहनिसनस्स राइणो रयणकुहिम-मिलंतमउलिणा पणमिऊण विन्नत्तं पडिहारेण- 'देव ! देव-दसणाभिलासी सुमंगलो नाम सत्थवाहो दुवारे चिहइ ।' ।
राइणा भणियं-'सिग्धं पवेसेह ।' तओ पविहो समं पडिहारेण । पणमिओऽणेण राया । उवणीयं पहाण-पाहुडं । उचियासण-निसल्लो य भणिओ राइणा
'तुह सत्थवाह ! सागयमेण्हेिं सव्वत्थ वट्टए कुसलं ? |
अक्खलिओ ववहारो चिराओ दिहो सि वा कीस ?' ||४७|| सत्थवाहेण भणियं_ 'तुह पाय-कप्पपायव-छायं सेवंतयरस नरनाह ! ।
सव्वं पि सिद्ध-मणवंछियत्थसत्थस्स सुत्थं मे ||४८।। जं पुण चिरदसण-कारणं तं सुणेउ देवो
__ एगया रयणी-विराम-समय-समत्तनिद्दस्स समुप्पल्ला मणम्मि मे चिंता' ज़हा
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं जो न कुणइ काउरिसो धणज्जणं जोव्वणम्मि वतो । छगल-गलत्थण-जुयलं व जीवियं निप्फलं तस्स ||४१ || किंच नरेण मइमया न चेय चित्तम्मि चिंतियव्वमिणं । संत महंत विहवे किमिह१४ विहवज्जणेण जओ ? ||५०|l पइदियहं पूरिज्जइ जइ कहवि न निन्नया - सहस्सेहिं । ता सुसइ च्चिय अइरा गरुओ वि तरंगिणीनाही || ५१|| एवमवड्ढिज्जतो नवनव-दविणज्जणा-पयारेहिं विलयं वच्चइ नूणं बहुओ वि हु विहव - संभारी ॥५२॥
तओ गुणी वि गुण- वज्जिओ, मणहरो वि "रुवुज्झिओ, बुहो वि गयबुद्धिओ, "नयपरो वि उव्वेवओ, पियं पि पभणंतओ कडुपयंपिरो गिज्जए, तणं व लहुयत्तणं लहइ दव्वहीणो नरो । तहा,
દુ
किं च,
विगुणमवि गुणडुं रूवहीणं पि रम्मं, जडमवि मइमंतं मंदसत्तं पि सूरं । अकुलमवि कुलीणं तं पयंपंति लोया, नवकमलदलच्छी जं पलोएइ लच्छी ॥५३॥ लढूण धणं सहलं कायव्वं पत्तदाण- भोगेहिं । एवं " अकरेमाणे संतं पि असंतसारिच्छं ||१४||
19
जे उण " लद्धं पि धणं न दिति पत्ते सयं न भुंजंति । ते तं परोवभोग्गं रवखंति अवित्ति - कम्मयरा ||१५||
जो न नियइ परिभभिउं महिवलयमणेग - कोउगाइन्नं । सो कूव - दद्दुरो इव सारासारं न याणेइ || ५६ ||
ता "गंतूण देसंतरं करेमि सविसेस-दविणज्जणं" ति । तओ काऊण समग्ग- सामग्गिं पउर- पाइक्कचक्क-परिवुडो, खर- करह-वसहवेसर - विसरारोविय वियड कयाणगो पत्थिओ पसत्थे" दियहे पुव्वदिसाए । कइवय-पयाणगेहिं लंघिऊणाणेग-गामाSSगर-नगर- गिरिसरि-सरोवर - विरायमाणं मेइणिं पत्तो महग्घ मणिमयामर-मंदिर-सुंदेरपराभग्ग - सग्ग- सोहग्ग-गव्वं गंधपुरं नाम नयरं ।
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सुमइनाह-चरियं
जस्सिं पंकरहाई कोसविगमं पावंति मित्तोदए
विच्छायं कुमुयं मयंक-किरणा दोसागमुल्लासिणो । उच्चालाणवसंगया' मयगला दुव्वासणासंगिणो
गोवग्गा तरुणा करप्पियसुरा-मंसा, न सेसो जणो ||१७|| तम्मि काऊण सत्थ-सन्निवेसं ठिओ बाहि । गहिऊण पाहुडं पत्तो नयरब्भंतरं । गओ राय-भवणं । पडिहार-निवेइओ पविहो रायत्थाणं । पणमिओ मए महंत-सामंत-मंति-मंडलिय-लोय-मज्ावत्ती पुन्निमामयंको व्व तार-तारय-परिवारो तारावीढो नाम राया । उचियासणोवविहो य पुढो राइणा-'सत्थवाह ! सागयं ते !'। मए भणियं- 'तुम्ह दंसणेण' | पुणो वि रत्ना पयंपियं-'भद्द ! कत्तो तुमं समागओ ?' | मए भणियं-'देव ! संखउराओ' ।
एत्थंतरे समागया तत्थ समत्त-लोय-लोयणाणंद-संदोहदाइ-दंसणा सुदंसणा नाम निरुवम-रूवरेहाए सुर- रमणीणं पि कयावन्ना रायकन्ना |
जसु सलूण-लोयणाइं पलोइवि लज्जियइं,२ ___गय वणि हरिण नाइ जलि कुवलय मज्जियइं। नं जसु निरुवम-रूवु निरूविवि लज्जभरि,
गउरि हरंगि निलुक्वी लच्छी किवण-घरि ||८|| एत्थंतरे विजयसेण-रला चिंतियं-अहो ! अच्छरियं ।
सवण-विसयं पि पत्ता जा कुणइ पमोयमेरिसं बाला । सा दिहिगोयर-गया किं मह काही ? न याणामि ||५|| जइ सउणाण त पक्खा विणिम्मिया होज्ज माणसाणं पि । कीरव्व तत्थ गंतुं ता" सहलं नयण-निम्माणं ||६०||
एवं चिंतंतण रन्ना भणियं-'सत्थवाह ! तओ तओ ?' | सत्थवाहेण जंपियं- 'देव ! सा रायकलगा पणमिऊण रायाणं निसला तत्थेव । तं सव्वंगमालोइऊण भणिओ रन्ना मइसार मंती
एसा असरिस-रूवा विहिणो विन्नाण-पगरिसो एस । तं नूणमित्तियं चिय दलं इमा जेण निम्मविया ||६१।। ता" होज्ज किं इमीए उचिओ रुवाइएहिं कोइ वरो ? | इय चिंता संतावइ वियंभमाणा मणं मज्ा ।।६२।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं एत्थंतरे चिंतियं मए-'समग्ग-समर-संरंभ-लद्धविजये विजयसेणे "महारायम्मि निरुवम-रूवरेहोहामिय-मयणे विज्जमाणे२७ किं राइणो चिंता संतावमुप्पाएइ ?' | मंतिणा भणियं-'देव ! “अलमित्थ चिंताए । निउणो विही ।
जेणेसा ओहामिय-मयणवह निम्मिया मयंकमुही । सो च्चिय विही इमीए वरमुचियं काउमुज्जमिही ।।६३।। जुण्हा तुसार-किरणे रयणायरम्मि
मंदाइणी जलहरम्मि वि विज्जुलेहा । जम्हा परस्स किमु कस्सइ पत्थणाए,
संजोइया भयवया चउराणणेण ? ||६४|| अवि य- संखउर-सामिणो विजयसे णस्स अहरिय-रइरमणरम्मत्तण- गुणुक्करिसो रूव-पगरिसो सुणीयइ, ता सत्थवाहो ‘अवितहमेयं न व ?' 'त्ति पुच्छीयउ' | तओ 'साहु मंती संलवइ'त्ति जंपिऊण भणियं रन्ना'सत्थवाह ! संखउर-सामिणो के रिसी रूव-संपय?'त्ति । सत्थवाहेण भणियं- देव ! नूणं अणन्नसम-रूव-पसंसम्मेि ,
अन्नं मुहं महइ जस्स चउम्मुहो वि । एक्वेग तस्स किमहं मुह-पंकएण,
कित्तेमि कित्तिनिहिणो नणु रुव-सोहं || ६५|| तहावि एत्तियं भणामितेलोक्के वि तमत्थि वत्थु न परं जं तस्स सव्वप्पणा,
पाविज्जा खिल-लोय-लोयण-सुहासाररस तुल्लत्तणं । जे पंकेरुह-कुंद-चंद-पमुहा ते तस्स तेयस्सिणो,
एक्वेक्वरस वि अंगयस्स पुरओ दीसंति दासा इव ||६६।। एसा वि समत्त-रमणि-मत्थय-माणिक्क भूया धूया, ता देव ! एवं तक्के मिजइ सयल-तिलोए" लोयणच्छेरभूयं,
कहवि मिहुणमेयं नो विही संघडेजा । अइसय-रमणिज्जं रूवमेयम्मि काउं,
नणु विहलपयत्तो नूण सव्वो य होही ।।६७।।
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सुमइनाह-चरियं
लच्छीए जह केसवो तिनयणो सेलंगयाए जहा, पोलोमीऍ जहा सहस्सनयणो कामो रईए जहा । - अब्भत्थणिज्जं तहा,
मुत्तुं संखउराहिवं सुरवहू-अ को अन्नो उचिओ इमीइ रमणी - चूडामणीए वरो ?' ||६८|| तओ रन्ना पहड-मुहपंकएण भणियं - 'सत्थवाह ! ववगय-चिंताभारं च कयं तुमए मह मणं, ता गिन्हसु तुमं इमं तुहिदाणं' ति भणिऊण" समप्पियं नियंग - लग्गमाभरणं, मुक्कं सुक्कं, समप्पिओ पवरावासी । रन्ना विसज्जिओ हं गओ नियावासं । एवं पइदिणं रायसमीवं वच्चंतस्स गरुय - सम्माणेण रन्ना संभासिज्जमाणस्स मे वोलंति दियहा ।
अन्न- दियहम्मि हक्कारिऊण सिणेहसारं भणिओ हं रन्ना-'सत्थवाह ! तुमाहिंतो विजयसेण नरनाहस्स "निरुवम- रूवलावन्नाइ - गुण- पगरिसमायन्निऊण संजाय - गाढाणुराया रायकन्ना संपन्ना, ता सिग्द्यमेव तत्थ पसत्थ- दियहे पेसिस्सामि, तुमए य तत्थ - गएण तह कह वि पयंपियव्वो विजयसेण-राओ जहा पडिवज्जइ एयाए पाणिग्गहणं, पिच्छए सिणिद्धलोयणेहिं न कयाइं कुणइ पणय-भंगं, न दंसए सुविणे वि माणखंडणं । किं बहुणा ? एसा अम्ह जीवियाओ वि सारभूया, सुविणे वि अलंघणीय-वयणा, मणसा वि अखंडिय पणया तहा दडव्वा जहा न सुमरइ अम्हाणं, न खिज्जए ४ सहियण - कए । जओ
,
परिहरिय- जम्मभूमीण माइ-पिउ-पमुह-बंधु - रहियाण । मुत्तूण पइं परघर गयाण कन्नाण को सरणं ? || ६ || जस्स कए सयण-गणं मोत्तूण तिणं व जंति परएसं । जइ सो वि पिओ विमुहो महिलाण हयं तओ जीयं ॥७०॥
9
मए भणियं - 'महाराय ! अलमित्थ चित्त-संतावेणं । एसा खु रायकन्ना अणन्न-सामनेणं निय-गुण-कलावेणं चेव महग्घत्तणमुवगया न कस्सइ सोयणिज्जा । न खलु कस्स वि पत्थणाए अग्घंति महग्घरयणाइं ।' तओ रन्ना सम्माणिऊण विसज्जिओ हं ।" कया मए समग्गसामग्गी, पउणीकयाइं विविह- कयाणगाई । तओ संवच्छ रियविणिच्छिय-पसत्थ- दियहे " महया हरि करि करह-रह - जोह संवाहेण कोस- कोट्ठागार - सामग्गीए य परिगया अंतेउर-पुरंधि-परिवुडेण
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तारावीड-राएण अणुगम्ममाणा पत्थिया रायधूया वि । तओ कित्तियं पि भूमिभागमागंतूण रन्ना अणुसासिया सुदंसणा जहा
जंपिज्ज पियं, विणयं करेज्ज, वज्जिज्ज पुत्ति । परनिंदं । खंडिज्ज मा कयावि हु सव्वस्स वि उचिय-पडिवत्तिं ।।७१।। रिद्धिं पत्ता वि हु मा वहेज्ज सुविणे वि माणसं पि । तह निक्कलंक-सीलं पाण-पणासे वि पालेज्जा ।।७२|| जलणो वि जलं, जलही वि गोपयं, पन्नगो वि रज्जुसमो ।
जायइ विसं पि अमयं सील-समिद्धाण भुवणम्मि ||७३|| एवमणुसासिऊण धूयं सोय-संगलंत-बाहजल-पज्जाउल-लोयणेण अंतेउरेण समं नियत्तो राया । तओ "पडिहत्थिऊण जणय-सिक्खं, पणमिऊण जणणि-जणयाण पाय-पंकयाइं पयहा आगंतुं रायधूया । अहं पि तयणुमग्ग-लग्गो समागच्छामि ।
एवं च क इवय-पयाणगे हिं पत्ताई महंतमणे ग-सावयगणाइन्नमरन्नमेगं । तत्थ पवणुव्वेल्लिर"-महल्ल-कल्लोल-मालुम्मालियस्स पप्फुल्ल-कमल-परिमल-मिलंतालि-जाल-मुहलस्स सरोवरस्स आसन्न-पएसे दिल्लो आवासो । निसाए समुच्छलिओ अक्वंद-सद्दगब्भि ओ. हाहारव-रउद्दो रायसुयाए आवासम्मि कोलाहलो । 'हा ! किमेयं ?' ति आउलीहूओ सयल-लोओ, पहाविया पहरण- हत्था सुहडसत्था, मिलिया मंति-सामंताइणो । अहं पि सन्नद्ध-पउर-पाइक्क-चक्कपरिवुडो गओ तत्थ । पुट्ठो मए रायलोओ - 'किमेयं ?' ति । कहियं तेण जहा- एत्थ सहीहिं सह विविह-कहाओ कुणंती ‘हा ताय ! माय ! एसा असरणा अहं निज्जामि' त्ति पलावपरा केणइ अदिहेण अवहडा रायधूया ।'
एत्थंतरे विजयसेण-राओ फुरंत-कोववस-विसप्पमाण-भिउडिभीम-भालवहो 'अरे ! को एस दुरप्पा ? कस्स वा सुमरियं कयंतेण ? जो मह पिययमं अवहरइ ?' ति भणंतो कयंत-जीहा-कराल - करवालमायडिऊण उहि ओ सीहासणाओ । सत्थवाहेण चलणेसु लग्गिऊण भणिओ- 'देव ! वित्त-वृत्तंत-कहणमेयं, तो पसायं काऊण देवो आसणमलंकरेउ ।' तओ उवविसिऊण सविलक्खं जंपियं रन्ना'सत्थवाह ! एवमेयं, परं पेम्म-परवस-माणसत्तणेण मए सक्खं पिव लक्खियं ।' सत्थवाहेण वुत्तं- 'तओ रायधूया-गवेसणत्थं पयट्टा समंतओ
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सुमइनाह-चरियं सामंताइणो. परं पभूयकाले णावि पउत्तिमेत्तं पि नोवलद्धं । तओ विसन्नचित्ता नियत्ता सव्वे वि ते । अहं पि समागओ एत्थ । ता महाराय ! एयं मे चिर-दंसण-कारणं ।' तओ राया गरुयाणुराय-रायधूयाए तहाविहमवत्थं निसामिऊण महंतं चित्त-संतावमुव्वहंतो भणिउं पवत्तो'सत्थवाह ! दिव्ववसा विसमा कज्जगई । जओ
अन्नह परिचिंतिज्जइ कज्ज हरिसिय-मणेण मणुएण । परिणमइ अन्नह च्चिय दुव्वारो दिव्व-वावारो ||७४|| अहवा न जेहिं सुकयं समज्जियं होज्ज पुव्व-जम्मम्मि ।
नूणं न तेसिं होज्जा मणवंछिय-वत्थु-संपत्ती ।।७।। एत्थंतरे अल्लत्थ केणइ पढियं
हीरंतीओ नीउन्नएहिं जइ वि हु वलंति सय-वारं |
सायर ! तह वि हु ठाणं महानईणं तुमं चेव ।।७६|| तओ मइसायर-मंतिणा भणियं- 'देव ! सोहणं निमित्तमेयं एसा रायधूया देवस्स चेव घरिणी होहि त्ति सूएई ।' सत्थवाहेण भणियं-'देव ! अहं पि निय-मइ-माहप्पेण एवं संभावेमि
एसा नरिंद-ध्या निरुवम-रूवाइ-गुण-गण-महग्घा । अन्नस्स घरिणि-सई न पाविही वज्जिउं देवं ।।७७|| पंचाणणं विमुत्तुं सिंहिणिमक्कमिउमेत्थ को सक्को ? । किं च विणा कमलवणं रमइ मणं रायहंसीए ? ||७८|| जीए पउत्ति-मेत्तं पि नोवलब्भइ नरिंद-धूयाए ।
तीए सह संगमो दुल्लहो त्ति एयं न वत्तव्वं ||७|| जओ
जं दुल्लहं ति काउं मणोरहाणं पि न विसयमुवेइ । तं माणुसरस सव्वं संपाडइ ४२दिव्वमणुकूलं ।।८।। तेसिं नीरनिही वि गोपयमसिच्छेओ वि दिव्वोसही । पायालं पि बिलं विसं पि अमयं, सेलो वि भूमियलं । दूरत्थं पि हु पाणिपंकय-गयं, सत्तू वि मित्तं परं, दुस्सज्झं पि सुसज्मे व, दइवं जेसिं सपक्खं भवे ||८१।।
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
दीहं नीससिऊण भणियं रन्ना- 'सत्थवाह ! तहा वि सा वराई रायकन्ना केणइ खयरेण देवेण वा अवहडा कं पि विसम-दसं अणुहवइ त्ति महंतो मे चित्त-संतावो ।' सत्थवाहेण भणियं- 'देव ! अलमेत्थ चित्तसंतावेण । एसा खु रायधूया निय- पुन्न - पभाव - पडिहयाऽनिहप्पसरा विसमं पि वसणं लंघिस्सइ त्ति ममाभिप्पाओ ।' मइसायर - मंतिणा भणियं - 'देव ! सोहणं संलवइ सत्थवाहो ।' तओ रन्ना वत्थाऽऽभरणप्पयाणेण सम्माणिओ सो ।
एत्थंतरे पढियं काल-1 -निवेयगेण
सूरस्स तेय-लच्छी देव्ववसा विहडिया वि संघडइ । मा कुह खेयमेवं कहइ रवी भुवण - मज्झत्थी ॥८२॥ काउं देवच्चण-निच्च - किच्चमज्जेह पुन्न - पब्भारं । पुनेहिं हुंति मण-वंछियाइं अच्चब्भुयाई पि ॥८३॥
तओ उडिओ राया सिंहासणाओ । कय-तक्कालोचिय- कायव्वो तं चेव" चंद- सुंदर - मुहिं रायधूयं विचिंतयंतो भवणे वणे वा आसणे सयणे वा दिणे रयणीए वा निव्वुइं न पावेइ । एगया राईसर- सेणाहिव - पमुहपहाण - जण - परिगओ निग्गओ रायवाडीए । उवणीओ तक्खणं चेव मंदुरावालेण सव्व - लक्खणालंकिओ रवि रहाउ व्व वसुहमोइन्नो तुरंगमी । तं सो कोऊहलेण आरुहिऊण वाहिउं पवत्तो । तुरगो वि केणइ कारणेण ४४ वाहिज्जमाणो तं वेगाइरेगमुवगओ, जेण चक्क चडियं पिव भमंतं भावियं भूवलयं भूवइणा, कय-चलण- चंकमणा सम्मुहमागच्छंत व्व लक्खिया** भूरुहा, दोलायमाण- सिहर व्व मुणिया गिरिणो । तओ थेव कालेणावि लंघिऊण दीहमद्धाणं पत्तो अन्नं राया । रन्ना वि निव्विन्त्रेण विमुक्का हत्थाउ वग्गा । ठिओ तेहिं चेव पएहिं तुरंगमो । मुत्तूण तं निसन्नो asविडविच्छायाए राया । तुरगो वि अकज्जकारि ति व्व मुक्को तक्खणं" पाणेहिं । तओ राया चिंतिउं पवत्तो
સર
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-
विहि- परिणामस्स नमो जस्स पसाएण रिद्धि-वित्थारो । संघडइ असंतो वि हु, संतो वि हु विहडइ खणेण ||८४|| जं न विसओ मणस्स वि, सुविणस्स वि जं न गोयरमुवेइ | सुहमसुहं वा पुरिसस्स दावए तं विही सव्वं ॥ ८५ ॥ |
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सुमइनाह-चरियं
विसमं पि वसण-रनं सुहेण लंघंति हुति जे धीरा ।
कीबा उ विसय-पिसाय-परवसा लंघिउं न खमा ||८||
तओ वीसमिऊण महत्तमेत्तं संसार-सरूवं व आवया-सय-समाउलं, रयणी-मुहं व दीसंत-बहु-दीवियं, सरय-समयं व समंतओ भमंत-मत्तकरि-सयं महारनं पलोयं तो पत्तो राया महंतं सरोवरं; जं च रायाणमागच्छंतं पेच्छमाणं व पफुल्ल-कमल-लोयणेहिं, आलिंगणमणं व दूर-पसरिय-तरंग-बाहाहिं, कयग्घदाणं पिव मरगय-“थालीयमाणपउमिणी-पत्त-परिहिय-सलिल-मुत्ताहलुप्पीलेण, कयमंगल-गीयं व गंधलुद-मुद्ध-"फुल्लंधय-धोरणी-रणिएहिं, कुसलमाभासंतं व सारस-- चगोर-चक्कवाय-कलहंस-कुल-कूजिएहिं । तओ तम्मि "जल-कीलासोक्खमणुभविऊण सरस-कंदफल-जणिय-पाणवित्ती चिंतिउं पवत्तो जहा- संपयं मान-समओ वदृइ, तहा हि -
कस्स न दहति देहं दूहव-महिला-कर व्व संलग्गा । संपइ किरणा नीसेस-भुवण-दुईसणा रविणो ? ||८७ ।। मज्जंति "कास-रसयाई सरोवरेसु,
किच्छेण ठंति विहगा निय-नीड-लीणा । रोमंथ-मंथर-मुहाई महीरुहाण,
"छायं कुरंगय-कुलाइं "निसेवयंति ||८८|| 'ता निरंतर-तरुण-दल-नियर-निरुद्ध-दिणयर-करप्पवेसं पविसिऊण तमाल-तरु-"निउंजमियमइवाहेमि मज्झण्ह-समयं' ति चितिंऊण जाव तत्थ पविसइ ताव 'परोवयारेक-रसिय ! सयलजियलोय-वच्छल ! परदुक्ख-विमोक्खणक्खम ! महापुरिस ! रक्ख रक्ख ममं' ति करुण-सई सुणेइ । तओ निक्विवेण केणावि का वि वराई पीडिज्जइ त्ति चिंतयंतो करुणारसाउन्न-हियओ सिग्घयरं तरु-निउंजम्मि पविहो । कं के ल्लि-पल्लवारुण-कर-चलणाए क यलि - क्खं भविब्भमोरुजुयलाए सुरसरि-पुलिण-विसाल -नियंब-भर-मंथरंगीए तिवलि-रेहंत-मुहिगेज्झ-मज्झभागाए थोर-थणव-घोलंत-महंतमुत्ताहलहाराए कमलदल-दीह-नयणाए संपुन्न-मयंक-समाण-वयणाए रयण - कुंड लुल्लिहिय- गंड ले हाए रमणीए कयब्भुहाणो तीए चेव नवपल्लव-विरइयासणम्मि 'उवविससु' त्ति भणिए निसन्नो नरिंदो ।
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१४
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं भणियं रब्ला- ‘भद्दे! कुओ भयं ?' तीए भणियं- ‘सयल-सुराऽसुरिंदसिर-समुव्वूढ-सासणाओ कुसुम-सरासणाओ । जत्तो आरब्भ तुम नयण-गोयरं गओ तयणंतरं चेव पंचबाणो वि सहस्सबाणो विव मयणो मं पीडेइ, ता तुमं चेव मे सरणं ।' ति भणिऊण साणुरायाए दिहीए पलोइउं पवत्ता ।
रना चिंतियं - 'अहो ! केरिसं सं क ड मावडियं ? ज ओ निम्माणसाडवीए एसा का वि जुवई दिव्वजोणि-संभवा संभावीयइ, पत्थणा-भंग-जणिय-कोवा य किं पि विप्पियमुप्पाइउं खमा, पत्थणाए य कीरमाणीए' सप्पुरिस-सम्मग्ग-चागो । जओ -
जे परदार-परम्मुहा, ते वुच्चहि नरसीह । जे परिरंभहि पर-रमणि, ताहं फुसिज्जइ लीह ।।८।। निव्वडिय-सुहड-भावाण ताण को वहउ एत्थ समसीसिं ? |
पर-रमणि-संकडे निवडिया वि न मुयंति जे मेरं ? ||30|| 'ता सव्वहाऽणु चियमेयं महापुरिसाण पर-रमणि-सेवणं' ति चिंतिऊण भणियं- 'भद्दे ! "परित्थिया तुम, ता कहं तए सह विसयासेवणमहिलसामि ?। तीए वुत्तं- 'वियक्खण ! पुरिसस्स परा चेव इत्थिया होइ' । रख्ला भणियं- 'तहावि तुमं न मे परिग्गहे वट्टसि ।' तीए वुत्तं
एस निजो एस परो त्ति तुच्छचित्ता नरा विचिंतंति । विउलासयाण सयलो जियलोओ चेव स-कुटुंबं ||११|| ता कहं न परिग्गहे हं ? ।' रन्ना भणियं- तहा वि तए सह विसयासेवणं उभयलोग-दुहावहं ।
तीए भणियं- मयण-सर-सल्लियंगीए गाढाणुराय-रसिय-हिययाए य मए सह विसयासेवणं स-परोवयार-संभवाउ कहं उभयलोग-दुहावहं ? |
तओ 'किं तए सह वयण-कलहेण ? सव्वहा पररमणि-संगम न समायरामि' त्ति भणंतो निग्गओ तमालतरु-निगुंजाउ राया । कीलंतो कलहंस-चक्ववाय-चक्क चंकमण-रमणिज्ज-परिसरेसु सरेसु, वीसमंतो चारु-चूय-चं पयाऽसोय-सरल-कयलि-सोहा-सहावणेसू वणेसु मज्जमाणो रनलच्छि-वच्छयल-हारसरियासु सरियासु, पलोयंतो सुरयकेलि-कीलंत-किन्नरमिहुण-सुंदराउ गिरिकंदराउ जाव रनभूमी-सच्छंद
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सुमइनाह-चरियं पयार-सुहमणुभवइ ताव निरालंब-गयण-गमण-सु ढिय-देहो व्व दियहनाहो वीसामत्थमत्थगिरि-सिहर-काणणमल्लीणो ।
काउमसक्को भीमाडवीए निवडिय-निवस्स पडियारं । लज्जावसेण मित्तो मित्तो व्व अदंसणं पत्तो ||१२|| ५७संझारायभरेणं पल्लवियं, कुसुमियं उडुगणेण ।
तिमिरेहि भमर-रुद्धं वणं व गयणं पि रमणिज्जं ||१३|| खणेण य -
रिक्खहिमाल-भारी विलुलिय-तम-केसओ नह-कवाले ।
संझब्भ-राय-रुहिरं पियइ पओसो पिसाओ व्व ||१४|| तओ “शया चिंतिउं पवत्तो-रज्जं खु महंतं परवसत्तणं, जओ
स-समय-नियमिय-भोयण-सयणाऽऽसण-रमणि-संग-ववहारो । दढ-रज्ज-रज्जु-बद्धो सच्छंद-सुहं जियइ न निवो ||१५||
परिवार-रुद्ध-सच्छंद-विहरणे पर-जणाणुवित्तिपरे । अवियाणिय-परमत्था रज्जे रज्जंति न हु कुसला ||१६|| अहं च असहाय[भूओ] वीर-चरिया-रसिय-चित्तो ।
अणुकूल-विहि-वसेण य तुरंगमेणेह पक्खित्तो ||१७|| __ अच्छेरय-सय-समाइन्नमरनमेयं, दिव्व-दंसणं पि एत्थ संभावीयइ, पओ स-समओ य वीर-पुरिस-परक्कम-कणय-कसवट्टो, जइ वि चिरमणुचिय-चलण-चंकमण-जणिय-खेओ हं, तहावि केच्चिरं पि कालं सच्छंद-वण-विहरण-सुहमणुहवामि त्ति । तओ वियरिउं 'पवत्तो राया । जाव के त्तियं पि भूमि-भायं वच्चइ ताव दिहा राइणा भूरि-भेरवरवाऊरिय-न हंगणा पुरो परिभमंता भूय गणा, कि लिकि लंता माणुसाऽऽमिसासणुत्ताला वेयाला, पसप्पंत-रोऽदृहास - भरियभुवणब्भंतरा जोटिंग-जक्ख-रक्खसाइ वंतरा | पयंपमाणा य परोप्परं
रे रे ! धावह गिन्हह भिंदह भक्खह य मंस-रुहिराइं ।
भक्खण-निमित्तमम्हाणमेस पविसइ वणे को वि ||१८।। तओ राया तं तारिसं पेच्छिऊण 'अरे ! खुद्द-रयणीयरा एए मं संखोभेउमब्भुज्जया, अहं एए चेव भेसयामि त्ति चिंतंतो पसरंत-कंतिजाल-करालं करवालमायडिऊण तेसिं चेव सम्मुहं सिग्घयरं पहाविओ ।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं ते वि असंखुद्ध - माणसं रायाणमागच्छमाणमालोइऊण 'एसो अप्पडिहयप्पहाव - भयंकरो को वि पुरिसो, एयस्स नव- मेह- लेहा-लसंतविज्जुल्लयालोय - दुरवलोया दिडी, पलय - काल - मायंड - मंडल - पहा - पसर - दूसहा तेय - लच्छी, कुविय - कयंत" - कडक्ख - च्छडाडोव - दुद्दंसणा "निसियासिलडी । ता पलायम्ह पलायम्ह' त्ति पलवमाणा पलाणा ।
राया वि तहेव गंतुं पयट्टो । पुणो वि तालतरु-तुंग-जंघं, जमदंडचंडिमुब्भड - भुयं, जलण-जाला - पलित्त- फाल- फार जीहं, पलयकालदिप्पंतानल - फुलिंग-पिंग-लोयणं, चिबिड - वंक - फोक्क-नासं, तडितंतुभासुर - सिरोयरुद्धमुद्धदेसं हिमकर कला कुडिल-दाढा "करालविरलिय - मुह - कु हरं, उब्भड - भिउडि- भीसण - भालवहं, सुराभंडपलंबोयरं, मसि - महिस-मासरासि - सन्निगासच्छविं अविरल - विगलंतरुहिर - धारा-बीभच्छ-मयगलऽच्छ-विच्छाइअंगं, फार-फुंकार -मुक्क विसकणुक्केर कन्ह- पन्नग पिणद्ध-चमूरुचम्म निवसणं विसमुन्नयपंसु [लि]यंतर- पसुत्त सरड सरीसिवं, कसिण सप्प-कय-कन्नपूरं, वाम - कक्ख - निक्खित्त- मणुय-मडयं, वाम-कर- कलिय- कवाल - द्वियसोणियाssसव - वसा-पाण-लालसं, गल- पलंबमाण - नरमुंडमालं, दाहिणक रुग्गीरिय-गरुय-करवालं, घोरट्टहास - पूरिय- दिसाचक्कवालं, पावपुंजं व मुत्तिमंतं, कयंतं व रूवंतर - परिणयं, 'अरे रे ! हीणसत्त ! पुरिसाहम ! महा - सुहडवाय-गव्विर ! पलायसु पलायसु ममं वा सरणं पवज्जसु, अन्नहा नत्थि ते जीवियं' ति पयंपमाणं पिसायं पासइ | गरुय-सत्तयाए य तं अवहीरिय राया जाव तहेव परिसक्कइ तो पुणो वि भणिउं पयट्टो- अरे दुन्नय-निहाण ! निहीण- पुरिस-पोरुसाभिमाणविनडिय ! न गणेसि मह वयणं ?'
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तओ ईसि हसिऊग कुंददल - धवल - दंतपंति - पसरत-किरणुक्केर - विद्धंसियंधयारेण राइणा" भणियं- 'अहो निसायर ! सत्तगुण- रयणसायर ! तुममेव पुरिसुत्तमो जो जीवियमविक्खमाणो माणुसमेत्तस्स वि न मे समीवमल्लियसि, दूर-देस-डिओ चेव वग्गसि, अहं च आजम्मं न सिक्खिओ कुओ वि पलाइउं, न याणामि कस्सइ सरणं वा पवज्जिउं, ता कहं पलायामि ? कहं वा तुमं सरणं पवज्जामि ? ।'
पिसाओ वि 'अरे दुस्सिक्खिय ! कुविय कयंत कडक्खिय ! ममं
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सुमनाह-चरियं
૧૭
उवहससि ? ता दंसेमि ते दुन्नयस्स फलं, तालफलं व तड त्ति तोडेमि ते सीसं ' ति भणिऊण समुग्गीरिय-खग्गवग्ग - हत्थो पत्थिओ पत्थिवाभिमुहं महावेगेण ।
तओ नरिंदरस पवर" - पुन्न- पब्भारस्स प्पभावेण पडिहय- माहप्पो समीव-देसं " अक्कमिउं असक्कमाणो 'अहो ! महच्छरियं एसो "अनन्नसामन्न - सत्ती को वि महापुरिसो, न पागय- नरो व्व अम्हारिसेहिं खोभिउं तीरइ' त्ति चिंतंतो लज्जावस-विलक्ख-वयणो उवसंहरिऊण सयल डंबरं, पडिवज्जिऊण जणिय- लोयणानंदं अमंद - रयणालंकार-किरणकरंबियंबरतलं पसंत रूवं भणिउं पयट्टो- 'भद्द ! सप्पुरिस ! पराभूयसयल - सत्तं तुह सत्तं विजिय-जियलोय - दप्पं माहप्पं, अविमुक्तनयक्कमी विक्कमी, जयस्स वि अजेयं तेयं, सयल - तेलोक्क-तिलयभूओ तुमं, जस्सेवंविहा परमहिल- परम्मुहा मई, सव्वहा सच्चरिएण पवित्तिया तुम धरणी, अहं पि किं पि संपइ पवित्तो जाओ जेण तुमं दिडो सि' । अह विम्हिएण भणियं रन्ना 'भो महायस ! को तुमं ? न पच्चभिजाणामि भवंतं, साहेसु ।'
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--
पिसाएण भणियं- 'अहं पिंगलक्खो महिड्डिय-वंतरी, इहेव रख्ने कला | संपयं पिययमाए मह पुरओ रुयंतीए वागरियं जहा - 'हं तमालतरु-निगुंजे वट्टमाणा माणवेण इमिणा पत्थिया" अणेगप्पयारं, न य पडिवन्नं मए तव्वयणं, तओ तेण रुद्वेण इत्थमित्थं च कंठे घेत्तूण निच्छूढा, असब्भ-वयणेहिं खरंटिया, एवं ठिए य जइ " तुमं इमं न निगिण्हसि ता नाह! नाहं तुह भज्जा, न तुमं मह पई ।' इमं च सुच्चा तक्काल-कलिय- कोवावेस - परवसणेण अविभाविय - कज्जमज्झो पुव्वं निय - परिवारं पेसिऊण तुमं विद्दविउं पयट्टो हं । परिवारो वि मज्झ तुब्भ तेयमसहमाणो तक्खणा जिप्पुन्नय- पुरिस ववसाओ व्व अकय- कज्जो नियत्तो । पच्छा सयमेव समुडिओ हं । परं तुह अच्चब्भुय- पभावपहियप्पयावी समासन्न -देसं पि अक्कमिउं असक्को म्हि किं पुण पहरिउं ?। तओ मए 'सच्च-सोय-रहियाणं पर- महिलाहिलास - लालसमाणसाणं माणुसणं माहप्पमेरिसं न संभवइ, ता किं जं पिययमाए जंपियं तं सच्चं न व ?' त्ति चिंतंतेण विभंगबलेण नायं जहडियं तुह सरूवं, निच्छियं पिययमा-पलत्तस्स अलियत्तणं, तुट्ठो य ते जणिय- सप्पुरिस
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
पहरिसुक्करिसेण दुद्धरिस - धीरत-सत्तसारेण इमिणा सच्चरिएण । ता सप्पुरिस ! पत्थेसु किं पि जेण संपाडेमि समीहियमत्थं ।"
૧૮
रन्ना भणियं- 'किमन्नं पत्थेमि ? संपाडियमेव सव्वं मणोरह-सएहिं पि दुल्लहं दिव्व - दंसणं दिंतेण तुमए ।'
तओ 'सप्पुरिस-चूडामणी उदारचित्तो एस न किं पि पत्थेइ, ता सयमेव किं पि संपाडेमि त्ति चिंतिऊण भणियं पिसाएण- 'भद्द ! अमोहं दिव्व - दंसणं," ता गेन्हसु आरोग्गोदग- समुद्द-संभूयमेयं महाहारं, एसो य जस्स कंठ - कंदलमलंकरेइ न तस्स विसमा वि सत्थप्पहारा सरीर संक मंति, इमरस य ओहलण-सलिलेण सित्त - गत्तस्स तक्खणा पुव्वलग्गा वि रुज्झंति' त्ति पयंपमाणो गयणत्थी चेव नरनाहकंठदे सम्मि पक्खिविऊणं तं महाहारं पत्तो अदंसणं पिसाओ ।
I
तओ रन्ना चिंतियं चिर-चरण- संचरण-रीण- देहस्स में निद्दाए मिलंति व्व लोयणाइं, "ता कहिंचि वीसमिऊण रयणिं गमेमि त्ति । तओ जाव केत्तियं पि भूमिभागं वच्चइ ताव दिडं नयरमेक्कमुव्वसं । पविडो तत्थ राया । कोउगक्खित्त-माणसो तं पलोयंतो पत्तो तम्मज्झ-संठियं तुंग-मणहरं रायभवणं । आरूढो तम्मि दंतवलभियं । दिट्ठो तत्थ पहाणपल्लंकी | नुवन्नी तत्थ राया । समागया निद्दा | अद्ध-रयणीए य किंचि निधाविगमुम्मीलिय- लोयणेण दिट्ठो भेसणडमुवडिओ नाइ - दूरडिओ विगराल - रूवो रखखसो । तओ अवन्नाए भणिओ रन्ना - 'पाए पमद्दसु' त्ति । पयट्टो तहेव काउं सो । पुणो पसुत्तो राया । पभायप्पायाए रयणीए पबुद्धेण रन्ना दिट्ठो पाए पलोहंतो रक्खसो, भणिओ य- भद्द! चिरकालं किलेस कारिओ सि कहसु को तुमं ? किं वा नथरमेयमुव्वसं ?
तेण भणियं - महाराय ! एय-नयर-सामी लोहियक्खो नाम जक्खो अहं । एगया गय-राग-दोसो दसविह- समणधम्म-धुरा-धरण-कयतोसी चरित्तरयणकोसो दुक्कर - किरियाकलाव - किलामिअ-काओ काउसग्गेण ठिओ इमस्स नयरस्स परिसरे महा-तवरसी ।
पविसंतनीहरंतो नयरजणो तं मुणिं महासत्तं ।
हणइ अहम्मत्तणओ कस लट्ठी-"लेहु-घाएहिं |१९||
-
धूलिं खिवइ सिरम्मि तहवि मुणी मुणिय-सयल - परमत्थो । सम्ममहियासयंती चित्तम्मि विचिंतए एयं ।। १०० ।।
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सुमहनाह-चरियं
रे जीव ! तए नए अनंतसो जाउ तिव्व-वियणाओ । पत्ताओ पुव्वजम्मेसु ताउ को वन्निउं तरइ ? ||१०|| तिरियत्तणम्मि तुमए अणेग-जाईसु जायपुव्वेण । दुक्खं तितिक्खियं जं को तरस करेज्ज परिमाणं ? ||१२|| "" तदवेक्खाए तं दुक्खं थोवमिणं ता गिरिंद-थिर - चित्तो | सम-सत्तु - मित्त-भावी होऊण तुमं सहसु सम्मं || १०३ || एवं विसुद्ध - भावो स महप्पा मासखमण - पारणए । भिक्खट्ठा पविसंतो सणियं सणियं नयर - मज्झे ||१०४||
पारद्धि-पत्थिएणं दिट्ठो दुस्सासणेण नरवइणा । अवसउणी त्ति किलिद्वाभिसंधिणा हियय - देसम्मि ||१५|| भुयदंड - कुंडलीकय- कोयंड- विमुक्त चंड- कंडेण । तह कह वि ताडिओ जह पंचत्तं सो मुणी पत्तो ||१०६ || एवमसमंजसं पेच्छिऊण रुद्वेण सो मए निवई । ७५ हणिउं तलप्पहारेण भासरासीकओ सहसा ||१०७ || साहूवसग्गकारि त्ति नयर - लोओ मए अभिद्दविरं । पारदी भीयमणो दिसोदिसं तो पलाणो सो || १०८ || एएण कारणेणं संजायं उव्वसं नयरमेयं ।
संपइ नर्रिद ! तुज्झ" वि उवसग्गं काउमाढत्तो ||१0१।। किंतु तुह पउर- पुन्नप्पभाव- पडिहय-पयाव - माहप्पो । माणसा वि विप्पियमहं नरिंद ! काउं न सक्केमि ||११|| तुट्ठो तुह सत्तेणं संपइ ता भद्द! किंपि पत्थेसु । तुह वंछियत्थ-करणा होमि कयत्थो अहं जेण ||१११||
तो नरवरेण वुत्तं जइ एवं ता तुमं तहा कुसु । जह निवसति पयाओ नयरम्मि इमेण (? इमम्मि ) खेमेण ||११२ ||
एवं काहं ति पयंपिऊण जक्खो अदंसणं पत्तो ।
तत्तो तं भूअपुरं तप्पभिरं वसिउमादत्तं ||११३||
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अह समुग्गए समग्ग- तिमिरभर-हरण-पच्चले चंडंसुमंडले निग्गओ नयराओ राया । वच्चंती य पत्तो कयलि-कयंब- जंबु - जंबीरंब - निकुरंब
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं निरंतरं वणंतरं । तम्मा देस-ओसंठिय-सर-तीरम्मि दिहो राइणा गाढप्पहार-नीहरंत-रुहिरधारा-सित्त-सव्व-गत्तो भू-विलुलियके सपासो मुच्छावस-नह-चेयणो ८ निमीलिय-लोयणो धरणिवठ्ठनिवडिओ एगो तरुण-पुरिसो । तओ गंतूण समीवं सम्मं निरूविओ जाव 'जीवइ' त्ति | तओ करुणारसाइन्न-हियएण 'हा ! कहं महासत्तो को वि एस जुवाण-पूरिसो एरिसं विसम-दसं गओ ?' ति चिंतं ते ण अणप्पमाहप्पं रयणावलिमोहलिऊण सलिलेण सित्तो सव्वंगं जाव उम्मिलिय-लोयणो उवसंत-वेयणो समागय-चेयणो सत्थीहुय-हियओ समुहिऊण महीवहाओ भणिउं पवत्तो-साहु महापुरिस ! साहु, सोहणो ववसाओ७१, अपुन्वो करुणारसो, अच्चब्भूयं चरियं, अकित्तिमा मेत्ती. विसुद्धा परोवयार-बुद्धी, किं च
विहिणा विणिम्मिओ खलु सव्वंग-परोवयार-करणत्थं । तुम्हारिसाण जम्मो जयम्मि चंदण-दुमाणं व ||११४|| जइ न हु निहणिज्ज रवी तिमिर-समूहं स-कज्ज-निरवेक्खो । ता कह वढेज्ज जयं तम-नियर-निरुद्ध-दिहिपहं ? ||११५।। अणवेक्खिय-निय-कज्जा वरिसंति घणा जहा महियलम्मि । तह उवयरंति नूणं परेसिं निक्कारणं सुयणा ||११६||
ता सप्पुरिस ! निक्कारण-बंधुणो तुज्झ पुरओ न याणामि किं पि जंपिउं, सव्वहा तुहायत्तं मे जीवियं ।
तओ राया सलज्जं खणमेक्कमहोमहो ठाऊण भणिउं पयत्तो- भद्द ! जइ न रहस्सं ता कहेहि को तुमं ? केण वा निमित्तेण एयमवत्थंतरमुवगओ४ ? ति । ।
तेण भणियं- 'सप्पुरिस ! कुल-कलंकभूयं उभय-लोय-गरहणिज्जं अणाइक्खणीयमेव मह चरियं, तहावि तुह जीवियदायगत्तणेणालंघणीयवयणस्स पुरओ निवेएमि, किंतु इओ वणनिउंजाओ पुरओ पवर-पासाओ चिट्ठइ, ता तत्थ गच्छम्ह ।'
गया तत्थ । समारुहिऊण पासायं निसन्ना सुहासणेसु । कहिउं पवत्तो जुवाणो । तं जहा
अत्थि गयणग्ग-लग्ग-"सिंग-सिंगार-गारविओ निरंतर-हारत
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सुमइनाह-चरियं
. निज्झरण-पसरंत-सीयरासार-सीय-सुरहि-पवण-पीणिज्ज माणसुरयविखन्न-किन्नरमिहुण-सणाह-काणणोवेओ वेयहो" नाम पव्वओ ।
दिवसम्मि पज्जलंतीहिं सूरिओवलसिलाहिं किर जत्थ ।
रतिं महोसहीहिं दीसइ दीवूसवो निच्चं ||११७।। तम्मि पइ-भवण-मज्झ - डज्झन्त-कालागरु-धूव-धूमंधयारेणाकाले वि कालब्भ-विब्भममुब्भावयंतं, नाणा-रयण-विणिम्मियपासाय-पंतिप्पहा-पूरेण सक्वचाव-चक्कवाल-संकुलं नहयलमुवदंसयंतं, गयण-मग्ग-वग्गंत-विज्जाहर-रमणि-माणिक्काभरण-संभारेण विज्जुपुंज-संभवं संभारयंतं रहनेउरचक्कवालं८ नाम नयरं । तत्थ पणमंतविज्जाहर-नरिंद-मउलिमालोवलीढ"-पायवीढो, दस-दिसावहू-विहूसणसमुज्जल-जसकुसुम-समूह-महारामो, पररामा-रमण-परम्मुहो महासत्तपत्तलीहो महिं दसीहो नाम विज्जाहर-चक्ववट्टी ।
बंधुं पि बंधणं पिव जो नाय-परम्मुहं परिच्चयइ ।
नय-तप्परं परं वि हु बहुमन्नइ निद्ध-बंधुं व ||११८|| तस्स मयरद्धय-महाराय-रायहाणी, अहरिय-रइ-रूव-सोहसोहग्ग-गुण-रयण-खाणी, कमल-कोमलारत्त-पाणी, महुमास-मत्तकोइलाराव-रमणिज्ज-वाणी, विणयप्पवित्ति-पणरमणि-रंगसाला रयणमाला' नाम देवी । तीए य राइणा सह विसयसुहमणुहवंतीए रयणचूड-मणिचूडाभिहाणा समुप्पन्ना दुवे पुत्ता | समए य कयकलागहणा साहिय-बहु-विज्जा, पत्ता कुसुमसर-पसर-लीलावणं जोव्वणं, काराविया विसुद्ध-वंस-समुप्पन्नाणं निरुवम-रूव-लावन्नाणं खयरराय-कन्नाणं करगहणं । तत्थ कुलहरं कलाकलावस्स, संकेयहाणं विसिह-चिहाणं ति मुणिऊण निवेसिओ विज्जाहरिंदेण जुवराय-पए रयणचूडो । मणिचूडो वि कुमारभावम्मि वदृमाणो अविवेय-वसविसप्पमाण-जोव्वण-वियारो नाणा-कीलाहिं कीलंतो कालं गमेइ ।
अन्नया पुव्वनिकाइयाऽसुहकम्मोदएण रयणमाला-देवीए समुप्पल्लो महाजरो, पणहा छुहा, उवहिया "सरीरम्मि दाह-वेयणा, नाऽऽगच्छइ खणं पि निद्दा, विद्दाणं वयण-कमलं । निजुंजिया तच्चिकिच्छाकए रण्णा बहवे" विज्जा । कीरंतेसु वि तेहिं विविहोवयारेसु असंजाय-पडीयारा विमुक्का जीवियव्वेण देवी । तओ अंसुजलाविल-लोयणो मुक्तकंठं 'हा
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं देवि ! कमलदल-दीह-नयणे ! हा चंद-चारु-वयणे ! हा विद्दुममणोहराहरदले ! हा कंकिल्लि-पल्लवारुण-कर-चलणतले ! हा कुंदसुंदर-दसणमाले ! रयणमाले ! कहिं पुणो दहव्वा सि ? तुमए विणा तियणं पि सुन्नं व पडिहाइ' त्ति पलवमाणो "रोविउमाढत्तो खयर-राओ रयणचूड-मणिचूडेहिं समं ।
तहकहवि खयरनाहो अक्वंतो गरुय-सोग-सेलेण । जह सुक्खदुक्ख-निसदिवस-खुहपिवासाउ न मुणेइ ।।११।। परिचत्त-रज्जकज्जो निरुद्ध-नीसेस-कायवावारो । जोगि व्व वट्टमाणो मंतीहिं इमं समुल्लविओ ||१२०।। देव ! न जुत्तं तुम्हाणमेरिसं सोयकरणमविरामं । जेण विसीयइ सव्वं तुम्हाण विचित्तयाए जगं ||१२१।। उप्पत्ति-पलय-कलियं सव्वं खयरिंद ! तिजय-संभूयं ।
जं किं पि चराचरमत्थि वत्थु ता किमिह सोगेणं ? ||१२२|| इच्चाइ-पन्नविओ वि विओग-दुक्खभरक्वंतो कत्तो वि निव्वुइमपावंतो जाव चिहइ तावाऽऽगओ गयणलद्धि-संपल्लो विमलो हिनाणनाय-सव्वभावो भव-दुह-दवग्गि-दाह-पसमणो समणो मणिप्पभो नाम नयरुजाणे, गओ वंदणत्थं तस्स खयरेसरो समं कुमारेहिं । परमपरिओसमुव्वहंतो पणमिऊण मुणिं निसल्नी उचियासणे । भणियं च मुणिणाभो भो ! चिहह किं विसाय-वसगा वामोह-पज्जाउला ?
किं नाविक्खह जीव-लोयमखिलं माइंदजालोवमं ? । जम्हा को वि किमित्थ अस्थि भविही भूओ मुहं मच्चुणो
__पत्तो पावइ पाविही व न हु जो मुत्तूण मुत्तिंगए ? ||१२३।। वाउद्धय-धयग्ग-चंचलमिणं जीयं, कडक्खच्छडा
सारिच्छं पिय-संगम, गिरिनई-कल्लोल-लोलं सिरि । तारुच्नं करि-कन्नताल-तरलं, संझब्भ-रागोवमं
10°लायल्नं मुणिऊण धम्म-विसए मा होह मंदायरा ।।१२४।।
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२३
सुमइनाह-चरियं
पाठांतर : १. विरयं पव० ल. रा || २. थुइवाइं । ल. रा. || ३. वदति पा. || ४. आयवभावेण होइ ल. रा || ५. इय कयबुद्धी काउं ल. रा. ।। ६. कप्पतरु स० दे. पा. ।। ७. आगरु व्व ल.रा ।। ८. गयणंगलग्ग० ल.रा || 9. असोगकलिया पि० दे. पा. ॥
१०. भुवणवणं पल्लवियं व रेहए रंजियं पयावेण ।
___ जस्स जसप्पसरेणं धवलियमेयं कुसुमियं व ||४४|| दे. पा. ॥
११. जस्संतेउरिणीओ सहते रिउसुंदरीओ य । दे. पा. || १२. सुंदरिम० ल. रा. ।। १३. लोयणं हरिसिभर० दे. पा. || १४. किं मह पा.; किमह दे. || १५. ०पयारेण । ल. रा ।। १६. रूववज्जि ओ रा. ।। १७. नइपरो दे. पा. || १८. अकीरमाणो दे. पा ॥ ११. लडं पि दे. पा. || २०. पसत्थदियहे दे. पा. ॥ २१. ०या गयघडा दु० दे. पा. || २२. लज्जिययं ल. रा. ॥ २३. मज्जिययं ल. रा. ॥ २४-२५. ता दे. पा.|| २६.महाराए दे. पा. ।। २७. विज्जमाणम्मि दे. पा. ॥ २८. अलमेत्थ दे. पा. || २१. तिलोये ल. रा. || ३0. मेयं ति काउं दे. ॥ ३१. 0ऊण दिन्नं नि० दे. पा. || ३२. निरुवमला० दे. पा.।। ३३. तत्थ पेसिस्सामि दे. पा. ॥ ३४. खिज्जये ल. || ३५. मुत्तूण तणं दे. पा. || ३६.०हं । काऊण कयाणगाइसामग्गिं संचलिओ संवच्छ० दे. पा. ॥ ३७. ०पसत्थमुत्ते दे. पा. || ३८. पडिहत्थिऊण ल. रा. ॥ ३१. पवणव्वेल्लिर० ल. || ४०. समुत्थलिओ ल. || ४१. भीम-निडालपट्टो ल. रा. ।। ४२. देव्वमणु० दे. पा. ॥ ४३. चेय दे. पा. || ४४. वाहेज्जमाणो तु० ल. || ४५. “या तरुणो, दो० दे. पा. ॥ ४६. तक्खण ल. रा. ॥ ४७. ०एण सयलवित्थारो । दे. पा. || ४८. ०थालायमाण दे. पा. ।। ४१. 0फुल्लंधुयधो० दे. पा. || ५०. जलकीलासुक्ख० दे. पा. || ५१ तामरसयाई ल. रा. ।। ५२. रहाण मूले कु० दे. पा. रा. ।। ५३. निवीसमंति दे. पा. || ५४. निउंजमियमयमइ० दे. पा. || ५५. कीरमाणाए दे. पा.।। ५६. परिच्छिया ल. || ५७. नक्खत्तेहिं कुसुमियं, पल्लवियं बहल-संहाराएण । ल. रा. ।। ५८. राओ दे. रा. ल. || ५१. पयत्तो दे. ल. || ६०. ०कयंतक्खडक्खच्छडा० ल. रा. ।। ६१. निसाया० दे. पा. || ६२. 0लविवलियमुह० दे. ।। ६३. रायणा ल. रा. ।। ६४. याणेमि ल. रा. ।। ६५. पउरपुन्न० दे. पा. ।। ६६. ०देसमक्वमिउमसक्क० दे. पा. ।। ६७. अननसत्ती दे. पा. ।। ६८. पच्छिया दे. पा. ||
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
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६९. जइ इमं न रा. पा. ।। ७0.03 न सक्को ल. रा. ।। ७१. तो ल. रा. ।। ७२. तो दे. पा. ॥ ७३. ०लेहु- पाएहि ।। ल ।। ७४. तव काए तं ल. 'रा. ॥ ७५. हणिओ तलं ल. रा. ॥ ७६. तुब्भ ल. रा. ॥ ७७. ०नीहरेंत ल ।। ७८. चेयणो दे. ०चेअणो रा. ॥ ७९. ०साओ अच्चब्भूयं रा. ॥ ८०. मित्ती ल. रा. ॥ ८१. ०कज्जं वरि० ल. रा. ॥। ८२. सुपुरिस ल. रा. ॥ ८३. पवत्तो पा ॥। ८४. मुवागओ सि । तेण दे. पा. ।। ८५. 0 सिंगसंगओ नि० दे. पा. ॥। ८६. वेयड्डो पव्वओ दे. पा. ॥। ८७. पयभवणम० ल. रा. ॥ ८८. वालं नयरं दे. पा. ॥ ८९. ०मालावलीढ रा. ॥ 90 परं पिहु ल. रा. ॥ ११. ०माला देवी दे. पा. ॥। १२. सह दिव्वसुह० ल. रा. ॥ १३. पत्ता सुमसर० ल. रा. ॥ ९४ ०डिया सरीरम्मि दाह० ल. रा. ॥। १५. बहवो दे. पा. ॥ ९६. पडियारा ल. रा. ।। १७. ०रुण चलणतले ल. रा. II १८. पुणोऽवदडव्वा पा. ॥। ११. रोदिउं ल. रा. ॥। १०० लावन्नं ल. रा. ॥
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बिइओ पत्थावो
एत्थंतरे खयरेसरेण भणियं- 'भयवं ! तुम्ह दंसणमेत्तेणावि पणहो 'सोग-संतावो मे, विहसियं हियएण, तुम्ह मुहकमल-पलोयण-लालसाण लोयणाण सोको वि परिओसो संजाओ जो कहिउं पि न तीरइ. ता किमत्थि तुम्हाणं मम य पुव्वभविओ को वि संबंधो न व ?' ति ।
गुरुणा वागरियं-अस्थि । खयरेसरेण वुत्तं-करेह तक्तहणेणाणुग्गहं । मुणिणा वागरियं-निसामेह ।
भारहे वासे कुसत्थल-संल्लिवेसे विसिह-रूव-लावन्नावगनियमयणो 'मयणो नाम कुलपुत्तओ । तस्स बालत्तणओ वि पढियसिद्धविज्जाओ 'दोन्नि भज्जाओ | पढमा चंडा, अवरा पयंडा | तासिं च कलहं पेच्छिऊणं पयंडा ठविया समीववत्ति-गामंतरे | कओ मयणेण तासिं समीवावत्थाण-दिण-नियमो । एगया केणइ कारणेण पयंडाए समीवे दिणमहिगमेगं ठाऊण गओ चंडा-समी सो । तओ तीए चंडकोवावेस-वस-विसप्पंत-भिउडि-भीम-भालवटाए घरे पविसंतस्सेव तरस पक्खित्तं मुसलमभिमुहं । तं समागच्छंतं पेच्छिऊण सत्तह-पयाई
ओहडिऊण ठिओ मयणो । 'तं भूमिं पत्तं मुसलरूवं मत्तण जाओ भीमभुयंगमो । सो पहाविओ मयणाभिमुहं । पलाणो भीयमणो मयणो पच्छाहुत्तं । अंतरा नइ-पुलिणम्मि भुयंगममासन्नं पेच्छिऊण पक्खित्तमुत्तरिज्जं । विलग्गो तत्थ भुयंगमो खणं । पत्तो पयंडाए घरं मयणो । दिहो अणाए सासाऊरिय-हियओ भयभंत-नयणो, भणिओ य'अज्जउक्ष ! किमेवं आउलो व्व लक्खीयसि ?' सिहो य तेण सकोवचंडा-पक्खित्त-मुसल-वुत्तंतो । तीए हसिऊण वुत्तं- एत्तियमेत्तं चेव ते भय-कारणं ? ता मुंच भयं । विम्हिओ मयणो । ताव फडाडोव-भयंकरो भक्णंगणमागओ भुयंगमो दिहो अणाए । सरीरमुव्वदृमाणीए उव्वदृणवट्टीओ खित्ताओ तयभिमुहं । जायाओ ताओ नउलरूवाओ । 'रुद्धो समंतओ नउलेहिं भुयंगो । तं खणेण खंडाखंडि काऊण गया दिसोदिसं नउला ।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
अह अच्चभुय-चरियं दोण्ह वि दद्दूण विम्हिओ मयणो । सप्प - "भय- चत्त-चित्तो चिंतिउमेवं समादत्तो || १२५ ।।
चंडाए सकोवाए सरणं जाया इमा परांडा मे ।
जइ पुण करेज्न कोवं इमा वि ता होज्ज को सरणं ? || १२६|| पियकारिणो वि मह विप्पिएण केण वि इमा वि कुप्पेज्ज | पियमप्पणी वि तीरइ पए पर केत्तियं काउं ? || १२७ ।। सो नत्थि विप्पियाइं अवगणिउं गणइ जो सुकयमेव । एक्केण दुक्कएणं 'सुकय-सहस्सं फुसइ लोओ || १२८|| ता भुयगीहिं व भयंकराहिं एयाहिं दोहिं वि अलं मे । इय चिंतिऊण चित्ते गेहाओ विणिग्गओ मयणो || १२९|| पत्तो परिब्भमंतो कमेण मणि-निम्मियामर - निवासे । वासवपुर - संकासे संकासे पवर-नयरम्मि ||१३|| तो कुसुम - गंध - लुदालि - जाल- मुहलम्मि परिसरुज्जाणे । कंकेल्लितरुस्स तले विस्साम-निमित्तमुवविट्ठो ॥१३१|| तावाऽऽगंतूण इमं भणिओ सो भाणुदत्त - " गिहवइणा । भो मयण ! सागयं ! भद्द ! एहि नयरम्मि पविसामो || १३२|| कह मुणइ मज्झ नामं इमो ? त्ति अह विम्हयं परिवहंतो । संचलिओ सो तेणं नीओ निय-मंदिरमुदारं ||१३३|| महया संरंभेणं कारविओ ण्हाण-भोयणाईयं । भणिओ य तदवसाणे सप्पणयं भाणुदत्तेणं || १३४ || विज्जुलया - नाणं मह धूया अत्थि कमल-दल- नयणा । सुरसुंदरि - सम-रूवा पाणिग्गहणं कुणसु तीसे ||१३५ || तो विम्हिण मयणेण जंपियं मह अदिट्ठपुव्वरस । कह मुणसि तुमं नामं ? कह वा अमुणियकुलस्स ममं ||१३६||
देसि तुमं निय-धूयं ? महंतमिह कोउगं महं हियए ।
तो भइ भाणुदत्तो इत्थत्थे कारणं सुणसु ॥१३७॥ भद्द ! चउण्हं पुत्ताणमुवरि एसा मणोरह-सएहिं । संजाया मह धूया समग्ग-भुवणच्छरि अभूया || १३८ ||
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રાક
सुमइनाह-चरियं
पत्ता य जोव्वणमिमा पाणेहिं तो वि वल्लहा मज्झ । खणमित्तं पि इमीए विरहं सोढुं न सक्वो हं ।।१३९।। एसा विवाह-जोग्गा वट्टइ संकडमिमं समावडियं । इय चिंताभारेणं गरुएण अहं समक्तो ।।१४०।। ववगय-छुहा-पिवासो सुन्न-मणो चत्त-सयल-वावारो । वहामि मज्ा-रत्ते अलद्ध-निद्दा-सुहो जाव ||१४१|| ताव कुलदेवयाए भणिओ हं भद्द ! मा कुणसु चिंतं । अज्जं नयरुज्जाणे असोगतरुणो तल-निसन्नं ||१४२।। पिच्छिहिसि पुरिस-रयणं विसाल-कुल-संभवं कला-कुसलं । दिवसस्स पहर-समए मयणं नामेण गुणवंतं ||१४३।। पच्चक्खं पिव मयणं तस्स तमं दिज्ज कन्नगं एयं । कुलदेवया मए तो नमिउं भणिया इमं वयणं ||१४४|| धूया-वरप्पयाणेण देवि ! तुमए अहं समुद्भरिओ | चिंता-समुद्दमग्गो तो सा वि अदंसणं पत्ता ||१४५।। तत्तो रयणीसेसं गमिउं काऊण गोस-किच्चाई । उज्जाणमागओ हं ता चक्खुपहं तुमं पत्तो ||१४६।। एएण हेउणा ते मुणामि नाम इमं च दाहामि । विज्जुलयं निय-धूयं करेसु ता मज्झा वयणमिणं ||१४७।। पडिवन्नमिणं मयणेण सुह-मुहत्ते करग्गहण-लग्गे । वित्ते पसत्थ-वत्थाऽलंकार-"सुवन्नमाईहिं ||१४८|| सम्माणिऊण मयणरस भाणुदत्तेण अप्पियं भवणं । तो विज्जुलयाए सह तत्थ गओ कीलइ जहिच्छं ||१४१।। अमुणिय-कुल-सीला वि हु जत्थ व तत्थ व गया वि सप्पुरिसा । पावंति पुव्व-पुल्लोदएण मणवंछियं सोक्खं ||१०|| ता जइ महल्ल-कल्लाण-कामिणो माणवा इहं तब्भे । ता कुणह तह पयत्तं जह पुग्नं पावए वुद्धिं ||१५१||
अह भाणुदत्त-दत्त-दविण-विणिओग-संपज्जमाण-मणवंछियत्थसत्थरस मयणरस गएसु कइवय-वच्छरेसु कयाइ पयट्टो पाउसारंभो ।
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
जत्थ विरहग्गि - डज्ांत-विरहिणी - हियय-समुल्लसिय- धूमलेहाहिं व मेह - मालाहिं सामलीकयं गयणयलं, जलय-पिययम- समप्पियं कणयमयाभरणं पिव विज्जुलयालोयं वहंति दिसि वहूओ, पाउसमहाराय - रज्जघोसणा - डिंडिमो व्व सव्वत्थ- वित्थरिओ घण-गज्जिरवो, माणिणी-माण - खंडण - पयंड - खग्ग- धाराओ व्व निवडंति सलिलधाराओ, "महि-महिला- हार-सरियाओ व्व सरिआओ पसरियाओ । एवंविहे य तम्मि ओलोयण-गयस्स मयणस्स नयण - विसयं समागया समासन्न - घरं गण-गया रुयमाणी रमणी पउत्थवइया, सुया य सावहाणेण होऊण किं पि पलवमाणी । जहा
हा नाह ! अणाहं मं मुत्तुं देसंतरं तुमं पत्तो । संपत्ती घण- समओ जइ वि तुमं तह वि नो पत्तो || १५२ ॥ घणगज्जि - विज्जुतडा ! सरणं रयणीसु कं पवज्जिस्सं । गलइ कुडीरं पि इमं निवडते नीर- पूरम्मि || १५३ ||
निद्विय- चिरंतण - धणा किं देमि अहं रुयंत डिंभाणं ? | अहह ! विहिणा अहं चिय विणिम्मिया दुक्ख - कुलभवणं || १५४ || तओ चिंतियं मयणेण 'हा ! वराईओ रमणीओ पइ-विरहे एवंविहं दुत्थावत्थं अणुभवंति चंडा-परांडाओ वि मह विरहे महंतं दुक्खमावन्नाओ भविस्संति' त्ति सोग-संगलंत - जलेण तरंगियाइं नयणाई मयणस्स | भणिओ सो विज्जुलाए - 'नाह ! किमेवमुव्वेय कारणं ? ।' निब्बंधे य सिद्धो अणेण पुव्व-भज्जा-संभरण- वइयरो । दूमिया इमा चित्तेण । अदसिय- - वयण- - वियाराए भणियमणाए - नाह ! जइ एत्तियं हियय-दुवखं तो तत्थ गंतूण किं न कीरइ रई तासिं? | मयणेण भणियं - पिए ! जइ तुमं विसज्जे सि । तीए भणियं-संपयं पंक- दुग्गमा मग्गा, विसमाओ गिरिनईओ, ता न तीरइ गंतुं, वित्ते पाउसे वच्चिज्जासि । तव्वयणेण ठिओ सो । अह पयट्टे फुहंत-कंदोह - संघट्टे भमंतालि-थट्टे विसहंतदोघट - मरट्टे सरय- समए विज्जुला - समप्पिय- करंबय पाहेज्जं घेत्तूण निग्गओ कुसत्थलाभिमुहं । वच्चंतो य पत्तो कमेण दिवस-पहर - दुगसमए गाममे क्कं । वीसंतो तत्थ सरोवर-तीर-तरु-तले । तओ पक्खालिय-कर-चलणो" कय- -देव-गुरु- सुमरणो "भोत्तुमणो चिंतिउं
पवत्तो
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सुमइनाह-चरियं
जइ एज्ज को वि अतिही चक्खुपहं मे इमम्मि समयम्मि | ता सुकय-लेसमज्जेमि तस्स दाऊण गासद्धं ।।१५।। एक्वेण गुणेण जियं जयं पि कारण निग्गुणेणावि । काउं परेसि सद्दे जो भुंजइ थेव-भक्खं पि ||१५६।। ते च्चिय जयम्मि धन्ना ताण गया पाणि-पल्लवे लच्छी ।
जे अतिहि-संविभागं काऊण सया वि भुंजंति ||१५७|| एवं चिंतयंतेण तेण दिहो पासवत्ति-देवउलाओ निग्गओ गामं पइ पत्थिओ भास-समुद्भुलियंगो जडा-मउड-वेढिय-सिरो पुडिया-वावडकरो तवस्सी । तओ पहह-हियएण वाहरिऊण दिनो तस्स करंबओ । 'पज्जत्तं' ति तस्सेव सरोवरस्स तरि कयावस्सगो भोत्तुमारदो सो । मयणो य भोत्तुकामो कवलं करे कुणइ जाव, ताव केणइ च्छीयं । तओ संकियमणो पडिवालिउं खणमेक्वं जाव ताव सो तवस्सी करंबय-प्पभावेण जाओ तक्खणा ऊरणो । पहाविओ संकास-नयराभिमुहं । ‘क हिं वच्चइ ?' ति विम्हिय-माणसो मयणो लग्गो तस्साणुमग्गेण | पत्ता दो वि नयरं । गया तयब्भंतरं । पविट्ठो विज्जुलाए भवणं ऊरणो | इयरो य 'किमेसो करेइ?' त्ति पच्छन्नं पेच्छंतो ठिओ बाहिं । दिहो य ऊरणो विज्जुलाए । तओ खडक्वियं ढक्विऊण पारद्धो पुव्वावलिय-वत्थ-लउडेण हणिउं । तं च विरसमारसंतं सोऊण मिलिओ लोगो । तेणावि करुणावन-मणेण वारिया विज्जुला । तीए वि सो सित्तो मंताभिमंतियजलेण जाओ तवस्सी । तओ विम्हओफुल्ल-लोयणेण लोएण पुट्ठो सोभयवं ! किमेयं ? ति । सिहो तेण निय-वृत्तंतो । तओ लोगेण भणियं
सच्चमिणं संजायं पसिद्धमाहाणयं जए सयले ।
खायइ करंबयं जो सो सहइ विलंबयं पुरिसो ।।१५८।। इमं च दहूण सव्वमुन्विग्गमणो मयणो चिंतिउं पवत्तो- अहो ! एयाए विज्जुलाए इमिणा निय-चरिएणं निज्जियाओ चंडा-पयंडाओ, ता कुसलकामिणा माणवेण दूरेण वज्जणिज्जाओ महिलाओ महंत-अणत्थसत्थेक्कसरणीओ,
दिहं पि चित्त-संतास-कारणं जाणमेरिसं चरियं । ताओ वि महइ मूढो महिलाओ ही ! महामोहो ।।१५।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं अवराह-पयं थेवं पि पाविउं तह कहं पि कुप्पंति । जह अच्चंत-पियस्स वि पाण-पणासं पकुव्वंति ||१६०।। अन्नं चवंति अन्नं कुणंति अन्नं वहति हियएण | जाउ रमणीउ मइमं कह तासु करेज्ज विस्सासं ? ||१६१।। एवं विभावयंतो नयराओ निग्गओ परिब्भमंतो । पत्तो कमेण मयणो पवर-पुरीए हसंतीए ||१६२।। गोरीओ पइ-मंदिरं, पइ-पयं दीसंति जत्थेसरा । __ लच्छीओ पइ-माणुसं, पइ-वणं रंभाण संभावणं । एक्वेक्वेण इमेण पावियमयं पासाय-पति-प्पहा
पूरेणं अमरावई हसइ “सा नूणं हसंतीपुरी ||१६३|| तत्थ कुसुमावयंसुज्जाणस्स विभूसणम्मि जिण-भवणे ।
कणयमय-खंभ-कलिए मरगयमय-कुट्टिम-तलम्मि ।।१६४|| कह वि पविठ्ठो मयणो जुगाइदेवस्स पेच्छिउँ पडिमं ।
निप्पडिमरुव-पिसुणिय-पसम-दयं "थुणिउमाढत्तो ||१६५।। जं दिही करुणा-तरंगिय-पुडा एयरस, सोमं मुहं ___ आगारो पसमागरो, परियरो संतो, पसन्ना तणू । तं मन्ने जर-जम्म-मच्चु-हरणो देवाहिदेवो इमो,
देवाणं अवराण दीसइ जओ नेवं सरूवं जए ||१६६।। जायं मज्झ मणुस्स-जम्म सहलं, धन्नाण चूडामणी
संपन्नो हमिमं पि लोयण-जुयं पत्तं कयत्थत्तणं । पारं भीम-भवनवरंस दुलह लद्धं मए संपयं,
जं एसो भयवं भवक्खयकरो चक्खूण लक्खं गओ ||१६७|| एवं भणंतो पणमिऊण जुगाइदेवं निसलो तत्थेव मयणो ।
एत्थंतरे समागओ तत्थ धणदेवो" नाम वणियपुत्तो । सो वि जयगुरुं नमंसिऊण निविद्रो मयण-समीवे । पुट्ठो अणेण सिणेहसारवयणेहिं मयणो-भद्द ! कत्तो समागओ सि ? किं वा कारणं जं हिययब्भंतर-फुरंत-दुक्खो व्व लक्खीयसि ? तओ मयणेण 'सिणिद्धबंधु व्व को वि महप्पा एस ममं समुल्लवइ' त्ति चिंतिऊण भणियं-भद्द ! संपयं संकास-नयराओ समागओ म्हि, जं पुण हियय-दुक्ख-कारणं तं
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सुमइनाह-चरियं जइ वि लज्जणिज्जं तहा वि तुह पढम-दंसणे वि पयासियाणप्पसिणेहत्तणेण परम-बंधुभूयस्स पुरओ सीसइ । तओ सिहो जहडिओ सव्वो वि निय-वुत्तंतो । धणदेवेण वुत्तं-केत्तियमेत्तमेयं जइ मह भज्जाण वुत्तंतं सुणेसि ? | विम्हिय-मणेण मयणेण वुत्तं- भद्द ! कहसु तुमं पि निय-भज्जा-वुत्तंतं । तओ धणदेवो कहिउमाढत्तो । तहाहि____ इहेव नयरीए जिणधम्म-किच्च-निच्चल-मणो मुणिजणपज्जुवासणपरो परोवयार-निरओ धणवई सेही । तस्स य सयल-गुणकलाव-कुलभवणं भवणंगण-संचारिणी मुत्तिमई लच्छि व्व लच्छी नाम भज्जा | ताणं च उभय-लोगाविरुद्धवित्तीए वÉताण जाया २५दोन्नि पुत्तापढमो धणसारो, इयरो धणदेवो । समए कराविया दो वि कला-गहणं । जोव्वणारूढा य परिणाविया विसिह-रूव-लावन्नाओ वणिय-कन्नाओ । अह निय-निय-कम्म-संपउत्ताणि सव्वाणि कालं वोलंति ।
अन्नया मरण-पज्जवसाणयाए जीवलोयस्स, पइसमय-विणस्सरसरूवत्तणेण आउकम्मुणो मुणिय-निय-जीवियावसाण-समओ समसत्तु -मित्त-भावो भव-विरत्त-मणो क य - सव्व-सत्त -खामणो पंचपरमेहि-मंत-सुमरणपरो परलोय-पहं पवल्लो धणवई । तओ पइविओग-सोग-सलिल-पज्जाउलच्छी लच्छी वि निच्छिऊण सुसाणं व भीसणं घरवासं विसय-वासंग-विमुही महंत-तव-विसेस-सोसिय-तणू पंचत्तमुवगया । अह अम्मा-पिउ-मरण-रणरणय-दूमिय-मणा मणागं पि निव्वुइमपावंता परिचत्त-सयल-कज्जा धणसार-धणदेवा अणुसासिया तक्वालागय-मुणिचंद-मुणिंदेण
भो भो ! किमेवमच्चंत सोग-संभार-निब्भरा तुब्भे । गमह दिवसाइं ? जं नो परिभावह भव-सरूवमिणं ||१६८।। जं किं पि चराचरमत्थि वत्थु सयलम्मि जीव-लोयम्मि खणभंगुरस्सरुवं सव्वं ता किमिह सोगेण ? ||१६१।। पाणेसु निच्च-पहिएसु चले सरीरे,
तारन्नयम्मि तरले, मरणे धुवम्मि | धम्म जिणिंद-भणियं चइऊण "इक्वं
जंतूण ताणमवरं नणु नत्थि किंचि ||१७०।।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
तओ मंदीकय-सोगा सगिह- कज्जाइं चिंतिउं पयट्टा । कयाइ कलहमाणीओ घरिणीओ पेच्छिऊण विभत्त- घरसारा ठिया भिन्न-भिन्नघरेसु । अह वच्चं तेसु वासरेसु भणिओ धणसारेण लहुभायाकिमेवमुव्विग्ग - माणसो व्व दीससि ? धणदेवेण भणियं न मे इमीए घरिणीए घरवासो संभाविज्जइ । जेद्वेण वुत्तं किमन्नं कन्नगं परिणावेमि ? इयरेण भणियं एवं करेसु । तओ जेद्वेण विसिद्ध-वाणियगं मग्गिऊण परिणाविओ धणदेवो दुइ-दइयं । भवियव्वयावसेण सा वि तहाविहा चेव । न चित्त - संतोस - निबंधणं धणदेवरस |
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तेणेगया भारिया-चरियं पलोइउकामेण कवडेण भणियाओ भज्जाओ, जहा सज्जेह सेज्जं, सीयज्जर-बाहिज्जमाणो न तरामि ठाउं । तओ पगुणीकया सेज्जा । नुवन्नो धणदेवो । खित्ताणि उवरिं पउरपावरणाइं । अह "अत्थमुवगओ गयणमणी । ओत्थरिया समग्ग-दोस पच्छायणी रयणी । घोर-सह-पयडिय - कवड - निद्दो धणदेवो जाव चिट्ठइ ताव जिद्वाए भणिया इयरी हले! सिग्घं पगुणीहोसु । तओ तुरियं कय-गेहकिच्चा "पगुणीहूया सा । अह गेहाओ निग्गंतूण गयाओ दो वि घरुज्जाणे । आरूढाओ महंतं "सहयार- पायवं पवत्ताओ मंत- सुमरणं काउं | धणदेवो वि सणिय-सणियं तयणुमग्ग- लग्गो निग्गंतूण तम्मि चेव चूय- पायवे उत्तरिज्जेण अप्पाणं बंधिऊण थुड विलग्गो ठिओ । खणेण य अचिंत - सामत्थयाए मंत- माहप्पस्स पयट्टो गयणेण गंतुं चूयतरु लंघिऊण अणेग - तिमि मगर-गाह - रउद्दं समुद्दं पत्तो रयणदीवावयंसभूयं पभूय- रयणखंड - मंडिय - पसंडि-पासाय- सयसहस्ससोहियं रयणपुरं नाम नयरं ।
—
-
तरुण-जण-समूहो जम्मि खवाभिरामो,
वियरइ पडिवन्नाणेगमुत्ति व्व कामो । अवि अमुणिय-विज्जो जत्थ विज्जाहराणं,
-
कुणइ जुवइ - वग्गो दंसणेणावि थंभं ||१७१||
तत्थ परिसरे ठिओ महीए चुय-हुमो । मुत्तूण तं दूरीभूओ धणदेवो । तब्भज्जाओ अवयरिऊण पविडाओ नयरं, तयणुमग्ग- लग्गो धणदेवो वि ।
इओ य तत्थ सिरिपुंजो सेट्ठी, तस्स चउण्ह पुत्ताणमुवरि वर - रूवलावन्नेहिं तेलोक्क-तिलयभूया सिरिमई धूया । दिन्ना य सा वसुदत्त
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सुमनाहचरियं
सत्थवाहपुत्तस्स | तम्मि समए य पयट्टो महया रिद्धि-वित्थरेण विवाहमहूसवो । विविह-नेवच्छ" - सच्छाय- देहच्छवीओ फुरंत रयणालंकारकिरण - कडप्प - कप्पिय-सुर्रिद-सरासणाओ नच्चंति चारु-तरुणीओ । तओ मुणियमेयाण चरियं नियत्तमाणीओ इमीओ पुणोवि अणुसरिरसं ति चिंतिऊण धणदेवो तं चैव विवाह-महूसवं पलोयंतो ठिओ सिरिपुंजघरदुवारे ।
एत्थंतरे तुरंगमारूढी वसुदत्त पुत्ती सिरिपुंज-घरे पविसंतो कुऊहलाकुलिय- मिलिय- लोय-सम्मद्द - पणुल्लिय- तोरण-विणिग्गयाए तिक्खधाराए तलियाए भवियव्वयावसेणं 'तड' त्ति तोडिउत्तमं गो "पंचत्तमुवगओ । तओ वसुदत्तो सपरियणी सोग-संरंभ - निब्भरो रोवमाणो पत्तो निय- घरं ।
सिरिपुंजो वि तहाविहमयंड - डमरं उवहियं दहुं । 'हा ! कहमिन्हिं धूया होहि' त्ति विसायमावन्नी ||१७२|| तो घर-जणेण भणिओ संतावो कीस कीरई एवं ? | अन्नरस कस्स वि इमा दिज्जउ कन्ना किमन्त्रेण ? || १७३|| तत्तो सिरिपुंजेणं आणत्ता तक्खणं नियमणुस्सा । आणेह कंपि पुरिसं गवेसिउं राय - मग्गम्मि || १७४|| एयं वयणं पडिवज्जिऊण पुरिसा वि निग्गया जाव | ता दिहि-पहं पत्तो धणदेवो दिव्व- रूव - धरो ॥१७५॥ नीओ य घरे 'पेच्छामि विहि-विलसियं इमं ति चिंतंतो । तक्खण- न्हाय-विलित्तो परिहिय- बहुमुल्लय - दुगुल्लो || १७६ || परिणाविओ य धूयं तत्थ पयट्टो तहेव आणंदो । धणदेवो उ सचिंतो चिट्ठइ बाहिं पलोयंती ||१७७ ॥ ता आगयाओ ताओ भज्जाओ कीलिऊण सेच्छाए । दहूण विवाहमहं जेट्ठाए जंपिया इयरी || १७८ ||
३३
अज्ज वि गरुया रयणी महूसवं तो पलोइमो एयं । पडिवन्नमेयमियरीए दो वि तो दहुमादत्ता ||१७||
अह लहुईए भणिया इयरी- पेच्छ सुरमिहुणं व मणहरागार - वहूवरं,
नवरं वरो अज्जउत्तो व्व लक्खीयइ । जेहाए भणियं
हले! मुद्धा तुमं,
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
अज्जउत्त- सरिसो अन्नो को वि एसो, सो पुण सीयज्जर - परिगओ गेहे मुक्को कहमिहागओ ? एवं खणमेक्कं ठाऊण चलियाओ ताओ । धणदेवी वि सिरिमईए वत्थंचले कुंकुम-रसेण
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कहिं हसंति ? कहिं रयणउरु ? कहिं नह- हिंडणु भूउ ? । धणदेवह धणवइ - सुयह विहि सुहकारणु हूउ || १८० ।।
एयं लिहिऊण केणावि मिसेण निग्गओ । तब्भज्जाओ आरूढाओ तं चैव चूय- पायवं । इयरो तहेव अप्पाणं बंधेऊण विलग्गो थुडे । उप्पइओ चूय- पायवी, पत्ती खणमेत्तेण हसंतीए । ठिओ तत्थेव घरुज्जाणे | धणदेवो मुत्तूण चूयं पविडो भवणब्भंतरं । णुवन्नो सयणिज्जे पाउय-पउर-पावरणो कणंतो ठिओ । इयरीओ चूयाओ अवयरिऊण पविट्ठाओ भवणं । दिट्ठो पसुतो धणदेवो । पसुत्ताओ खणमेक्कं ।
अह पभाया रयणी । समुग्गओ समग्ग- तिमिरभर-हरण-पच्चलो चंडकरो | धणदेव-भज्जाओ य सेज्जाओ मुत्तूण लग्गाओ स कज्जेसु । अह लहुईए दिडो कह वि पावरण बाहिं विणिग्गओ विवाह - कंकणसणाही धणदेव - करो, दंसिओ जेडाए - किमेयं ? ति । जेट्ठाए भणियंसच्चं तया तए संलत्तं 'जहेस वरो अज्जउत्तो व्व दीसइ' त्ति, ता इमिणा अम्हे लक्खियाओ त्ति । न भेयव्वं, करेमि इमस्स दुरिसक्खियस्स सिक्खं ति भणंतीए बद्धो चलणम्मि मंतेण अभिमंतिऊण दोरो | तप्पभावेण जाओ धणदेवो सुगो ।
-
खित्तो य पंजरे सो सुदीण-वयणो दिणाई वोलेइ । भवणं बंधुयणं परियणं च निययं पलोयंतो ||१८१|| अह चुल्लि - निवेसिय- थालिगाए पक्खित्त-वेसवाराए विहिय - छमक्कारं भज्जिगाए पागं कुणंतीए ||१८२|| ताओ य तं सुगं भेसयंति धरिऊण सत्थ-धाराए । न हि भज्जिया - छमक्केण मुणसि अरे ! इय वयंतीओ || १८३ || एवं आरोविज्जइ पइ दिवस जीय-संसय-तुलाए । सो कीरो कलुण-मणो ताहिं दुरायार-भज्जाहिं ॥१८४||
इओ य रयणपुरे सिरिपुंज - सेहिणा गवेसिओ सव्वत्थ धणदेवो । न दिट्ठो कत्थ वि । तओ विसन्नचित्तेण पभाए य वत्थंचल-लिहियक्खर
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सुमइनाह-चरियं निरिक्खणाओ नायं, जहा- ‘एस हसंती-वत्थव्वओ सेहिपुत्तो धणदेवनामो' त्ति । पहिह-चित्तेण सिहिणा संठविया निय-धूया ।
एगया सागरदत्त-सत्थवाहो पत्थिओ अत्थोवज्जणत्थं हसंतीनयरीए, तस्स सिरिपुंज-से हिणा समप्पिओ महग्घ-रयणालंकारो जामाउग-जोग्गो । संदिडं च- सिग्घमागंतूण निय-भज्जा संभालणिज्जा । सो य सागरदत्तो पवहणेण समुदं लंघिऊण पत्तो हसंतीए । पारद्धो कयाणग-कयविक्वयं काउं । कयाइ गओ धणदेव-गेहं । दिहाओ तब्भज्जाओ, भणियाओ- कहिं धणदेवो सेहिपत्तो ? ताहि भणियंकज्जवसेण देसतरं गओ । तओ 'रयणउर-वत्थव्वरण सिरिपुंज-सेहिणा पहविओ जामाउग-जोग्गो इमो' त्ति भणंतेण सत्थवाहेण समप्पिओ रयणालंकारो, सिहो य पुवुत्त-संदेसो । ताहि भणियं- सोहणं कयं सिरिजेण, जओ धणदेवो अच्चंतं तदसणूसुग-मणो सयं चेव वदृइ, परं अणइक्कमणिज्जयाए कज्जरस देसंतरं गओ, गच्छंतेण य तेण भणियमेयं'जइ को वि रयणपुराओ एज्जा तो तस्स हत्थे सिरिपुंज-कलाकीलणकए कीरो एसो समप्पियव्वो' ति, ता एयं गेण्हसु । तओ गहिऊण कीरं तं कीरंताणे ग-मंगलो पवहणमारू ढो सागरदत्तो सागरमुल्लंघिऊण संपत्तो रयणपुरं । समप्पिओ गेण सिरिपुंजस्स कीरो, सिहो य सव्व-वुत्तंतो, तेणावि निय-धूयाए । तओ सा पहिह-हियया गहिऊण तं कीरं कीलावए विविहप्पयारेहिं । एगया कीरस्स चरण-बद्धो दोरओ 'मलिणो' त्ति काऊण उच्छोडिओ तीए । तक्खणे जाओ सहावत्थो धणदेवो । विम्हिय-मणाए भणियमणाए- अज्जउत्त ! किमेयं ? ति । तेण भणियं- जं पेच्छसि तुमं ति । नायमेयं सिरिज-सेहिणा । सम्माणिओ३५ धणदेवो । समप्पिओ पवर-पासाओ | भुंजए सिरिमईए समं भोए । करेइ दविणज्जणं ।
कयाइ सुविणिं दयाल-विब्भमत्तणओ जीवलोयस्स परलोयमग्गमोगाढे सिरिपंजम्मि भाउज्जायाण अणक्खरं किं पि सोऊण सोयभर-गग्गिर-गिराए भणिओ सिरिमईए धणदेवो- अज्जउत्त !
तिविहा हुंति मणुस्सा उत्तिम-मज्मि -जहन्नया लोए । कित्तिज्जंता पिइ-माइ-भज्जनामेहिं जहसंखं ।।१८।।
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
जइ वि तुमं गुणवंतो कलासु कुसलो धणज्जण-समत्थो । तह वि सिरिपुंज - जामाउगोत्ति गिज्जसि "जणेणित्थ || १८६|| तत्तो जइ उत्तम - पुरिस-मग्गमोगाहिउं तुहं वंछा । ता जम्मभूमिमणुसरसु नाह ! भणिएण किं बहुणा ? || १८७ || ३" तो धणदेवेण वुत्तं एयमहमवि मुणामि किंतु महं ।
ते भज्जिया - छमक्का अज्ज वि हियए "चमक्कंति ||१८८||
तीए वुत्तं- अज्जउत्त ! केरिसा ते भज्जिया - छमक्का ? । तओ तेण सिहो सव्वो वि निय - कलत्त वुत्तंती । ईसि हसिऊण तीए वुत्तंकेत्तियमेत्तमेयं ? | दावेसु निय- दइयाओ, जेण जाणामि तासिं सामत्थं । तव्वयणावलंबिय- साहसी धणदेवो वित्थिन्नमत्थजायं घेत्तूण सिरिमईए समं " समुदं लंधिऊण संपत्ती हसंतीए । दीणाणाहाण वियरंतो दाणं कुंजरो व्व पविडो स-भवणं । तओ 'अहो ! तहाविहावत्थगओ वि समागओ !' त्ति सविम्हयाहिं अब्भुडिओ भज्जाहिं । कय-मंगलोवयारो निविडो आसणे । जेठा वयणेण पक्खालिया लहुईए धणदेव - चलणा । चलण- पक्खालण-जलं च जेट्ठाए गहिऊण तह कहं पि अच्छोडियं "धरणि वट्ठे अर्चित मंत- माहप्पेण "जह पवडिउमादत्तं । तओ धणदेवेणं भउब्भंत - लोयणेणं पलोइयं सिरिमईए मुहं । तीए वि वुत्तं- मा भाहि । सलिलं पितं कमेणं पवडियं तह कहं पि गेहम्मि | जह बुड्डा चलणा तयणु जाणुणो कडियडं तत्तो || १८ || तत्तो वि उरं तो कंठ - कंदलं तयणु नासिया बुड्डा । तो धणदेवेण विसाय- निब्भरं सिरिमइ भणिया ||१०।। एतो परं तुमं किं पिए ! करिस्ससि ? कएण पज्जंतं । बुड्डाए नासिगाए किमुवरि बुड्डइ ण हत्थसयं ||११|| तो सिरिमईए तं सलिलमेक्क-घुंटीकयं तहा सव्वं । जह तक्खणेण खोणीयलम्मि दीसह न बिंदू वि ||१२|| ता पुव्व-भारियाओ लग्गाओ सिरिमईए चलणेसु । अम्हे जियाओ तुमए सत्तीए इमं भणंतीओ ||११३|| सो धणदेवो अहमेव दुक्कलत्ताण संकडे पडिओ | चिट्ठामि किं करेमी हय-विहि-दुव्विलसिय-वसेण ||१४||
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सुमइनाह-चरियं
एवं सिणेह-सब्भाव-गब्भं परोप्परं पयंपमाणाण मयण-धणदेवाण तत्थ समागओ समग्ग-सग्गापवग्ग-मग्ग-देसओ दसविह-सामायारीनिरओ निरयंध-कूव-निवडंत-जंतु-'संताण-ताणप्पयाण-हत्थावलंबो ४२विमलबोहो नाम सूरी । वंदिऊण जय-गुरुं जुगाइदेवं निविहो तत्थेव । मयण-धणदेवा वि निवडिया गुरुणो चलणेसु । निसन्ना तस्स पुरओ । भणिया य नाण-मुणिय-तच्चरिएण गुरुणा
एवमकल्लाण-महल्ल-वल्लि-पल्लवण-सलिल-कुल्लाओ । निरयगइ-वत्तणीओ खणदंसिय-पेम-कोवाओ ||११५।। कवड-कुडुंब-कुडीओ विवेय-मत्तंड-मेहलेहाओ । परिहरह बालवालुंकि-वालकुडिलाओ महिलाओ ||१९६|| ४°आसु पसत्ता सत्ता विसयाऽऽमिस-लुद्ध-मुद्ध-मइपसरा । अगणिय-कज्जाकज्जा कुणंति पावाइं विविहाइं ||११७।। तव्वसओ संसारे चउगइ-परियत्तणाइं कुणमाणा । माणस-सरीर-गुरु-दुक्खभागिणो हुंति चिरकालं ।।१८।। ता भो महाणुभावा ! विसय-सुह-विरत्त-माणसा होउं । सव्व-विरई पव्वज्जिय समुज्जमह धम्म-कज्जम्मि ||१११।। कुणह कसाय-विणिग्गहमिं दिय-दुद्दम-तुरंगमे दमह । सेवह गुरुकुल-वासं उवसग्ग-परीसहे सहह ||२००।। जेण भवजलहिमुल्लंघिऊण जर-जम्म-मरण-कल्लोलं । सयल-किलेस-विमुक्वं निव्वाण-सुहं लहुं लहह ।।२०१।। एवं सोउं संविग्ग-माणसा दो वि मयण-धणदेवा । नमिऊणं मुणिनाहं जंपिउमेवं समाढत्ता ।।२०२।। भयवं ! भवंधकूवम्मि नूणमम्हाण निवडमाणाण । दिक्खा-हत्थालंबण-दाणेण अणुग्गहं कुणसु ।।२०३।। गुरुणा वि तओ दिन्ना दिक्खा ताणं पहिह-हिययाणं । तो सिक्खिय-मुणि-किरिया अहिज्जिया सेस-सुत्तऽत्था ||२०४|| कय-तिव्व-तवच्चरणा परोप्परं पणय-निब्भरा निच्चं । एक्व-गुरुवास-वसिया पज्जंते तह कयाणसणा ।।२०।।
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३८
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं मरिऊणं सोहम्मे एक्क-विमाणम्मि दो वि उववन्ना । तत्थ वि पुव्व-सिणेहेण सयल-कज्जाइं कुणमाणा ।।२०६|| पंच-पलिओवमाइं परमाउं पालिउं तदवसाणे ।
तत्तो चुया समाणा संजाया जत्थ तं सुणसु 11२०७ ।। तत्थ मयण-जीवो इहेव विजये विजयपुरे नयरे समरसेणस्स रन्नो महादेवीए जयावलीए४५ पुत्तो मणिप्पभो नाम संजाओ । अहिगयकलाकलावो संपत्त-जोव्वणो कय-दार-परिग्गहो पलिय-पलोयणपबुद्ध-जणय-समप्पिय-रज्जभारो उभय-लोगाविरुद्धं विसम-साहसवसीकयासे स-सामंत-मउलि-मणि-मसणिय-पायवीढं रायलच्छिमुव जंतो कालं वोलेइ।
तेणेगया गय-कंधराधिरूढेण रायवाडिया-निग्गएण गयणं व दिलं दिप्पंत-तारागण-परिगयं पफुल्ल-कमलसंड-मंडियं महा-सरं । 'अहो ! अच्चंत-चारुत्तणमिमस्स' त्ति चिंतयंतेण सुदूरं निज्झाइयं । पाइक्कहत्थाओ आणाविऊण गहियं कमलमेक्वं | तओ गओ अग्गओ राया । नियत्तो तेणेव मग्गेण । दिलु उच्चिय-सयल-कमलं पमिलाण-पुव्व-सोहं तं सरं । तओ ‘हा ! किमेयमेरिसं जायं ?' ति पुहं रल्ला । भणियं परियणेण- देव ! एक्वेक्वं कमलमवणिंतेण लोएण एवं कयं । रन्ना चिंतियं
एयं सरोवरं जह कमल-विमुक्वं न पावए सोहं । पुरिसो वि रेहए तह न रज्ज-रिद्धीए परिचत्तो ||२०८।। रिद्धी असासय च्चिय सुविणय-माइंदयाल-सारिच्छा । किंपाक-तरु-फलं पिव परिणामाऽणत्थ-हेऊ य ||२०१।। इच्चाइ चिंतयंतो चित्ते जा वच्चए महीनाहो । ता दिहो उज्जाणे नामेण जिणेसरो सूरी ||२१०।। धम्मकहं कुणमाणो पयमूले तस्स देसणं सोउं । सुय-संकामिय-रज्जो पडिवन्नो संजमं राया ।।२११ ।। कमसो तिव्व-तवच्चरणवस-सम्प्पन्न-गयण-गम-सत्ती । विमलोहिनाण-विनाय-सव्वभावो इमो सो हं ।।२१२||
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३१
सुमइनाह-चरियं
सोहम्माओ चुओ पुण धणदेव-जिओ तुम समुप्पल्लो । तुह बोहणत्थमिन्हेिं समागओ हं खयरनाह ! ||२१३।। जं पुव्व-भवे समगं गहियवया एक्व-गुरुकुले दो वि | एक्क-विमाणे वसिया तुह मम य स एस संबंधो ||२१४।।
एयमायनिऊण ईहाऽपोह-पयट्ट-माणसो महिंदसीह-विज्जाहरराया जाय-जाईसरणो भणिउं पवत्तो-- भयवं । सव्वमवितहमेयं, ता भयवं ! कओ तुमए महंतो ममाणुग्गहो, जं एवं अपार-संसार-महनव-निवडिओ समुद्धरिओ हं, संपयं रज्ज-सुत्थं काऊण तुम्ह पयमूले पव्वज्ज पडिवज्जिस्सं ।' ति भणिऊण समागओ निय-गेहं । तक्वाल-पगुणीकयकलहोय-कलस-मुह-विणिग्गय-सलिलेहिं अणिच्छंतो वि अहिसिंचिऊण निवेसिओ रज्जे रयणचूडो । पणिवइओ मंति-सामंत-पमुह-पहाणपरिगएण खयररना भणिओ य- वच्छ !
तुह जइ वि असेस-गुणागरस्स सयमेव गहिय-सिक्खस्स । सिक्खवणिज्जं थेवं पि नत्थि तह वि हु भणामि इमं ।।२१।। थेवो वि एस विहवो विवेगवंतं पि तरलए पुरिसं | किं पुण मण-सम्मोहुप्पायण-पवणा नरिंद-सिरी ? ||२१६|| ता वच्छ ! जह इमीए छलिज्जसे नेव रज्जलच्छीए । जह खिप्पसि करण-तुरंगमेहिं विसमेहिं न कुमग्गे ||२१७।। विसएहिं वसीकिज्जसि न जहा जीयंत-करण-दच्छेहिं । तह वढेज्जसु चिर-पुरिस-मग्ग-लग्गो नय-समग्गो ||२१८|| भणिओ मणिचूडो वि हु अविवेयं किं न मुंचसे वच्छ ! । कीस अणायारपरो होउं लहुएसि अप्पाणं ? ||२१|| न कलेसि कुलं न गणेसि गुरुयणं अवेक्खसे [य नो] सिक्खं । नाऽऽसंकसे अवजसं परलोय-भयं वहसि न मणे ||२२०।। पावेसु जं पयसि अकित्ति-वल्ली-विसप्पण-जलेसु । परलोय-विरुद्धेसुं विसुद्ध-जण-गरहणिज्जेसु ।।२२१|| सयल-गुण-रयण-रयणागररस अहिगय-कलाकलावस्स । ससिकर-विसुद्ध-कुल-संभवस्स भवओ न तं जुत्तं ।।२२२।।
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४०
ता करण- निग्गहपरो परिचत्त-कुमित्त-वग्ग-संसग्गो । संपइ पसंत-चित्तो वट्टेज्जसु संत मग्गम्मि ||२२३||
सिरिसोमप्पहसूरि विरइयं
एवमणुसा सिय-सुओ सुयण वग्ग-सक्कार-पुरस्सरं जणियजिणिंद-मंदिर- महापूओ पवन्नो परम विभूईए मणिप्पभ- मुणि-समीवे समण - दिक्खं ४८ खेयरेसरो ।
रयणचूडो वि साहिय-सयल - विज्जो विज्जाहर नरिंद-संदोह - सेविज्जमाण-चरण-कमलो कालं वोलेइ ।
-
मणिचूड - कुमारो वि हु पिउणा अणुसासिओ वि तह सम्मं । विसय- पिवासा-वसगो नियय-सहावं अचंती ||२२४ || अगणिय- कज्जाकज्जो अणवेक्खियखत्तधम्म- कुलधम्मो । वियरइ जए जहिच्छं निरंकुसो मत्त-नागो व्व || २२५ ||
अन्नया महु-समागम समुप्पन्न - पमोएण व पणच्चमाणासु दाहिणपवण - पहल्लिर-पल्लव- करेहिं वणलयासु वम्मह - महाराय - रज्जघोसणासु व सुणिज्जमाणासु पइ-तिग- चउक्क-चच्चरं चारु- चच्चरीसु, माणिणी - माण- मोयणीवएस पएसु व पयट्टेसु पइ-वणं "कोइल - कुलालावेसु, पयट्टे विसहंत तरुणि नट्टे मयण महूसवे, पासाय"उवरिट्टियाए दिट्ठो पगिड - रूव-जोव्वण- गुणाभिरामाए खयर - रामाए रायमग्गम्मि संचरमाणो मणिचूडी । "पलोइओ सिणिद्ध - दिट्ठीए । कुमारो वि तव्वयण-पंकयाणुसारिणीए महुयरीए विवर दिडीए पुणो पुणो तं पलोयंतो पत्तो निय-भवणं ।
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-
कयाइ एगंत ठियस्स मणिचूडस्स समीवमागया "संगमी नामा तीए वयंसिया निवडिऊण चलणेसु भणिउं पयत्ता ४ मणिचूडेण भणियं भणसु । तीए भणियं
-
कुमार ! सुणसु विन्नत्तियं ।
-
अत्थि एत्थेव वत्थव्वयस्स "जयसेहर - विज्जाहरस्स धूया सयल - खयरीचक्क चूडा- माणिक्कभूया कणगपूराहिवइणा कणगकेउ - विज्जाहरेण परिणीया कणगावली नामं । तीए य पासाय- सिहरडियाए रायमग्गमोगाढे गाढ - सोहग्ग-लच्छि - कुलमंदिरम्मि तुमम्मि निवडिया दिट्ठी ।
तुह दंसण- परवस - माणसा य मयरद्धएण बाणेहिं । भित्तूण मच्छरेण व तह कह वि कयत्थिया बाला ||२२६||
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४१
सुमइनाह-चरियं
दिहिपहमइक्वंते तुमम्मि जह "मोहमुवगया बाढं ।
महिवहम्मेि निवडिया सहस ति निमीलियऽच्छिपुडा ||२२७ ॥ __ तओ 'हा । जयसेहर-धूए ! हा कणगकेउ-दइए ! किमकज्जमिणं ववसिया सि ?' त्ति भणंतीहिं 'जा न कोइ एयावत्थं इमं पेक्खइ ता उप्पाडिऊण अन्नत्थ नेमो' त्ति चिंतिऊण नीया सहीहि गूढहाणं । कयसिसिरोवयारा य जाया विगय-मुच्छा । भणिया य तीए कयाइ रहसि अहं- 'सहि संगमिए ! जाणसि च्चेय तुमं मह मोह-कारणं, सरीरमित्तभिन्नाए य तुब्भ पुरओ किं वा पच्छाएमि ? तो गंतूण तुमं तह कहवि तं पयंपेसु सोहग्गामय-मयरहरं मणिचूड-कुमारं जहा ममं पडिवज्जइ, तस्विरह-वेयणा-पज्जाउल-मणा य न पारेमि पाणे वि धारिउं' ति भणिऊण पेसिया तुह पासमहं । ।
ता सुहय ! तं मयच्छिं विरह-हयासण-पलित्त-सव्वंगं । निव्ववसु संगमामयरसेण काऊण कारुल्नं ।।२२८।। तहा गिन्हसु कुमार ! तीए समप्पियं कप्पूर-पारी-परिगयं कक्कोल-फल-सणाहं तंबोलं, "एयं स-हत्थ-गुत्थं बउलमालं च त्ति भणंतीए उवणीयं तंबोलाइ । मणिचूडे णावि अविणयसीलयाए कुमारभावस्स, वियार-कारणयाए वम्महस्स, मोहबहुलयाए अविवेयस्स, दुज्जययाए इंदियवग्गस्स, पइमम्म(?)-मज्झत्थयाए विसयसेवणस्स, अगणिऊण जणाववायं, अणाकलिऊणं कुल-कलंकं, अपरियाणिऊण कज्ज-परिणामं, अविमरिसिऊण गुरुयणोवएसं, अविभाविऊणं उभयलो ग-दुहावहत्तं पडि वन्नं तन्वयणं, गहियं तंबोलाइ । 'कुसुमसुंदरुज्जाणे तए तीए सह मे संगमो कायव्वो' ति भणंतेण सकंठ-कंदलाओ उत्तारिऊण समप्पिओ तीए हत्थे हारो । सा वि 'महंतो पसाओ' त्ति भणिऊण गया कणगावली-समीवं । सव्वमावेइयं तीए । संतुहा हियएणं सा । कय-पवर-सिंगारा य अत्थमिए कमलबंधवे, वियंभमाणासु भमरमाला-सामलासु तिमिर-लहरीस गया संगमी-समेया कुसुमसुंदरुज्जाणं । मणिचूडो वि रयणीए निग्गओ खग्ग-सहाओ, पत्तो कुसुमसुंदरुज्जाण-मंडणं मयण-देउलं० । खणमेक्वं पलोइऊण तत्थ गीय-नहाइ जाव कुसुमसुंदरुज्जाणम्मि परिसक्वइ ताव सुणिऊण महिला-संलावं 'नूणं स च्चेय कणगावली सहीए सह किं पि मंतेइ, ता
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કર
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं किमेसा मंतेइ ? त्ति लयंतरिओ चेव सुणेमि'त्ति चिंतिऊण ठिओ तहेव तुहिक्लो । तओ कणगावलीए भणियं - सहि संगमिए ! मयणसरपसर-सल्लिय-मणा न सक्लेमि काल-विलंबं खमिउं | संगमीए भणियं - सामिणि ! परिच्चयसु पज्जाउलत्तणं । कणगावलीए भणियं- सहि ! मुहिया' खु तुमं, महं पुण दंसिय-पाणावसाणं वसणं, सो य अज्ज वि न दीसइ सहय-चूडामणी, ता गवेससु तं कहिंचि । तओ गवेसिउं पयत्तार संगमी । कणगावली वि 'सुरसुंदरी-पत्थणिज्ज-दसणस्स दंसणं मह मंदपुलाए दुल्लहं पिव संभाविज्जइ, ता दइयंग-संगम-मणहरेण हारेण चेव तुमं हियय-निव्वुई वहसु त्ति भणंती पुणो पुणो हिययम्मि हारं निवेसेइ । मणिचूडेण चिंतियं- अहो ! निब्भराणुराय-रसिय-हियया एसा | "एत्थंतरम्मि समुग्गओ कुसुमाउह-महाराय-रज्जाभिसेय-कलसो व्व निसानाहो । तल्लिग्गएण गयण-वित्थारिणा थोर-किरणपरेण दिद्वं "दुद्धोवहि-जलुप्पीलेण पलावियं पिव पविभाइ भुवणयलं । वियसिया कुमुइणी । मणिचूडेणावि सम्मं दहण कणगावलिं चिंतियं-- अहो ! विरहदसा-दूसिया वि दंसणिज्जा पिययमा, किसा वि "निसायर-कला किं न लोय-लोयणाणंदमावहइ ? । कणगावली वि चंदमुद्दिसिय'पीऊसकिरण ! निक्करुण ! कीस जलण-कण-वरिसणेण तुमं पि ममं कयत्थेसि ?' ति जंपइ । मणिचूडो वि 'अओ परं न एसा उवेक्खिउं जुज्जइ' ति पत्तो तीए समीवं । सा वि तं दहण अमय-समुद्द-मग्गं व अमंदाणंद-सुदरं देहमुव्वहंती भणिउं पवत्ता- तइया दिहो सि तुमं नयण-दुवारेण "पविसिऊण मणे ।
लूडिय-सुह-सव्वस्सो नीहरिओ पुण न दिहो सि ।।२२।। मणिचूडेण भणियं-पिए ! मा किं पि खेयमुव्वहसु,
अणुराय-रूव-जोव्वण-गुणेहिं संदामिऊण मयणेण ।
सुंदरि ! निद्देसकरो आमरणमहं कओ तुज्झ" ||२३०।। इच्चाइ सुह-संकहाहिं गमिऊण केच्चिरं पि कालं घेत्तूण तं संपत्तो स-भवणं मणिचूडो, पवडिओ परोप्परं पणओ । थोव-दिण-मज्झे य समुच्छलिओ ‘अकज्जं कयं कुमारेण'त्ति जणाववाओ । जओ
थोव-दिणेहिं अकज्जं गोविज्जंतं पि पायर्ड होइ । तिण-संछन्नो वन्ही पच्छन्नं केच्चिरं ठाइ ? ||२३१||
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सुमइनाह-चरियं
४३ अन्नया नाय--वुत्तंतेण वुत्तो सो रयणचूडेण रल्ला - वच्छ ! विसुद्धबुद्धिणा पुरिसेण सया उभय-लोगाविरुद्धवित्तिणा होयव्वं, कायवो गुणब्भासो, पयट्टियव्वं उत्तम-निदंसणेण, न समप्पियन्वो अप्पा जोव्वणमयस्स. रक्खियव्वो विवेयंकुसेण कुसलमग्गमइक्कममाणो मण-करी, न लं धियव्वा गुरुयणो वएसा, न दायवो दो स - गणस्सावगासो, निरुभियन्वो निरन्गलं वग्गंतो करण-वग्गो, मोत्तव्वा कृमित्त-संसग्गी, न परिहरियव्वो संत-मग्गो, जइअव्वं अणप्प-दप्प-कंदप्प-सप्प-विसप्पसरप्पसमणे, मणागं पि वज्जेयव्वो जणाववाओ; सव्वहा तं किं पि कायव्वं जेण न विरुज्झए धम्मो, न संपज्जए परलोय-हाणी, न दूसिज्जए गुणगणो, न मालिन्नमालंबए कित्ती, न विरजंति सज्जणा, नावगासं पावंति पिसुण-जणा; जं पुण पवडणं कुल-कलंकस्स, अत्थ-पव्वओ पयावदिणयरस्स, “परोह-वसुहा विरोह-वीरुहाणं, दवानलो विमल-कित्तिवल्लरीणं, संकेयहाणं सयलाणत्थ-सत्थाणं, अत्थाणं दुनय-निवस्स, राहुमुहं सच्चरिय-चंदमंडलस्स, घणागमो गुणकलाव-कलहंसाणं, खेत्तं अखत्तऽधम्म-धन्नस्स, दुवारं दुग्ग-दुग्गइ-गेहरस; तं सव्वहा परिच्चयसु पर-"महिलाहिलासं । न जुत्तमेयं विसुद्ध-वंसुब्भवस्स भवओ, न सरिसं सरयब्भ-सुब्भस्स तुह गुण-संदब्भरस, अणुचियं चंद-किरणाणुगारिणो तुह विवेयस्स | मणिचूडेण भणियं- बंधव ! एरिसो च्चेव चत्त-खत्तधम्मो, धम्माऽधम्म-वियार-रहिओ, उवएस-परम्मुहो, मुह-महुर-विसय-सुहसेवणासत्तो, सत्तहीणो, हीण-जण-जोग्ग-वावार-निरओ, रयणिनाहनिम्मल-कुल-मालिन्न-मूल-कारणमहं विणिम्मिओ विहिणा; जो अविसओ विसुद्ध-वासणाए, अभायणं गुरुयणोवएसामयरसस्स, अहाणं विसिहचिहाणं, अपत्तं पवित्त-चित्त वित्तीए, अजोग्गो सग्गाऽपवग्ग-सुहसंसग्गरस । ता एयम्मि वइयरे न किंचि वत्तव्वं, अन्नं किं पि आणवेह तुब्भे जेण तं दक्वरं पि करेमि । जओ
कीरइ सुदक्करं पि ह विसभक्खण-जलण-जल-पवेसाई । तीरइ निवारिउं न ह मणम्मि मयणो वियंभंतो ||२३२|| जइ वि मणिचूड-कुमरो ससिणेहं रयणचूड-राएण ।
७.सिक्खविओ तह वि न सा मुक्का कणगावली तेण ॥२३३।। जओ
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४४
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं ता लज्जा ता माणो ताव च्चिय तत्त-चिंतणा बुद्धी । जाव न कंदप्प-सरा पसरंति विवेय-जीयहरा ||२३४।। अनियत्तमणं मुणिउं मणिचूडं वड्डमाण-मण-खेओ ।
खेयरवई ठिओ तो काउं मोणं रयणचूडो ||२३५।। कयाइ कणगावलीए भणिओ मणिचूडो - पिययम ! एत्थट्ठियाणं खलयणो अवनवायं कुणइ, ता अन्नत्थ गच्छामो । सो वि तन्नेहमो हिय-मणो पडिवज्जिऊण तव्वयणं, मुत्तूण सिणिद्ध-बंधुवग्गं, अवगणिऊण गुण-रयण-खाणिभूयाओ खयरराय-धूयाओ समागओ एत्थ रल्ने | ठिओ विउव्विऊण पवर-पासायं । किं च
तस्स कणगावलीए मुहकमल-पलोयणं कुणंतस्स ।
सुरलोयाओ अहियं सुन्नं रत्नं पि संपन्नं ॥२३६||
सो य मणिचूडो अहं । अज्ज पुण पभाय-समए मम बाहिगयस्स समागओ एक्को विज्जाहरो | दिहो समागएण मए तीए सह संलवंतो । पहा य सा मए- पिए ! को एसो ? त्ति । तीए भणियं- मह जणणीए पेसिओ पउत्ति-निमित्तमेस मे बंधवो त्ति । सो वि खणमेक्वं ठाऊण कणगावलीए सह किं पि जंपिऊण गओ । खणंतरे य भणिओ हं तीएपिययम ! आसनुज्जाणम्मि कीलासुक्खमणुभविउं गच्छामो त्ति | तओ गयाइं दो वि तत्थ, पयहाई कीलिउं । पुणो वि भणिओ कणगावलीएपिययम ! संपयं माह-समओ, ता एयम्मि सरोवरे जलकीलं करेमो त्ति । तओ तव्वयणमणल्लंघंतो गंतूण तत्थ मोत्तूण वारि-तीर तरवार पयट्टो कीलिउमहं सह तीए । तओ तक्खणा "समुक्खाइय-खग्गो 'अरे खेयराहम ! कणगकेउणो मह महाविज्जा-साहणज्जयस्स भज्जमवहरिय कहिं वच्चसि ?' त्ति भणंतो समागओ एक्को खयरो | अहं पि दहण तं पहाविओ खग्गाभिमुहं जाव न गिण्हामि खग्गं ता पहणिऊण खग्गपहारेहिं निवाडिओ महीवडे । तओ पहसियमहीए भणियं कणगावलीएपिययम ! सोहणं कयं जमेवमेस पहओ, दुरायारो खु एसो । बला
अणिच्छमाणी गहियम्हि । ता पुणो वि आहओ खग्गेण, मओ त्ति मुत्तूण मं घेत्तूण कणगावलिं गओ सो । अओ परं तुमं पि जाणसि त्ति । "तो एयं मे एयाए अवत्थाए कारणं । एवं तक्केमि- तीए कणगावलीए पहायसमए समागय-खयरेण समं मह विणासणत्थं संकेओ कओ । अहं च
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सुमइनाह-चरियं खग्गहत्थो दुस्सज्झो त्ति कलिऊण उज्जाण-जलकीला-ववरसेण खग्गं मोयाविओ | ता सच्चमेयं. न घेप्पइ सुसिणेहिं न विज्जहिं न य गुणिहिं, __ न य लज्जाहिं न य माणिण न य चाडुय-सइहिं । न य खर-कोमल-वयणि न विहवि न जोव्वणिण,
दुग्गेज्झं मणु महिलहं चिंतह आयरिण ||२३७|| तहा धिरत्थु मे अणज्जचरियस्स । लज्ज वज्जिय मुक्क मज्जाय अवगनिय निय-सयण,
जीइ कज्जे चत्तउ कुलक्कमु । मई न गणिउ भव-भमणु माणु मलिउं खंडिउं परक्कमु ।
तसु महिलह नेहतणू दिहं पज्जवसाणु । हारिय कोडि कवडियह मइ वंचिउं अप्पाणु ||२३८|| हा ! कुंबिंदु-समुज्जलो कलुसिओ तायरस वंसो मए,
बंधूणं मुह-पंकएसु य हहा दिलो मसी-कुच्चओ । हा ! तेलोक्कमकित्ति-पंसु-पसरेणुभूलियं सव्वओ,
हदी ! भीम-भवुब्भवाण भवणं दुक्खाण अप्पा कओ ।।२३।। जं विसय-परवस-माणसेण न कया गुरुणमुवएसा । तं मज्ा हियय-मज्डो सल्लइ विस-दिद्ध-सल्लं व ॥२४०।। जं गुरुयण-वयण-वइक्कमेण "दुनय-पहे पयहोहं । तस्स फलं संपत्तं फुडमेयं संपयं पि मए ||२४१।। अहवा कित्तियमेत्तं अणज्जचरियस्स तस्स फलमेयं ।
अज्ज वि तितिक्खियव्वं नरए पत्तो अणंतगुणं ॥२४२।। रना भणियं- भद्द ! एरिसं चेव विरसावसाणं परदारा-हरणं । परिहरणिज्जं सपरिसाणं । अचिंतणिज्जं सचेयणाणं ! अणायरणिज्जं उभयलोय-हिएसीणं । महिलाओ वि नीसेस-दोस-भयंग-करंडियाओ वसण-सय-संपायण-पंडियाओ खण-रत्त-विरत्ताओ कस्स सयन्नस्स न निव्वेय-कारणं ? मणिचूडेण भणियं
संपइ कहेह तुब्भे किं नयरं तुम्ह विरह-दुक्खेण । विहुरीहूयं कज्जेण केण वा एत्थ' आगमणं ?||२४३।।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
तो रन्ना वागरियं अहं खु संखउर-नयर - वत्थव्वो । विवरीय - सिक्ख - तुरएण अवहडो एत्थ संपत्ती || २४४ || भणियं मणिचूडेणं अणन्नसम- लक्खणेहिं लक्खेमि । सयल - जय-पयड- कित्ती नूण तुमं विजयसेण निवो ॥ २४५||
ता वसणं पि हु एयं महूसवो मज्झ जेण संजाओ । तुम सह संबंधो गुण निहिणा पुरिस- रयणेण ॥२४६ ||
एत्थंतरे संवुत्ता संझा, कय-तक्कालकिच्चा पसुत्ता दो वि रयणपल्लं केसु । पहाया रयणी, विरलीभूयमंधयारं, जायाइं विविहविहंगकुल- कोलाहल संकुलाई दिसा मंडलाई ।
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आसन्न - दिणेसर-दइय-संगमा अरुण पयडियारुणिमा । कुंकुम - कयंगराय व्व रेहए पुव्वदिस वहुया ||२४७|| चिर रुदं दिणवइ - दइय- दंसणूससिय-कमल-वयणाण | नीरइ कमलिणीणं भमरउलं सोय- तिमिरं व ॥ २४८॥
―
घण
- तिमिर-पंक- खुत्तं समग्ग-1 -भुवणं पलोईउं रविणो । सव्वत्थ वि वित्थरिया करा समुद्धरिडंकामरस ||२४|| पबुद्धो राया, कय-गोसकिच्चो भणिओ मणिचूडेण- 'संपयं महाराय ! देहि ममाएसं, जेण दुल्लहं पि संपाडेमि । तओ सुदंसणाए गवेसणं काउकामेण भणियं रन्ना- भद्द ! नाणाविह देस- दंसणम्मि मे महंत कोउगं । ता तह करेसु जहा तं संपज्जइ । तओ तक्खणा मणिचूडेण विउब्वियं विउल-मणि-तोरण-किरण- पुंज - पिंजरिय-गयणंगणं, अणेग - खंभ-सय- सन्निविड- रयण "सालभंजियाभिरामं रणंत-कणयकिंकिणी - जाल- मुहलं विमाणं । समारुहिऊण तम्मि चलिया दुवे वि ।
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सुमइनाह - चरियं
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पाठांतर :
१. सोगसंभवो रा. ॥। २. मयण कुल० दे. पा. ॥। ३ दुनि दे. पा. ॥ ४. ०वं । तओ ल. रा. ।। ५ तं च भूमिपत्तं दे. ।। ६. खदो दे ।। ७. ०भयवित्तरिओ दे ॥ ८. सुकइसहस्सं दुसइ दे. पा. ॥। १. ०गहवइणा । दे. पा. ॥। १०. ०मेत्तं दे. ।। ११. ० सुवन्नपमुहेहि ॥ दे. पा. ।। १२. समं ल. रा. ।। १३. ०कल्लाणमालियं महह माणवा तुभे दे. रा. पा. II १४. वहिं ॥ दे. पा. ।। १५. महिमहेलाहा० दे. पा. ।। १६. ०चरणो ल. रा. ।। १७. भुत्तुमणो दे. पा. ॥ १८. सा सच्चं हसंती० दे. पा. ॥ 19. भणिउ० ल. रा. ॥ २०. सफलं ल. रा. ॥ २१. ०देवो वणिय० दे. पा. ।। २२. ० किच्चलालसमणी दे. पा. II २३. ०मणो समणजणपयपज्जु० दे. पा. ॥ २४. दुन्नि दे. पा. II २५. एक्कं दे. पा. ।। २६. अत्थंगओ दे. पा. ॥। २७. ता जेठाए दे. पा. ॥ २८. पगुणीभूया दे. पा. ।। २९. साहारपा० पा. ।। ३०. ०नेवत्थस० दे. पा. ३१. पंचत्तं गओ दे. पा. ॥। ३२. कुतीओ दे. पा. ॥ ३३. एस दे. पा. ॥ ३४. ०णियो धण० ल. रा. ।। ३५. जेणेणेत्थ दे. पा. ॥ ३६. तो धणदेवेण पलत्तमेय० ल. रा. ॥ ३७. हियए वक्कमंति रा. ल. ॥ ३८. समुद्दमुल्लं० दे. पा. ॥ ३९. धरिणी दे. ॥। ४०. जलं ल. रा. ॥। ४१. ०संताणप्पयाण० रा. ।। ४२. विमलवाहो सूरी दे. पा. ॥। ४३. एय पसत्ता दे. पा. ॥। ४४. उप्पन्ना दे. पा. ।। ४५. ०लीए मणिप्पभी नाम जाओ ल. रा. ॥ ४६. ०तं चारु० पा. ॥। ४७. गहियं पउममेक्कं दे. पा. ॥ ४८. खयरेसरो दे पा II ४१ ०लकुलारावेसु ल. रा. ।। ५०.
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पासा ओवरि० दे. पा. ।। ५१. पुलोइओ दे. पा. ।। ५२. ०यरीए व ल. रा. ॥ ५३. संगमा ती दे. पा. ।। ५४. पवत्ता दे. पा. ।। ५५. जयसेहरस्स वि० दे. पा. ।। ५६. मोहपरिगया दे. पा. ।। ५७. ०वेयणाए पज्जा० रा. ॥ ५८. ०यं कुमारपारी० ल. रा. ॥ ५९. एसा सहत्थगुत्था बउलमाला त्ति ल. रा. ।। ६०. ०देवउलं दे. पा. ॥। ६१. सुहिया ल. रा. ।। ६२. पवत्ता दे. पा. ।। ६३. ०तरे समु० दे. पा. ।। ६४. दुद्धोवहि० ल. रा. ।। ६५. ससहरकला दे. पा. ।। ६६. पविसिय मणम्मि । ल. रा. II ६७. तुब्भ ।। ल. रा. ।। ६८. पारोह० पा. ॥। ६९ ०महिलाहिलसणं, न दे. पा. ॥ ७०. ०रहिओ, हिओवएस० रा. ।। ७१ सिक्खिविओ ल. रा. पा. ॥ ७२. वद्धमाण० ल. रा. ।। ७३. स्यलयगण
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं
ल.।। ७४. भणियं दे. पा. ।। ७५. समुक्खइय० दे. पा. ॥ ७६. तमेयमेयाए अव0 ल. रा. ।। ७७. न इ चा० पा. ल. रा. ॥ ७८. दुलइपहे ल. रा. ॥ ७१. दारावहरण दे. ।। ८०. संपाडण दे. पा. ॥ ८१. इत्थ दे. पा. || ८२. देह ल. रा. ॥ ८३. सालिभं० ल. पा. ।।
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तइओ पत्थावो
इओ य सा सुदंसणा तओ रन्नप्पएसाओ तप्पएसवासिणीए खुद्दवं तरीए पुन्वभवावेस- वस-विसप्पमाण-मच्छराए उक्खित्ता पल्लंकाओ, पक्खित्ता समंतओ भमंत-मत्त-मायंग-मयजलासारसित्तभूमिभागाए' रउद्द-सद्द-सद्दूल-दलिय-सारंग-मुक्त-विरसाराव-भीसणाए, सरल-साल-हिंताल-ताल-तमालप्पमुह-विडवि-संकडाए भीमाडवीए । तओ तरु-निगुंज-मज्डा-गया मुच्छा-निमीलिय-लोयणा गमिऊण कित्तियं पि वेलं सिसिर-समीर-संसग्ग-समागय-चेयणा दिसामुहाई पलोयमाणी सुन्नारन्न-गय-अप्पाणं पेच्छिऊण 'हा ताय ! हा माय ! किमेयमयंडे चिय' अतक्वियमसंभावणिज्जमावडियं' ति चिंतयंती थीसहाव-सुलभ-भय-कंपंत-हियया रोविउं पवत्ता ।
एत्थंतरे मयंको अत्थमइ पणढ-तेय-पन्भारो । कस्स वि न हुंति विहिणो वसेण वसणाई जियलोए ? ||२५०।। वियलिय-तारय-थोरंसुएहिं परिल्हसिय-तिमिर-धम्मिल्ला । रुयइ व रयणी दडं तयवत्थं पत्थिवंगरुहं ||२५१|| काउं असमत्था दुत्थियाए पत्थिव-सुयाए पडियारं । लज्जाभरेण' नूणं तुरियं रयणी अवक्वंता ||२५२।। उदयगिरि-मत्थयत्थो कहइ व पसरिय-करो सहस्सकरो । "मा कुणसु खेयमुदयं पाविहिसि तुमं पि तम-विगमे ।।२५३।। तओ रायधूया उहिऊण सुविणमिव मण्णमाणी अणवरयं पयट्टबाहप्पवाह- पज्जाउल-कवोला, कक्कस-कुसग्ग-संसग्ग-दूमिज्जंतचलणतला, दिणयर-किरण-कलाव-किलंत-कोमल-तणू, पत्थिया पुव्वदिसाहुत्तं ।
कत्थइ भुयंग-भीया कत्थइ सद्दूल-सद्द-संतहा । कत्थइ कुविय-कयंताउ व्व कुंजराउ पलायंती ।।२५४।। विद्दाय-दीण-वयणा इओ तओ सन्न-रन-परिभमिरी । भय-कायर-तरलच्छं पिच्छंती सयल-'दिसिवलयं ।।२५५।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तो कह वि दिव्ववसओ पसंतमुत्तिं गिरिद-थिरकायं । काउस्सग्गोवगयं पेच्छइ विउले सिलावट्टे ।।२५६।। भवणेक्कमल्ल-कंदप्प-दप्प-कप्परण-परम-माहप्पं । धम्मं व मुत्तिमंतं चारणसमणं महासत्तं ||२५७।। तो जाय-जीवियासा भत्तिवसुल्लसिय-बहल-रोमंचा ।
गंतुं समीवमेयं विणएण नमंसए बाला ||२८|| मुणिणा वि निक्वारण-करुणारस-पारावारेण पारिऊण 'काउस्सग्गं सिलावट्टोवविहेण धम्मलाभ-दाण-पुव्वं विणओणयमुही महुर-वयणेहिं संभासिया रायसुया
_ 'भद्दे ! मा संतप्पसु | एस एरिसो चेव सुविणिंदयाल-विब्भमो खणदिट्ठ-नहो सयल-जियलोओ | अप्पडिहय-प्पसरो सुरासुर-पहूणं पि पहप्पइ पुव्व-कय-कम्म-परिणामो । अकय-सुकयाणं संभवंति पाणिणं पए पए वसणाई । अओ कुसलकामेण कायव्वो धम्मे समुज्जमो'।
इंम च सोच्चा भणियं सुदंसणाए- भयवं ! इमाए अवत्थाए उचिअ-धम्मोवएस-वियरणेण करेह मे अणुग्गहं । मुणिणा भणियंभद्दे ! संपयं विसेस-धम्मकिच्च-करणे असमत्था तुमं । ता 'भयत्त-सत्तसंताण-ताणप्पयाण-पवणं पाव-पायव-पावयं पवज्जसु पंचपरमेट्ठिमंतं | एयप्पभावेण न संभवंति इह-भवे वि खुद्दोवद्दवा, संपज्जति समीहियत्था, लंघिज्जति विसमाओ वि आवयाओ, परभवे य समग्गसग्गापवग्ग-सुह-संसग्ग-भायणं भवंति जीवा' | तहा
खुद्दोवद्दव-धंत-धंस-तरणी दोगच्च-सेलासणी.
धम्मज्हाण-हुयासणेक्क-अरणी कल्लाणमाला-खणी । निव्वाणावसहप्पवेस-सरणी तेलोक्क-चिंतामणी,
धन्नाणं परमेट्ठि-पंचग-नमोक्कारो चमक्वारओ ।।२५१।। हरिसुप्फुल्ल-लोयणाए भणियं रायधूयाए- भयवं ! पयच्छसु तं परमिहि-मंतं । दिल्लो मुणिणा । पणमिऊण गहिओ अणाए, भणियं च--- केच्चिरं कालमेवं सुल्लारनगयाए मए वसणमेयमणुभवियव्वं ? मुणिणा भणियं-- एयरस पंचपरमेहि-मंतस्स पइ-समय-सुमरणाणुभावेण थोवदिणभंतरे चेव विसमं पि वसणमे यं लं घिऊण सयलमणिच्छिय
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सुमइनाह-चरियं कल्लाणभाइणी भविस्ससि त्ति । अहं पुण संपयं सुरसेल-सिहरपरिट्ठियाणं सासय-जिणपडिमाणं नमसणत्थं वच्चिस्सामि त्ति भणंतो सो उप्पइओ तमाल-दल-सामलं गयणयलं । रायसुया वि चारणमुणिविइन्न-धम्मोवएस-वसेण वसण-समुद्दाओ नित्थिन्नं व अप्पाणं मन्नमाणी पंचपरमेहि-मंत-संभरणेण पडि हयासेस-दुह-सावय-भया कंदमूलफल-जणिय-पाणवित्ती चलिया एग-दिसाए ।
अह तीए रायधूयाएपंचपरमेहि-मंतमच्चंतं । एगग्ग-मणाए भत्ति-निब्भरं संभरंतीए ||२६०।। कोववस-सज्जिय-कमो वि डिल-दाढा-कडप्प-दुप्पिच्छो । पंचाणणो न सक्तो समीव-देसं पि अक्वमिउं ||२६१।। मयगंध-लुद्ध-रोलंब-रोल-बहिरिय-समग्ग-दिसयक्वं । तडविय-करं कुद्धं पि करि-कुलं दूरमोसरइ ||२६२|| धूमज्झामलिय-दिसो महंत-जालालि-लिहिय-गयणग्गो । पासमपत्तो विज्झाइ वणदवो अकय-संतावो ||२६३।। विप्फारिय-फार-फणा-फुकार-विमुक्क-विसकणुक्वेरा । पसरंत-रोस-विवसा वि विसहरा पहरिउं न खमा ||२६४|| दिहिप्पयाण-मेत्तेण पडिहयाणप्प-दप्प-माहप्पा | रक्खस-भूयप्पमुहा परम्मुहा ठंति दूरेण ||२६५।। पल्लव-सयणिज्ज-गया पंचनमोक्वार-चिंतणपरा सा ।
रयणिं पि अणेगावाय-संकुलं गमइ खेमेण ||२६६।। 'अह कइवय-दिणावसाणे तत्थ हत्थि-बंधत्थमुवागओ चक्कपुरसामी सिंह-नरिंदो, दिहा य तेण विम्हय-वसुप्फुल्ल-लोयणेण लावन्न - पुन-सव्वंगावयवा रायधया । लक्खिया य आगारमेत्त-दंसणेण जमेसा अणणुभूय-पाणिग्गहण-वइयरा का वि कन्लग त्ति । तओ सो कुसुमचावचक्कलिय-कोदंड-मुक्त-कंडप्पहार-विहरिय-चित्तो चिंतिउं पवत्तो--
मयणघरिणी नूणं दासीदसं पि न पावए,
तिणयण-पिया पत्ता लोए तणं व लहुत्तणं । सलिलनिहिणो धूया धूलीसमा वि न सोहए, अमर-महिला हीलाठाणं इमीऍ पुरो भवे ||२६७।।
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ફર
दुद्दतिंदिय- वग्ग-निग्गहपरं देहाणवेक्खं मए, झाणारूढ - मणेण दुक्करमणुद्वाणं समासेविउं । नूणं पुव्व-भवम्मि किंपि सुकयं संपुन्नमावज्जियं, "बाला जं सहस त्ति लोयण-सुहा वुद्धि व्व दिट्ठा इमा || २६८|| तओ १४ तिहुयण - सिरि-समद्धासियं व अप्पाणं मन्नमाणो घेत्तूण तं समागओ सनयरं । मुक्का य कयलि- कयंब - जंबु - जंबीरंब ". चुंबियंबरतलस्स कुसुमगंध - लुद्ध-मुद्ध - "फुल्लंधुयारावरुद्ध-दिसियक्कस्स भद्दसालाभिहाणस्स पमयवणस्स मज्झे देसालंकारभूए विमल - फलिहसिला- संघाय - घडिय - भित्तिभागे कणय-खंभ-निम्मविय-वियड - सालभंजियाभिरामे मरगय-मणि - विणिम्मिय-कुट्टिमे तुंग-सिहरग्गभग्ग-रवि-रह-तुरंग-मग्गे "पसंडिपासाए । तओ अणुलोमवित्तीए तं उवयरिउमादत्तो । तह विसा वाम करयल - पल्हत्थिय-वयण-कमला, दीहुन्न - नीसास - विसोसियाहरा, अणवरय- नयण-नीहरतं सुसलिला, दिणावसाण - समए समवयाहिं रायनिउत्त-महिलाहिं कह वि काराविया वियार-कारणाहार - परिहारेण किं पि भोयणं । संभासिया महुर- वयणेहिं रन्ना- 'देवि ! कहसु कस्स नरिंद- चूडामणिणो नहयलं व मयंकलेहाए "सयल - लोय - लोयणाणंद- संदोह - दाइणीए तुमए कुलमलंकियं निययजम्मेण ? केण वा निमित्तेण करि-कुरंग केसरि-सरह - सूयर-तरच्छSच्छभल्ल - संकुलाए अडवीए निवडिया सि ?' |
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
तओ 'अलं मह मंदभग्गाए जंपिएणं । समत्त सत्त-खंकप्पकप्परण-परायणं दइवं पुच्छसु' त्ति भणंती अव्वत्त-सद्दं रोविउमारद्धा रायया । रन्ना वागरियं देवि ! किं इमाए अणिड - चिंताए ? आगारमित्तेण वि विसाल-कुल-संभवा संभावीयसि तुमं । ता मए भिच्चभावमुवगए" मणसा वि न को वि तुह अणिद्वं काउं तीरइ । तओ कीस संतावमुव्वहसि ? किं न परिहरसि संखोहं ? विमुंचसु दीण - वयणं", पलोएसु मं अमंदाणंद-संदोह-मंदिरेहिं इंदीवर दल-दीहरेहिं नियलोयणेहिं, करेसु करग्गहणेणाणुग्गहमिमस्स मयणसर - सल्लिय-मणस्स जणस्स । तओ असुयपुव्वं सवण- - दुस्सहमेयमायनिऊण विजयसेणमहारायं मुत्तूण मह जलणी चेव सरणं ति कयनिच्छया विविह- चडु - कम्मपरायणं रायाणं तणं व अवगणंती अदिन्न पडिवयणा मोणमवलंबिऊण
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सुमहनाह-चरियं
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ठिया रायधूया । तह वि गरुयाणुराय - निब्भरेण रन्ना सव्वहा मए एसा परिणेयव्व त्ति निच्छिऊण काराविया विवाह - सामग्गी । रायधूया वि पयट्टा पंचपरमेहि-मंतमणवरयमणुसुमरिउं" ।
अन्न- दिणे पडिहारी तीए पासे निवेण पडविया । ती वि हु पन्नविया सुदंसणा णेग जुत्तीहिं ॥ २६९॥ मुद्धे ! किं अवमन्नसि देवं देवं व सुंदरायारं ? पडिवज्जिऊण एयं भुवणस्स वि सामिणी होसु ॥२७०॥
जइ वि मयच्छि" ! न इच्छसि तह वि हढेणावि परिणिऊण तुमं । मण-वंछियं करिस्सइ सीहो सीहो व्व दुव्वारी || २७१|| जइ होइ हसंताणं रोयंताणं च सुयणु ! पाहुणओ । तत्तो वरं हसंताण किं न एयं सुयं तुमए ? || २७२ || तो जंपइ रायसुया मुणसि तुमं जुत्तिसंगयं वोत्तुं । किंतु अहं निय-पिउणा तारावीडेण नरवइणा ||२७३ || दाउ परिणयण- कए पडविया विजयसेण-रायरस | अणुरागेण मए विहु तस्सेव समप्पिओ अप्पा ||२७४ ||
होऊण तस्स घरिणी परिणेमि अहं कहं परं पुरिसं ? | रविणा विणा कमलिणी विहसइ कं २५ पिक्खिउं अन्नं ? || २७५।।
जं पुण हढेण मं परिणिऊण मणवंछियं इमो काही । तमजुत्तं जेणाहं तणं व पाणे परिहरिस्सं ॥ २७६ ||
तो पसरिही कलंकी इमरस लोए अहं पि न भविस्सं । ता भक्खि विकाए " न य सो अजरामरो होही || २७७।।
इय सोउं पडिहारी सुदंसणा वइयरं कहइ सव्वं । सीह - नरिंदर तहा कयंजली विन्नवइ एवं || २७८||
देव ! देवस्स निय-बुद्धि- पगरिस - विमरिसियासेस- जुत्ताजुत्तवियारस्स पुरओ किं सीसइ ?, सयं चेव मुणइ देवो, जं गुरुयणअदिन्नाए अणिच्छंतीए य कन्नाए करग्गहणं कीरइ न एस संत- मग्गो । परकलत्तं खु एसा जा निय-पिउणा पेसिया सयं च गरुयाणुरायपरवस- माणसा पयट्टा विजयसेणस्स रन्नो परिणयणत्थं । ता कहं
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं करग्गहणं इमीए कुसला सलाहंति ? को वा इमीए पुरिसंतर-विदेसिणीए उवरि देवस्स वामोहो ? जओ
अन्नासत्ते पेम्मं खणं पि अकुलीण-लोय-संसग्गं । मा देज्ज दिव्व ! अम्हं जइ रुहो होसि सय-वारं ||२७१।। ता काऊण पसायं परिहरियव्वो असग्गहो एस । जइ सोवनिय-छुरिया हंतव्वो किं तओ अप्पा ? ||२८०।। तह वि नरिंदो कंदप्प-सप्प-विसवेग-छिन्न-चेयन्नो । अमुणिय-जुत्ताजुत्तो न मुयइ दूरं दुरभिसंधिं ||२८१|| जओउद्दाम-काम-झामल-पविलुत्त-विवेय-चक्खुणो मणुया । खुप्पंति मग्ग-चुक्ता" अकिच्च-पंकम्मि किं चोज्जं ? ||२८२।। विसमाउह-बाण-पहार-जज्जरे माणूसस्स मण-कलसे । ठाइ कहं निक्खित्तं थेवं पि परोवएस-पयं ? ||२८३।। तो वज्जिऊण लज्जं सीह-नरिंदो पयंपए एवं । जाणामि सव्वमेयं सविसेसमहं परं किंतु ॥२८४।। दुस्सह-मयण-यासण-जालावलि-कवलियंगमप्पाणं । बालाए इमीए विणा खणं पि सक्वेमि न हु धरिउं ||२८५।। तत्तो मए इमीए पाणिग्गहणं अवस्स-कायव्वं । पच्छा जं रुच्चइ तं करेउ दइवो किमन्नेण ?।।२८६।।
"इओ य विजयसेण-महाराओ मणिचूडेण समं विमाणारूढो अणेग-नग-नगर-गामाऽऽगर-तरुसंड-सोहियं मही-मंडलं पलोयंतो पत्तो तं चेव चारु-मणि-खंड-मंडिय-पसंडि-पासाय-पंतिप्पहा-पहयतिमिर-पूरं, धरणि-रमणी-मणि-कन्नपूरं, तिय-चउक्क-चंकम्ममाणरमणिज्ज-रमणि-चक्वं चक्करं । तं दर्ण कोऊहलऽक्खित्त-चित्तेण वृत्तो रन्ना मणिचूडो- 'इमं किं पि नयरं निय-रम्मत्तण-निव्वत्तिय-तियसपुरपराभवं, ता पलोएमो' ति मोत्तूण विमाणं मणिचूडेण समं समोइनो महीए महीनाहो | दिडं च तत्थ पारद्ध-महसवं रायभवणं । तओ पुढो रन्ना एक्को पूरिसो- 'भद्द ! किं महसव-कारणं ?' ति । पुरिसेण वुत्तं 'सोम । सुण, अत्थि एत्थ चक्कपुरे पच्चत्थि--पत्थिव-हत्थि-मत्थय-कयत्थण-सीहो
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सुमइनाह-चरियं सीहो नाम नरवई । तेणेगया गय-बंधणत्थं गएण दिहा भीमाडवीए एगा कन्नगा । आणिया एत्थ विवाहत्थमब्भत्थिया अणेगप्पगारेहिं । सा अणिच्छंती वि परिणेउमारद्धा तेण । अओ महसवारंभो' । तओ रन्ना विजयसेणेण साहिलासं पुट्ठो इमो- 'भद्द ! सा कत्थ चिहइ ?' पुरिसेण वुत्त-- 'भद्द ! भद्दसालाभिहाण-पमयवण-मंडणे पासाए राय-महिलाहिं परिणयणत्थं पण्णविज्जमाणा चिहइ' ।
तओ गओ राया मणिचूडेण समं पमयवणे । तत्थ बहल-दलावलीविलुत्त-दिणयर-करप्पसरं सरस-कयलीहरयं जाव पेच्छए ताव पच्चासन्नं करग्गहण-लग्गं ति महंतं चित्त-संतावमुव्वहंती मरणं सरणं ति मन्नमाणा विवाह-कज्ज-पज्जाउलत्तणेण परियणस्स किंचि अंतरं लहिऊण निग्गया पासायाओ सुदंसणा, पविठ्ठा पमयवणब्भंतरं । पत्ता असोग-पायवतलं । दिहा लयंतरिएण रन्ना विम्हयवसुप्फुल्ल-लोयणेण, भणियमणेणवणदेवया किमेसा परिसक्वइ निय-वणे स-इच्छाए ? किं नागकन्नगा काणणस्स दंसणकए पत्ता ? किं विज्जाहर-रामा समागया महियले गलिय-विज्जा ?, किं वा सकोव-वासव-सावब्भहा तियस-रमणी ? | एवं पयंपमाणो राया जाव चिह इ ताव तीए विमुक्क-दीह-नीसासं समुल्लवियं-- ‘हा ! मे मंदभग्गाए उदग्ग-सोहग्ग-भग्ग-सग्गीसरूव-मडप्फरो फार-समुज्जल-जस-पसर-भरिय-भुवणब्भंतरो न ताव दिहि-विसयं पि संपत्तो विजयसेण-महाराओ | तह वि तरस समप्पिओ मए अप्पा । संपयं पुण एस दुरप्पा सीहो मज्जायमुज्झिऊण मं परिणेउमब्भुज्जओ । नत्थि अवरो कोइ उवाओ जेण इमाओ रक्खसाओ व्व रक्खेमि अत्ताणयं । तओ मरणं मे अभग्गसीलाए सलाहणिज्जं । जओ
जीवंत च्चिय वुच्चंति सुद्धसीला मया वि जियलोए । जीवंता वि मय च्चिय जीवा सीलेण परिहीणा ||२८७।। सो च्चिय जयम्मि धन्नो तस्स च्चिय चंद-निम्मला कित्ती ।
अविभग्ग-निय-पइनेण जेण मरणं पि पडिवनं ।।२८८।। ता इमरस असोग-तरुणो साहाए उब्बंधेमि अप्पाणं ति ।
एत्थंतरे मणिचूडेण भणियं- 'नाह ! न एसा वणदेवयाइण मज्झे का वि, किंतु एसा तुहाणुराइणी रायकन्ना' । तओ सुदंसणाए कंठेण सह साहाए बद्धो पासओ । 'भो भो वणदेवयाओ ! मे असरणाए जम्मंतरे वि
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं विजयसेण-राओ भत्ता भविज्ज' । त्ति भणंतीए मुक्को अप्पा । तओ मणिचूडेण भणियं - " एवं "विवज्जमाणा इमा वराई न उवेक्खिउं जुज्जइ त्ति । तओ रन्ना विज्जुक्खित्त करणेण उप्पइऊण वामभुयाए तं धरतेण हियय-देसे दाहिण कर - कलिय-करवालेण छिन्नो पासओ, तं उच्छंगे धरती निसन्नी सिलायले राया, संवाहियाइं तीए अंगाई रन्ना, परामुहं सेय - जल - बिंदु - दंतुरं भालवहं, वीइया कयलीदलेण, सत्थीहुया एसा भणिया य- 'सुयणु ! कहेहि को ते संतावमुप्पाएइ ? जेण तं निग्गहेमि ।' अह सुदंसणा अतक्यिमुवागयं तं पलोइऊण संभमब्भंतलोयणा चिंतिउं पवत्ता- को एस महप्पा सिणेह सब्भाव-गब्भमुल्लवइ ? कीस वा एयरस वयण-पंकय-हुत्तं पुणरुत्तं वलइ मे दिडी ?, केण वा निमित्तेण एयस्स संलाव-सवणमेत्तेण वि विहसियं मे हिययं ? किं वा इमस्स पाणि-पल्लव-फरिसमुवलब्भ पीऊस-रस-सित्ताइं पिव पमोय - पगरिसं पत्ताइं मह गत्ताइं ?, किमेस सो चेव मह हियय- वल्लहो अज्जउत्तो ? एवं चिंता - पवन्न- माणसा भणिया रन्ना- 'देवि ! कीस संसयाउल - मणा चिट्ठसि ? एसो सो हं तुह मण-कमल- वियासणेक्कदिवसेणो विजयसेणो राया तुह पुन्न- पगरिसागरसिओ समागओत्ति । तओ तव्वयणेण निय-हियय-संवाएण य विणिच्छिय-तयागमणा रायसुया 'पढमं दंसणं' ति ससज्झसा, 'सक्खा लक्खियं सव्वमणेणं' ति ३५ सविलिया, 'अतक्कियागमणो' त्ति सविम्हया, 'विरह - जलण-जालापलित्त - गत्ताए चिराउ दिट्ठो' त्ति सऊक्कंठा, 'परम- निव्वुइं पत्त' त्ति साणंदा, 'किमेयस्स एवंविह-विसम-दसंगया करेमि उचियं ?' ति सचिंता, 'सुकय-मित्त सहाओ' त्ति सासंका — एवं अणेग-रस- संकि अणाइक्खणिज्जं अणणुभूयपुव्वं रसंतरमणुहवंती तक्कालुप्पन्न - पमोयलज्जा - संरंभ - रुब्भंत - कंठक्खलंत - वयणा जंपिउं पवत्ता— 'सागयं अज्जउत्तस्स । हियएण नेह-भर- निब्भरेण गूढो सि "एत्तियं कालं, संपइ पसत्थ-"सुकय- उदएण नयणेहिं सच्चविओ विमल-गुण- रयणनिहिणो, करेमि संपइ किमज्जउत्तस्स एवंविह-विसम-दसं संपत्ता उचियकरणिज्जं' ? रन्ना भणियं- 'देवि ! मा किं पि खेयमुव्वहसु' ।
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सव्वं कयं जमेवं सब्भाव- समप्पणं किमन्त्रेण ? । जो देइ सिरं सुंदरि ! सो किं मग्गिज्जए नयणं ? ||२८||
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सुमइनाह-चरियं
रायधूयाए भणियं- 'अज्जउत्त ! खग्गमित्त-सहाओ तुमं ति कंपइ मे हिययं'। रब्ला भणियं- 'मा भाहि, किं न सुयं तए एक्वो वि केसरिकिसोरो मत्त-करि-घडा-विहडणं कुणइ ? त्ति । ता कहसु कहिं सो दुरप्पा नरिंदाहमो संपइ“ वदृइ ? जेण तं निग्गहेमि' ।
एत्थं तरे तुरिय-तुरियं करगहण-करणूसुयमणो पासायतलमुवागओ" सिंह-नरिंदो । तम्मि रायधूयमपिच्छंतो कहिं गया मह पाणवल्लह ? त्ति संभंतचित्तो पत्तो पमयवणब्भंतरे गवेसेउ । समागओ तं पएसं । दिहा य असोग-तरु-तले विजयसेण-राएण समं समुल्लवंती रायधूया ।
तत्तो तक्वाल-वियंभमाण-कोवेण सीह-नरवइणा । उग्गीरिउग्ग-खग्गेण जंपियं - 'को अरे ! एस ? ||२१०।। मह पिययमाए सद्धिं संलवइ ? वियालियं विसेणेसर | को कुणइ दुरप्पा ? कस्स वा सुमरियं कयंतेण ? ||२११|| को वा सकोव-कसिणाहितुंड-कंडूयणेण निस्संकं । अहिलसइ अयंडे मरणमप्पणो एस मूढमई ? ||२१२|| ईसि हसिऊण तत्तो पयंपियं विजयसेण-नरवइणा ।
पेच्छह दूरं दुस्सिक्खियाण धिहत्तणं गरूयं ॥२१३।। मज्जाय-वज्जिया जं अकज्ज-करणुज्जया वि होऊण । लज्जति नो परेसिं दावंता अप्पणो वयणं ||२१४।। जंपति दप्पवसया अज्ज वि असमंजसाई वयणाई । पेच्छंति नेव निययं दुच्चरियमहो ! महामोहो ||२१५।। निय-दुच्चरिएण हयाण ताण हणणं न जुज्जए जइ वि । तह वि भुयंग व्व न ते उवेक्खिया सुहयरा हुति ||२१६|| एत्थंतरम्मि भणियं नग्गायरिएण केण वि स एस । सिरि-विजयसेण-राओ जयइ जए पायड-पयावो ।।२१७।। सोऊण इमं किमणेण ? वीरभुज्जा धर ति जंपंतो । सुहड-समूह-समेओ सीह-निवो पहरिउं लग्गो ||२१८।। पडिपहरिउं पयट्टेण भिउडि-भीसण-निडालवटेण । सिरि-विजयसेण-रन्ना फुरंत-रोसारुणऽच्छेण ||२११।।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं कंठ-पहोलंत - पिसाय दिन्न - वर- हार-गुरु- पभाव-वसा । पडिखलिय - सरीर - समुत्थरंत-खग्गाइघाएण || ३००|| को वि हओ करवालेण कुलिस-कढिणेण मुट्ठिणा को वि । को विहु चंड-चवेडाए को वि पहि- प्पहारेणं ||३१|| एक्केण वि नीसेसी सुहड-जणी गह गणो व्व सूरेण । काउं हयप्पयावी दिसोदिसं नासिओ सहसा ||३०२|| एक्को च्चिय सिंह - निवो पुरो ठिओ निबिड - दप्प - दुप्पेच्छो । गलगज्जिं कुणमाणो खग्ग- पहारे विमुंचंतो || ३०३ || सो वि विजयसेणेणं पावसु दुन्नय-फलं ति बिंतेण । हणिऊणं खग्ग- दंडेण पाडिओ धरणिवम्मि ||३०४|| मुच्छा-मिलंत - नयणं सीह निवं निवडियं निएऊण । गाढप्पहार पहनीहरंत - रुहिरारुणिय- वसुहं ॥ ३०५ ॥ सिरि- विजयसेण-रन्ना कारुन्नाउन्न - माणसेण तओ । आणत्तो मणिचूडो सिग्घं आणेसु सलिलं ति ॥ ३०६ ॥ तेणाऽवि नियड - कीलावावीओ विसाल - पउमिणी- पत्ते | सहसा तमाणिऊणं समप्पियं भूमिनाहस्स ||३०७ || रन्ना वि कंठ - कंदल - पलंबमाणं अर्चित सामत्थं । वरहारं ओहलिउं सित्तो सलिलेण सव्वंगं ||३०८|| तस्सामत्थेण तओ सत्थ- सरीरो समुडिओ सिंहो । सुत्तो व्व तक्खण-परूढ - गाढ - खग्ग-प्पहार - वणी ||३०|| वुच्छिन्न - समरवंछी पाय पणामं तओ कुणंतो सो । धरिउं करम्मि रणभंग-भीरुणा विजयसेणेण ||३१०।।
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भणिओ य सिंह नरवर ! पत्थुय विग्धं किमेवमायरसि ? | तुह तुल्लो एत्थ जए न को वि दिट्ठो मए सुहडी ||३११|| तो मुत्तूण विसायं पिसायमिव दूरओ पुणो सज्जो । रण- कज्जे भवसु करे करिऊण कराल - करवालं ||३१२|| अहवा वज्जिय-खग्गाइ -पहरणा दो वि बाहुजुद्धेण । जुज्झामो जेण महं महई तुट्ठी तुह रणेण ||३१३||
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सुमइनाह-चरियं
सीह-नरिदेण तओ भणियं उवयार-कारएण तए । जणगेण व कह सद्धिं जुद्धं काउं महं जुत्तं ? ||३१४।। दीसंति जए पुरिसा उवयारपरं जणं उवयरंता । उवयरइ तुमं व कए वि अवगुणे को वि सप्पुरिसो ||३१०।।
अवि य महासत्त । परमोवयारी तुमं, जेण तुमए मुक्त-मज्जाओ वज्जिय-लोयलज्जो, अणवे क्खिय-खत्तधम्मो, अकज्ज-करणुज्जयमाणसोऽहमेवमणुसासिओ, एवं कुणंतेण रक्खिओ हं निरयंध-कूवनिवडणाओ, निवारिओ सरय-रयणीयर-किरण-कलाव-निम्मलं नियकुलं कलुसयंतो कलंक-पंकेण, ठाविओ उभयलोय-सुहावहे संतमग्गम्मि । किं बहणा ? तिहयणे वि तं नत्थि वत्थु जंतुह परमोवयारिणो दाऊण, मन्नामि कयत्थं अप्पाणं । तो विरम इमाओ रणज्ावसायाओ | पसायं काउण गेण्हसु अणेग-करि-करह-रह-तुरंग-रंगत-सोहं, कोसकोहागार-गरुय-रिद्धि-समुडुरं रज्जमेयं । विजयसेणेण वुत्तं— भद्द ! पालेसु निय-कुलक्कमागयं रज्जं | उत्तम-पुरिसो तुमं । किमित्तिएण' वि संतावमुव्वहसि ? | गाढप्पहार-विहुरिय-सरीरस्स रणंगणावणि-निवडणं सुहडस्स भूसणं, न उण दसणं । सीहेण भणियं– नाहं उत्तमो, किंतु अहमो जो एवंविह-वसण-समागमेण अकज्जायरणाओ नियत्तो म्हि ।। जओ
सयमेव नियत्तंती उत्तम-पुरिसा अकज्ज-करणाओ । मज्झा परोवएसेण वसण-लाभेण पुण अहमा ||३१६।। एत्तिय-कालं कालुस्स-दूसिय-मइणो मयण-वसवत्तिणो तिणतुल्लावगणिय-गुणिजणोवएसस्स विसएसु चेव मे परमत्थ-बुद्धी आसि । संपयं पुण नियत्ता विस-विसम-विसय-वासंग-वासणा, विरत्तं भीमभवचारयाओ चित्तं, अवगयं जहावहिय-रमणि-सरीर-सरूव-निरूवणनिवारगं काम-झामलं ।
सरिसव-मेत्त-सुहकए कणयगिरीओ वि गुरुयरो अजसो । हा हा ! मए विढत्तो अकज्जमिणमायरंतेण ||३१७।। ता परलोय-सुहावहमुत्तमपुरिसाणुचिन्न-मग्गमहं । सेविस्सामि किमिमिणा अवजस-कलुसेण जीएण ? ||३१८||
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एवं पर्यापमाणो सीह नरिंदो पुराओ नीहरिउं“ । वारंतस्स वि लोयस्स तावसासममिमो पत्तो ||३१|| तावस-वयं पवन्नो तत्तो सिरि- विजयसेण-राएण । महया विच्छड्डेणं तत्थेव य भद्दसाल-वणे ||३२|| तम्मिय पासा - तले विवाहिया सीह - पत्थिव- कयाए तीए सामग्गीए सुदंसणा रायधूया सा || ३२१|| तओ
महंत-मंति-सामंत- मंडलिय- लोय-परिगओ, गय-कंधराधिरूढो", धरिय-धवलायवत्तो, धुव्वंत-चंद - चारुचामरुप्पीलो, पए पए कीरताणेग - मंगलो मागह-समूह-पढिज्जमाणो, मणिचूडेण सुदंसणादेवीए य समं पविट्ठो रायभवणं । निसन्नो पसरंत कंति - कडप्पकप्पियाणप्प - सक्कचाव-चक्कवाले, अप्पमाण- माणिक्क - चक्क - चिंचईए कणय - सिंहासणे, अहिसित्तो समत्त मंति- सामंतेहिं । पणमिओ पहाणरायलीएण । कयाइं मंगलाई, पणच्चियाओ चारु चामीयर - कडयके ऊर- थंभिय-भुयाओ पल्लविय -लोय - लोयणब्भुयाओं पणंगणाचक्क - चूडामणीओ रमणीओ । रन्ना वि जोग्गयाणुसारेण सम्माणिओ महग्घ-वत्थालंकार- तंबोलप्पयाणाईहिं पणइ लोओ । उचिय- समए य विसज्जिऊण मंति- सामंत-सिद्धि - सेणावइ - पमुह " - पहाण- पणइ-वग्गं, समुहिऊण कयं देव-गुरु-पाय-पंकय-पूया-पुरस्सरं सरस- रसवईए भोयणं । तदवसाणे ठिओ राया रयण- पल्लंके, निसन्नो सन्निहि-निहित्तकणयमयासणम्मि मणिचूडो, सुदंसणा देवी वि पायंत-निसह-विसिहविहर- निविद्या पुट्ठा पहिठ- परिपुट्ठ-कंठ - कोमल - गिराए रन्ना'देवि ! कहसु केण तुमं अवहरिया ? | कहं वा तुमए मइंद- मायंग-कुलसंकुला अडवी नित्थिन्न ? त्ति । तओ—
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
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केण वि अलक्खिणं पक्खित्ता जह वणे समुक्खिविउं । जह तत्थ चारण- मुणी पलोइओ परिभमंतीए ॥ ३२२|| धम्मोवएस - संगय-गिराहिं अणुसासिऊण जह तेण । पंचपरमेहि- मंतस्स संसियं पवर- माहप्पं ॥ ३२३|| सो वि परमेहि-मंतो जह गहिओ तस्स सुमरण-वसेण । जह लंघिया लहुं चिय सीहाइ उवद्दवा सव्वे || ३२४ ||
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सुमइनाह-चरियं
जह सीह-नरिदेणं आणीया नयरमेयमिच्चाई । तह देवीए सव्वं सवित्थरं साहिअं रन्नो ||३२५।। रना भणियं- 'अहो ! निक्कारण-करुणारस-परवसत्तणं तस्स चारण-मुणिस्स, जेण दिनो सग्गापवग्ग-मग्ग-देसओ समग्गदुग्गोवसग्ग-संसग्ग-निग्गहणपच्चलो पंच-परमेहि-मंतो। जस्स सुमरणेण सयलोवद्दव-विद्दावणं संपत्ता तुमए, इहावि महल्ल-कल्लाणपरंपरा | तारिसा य साहुणो सयल-जियलोय-वच्छला, मोक्ख-पंथसत्थवाहकप्पा, कप्पडुम व्व दमगाण दुल्लहा अकय-सुकयाण पाणीणं । तत्तो
गुण-रयण-निहीणं मोक्ख-कज्जुज्जयाणं ।
जइ कह वि गुरूणं संगमो मज्झ होज्जा । चलण-कमल-मूले ताण सव्वन्नु-धम्मं । "
पयडिय-सिव-सम्मं ता पवज्जामि सम्मं ।।३२६।। जओ
परलोयाणुहाणं समईए दुक्करं पि कीरंतं ।। सुगुरु-वयणं विणा होइ निप्फलं कास-कुसुमं व ||३२७।। धन्वाणं "गुणि-गुरुणो गुरुणो वियरंति सम्ममणुसहिं । न कयावि रयण-वुट्ठी रोरस्स घरंगणे होइ ।।३२८।। गुणसागराण सुगुरूण संगम इह लहंति कयपुन्ना | किं चडइ करंबुरुहे चिंतारयणं अहव्लाणं ? ||३२१|| मणिचूडेण भणियं-- 'पुठवभवुब्भव-पुलपब्भार-पाउब्भवंतमणवंछियत्थसत्थरस देवस्स सुगुरु-संगमो अचिरेणं चेव संभाविज्जइ' । इच्चाइ-परोप्पर-संकहाक्खित्त-माणसो खणमेक्तमइक्कमिऊण राया रज्जकज्जाइं चिंतिउं पवत्तो । अह भणिओ मणिचूडो रन्ना- 'भद्द ! मह तुरंगावहार-संभाविय-वसणो सोय-सायर-निमग्गो संखउर-लोओ दुक्खेण वदृइ त्ति संभावेमि । ता तग्गमणेण निव्वुई करेमो तस्स' । तओ जुत्तमेयं ति भणमाणेण मणिचूडेण विउव्वियं फारफुरंत-कंति-कडप्पदिप्पमाणं महप्पमाणं मणिमयं विमाणं । राया वि रज्जसुत्थं काऊण मणिचूड-सुदंसणादेवीहिं "सद्धिं समारूढो तम्मेि, चलिओ चक्कपुराओ
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દર
संखपुराभिमुहं ।
अह संखपुरे तम्मि समयम्मि नरनाहह - विरह - विहुरस्स लोयस्स महावसणं जं जायं तं निसामेह । तहाहि— तुरगावहरिए रायम्मि अणुमग्गलग्गं पहावियं पहाण - सामंत - सेणावइ - सुहड - संकिन्नं सेन्नं । पयहं रन्नो गवेसणाए सुन्नारन्नम्मि इओ तओ परिब्भमंतं भूवइणो पउत्तिमित्तं पि अपावमाणं मणम्मि महंत संतावमुव्वहंतं तं पत्तं पउमसर-समीववत्तितमालतरु- निउंजं, तत्थ य दिहि - " गोयरमुवगया एगा इत्थिगा करुणसरेण रूयमाणी, पुट्ठा य भद्दे ! का तुमं ? कीस वा सुन्नारन्नगया एवं रोयसि ? | तीए भणियं - वणदेवया हं, जं पुण रोइयव्व-कारणं तं
सुणह—
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
'एत्थ अइक्कंत - दिवसे कत्तो वि समागओ मणहर-नेवच्छ सच्छायकायच्छवी, अच्चंत सुंदरागारो, गरुयसत्ती, रायलक्खणाणुगओ एगो पुरिसो । सो य एयम्मि सरोवरे जल- मज्जणं काऊण छुहा - किलंतो कंदमूल-फल-पलोयणत्थं पयट्टो, "तो एयस्स पुरिसरयणस्स देव्व - दुव्वारवावार - वसा विसम-दसंगयस्स करेमि उवयारं ति चिंतिऊण पत्ता [हं] कणयसेल-तल - परिडिय - कप्पतरु-फलाणयण-निमित्तं । घेत्तूण ताणि जाव समागच्छामि ताव सो महाणुभावो कुडिल- दाढा - कडप्प-कप्परियकाओ कयंतेणेव अमुणियागमेण पंचाणणेण पंचत्तमुवणीओ । तओ हं तम्मरण - दुक्ख - दूमिय-मणा हा ! मए मंदभग्गाए न कयमेयस्स किं पि उचियं, हा ! मह वणमुवागओ इमो मरणमणुप्पत्ती त्ति संतप्पमाणा एवं रोएमि' |
इमं च सोच्चा" अच्चंत - सोग-संरंभ-निब्भरं सेनं समागयं नियनयरं । तओ विन्नाय - वुत्तंतो मिलिओ नयर - लोगो, बहुप्पयारं पलवमाणं मरणमुवद्वियं अंतेउरं । उग्गीरिय - निक्किव - किवाणिणो अप्पाणं हणंता कट्ठेण निसिद्धा वेलावित्तया, सोगावेग-संगलंतंसु - जलाविल-लोयणो पायालं पविसिउकामो व्व हेट्ठामुही ठिओ रायलोओ । परिचत्तं बालेहिं पि पाण- भोयणं । एवं असमंजसे पयट्टे समग्ग-नयरम्मि मइसागर - मंतिणा भणियं- 'भो भो ! किमेवमाउलत्तणं कीरइ ? जओ अज्ज मए पच्चूसे चेव सुविणम्मि समुत्तुंग सेल- सिहर- समारूढो समहिय तेयसा जलंतो दिडो देवों, तओ सुविणाणुमाणेण एवं संभावेमि जहा कुसलसालिणो
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सुमइनाह-चरियं देवस्स विसे सऽब्भुदय-लाभेण होयव्वं, न य अतुलबल -परक्कमो केसरिमित्तेण धरिसिउं पारीयइ देवो । जं पण अरनगयाए वंतरीए जंपियं तमन्न हा वि संभाविज्जइ । खुद्दपगइणो. वंतरा किं न असमंजसमायरंति ? ता धीरत्तमवलंबिऊण पडिवालेह केत्तियं पि कालं ।
एत्थं तरम्मि पत्तो राया नयरं, जं च नरिंदागमणुप्पन्न-पमोएण पहसंतं व पासाय-परंपराणं सरयब्भ-संदब्भ-सुब्भ-कंतीहिं, पणच्चमाणं पिव पवणुद्धय-"धयवडघाएहिं, मंगलुग्गार-मुहलं व धयग्ग-लग्गवग्गंत-कणय-किंकिणी-कलरवेणं, विम्हय-वसुप्फुल्ल-लोयणेण लोएण पलोइज्जमाणो विमाणाओ अवयरिऊण राया निसल्लो सीहासणे, मणिचूडो सुदंसणादेवी वि उचियासणेसु उवविहा, पणमिओ परमप्पमोयवस-विसप्पमाण-माणसे ण सेणावइ-सामंत-मंति-से हिप्पमुहमहायणेण, रन्ना वि संभासिओ जहोचियं सव्वलोओ ।
पायवडिएण तेणं वुत्तमिमं देव ! कत्थ तुब्भेहिं । एत्तिय-दिणाइं गमियाइं कहह अइकोउगं अम्ह ||३३०।। अम्हेहिं ताव तुम्हे अडवीए गवेसियाओ सव्वत्थ । दिहा परं न कत्थ वि केवलमेक्का करुणसइं ||३३१।। रुयमाणी रमणी तत्थ दिहिविसयं समागया अम्ह । पुहा य सा किमेवं भद्दे ! रोयसि तुममरब्ने ? ||३३२|| तो तीए असंबद्धं भणियं तं जं न सोउमवि सक्तुं । तत्तो सविसेसं सोय-परिगया आगया नयरं ||३३३।। नयरस्स समग्गस्स य जाओ सो कोइ चित्त-संतावो । जं सक्को वि न सक्कइ कहिउं किं पुण "जणो सेसो ? ||३३४|| इच्चाइ-सव्वमावेइऊण भणियं पहाण-लोएण | संपइ निय-चरिय-कहा-कहणेण अणुग्गहं कुणह ।।३३५!। अह अप्प-चरिय-कित्तण-लज्जोणय-कंधरे धरणिनाहे । मणिचूडेण असेसो सिहो नरनाह-वुत्तंतो ||३३६|| तओ विम्हय-रसावहिय-हियएण पयंपियं पहाण- लो एणअणन्न-सामन्न-पुन्नपब्भार-भायणं देवो निय-गुण-माहप्प-संपज्जमाणमणवंछियत्थो सुविणे वि न वसणेहि अक्वमिज्जइ । जओ
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं "दिव्वस्स दुव्विलसिएण सठाण-भंसं.
पत्ता वि हुंति सुहिणो गुणिणो गुणेहिं । चंदो समुद्द-विरहे वि हरस्स सीसे,
कण्हरस कोत्थुह-मणी वसई उरम्मि ||३३७।। एत्यंतरे पढियं काल-निवेयगेणगंतूण ठाणंतरमंसुमाली,
देवो व्व काऊण परोवयारं । पुणो वि संपत्त-"पभूयतेओ
समागओ रेहइ लोय-मज्झे ।।३३८।। मज्झन्न-संझासमओ त्ति समुहिओ राया, सुदंसणादेवी वि पवेसिया गरूय-विच्छड्डेण अंतेउरं । रन्नो पुन्न-पगरिस-गुणुवित्तणं कुणमाणा जहागयं पडि गया सामंताइणो । राया वि मणिचूडेण समं कयतक्कालोचिय-कायव्वो, संभालिय-करि-तुरगाइ-रज्जंगो स-समयसमणुयत्तिय-पेच्छणगाइ-किच्चो पसुत्तो रयणीए । कमेण जाए पहायसमए समुग्गए गयण-लच्छि-मणिकुंडले तरणि-मंडले, महिवह-निविहमत्थएण पणमिऊण विनत्तं उज्जाणपालेण-देव ! कुसुमसुंदरुज्जाणम्मि समोसढो कुमय-कमल-मउलणिक्क-चंदो निवारण-करुणा-वल्लिकंदो, कंदप्प-दावानल-पलित्त-भुवणवण-निव्ववण-कं दो, अमयनीसंदो, जणिय-जण-मणाणंदो, विमलोहिनाण-नाय-सयल-वत्थुपरिप्फंदो, जीवाणंदो नाम सूरि । तओ राया पारितोसियं तस्स दाऊण पमोयभरापूरिज्जमाण-माणसो, मणिचूडेण सुदंसणादेवीए य समं समत्तसामंत-मंति-परिंगओ गय-कंधराधिरूढो पत्तो कुसुमसुंदरुज्जाणं । दिहो तत्थ तियस-कय-कणय-कमल-निलीणो मुत्तिमंतो व्व समणधम्मो धम्म वागरमाणो मुणीसरो । तिपयाहिणा-पयाणपुव्वं पणमिऊण भयवंतं सेस-साहुणो य निविहो महिवढे ।
तो वागरियं गुरुणा राहावेहोवमाए दुल्लंभं । लद्धण कहं पि हु माणुसत्त-खेत्ताइ-सामग्गिं ||३३१|| पुरिसेणं बुद्धिमया धम्मम्मि समुज्जमो विहेयव्वो । नर-सुर-सिव-सोक्खाणं धम्मो च्चिय कारणं जेण ||३४०।।
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सुमइनाह-चरियं
घण-विरहे जह न जलं जल-विरहे जह न जायए सरसं । तस्विरहे जह न पया धम्मेण विणा तहा न सुहं ||३४१।। मूलं महद्दमरस व पासायरस व दढं पइहाणं । धम्मस्स तस्स मूलं सम्मत्तं कित्तियं समए ||३४२।। अहरीकय-कप्पडुम-चिंतामणि-कामधेणु-माहप्पं । देव-गुरु-तत्त-सद्दहण-लक्खणं बिंति सम्मत्तं ।।३४३।। जिय-राग-दोस-मोहो मयण-महामल्ल-"पेल्लण-समत्थो । सव्व-"जगज्जीव-हिओ अरहं देवो न उण अलो ||३४४|| जे चत्त-सव्व-संगा पंच-महव्वय-भरुव्वहण-धीरा । गय-"रोसमणा समणा ते च्चिय गुरुणो न उण सेसा ||३४५।। पुव्वावराविरुद्धं पमाण-सुपइद्वियं जिणुद्दिडं । जीवाजीवाईयं तत्तं न उणो कुतित्थिमयं ॥३४६।। अहवा निव्वाण-सुहाण साहणं किं पिजं अणहाणं । सुद्धं दाणाईयं तं तत्तं बिंति जगगुरुणो ||३४७।। जं दुक्खियं सयं चिय न होइ दुक्खं परस्स न करेइ । तं दाणमेत्थ सुद्धं न उणो गो-लोहमाईयं ॥३४८।। सव्व-जग-पयडमेयं जं जीव-वहेण होइ अहम-गई । सो वि सुगइ-कामेणं कह कीरइ ? ही महा-मोहो ॥३४१।। धम्मच्छलेण पावस्स कारणं जीव-घाय-संजणगं । नइ-जल-पहाणाई जं मोहस्स वियंभियं तं पि ||३५०।। "धम्मो य दुहा भणिओ जिणेहिं जर-जम्म-मरण-मुक्केहिं । पढमो जईण धम्मो गिहत्थ-धम्मो भवे बीओ ||३५१।। खंताइ-दसपयारो जइ-धम्मो वनिओ जिणिंदेहिं । साहसधणाण सुकरो सुदुक्करो कायराणमिमो ||३५२|| एसो महल्ल-कल्लाण-वल्लि-पल्लवण-अमयरस-सेओ । सग्गापवग्ग-पुर-पह-पत्थिय-जण-सत्थ-सत्थाहो ||३५३|| भीम-भवनव-निवडत-जंतु-संताण-तारण-तरंडो । कम्मदुम-खंड-खंडण-पयंड-धारुक्कड-कुहाडो ||३५४।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पंच य अणुव्वयाई गुणव्वयाइं७२ हवंति तिनेव । सिक्खावयाइं चउरो सावग-धम्मो दुवालसहा ।।३५५।। संकप्पपुव्वयं जं तसाण जीवाण निरवराहाण । दुविह-तिविहेण रक्खणमणुव्वयं बिंति तं पढमं ।।३५६।। जं गो-भू-कन्ना-कूडसक्खि-नासावहार-अलियरस । दविह-तिविहेण वज्जणमणुव्वयं बिंति तं बीयं ।।३५७।। जं चोरंकारकरस्स खत्त-खणणाइणा पर-धणस्स । दुविह-तिविहेण वज्जणमणुव्वयं बिंति तं तइयं ||३५८।। जं निय-निय-भंगेहिं दिव्वाणं माणुसाण तिरियाणं । परदाराणं विरमणमणुव्वयं बेंति तं तुरियं ।।३५१।। दुपय-चउप्पय-धण-धन्न-खेत्त-वत्थ-रुप्प-कणय-कुप्पाण । जं परिमाणं तं पुण अणुव्वयं पंचमं बेंति ||३६०।। दससु दिसासुं जं सयल-सत्त-संताण-ताण-कयमइणो । गमण-परिमाण-करणं गुणव्वयं बेंति तं पढमं ।।३६१|| उवभोगाणं विलयाईयाण भोगाणं भोयणाईणं । जं परिमाण-विहाणं गुणव्वयं बिंति तं बीयं ||३६२।। अवझाण-हिंसदाणाऽसुहो वएसऽप्पसायरूवे जं । विरमणमणत्थदंडे गुणव्वयं बिंति तं तईयं ।।३६३।। जं समणस्स व सावज्जजोग-वज्जणमरत्तदहरस । तं समभाव-सरूवं पढमं सिक्खावयं बिंति ।।३६४|| सव्व-वयाणं संखेव-विरयणं जं दिणे निसाए वा । देसावागसियं तं बीयं सिक्खावयं बिंति ||३६५।। वावारा-55हारा-ऽबंभ-देहसक्वार-चायख्वं जं । पव्वेसु पोसहं तं तइयं सिक्खावयं बिंति ।।३६६ ।। भोयण-वत्थाइहिं साहूणं संविभागकरणं जं । तं अतिहिसंविभागं तुरियं सिक्खावयं चिंति ||३६७।। एत्थ य गिहत्थ-धम्मे वए वए पंच पंच अईयारा | मोक्खत्थमुज्जएणं परिहरियव्वा पयत्तेणं ||३६८।।
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सुमइनाह-चरियं
सव्वविरइरस रूवस्स साहुधम्मस्स जं अवेक्खाए । देसेण एत्थ विरई अओ इमा देसविरइत्ति || ३६ || एसा य साहुधम्म-प्पासायारोहणाऽसमत्थेण । सेवेयव्वा सड्डेण पढम-सोवाण-सारिच्छा ||३७०|| पुव्व - परिकम्मिया चित्तकम्म जोग्गा जहा भवे वित्ती । एयाए कयब्भासो मुणिधम्म-खमो तहा होइ ||३७१|| भणियं च
एसा य देसविरई सेविज्जइ सव्वविरइ - कज्जेण । पायमिमीए परिकम्मियाण ईयरा थिरा होइ ||३७२ || देसविरई - पवनेण विसय - विवसत्तमप्पणो मुणिउं । काव्वो विबुहेणं बहुमाणो समणधम्मम्मि ||३७३|| धन्ना ते च्चिय मुणिणो बालत्ते वि हु पवन्न-सामन्ना । आजम्मं दुव्वहमुब्वहंति जे बंभचेरभरं ||३७४। कइया संविग्गाणं गीयत्थाणं गुरुण पयमूले । कय- सव्व-संग- चाओ चारित-धुरं धरिस्सामि || ३७५ || वज्जिय-कुसमय - कुसुमो जिणमय-मयरंद- पाण- तल्लिच्छो । कइया गुरु- पयकमले छप्पय लीलं विलंबिस्सं ||३७६ || पंचसमिओ तिगुत्तो जिइंदिओ जिय- परीसह कसाओ । ३पवणो व्व अपडिबद्धो कइया सव्वत्थ विहरिस्सं ||३७७।। 'कत्थाऽऽगओ सि ? अज्ज वि सिज्झइ रे मुंड ! वच्च घर-बाहिं । इय धिक्कारिज्जतो कइया भिक्खं भमिस्सामि ||३७८||
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कइया पडिम-पवन्नो थंभो व्व थिरो पलंब - भुयजुयलो । वसह-परिघट्टणं नयर चच्चरे हं सहिस्सामि ||३७९ || इच्चाइ मणोरह - कुसुम-मालियालंकिओ गिहत्थो वि । सुहगो व्व कडक्खिज्जइ कमेण चारित्त - लच्छीए ॥३८०|| इच्चाइ धम्म- कहं कुणमाणी मुणिंदो पुट्ठो नरिंदेण - भयवं ! सुदंसणा देवी केण सुन्नाऽरख्न्ने पक्खित्ता ? किं वा विरोह - कारणं तस्स ? | गुरुणा भणियं सोम ! सुण ॥
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं
पाठांतर : १. भूभागाए ल. ।। २. चेय रा. दे. ३. लज्जावसेण नूणं दे. पा. ।। ४. चय सुयण ! खेय० दे. पा. ५. दिसवलयं दे. पा. ।। ६. काउसग्गं ल. रा. ॥ ७. व्याण भवंति ल. रा. ।। ८. मेऽणुग्गहं दे. पा. ।। 9. भयत्तसंताण दे. पा. || १०. ०परमिहि० दे. पा. ॥ ११. जीवा खुद्दो० ल. रा. || १२. रायसुयाए पा. ॥ १३. जं बाला सहस ल. रा. || १४. तिहुयणिसिरि समप्पियं व दे. पा. ।। १५. रंबधुवियंवर० दे. पा. १६. oफुल्लंधयाराव ल. रा. ।। १७. पिसंडि० दे. पा. || १८. सयललोयणा० दे. पा. ॥ ११. मुवागए दे. पा. || २०. तरइ ल. रा. ॥ २१. ०वयणयं, पलो० दे. पा. ॥ २२. मणसुमरिउं ल. रा. || २३. अन्नदिणे पडिहारी तीए निवेयण पट्टविया । ल. रा. ॥ २४. मइच्छि रा. ।। २५. पेक्खिउं पा. ॥ २६. न इमो अज० दे. पा. || २७. गुरुयाणु० दे. पा. || २८. भागचुक्का दे. पा. २१. इओ वि० ल. रा. || ३०. इत्थ ल. रा. !! ३१. विज्जमाणा ल. || ३२. उप्पाईऊण ल. || ३३. पलोएऊण ल. रा. ॥ ३४. ०सवणमित्तेण ल. रा. ॥ ३५. सव्रीडिता ल. || ३६. इत्तियं ल. रा. ।। ३७. सुकओदएण दे. पा. रा. ।। ३८. संपयं ल. ।। ३१. तलमागओ दे. पा. ॥ ४0. पवत्तो दे. पा. ॥ ४१. गवेसिउं दे. पा. ॥ ४२. विसेण को ल. रा. ॥ ४३. पिच्छह ल. रा. ।। ४४. पिच्छंति दे. पा. ॥ ४५. किमेत्तिएण दे. पा. || ४६. निवारणं ल. रा. ॥ ४७. ०मित्त० ल. रा. ॥ ४८. नीहरिओ ला. ॥ ४१. रामारूढो दे. पा. || ५०. ०सीहासणे दे. पा. || ५१. महापहाणाइ ल. रा. ।। ५२. अवहडा ल. रा. ।। ५३. निहण ल. रा. ।। ५४. गुणगु० ल. रा. ।। ५५. oहि समं समा० दे. पा. ॥ ५६. गोयर गया दे. पा. ॥ ५७. तओ ए० दे. पा. ॥ ५८. सुच्चा दे. पा. || ५१. ०धयवडघाएहि रा. || ६०. सिंहासणे दे. पा. || ६१. विसप्पमाणरसेण से0 ल. रा. ।। ६२. तीइ ल. रा. ॥ ६३. जणा सेसा दे. रा. ॥ ६४.
रुस पुव्वलसिएण ल. रा. ॥ ६५. ०पहूयतेओ दे. पा. ।। ६६. 0 पेल्लण० दे. पा. ॥ ६७. ०जगजीवहिअओ ल. ।। ६८. गयरागरोससमणा रा. पा. ॥ ६१. धम्मो खलु दुहा ल. । ७०. कम्मदुम-संड-विहंडणेक्क-धारुक्कड-कुठारो ल. रा. ।। ७१. ००वयाइं च हुति तिब्लेव । ल. रा. ॥ ७२. -खेत्त-घर-रुप्प- ल. रा. ।। ७३. ०णो व्वडप्पडि० रा. ।।
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चउत्थो पत्थावो
इह जंबुदीव-भरहे मज्झिम-खंडम्मि कुसउरं नयरं । जत्थ रणो सद्दो च्चिय मयणो च्चिय वुच्चए मारो ||३८१।। तत्थ जिण-चलण-भत्तो वर-सत्तो साहु-सेवणासत्तो । नीसेस-दोस-चत्तो दत्तो नामेण आसि वणी ।।३८२।। तस्स य भज्जा पउम त्ति बाल-वालंकि-वाल-कडिल-मणा । सो तीए सह विसए सेवंतो गमइ दियहाइं ।।३८३|| तीए न अत्थि पुत्तो दुम्मइ हिययम्मि तेण सो दत्तो । तत्तो मायंदिपुरी-वत्थव्वय-माणिभद्दस्स ||३८४|| धूयं निरूवम-रूवेण तिलयभूयं समत्त-रमणीणं । जिण-धम्म-वासिय-मणं भई नामेण परिणेइ ।।३८५।। सा विसय-वासणा-संगया वि विसएसु न दढमणुरत्ता | परलोय-तत्ति-वज्जिय-मणा वि परलोय-तत्ति-परा ।।३८६।। कालेण समुप्पल्लो भद्दाए सयल-गुण-जुओ पुत्तो । तह वि पउमाइ पणयं बहुययरं दसए दत्तो ||३८७|| सा उण अतित्त-चित्ता भद्दाए उवरि मच्छरं वहइ । सित्ता वि हु दुद्वेणं कडुय च्चिय तुंबिणी जम्हा ||३८८।। सुभगो त्ति वहइ गव्वं एक्वो च्चिय मच्छरो जए सयले । हिययाओ खणं पि न जो ओसरइ समग्ग-रमणीणं ||३८ ।। चिंतेइ इमं पउमा संपइ मह देइ पिययमो माणं । सुय-जणणि त्ति पमाणं कमेण होही तह वि भद्दा ||३१०।। ता जह न होइ एसा पमाणभूया तहा करिस्सामि । तत्तो कवडपहाणा रहसि परिव्वाईया तीए ||३११।। सम्माण-दाण-पुव्वं भणिया भयवई ! इमं उवाएण । मह 'हियय-सल्ल-तुल्लं घराओ निस्सारसु सवत्तिं ||३१२।। तीए वि हु पडिवल्नं तव्वयणं दव्व-लोह-विवसाए । अविवेक-विहुर-हियया किमकज्जं जं न कुव्वंति ? ||३१३||
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७०
अह दत्तस्सुप्पन्नो दाहजरी पुव्व-कम्म- दोसेण । न नियत्तए कहं पि हु सयण गणो आउलीहुओ ||३१४|| पव्वाइयाइ पासे पुच्छइ किं-संभवो इमस्स जरो ? |
कह वा नियत्तिही ? कहसु भयवइ ! अणुग्गहं काउं ||३१५ ।। सा वि हु पवंच - निउणा परमक्खर सुमरणं च काऊण । जंपइ न रूसियव्वं सव्वमिणं देवया कहइ ||३१६||
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
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एयरस लहुय-भज्जा पर पुरिस-पसंग - लालसा - लुद्धा । निदम्मा कवडपरा निक्करुणा चिंतए एवं ||३१७ ||
सच्छंदमणिच्छिय- सुक्ख - विग्घभूयं हणामि' दत्तमिणं । सुय-जणणि त्ति अहं चिय पच्छा घर - सामिणी होहं ॥ ३१८|| निस्सारिडं सवत्तिं भुंजिस्सं हियय-वंछिए भोए । तत्तो कत्तो वि इमीइ सिक्खिऊणं कयं जंतं ||३९९|| तव्वसओ दुव्विसहा जाया एयस्स दाहजर - पीडा । जइ पत्तियह न एयं तत्तो दंसेमि पच्चवखं ||४००|| 'पव्वाइयाइ नीसेस - कवड - कुसलाइ चुल्लि - पासम्मि । सयमेव पुव्व-निक्खयमुक्खणिउं दंसियं जंतं ||४०१|| सयणेहिं इमा भणिया भयवइ ! पउणं करेसु दत्तमिणं । पव्वाइयाए* वुत्तं जं तुब्भे भणह तं काहं ||४०२ || नवरं एसा भद्दा वसइ घरे जाव ताव न हु दत्तो । पउण- सरीरो होही ता निस्सारह इमं सिग्घं ||४०३ || तो पावे ! पइघाइणि ! मा दंससु नियय- वयणमुज्झ घरं । झ्य गरहिऊण बहुसो सयणेहिं घराओ निच्छूढा ||४०४|| पत्ता पुरस्स बाहिं बाह-जलाउलिय- लोयणा भद्दा । पइ - पुत्त-विरह- हुयवह - जालावलि - डज्झमाण मा ||४०५ || जीव ! तए इह - जम्मे तहाविहं किं पि दुक्कयं न कयं ॥ निक्कारणं च कस्सइ न को वि उप्पायए दुक्ख ||४०६ | ता पुव्व-भवारोविय- दुक्कम्म- दुमरस फलमिणं नूणं । एवं विचिंतयंती जा चिट्ठइ चूय-तरु- मूले ॥ ४०७॥
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सुमहनाह-चरियं
दिट्ठा 'मायंदी - पत्थिएण धणधम्म-सत्थवाहेण । महुर- वयणेहिं पुट्ठा का सि तुमं कत्थ वा चलिया ? || ४०८ रोयंतीए तीए वुत्तं पडिकूल - विहि-निओगेण । चलिया "वणिय - सुया हं 'मायंदिपुरीइ पिउ-पासे ||४०|| बहिणि त्ति तेण पडिवज्जिऊण भणिया तुमं पराणेमि । खेमेण तत्थ तत्तो तेण समं पत्थिया भद्दा ||४१०|| अह अडवीए मज्झे निसाइ आवासियरस सत्थस्स । सुत्ता पयाण - समए गिलिया भद्दा 'अयगरेण ||४११|| एयं अपिच्छमाणो सत्थवई आउलत्तणं पत्तो ।
जा सव्वत्थ गवेसइ " अयगर - मग्गं तओ नियइ ||४१२|| वच्चंतो तम्मग्गेण पेच्छए "अयगरं गरुय - कायं । आणइ लेहुणा तं सो भद्दं झत्ति उग्गिरइ ||४१३|| जीवंतिं तं घेत्तुं मिलिओ सत्थरस अग्गओ जाइ । बीय- रयणीए" सत्थे जणस्स निद्दा - पवन्नस्स ||४१४|| हण हण हणत्ति भणिरा पडिया पहरण भयंकरा चोरा । तेहि समं सत्थवई सपरियरो जुज्झिउं लग्गो ||४१५ || घाएहिं "पाडिओ सो बद्धो सत्थो य लूडिओ सव्वो । गहिया अणेहिं भद्दा नेऊण समप्पिया पहुणी ||४१६|| तं दहुं सो तुट्ठो चिंतइ चित्तेण अणंग - विहुरंगो | रइ-रंभप्पमुहाओ वहंति दासित्तणमिमी ||४१७|| भद्दाए मणहरणत्तणेण मयणस्स दुज्जयत्तणओ । अमुणिय- कज्ज - विवागेण चोर-नाहेण सा भणिया ||४१८ || सुंदरि ! पसीय पसयच्छि ! पेच्छ मं पेम्म- पुण्ण नयणेहिं । पडिवज्जसु मं दईय-सुखं विलससु सुरवहु व्व ||४१९|| मह भूय-पंजर - गया सेवंती विसय सुक्खमवखंडं । मा बीह कयंताओ वि किं पुण सामन्न- मणुयाओ ? ||४२०|| चिंतइ मणम्मि भद्दा मुत्ताहल - थूल - बाह-बिंदूहिं । सोयानल - पज्जलियं निय-हिययं निव्ववंति व्व || ४२१||
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હર
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं हा ! दिव्व दुह ! तुमए अलिय-कलंको सको वि मे दिलो । निवासिया घराओ जत्तो धिक्कार-पुव्वमहं ||४२२|| पत्ता पइ-पुत्ताणं विओगमडवीइ अयगरग्गसणं । धणधम्मस्स य पडिवन्न-भाउणो बंधणाइ दुहं ||४२३|| अज्ज वि तुमं न तित्तो मह दसहं दक्खमित्तियं दाउं । सील-रयणं पि अवहरिउमिच्छसे तं पुण न जुत्तं ||४२४|| अवहरसु वरं जीयं महंत-संताव-कुलहरं मज्ा । रक्खेसु सील-रयणं दोगच्च-विणासणं एक्वं ॥४२५।। जओआणं ताण कुणंति जोडिय-करा दास व्व सव्वे सुरा,
मायंगाऽहि-जलऽग्गि-सीह-पमुहा वटुंति ताणं वसे । होज्जा ताण कुओ वि नो परिभवो सग्गाप"वग्गस्सिरी,
ताणं पाणितलं "उवेइ विमलं सीलं न लंपंति जे ॥४२६।। इय चिंतंती बाला विसन्न-चित्ता न देइ पडिवयणं । चोराहिवेण तत्तो समप्पिया नियय-जणणीए ||४२७।। भणिया अणेण जणणी पसाइयव्वा तहा इमा अंब ! । पडिवज्जए जहा मं दढाणुराएण हरिणच्छी ।।४२८|| तीए वि इमा भणिया भद्दे ! पत्तासि भत्तुणा विरहं । एत्थंतरम्मि छीयं केण वि तो चिंतियमिमीए ||४२१।। नूणं न मज्झ विरहो पइणा होहि त्ति तो सउण-गंठी । वत्थंचलम्मि “बद्धा भद्दाए विहिय-हरिसाए ।।४३०।। ता संपइ पडिवज्जसु भत्तारं मज्झ नंदणं एयं । एयम्मि" अणुकूले समग्ग-सुह-भायणं होसि ||४३१।। एयम्मि उ पडिकूले निरप्पणो पाण-संसओ तुज्झ । एवं पन्नविया वि हु न जाव पडिवज्जए किं पि ||४३२|| तावागओ कसमुप्पाडिऊण हंतुमुज्जओ चोरवई जाव कसप्पहारं न देइ ताव अहासन्निहियाए गुण-पक्खवाइणीए देवयाए मुच्छा..निमीलियच्छो पाडिओ धस त्ति २०धरणियले । आउलीहूया तज्जणणी, विसनो परियणो, कया सिसिरोवयारा, न जाओ को वि विसेसो, ठिओ कटं व निच्चिहो सो, उहिया गयणंगणे वाणी- जइ इमीए महासईए
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सुमइनाह-चरियं
७३ चलण-पक्खालण-जलेण सिच्चइ इमो ता पवज्जए चेयनं, अन्नहा मरइ त्ति । तज्जणणीए पक्खालिया भद्दाए चलणा, सित्तो तेण जलेण नंदणो, उम्मीलिय-लोयणो पवनो चेयन्नं ! जणणीए कहिय-वुत्तंतो भद्दाए चलणेसु लग्गिऊण जंपिउं पवत्तो
खमसु महासइ ! एक्वं अवराहं मजा दीण-वयणस्स । दिहो तुज्झ पभावो पुणो वि एवं न काहामि ||४३३||
अओ परं मे तुम भइणी ता कहसु किं करेमि ? | तीए वुत्तंपडिवन्न-बंधुणो सत्थवाहस्स मं अप्पेसु । विगय-बंधणो आणिओ सत्थवाहो, भणिओ चोरवइणा- जहा इमा ते बहिणी तहा ममावि । कहिओ निय-वुतंतो । ता गिण्हह इमं महासई निय-विहवं च । सम्माणिऊण विसज्जिओ सो, चलिओ भद्दा-समेओ । __ इओ य जाओ पउण-सरीरो दत्तो | पुढो अणेण परियणो– कहिं भद्द ? त्ति । पव्वाइया-वुत्तंत-कहण-पुव्वं कहियं तेण निव्वासिय त्ति । अणेण वुत्तं- अजुत्तं कयं । जओ
अमयाओ वि होज्ज विसं जलण-कणे ससहरो वि मिल्हेज्ज। तीए महासईए दुच्चरियमिणं न संभवइ ||४३४||
एत्थंतरे डक्का उक्वड-विसेण सप्पेण पउमा मुक्ला जीविएण । . संजाय-पच्छायावाए पव्वाइयाए वुत्तो दत्तो
"पावु अपावह माणुसह जो चिंतेइ दुरप्पु । इह लोइ वि तं तसु पडइ जिंव तुह भज्जह सप्पु" ||४३५।।
दत्तण भणियं- कहमेयं ति ? | कहिओ तीए जहडिओ सव्ववुत्तंतो | 'भई घेत्तूण गेहे पविसामि' त्ति कयपइब्नो निग्गओ दत्तो । मिलिओ धणधम्मस्स । तेणावि "अयगर-चोराहिव-वुत्तंत-कहण-पुव्वं महासइ ति पसंसिऊण समप्पिया भद्दा । चेत्तूण तं पत्तो दत्तो कुसउरं, दोवि सविसेस-धम्मपराणि परिपालिऊण जीवियं पज्जंते समाहिणा कालं काऊण सोहम्म-देवलोए देवत्तं पत्ताणि ।
__तत्तो चूओ समाणो दत्त-जीवो महाराय । तुमं समुप्पन्नो । भद्दाजीवो पूण सुदंसणादेवी जाया । जा उण पउमा सा अदृज्झाणोवगया मरिऊण समुप्पन्ना नाणाविहासु हीण-तिरिक्ख-जोणीसु । तत्थ वि
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
तितिक्खिऊण तिक्ख- दुक्ख - लक्खाइं कह वि पत्ता सालूराभिहाणग्गामे दालिद्दोवद्दुयस्स दाणाभिहाणस्स कुडुंबिणो मंदिरे दोहग्ग- कलुसियमित्थीभावं, जोव्वणारूढा परिणीय मित्ता चेव परिचत्ता भत्तुणा, "वेरग्गोवगया पवन्ना तावसी-वयं, काऊण कट्ठाणुद्वाणं मया समाणी समुपपन्ना खुद्दवंतरी, सरोवरासन्न -रन्न -प्पएसे सुदंसणं देविं दहूण कीलमाण संजाओ तीए पुव्वभवब्भासवसेण मच्छरो । तओ उक्खिविऊण पक्खित्ता तीए भीमाडवीए देवी | महाराय ! तुमं पि तुरंगमेण अवहराविऊण नीओ पउमसरासन्नं रन्नं २४ । निरुवमंगचं गत्तणगुणावलीयण- परव्वसाए विसय- सुह - सेवणत्थं च पत्थिओ तुमं, न पडिवन्नं तए तव्वयणं । ता महाराय ! धन्नो तुमं जस्सेरिसी परिस्थिपत्थणा परम्मुहा सेमुही ।
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एएण कारणेणं भूय- पिसायाइ-वंतर - गणेण । खुद्देण वि विद्दविडं न सक्किओ तुममरन्नम्मि ||४३६||
किं च विसेस - महब्भुदय-लाभ -संजाय-चित्त-संतोसो | रज्ज -परिब्भट्ठो वि हु पुणो वि पत्तो सि रज्जसिरिं ||४३७|| देवी सुदंसणा विहु सलाहणिज्जा न कस्स जियलोए ? | जीए तणं व गणिओ पत्थितो पत्थिवो सीहो ||४३८|| जं पालियमकलंकं सीलं सयलोवसग्ग-निग्गहणं । ते इमीए जाया मणवंछिय-"सोक्ख - संपत्ती ||४३१|| इय एकस्स वि सीलव्वयस्स मुणिउं अणप्प-माहप्पं । सेस - वसु वि जत्तो कायव्वो कुसल कामे ||४४० अह पुव्व-भवं सोउं दोहिं वि संजाय - जाइसरणेहिं । सिरि- विजयसेण-रन्ना देवीए सुदंसणाए य ||४४१|| भणियं भयवं ! तुब्भेहिं अक्खियं जं इमं तयं सच्चं । कर-कमल- कलिय-मुत्ताहलं व जायं पयमहं ||४४२ || एत्थंतरम्मि भणियं संविग्गमणेण अवसरं लहिउं । मणिचूड - खेयरेणं भयवं ! न विरुद्ध - वित्तीए ||४४३ || वहियपुव्वा एसा पुव्व-भवम्मि वि सुदंसणादेवी । एइए वंतरीए तो से अनिमित्तओ कोवो ||४४४||
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सुमइनाह-चरियं
तरस वि इमो विवागो जे उण अम्हारिसा विसय-गिद्धा | विप्पिय-करणेण परस्स कोवमुप्पाययंति सया ।।४४५।। ताण गई का होहि त्ति जइ परमिणं मुणंति मुणिनाहा । ता भीम-भव-समुब्भव-विडंबणा-वुन्न-हिययस्स ||४४६।। पहु ! तुम्ह चलण-जुयलं मुत्तुं अन्नं न अस्थि सरणं मे । तो अत्थि जोग्गया जइ भयवं ! ता देहि मह दिक्खं ॥४४७।। तो दिक्खिओ गुरुहिं मणिचूडो भव-विरत्त-चित्तो सो । गरहंतो गुरु-सक्खं पुणो पुणो नियय-दुच्चरियं ॥४४८।। अह विजयसेण-राएण जंपियं गुरुय-कम्मणो अम्हे । अज्ज वि संसार-महनवम्मि भमियव्वमम्हेहिं ||४४१|| गुरुणो तरंड-तुल्ले लब्धं जाणंतया वि जिण-धम्मं । विसय-परव्वस-हियया न संजमं जे पवज्जामो ||४५0|| एसो उण मणिचूडो धन्नो कयउन्नओ महासत्तो । तुम्ह पयकमल-मूले पडिवन्ना जेण जिण-दिक्खा ।।४५१|| भयवं ! अम्ह वि वियरसु सावग-धम्मं अणुग्गहं काउं । तो गुरुणा नरवइणो देवीए सुदंसणाए य ।।४५२।। आरोवियं जिणागम-विहिणा सम्मत्तमुत्तमं पढमं । सावय-वयाई बारस पच्छा दोण्हं पि दिब्लाइं ।।४५३।। तो नमिऊण मुणिंदं राया संजाय-तिजय-रज्जो व्व । कयकिच्चं अप्पाणं मन्नतो निय-गिहं पत्तो ||४५४|| ठाणे ठाणे जिण-मंदिराई कंचणमयाइं कारंतो । तेसु ठवंतो मणि-निम्मियाओ सम्वन्नु-पडिमाओ ||४५५।। ताणं पुण कुणमाणो तिसंझमहप्पयार-पूयाओ । सव्वत्थ वित्थरंतो जिण-रहजत्ताओ जत्तेण ।।४५६।। सेवंतो मुणि-निवहं तयंतिए जिण-मयं निसामंतो । सामाइयमणुदियहं गेण्हतो पोसहं पव्वे ||४५७।। इय जिण-धम्मं राया करेइ बाढं तमेव देवी वि । जम्हा कुलंगणाओ पइ-मग्गं चेव सेवंति ।।४५८।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं एत्तो य समागओ "सरय-कालो विरह-वेगु व्व जो भूरि सासावहो, ख्ववंतो व्व सोहंत-निम्मल-नहो, पुन्न-पुंजो व्व वढत-कमलोदओ, कमल-संडो व्व सव्वत्थ-सच्छप्पओ ।
जहिं पक्व निरंतर सालिखेत्ता, ढिक्वंति चउद्दिसि वसह दित्ता । सत्तच्छय-परिमल-वाउलाइं, वियरंति वणंतरि अलिउलाई ।।४५।। गोवीयण दिति पहिह रास, दीसंति दिसासु सहास कास । दीवूसव-इंदमहाइ पवर मह, महिइं इंति कय-हरिस-पसर ||४६०।। नं चंडकिरण-किरणोह-तत्त सरवर धरंति सयवत्त-छत्त । धवलऽब्भ कहति जणस्स एउ, निय-रिद्धिहिं दाणु विसुद्धि देउ ||४६१|| संपत्त-अहिय-जुण्हा-पवाहु, निव्ववइ महीयलु रयणिनाहु । जो अहव होइ विमलस्सहावु, सो कुणइ न नूण परोवयावु ||४६२|| मयमत्त वणंतरि तरुण दंति, भंजंत महद्दुम संचरंति । मलिणाहं रिद्धि अहवा अवस्सु, संपज्जइ दुह-कारणु परस्सु ||४६३।। लद्धं गुरु-वित्थारं पत्ताओ तणुत्तणं गिरिनईओ । महिहर-समुब्भवाणं रिद्धीण कहंति अथिरतं ॥४६४।। कलुसं ति जं न पीयं पच्छा सच्छं जणेण पिज्जतं । तं पि जलं कहइ इमं सव्वो सच्छो पिओ होइ ||४६५।। वासासु आसि हरिसो सिहीण हंसाण संपयं जाओ । • सासूए के वि दिणा के वि वहूए इमं सच्चं ।।४६६|| तडिगुण-तंती-परिगय-सुरिंदधणु-पिंजणेण नह-भवणे । धवलब्भ-रूय-पडलं सरय-सिरी पिंजइ व्व दढं ||४६७।।
तम्मि सरय-काले आगंतूण अत्थाण- मंडवे निसन्नो विनत्तो विजयसेण-राओ “उज्जाणपालेण । जहा
वर-सरि-पुलिण-नियंब-बिंब पंकय-वयण,
सारस-मिहण वणथलि हंसावलि-दसण । सरय-सिरी तुह नरवर ! दंसणमभिलसइ,
पइ अनियंत-समीरिण दीहं नीससइ ।।४६८।। ता गंतुं उज्जाणे एसा निय-दसणामयरसेण । "आसासियउ वराई जा अज्ज वि नो अइक्वमइ ।।४६१।।
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सुमइनाह-चरियं
एयं सोऊण रख्ना नायं, जहा— संपयं पयट्टो सरय-समओ त्ति । तओ आणत्तो नयरलोओ जहा- उज्जाणजत्ता कायव्व त्ति । सयं च संचलिओ गुरु-विभूईए । तं जहा
सुरवहु-समाण-कामिणि-कर-चालिय-चारु-चामर-समूहो । धरिय-धवलायवत्तो मयंध-गंधगय-खंधगओ ||४७०।। कणयमय-चलिय-रहचक्क-घणघणाराव-रुद्ध-दिसियक्वो । वियरंत-मत्त-मयगल-मयजल-संसित्त-महिवीढो ||४७१।। नाणाविह-सत्थ-विहत्थ-हत्थ-पाइक्व-चक्क-परियरिओ । हय-लक्ख-खुरुक्खय-खोणि-रेणु-नियरेण रुद्ध-नहो ॥४७२।। इय चउरंग-बलेणं अवरोहेणं च परिगओ राया । सविलासं वच्चंतो पत्तो कुसुमागरुज्जाणं ||४७३|| जत्थ-- गायंति व्व तरुवरा राय-समागमण-जाय-गुरु-तोसा । मयरंद-पाण-परवस-भमंत-भमरावलि-रवेण ||४७४|| नच्चंति व्व समीरण-हल्लंत-महल्ल-पल्लव-करेहिं । पहसंति व्व विसदंत-धवल-केयइ-तरु-दलेहिं ॥४७५।। जंबीरंब-कयंब-जंबु-कयली-कप्पूर-पूगीफला,
खज्जूरऽज्जुण-सज्ज-मल्लइ-समी-नग्गोह-सोहंजणा । कक्कोली-कुवली-लवंग-लवली-नोमालिया-मालई
सग्गाऽसोय-तमाल-ताल-तिलया रेहति निदा दुमा ||४७६।। तत्थ एवंविहम्मि उज्जाणे सन्निहियाए सुदंसणादेवीए "विजयसेणो गओ अणिमिसाए दिहीए पिच्छमाणो वणलच्छिं कोउगऽक्खित्त-परियणदेसिज्जमाण-मग्गो सायरं पसीय देव ! पिच्छ, इओ विरायंति पफुल्ल-कमलसंड-मंडियाइं सच्छ-सलिल-संपुन्लाई महासरोवराई, इओ कीलंति सहरिस-सहयरी-समप्पिज्जमाण-मुणालदलाई हंस-जुयलाइं, इओ संचरंति कुरुल-सद्द-संदीविज्जमाण-माणिणी-मयण-पसराई सारस-मिहुणाई, इओ सेविज्जति कुसुमगंध-लुद्ध-फुल्लंधय-धोरणीहिं सत्तच्छय-वणाइं, इओ कवलिज्जंति कीर-उलेण विउल-नियंब-भरमंथरंगीणं तुंग-थोर-थणमंडलामिलंत-करतल-तालाणं तरलतरच्छं
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं पेच्छिरीणं पि पामरीणं सालिमंजरीओ, इओ गिज्जंति सालिखेत्तसंरक्खणुज्जय- गोवीजणेण निच्च-निच्चलासन्न - कुरंगकुल- सुव्वमाणाइं महाराय - चरियाई । एवं कंचुइणा निदंसिज्जमाण-सरयलच्छि-विच्छड्डो विविह- काणणंतरेसु वियरइ सहरिसं राया ताव सुदंसणादेवीए दिट्ठा विसिह ने वच्छ-विच्छाईकया सेस - रमणी - गणा रमणीयत्तणतिणीकयाऽणंगघरणि-रूवाहिं समवयाहिं भिन्न-भिन्न-नरविमाणारूढाहिं अणुगम्ममाणा रायहंसि व्व कलहंसियाहिं, चंदलेह व्व ताराहिं, कप्पलय व्व चंपय-लयाहिं, नरविमाणगया महया रिद्धि-समुदएण पवर - महिला । विम्हयवसुप्फुल्ल-लोयणाए अणाए पुट्ठो कंचुई- भद्द ! का एसा सीय व्व महानईणं, चिंतामणि व्व मणीणं, सद्दविज्ज व्व सेस-विज्जाणं, " सहयार - मंजरि व्व सेस तरु-मंजरीणं, मालइ व्व कुसुमजाईणं, धम्मकह व्व कहाणं, अब्भमु व्व करिणीणं, अवर - रमणीणं रूवसोहग्ग-सोहा - गव्वमवहरंती पुरओ परिसक्कइ ? । काओ वा इमाओ निरग्गल - निसग्ग-सोहग्गाओ इमीए अणुमग्ग- लग्गाओ वियरंति ? ति ।
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I
तेण वुत्तं— 'देवि ! अत्थि एत्थ - वत्थव्वओ परमत्थ- संपायण४समारद्ध - रित्थव्वओ, बंधव-कमल- दिवायरो, गरुय-गुण-रयणसायरी, समग्ग-मग्गण - सिहंडि - मंडल - मणुल्लास - वारिवाहो नंदिसेणो नाम सत्थवाहो । तरसेसा विणिद्दारविंद- सुंदर - वयणा, लीलुप्पल-दलनयणा, निय- दंसणामय- समुज्जीविय - मयणा, महग्घ - रयणालंकारकिरण - करंबिय - गयणा, इयर - विलया - विलक्खणा सलक्खणा पणइणी । तीए य सिणेह - सब्भाव - गब्भं भत्तुणा समं विसयसुहं सेवमाणीए सुरकुमाराणुगारिणी, सयल-कलाकलाव - कोसल्लधारिणो जाया दुवे जण - मणाणंदणा नंदणा । तेहिं च परिणीयाओ चत्तारि चत्तारि समाणकुल - सीलसालिणीओ, गुरुयण-चलण- -तामरसालिणीओ, सयल - जियलोय- लोयणच्छरियभूयाओ वणिय-धूयाओ ।'
इय कंचुइणा कहियं सोऊण इमं सुदंसणा देवी । वाहजल - भरिय - नयणा ससोग-वयणा विसन्न-मणा ||४७७ || अइ-गुरु- निरवच्चत्तण- कलंक - दुसिय-तणू तणप्पायं । अप्पाणं पिच्छंती" जंपिउमेवं समादत्ता ||४७८||
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सुमइनाह-चरियं
धन्नाओ कयत्थाओ महिलाओ ताओ जीवलोयम्मि | ताणं चेय" सुलद्धं नूणं माणुस्सर्य जम्मं ||४७९ || निय - कुच्छि - पसूयाइं समम्मणुल्लावगाई डिभाई । थण - दुद्ध - लुद्धयाइं लुलंति वच्छत्थले जाण ॥४८०॥ -- कोमलेहिं करेहिं घेत्तूण ताणि धन्नाओ । ठविऊण निय- उच्छंगे चुंबंति मुहं अवच्चाणं ||४८१||
नव-कमल
एक्का अहं अहन्ना विलक्खणा निग्गुणा अकयपुन्ना ।
एगस्स वि नो जीए जायरस पलोइयं वयणं || ४८२|| जओ
३७
लोयम्मि लहइ सोहं पुत्तवई जारिसं कुरुवा वि 1 लक्खंसेण वि कत्तो निरवच्चा तं सुरूवा वि ||४८३ || सोहग्गमुदग्गं रूवमणुवमं सुंदरी य सिंगारो । सुय वज्जियाण सव्वं पि निप्फलं कास - कुसुमं व ||४८४|| विविह-मणि - कणय - भूसण- जुया वि जुवई विणा अवच्चेण | न विराय वल्लिर - पल्लवा वि वल्लि व्व फलहीणा ||४८५|| विसयाण विसद्दुम- सन्निहाण अमओवमं फलं “इक्कं । जं गुण- रयण-निहाणस्स होइ तणयस्स संपत्ती ||४८६ ।। एवं अवच्च विसयं खेयं काउं सुदंसणादेवी । "सयमवि विवेय-मग्गे संठविउं कहवि निय-चित्तं ॥ ४८७|| भणिउं पुणो पयट्टा धिद्धी मे मंतियं इमं सव्वं । पेच्छह मह केरिसयं भवाभिनंदित्तणं जायं ||४८८||
. जाणिय- जिण-वयणाए विही- महामोह विलसियं मज्झ । अहह अविवेयवसओ पम्हुडमिणं मए सव्वं ||४८९ || जहापरलोए जीवाणं पुत्तेहिं न होइ कोइ साहारो । निय
य-सुकय- दुक्कयाइं जम्हा भुंजंति तत्थ गया ||४०|| दो गच्च - ४० गत्त - पडिओ "सयंकय-कुकम्म - पेल्लिओ संतो । नित्थारिज्जइ जीवो न कोई पुत्तेहिं परलो ||४९१|| इह - लोए वि सुएहिं न तारिसी को वि होइ पडियारो । संतेहिं सुएहिं जओ कम्मवसा दुत्थिया के वि ||४१२ ||
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के वि पुणो पुन्नवसा अवच्च-विरहे वि सुत्थिया हुंति । कूडाभिमाण- नडिओ सुय कज्जे खिज्जए मूढो ||४१३|| सोऊण सव्वमेयं विचिंतियं विजयसेण-राएण || उचियमणं देवीए अवच्च विसयम्मि जं खेओ ||४९४ || जओ
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
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निक्कवड - विक्कमे पुव्व-पुरिस- वंसप्परोह- मूलसमे । वेरि-कुल-कमल-मउलण- चंदे गुण- गण - कयाणंदे ||४९५ ।। पुत्तम्मि समारोविय - रज्जभरा धम्म- मग्ग- पडिवन्ना । इह परभवे य पावंती निव्वुई के वि कयपुन्ना ||४१६||
इमं च दुल्लहं जओ, मम एत्तिय काले वि पउरासु वि पणइणीसु न एक्कस्स वि कुलालंकरणस्स पुत्तस्स संपत्ती जाया । ता अच्छउ सेसं । ४३ एवं चिहिए किं करेमि ? कं समाराहेमि ? कत्थ वच्चामि ? कस्स साहेमि ? को वा उवाओ ? ति खणं किंकायव्वयावमूढ- माणसो होऊण तक्कालमेव अंगीकय-सत्तभावो परिभाविउं पवत्तो— परलोय-पवन्नाणं जइ वि सुएहिं न होइ साहारी ।
जम्हा मयाण उवरिं गओ वि न गओ दुहं कुणइ ||४९७|
" तहवि हु पुव्व - नराहिव-संताणुच्छेय- दुक्खमक्खिवइ । मज्झ मणो पुव्व-नरिंद- रक्खियं खोणि-वलयं व ||४१८ ||
एत्थंतरे तरणि-मंडलमत्थगिरि-मत्थयत्थमालोईउण समागओ सभवणं राया । अणप्पसुओवाय-वियप्प-कप्पणा - परिगय-मणस्स रन्नो वोलीणा रयणी, जायाइं सिहंडि कारंडव - चउर चक्क - कीर-कुलकोलाहलाउलाई दिसामुहाई, वियलंत - पहापसरो विच्छाईभूओ तारयानियरो, पसरिया सिंदूर- पूर सच्छहा सूर-सारहि पहा, पहयाइं माणिणीमाण - ४" निम्महणसूराइं पहाय मंगलतूराई । समुग्गओ कमेण कमलवणनिद्दलण - पब्बल - पहा-पसरो दिणयरो |
1
४७ तो उद्विऊण राया रयण-विणिम्मविय-वासभवणाओ ।
- पाभाइय- किच्चो, पहाण- परियण- परिक्खित्ती ||४११|| अत्थाण - मंडव-तलं गंतूण अणेग- मणिगणाइन्ने । सूरो व्व पुव्व-पव्वय सिहरे सिहासणम्मि ठिओ ||५०० ||
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सुमइनाह-चरियं
तत्तो ठियाओ चामरकराओ तरुणीओ उभय-पासेसु । सामंत-मंति- सुहडा निय-निय-ठाणेसु उवविट्ठा ||५०१ || तो विउल - पाहुडाइं पडिच्छमाणो पहाण - राईणं । कय-रज्ज - कज्ज-चिंतो राया ठाऊण खणमेक्कं ||५०२|| तत्तो विसज्जियाखिल-सेणावइ-सत्थवाह - सामन्तो । कइवय- पहाणलोएण परिवुडो रहसि विणिविट्ठो ||५०३ || पुव्वत्तं वृत्तंतं मइसायर - पमुह मंति-वग्गस्स । सव्वं पि संसिऊणं पुच्छिउमेवं समारद्धो ||५०४ ||
भो मंतिणी ! सया वि हु तुब्भे निसुणेह समत्त - सत्थाइं । सेवह विज्जा - सिद्धे "मुणह तहा मंत-तंताई ||५०५ || सुविसुद्ध - बुद्धिविहवा वि वेयह सयं पि गुविल- कज्जाई | ता कहह कहं सुय-लाभ - चिंता - जलहिस्स पारम्मि || ५०६ ।। वच्चिस्सामि त्ति तओ खणंतरं चिंतिऊण मंतीहिं । संलत्तं देव इमो समुज्जमो सुठु सुद्वाणे ||५०७ ||
देवरस पुरा वि वयं इणमहं आसि विन्नविउकामा । संपइ देवेण सयं पि साहिए सोहणं जायं ||५०८ || किंतु
अम्ह देवो उवायं पुच्छइ । एस अत्थो दिव्वनाण- नयणाणं दंसणगोयरी, ता कमुवायं एत्थ साहेमो ? किं वा पच्चुत्तरं देमो ? आयारिंगिय- गइ - भणिइ - गोयरमत्थं मुणंति अम्हारिसा । इमम्मि पुण दिव्वनाण- गम्मे न कमंति अम्हाण मईओ । एत्तियं तु जाणेमो जं उवायविरहे वि जीवा सकय-कम्माणुरूव-ठाणेसु पुत्तत्तेणुववज्जंति । तओ रन्ना हसिऊण भणियं— 'जइ एवं ता किं न गयणंगणाओ पइक्खणमुववज्जंति ? ति ।
कम्म- पहाणत्तणओ ता मा एगंत पक्खमणुसरह । जं दव्व - खेत्त-काला वि कारणं कज्जसिद्धिम्मि ||५०१ || तत्तो भालयल-मिलंत - पाणिकमलं जमाणवेइ देवो । तं अवितहंति मंतीहिं झत्ति बहुमन्नियं सव्वं ॥ ५१०|| अह संलत्तं अविवेय-मंतिणा देव ! अत्थि तुम्हाणं । कुलदेवय त्ति पयडो जक्खो सिरि- माणिभद्दोत्ति ||११||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं वरगंध-धूव-नेवेज्ज-कुसुम-निवहेहिं पूईओ संतो । संतुह-माणसो सो करेइ पुत्ते अपुत्ताणं ।।१२।। देइ धणत्थीण धणं आरोग्गं कुणइ वाहि-विहुराणं । करि-तुरय-रह-समिद्धं रज्जत्थीणं जणइ रज्जं ।।१३।। किं बहुणा भणिएणं ? जयम्मि जं जस्स वंछियं किं पि । पूयाए तोसिओ सो संपाडइ तस्स तं सव्वं ।।१४।। तो देव ! तस्स पूयं काउं कुसुमाइएहिं पवरेहिं । इच्छि(अच्चि)ज्जउ महिस-सयं तुट्ठो सो देइ जेण सुयं ।।१५।। पिहिउं करेहि कल्ने संतं पावं ति वाहरंतेण । रन्ला भणियं "मा भण अम्ह पुरो एरिसं वयणं ।।१६।। जिय-राग-दोस-मोहं सव्वल्लू जिणवरं विमुत्तूण । न करेमि परस्स अहं ५२पणयं पि ह किं पुणो पूयं ? ||५१७|| जं पुण जीव-वहेणं हविज्ज मण-वंछियत्थ-संपत्ती । संसार-दुक्खभर-कारिणीए तीए अलं मज्जा ।।१८।। तो मइसायर-मंती वागरइ जिणिंद-धम्म-निहिअ-मणो । देवेण अहो ! एयं पयंपियं उभय-लोय-हियं ।।५११।। देवस्स वि सुद्धो बुद्धि-पगरिसो असरिसो विवेग-रसो । निवारणा य करुणा चरियं कइजण-महच्छरियं ।।५२०।। सव्वुत्तमो अ धम्मे समुज्जमो निम्मला मणोवित्ती । जुत्ताजुत्त-विमरिसं काउमलं को विणा देवं ? ||५२१|| जओजीवाण जायइ फुडं पुन्नेहिं मणिच्छियत्थ-संपत्ती । अन्नह सव्वं सव्वस्स होज्ज अणिवारियप्पसरं ।।५२२।। "सव्व-जग-जीव-हिअओ सव्वन्नू राग-दोस-मय-मुक्को । जो देवो तस्स नमसणेण संभवइ तं पुन्नं ।।५२३|| जे निग्गुणा सयं चिय निक्करुणा राग-दोस-पडिबद्धा । कह ताण वंतराईण पूयणे जायए पुग्नं ? ||५२४|| जीवाण अहम्मेणं विहम्मए इच्छिअत्थ-संपत्ती । जीव-वहे कीरंते सो य अहम्मो दर्द होइ ।।५२५।।
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सुमइनाह-चरियं
तत्तो मणवंछिय-वत्थु-सत्थ-सिद्धिं समीहमाणेणं । तह कह वि वट्टियव्वं जह पुन्नं पावए वुद्धिं ||५२६।।
ता देव ! कीरंतु जिणिंद-मंदिरेसु महा-पबंधेण महिमाओ, एहविज्जंतु जिण-पडिमाओ घण-घुसिण-घणसार-सिरिखंड-रस-मिस्ससलिले हिं, पूइज्जंतु पप्फुल्ल-मल्लिआ-कमल-मालई-पमुह-कुसुमेहिं, परिहाविज्जंतु विचित्त-चिणंसुय-पटुंसुएहिं, भूसिज्जंतु विविह-सुवन्नरयणालंकारेहि, ढोइज्जंतु ताण पुरओ परिपक्व-फल-सणाहाइं अणवज्जखज्ज-भोज्ज-पन्नाइं विसाल-थालाइं, निम्मविज्जंतु जंतुगण-मणोहराई महर-गीयाणुगयाइं नच्चंत-चारु-"तरुणि-चं गाइं पेच्छणगाई, पयट्टिजंतु सव्वत्थ-वित्थरेण जिण-रहजत्ताओ, सम्माणिज्जंतु समणसंघा, सक्कारिजंतु साहम्मिय-समूहा, वियरिज्जंतु" ठाणे ठाणे
अनिवारियप्पसराइं महादाणाई, निवारिज्जंतु सव्वायरेण सव्व-जीवहिंसाओ ।
सुह-कम्मोवचएणं पुव्व-कय-कुकम्म-ववगमेणं च । एवं कए भविस्सइ मणिच्छियं निच्छियं "तुम्ह ।।५२७।। अह कह वि असुह-तिव्वयर-कम्मवसओ न वंछियं होइ । तह वि परलोय-मग्गे नूणं आराहिओ होइ ।।७२८।। तो रना आणत्तो मंती सव्वं पि कारवेसु इमं । आएसो त्ति भणित्ता तहेव तेण वि कयं सव्वं ।।५२१।। राया सयं पुण ठिओ काउं आहार-चायमहदिणे । पडिवन-बंभचेरो परिहरिय-सरीर-सक्कारो ||५३०।। दियहे जिणिंद-पूयं मुत्तुं परिमुक्त-सेस-वावारो | पडिवन्न-पोसहवओ निसाए सज्झाय-झाण-रओ ||७३१|| देवी सुदंसणा वि य तहेव सव्वं पि काउमारद्धा । अहम-दिवस-निसाए रल्लो सज्झाण-निरयस्स ।।५३२।। सो माणिभद्द-जक्खो करालरूवं पयासिउं गयणे । तिक्खग्ग-खग्ग-पाणी पयंपिउं एवमाढत्तो ।।५३३।। नरनाह ! तुज्या रज्जस्स चिंतगो माणिभद्द-जक्खो हं । पुव्व-निवपुंगवेहिं तुम्ह कुले अच्चिओ निच्चं ।।७३४।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं संपइ तुमं न कुणसि मज्डा पणाम पि तेण तुह कत्तो । मणवंच्छियत्थ-लाभो होही चिंतसु इमं सव्वं ||५३५।। जइ महिस-सएण ममं पूयसि तह वंदणं कुणसि निच्चं । तत्तो थेव-दिणब्भंतरम्भि तुह वंछियं देमि ||५३६|| अह ईसि विहसिऊणं नरवइणा सो पयंपिओ जक्खो । जं लब्भइ जीव-वहेण तेण मह वंछिएण अलं ||५३७।। न य नमइ मज्ा सीसं जिणं विणा राग-दोस-मय-मुक्वं । पंच-महव्वय-जुत्ते गुत्ते साहू य अन्नस्स |५३८|| एवं पयंपिए पत्थिवेण विप्फुरिय-कोव-दुप्पिच्छो । जंपइ जक्खो जइ एस निच्छओ "तुज्झा रे दुह ! ||७३१।। ता लंधिय-पुव्व-कुलक्वमस्स तुह कूडधम्म-निरयरस । दंसेमि दुनय-फलं इमिणा तिक्खग्ग-खग्गेण ||५४०।। जप्पभिइं परिणीया सदसणा विगयलक्खणा एसा । तप्पभिई परिचत्तं तुमए मह पूयणाईयं ।।५४१।। तत्तो पढमं तीए दह-महेलाइ छिंदिउं सीसं । पच्छा तुमं पि पत्थिव ! कयंतभवणातिहिं काहं ।।५४२|| इय भणिउं उप्पइओ जक्खो गयणंगणम्मि वग्गंतो । घोरट्टहास-पूरिय-दियंतरो खग्ग-वग्ग-करो ||५४३।। वाम-कर-गहिय-केसं सुदंसणं दंसिउं निवं भणइ । जइ अप्पणो इमीए य जीवियं रे ! तुमं महसि ॥५४४।। ता कुणसु मज्हा पूयं जहुत्त-विहिणा तओ भणइ राया । जइ जीवियं न तुटुं ता न हणिज्जइ तए को वि ||५४५।। अह तं कहमवि तुटुं ता जाए अन्नहा वि मरियव्वे । को मइलइ जिण-धम्म पत्तमणंताओ कालाओ ||५४६।। तो अमरिसेण जक्खो देवीइ सरीरगं निवस्स पुरो । खग्ग-निवाडिय-सीसं विउव्विऊणं पयासेइ ।।५४७|| तत:---- अप्रार्थितानि दुःखानि यथैवाऽऽयान्ति देहिनाम् । सुखान्यपि तथैवेह दैन्यमत्रातिरिच्यते ।।५४८।।
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सुमनाह-चरियं
एवं विचिंतयंतो तह "वि हु राया अखुद्द - मइपसरो । जिण - धम्म-निच्चल-मणो निय-नियम-धुरं न लंघेइ || ५४९|| देवी वि तज्जिया तेहिं तेहिं वयणेहिं तेण जक्खेण । थेवं पि दढपइन्ना तह वि न चलिया "सधम्माओ || ५५०।।
तो सविसेसं कुविएण तेण जक्खेण रूयल-नयरस्स । उवरि सिला महई विउव्विया चूरणडाए ||५५१||
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भणिओ य निवो इहिं नयर समेओ तुमं विणस्सिहसि । जइ पुण मह वयणं कुणसि देमि तो वंछियं तुज्झ ||५५२|| तो रन्ना वज्जरियं पर जीव-वहेण अप्पणी रक्खं । नाहं कयावि काहं जं रुच्चइ तं तुमं कुणसु || ५५३ || जक्खेण तओ भणियं जइ जीव-विणास पावभीरु- मणी । न कुणसि महिस-सएणं मह पूयं मा कुणसु तत्तो ||५५४|| तह विहु पणाम - मित्तं मह निच्चं कुणसु जेण तुह रज्जे । " सव्वं करेमि सुत्थं पुत्तं च मणोरमं देमि ||५५५|| विणएण तोसिओ हं हणेमि विग्घं करेमि कल्लाणं । मणवंछियं पयत्थं झत्ति पयाणं पयच्छेमि ||५५६ || तम्हा मुत्तूण ममं को अन्नो तिहुयणे वि किर देवो । जस्स कए अप्पाणं भुल्लो एवं विडंबेसि ? || ५५७ || तो पत्थिवेण वुत्तं दयापरोऽहं न देमि तुह महिसे । सा उण जीवदया जेण मज्झ देवेण उवा ||५५८||
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देवरस तस्स विरएमि पूयमहमेस किंकरो तस्स । जो उण तुमं सयं चिय महिसे पत्थेसि वह - हेउं ।। ५५९ ।। सो सयमपुन्नवंछो परस्स पूरेसि वंछियं कत्तो । न हि अप्पणो दरिद्दो अन्नरस दलेइ दालिद्दं || ५६०|| अन्नं च वंछियत्थो जणस्स सुकयाणुभावओ होइ । सुकयं च वीयरायस्त पूयणे न उ सरायस्स || ५६१|| जइ रागदोस - वसगाण पूयणे होज्ज सुकयलेसो वि । पूइज्ज को न सुलहे ता कामुयमच्छवहगाई || ५६२ ||
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GE
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं रागी य तुमं जो निग्गुणं पि मनसि गुणड्डमप्पाणं । पणएसु पक्खवायं वहसि तहा रागचिंधमिणं ।।५६३।। अम्हारिसेसु कुप्पसि ससंक-विमले जिणिंद-धम्मे य । उव्वहसि जो पउसं सो कह दोसी न होसि तुमं ? ||५६४।। गय-राग-दोस-मोहं नमिऊण जिणं नमेइ को अन्नं । लद्धं कप्पदुमं को साहोडतरुं समल्लियइ ? ||५६५।। मज्या पुरओ पसंससि अप्पाणं गरुय अंतरे चुल्लो । न हि सुद-दुद्ध-सदा नियत्तए कंजियाईहिं ।।७६६|| 'जइ सि तुम चिय देवो जइ वा विजंति तुज्डा देव-गुणा । ता कीस अप्पणा मं हढेण पाएसु पाडेसि ॥५६७|| तेसिं चियच्छेओ जे नमंति न तुम समीहियत्थकरं । कप्पतरुणो न नस्सइ किंचि जणा जं न सेवंति ।।५६८।। इय जुत्ति-हेउ-संगय-वयणेहिं निरुत्तरीकओ रना । फुरिय-विवेगो संहरिय-डंबरो जंपए जक्खो ||७६१।। धन्नो तुमं सुलद्धं तुह जम्मं तुज्या जीवियं सहलं । जस्सेवं निवपुंगव ! जिण-धम्मे निच्चलं चित्तं ||५७०।। संपइ असंसयं वीयराय-देवो मए वि पडिवन्नो । तन्वुत्तागमसरणा य साहुणो हुंतु गुरुणो मे ।।५७१।। जीवदया-रम्मे च्चिय धम्मे मह माणसं समल्लीणं । साहम्मिओ महायस ! अज्जप्पभिई तुमं मज्ा ।।५७२।। किं च तुह सीह-सिविणय-सूईय-गुणविस्सुओ सुओ होही । जिण-धम्म-पभावेणं विहुणिय-नीसेस-विग्घस्स ।।५७३।। इय जंपिऊण जक्खो तिरोहिओ दिणयरोदए जाए । राया वि पोसहवयं पारइ परिओसमावल्लो ।।७७४।। पत्तो सुदंसणाए पासे तं कुसलसालिणिं दहुँ । पारियपोसहमालवइ नरवई महुर-वयणेहिं ।।७७५।। कहिउं निसि-वुत्तंतं वद्धावइ इच्छियत्थ-लाभेण । देवी वि भणइ धम्मेण इच्छियं निच्छियं होइ ।।७७६।।
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सुमइनाह-चरियं
समए सुरलोगाओ चविऊण सुरो महिडिओ को वि । हंसो व्व माणससरे गब्भे देवीए उप्पन्नो ||७७७।। रयणीए सुहपसुत्ता "सीहं सिविणम्मि पिच्छए देवी । पडिबुद्धा गरुय-पमोय-निब्भरा कहइ तं रनो ||७७८|| सो भणइ जक्ख-अक्खिय-सीहसिविण-पच्चएण तुह पुत्तो । सीहो व्व सत्तु-मयगल-मय-खंडण-पच्चलो होही ||७७१।। देव-गुरुणं पय-पंकयाणुभावेण होउ एवमिणं । इय जंपइ पइ-पुरओ सुहेण अह गब्भमुव्वहइ ||५८०।। जिण-वंदण-पूयण-साहुदाण-जीवाभयप्पयाणेहिं । पडिपुन्न-दोहला सा पसवइ समए पवर-पुत्तं ।।५८१|| पसरंत-देह-किरणुक्वरेण दस-दिसमुहाइं पयडतं । विच्छाइय-दीवसिहं तं दहुं हरिसिया चेडी ||५८२|| नामेण पियंवइया गंतुं वद्धावए महीनाहं । सो वि निययंग-लग्गं वियरइ आहरणमेईए ||५८३।। आणवइ निउत्त-जरे करेह नयरे महा-विभूईए । वद्धावणयं तेहिं वि तहेव तं इत्ति पारद्धं ||५८४|| "तहा हिअक्खवत्तेहिं पूरिज्जमाणंगणं,
ठाणाठाणेसु नच्चंत-वारंगणं । पुलइय-कंचुई वग्गंत-कंचुइगणं,
भूरि-धण-दाण-तोसविय-बहु-मग्गणं ।।५८५।। घुसिण-सिरिखंड-रस-सित्त-नरवइ-पहं,
सयल-पुर-ठविय-वर-केउ-पूरिय-नहं । सव्व-जिणभवण-निम्मविय-पूयामहं,
खुज्ज-वामणय-कय-नट्टहासावहं ।।५८६।। घरघरुत्तंभिउत्तुंग-घण-तोरणं,
गंधगय-खंधगय-भमिर-आधोरणं || वजिराउज्ज-निग्घोस-भरियंबरं,
लोय-दिज्जंत-तंबोल-पवरं वरं ।।५८७।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं अवि यनाएण पालयंतस्स तरस रज्जं न को वि अवराहं । काउं पत्तो बंधं जो मुच्चइ गुत्तिगेहाओ ||५८८।। मासम्मि गए सिविणाणुसारओ तस्स पुरिससीहो त्ति । नामं ठवइ नरिंदो आणंदिय-सयल-जियलोयं ||५८१|| अह वडिउं पवत्तो लोय-मणोरह-सएहिं सह कुमरो । निरुवद्दवं कणयसेल-काणणे कप्परुक्खो व्व ||५१0।। समए कला-कलावं गहाविओ तह कमेण संपत्तो । तारुनमुन्नय-थणत्थलीण रमणीण मणहरणं ||५११|| सा का वि अंगसोहा वियंभिया जोव्वणे कुमारस्स । जं दहुँ लज्जाइ व वहइ अणंगत्तणं मयणो ||१२|| तईसण-रहस-पहाविरीण तरुणीण तुट्ट-हारेहिं । रेहति तिय-चउक्काई दिल्ल-मुत्तिय-चउक्वाइं ||१३|| तं चिय झायइ गायइ पुणरुत्तं चित्तपट्टए लिहइ ।
पेच्छइ दिसासु वम्मह-विहुर-मणो रमणि-संघाओ ||१४||
कयाइ कुमारो मारणत्थं निज्जमाणं रासहारूढं सिरोवरि-धरियछित्तरं रत्तकणवीर-कुसुम-कय-मुंडमालं गलोलंबिय-लोइं विरसडिंडिमाराव-मिलिय-निव्विवेय-लोयं, रायपुरिस-परिक्खित्तं इओ तओ पक्खित्त-विसन्न - सुन्न - नयणं नयर- मग्गे तक्व रमेक्कमवलोइऊण करुणारसाऊरिज्जमाण-माणसो मिल्लावेइ । इमं च वइयरं सोच्चा नीइमग-बहुमाणिणा जणाणुराइणा राईणा अत्थाण-सहा-सुहासीणो भणिओ कुमारो-- वच्छ ! न जुत्तमायरियं जं सो तक्वरो तए मोइओ । यत:
दुष्टस्य दण्डः सुजनस्य रक्षा, न्यायेन कोशस्य च संप्रवृद्धिः ।
अपक्षपातो निज-राष्ट्र-रक्षा, पंचैव यज्ञा नृप-पुङ्गवानाम् ।।५१५।। ता पुणो न तए एवं कायव्वं । रायतणओ अभिमाणधणत्तणओ इत्तियं पि पराभवं मन्नमाणो जणणि-जणयाणं पि अकहिऊण निग्गओ नयराओ ।
परिब्भमं तो य पत्तो धरणि- रमणी- मणिने उरं तरुणि अण -
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सुमहनाह-चरियं
रुवो हामिअ-मयणतेउर सिरिउरं नाम नयरं । तत्थ पबल - परबल - जलहिनिम्महण-मंदरी नह- पडिवक्ख- कामिणि- कुडुंब - संकडीकय-सयलसेल - कंदरो पुरंदरो नाम राया । तस्स निरुवम रूव-निरंभिय- रंभा, संरंभाऊर - सोहग्ग - विजिय- रंभा रंभा नाम गुण-संभार- भरिया भारिया । ताणं च लायन्न - पुन्न - देहा लोय- लोयण- चउर - चंदलेहा चंदलेहा नाम धरणितल-तिलयभूया धूया ।
पुरिसं अपिच्छमाणा रुवाइ गुणेहिं अत्तणो सरिसं । न खिवइ पुरिसे दिहिं न सहइ नामं पि पुरिसस्स || ५९६ || परिणयणं पि न मन्नइ केणावि समं नरिंदपुत्तेण । तो जणइ पुरिसविद्देसिणि त्ति जणयाण सा चिंतं || ५१७|| ती नर - विमाणारूढाए नयरुज्जाणाओ नियत्तमाणीए सो पुरिससीह कुमारी रायमग्गे परिब्भमंतो पलोइओ पुणो पुणो सिणिद्धदिडीए, लक्खिओ से भावो धावीए, तओ विसिद्धो को वि पुरिसो एस इमाए अणन्नसरिसाए आगिईए लक्खिज्जइ, अओ चेव रायपुत्तीए पुणो पुणो पलोइओ । कमलायरं विणा अण्णत्थ न रमइ रायहंसि त्ति चिंतिऊण को कहिं वा एस ठिओ त्ति वियाणणत्थं पडविया निय-धूया इमीए । गया "सा तुरियं । ठिओ एस देवउल - गवक्खगे । कओ अणेण आसणपरिग्गहो, आढत्तो सिलोगं लिहिउं—
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अनीहमानो पि बलाददेशज्ञो पि मानवः ।
तत्र स्वकर्म-वातेन नीयते यत्र तत्फलं ||५१८||
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न
अद्धलिहिए य सिलोए पडियं से खडिया - खंडं । पसारिओ अंगण हत्थो । पणामियं तं से चित्त - पुत्तलियाए । इमं च दहुं विम्हिया धाविधूया । कहियं तमच्चब्भुयं तीए धावीए । तीए वि रायधूयाए । पुच्छिया य एसा- कि ? ति । तीए भणियं—- रायपुत्तो खु एसो आसन्न - रज्जो य । न अन्नस्स एरिसी सहावओ विणयपरिणया । धावीए भणियं. एत्थ संदेहो जेण तए वि सो पलोईओ रायलच्छीए । रायधूयाए भणियंकिं तेण लिहियं ? ति । गवेसिऊण धावीए संवाईयं । रायधूयाए भणियं — आसन्नं च से फलंतरं इमिणा एवंविह- लिहणेण । धावीए भणियं - तक्केमि तुमं परिणइरसइति । किमन्नं फलंतरं“ ? । तत्तो सा लज्जिया रायधूया ।
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१०
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं एत्थं तरे वियरिओ राय हत्थी, कयमसमंजसमणेण, अद्धभग्गो कन्नतेउरावासो | आउलीहओ राया । भणियमणेण- अरे ! जो सक्कइ एयं सो गिण्हउ त्ति । एयमायनिय आगओ पुरिससीहो । सो वि विज्जुखित्त-करणेण' चडिओ रायहथिम्मि, बद्धमासणं, गहिओ य अंकुसो, वसीक ओ हत्थी, नग्गायरिएण पच्चभिजाणिऊण उग्घुटं पुरसिसीह-नामं, पलोईओ रायधूयाए साहिलासं । परितुहो राया । कओ उचिओवयारो । भणाविया रायधूया- पुत्ति ! तुह एस उचिओ ति । तुहिक्वा ठिया रायधूया | 'अप्पडिसिद्धमणुमयं' ति चिंतिऊण रला दिला पुरिससीहो त्ति । वत्तो विवाहो विभूईए | जाया परोप्परं पीई ।
. अन्नया अकहिऊण निग्गओ पुरिससीहो पेच्छंतो य नग-नगरसर-सरिया-सय-संकुलं महीयलं पत्तो जुन्न-देवकुलालंकियं एग वणनिगंजं । एत्थंतरे अत्थगिरि-सिहरमल्लीणो रवी । पसरिया तमाल-दलसामला तिमिर-रिछोली । पसुत्तो रायपुत्तो देवउले । मज्झरत्त-समए य सुओ रायपुत्तेण रुयमाणीए रमणीए करुण-सहो । तओ संजाय-करुणेण उवसप्पिऊण सम्मं निरूवियं जाव दिह रत्त-कणवीर-कुसुमच्चियं चउद्दिसिं पक्खित्त-मंस-सोणिउवहारं, पेरंत-पज्जलंत-दीवयं मज्झहियतिकोण-कुंड-दिप्पंत-हयासणं मंडलं । तत्थ कयासण-परिग्गहो, नासग्ग-निम्मिय-दिडी, समीव-निहिय-कराल-करवालो दिहो दहविज्जासाहगो । तस्स य पुरओ निविट्ठा दिहा तत्थ हरिणी-विलोललोयणा, अच्चंत-मणोहरागारा, गरूय-भय-कंपंत-समत्त-गत्ता एगा जुवई । सा य उग्गीरिय-खग्गेण भणिया विज्जासाहगेण- 'सुदिलं कुण जीवलोयं । जीवियं मोत्तूण पत्थेसु किं पि पत्थणिज्जं । एय पज्जवसाणो जीवलोओ ।
तओ ‘हा ! पुरिससीह रायपुत्त ! परित्तायसु ममं असरणं' ति [भणमाणी] न किं पि पत्थेइ ।
एत्थंतरे पुरओ होऊण "विज्जासाहग ! रे नराहम ! भउब्भंतच्छियंकेरुहं,
सुनारलगयं वरायमबलं बालं वहंतो इमं । अंगे जाणि वसंति पंच भवओ भूयाणि नो लज्जसे ?
किं ताणं पि अणत्थ-सत्थ-भवणं हा दह ! भे चिट्ठियं ! ||५११||
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सुमइनाह-चरियं गयसुचरियपाणे पाव-कम्मप्पहाणे,
जइ वि हु पहरंतो तुज्ा एयम्मि अंगे । करडिदलण-सज्जो लज्जए मे किवाणो,
तह वि जुवइ-रक्खं काउमेवं पयट्टो ||६00।। एवं भणंतेण हक्कि ओ कुमारेण विज्जासाहगो । तेणावि पउत्ता थंभणि-विज्जा । पबल-पुन्नत्तणेण न पभवइ सा पुरिससीहस्स, "विलक्खीभूओ विज्जासाहगो निवडिओ चलणेसु । पुट्ठो कुमारेणभद्द । किमेयं उभयलोग-विरुद्धमायरणं ? तेण भणियं- एईए सव्वलक्खणालंकियाए रायकलाए हणणेण सुर-सिद्ध-विज्जाहर-नरिंदरमणी-वसियरण-मंत-सिद्धी । कुमारेण वुत्तं
किं मंतसिद्धीए विसुद्ध-धम्म-पंचत्थिभूयाए इमाए ? भद्द ! | समग्ग-लोगागम-निंदणिज्जो इत्थीवहो कीरइ जत्थ एवं ||६०१|| केणावि तुमं तह कूडबुद्धिणा मुद्ध ! विप्पलुद्धो सि | जं पत्थसि इत्थि-वहेण सयल-इत्थीण वसियरणं ।।६०२|| इत्थीओ वि एत्थ अणत्थ-सत्थ-पायव-परोहभूमिओ । नरय-गरुय-वत्तिणीओ विउसाण वि वज्जणिज्जाओ ||६०३|| ता उभयलोय-दुह-कारणाओ संजणिय-पाव-पसराओ । विरम दुरज्यावसायाओ भद्द ! एयाओ तुममिण्हेिं ||६०४|| विज्जासाहगेण भणियं- महापुरिस ! परमोवयारी तुमं, जेण नियत्तिओ हं अकज्जायरणाओ । सव्वहा परिचत्तमेयं मए | परं पत्थेमि किं पि, अत्थि मे पढियसिद्धं गारुडं थंभणिविज्जा य, ता अणुग्गहं काऊण गिण्हसु दुवे वि इमे | इमेहिं पि परोवयारं करिस्ससि तुमं । कुमारेणावि पत्थणा-भंग-भीरुणा गहिओ गारुड - मंतो थंभणि-विज्जा य । पणमिऊण गओ विज्जासाहगो । कुमारेणावि आसासिया रायसुया महुरवयणेहिं पुच्छिया य– का तुमं ? केण वा पयारेण इहाणीया ? को वा पुरिससीहो जो तए सरणं ति वज्जरिओ ? | तीए य एय-वयणामयरसेण सित्ताई उससंति मे गत्ताई, एय-वयण-पंकए पुणो पुणो चलइ मे दिही, ता नूणं सो चेव पुरिस-चूडामणी एसो पुरिससीहो त्ति चिंतयंतीए भणियं
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं अत्थि सीहपुरं नयरं । तत्थ सीहविक्कमो राया । तस्स जयावली देवी । ताणं सुया हं मयणलेहा । कयाइ जोव्वणे वदृमाणी गया पिउपाय-पणमणत्थं अत्थाण-मंडवे, तत्थ मागहगणेहिं कित्तिज्जमाणं सुयं मए विजयसेण-महाराय-सुयस्स पुरिससीह-कुमारस्स गुणुक्वित्तणं । तओ हं तप्पभिइ तम्मि परोक्खाणुराय-परवसा जाया । इमं च नाऊण पुरिससीहस्स चेव तुमं दायव्व त्ति पडिवल्नं जणणि-जणएहिं । अज्ज संझाए पुण अणेण विज्जासाहगेण पासाय-तलोवरि कीलंती विज्जाबलेण इहाणीया । तहा,
जइ वि हु तुमं पि मुणिओ मणेण सो चेव पुरिससीहो त्ति । तह वि हु तुह वयणेणं एस जणो जाणिउं महइ ।।६०५|| तो कुमरेणं भणियं सच्चं तं तुह मणेण जं नायं । जम्हा संदेहपए "गुरुयाण मणं चिय पमाणं ।।६०६|| एत्थंतरे पहाया रयणी अह बहल-संहाराएण । रेहइ पुव्वदिसा नववहु व्व कोसुंभ-वत्थ-जुया ||६०७|| कयावराहो व्व पणहो तिमिरभरो, परोवयारपरो व्व उदयं गओ सूरो । परगुण-दंसणे सुयण-मुहाइं व वियसियाई कमल-संडाइं । इओ य तम्मि समए समागया तमुद्देसं धावी सपरियणा | दिहा तीए कुमारी । अंसुजल-भरिय-लोयणाए अणाए गाढमालिंगिऊण निवेसिया उच्छंगे, भणिया य-- वच्छे ! तुह अवहरणाणंतरमेव उच्छलिओ कन्नतेउरे अक्वंदसद्दो । विसनो देवो । पयट्टो तुह सव्वत्थ-गवेसणत्थं रायलोओ। अहं पि विसन्न-मणा भमिऊण सयल-रयणिं अणकूल-विहि-निओगेण इहागय म्हि । ता कहसु तुमए किमणुभूयं ? ति | रायधूयाए कहियं– एगेण "विज्जाहरा हमेण अवहरिय गुरुय-सिद्धि-निमित्तं इह मंड लगे मारिज्जमाणी मह भागधेयाऽऽगरिसिएण इमिणा महापुरिसेण रक्खिय म्हि । धावीए पुढे- "को एसो महप्पा ? | रायधूयाए भणियं
जस्स मए पुव्वं पि अणुरायपराए अप्पिओ अप्पा । सो एस पुरिससीहो पुत्तो सिरि-विजयसेणस्स ||६०८।। धावीए तओ भणियं- जं सयमवि संगओ तए एसो । तं नूण मम य वुट्ठी अब्भेहिं विणा इमा जाया ||६०१।।
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सुमइनाह-चरियं
एत्तो य कह वि विनाय-रायकल्लोवलंभ-वुत्तंतो । परिओस-वियसिय-मुहो राया वि समागओ तत्थ ।।६१०।। रना मुणिओ धावी-मुहेण सयलो वि रयणि-वुत्तो । तो करि-कंधारुढो कुमरो नीओ नियं नयरं ||६११|| परिणाविओ य धूयं वसिओ सोक्खेण तत्थ कइ वि दिणे । अण्ण-दिणे कस्स वि अकहिऊण नयराउ निक्खंतो ।।६१२।। पत्तु पारद्ध-गुरुदेव-चलणच्चणं,
पवण-संजणिय-जिणभवण-धय-नच्चणं । सयल-जण-दूरपरिहरिय-परवंचणं,
दीण-बंदियण-दिज्जंत-धण-कंचणं ।।६१३|| कंचणपुरं८ नयरं । तत्थ वेरि-करि-घडा-विहडणे क्व - सीहो "वइरिसीहो राया । तस्स कमल-दल-दीह-नयणा नयणावली देवी । ताणं च केण वि अकखंडिय-पणया गुरुयण-पाय-पणया, निय-कायकंति-विणिज्जिय-कणया कणयावली तणया । सो य राया रयणीए सुहपसुत्तो कह वि डक्को सप्पेण | वाहरिया गारुडिया न संजाओ को वि गुणो । विसनो नयर-लोओ ।
दहण तं कुमारो नयरं पडिसिद्ध-तूर-गीय-रवं । कय-विक्वय-रहियं सोय-सलिल-संपुन्न-जण-नयणं ।।६१४|| पुच्छइ तहाविहं कं पि पुरिसं किं इमं पुरमसेसं ? | सो कहइ रुयंतो सप्प-दह-निव-वईयरं सव्वं ।।६१५|| तओ सो च्चिय सलाहणिज्जो तेण सुलद्धो इमो मणुय-जम्मो । जस्सोभयलोग-हिए परोवयारम्मि रमइ मई ||६१६|| इय चिंतिय कुमरेणं भणिओ सो अस्थि गारुडो मंतो । तं विन्नासेमि अहं जाणावसु मंति-पमुहाणं ।।६१७|| तेण वि तह त्ति विहिए. गंतूणं पुरिससीह-कुमरेणं । जीवाविओ नरिंदो गारुड-मंत-प्पभावेण ||६१८|| आणंदियं समग्गं नयरं राया वि गरुय-हरिसेण । परिणावइ कुमरं तं दाउं कणगावलिं धूयं ।।६११।।
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विसय- सुहमणुहवंतो तीए "सहा जाव चिट्ठइ कुमारो | ता एक्केण नरेणं आगंतुं रहसि विन्नत्तो ॥ ६२०||
देव ! सुण अत्थि नयरं विजयपुरं नाम तत्थ अरिदमणो । राया तस्संतेउर - तिलयसमा जयसिरी देवी ||६२१||
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
तीए गब्भपसूया धूया रमणी- सिरोरयणभूया । पिय-वयणा ससि - सुंदर वयणा रयणावली नाम ||६२२|| सो वि हु दिव्ववसा विजयकेउणा गोत्तिएण पबलेण । समर-भरे जिणिऊणं पुराओ निव्वासिओ सहसा ||६२३|| पव्वय-पच्चासन्नं पल्लिं सो वि हु अहिडिऊण ठिओ । निय - परिवार - समग्गो वहमाणो अमरिसं गरूयं ||६२४ || अन्नया पुट्ठो तेण एगो नेमित्तिओ - किं पुणो अम्ह निय-रज्जसंपत्ती भविस्सइ ? त्ति । तेण सम्मं निरूविऊण भणियं भविस्स | रन्ना भणियं— कहं ? तेण वुत्तं - एयं रयणावलिं जो परिणिस्सइ सो तुमं पुणो वि रज्जे ठविस्सइ त्ति । रन्ना भणियं— सो कहं नायव्वो ? | तेण वुत्तं— जो सप्प-दडुं वेरिसीह-रायं जीवाविस्सइ त्ति । ता देव ! तुह कित्तिं सोऊण पेसिओ हं निय- "पइणा । ता तत्थागमणेण पसाओ कीरउत्ति । कुमारो वि करसइ अकहिऊण परोवयार करणुज्जयत्तणेण तेणेव समं पत्तो पल्लीए । बहुमन्निओ निवइणा, परिणाविओ निय-धूयं रयणावलिं । तओ कुमारेण वुत्तो राया- चलसु निय- रज्जग्गहणत्थं । चलिओ सो समग्ग- सामग्गीए । पत्ती निय- नयरासनं । जाणिओ विजयकेउणा, निग्गओ चउरंग-बल समेओ संमुहं ।
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मिलियाई जाव दोन वि बलाई अवरोप्पर-पहरण- पब्बलाई कायर-नर-भय-करणेक्क-सूर अप्फालिय-गहिर - निनाय - तूर | रण- करणुच्छाह-रसुब्भडेहिं, अब्भिडिय सुहड सहुं परभडेहिं । रवि-रह- तुरंगम - समविब्भमेहिं, अब्भिट्ट तुरंग तुरंगमेहिं । विलसंत- विविह-पहरण-भरेहिं संजोईय रहवर रहवरेहिं । पर - पक्ख-पराजय-कारणेहिं सहुं लग्गा वारण वारणेहिं । रण- कोड- पलोयण-तप्परेहिं संरुद्ध गयणु सुर-खेरेहिं ।
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उच्छलिय तिरोहिय चंद-सूर, हय घट्ट - खुरुक्खय-रेणु-पूर ।
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सुमइनाह-चरियं
घत्ता] इय दोण्ह वि सेल्लह, कोव-पवनह, इत्ति पयदृइ समर-भरि । अरिदमण-नरिं दिण, गरुयाणंदिण, कुमरह "मुह जोइउ नवरि ||६२५||
तओ कुमारेण थंभियं सयलं पि पर-सेल्नं थंभणि-विज्जाए, चित्तलिहियं व ठियं निच्चलं । 'जयइ महप्पभावो पुरिससीह-कुमारो' त्ति उच्छलिओ गयणंगणे साहुवाओ । चिंतियं विजयके उणा- एयस्स 'सुपुरिसस्स पभावो एस, न पुरिसयार-मित्तेण" लंघिउं तीरइ । तओ एयरस सरण-पवज्जणं चेव जुत्तं । संपयं पुण वोत्तुं पि न किंचि सक्केमि । ता किं करेमि त्ति दीण-वयणो "उत्थंभिओ कुमारेण, लग्गो आगंतूण चलणेसु, विन्नत्तं अणेण- गिण्ह तुम इमं रज्जं । अहं पुण परलोय-मग्गं साहिस्सं ति भणिऊण निग्गओ | गओ तवोवणं । अरिदमणो वि कुमारेण समं पविहो निय-नयरं, अहिहियं रज्जं । कुमारो वि रयणावलीए सह विसय-सुहं भुंजंतो चिहइ । अन्न या कीला-निमित्तं गओ पमदुज्जाणं । दिहा तत्थ असोय-रुक्ख-साहाए विहिय-उब्बंधणा मज्झिम-वए वदृमाणी 'हा सप्पुरिस ! रक्ख ममं' ति पलवंती एगा इत्थिगा कुमारेण । तओ करुणारस-पूरिज्जमाण-माणसेण विज्जुक्खित्तकरणेण उप्पईऊण गयणंगणे गहिऊण तं वामभुयाए दाहिण-करेण छुरियाए छिन्नो पासओ । इत्थिगाए वि गाढमालिंगिऊण अवहरिओ रायपुत्तो । नीओ एक्वम्मि वण-निगुंजे, विविह-वर-रयण-निम्मवियकुहिम-तले, फलिह-मणि-घडिय-चउभित्ति-भागुज्जले, कणयमय-थंभसंभावियाडंबरे, पवण-धुय-धयवडावरुद्धांबरे ।
एवंविहम्मि मुक्को पासाए सत्त-भूमियतलम्मि । रयणमए पल्लंके निसाए सुत्तो सुहं कुमरो ||६२६।। कयमणाए कुमारस्स चलण-सोयं । संवाहियाइं नवकमल-कोमलेहिं करयले हिं अंगाइं । पलोट्टमाणीए चेव तीए गमिया रयणी । उग्गओ अंसुमाली, विउद्धो कुमारो । भणियं च तीए
जं तुमए निच्च-परोवयारिणा पबल-सत्तु-गहियं पि ।
अरिदमणस्स पुणो रज्जमप्पियं तेण पत्थेमि ||६२७।। अत्थि इओ नाइदूर-देसे संके यहाणं सयलाण वि उउसिरीणं, कीलाभूमी सिद- गंधव-विज्जाहर-जक्ख-किन्नर-मिहुणाणं, निवासो
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं मय-मयाहिव-पमह-सावय-गणाणं, आलओ सयल-नारंगाइ-फलाणं, महि-महिलाए सेहरो, अणवस्य-ज्ारंत-निज्डारण-ज्झंकार-मणहरो गयणग्ग-लग्ग-सिंहरो रयणकूडो नाम महीहरो । तस्स अहिहायगो गीयरइ नाम वणयर-देवो । देवी य तस्साहं गंधव्वमाला नाम | नियपरियण-परिवुडाइं जहासुहं एत्थेव चिहामो । अत्थि य एयस्स गिरिस्स गब्भे अहोगयं गूढ-दुवार-देसं तियसाण वि अगम्मं, अच्चंत-रम्म, रमणीय-मणि-विणिम्मियं, विविह-कीलापएस-सोहियं, सन्निहियसयल-भोगोवगरण-समुदयं, दिप्पंत-रयण-किरण-भासुरं, सुरभवणप्पायं पायाल-भवणं ।
. अन्नया मरण-पज्जवसाणयाए जीवलोगस्स पेच्छंतीए चेव वायविहय-दीवओ व्व विज्झाओ मज्झ पिययमो । तओ हं पसरंतसोयानला वि असारं संसार-सरूवं, अप्पडियारो मच्चू, नस्थि परलोयपत्तस्स वि पडिआगमणं ति संठविय हिययं निय-ठिइपरा संवृत्ता। कयाइ कीला-निमित्तं निग्गया पायालभवणाओ, कीलिऊण गिरिकंदर-सर-सरिया-काणणेसु पुणो वि पायाल-भवणं पविसंती कह वि दिहा अवहरिय-रायकल्ला-रयणेण केणावि विज्जाहरेण । अणुपयमेव पविहो एसो दिव्वं पायाल-भवणं, चिंतियमणेण- अहो ! देवाण वि अगम्मं रम्मं च इमं । तओ अवलोइयं मम मुहं साहिलासाए दिहीए, भणियं चकामरस सव्व-सुर-मत्थय-वुब्भमाण
आणरस बाण-निवहेण हणिज्जमाणो । दरगं व देवि ! थणवहमिमं तमाए.
तुंगं समारुहिउमिच्छइ एस लोओ ।।६२८।। तो कय-दुप्पेच्छ-निडालवदृ-भिउडीइ सो मए भणिओ । आ पाव ! दुइचिट्ठिय ! निल्लज्ज ! इमं पि किं न सुयं ? १६२१।। सीहह केसर सईहि ऊरु सरणागओ य सुहडस्स । मणि मत्थइ आसीविसह नो धिप्पइ अमुयस्स ।।६३०।। ता किं हयास तुममिह समागओ तुरियमेव निग्गच्छ । मम भवणाओ इमाओ तो रोसारुणिय-नयणेण ||६३१||
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सुमइनाह-चरियं
‘फेडेमि सईवायं इमीए' इय जंपिऊण गहियम्हि । निक्करुणं तेण सहाव-कोमले कुंतल-कलावे ।।६३२|| धरणीए पाडिऊणं पण्हि-पहारेहिं पहणिया बहुसो । अक्वोसंती पुण पुण पायालघराओ निच्छूढा ||६३३|| पायालघरमहिहियमणेण अहयं तु तत्थ न पवेसं । पावेमि ता महायस ! उदरसु इमाओ वसणाओ ||६३४|| तो करुणामय-मयरायरेण कुमरेण जंपिया देवी । मह पाणेसु धरतेसु को तुमं अंब ! परिभवइ ? ||६३५|| मुंच विसायं पडिवज्ज धीरयं मज्ा अंब ! अवलंबं । दंसेहि खेयरं तं तद्दप्पं जेण अवणेमि |६३६|| इय जपतो कुमरो समुडिओ देवयाइ तो भणिओ । सो सिद्ध-पबलविज्जो गुरु-विक्कम-दप्प-दुप्पिच्छो ||६३७।। ता तुममवि सन्नाहं कुणसु तओ जंपिया कुमारेण । ईसि हसिऊण देवी ! मुंच भयं अंब ! भव धीरा १६३८|| करि-कुंभत्थल-दलणम्मि केसरी किं करेइ सन्नाहं ? | तिमिर-मुसुमूरणे दिणयरो वि किमवेक्खए किं पि ? ||६३१|| तओ अहो धीरया ! अहो महासत्तया ! अहो निरवेक्खया ! अहो गंभीरालावया ! सव्वहा सव्वमणुरूवमेयस्स" त्ति चिंतयंती पयहा वणदेवया । तयणुमग्गेण य कुमारो हक्वारिज्जंतो व्व पायवाणं पवणपणोल्लिय-पल्लव-करेहिं, आलिंगिज्जतो व्व कोमल-साहा-भुयाहिं, विइन्न-अग्धो व्व समीरणाहरिय-सुरहि-कुसुम-वरिसेण, विविहउवायणो व्व ओणय-लया-पेरंत-फल-भरेणं, कय-सागय-संमाणो व्व कलयंठ-कुल-कलरवेणं पत्तो गिरिवरं कुमारो, वणदेवया-दंसिय-दुवारं पविट्ठो पायाल-भवणं ।
हा खत्तिय-कुल-नहयल-मयंक ! महा-पुरिससीह ! वर कुमर ! अलियं होही नेमित्तियस्स वयणं पि किं इण्हेिं ? ||६४०।। इय विलवंती तम्मि उ दिहा रमणी अणेण रमणिज्जा । तो विम्हिओ निविट्ठो गंतुं कणयासणे कुमरो ।।६४१।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं दहूण कुमारं सा वि संभमुब्भंत-लोयणा बाला । पुणरुत्त-थणोवरि-ठविय-उत्तरिज्जा ल्हसिय-नीवी ।।६४२।। उक्खिविय-भुयलयाओ पुण पुण संजमिय-कुंतल-कलावा । कर-फुसिय-बाहसलिला कहमवि विरमेइ सयणाओ ||६४३।।
भणिया य कुमारेण वणदेवया– पुच्छसु एयं बालियं का सि तुमं ? कत्तो वा कहं वा केण वा आणीया ? | कीस व रुयसि ? ति । पुडा सा वणदेवयाए, सगग्गयक्खरं कहिउं पवत्ता
अस्थि हत्थिणपुरं नाम नयरं । तत्थ नरसीहो नाम राया, विलासवई से देवी । तीए कुक्खि-संभूया लीलावई नाम धूया अहं, जोव्वणत्थं ममं दहण पुट्ठो ताएण नेमित्तिओ-कस्सेसा दिज्जउ ? त्ति । कहियं तेणसंखउराहिव-विजयसेण-रायपुत्तरस पुरिससीहस्स पत्ती भविस्सइ त्ति ! इमं सोऊण परोक्खाणुराय-परन्वसाए मए वि तस्स समप्पिओ अप्पा । अन्नया उज्जाणे कीलंती केणावि खयराहमेण इहाणीया । सो य ममं . अणिच्छमाणिं पि परिणेउमिच्छंतो विवाहोवगरण-निमित्तं गओ । ता अहं मंदभग्गा अपडिपन्न-मणोरहा नेमित्तिय-वयणं पि किमलीयं भविस्सइ त्ति सवियक्ता रुयामि । तओ वणदेवयाए भणिया जहा
भद्दे ! मुंच विसायं नेमित्तिय-वयणमवितहं होही । होहिं ति तुह वि सहला मणोरहा संपयं चेव ॥६४४|| जेणेस पुरिससीहो तुह हिययाणंदणो महासत्तो ।
तुह पुन-पेरियाइ व मए स-कज्जेण आणीओ ||६४७।। इओ य विवाहोवगरण-सणाह-हत्थाए कमलावइ-नामाए खयरीए समं समागओ खयरो | तओ भय-वस-वेविर-हियाए भणियं वणदेवयाए– 'कुमार ! एस एइ सो दुरायारो' । कुमारेण भणियं
'अंब ! धीरा होहि, पेच्छ निय-तणयस्स विलसियं' । लीलावईए वि भउब्भंत-लोयणाए चिंतियं
छलप्पहाणो खयरो दुरप्पा, इमो कुमारो उण उज्जुसीलो । हद्धी न याणीयइ किं पि होही ? ता मज्ा संतप्पइ माणसं ति ।।६४६।। तओ कुमारो खयरेण दिहो पासहिया सा वणदेवया य । वियंभिउद्दाम-वियार-लीला लीलावई सा वर-कन्नया य ।।६४७।।
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सुमइनाह-चरियं
लोउत्तर-फुरंत-तेओ को वि एसो ? ति चिंतयंतो खयरो खुहिओ वि हियएण अक्खुहिओ व्व जंपिउं पवत्तो-- अरे रे ! को तुमं चोरो व्व सुल्न-परघरे पविट्ठो ? | किं दुरायार ! न मुणसि जं परघरे परित्थियाहिं समं संवासो विरुद्धो त्ति ? | ता सव्वहा चत्त-साहु-समायारो वि तुमं विमुक्को मए करुणारए[ण] । जीवियं घेत्तूण तुरियं पलायसु । सम्मुहो वा होसु । तओ ईसि हरिस-वस-विसप्पंत-दंत-पंति-कंतिणा कुमारेण वुत्तं- अरे ! कालपत्तस्स च ते चलिया धाउणो तेण पलोयसि सव्वं पि पीय-धत्तूरओ व्व विवरीयं । तं मज्हा परघरमिणं तुह उण पिउ-संतियं एयं ?
एयाओ इत्थियाओ मह चेव परित्थियाओ नो तुज्डा ? | एयाहिं सह विरुद्धो वासो मह “चेव नो तुज्डा ? ||६४८।। गय-साहु-समायारोहमेव न तुमं ति केण सिक्खविओ ?| वोत्तुमिमं पुव्वुत्तं ता न मुणसि दुढ ! अप्पाणं ॥६४१।।
अहवा अहिहि ओ तुमं एयाहिं अलिय-सोंडीर-"मेत्त-गुणमोहियाहिं, अपेच्छंतीहिं तुज्ज अणायारं विज्जादेवयाहिं तेण तुह एयं खमिज्जइ । पूयणिज्जाओ सव्वाओ वि मज्झ देवयाओ । ता अज्ज वि चेयसु अत्ताणयं ति । मुंचसु अणायारं ।
एत्थंतरि हरिस-विसट्ट-वयण, पसरंत-कंति-कंदलिय-गयण । वर-हार-विराईय-वच्छदेस, अलि-कज्जल-सामल-कुडिल-केस । नीलुप्पल-पत्त-सव्वत्त-नेत्त, सप्पुरिस-चरिय-रव्वंत-चित्त । मणि-कुंडल-लीढ-कवोल-फलय, भुय-वल्लि-पहल्लिर-कणय-वलय। वियसंत-कंद-दिप्पंत-दंत, मणि-नेउर-रव-मुहलिय-दियंत । रणणिर-रयण-रसणा-कलाव, विलसंत-अणंत-महप्पभाव । इय विज्जादेवय दिव्वख्य सहस त्ति तिन्नि पच्चक्खहूय | करवाल-विज्ज बहुरूविणी य तइया गयणंगण-गामिणी य ||६५०।।
भणियं चऽणाहिं -- ‘कुमार ! "एत्तिय-कालं सोंडीर-मेत्त-गुणमोहियाहिं अपेच्छंतीहिं -अणायारं अहिट्ठियमिमस्स सरीरं । संपयं पुण जाणियं अकज्जकारित्तणं । तओ एय विरत्त-चित्ताओ मुत्तूण इमं तुह लोउत्तर-चरिय-रंजियाओ तुमं चैव अल्लीणाओ अम्हे, अन्नरस किलेसेण सिज्झामो | तुज्झ उण अचिंतणिज्ज-गुणावज्जिय-हिययाओ सयमेव
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सयंवर-विलयाओ व्व समागयाओ, ता पडिवज्जउ कुमारो अम्ह एयं पत्थणं' ति । कुमारेण भणियं- जं तुब्भे भणह तं कीरइ । तओ करग्गहण-मित्तेण समरंगणे समग्ग-रिउवग्ग-निग्गहकरं गेण्हाहि एयं ति भणंतीए समप्पियं खग्गदेवयाए खग्ग-रयणं, अहिहियं कुमारसरीरमियराहिं । इमं वइयरं पेच्छिऊण विम्हिया वणदेवया । हरिसिया लीलावई | कमलावई वि साहिलासं एयरस चेव असरिस-गुण-गणमाहप्प-सिद्धविज्जस्स सच्चरिय-महानिहिणो घरिणी-सई वहिस्समहं एवं चिंतिय सिणिद्धाए दिहीए कुमार-वयण-कमलमवलोइउं पवत्ता । लक्खिया खेयरेण । सो य खेयरो विज्जादेवया-वज्जिओ लज्जिओ सव्वहा गलिय-पोरुसाभिमाणो दसणेहिं गहिऊण पंच वि करंगुलीओ पडिओ कुमार-चलणेसु, भणिउं पवत्तो- 'कुमार ! पवनो हं तुज्झा भिच्च-भावं, सरणागय-वच्छलो य तुमं, खमसु एयमवराहं, करेसु मह जीवियप्पयाणेण पसायं । कुमारेण भणियं- 'भद्द ! भद्दागिइ दीससे तुम, ता न जुत्तमणायारकरणं' | खयरेण भणियं-- 'एय-पज्जवसाणो मम अणायारो' । कुमारेण भणियं- 'विमुक्काणायाराणं अन्नाण वि निरुवहयमेव जीवियं, विसेसओ तुज्झा । किंतु सच्चपइन्ना खु महापुरिसा हवंति । ता न तए अन्नहा कायव्वं' ति |
तओ खयरेण 'जं कुमारो आणवेइ' ति भणंतेण विन्नत्तं- 'अस्थि वेयड्ड-पव्वए दाहिण-सेढीए मयणपुरं नाम नयरं । तत्थ विज्जुवेगो नाम विज्जाहर-राओ, विज्जुमालिआ से भारिया | ताणं पुत्तो अहं पवणवेगो । मह कणिहभइणी एसा कमलावई नाम । तारण य अणेग-विज्जाहरकुमार-रुवाणि चित्त-पटिआसु लिहाविऊण आणावियाणि, दंसियाणि य इमीए, परं न कत्थ वि मणं वीसमियं । तओ ताओ को वरो इमीए भविस्सइ त्ति चिंताउरो जाओ | संपइ पुण तइ दिहिगोयरं गए 'गरुयाणुराय-रसिय व्व दीसइ इमा, ता इमिणा चेव विवाहोवगरणेण इमीए पाणिग्गहणेणं अणुग्गहं "कुणउ कुमारो, जेणाहं कयत्थमप्पाणयं मन्ने मि । ताओ य वर-चिंता-समुद्दाओ नित्थारिओ होइ ।
एत्थंतरे वणदेवयाए विन्नत्तं--- कुमार ! मह ताव तए पायालभवण-समप्पणेण एवं पओयणं कयं, संपयं पुण बीयं पि कुणसु । . कुमारेण भणियं- जं तुमं आणवेसि ।
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सुमइनाह-चरियं वणदेवयाए भणियं--
जइ एवं ता लीलावईए गरुयाणुराय-कलियाए । हात्ति करग्गहणेणं कीरंतु मणोरहा सहला ||६५१|| कुमारेण भणियं-- जं भे रोयइ । तओ
दोण्हं पि करग्गहणं नरिंद-विज्जाहरिंद-कन्नाणं ।
गंधव्व-विवाहेणं कयं कुमारेण सुमुहुत्ते ।।६५२।। पवणवेग-विज्जाहरो वि पणमिऊण कुमार-चलणे भइणि-विवाहेण कयत्थमप्पाणयं मन्नं तो गओ सहाणं । कुमारो गमणूसुयमणो वि वणदेवया-वयणेण ठिओ केत्तियं पि कालं, देवीए य संपाडिज्जमाणमणिं दियाणुकूल-सयल-भो गोवभो गोवगरणो ताहिं समं विसयसुहमणुहवइ ।
अह "केत्तियम्मि काले वोलीणे पुरिससीह-कुमरस्स । जाया मणम्मि चिंता किमेवमहमेत्थ' चिहामि ? ||६५३|| जइ वि हु पायालघरं समग्ग-भोगोवभोग-रमणिज्जं । तह वि हु एयं पडिहाइ मज्जा गब्भासय-सरिच्छं ||६५४|| जओजं विक्कमेण चाएण दीण-दुहिओवयार-करणेण । नर-जम्म-फलं जस-धम्म-अज्जणं वज्जरंति बुहा ||६५५।। तं नत्थि "एत्थ पायालमंदिरे मज्झ संवसंतस्स । अप्पंभरिणो निच्चं कायरस व विहल-जीयस्स ||६५६|| इय चिंतिऊण कुमरो कयाइ वणदेवयाइ विरहम्मि । लीलावइ-कमलावई-भज्जाणं सुहपसुत्ताणं ||६५७|| अमणिय-पय-संचारं पायालघराओ इत्ति निक्खंतो । तं लंधिऊण रच्नं गिरि-सरिया-तरुवर-रवण्णं ॥६५८।। पुहइं परिब्भमंतो गामाऽऽगर-नगर-गोउलाइल्नं । कालेण कित्तिएणं पत्तो एगम्मि गामम्मि ||६५१।। उवविठ्ठो देवउले, बंदिणमेक्वं पलोइउं पुरओ । पुच्छइ महायस ! तुमं कत्तो कत्थ व पयट्टो सि ? ||६६०।।
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं भणियं अणेण हत्थिणपुराओ पोयणपुरम्मि चलिओ म्हि । कुमरेण तओ भणियं तत्थ तुमं केण कज्जेण ? ||६६१ || तो मागहेण वृत्तं तुमए पयडं पि किं न मुणियमिणं ? | कुमरो पयंपइ तओ किं तं ? अह बंदिणा भणियं ||६६२ || भद्द ! सुण एत्थ पोयणपुरम्मि पुरिसोत्तमस्स नरवइणो । सोहग्गसुंदरीए देवीए गब्भ - संभूया || ६६३॥
सोहग्गमंजरी नाम कन्नया अंग- चंगिम - गुणेण । रइ-रंभ - रूव - पयरिस-संरंभ-निरंभण-पवीणा ॥ ६६४॥
जीए निम्मल - मुह-कमल- कंति - कवलिय- समग्ग- सोहग्गी । सकलंको लज्जाइ व चंदो संचरइ रयणीए ||६६५ ||
जीए लोयण - 100 लावन्न - लच्छिमवलोइउं व अब्भहियं । लज्जावसेण नीलुप्पलाई सलिले निलुक्काई ||६६६ ||
तीए य कला-कलाव-कोसल्ल- समुल्लसंत- गत्ताए कया पइन्ना'जो मं वीणा - विणोएण जिणइ सो चेव मं परिणेइ' त्ति । तओ राइणा काराविओ सयंवरा मंडवो, हक्कारिया सव्वे वि रायतणया । अहं प कोउगवसेण तत्थेव पयट्टो । कुमारेण भणियं— जइ एवं ता अहं पि तुम समं गंतूण पेच्छामि १०१ अच्छेरयमिणं । तओ बंदिणा 'किमजुत्तं ?' ति भणंतेण भणियं - 'कुमार ! उवलक्खिओ मए संखउर - सामिणो महाराय - विजयसेणस्स नंदणो पुरिससीह कुमारी तुमं ति । कुमारेण य लज्जोणय- वयणेण दिव्न्नं कडय-जुयलं बंदिणो । तओ चलिया दो वि पत्ता पोयणपुरं । जं च
कंचन - घडिय - पायार, पुरिसत्थ- वित्थरणपर,
-
पुरिससत्थ- संचरण-मणहरु हरिणच्छि संकुलु,
विउल - वावि
- कूव - आराम- सरवरु |
जहिं सुरघर - गणु गरिम-गुण-संभिय-रवि-रह- मग्गु । फलिह - सिहर-किरणावलिहिं सहइ हसंतु व सग्गु ||६६७ || तेय दो वि हु तत्थ पेच्छति—
नीसेस - दोसागयह रायसुयह बहु- रिद्धि - डंबर | आवास पइ पवर-पवण-1 - विहुय - धय-चुंबियंबर ||६६८||
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सुमइनाह-चरियं
तग्गुणकित्तणु तहिं सुणिहि बंदियणिहिं किज्जंतु ।
तह पडिरव-पूरिय-भुवणु तूर-निवहु वज्जंतु ||६६१|| इंत-जंतेण रायलोएण केणावि वर-हय-गय(ए?)ण केणवि मत्तमयगल-निविहेण, केणावि संदण-बिहेण केण वि सुह-सुहासण-बइठेण अग्गइ आसि जि रायपह सुह-संचर-वित्थिन ते तहिं समइ समग्ग हुय दुस्संचर-संकिन्नउ । तह वि वज्जिय-अवर-वावार कोऊहल-हरिय-मण रमणि-चंद्र-आबद्ध-मंडललावन्न-संपुल-तणु दिप्पमाण-मणि-कणयकुंडल, काओ वि अद्यालय-चडिय, काओ वि हट्ट-पवन, काओ वि भवण-गवक्ख-गय, काओ वि मंच-निसन्न,
इय जा बहुप्पयारं जण-वावारं पुरम्मि पेच्छंता । वच्चंति ता सयंवर-मंडवमह ते पलोयंति ॥६७०।। जो रयण-विणिम्मिय-तारिआहिं पसरंत-कंति-निवहाहिं । तारय-नियरं दिवसे वि दंसयंतो व्व पडिहाइ ॥६७१|| मणि-सालभंजियाहिं कंचणमय-खंभ-सब्लिविद्याहिं । कोउगवसागयाहिं जो छज्जइ अच्छराहिं व ॥६७२।। मुत्तावचूल-कलिओ जो रेहइ सेअ-चमर-मालाहिं । निवडिर-धारा-निवहो बलाय-पंतीहिं मेहो व्व !!६७३।।
तत्थ य महा-विछड्डेण पविसंतेसु रायकुमरेसु कुमारो बहुरूविणीए विज्जाए वामणग-रूवधारी तेण बंदिणा समं पविहो । वामणगरूवधारिणो वि दह्ण अउव्वं सोहा-समुदयं तस्स लोएहिं दिल्लो मग्गो रंग-मज्ो । दिहो इमो पुरिसोत्तम-राएण । तओ मणहर-दंसणो को वि एसो त्ति संजाय-संभमेण रन्ना दाविआसणे उवविठ्ठो कुमार, पिट्टओ अ बंदी । दिहो कुमारो पडिवण्ण-सरीरो व्व रइवल्लहो सोहग्गमंजरीए । चिंतियं च--- अजुत्तं मए ववसिअं, जं पइन्ना कया
वीणा-विणोअ-विनाण-वजिओ वि हु इमो पुरिस-रयणं । परिणेयन्वो सोहग्ग-गुण-निही निच्छएण मए ||६७४|| तं चेव नियइ तं चेव चिंतए पत्थए य तं चेव ।
जाया खणमेत्तेणं सा कुमरी तम्मया तइया ||६७५|| तओ जहारिह-क य-संमाणे सु निसन्ने सु रायतणएसु मिलिए
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं कोऊहलेण सयल-लोए उवरिहिएसु सुर-सिद्ध-विज्जाहरेसु उहिऊण एगेण विअड्ड-कंचुइणा महया सद्देण भणियं--
भो भो नरिंद-तणया ! एआए एत्थ रायधूयाए । सुगुणाणुरागिणीए कया पइण्णा इमा पुव्वं ॥६७६।। जहासव्व-कलाणं पवरा वि लोभणिज्जा य सव्व-जीवाणं । विक्खाय-गुणा लोए एगा वीणा-विणोअ-कला ||६७७।। जो एआइ कलाए अहिओ मे को वि इह कुमाराणं । सो चेव मज्झ दइओ होउ न अत्थिऽत्थ संदेहो ||६७८।। ता पयडेह नियं खलु विन्नाणं एत्थ जस्स जावंतं । पावेह जेण एवं विजय-पडायं व कामरस ||६७१।। एगेण अईव-कला-गन्विएण मग्गिया वीणा । अप्पिया य सोहग्गमंजरीए | आसारिया अणेण | धरिओ पच्चासने मत्त-मयगलो । तओ मणहर-सरेण वाईऊण वीणं सो विओ मयगलो । जाओ साहुवाओ । पुणो वि चिंतियं सोहग्गमंजरीए 'हद्धी न याणीयइ किं पि भविस्सइ ? एए वि रायतणया अईव-कला-कुसला दीसंति | ता जइ अभग्ग-पइना पावेमि हिअ-इच्छियं दईयं ता सोहणं हवेज्ज' ति । एत्थंतरम्मि गहिया अन्लेण वीणा, धराविओ पच्चासने विरहो नाम तरू |. तओ वाईऊण वीणं फुल्लाविओ विरहओ । अनेण गहिया वीणा । वाईऊण मणहरं दूर-देसहिओ वि आगरिसिओ हरिण-जुवाणओ । तओ गहिया अन्लेण, दिल्लो गयवरस्स इह-कवलो । वाईऊण वीणं मोयाविओ सो अद्धभुत्तं कवलं । १० एवमाइ अन्नाणि वि अणेगप्पयाराइं दंसियाई अन्ले हिं वि कुमारेहिं कोऊहलाई । जाओ सव्वेसिं पि साहवाओ । तओ गहिया सोहग्गमंजरीए वीणा । वाईआ अणाए जाव पसुत्तो तक्खणा गयवरो, वमिओ चिरकाल-भुत्तो कवलो, दूराओ चलण-मूले पत्तो मुद्धकुरंगओ०३. आमूलाओ वि फुल्लिओ विरहओ । किं बहुणा ?
तह कहवि तीए वीणा तइया कुमरीए वाईआ तत्थ । समं चिय जायाइं कुमार-कय-कोउगाई जहा ||६८०।। एयं पुण अब्भहियं जाओ सव्वो वि रंगजण-नियरो । जं वज्जिय-वावारो चित्तालिहिओ व्व खणमेक्वं ।।६८१।।
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सुमइनाह-चरियं
तो विम्हिया कुमारा लज्जोणय वयण-पंकया सव्वे । जाया मुक्तयासा चिंतिउमेवं समारद्धा ||६८२|| अत्थि इमा रइरूवा निरुवम सोक्खाण कारणं जइ वि । जरहर - तक्खय-चूडामणि व्व दुलहा तह वि नूणं ||६८३ || राया वि विसन्नमणो चिंतइ एवं कए वि जइ कह वि । लहइ न निव्वुइमेसा धूया ता देव्व ! किं कुणिमो ? ||६८४|| अह पेम्म-परवसाए सविलास - वलंत - तार - नयणाए । कुमरीए मणेण समं कुमरस्स समप्पिया वीणा || ६८५ || महुर-सरा गुण - पवरा कर-गेज्जा तुंबयत्थणी वीणा । कंठ - विणिवेस - जोग्गा गहिया कुमरि व्व कुमरेण ||६८६|| भणियं अणेण— 'सुंदरं रायसुयाए विन्नाणं, किंतु वीणा न सुंदर' त्ति । रन्ना भणियंकहं चिय ? कुमारेण भणियंजओ न सुद्धो सरो । रन्ना भणियं- केरिसो सुद्धो होइ ? | कुमारेण भणियं— दढं सुइ- सुहंकरो । रन्ना भणियं— एसो वि एरिसो चेव । कुमारेण भणियं अओ वि सुंदरी होइ । रन्ना भणियं— को पुण इह पच्चओ ? कुमारेण भणियं वीणाए चेव सोहियाए उवलब्भइ । रन्ना भणियं— को एईए दोसो ? कुमरेण भणियं- दंडो मज्झ - पविट्ठ - कक्करग - संबंधेण सकलंको, तंती वि गब्भिणी वुड्ड- वालेण । निरूवावियं रन्ना । जाव तहेव संजायं, विम्हिओ राया । संठविऊण आसारिया कुमरेण वीणा । एत्थंतरे भणिया बीअ हिअयभूयाए भद्दाभिहाणाए पिय सहीए सोहग्गमंजरी जहा — पियसहि ! यासारो (?) चेव अउव्वो, उवलक्खिज्जमाण- पयडभेयं सर - मंडलं, विचित्तो गाम-राग- प्पवेसो, हिअयहारिणी मुच्छणुब्भेआ । ता सव्वहा अहिओ एस एयाए कलाए तिहुयणस्स वि भविस्सइत्ति लक्खीयइ । कओ य तए पइन्ना-विसेसो । कुसंठाणो एस वामणगी । ता किमित्थ कायव्वं ? । सोहग्गमंजरीए भणियंअसंबद्धपलाविणि ! न एस वामणगो किंतु तुमं १०४ तिमिरंतरिय - नयणा एवं पेच्छसि ता पडिक्खसु खणं, सुणसु ताव एयं सवणामयं ति ।
एत्थंतरम्मि लोओ निच्चल - नयणो विमुक्त-वावारो । वीणा - मणहर - झंकार- मोहिओ सुविउमाढत्तो०५ ||६८७||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तओ तं सव्वं पि वीणा-रव-मो हियं सुन्न - मणं रंग-जणं निरूविऊण बहुरूविणीए विज्जाए कयाइं कुमरेण बहूणि रूवाणि, तेहि वि भमिऊण रंग-मज्ो गहियाओ सोहग्गमंजरीए करंगुलीहिंतो पंच वि मुदियाओ, ०"पुरिसोत्तम-पत्थिव-हत्थाओ कणय-कडगो, अन्लेसिं पि रायतणयाईण संतियं गहिअं असेसं पि कुंडलाईयं०८ आभरणं । न लक्खियं केणावि । कओ रंग-मज्झे आभरण-पुंजो ।
तओ खणंतरं वाईऊण ठिओ कुमारो । विउद्धो रंग-लोओ | दिहो आभरण-रासी । विम्हिओ सव्वो वि जणो । उल्लसिओ साहुवाओअहो ! अच्छेरयं ति भणंतेहिं गयणहिएहिं सुर-सिद्ध-विज्जाहरेहिं मुक्का कुसुमंजली उवरि कुमरस्स । केवलं वामणयरूवत्तणेण विसनो सव्वो वि रंग-जणो, भणिउं पवत्तो अहा- जइ एयरस कला- कोसल्लाणुरुवं रूवं भवेज्ज ता को अग्धं करेज्ज त्ति । इमं च सुणंती विसण्णा सोहग्गमंजरी । चिंतेइ जहा- मए नायं 'एसा चेव सही मह भाववियाणणत्थं एयं वामणगरूवं वाहरइ । जाव न केवलं, एस सव्वो वि रंगजणो वामणगरूवं एयं साहेइ । अहं पुण अमरकुमारोवम-रूवं पेच्छामि। ता किमेयमिंदयालं ?' ति सोयवस-पमिलाण-वयणकमलमालोइऊण रायकल्नं कयं साहावियं रूवं कुमारेण, दिहं सव्वेण वि रंगमंडव-जणेण, भणियं च- अहो ! कुमारस्स कला-कोसल्लं, अहो ! रूव-संपया, अहो ! सोहग्गं, अहो ! सव्व-गुणाणं पि पगरिसो त्ति । इमं च सव्व-रंगजणुल्लावमायग्निऊण तुहा सोहग्गमंजरी । तओ वियसियमुहकमलाए सविलासमुहिऊण ईसि सज्झसवस-वेविरंगीए गहिऊण कोमल-कर-पल्लवे हिं परिमल-मिलंत-मुहलालि-जाला वरमाला पक्खित्ता पुरिससीह-कंठे । जयजयावियं मागहेहि । कुमर-मागहेण वि पढियंविजयसेण-वसुहाहिव-जंदणु,
सयल-भुवण-जण-नयणाणंदणु । पुरिससीहु महि-मंडल-मंडणु .
जयइ कुमरु रिउ-राय-विहंडणु ।।६८८।। 'अहो । सचरियं' ति उग्धोसियं सयल-लोएण । महर-गंभीर-सरतूर-समकालं पणच्चियं पणंगणाहिं, पारद्धो अविहव-विलयाहिं धवल
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सुमइनाह-चरियं
१०७ सद्दो, कीरंति कोउगाई, आगच्छंति वद्धावया, पविसंति अक्खवत्ताई, आयरिज्जति लोयाण उचिओवयारा, सम्माणिज्जंति सम्माणणिज्जा, दिज्जति महादाणाई, पयट्टो नयरम्मि 'महूसवो, कयाओ हट्ट-सोहाओ, पइघरं बदाई तोरणाई, सोहणे१२ मुहुत्ते सोहग्गमंजरीए पाणिं गाहिओ कुमारो । सम्माणिऊण विसज्जिया सव्वे वि सेसा नरिंद-तणया । पुरिससीह-कुमारो उण गंधसिंधुर-कं धराधिरूढो सन्निहिअ-करेणुआरूढाए सोहग्गमंजरीए समं सम्माणिज्जंतो नयर-लोएणं, नच्चंतेणं विलासिणी-सत्थेणं, वाइज्जतेणं मंगल-तूरेणं, पढंतेण बंदि-विंदेण, पए पए किज्जंत-मंगलोवयारो पत्तो रायभवणं । तओ महाराय (राएण) समप्पियं पवर-पासायं । तम्मि सम्माणिज्जंतो य राइणा नाणाविहविणोएहिं कीलंतो कालं गमेइ ।
इओ य सो मागहो कुमार-कय-संमाणो पत्तो संखपुरं । तत्थ य तेण कुमार-जणणि-जणयाणं नायरगाणं च कुमार-विरह-जलणजाला-पलित्ताई वीणा-विणोअ-गुणावज्जिअ-पुरिसोत्तम-रायसुयापरिणयण-वुत्ताऽमयरसेण निव्वावियाई हिययाइं । विजयसेणेणावि कुमार-दंसणूसुय-मणेण सिक्खविऊण पेसिया पहाण-पुरिसा, पत्ता पोयणपुरं, दहण कुमारं पणया चलणेसु । तेणावि गाढमालिंगिऊण सुहासणत्था पुच्छिया जणयाण कुसल-वुत्तंतं ।
तेहिं वि सगग्गयक्खरमंसु-जलोहलिय-लोयणजुएहिं । भणियं कुमार ! विरहम्मि तुज्झ जणयाण किं कुसलं ? ||६८१|| जम्हा कुणमाणा वि हु जणोवरोहेण रज्ज-कज्जाई । चिंताई अणिमिसच्छो देवो देवो व्व पडिहाइ ||६१011 देवीए रुयंतीए उरत्थले थूल-बाह-बिंदूहिं । निवडतएहिं निच्चं विहिओ हारावलि-विलासो ||६११|| किं बहुणा ? तुह विरहे नयर-जणो सोय-गलिर-नयण-जलो । धाराहर-धीउल्लिय-तुल्लो जाओ असेसो वि ||६१२।। संदिहं च तेहिंआराहणेणं बहु-देवयाणं,
लदो तुमं भूरि-मणोरहेहिं ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं अम्हेहिं रोरेहिं निहि व्व पुव्वं,
न दीससे दिव्ववसेण इण्हेिं ||६१३|| कुमर ! तुह विओए सोय-वज्जप्पहार
प्पडिहय-हिअयाणं जं दुहं जायमम्हं । तणुअ-तणुअ-मंतेणेव तेणग्गलेणं,
अहरगइ-गएणं दुक्खिया नारया वि ॥६१४|| तुह विरह-मुग्गर-हयं हिअयं अम्हाण एत्तियं कालं । फुर्ट जं न तुह च्चिय गुणेहिं बद्धं ति तं नूणं ।।६१५।। ता वच्छ ! दयं काउं एज्ज दुअं, जंपिएण किं बहुणा ? | जीवंता पेच्छामो जेणऽज्ज वि तुज्झ मुह-कमलं ||६१६|| तो पुरिससीह-कुमरो गुरु-नेह-समुल्लसंत-अणुतावो । बाहजल-भरिय-नयणो चिंतिउमेवं समाढत्तो ||६१७|| गुण-दोस-वियार-वियक्खणेण जइ गुरुजणेण तइया हं । सिक्खविओ ता किं एत्तिएण जाओ म्हि अन्नमणो ||६१८|| यत:धन्यस्योपरि निपतत्यहित-समाचरण-धर्म-निर्वापी । गुरु-वदन-मलय-निसृतो वचन-रसश्चन्दन-स्पर्श: ।।६१|| गुरुवयण-अंकुसो नत्थि वारओ जाण वारणाणं व । उम्मग्गगामिणो ते कुव्वंति अणत्थ-वित्थारं ||७००।। पेच्छंति सुणंति य सुद्ध-वण्ण-रयणुज्जलाई वयणाई । जणणि-जणयाण निच्चं धन्न च्चिय रयणि-विरमम्मि ||७०१।। इय चिंतिऊण कुमरेण जंपियं जं पियं पिउजणरस । तं कायव्वमवरसं मए किमलेण बहुएण ? ||७०२।। इय भणिउं सह तेहिं वि पत्तो पुरिसुत्तमस्स नरवइणो । अत्थाण-मंडवे जाव अप्पणो मोयण-निमित्तं ।।७०३।। रायाणं विलवइ ता पुरिसोत्तम-निवो पणमिऊण ।
पडिहारेण उरत्थल-फुरंत-हारेण विनत्तो ||७०४|| देव । देवदंसणूसुआ दुवारे दुवे तावस-कुमारया चिष्टंति । रन्ला
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सुमहनाह-चरियं
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भणियं— सिग्घं पवेसेहि । 'आएसी' त्ति भणतेण पवेसिया तेण । उचिय- पडिवत्ति-पुव्वं निवेसिया आसणेसु । पुट्ठा य रन्ना- 'अवि सपरिवाररस कुसलं कुलवइणो ? निव्विग्धं निव्वहइ तवोकम्मं ?, तावसकुमार- कर-कय-सलिल- सेय-निच्च सद्दला निरुवद्दवा आसमदुमा ?, वुड्ड-तावस समप्पियनीवारा अनिवारा भमंति मण - पमोअया तवोवण- हरिण-पोयया ? | केण वा कज्जेण निय-पय-पंक एहिं पवित्तियं ठाणमेयं ?' ति । तेहिं भणियं - 'चउरासम- गुरुणी महारायरस पभावेण सव्वत्थ कुसलं, केवलं
कत्तो वि आसमपए संपत्ती अत्थि करिवरो एगो । जो वित्थिन्न - समुन्नय-कुंभत्थल- तुलिय- गिरिसिहरी ||७०५|| सव्वंग- लक्खणधरो दीहकरो दसण दलिय - दुमविसरो । दुव्वार - गइप्पसरो मयगंध-भमंत- भमरभरो || ७०६ ||
सो य महाराय -जोग्गं हत्थि रयणं । अन्नं च— किं चि आसमदुमाणं विद्दवं करेइ त्ति पेसिया अम्हे कुलवइणा । रन्ना भणियं 'महंतो अणुग्गहो कओ अम्हं' । ति सम्माणिऊण ते विसज्जिया । पत्थिओ य हत्थि - गहणत्थं पत्थिवो । एत्थंतरे विन्नत्तो पुरिमसीह - कुमारेण - 'देह मह आएसं, जेणाहमेव गहिऊण समप्पेमि तं महारायस्स' । दिन्नो रन्ना आएसी । नियत्तो सयं राया । चलिओ तुरंगमारूढओ कइवय पहाणजण परिवारो कुमारी । पत्तो तमुद्देसं । दिट्ठो अणेण महिवलय-गयगंध-रायगंध-महमहंतो सग्गाओ समागओ सुरगओ व्व गयवरो । मोत्तूण तुरंग अग्गओ होऊण हक्किओ सो कुमारेण धाविओ तयभिमुहं । संविल्लिऊण पुरओ पक्खित्तमुत्तरिज्जं अणेण परिणओ तत्थ हत्थी । कुमारो वि दंत-मुसलेसु दाऊण चलणे चडिओ हत्थि खंधे, बद्धमासणं अणेण, अप्फालिओ कुंभत्थले करी करयलेण । एत्थंतरे परियणस्स पेच्छंतस्स चेव उप्पईओ हरगल-गवलसामले गयणंगणे, गओ य अगोयरं नयणाणं, पत्तो खणेण वेयड्डपव्वयं । ठिओ तत्थ तरुण-तरुसंड- मंडिउज्जाण - मज्झभागे, सो य कुंजररूवं मोत्तूण जाओ फुरंत मणिकुंडलो विज्जाहरी ।
-
नमिऊण तेण भणियं कुमार ! कंकेल्लि - तरुतले एत्थ । वीसमसु खणं एक्कं जाव अहं रयणपुर पहुणो ॥ ७०७॥
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं रयणप्पह-विज्जाहर-रायस्स कहेमि तुज्या आगमणं । इय जंपिऊण पत्तो खयरो अह चिंतए कुमरो ||७०८।। हरिओ म्हि किमिमिणा खेयरेण ? किं वा इमीए चिंताए ? | दिव्वं चेय पमाणं जणाण सुह-दुक्ख-संजणणे ।।७०१।। पेच्छामि ताव संपइ पगाम-रमणिज्जमेय-उज्जाणं । तो वियरंतो पत्तो तमाल-तरु-मंडवं कुमरो ।।७१०।। सोऊण तत्थ इत्थी-संलावं पेच्छए लयंतरिओ | कुसुम-सयणिज्ज-संठियमेक्वं कन्नं सही-सहियं ||७११|| तो चिंतए कमरो का वि इमा कमल-दल-विसालच्छी । विरह-दसाइ उदग्गं कस्स वि साहेइ सोहग्गं ||७१२|| जओइमीए मुह-पंकयं कय-समत्त-नेतूसवं,
कलंक-परिवज्जिअं पुलइउं ससी लज्जिओ । विसेस-सिरीययं समुवलन्दुकामो धुवं,
नडाल-नयणानलं तिणयणस्स संसेवए ।।७१३|| अह कन्नाए भणियं सहि चूयलए ! गिहं विमोत्तूण । उज्जाणमागया हं महु-समय-विसेस-सिसिरमिणं ॥७१४|| कुसुमाउहेण सुलहेहिं कुसुम-बाणेहिं भिज्जमाणाए । मह उज्जाणं एयं पि पज्जलंतं व पडिहाइ ||७१५|| तहाहिजालाहिं पिव मंजरीहिं हिययं दूमंति चूयडुमा,
इंगाल व्व न दिति लोयण-सुहं कंकिल्लिणो पल्लवा । संतावंति तणुं पलास-कुसुमुक्केरा फुलिंग व्व मे,
भिंगालीउ वि संहरंति हरिसं धूमावलीओ विव ||७१६|| कयं कयलि-वीयणं, कुसुम-सत्थरो सज्जिओ,
विणिम्मियमुरुत्थले, बहल-चंदणालेवणं । भुयासु वलयावली विरइया मुणाली तए,
तहा वि न नियत्तए सहि ! सरीर-दाहो महं ।।७१७।। किं च, पंचसरो वि हु मयणो सर-लक्खं मज्ा हियय-लक्खम्मि । जं मिल्लइ तेण मए लक्खिज्जइ एस लक्खसरो ||७१८।।
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सुमइनाह-चरियं
सुहयस्स दंसणं तस्स दुल्लहं मज्झ मंदभग्गाए । ता इहिं मन्ने हं मरणं चिय अप्पणी सरणं ||७११|| सोऊण इमं कुमरो चिंतइ तरसेव जीवियं सहलं । जम्मि अणुरत - चित्ता खिज्जइ एवं इमा बाला || ७२०|| कन्ना सहीहिं भणिया 'सहि ! मा उत्तम्म धरसु धीरतं । हरिणच्छि ! निच्छियं ते १३ होहिं ति मणोरहा सहला ||७२१|| पोयणपुरम्मि जम्हा पडविओ पुरिससीह कुमरस्स । आणयणत्थं ताएण अज्ज विज्जुप्पहो खयरो' ||७२२|| अह निय - नामं सोउं फुरंत हरिसो विचिंतए कुमरो । नूणं इमीए बालाए कारणेणाहमाणीओ ||७२३|| एत्यंतरे उवितं दहुं विज्जाहराण संघायं । कुमरो नियत्तिऊणं पत्तो कंकेल्लि - तरु-मूले ||७२४|| उचिय- पडिवत्ति-पुव्वं पवेसिओ तेहिं रयणउर-नयरे । ठविओ विउलम्मि विमाण मणहरे रयण- पासाए ||७२५|| भणिओ समए रयणप्पहेण खयराहिवेण सप्पणयं । 'सुण रायपुत्त ! अवहार-कारणं अप्पणी एवं || ७२६ || अत्थि चउण्हं पुत्ताणमुवरि मे रयणमंजरी धूया । अहिगय-कलाकलावा संपत्ता जोव्वणं सा वि ||७२७॥ मह पणमणत्थमत्थाण- मंडवे जणणि पेसिया पत्ता | तीए रुवाइसयं दहुं भणियं मए एवं ||७२८||
सोनत्थि नरो मन्ने इमीइ रुवेण जो वरो जुग्गो । तत्तो विज्जाहर-मागहेण इक्केण संलत्तं ॥ ७२१|| सिरि- विजयसेण - रायस्स नंदणी रूव तुलिय- कंदप्पो । नीसेस- कला - निलओ नामेणं पुरिससीहो त्ति ||७३०|| पोयणपुरम्मि चिट्ठइ संपइ पुरिसोत्तमस्स पासम्मि । सो रयणमंजरीए देव! इमीए वरो उचिओ ||७३१|| इय सोऊणं तीए तहाणुराओ तुमम्मि संजाओ ।
जह विज्जाहर - कुमराण सहइ नामं पि कह वि न सा ||७३२||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरहयं कत्थ वि रइमलहंती अपत्त-निद्दा-सुहा निसासुं पि । करयल-कलिय-कवोला चिट्ठइ तुह संकहक्खित्ता ||७३३।। एयं नाऊण मए कुमार ! आणाविओ तुम एत्थ । ता रयणमंजरिं परिणिऊण मह कुणसु परिओसं' ||७३४।। कुमरो जंपइ 'जं आणवेसि सज्जो म्हि तत्थ किं बहुणा ? | न कुलीण-जणो जाणइ गुरुण पडिकूलमायरिउं' ||७३५।। ता रयणमंजरीए पाणिग्गहणं कराविओ कुमरो । गुरु-रिद्धि-पबंधेणं रयणप्पह-खेयरिंदेण ||७३६।। तह संजाया दोण्ह वि परोप्परं ताण निब्भरा पीई । ताणि जह विरह-दुक्खं न खमंति निमेसमेत्तं पि ||७३७।। अह रयणमंजरीए समं कुमारो मणोरमुज्जाणं । संपत्तो तत्थ वि तस्स निब्भरं कीलमाणरस १७३८|| केणावि खेयरेणं अवहरिया रयणमंजरी भज्जा । तविरहम्मि कुमारो विलविउमेवं समाढत्तो ॥७३१।। 'हा चंद-चारु-वयणे ! वयणं दंसेसु अत्तणो हसिरं । हा देवि ! दीह-नयणे ! सिणिद्ध-नयणेहिं मं नियसु ||७४०।। हा अमय-महुर-वयणे ! पडिवयणं देसु मज्झ दीणस्स ।। हा कुंद-धवल-दसणे ! धवलसु मं दसण-जुण्हाहिं ॥७४१|| हा सरल-मिउ-भुयलए ! परिरंभसु भुय-लयाहिं मजा ति । हा कत्थ गयासि तुमं मुद्धे ? मुळे जणं मोतुं ॥७४२|| इय विलवंतो कुमरो संठविओ ससुर-पमुह-खयरेहिं । पट्ठवइ खेयरे तीइ सुद्धि-कज्जेण सव्वत्थ ||७४३|| अन्न-दियहम्मि तेसिं मज्झाओ खेयरो सुवेगो ति । वेगेणाऽऽगंतूणं इमं कुमारस्स विनवइ ७४४|| तुम्ह निओगेणाहं उत्तर-सेढीए खयर-नयरेसु ।
देविं गवेसमाणो संपत्तो सूरपुर-नयरं ।।७४५।। दिडं च तं सव्वमेव उश्विग्ग-जणं सव्वाययण-संपाइय-पूओवयारं दिसि दिसि खिप्पंत-बलि-सगड-सहस्स-संकुलं, चच्चर-समारद्ध
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सुमनाह-चरियं
कहं
संतिकम्मं । पुच्छिओ मए एगो विज्जाहरो — भद्द! किमेयं ? तेण वृत्तं सखेयं - पहुणो दुन्नय- पायवरस कुसुमुग्गमो त्ति । मए भणियंचिय ? तेण भणियं - सुण, अत्थि इत्थ वज्जवेगो विज्जाहर - राओ । तेण मयण - वसवत्तिणा कस्स वि सप्पुरिसस्स पिययमा अवहरिऊण इहाणीया । भणिओ इमो नयरदेवयाए 'भो भो ! अजुत्तं तुह एवं संपत्तविज्जाहरनरिंद - सद्दस्स काउरिस-चरियं । तहा वि जाव न मिल्लए 119 तयणुरागं ताव संजाओ भूमि-कंपो, निवडियाओ उक्काओ, समुब्भूओ निग्धाओ । तओ संजायासंकेहिं पारद्धं नायरएहिं संतिकम्मं । मए भणियं- कहिं पुण सा चिट्ठइ ? तेण भणियं- नरिंद-मंदिरुज्जाणे तिलय - तरुणो तले । तओ मए गंतूण गयणयल गएण दिट्ठा सखेया खयरी - वंद्र - मज्झ गया देवी रयणमंजरी, भणिया य 'देवि ! नाया तुमं । न तए खिज्जियव्वं । देवीए वज्जरियं— अज्जउत्त - 11" घरणीसद्दमुव्वहंतीए को मह खेओ ? । तओ तं पणमिऊण समागओ हं । विन्नाय - वृत्तंता मिलिया विज्जाहर- नरिंदा । कुमारेण भणियं'सामपुव्वगमेव जायणत्थं तस्स पेसेह कं पि दूयं' । मेहघोसेण भणियं'स-भज्जाणयणे वि दूय - -पेसणं अउव्वो सामप्पओगो !' । संगामसीहेण वुत्तं- 'तस्स वि दूय-पेसणं महंतो मे अणक्खो ।' घणघोसेण भासियं— 'न संपन्नमभिलसियं' | सुघोसेण जंपियं— 'देवो जाणइ' त्ति । विहसियं सीहरहेण, उत्ताडियं मणिप्पहेण १७, पयंपियं घणरहेण, नीससियं सूरतेएण, न चलियं अनिलवेगेण । तओ ""सुहडत्तणेण वीरक्करसाणं असंमओ वि खेयराणं । एसा ठिइ त्ति पडिबोहिऊण ते पेसिओ सिक्खिविऊण विज्जुप्पभो दूओ । गओ सूरपुरं, पत्तो वज्जवेगविज्जाहर - राय - समीवं । भणिओऽणेण सो जहा आणतं पुरिससीहकुमारेण
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जे हुंति उत्तम - नरा उत्तम मग्गेण ते पयहंति | न हि कइया विसमुद्दा निय-मज्जायं विलंघंति ||७४६ ||
जेण भुवणे अकित्ती पसरइ लहुयत्तणं लहइ अप्पा | हिम-हय-कमलाई पिव सुयण-मुहाई मिलायंति ||७४७|| जेण पणस्सइ बुद्धी उवहासी तह वियंभए लोए । लहिऊण य अवगासं सत्तुगणी होइ तुट्ठमणो ||७४८ ||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तमुभय-लोय-विरुद्धं सप्पुरिसा आयरंति न कयावि । परभज्जा-हरणं पुण विरुद्धमिणमुज्झ मा मुज्डा ||७४१।। ता इत्ति समप्पसु रयणमंजरिं पुरिससीह-कुमरस्स । तुह अन्नहा भविस्सइ संदेहो जीवियत्वे वि ||७५०।।
एवं विज्जुप्पहेण भणिए "गुरुय-रोसावेग-विगय-हियाहियवियारो वज्जवेगो वुत्तुं पवत्तो- 'कहं धरणिगोयरो भविय मज्डा आणं पेसेइ ?, ता न पेसेमि रयममंजरिं | साहेसु जस्स साहियव्वं' ति । ____ २०निव्वूढो विज्जुप्पहो समागओ पुरिससीह-समीवे ।
पणमिऊण विन्नत्तोऽणेण पुव्वुत्त-वुत्तंतो ||७५१।।
एयं सोऊण खुहिया खेयर-भडा वियंभमाणाऽमरिसवसेण । हुंकारियं मेहघोसेण, रण-रहसुच्छाह-समुच्छलिय-पुलएण अप्फालिओ भूओ संगामसीहेण, रोस-रज्जत-नयणेण खग्गम्मि निवाडिया दिही सुघोसेण, रिउप्पहार-विसममुन्नामियं वच्छत्थलं घणघोसेण, कोवानलजलिएणं पि अंधारियं मुहं सीहरहेणं, उविल्लिउद्ध-भुयजुयं वियंभियं मणिप्पहेण, पयंपिय-पुव्वयं समाहयं धरणितलं घणरहेण, आसन्न-समरपरिओस-फुटवणमुहेण उससियं सूरतेएण, भरिय-नीसेस-गिरिगुहाकंदरं हसियं अनिलवेगेण । ___ तओ भणियं पुरिससीह-कुमारेण– आसन्न-विणिवाओ, पणहबुद्धिविहवो य सो तवरसी, तो अलं तम्मि संरंभेण | चिट्ठह तुब्भे, अहं पुण खग्गदुइओ इओ गंतूण दंसेमि से भूमिगोयर-परक्कम । विज्जाहरेहिं भणियं- कुमार ! असमत्थो सो तुम्ह भिच्चस्स वि परक्कम पेक्खिउं, किं पुण तुम्हाणं ? ति । एत्थंतरे मिलियं विज्जाहर-बलं, उवणीयं विमाणं, आरुढो तम्मि कुमारो, समाहयं मंगलतूरं, अणुकूल-पवण-पणच्चमाणधवल-धयवर्ड चलियं विज्जाहर-बलं, समुच्छलिओ जयजया-रवो, निवडिया कुसुम-वुढी, समुब्भूओ आणंदो ।
__ एवं च वच्चंतं पत्तं सूरपुरासन्नं सयलं पि सेन्नं । मुणियं वज्जवेगेण | अवन्नाए पेसिओ अणेण वीरसेणो सेणावइ, समागओ महया विज्जाहरबलेण । आगयं पवर-बलं ति कुमारसेने उच्छलिओ कलयलो । आहया समर-भेरी, पवत्ता सन्नहिउं विज्जाहरा, गहियं कुमारेण खग्ग-रयणं । एत्यंतरे समागओ दूओ, भणियं च तेण- 'भो भो विज्जाहरा !
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सुमइनाह-चरियं
११५ वज्जवेग-सामिणो सेणावइणा वीरसेणेण पेसिओ हं, आणत्तं च तेण जहा भूमिगोयरं पुरओ काऊण तुम्ह अप्पडिहयप्पयावेण देवेण वज्जवेगेण सह समरसद्धा, पया य तुब्भे देव-रायहाणिं, ता किं इमिणा किलेसेण ?, सज्जा होह । समाणेमि अहं देवस्स एग-भिच्चो तुम्ह विग्गह' ति । एयं च सोऊण 'वज्जवेगो नागओ' त्ति विमुक्वं कुमारेण खग्ग-रयणं, सेणावइ आगओ त्ति मउलियं विज्जाहर-बलं, 'अहं पि इह सेणावइ' त्ति उहिओ सीहरहो, धाविओ वीरसेणाभिमुहं, पवत्तमाओहणं । मेहजालेण विअ च्छन्नमंबरं सर-नियरेण, निग्घाया विअ परोप्परं पडंति खग्ग-प्पहारा | मिलिया सेणावइणो, लग्गं गया-जुज्ज्ञ, अवरोप्पर-कयप्पहारा रुहिरमुग्गिरंता पडिया दो वि धरणिवठे, मुणिय-वुत्तंतेण वज्जवेगेण दवाविया समर-भेरी । आणत्तं च- रएह गरुड-वूहं । तओ सन्नहिउं पवत्तं वज्जवेग-बलं । कहं ?
ढोइज्जंति भडाणं सन्नाहा जच्च-कणय-रयणमया । दिप्पंतोसहि-वलया, समंतओ सेलकूड व्व ॥७५२।। भड-रुहिर-लालसाओ जम-जीहाओ व्व खग्ग-लट्ठीओ । दुज्जण-वाणीओ विव भल्लीओ भेय-जणणीओ ||७५३।। वेसाओ व धणुहीओ गुण-बद्धाओ वि पयइकुडिलाओ । पर-मम्म-घट्टणपरा पिसुण-पबंध व्व नाराया ||७५४|| तत्थएवमुवणेज्जमाणे रणोवगरणम्मि केणइ भडेण । सन्नाहो न कओ च्चिय दइया-थण-फरिस-लुद्धेण ||७५५।। केणावि समरसद्धा-निबद्ध-गाढग्गहेण अवगणिया । थोरंसुय-सित्त-थणी निय-दईया रोयमाणी वि ||७५६।। अन्लेण सिढिल-वलया वियलिय-कंची गलंत-बाहजला । एसोऽहमागओ झत्ति एवमासासिया दइया ||७५७।। अन्नस्स अप्पियं पीयमाणमवि पाणवयं भरियं । घोरंसुएहिं उवरिहिया इहइ आइसुहुयरं ||७५८।। मुच्छाए चेव अन्नस्स दंसिओ पिययमाए अणुराओ । दइयाइ कयं मंगलमवररस विलक्ख-हसिएण ||७५१।।
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૧૧દ
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं इय विविह-वियार-पिआ-पयडिय-पणएहिं खेयर-भडेहिं । सहिओ विणिग्गओ वज्जवेग-विज्जाहर-नरिंदो ||७६०।। कुमार-सेल्ने वि ताडिया कुविय-कयंत-हुंकार-सन्निभा वज्जप्पहारफूटत-गिरि-सद्द-भीसणा संगाम-भेरी, रण-रहसब्भडाणं विज्जाहरभडाणं उच्छलिओ कलयल-रवो । दिज्जत-विलेवणं, विअरिज्जतकुसुममालं, पिज्जंत-पवरासवं, सम्माणिज्जंत-सुहडं, वनिज्जतपडिवक्खं, उब्भिज्जंत-भडचिंधं, पलं बिज्जत-चामरं, रइज्जंत-वूह, मंडिज्जंत-छत्तं, संमाणिज्जंत-गमणमंगलं, उग्घोसिज्जत-जयसई, सुवंतपुनाहघोसं, सन्नद्धं कुमार-सेन्नं । निवेसिया चक्कवूह-रयणा । ठिओ वूहस्स अग्गओ घणरहो, वामेण कणयप्पभो, दक्खिणेणं मणिप्पभो, पच्छिमेण मेहघोसो, मज्झे अनिलवेगो, सयं पि कुमारो विमाणारूढो रयणप्पहप्पमुह-विज्जाहर-परिगओ ठिओ गयण-मज्झे । आसन्नीहूयं वज्जवेग-बलं ।
पुच्छि ओ कुमारेण परबल-राईणं नामाई विज्जुपहो । भणियं च तेण- देव ! तुंडे ठिओ गरुडवूहस्स सुदाढो, वामपासे विज्जुमुहो, दाहिणपासे मेहमुहो, मज्यो अग्गिमुहो, पिहओ वज्जवेगो । परबल-दंसणपहिडं चलियं कुमार-बलं । वज्जंत समर-तुराई, वग्गंत-विज्जाहराइं, उग्घोसिज्जंत-पुत्वपुरिस-गोत्ताई, विमुक्त-सीहनायाई, कर-कट्टियकरवालाइं, चंड-भुयदंड-कुंडलिय-कोयंडारोविय-कंडाई, उग्मीरियगरुअ-मोग्गराइं, फुरंत-कराल-कुंतवग्ग-हत्थाई, उप्पाडिय-सेल्लभल्ल-वावल्ल-पट्टिस-मुसंढि-भीसणाई, अद्धचंद-छिन्न-छत्तचिंधाई, कोउगेण खुरुप्प-कप्पिय२५-विवक्ख-सीस-केसाई, मिलियाई दो वि बलाई।
तओ पुरिससीह-कुमारो किरणजाल-उज्झोइय-सयल-दिसिचक्वं देवया-विइब्नं खग्गरयणं करे काऊण परबलस्स पुरओ ठिओ | असिरयण-पभावेण खयर-भडाणं झड त्ति पडियाइं सत्थाई पायवाणं पवणेण व पक्व-पत्ताई । "ता सुर-सिद्धेहिं नहंगणाओ मुक्काओ कुसुम-वुडीओ तुढेहिं कुमर-उवरिं । जय-जय-सद्दो य उग्घुट्ठो ।
अवि य
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सुमइनाह-चरियं
निवडिय-पहरण-निवहा सव्वे खेयर-भडा गलियदप्पा । सुत्तं पिव मत्तं पिव मयं व मन्नंति अप्पाणं ।।७६१|| "ता वज्जवेग-खयरो पभावमच्चब्भुयं कुमारस्स । दहूं कंठ-निवेसिय-परसु य कंबलय-पावरणो ||७६२।। महि-निहिय-सिरो नमिऊण अग्गओ रयणमंजरि काउं । विनवइ जोडिय-करो कुमार ! मह खमसु अवराहं ||७६३।। गिण्हसु निम्मल-गुण-गुंफ-संगयं रयणमंजरि देविं । अमिलाण-सील-परिमल-मणोरमं कुसुम-मालं व ॥७६४|| तह पडिवज्जसु रज्जं वच्चामि तवोवणं अहमियाणिं । इय जंपिऊण सव्वं तहाकयं वज्जवेगेण ||७६५|| कुमरो वि हु रयणसिहं रयणप्पह-जेह-नंदणं ठवइ । सयल-जण-सम्मएणं रज्जपए वज्जवेगस्स ।।७६६।। तो रयणमंजरि गिहिऊण परिओस-पसर-पडिपुल्लो । रयणपुरं संपत्तो विज्जाहर-नियर-परिअरिओ ||७६७।। ठिओ तत्थ कंचि कालं । तओ जणणि-जणय-संदेसयं सुमरंतो दिप्पंत-मणिमय-विमाणमाला-संछाइय-नहयलो रयणप्पह-रयणसिहविज्जुप्पह-पमूह-महाविज्जाहर-वंदा- परिगओ रयणमंजरीए समं पत्तो पोयणपुरं । १२"पुरिसोत्तमस्स रनो धूयं रयण-कणयाहरण-विहिय-सोहं सोहग्गमंजरिं पिउ-पेसिय-पहाण-पुरिसे य विमाणमारो विऊण पत्तो रयणकूड-पव्वयासन्नं पायालभवणं । तयब्भंतरे पट्टविय-विज्जाहरवयण-विनाय-वुत्तं ताए वणदेवयाए पवर-पाहड-प्पयाण-पूवं समप्पियाओ दवे लीलावइ-कमलावइ-पियाओ | घेत्तूण चलिओ पत्तो विजयपूरं । तत्थ अरिदमण-रायस्स धूयं नाणाविह-रयणाहरणकिरणुक्वेर-कप्पिय-सक्वचाव-चक्वं रयणावलिं घेत्तूण पत्तो कंचणपुरं । तत्थ "वइरसीह-नरवइणो धूयं कणय-रयणालंकियं कणयावलिं घेत्तूण गओ सीहपुरं । तत्थ सीहविक्कमस्स रनो धूयं निरुवम-रूवरेहं मयणलेहं घेत्तूण पत्तो सिरिउरं । तत्थ पुरंदरस्स रन्नो धूयं मणहर-रयण-- सुवन्नाहरण-चिंचइय-देहं चंदलेहं घेत्तूण पत्तो संखउरासन्नं ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं गयणंगणाओ किं पबल-पवण-उप्पाडिओ पूणो पडइ । एसो असेस-रयणायराण रयणाण उप्पीलो ||७६८।। किं चनिरालंबण-गयण-मग्ग-चंकमण-खेय-निविघ्नं । एयं धरणीवलयम्मि सयलमोअरइ गहचक्कं ||७६१।। पुलफल-विसय-संदेह-विहर-हिययाण धम्मिय-जणाणं । पच्चय-निमित्तमेसो किं वा सग्गो सयं एइ ? ||७७०।। एवं वियप्पमालाउलेहिं लोएहिं सच्चविज्जंती ।
पत्ता विमाण-पंती रयण-वियाणं व पुरमुवरिं ॥७७१।। __ तओ विज्जाहरेहिं अग्गओ आगंतूण कुमारागमणेण वद्धाविओ विजयसेण-महाराओ । तेणावि परिओसवस-विसप्पंत-हियएण आणत्तो नयरे महूसवो ।
तो ठांवि ठांवि निम्मविय मंच, वित्थरिय विविह-रयणप्पवंच । नच्चंत-विलासिणि विजिय-रंभ, कय कयलियलंकिय कणय-खंभ । नीसेस-लोय-नयणाणुकूल, ओलंबिय मणि-मुत्तावचूल । पल्लविय गयण-पटुंसुओह, सव्वत्थ पयट्टिय हह-सोह । कुसुमोवहार पइ पइ विमुक्त, घरि घरि विइब्न मोत्तिय-चउक्त । पहि पहि निबद्ध तोरण-महंत, जणि जणि पिणद्ध आभरण-कंत । पडमंडव विरइय छत्तसूर, गंभीर-घोस वज्जंत तूर । उल्लासिय धय गयणग्ग-लग्ग, कुंकुम-रसि सिंचिय रायमग्ग ।
[घत्ता] इय हरिस-समुभवि कयइ महूसवि पवरि पढंतई बंदियणि । विप्फारिय-नयणिहिं दिहउ रमणिहिं कुमरु पविहउ निय-भवणि ।।७७२।।
निवडिओ जणणि-जणयाण पय-पंकए । तेहिं परिरंभिओ य चूंबिओ मत्थए । अह वहयाओ पणयाओ । तयणंतरं धरणितल-लुलिअसिर-हरिस-भर-निब्भरं पिउ-गिराए निसनो सुवण्णासणे । दसए खयर-पणमंत-मणि-भूसणो,महुर-वयणेहि जणएहिं संभासिओ सव्ववुत्तं तो कहइ सो हरिसिओ । तं सुणेऊण वियसंत- लोअण-जुआ
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सुमइनाह-चरियं
૧૧૭ जणणि-जणया य संजाय-विम्हय-जुया भणहिं-- ता वच्छ । एयं पि जुत्तं कयं दंसियं जं चिराओ वि मुह-पंकयं । अम्ह पउराण तह तुज्झा विरहग्गिणा, डज्झमाणेण सव्वंग-संसग्गिणा, .. उण्ह-सासेहिं जेसरवरासोसिया, पुण विनयणंसु-सलिलेणतेपोसिया।।७७४।। भणइ तो कुमरु जं तुम्ह दूरं गओ, वंचिओ तं अहं चेव निब्भग्गओ। चत्तु चिंतामणी जेण गुणगामणी, सो य वंचिज्जए न उण चिंतामणी ।।७७५।।
एवं पणय-निब्भर-परोप्परालावेहि कंचि कालं ठिया जणयतणया | रन्ना विसज्जिओ कुमारो गओ नियावासं । कु मारेणावि संमाणिऊण विसज्जिया विज्जाहर-नरिंदा, गया सहाणं । कुमारो वि अहहिं पणइणीहि समं सुर-कुमारो व्व अच्छराहिं विसयसुहमणुहवइ । अन्नया माह-समए मणिमय-गवक्ख-मओ भणिओ भज्जाहिंअज्जउत्त ! चिरं कीलियं सारिज्जएण, संपयं कुणसु पण्होत्तर-विणोयं । कुमारेण वुत्तं- 'किमजुत्तं ?' तओ चंदलेहाए पढियं
तुरयस्स कं पसंसंति ? साहुणो किं तवेण विहुणंति ? | किं वंछइ कामियणो ? तिन्नि वि भण एग-वयणेण ||७७६||
कुमारेण कहियं- रयं । वेगं, बज्झमाण-कम्म, निहुवणं च । संपयं मम सुणसु
कं चंदो ? के हत्थी ? किं तुच्छो वहइ ? कं च मरुदेसो ?।
किं देइ पहू तुहो ? पंच वि भण एग-वयणेण ।।७७७। चिंतिऊण भणियं चंदलेहाए- मयं । हरिणं, दाणं, अहंकारं, करह, वंछियं च ।
[एकालापके ] मयणलेहाए पढियं
कीहशो दंदशूक: स्यात् ? क: संग्रामे भयंकरः ? | भर्तुर्वियोगमापन्ना कीदृशी दश्यतेऽङ्गना ? ||७७८।।
कुमारेण कहियं-विषादती । विषा-विषवान्, दंती-हस्ती, विषादं कुर्वती च |
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इहि मम सुण
को धातुः प्राप्त्यर्थी, वदन-पदं कीदृशं वनं ब्रूते ? |
कं वीक्ष्य तुष्यति शिखी ? वृद्धत्वे स्यान्मुखं कीदृक् ? || ७७९|| मयणलेहाए कहियं- नीरदं । नीर्धातुः १, अदं = दकार - रहितं २, नीरदं मेघं ३, विगतदंतं च ४ । [ व्यस्तसमस्ते ।]
कणगावलीए पढियं—
किं न विजेतुं शक्यं ? प्राणभृतः कं विना न जीवंति ? | वनंति केरिस वा तवस्सि वग्गं ? कहसु कुमरु ||७८०|| खमाहारं । खं इंद्रियं, आहारं भोजनं, खंति -
कुमारेण कहियं
सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
भोयणं च ।
इण्हिं मज्झ सुण
कीदृग् दृष्टापराधस्य भर्तुर्वक्त्रं प्रियां प्रति ? |
केरिस बिंति संसारसिंधु ? कणगावलीए कहियं - ||७८१|| मंदेहिं, दुत्तरं अलसदुत्तरं । अस्फुरत्प्रतिवचनं । अलसेहिं दुल्लंघं च । [ भाषाचित्रके ॥]
रयणावलीए पढियं
-
=
कीदृग् मुनिः सुहृदि वैरिणि वा ? | नृणां कः क्षेमंकरस्त्रिजगतोपि भयंकरः कः ? | स्वरांगना निशि किमिच्छति कांतपार्श्व यांती ? परस्य न करोति कदर्थनां कः ? ||७८२||
कुमारेण कहियं—
सदयतमः । समः
= सदृशः । दमः = इन्द्रियजयः । यमः कृतांतः । तमः = तिमिरं | अतिशय कृपालुश्च ।
संपयं मे सुण
वहति करभः कं ? कं तुष्टो ददाति पतिः ? | नृणां द्रविणरहितं प्राहुः कं ? कं बिभर्त्ति भुजंगमः ? | हिमगिरिसुता - कंठाश्लेषप्रियं प्रवदंति के ? |
भजति सुमतिर्मत्वा कीदृग् जिनेन्द्रमतौषधं ? || ७८३ ||
-
=
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1ર
सुमइनाह-चरियं
रयणावलीए कहियं
भवरोगहरं । भरं = भारं । वरं = प्रसादं । रोरं = २७दरिद्रं । गरं विषं । हरंशंकरं । कर्मव्याधि-विध्वंशकं च [मंजी] || १२"कमलावईए पढियंभवति किं सुकृताद ? हरिराह कश्वरति खे ? किमु वाजि विभूषणं?।
भरत-भाषित-गीत-कलाविदां स्फुरति चेतसि कः ?(कुमारेण 1"कहियं) - स्वरविस्तरः ॥७८४।।
'स्वः' = स्वर्गः । हे 'अ!' = विष्णो । 'विः' = पक्षी । 'तरः' = वेगः । षड्जादीनां स्वराणां विचारश्च । ममावि सुण
कीदृग् चक्रं ? कति दर्शनानि? माताह कीदृशो धर्मः ?।
तं भजतः स्यात् कीदृशः ? (°क मलावईए भणियं)कलुषडंबरमणीयः ॥७८५।।
कं=मस्तकं लुनाति कलु । षट् संख्यानि । हे अंब = जननि । रमणीयः= रम्यः । कलुष डंबरं = पापस्फूर्जितं, अणीयः अल्पतरं [लिंगचित्रे] 1'लीलावईए पढियं
क्षपायां विरहात्पक्षी को दुःखातॊ भवेदिति । प्रश्नं विदधदत्रैकः कीदृशं प्रापदुत्तरं ।।७८६|| कुमारेण कहियं – कोकः । कोऽकः = सुखरहितः इति प्रश्ने उत्तरं । कोकश्चक्र: । ममावि सुण
कामिनां का मनोज्ञेति प्रश्नो यः केनचित् कृतः ।
तस्मिन्नेवोत्तरं तेन लेभे कथय कीदृशं ? ||७८७|| ५३२लीलावईए कहियं-- कामधुरा । का मधुरा = मनोज्ञेति प्रश्ने उत्तरं कामथुरा = कामस्य स्मरस्य धुर्भरः । [सहशोत्तरे ।] सोहग्गमंजरीए पढियं
कः स्थैर्य नैति ? को वध्वाः पूर्वं कान्तेन गृह्यते ? | भारं वहति कः ? को वा स्त्रीणां गुरूपमां व्रजेत् ? |७८८।। कुमारेण कहियं-- करभः । को = वायुः । करः = पाणि ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं करभ = उष्ट्रः । मणिबंध = कनिष्ठिका मध्यं च । ममावि सुणकिमभिलषति लोकः ? कीदृशं ब्रूत धातु
विहगमिह ? तुरंगस्यानने न्यस्यते किं ? वदत सलिलशून्यां निम्नगां कीदृशीं ? कां
विदितसकलशास्त्रोप्यश्नुते नाल्पपुण्यः ? ||७८।। सोहग्गमंजरीए भणियं—
कविकलां । कं = सुखं । कविं । कस्य = ब्रह्मणो । विं = पक्षिणं । कविकं = तुरगमुखस्य लोहबंधनं । क-विकलां = केन = पयसा, विकलां = ऊनां । कवीनां कलां च । रयणमंजरीए पढियं
ऋषभस्य कीदृशौ भरतबाहुबलिनौ ? प्रभुर्वदति केन ? | ज्वलति शिखी, कस्मैकेन किं वितीर्णं शिवाय स्यात् ? ||७१0।। कुमारेण कहियं
नंदनी विभवेधसा । नंदनौ = पुत्रौ । हे विभो = प्रभो । एघसा = इंधनेन । साथवे = मुनये । भविना = संसारिणा । ओदनं = भक्तं ॥ ममावि सुणतन्वङ्ग्यास्तनुजां तां वीक्ष्य कामी किं वक्ति तां प्रति ?।
ब्रूते दर्पवतां श्रेणिः का वैराग्यनिबंधनं प्रति ? ||७११|| रयणमंजरीए कहियं
राजते तनिमा तव । राजते = शोभते । तनिमा = कृशता । तव = भवत्याः । बत कोमलामन्त्रणे मानिनां । तते = पंक्तौ । जरा = वृद्धत्वं ।
[गत प्रत्यागते । ] इत्यादिभिर्नानाविधैर्विनोदैनिमेषानिव दिवसान्, दिवसानिव मासान्, मासानिव संवत्सरान् निर्वाहयामास कुमारः ।
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૧૨૩
सुमइनाह-चरियं
पाठांतर : १. हियइसल्ल ल. रा. ।। २. हणेति दे. पा. || ३. पव्वाइयाए रा: परिवाइयाए ल. ।। ४. ०कुसलाए ल. || ५. परिवाइयाइ ल; पव्वाइयाइ रा. ॥ ६,८. माइंदी ल.रा. ।। ७. वणिसुया ल. रा. ।। १. अइगरेण ल. || १०. अइगरमग्गं ल. || ११. अइगरं ल. || १२. पित्तुं ल. रा. ।। १३. रयणीइ दे. पा. || १४. हणिति ल. रा. ।। १५. पाडिउं सो दे. पा. ।। १६. पवग्गा तहा दे.पा. ।। १७. उविंति वि० दे. पा. || १८. बद्धो रा.दे. ॥ ११. एयस्सिं रा. पा. || २०. धरणीयले दे. पा. ।। २१. मिल्लेज्ज दे. पा. ॥ २२. अइगर-० ल. रा. ॥ २३. वेरग्ग संगया दे. पा. || २४. सनरनं । दे. पा. ।। २५. ०सुक्ख० ल. रा. ॥ २६. सरइकालो ल. रा. | २७. पहह ल. रा. ॥ २८. उज्जाणवालेण ल. रा. || २९. आसासिज्जउ दे. पा. ॥ ३०. विभूईओ ल. रा. ।। ३१. 0सेणराओ अणि दे. पा. ॥ ३२. साहारमं0 दे. पा. || ३३. सोहगव्व० ल. रा.।। ३४. ०संपाडण ल. रा. || ३५. पिच्छंती ल. रा. ॥ ३६. चेव ल. रा. ॥ ३७. एक्वस्स दे. पा. ।। ३८. एक्वं दे. पा. ॥ ३१. सयमवि विवेयमग्गे ठवियं कहवि नियचित्तं ।। ल. रा. ॥ ४०. गड्ड प० ल. रा. ॥ ४१. सयं कयकम्म० ल. रा. ॥ ४२. मूलगमे । ल. रा. ॥ ४३. एवं ठिए दे. ॥ ४४. पयत्तो ल. रा. ।। ४५. तहवि य पुव्व० ल. रा. || ४६. निम्महणसहाई ल. रा. ।। ४७. ता ल. रा. ॥ ४८. विणिम्मविअ भवणाओ ल. रा. । ४१. सुणह ल. रा. ।। ५०. माणभद्दो ल. रा. ॥ ५१. मा भणसु तुमे अम्ह पुरो दे. पा. ।। ५२. पणइं पा. ।। ५३. सव्वजगज्जीवहिओ दे. पा. र. ।। ५४. ०म्मए वंछियत्थ० दे. पा. ।। ५५. 0तरुणिवंदाइं पे० दे. पा. ॥ ५६. ०तु खणेखणे ल. रा. ॥ ५७. तुमए । ल. रा.।। ५८. तुब्भ ल. ॥ ५१. वि अ राया ल. रा. ।। ६०. व्या सुधम्माओ || ल. रा.।। ६१. रज्जं ल. रा. ॥ ६२. जइ य तुमं दे. पा. ।। ६३. देवी भणइ दे. पा. || ६४. सीहं सुवि० ल. || ६५. तथाहि ल. ।। ६६. रेहिति दे. पा. ।। ६७. सा तुरियतुरियं ठिओ रा. ।। ६८. 0तरं तो लज्जिया रा; तरं तो सा लज्जिया दे. पा. ॥ ६१. ०णेण चडिओ राय० दे. पा. ।। ७०. त्ति । कओ विवाहो ल. रा. ।। ७१. ०क्खीहूओ दे. ।। ७२. मागहेण कित्तिज्ज० दे. पा. || ७३. गुणकित्तणं दे. पा. ॥ ७४. गरुयाण पा. || ७५. विज्जासाहगेण अवहरिऊण गरुय० दे. पा. ।। ७६. को एस ?। धूयाए ल. रा. ।। ७७. सुणिओ दे. ।। ७८. 0पुर नयरं रा. ।। ७१. वयरसीहो दे. पा. ।। ८0. समं ल. रा. ॥ ८१. ०पहुणा रा. पा. || ८२. मुह दे. पा. ।। ८३. सप्पुरिसस्स दे. पा. || ८४. मित्तेण
ल. रा. ।। ८५. उहंभिओ ल. || ८६. रुयमेयस्स ल. रा. ।। ८७. रीयं, तह मज्ा दे.
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૧૨૪
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पा. || ८८.चेव नो तुज्झ ? ल. रा. ॥ ८9. oमित्त० ल. रा. ।। १०. एत्तियं कालं ल. ।। ११, १३. गुरुया० ल. रा. || १२.कुणसु कुमारो ल. || १४. रोएइ रा. ।। १५. केत्तिए ल. रा. || १६. मित्थ ल. रा. ॥ १७. इत्थ ल. रा. || १८. ०वइ उभयाणं सुह- ल. रा. || 99. ०पइसंचारं ल. रा. || १00. 0लायनलच्छिंमविलोइउं ल. रा. || १०१. अच्छरिय० ल. रा. || १०२. कवलं । इच्चाइ अण्णाणि दे. पा. || १०३. ०कुरंगो दे. पा. || १०४. तिमिरभरियनयणा ल. रा. ॥ १०५. माढतो ।। ६८७ ।। तं सव्वं ल. रा. ।। १०६. कुमारेण दे. पा. || १०७. पुरिसुत्तम० द. पा. || १०८. ०ईअ आभ० दे. पा. ।। १०१. मिदियालं ल. रा. ॥ ११0. सब्भमवस० ल. रा. ।। १११. महोसवो ल. || ११२. सोहणमु० दे. ॥ ११३. होहेंति दे. पा. || ११४. सेढीइ दे. पा. || ११५. मिल्हए ल. रा. ॥ ११६. घरणिस६० दे. पा. रा. ॥ ११७. ०प्पभेण रा. पा. || ११८. सुहडभावेण ल. रा. || १११. गरुय० पा. || १२०. णिच्छूढो दे. पा. रा. ।। १२१. ०कप्परिअवि० दे. पा. || १२२, १२३. तो दे. पा. || १२४. ०वंद्रपरि० दे. पा. || १२५. पुरिसुत्तमस्स दे. पा. ॥ १२६. वेरिसीह० ल. रा. ।। १२७. दलिद्रं दे. पा. ।। १२८, १३०. लीलावईए दे. पा. || १२१. भणियं दे. पा. || १३१, १३२. कमलावईए दे. पा. || १३३. कहियं दे. पा. || १३४. रान-तिवाहयामास दे. पा. ||
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पंचमो पत्थावो
अन्यदा उद्यानपालकेन प्रणिपत्य विज्ञप्तो यथा - कुमार ! कुसुमाकरोद्याने स्वर्गापवर्गपुर-मार्गस्पन्दनश्चारुचारित्र - चमत्कृतसंक्रंदनः सकल- जगज्जय-जातदर्प-कंदर्प-निष्कन्दनः, शुभोपदेशवचन - शैत्यगुणाऽवगणित- हरिचन्दनः पक्षिराज इव विनतानन्दनः श्री विनयनन्दन - सूरिराययौ । तं निशम्य गदितं मुदितोऽस्मै पारितोषिकमदत्त कुमारः । गन्ध-सिन्धुरमसावधिरूढस्तस्य वन्दन - निमित्तमगच्छत् । वीक्ष्य सूरिमवतीर्य करीन्द्रात् पर्वतादिव मृगेन्द्र- किशोरः, भूरि- भक्तिभरनिर्भर - चेताः स प्रणम्य निषसाद पुरस्तात् ।
सूरिरुग्रभवदावसमुत्थं विप्लवं प्रशमयंस्तनुभाजां । कर्त्तुमारभत मन्द्र-निनादो देशनाममृत-वृष्टिभिवाब्दः ||७१२|| आर्य देश - कुल-रूप-बलाऽऽयु-बुद्धि-सङ्गतमवाप्य नरत्वं । नात्मनोदितविधौ यतते यः पोतमुज्झति पयोधिगतः सः ||७१३|| आधि-व्याधि-विसर्पि-दंश-मशके मोहांधकारावृते,
राग-द्वेष- कपाट - संपुट- घने संसार- कारागृहे । आत्मा सैष कषाय- कुड्य - कलिते रुद्धो हठादष्टभिः,
कर्म्म- प्राहरिकैश्चतुर्गति- महाकोण - स्थितः पीड्यते ||७१४ ||
तत्राऽऽद्यः प्राहरिको ज्ञानावरण-नामा पञ्चभिर्मति श्रुताऽवधि - मनः पर्याय- केवलावरण-स्वरूपै रूपैरुपेतः पीडयति सर्व्वजन्तून् १ । द्वितीयो दर्शनावरण-नामा नवभिर्निद्रा-निद्रानिद्रा-प्रचलाप्रचलाप्रचला - स्त्यानर्द्धि - चक्षुरचक्षुरवधि-के वलदर्शनावरण- लक्षणै रूपैः कदर्थयति देहिनः २ । तृतीयो वेदनीय-नामा दाभ्यां साताऽसातस्वभावाभ्यां रूपाभ्यां विडम्बयति सत्वान् ३ । चतुर्थो मोहनीय-नामा, तत्र मिथ्यात्व-मिश्र-सम्यक्त्वैस्त्रिभेदो दर्शन-मोहः, क्रोध- मान-मायालोभैः प्रत्येकमनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यान - प्रत्याख्यानावरण-संज्वलन - रूपैः षोडशभिः कषायैः स्त्री-पुं- नपुंसकवेद - हास्य- रत्यरति - शोकभय - जुगुप्सारूपैर्नवभिर्नो कषायै च पंचविंशति रूपश्वारित्र - मोह इत्यष्टाविंशत्या रूपैः संसार- कारागारान्निः सरन्तं निवारयत्ययमात्मानं ४ |
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
पञ्चमः पुनरायुर्नामा सुर-नर- तिर्यग्- नारकायुप्क-प्रकारैः ' रूपै - रुद्रवधः कोण - चतुष्टये निक्षिपति प्राणिनः ५ । षष्ठो नाम-नामा, तत्र१ गति - २ जाति ३ शरीराङ्गो४पाङ्ग - ५ बन्धन- ६ संघात ७ संहनन-८ संस्थान - ९ वर्ण - १० गन्ध ११ रस - १२ स्पर्शा - १३ SSनुपूर्वी - १४ विहायोगति - लक्षणाश्चतुर्दशपिण्डप्रकृतयः, त्रस - स्थावर - बादर-सूक्ष्मपर्याप्ताऽपर्याप्त प्रत्येक साधारण- स्थिराऽस्थिर- शुभाशुभ-सुभगदुर्भग- सुस्वर - दुःस्वरादेयाऽनादेय - यशः कीर्त्य यशः कीर्ति - लक्षणा विंशतिः सेतराः प्रकृतयः, अगुरुलघूपघात- पराघाताऽऽतपोद्योतोच्छ्वासतीर्थकर - निर्माण - रूपा अष्टौ प्रत्येक प्रकृतयः सर्व्वा द्विचत्वारिंशत् । यदि वा सुर-नर- तिर्यग्- नारक - लक्षणाश्चतस्त्रो गतयः १ । एक-दित्रि- चतुःपञ्चेन्द्रियलक्षणाः पञ्चजातयः २ । औदारिक - वैक्रियाऽऽहारकतैजस- कार्मणानि पञ्चशरीराणि ३ । औदारिक- वैक्रियाहारक- रूपाणि त्रीण्यं गोपाङ्गानि ४ । शरीराख्यानि पञ्च-बन्धनानि ५ । पञ्चसंघातनानि च ६ । वजर्षभनाराच नाराचाऽर्द्धनाराच - कीलिकाछेदस्पृष्टानि षट् संहननानि ७ । समचतुरस्र - न्यग्रोधमण्डल - सादिवामन - कुब्ज - हुंडानि षट् संस्थानानि ८ । सित-पीत रक्त-नील - कृष्णाः पञ्च वर्णाः ९ । सुरभिरसुरभिश्च दौ गन्धौ १० 1 कटु- - तिक्तकषायाऽम्लमधुराः पञ्च रसाः ११ । शीतोष्ण - स्निग्ध - रूक्ष-गुरु-लघु-मृदु-कर्कशा अष्टौ स्पर्शाः १२ । चतस्रः सुर-नर- तिर्यग्- नारकानुपूर्व्यः १३ । शुभाशुभे दे विहायोगती १४ । इत्येवं पिण्डप्रकृतीनां पञ्चषष्ट्या भेदैः पूर्वोक्ताः अष्टाविंशत्या च त्रिनवतिः । यदि वा बन्धन- संघातनानां शरीरग्रहणेन ग्रहणात् दशके । वर्ण- गन्ध-रस-स्पर्शानां विंशति भेदानां भेदत्यागे नैकैकग्रहणात् षोडशके चापनीते त्रिनवतेः सप्तषष्टिः । यदि व बन्धनस्य पञ्चदशभेदत्वादधिक- दशवृद्ध्या त्रिनवतिस्त्र्यत्तरं शतं भवतीत्येवंरूपैरनेकसंख्यैरयं विडम्बनास्पदतया परिणामयति तनुमतः ६ । सप्तमो गोत्रनामा उच्च-नीचाभ्यां दाभ्यां रूपाभ्यामुच्चैर्नीचैश्च स्थापयन् प्राणभाजी विजृम्भते ७ । अष्टमः पुनरन्तराय-नामा दान-लाभभोगोपभोग-वीर्याणां विघ्नभूतैः पञ्चभिः शरीरैः प्रगल्भते ८।
૧૨૬
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इत्यष्टभिः प्राहरिकैः प्रचण्डैः कदर्थ्यमानं भवचारकेऽस्मिन् । यः स्वं पुमान्मोचयितुं यतेत स एव पुंस्त्वं बिभृते न शेषः ॥ ७९५ ||
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सुमहनाह-चरियं
अत्रान्तरे संसृतिगुप्तिगेह - बिभ्यन्मना राजसुतो जगाद | आत्मैष तेभ्यो भगवन् विमोच्यः कथं ? ततः सूरिरिदं बभाषे ||७१६ || अस्ति क्षमायां प्रथित-प्रतिष्ठं श्रेयःपुरं जैनजनाभिरामम् । सदा सदाचार - विशालशालं, जिनेश्वराज्ञा-परिखा-परीतं || ७९७ || तत्रोऽस्ति विध्वस्त- विपक्षवर्गश्चारित्रधर्मो नृपतिर्महीयान् । तस्योद्भटाः सन्ति भटाः प्रबोध-संवेग - वैराग्य-विवेक-1 - मुख्याः ॥७९८॥ चारित्रधर्मस्य नृपस्य सेवां चिकीर्षसि त्वं यदि राजसूनो ! । तदा प्रयुक्ते स्वभानऽयं तान् संसार- कारागृह - भञ्जनाय ||७११|| निघ्नंति ते प्राहरिकान् जवात् त्वां चारित्रधर्मस्य नयंति पार्श्वं । दौर्गत्यविध्वंसकरं समर्प्य, रत्नत्रयं सोऽपि सुखीकरोति ||८०|| तओ 'भयवं ! जणणि जणए आपुच्छिऊण तुम्ह चलण - कमले चारित्त - धम्मं सेविस्सामि ।' ति भणिऊण समागओ स-गिहं कुमारो, पणमिऊण विन्नत्ता अणेण जणणि जणया- 'अज्ज मए वंदिया गुरुणो, सुया धम्मदेसणा, विरतं मे भवचारयाओ चित्तं ता पसायं काऊण अणुजाणह तुब्भे जेण गुरु-पायमूले चारित्त धम्म- सेवाए माणुसत्तणं सहलीकरेमि ।' तेहिं भणियं— 'वच्छ ! मणोरह-सएहिं देवयाराहणेण लद्धो तुमं अच्चंत पाणप्पिओ अम्हाणं, ता कहं अणुजाणेमो ?' कुमारेण वुत्तं- 'जइ अहं तुम्ह पाणप्पिओ ता जम्म-जरा-मरण- -रोग-सोगाइवसण-सय-संकुलाओ संसाराओ नीसरंतो सुहुयरं अणुमन्नियव्वो, जओ विविह- कयत्थणा - पगाराओ [संसाराओ] निग्गच्छंतं, पज्जलंत-जलणजालाकलाव - कवलिज्जत-जंतु संताणाओ पलीवणाओ पलायमाणं, फुरंत फारफुंकार - भयंकर - विसहराओ विसमंध - कूव - कुहराओ नीहरंतं, अच्चंत - दुग्गमाओ अगाह - कद्दमाओ निक्खमंतं समुल्लसंत महल्ल - कल्लोल-माला - रउद्दाओ समुद्दाओ नित्थरंतं कहं पि पियजणं अप्पणा तव्वसण - लंघणासमत्थो को नाम सकन्नो निवारेइ ?' | जणएहिं भणियं— 'वच्छ ! जुत्तमिणं पव्वज्जा - गहणं, किंतु दुक्करं, जओ एत्थ वोढव्वो दुव्वहो पंच- महव्वयभरो, आयरियव्वं सरीरमत्ते वि निम्ममत्तं, परिहरियव्वं राइभोयणं, भोत्तव्वो बायालीस-दोस विसुद्धो पिंडो, तपियव्वं तिव्व-तवच्चरणं, पालणिज्नाओ पंच-समिईओ, न मोत्तव्वाओ तिनि गुत्तीओ, कायव्वं अकिंचणत्तं वहियव्वाओ मासाईयाओ पडिमाओ,
.
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૧૨૮
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं गहियव्वा दम्व-खित्त-काल-भावाभिवगहा, वज्जणिज्जं जावज्जीवमज्जणं, सईयव्वं भूमि-सयणेण, लुंचियव्वा ससोणिया केसा, करणेज्जं निप्पडिकम्मत्तणं, वसियव्वं गुरुकुल-वासे, सोढव्वा 'छुहा-पिवासाईया परीसहोवसग्गा, वट्टियव्वं लद्धावलद्ध-वित्तीए, खणं पि न परिच्चइयव्वो अट्ठारससहस्स-सीलंग-भारो, तमिणमणुहाणं लोहमय-चणय-चव्वणं व, निस्साओ वालुया-कण-कवलणं व, निसिय-करवाल-धारा-चंकमणं व, जलंत-जलणजाला-जालपाणं व, भुयाहिं अपार-पारावार-तरणं व, तुलाए तियस गिरि-तोलणं व, "सुरतरंगिणी-पडिसोय-संचरणं व, एगागिणा पबल-परबल-दलणं व, राहावेह-विहाणं व दक्करं' । कुमारेण भणियं- 'दुक्करं कायराणं, न उण धीराणं । जओ
पविसंति रणं लंघंति जलनिहिं गिरिवरं पि तोलिंति । तं नत्थि जए वित्थिन्न-साहसा जं न कुव्वंति' ||८०१||
जणएहिं भणियं- 'कुमार ! तुह सुकुमारसरीरस्स मालईदामस्सेव ... मुसल-मुसमूरणमणुचियमिणमणुढाणं ।
नहि नीलुप्पल-दल-धाराए कह[स्स] कट्टणं कीरइ । ता वच्छ ! दुक्ख-बहुला पव्वज्जा न तुह जोग्ग' त्ति ||८०२।। कुमारेण भणियं-- 'ताय !
नारय-तिरिय-नराऽमर-गइ-सरुव-संसार-समुब्भवाणं दुक्खाणं अणंत-भागे वि न पव्वज्जाए दुक्खं । तहा हि
अच्छि-निमीलिय-मित्तं नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं । 'नरए नेरईयाणं अहोनिसं पच्चमाणाणं ||८०३।। तिरियाण वि जं दुक्खं अंकुस-कस-पहार-पमुहेहिं । तं सयल-जयप्पयडं को वण्णइ एक्क-जीहाए ? ||८०४।। चारग-निरोह-वह-बंध-रोग-धणहरण-परिभवाईहिं । पडिपुन्नाणं दुक्खेहिं माणुसाणं पि नत्थि सुहं ||८०५।। ईसा-विसाय-पियविप्पओग-पेसत्त-चवण-पमुहेहिं । विनडिज्जति सुरा वि हु विविहेहिं दुक्ख-लक्खेहिं ।।८०६।। संसारिय-दुक्खाणं नत्थि इमाणं विमोक्खणोवाओ । अल्लो जयम्मि मोत्तुं 'इक्वं जिण-अक्खियं दिक्खं ।।८०७।।
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सुमइनाह-चरियं
दिक्खाए दुहं जं पयंपिअं मोह-मोहिय-मणेहिं ।
तं पि सुहज्झाण-हेउत्तणेण दुक्खं चिय न होइ ||८०८।। जओ
देवलोग-समाणो उ परियाओ महेसिणं ।। रयाणमरयाणं च महा-नरयसालिसो ||८०१।। तथा, नैवास्ति राजराजस्य तत्सुखं नैव देवराजस्य । यत्सुखमिहैव साधोर्लोकव्यापाररहितस्य ||८१०।। इय कुमर-वयणमायनिऊण जणएहिं जुत्तिजुत्तं ति ।
अणुमनिओ कुमारो वय-गहणत्थं विणा वि मणं ।।८११|| तओ पणमिऊण जणणि-जणए गओ नियमंतेउरं, अब्भुहिओ सहरिसं पिययमाहिं, निसल्नो सुवब्लासणे, जहारिहं निविहाओ अह वि पणइणीओ । भणियाओ कुमारेण- 'अज्ज विणयनंदणसूरि-समीवे धम्मदेसणं सुणिऊण 'विरत्तं मे भवचारयाओ चित्तं, नियत्ता विसय-तण्हा, उल्लसियं जीव-वीरियं, समुन्भूओ चरण-परिणामो । तोडिऊण पासं व घरवास-वासंगं, उज्झिाऊण जुन्न-रज्जु व रज्जं, वज्जिऊण विसं व विसय-सोक्खं, पव्वज्जं पडिवज्जिस्सामि ।' एयं च असुयपुव्वं सवणदुस्सहं सोऊण गरुय-दुक्ख-समुच्छलिय-मुच्छा-निमीलियच्छीओ धस त्ति धरणियले निवडियाओ सव्वाओ । हाहारव-गब्भिणं 'अंगपरिचारिगाहिं कय-सिसिरोवयाराओ सत्थीभूयाओ इमाओ । भाविवियोग-सोग-संगलंत-बाहप्पवाहाउल-लोअणाओ सगग्गय-गिरं भणिउं पवत्ताओ
'हो अज्जउत्त ! गरुयाणुराय-रसियाओ तह विणीयाओ । किं उज्झिऊण अम्हे समुज्जओ संजमं काउं ? ||८१२|| अम्हेहिं किमवरद्धं ? कहेसु काउं अणुग्गहं सुहय ! । तुमए विणा अणाहाण नाह ! अम्हाण को सरणं ? ||८१३|| एत्थं तरे भावि-पिय-विप्प ओग-दुक्खंतरिय - लज्जाए सं लत्तं समुल्लसंत-महंत-सिणेहाए चंदलेहाए
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पुरिसेणं बुद्धिमया आरंभंतेण गरुय-कज्जाइं । मुत्तूण ऊसुयत्तं थिरत्तणं होइ कायव्वं ।।८१४।। अथिरत्तणेण रहसग्गलेण कज्जाइं जाइं कीरंति । परिणामे विहडंताई ताई पच्छा दुहं दिति ।।८१५|| यतःअत्वरा सर्वकार्येषु त्वरा कार्यविनाशिनी । त्वरमाणेण मूर्खेण मयूरो वायसीकृतः ।।८१६।। कुमारेण भणियं- 'को सो मुक्खो ? ।
तीए भणियं-- सुण, खिइपइहिए नयरे सागरो वाणियगो आसि । तस्स य सावगो त्ति कलिऊण समप्पियं सेस-सावगेहिं चेइय-दव्वं । भणिओ सो- 'चेइय-करणुज्जयाणं सुत्तहाराईणं तए दायव्वमेयं'। सो वि लोभ-दोसेण न तेसिं रोक्कदव्वं देइ । "तम्मेि दायव्वे एत्तिओ वि मे लाभो होउ ।' त्ति धन्न-गुल-घयाईणि तेसिं दाउं पवत्तो । एवं कुणंतेण तेण बद्धमबोहीबीय-लाभंतरायं कम्मं | तक्वम्मदोसेण मओ समाणो सागरो नाणाविह-वेअणाओ सहमाणो भमिऊण अणेगासु हीणजोणीसु तक्वम्मसेसयाए समुप्पलो वसंतउरे वसुदत्तस्स वसुमईए भारियाए गब्भम्मि
पुत्तत्ताए । तओ गब्भदीणाओ आरब्भ वसुदत्तस्स धणं खिज्जिउमाढत्तं | जाए य तम्मि जम्म-दियहे चेव मओ वसुदत्तो । तओ पूनहीणो त्ति खिंसिओ लोगेण, पच्छा तस्स पुन्नहीणो त्ति नामं पसिद्धिं गयं । अहवारिसियरस य मया माया । पच्छा परघरेसु दमग-वित्तिं कुणमाणो कालं गमेइ । अन्नया नीओ निय-घरं माउलगेण भणिओ य -- वच्छ ! निच्चिंतो चिट्ठसु मह घरे त्ति । सो वि पुण्णहीणो विणयं कुणंतो वि, महुरं पयंपंतो वि, नीयं चंकम्मंतो वि पुव्वकम्म-दोसेण न सुहावहो लोयस्स । अण्णया तक्वरेहिं मुटुं तस्स माउलगस्स घरसारं । पच्छा लोगो पुलहीणमुद्दिसिऊण भणिउं पवत्तो - 'वरु सयणासणु खाणु पाणु धणु परियणु घोडओ,
पुलवंतु जणु जाइ जत्थु तहिं जेहो उडओ । पुग्नहीणु पुण जत्थ होइ तहिं सव्वु विघोडओ,
तक्खणि सुक्कइ तं जि डालु जहिं चडइ कवोडओ' ||८१७।। इच्चाइ दुव्वयणाइं जणाओ सोउमचयंतो निग्गओ तओ ठाणाओ परिब्भमंतो महाकिलेसेण पत्तो तामलित्तिं । तत्थ विणयंधर-सेहि-गिहे
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सुमइनाह-चरियं वुत्ताणत्तयं कु णं तो ठि ओ । थोव-दिण-मज् य पलीवियं तस्स घरमग्गिणा । पुनहीणो त्ति सो निव्वासिओ परियणेण, चिंतिउं पवत्तो----
""हा जीव । तए पुव्वं कीस न कम्मं सुहं कयं किं पि । जेणेरिसं "जणाओ विडंबणं नेय पावंतो ।। ८१८ ।। बहुजण-धिक्कारहया पए पए "भज्जमाण- मणवंछा । पुवकय-पावकम्मा पावंति पराभवं पुरिसा ।। ८११ ।। "ता किं करेमि ? कत्थ व वच्चामि ? मरामि संपयं किं वा ?। मह पुव्वकम्म-दोसा न होइ सुकयं कयं किं पि ।। ८२० ।। जइ वि एवं तहावि नरेण ववसाओ न मोत्तव्यो । जओ - 'महुमहणस्स न वच्छे न चेय कमलायरे सिरी वसइ ।
ववसाय-सायरेसु पुरिसाण लच्छी फुडं वसइ' || ८२१ ।। इच्चाइ चिंतिउठणं पुण्णहीणो गओ समुद्दतीरं । तम्मि चेव दियहे चलिओ परतीरं पवहणेण धणावहो नाम नाइत्तगो मिलिओ तस्स, वृत्तो य तेण- 'आगच्छ मए समं । ति । सुह-मुहत्ते य पेल्लियं पवहणं, पत्तं परतरि । उवज्जियं किं पि धणं पण्णहीणेण, नियत्तमाणस्स य तस्स तेणेव नाइत्तगेण समं विवन्नमंतरा जाणवत्तं । पत्तं पुलहीणेण भवियव्वयानिओगेण फलह-खंडं, तम्मि विलग्गो उत्तिन्नो सत्त-रत्तेण समुद्दाओ, पत्तो य तीर-संठियं गाममेक्वं । ओलग्गिउं लग्गो गाम-ठक्कुरं । अन्नया अतक्विया चेव पडिया तम्मि सत्तु-धाडी, विणासिओ गाम-ठक्कुरो, बंधिऊण गहिओ पुलहीणो, नीओ निय-पल्लिं, वुत्तो य किं तस्स तुम होसि ? ति । तेण भणियं-- देसंतरागओ वणिय-पुत्तो हं धणत्थी ओलग्गो । पच्छा तेहिं मुक्को । परिब्भमंतो य पत्तो महाडविं, दिहो य पुन्नहीणेण तत्थ बिभेलगो नाम जक्खो | तओ
सो नत्थि धण-निमित्तं आढत्तो जो मए न ववसाओ । कास-कुसुमं व सव्वो संजाओ निप्फलो नवरं ||८२२|| तहा वि स पाडि हेर-जक्ख - पडिममारा हे मि ।' त्ति चिं तिऊण सम्मज्जिया भूमी, सित्ता सीयल-जलेण, पक्खालिया जक्ख-पडिमा, “पूइया सुरहि-कल्हार-कुसुमे हिं, पडिऊण पाएसु विन्न विउं पवत्तो पुन्नहीणो
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं भमिऊण धणत्थी दुत्थिओ अहं पुहइमंडलं सयलं । अप्पत्त-वंछियत्थो संपइ तुह पासमल्लीणो ||८२३।। ता सामि ! मं पलोयसु करुणाभर-मंथराए दिहीए ।
जेण समणंति इमाई मज्झ दालिद्द-दुक्खाइं ॥८२४।। तओ कारुन-रसाउन्न-हियएण भणियं जक्खेण- 'भद्द ! संझाए मह पूरो नह-पयदृस्स मोरस्स गलियमेक्वेक्वं सुवन्न-"पिच्छं गहिज्जस्' त्ति । ‘पसाओ' त्ति भणंतेण पडिवन्नं पुलहीणेण । समागया संझा, संपत्तो सिही, वित्थारिऊण कलावं पयहो नच्चिउं । नच्चंतस्स य गलियमेक्वं २०पिच्छं । अदंसणीहूओ सिही । गहियं "पिच्छं पुलहीणेण । दुईय-तईयदिवसेसु वि एवं । चउत्थ-दियहे- 'सुल्नारन-गएण मए केत्तियं कालं ठायव्वं ? ता वरं एक्क-मुहीए चेव गेण्हामि' ति चिंतिऊण ठिओ संझाए खंभंतरिओ पन्नहीणो । नच्चंतस्स य सिहिणो सव्व-पिच्छाणि एक्वमहीए चेव गहिउं पवत्तो । सो वि सिही सिहि-रूवं मोत्तूण करकर-सद्दकयत्थिय-कन्न-जुयलो वायसो संवुत्तो । पुव्वगहिय-२५पिच्छाइं पि पणहाई । तओ विसनो पुलहीणो । किमूसुगत्तणं मए कयं ति पच्छायावमुव्वहंतो जाव चिट्ठइ ताव भणियं केणावि अदिहेण
'भणउ वयणु महुरक्खरु लुहडुक्खड करउ । तरउ जलणिहि, पहु सेवउ देवय तोसवउ । कस्स वि को वि सतंतु न दायगु अरि पहिय ।
मेल्लिवि भालि जि संठिय अक्खर विहि-लिहिय' ।।८२५||१|| . "तो सामि ! तुमं पि ऊसुगत्तणं काऊण मा पच्छायावमेवमुव्वहसु' त्ति ।
"कुमारेण संलत्तं-- 'रएलद्धण दल्लहमिणं कहं पि चिंतामणिं व मणुयत्तं ।
हारेमि कहं मूढो पमायओ वणिय-तणओ व्व'||८२६।। चंदलेहाए भणियं--
नाह ! पसायं काऊण कहसु मे को इमो वणिय-"तणओ ? ।
पत्तो वि जेण चिंतामणी पमाएण हारविओ ।।८२७।। कुमारेण वुत्तं--- सुण,
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सुमइनाह-चरियं
૧૩૩ 'अत्थि तुंग-मणिमय-अमर-मंदिर-पहापूर-पल्लविय-गयणाभोगं भोगपूरं नाम नयरं । तत्थ निय-कूल-समायार-परिपालण-पवणो विउलधणो धणावही नाम सेट्ठी । तस्स विसिह-विणयाइ-गुणमंदिरं गणमई भज्जा । दो वि पून्वभवावज्जिय-पन्न पगरिसाणुरूवं विसयसुहमणुहवंताणि कालं वोलिंति । अन्नया अणेगोवाइय-सएहिं समुप्पल्लो गुणमईए पुत्तो । आणंदिय-माणसेण य "सेहिणा सद्दाविऊण पुच्छिओ नेमित्तिओ— भद्द ! कहेसु केरिसो एस सुओ होहिति ? | तेणावि परावत्तिऊण निमित्तसत्थं , आलोचिऊण जम्म-लग्ग-गहनक्खत्त-होराइ-बलं, संवाइऊण सुयस्स सामुद्दिय-लक्खणाई भणियं'भद्द ! जइ सच्चं वत्तव्वं ता सयल-कला-कलाव-कुलहरं समग्ग-गुणसंकेयहाणं भविस्सइ ते सुओ । नवरं जोव्वणत्थो दालिद्द-दुक्ख-भायणं होहि' त्ति । तओ विसनो सेही । पूईऊण विसजिओ नेमित्तिओ । कयं उचिय-करणेज्जं । पइडियं नामं बालयस्स पुन्नसारो त्ति । कमेण जाओ अहवारिसिओ । समप्पिओ कलायरियस्स । गहियाओ तेण अकिलेसेण सयलाओ कलाओ । सरिऊण नेमित्तिय-वयणं विसेसओ सिक्खाविओ रयण-परिक्खं से हिणा० । परिणाविओ पसत्थ-वासरे बंधुदत्त-धूयं बंधुमई । सयल-कज्ज-समत्थो त्ति नाऊण निउत्तो से हिणा कुटुंबचिंताए । सेही वि सयं ठिओ 'परलोय-काज-करणुज्जओ । अन्नया मरण-पज्जवसाणयाए जीवलोयस्स मओ सेट्ठी । पुनसारो काऊण पिउणो पेयकिच्चं पयहो कुइंब-कज्जे | नवरं पुव्व-कय-कम्म-दोसेण थेव-दिणब्भंतरे च्चिय खीणधणो संवुत्तो । जओ---
__ एगत्थ वसइ सुइरं अखंड-पुन-गुण-नियलिया लच्छी । . तुट्टम्मि तम्मि पुण मक्वांड व्व कत्थ वि थिरा न भवे ।।८२८।। __ सो य पुनसारो निद्धणो त्ति न बहुमनिज्जइ रायलोएण, न "सम्माणिज्जइ सयण-समूहेण, नाणुगम्मए मित्त-वग्गेण, किं बहुणा ? सव्व-जण-परिभव-भायणं संजाओ |
गुण-वज्जिओ वि पुरिसो सो च्चिय संमाण-भायणं भुवणे । नयणेहि नेहभर-निब्भरेहिं जं पेच्छए लच्छी ॥८२१।। अलियं पि जणो धणइत्तयस्स सयणत्तणं पयासेइ । आसन्न-बंधवेण वि लज्जिज्जइ इीण-विहवेण ||८३०।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं गुणवं पि निगुणो च्चिय गणिज्जए, मुच्चए परियणेण | पावइ दविण-विहीणो पए पए परिभवं पुरिसो ।।८३१।।
एवं च दालिद्द-दुक्खाभिभूओ चिंतिउं पवत्तो पुनसारो- ‘हा ! किं मह मंदभग्गरस धण-विरहियरस स-परोवयार-करण-सुनस्स छगलीगलत्थणेण व निप्फलेण जीविएणं ति? ता केणावि उवाएण पुणो वि समज्जणेमि धणं, पुरेमि निय-मणोरहे, पूएमि गुरुजणं' ति । एत्थंतरे पत्थिओ तत्थेव वत्थव्वओ सुत्थिओ सत्थवाहो बोहित्थेणं परतीरं । मिलिओ गंतूण तस्स पुन्नसारो । भणिओ अणेण सुत्थिओ-- अहं पि धणत्थी तुमए समं समुद्द-परतीरं दहमिच्छामि । सुत्थिएण भणियं'भद्द ! को दोसो ? आगच्छसु' त्ति ।।
तओ पसत्थ-वासरे पेल्लियं पवहणं । अतुच्छ-मच्छ-पुच्छच्छडाडोवुच्छलंत-महल्ल-कल्लोल-माला-भीसणं सायरं लंधिऊणं लग्गं रयण-दीवे । उत्तरिऊण लोगो लग्गो निय-निय-वावारेसु । पुण्णसारो वि आढत्तो रयणाणि खणिउं । किंचूणं छम्मासावसाणे नियत्तिउकामेण सुत्थिएण दवाविओ पडहो, उग्घोसावियं- 'इओ सत्तम-दिणे नियदेसाभिमुहं पवहणं पेल्लिज्जिस्सइ' त्ति । एयं सोऊण पुन्नसारो समागंतूण सुत्थियस्स पूरओ जंपिउं पवत्तो- 'सत्थवाह ! तुज्झ सन्निज्झेण आगओऽहमित्थ, ठिओ एत्तियं कालं, अज्ज वि एत्थेव चिहिस्सामि । सुत्थिएण भणियं- 'कीस तुमं नागच्छसि ?'| पुन्नसारेण भणियं'अज्ज वि न मे वंछियत्थलाभो संजाओ'। सुत्थिएण भणियं- 'इयाई ३ग्पवर-रयणाइं गिण्हसु । तत्थगयस्स पंचवीसं सहस्सा दीणाराणं ते भविस्संति' । तेण भणियं- 'विउला मे मणोरहा' । सुत्थिएण वुत्तं'जहाजुत्तमणुचिहसु'। पयट्टो सुत्थिओ निय-देसाभिमुहं, ठिओ पुन्नसारो रयणाणि खणंतो । ___कइवय-दिण-पज्जवसाणे य वुत्तो रयणदीव-देवयाए- 'भद्द । कीस न अज्ज वि ते कुद्दाल-घाओ विरमइ ?'। तेण भणियं- 'न में मणोरहा पुन्नत्ति । देवयाए भणियं- 'केरिसा ते मणोरहा ?' तेण वुत्तं'चिंतारयण- लाभत्थी अहं' । देवयाए भणियं- 'न ते एत्तियाणि भागधेयाणि जेण चिंतारयण-संपत्ती हवइ' । तेण भणियं- 'तम्मि अलद्धे न विरमिरसं' । तिरोहिया देवया । 'क इवय-दिणावसाणे पुणो वि
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सुमइनाह-चरियं वारिओ देवयाए । तहा वि न विरमइ । एवं तइय-वारं पि । ताहे देवयाए चिंतियं– निच्छओ खु एसो । तओ अन्न-दिणे खणंतस्स दंसिओ चिंतामणि, दहूण तं हरिसिओ पुनसारो | अवधारियाइं तस्स लक्खणाई, संठाइयाइं रयण-परिक्खा-सत्थेण | सविसेस-आणं दिय-मणो गओ "नियावासं | पूइऊण जहाविहिं तम्मि दिणे ठिओ निराहारो । 'जइ सच्चं एसो चिंतामणी ता "सुवनस्स लक्खस्सोवरिं हविज्ज' ति काऊण पणिहाणं पसुत्तो रयणीए, पभाए तहेव पिच्छिऊण हरिस-निब्भरो संवुत्तो | अन्न-दिणे निय-नयरं गंतुकामेण उब्भिओ भिन्न-पोयद्धओ ।
इओ य धणदेव-नाइत्तगेण समुद्द-मज्झे भोगपुरं गच्छंतेण दहण तं पेसिया निय-परिसा । भणिओ अ तेहिं- 'भद्द ! पेसिया अम्हे धणदेवनाइत्तगेण, भणिया य - 'को वि एस महासत्तो भिन्नपवहणो चिहइ । ता एयं गेण्हिऊण आगच्छह' त्ति, ता तुमं समारुहसु बेडियं | तओ समारूढो पुन्नसारो, भणिओ य तेहिं- 'भद्द ! अत्थि ते किंचि ?' तेण भणियं - 'अत्थि इमो सुवन्न-लक्खो' | तओ पयहो गंतुं तेहिं समं, मिलिया धणनाइत्तगस्स, वुत्तो अ पुन्नसारो अणेण– भद्द ! कत्थ गंतव्वं ? तेण भणियं- 'भोगपुरे' । नाइत्तगण भणियं 'अम्हे वि तत्थ वच्चिस्सामो । सोहणं संवुत्तं जं तुमए सह संगमो, ता सुहं समागच्छसु । आगच्छंताण य समुद्द-मज्झे मज्झ-रत्त-समए सरय-पुन्निमाए पुनसारो सरीरचिंता-निमित्तं उहिओ, ठिओ जाणवत्त-तड-गवक्खगे, "पासिऊण सयल-दिसिवहू-वयण-विब्भम-दप्पणं चंद-मंडलं हरिसवस-विसंथुल-चित्तो चिंतिउं पवत्तो- 'अहो रमणिज्जया चंद-मंडलस्स ! एयप्पहा-निउरुंब-करंबिओ लवणम्बुरासी वि दुद्धोअहि व्व पडिहाइ । जारिसं एयं तारिसं किमन्नं पि किंचि अत्थि वत्थु ति चिंतयंतस्स ठिओ से चित्ते चिंतामणी । उट्टियाए कडिऊण तं निवेसिऊण करयले पलोइउं पवत्तो-- 'अहो ! ससिणो चिंतामणिस्स य सव्वहा सरिसत्तणं' ति चिंतयंतस्स पयंड-पवणपणोल्लिय-पवहणंदोलणेण गलिओ करयलाओ चिंतामणी । तओ हाहारव-गब्भिणं 'मुट्ठो मुट्ठो हं धरेह भो जाणवत्तं ति पलविउं पवत्तो | तं सोऊण पज्जाउल-मणेण नाइत्तगेण निजामगेहिं तो धरावियं जाणवत्तं । ४°महा-किलेसेण ठिए तम्मि पढो नाइत्तगेण- ‘भद्द ! किं पलवसि ?'| तेण वुत्तं सोगभर-गग्गय-गिरेण - 'करयलाओ मे गलिओ चिंतामणी एत्थ, ता तं निभालेह' । नाइत्तगेण भणियं— 'जत्थ पुव्वमक्वंदिअं तुमए
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तग्गयहाणाओ अणेगाइं जोअण-सयाई समागयं जाणवत्तं, अत्थाहं च सलिलं. ता कहं निभालिज्जउ ?' ति । तओ विलक्ख-वयणो संवृत्तो पुन्नसारो ||२||
ता 'भद्दे ! नाहमे रिसो जो सयल-चिंतियत्थ-संपायणं पाविऊण चिंतामणिं व माणुसत्तणं पमाय-परवसो हारेमि' |
तओ भावि-दइय-दुस्सह-विरह-दुह-दूमिज्जमाण-देहाए भणियं मयणलेहाए
'जं निउणमईए विआरिऊण कज्जं विहिज्जइ नरेण । परिणामो तस्स च्चिय सुहावहो होइ लोयम्मि ||८३२|| इहरा विसंवयंतम्मि तम्मि कज्जम्मि जायए गरुओ । पच्छायावो सहयार-छेयणे जह नरिंदस्स ||८३३|| कुमारेण भणियं- 'को सो सहयार-छेयगो नरिंदो ?' मयणलेहाए भणियं--- सुण, ४ अत्थि परत्थ-समत्थण-कयत्थ-पुरिसोह-सोहियं नयरं ।
ललणाभरण-पहापडल-पाडलं पाडलउरं नयरं ।।८३४।। तत्थ पुहइराओ राया रिउरमणि-नयण-नीरप्पवाह-संबंध-लद्धमाहप्पो । रेहइ समुज्जलो जरस जस-भरो रायहंसो व्व ||८३५।। तस्स सुतारा देवी मयरद्धय-मयरायर-दूर-समुच्छलिय-लालसा जीए । नस्संति(?छिज्जति)मच्छ-रिछोलि-सच्छहा अच्छि-विच्छोहा ॥८३६||
तत्थ अवगय-सयल -कलासत्थ-वियारत्तणेण विनाय-नाय-सारो, नीसेस-देसभासा-वियखणत्तणेण विहिय-विविह-देसागय-वणियववहारो रयणसारो सेट्ठी । तस्स विमल-सीलालंकार-सुंदर-सरीरुव्वूढलज्जा अणवज्ज-कज्ज-सज्जा रज्जा भज्जा ।
दीणेसु दिन्न-वित्तो तत्तत्थ-वियार-निहिय-निय-चित्तो । देव-गुरु-पाय-भत्तो, ताण सुओ अत्थि धणदत्तो ।।८३७।।
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१३७
सुमइनाह-चरियं
अह सो कय-सिंगारो निय-बंधव-मित्तवग्ग-परियरिओ । वियरिय-समग्ग-मग्गण-धणनिवहो विवणि-मग्गम्मेि ||८३८|| केण वि नरेण दहुं पसंसिओ जह 'इमो च्चिय कयत्थो । एअस्स च्चिय सहलं जम्मं जीयं तहा विहवो' ।।८३१।। अन्लेण तओ भणियं- 'न तुज् एसो पसंसिउं जुत्तो । जो विलसइ पुन्वनरोवज्जिय-दविणेण काउरिसो ||८४०|| जो विलसइ जियलोए निअय-भूओवज्जिएण दविणेण । सो च्चिय सलाहणिज्जो चंचापुरिसो व्व न हु सेसो' ||८४१|| इय सोउं धणदत्तो चिंतइ ‘एएण जंपियं जुत्तं ।
ता देसंतर-गमणं करेमि दविणज्जण-निमित्तं' ||८४२।। कहिओ तेण मित्ताण निय-मणोरहो । 'सप्पुरिस-चरियमेय'ति पसंसिओ सो तेहिं, गओ जणय-समीवं, निवडिऊण चलणेसु जंपए जहा- 'ताय ! विसज्जेहि मं जेण देसंतरेसु गंतूण विढवेमि धणं । अवहरिय-सव्वस्सेणेव विसण्ण-माणसेण भणियं सेहिणा- 'पुत्त ! तुह अत्थि पुव्वपुरिसागओ सयल-भोगोवभोग-समत्थो अत्थो | तो तेण कुणसु विलासे, पूरेसु मग्गण-गण-मणोरहे' । धणदत्तेण भणियंताय !
पुरिसस्स भोग-जोग्गा सिसुत्तणे च्चिय कमागया लच्छी । जणणि व्व पालणिज्जा तारुल्नं पुण पवनस्स ||८४३|| ता मं विसज्ज सिग्घं एत्थत्थे मा करेह मे विग्छ । विढवेमि दव्वजायं गेण्हामि य जेण जसवायं ।।८४४||
से हिणा वुत्तं- वच्छ ! कुणसु जं जुत्तं । पुत्तेण ‘पसाओ'त्ति भणिऊण आढत्ता गमण-सामग्गी । तओ गणिज्जति गणिमाइं, तोलिज्जंति धरिमाइं, मविज्जंति मेयाई, परिच्छिज्जति पारिच्छेज्जाइं, दिज्जति सुक्काई, पउणिज्जंति पाहेआई, रइज्जति गुरुदेवयाणं पूयाओ, किज्जइ पडहएण आघोसणा, जहा 'जो धणदत्तेण समं वच्चइ तस्स पूरेइ सव्वं जं मग्गियं धणदत्तो ।' तओ बहवे भट्टचट्टाइणो चलिया सत्थेण समं । निवेसिओ नयर-बाहि सत्थो । सयं च दाऊण दाणं काऊण सयण-सम्माणं पहाण-लग्गे जणएण अणुगम्ममाणो बंधूहिं परिवारिओ
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पवर-रहारुढो चलिओ धणदत्तो । नियत्तमाणस्स य पिउणो पडिओ चलणेसु । विहिय-करकमल-कोसो य अणुसासिओ पिउणा, जहा'वच्छ ! सुहलालिओ तुमं, अच्चंत-सरलो य पयईए, दूरं देसंतरं, विसमा दिव्वगइ, दुग्गमा मग्गा, दुप्परिपालणीयं भंडजायं, निवारण-कुद्धा चोर-चरडा, वंचण-पवणा धुत्ता, मायाविणो वाणियगा, ता सव्वहा कयाइ पंडिएण, कयाइ मुरुक्खेण७५, कयाइ दयालुएण, कयाइ निग्धिणेण, कयाइ सदयेण, कयाइ सुहडेण, कयाइ कायरेण, कयाइ चाइणा, कयाइ किवणेण", किं बहुणा ? सायरेणेव परेहिं अलद्ध-मा-हियएण होयव्वं'ति भणिऊण नियत्तो सेही । धणदत्तेण वि दिन्नं पयाणयं । एत्थंतरे सत्थियाणं पयट्टाया" आलावा
रे रे जोत्तसु सगडं लायसु मग्गेण मा चिरावेसु । महिसेसु तडंगाई जल-पडिपुन्नाई संठवसु ||८४५|| लद्देसु वर-बइल्ले कोक्कसु करहे, रहेसु खणमेक्वं । जाव चडावेमि अहं वक्खरमेयं असेसं पि ||८४६।। पउणीकरेसु खर-वेसरे य आरोविऊण गोणीओ । पल्लाणेसु तुरंगे निय-जव-निज्जिय-पवणवेगे ||८४७।। इय विविहालावयरं सत्थं संवाहिउं असेसं पि । धणदत्तो जाइ पहे “पहूय-पाइक्छ-परियरिओ ||८४८।। धरणी नाणाविह-भूरि-भंड-संभार-भार-अक्वंता । रसइ व्व सखेआ सगड-चक्क-चिक्कार-सद्देण ||८४१।। भूरि-भरक्वंता वि हु करहा मग्गम्मि संचरंता वि । विलिहंति तरुणं अग्ग-पल्लवे वालियग्गीवं ||८५०।। रेहंति रयवसालक्ख-चलणपाया समुच्छलंतीहिं । पास-दुग-हिअ-गोणीहिं वेसरा जाय-पक्ख व्व ।।८५१।। कज्जलवला जलभर-संपुन-तडंग-वाहिणो महिसा । छिंदंति तिसं लोयाण पुल्न-आयड्डिय व्व घणा ||८५२||
वच्चंतो य सत्थवाहो कमेण पत्तो सिरिउर-नयर-बाहिं, आवासिओ तत्थ । एत्थंतरे सासभराऊरिज्जमाण-वयणो, खलंत-वयणो, इओ तओ पडिक्खित्त-सुन- नयणो, तुरिय-पय-निक्खेवो, भय-कंपंत-सव्वंगो,
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सुमइनाह-चरियं
१३१ 'सरणागओ अहं तुज्डा'त्ति भणं तो पत्तो एगो पुरिसो सत्थवाहपडकुडीए । तओ सत्थवाहेण 'मा बीहसु' त्ति भणंतेण दवावियमासणं, तयणुमग्गे लग्गा य उग्गीरिय-पहरणा कोदंड-समारोविय-सरा ‘हण हण हण' त्ति भणंता पत्ता रायपुरिसा । भणिया य ते सत्थवाहेण- 'भो भो ! किमवरद्धमणेण ? ।' तेहिं भणियं-- 'सत्थवाह ! एसो खु रायचेडो चोरिऊण रायालंकारं जूयं रमंतो पाविओ अम्हेहि, गहिऊण निवेइओ निवइस्स, तेणावि वज्झो समाणत्तो, मंतिणा विन्नत्तो राया जह- 'देव ! अलंकारो लब्भइ ताव विलंबेउ देवो' । रना भणियं- ‘एवं करेह' | तओ पक्खित्तो गुत्तीए । अज्ज रयणीए पुण पच्छिमे जामे भंजिउण निगडे, मारिऊणं आरक्खिए, निग्गओ काराहराओ, निग्गच्छंतो अ कहवि नाओ अम्हेहिं, धाविया य एय-पिट्ठओ अम्हे, पविहो य सरोवरासने वणगहणे, बहलत्तणओ य तस्स भालविया अम्हे एत्तियं वेलं । इण्डिं तओ निग्गंतूण पविहो तुम्ह सरणे । ता सप्पुरिस ! समप्पेसु एयं रायविरुद्धकारिणं ।
सत्थवाहेण भणियं-- 'अस्थि एवं, किंतु सरणागय-समप्पणं पि न जुत्तं' । तेहिं भणियं- 'जइ एवं तहावि अम्हे राय-सयासाओ न छुट्टामो' । सत्थवाहेण भणियं-- 'किं इमिणा रायालंकारो समप्पिओ न वा ?' | तेहिं भणियं- 'समप्पिओ' । सत्थवाहेण भणियं--- 'तो पडिक्खह खणं, खोणीवई विनवेमि जाव अहं' । तेहिं वृत्तं- 'एवं होउ' त्ति । गओ राय-पासं सत्थवाहो पडिहार-निवेइओ पविहो, समप्पियाऽणेण एगा महग्घा रयणावली राइणो । भणिओ सत्थवाहो राइणा-- 'भद्द ! कत्तो इहागओ सि ?' | सत्थवाहेणावि साहिओ सव्व-वुत्तंतो नियागमण-पओयणं च । रज्जा वुत्तं- 'जइ वि अवराहकारी तहावि तुह वयणेण विमुक्को एसो' | सत्थवाहो वि 'महापसाओ'त्ति भणंतो पहाणरायदय-समेओ गओ नियावासं । दुरणावि रायाएसं कहिऊण मोयाविओ तक्करो । सो य सत्थवाहेण अप्पणा सह भुंजाविऊण भणिओ जहा'भद्द ! विरुद्धमेयं तुज्झागिईए | ता मा पुणो करेज्जासु' ति । तेण भणियं- 'सत्थवाह ! नियत्तो हं एआओ असच्चरित्ताओ । करिस्सामि संपयं किंचि वय-विसेसं । एवं च कए तुज्ा वि मए पियं कयं होइ । अन्नं च, मह अत्थि सपच्चओ भूयाइ-निग्गहण - मंतो, ता तं तुमं गिण्हसु ति पत्थेमि' । सत्थवाहेण वि पत्थणा-भंग-भीरुणा गहिओ मंतो, गओ य
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सो समीहियत्थ- संपायणत्थं ।
दिन्नं पयाणयं धणदत्तेण वच्चंतो य पत्तो कार्यबरिं नाम अडविं । आवासिओ नई - तीरे । पेच्छए तत्थ भमर वन्नं गुंजारुण - लोयणं धणुबाण - वावड-करं सारमेय-समेयं रोयंतमेगं वाह- जुवाणयं । किं रुयसि ?' त्ति पुट्ठो सो सत्थवाहेण । तेणावि कहियं— 'सुण, अत्थि इह पव्व दुग्गापल्ली, तत्थ सीहचंडी पल्लीवइ । सीहिणी से भारिया पाणप्पिया य । सा गहिया कह वि भूयदोसेण । वहए जीय- संदेहेण, तव्विणा न जीवइ पल्लिनाहो त्ति रोयामि ।' तं च सोऊण भणियं सत्थवाहेण— 'अत्थि मह भूय-निग्गह- मंतो' त्ति सुणिय पहिद्वेण तेण साहियं पल्लिवइणो सो वि निय-पिययमं घेत्तूण आगओ तत्थ । सत्थवाहेणावि सकलीकरण पुव्वं सुमरिओ मंतो । तप्पभावेण मुक्का भूएण एसा । 'अहो ! परोवयारी सत्थवाहो' त्ति चिंतयंतो गओ सहाणं पल्लिवइ । धणदत्तो वि पत्तो गंभीरपट्टणं । ववहरियं तत्थ । 'न जाओ तहाविहो लाभो' त्ति चिंतिऊण चडिओ पवहणे ! तं च अणुकूल-पवणपेल्लियं पत्तं पर-तीरे । संजाय-मणिच्छिय-लाभो अ नियत्तो सत्थवाहो । आगच्छंतेण य दिट्ठो सत्थवाहेण चंचुपुड-गहिय- अंबफल - दुगो, परिस्समवसेण खलंत पक्खजुयलो, पवहणासन्ने जलोवरिं निवडतो एगो रायकीरी । 'अरे ! रक्खह रक्खह एयं' ति भणिए सत्थवाहेण उत्तरिऊण पवहणाओ करेण गहिओ एगेण निज्जामगेण, अप्पिओ सत्थवाहस्स । सत्थीकओ पवण- दाणाइणा । मुत्तूण चंचुपुडाओ चूयफल - दुगं जंपिउं पवत्तो कीरो— 'सत्थवाह ! कओ तए महंतो उवयारो न केवलं मम जीवियप्पयाणेण, मए आणीयं चूणिमित्त धरिय-जीवियाणं अंधलयाण अम्मा-पिऊणं दिव्न्नं जीवियं । न य जीवियप्पयाणाओ अन्नमत्थि ""गरुय दाणं । रज्जदाणं पि निरत्थयं जीवियावहार - समए । तो किं करेमि ते पच्चुवयारं तिरियजाईओ हं ?, तहावि गेण्हाहि एयमज्झाओ एगमंबयं । सत्थवाहेण भणियं - किं मज्झ एगेण अंबएणं ? तुमं भक्खे इमं अन्नं पि भत्तं । कीरेण भणियं— सत्थवाह ! एगस्स वि एयरस महंतो पभावो । सुण
3
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
'अत्थि मयजल - बहल - परिमल - लोल - रोलंब - रोल - कुप्पंतकरिकुल - दलिज्जत - कप्पूरतरूपसरियामोय-मणहरो विंझो महिहरो ।
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१४॥
सुमइनाह-चरियं तस्स पच्चासन्न-रने एगम्मि पायवे सुय-जुयलमत्थि । तस्स पच्छिम-वए जाओ अहं सुओ । तं च वुहृत्तणओ अंधलयंति । अहमेव आणेऊण तरस देमि चूणिं । कयाइ चूणियाणयणत्थं गहण-तावसासमे कुलवइणा तावसाणं वक्खाणिज्जंतं सुयं मए जहा- 'अत्थि समुद्द-मज्ो एगसिंगपव्वयस्स पाए पुव्व-दिसाभाए अमर-निम्मिया"ऽमयरसाहारो सहयारो | सो य सयाफलो । तस्स एगं पि फलं जो भक्खइ तस्स नासंति सव्ववाहिणो न जायए जरा य मच्चू य । तं च सोच्चा चिंतियं मए'चूयफलमेगं आणेऊण देमि जणणि-जणयाण जेण पुणण्णव-सरीराई जायंति' । गओ हं तत्थ , दिहो चूयडुमो, गहियं अंबय-दुगं, आगच्छंतो परिस्संत-गत्तो पडिओ एत्थ नीर | जीवाविओ य तुमए निक्कारणवच्छलेण | अओ गिण्हसु एगमंबयं । बीयं पुण उवणइस्सं जणणिजणयाणं ति । सत्थवाहेण वि विम्हओप्फुल्ल-लोयणेण गहियं एगमंबगं । आपुच्छिऊण गओ सुओ स-हाणं । चिंतियं सत्थवाहेण जहा
'ते च्चिय जयम्मि धन्ना तेसिं चिय भमइ तिहुगणे कित्ती । ___अवमन्निय-निय-कज्जा पर-कज्जे जे पयहति ।।८५३।।
ता एटमंबयं निय-नरवइणो दाऊण बहजणस्स य उवयारं करेमि'त्ति धरियं पयत्तेण | उत्तिन्नो गंभीरयपट्टणे । पुणो वि काऊण सत्थ-सामग्गिं चलिओ निय-पुराभिमुहं । पत्तो कायंबरिं अडविं | आवासिओ तत्थ सत्थो, आगया भिल्ल-धाडी । पवर-पाइक्कचळ-परिगओ [सत्थवाहो वि सम्मुहमुवढिओ । एत्थंतरे पढियं मागहेण
'जो गुरु-देव-चलण-सरसीरुह-सेवा-चंचरीयउ,
-पर-उवयार-करण-वावार-पवित्तिय-नियय-जीयउ । पिविखवि सबर-सेन्नु सन्नद्धउ अचलिय-सत्त-संगउ |
सो वर-सत्थवाहु धणदत्तु जि नंदउवायचंगउ ||८५४|| एयं सोऊण भणियं भिल्लवइणा - रे रे ! मह सरीर-देहेण साविया तुब्भे मा पहरह' । ठिया चित्त-लिहिय व्व भिल्ला । पेसिओ भिल्लवइणा दुओ जहा— 'भद्द ! जाणाहि को एस धणदत्तो ? किं सो इमो परोवयार-संपायगो, मह दइया-जीविय-दायगो ?' ति । दएण जाणिऊण कहियं भिल्लवइणो- 'सो चेव एसो त्ति ।' 'हा अकज्जं अकज्ज' भणंतेण विमुक्काउहेण पणमिओ सत्थवाहो पल्लिनाहेण ।
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सिरिसोमप्पहसूरि विरइयं पच्चभिजाणिओ सत्थवाहेण । निविट्ठा दो वि ̈पड उडी - मंडवे कणयासणेसु । लज्जोणय- वणिओ ( वयणो ) भणिओ पल्लीवई सत्थवाहेण - 'भद्द ! कुसलं ते ? '| तेण भणियं- 'कहं मह कुसलं जो हं कयग्घसेहरी तुज्झ वि परोवयारिणो अकुसलं चिंतेमि ? ता सत्थवाह ! निय-चलण-अक्कमणेण मह पल्लिं पवित्तीकरेसु, जेण मह तोसो हवइ ।' सत्थवाही वि 'अहो ! महाणुभावया एयस्स'त्ति मन्नंतो गओ पल्लिं । तं च निरंतर - निहय-गय- दंत- रइय-पायारं, करि-कुंभत्थल- गलियमुत्ताहलुक्कुरुड-मणहरायारं, अतुच्छ-चमरी- पुच्छ-संछन्नं, विचित्त-चित्तयचमरवन्नं, रिंछ- बाल-कय-मंडवं, पवण- पहय- घर - सिर- निवेसियमोरपिच्छ - पारद्ध-तंडवं पेच्छंतो पत्तो सत्थवाही पल्लिनाह - भवणं । समप्पियं तस्स पल्लिवइणा मुत्ताहल - गयदंत-चित्तयखल्लाइयं महरिहं पाहुडं । तं च तदुवरोहेण घेत्तूण समागओ निय-सत्थं । कमेण पत्तो निय - नयरं, पविडो महाविभूईए । महग्घ- रयण - भरिय थालस्सो वरि ""अमयमंबयं ठाविऊण गओ राय-दंसणत्थं । पडिहार - निवेइओ पत्तो राय-सयासं । समप्पिय पाहुडो पणमिऊण निविट्ठो सत्थवाहो । पु कुसल -वत्तं रण्णा, विम्हय-वसुप्फुल्ल- लोयणेण य भणियं'सत्थवाह ! अच्छेरयमिणं जं सव्व रयणाणं उवरि निवेसियं एयमंबयं । ता कहेह एत्थ परमत्थो ।' सत्थवाहेण कहिओ सव्वो वि वइयरो । रन्ना तुद्वेण मुक्कं सुंकं । 'महापसाओ' त्ति भणतो गओ सत्थवाहो निय- घरं |
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अह पुहइराय-राओ घेत्तूण तमंबयं निय-करम्म | चिंतेइ किमेएणं एक्क सरीरोवउत्तेणं ? ||८५५||
तम्हा निययारामे एयं वावेमि जेण बहुयाई । जायंति अंबयाई बहूण तो होइ उवयारी ||८५६ || अवमच्चु - रोग - जर-हरणमंबयं भक्खिऊण एक्केक्कं । हुति अमर व्व मणुया अहं पि अमरेसरो होमि || ८७७ || तो आणवइ नरिंदो पुरिसे 'वावेह जत्तओ एगं' । तेवि कुणति तह च्चिय कयावहाणा य रक्खति ॥ ८५८ || अंकूर - समुब्भेए तहा दु-चउ-पत्त-संभवे सहसा । वद्धावंति नरिदं पाविंति य वंछिय-फलाई || ८५१||
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૧૪૨
सुमइनाह-चरियं
कंदलिओ अज्ज इमो अज्ज इमो जाय-निबिड-थुडबंधो । अज्ज इमो साहालो अज्ज इमो मंजरि-सणाहो ||८६०।। इय पइ-दियहं आरामिएहिं वद्धाविओ नरवरिंदो । वियरइ दाणं वद्धावयाण भसलाण व गइंदो ||८६१।। फल-पारंभं राया सुणिऊणं हरिस-पुलइय-सरीरो । भणइ इमे जत्तेणं रक्खेज्जह संपइ फलाई ।।८६२|| एवं "जोयंताणं ताणं अह पढमंबयं एक्वं । दिव्ववसेणं कहमवि पडियं रयणीए" सुत्ताण ||८६३।। दहण तयं पडियं अच्चत्थं हरिसिएहिं तो तेहिं । गहिउण पभायम्मि समप्पियं पुहइरायस्स ||८६४|| तत्तो चिंतइ राया जह - 'देमि इमं विसिहपत्तस्स |
वर-दक्खिणा-समेयं भक्खिस्सं अप्पणा अल्लं' ||८६५।। तओ वाहरिओ देवसम्मो विप्पो, संमाणिऊण भणिओ- 'पढमं ति तुह दिन्नं एय ममयंबयं' । सो वि घेत्तूण तं गओ घरं । काऊण देवयाइपूयं जा देइ मुहे ता गया तस्स पाणा । केणावि विन्नत्तमेयं महीवइणो । तेण जंपियं- 'अहह ! अकज्जं जं सो गुणनिही विवन्नो । नूणं विसंबो एसो । केणावि वेरिणा मह पाण-विणासणत्थं पेसिओ । ता कट्टेह लहुं'।
सोऊण इमं वयणं, गंतुं पुरिसेहिं परसुहत्थेहिं । मूलाओ छिंदिऊणं महिवढे पाडिओ सहसा ||८६६|| सुणिऊण इमं पच्छा मरणत्थं जीवियव्व-निम्विना । वेरग्गिणो मणुस्सा गलंतकुडोवहय-देहा ।।८६७।। नूणमिमो सो मच्चु ति कलियं भक्खेइ को वि हु अपक्वं । को वि पुण अद्धपक्वं अंबफलं कसरयं को वि ।।८६८।। तो भक्खिएसु तेसुं जाया ते अमरकुमर-सारिच्छा । ते पेच्छिऊण राया विम्हइओ चिंतइ एवं ||८६१|| 'किं एए नीरोगा जाया मयरद्धय व्व पच्चक्खा ? | किं वा वि मओ विप्पो ? एयं अच्चब्भुयं किं पि ||८७०।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं वाहरिउं पाहरिए पुच्छइ - किं तोडियं सहत्थेणं । तं अंबफलं ? अहवा पडियं भूमीए संगहियं ? ||८७१।। तेहि भणियं - ‘पडतं तमंबयं सामि ! निद्द-विवसेहिं । अम्हेहिं न नायं तो पडियं धरणीयले गहियं ।।८७२।। अह भणइ निवो - 'नूणं विसहर-गरलावगुंठियं बाहिं । तं अंबं कहमिहरा मरणं विप्पस्स संजायं ? ||८७३|| धिद्धी अहो ! अकज्जं अवियारियकारिणा मए विहियं । छिंदाविओ जमेसो अमयंबो परसु-घाएहिं ||८७४।। जम्हा विसरुक्खो वि हु सयमेवारो विऊण न हु जुत्तो । गरुयाण छिंदिओ किर किं पुण एवंविहं रयणं ।।८७५।। नत्थि मह को वि सरिसो अवियारियकारओ जए पुरिसो । जेणेरिसो अणत्थो विहिओ आजम्म-तावकरो ||८७६|| एवं तुमं पि अवियारिऊण नीसेस-सोक्खनिहि-भूए । विसए परिच्चयंतो मा पच्छायावमुव्वहसु ||८७७||३|| कुमारेण भणियंजे मज्जं व हियाहियत्थकलणा विलाण-विच्छेइणो,
जे किंपागफलं व पुव्वमहुरा पज्जंत-दुक्खावहा । जे निद्द व्व दुरंत-मोह-लहरी-उल्लास-संपाइणो, . किं ते हं विसए विसं व विसमे सेवेमि जाणंतओ ? ||८७८।। जे संसार-महीरुहरस सलिलुप्पील व्व संवघ्या,
जे मेह व्व विवेय-वोमरयणा लोयाऽवहारक्खमा । नीहार व्व विसुद्ध-बुद्धि-नलिणी-विच्छेयछेया य जे,
को ताणं विसयाण सेवणकए कुज्जा बुहो उज्जमं ? ।।८७१।। अवि यविसएसु सोक्खं सरिसव-तुच्छं दुहं तु गिरि-गरुयं ।
महुबिंदु-पमुद्धो कूवगय-नरो एत्थ दिहतो ||८८०।। मयणलेहाए भणियं- 'सामि ! को एसो कूवगय-नरो ?'। कुमारेण भणियं
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सुमइनाह-चरियं
'अस्थि बहु-सरह-सद्दुल-सीहाइ-भीसणा, अलद्ध-पेरंता, मत्तकरि-कलह-भय-पलायंत-सत्त-संकुला एगा महाडवी । तीए य अस्थि हियाहिय-वियार-विरहियत्तणेण ववहार- वज्जिय-पसुत्तपाय-पामरसमूह-समहिहियासंख-भवणालं कि एहिं असंख-पाडएहिं अभिरामी गामो । तत्थ निन्विवेय-सिरोमणी निय-पिययमा-वयण-विणिग्गयवयणमेत्त-करण-तच्छिलो अत्थि एगो कुलपुत्तओ । सो य सयल-कलावज्जिओ धरिओ चिरकालं तत्थ भज्जाए । कयाइ संजायाणुकूलभावाए तीए भणिओ सो- 'अज्जउत्त ! एत्तिय-कालं तुमं ववहार-विरहिओ ठिओ, तं च अजुत्तं । जओ
ववहार-विरहिओ खलु पुरिसो लहुयत्तणं लहइ लोए ।
गुरुदेवाऽतिहिपूया-कुडुंबभरणेसु असमत्थो ॥८८१।। ता इओ निग्गंतूण गामंतरं वच्चामो । तत्थ वत्थव्वय-जणस्स ववहारो [सुह] सुव्वइ'। तव्वयणेण गओ कुलपुत्तओ तं गामं, ठिओ तत्थ चिरकालं कलत्त-मुहकमल-पलोयण-सयहो । अन्नया पूणो वि भणिओ- 'पिययम ! एत्थ वि न तहाविहो को वि ववहारो । ता अन्नत्थ वच्चामो ।' कुलपुत्तएण भणियं - 'सुयणु ! जं तुमं आणवेसि । तुमं विणा अन्नो न चक्खुभूओ कोइ, तुमं चेव मह मई गई सरणं'ति । तओ 'सो निद्देसकारि'त्ति संत्तुहमणाए अणाए वसाविओ उत्तरोत्तर-गुण-विसिहेसु "बहुय-गामेसु, तेसु वि असंपज्जमाण-मणवंछियत्थ-सत्थो कहेण कालं वोलेइ ।
अन्नया भणिओ भज्जाए - 'दईय ! जइ मह वयणं करेसि ता तुम अच्चंत-सुहियं करेमि ।' कुलपुत्तएण भणियं- 'पिए ! किमेवं भन्नइ ?| जइ तुम भणसि ता निसियग्ग-खग्ग-वावड-करो करेमि परिहरियावरवक्खेवं रायसेवं, तुटुंत-सास-पसरो धूली-धूसरो धावेमि तस्स पूरओ, पविसामि सामि-कय-पसाय-निक्कय-निमित्तं मत्त-करिकडा-घडिय-डमरं समरं, विहेमि अगणिय-वयणिज्जं वाणिज्जं, वच्चे मि चोर-चरड-कओवद्दव-निरंतरं देसंतरं, तरेमि उल्लसंत-अब्भंलिह-लहरिवार-दुव्वारं पारावारं, खणे मि नाणारयण-सोहणं रोहणं, सेवे मि अलियवाइणो धाउवाइणो, विरएमि दंसिय-किलेसं विवर-पवेसं, आणेमि देसंतराओ मयगंध-लुद्ध-भमर-दिन्न - कन्नताल-चवेडाओ "हत्थि
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं दहाओ, पासेमि सव्व-लक्खण-पवरंगे तुरंगे, रक्खेमि महाभरुव्वहणसहे वसहे, पाले मि विउल-भरवहे करहे, धरेमि गुरु-वेगप्पसरे वेसरे, बंधेमि समुदरिय-वक्खरे खच्चरे, संपाडेमि सयल-सुह-धरिसणं करिसणं, गच्छामि तत्थ जत्थ तुमं आणवेसि त्ति । अवि य–
नच्चेमि धणड्डाणं पुरओ पायडिय-बहुविहुवयारो । गाएमि गुणोहं ताणमेव वाएमि तूराई ।।८८२|| भंडत्तणं पयासेमि विविह-विनाण-जणिय-जणहासो । परगुण-पढण-पयट्टो जइ वा पयडेमि भदृत्तं ।।८८३।। विरएमि बहु-वियप्पं सिग्धं घड-लोह-चित्तकरणाई । अन्नं पि दुक्करं तुह वयणाओ आयरामि पिए ! ||८८४|| तो भज्जाए भणियं पहिह-मुहपंकयाए- सच्चमिणं । जं दईय ! तए वुत्तं ताऽहं तुह देमि उवएसं १८८५।। तुह नत्थि धणोवाओ गामेसु इमेसु जं वसंतस्स । ता कुणसु दईय ! देसंतरेसु गमणुज्जम इण्डिं ।।८८६।। एवं भणिओ निय-पिययमाए कुलपुत्तओ तओ चलिओ । तीए च्चिय अडवीए गएण कुद्धेण सो दिहो ।।८८७|| तं पिहओ विलग्गं उप्पाडिय-°गरुय-घोर-कर-दंडं । आगच्छंतं दहुं कुविय-कयंतं व दुप्पेच्छं ।।८८८|| कंपंत-सव्व-गत्तो इओ तओ खत्त-तरल-नयणजुओ । आढत्तो कुलपुत्तो पलाइउं मरण-भय-भीओ ||८८१|| सो जाव तं गइंदो करेण न च्छिवइ ताव तेणावि । दिहो तण-संछल्लो कूवो अच्चंत-गंभीरो ।।८१0।। कूवस्स तस्स तीर चिहइ वड-पायवो अइ-महंतो । वड-पायवाओ एक्को पारोहो कूवमोयरिओ ||८११।। कुलपुत्तएण कूवे पडतएणं भयाभिभूएण । पत्तो पारोहो सो तमेव अवलंबिऊण ठिओ ||८१२।। जा अवलोयइ कूवस्स अंतरे ताव पेच्छए तत्थ । गुरुय-वियारिय-वयणं अयगरमेक्वं महाकायं ||८९३||
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सुमहनाह-चरियं
सो गसिउमणो पेच्छइ कुलउत्तं कोव-कलिय-नयणेहिं । चउसु वि दिसासु चत्तारि विसहरा हरगल-सवन्ना ||८१४|| गुरुतर-ललंत-जीहा फुक्वार-विमुक्क-विसकणुक्केरा । चिटंति गसिउकामा तं चिय कुलपुत्तयं दीणं ||८१५|| छिंदंति मूसया तं पारोहं कसिण-सुक्किला दो वि । हत्थी य करग्गेणं केसग्गं तस्स परिमुसइ ।।८१६|| रोसावेसवसेणं पुणो पुणो आहणेइ वडविडविं । महुयाल-मच्छियाओ उड्डीणाओ तओ तुरियं ।।८१७।। कुलउत्तयं समंता ताओ खायंति रोस-विवसाओ । तत्तो महुकोसाओ चलियाओ कह वि महुबिंदू ।।८१८|| कुलपुत्तयस्स पडिओ नडाल-वहम्मि सो य पगलंतो । वयण-पएसं पत्तो जीहाए तं च कुलउत्तो ||८११|| आसाइउमाढत्तो सुहं च मन्नइ नियम्मि चित्तम्मि । वीसरिऊण समग्गं अवरं दुह-कारणं तत्थ ||300।। एस दिहतो, अवणओ पृण इमो- 'जहा विविह-सावय-संकुला अडवी तहा जम्म-जरा-मरण-रोग-सोगाइ-संकुलो संसारो, जहा ववहार-वज्जिओ गामो तहा असंववहाररासी, जहा असंख-पाडया तहा असंख-भवणा, जहा असंख-गोलया तहा असंख-निगोआ, जहा पामरा तहा निगोय-जीवा, जहा कुलपुत्तओ तहा संसारि-जीवो, जहा तस्स पिययमा तहा तस्स भवियव्वया, जहा तव्वयणेण गामंतर-गमणं तहा भवियम्वया-निओगेण असंववहार-रासि-मज्झाओ संववहार-रासिगमणं, जहा तत्तो वि अवरावर-गाम-परिब्भमणं तहा विगलिंदियपंचिं दिएसु उप्पत्ती, जहा भज्जा-वयणेण सेवा-वणिज्जाइ-करणं कुलपुत्तस्स तहा संसारि-जीवस्स भवियव्वया-पेरियरस सयल-तहाविहवावार-करणं, जहा सो वणहत्थी तहा मच्चु, जहा कूवो तहा माणुसभवो, जहा अयगरो तहा नरगो, जहा चत्तारि सप्पा तहा कोह-माणमाया-लोभा, जहा वडपायव-पारोहो तहा आउयं, जहा ते मूसया तहा कसिण-सुक्विला दो पक्खा, जहा ते मूसया वडपारोहं छिंदंति, तहा कसिण-सुविला दो पक्खा आऊयं छिंदंति, जहा ताओ महुमच्छियाओ
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तहा विविहाओ वाहीओ, जहा सो महुबिंदू तहा विसयसुहं । अओ भणामि सरिसव-तुच्छं विसय-सुहं, गिरि-'गरुयं च दुक्खं. । ता भद्दे ! जइ को वि विज्जाहरो तंतु उत्तारिज्ज तो सो इच्छेज्ज न व? ति । तीए भणियं'बाढं इच्छेज्ज' | कुमारेण भणियं-- 'जइ एवं ता ममं पि गुरुणा कयप्पसायं भवंधकूवाओ निग्गंतुकामं किं निवारेह ?' ||४||
एत्थंतरम्मि कणगावलीए संभाविअ-पियविओयाए । भणियं - 'पिययम ! एक्वं ममावि निसुणेसु हिय-वयणं ।।90१|| सगुणं वा निगुणं वा कज्जं जं किंचि काउमभिरुइयं । नूणं विभावियव्वो परिणामो तस्स पुरिसेण ||१२|| अविभाविऊण सम्मं जे उण कज्जं कुणंति मूढमणा । ते सोयंति अवस्सं मित्तवईए जहा ससुरो |'१०३।। कुमारेण भणियं- 'भद्दे ! को सो मित्तवईए ससुरो ? . तीए भणियं— 'सुण,
अस्थि अवंती-जणवए उज्जेणी नयरी । कणयमय- तुंग- . पासायपंति-सिहरुहिओ गयणलग्गो किरण-समूहो लोयाण मेरु-संकं कुणइ जत्थ । तीए अवंतिदत्तो सेट्ठी, भज्जा से जसोहरा, ताणं धूया मित्तवई, सा परिणीया तन्नयरि-वत्थव्वगेण विण्हु दत्त-पुत्तेण सामदेवेण । अइक्वंतो कोइ कालो ।
बालत्तणम्मि रेहइ नराण एयं दुगं न तारुल्ने । माइथण-दुद्धपाणं पिउलच्छीए य परिभोगो ||१०४|| ता देसंतर-गमणं काउं सभुयाहि विढविऊण धणं । पूरिय-समग्ग-मग्गण-मणोरहो कित्तिमज्जेमि ।।१०।। इय चिंतिऊण एसो पसत्थ-दियहम्मि कुणइ पत्थाणं । अत्थोवज्जण-हेउं पिउणा बहुमनिओ संतो ||१०६।। पुढो मए न दइय ति चिंतिउं खेयमुव्वहंतो सो । पास-परिवत्तिणा माहणेण मुणिऊण वज्जरिओ ।।१०७।। मित्त । तुह पिययमाए उज्जाणे संगमं कराविसं । तेण य मित्तवईए वयंसिया माहवी भणिया ||१०८।।
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सुमहनाह-चरियं
आणेज्जसु मित्तवई उज्जाणे सामदेवमवि अहयं । आणिस्सं ताण तओ दोण्हं पि हु संगमो होही 11903|| इय विहिए संकेए जाओ दोण्हं पि संगमो तत्थ । वज्जरियं सुह-दुक्खं इमेहिं वुत्तो य संभोगो ||११०।।
पुप्फवइ-संजोएण जाया आवन्नसत्ता मित्तवई । वच्चंतेण सामदेवेण हिययासासण-निमित्तं समप्पियं मुद्दा-रयणं । गहिओ य तीए कंठकंदलाओ पउमरायंको हारो । गओ देसंतरं सामदेवो । अइक्वंता कइवि दियहा । पयडीहूयं मित्तवईए पोटें । तं च पेच्छिऊण अणाकलिऊण कुलप्पसूयत्तणं, तीए अगणिऊण गुण-पक्खवायं, अविभाविऊण कज्जपरमत्थं, अणालोइऊण तप्परिणामं, अणवे विखऊण सयण-सिणेहं, अविचिंतिऊण नियकुल-वयणेज्जयं, समुप्पन्न-कोवेहि सासू-ससुरेहिं मंतियं
आ ! पावाए इमीए अणवेक्खिय-उभयकुल-कलंकाए । इह-परलोय-विरुद्धं पेच्छ कयं केरिसमकज्जं ||१११|| तम्हा विणहसीला सयल-जणाणं इमा गरहणिज्जा ।
अम्हाणमदहव्वा कयवयणिज्जा अवयणिज्जा" ||११२।। तओ मग्गिया आहरणा । हारवज्जं समप्पियमिमीए | जाया एएसिं आसंका, परं कोवाइसएण न "पुच्छियं हार-वुत्तंतं, निद्धाडिया गेहाओ, गया जणय-घरं । तत्थ वि तहेव निवासिया । तीए(तओ) माहवीसमेया निग्गया नयरीओ । लज्जाए कस्स वि मुहं दंसिउमचयंती "तदियहमेव कोसंबिगामिणा पयट्टा सह सत्थेण, गच्छंताणं च अडवि"मज्झं कहाइ-निमित्तं गया हरिया भिल्लेहिं माहवी । तओ एगागिणी मित्तवई कहाणयवसेण पत्ता कोसंबिं । पविहो य सत्थो नयरीए । सा पुण ठिया देवउले ।
एत्थंतरम्मि वेलामासो त्ति पसूया महा-किलेसेण, जाओ से दारगो, गहिया हरिस-विसाएहिं ।
आवइ-गयं पि दुक्ख-हिययं पि दोगच्च-दूमियमणं पि । जीवावेइ अवस्सं अवच्च-संजीविणी जीवं ।।११३|| अइक्वंता काइ वेला । तओ अद्धपहायाए रयणीए आसन्ना नई त्ति
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं मुद्दासणाहुत्तरिज्ज-वेढियं काऊण दारयं अंगाई पक्खालण-निमित्तमुत्तिन्ना नईए । जाव तहिं अंगाई पक्खालेइ ताव सुणएण हरिओ दारओ, मुक्को आयमणोवविहस्स जउण-सिहिणो पुरओ । गहिओ सहरिसेण, दिहं मुद्दा-रयणं । सामदेव-सुओ त्ति नीओ अणेण गेहं, समप्पिओ मरंतवियाइणीए सित्ता-नामाए निय-घरिणीए । कम्म-धम्म-संजो एण तक्खणमेव “पसूया एसा, मओ चेव निग्गओ गब्भो । उज्झिओ एसो । अइक्वंते मासे कयं वद्धावणयं, नामं च दारगरस जक्खदिल्लो त्ति । तओ एस सुहेण वडई" | जओ----
संगामे गय-दुग्गमे, हुयवहे जालावली-संकुले, ___ कंतारे करि-वग्घ-सीह-विसमे, सेले बहूवद्दवे । अंभोहिम्मि समुल्लसंत-लहरी-लंधिज्जमाणंबरे,
सव्वो पुव्वभवज्जिएहिं पुरिसो पुन्नेहिं रक्खिज्जए ||१४|| इओ मित्तवई नईए उत्तरिऊण दारगं अपेच्छंती अन्लेसिउं पवत्ता । न दिहो तीए दारगो, तओ एगत्थ उवविसिय रोविउमाढता
हा देव्व ! तिव्व-दुक्खाण भायणं निम्मिया अहं चेव । अन्नो न को वि लद्धो इमाण भंडारिओ तुमए ||११५।। रे दिव्व०० ! दइय-विरहानलेण डांत-सव्व-गत्ताए । उप्पाइओ कलंको मह दुसहो फोडओ व तए ||१६|| निच्छूढा गेहाओ सासु-ससुरेहिं जणणि-जणएहिं । ७२अवहरिउं मह तणयं खयम्मि खारो तए विखत्तो ||११७।। एवं रुयंती आसासिया गोउलिणीहिं । 'अदेसयनुय'त्ति मयहरीए नीया गोउलं, पडिवना धूयं । जाव तत्थ कयवइ(कइवय)-दियहे अच्छइ ताव दिहा थी-लोल-वसंत-ठक्कुर-पाइक्केण, निवेइया सामिणो, जाइओ तेण गोउलिओ । तेण भणियं- न एस धम्मो संताणं । तओ सा अणेण हराविया, नियमिताए तीए कहं पि मओ वसंतो । 'अहो महासइत्ति पूईया तम्माणुसेहिं । मुक्वा य एसा । पयट्टा गोउलं । नग्गोह-हेहओ डक्वा सप्पेण, विहलंघला जीवाविया वुड्ड-सबरेण । पत्ता गोउलं । पुव्वठिईए गोउलिणीण मज्झे चिठमाणीए अइक्वंतो कोइ कालो । इओ य जक्खदिल्लो कालक्कमेण वडिओ देहोवचएणं कलाकलावेण य, तप्पभावेण
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सुमइनाह-चरियं
जाया थिरगब्भा सित्ता । उप्पन्नं अन्नं पि पुत्त - दुगं । जक्खदिन्नो सयलकलाकलाव - कलिओ गुणेहिं गरूय त्ति जाया सित्ताए उवेक्खा | चिंतियमिमीए- 'वावाएमि जक्खदिन्नं, न अन्नहा मे पुत्ता संपयं पावंति' ।
I
अन्नया भंडसालाए ठियाणं पुत्ताणं पेसिया लड्डुगा । तत्थ मयहरे पक्खित्तं विसं । भणिओ य परिवेसगो- 'एयं जक्खदिन्नस्स दिज्जाहि' । गओ सो । जाव जवखदिन्नो ववहार करणेण आउलो न भुत्तमणेण, भुत्तं लहुय - पुत्तेहिं । अइक्कंता काइ वेला । तओ ते भायरी भांति'जक्खदिन्न ! एहि गेहं भुंजामो' । सो य ववहार आउलो न तम्मि असमत्ते गिहं गंतुमिच्छइ, ते रोविउं पवत्ता । 'अम्हे भुक्खिय'त्ति । जक्खदिन्नेण भणियं - 'एयं चेव लड्डुगं खाएह' । खद्धो तेहिं विसलड्डुगी । थेववेलाए उग्गया विसस्स घारिया, मया य । नायमिणं जउणेण, पुणो वि एयं वावाइस्सइ" । तओ साहिऊण सब्भावं, समप्पिऊण मुद्दारयणं, पेसिओ ववहार-निमित्तं तामलित्तिं नयरिं । 'कहं मए अम्मा- पियरी नायव्व'त्ति गओ य एसो । ससोगो चिटुइ तहिं अम्मा- पिइ मिलण-निमित्तं देवयाराहणपरो, उद्दरिसियं देवयाए- 'होही तुह मासमित्तेण माया-पिऊहिं संजोगी । तुज्झ माया मित्तवई, पिया सामदेवो । एयाणि मास पज्जंते पियमे लगे उज्जाणे समागयाणि पेच्छिहिसि । तत्थ तुमं दहूण मित्तवईए पण्हविस्संति थणगा । सामदेवं दहूण सुसारिक्खत्तणओ भणिस्सइ जणो— 'इह जवखदिन्न । पिया ते आगओ 'त्ति । एवं उद्दरिसिए तुट्ठो जक्खदिन्नो । इओ य सा मित्तवई अणुचियाहारदोसेण गहिया कुडवाहिणा, न पन्नप्पए गामोस हेहिं । पबलीहूओ वाही । आणिओ गोउलिएण वेज्जो | सामग्गी-अभावओ पच्चवखाया वेज्जेण । तीए निव्विन्नाए खामिऊण गोउलजणं महापूरभरियाए पवाहिओ अप्पा जउणा - सरियाए । कंठगयपाणा लग्गा अरुलुग-रुक्खे, तत्थडिया वूढा सत्त-दिवसाणि, अहम दिने अच्चंत - भुक्खियाए खद्धो अरडुग को डर-संभूओ वज्जकं दो, घारिया, तव्वीरिएणाऽऽलग्गा नई तीरे ओहट्टमिमीए जलं उद्धद्वावणएण ठिया सत्त- दियहे, लद्धा अट्ठम दिणे चेयणा, उडिया किच्छेण, सीयवायपीडिया गया मसाण-जलणे, खद्धाणि मसाण - बीजपूरगाणि । पच्चूसे दिट्ठा तलवरेणं, नीया गेहं । पडियरिया इंदवारुणि-भक्खिगच्छेली
"
खीराइणा जाया पुणन्नवा
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गंगावाडे चिट्ठ |
૧૧
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं एत्तो य सामदेवो कालेण विढत्त-विहव-संभारो । संपत्तो निय-गेहं अपेच्छिउं तत्थ मित्तवई ||११८|| पुच्छइ गुरुण पासे जहहियं ते कहिँ ति वुत्तंतं । सोऊण सामदेवो सोग-समुल्लसिय-संतावो ||११|| पडिओ धरणीवहे धस त्ति मुच्छा-निमीलियच्छिपुडो । सिसिरोवयार-उवलद्ध-चेयणो विलवए एवं ॥१२०।। हा चंद-चारु-वयणे ! विसट्ट-कंदो-दल-सरिस-नयणे ! । नयणेहिं इमेहिं मए कत्थ तुमं पुण वि दहव्वा ? ||१२१।। आजम्मं चिय तह निक्कलंकसीलाए धम्मसीलाए । उप्पाईओ कलंको पावेण मए च्चिय मइच्छि ! ।।१२२।। अह माहणेण कहिओ गुरूण सव्वो वि पुव्व-वुत्तंतो । पच्चय-हेउं हारो य दंसिओ पउमरायंको ||१२३|| तो विण्हुदत्त-सेही संखुद्धो निय-मणम्मि चिंतेइ । अहह ! अकज्जं अवियारिऊण विहियं मए एयं ||१२४|| कुनरिं देण व नीई पुराओ निव्वासिया निय-घराओ | जं एसा मित्तवई मए जणाणंद-संजणणी ||१२५।। न कुलं इमीए उत्तममवेक्खियं नेय निम्मलं सीलं । सयण-सिणेहो निहिओ हिययम्मि न थेवमित्तो वि ||१२६।। परलोय-विरुद्धमिणं पावं पि न निब्भएण संभरियं । आजम्मसीलिया वि हु करुणा दूरेण परिचत्ता ।।१२७।। धिद्धी ! मूढेण मए चंदरस व निम्मलस्स हय-विहिणा । नियय-कुलस्स कलंको आकालं निम्मिओ एसो ।।१२८।। एत्तो य सामदेवो कुणइ पइण्णं जहा- 'अलद्धाए । तीए मित्तवईए नाहं पविसामि गेहम्मि' ||१२१।। निग्गंतुं गेहाओ गवेसियाऽणेण उचिय-ठाणेसु । दिहा न कत्थ वि तओ चडिऊण वडम्मि अत्ताणं ||१३०।। उब्बंधिउंमारद्धो धरिओ नेमित्तिएण केणावि । 'मा एवं कुण होही तुह जायाए धुवं जोगो ||१३१।।
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सुमइनाह-चरियं
गच्छस गंगावाडं जाया तत्थऽत्थि तह अहय-सीला । एसो य पच्चओ तुह मिलिही अज्जेव तीए सही' ||१३२|| पडिसुयमणेण दिहा य भिल्लनट्ठा पहम्मि माहविया । सा रोविउं पवत्ता तेण समासासिया कह वि ||१३३।। तीए निय-वुत्तंतो कहिओ सव्वो वि सामदेवस्स । तेणावि तीए दो वि हु गंगावाडम्मि चलियाई ।।१३४।। पत्ताणि ताणि, दिहा तलवर-गेहम्मि कह वि मित्तवई । ता रोविउमाढत्ता तेहिं समासासिया एसा ||१३|| अवरोप्परं इमेहिं निय-वुत्तंतो निवेईओ सव्वो | तं तलवरेण सोउं समप्पिया सा सबहुमाणं ||१३६|| सो तं गहाय चलिओ पासम्मि समुद्ददेव-मित्तस्स । पत्तो य तामलित्तिं मिलिओ सुय-जक्खदिन्नस्स ||१३७|| सारिक्खयाए पिउणो मुद्दारयणस्स दंसणेणं च । निय-नंदणो ति नाउं तुहाणि ठियाणि ताणि तहिं ।।१३८|| इह विण्हुदत्त-सेही अवियारिय-कज्जकारओ वुत्तो । निय-नंदण-वहुया-नत्तुएहिं अजसं च संपत्तो ||१३|| तह पच्छायावहओ आजम्मं दुक्खभायणं जाओ । 'इय मा तुमं पि पिययम ! कज्जं अवियारियं कुणसु' ।। १४० ।। ।। ५ ।। सरहस-नमंत-सामंत-मउड-मणि-किरण-लीढ-पयवीढं । रंगत-तुरंगम-थट्ट-हेसिउत्तासियाणत्थं ||१४१।। करि-कुंभत्थल-सिंदूर-पूर-पयडीकयासमय-संझं । रह-सिहर-समीराहय-धय-भुय-नच्चंत-जयलच्छिं ।।१४२|| संपज्जमाण-मणवंछियत्थ-सत्थं कमागयं एयं ।।
अणुरत्त-पयइ-वग्गं पालसु रज्जं नएण चिरं ||१४३।। कुमारेण भणियं- 'मुद्धे ! रज्जं खु नाम रवि-ससि-मणि-पईवपहा-पूराभिंदणिज्जं अणवसरं तिमिरं, अंजणाणुच्छेयणिज्ज अपडलमंधत्तणं, ओसहासज्झो अहेउओ सन्निवाओ, अनिसावसाण-पवाहा अनिमीलिय-लोयणा निद्दा, अपरिणामो वसमो अणासवो मओ, तहा
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं अनियला गुत्ती, अपित्तोदओ दाहज्जरो, अणिंधणो जलणो, अविसो मुच्छागमो, अभोयणा विसूइया । एयप्पसत्ता न याणंति कज्जाकज्जं, न बुज्झति हियाहियं, न वियारिंति जुत्ताजुत्तं न मुणंति धम्माधम्मं, न गणंति गम्मागमं । तं एयं सलिलं तण्हा - विसवल्लरीणं, गोरिगीयं करणहरिणाणं, धूम - पडलं सच्चरित - चित्तवित्तीणं, मसाणं पमाय-पिसायाणं, विज्झारन्नं धण-मय-मयगलाणं, दिणावसाणं सव्वाऽविणय-अंध्याराणं. वम्मिय - बिलं कोहावेग-विसहराणं, आवालयं विसयमत्त-वालयाणं, रंगंगणं इस्सरिय-वियारनडाणं, समुद्दमज्झं दोसग्गाहाणं, घणमंडलं गुण- कलहंसाणं, आमुहं कवड - नाडयाणं, पवण-परिफुरणं लोयाववायजलणाणं, आलाणं काम-करिणो, राहु मुहं धम्म-ससिणो, वज्झद्वाणं साहुवायस्स । तहा
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पक्खालिज्जइ रज्जे अभिसेय दिणम्मि चेव दक्खिन्नं । मंगलकलस- पलोहंत-सलिल पूरेण व नरस्स || १४४|| अवणिज्जए पुरोहिय-कुसग्ग-संमज्जणीहिं व प्पसमो । मलिणेज्जइ तक्कय-अग्गि-कम्म- धूमेण व मणंसो || १४५ || सिर- कणय - पट्टबंधेण वावरिज्जइ जरागमण-सरणे । वारिज्जइ छत्तेण व दंसणं मोक्ख मग्गस्स || १४६ || चामर - समीरणेण व सच्चत्तणमवहरिज्ज असेसं । ओसारिज्जइ पडिहार - चित्तदंडेण व गुणोही ||१४७|| लोयम्मि साहुवाओ लुप्पइ जयसद्द - कलयलेणं व । पुन्नं परामुसिज्जइ चल-धयवड - पल्लवेहिं व || १४८|| एक्कामिसलुद्धाणं सुणयाण व जत्थ बंधवाणं पि । दीसइ कलही को तम्मि आयरं कुणइ रज्जम्मि ? || १४ || रज्जपसत्तो सत्तो जीववह प्पमुह-पउर-पावाई |
काऊण जाइ नरयं निस्सरणों सूरसेणी व्व ||१५|| [ तथाहि - ]
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“आसि जंबुद्दीवे भारहे खेत्ते नंदिग्गामे गोविंदो माहणो । तरस लच्छीए भारियाए कुच्छि-संभूया रुद्द खंद- नामया दुवे पुत्ता परोप्परसिणेहपरा । कयाइ करिसण- अन्नेसणत्थं गया खेत्तं । दिट्ठो अणेहिं खेत्तासन्ने संचरंतो चंडाल - दारओ । जाइमयावलित्तेहिं तेहिं- 'अरे दुट्ठ !
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सुमइनाह-चरियं दुरायार ! अम्ह खेत्ते विद्यालं करेसि ! न याणेसि अत्तणो जाइ ?, न संचरसि दूरेणं ?' ति भणंतेहिं तहा पहओ लेटुप्पहाराइहिं जहा मुक्को जीविएणं । सो य अदृज्झाण-दोसओ समुप्पन्नो तत्थेव खेत्ते पन्नगो । अन्नया रक्खणत्थं खेत्ते पसुत्ता रयणीए रुद्द-खंदा, कह वि भमंतेण पन्नगेण [दिहा], दह्ण पुव्व-भव-वेराणुबंधवसा पन्नगेण दहो एगो । 'दहो' 'दहो'त्ति पुक्वरियमणेण । 'किं' 'किं' ति भणंतो उहिऊण गवेसंतो बीओ वि डक्को तेण | अकयप्पडियारा मया दो वि, उप्पन्ना तत्थेव खेत्ते कोल्हुया । इओ य समुप्पलोहिनाणो नाणसुरो नाम समागओ तत्थ मुणिवरो । सुर-विरइए निसनो सुवन्नकमले । समागओ गामलोओ वंदणत्थं । पवत्तो धम्ममाइक्खिउं भयवं । समये सुय-खेयमुव्वहंतेण पुट्ठो गोविंद-माहणेण– 'भयवं ! मह सुया कत्थ उप्पन्ना ?'| मुणिणा भणियं- 'भद्द ! जाइमयावलित्तत्तणओ पूव्व-विणासिय-चंडाल-दारयजीव-सप्पेण डक्वा समाणा समुप्पन्ना इहेव खेत्ते कोल्हुया । पत्ता पोढभावं । अज्ज पुण संझाए तुह करिसगेहिं खेत-विमुक्ताई रयणिवुह-जलहर-सलिल-सित्ताई नाड(डि)याइं गड्डीए अच्चत्थं भक्खिऊण . उप्पन्न-सूलवेयणा मया दो वि खेत्त-पज्जते पडिया चिट्ठति । एयं सोऊण पलोइया गंतुण गोविंदेण लोएण य । दहण तहाविहे ते, "अहो ! नाणाइसओ भयवओ, अहो ! थेवरस वि कम्मुणो दारुणो विवागो'त्ति भणंतो गोविंदो सेस-लोओ य वेरग्गमुवगओ पवनो जिणप्पणीयं धम्मं ।
एत्तो य ते मया समाणा कोल्हुया इहेव भारहे वासे पइहाणे नयरे ऊसदिन्न-रयगस्स घर-रासभीए गब्भम्मि एगो य रासहो, अवरो य घरसुणिगाए कुच्छिम्मि सुणओ, जाया दो वि । परोप्पर-सिणेहेण ललमाणा पत्ता पोढभावं । अन्नया आहेडय-प्पिउगो बालो राया तेणंतेणं वोलइ जाव दाहिण-दिसिहिएण रसियं रासहेण, तस्स सई सोऊण तन्नेहमोहिओ गओ वामभागाओ दाहिण-दिसं सुणओ, 'अवसउणो'त्ति काउं आहया दो वि एक-सेल्लेणं, मया समाणा विचित्तयाए कम्मणो तहाविहभद्दग-भावित्तणेण तम्मि चेव नयरे आणंद-सिद्विणो सुनंदाए भारियाए चंदण-नंदणा नाम उप्पन्ना जुयलत्तणेण दो वि पुत्ता । वडिया देहोवचएणं कलाकलावेण य । परिणाविया कुल-सील-जाईओ कनयाओ । "सुविणिंदयाल-सरिसत्तणओ जीवलोयस्स उवरओ आणंद-सेही । दो वि जाया निराणंदा ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं वच्चइ जह किरण-गणो अत्थमयंतेण चेव सह रविणा | तह आणंदेण समं अत्थो अत्थं गओ ताणं ।।१५१।। तो माणधणत्तणओ लज्जाए तत्थ ठाउमचयंता । निग्गंतूण पुराओ पत्ता देसंतरं दो वि ।।१५२।।
तत्थ कुसद्धणे नयरे धणवद्धणस्स सेहिणो ठिया वाणिउत्तत्तणेण, विसिह-लाभं च अपेच्छंता चडिया पवहणे, समुद्दमुल्लं घिऊण गया परतीरं । आढत्ता ववहरिउं । 'उदर-भरणाओ अहियं न किंचि संपज्जइ'त्ति गया रोहणायलं, खणिउं पवत्ता । जाव काण-कवड्डगं पि न पावंति, ताव तं मोत्तूण परिवायग-विप्पयारिया पविठ्ठा विवरं । खुद्ददेवयाए अवहारिया पडिया कुसवद्धण-नयरुज्जाणे । दिहा कहं पि तत्थागएण धणवद्धण"सेहिणा, नीया स-गिह, भणिया य– 'भद्दा ! अजुत्तं कयं तुब्भेहिं जं ममं अणापुच्छिऊण इओ गया, ता संपयं तहा जइस्सं अहं जहा तुम्हाणं संपया होइ ।'त्ति अणुसासिऊण समप्पियं ववहरणत्थं सहस्समेगं दीणाराणं । ववहरिउमाढत्ता । जान कम्म-धम्म-संजोएण दुगुणीहुयं दव्वं । तओ 'सदेसं वच्चामो 'त्ति चिंतिऊण अप्पियं दव्वं "सेहिणो । सेहिणा वि उदारत्तणेण सव्वं समप्पियं तेसिं । तो दो वि दीणार-सहस्से घेत्तूण चलिया निय-देसं, पत्ता निय-नयरासन्नं । एत्थंतरे अतक्वियागएहिं तक्वरेहिं गाढं पहणिऊण पाडिया ते महीए । गहिऊण धणं गया तक्वरा | ते वि कंठगय-पाणा जाव चिहंति ताव दिहा एगेण मुणिणा करुणापवन-माणसेण ठाउण कन्न-मूले अणुसासिया जहा—
पुव्वकय-सुकय-दुक्कय-फलमुव जंति जंतुणो जेण । तेण न कुणंति धीरा परम्मि तोसं व रोसं वा ||१५३|| तुब्भेहिं वि पुव्व-भवे कस्सइ अन्नरस विरइया पीडा । तो तुम्हाण वि एवं उवहिया संपयं एसा ।।१५४|| अकयं को अणु जइ ? स-कयं नासेज्ज कस्स किर कम्मं ? | स-कयमणुभुंजमाणो कीस जणो दुम्मणो होइ ।।१५।।. ता मा कुणह विसायं, धरेह हिययम्मि सयल-दुहहरणं । पंचपरमेहि-मंतं एवं कल्लाण-संजणणं ।।१५६। एवमणुसासिऊण दिन्नो मुणिणा पंचपरमेहि-नमोक्कारो । ओहेण अमयं व परिणओ इमेसिं पयइभद्दत्तणेण ||१५७।।
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सुमइनाह-चरियं
१५७ अकय-तहाविह-पावा मरिऊण पंचपरमे हि-नमोक्कार-प्पभावेण समुप्पन्ना इहेव जंबुद्दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए चंदसेणस्स रन्नो चंदकंताए कंताए कुक्खिम्मि, जुयलत्तणेण पुत्ता जाया । कालक्कमेण कयं वद्धावणयं महाविभूईए | पयट्ठियाइं नामाई एगस्स वीरसेणो अवरस्स सूरसेणो त्ति । गहिय-कलाकलावा पत्ता जोव्वणं, परिणाविया सरीर८°सुंदेरिम-लहुईकय-लच्छि-लावन्नाओ रायकलाओ । ताहिं समं सयलिंदियाणुकूलं विसयसुहमणुहवंताणं अइक्वंतो कोइ कालो । कयाइ कय-तरुण-जण-मणप्पमओ समागओ वसंत-समओ |
नच्चंत-रमणि-कंकण-कलाव,-कलसद्द-पबोहिय-कुसुमचाव ।।१५८।। अच्छेरय-रंजिय-तरुण-सत्थ,-सुर-घरहि हुंति रहजत्त जत्थ ।।१५।। जहि कुसुमगंध-लुदालिजाल,-रव-भरियसयल दिस-चक्कवाल ||१६|| नीसेस-जगत्तय-विजय-सज्ज, जंपंति व मयण-नरिंद रज्ज ।।१६१|| जहिं वणसिरीण किंसुय सहंति, महु दिन्न नाइ नहवयह पंति ||१६२|| सहयारह रेहहि मंजरीओ, नं मयण-जलण-जालावलीओ ||१६३|| जहिं मलय-समीरण-हल्लिरेहिं , नच्चंति वलय पल्लव-करहिं ||१६४|| परहुय-रवु पसरइ काणणेसु, नं माणिणि-मय-चाओवएसु ।।१६।। इय मयण-महामहिं, लोयसुहावहिं, तत्थ पयट्टइ महु-समइ । कयराय-कुमारिहि, बहुगुणसारिहिं,"कीलणत्थुवण-गमण-मइ ।।१६६ ।।
. [घत्ता] तत्तो दो वि कुमारा विहिय-जणाणंदयारि-सिंगारा । कंठ-विलुलंत-हारा वणम्मि पत्ता सपरिवारा ||१६७।।
कीलिऊण सुइरं जाव वीसमंता चिट्ठति ताव निसुओ सजलहरगज्जि-गंभीरो सद्दो । विम्हयवसेण सद्दाणुसारओ पयट्टेहिं तेहिं दिहो सुरकय-कणय-कमलोवविहो, विसिहोहिनाण-मुणिय-सयलभावो भावदेवो नाम परिसाए धम्मं वागरमाणो मुणिवरो | गया दो वि तरस समीवं, आणंद-संदोहमुव्वहंतेहि पणमिओ गुरू । दिनो गुरुणा सयलकल्लाण-वल्लि-पल्लवण-वारिवाहो धम्मलाभो । निसन्ना उचियासणेसु कुमारा । कया मुणिणा धम्मदेसणा । पत्थावं लहिऊण भणियमणेहिं -
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं जो न हवेज्ज पमोओ तिलोयसामित्तणम्मि पत्ते वि । सो तुम्ह दंसणे अज्ज नाह ! अम्हाण संजाओ ||१६८|| तुम्ह मुहचंदमवलोईऊण पय-पंकयं च नमिऊण । अमय-समुद्द-निमग्गं व मन्निमो नाह ! अप्पाणं ||१६|| ता किमिह कारणं कहसु अम्ह भयवं ! अणुग्गहं काउं । तो गुरुणा वागरियं - 'अवहिय-हियया निसामेह ||१७०।। जाइमउम्मत्त-मणा तुब्भे दिय-दारया सियाला य । रासह-सुणहा जाया वाणिय-पुत्ता य चोर-हया ||१७१।। कंठगय-जीवियव्वा मए विइन्नमणुसासणा पुव्वं । पंचपरमेट्ठि-मंतं सोउं संपन्न-परिओसा ||१७२।। जाया रायकूमारा एएणं कारणेण मं दहं | संपइ दुवे वि तुब्भे भद्दा ! आणंदमुव्वहह ।।१७३|| तो जाय-जाइसरणा चलणेसु विलग्गिऊण ते दो वि । जंपंति जं परुवियमेयं तुब्भेहिं तं सच्चं ||१७४|| तो गुरुणा वागरियं- पुव्वं पावस्स विलसियं दिहं । . तुब्भेहिं संपयं पुण पंचनमोक्कार-जणियस्स ||१७५।। पुनस्स य फलमउलं पच्चक्खं अणुहविज्जए एयं । ता पुजवुट्ठि-हेउं पमायरहिएहिं जईयव्वं ||१७६||
पुलवुड्डीए उण उवाओ जीववह-पमुह-पावासव-परिच्चाएण, कोहाइ-कसाय-निग्गहेण, सद्दाइ-विसय-परिहारेण, असुह-मण-वयणकाय-निरोहेण, दुद्दमिदिय-दमणेण, सव्वहा अविरइ-वज्जणेण, चारित्तपवज्जणेणं ति । तओ वीरसेणस्स विप्फुरियं वीरियं, उल्लसिया विसुद्धवासणा, नियत्ता विसय-तण्हा, आविब्भूओ चरण-परिणामो । भणियं अणेण- 'भयवं ! आपुच्छिऊण जणणि-जणए तुम्ह पायमूले पव्वज्जापडिवज्जणेण जाणवत्तेणेव समुई नित्थरिउमिच्छामि संसारं' । मुणिणा भणियं- 'देवाणुप्पिय ! मा पडिबंधं करेह' त्ति । तओ वंदिऊण गुरु चलिओ वीरसेणो, इयरो य असंजाय-कुसल-परिणामो | पत्ता दो वि गिहं । भणिओ वीरसेणेण सूरसेणो---- ‘वच्छ ! तुमए वि पीयं भयवओ वयणामयं, अवगयं संसार-सरुवं, जाणिओ सुहाऽसुह-विवागो, पुव्व
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सुमइनाह-चरियं
१५१ भवेसु वि समगं चेव आहिं डिय त्ति । समगं चेव गुरु-चलणमूले चरणं पवज्जामो' । सूरसेगेण भणियं- 'भाय ! जं तुमए आणत्तं तं सच्चमत्थि, "परं पुव्व-भवेसु किलेस-जालमणुहविऊण पत्तं रज्ज-सुक्खमेयं, ता समगं चेव अणु जामो । जओ- पुन्नफलं रज्जं, इह-कामिणीओ, विसय-सुहं, सज्जण-समागमो, चिंतियत्थ-संपत्ती य । एय-विवरीयं तु पावफलं । अवि य--
करि-तुरय-रह-समेयं नमंत-सामंत-मंति-परिकलियं । अक्खय-कोस-समिद्धं लब्भइ पुल्लेहिं रज्जमिणं ||१७७|| लायन्न-रूव-जोव्वण-"मयभिब्भल-विहसिरीओ लडहाओ । अद्धच्छि-पिच्छिरीओ पुन्नेहिं हवंति रमणीओ ||१७८।। सयलिंदियाणुकूलं संसार-विसर्दुमस्स अमय-फलं । पाविज्जइ विसय-सुहं पूल्जेहिं विणा न लोयम्मि ||१७|| संपत्ते अवराई जम्मि समप्पंति सयल-सुक्खाई । सज्जण-समागम-सुहं तं लब्भइ पवर-पुन्नेहि ||१८०।। ता भुंजामो रज्जं, माणेमो कामिणीओ पवराओ । विसय-सुहमणुहवामो, विलसामो सज्जणेहिं समं ।।१८१|| संपज्जमाण-चिंतिय-मणोरहा दो वि भुत्त-पुन्नफला ।
समगं चिय जं उचियं तं पच्छा आयरिस्सामो ||१८२।। वीरसेणेण भणियं– 'वच्छ ! सुविणिंदयाल-विब्भमो जीवलोओ, नरयंतं रज्जं, परिणाम-विरसा विसया, खणभंगुरं जोव्वणं, दुग्गइगमण-सरणीओ रमणीओ, संझा-समय-मिलिय-सउणेग-रुक्खवाससमो सयण-समागमो, अयंड-मणोरह-भंग-संपायणपरो अनिवारियप्पसरो पहवइ मच्चू, थेवस्स वि दक्वयरस दारुणो विवागो । ता मुत्तूण मोहं, अवलंबिऊण सत्तं, होसु उज्जमप्पहाणो जेण समगं चेव चरामो चरणं, समगं चेव काउण कम्मक्खयं वच्चामो परम-पयं ।
सूरसेणेय भणियं
छुहिएण व परमनं तिसिएण व मरुथलीए सिसिर-जलं । चिरकालाओ लद्धं चइउं न चएमि रज्जमिणं ।।१८३।। तुमं पुण जहाजुत्तमायरसु । तओ 'गुरुकम्मो इमो भवण्णव-तरंड
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૧૬o.
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तुल्लं लभृण वि गुरुं जाणंतो वि पुन्न-पाव-विलसियं जो न पडिवज्जए चरणं ति चिंतयंतो गओ वीरसेणो जणय- सयासं, कहिओ नियमणोरहो । जणएण भणियं- 'वच्छ ! धन्नो तुमं । तुमए समं अहं पि करिस्सं चरण-पडिवत्तिं' ति भणिउं निवेसिओ सूरसेणो रज्जे । कया जिणाययणेसु पूया | दिन्नं दीणाईण दाणं । मुक्काओ गुत्तीओ । सम्माणिओ सयण-वग्गो । सूरसेणेण कय-निक्खमण-महुसवा भावदेव-गुरु-समीवे पवना पवज्जं चंदसेण-वीरसेणा ।
तत्थ चंदसेणो काऊण तिव्वं तवच्चरणं खविऊण कम्मरासिं गओ मोक्खं । वीरसेणो पुण निरइयारं चारित्तं चरिऊण गओ बंभलोयं । सूरसेणो य मुच्छिओ रज्जे, गिद्धो सयलिंदिएसु, पयट्टो महारंभेसु, निरओ महा-परिग्गहेसु, अनियत्तो कुणिमाहारे, पसत्तो मज्जपाणे, लुद्धो परदारेसु, जीववहाइ-सव्वाऽऽसवाऽविरओ मरिऊण गओ तईयनरयपुढवीए । तस्स पडिबोहणत्थं वीरसेण-देवो अणुकंपाए तइय-पुढविं अणुपविसिऊण भणिउमाढत्तो----- ‘भद्द ! जाणसि ममं ?' | दुक्खभरपीडिएण भणियं सूरसेण-नारएण- 'नाह ! निय-देह-प्पहा-पहयतिमिर-पूरं रयण-कन्नपूरं को तुमं न याणइ देवं ?' | तओ देवेण 'अलं अलं उवयार-वयणेहिं 'ति भणंतेण दंसियं पुव्वभव-सरीरं । विभंगनाणेण मुणिऊण पुव्व-वुत्तंतं वुत्तं नारएण-'भद्द ! पुव्वभव-भाया तुमं वीरसेणो'। देवेण भणियं---
जं तुमए पुव्व-भवे रज्जं मुत्तूण संजमो न कओ । तं अणुहवसि तुममिमं नरयानल-संभवं दुक्खं ||१८४।। जं पुण मए विमोत्तुं विसए गुरु-वयणओ वयं विहियं ।
तं पंचमकप्प-सुरो जाओ हं दिव्व-रिद्धि-जुओ ||१८५।। तओ नारएण भणियं'हा भाय ! मए गुरुणो तुमं च हिय-वयणमुग्गिरंता वि । मूढेण जं न गणिया तं डज्झइ मज्ा मणमिण्हेिं ||१८६।। जं जीववहो विहिओ तेणासिवणस्स पत्त-निचएहिं । पवणुद्धएहि छिज्जामि छिन्न-कल्लोह-नासउडो ||१८७।।
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सुमइनाह - चरियं
जं मंसं उवभुत्तं मए स-मंसाइं तेण खाएमि । परमाहम्मिय - संडासएहि छित्तूण दिन्नाई ||१८८|| जं वारिज्जंतेण वि मज्जरसासायणं मए विहियं । तं वेयरणि- नईए पिबामि तत्ताई तऊआई ||१८९||
परदार- पसंगो मए अणुचिओ वि अणुचिन्नो । तंब नियंबिणिमालिंगयामि तं जलण - पज्जलियं || 980||
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चउरंग-बल-जुएण वि रज्जेण न रक्खिओ म्हि इह नरए । निवडतो ता बंधव ! संपइ रज्जे पडउ वज्जं ||११|| न चएमि वेयणाओ सहिउं तो मं इमाओ नरयाओ । कड्डुसु दुह-सय-दड्डुं करुणं काऊण ताहे ||१२|| देवेण नारओ सो कड्डिज्जतो वि पारय- रसो व्व । गलइ कर - संपुडाओ पावइ दुक्खं च अहिययरं ||११३ || तो नारओ पयंपइ विलवंतो 'भाय ! मुंच ममं । जं “दुक्खमणंतगुणं कड्डिज्जंतरस मे होइ ||'११४||
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तत्तो मुत्तूण सुरो तं उवइसिऊण तरस सम्मत्तं ।
दाऊण य अणुसहिं संपत्तो बंभलोयम्मि ||१८५||
ता भद्दे ! नाहं सूरसेण-सारिच्छो जो रज्ज - लुदो होऊण नरए निवडामि || ६ |
एत्यंतरे रयणावलीए भणियं
अवियारिय- कज्जकरो पच्छायावं महंतमुव्वहइ । लोण लहइ खिंसं वरदत्तो एत्थ दिहंती ||११६||
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कुमारेण भणियं - 'को सो वरदत्तो ? ' ।
रयणावलीए भणियं - 'अत्थि गयणग्ग-सुरभवण-विणिम्मियाणेय - हिमालय - संकं संकेयद्वाणं सयल संपयाणं आणंदजणणं आणंदपुरं नयरं । तत्थ निसिय-करवाल- धारा-सलिल-धोय-रिउरमणि - नयणंजणी जणद्दणी नाम राया । तस्स सयल - कज्जे सु आपुच्छणिज्जो महायणप्पहाणो परोवयार-वावार - परवसो वसुमित्तो नाम सेट्ठी । तस्स निम्मल-गुणालंकिया जसमई भज्जा । ताणं च संपज्जत
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૧દર
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सयल-मणोरहाणं वच्चए कालो, केवलं निरवच्चत्तण-दुक्खं दूमेइ मणं । तओ आराहिया अणेहिं कुलदेवया । तीए वि दिनो वरो । तप्पभावेण जाओ पुत्तो, वद्धावणय-पुव्वं कयं वरदत्तो ति से नामं । वडिओ देहोवचएणं कलाकलावेण य पत्तो जोव्वणं । बालभावओ चेव नियहियय-निव्विसेसो इमरस उज्जयस्स वि अणुज्जओ सागरो नाम मित्तो । कयाइ नियय-पासाय-कुहिम-तले सही-समया कंदय-कीलाए वहती दिहा वरदत्तेण एगा कन्नया । भणियमणेण- 'मित्त ! पेच्छ पेच्छ अच्छेरयं ।
वलईकएण चेलंचलेण हारेण वेणिदंडेण ।
छत्तत्तयं व विरयइ भमिब्भमंती इमा बाला ||११७||
अहो ! इमीए निरुवमं रूवं, असामण्णं लावण्णं । एसा खु जंतप्पओग-चंचल-मणि-सालभंजिया-लीलमवलंबए । पयावइ त्ति पत्तकलंकेणावि कमलासणेण जं न अंगीकया नूणं । इमीए तेय-तिरोहियनयणप्पसरेण न सम्ममुवलद्धा । ता कहसु कस्स इमा सुय ?' ति । मित्तेण भणियं- वयंस ! इहेव वत्थव्वगस्स निय-कुल-कमल - कमलबंधुणो बंधुदत्त-सिहिणो बंधुमईए भारियाए गब्भ-संभवा जिणमई नाम धूया । तीए वि उदग्ग-सोहग्ग-सागर-तरंग-सरिच्छे हिं तिरिच्छऽच्छि-विच्छोहेहिं पेच्छिओ वरदत्तो । मुणिय-तब्भावेण नीओ गिहं सागरएणं । तं चेव मुद्धडमुहिं चिंतयंतो परिचत्तो घर-वावारो, पसुत्तो सयणिज्जे, तत्त-सिलायल-पक्खित्तो व्व मीणो तल्लुविल्लिं कुणंतो दीहं नीससंतो अच्छिउं पवत्तो । तं च तहाविहं जाणिऊण जणएण पुट्ठो सागरओ- 'वच्छ ! मुणसि वरदत्तस्स असत्थावत्थाए कारणं ? | तेण कहियं सव्वं । तओ वसुमित्तेण मग्गिओ बंधुदत्तो - 'मह सुयस्स देसु निय-धूयं ति । तेण वुत्तं- 'जुत्तमेयं, को अन्नो तुमाहिं तो वि उत्तमो ? परं मम अत्थि नियमो सो सावगरस चेव निय-धूया दायव्व त्ति' | नियत्तो वसुमित्तो | तेण कहियमेयं पुत्तस्स । तेणावि तयत्थिणा पडिवण्णं मुणिसयासे सावगत्तणं । परिणयं भावओ । मुणियमिणं बंधुदत्तेण । दिन्ना जिणमई । वत्तो वीवाहो | जाओ परोप्परं वीसंभो । विसयसुहमणुहवंताणं ताणं वच्चए कालो । ... कयाइ वरदत्ते बाहिं पत्ते समागओ गिहं सागरओ । भणिया तेण
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१६३ .
सुमइनाह-चरियं जिणमई- ‘रुद्ददेव-सेहिणो वहुयाए सह तुह भत्ता जं रहसि मंतेइ तत्थ जाणसि तुमं किंपि कज्जं ? | सरल-सहावाए भणियमणाए- 'जाणइ तुह वयंसो इम, बीयहियंगभूओ तुमं वा जाणासि | सागरएण भणियं- 'अहं जाणेमि मंतण-कज्ज, परं तं अपुच्छिओ कहं कहेमि ?' | जिणमईए वुत्तं'अहं पुच्छामि किं तयं ?'ति । सागरएण वुत्तं - 'सुयणु ! जं मज्ा तए कज्जं तं तीए वि तस्स' । अविनायभावाए भणियं अणाए- 'किं मए तुज्झ कज्जं ?' । तेण भणियं- 'तं एक्वं, तुह पई मोत्तूण कस्स पुरिसस्स रसंतरवेइणो वियहस्स तुमए न कज्जं ?' । तं च दुरहिलास-पिसुणं सुणिऊण सवण-दुस्सहं तव्वयणं समुप्पन्न-कोवाए ओणयमुहीए साहिक्खेवं भणियमणाए
२ निल्लज्ज ! अणज्ज ! चिंतियमिणं पावं कहं चिंतिअं,
चित्ते वा तुमए कहं पुण तयं वायाएँ उच्चारियं ? | धिद्धी तुज् अचेयणस्स चरियं, किं मन्नसे अत्तणो,
तुल्लं मज्झ पई पि, मित्तमिसओ हालाहलं हा तुमं ।।११८|| ता गच्छ पाव !, पउरं पावं पावस्स दंसणेणावि ।' इय धिक्वारिओ सो तक्करो व्व ततो वि निक्खंतो ||१११।। दिडो वरदत्तेणं गोहच्चाकारओ व्व मलिणमुहो । भणिओ- 'उब्विग्गो विव लक्खिज्जसि हेउणा केण ?' ||१000।। सो जंपइ नीससिउं, जडिम-निमित्तं व हिमगिरि-समीवे । 'उव्वेय-कारणं किं पुच्छसि जीवाण संसारे ? ||१00१|| न य कहिउं सक्विज्जइ पयासिउं नेय तीरए जं च । तं अट्ठाणवणं पिव इह किंपि नरस्स आवडइ ।।१00२।। इय भणिय कवड-पयडिय-अंसुजलोहलिय-लोयणे तम्मि | विरए वरदत्तो वि हु चिंतिउमेयं समाढत्तो ||१00३।। 'एयरस धीरिमाए अकहंतस्सावि अंसुपूरेण | धूमेणं मुणिज्जइ हुयवहो व्व गरुओ" मणुव्वेओ ||१00४|| अह भणइ - 'कहसु उव्वेय-कारणं जइ न तं अवत्तव्वं । मह संविहत्त-दुक्खो लहुईय-दुक्खो तुम होसु ।' १००५।।
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૧૯૪
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
अह साहइ सागरओ- 'तुमम्मि जीवियसमे अवत्तव्वं । अन्नं पि मह न किंचि वि, विसेसओ एस वृत्तंतो ||१००६|| जाणइ इमं वयंसो जं महिला कारणं अणत्थाणं । हिंस व्व सव्व - दुक्खाण अंधयाराण रयणि व्व ।। १००७।। अह जंपइ वरदत्तो - 'किं कुडिलगईए वियडभोगाए । महिलाए भुयंगीइ व कीए वि हु संकडे पडिओ ? || १००८ || तो जंपइ सागरओ कारिमलज्जो अहं जिणमईए । पयडिय - -मयण-वियारं सुइरं असमंजसं भणिओ || १009 || सयमेव लज्जिऊणं कयाइ विरमिस्सई इमा मूढा । इय चिंतंतेण मए उवेक्खिया एत्तियं कालं ||१०१०||
नवरं दिय दियहे असइत्तण-समुचिएहिं वयणेहिं । भणइ ममं, न य विरमइ असग्गहो अहह महिलाणं || १0११||
अज्ज तुह दंसणत्थं गओ गिहं मित्त ! रक्खसीए व्व । रुद्धो अहं छलन्नेसिणीए सहसा जिणमईए ||१०१२ || हरिणो व्व वागुराओ "गरुयाओ तग्गहाओ अप्पाणं । कहमवि विमोईऊणं भीयमणो एत्थ पत्तो हं ॥ १०१३ || तो चिंतिउं पवत्तो नणु जीवंतस्स नत्थि मे मोक्खो" । एईए सयासाओ ता अत्ताणं हणेमि अहं ||१०१४ | |
एयं पि न जुत्तं जं एसा मित्तस्स अन्नहा कहिही । मित्तो य मह परुक्खे तह त्ति तं मन्निही सव्वं ||१०१५ || अहवा कहेमि सव्वं मित्तस्स जहद्वियं इमं जेण । न लहेइ सो अवायं एईए अकयवीसासो ||१०१६ || एयं पि न जुत्तं चिय जं एईए अपूरियासाए । दुस्सीलत्तण- कहणं खयम्मि सो क्खार - 1 एवं विचित्त - चिंता - पवन्न-चित्तो तए अहं दिहो । उव्वेय-कारणमिणं मुणसु तुमं मह महासत्त ! ||१०१८ || अह तस्स पावमित्तस्स वयणओ उल्लसंत-रोसभरो । सो असमिक्खियकारी वरदत्तो निय-गिहं पत्तो ||१0१९||
र- निक्खेवो ॥१०१७।।
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सुमइनाह-चरियं
पय-पक्खालण-हेउं उवहियाए पुरो जिणमईए ।
नासं व वंचगजणो छुरियाए छिंदए नासं ||१०२०।। तओ उच्छलिओ हाहारवो, मिलिओ सयण-वग्गो । भणिओ अणेहिं वरदत्तो- 'आ पाव ! निक्करुण ! अणाकलिऊण कुलकलंकं, अगणिऊण सयण-सिणेह, अविभाविऊण उभय-लोय-दुहावहत्तणं किं तए ववसियमेयं ? । नत्थि ताव इमीए सयल-गुणमईए जिणमईए तणुम्मि तिल-तुस-तिभाय-मित्तो वि दोसो । जओ एईए अकलंकं कुलं, उत्तमा जाई, मणोहरं रूवं, महुरालाविणी वाणी, विणय-कुलहरं आयरणं, परपुरिस-पलोयण-परम्मुहा दिही, आवज्जिय-सज्जणा लज्जा, सरयससहर-निम्मलं सीलं ।'
इओ य मुणिय-वुत्तंतेहिं रायपुरिसेहिं आयडिऊण नीओ वरदत्तो रायपासं । भणिओ रखना - 'भद्द ! किं इमीए तुह भज्जाए अवरदं ? जेण तए अकहिऊण रायकुले सयं चेव निग्गहो कओ ? ।' वरदत्तेण वुत्तं'देव ! मम अत्थि सागरओ मित्तो। सो जाणाइ इमीए अवराहं ।' रन्ना वुत्तं- 'तो तं चेव आणेह ।' आरक्खिएहिं गवसंतेहिं कहिं पि वणनिगुंजे नासंतो पत्तो सागरओ बंधिऊण आणि रायपासं । वुत्तो रन्ना- 'अरे दुरायार ! किमवरद्धं इमीए महासईए ?' । सो अ सज्झसवस-कंपंतगत्तो जाव न किंपि जंपइ ताव प्पहओ कसप्पहारेहिं । कहिओ अणेण जहडिओ वुत्तंतो | कुद्रेण रन्ना 'दो वि दोसकारिणो'त्ति खित्ता गुतीए ।
एत्तो य जिणमई सा तमवत्थं पाविया वि निय-पइणा । तं पइ पओसलेसं पि नेव हियए समुव्वहइ ||१०२१|| कलुसाओ कुलवहुओ न हुंति दइएहिं दुमियाओ वि । पीडिज्जंतीओ वि हु महुर च्चिय उच्छुलहीओ ||१०२२|| अवि यजिण-पवयण-वयणामय-भाविय-चित्ता पयंपए एवं । 'मह चेव भवंतर-निम्मियस्स कम्मरस फलमेयं ।।१०२३।। जओसव्वो पुवकयाणं कम्माणं पावए फल-विवागं । अवराहेसु गुणेसु य निमित्त-मित्तं परो होइ ||१०२४|| किं च - निय-नासिया-छयणे वि मह नत्थि निब्भरं दुक्खं । काओ विडंबणाओ जीवा न लहंति कम्मवसा ? ||१०२५।।
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૧૬
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं किंतु मह कुसीलत्तण-कलंक-संभावणेण संभवए । जं निम्मल-जिणधम्मस्स लाघवं तं महादुक्खं' ||१०२६।। एवं पयंपमाणा घर-देवालय-जिणिंद-पडिमाए । पुरओ काउस्सग्गं एगग्गमणा कुणइ एसा ||१०२७।। अह सासणदेवीए जिणमइ-सीलेण रंजिय-मणाए । आसज्ज विणिम्मविया तीए नासा सरल-रुवा ||१०२८।। गयणाओ कुसुमवुही मुक्का सुरदुंदुहीओ पहयाओ । 'जयइ जिणसासणं जिणमई सई एरिसी जत्थ ।। १०२१।। इय जिणमई-सईए तारिसमच्चब्भुयं निसुणिऊण । आगंतूण सयं चिय सलाहए तं महीनाहो ||१०३०।। 'तं धन्ना कयपुन्ना तुज्झ सुलद्धं च माणुसं जम्मं । एयारिसो पभावो जीए वर-सीलरयणस्स ।।१०३१|| अह जिणमईए भणिओ जोडिय-करसंपडो नरविरंदो । 'मुंचसु पई मह तहा तम्मित्तं' तेण ते मुक्का ||१०३२|| पासं व गेहवासं विवज्जिउं जिणमई विसय-विमुही । गेण्हई दिक्खं काउं तिव्व-तवं वच्चए सुगई ।।१०३३।। निंदिज्जतो लोए कस्स वि वयणं पि दंसिउमसक्को । गमइ दिणे वरदत्तो पच्छायावेण इज्तो ||१०३४|| एवं तुमं पि पिययम ! अम्हे 'गरुयाणुराय-रसियाओ ।
सहसा परिच्चयंतो मा पच्छायावमुव्वहसु ।।१0३५।। ||७|| कुमारेण वुत्तं'इत्थीओ एयाओ विवेय-कलहंस-मेहमालाओ । धम्म-धण-तक्करीओ दोस-भुयंगम-करंडीओ ||१०३६।। मोहंधयार-रयणीओ कुग्गहग्गाह-जलहिवेलाओ । मोक्ख-नगर डग्गलाओ दुग्गइ-पुर-सरल-सरणीओ ||१०३७।। इत्थीणं पुण चरियं गहणं न वियाणए सुरगुरू वि | जयवम्मो व्व बुहो तं दई सोउं च सद्दहइ ।।१०३८॥
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१६७
सुमइनाह-चरियं
रयणावलीए भणियं - 'नाह ! को सो जयवम्मो ? ' कुमारेण वुत्तं-- 'धायईसंड-दीवस्स भारहे नयरमत्थि लच्छिपुरं । जं गयण-मग्ग-संलग्ग-फलिहसालं विसालं पि ||१०३१।। तत्थ निवो जयवम्मो जस्स करे संगरे गवलकंती ।
करवालो छज्जइ विजयलच्छि-मयनाहि-तिलओ व्व ।।१०४०।। कयाइ सुहोवविहस्स तस्स समागया पसत्थ-सत्थ-परिकम्मियमइणो विउसा | पारद्धा तेहि समं गुही । भणियं रन्ना- 'किं गहणं ?'| तेहि भणियं— 'इत्थी-चरियं । जओ
सायरजल-परिमाणं सुरगिरि-माणं तिलोय-संठाणं ।
जाणंति बुद्धिमंता महिला-चरियं न याणंति ||१०४१|| रला चिंतियं- 'किं सत्तं, को ववसाओ, किं वा साहसं तासिं ? जं इमे एवमुल्लवंति । ता मए अज्ज कीए महिलाए चरियं पेच्छियव्वं'ति विम्हिय-मणो रयणीए पावरिऊण अंधयार-पडं, वंचिऊण पाहरिए निग्गओ गेहाओ | गओ अग्गिसम्म-भट्टरस गेहं । कुणइ १४वेओग्गारं । भणिओ भट्टेण- ‘भद्द ! किं मग्गसि ?' । रन्ना भणियं-- 'मह देसंतरागय-बंभणरस देहि वासं ।' भट्टेण वुत्तं- 'नत्थित्थ वासओ ।' रन्ना वुत्तं- उत्तमं तुमं बंभणं भ(जा)णिय अहं बंभणो समागओ | न य . सुद्दगिहेसु वसंति बंभणा ।' भट्टेण वुत्तं- 'जइ एवं ता कुडीरए वससु ।' ठिओ राया । एत्थंतरे भणिओ भज्जाए भट्टो- 'गिण्ह पुत्तं । तुह भायगेहे अज्ज छही । तत्थ अक्खवत्तं दाऊण जाव आगच्छामि ।' भट्टेण भणियं– 'न तुमं आगमिस्ससि सिग्धं । पुत्तो पुण रुयंतो ममं कयत्थिरसइ । ता. पुत्तं घेत्तूण वच्च ।' भट्टिणीए भणियं- 'तत्थाहं किं करिस्सं ? | उज्डिाऊण सुयं सिग्घमागमिस्सं ।' पुत्तं भट्टस्स अप्पिऊण निग्गया भट्टिणी ।
राया वि 'तत्थ पेच्छामि बहु-जुवइ-चरिय'ति चिंतयंतो लग्गो तीए पिडओ । पत्ता भट्टिणी हट्टमग्गे । मिलिओ तीए कय-संकेओ कोइ जुवाणओ । तेण भणियं.--. 'विहिय-सिंगारा कत्थ पत्थिया सि ? ।' तीए भणियं- 'वद्धावणय-कज्जेण देवर-गिहे । सिग्घं आगमिस्सामि ।
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૧૬૮
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तुमं एत्थेव पडिक्खसु ।' रन्ना चिंतियं- 'इमीए चरियं ताव पेच्छामि'त्ति ठिओ तत्थेव । जुवाणो वि जाव पडिक्खंतो चिहइ ताव समागया सा । तेण भणियं- 'रइसोक्खं कत्थ माणियव्वं ?' | तीए वुत्तं- 'मह गिहे गंतुं मग्गसु वासयं, जेण तहिं रइसोक्खं निन्विग्घं माणेमो ।' पयट्टों जुवाणओ | वेस-परावत्तं काऊण लग्गा तस्स पिट्ठओ भट्टिणी । राया वि कोऊहल-खित्त-चित्तो तदणुमग्गेण चलिओ । जुवाणएण वेयज्झयणं काऊण भणिओ भट्टो- 'उसभपुराओ एसा मह घरिणी मए किंचि सिक्खविया रुहा समाणी पुत्तं मोत्तूण इहागया । अहं च कुटिओ पिडओ लग्गो समागओ | उस्सूरं च जायं आगच्छंताणं | ता मे देहि वासं । भट्टोऽहं तुमं च भट्टो, अओ जुत्तमेयं । जामदुगं च वसिऊण गमिस्सामो निय-नयरं ।' एवं भणिए 'रंधणए वससु तुमं'ति भणियं भट्टेण । पविहाई दो वि तत्थ । दारओ वि मज्हा-रत्ते रोइउं पवत्तो । भणियं जुवाणएण'भट्ट ! किं इमो रोयइ दारओ?।' भट्टेण भणियं- 'इमस्स माया देवर-गिहे गया । मए वारिया वि न हिया, एसो खु भुक्खिओ रुयंतो न थक्वइ । सा वि न आगया । ता किं करेमि ? ।' जुवाणएण वुत्तं- 'मह बंभणीए पुत्तो गिहे मुक्को । ता अप्पसु निय-पुत्तयं जेण थणाविओ सुहं सुयइ ।' अप्पिओ भट्टेण पुत्तो | थणाविओ, पुणो वि समप्पिओ भट्टरस । पसुत्तो पुत्तो भट्टो य । इयराणि वि कीलिऊण पभाए 'भट्ट ! वच्चामो अम्हे, उसभपुरे पाहुणओ एज्ज ।' एवं कहिऊण गयाणि दुवार-देसं । गओ जुवाणओ।
भट्टिणी वि काऊण पुव्व-नेवच्छं पयडिऊण तंबोल-सणाहं थालं पत्ता गिहं । भट्टो वि सविउं पवत्तो- 'रंडे रंडे ! किं नागया सि निसाए ?, संताविओ हं तुह सुएण ।' तीए वि वुत्तं- 'अज्ज तए आणिया का वि रंडा !, जओ इह दीसइ आवीलो मलियं मल्लं । सिक्कडो य पडिओ । जा अहं गेहाओ निग्गया ता जाओ तुम भूयंगो । साहेमि महेसराणं तुह चरियं । कहं गिण्हसि निव्वावए दक्खिणाओ य ?।' एवं अक्कोसंतीए तीए निग्गओ भट्टो । गओ निवाणं । राया वि पत्तो भट्टिणीए पासं । भणिया सा- 'भट्टिणि ! जाणसि जयवम्मं रायाणं ?। तीए भणियं- 'जस्स पुरीए वसामि तं कहं सयलजगप्पयड जयवम्मं रायाणं न याणामि ?।' रन्ना भणियं- 'ता सोऽहं ।' तीए भणियं- 'किं तए एरिसो वेसो कओ ?| रना भणियं- 'इत्थी-चरियस्स जाणणत्थं ।' तीए भणियं- 'केरिसं चरियं ?।' रन्ना भणियं- 'जारिसं तुह ।'
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सुमइनाह-चरियं
१६१ तओ कहिओ सव्वो वि सपच्चओ निसा-वुत्तंतो" | तो लज्जाए भएण य विम्हला ठाऊण खणमेक्वं काऊणऽदृहासं भणिओ राया- 'सामि ! केरिसं मज्झ चरियं ?, तुम्ह नयरे वसंति ताओ महिलाओ जासिं पायबद्धा वि नाहं सोहामि !' रल्ला वुत्तं- 'एक्कं ताव मे कहसु ।' ता सा कहिउं पवत्ता
'अस्थि अस्थिजण-पूरिय-मणोरहो मणोरहो सेट्ठी । तस्स कमलदल-विसालच्छी लच्छी भज्जा | ताणं चउण्हं पुत्ताणं उवरि मणोरहसएहिं जाया निय-रूव-रेहो हामिय-सुरसुंदरी सुंदरी धूया । तीए परिणीय-मेत्ताए चेव उवरओ भत्ता । सिटिणा वुत्तं - ‘वच्छे ! "ईइसो चेव संसारो । सुरासुराणं पि अनिवारियप्पसरो पहवइ मच्चू । ता न तए खिज्जियव्वं । मह घरोवरि ठिया चेव चिट्ठसु किं पि कम्मं अकुणमाणी' | पडिवन्नमेयं अणाए । कयाइ तीए मत्तवारण-हियाए दिहो विसिट्ठ-रूवनेवच्छो विसाल-वच्छो रायमग्गमोगाढो देसंतरागओ कामपालो रायपुत्तो । तं पइ पच्चक्ख-कामएव-ब्भमेण मुक्काओ कुसुमदामुब्भडाओ कडक्ख-च्छडाओ । एत्थंतरे पढियं बंदिणाजयइ विजय-लच्छी-संगओ बंगदेसा
हिवइ भुवणपालस्संगओ कामपालो । अइसय-रमणिज्जं पिच्छिउं जस्स रूवं,
धुवममरवहुओ मच्चलोयं महंति ||१०४२|| सुयमिणं सिहि-धूयाए, नायं च जहा- 'बंगदेसाहिव-सुओ कामपालो इमो' त्ति | रायपुत्तेणावि पलोईया सा साणुरायाए दिहीए । तं चेव चिंतयंतो गओ नियावासं । गहिओ कामज्जरेण । सेहिधूया वि काम-परवसत्तणओ दढमस्सत्थ-सरीरा जाया । विसनो सिही जाव चिट्ठइ ताव आगया भिक्खलु परिव्वाइगा । भणिया य सेहिणा- 'भद्दे ! अस्सत्थं पउणीकरेसु मह धूयं ।' तीए भणियं- ' पेच्छामि ।' ताव गया तीए पासं । दहण तं मुणिय-मयण-वियाराए भणिया अणाए- 'भद्दे ! लक्खियं तुह सरीरस्स असत्थया-कारणं । ता कहेसु सब्भावं जेण तमहं संपाडेमि ।' तीए वि 'न अन्ना गई' ति चिंतिऊण कहिओ सब्भावो । भणियमणाए- 'न तए खिज्जियव्वं । आइच्चवारे आइच्चहरे आइच्चपूजा-ववएसेण तेण सह संगम काराविस्सं' ति भणिय उहिया परिव्वाइगा । कहियं सिहिणो- 'मए नियत्तिओ किंचि दोसो । सव्वहा
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१७०
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पुण आइच्च-पूयाए नियत्तिस्सइ ।' गया रायउत्तावासं, भणिया तस्स भिच्चे हिं - 'भगवई ! "जाणासि किं चि ?।' तीए भणियं- 'सव्वं जाणामि | भणह कज्जं ।' तेहि भणियं- 'अम्ह सामी रायपत्तो दढमसत्थो वइ । ता तं पउणीकरेसु ।' 'करेमि' त्ति भणंती नीया रायउत्त-सयासं । भणियं तीए एगते- 'रायउत्त ! सिहिधूया-पलोयण-खित्त-चित्तो ति छलन्ने सिणा छलिओ तुमं मयणेण । तेण असत्थ-सरीरो सि ।' ईसि हसिऊण वुत्तं रायउत्तेण- 'भयवइ ! कहं मुणियमिणं ?| अहवा दिव्वनाण-नयणो चेव तवस्सि-जणो होइ । ता तुमं चेव चिंतेहि सत्थत्तणोवायं ।' तीए भणियं- 'चिंतिओ चेव मए उवाओ । वच्च आइच्चहरे । तत्थ तीए सह दंसणं भविस्सइ ।' अह सिहिधूया सयणपरिगया गया आइच्चहरे । पूईऊण आइच्चं निग्गच्छंती तत्थागएण गहिया भुयाए रायउत्तेण | पुक्वरियमणाए । 'छिक्वाहं परपुरिसेण । न मे अग्गिं विणा सुद्धि'त्ति कड्डेह कट्ठाई | कह वि नियत्तिया जणएण । आगया निय-गेहं । तीए चेव रयणीए रायउत्तं घेतूण समागया परिव्वाइगा । जाओ दोण्हं पि संगमो । 'षट्कर्णो भिद्यते मन्त्रः'इति चिंतिऊण पसुत्तं परिव्वायगं जीरण-वत्थाईएहिं पिहिऊण पलीवियं घरं । निग्गयाई दो वि | गयाइं रायउत्त-आवासं । सेही वि दडं परिव्वाइयं धूय त्ति मन्नंतो विलविलं पवत्तो___ हा पुत्ति ! तए परपुरिस-फरिस-विहुराइ मग्गिओ अग्गी ।
दिल्लो न मए सयमेव साहिओ तह वि सो तुमए ||'१०४३|| काऊण तीए मय-किच्चाई पेसियाणि अहीणि तित्थे । रायपुत्तस्स वि कइवय-दिणेहिं तुझु धणं । भणिया सा- 'भद्दे ! स-देसं वच्चामो ।' तीए भणियं- 'किं तत्थ गमणेण ?| एत्थेव सव्वं पूरिस्सइ सेही । वच्च सेहि-हट्टे । मग्गसु दव्वेण महग्धं पट्टसाडीयं ।' गओ सो तत्थ । तहेव कयं । पेसिया पट्टसाडिया भज्जाए | तीए वि 'न पडिहासइ'त्ति न गहिया । एवं दो-तिनि-वेलाओ कयं । सेहिणा भणियं- 'सा चेव भज्जा इहागच्छउ । किं पाय-घसणेण ?।' समागया सा । तं दहण सेट्ठिया भणियं- 'रायउत्त ! मह धूया तए जया फरिसिया तया मह महंतो कोवो जाओ | रायपुत्तो तुमं ति न किं पि वुत्तं ।' रायपुत्तेण भणियं- 'मए एसा निय-भज्जा फरिसिया, न तुह धूया ।' सेहिणा वुत्तं- 'एसा मह धूया किं
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१७१
सुमइनाह-चरियं न होइ ?।' रायपुत्तेण भणियं- 'सेहि ! नेह-गहिलो सि । किं न सुमरेसि निय-धूयं अग्गि-दडं ? ।' सेहिणा भणियं- 'सच्चं, सरिसत्तणेण मूढो म्हि । तह वि धूया-सरिस त्ति पडिवन्ना इमा मए धूया । ता तए जं न पुज्जइ तं मह हट्टाओ घेत्तव्वं ।'
इय भट्टिणीए चरियं दडं सोउं च सेहि-धूयाए । सद्दहइ 'इत्थि-चरियं गहणं' ति मणम्मि जयवम्मो ||१०४४|| एसो अवीससंतो महिलासु समुल्लसंत-वेरग्गो । सीलंधर-गुरु-पासे गहिय-वओ साहइ स-कज्जं ||१०४५।। ता भद्दे ! 'इत्थी-चरियं गहणं' मुणंतो अहं पि कहं इत्थीसु रई करेमि ? त्ति ||८||
एत्थंतरे लीलावईए भणियं- 'नाह ! वय-गहणं ताव करेसि पुलोवज्जणकए पुग्नं व अज्जेसि सयल-मणहर-पयत्थ-संपत्ति-निमित्तं । सा य अत्थि चेव तुह तहाहि - चिंतियमेत्त- संपज्जमाणमणवंछियत्थसत्थे पसत्थे पत्थिव-कुले जम्मो, आरोग्गं मणहरं, सयलकलाकलाव-कुलहरं अहरिय-रइरमण-रूवरेहं देहं, तरुणि-लोयणलिहिज्जंत-लायन्नमयपुग्नं तारुघ्नं, अणुकूलमणो गुरुयणो, १००गरुयरायकूलुप्पण्णाओ गाढाणुराय-संपुण्णाओ विणय-सज्जाओ भज्जाओ
इय पुण्ण-पावणिज्जे पयत्थ-सत्थम्मि तुज्या संपन्ने । पुन्नरस अज्जणं जं अज्ज वि पिसुणेइ तं लोहं ||१०४६।। लोहो य वज्जणिज्जो विउसेण अणत्थ-सत्थ-मूलम्मि ।
अभिभूओ तेण नरो लहइ खयं कज्ज-सिहि व्व ।।' १०४७।। कुमारेण भणियं- 'को सो कज्ज-सिही ?' लीलावईए भणियं
'अस्थि वित्थिन्न-वावी-कूव-सरोवराराम-रमणिज्जं रायपुरं नयरं । तत्थ अत्थोवज्जण-सज्जो पयईए चेव कय-परकज्जो कज्जो सेही । तस्स सहावओ विलसंत-लज्जा अणवज्जा वज्जा भज्जा । ताणं च विसयसुहमणुहवंताण जाया मोहण-सोहण-मल्हण-पल्हणाभिहाणा चत्तारि पुत्ता । गहिय-कलाकलावा पत्ता जोव्वणं । परिणावियाओ
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૧૭ર
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं विउल-कुलुब्भवाओ लच्छि-गोरि-रइ-रंभाओ वणिय-कन्नाओ । तस्स य सेहिणो घरे थावरओ कम्मयरो वुत्ताणत्तयं करेइ ।
अन्नया सेहिणा पेसिओ कम्मि वि पओयणे । आगच्छंतरस लग्गा महई वेला, पत्तो किं चूण मज्झरत्त-समए, कया अणे ण दवारउग्घाडावणत्थं घरमाणुसाणं सदा । जाव निद्दा-परवसत्तणेण न उग्घाडियं केणावि दुवारं । पसुत्तो दुवारप्पएस-संठियस्स महप्पमाण-कुहरस्स कढवदृस्स मज्झ-भाए | जाव निद्दा नागच्छ ताव सुओ अणेण परोप्परं संलवंतीण इत्थीण सहो । तओ किं इमाओ पायालवासुन्विग्गाओ नागकन्नयाओ ? जइ वा गलिय-गयण-गमण-विज्जाओ विज्जाहरीओ निवडियाओ ?, किं वा कुविय-सुरवइ-साव-परिब्भहाओ सुरंगणाओ पत्ताओ ?'त्ति विम्हिय-माणसो जाव सम्मं निरुवइ ताव रयणालंकारकिरण-हणिय- तिमिर-निउरुबाओ बहल-मयणाहि-पंकोवलित्त-गत्ताओ कप्पूर-पारी-परिगय-तंबोल-परिमल-वासिय-दियंताओ कणंतकणय-कंकण-कलावाओ रणंत-किंकिणी-मुहल-रसणाओ मंजुसिंजंत-मंजीराओ दिहाओ चत्तारि वि सिहि-सुण्हाओ । लच्छीए भणियं'हला गउरि ! अज्ज तुम उप्पाडेसु वढं ।' अवराओ तिन्नि निसन्नाओ वहस्स उवरि । उप्पाडियं गउरीए वढें, पयर्ट गयणे गंतुं । पत्तं समुदस्स उवरि । समुद्दो वि तासिं रूव-लुद्ध-मणो पसारिय-भूओ व्व रेहइ, अब्भंलिह-लहरीहिं पिच्छंतो व्व छज्जइ, समुच्छलंत-मच्छ-रिछोलिक डक्ख-च्छ डाहिं हसंतो व्व सहइ, फुरंत-फार-फे ण-नियरेण कयग्घदाणो व्व सोहइ, समुल्लसंत-मुत्ताहलुप्पीलेण ममं उल्लंधिऊण इमाओ वच्चंति त्ति विलक्खो रसंतो व्व तज्जए गरुय-निग्घोसेणं ।
ताओ वि पत्ताओ सुवनदीवं लच्छीए कणय-कंकणं व कणयपुरं नयरं । मुत्तूण तरस बाहि वढं गयाओ ताओ नयरब्भंतरं । थावरओ ठिओ तत्थेव वट्टे निलुक्को, पिच्छए कणयमय-पायार-पच्चासन्न-कणयइटाल-खंडाई, बीहंतो य न सक्कए ताणि घेत्तुं । ताओ वि सइच्छाए कीलिऊण निग्गयाओ गयाओ वढें । गमणक्वमेणेव नियत्ताओ पत्ताओ निय-नयरं | वढं मुत्तूण सहाणे पविहाओ सगेहं । थावरओ वि तं तारिसं अच्चब्भुयं चित्ते १०धरिउमचयंतो तासिं च भएण कहिउमपारयंतो ठिओ कहेण कइ वि दिणाई ।
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सुमइनाह-चरियं
१७३ अन्नया साहसमवलंबिऊण जहादिडं सव्वं सेहिणो रहसि साहेइ । सेहिणा'०४ भणियं- 'अरे थावरय ! तत्थ-गएण ताणि कणय-इटालाणि किं न तए आणीयाणि ?।' तेण वुत्तं- 'भएण वहुयाणं न सक्किओ अहं नीहरिउं वट्टाओ ।' सेहिणा वुत्तं- 'अरे अकम्मणो काउरिस-सिरोमणी ! तुमं पेच्छ, अहं तत्थ गंतूण ताणि आणिस्सं, परं तुमए तुहिक्केण ठायव्वं ।' अन्न-दिणे भणिया सिहिणा घरिणी- 'अहं गामे गमिस्सं, अओ मम जोग्गं करेह संबलं ।' तीए वि काऊण समप्पियं तं । निग्गओ गिहाओ सेही । गमिऊण बाहिं दियहं रयणीए अलविखओ पविहो वदृब्भंतरं । वहुयाओ वि कयसिंगाराओ समागयाओ वट्टे । भणियं लच्छीए- 'हले रंभे ! अज्ज तुज्ज वारओ, ता तुमए उप्पाडियव्वं वढें ।' चडियाओ तिन्नि इयरीओ | पुव्वक्कमेण पत्तं कणयपुरे वढे, मुक्वं बाहिं, पत्ताओ ताओ पुरब्भंतरं ।।
१० सिही वि हु नीहरिउं तत्तो सोवन्न-इट-खंडेहिं । पूरइ समंतओ तं वढे १० वटुंत-लोहभरो ||१०४८|| ताओ वि कीलिउं तं पत्ताओ तहेव संनियत्ताओ । तत्तो भणियं निब्भर-भारक्वंताइ रंभाए ||१०४।। अज्ज हला ! अहं केणावि हेउणा वट्टमक्खमा वोढुं । ता गच्छह गयणयले खिवामि वढं जलहि-मज्झे ||१०५०।। तो सिहिणा पलत्तं- 'वहुयाओ ! मा करेह पावमिणं । जम्हा तुम्ह ससुरओ एत्थ विवज्जामि कज्जो हं ||१0५१|| इय पत्थणापरो वि हु ससुरो दीणं पयंपमाणो वि । 'विनायमम्ह चरिय'ति ताहिं जलहिम्मि जं खित्तो ।।१०५२।। 'मा डहसु गहिल ! गामं'ति जंपिए संभरावियं सुहु । इय अक्खाणयमेयं जयम्मि तं पायडं जायं ||१०५३।। वहुयाओ आगयाओ स-गिहं तत्तो पभाय-समयम्मि । कज्जं सेटिं दहुं निय-निय-कज्जेण इंति जणा ||१०५४|| कज्जं अपेच्छमाणा 'जा कज्जो एइ ता पडिक्खामो । एयम्मि य उवविसिउं'ति चिंतिउं जंति वट्टम्मि ||१०५५||
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१७४
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं वढे पि अपेच्छंता तत्तो ते बिति अहह पेच्छामो । केणावि कारणेणं अज्ज न कज्जं न वढं च ।।१०५६।। तो जइ सेट्ठी कज्जो संते भवणम्मि भूरि विभवभरे । न कुणंतो अइलोभं ता निहणं नेय वच्चंतो ||१०५७|| एवं तुमं पि पिय ! लोभ-परवसो मा करेसु वय-गहणं ।
जं सज्झं वय-गहणेण तुज्या तं किं अपरिपुण्णं ? ||१०५८।। अवि य
पुरिसस्स वयं इणमेव सयणवग्गस्स जं समुद्धारो । सिर-तुंड-मुंडणं पुण काउरिस च्चिय कुणंति वयं ||१0५१|| सयणेहि देवयाराहणाइं काउं मणोरह-सएहिं । लद्धो सि तेण तेसिं मणोरहे किं न पूरेसि ?||१0६01| ||9|| कुमारेण भणियं'चिरमुवयरिया चिर-पुप्फवासिया पालिया य जइ वि चिरं । तह वि ह सयणा मरणाओ रक्खिउं न खमंति नरं ||१०६१|| एक्को च्चिय मच्चु-मुहं वच्चइ अच्चंत-कय-करुण-सद्दो । वीसरिय-सयल-तक्कय-सुकया चिटंति इह सयणा ||१०६२|| सयणाण कए मणुओ पावाई करेइ बहु-पयाराई । एक्को चिय सहइ पुणो पाव-फलं नरय-कुहरम्मि ||१०६३|| चुलसीइ-जोणि-लक्खेसु संसरंताण एत्थ जीवाणं । परमत्थेणं सव्वे सव्वेसिं बंधवा हुंति ||१०६४|| जे के वि हु जीवाणं परोप्परं संभवंति संबंधा । एक्वेक्वेणं एक्वेक्वयस्स तेऽणंतसो पत्ता ||१०६५।। जीवाण बहुय-जम्मेसु बहुविहा जं हवंति संबंधा । तं न हु चोज्जं चोज्जं जं पुण ते एक्व-जम्मम्मि ।।१०६६।। एत्थ य कुबेरसेणा कुबेरदत्तो कुबेरदत्ता य । जिणपुंगवेहिं दिहा बहु-संबंधेसु दिहंता ।।' १०६७।।
लीलावईए भणियं - 'नाह ! का कुबेरसेणा ? को वा कुबेरदत्त ? त्ति ।
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१७५
सुमइनाह-चरियं
कुमारेण भणियं'उद्दाम-काम-कमणीय-कामिणी-चक्क-चंकमण-महरा । विगय-परचक्क-विहुरा महुरा नामेण अत्थि पुरी ||१०६८।। एक्वा वि सयल-तइलोक्व-विजय-कज्जे अणंग-नरवइणो । तत्थ य कुबेरसेणा सेण व्व विलासिणी अत्थि ||१०६१।।
सा य पढम-गब्भेण खेईया जणणीए विज्जस्स दंसिया । तेण भणियं--- 'जमल-गब्भ-दोसेण एईए बाहा, न उण कोइ वाहि-दोसो' | एवं नाऊण जणणीए भणिया- 'पुत्ति ! मा पसव-काले ०७सरीरपीडाओ होउ ति गालेमि ते गब्भं ।' तीए न इच्छियं । जाओ दारओ दारिया य । जणणीए भणिया- 'उज्झिज्जंतु दुक्खकारयाणि एयाणि ।' तीए भणियं- 'जइ ते निब्बंधो ता दस-रत्तं पोसिज्जंतु ।'करावियाओ तीए दुवे कुबेरदत्त-कुबेरदत्ता-नामंकियाओ मुद्दाओ । पुल्ने दस-रत्ते मंजूसाए रयणपूरियाए छोटूण जउणा-नईए “पवाहियाइं दो वि । भवियव्वयाए सोरियपुरे पच्चूसे दोहि इब्भदारएहि दिहा मंजूसा | गहिया तेहि । दिहाणि ताणि । एक्वेण कुबेरदत्तो गहिओ, बीएण कुबेरदत्ता । कमेण संवट्ठियाणि । पत्ताणि कामकरि-कीलावणं जोव्वणं । कओ तेसिं परोप्परं वीवाहो । वित्ते वीवाहे वहू-वरेहिं जूयकीला काउमारद्धा । सहीहि कुबेरदत्त-हत्थाओ मुद्दा गहिऊण कुबेरदत्ताए हत्थे दिन्ना । पलोइया तीए। जाव सरिस-घडणाओ दो वि मुद्दाओ चिरंतणीओ त्ति कलिऊण चिंतियं तीए- 'केण कारणेण मन्ने एवमेयं ति नूणं अम्हे भायभंडाइं० । न य मे कुबेरदत्ते भत्तार-बुद्धी, नयावि कुबेरदत्तस्स मइ भज्जा-बुद्धी । ताव भवियज्वं एत्थ कारणेणं' ति चिंतिऊण दो वि मुद्दाओ वरस्स हत्थे ठवियाओ । तस्स वि पेच्छंतस्स तहेव चिंता समुप्यन्ना । सो वि वहए मुदं अप्पिऊण गओ माउ-समीवं । सवहे दाऊण पुच्छिया माया । तीए १०गरुय-निब्बधं नाऊण जहहियं सिहं । तेण भणियं- 'अम्मे ! तब्भेहिं जाणमाणेहिं अजत्तं कयं ।'तीए भणियं'सरिस-रुव-दंसणाओ तुम्हाणं अणुरूवो जोगो'त्ति मोहिया अम्हे | ता होउ, पुत्तय ! हत्थग्गह-मेत्तेण दूसियाइं तुब्भे, न उण पावं समायरियं । अहं विसज्जेहामि दारियं स-गिहं । तुमं पुण दिसायत्ताए पत्थिओ सि । तओ नियत्तस्स अन्नाए सह संबंधं कारविस्सामि ।' ‘एवं होउ'त्ति
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૧૭૬
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं कुबेरदत्तेण कुबेरदत्ता पेसिया स-गिहं । तीए वि तहेव पुच्छिया जणणी । जणणीए"" वि जहावत्तं कहियं । कुबेरदत्ता तेण निव्वेएण पव्वइया । पवत्तिणीए सह विहरइ । मुद्दा अणाए संगोविऊण अप्पणो पासे धरिया । पवत्तिणीए वयणेण तिव्व-तवच्चरण-पसत्ताए कुबेरदत्ताए ओहिनाणं समुप्पन्नं । आभोइओ अणाए कुबेरदत्तो कुबेरसेणा-गिहे वट्टमाणो, पुत्तो य ते ण से जाओ । चिंतियं अणाए- 'अहो अन्नाण-वसगाणं अकज्जकारितणं'ति । तेसिं संबोहणत्थं अज्जाहिं समं विहरमाणी महुरं गया कुबेरदत्ता, कुबेरसेणाए गिहे वसहिं मग्गइ । तीए वि वंदिऊण भणियं- 'अज्जा ! अहं नाममित्तेण गणिया कुलवहु-वेसेण चिहामि । ता तुम्हे गिहेगदेसे विवित्ते वसह'त्ति अणुमए ठिया तत्थ कुबेरदत्ता । कुबेरसेणा वि दारयं साहुणीण पासे निक्खिवइ । कुबेरदत्ता तेसिं पडिबोहणत्थं दारयं जंपेइ - 'बालय ! भाया सि मे १, भत्तिज्जो सि मे २, देवरो सि मे ३, पुत्तो सि मे ४ । जस्स तुमं पुत्तो सो मे भाया १, पिया २, पुत्तो ३, भत्ता ४, ससुरो य ५ । जीसे गब्भाओ जाओ सि सा वि मे माया १, सासू २, सवत्ती ३. , भाउज्जाया य ४ । तं तहा-संलावं सोऊण कुबेरदत्तं साहुणिं वंदिऊण कुबेरदत्तो पुच्छेइ- 'अज्जे! कह इमं इक्वेक्कविरुद्धं असंबद्धं कित्तणं करेसि ?।' अज्जा भणइ- 'सावय ! सच्चं एयं ।
ओहिनाणेण उवलद्धं मए ।' कुबेरदत्तेण भणियं- 'कहं चिय ?' सा भणइ-'बालओ भाया मे, जेण दोण्हं पि एक्का माया १ । भत्तिज्जओ वि, जेण मे भाउणो पत्तो २ । देवरो य मे, जेणं भत्तार-भाया ३ | पुत्तो य, जेण मे भत्तार-सुओ ४ । बालगस्स वि जो पिया तुमं सो मे भाया, जेण दोण्हं पि एक्वा माया १ । पिया य, जेण मे मायाए भत्ता २ । पुत्तो य, जेण मे सवत्तीए पुत्तो ३ । भत्ता य, जेणाहं तए परिणीया ४ । ससूरो य, जेण मह सासूए कुबेरसेणाए तुमं दईओ ५ | जीए गब्भाओ जाओ त्ति सा वि मे माया, जेणाहं तीए गब्भे उप्पन्ना १ । सासु य, जेण मे भत्तुणो कुबेरदत्तस्स माया २ । सवत्ती य, जेण मे भत्तुणो कुबेरदत्तस्स भज्जा ३ । भाउज्जाया य, जेण मे भाउणो कुबेरदत्तस्स भज्जा ४ ।' तओ अज्जाए मुद्दा दंसिया । कुबेरदत्तो तं तारिसं जाणिऊण जाय-तिव्व-संवेगो 'अहो ! अन्नाणेण एवमहं कारिओ त्ति पव्वइओ गुरु-समीवे | गरुयं१२ तवच्चरणं च काऊण देवलोगं गओ । कुबेरसेणा वि गहिय-गिहत्थव्वया जाया अज्जा वि, पवत्तिणी समीवे गया ।
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१७७
सुमइनाह-चरियं
एवं ता जीवाणं अणियय-भावेण सयण-भावस्स ।। भद्दे ! भवत्थ-जीवा सव्वे परमत्थओ सयणा ||१०७०।। सव्वेसिं उवयारं सव्व-सावज्ज-विरइरुवाए । जिण-पव्वज्जाइ विणा सक्को वि न सक्कए काउं ||१०७१।। ता सव्व-जीव-लक्खण-सयणाणं पालणुज्जय-मणेण । पुरिसेणं निरवज्जा पव्वज्जा चेव कायव्वा ||१०७२|| ||१०|| एत्थंतरम्मि कमलावईइ विरहाउराइ संलत्तं । 'पिययम ! अहं पि संपइ हिय-वयणं किं पि जंपेमि ||१०७३।। अइ-लोह-गहग्गहिया जीवा पावंति आवइं गरुयं । उहित्तणं पवना दिहंतो कुट्टिणी एत्थ' ||१0७४|| कुमारेण वुत्तं- ' का सा कुट्टिणी ?' | कमलावईए भणियं- 'सुण, 'अत्थि पुरं कुसुमपुरं पुरीण कुसुमावयंस-सारिच्छं । सर-वावी-कूव-पवाए पवडियाणंद-संदाहं ||१०७५।। तुगं-सुरभवण-कंचण-कलस-समूहो नहंगण-दुमस्स । परिपाग-पिंगफल-निवह-लीलमवलंबए जत्थ ||१०७६|| तत्थ रिउ-रमणि-नीसास-पवण-सिंधुक्किय-प्पयावग्गी ।
वग्गंत-तुरयवग्गो राया रिउमद्दणो नाम ||१०७७।। तस्स निय-जणयावमाण-विणिग्गओ गयण-विउलासओ सयलकलाकलाव-कुसलो सलोण-सव्वंगोवंगो बंगाहिव-नंदणो नंदणी रायपुत्तो ओलग्गइ, लग्गई य सो निय-गुण-गणेण मणम्मि नरवइणो । वियरेइ राया तस्स विउलं वित्तिं । सो उदारयाए विच्चइ "नड-विडवेसा-भट्ट-चट्ट-कज्जेस् । कयाइ परिब्भ मंतो दिहो ललियलावण्णावगनिय-ललियाए ललिया-नामाए गणियाए । ससिणेहं निज्झाइओ चिरं । पेसिया "दासी । गंतूण तीए भणिओ- 'देव ! अम्ह सामिणी ललिया विनवेइ- एत्थ आगमणेण पसायं कुणह ।' आगओ नंदणो | आढत्तो वीणाइ-विणोओ । अक्खित्ता सा । भणियमणाए- नियं चेव तुह एयं गिहं, ता एत्थेव वसियव्वं ।
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૧૭૮
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं चिंतियं नंदणेण'अब्भत्थिया वि वंका थण-पडिलग्गा वि तक्खण-विराया । तियसिंद-चावलहि व्व होइ वेसा सुदुग्गेज्झा ||१०७८।। रज्जंति धणेसु पणंगणाओ न गुणेसु कुंद-धवलेसु । सज्जति चिलीणे मक्खियाओ घण-चंदणं मोत्तुं ।।१०७१।। थोर-थणथलीण वि पंकय-दल-दीह-लोयणाणं पि । वेसाण हरिद्दा-राय-सरिस-पेम्मत्तणं दोसा ||१०८०|| जाणामि जइ वि एवं इमीए रूवाइ-गुणगणो तह वि ।
आयडइ मह हिययं बला वि लोहं व अळंतो ||१०८१।। एवं चिंतिउण ठिओ तत्थ । जाया परोप्परमिमाण पीई । नवरं कुट्टणी धणलुद्धा न तूसइ तेत्तिय-धणेण । अओ न बहुमन्नइ नंदणं । भणेइ निय-धूयं- 'वच्छे ! तुच्छ-दविण-दाया एस । एत्थ नयरे ते के वि चिटंति भोइणो अवरे, जेसिं पुरओ धणओ वि किविणो, ता किं तुम इमं न चएसि ?। तीए भणियं- 'न चएमि मुत्तुमेयं । धणलुद्धा तुमं । अहं पुण गुणाणुरागिणी । गुणा य जारिसा एयरस न तारिसा अन्नस्स ।' एवं सोऊण कविया कुट्टणी१६ | भणिओ अणाए परियणो- 'अवमाणिऊण नंदणं निस्सारेह मे गिहाओ' । तेण तहेव कयं । निग्गओ नंदणो । परिब्भमंतो य भूमंडलं साकेयनयरंतस्स परिसरुज्जाणे पत्तो सक्लावयारचेईयं । जस्सिं कंदलिय व्व कंचणमय-क्खं भावलीहिं इमा, निच्चं पल्लविय व्व दिव्व-सिव-उल्लोएहिं, सव्वत्थ वि दिपंतेहिं चिय रायकुसुमियन्वुद्दाम-मुत्ताहलोऊले हिं, फलिय व्व हेमकलसुप्पीलेहिं लच्छी लया तत्थ दिहा जुगाइ-जिणिंदस्सेय पडिमा । तं दहण हरिसुप्फुल्ललोअणो थोउमाढत्तो'जं वज्जेसि नियंबिणी-थणहरुच्छंगाभिसंगं तुम,
कोदंडासि-तिसूल-चक्क-पमुहं छत्तं न धारेसि जं । तं मन्ने गय-राग-दोस-पसरो देवाहिदेवो तुम,
कज्जं कारणमंतरेण न भवे जम्हा इमं पायडं ।।१०८२।। लद्धं अज्ज मए तिलोय-कमला-वच्छत्थलालिंगणं ।
खीणं मज्झ खणेण पाव-पडलं नीसेस जम्मऽज्जियं ।
cirational
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सुमइनाह-चरियं
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संपत्ती भवसायरस्स विसमुत्तारस्स तीरे अहं ।
जं दिट्ठो सि जिनिंद लोयण-सुहा-नीसंद-तुल्लो तुमं ।। १०८३॥ महि - निहिय - निडालवहो पणमिऊण जिणं जिणभवण- दुवारदेसडियाए चक्केसरीए देवयाए पुरओ रयणीए पत्तो सो मणिपीढियाए । मज्झरत समए समागया तत्थ तक्करा । गहिउं पवत्ता सुवन्नरयणाहरणाइयं जिणहराओ । हक्किया नंदणेण - 'अरे दुरायारा ! किमेयमारद्धं उभय- लोग - विरुद्धं ?' तेहिं वुत्तं- 'जं पडिहाइ अप्पणो ।' तेण वुत्तं- 'न लब्भए काउमेयं ।' तेहिं वुत्तं- 'को निवारगो ?' तेण वुत्तं- 'एस मे खग्गो' । तेहिं वुत्तं- 'जइ एवं ता सम्मुहो होसु ।' खग्गं गहिऊण ठिओ सम्मुही नंदणी । तक्करा वि पवत्ता पहरिउं । उक्कडयाए सत्तरस निरवेक्खयाए जीवियव्वरस धुणिऊण केसरविसरं व अंगलग्गं सर-समूहं एक्केण वि करिणो व्व केसरिणा विद्दविया तक्कर - भडा नंदणेण, ना दिसोदिसं ।
दहूण तस्स सत्तं पहठ-मुहपंकया पसंसंती | तं रणरहसुडिय- सेय-बिंदु- संदोह दंतुरियं || १०८४|| तिमिर - घण- पडल- मज्झे सुवण्णवण्णाहि काय-कंतीहिं । विज्जु व्व पज्जलंती पत्ता चक्केसरी देवी ||१०८५ || अकय- सुकयाण दुलहं दाऊणं नियय-दंसणं तीए । अहिं करेहिं जुगवं पि अमयधाराहिं सो सित्तो ||१०८६|| तो नंदणस्स देहं सहस च्चिय रूढ-पहरण - वणोहं । चक्केसरिणा (रीए) विहियं विविहालंकार - रमणिज्जं ७ ||१०८७।। अह वच्छत्थल - विलुलंत तार- हारावलीए नेहेण । अप्पडिचक्काए इमो भणिओ पण्हुय-थणीओ व्व ||१०८८|| 'हे वच्छ! तुज्झ साहस- गुणेण तु म्हि विम्हि (म्ह) करेण । ता चिंतारयणमिणं गेण्हसु अवखय-निहाणं व || १०८९ ।। विणय- पणउत्तमंगेण नंदणेणं तओ इमं भणिया । 'देवि ! तुह दंसणं चिय चिंतारयणाओ अब्भहियं || 1080|l किंतु अइवच्छलाए जणणीए पणयपुव्वमाएसं ।
जइ न करेमि तओ हं न नंदणत्तं तुह वहामि ||१०११ ||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं एवं भणंतेण तेण पडिच्छिओ चिंतामणी । अक्खिओ अ देवीए पंचपरमिहि-मंतो, भणियं च-'पूईऊण कुसुमाइहिं इमिणा मंतेण सत्तवारे अहिवासिओ एस चिंतामणी मणवंछियं पयच्छइ । तहा इमस्स मंतस्स माहप्पेण न पभवंति भूय-पेय-पिसाय-रक्खसाइ, न कमंति पहरणाई।' 'पसाओ'त्ति भणंतो पडिओ पाएसु नंदणो देवीए । देवी वि तिरोहिया । तमेव मंतं सुमरंतेण गमियं निसासेसं पभाए जहुत्त-विहिणा पूईऊण चिंतामणी पत्थिओ सरीरठिइ-सामग्गिं । अचिंत-सामत्थओ तस्स तक्खणा चेव तत्थ संजाओ रयणमओ पासाओ | आरूढो तत्थ नंदणो, आगया अंगमद्दया, सविणयं अब्भंगिऊण कयं अणेहिं अंगमद्दणं । तओ समागयाओ सुगंधुव्वण-सणाह-पाणिपल्लवाओ तरुणीओ, उव्वट्टियाओ ताहिं नीओ विविह-मणि-किरण-रइअ-सक्वचाव-चक्कवाले विसाले पवण-विहुव्वंत-मुत्तावचूल-कय-तंडवे मज्जण-मंडवे, निवेसिओ रयणपट्टे | सुरहि-नीर-भरिय-भूरि-भिंगारेहि मणहर-गीयाउज्ज-नट्टपुव्वं एहविओ दिव्वंगणा-गणेणं, परिहाविओ दिव्व-देवंग-वत्थाई । कय-पुप्फ -विले वणो वयारो पत्तो दिव्व - नारी-निअर-पविखत्तो सक्कावयार-चेइयं । पूइऊण कुसुमगंध-पडिपट्ट्सएहिं पणमिओ भत्तिपव्वं भगवं जुगाइदेवो । करावियं नच्चंत-चारु-विलयं तुटुंत-हारलयं सलयं जिण-पुजा-कज्जागय-सागे अ-जणक्खेव-जणयं पेक्खणयं । कया चक्वेसरीए पूया । गओ सव्व-रसोवेय-विविह-खज्ज-पेज्जाइ-संपुन्नसुवन्न-थालं भोयणसालं जिमिओ नरिंद-लीलाए । गहिए अ तंबोले इंदयालं व तिरोहियं सव्वं पासायप्पमुहं । चलिओ नं दणो कुसुमपुराभिमुहं, पत्तो य तत्थ | इओ य सा ललिया नंदणमपेच्छंती परिचत्त-भत्ता ठिया ति-रत्तं । विचित्त-जुत्ति-पडिवत्ति-पुव्वं पन्नविया कुट्टणीए१८, भणियमणाए
'अवियालिंगइ अंगे भयवं धूमद्धओ धुवं मज्ा ।
न उ नंदणाओ अब्लो मणुओ मयरद्धय-समो वि ।।१०१२।।
इमं च तीए निच्छयं तह त्ति पडिवज्जिऊण कराविया कुदृणीए"" पाणवित्ति, अप्पणा वि पयट्टा तं गवेसिउं । अन्नया दिहो कयसिंगारो घरासन्न-रच्छाए२० वोलंतो नंदणो । तीए तुरियं गंतूण सविणयमाणिओ
घरं, काऊण महंत-पडिवत्तिं भणिओ- 'पुत्त ! जोत्तं किं तहा पवसणं?| Jain EdJ7317 mternational
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सुमइनाह-चरियं
૧૮૧ जलपाणत्थ निविहो उहंतो पत्थिओ कहइ वत्तं । तं पुण पयडिय-नेहो वि अकहिउं कह पउत्थो सि ? ||१0१३|| किर कत्थ कत्थ न मए पुत्त ! गविहो सि एत्तियं कालं | न य निय-दसण-दाणेण कओ पसाओ तए मज्झं ||१०१४|| एसा य मज्ा दुहिया दुहिया पत्ता य पाण-संदेहं ।
न य निन्नेहा जाया मुक्का अवराह-विरहे वि' ||१०१५।। नंदणेण वुत्तं - 'अहं खु उत्ताल-पओयणेण देसं तरं गओ, अज्जे वाऽऽगओ, वक्खेवाओ य ने ह पत्तो । ता न अन्नहा तए संभावियव्वं' ति । ठिओ तग्गिहे । कुणइ विलासे । मग्गिओ कुट्टणीए धणं | तओ 'भारतुल व्व लोहमई२२ इमा, न थोव-दाणेण तत्तिहित्ति कलिऊण तेण चिंतामणि-माहप्पेण दिण्णं मग्गियाइरित्तं वित्तं । तुहा कुट्टिणी | तह वि लोह-दोसेण पुणो पुणो मग्गेइ । नंदणो वि पयच्छइ । अन्नया विम्हियाए चिंतियं अणाए- 'नूणं अत्थि एयस्स चिंतामणी परिग्गहे, कहं अन्नहा एरिसी दाण-सत्ती ?। ता तं गेण्हामि ।' तओ ण्हाणोवविहस्स तस्स कुप्पास-खल्लयाओ गहिओ तीए मणी । पुणो किं पि जाइएण निहालियं अणेण खल्लयं तं । अपेच्छंतेण पारद्धा गवेसणा | भणिओ कुट्टणीए२३ - ‘पज्जत्तं तुह दाणेण | मा मे परियणं अब्भक्खाणेण दूमिहि ।' तओ नूणं अणाए गहिओ चिंतामणी, कहं अन्नहा सिद्ध-कज्ज व्व निदक्खिनमुल्लवइ एस त्ति संभाविऊण सामरिसो निग्गओ नंदणो, लज्जाए रायाणं पि अविल्लविऊण पत्थिओ देसंतरं । चिंतइ य
न हु अच्छरियं हय-कुणीए२४ लोहज्जराभिभूयाए । जं मग्गिए वि अधिए दिन्ने न नियत्तए तण्हा ||१०१६|| असमिक्खिय-तत्ताए वीसत्थद्दोह-दिन-चित्ताए । नो केवलं अहं चिय अप्पा वि हु वंचिओ तीए ।।१०१७|| "जओअमुणिय-विहि-मंताए तीए चिंतामणी मणोभिमयं । थेवं पि न वियरिस्सइ नूणं पाहाण-खंडं व ||१0१८।। को हुज्ज सो पयारो जेणाहं तीए विप्पियं काउं । दंसिय-निय-माहप्पो चिंतारयणं गहिस्सामि ? ||१०११।।
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१८२
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं उवयारं उवयारीण वेरं निज्जायणं च वेरीण | काउं जो न समत्थो धिरत्थु पुरिसत्तणं तस्स ||११00।।
इय चिंतापरो परिब्भमंतो पत्तो एग नयरं रमणीयं अजणसंचारं, चित्ते सविम्हओ पविहो तयब्भंतरं । पेच्छंतो किलकिलंत-कइकुल-संकुलाई देवकुलाइं, घुरुहुरंत-घोर-वग्घाइं, घरोयराइं लंबंत-भुयंग-कंचुयाई तोरणाइं । गओ रायभवणं । आरूढो सत्तमं भूमियं । पेच्छइ तत्थ कुंकुमकयंगरायं सुरहि-कुसुम-मालुम्मालिय-ग्गीवं करहिमिणं । 'कहं सुन्ननयरे करही ?। कहं वा एत्थारूढा सोवभोगसरीरा य ?।' ति वियक्वंतो पेच्छइ गवक्ख-गयं समुग्गय-दुगं | तत्थ एगत्थ धवलमंजणं, अन्नत्थ कसिणं । सलागा-दंसणाओ जेणंजणमिणं ति कय-निच्छओ नियच्छइ धवल-पम्हाई करही-लोयणाई । तो 'नूणं माणुसी एसा धवलंजणेण करहीकया संभवइ । कयाइ कसिणंजणेण पयइ-भावो इमीए' त्ति चिंतिऊण अंजियाई कसिणंजणेण तयच्छीणि नंदणेण । जाया पयइरुवा तरुणी । 'कुसलं तुह ?' त्ति ससिणेहमालत्ताए भणियमणाए- 'संपइ तुम्हाणुभावेण संभवइ कुसलं ।' नंदणेण वुत्तं- 'को एस वुत्तंतो ?।' तओ सा साहिउं पवत्ता- ‘अत्थि इओ उत्तरओ गंगाकूले कुसत्थले नयरे गंगाहरो त्ति सेही । तब्भज्जा गंगिला नाम । ताणं चउण्ह पुत्ताणमुवरि जाया मणोरह-सएहिं तणया नामेण सुंदरी अहं जोव्वणं पत्ता ।
अह गंगासन्न-वणे विज्जाविज्जय-निमित्त-निउणमई । नामेण रुद्दसम्मो आसि परिव्वायगो तरुणो ||११०१|| अह सो मह जणएणं सगोरवं भोयणत्थमाहूओ । विहिय-चलणाइ-सोओ ठविओ पवरासणे विहिणा ||११०२।। तो सालि-दालि-घय-खज्ज-पेज्ज-परिवेसणम्मि पारद्धे । ताय-गिरा-२"गहियं वीयणं मए पवण-दाण-कए ।।११०३।। मह रूवं पेच्छंतो अजुत्तकारि त्ति सो वि मयणेण । कुविएण व बाणेहिं पहओ तो चिंतए एवं ||११०४।। डज्झउ वयं, विवज्जउ विज्जा, हाणग्गहे पडउ वज्जं । सग्गेण न मे कज्जं रमेमि रमणिं जइ न एयं ।।११०५।।
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सुमइनाह-चरियं
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जइ अच्छराहिं बंभो, गंगा-गोरीहिं खोहिओ य हरो । गोवालियाहिं कन्हो, वय- बहुमाणो तओ को मे ? ||११०६ ।। इय कय- विविह-वियप्पो झायंतो किं पि भोयणं मोतुं । भणिओ सो मह पिउणा- 'भुंजह चिंताई किं इहिं ? ||११०७ | पुण पुण भणिज्जमाणेण तेण किं एरिसेण दुक्खेण ? | विहुराण भोयणेणं ?' ति भणिउं गहिया कइ वि कवला ||११०८|| भुत्तुत्तरं च पुट्ठो पिउणा किं दुक्खओ तुमं भयवं । निब्बंधे वज्जरियं अणेण जह- 'मज्झ मुणिणो वि ||११|| तुम्हारिस- जण - संगो दुह हेऊ जेण तुम्ह न तरामो । सोढुमऽकुसलं कहिउं च इत्तियं चिय तरामो ॥ १११०|| तो सो गओ स ठाणं 'हंत किमेयं'ति आउलमणेण । तत्थ वि गंतुं पिउणा एगंते सायरं पुट्ठो ||११११|| भणियमणेण - 'इमो सो जाओ मे वग्घ-दुत्तडी - नाओ । जं तुममलंघणिज्जो इमं च कज्जं अवत्तव्वं ॥ १११२|| तह वि हु गोरवठाणं तुमं ति साहेमि इत्थ परमत्थं । भोयण - समए दिट्ठाई तुह सुया-लक्खणाई मए ||१११३ || पिउपक्ख- क्खयकर त्ति लक्खिया सा अणेण दुक्खेण । चत्तं भोयणमुवरोहओ य तुह किंचि भुत्तं च ||१११४ || 'नाणी अवितह - वयणो य निच्चमेसो त्ति भीरुणा पिउणा । भणियं - 'भयवं । किं को वि अत्थि अत्थे इह उवाओ ?' ||११०५|| 'अत्थि' त्ति तेण वुत्तं, 'नवरं सो दुक्करो जओ भद्द ! | परिचत्तं चिय पीडं न कुणइ अवलक्खणं वत्युं ||१११६ || पाणपिया य सुया ते जइ पुण एसा कुमारिगा संती । सव्वालंकारजुया खिविउं मंजूस - मज्झम्मि ||१११७|| गंगाए पवाहिज्जइ किज्जइ संती तओ हवइ सुत्थं' । तो कुल रक्खा - कज्जे ताएण तहा कयं सव्वं ||१११८ || परिव्वायगेणावि भणिया निय-सीसा जहा- 'अज्ज गंगाए हिमवंताओ मम मंतसिद्धि-निमित्तं पूयोवगरण- पुन्ना मंजूसा आणीया ।
१८३
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૧૮૪
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं ता गंतूण तं हिहिम-तित्थे पडिच्छह, अणुग्घाडियं आणेह, जेण मंतविग्यो न होइ' त्ति । ते वि गया तत्थ । सा य मंजूसा इमस्स नयरस्स सामिणा भीमेण नइ-जले कीलंतेण दिहा, कोउगेण गहिया, उग्घाडिया य । तओ दिहा अहं, विम्हिओ इमो, मयण-वसगेण गहिया अहं । खित्ता तत्थ मक्कडी । तहेव ठइऊण पवाहिया मंजूसा । भीमो वि विढत्त-रज्जंतरो व्व तुहमणो पत्तो इमं नयरं ।
परिव्वायग-सीसेहिं वि गहिऊण मंजूसा अप्पिया गुरुस्स । तओ तस्स विवेओ व्व रवी अत्थमिओ, पसरिओऽणुराओ व्व संझा-राओ, कुमइ व्व तिमिर-माला समुल्लसिया । भणिया तेण सीसा- 'अज्ज निसाए मंतसिद्धिं करिस्सं । अओ सूरे उग्गए तुब्भे हिं आगंतव्वं'ति भणिऊण पिहियं मढ-दुवारं, दवावियं तालयं । तओ 'सुंदरि ! सुहु तुहा ते गंगादेवी । तीए दिल्लो अहं ते भत्ता । ता न मे पणयभंगो कायव्वो' त्ति भणंतेण तेण उग्घाडिऊण मंजूसं छूढा तग्गहणत्थं दो वि हत्था ! तओ निरोह-कुवियाए मक्कडीए सो दंतग्गेहि गहिओ अहरे, पच्छा कवोलेसु, तओ नासग्गे । तो मयण-मूढ-मणेण भणियमणेण- 'पिए ! मुंच नासग्गं, पेम्मं खु नाइरित्तं जुत्तं' ति भणंतस्स तोडियं नासग्गं । फाडियं सव्वमंगं नहरेहि । तओ 'न एसा सा सुंदरि' त्ति कयनिच्छओ कयत्थिओ तीए ।
नंदणेण भणियं_ 'भद्दे ! भल्लं भल्ला परिणमइ, लावं लावा संपज्जइ ।
सा सुंदरी राणाह घरि छज्जइ, मढि पव्वइओ मक्वडि खज्जइ ।।११११।। सुंदरीए वुत्तं'तो सो समग्ग-रयणिं चडप्फडंतो पुणो पुणो तीए । निभिन्न-कुच्छि-वच्छो मुक्को पाणेहिं पावो व्व ||११२०।।
भवियव्वया-निओएण जाओ सो रक्खसो । नाणाओ नाऊण पुव्व-जम्मं कुंद्धो भीमरस पत्तो इमम्मि नयरे । निहओ भीमो । उव्वासियं नयरं एक्वं ममं मुत्तूण | एसो य वुत्तंतो सिणेहं पयडतेण तेण कहिओ मे । रूव-परावत्तिकारयं अंजण-दुगं पि संजोइयं, तं च तए सयं चेव लक्खियं । ता महासत्त ! मोएहि इमाओ रक्खसाओ । सुहय ! सहलीकरेसु मे जोव्वणं ।' एवं सोऊण कारुण्ण-रसाउत्त-मणेण भणियमणेण-'पिए !
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सुमइनाह-चरियं
१८५ परिच्चय भयं' । गहिऊण अंजण-दुगं रयण-संचयं च उत्तिल्लो तीए समं पासायाओ । सा वि कया करही । आरोविओ तत्थ रयण-संचओ । चलिओ कुसुमपुराभिमुहं । अणुमग्गओ धाविओ रक्खसो कय-करालरूवो घोरहहास-पूरिय-दियं तरो, जमजीहा-सवत्त-कत्तिया-करो 'अरे दुरायार ! अज्ज नहो सि' त्ति भणंतो थंभिओ १२७पंचपरमे द्वि-मंतं २८समरंतेण नंदणेण । विल्लाय-तम्माहप्पेण भणियं रक्खसेण- 'अज्ज सच्चविओ तए- हृति रक्खसाणं पि भेक्खस- त्ति जणप्पवाओ, ता मुंच संपयं । जं आणवेसि तं करिस्सं ।' नंदणेण भणियं- 'पुव्वं व वसउ तं पूरं ।' एवं' ति पडिवन्ने उत्थंभिओ नंदणेण रक्खसो । गओ स-हाणं । नंदणो वि पत्तो कुसुमपुरं । कय-पहाण-गिह-परिग्गहो सुंदरीए समं अभिरमइ । इओ य निग्गए नंदणे ललियाए भणिया सकोवं कुट्टणी'जलणो वि इंधणेहिं तिप्पइ मयरो वि नीरपुरेहिं ।
न तुमं तिप्पसि पावे ! पत्तेहि वि बहुय-दविणेहिं ||११२१॥ ..
ता न तए मह कज्ज' ति भणंती गया राय-पासं, विन्नत्तो राया'देव ! धणलुद्धाए अक्लाए हरिऊण चिंतारयणं तम्माहप्पेण मणिच्छियं लच्छिं दितो वि निव्वासिओ मे मणाणंदणो नंदणो । चिंतारयणाओ य काण-कवड्डियं पि न पावए पावा, तओ
नंदणु गओ रयणु वि न तसु देइ वराडिय-मेत्तु ।
तं आहाणं सच्चविओ नं धणु हुया न मित्तु ||११२२|| रना वुत्तं - अहो ! नंदणो अम्ह पहाण-सेवगो इमीए देसंतरं गमिओ ?, ता जया तं आणेइ एसा तया तए इमीए गिहे पवेसो दायव्वो'[ति] सम्माणिऊण विसज्जिया ललिया गया स-गिहं । निद्धाडिया अणाए कुदृणी, सयं च पडिवण्णं पइव्वया-वयं, कओ वेणीबंधो, धरियं मंगलाहरणं, परिचत्तं पल्लंकाइ । इमं च वुत्तंतं सोऊण गओ ललियाए गिहं नंदणो । तं च दढूण चंदं व कुमुइणी विहसिया ललिया | पुव्वं व इमीए सह भुंजए भोए । 'न अन्नो चिंतामणि- लाहोवाओ' त्ति चिंतिऊण आणाविया कुट्टणी । पम्हु-विलइओ इमो त्ति तुहा सा । 'तहाविव एफलिया भविस्सामि' त्ति न समप्पए चिंतामणिं । अन्नया पुढो इमीए नंदणो- ‘कुओ ते दव्वं ?' ति । तेण वुत्तं
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૧૮
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं 'अंजणसिद्ध-सयासाओ लद्धमंजणं, जेण अंजणेण अंजिएहिं लोयणेहिं सयल-महीयल-निहाणाई हत्थगयाइं व पेच्छामि, अओ मे दव्वं' ति । ता तीए दव्व-लोभेण भणियं- 'ममावि लोयणे अंजेसु । जेण अहं पि ताई पेच्छामि' | तओ धवलंजणेण अंजियाइं लोयणाई तीसे । जाया कुट्टणी" करही । आरूढो तत्थ नंदणो । भमइ नयर-मज्यो । नाय-वुत्तंतेण विम्हय-वसेण हक्कारिओ रना । भणिओ य - 'भद्द ! किमेयं ?' ति । कहिओ तेण अंजणप्पओगो । रन्ना वुत्तं-'अत्थि किं बीओ वि प्पओगो जेण पुणो माणुसी होइ ?'| तेण वुत्तं - 'अत्थि' । रन्ना वुत्तं – 'जइ एवं ता तं पउंजसु ।' तओ तेण कसणंजणेण कया सा माणुसी । रन्ना वुत्तं'अहो ! तुमं अच्छरिय-निही । ता तुमए अम्ह पासे चेव ठाइयव्वं ।'
भणिया य कुदृणी सा 'चिंतारयणं समप्पसु इमरस ।
अन्नह पुणो वि पावे ! पाविहिसि विडंबणं एवं' ||११२३।। तमप्पियं तीइ वि नंदणस्स ।
तस्सप्पभावेण इमो वि जाओ संपन्न-नीसे स-समीहियत्थो । काऊण धम्मं सुगई गओ य ||११||
‘एवं सामि ! तुम पि हु संपत्त-समीहियत्थ-वित्थारो | मा लोभग्गह-गहिओ होऊण विडंबणं लहसु ||११२४|| अह कह वि वय-ग्गहणे गरुओ तुह माणसम्मि निब्बंधो । ता पुत्त-वयण-कमलं पलोइउं कुणसु अहिलसियं ||११२५।। जो पालिऊण सुचिरं पुव्व-नरिंदेहिं पाविओ वुद्धिं । वंसस्स तस्स जायइ पुत्तेण विणा समुच्छेओ ||११२६।। कित्तिं तह धम्म जीवियस्स विउसा फलं पयंपंति । पुत्त-विहूणाण इमे दो वि पणस्संति पुरिसाणं ।।११२७।। एयरस पिया वाई भोई दक्खो दयावरो सरलो । इय कितिं बंदिगणा थुणंति सुय-विहिय-उवयारा ||११२८।। धम्महाणाई जए सचक्व-परचक्व-भज्जमाणाई । विविहाई तक्वयाइं को रक्खइ जस्स नत्थि सुओ ||११२१।। तहापुत्तस्स समुप्पत्ती पिऊण उवगारिणी अ सुइ-वयणं । जं पुत्त-दत्त-भत्ताइएहिं तेसिं हवइ तित्ती ।।११३०।।
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सुमइनाह-चरियं
पुत्तम्मि समारोविय - समग्ग-भारो भवे नरो विरिणो । लीलाय च्चिय सग्ग-मग्गमोगाहए पच्छा ||११३१|| उक्तं चअपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गे नैव च नैव च । तस्मात्पुत्रमुखं दृष्ट्वा पश्चात्स्वर्गं गमिष्यति' ||११३२ || कुमारेण भणियं
'जइ वंस - समुच्छेओ होइ तओ किं विणस्सइ नरस्स 21 निय - सुकय- दुक्कयाइं सुह- दुक्ख - निबंधणं ज़म्हा ||११३३|| जइ होज्ज कयं सुकयं तो सुरलोयाइ- संपयं पत्तो । पुरिसो अच्छिन्न- सुहं भुंजइ उच्छिन्न-वंसो वि ||११३४ || अह हुज्ज दुक्कयं पुव्व-निम्मियं तेण दुग्गइ - गमिओ । दुक्खं चिय अणुभुंजइ पवड्डुमाणे वि वंसम्मि ||११३५|| जा अप्पणा कएहिं वि ठविज्जए सुचरिएहिं पुरिसेण । कुसलेहिं सलहिज्जइ स च्चिय कित्ती न उण सेसा ||११३६ || न य कित्ती सुगइ - निब्बंधणं जओ दुक्कयाइं काऊण । गिज्जंत- कित्तिणो वि हु अहर गई जंतुणो जंति ||११३७||
धम्मद्वाणाणि सयं कारविउं विढविऊण पुन्नभरं । सुगइं गच्छति नरा तत्थ य सुवखाइं भुंजंति ||११३८ || जे उण पावा भजंति अवर - विहियाई धम्मट्ठाणाई | ते पावभरकंता कुगई वच्चंति दुह - बहुलं ||११३१|| न य दुज्जण-भज्जतेहिं धम्मंडाणेहिं सुगइ - ठाणाओ । पावंति परिब्भंसं जीवा तक्कारिणो कह वि ||११४०|| जं सयमेव विइन्नं तं चिय उवभुज्जए पर - भवम्मि | जं पुत्त-दत्त-भत्तेण होइ तित्ति त्ति तं मिच्छा ||११४१ || दूरत्थो जीवंतो वि अन्न दिन्नं न पावए अन्नो ।
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जं पुण मयस्स तित्ती पुत्त-विइनेण तं कह णु ||११४२ || पुत्तारोविय भारो वि अकय-सुकओ कहं लहइ सग्गं । अ- पयारं कम्मं रिणं वहंतो कहं विरिणो ? ||११४३ ॥
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पुत्त-मुह - दंसणे जइ सुकए अकए वि लब्भए सग्गो । ता बहुपुत्ताणं भुंडि - सुणहि पमुहाण सो सुलहो ||११४४|| सग्गो न होइ पुत्तेण अवि य पुत्तो हणेइ निय-पियरं । सत्तू वि होइ पुतो नायमिह समुद्ददत्त - कहा ||११४५|| कमलावईए भणियं - 'का सा समुद्ददत्त - कहा ? 1' कुमारेण भणियं
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
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'अत्थि इह तामलित्ती नयरी निय-रिद्धि-लद्ध - वर- कित्ती । पासाय- रयण - दित्ती- पयासियासेस- ३" दिस-भित्ती ॥११४६ || वत्थं चिय वसणं जत्थ अविहवो कामिणी जणो चेव । गोवाल - बालय च्चिय पर दोहपरा न सेस - जणी ||११४७।। तीए समुद्ददत्तो वणिओ अविवेय-कुलहरं रिद्धो । तरस य मायाबहुला बहुला नामेण वर-भज्जा ||११४८|| ताण महेसरदत्तो पत्तो दक्खिण्ण- दाण-संजुत्तो । तरस य लायन्नामय-तरंगिया गंगिला भज्जा ||११४९|| सो वि हु समुद्ददत्तो लोहवसावेस- विगय चेयन्नो । माया - पवंच - बहुलो परलोय-परम्मुहो संतो ।।११५० ।।
संतोस - वज्जिओ कुणइ बहुविहे दविण-अज्जणोवाए । रक्ख धणं न कस्स वि वियरइ न य भक्खइ सयं पि ||११५१ || मग्गिज्जंतस्स परेण तस्स सत्तहि मुहेहिं एइ जरो । दितं परं पि पिच्छंतयस्स सिर-वेयणा होइ ||११५२ ||
अह अन्नया कयाइ पुरिसेणेक्केण दीण वयणेण । भवणंगणे निसन्नी समुद्ददत्तो इमं भणिओ ||११५३||
भद्द ! अहं भद्दिलपुर वासी वाणिय-सुओ निय- घराओ । निक्खंतो संतर- दंसण- कोऊहल-वसेण ॥११५४ || अच्छरिय-सयाइन्नं सर-सरि नग-नगर-गाम-रमणिज्जं । पुहविं परिब्भमंतो पत्तो इह दिव्व-जोगेण ||११५५ || एत्तो य रायपुरिसा रोसंधा जम-भड व्व निक्करुणा । तक्करमेक्कं गाढं कयत्थमाणा मए दिट्ठा ||११५६ ||
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सुमइनाह-चरियं
तो करुणाए वुत्ता-'भो भो ! मेल्लह जइ वरायमिमं । ताहं दीणार-सयं तुम्ह पयच्छामि अवियप्पं ||११५७।। सोऊण इमं वयणं तेहिं तओ 'एस एय-संबंधी ।' इय जपतेहिं अहं गुत्तीए बंधिउं खित्तो ||११५८।। जं किंचि मज्झ पासे आसि धणं गिहिऊण तं सव्वं । धरिओ भोयण-रहिओ मासाओ अज्ज मुक्तो म्हि ||११५१||
गरुयं च तुमं दहण भूविखओ सत्थवाह ! पत्थेमि | करुणाए भोयणत्थं एक्वं मह देसु दीणारं ||११६०।। सोऊण वयणमेयं समुद्ददत्तो वि किविण-भावेण । सामल-वयणो काउं नडालवढे भिउडि-भंगं ||११६१।। दुव्वयणाई पयंपिउमाढत्तो-रे लहुं महामूढ ! | निग्गच्छ मह घराओ दीणारो नत्थि तुह जोग्गो ||११६२|| काऊण बहु किलेसे दविणं विढवेमि तं तु दाऊण । तुम्हारिसाण किं निहवेमि जेणाधणो होमि ? ||११६३|| एयं तु पिच्छिउं पासवत्तिणा उल्लसंत-करुणेण । तस्स महेसरदत्तेण वियरिया दोन्नि दीणारा ||११६४|| तत्तो समुद्ददत्तेण जंपियं -रे कुपुत्त ! किं एयं । तुमए कयं ? न याणसि नूणं दविणज्जण-किलेसं ?||११६५|| तो नंदणेण वुत्तं- 'ताय ! बहुव्वत्त-धय-विलोलाए । लच्छीए इमाए फलं दाणं भोगो य न ह अन्नं ।। ११६६|| तत्तो समुद्ददत्तेण चिंतियं- 'हा ! कहं विभिन्न-मणो । एसो मह पुत्तो ? तेण खिज्जिही निच्छियं लच्छी ।।११६७।। एवं वियप्पमालाउलस्स हिययम्मि तस्स संघहो । सो को वि पयट्टो जेण झत्ति पाणा वि निक्खंता ||११६८।। ता अदृशाण-वसओ मरिऊणं तम्मि चेव विसयम्मि । सो महिसो संजाओ कमेण पोढत्तणं पत्तो ||११६१|| बहुला वि नियडि-बहुलत्तणेण पर-वंचण-प्पहाण-मणा । पइ-मरणेणं रणरण-परवसा अदृझाण-गया ||११७०।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं मरिउं मुच्छा-दोसेण सुणहिया निय-घरे समुप्पन्ना । सा गंगिला महेसरदत्तस्स निरग्गला गिहिणी ||११७१।। सच्छंदा अच्छंती गुरुजण-रहियम्मि नियय-गेहम्मि । अन्लेण नरेण समं संघडिया १३७पेच्छए तं च ।।११७२।। कह वि महेसरदत्तो कीलंतिं तेण सह तओ कुविओ । को वा कोवं न कुणइ निय-घरिणी-परभवं दहुं ? ||११७३।। सो य महेसरदत्तेण अद्धपहओ कओ तओ नहो । गंतूण नाइ-दूरम्मि निवडिओ चिंतए एवं ||११७४।। अहह ! मए पावेणं कयं अकज्ज इमं ति संविग्गो । निंदतो अप्पाणं विचित्तयाए य कम्मरस ||११७५।। उवसंत-मणो मरिउं तीए च्चिय गंगिलाए गब्भम्मि । निय-बीएणं तक्खण-भुत्त-विमुक्काए उप्पल्लो ।।११७६।। कालक्कमेण जाओ पुत्तो अइ-वल्लहो त्ति काऊण | वहइ महेसरदत्तो उच्छंगेणं पहिह-मणो ||११७७।। अह अन्नया महेसरदत्तेणं जणय-किच्चमारदं । सो जणय-जीव-महिसो किणिऊण विणासिओ तत्थ ।।११७८।। विप्पाण बंधवाण य दिन्नाई महिस-मंसखंडाई । पिउणो तित्ति-निमित्तं पिया वि खज्जइ अहो मोहो ||११७१।। अह पुत्तं उच्छंगे काउं आसायए सयं मंसं । माउ-सुणियाइ पुरओ ठियाइ अहीणि पविखवइ ।।११८०।। भक्खेइ सा वि तुहा अह मासक्खमण-पारणय-हेउं || साहू अइसय-नाणी कह वि पविठ्ठो गिहं तस्स ||११८१|| नियइ महेसरदत्तं एक्कमणो चिंतइ य निय-चित्ते । अल्लाणमहह ! एसो जं सत्तुं वहइ उच्छंगे ||११८२।। भक्खइ पिउणो मंसं, सुणियाए देइ जणय-अहीणि । सा वि निय-भत्तुणो अट्ठियाइं भक्खेइ तुट्ठ-मणा ||११८३।। इय चिंतिऊण साहू विणिग्गओ तयणुमग्गओ गंतुं । भणइ महेसरदत्तो- 'भयवं ! भिक्खा न किं गहिया ? ||११८४।।
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सुमइनाह-चरियं
मुणिणा वुत्तं- 'मंसाइ-भवखणे वाउलाइं तुम्हे'त्ति । न पडिविखओ मए, मह जाओ अहिओ य संवेगो ||११८।। भणइ महेसरदत्तो- 'संवेगो केण हेउणा तुज्झ । अहिओ जाओ ?' मुणिणा वि साहिओ सव्व-वुत्तंतो ||११८६।। तं सोऊण महेसरदत्तो संजाय-परम-संवेगो । पव्वज्जं पडिवल्लो तस्सेव मुणिस्स पासम्मेि ||११८७।। इय पुत्तो वि न रक्खइ नरं कुकम्मेहि दुग्गई जंतं । न य पुत्त-विइल्लेणं तित्ती पियराण संभवइ ||११८८।। सत्तू वि होइ पुत्तो भवम्मि पुत्तो वि हणइ निय-पियरं । ता धम्मो च्चिय पुत्तो इह-पर-लोए वि सुह-हेऊ ||११८१||१२|| एत्थंतरे सोहग्गमंजरीए भणियं'जं संपन्न-समीहिय-सयलत्थो उज्जओ वयं काउं । तं लोह-तरलिओ जंबुगो व्व सोच्चिहिसि सामि ! तुमं ।।११४०।। कुमारेण भणियं - 'को सो जंबुगो ?।' सोहग्गमंजरीए भणियं'अत्थेत्थ पुव्वदेसे अंगा नामेण जणवओ विउलो । रिउचक्क-अकयकंपा चंपा नामेण अत्थि पुरी ||११११।। उत्तुंग-जिण-निकेयण-सिरि-विलसिर-कणय-केयण-भुयाहिं । नच्चइ व जम्मि लच्छी सुहाण निवेस-हरिस-वसा ||१११२।। तीए निरुवम-ख्वोहामिय-मयरद्धओ कणयद्धओ राया । निहिसारो सेही, रयणसारो पुत्तो । रिद्धिमई तस्स भज्जा । सा ख्ववई । नईए य ण्हायंती दिहा तयह(तडह)-रायपुत्तेण । अणुरत्तो इमो । पेसिया दिहिदूई । बहुमल्लिया इमीए । अणुगमणेण नायं तीए घरं । संकेयाइं जाणणत्थं पेसिया परिव्वायगा । कया अणाए ठाणा । तस्साणुरागो त्ति इच्चाइ बोल्ला । एवमवधारिऊण निय-भावं निगूहंतीए निब्भच्छिया एसा । दिनो से मसिलित्त- हत्थेण पहीए पंचंगुली-घाओ, निच्छूढा असोगवणियापच्छिम-दुवारेण, भणिया य एसा- 'जइ पुणो एहिसि निय-माणुसाण कहिस्सं' । गया सा । साहियमेयस्स सव्वं । तुडेण चिंतियं तेण- अहो !
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૧૬૨
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं वियड्डा सा । तीए एसा वि परिव्वाइया वंचिया । कओ मे किण्ह-पक्खपंचमीए असोगवणिया-पच्छिम-दवारेणं आगंतव्वं ति संके ओ । भणियायऽणेण- 'परिवाइगा ! अलं तीए अ[ण]णुरत्ताए ।' गओ सो पंचमीए असोग-तरु-हेहे । जाओ संभोगो । पवड्डमाण-सिणे हाण वोलिया कइ वि दियहा । डहुल-तेल्ल-मइल-वटि-रइहर-दीवणदंसणेण जाया निहिसारस्स आसंका - 'किमेयं ?' ति । निरक्खिया रयणीए, दिहा समं तेण पसुत्ताए । ओयारियं दाहिण-पायाओ नेउरं अणेण | वेइयं इमीए । उहाविओ सो | कहियं तस्स 'समए साहेज्जं कायव्वं' ति । गओ सो । इयरी वि गया पइ-समीवं । उहविऊण भणिओ एसो- 'इह घमो त्ति असोगवणियं वच्चामो' | ‘एवं'ति पडिवल्लमणेण । गयाइं । तत्थ सुत्ताणि मुहुत्तं । उहविऊण भणिओ भत्ता'किं तुम्ह कुले जुत्तमेयं जं ससुरो भत्तारेण सह पसुत्ताए नेऊरं हरइ ?' तेण भणियं- 'पभाए लब्भिही ।' परुइया एसा | वारिया रयणसारेण | तीए भणियं- 'किं वारेसि ?| पत्ता कलंकं इमिणा वईयरेण ।' तेण भणियं- 'मए समक्खम्मि एत्थ को कलंको ?। अलमिमिणा चिंतिएणं ।' उग्गए सूरे मग्गिओ रयणसारेण पिया नेऊरं, भणिओ य- 'किं तुमं अनिरूविऊण जं किंचि करेसि ?।' पिउणा वुत्तं- 'पुत्त ! न अनिरूवियं कयं । एसा खु मए पर-पुरिसेण समं दिहा ।' रयणसारेण भणियं'ताय ! तिमिरेण अंतरिओ सि । अहं चेव बाहिं पसुत्तो, साहियं च मे एयाए तव्वेलमेव इम' | सुहाए भणियं- 'अहं सुज्झामि । अत्थित्थ जक्खो । तस्स जो सुद्धो सो जंघाणं अंतरेण जाइ । असुद्धं सो धरेइ'त्ति । पडिवण्णं तेहिं । सुण्हा व्हाया धूव-बलि-पुप्फ-फल-हत्था पयहा जक्खालयं । समओ त्ति गहिलख्वधारिणा विडेण वच्चंती आलिंगिया । गहिल्लओ त्ति निद्धाडिओ लोएण | पहाविया पुणो वि एसा । चडिया जक्खालए । अच्चिऊण जक्खं विन्नवेइ जहा- 'भयवं जक्ख ! मए न कयाइ भत्तारं मुत्तूण अन्नो पुरिसो अन्लेण भावेण छिल्लो । गहिल्ल-वुत्तंतो पुण तुज्झा गुरुअणस्स य पच्चक्खो चेव । किमेत्थ वुच्चइ ?।' एवं भणिऊण चिंतावनस्स जक्खस्स जंघंतराओ णिग्गया । 'सुद्धा सुद्ध'त्ति बंधवेहिं कओ कलयलो । वज्जंतेण य तूरेण घरं गया । ससुरस्स य चिंताए निद्दा नहा । जाणियं राइणा । इमं चिंतियं च- 'सोहणो एस अंतेउर-रक्खवालो होहि ।' त्ति हक्वारिओ रन्ला । अब्भत्थिऊण निसाए
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सुमहनाह-चरियं
निरूविउं (ओ) अंतेउरे । पडिवण्णमणेण । अइक्कंतो कोइ कालो ।
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अन्नया एक्का रायपत्ती तं रक्खपालं पलोयंती उट्ठेइ निवज्जइ य । दिट्ठा तेण । किं पुण इमा एवं करेइ ? 'त्ति कवड - निद्दाए पसुत्तो । तीए चिंतियं 'सुत्तो सो'त्ति गवक्खंतेण पयट्टा । तस्स य गवक्खस्स हेट्ठे रन्नो इो गयवरो बज्झइ । तस्स जो मिंठो तेण सह सा अच्छइ त्ति पत्ता गवक्खं पडिच्छिया हत्थिणा सुंडाए । मुक्का भूमीए । मिंठेण वि 'चिराओ आगय'त्ति ताडिया इमा संकलाए । तीए भणियं - 'नाह ! मा पहणसु, जओ अज्ज कोवि अंतेउर - रक्खगो रन्ना कओ जो न सुयइ चेव ।' रमिऊण ""मुक्का तेण पच्छिम राईए । हत्थिणा सुंडाए चेव चडाविया गवक्खं । गया वासहरं । एवं च सव्वं निहिसारेण दिडं, चिंतियं च'अहो ! महिलियाण विसमं चरियं' ति । एवं पि उवरि-भूमीए रक्खिज्जंती एसा एरिसमायरइ, ता सोहणाओ अम्ह वहुओ, जाओ पाणियाइ - कज्जेसु निग्गयाओ पुणो वि गेहं इंति' त्ति अमरिस- चिंताविमुक्का सुत्तो सो, उग्गए वि सूरे न उट्ठेइ । कहियं चेडीहिं रन्नो- 'अज्ज वि सो थेरो सुयइ ।' रन्ना चिंतियं- 'कारणेण एत्थ होयव्वं, ता न उवेयवो सो । निद्दाखय-पडिबुद्धं मम समीवं आणेज्जह ।' सत्त-रत्तपज्जेते निद्दा-खए आणीओ निहिसारो । वुत्तो रण्णा- 'किं निमित्तं तुह एरिसी निद्दा आगया ?' तेण भणियं- 'अभयं देह ।' रन्ना भणियं'अभयं तुह । 'तओ तेण सव्वं कहियं । 'का सा देवि त्ति जाणसि ?' तेण भणियं - 'न याणामि, परं संकला - घाएण नज्जिहि । 'ति । कयं रन्ना माइद्वाणं । काराविओ किलिंज- हत्थी । सद्दावियाओ देवीओ भणियाओ'दिट्ठो मए दुस्सुविणी । तप्पडिघायणत्थं आरुहिय सुंडाए हत्थिं ओयरह पुच्छ-भाएण' त्ति । पडिवन्नमेयं एयाहिं । सा एक्का मायाविणी भणइ'बीहेमि अहं हत्थिस्स ।' रन्ना उप्पल-नालेण आहया । कवडेण मुच्छिया, निवडिया धरणिवट्ठे । चिंतियं रन्ना- 'एसा सा दुरायारा' । निरूविया से पट्ठी । दिट्ठा संकला-घाया । हसिऊण भणियं -
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'खेल्लसि सुंदरि ! मत्त कुंजरे तह बीहेसि किलिंज - कुंजरे । तत्थ न मुच्छिय संकलाहया एत्थ य मुच्छिय उप्पलाया ।। ११९३।। कुविएण रन्ना सद्दाविओ मिंठो । आणाविओ करिवये । तत्थारोविया दो वि । आइट्ठा निउत्त-पुरिसा- 'गिरिं समारोविऊण टंक - छिन्न
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं प्पएसाओ पाडेह एयाइं ।'आरोविओ तं पएसं मिठेण हत्थी । एक्वो पाओ आगासे, तिल्लि पाया गिरि-सिहरे चिट्ठति । लोएण वुत्तं-'न जुत्तं हत्थिस्स मारणं ।' रन्ना वुत्तं- 'पाडेह सिग्धं हत्थिं ।' पुणो वि मिंठेण आगासे दो हत्थि-पाया कया, दो य सिहरे | पुणो वि लोएण भणियं- 'अहो ! न जुत्तं एयं पसुं मारियं ।' तह वि राया तुण्हिक्को ठिओ | मिंठेण तिन्नि हत्थि-पाया आगासे कया, एगो सिहरे । सयल-लोएण हाहारवं काऊण भणियं- 'भो महाराय ! न जुत्तं एरिसं हत्थि-रयणं विणासिउं । पसु त्ति न एस कज्जाकजं वियाणइ, ता कुणसु पसायं | मुयसु एयं' ति । ताहे रना संलत्तं - 'भणह एयं मिठं नियत्तेहि हत्थिं ।' भणिओ अणेहि मिठो'किं समत्थो सि पच्छाहुत्तं नियत्तिउं हत्थिं ?' मिंठेण भणियं- 'जइ दोण्हं पि अम्ह अभयं देहि तो परावत्तेमि हत्थिं ।' कहियमिणं रनो, भणियं च तेण- ‘एवं होउ'त्ति । ताहे मिठेण परावत्तिओ हत्थी । ओइण्णाई दो वि | रना निव्विसयाणि आणत्ताणि । सालंकाराइं च सिग्धं पलाइउमारद्धाइं । गयाई एक्वम्मि नयरे । संझाए पसुत्ताणि देवउले ।
इओ य अद्ध-रत्त-समए चोरो नयराओ पुरिसेहिं पेल्लिओ तमेव देवउलं पविट्ठो । वेढियं दंडवासिएहिं देवउलं 'पभाए गहिस्सामो'त्ति । सो य चोरो जत्थ ताई तत्थ गओ | मिठो सुपरिस्संतो पसुत्तो । तीए वि कत्थूरियाइ-परिमलेण लक्खिओ चोरो । गया सा तरस पास । लक्खिया चोरेण | आढत्तो विडयणाणुरूवो ववहारो । 'उत्तम'त्ति वियाणिया फास-विसेसेण । भणियमणाए- 'को तुमं ?' तेण भणियं- 'चोरोऽहं'। तीए भणियं- 'सच्चं चिय चोरो तुम, जेण मे हिययं पि हरियं । ता किमेत्थमिहागओ सि ?!' तेण भणियं- 'दंडवासिएहि पेल्लिओ मरणभएण इहागओ ।' तीए भणियं- 'अहं रक्खामि ते जीवियं जइ मं इच्छसि ।' तेण भणियं- 'एक्वं सुवल्लं अन्नं च सुरहिं , को न इच्छइ ?, किंतु कहं मे जीवियं रक्खसि ?।' तीए भणियं- 'अहं तुमं भत्तारं भणिस्सं ।' चोरेण भणियं- ‘एवं होउ' त्ति । पहाए गहियाइं ताई दंडवासएहिं । मिंठेण वुत्तं- 'अहं न चोरो, किंतु पहिओ । एसा इत्थी मे पत्ती ।' पुच्छिया सा । तीए वुत्तं [चोरं पइ]- ‘एस मे भत्ता | [मिठं पइ एयं पुण नोवलक्खामि'त्ति । गहिओ मिठो दंडवासिएहिं । रनो साहिऊण भिन्नो सूलाए । ताहे तण्हाए सो अभिभूओ जं जं परिसं पासइ तं तं सलिलं विमग्गइ । रायकुल-संकाए न को वि देइ । ताहे जिणदासो
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सुमइनाह-चरियं सावगो तेण पएसेण आगच्छइ । सो तेण सलिलं मग्गिओ । सावएण भणियं- 'देमि अहं जइ अरहंत-नमोक्कारं कुणमाणो अच्छसि, जाव अहं सलिलं आणेमि ।' तेण 'तहत्ति पडिवन्नं । आणियं रायपुरिसाणुनाएण सावएण सलिलं । दहण सावयं सुहयरं 'नमो अरहताणं' ति पढंतो मओ । ताहे नमोक्कार-पभावेण अकाम-निज्जराए य निस्सीलो वि वाणमंतरो देवो जाओ । सा वि महिला तेण चोरेण सह संपत्थिया । ताणं च अंतरे नई समावडिया । तत्थ सो चोरो महिलं आलवइ- ‘एसा नई सिग्घवेगा, ता तुमं वत्थाइयं च न जुगवं उत्तारियं सक्केमि, अओ तुम इमम्मि कूले सरत्थंबावरिय-सरीरा इमं अंग-लग्गं वत्थाभरणजायं अप्पिऊण ताव अच्छ जावाऽहं परिवाडीए उत्तारेमि ।'तीए भणियं- ‘एवं होउ ।' तेण सव्वं उतारिऊण चिंतियं- 'जा एसा निययं भत्तारं मारावेइ सा मे कहं पिया भविस्सइ ?'त्ति पत्थिओ । तीए वुत्तो- 'कीस मं उज्झिाउं जासि ?' 'बीहेमि ते'भणंतो गओ अंदसणं । सा वि जहाजाय-सरीरा सरत्थंबे पवेसिऊण ठिया । इयरो वाणमंतरो ओहिं पउंजित्ता पलोएइ जाव तं पेच्छइ एयावत्थं, तओ जायाणुकंपेण तेण संबोहणत्थं जंबुओ विणिम्मिओ । तेण मंसपेसी मुहे गहिया । इओ य मच्छो जल-मज्झाओ उच्छलिऊण नइ-तीर ठिओ | जंबुओ वि 'मंसं मुहाओ मोत्तूण मच्छं गिण्हामि' त्ति पहाविओ । सो य मच्छो जले पविहो, मंसपेसी वि गयणाओ ओयरिऊण विउव्वियाए सउलियाए गहिया । ताहे सो जंबुगो उभय-भट्ठो अच्छइ । तीए महिलाए भणियं_ 'मंसपेसी चइत्ताणं मीणं पत्थेसि दुम्मई ।।
चुक्लो मीणस्स मंसस्स कलुणं झायसि जंबुगा ! ||१११४।। जंबुगेण भणियं'कामारयं पई मुत्तुं जारं पत्थेसि बंधकी ! ।
चुक्का पइस्स जारस्स कलुणं झायसि संपयं ||११९५||
सा सुटुयरं भीया 'किमेयं ?'ति । ताहे वाणमंतरो अप्पणो रूवाइसय-विभूइं दंसिऊण निय-वुत्तंतं कहेइ । भणइ य - ‘पावे ! तं तहा पावमायरियं । तं पि मे नमोक्कार-प्पभावेण गुणाय परिणयं, ता इण्हेिं पि जिणसासणं पवना धम्म कुणसु' । तीए ‘तह' त्ति पडिवन्नं । तेण य साहणि-समीवं नेऊण पव्वाविय त्ति ||१३||
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' एवं तुमं पिययम ! एयं लद्धं सुहं परिहरंतो । अणलद्धं पत्थंतो मन्ने दोहं पि चुक्किहिसि ||११९६ || ताव य विसयमसग्गहमेयं मोत्तूण निय-सरीरमिणं । पालेसु सयल-इंदिय-मणाणुकूलेहिं विसएहिं ॥ १११७|| जं पुण दुक्कर-तव-चरण-लोय-भूसयणं- बंभचेरेहिं । विनडेउ मिच्छ देहं तं किं तुह वेरियं एयं ? ||११९८ || कुमारेण भणियं
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
'बहुविह-भक्ख - जुएहिं बहु - वंजण- जणिय-मण- पमोएहिं । कलमोयण पमुहेहिं महुराहारेहिं निद्धेहिं ।। ११99 ||
नालियर - कयल - खज्जूर- दक्ख- नारंग- दाडिमाइहिं । विविह - फलेहिं य निच्चं जइ वि हु पीणिज्जए एयं ||१२|| अब्भंगिऊण जइ वि हु सयपाग - सहरसपाग- तेल्लेहिं । उव्वहिऊण य इमं ण्हाविज्जइ पवर - सलिलेहिं ॥१२१॥ घुसिण- घणसार- सिरिखंड - अगुरु-मयणाहि पमुह दव्वेहिं । परिमल - मणोहरेहिं जइ वि लिंपिज्जए एयं ||१२०२ || चीणसुय-पहंसुय- देवंग - पुरस्सराणि वत्थाई । घण-मसिण - कोमलाई परिहाविज्जइ जइ वि एयं ||१२०३ || कंचण-रयणमएहिं फुरंत - किरणोह - दलिय - तिमिरेहिं । विविहालंकारेहिं जइ वि विभूसिज्जए एयं ।। १२०४ ।। कप्पूर - पारिकलियं लवंग - कक्कोल - कोलफल-जुत्तं । तंबोलानच्चमिणं सम्माणाविज्जह जइ वि ।।१२०५ || वर - हंसतूलि - ललिए उज्जल - देवंग - वत्थ-संछन्ने । रयणमए पल्लंके जइ वि हु सोविज्जए एयं ।। १२०६ ।। विलसंत- बहल - परिमल-मिलंत मत्तालि - जाल - मुहलाहिं । निच्चं अलंकरिज्जइ जइ वि इमं कुसुममालाहिं ।। १२०७|| वग्गंत - थोर - थणमंडलाण महिलाण थणमरट्टस्स । नहस्स दंसणेणं जइ वि पसाइज्जए एयं ||१२०८ ||
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सुमइनाह-चरियं
पयडिय असेस-सर-गाम-मुच्छणं वेणु-वीण-रव-रम्मं । तालाणुगयं गेयं जइ वि सुणाविज्जइ एयं ।।१२०१।। तह वि हु परभव-गमणे वीसरिऊणं खलो व्व उवयारं । वच्चइ एवं पि पयं जीवेण समं न देहमिणं ।।१२१०।। चिर-पालियं पि एयं अनओवज्जिय-धणं व पज्जते । विहडइ जीवरस धुवं मित्ततिगं एत्थ दिहंतो ||१२११।। सोहग्गमंजरीए भणियं-'किं तयं ?' ति । कुमारेण भणियं
११°अत्थेत्थ खिइपइडियमणंत-वुत्तंत-संकुलं नयरं । तत्थ निवो जियसत्तू न नामनामेण गुणओ वि ।।१२१२|| तस्स सुबुद्धी मंती समग्ग-अहिगार-फुरिय-माहप्पो । तेणावि तिन्नि मित्ता विहिया विहुरुध्दरण-हेउं ||१२१३|| ताणं एक्लो सह-पंसुकीलिओ सह-उवागओ वुदि । सह-विहिय-खाणपाणो सह-विरइय-ठाण-चंकमणो ||१२१४|| बीओ पुण पव्वेसुं मिलइ तओ तस्स तेसु उवयारो । कीरइ पहाण-विलेवण-भोयण-सयणासणाइओ ||१२१५।। तईओ पुण दंसण-नमण-महुर-संभास-मित्त-संतुहो । इय निच्च-पव्व-जोहार-मित्त-जुत्तो वसइ मंती ।।१२१६|| अह दुज्जणेण केणावि अवसरं पाविउं असंता वि । मंतिस्स तस्स दोसा पुरओ रायरस पायडिया ||१२१७।। तं नत्थेि घरं तं नत्थि राउलं देउलं पि तं नत्थि । जत्थ अकारण-कुविया दो तिन्नि खला न दीसंति ||१२१८।। तत्तो राया मंतिस्स उवरि कोवं खणेण संपत्तो । अहवा राया मित्तं दिहं व सुयं व केण जए ? ||१२१ ।। उक्तं च'काके शौचं द्यूतकारे च सत्यं,
सप्पै क्षान्तिः स्त्रीषु कामोपशान्तिः । क्लीबे धैर्यं मद्यपे तत्त्वचिंता,
राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा ?।।' १२२०।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं अह मंती रायकुले गंतुं पणमेइ नरवरं जाव । ता कोवारुण-नयणो अब्जाभिमुहो इमो जाओ ||१२२१।। तो जाणिऊण कुवियं निवइं तत्तो विणिग्गओ मंती । किंपि मिसं काऊणं गओ घरं निच्चमित्तस्स ।।१२२२।। सो तं इंतं दडं विसन्न-वयणं विचिंतए एवं । 'नूणं इमस्स कुविओ राया तेणिक्कओ एइ ।। १२२३।। तो नासिउं पवत्तो घरस्स मज्झम्मि मंतिणा दिहो । भणिओ य- 'मित्त ! राया मह कुविओ कुणसु साहिज्जं ।।१२२४|| वच्चामो देसंतरमहं तमं दो वि लंधिमो वसणं ।' सो भणइ सुहु भीओ- 'नीहरसु तुम मम गिहाओ ||१२२५।। मा तुज्या कए सुंदर-कुडुंब-सहिओ अहं पि विणसिरसं ।' इय निच्चमित्त-वयणेहिं दूमिओ निग्गओ मंती ॥१२२६।। पत्तो य पव्वमित्तस्स मंदिरं सो वि पेच्छिउं मंतिं । दंसइ किंचि सिणेहं, कहइ सो तस्स निव-कोवं ।।१२२७।। तो भणइ पव्वमित्तो- 'इह जाया पसरिया य सयणेहिं । न तरामो तुमए सह अम्हे देसंतरं गंतुं ||१२२८।। किंतु निय-नयर-सीमं वोलावेमो' त्ति जंपिउं चलिओ । सचिवेण समं सचिवो वि चिंतए तो विसन्न-मणो ||१२२१।। 'चिरमुवयरिएहिं पि य इमेहिं मित्तेहिं ताव उवयारो । मज्ा न को वि हु विहिओ हा ! सुकयं पम्हुसंति खला ।।१२३०।। तईओ वि अत्थि मित्तो तस्स गिहं जामि तं पि पिच्छामि । जइ पुण सो साहिज्जं करेज्ज मह वसणवडियरस ।।१२३१।। इय चिंतिऊण जोहारमित्त-गेहम्मि जाव संपत्तो । ता दहण दूराओ हात्ति अब्भुडिओ तेण ||१२३२|| पडिवत्तिं काऊणं भणियं- 'आगमण-कारणं किं ते ?।' तो मंतिणा वि कहिओ सव्वे वि हु तस्स वुत्तंतो ||१२३३।। तेणावि भणियमेयं- 'भयं नरिंदस्स कुणसु मा मित्त ! ।' जं तुज्या मइ सहाए पवणो वि न वच्चए उवरिं ।।१२३४।।
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सुमइनाह-चरियं
नेमि तुमं देसंतरमिमाओ रनो न जत्थ भयमस्थि । होहिसि मा पभावेण तत्थ निच्चं तुमं सुहिओ ।।' १२३५।। इय जंपिऊण सो बद्ध-परियरो मंतिणा समं चलिओ । वसण-समुद्धरणं चिय कसवट्टो मित्त-भावस्स ।।१२३६।। तेण सह पव्वमित्तो गंतुं पुर-परिसराओ विणियत्तो । जोहारमित्त-जुत्तो मंती वंछिय-पुरं पत्तो ।।१२३७।। जोहारमित्त-माहप्पओ य वंछियपुरस्स नरवइणो । सम्माणिऊण ठविओ मंति-पए सो सुहं वसइ ।।१२३८।।
एस दिहंतो, उवणओ पुण- 'जहा खिइपइट्ठियं नयरं तहा संसारो । तत्थ जो जियसत्तू-राया सो सच्छंद-विलसणसीलो मच्चू । जो सुबुद्धी अमच्चो सो विवेयवंतो भव्वजीवो | जो सहखाणपाणो निच्चमित्तो सो सरीरं, रुम्मि मच्चु-नरिंदे जीवेण समं पयं पि न चलइ । जो पव्वमित्तो सो सयणगणो सुमरंतो तस्स उवयारं नयर-सीमंतमणुव्वयइ । जो जोहारमित्तो सो धम्मो, सो य सहाओ होऊण वंछियपुरं सग्गापवग्गपरं पराणेइ, तप्पभावेण च निच्चं सुही होइ जीवो त्ति ।'
'सुहलालियं पि सुहपालियं पि सुहवडियं पि देहमिणं । विहडइ परलोय-पहे ता पालिज्जउ कहं भद्दे ?||'१२३१||१४|| एत्थंतरे रयणमंजरीए भणियं‘पत्ते वि इमे भोए मोत्तूण अणागए वि मग्गंतो |
अइ-लोभ-परवसो कुदृणि व्व नूणं किलिसिहिसि ।।१२४०।। कुमारेण भणियं- 'का सा कुट्टिणी ?' रयणमंजरीए भणियं'अत्थि इह भरहवासे उसहपुर-वरपुरं सुरपुरं पि । हसमाणं पिव जं सहइ धवल-पासाय-कंतीहिं ||१२४१।। अभयंकरो ति सेही अत्थि तहिं जस्स विहव-वित्थारं |
अवलोइऊण लोया मणंति समणं व वेसमणं ||१२४२|| तस्स कुसलमई भज्जा | ताण घरे दुवे कम्मयरा । ते जिणपूयामुणिदाणाइ-धम्म-निरयं दहण सिडिं चिंतंति- 'धन्नो इमो, जो एवं धम्म
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
करेइ । अम्हे पुण अपुन्ना किं करेमो ? 'ति । अन्नया चाउम्मासय-दिणे निय - सिहिणा जिणभवणं अप्पियाइं कुसुमाइं जिण-पडिम- पूयणत्थं । न गहियाइं तेहिं, भणियं च- 'जस्स कुसुमेहिं पूया धम्मो वि तरसेव, चेडिय च्चिय अम्हाण केवल' त्ति । पन्नविया सेद्विणा । जाव न पन्नप्पंति ताव नीया गुरु- समीवे । भणिया गुरुणा- 'किं न कुसुमेहिं पूयह जिणं ?' तेहिं वुत्तं- 'निय - धणेहिं चेव पूएमो, तं च अम्ह नत्थि' । एक्केण वुत्तं- 'अत्थि मज्झ वराडयाणं पंच- वुड्डियाओ । थोवमेयं ति न पयट्टए मणं ।' गुरुणा वुत्तं- 'सत्तीए थेवं पि दितो विउलं फलं लहइ । सुद्धो भावो चेव धम्मे पमाणं ।' तओ तेण कवड्डएहिं किणिऊण कुसुमाई कया जिणपूया | इयरेण चिंतियं- 'एयस्स ताव एत्तियं पि धणं जायं । मह पुण इमं पिनत्थि । ता किं करेमि ?'त्ति चिंतंतो पेक्खए पच्चक्खाणं कुणंतं सावय-जणं । भणइ गुरुं- 'भयवं किमेवं पि कए होइ धम्मो ?' गुरुणा वुत्तं- 'बाढं ।' कओ तेण उववासी । गओ गिहं । चिंतिउं पवत्तो- 'जइ अज्ज साहुणो इंति ता अहं निय-भोयणं तेसिं देमि, जओ तं निय-भूओवज्जियं दिन्नं बहु- फलं होइ ।' त्ति चिंतयंतस्स गुरुगिलाणाइ - वेयावच्च-कज्जेण जेहिं उववासो न कओ समागया ते साहुणी । ताणं च पवडमाण- परिणामेण मग्गिऊण दिन्नं निय-भोयणं । बद्धं सुह - फलं पर- भवाऊयं ।
इओ य कलिंगवई सूरसेणी राया गोत्तिएहिं हरिय-रज्जो कुरुदेसे गयपुराहिव - निवं अलग्गइ । लद्धा तेण चत्तारि गामा । तत्थ सालिसीसे गामे वसंतस्स विजयाए देवीए कुक्खिम्मि साहु-दाण- दाया मरिऊण पढमं उप्पन्नो पुत्तो, “जिणपूयओ बिईओ पुत्तो । जेट्ठो अमरसेणो, कणिट्ठो ३१वरसेणो त्ति कयनामा । पुव्व सुकयाणुभावओ रूव-लावण्णगुणोववेया जाया, गहिय-कलाकलावा य पत्ता जोव्वणं । विविहकीलाहिं कीलंता ईओ तओ परिब्भमंति विभूईए । सवत्ति - माया ईसाए कोवहरयं पविद्वा । अलग्गाए आगएण भत्तारेण पुट्ठा, निबंधे य सिहमणाए जहा- 'जद्दिणाओ तुमं ओलग्गिउं गओ तद्दिणाओ चेव संभोग - निमित्तं उवसग्गिया हं तुह सुएहिं । निय- दढत्तणेण गमियाइं एत्तियाइं दिणाई | संपयं जं तुह जोत्तं तं करेसु त्ति सुणिऊण कुविएण रन्ना हक्कारिऊण भणिओ मायंगो- 'अरे ! गाम-सीमाए तुरए वाहंता कुमारा चिडंति, ता तेसिं सीसे निय मायंगेहिं समं गंतूण गिण्हाहि ।' ति ।
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सुमहनाह-चरियं चिंतियं मायंगेण- 'किं एसो गहगहिओ जं एवं आणवेइ ?, अहवा सुंदरमिणं जं अहं आणत्तो ।' 'आएसो ।'त्ति भणिऊण गओ ताण पासं । कहियं रुयंतेण तेण कुमाराणं । भणियं तेहिं - 'करेहि ताय-वयणं । नूणं अम्हेहिं कओ कोइ अवराहो, अन्नहा कहं ताओ एवमाणवेइ ?।' चंडालेण भणियं- 'मह पत्थणाए करेह तुब्भे देसंतरं ।' कुमारेहिं वुत्तं- ‘एवं कए तुह सकुडुबस्स ताओ निग्गहं करिस्सइ ।' चंडालेण भणियं'तुम्हाणुभावेण रक्खिस्समप्पाणं ।' निग्गया कुमारा । चंडालो वि घेत्तूण तुरए काराविऊण चित्तयर-सयासाओ कुमार-सिर-सरिसाई सिराई गओ रायपासं पओसे, अप्पेइ तुरए, दंसेइ सीसाइं । भणियं रन्ना- 'तहा गोवेहि एयाइं जहा न को वि ४०पेच्छइ ।' चंडालेण वि तहा कयं । हरिसिया सवक्कि-माया । कुमारा वि वच्चंता पत्ता अडविं ।
जा दंसिय-सरियाहारहारि गिरिसिहर-तुंग-थणवद्या । पयडिय-भमर-निरंतर-तरु-कुसुम-कडक्ख-विक्खेवा ।।१२४३।। गायंती मारुयपुत्त-रंध-कीयग-रवेण-गीयं व । उल्लसिय-चमरपुंछेहिं वीजयंति व्व चमरेहि ॥१२४४।। पवण-पणोल्लिय-पल्लव-करहिं कुमाराण पह-किलंताण | . सेयजल-बिंदु-निवहं हरेइ अणुरत्त-तरुणि व्व ||१२४५।। बहल-तरुसंड-बद्धंधयार-मज्झाम्मेि जीए भत्तीए | परिविरला रवि-किरणा दिला दिव्व व्व दिप्पंति ॥१२४६।। अह तत्थ कुमाराणं पयाव-पसरं व सहिउमचयंतो । अत्थगिरि-सिहर-काणण-कुहरम्मि तिरोहिओ तरणी ।।१२४७|| दहण तत्थ एक्वं तलाईयं जा ठिया इमे तीर । . ता तीए तरंग-करेहिं ताण पक्खालिया चलणा ||१२४८।। सहयार-तरु-तले मणि-सिलायले तरुण-पल्लवत्थरिए ।
उवविद्वा दो वि तए १४वरसेणो जंपए जेहं ।।१२४१।। 'जाणासि किं पि कारणं जेण अम्ह रुठो ताओ ?'
जेहेण भणियं- 'वच्छ ! न याणामि किंपि सम्मं किंतु ईसाए सवक्विया माया अम्ह १४४पउद्धा आसि, मए इंगिएहिं नाया । ता तविलसियं किंपि संभावेमि'त्ति । १४ वरसेणेण भणियं- 'किं ताओ वि
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अलीए पत्तिज्जइ ?| जेद्वेण भणियं- 'वच्छ !'
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
कवड - कुटुंब - कुडीओ महिलाओ जंपियं मुणंति तहा । रागंधबुद्धिणो जह तह त्ति सव्वं पवज्जंति ||१२५०||
अहवा किं इमिणा ?। सच्चेव परमोवयारिणी अम्ह, जीए दंसिया सयल - पुहवी । एवमुल्लवंतो पसुतो जेट्ठो । इयरो उण ठिओ पहरए । एत्थंतरे चूयतरु-डिएण भणिया कीरी कीरण 'सागय-किरियारिहा इमे कुमारा, परं अम्ह नत्थि किंपि जं एएसिं कीरइ १४६ ।' कीरीए भणियं - 'किं न सुमरसि जं अम्ह पेच्छंताणं सुकूडसेले विज्जाहरेहिं विज्जाभिसित्तबीया वविया दो अंबगा ? परोप्परं च कहियं तम्माहप्पं जहा एक्कस्स १४७ लहुयं फलं तं गिलियं जा उयरे चिट्ठइ ताव पइदिणं सूरोदए दम्मपंचसयाई मुहाओ पडंति । बीयरस गरुयं ४८ फलं, तं च जो भक्खर सो सत्तम - दिणे राया होइ । ता तेसिं फले आणेऊण एक्केक्कं देमो इमाणं' ति । तहेव कयं । दिहं पुरो १४ वरसेणेण पडियं अंबग-दुगं । बद्धं वत्थंचले, चिंतियं च किं सच्चमेयं जं कीरीए वुत्तं ? | अहवा अर्चितणिज्जो विज्जाइ प्पभावो' त्ति । उडिओ जेडो । पसुत्तो बीओ । पभाए दो वि पत्थिया । अकहेऊण ५० तत्तं दिनं जेइरस जेट्ठ- फलं, लहुयं पुण अप्पणा गिलियं । एगागी होऊण गओ सरोवरे । कया मुह-सुद्धी । मुहाओ पडिया पंच - दम्मसया । सो य ११ जेडबंधुणा समं भोयणवत्थाइहि विलसए दव्वं । पुट्ठो जेद्वेण- 'कत्तो तुह दव्वं ति ?' भणियं कणिण - 'कुडुंबीएहिं दाणि सुवन्नं जं मह पेसवियं तं मए भंडागारे न समप्पियं आसि ।' त्ति । वच्चंता पत्ता कंचणउरं । सुत्तो अमरसेणो चूयतरु-तले । इयरो पुण गओ भोयणाइ- सामग्गीकए पुर- मज्झे । इओ य तत्थ मओ अपुत्तो राया, अहिसित्ताणि पंच- दिव्वाणि, आगयाणि तत्थ जत्थ अमरसेणो । आरोविओ गइंदेण खंधे । नमिओ सामंताइएहिं । सिर-धरिय-धवलायवत्तो वीईज्जतो चमरेहिं पविडो पुरे । वरसेणो २ वि विन्नाय - वुत्तंतो चिंतिउं पवत्तो
'अवहत्थिज्जउ तं दिवसु निसि अच्छउ म विहाउ ।
जहिं जोइज्जइ परह मुहु मिल्लिवि निय- ववसाउ || १२५१||
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इय चिंतिऊण गओ मगहा-गणिया घरं । कुणइ विविह-विलासे । रन्ना वि गवेसिओ घणं कणिट्ठो । न दिट्ठो कत्थइ । अक्खित्तो रज्ज
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सुमनाहचरियं
चिंताए गमेइ दिणाई |
अन्नया कुट्टणी-वयणओ पुट्ठो मगहाए वरसेणो५३- 'ववसायं विणा कहं तुह दव्वं ? 'ति । अइ-निब्बंधे कए कहियं सरल-सहावत्तणेण सव्वं सच्चं संजोइयं । सरय-पाणेण कारिओ कुट्टणीए वमणं । पडिच्छियं थाले चूय- फलं । तं गहिऊण निस्सारिओ घराओ वरसेणो १५४, चिंताउरो य परिब्भमंतो पत्तो मज्झिम - रयणीए पुर-बाहिर सुन्न - देउले १५ । तत्थ य चउरो चोरा मोस - विभयणत्थं कलहायंता चिडंति । तो कुमारेण कया तक्कर-सन्ना । ‘तक्करो' त्ति हक्कारिओ तेहिं । निवेसिओ पासे पुट्ठो जहा'अम्ह तिन्नि वत्थूणि कंथा लउडो पाउया य ।' कुमारेण भणियं - 'किं सिज्जइ पओयणमिमेहि ?' तेहिं भणियं- 'एक्केण सिद्धेण मसाणे छहि मासेहि आराहिया विज्जा देवया । तीए तुहाइ दिन्नाई तिनि वत्थूणि । कहियं देवया तत्थ इमं- 'पइदिणं कंथाए झाडिज्जंतीए पडंति पंचरयण-सयाणि । लउडेणं उवरि भामिएणं न पहवंति पहरणाई । पाउयाहिं परिहियाहिं गमए समीहिय- प्पएसे ।' अम्हेहि वि हेरिऊण छम्मासं वावाईऊण सिद्धं तिन्नि वि गहियाई इमाई, ता तिन्नि वत्थूणि चउरो चोर त्ति विभयणं न घडइ' त्ति । कुमारेण भणियं किमित्थ जुज्झेणं, निहारेमि अहं तुम्ह विवायं' ति भणिऊण गहिओ लउडो कंथा य पट्टोलियाइ, खणं खित्ताओ पाऊयाओ चलणेसु, उप्पइओ गयणे । गओ नयर- बीयभाए । चोरा वि विलक्खा [ गया ] निय-निय - ठाणेसु ।
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कुमारो वि पइदिणं कथं झाडिऊण गिण्हइ पंच - रयण-सए । वेसंतरं काऊण पविट्ठो नयर - मज्झे । रमेइ जूयं । करेइ विलासे । दिट्ठो कह वि कुट्टणी | गया गिहं । कहिओ एसी मगहाए । तो सा कुट्टणीए १५६ नियंसाविया सेय- वत्थाइं विरइय-वेणिदंडा नीया कुमर-पासे, भणियं च- 'वच्छ ! मए पावाए निसारिए तुमम्मि मगहा तुह विरहे रोयंती एवं ठिया ।' इच्चाइ कवड वयणाइं सोऊण चिंतियं कुमारेणं- 'पुणो वि मंडियं रंडाए किंपि कूडं । होउ । भलिस्सामि ।'त्ति पणमिऊण भणिया'जुत्तमिणं तुह धूयाए । किं इयाणिं करेमि ? । तओ नीओ निय- घरं । कइवय-दिण-पज्जंते य पुच्छिओ कुमारो कुट्टणीए १५८ - 'वच्छ ! कहं तुह दव्वुप्पत्ति ?' ति । तेण भणियं जहा- 'अंब ! पाऊयारूढो उप्पयामि गणे । हरिऊण दविणं देसंतराओ आणेमि । कुट्टिणीए भणियं- 'जइ एवं
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं ता पुन्ना मे मणोरहा । तुह विरहे मए इच्छियं जलहि-मज्झे काम-पडिमाए उवाइयं, ता नेहि ममं तत्थ ।' कुमारेण नीया कामाययणे । मोत्तूण पाउआओ जाव अब्भंतरे गओ ताव इयरी पाऊयाओ "पहिरिऊण पत्ता स-गिहं । 'अहो ! बहु-पवंचाए वंचिओ म्हि रंडाए' ति चिंतयंतो जाव अच्छइ ताव दिहो एक्वेण खयरेण पुढो य- 'कहमिहागओ सि ?' कहियं तेण सच्चं । खयरेण भणियं- 'मा कुणसु खेयं । चिट्ठ पक्खमेक्वं एत्थ काम-पडिमं पूयंतो । अस्थि मे गुरुयं कज्जं । तं काऊण जा नियत्तेमि ता तुमं सहाणं पराणिस्सामि । किंतु इह दार-देसे जे चिटंति दुवे दुमा तेसिं समीवे वि न गंतव्वं ।'पडिवघ्नं एयं कुमारेण । खयरो वि दाऊण पक्ख-दिण-जोग्गे मोयगे गओ गयणे । ____ अन्नया कुमारो कोउगेण एक्क-रुक्खस्स जाव अग्घाइ कुसुमं ताव जाओ रासहो । दिहो य पक्ख-पज्जंतागएण खयरेण | सुंघाविउं बीयरुक्ख-कुसुमं जाव जाओ पुणो मणुस्सो, उवालदो रवयरेण, पडिवन्नो अणेण स-दोसो, पुच्छियं च- 'किमयमच्छरियं ?' ति । खयरेण भणियं'मए इमे रुक्खा खरमाणुसी-विज्जाहिं अहिवासिया । तेण इमाणं इमो पभावो ।' खयरो य गओ काम-पडिमं पूईउं । कुमारेण गहियाई दोण्हं पि रुक्खाणं कुसुमाइं । बद्धाइं भिन्न-भिन्न-गंठीसु । खयरेण नीओ कंचणपुरं कुमारो । कुणइ विलासे । दिहो अक्वाए । विम्हिया एसा । मगहाए वारंतीए वि कवडेणं जाणुकुप्पराईसु पट्टए बंधिऊण गया तस्स पासं । सो य सामरिसो कयायार-संवरणो भणइ- 'अंब ! किमेयं ?' ति । रुयंतीए तीए वुत्तं- 'कामाययणे पविहस्स ते एक्को खयरो पाऊयाओ हरिऊण चलिओ । विढिया हं तस्स । तेण वि उल्लालिऊण खित्ता । पडिया कहं पि इह नयरे । तो० मे भग्गा जाणुआइ | तेण भणियं- 'अंब ! जंतु पाउयाओ | न दमंति मे मणं जं तमं जीवंती दिहा ।' एवं भणिए भुयाए घेत्तूण नीओ घरं सो, तीए पुढो य लुद्धमणाए- 'वच्छ ! कहं तुममिहागओ ? कहं वा कुणसि एरिसे विलासे ?।' कूमारेण वृत्तं- 'आराहिओ मए कामो । जाओ पच्चक्खो । तेण दाऊण बहु-दव्वं आणिओऽहमेत्थ ।' भणियमणाए- 'अन्नं पि किंचि दिन्नं कामेण ?!' तेण 'दिन्नं' वुत्तं । तीए भणियं- 'किं तयं ?'। तेण वुत्तं- 'जेण ओसहेण आघाइएण वुहूं पि तरुणं होइ तं दिन्नं ।' तुहाए तीए वुत्तं- 'तं मे देहि' । तो तेण 'तुह चेव कए मए आणिय'ति भणंतेण हटाओ ठवियं
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सुमइनाह-चरियं
૨૦૦ लउडयं घेत्तूण हत्थे सुंघाविया ताई कुसुमाइं । जाया रासही एसा । तो तीए मुहे दाऊण दढं दढियं चडीओ पहीए । कुटुंतो लउडेण निग्गओ नयर-मज्झेण | जुत्तं कयमणेण जं लोह-फलं इमीए दंसियं ति तुहा मगहा, पुक्लरियं सेस-पाउलेणं । धाविओ तलारो, पुर-परिसरे दिहो कुटुंतो कुदृणिं कुमारो । हक्किओ अणेण- 'किमेवं असमंजसं करेसि ?।' कुविएणेव वुत्तं कुमारेण- 'करिस्सं जं रोअइ । वारेसु जइ ते अस्थि सत्ती ।' तओ से सेल्ल-भल्लाईएहिं पहरिउं पवत्तो तलारो, तस्स य लउडं भामंतस्स न कमए किंपि पहरणं । इमं च सोच्चा समागओ राया । पच्चभिन्नाओ अणेण । उत्तरिऊण गयवराओ आलिंगिओ सो रन्ना । भणियं कुमारेण- 'मुंच मुंच बंधव ! ममं जाव स-हत्थाणं करेमि सोवखं ।' रन्ना वुत्तं- 'वच्छ ! किमेयं ?।' कहिओ अणेण सव्वो वुत्तंतो । बंधाविया खाणुम्मि पुर-मज्झे सा । सयं गयवरारुढो पविहो पुरं समं रन्ला । कुहिणिं"" च तहहियं दद्दूण पढइ लोओ
'अति लोभो न कर्त्तव्यो लोभं नैव(चैव) परित्यजेत् । अति लोभाभिभूता हि कुट्टनी गईभी कृता ।।' १२७२।। अह निव-निबंधेणं अग्घावेऊण बीय-कुसुमाइं । काऊण माणुसी पाउयाओ घेत्तूण सा मुक्का ||१२५३।। तो जुवराओ जाओ वरसेणो भुंजए विउल-भोए । आणाविऊण पियरे तुज्झ पसारण रज्जमिणं ।।१२५४।। जायं ।'ति जंपिऊणं सवक्लि-माया थिरीकया तेहिं । अह अन्नया गवक्खे उवविहा दो वि पेच्छंति ||१२५५।। जुगमित्त-दिन-चक्टुं सव्वंगालिंगियं तवसिरीए । रायपहे मुणि-जुयलं इमेहिं तो सुमरिया जाइ ||१२५६।। गंतूण वंदिया ते मुणिणो एक्केण ओहिणा नाउं । एएसिं पुव्व-भवं भणियं- 'थेवस्स वि कयस्स ||१२५७।। सुकयस्स एत्तिय-फलं पत्ता तुब्भेहिं जं इमा रिद्धी । तो कुणह गुरु-पयत्तं जिणपूया-साहुदाणेसु ।।१२५८|| ते वि ह तह त्ति पडिवजिऊण जिणधम्म-उज्जया जाया । भोत्तूण विउल-भोए कमेण सुगइं च संपत्ता ||१२५१||१५||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं इय कुट्टणीए सोउं विडंबणं लोभ-तरलिय-मणाए । मा परभव-सुह-लोभेण चयसु लद्धं तुम पि सुहं ।।१२६०।। जणणी-जणणाणं बंधवाण मित्ताण तह कलत्ताणं । नेहभर-निब्भराणं कुणसु सिणेहं पिय ! तुमं पि ||१२६१|| जं चिर-परिचियमेयं चयसि तुमं तं अईव-साहसिओ ।
सहवास-वडिया तरुवरा वि दुक्खेहिं मुच्चंति ।।१२६२।। कुमारेण भणियं- 'भद्दे ! नेहो राहु-मुहं विवेय-ससिणो दोसंबु-नीरायरो,
नेहो मोह-महोरगस्स विवरं वेरग्ग-सेलासणी । नेहो पावभरंधयार-रयणी पुन्नमाणं दवो,
नेहो दुव्ववसाय-साइणिकुल-क्वीला-मसाणत्थली।। १२६३।। नेहो सोय-पिसाय-सुन्न-नयरंऽहिंसा-धरित्ती महा
कालो सच्च-सरोरुहाण तुहिणं संवेय-मेहानिलो । कंदप्पप्पहुणो विलास-भवणं दुक्खंकुराणं जलं,
सव्वाणत्थ-पुरप्पवेस-सरणी सग्गापवग्गग्गला ||१२६४।। इय नेह-सरुवं जाणिऊण नेहो न होइ कायव्वो 1 पुरिसेणं बुद्धिमया, को जाणतो विसं खाइ ?||१२६५।। अवि यअहियं पि पयहावइ जो जं को तस्स तं पइ सिणेहो । एत्थ य सुहंकरं पइ नेहे लीलावई नायं' ||१२६६|| रयणमंजरीए भणियं- 'सामि ! को सो सहकरो ? का वा लीलावई ?' कुमारेण भणियं'इह कामरूव-विसए सविसेस-समुल्लसंत-सुहविसए । पुहइ-पुरंधीए विसेसयं व पुरमत्थि मयणपुरं ||१२६७।। अरि-करि-कुंभ-वियारण-समय-समुच्छलिय-मुत्तिय-कुलेहिं । कय-जयसिरि-सिंगारो पज्जुल्लो अत्थि तत्थ निवो ||१२६८।। तस्स य दइया लीलावई त्ति जा देह-किरण-दंडेहिं ।
सम्मग्ग-गमण-खलणं व काउमब्भुज्जया लोए ||१२६१।। ताणं च विसय-सुहमणुहवंताण अइक्वंतो कोइ कालो । अन्नया
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सुमहनाह-चरियं
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गओ राया आस- वाहणियाए । लीलावईए य विवित्त-निज्जूहम्मे ठियाए दिसावलोयण - समयम्मि दिट्ठो रायमग्गवत्ती देवयाययणं पत्थिओ विमलमइ - सत्थवाह - पुत्ती सुहंकरो नाम जुवाणओ । तं च दहूण अविवेय-सामत्थो अब्भत्थियाए गामधम्माणं समुप्पन्नो तीए तस्सोवर्रि अहिलासो । पलोइओ सविब्भमं । एसा वि समागया तस्स दिहिगोयर, निरूविया मोह- दोसेण साहिलासं । 'अहो चित्तन्नुओ ।"त्ति परितुट्ठा लीलावई । कीलिओ व्व मयणबाणेहिं ठिओ एग - देसे । लीलावईए भणिया अभिन्न-रहस्सा जालिणी नाम चेडी - 'हला ! दुन्निवारो मयण-पसरो, ता आणेहि एयं जुवजण सिरोमाणिक्कं ।' 'सुवुब्भावयाणि एत्थ वइयरे कामि हिययाइं' ति परिभाविऊण गया सा । आणिओ अणाए इमो । पवेसिउं कहं पि वासहरे उवविट्ठो पल्लंके | पणामियं से लीलावईए तंबोलं । अद्ध-गहिए य तम्मि सुओ बंदि - कलयलो । 'समागओ राया'त्ति भीया लीलावई । 'न एत्थ अन्नी उवाओ । 'त्ति पवेसिओ वच्चहरए सुहंकरो । पविट्ठो राया । उवविट्ठो पल्लंके । ठिओ कंचि वेलं | भणियं अणेण 'अरे । सद्दावेह वारियं । पविसामो हत्थवखालयं । सद्दिओ वारियं । सुयमिणं सुहंकरेण । 'नियमओ वावाइज्जामि । 'त्ति अच्चंत भीएण जीविय-लुदेण अगाहे गाढंधयारे अच्चंत दुग्गंधि- किमिकुल संकुले वच्च कूवे पवाहिओ अप्पा | निवडिओ आकंठं असुइ-मज्झे । किलामिओ किमीहिं । निरुद्धो से दिद्वि-पसरो । संकोडियं अंगं । उइन्ना वेयणा । आउलीहूओ दढं । गहिओ संमोहेणं ।
દર
—
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इओ य सो राया पच्चुवेक्खियं अंगरक्खेहिं पविडो वच्चहरयं । कया सरीरठिई । निग्गओ वच्चहरयाओ । ठिओ लीलावईए सह चित्तविणोएण । अइक्कंतो वासरो । ठिओ अत्थाइयाए राया । एत्थंतरे निरूवाविओ सुहंकरो लीलावईए । न दिट्ठो तत्थ । भणियं अणाए- 'हला जालिणि ! कहियं पुण भविस्सइ ?' । तीए भणियं - 'देवि ! भयाभिभूयत्तेणं पवाहिऊण अप्पाणयं वच्चकूवे मओ भविस्सइ ।' लीलावईए भणियं- 'एवमेयं, अन्नहा कहं अदंसणं ?' ति अवगया चिंता । इओ य सो सुहंकरो तम्मि वच्चकूवे तहा- दुक्ख - पीडिओ भविव्वया - नियोएण विचित्त कम्म वसवत्ती असुइ-रसपाण- भोयणे गमिऊण कंचि कालं, विसोहण-निमित्तं फोडिए वच्चहरए असुइ
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं निग्गमण-मग्गेण वावन्न-देहच्छवी पणढ-नहरोमो निग्गओ रयणीए । पक्खालिओ कहं चि अप्पा महया किलेसेण । गओ निय-भवणं । 'को एसो य माणुसो ?'त्ति भीओ परियणो । भणियं सुहंकरेण- 'मा बीहेह । सहंकरो हं ।' विमलमइणा भणियं- 'पुत्त ! किं तए कयं जेण ईइसो जाओ ? किं वा तुज्झ विमोक्खणं कीरउ ?' सुहंकरेण भणियं- 'ताय ! अलं मजा मरणासंकाए । सो चेव अहं जं च कयं जेण ईइसो जाओ म्हि, तं साहेमि मंदभग्गो तायरस । किंतु विवित्तमाइसउ ताओ ।' अवगओ परियणो । 'न एत्थ अन्नो उवाओ, जहट्ठियमेव साहेमि ।' ति चिंतिऊण साहियमणेण | 'अहो ! अकज्जासेवण-संकप्प-फलं ।'ति संविग्गो से पिया । पवेसिओ णेण गिहं । कओ निवाय-थामे'६३ । संतप्पिओ सहस्सपागाईएहिं । काल-परियारणेण समागओ पुव्वावत्थं । उचियसमएण पयट्टो देवयाययणं । ओइलो रायमग्गे । दिहो लीलावईए । तहेव साम-पुव्वयं पेसिया जालिणी | मोह-दोसेण समागओ सुहंकरो । आगयमित्ते तम्मि आगओ राया | तहेव जायाई वच्चकूव-पडणनिग्गमणाइं । पुणो पउणो दिहो, पुणो पवेसिओ, पुणो विडंबिओ । एवं पुणो पुणो बहुसो त्ति । __ता पुच्छामि तुब्भे 'तीए लीलावईए तम्मि सुहंकरे अणुराओ अत्थि किं वा नत्थि ?' | रयणमंजरीए भणियं- 'नाह ! परमत्थओ नत्थि, बुद्धि-रहिया सा लीलावई जेण न निरुवइ वत्थु, न निहालए नियभावं, न पिच्छए स-पर-तंतयं, न चिंतए तस्स आयइं ।' कमारेण भणियं- 'भद्दे ! जइ एवं ता तुम्हाणं पि नत्थि ममोवरि ने हो, बुद्धिरहियाओ य तुब्भे, जेण असुंदरे पयईए निबंधणे कसायाईणं चंचले सत्वेण इच्छह तुच्छ-भोए, अओ न निरुवह वत्थु ति । तहा सव्वुत्तमं माणुसत्तं दुल्लहं भव-समुद्दे साहगं निव्वाणस्स न निउंजह धम्मे, अओ न निहालह निय-भावं ति । तहा भुवण-डामरो मच्चू । अइ-दारुणो पयईए गोयरे तस्स तुब्भे न चिंतह अत्ताणं, अओ न पिच्छह स-पर-तंतयं ति । तहा मह-महरं परिणाम-दारुणं कारणं गब्भ-नरयरस विसय-सहं, तं पि संदरं ति भणंतीओ निउंजह मं तत्थ, अओ न चिंतह मज्झ आयई ति ।
ता
परमत्थेणं नत्थि तुम्ह नेहो ममोवरि भद्दे ! । Jain Education Internasजं खिवह नरय-कूवे काउं द्विवखा- गहण-विग्घं ||१२७०!!१६.!brary.org
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दुग्गय १ चिंतामणि २ चूय ३ कूयनर ४ ससुर ५ सूरसेण निवा ६ | वरदत्तो ७ जयवम्मो ८ कज्जो य : कुबेरदत्तो य १० ।। १२७१ || अक्का ११ समुद्ददत्तो १२ जंबुग १३ मित्ततिय १४ अक्क १५ वणिपुत्ता १६ | भज्जाहिं कुमारेण य कहियाओ कहाओ एयाओ || १२७२ ||
सुमहनाह - चरियं
एयं सोऊण संविग्गाओ वहुओ । तओ सदाइसएण पणमिऊण कुमार- चलण-जुयलं जंपियमिमाहिं- 'अज्जउत्त ! एवमेयं । अम्हाणं पि अवगओ वामोहो । समुप्पन्नं सम्मन्नाणं । नियत्तो विसय-राओ । ता आणवेउ अज्जो जं अम्हेहि कायव्वं ।'
कुमारेण भणियं - 'साहु भोईओ ! साहु । सुलद्धं तुम्हाण माणुसत्तणं जं ईइसी कुसलबुद्धि त्ति । ता पवज्जह" पव्वज्जं ।' तओ पयहियं महादाणं । काराविया जिणाययणेसु पूया । पूईया गुरुणो । घोसाविया अमारी । विमुक्काओ गुत्तीओ । सम्माणिया सयणा । पसत्थे तिहि करणे मुहुत्त - जोए समं धम्ममित्तेहिं धम्मपत्तीहिं य समारूढो दिव्व- सिबियं । वज्र्ज्जतेहिं मंगल तूरेहिं नच्चंतेणं तरुणि चक्कवालेण, थुव्वमाणी बंदीहिं, पूरंतो समग्ग-मग्गण-मणोरहेहिं, अणुगम्मंतो सामंत-मंति- परिगएणं पिउणा, पलोइज्जमाणो नायरेहिं जणंतो तेसिं धम्माणुरायं पत्तो कुसुमागज्जाणं । उत्तिन्नो सिबिगाओ । गओ विणयनंदण-गुरुपायमूले । ति पयाहिणादाण - पुव्वं पणमिऊण समप्पिओ अप्पा गुरुणो | तेणावि दिक्खिओ जहुत्त सिद्धंत - विहिणा । भज्जाओ वि चंदलेहा - पमुहाओ दिक्खिऊण समप्पियाओ विणयवइ-पवत्तिणीए ।
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अह पुरिससीह - साहू परीसहे दुस्सहे वि सहमाणो । सुत्तं अहिज्जमाणो अवधारतो य तरसत्थं ||१२७३|| दिव्वाइ-उवसग्गे अगणंतो गुरुयणं निसेवंती । इंद्रियगणं जिणंतो कुणमाणो ढुक्करं किरियं ॥ १२७४ ||
मास दुमास-तिमासप्पमुहं तिव्वं तवं अणुचरंतो ।
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सव्वत्थ - अपडिबद्धो विहरइ पवणो व्व स महप्पा || १२७५ ।। खेलाइ-लद्धीओ तवप्पभावेण तस्स जायाओ ।
गिरिणो व्व ओसहीओ ससिकर-संगेण दित्ताओ || १ || १२७६ ॥
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तरस य खेललवेण वि देहं कुद्दुयं पि देहीणं । कोडीवेह-रसेण व तंबं संपज्जइ सुवन्नं ।।२।।१२७७।। कत्थूरिया-परिमलो मलो तयंगरस सव्व-रोगहरो । अमएण व कर-फरिसेण तस्स रोगा खयं जंति ।।३।।१२७८।। तस्संग-संगि-सलिलं रवि व्व तिमिरं हरेइ रोगभरं । तस्संग-लग्ग-पवणेण जंति विलयं विसप्पमुहा ||४||१२७१।। विस-दूसिय-मत्ताइ तं मुहपत्तेसु निव्विसं होइ । तव्वयण-मंत-सवणेण समइ सव्वो वि सवियारो ||५||१२८०।। नह-केसाइ तदंगं जं जं रोगीण ओसहं तं तं । अणिमा-गुणेण संचरइ सो य सूईए रंधे वि ||६||१२८१।। सुरसेलाओ महंतं करेइ महिमा-गुणेण सो रुवं । लघिमा-गुणेण लंधिज्ज लाघवं सोऽनिलसावि ||७||१२८२।। गरिमा-गुणेण दसहं सक्काइएहिं पि तस्स गरुयत्तं । पवण-सत्तीए छिवेज्ज मेरु-सिरमंगुलीए सो ||८||१२८३।। सो पाकम्म-गुणेणं भुवीव नीरे जले व्व भुवि चरइ । सो इस्सरिय-गुणेण चक्विंद-सिरि खमो काउं ||१||१२८४।। तस्स वसित्त-गुणेणं पसमं कूरा वि जंतुणो जंति । अप्पडिघाइत्त-गुणेणं सेल-मझो वि सो कमइ ||१०||१२८५।। अंतद्धाण-गुणेणं एसो पवणो व्व जायइ अदिस्सो । रूवेहिं कामरूवित्तणेण सो पूरइ जयं पि ||११||१२८६।। एगत्थ-बीयउगेण अत्थ-बीयाइं जत्थ जायंति । सा विय बुद्धि-रिद्धी संजाया तस्स वर-मुणिणो ||१२||१२८७।। सो धरइ कुट्ठ-बुद्धी कुठे धन्नं व अक्खयं सुत्तं । एग-पयाओ वि गिण्हइ गंथं पि पयाणुसारी गं ||१३||१२८८।। अवगाहइ सुय-जलहिं अंतमहत्तेण सो मणोबलिओ । सो वायाबलिओ तं गुणेइ अंतोमुहुत्तेण ||१४||१२८१।। सो कायबली पडिमं चिरं पवनो वि जाइ न किलेसं । सो अमय-खीर-महु-घय-आसवलद्धी तहा जाओ ||१५||१२१०।।
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सुमइनाह-चरियं
जं तरस पत्त-पडियं अमयाइ-रसं भवे कदन्नं पि । वयणं व दुविखएसुं जायइ अमयाइ-परिणामं ||१६||१२११।। अखीण-महाणस-लद्धिओ य थेवं पि बहुय-दाणे वि । तप्पत्त-पडियमन्नं न खिज्जए जिमइ जा न सयं ।।१७।।१२१२।। अक्खीण-महालय-लद्धि-संजुओ सो जओ असंख-जणो । तित्थयररस व परिसाए तस्स सम्माइ निब्बाहं ।।१८।।१२१३।। एगेण इंदिएणं सेसिंदिय-अत्थ-दसणं जत्थ । संभिन्न-सोय-लद्धी सा जाया तस्स महरिसिणो ||१५||१२१४|| जंघाचारण-लद्धीए एक्व-फालाए जाइ सो रुयगं । एक्लाए नंदीसरमेइ स-ठाणं तु बीयाए ||२०||१२१५।। एक्वाए फालाए मेरु-सिरं जाइ सो तओ चलिओ । एक्वाए नंदणवणे बीयाए एइ स-हाणं ||२१||१२९६|| सो विज्जालद्धि-जुओ एक्लाए माणुसुत्तरं जाइ । बीयाए फालाए वच्चइ नंदीसरं दीवं ||२२||१२१७।। तत्तो नियत्तमाणो एक्वाए चेव एइ स-हाणं । उटुं तु दोहिं फालाहिं जाइ एक्काए पुण एइ ।।२३।।१२१८।। सो आसीविस-इडीए निग्गहाणुग्गह-खमो जाओ । लद्धि-फलं न हु गिण्हइ तह वि निरीहो पुरिससीहो ।।२४||१२११।। सो सुद्ध-वासणावस-विसिह-कुसलोदओ समज्जेइ । तित्थयर-नामकम्मं वीसइ-ठाणेहिं एएहिं ||२५||१३00।। पढमं अरहंताणं तप्पडिमाणं च पूयणाइहिं । बीयं सिद्धाण सरूव-सद्दहण-कित्तणाइहिं ||१||१३०१।। तईयं बाल-गिलाणाइ-पालणे पवयणस्स वच्छल्लं । तुरियं गुरुण आहार-वत्थ-दाणाइ-पडिवत्ती ||२||१३०२।। पंचमयं बहुमाणो वय-पज्जायस्सुएहिं थविराण । छठं बहुस्सुयाणं अत्थाविक्खाए वच्छल्लं ।।३।।१३०३।। सत्तमयं वीसामण-पूयण-दाणाइणा तवरसीपं । अहमयं उवओगो निच्चं सुत्तत्थ-नाणस्स ||४||१३०४।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं नवमं पुण सम्मत्तं समत्त-संकाइ-दोस-परिचत्तं । दसमं व नाण-दसण-चरित्त-उवयार-विणएहिं ।।५।।१३०५।। एगारसमिज्जाईय अवस्स-किच्चाईयार-परिहरणं । बारसमिह मूलुत्तर-गुण-परिपालणमणईयारं ||६||१३०६।। तेरसमपमाएणं पइक्खणं पइलवं सुहं झाणं । चउदसमणवरयं चिय दुवालसविहं तवच्चरणं ||७||१३०७।। पनरसमन्नाईणं संविभागो तवस्सि-लोगम्मि । सोलसमायरियाइसु वेयावच्चं सुसत्तीए ||८||१३०८।। सत्तरसं संघस्स उ समाहिकरणं अवायहरणेण । अट्ठारसं अउव्वाण सुत्त-अत्थाण संगहणं ||9||१३०१।। एगूणवीसमवितह-सद्दहणुवित्तणेहिं सुय-भत्ती । वीसं पभावणा सासणस्स वायाइ-लद्धीहिं ||१०||१३१०।। एएहिं ठाणेहिं तित्थयरत्तं उवज्जिऊण इमो । विहरइ चिरं महीए पडिबोहंतो भविय-लोयं ।।१३११।। संलेहण-दुग-पुव्वं पज्जंतावसरमप्पणो नाउं | काऊण अणसणं पायवोवगमणेण सुद्धमणो ||१३१२।। मरिऊण वेजयंते सुरो विमाणम्मि सो समुप्पन्नो । सुह-सागरावगाढो तेत्तीसं६७ सागरे गमइ ||१३१३।। सिरि-सोमप्पहसूरीहिं विरइए सुमइसामि-चरियम्मि । तित्थयर-कम्म-अज्जण-पवरा नर-सुर-भवा भणिया ||१३१४||
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सुमइनाह-चरियं
पाठांतर : १. स्वरूपैः ल. रा. || २. खुहा० ल. रा. || ३. वालुयाकवलणं ल. रा. ४. वरतरं० ल. रा. ।। ५. निरए ल. रा. ।। ६. एक्वं ल. रा. ॥ ७. निअयमंते० दे. पा. || ८. विरत्तमेवं भव० रा. | 9. पडिचारि० दे. पा. || 10. संगिलंत० ल. रा. || ११. तंसि ल. रा. ।। १२. पुत्तो ल. रा. || १३. सिहि० ल. रा. ॥ १४. रे जीव ! ल. रा. ।। १५. जणे उ दे. पा. || १६. तज्जमाण ल. रा. ॥ १७. तो दे. पा. || १८. पूजिया दे. पा. || ११, २१. पिंछं दे. पा. ॥ २२. रब्लागएण दे. पा. || २३. ०पेच्छाणि रा. दे. पा. ।। २४. ०पेच्छाई ल. ।। २५. ता पा.॥ २६. कुमरेण पा. || २७. लळूण सुदुल्लंभं कहंपि दे. पा. ॥ २८. तणगो ?| ल. रा. ॥ २१. सिट्टिणा ल. रा. || ३०. सिहिणा ल. रा.॥ ३१. सम्माणेज्जइ दे. रा. पा. ॥ ३२. पंचरयणाइ ल. रा. ॥ ३३. कइवइदिणा० ल. रा. ।। ३४. तत्तो अण्ण ल. रा. ॥ ३५. निअयावासं दे. पा. ॥ ३६. सुवनलक्ख० दे. पा. || ३७. हवेज्ज दे. पा. || ३८. पेच्छिऊण दे. पा. || ३१. दिस० दे. पा. || ४०. महया किं दे. पा. ||४१. जोअणाई दे. पा. ॥ ४२. अस्थि विविहरयणमयं सुरभवण-विणिग्गय-पहापडल-पाडलं पाडलिउरं नयरं । तत्थ रिउरमणि-नयण-सलिलप्पवाह-विलसंत-समुज्जल-जस-रायहंसो रायहंस-धवलगुण-संदोह-संदाणिय-जयलच्छि-समालिंगिय-काओ पुहइराओ राया । तस्स य तरलच्छि-विच्छोह-मज्झ-पुच्छच्छडा-समुच्छालिय-पंचसर-पसर-पारावारा थोरथणहरुच्छंग-रंगंत-तारहारा सुतारा देवी तत्थ अवगय० ल. रा. || ४३ परिक्खिज्जंति ल. रा. || ४४. मुक्खेण ल. रा. ॥ ४५. किविणेण ल. रा. || ४६ पयट्टिया आ० ल. रा. || ४७. इइ विविहा० ल. रा. ॥ ४८. पहे बहुय० ल. रा. ॥ ४१. ०ई निग्गहमंतो दे. पा. || 30. गुरुय० ल. रा. || ५१. याऽमयरसो सह० ल. रा. ॥ ५२. भक्खेइ ल. रा. ।। ५३. हा चित्त ! अकज्जं अ० दे. पा. ॥ ५४. पटउडी० ल. रा. ।। ५५. अमयमयंबयं ल. रा. || ५६. जोवंताणं ल. रा. ॥ ५७. रयणीइ ल. रा. ॥ ५८. बहुगामेसु ल. रा. || ५१. हत्थि डड्डाओ ल. रा. ॥ ६0. 0गुरुय० ल. रा. ॥ ६१.
गुरुयं ल. रा. ॥ ६२. सिहरुग्गओ ल. रा. ॥ ६३-६४. ०वयणेज्जा दे. पा. ॥ ६५. न पुडिया दे; न पुच्छिया रा. ॥ ६६. तद्दियहे को० दे. पा. ॥ ६७. मज्झे कडाइ० दे. पा, || ६८. मेव विआइया ल. रा. ।। ६१. वदृइ दे. पा. || ७०. देव्व दे. पा. ।। ७१. निव्वूढा ल. रा. ।। ७२. ०हरियं मह ल. रा. ॥ ७३. रोयंती ल, रा. ।। ७४. स उवसंतो ल. रा. ।। ७५. वावाएस्सइ दे. पा. ।। ७६. सुवणिंद ल. रा. || ७७. सिद्धिणा ल..
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं रा. ।। ७८. ववहारिउ० दे. पा. ।। ७१. सिहिणो ल. रा. ।। ८0. Oसुंदर लहुई० दे. पा. ।। ८१. ०णत्थ वण ल. रा. ।। ८२. ०वड्डीए दे. पा. ॥ ८३. करेहि त्ति ल. रा. ।। ८४. परं परभवेसु ल. रा. ।। ८५. 0मयविंभलविह० दे. पा. ।। ८६. दुक्खमिणं न पुण कटि० ल. रा. ।। ८७. oहियंगभूओ ल. रा. ।। ८८. गुरुओ ल. रा. || ८१. गुरुयाओ ल. रा. || १०. मुक्खो . ल. रा. || ११. गिण्हइ ल. रा. ।। १२. गुरुयाणु० ल. रा. || १३.
नगरलक्खाओ ल. ॥ १४. वेदोच्चारं टि० ल. ।। १५. निसामंतो ल. रा. ॥ १६. ढहसं (२) दे. पा. रा. ।। १७. ईरिसो ल. रा. ॥ १८. जाणेसि पा. | 99. इत्थिच० ल. ॥ १00. गुरुय० ल. रा. ।। १०१. पेच्छंतो व्व लक्खि ल. रा. ।। १०२. गुरुय० ल. रा. || 10३. धरिउ तासिं ल. रा. ॥ १०४. सिहिणा दे. पा. ।। १०५. सिही ल. रा. ।। १०६. वडंत० रा. || १०७. ०पीडाहेउ त्ति दे. पा. || १०८. पवाहिया दोवि ल. रा. ।। १०१ भायहंडाई दे. पा. ।। ११०. गुरुय ल. रा. ।। १११. तीए वि ल. रा. ।। ११२-१३. गुरुय ल. रा. ।। ११४. नडविडबिसा० पा. ।। ११५. चेडी पा. ।। ११६. कुट्टिणी ल. रा. ।। ११७. रमणेज्जं दे. पा. ।। ११८- ११. कुदृणीए दे. पा. ।। १२०. Oत्थाए ल. || १२१. कुट्टणीए दे. पा. ।। १२२. 0मई एसा न ल. रा. ।। १२३. कुट्टणीए दे. पा. ।। १२४. कुट्टिणीए दे. पा. ।। १२५. जं-अमु० दे. पा. ।। १२६. गहिउं ल. रा. ।। १२७. ०परमिहि० ल. रा. ॥ १२८. सरंतेण पा. || १२१. कुट्टिणी दे. पा. || १३०. गरुओ दे. पा. || १३१. दिसिभित्ती रा. ।। १३२. गुरुयं ल. रा. ।। १३३. किवण ल. रा. ।। १३४. पिच्छए दे. पा. ।। १३५. दीवदाणदं० दे. पा. ।। १३६. मुक्का तहेव पच्छिम० दे. पा. || १३७. अत्थित्थ ल. रा. ।। १३८. जिणपूओ वि दुईओ पुत्तो दे. पा. ।। १३१. वयरसेणो ल. रा. ।। १४०. पिच्छइ दे. पा. ।। १४१. ०पुच्छेहिं दे. पा. ।। १४२. वयरसेणो ल. रा. ।। १४३. सवक्तिमाया दे. पा. ।। १४४. पउहा दे. पा. ।। १४५. वयरसेणेण ल. रा. ।। १४६. कीरए दे. पा. || १४७. एकस्स ल. रा. || १४८. गुरुयं ल. || १४१. वयसेणेण ल. रा. ।। १५०. अकहेऊण ल. रा. ।। १५१ जिह० दे. पा. ।। १५२-५३-५४. वयरसेणो ल. रा. ।। १५५. ०देयउले ल. रा. ।। १५६. कुट्टिणीए ल. रा. ।। १५७. ईयाणिं ल. रा. ।। १५८. कुट्टिणीए दे. पा. ।। १५१. परिहिऊण दे. पा. ।। १६०. तो ल. रा. ।। १६१. कुणिं ल. रा. ।। १६२. पविसिउ ल. रा. ॥ १६३. निवायठामे ल. रा. ।। १६४. पव्व ह ला;वज्जइ पा. || १६५. गुरु अत्तं पा. ।। १६६. पन्नरमलाईणं दे.पा.रा. ।। १६७. तित्तीसं दे. पा. ।।
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छहो पत्थावो
अत्थित्थ जंबुदीवो पुरिसत्थ-नरिंद-पुरनिवेसो व्व । जलनिहि-परिहा-परिगय-जगई-पायार-परिखित्तो ।।१३१५।। अद्धिंदु-सुंदरं तत्थ भारहं अत्थि दाहिण-दिसाए । भालं व जत्थ रेहइ वेयहो रययपट्टो व्व ||१३१६|| जं गंग-सिंधु-सरिया-मुत्ताहल-मालियाहिं रमणिज्जं । बहल-वणराइ-कुंतल-रेहा-रेहंत-पेरंतं ||१३१७।। तत्थ अउज्ानयरी कणयमई अत्थि तिलय-सारिच्छा । पेरंत-मुत्तियावलि-समो जहिं फलिह-पायारो ||१३१८|| जा जिण-जम्मट्ठाणं ति सव्व-दीवागएहिं भत्तीए । पायार-कणय-कविसीसएहिं रेहइ रवीहिं व ||१३११।। जत्थ सुवन्न-जिणालय-फुरंत-कंती तडिल्लया-लच्छी । पावइ इज्झंतागुरु-धूमेसु घणेसु गयणयले ।।१३२०।। जत्थुन्नय-घरकुट्टिम-गयाओ हरिणंक-हरिण-नयणाई । दहुं व सविब्भम-पिच्छिरीओ रमणीओ जायाओ ||१३२१|| जीए रयण-विणिम्मिय-पासाय-पहाहिं पहरिए तिमिरे । कुवलय-कमल-वियासेहिं रयणि-दियहा मुणिज्जंति ||१३२२|| विरइय-पय-उल्लासो वित्थारिय-रायहंस-संतासो । मोहो व्व तत्थ मेहो समुन्नओ अत्थि नरनाहो ||१३२३।। पबल-पयाव-दवग्गी विपक्ख-महिहरकुलस्स दिप्पंतो । जेण जए विज्झविओ पगिह-तरवारि-धाराहिं ||१३२४|| जस्स ववसाय-साही पल्लविओ सव्वओ पयावेण । जस-पसरेणं कुसुमिओ फलिओ उण विउल-लच्छीए ||१३२५।। आरामिओ व्व आराम-वीरुहाओ पयाओ पालेइ । सो नीई-सारणी-पवहमाण-धम्मम्बु-पूरेण ।।१३२६।। तस्स नयरस व लच्छी धम्मस्स व सहयरी दया अस्थि । उल्लासिय-लोय-समग्ग-मंगला मंगलादेवी ।।१३२७।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सीलेण जीए रूवं विणएण पहुत्तणं समेण मई ।। दाणं पणएण विहूसिऊण विहिया गुणा सगुणा ||१३२८|| सोहग्गेण गणिज्जए गिरिसुया दासि व्व जीसे पुरो,
धूया नीरनिहिस्स धूलि-सरिसी ख्वेण लक्खिज्जए । लायनेण लहुत्तणं तणमिव प्पत्ता अणंगप्पिया,
सा केणावि कयाऽपरेण विहिणा सव्वोवमा-वज्जिया।।१३२९।। सो वसइ तीए चित्ते तस्स य चित्तम्मि वसइ सा देवी । रइ-मयणाण व तेसिं न विओगो होइ कइया वि ||१३३०।। पोलोमीए व सक्करस तस्स तीए समं रमंतस्स । रइ-सागरावगाढस्स कोइ कालो अइक्वंतो ||१३३१|| अह पुरिससीह-जीवो चुओ विमाणाओ वेजयंताओ । सावण-सीय-बीयाए महरिक्ख-गए मयंकम्मि ||१३३२।। मंगलदेवी-सरसीइ निच्च-विमलाइ कुविख-कमलम्मि । सुविसुद्धोभयपक्खो अवयरिओ रायहंसो व्व ||१३३३।। तम्मि समयम्मि भुवणत्तए वि जाओ खणं समुज्जोओ । दुक्खक्खएण सोक्खं च नारयाणं पि संपन्नं ||१३३४।। तीए च्चिय रयणीए महरिह-सिज्जा-गया सुह-पसुत्ता । नियइ चउदस-सुविणे सुमंगले मंगलादेवी ।।१३३५।। दंती उदग्गदंतो झरंत-भय-निज्रो धवलवन्नो । उत्तुंग-कुंभ-सिहरो केलासो जंगमो व्व गिरी ।।१३३६|| तसहो पीणक्खंधो धवलो चल-कणय-किंकिणीमालो । विलसंत-विज्जुलेहा-विराइओ सारओ व्व घणो ||१३३७।। सीहो ललंत-जीहो पिंगल-केसर-कडप्प-दिप्पंतो । उल्लालिय-नंगूलो सूरेसुब्भियपडाओ व्व ||१३३८।। देवी वि पउम-निलया पउम-मुही पउमपत्त-सम-नयणा । करिकर-पल्हत्थिय-कणयकलस-सलिलेहिं सिच्चंती ||१३३१।। दामं सुरपायव-पंचवन्न-कुसुमप्पवंच-चिंचईयं । परिमल-मिलंत-अलिउल-घण-वडले सक्वचावं व ।।१३४०।।
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सुमइनाह-चरियं
वयणं व अत्तणो हरिणनाहि-निम्मिय-कचोल-पत्तलयं । हरिणक-मंडलं कंति-पूर-परिपूरिय-दियंतं ||१३४१|| पसरंत-किरण-संदोह-दलिय-नीसेस-तिमिर-संभारं । दिवसब्भमं कुणंतं रयणीइ वि भाणुणो बिंबं ||१३४२|| पवण-पणुन्न-पडाया-पयलंत-भुओ तिलोयलच्छिं व । हक्वारंतो चल-कणिर-किंकिणी-कलरवेण धओ ||१३४३।। अंभोकुंभो अंभोय-भूसिओ सायकुंभ-संभूओ । अंभोनिहि-महणारंभ-संभवो अमय-कुंभो व्व ||१३४४|| थोउं जिण-गुण-निवहं मिलत-मत्तालि-जाल-मुहलेहिं । पउमेहं पवंचिय-चारु-वयण-विसरं व पउमसरं ॥१३४५।। विलसिर-अब्भंलिह-लहरि-मंडली-चुंबियंबराभोओ । उल्लासंतो सरयब्भ-विब्भमं खीर-नीरनिही ॥१३४६।। देवत्तणम्मि जं पुव्व-सेवियं सामिणा मणिविमाणं । तं चिय गुरुय-सिणेहेण आगयं वेजयंतं व ||१३४७|| किरण-कडप्प-पवंचिय-तियसिंद-सरासणो रयण-रासी । जिणमुह-ससि-सेवत्थं समागओ तारय-गणो व्व ॥१३४८।।
गहिऊण व तेयं तेयवंत-वत्थूण भासुरो दिहो । निभूमो जलणो सामिणीए वयणे पविसमाणो ||१३४१।। दहण इमे सुविणे पडिबुद्धा हरिस-निब्भरा देवी । पल्लंकं परिहरिउं संपत्ता राइणो पासे ||१३५०।। अमयं व उग्गिरंती परहुय-रव-पेसलेहिं वयणेहिं । मत्थय-कयंजलि-उडा कहेइ सुविणे नरवइस्स ||१३५१।। भणियं रन्ना
गओ व्व दाणाणुगओ, वसहो व्व धम्म-धुर-धरण-सहो, सीहो व्व सूरत्तण-लद्ध-लीहो, लच्छि व्व तेलोक्व-वल्लहो, कुसुमदामं व सुरासुरेहिं सिरुव्वूढ-सासणो, चंदो व्व कयाणंदो, सूरो व्व अपडिम-पयावपब्भरो, झओ व्व भुवण-भवण-भूसणो, पुन्नकुंभो व्व समग्ग-मंगलनिलओ, पउमसरं व्व संतावहारओ, सायरो व्व गुण-रयणायरो, विमाणं
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं व्व सुर-सेवणिज्जो, रयणरासि व्व महग्यो, जलणो व्व पडिवक्खपयंग-दहणो तुह पुत्तो भविस्सइ ।
देवीए देव-गुरु-चलणाणुभावेण ‘एवं होउ' त्ति भणंतीए बद्धो उत्तरिज्जंचले सउण-गंठी । गया निय-वासभवणं देवी । चलियासणा समागया बत्तीसा वि सुरिंदा पणया अणेहिं सामिणी थोउमाढत्तातं धन्ना सि सलक्खणा सि सहलो माणुस्स-जम्मो इमो,
तुब्भं चेव सलाहणिज्ज-चरिया तं चेव निस्संसयं । जीए वदृइ कुक्खि-सिप्पपुडए सव्वन्नु-मुत्तामणी,
नित्तासो विमलो तिलोय-कमला-वच्छत्थली-भूसणं ।।१३५२।। माए उद्धरियं तए जयमिणं संसार-काराहरा,
लोए मोह-महंधयार-दलणो दिल्लो तए दीवओ । अम्मो ते पय-पंकयाई नमिमो गब्भम्मि तित्थंकरो,
जीए सीह-किसोरओ व्व वसए कम्मेभ-विद्धंसणो ||१३५३।। इय थोउं जिण-जणणी तीए कहिऊण तह जिणुप्पत्तिं । रयण-निहाणेहिं समंतओ वि पूरंति जिण-गेहं ||१३५४|| तो सुरवइणो नंदीसरम्मि सासय-जिणिंद-पडिमाणं । काऊण महा-महिम निय-निय-ठाणेसु संपत्ता ।।१३५५।। गोसे मेह-नरिंदो अणेय-सामंत-मंति-परियरिओ । तारय-जुओ व्व चंदो अत्थाण-सहाए उवविहो ।।१३५६ ।। हक्वारिऊण सक्कार-पुव्वयं सुविणपाढए राया । पुच्छइ सुविणाण फलं विभाविउं ते वि साहति ।।१३५७।। अंगं सुविणं च सरं उप्पायं भोममंतरिक्खं च । वंजण-लक्खणमेव य अह-पयारं इह निमित्तं ||१३५८|| सुविणय-निमित्त-सत्थे सामन्जेणं निमित्त-निउणेहिं । सुविणा सुहासुह-फला कहिया बावत्तरी तत्थ ||१३५१।। तीसा य अप्पसत्था बायालीसा य उत्तमा तत्थ । बायालीसा मज्झे तीसा भणिया महासुविणा ||१३६०।। तेसिं मज्यो चउदस तित्थयराणं तहेव चक्वीणं । गब्भावयार-समए सुविणे पिच्छंति जणणीओ ||१३६१।।
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सुमइनाह-चरियं
तह वासुदेव-जणणीओ ताण मज्ो नियंति सत्तेव । बलदेव-मायरो पुण चउरो सुविणे पलोयंति ||१३६२।। मंडलिय-नरिदाणं चरमसरीराण तह य जंतूण | जणणीओ महा-सुविणं एक्वं वा दो व पेच्छंति ।।१३६३।। जं देवीए चउढ़स दिहाई इमाइं तेण जाणामो । सेसेहिं निमित्तेहिं य तित्थयरो तुह सुओ होही ||१३६४।। तो मेह-महीवइणा महंत-हरिसुल्लसंत-हियएण । संमाणिऊण सम्मं विसज्जिया ते गया स-गिहं ||१३६५।। सक्काएसेण सुरंगणाओ सेवंति मंगलादेवीं । वाउकुमार-वहुओ तीए पमज्जति वासहरं ||१३६६|| तं मेहकुमार-नियंबिणीओ गंधोदएण सिंचंति । उवुलच्छीओ वरिसंति तत्थ विविहं कुसुम-निवहं ।।१३६७।। दंसंति जोइसित्थीओ दप्पणं किन्नरीओ गायति । ण्हवण-विलेवण-पमुहं कुणंति वेमाणिय-वहुओ ||१३६८।। परचक्क-मारि-दुभिक्ख-रोग-पमुहा उवद्दवा तत्थ ।। देसम्मि समुवसंता रिद्धि-समिद्धा मही जाया ||१३६१।। गय-तुरय-रयण-कंचण-पयाण-पउणेहिं पत्थिव-सएहिं । तित्थयर-पभावेणं पणमिज्जइ' मेहराओ वि ||१३७०।। तीए लायन्न-सिरी विसेसओ वुडिमुवगया तइया । गोसे मइ व्व कइणो गिम्हे वेल व्व जलनिहिणो ||१३७१।। सा सहइ दिणयरेणेव तेण गब्भेण तम्मि समयम्मि । सरयम्मि पंडुरत्तं संपत्ता मेहमाल व्व ||१३७२| अम्हाण थन्नपाई होही जिणपुंगवो त्ति गरुएण' । हरिसेण व संपत्ता पओहरा तीए पीणत्तं ।।१३७३।। सविसेस-वियास-मणहराइं नयणाइं तीए जायाइं ।
वयण-कमलं जिणिंदस्स दहुमुक्कंठियाइं व ||१३७४|| इओ य तनयरि-वत्थव्वओ चंदो वाणिओ दोहिं भज्जाहिं समं दविणज्जणत्थं देसंतरं गओ । तस्स एक्वाए भज्जाए पुत्तो जाओ । दोहिं
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
पि भज्जाहिं निव्विसेसं वुद्धिं नीओ । सो चंदो दव्वमुववज्जिऊण नियत्तो देसंतराओ आगच्छंतो दुव्वारत्तणओ दिव्व दुव्विलसियरस मओ मग्गे । 'पुत्तो वित्तं च मज्झ संति' भणंती पुत्त- मायाए सह बीया कलहं काउं पवत्ता । कलहंतीओ अ पत्ताओ अउज्झा-नयरिं, दुक्काओ' स-कुलपरकुलेसुं, न छिन्नो विवाओ, गयाओ धम्माहिगरणं, तत्थ वि नं छिन्नो, उवडियाओ रायाणं, पुच्छियाओ रन्ना विवाय-कारणं ।
-
विहिय - माया विमायाए भणियं- 'एसो विवाओ कहिओ सव्वत्थ, केणादि न छिन्नो, को वा परवसणे दुक्खिओ ? तुमं पुण परदुक्खदुक्खियं धम्मरायं दहूण उवद्वियम्हि । मम उयर संभवो, सरिसो य मे, पालिओ य मए, वित्तं पि मे इमं ।' ति ।
पुत्तमायाए भणियं - 'पुत्तो य एस मे, धणं च मे एसा सवत्ता अणवच्चा लोह - तरलिया कलहं करेइ । जं मए सरलमणाए पुत्तं पालयंती न वारिया, तं संपयं पायंती (?) सा वि । आउसीयस्सयस्स (?) धाविय' ति ।
जंपियं मेहराएण - 'दो वि एयाओ एग - विंट - खुडियाओ व्व सरिसरुवाओ दीसंति । जइ पुण वि सरिसत्तणं इमाण होज्ज ता जीसे सरिस हवेज्ज दारओ तीसे पुत्तो अणुमिणेज्ज । एसो य दोण्हं पि सरिसो, बालत्तणओ वोत्तुं पि न तरह, किं पुण एसा माया वि एसा विमायत्ति जाणिओ (जाणिज्ज) ?
एवं जंपंतस्स रन्नो दुड- निन्नय-पावभीरुणो जाओ मज्झन्नसमओ ।
भणियं मंतीहि - देव ! वज्जगंठि व्व दुब्भेओ एस विवाओ । छहिं पि मासेहिं न याणिओ अम्हेहिं । ता इण्हिं कीरंतु निच्च - किच्चाई, समयंतरे वियारणिज्जो इमो ।
'एवं होउ' त्ति भणतेण रन्ना विसज्जिया परिसा, कयं करणिज्जं, गओ अंतेउरं राया, पुट्ठो मंगलादेवीए - 'सामि ! किं अज्ज मज्झन्ननिच्चकिच्चाणं जाओ अईक्कमो ?' त्ति । कहिओ रन्ना विवाय- वुत्तंतो गब्भाणुभाव- समुल्लसंत-समईए भणियं देवीए - 'इत्थीणं विवाओ इत्थीणं चेव वियारिउं जुज्झइ त्ति । अहं विवायच्छेयं करिरसं ।'
रन्ना सविम्हण देवीए समं गंतूण सहाए सद्दावियाओ ताओ । पुव्वं
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सुमइनाह-चरियं
૨૨૧ व पुढाओ सव्वं पि । देवीए वि विवाय-निलयं चिंतिऊण भणियं जहा'मम गब्भे तिलाण-सणाहो अत्थि तित्थयरो । सो य जाओ एयस्स असोय-तरुणो तले एयं विवायं छिंदिस्सइ । ता तुब्भे दुवे वि एत्तियं कालं पडिक्खह ।' विमायाए भणियं- ‘एवं होउं' त्ति । मायाए पुण वुत्तं'तुमं सव्वन्नु-माय त्ति अज्जसु(?अज्जेव) करेसु निलयं, नाहं एत्तियं कालं सवत्ति-आयत्तं पुत्तं वित्तं च करिस्सं ।' विभाविऊण भणियं देवीए'कालक्खेवाऽसहत्तणेण नूणं इमीए चेव एसो प्रत्तो । जओ परसंतीए पुत्ते वित्ते अ उभयायत्ते कीरमाणे किं मे विणस्सइ ति काल-हरणं सहेइ विमाया । जणणी पुण पुत्तं वित्तं च उभयायत्तं कीरमाणं सोढुमक्खमा कहं काल-हरणं सहेइ ? ता भद्दे ! जं तुमं काल-हरणं न सहसे, तं नायं तुह चेव पुत्तो इमो ति गिण्हसु पुत्तं ।
इयराए लालिओ पालिओ वि पुत्तो इमो तुह च्चेव । जह पोसिओ वि काईइ कोइलो कोइला-सुओ' ||१३७५।। गब्भ-पभावेणं देवीए विवाय-निब्लए विहिए । नरवइ-पमुहो लोओ सव्वो वि हु विम्हयं पत्तो ।।१३७६।। दारय-माय-विमायाओ कमलिणी-कुमुइणीओ व पभायाए,
वियसिय मिलाण-मुहकमल-कइरवाओ गयाओ गिहं । गब्भो य लहुकरणुज्जओ व्व देवीइ पीडमकुणंतो,
___ कंदो व्व धरणि-मज्झे कमेण वुद्धिं समणुपत्तो ||१३७७।। मासेसु नवसु अद्धहमेसु तह वासरेसु वइसाहे । सेयाए अहमीए महरिक्ख-गए मयंकम्मि ||१३७८।। जच्च-सुवण्ण-सवण्णं कुंचकं पसवए कयाणंदं । पुव्व-दिस व्व दिणिंदं सुय-रयणं मंगलादेवी ।।१३७१।। खणमुज्जोओ तिजए जाओ सुक्खं पि नारयाणं पि । अहवा सुपुरिस-जम्मो कस्स न हरिसावहो होइ ।।१३८०।। अहलोआओ चलियासणाओ जाणिय-जिणिंद-जम्माओ । अह-दिसाकुमरीओ जिण-जम्महरम्मि पत्ताओ ||१३८१।। भोगंकरा भोगवई सुभोगा भोगमालिणी । तोयधारा विचित्ता य पुप्फमाला अणिंदिया ||१३८२।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं ति-पयाहिऊण जिणं जिणिंद-जणणिं च वंदिऊण तहा । एवं भणंति 'जय-दीव-दाइए देवि ! तुज्डा नमो ||१३८३।। अहलोयाओ वयमागयाओ जिण-जम्म-महिम-करणत्थं । ता न तए भेयव्वं' ति भणिय विरयंति सूइहरं ।।१३८४।। मणिथंभ-सहस्स-जुयं संवय-वाउणा तण-रयाई ।
आजोयणमवहरियं गायंतीओ य चिटंति ||१३८५।। एवं मेरु-सिर-हियाओ उड्डलोय-वासिणीओ अहमेहंकरा मेहवई सुमेहा मेहमालिणी ।
सुवच्छा वच्छमित्ता य वारिसेणा बलाहिया ||१३८६।। गंधोदएण समंतओ महिं सिंचिऊण पंचवण्ण-कुसुम-वुद्धिं कुणंति । एवं पुव्व-रुयग-वत्थव्वाओ अह
नंदुत्तरा तहा नंदा आणंदा नंदिवद्धणा । विजया वेजयंती य जयंती अपराजिया ||१३८७।। एयाओ आयंसहत्थाओ चिटंति । एवं दाहिण-ख्यग-वत्थव्वाओ अह
समाहारा सुप्पदिन्ना सुप्पबुद्धा जसोहरा ।
लच्छीवई सेसवई चित्तगुत्ता वसुंधरा ।।१३७८।। एआओ भिंगारकराओ चिट्ठति । एवं पच्छिम-ख्यग-वत्थव्वाओ अट्ठइलादेवी सुरादेवी पुहवी पउमावई ।
एगनासा नवमिया भद्दा सिया य अहमा ||१३८ ।। एयाओ तालियंट-हत्थाओ चिट्ठति । एवं उत्तर-रूयग-वत्थव्वाओ अह
अलंबुसा मिस्सकेसी पंडरीका य वारुणी । हासा सव्वप्पहा चेव हिरी सिरी य अहमा ||१३१०।। एयाओ चामर-कराओ चिट्ठति । एवं विदिसि-रुयग-वत्थव्वाओ चत्तारि
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सुमइनाह-चरियं
चित्ता य चित्तकणगा सतेरा य सोयामणी । एयाओ दीवय-हत्थाओ चिट्ठति । एवं मज्झिम-ख्यग-वत्थव्वाओ चत्तारि -
रूवा रूवंसिया चेव सरुवा ख्यगावई ||१३११।। एयाओ चउरंगुल-वज्जं नाहि-नालं कप्पिऊण खणित्ता वियरगं तत्थ तं खिवंति । तं च रयणेहि पूरंति । तत्थ हरियालियाए पीढं बंधंति । तिदिसं कयलीहरए विउव्वंति । ताण मज्ो चाउसालए विउव्वंति । ताणं च मज्झे सीहासणे तिल्नि विउव्वंति | तित्थयरं करयलेणं तित्थयर-मायरं च बाहाहिं गिहिऊण दाहिणिल्ल-कयलीहरय-चाउसाले गंतूण सीहासणे निवे संति । सयपाग-सहस्सपाग-तेल्ले हिं' अब्भंगंति, सुरहिणा उन्वट्टणेण उव्वदृति । दो वि तहेव घेत्तूण पुव्व-कयलीहर-चाउसाले गंतूण 'सीहासणे निवेति । गंधोदएहिं पहाविंति । सव्वालंकारविभूसिए काऊण दो वि तहेव उत्तरिल्ल-कयलीहर-चाउसाले नेऊण सीहासणे निवेसंति । हिमवंत-गोसीस-चंदण-कठेहिं अग्गिहोमं काऊणं दोण्हं पि रक्खा-पोलियाओ बंधंति, दवे रयण-गोलए गहिऊण 'पव्वयाऊ होसु ।' ति भणंतीओ जिणस्स कलमूलम्मि खोटंति । दो वि तहेव गहिऊण जम्मण-भवणे से ज्जाए निसियाविंति || इओ य
सक्छो सिंहासण-कंप-संपउत्तोहि-मुणिय-जिण-जम्मो । गंतूण जिणाभिमुहं सत्तह-पयाइं हिहमणो ||१३१२|| पंचंग-पणामं विरइऊण सक्वत्थयं पढइ तत्तो । 'सिंहासणम्मि ठाउं आणावइ णेगमेसि-सुरं ||१३१३|| जहा
जंबुद्दीवे भरह- मज्झिम-खंडे अओज्झाए पुरीए मेह-रण्णो मंगलादेवीए पुत्तो पंचमो तित्थयरो समुप्पनो । तस्स जम्म-महिमकरणत्थं सव्वे देवे सपरिवारे हक्वारेसु । गंतूण तेण सुहम्माए सहाए अप्फालिया सुघोस-घंटा । तीए य समं एगूणबत्तीस-लक्ख-विमाणेसु घंटाओ महर-गाइणीइ व्व समं पक्खगाइणीओ रणिउं पवत्ताओ । तासिं च पडिसद्देहिं सद्दमओ व्व जाओ जीवलोओ । तेण महया सद्देण उग्घुहो सक्काएसो, मिलिया सव्वे सन्विड्डीए सुरा । सक्को वि पालयं नाम
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं आभिओगि आणवेइ । अप्पमाण-मणि-दिप्पमाणं विमाणं निम्मवेहि त्ति । सो वि चक्खुमंतं व गवक्खेहिं, बाहुमंतं व कणय-ज्डाएहिं, दंतुरं व रयण-वलभीहिं, रोमंचियं व कंचण-कलसेहिं, लक्ख-जोयण-वित्थारं पंच-जोयण-सय-तुंगं तं विउव्विऊण सक्कस्स विन्नवेइ । सक्को वि समं अहहिं अग्गम हिसीहिं चउरासीएहिं सामाणिय-सहस्से हिं, तेसिं च चउगुणेहिं अंगरक्खेहि, तेत्तीसाए तायत्तीसेहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अणियाहिवइहिं, सत्तहिं अणिएहिं, चउहिं लोगपाले हिं परिवुडो तं विमाणमारुहइ । अन्ले सिं च देवाणं बहहिं विमाणेहिं परिवारियं तं विमाणमाणंदं नंदी-निनाय-पूरियं बरं सोहम्मकप्पस्स मज्झेण उत्तराभिमुहमुत्तरंतं, असंखे दीव-समुद्दे समुल्लंघिऊण पत्तं नंदीसर-दीवं । तत्थ य दाहिण-पुव्वे रइकर-वर-पव्वयम्मि सुरवइणा सत्थं व सुमइणा तं संखित्तं झत्ति निम्मवियं पत्तं अउज्झाए, सक्को वि तेण विमाणेण दिणमणि व्व मेरुं जिण-जम्म-भवणं पयाहिणीकरेइ । ईसाण-कोणे ठविऊण तं गओ भयवओ समीवं, पणमिऊण तं थोउं पवत्तोकारुण्णामय-पूर-पूरिय-मणो मुत्तूण सव्वुत्तमं,
सग्गं उद्धरिउं जणं भव-महा-कूवार-मज्जंतयं । ओइलो तुममित्थ जं अवगयं तं अप्प-कज्जुज्जम,
वज्जित्ता परकज्ज-सज्ज-हियया जायंति संतोजणा ।। १३१४|| मन्ने चक्खु-सहस्स-मज्झ सहलं जं सव्व-तेयस्सिरी,
संकेयावसहं सहाव-सुहयं रूवं निरुवेमि ते । निस्सीमं पुण पव्वणींद-किरणुक्वेराभिरामं गुण
ग्गामं थोउमणो महामि भयवं ! जीहा-सहरसं मुहे ||१३१५|| अहं खु सोहम्मवई सुरिंदो पुत्तरस ते जम्म-महूसवत्थं समागओ, ता तुमए न देवि ! भयं विहेयम्वमिमं भणंतो नमसए देविमिमीइ देइ ओसोअणिं, तीइ समीव-देसे 'मिल्हेइ सामि-प्पडिरूवयं च, सो पंचरूवाई सयं करेइ ।
एक्वेण गिण्हेइ जिणं करेहिं अलेण पिहम्मि वहेइ छत्तं । पासेसु दोहिं चमरे धरेइ परेण वज्ज पुरओ करेइ ।।१३१६।। ता तूर-संघाय-निनाय-रुद्ध
नहंगणो वग्गिर-देव-वग्गो ।
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सुमनाह - चरियं
नच्चंत देवी वि सुरो सुरिंदो
सुमेरु- सिंगम्मि खणेण पत्तो ॥ १३१७||
चूलाइ दाहिण - दिसहियाइ अइपंडु - कंबलसिलाए । सिंहासणे निसन्नो उच्छंगे जिणवरं काउं ||१३९८||
अह महा-घोसा-घंटा-पडिबोहिएहिं अट्ठावीस - विमाण- लक्खवासितियसेहिं परिवुडो सूलपाणी वसह-वाहणी पुप्फगाभिओगिय - कए पुप्फग विमाणे आरूढो । ईसाण कप्परस मज्झेण दक्खिणाभिमुहमुत्तरंतो नंदीसर - दीवे उत्तर-पुव्वे रइकर-पव्वए संखिविय विमाणो पत्तो मेरुं ।
एवं सेसा वि तत्थ पत्ता, एवं पुण नाणत्तं सोहम्म- सणकुमारI नेगमेसी बंभलोय - महासुक्क-पाणय- इंदाणं सुघोसा घंटा पायत्ताणीयाहिवई उत्तरिल्ला निज्जाणभूमी दाहिण - पुरत्थिमे रइकरपव्वए । ईसाण - माहिंद-लंतग सहस्सार- अच्चुय- इंदाणं महाघोसा घंटा लहुपरक्कमो पायत्ताणीयाहिवई । दक्खिणील्ले निज्जाण - मग्गे उत्तरपुरत्थिमे रइकर - पव्वए ।
बत्तीसहावीसा बारस अह चउरो सयसहस्सा । पन्ना चत्तालीसा छत्त सहस्सा सहस्सारे ||१३११|| आणय-पाणय- कप्पे सयाइं चउ आरणऽच्चुए तिनि । एसा विमाण - संखा सोहम्माईसु विनेया || १४००|| सामाणिय- संखा इमा
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चउरासीइ असीई बावत्तरि सत्तरी य सही य । पन्ना चत्तालीसा तीसा वीसा दससहस्सा || १४०१ || एएसिं चउगुणा आयरक्खा विमाणकारिणो इमे ।
पालय पुप्फय सुमणस सिरिवच्छे चेव नंदियावत्ते । कामगमे पीइगमे मणोरमे सव्वओभद्दे || १४०२ ||
एवं चमराईया वीसं भवणवई इंदा मेरुम्मि संपत्ता | नाणत्तं पुण इमं । असुर्रिदस्स चमरस्स चमरचंचा रायहाणी, चउसट्ठी सामाणियसहस्सा, दुमो पायत्ताणीयाहिवई विमा | णमा ]णं पन्नास-जोयण - सहस्साइं | एवं असुरिंदस्स बलिस्स बलिचंचा रायहाणी । सट्ठी सामाणियसहस्सा । महादुमो पायत्ताणीयाहिवई पुव्वं व विमाण माणं । एवं
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं नागिंदस्स धरणस्स छ सामाणिय-सहस्सा, विमाणमाणं पंचवीस - जोयण-सहस्साई । एवं असुरिंद-वज्जाणं भवणवासि-इंदाणं नवरं दाहिणिल्लाणं असुराणं ओघसरा घंटा | उत्तरिल्लाणं महोघसरा | नागाणं मेघसरा । सुवन्नाणं हंससरा | विज्जूणं कुंचसरा । अग्गीणं मंजुसरा । दिसाणं मंजुघोसा । उदहीणं सूसरा । दीवाणं महुरस्सरा । वाऊणं नंदिसरा | थणियाणं नंदिघोसा |
चउसही सही खलु छच्च छच्च सहस्सा उ असुर-वज्जाणं । सामाणिया उ एए चउग्गुणा आयरक्खाओ ||१४०३।। पाहिणिल्लाणं पायत्ताणीयाहिवई भद्दसेणो । उत्तरिल्लाणं दक्खो । वाणमंतरा जोइसिया वि एवं चेव, नवरं चत्तारि सामाणिय-सहस्सा, विमाणं सहस्स जोयणाई । घंटा दाहिणाणं मंजुसरा, उत्तराणं मंजुघोसा । चंदाइच्च-पमुहाणं जोइसियाणं सुरसर-निग्घोसाओ घंटाओ । एवं सव्वे मेरुम्मि इंति । अच्चु इंदो आभिओगिए आणवेइ- जिण-जम्ममज्जणोवगरणाई आणेह । ते वि 'सोवनियाणं रुप्पमयाणं रयणमयाणं सुवन-रुप्पमयाणं सुवन-रयणमयाणं रुप्प-रयणमयाणं भोमाणं कलसाणं भिंगाराणं दप्पणाणं रयणकरंडगाणं थालाणं पाईणं सुप्पइहाणं पुप्फचंगेरीणं पत्तेयं पत्तेयं अहुत्तर-सहरसं विउव्वंति । कलसे भिंगारे य घेत्तूण खीरसमुदं वच्चंति । तत्थ खीरोयं उप्पलाईणि य गिण्हंति । पुक्खरोयस्स मागहाईणं तित्थाणं गंगाईणं महानईणं पउमाईणं च दहाणं उदयं मट्टियं पउमाईणि गिण्हंति । चुल्लहिमवंत-पमुहाणं कुलपव्वयाणं नंदणाईणं च वणाणं सव्वोसहि-पुप्फगंध-वर-सिद्धत्थए गिण्हति' मेरुमत्थयमूविंति । अह अच्चइंदो दसहिं सामाणिय-सहस्से हिं तेत्तीसाए तायत्तीसेहिं चउहिं लोगपालेहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं
अणियाहिवईहिं चत्तालीसाए आयरक्ख-देव-सहस्सेहिं परिवुडो परिमलमिलं त-मत्तालि-जाल-परिगय-पारियाय-पमुह-सुरम-कुसुमंजलिं मोत्तूण चंदण-चच्चिएहिं मंदारमालुम्मालिएहिं सुरहि-वारि-पडिपुने हिं पुव्ववनिय-कलसे हिं भिंगारेहिं य तित्थयरं अभिसिंचइ ।
तम्मि अभिसेय-समए ठिया सुरवरा,
के वि भिंगार-गुरुकलस-दप्पण-करा |
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सुमनाह-चरियं
के वि उक्खित्त-लोलंत - सिय- चामरा,
के वि मणिघंटिया-धूवभायण-धरा || १४०४||
के वि गायति गीयाइं किन्नर-सरा, के वि वाइंति तूराई साडंबरा ।
के वि नच्चंत कंपंत सुरगिरि सिरा,
के वि जिण उवरि धारंति छत्तं वरं,
के वि कित्तंति जिण-गुण-गणं गुरु-गिरा || १४०५ ||
के वि वरिसंति मणि-कणय - कुसुमुक्करं ।
के वि चिद्वंति कुसुमंजली - हत्थया,
के वि हवणं वदति नय - मत्थया || १४०६||
के वि दीसंति तुरय व्व हेसंतया,
के वि मयमत्त - हत्थि व्व गज्जंतया ।
के वि सीह व्व नायं वि मुंचंतया,
के वि विज्जु व्व उप्पईय - निवयंतया || १४०७|| अह न्हवण- खीर- नीरच्छडाओ छज्जंति उच्छंलतीओ । सीसाओ सामिणो अंकुर व्व नव-सुकय-कंदस्स || १४०८|| हवण - जलं वित्थरियं सिरम्मि पहुणो सियायवत्त - सिरिं ॥ भालयले उण चंदण- नलाडिया-विब्भमं वहइ || १४०९ || मुत्तालंकिय-ताडंक - संकमं केसु कुणइ कन्नाणं । कप्पूर - पत्त-वल्ली - तुल्लं रेहइ कवोलेसु || १४१०|| अहरेसु धरइ पसरत - दंत-किरणुक्करस्स सोहग्गं । कंठी व कंठदेसे हरेइ हारावलि -विलासं ||१४११ || उव्वहइ बाहु - सिहरे हरियंदण - बहल - वासय-समिद्धिं । बाहु - उअर - पहि-भाएसु सहइ सिय-चोलयच्छायं ||१४१२ || एवं अच्चुय - नाहेण निम्मिए जिणवरस्स अभिसेए । अप्पा पवित्तिओ जं पडिहासइ तं महच्छरियं ||१४१३ || गायाई गंधकासाईएहि लूहइ जिणस्स सुरनाहो । हरियंदणेण लिंपइ अच्चइ दिव्वेहिं कुसुमेहिं ||१४१४ ||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं मोत्तूण कुसुम-पयरं पुरओ उग्गाहिऊण धूयं च । चिहइ कयंजली सो सत्तह-पयाइ ओसरिउं ।।१४१५|| इय सेसा वि सुरिंदा कुणंति सामिस्स मज्जणाईयं । ईसाणिंदो सक्को व्व विरयए पंच-रुवाई ||१४१६।। एक्वेण जिणं अंके घेत्तुं सीहासणे निसन्नो सो । अवरेण वहइ छत्ते दोहिं पुण चामरे धरइ ।।१४१७।। अल्लेण सूलपाणी पुरओ चिहइ तओ कुणइ सक्को । वसहे फलिह-मणिमए चत्तारि चउद्दिसं पहुणो ||१४१८।। तेसिं सिंगेहिं तो समुच्छलतीओ सलिल-धाराओ । गयणे मिलिउं एगत्थ सामि-सीसम्मि निवडंति ||१४११।। ईय अइ-विच्छडेणं एहविऊण जिणं विलिंपए सक्को । गोसीस-चंदणेणं रयणाभरणेहिं भूसेइ ।।१४२०।। दिव्व-कुसुमेहिं अच्चइ तो पहुणो रुप्प-तंदुलेहिं पुरो । आलिहइ मंडले अह तयणु आरत्तियं कुणइ ||१४२१।। बाल-प्रवालारुण-पाद-पातैः स्थलारविंदानि वितन्वतीभिः । सिंजान-मंजीरक-लक्षणेन संगीतमुच्चैरुपचिन्वतीभिः ।।१४२२|| हेला-समुत्क्षिप्त-पदापदेशोल्लसन्मनोजदिप-पुप्कराभिः । काञ्चीकलाप-क्वणित-च्छलेन प्रबोधितानङ्ग-महाभटाभिः ।। १४२३।। लावण्य-पीयूष-निवास-वापी प्रकाशयंतीभिरगाधनाभीम् । अनङ्ग-मातङ्ग-मदाम्बु-धाराभिराम-रोमावलि-मालिनीभिः ।।१४२४|| कंदर्प-साम्राज्य-पदाभिषेक-कुंभानुकारि-स्तनमण्डलाभिः । नानाङ्गहार-भ्रमि-घूर्णमान-हारावली-राजदुरस्थलाभिः ।।१४२५|| सलिल-विक्षिप्त-कराग्र-चंचलख-प्रभा-पल्लवितां स्वराभिः । संपूर्ण-चन्द्र-प्रतिमान नाभिः निसर्ग-शोणाधर-पल्लवाभिः ।।१४२६।। विवृत्त-मीन-प्रमदा-समान-कटाक्ष-शुभ्रीकृत-दिग्मुखाभिः ।। प्रवृत्त-पुष्पायुध-चाप-चारु-भूवल्लरी-ताण्डव-डम्बराभिः ।। १४२७|| • कपोल-पाली-परिघट्टमान-माणिक्य-रत्नाञ्चित-कुण्डलाभिः । आमुक्त-मुक्ताफल-जाल-शोभा-रवेदोदबिन्दु-स्फुरितालिकाभिः ॥१४२८।।
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सुमइनाह-चरियं
मुखारविन्दानुग-भृंगमाला-संपन्न - लोलालक-मालिकाभिः । परिश्रमावेश- विशीर्ण-बंध- धम्मिल्ल" - माल्यार्चित-कुट्टिमाभिः || १४२१|| आरात्रिकोत्तारणमादधाने शक्रे पुरस्ताज्जिनपुङ्गवस्य । प्रमोदिताखण्डल- मण्डलास्यं लास्यं वितेने सुरसुंदरीभिः || १४३०|| नमइ जिणिदं सक्को तत्तो रुवाई पंच काऊणं । मेरुनयणक्कमेणं जम्मण-भवणम्मि आइ || १४३१|| पडिरूवं संहरिउं हरिउं ओसोयणिं च जणणीए । पासम्मि मेल्लइ " जिणं, तरस सीसम्मि वत्थ- जुयं ||१४३२|| मणिकुंडल - जुयलं तह ठवइ वियाणे पलंबमाणं व । सिरिदामगंडमेगं नाणाविह रयण - दिप्पंतं ||१४३३||
-
दिहि-विणोय-निमित्तं पहुणी अह सुरवई भाइ धणयं मणि-कणय-हिरन्नाणं कोडीओ ठवसु बत्तीसं ||१४३४ || तह नंदासण- भद्दासणाई जम्मणहरम्मि बत्तीसं । अन्नं पि जं' मणोण्णं वत्थाई ठवसु तं सव्वं ||१४३५|| सो तं जंभग- देवेहिं कारवित्ता कहेइ सक्कस्स । सक्को वि आभिओगिय- देवे एवं समाइसइ || १४३६|| उग्घोसह एयं - 'देवा देवीओ सुणह सव्वेवि । तित्थयरस्स भयवओ तित्थंकर- माउयाए वा || १४३७ ।। असुहं मणं करिस्सइ जो अज्जग-मंजरि व्व तस्स सिरं । फुट्टिहइ सत्तहा' ते वि तं पयत्तेण घोसंति || १४३८|| न पियइ थणं जिणिंदो छुहिओ तिसिओ अ निययमंगुडं । पक्खिवइ मुहे तम्मि यसको संकामए अमयं ||१४३१ || जिण मंदिराओ सक्को सेसा उण मंदराओ देविंदा | नंदीसरम्मि पत्ता कुणंति सासय-पडिम- पूयं ||१४४०|| सक्को पुव्वे अंजणगिरिम्मि अह उत्तरम्मि ईसाणो । चमरो य दाहिणिल्ले बली पुणो पच्छिमल्लमि || १४४१ || तेसिं च लोगपाला चउरो चउरो कुणंति जिण-महिमं । अंजणगिरीण चउदिस-ठिएसु सोलस- दहिमुहेसु || १४४२||
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं माणिय- जोइस - भवणवासि वंतरवई सपरिवारा इय जिण-महिमं काउं सव्वे वच्चंति स - द्वाणं ||१४४३|| जाए पहाय - समए मेह- नरिंदेण नियय-नयरीए । नच्चंत - नारि-नियरं वदावणयं कयं रम्मं ||१४४४ || जं गब्भ-गए नाहे जणणीए सोहणा मई जाया । तेण सुमइ त्ति नामं पइद्वियं सामिणो पिउणा || १४४५ ||
वारं वारं बालं पेच्छंतो मेह नरवइ नाहं । मन्नइ अमय - महद्दह - निमज्जमाणं व अप्पाणं ||१४४६ ॥
राया कयाइ कंठे कयाइ हियए कयाइ उच्छंगे । सीसे कयाइ धारइ महग्घ - माणिक्कमिव सामि || १४४७|| पहुणो सुरंगणाओ धाविउं कंति-सलिल-वावीओ । सक्क- गिराए पासं देहच्छाय व्व न मुयंति || १४४८ || अंकाओ उत्तरिऊण धाविओ पिंडधाविरिं धाविं ( ? ) | खेएइ निब्भओ सो सीहिं केसरि-किसोरु व्व || १४४९|| कीलाए धावमाणस्स सामिणो अग्गओ सुर- कुमारा । धावंति वलिय-गीवा करि-कलहस्सेव पडिकारा || १४५० ।।
लीलाए पाडिए तेसु भणंतेसु रक्ख रक्खति ।
नर - कुंजरो सकरुणो सिसू वि सदया सया वि जिणा || १४५१ || दप्पण-गय-पडिबिंबं रय-मल-पासेय रोय रहियं पि । सुरहित्तणमवहंतं कहं पहु-देहस्स होइ समं ।। १४५२ || पहुणो नीरायमणस्स परिचयं पाविउं व संजायं । गो-खीर- हार-धवलं रुहिरं मंसं च देहत्थं ||१४५३ ||
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आहारो नीहारो य मंस चक्खूण जं अपच्चक्खो । कित्तेमि कित्तियं तं पहुणी लोउत्तरं चरियं ||१४५४|| पहुणो नीसास - समीरणेण सुरहीकयम्मि गयणयले । तियस तरु- कुसुम - परिमल-भंतीए भमंति भमर - गणा || १४५५||
सामी सिसुत्तणं लंघिऊण सूरो पहाय-समयं व । विप्फुरिय- फार तेयं कमेण तरुणत्तणं पत्तो || १४५६ ||
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सुमइनाह-चरियं
ति-धणुस्सय-तुंग-तणू पीणक्खंधो पलंब-भुयसाहो । सोहइ भुवण-वणम्मि जंगमो कप्परक्खो व्व ||१४५७।। हिययाओ निच्छूढो तत्थ पवेसं पुणो वि पत्थंतो । रागो सेवं कुणइ व्व सामिणो चलण-तल-लग्गो ।।१४५८।। दस-दिस-पसरिय-मोहंधयार-हरणुज्जयरस जय-पहुणो । उम्मुह-पहा पय-नहा दिप्पंति दसप्पईव व्व ||१४५१।। दसविह-जइधम्म-सिरीण विब्भमायंस-विब्भमा पहुणो । अरुणंगुलि-विद्दुम-हत्थएसु रेहति चलण-नहा ।।१४६०।। अइ-दुद्धरमुद्धरियं जइ-सावय-धम्म-धर-दुगं पहुणो । अवइल्ला करुणाए कुम्म व्व समुण्णया चलणा ||१४६१|| सामिस्स ऊरुदंडा रसणा-मणि-किरण-तोरण-सणाहा | सिद्धि-नयरी-दुवारे रंभा-खंभ व्व रेहति ।।१४६२।। रेहइ पहुणो नाही कारुन-सुहारसस्स वावि व्व | दुइह-कम्मगिरि-चूरणम्मि वजं व तणु-मज्झा ।।१४६३।। कंचणसिला-सरिच्छे छज्जइ वच्छत्थलम्मि सिरिवच्छो । पहुणो केवललच्छी-निहिणो मुद्दा-निवेसो व्व ||१४६४।। तस्स य रक्खा-भूयग व्व पाणि-फण-दिप्पमाण-नह-मणिणो । दुग्गइ-दुग-पुर-परिहा सरला रेहंति भूय-दंडा ||१४६५।। पहणो नाणोअहिणो कंठो कंबो व्व गहिर-निग्घोसो । विद्दुम-मणि व्व अहरो सहइ मुहं चंद-बिंबं व ||१४६६।। भमुहाओ तस्सेव य सहति सेवाल-वल्लरीओ व्व । नयणाइं पंकयाइं व नासा-नालग्ग-लग्गाइं ||१४६७|| पहुणो सवणा सिरी-सरसईण हिंदोलय व्व सोहंति । वयण-कमलावलंबिर-रोलंब-विडंबिणो विहुरा ।।१४६८।। पहुणो तणु-कंति-तरंगिणीइ विलसंतया मयच्छीण । छज्जति मच्छ-रिंछोलि-सच्छहा अच्छि-विच्छोहा ||१४६९।। पिउणो उवरोहेणं परिणेइ पहू नरिंद-कलाओ । जेण जणयाण आणा अलंघणिज्जा जिणाणं पि ||१४७०।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं भोग-फलं निय-कम्मं खविउं सामी रमेइ ताहि समं । मूलाओ वि तित्थयरा कम्म-च्छेउज्जया जम्हा ||१४७१।। दससु गएसुं जम्माओ पुव्व-लक्खेसु मेह-राएण | अब्भत्थिऊण गाढं रज्जम्मि निवेसिओं सामी ।।१४७२।। गुरु-पय-मूले गहिउं मेह-नरिंदो सयं समण-दिक्खं । कय-तिव्व-तवच्चरणो निय-कज्ज-पसाहओ जाओ ||१४७३।। रज्जे ठियस्स पहुणो जं पणया पत्थिवा न तं चोज्जं । जं तस्स किंकरा बालभावओ वासवा सव्वे ||१४७४।। भमुहा वि न कस्सइ उवरि कोववसओ चडाविया पहुणो । चाव-चडावण-वत्ता वि केरिसी तस्स रज्जम्मि ||१४७५।। पहुणो रज्जे मोहं किरणं चिय वसणमंबरं चेव । सोयं सुइत्तणं चिय लोहं धाउं चिय भणंति ||१४७६।। मुणिणो चेव समरया च्छित्ताई चिय अणीइजुत्ताइ । सिद्धंतो चिय समओ पहुम्मि रज्जं कुणंतम्मि ।।१४७७।। परचक्क-भय-विमुक्वा विगयायंका अदिह-दुब्भिक्खा ॥ संपत्त-सयल-सुक्खा पहु-रज्जे सुत्थिया लोया ||१४७८।। किंतु पहुणो पयावेण साहिए सयल-महियले भिच्चा । अणपाविय-सामि-पसाय-निक्कया बहु किलम्मति ||१४७१।। एगूणतीस लक्खा पुव्वाण तहा दुवालसंगाई । अइवाहियाइं पहुणा सुहेण रज्जं कुणंतेण ||१४८०।। गब्भाओ च्चिय नाणत्तएण जुत्तो जिणो सयं बुद्धो । संसार-सरूवमिणं मणम्मि परिभावए एवं ||१४८१।। संसारे विसय-सुहं विसमीहिय-भोयणं व मुह-महुरं । परिणाम-दारुणं बुज्झिाऊण उज्झइ न को मइमं ? ||१४८२।। चुलसीइ जोणि-लक्खेसु संसरंताण एत्थ जीवाणं । मणुयत्तं दुलहं उसरम्मि सुस्साउ-सलिलं व ||१४८३।। लढूण वि मणुयत्तं मूढेहिं विसय-सेवणपरेहिं । अमयं व निग्गमिज्जइ चलण-प्पक्खालणेण मुहा ।।१४८४||
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सुमइनाह-चरियं
इय चिंतंतो सामी आगंतुं मागहेहि व सुरेहिं । लोयंतिएहिं वुत्तो 'भयवं ! तित्थं पवत्तेहि' ।।१४८५।। भणियं चसारस्सयमाइच्चा वण्ही-वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वावाहा अग्गिच्चा चेव रिहा य ।।१४८६।। एए देव-निकाया भयवं बोहंति जिणवरिंदं तु |
सव्व-जगज्जीव-हियं भयवं ! तित्थं पवत्तेहि ।।१४८७।। तओ संवच्छरियं दाणं दाउं पयट्टो भयवं । अह सक्वाणत्त-धणयजक्ख-चोइया तिरिय-जंभगा देवा नहाणि वा भहाणि वा पहीणसामियाणि वा पणढ-सेउयाणि वा गिरि-कंदर-गयाणि मसाणहाणनिहियाणि घरंतर-गोवियाणि हिरन-सुवन्न-रयण-निहाणाणि सव्वओ समाहरिऊण अओज्झाए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्त-चच्चर-चउमुहमहापह-पहेसु नगर-निग्गम-प्पवेसहाणेसु पुंजीकरंति । अन्नत्थ पुण महाणसिया जहिच्छियाहारसारे सत्तागारे पयट्टावंति । किं बहुणा ? जो जं मग्गए तस्स तं दिज्जए ।
भणियं च
संवच्छरेण होही अभिनिक्खमणं च जिणवरिंदाणं । तो अत्थ-संपयाणं पवत्तए पुव्व-सूरम्मि ||१४८८।। एगा हिरन-कोडी अहेव अणूणगा सयसहस्सा । सूरोदयमाईयं दिज्जइ जा पायरासं तु ||१४८१।। संघाडग-तिग-चच्चर-घउक्त-चउमुह-महापह-पहेसु । दारेसु पुरवराणं "रत्थामुह-मज्झयारेसु ।।१४१०।। वरवरिया घोसिज्जइ-'किमिच्छियं दिज्जए बहुविहीयं' | सुर-असुर-देव-दाणव-नरिंद-महियाण निक्खमणे ||१४११|| तिन्नेव य कोडिसया अवासीइं च हंति कोडीओ।
असिइं च सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिन्नं ।।१४१२।। कालाणुभावओ तित्थयराणुभावओ य किमिच्छिय-पयाणे वि न समहिय-गाहगा ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं एवं संवच्छरमछिन्नं सुवन्न-वारि-धाराहिं कयत्थीकाऊण दुग्गइबप्पीहए हयासे स-दुत्थो रज्जे निवेसए सच्चवीरिय-कुमारं । अह चउसहि-सुरिंदा चलियासणा सपरिवारा समागया तत्थ विमाणारुढा पयाहिणीकाऊण "भयव ओ भवणं ओइला विमाणे हिं तो पुणो पयाहिणीकाऊण भयवंतं पणमंति । जम्म-महसवे व्व सव्वे सुरिंदा नरिंदा अभिसिंचंति गंधोदएहि, निमज्जति गंधकासाईएहिं, विलिंपंति गोसीस-चंदणेणं, परिहाविंति देवदसे हिं, अलंकरंति किरीडाइरयणालंकारेहि, विभूसंति संताणय-प्पमुह-कुसुममालाहिं । तओ कया अभयंकरा नाम पत्थिवेहिं कणय-रयणमई सिबिया, सुरिंदेहिं पि विउव्विया बीया सिबिया । सा वि पत्थिव-सिबियंतरे कालागरु व्व चंदणे अणुपविहा । अच्चुइंदेण दिनहत्थों सक्वीसाणाहिं धुव्वंत-चामरो चमरिंदेण धरिय-धवलायवत्तो बलिंदेण पयडिय-पडिहारकम्मो सेसिंदेहिं कय-जय-जय-सद्दो आरूढो सिबियं, निसिल्लो सिंहासणे ।
पुग्विं उक्खित्ता माणुसेहिं सा हह-रोमकूवेहिं ।
पच्छा वहंति सीयं असुरिंद-सुरिंद-नागिंदा ।।१४१३।। तओ पहएसु मंगलतूरेसु, जच्चंतीसु ससंरंभं रंभा-तिलुत्तमा-पमुहासु अच्छरासु, गायंतेसु गंधव्वेसु, पढंतेसु बंदिविंदेसु, आसंसंतीसु मंगलाई गोत्त-वुडविलयासु धवल-मुहलासु कुलमहिलासु चउद्दिसं वग्गंतेसु तियसवग्गेसु पलो इज्जमाणो विप्फारिय-नयणेहिं नायर-गणे हिं पडिच्छंतो पए पए तक्वय-मंगलाई आणंदंतो अमय-वुडीए व्व दिहीए भुवणं पत्तो सहस्संबवणं । उइलो सिबिया ओ, "मिल्लिऊ ण मल्लालंकाराइं सुरिंद-निहित्तं देवदूसं खंध-देसे धरंतो वइसाह-सुद्धनवमीए पुठवण्हे निच्च-भत्तेणं महारिक्ख-जोगमुवगए चंदे नरिंदाणं सहस्सेण समं सुमइसामी पंचमुट्ठियं लोयं करेइ । सक्को केसे निय-वासंते पडिच्छिऊण तक्खणा खिवइ खीरोए । सुरासुरनराणं मुहिसन्नाए कलयलं इंदेण णिसिद्धं । भयवं पि सिद्धाण नमोक्वारं काऊण 'सव्वं मे पावं अकरणिज्ज' ति पइन्नं पडिवज्जइ, तक्वालमेव के वलनाणीवलंभसच्चंकारो व्व समुप्पन्नं सामिणो मणपज्जव-नाणं । तं च केरिसं ?
मणपज्जव-नाणं पुण जण-मण-परिचिंतियत्थ-पागडणं । माणुसखेत्त-निबद्धं गुणपच्चइयं चरित्तवओ ।।१४१४।।
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सुमइनाह-चरियं
૨૩૭ पहु-दिक्ख-गहण-समए उज्जाओ तिहुयणम्मि संजाओ । सोक्खं च निच्च-दुहियाण नारयाणं पि संपन्नं ||१४१५।। नमिउं जिणं नरिंदा गया स-नयरं सुरेसरा गंतुं । नंदीसरम्मि काउं जिणिंद-महिमं गया सग्गं ||१४१६।। अह बीय-दिणे भयवं विजयपुरे पउम-निवइणो भवणे । पारइ परमनेणं तो पंच हवंति दिव्वाइं ||१४१७।। गयणाओ वसुहारं मुयंति गंधोदयं कुसुमवुद्धिं । वायंति दुंदुहीओ चेलुक्खेवं कुणंति सुरा ||१४१८|| घोसंति 'अहो दाणं सुदाणमेयं' ति ते नहयलम्मि । "पहु-पाय-पयहाणे करेइ पउमो "रयणपीढं ||१४११।। पूएइ तं तिसंझं पह-पय-पउमं पवर-भत्तीए । भयवं पि अपडिबद्धो विहरइ पवणो व्व भुवणम्मि ||१५00।। विविहाभिग्गह-निरओ विसोढ-विविहोवसग्ग-संसग्गो । विविह-तवच्चरणपरो विविहासण-करण-कयचित्तो ||१५०१।। जिय-राग-दोस-पसरो जिइंदिओ जिय-परीसह-समूहो । जिय-कोह-माण-माया-लोहो जिय-मोह-भय-निदो ||१५०२।। सम-सत्तु-मित्त-वग्गो सम-तण-मणि-लेहु-कंचणो निच्चं । सम-सुह-दुक्खो समरूव-गणिय-गरिहा-गुणपसंसो ||१५०३|| धम्मो व्व मुत्तिमंतो जंगम-भावं गओ व्व संतोसो । पसम-रस व्व सरीरी पच्चक्खो पुन्न-रासि व्व ||१५०४|| अपमाओ छउमत्थो वीसं वरिसाणि विहरिउं भयवं । एइ सहरसंबवणे दिक्खा-पडिवत्ति-ठाणम्मि ||१५०५।। झाणहियस्स पहुणो पियंगु-मूले अउव्वकरणेण । खवगसेणिय-पवन्नस घाइ-कम्माइं तुद्याई ।।१५०६|| चित्तस्स सुद्ध-एगारसीए महरिक्खमुवगए चंदे । पहुणो कय-छहतवस्स केवलणाणमुप्पन्नं ।।१५०७।। तक्वालं चिय अइ-तिक्ख-दुक्ख-विहुराण नारयाणं पि । जायं सुक्खं तह तिहुयणे विप्फुरिओ समुज्जोओ ||१५०८।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं । चलियासणा सुरिंदा समागया नाण-महिम-करणत्थं । वाउकुमारा सोहंति भूमिमाजोयणं तत्तो ।।१५09।। मेहकुमारा गंधोदएण सिंचंति सव्वओ वसुहं । सा सुरहि-बाह-धूमेण सहइ उक्खित्त-धूव व्व ||१५१०।। बंधंति वंतरसुरा कंचण-मणिमय-सिलाहिं महिवीढं । अप्पाणं पुण घण-कम्मबंधणाओ विमोयंति ।।१५११।। तत्थ अहोमुह-बिंटाइं महियलाओ व्व उग्गमंताई । उउदेवीओ वरसंति पंचवलाई कुसुमाइं ।।१५१२।। चउसु वि दिसासु ते तोरणाई तक्वंठ-भूसणाई व । विरयंति रयण-माणिक्क-किरण"-कय-सक्तचावाई ॥१५१३|| तेसु परोप्पर-पडिबिंबियाओ मणि-सालभंजियाओ दढं । सोहंति सुरवहुओ सहीहिं आलिंगियाओ व्व ||१५१४|| रेहति तेसु मयरा मरगय-घडिया पलायमाणेण । भयवसओ मुक्का मयरकेउणा केउमयर व्व ||१५१५।। धवलाई तेसु पहु-नाणलंभ-पाउब्भवंत-हरिसाण | हास व्व सव्व-दिससुंदरीण छज्जति छत्ताई ॥१५१६|| तेसु विरायंति धया समोसरण-मउड-लाभ-तुहाए । उत्तंभिया भुयाओ व नच्चिउकामाइ धरणीए ||१५१७।। रुप्पमयं पायारं बाहिं विरयंति जोयण-पमाणं । कंचणमय-कविसीसय-विरायमाणं भवणवइणो ||१५१८|| जोइसिया कणयमय-पायारं मज्झिमं विउव्वंति । मणि-निम्मिय-कविसीसय-दुगुणीकय-तारयाचक्वं ||१५१५।। मणिमयमभिंतरयं कुणंति माणिक्क-घडिय-कविसीसं । लच्छीए विन्भम-कुंडलं व वेमाणिया वप्पं ||१५२०।। वप्पे वप्पे दिप्पंति कणय-मणि-गोउराइं चत्तारि । चउरूव-धम्मनिव-पुंगवरस लीला-गवक्ख व्व ।।१५२१|| कंचणमय-घडियाओ पइदारं वंतरेहिं मुक्काओ । कप्पूरागरु-धूमेहिं मेह-संकं कुणंतीओ ||१५२२।।
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सुमइनाह-चरियं
तह तेहिं कयाओ कणय-पंकयालंकियाओ वावीओ । चउसु वि दिसासु दारेसु रयण-सोवाण-पंतीओ ||१५२३।। ते चेव कणयसालंतरम्मि पुवुत्तरम्मि दिसभाए । देवच्छंदं विरयंति सामि-विस्साम-करणत्थं ||१५२४।। मणिवप्पे कप्पसुरा पुव्वदुवारं दुवे कणय-वना । रक्खंति वंतरा पुण चंदाभा दाहिण-दुवारं ।।१७२५|| रत्तुप्पल-समवन्ना जोइसिया दुन्नि पच्छिम-दुवारं । उत्तर-दुवारमंजण-समप्पभा भवणवासि-सुरा ||१५२६|| कंचणवप्प-दुवारे चउसु पुव्वाइ चउदिस-कमेण । पडिहारीओ सिय-रत्त-पीय-नीलंगकंतीओ ||१५२७।। देवीओ जया-विजया-अजिया-अपराजियाओ चिहंति । सव्वाओ अ(उ)भयपासं कुसुमुग्गर-वावडकराओ ||१५२८।। रक्खेइ रुप्पवप्पम्मि तुंबरू नाम सव्व-दाराई । नरसिरमाली खटुंग-संगओ जड-मउडधारी ||१५२१।। सोलस-धणुसय-समहिय-कोस-पमाणो समोसरण-मज्झे । कंकेल्लि-तरू-पल्लव-निरंतरो वंतरेहिं कओ ||१५३०।। तस्स तले रयणमयं पीढं ते निम्मवंति वित्थिन्नं । तस्सोवरि मणि-घडियं तहच्छंदयमप्पडिछंदं ।।१५३१|| तं मज्झे पुव्व-दिसाइ रयण-सीहासणं विउव्वंति । ते च्चिय सपायवीढं उवगूढं तिजय-लच्छीए ||१५३२|| तस्सोवरिं च पहुणो तिहुयण-सामित्त-सूयगं विहियं । उवरुवरिहिय-ससि-तिग-सरिसं छत्तत्तयं तेहिं ||१५३३|| जिण-रविणो तिहुयण-तम-कवलणकामस्स केवलरहस्स | चक्वं व कयं चक्वं तेहिं पुरो कणय-कमलगयं ।।१५३४|| जवखेहिं उभय-पासेसु चामरा चंदचारुणो धरिया । अन्नं पि हु जं किच्चं कुणंति तं वंतरा सव्वं ।।१५३५।। इय देवेहिं विहिए सालत्तय-सुंदरे समोसरणे ।
भावारि-वार-विहुरिय-जगत्तय-त्ताण-दुग्गे व्व ||१५३६||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तो नवसु सुरकएसुं कंचण-कमलेसु कंति-विजिएसु । सेवं कुणमाणेसु व सत्तसु पुरओ पयट्टेसु ।।१५३७।। दोसु पुण चलण-जुयलं कमेण भयवं ठवंतओ तत्थ । सुर-कोडीहिं परिवुडो पुव्वद्दारेण पविसेइ ।।१५३८।। चेइयदुमस्स काउं पयाहिणं पणमिऊण तह तित्थं । सिंहासणे निसियइ पुव्वाभिमुहो सुमइनाहो ||१५३१।। सेस-दिसासु वि पडिरूवयाइं विहियाई वंतर-सुरेहिं । ताणं पि जिण-पभावेण होइ रुवं तयणुरुवं ।।१५४०।। अन्नहा
सव्वे सुरा जइ रुवं अंगुह-पमाणयं विउविज्जा । जिण-पायंगुहं पइ न सोहए तं जहिं गालो ||१५४१।। सामिस्स सीस-पच्छिमभाए भामंडलं समुब्भूयं । दिणमणि-बिंबं चुंबइ खज्जोय-सिरिं पुरो जस्स ||१५४२|| सद्देणं भुवण-वियंभिएण निस्संग-चक्ववट्टित्तं । पहुणो पयासंतो व्व वज्जिओ दुंदुही गयणे ।।१५४३।। सहइ भवजलहि-तारय-जिण-निज्जामय-जुए पडाय-सिडो । इह समवसरण-पोए कूयक्खंमो व्व रयणधओ ||१५४४|| अह तम्मि पविसिऊणं निय-निय-दारेण निय-निय-हाणे । परिसाओ दुवालस रयणसाल-मज्झम्मि चिट्ठति ||१५४५।। "मुणि-वेमाणिय-थी-संजइओ पुग्वेण पविसिउं पहुणो । काउं पयाहिणं पुव्व-दक्खिणे ठंति दिसि-भाए ||१५४६।। जोइसिय-भवण-वंतर-देवीओ दक्खिणेण पविसित्ता । चिटंति दक्खिणावर-दिसाइ तिपयाहिणा-पुव्वं ||१५४७|| अवरेण भवणवासी-वंतर-जोइस-सुरा पविसिऊण | अवरुत्तर-दिसिभाए सामी(सामि) नमिऊण चिटंति ॥१५४८।। कप्पसुरा नर-नारीओ पविसिउं उत्तरेण दारेण । तिपयाहिणीऊण जिणं चिहंतीसाण-दिसिभाए ||१७४१।।
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૨૩૬
सुमइनाह-चरियं
इंतं महिड्डियं पणिवयंति पुव्वागया सुरा तत्थ । पुव्वागयं तयं पुण पणमंता चेव वच्चंति ||१५५०।। मुक्व-परोप्पर-वेरा तिरिया मज्झम्मि ठंति बीयस्स । सालस्स तईअस्स उ मणुयामर-वाहण-समूहा ||१५५१।। अह सोहम्म-सुरिंदो भयवंतं पणमिऊण भत्तीए । पुलयालंकिय-काओ कयंजली थोउमाढत्तो ||१५५२।। जय सिवपुर-पह-संदण नंदण नीसेस-गुण-सुरतरूण ! | मेह-नरनाह-नंदण ! जय नयणानंदण ! नमो ते ||१५५३।। पणमामि सामि ! तुह पाय-पंकयं जम्मि मत्थय-निहित्ते । सिद्धि तरुणी सयण्हं कडक्खलक्खी कुणइ पणयं ।।१५५४|| भुवणेक्कवीर ! तुमए सरीर-दुग्गाओ भावरिउ-वग्गो । चिरमन्नपाण-रोहं काउं निव्वासिओ सव्वो ||१५५५।। अन्नोन्न-गाम-धणहरण-जणिय-संगाम-बद्धवेरा वि । चिटंति तुह सहाए भूवइणो निद्ध-बंधु व्व ||१५५६।।
आयडिऊण केसरि-करं करी निय-करेण निस्संकं । कंडुयइ कवोल-तलं तुह परिसाए इमो नाह ! ||१५५७।। एगत्थ इमो महिसो महिसं व सहोअरं सिणेहेण । लिहइ हयं हेसंतं पुणो पुणो नियय-जीहाए ||१५५८।। उड्मुहो उन्नामिय-कण्णो लीला-विलोल-नंगूलो । हरिण-जुवा इत्थ घणं घाणेणऽग्घाइ वग्घ-मुहं ||१५५१।। मूसयमेसो पासेसु अग्गओ पच्छओ अ ललमाणं । निय-बालयं व चुंबइ बहुं बिडालो इह सिणिद्धो ||१५६०।। फण-फलयमारुहंतेण संचरंतेण चउसु वि दिसासु । नउलेण समं खिल्लइ सप्पो सप्पहरिसो एसो ||१५६१।। अन्ने वि जए जे निच्चवेरिणो ते वि वेर-परिचत्ता । चिटंति एत्थ तुमए कय-उवसम-संविभागो व्व ||१७६२।। इय थोऊण जिशिंदं इंदाणं अच्चुइंद-पमुहाणं । मज्झम्मि निविहो भालवट्ठ-विहियंजली सक्को ||१५६३।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं खेते जोयणमित्ते वि तम्मि सत्ताण कोडिकोडीओ | चिहंति निराबाहं तित्थयरस्साणुभावेण ||१५६४|| तो सामी जोयणगामिणीइ पणतीस-अइसय-जुयाए । सव्व-स-भासाणुगयाइ कहइ भासाइ धम्म-कहं ||१५६५।। जम्म-जर-रोग-पियविप्पओग-मरणाइ-दुक्ख-सलिलोहे ।
भव-सायरम्मि दुलहो जिणधम्मो जाणवत्तं व ||१५६६|| जओ
जीवा अणाइनिहणा अणाइओ ताण कम्म-संबंधो । मिच्छत्ताऽविरइ-कसाय-जोग-हेऊहिं हुतो वि ॥१५६७।। निच्चं अकामनिज्जर-बालतवाईहिं विहडमाणो वि । न हु नासिकयाइ इमो पवाहओ नइ-पवाहो व्व ।।१५६८।। पुठवं अणंत-पोग्गल-परियट्टे तेण कम्मणा विवसा । निवसंति सव्व-जीवा सुहुम-वणस्सइ-निगोएसु ||१५६१।। तत्थ असंख-निगोयरस रूव-नीसंख-गोलय-गयम्मेि । एग-निगोय-सरि संपिंडिज्जति तेऽणंता ||१५७०।। थीणद्धि-महानिद्दा-नाणावरणाइ-कम्म-परतंता | पीयमइर व्व विस-घुम्मिअ व्व ते किंपि न मुणंति ।।१५७१।। भवियन्वयावसेणं विहडिय-घण-कम्म-बंधणा के वि । तेहिं तो निवखंता वसंति बायर-निगोएसु ||१५७२|| ते यऽल्लय-सूरण-गज्जराइ-रूवेण परिणया संता | छेयण-भेयण-चुन्नण-दहणप्पमुहं सहति दुहं ||१५७३।। तत्थुस्सप्पिणि-अवसप्पिणीओ वसिऊण ते अणंताओ । तेहिंतो नीहरिया गमंति ताओ असंखाओ ||१५७४।। पुढवाईएसु तत्थ वि विविहाओ वेयणाओ सहिउँ ते । उप्पज्जंति कहं पि हु पत्तेय-वणस्सइत्तेण ।।१५७७|| तो पयणगयाईहिं भज्जंति दवानले हिं दज्छति । खज्जंति बहु-जणेहिं परसु-प्पमुहेहिं छिज्जति ||१५७६।।
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२४१
सुमइनाह-चरियं
इय अणुहविउं दुक्खं लहंति विगलिंदियत्तणं कह वि । तेसु वि सीयायव-मद्दणाई दुक्खाइं पावंति ||१५७७|| पंचिंदिएसु तत्तो असलिणो सनिणो य जायंति । तो अणुहंवति पीडं जल-थल-नह-चारिणो होउं ||१५७८।। भक्खंति ते जलयरा परोप्परं धीवरेहिं घेप्पंति । किज्जंति भडित्तं हुयवहम्मि सत्थेहिं छिज्जंति ||१५७१।। गालिज्जंति व सत्थेहिं तह तलिज्जंति तत्त-तावीसु । पच्चंति थालियासुं वंग-पमुहेहिं गलिज्जति ||१५८०।। थलचारिणो अ सस-सूयराइणो लुद्धएहिं हम्मंति । विविहेहिं उवाएहिं तडप्फडंता निरवराहा ||१५८१।। अइभारारोवण-वाह-दाह-सीउण्ह-छुह-त्तिसाइहिं । आराकसंकुसेहिं य सहति गुरु-वेयणं एए ।।१५८२|| खयरा वि कमढय-चडय-पभिइणो दुव्वलावलित्तेहिं । खज्जति खगेहिं गिद्ध-सेण-सिंचाण-पमुहेहिं ||१५८३|| तित्तिरि-मोरप्पमुहा विविहोवाएहिं संगहेऊण | बहुविह-विडंबणाईहिं निक्करुणेहिं हणिज्जति ।।१५८४|| ते वि हु मीण-भुयंगम-चित्तय-सीहत्तणाई लहिऊण | कूरमणा मंसाई भक्खंति हणंति जंतु-गणं ।।१५८५।। रुद्दज्झाणेण मया नरएसु गया सहति पढमेसु । तिसु उण्हं तिसु सीयं परेसु तुरियम्मि सीउण्डं ||१५८६।। किञ्चतिसु आइमेसु परमाहम्मिय-सुरेहिं विणिम्मियं दुक्खं । अवरेसु तिसु परोप्पर-कय-विविह-कयत्थणा-जणियं ।।१५८७।। नरयम्मि सत्तमे पुण समंतओ वज्ज-कंटगाइन्ने । सव्वंग-भेय-पाउब्भवंत-गुरु-वेयणावं ||१५८८।। एवं खेत्त-समुब्भवमनोन्न-समुत्थमसुर-जणियं च । तिविहं दुहं सहंता नरए चिहति चिर-कालं ।।१५८ ।।
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૨૪૨
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तत्थुप्पन्ना घडियालयाओ संकडमुहाओ असुरेहिं । कडिज्जति रडंता सीस-सलाय व्व जंताओ ||१५१०।। कर-चलणाइसु घेत्तुं सिलायले वज्ज-कंटयाइन्ने । अप्फालिज्जति दढं इमेहिं वेत्थं वरयगेहिं (?) ||१५११।। दढमुच्छुणो व्व कत्थइ निप्पीलिज्जंति लोहजतेहिं । कत्थइ करवत्तेहिं दारुं व दुहा विहिज्जति ||१५१२।। सुमराविऊण परजुवइ-संगमं वज्जकंटय-सणाहं । कत्थइ सिंबलि-रुक्खं कत्थइ तत्तायस-पुरंधिं ||१५१३।। आलिंगाविज्जति हणिऊणं मुग्गरेहिं पट्टीए । खादिज्जंति समंसं सुमराविय मंसलोलत्तं ।।१५१४|| सुहगिद्धि-कहणुपुव्वं काराविज्जति तत्त-तउपाणं । भुज्जति भडित्तं पिव कुंभीपागेसु पच्चंति ||१५१५।। तिल-तुस-तिभाय-मित्तं छिन्ना वि मिलंति पारय-रसो व्व । तत्त-कडाहेसुं पप्पड व्व कत्थइ तलिज्जति ।।१५१६।। कत्थइ पूय-वसा-लोहिएहि कत्थइ य तंब-तऊएहि । तत्तेहिं वहंतीए वेयरणि-नईए खिप्पंति ||१५१७|| वाहिज्जंता तीए पुलिण-वसह व्व दुव्वहं भारं | वज्जानल-पज्जलिए भहे चणग व्व फुटुंति ||१५१८।। छायत्थिणो अ पत्ता असिपत्त-वणम्मि पवण-विहएहिं । नाणाविहेहिं पत्ताउहेहिं छिज्जति सव्वंगं ||१५११।। किं बहुणा ? नरएसुं सत्तसु तिक्खाई जाई दुक्खाई । ताई कय-कोडिजीहो सक्को वि न वलिउं सक्को ||१६00।। नरयाओ उव्वट्टा होउं सीहाइणो पुणो नरए । पुण मच्छाइसु एवं पुणो पुणो जंति नरएसु ।।१६०१।। इय हिं डिऊण सुइरं कईयावि अणारिएसु मणुएसु । मायंगाइसु अहवा उप्पना आरिएसुं पि ॥१६०२।। तत्थ अखज्ज-अपेज्जाऽकज्जाऽगम्माइ-सेवणासत्ता । जंति नरएसु बहुसो कालमणंतं परिभमंति ।।१६०३।।
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२४३
सुमइनाह-चरियं
कुल-जाइ-विसुद्धेसु वि उप्पन्ना माणुसेसु कईया वि । पावंति तं दुहं जेण जायए हियय-उक्वंपो ||१६०४|| रोमे रोमे सुईहिं अग्गिवन्नाहिं २०भिज्जमाणस्स । जं होइ दुहं तत्तो अवगुणं गब्भवासम्मि ||१६०५।। गब्भाओ नीहरंताण जोणिजंतेण पीढणे जं च । तं गब्भवास-दुक्खाओ होइ दुक्खं अणंतगुणं ||१६०६।। बालत्तणे लुलंता मुत्त-पुरीसेसु वोत्तुमसमत्था । निच्चेयण व्व हत्थं अहि-जलणाईसु वि खिवंति ।।१६०७।। जोव्वण-पओस-पाविय-पसराहिं पिसाइ-रक्खसीहिं व । दविणासा-विसयासाहिं विवस-हिअया किलम्मति ||१६०८।। कुव्वंति किसिं जलहिं तरंति देसंतराई वच्चंति । विवरं पविसंति खणंति रोहणं हुंति कम्मयरा ||१६०१।। सेवंति निवं विरयंति रणभरं पर-धणं वि लुटंति । गायंति य णच्चंति य दविणासा-विनडिया जीवा ||१६१०।। न गणंति कुल-कलंकं सयण-वयणं न अप्पणो वसणं । न य परलोय-विरुद्धं विसयासा-मोहिया मणुया ||१६११|| परपरिभव-पेसत्तण-विओग-दोहग्ग-रोग-सोगेहिं । गुत्तिनिरोह-विरोहाऽमरिसेहिं य दुत्थिया मणुया ||१६१२। गमणासहा अदंता पुणो वि वियलिंदिया खलिय-वयणा | वयण-विगलंत-लाला बाल व्व जराए किज्जंति ||१६१३।। सुहिया काम-वियारेहिं दुक्खिया दीणया-पयारेहिं । निय-जीवियं विमूढा नयंति न उ धम्म-कम्मेहिं ||१६१४|| नीसेस-कम्मक्खयकारयं पि लद्धण माणुसं जम्मं । विहलं कुणंति पावा "पावायारेहिं विविहेहिं ।।१६१५।। जय-कुंजरं खरेण व काण-कवड्डेण कणय-कोडिं व । मणिमुवलेण व हारंति विसयसुक्खेण मणुयत्तं ||१६१६।। सग्गाऽपवग्ग-सोक्खाण कारणे माणुसत्तणे पत्ते । अहह नराणं नरयप्पयाण-पवणे मई पावे ।।१६१७||
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२४४
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं चारित्त-नाण- दंसण रयणत्तय-भायणे मणुय - जम्मे । पावं कुणति जे ते खिवंति रेणु रयण थाले || १६१८ || ते इंदियत्थ-लुद्धा कसाय रुद्धा सरीरसुह-गिद्धा । नरएस जंति तत्तो भमंति भीमं भवमणंतं ||१६१९|| देवेसु समुप्पन्ना महिड्डिय-सुरेहिं आणविज्जति । अप्पिड्डियमप्पाणं पलोयमाणा मिलायंति || १६२०|| विउलं परस्स रिद्धिं दहुं ईसानलेण डज्झति । पुव्वकय- अप्प-सुकयं मणम्मि सोयंति अप्पाणं || १६२१|৷ कइयावि चविय पिययम- सुरवहु-विरहे लहंति नरय - दुहं । कइयावि कुविय - दइयाऽपसायणेणं किलिस्संति || १६२२ ॥ पररमणीओ हरंति लोभवसओ परेण कोवेण । वज्जेण ताडिया मुच्छिया य छम्मासमच्छंति || १६२३|| ईसा विसाय-मय- कोह- लोह-मायाइणो अरि-समूहा । रिणियाण व ववहरया मेल्लंति सुराण विन पहिं || १६२४|| रमणी - विमाण - रयणाइ - मोहिया चवणमप्पणी मुणिउं । अज्झाणेण चवंति जंति एगिंदिएसु पुणो || १६२५ || एवमणते पोग्गल - परियहे परियडंति संसारे । जीवा मिच्छत्त-तमोह- निहुय सम्मत्त-वर - नयणा ||१६२६ ॥ चउदस-रज्जुम्मि जए बालग्ग समं पिनत्थि तं ठाणं । जम्म-मरणाई पत्ताइं तेहिं नाऽणंतसो जत्थ ||१६२७||
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तं नत्थि विसय- सुक्खं तज्जणिअं तं न अत्थि दुक्खं पि । जं जीवेहिं न पत्तं नवरं पत्तो न जिण - धम्मो || १६२८|| सुलहो विमाणवासी रयणायर - मेहला मही सुलहा । लोयम्मि नवरि दुलही धम्मो सव्वन्नु - पन्नत्ती ||१६२१|| सत्तर- कोडाकोडीओ मोहणीयस्स हुंति अयराणं । उक्कोस- ठिई तह वेयणीय- आवरण विग्घाणं || १६३०| तीसं कोडाकोडीओ वीस पुण हुंति नाम - गोत्ताणं । सत्तण्हं पि इमाणं अहापवत्तेण करणेणं || १६३१||
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२४५
सुमइनाह-चरियं
अंतो कोडाकोडिं धरिउ खवियम्मि सेसए जीवा । घण-राग-दोस-परिणइरुवं पावंति तो गंठिं ||१६३२|| एत्तिय-दूरं व इमे पत्ता सव्वे अणंतसो जीवा । किंतु अउन्ना पुणरवि परिवडिऊणं गया मूले ||१६३३।। बद्धा उक्लोसठिइ कम्माण पुणो वि संकिलिहेहिं । भमिहिंति भवमभव्वा एवं पुरओ सयाकालं ।।१६३४|| आसन्नकाल-भवसिद्धियाओ तमपुव्वकरणवज्जेण । गंठिं गिरिं व भिंदंति पाविउं वीरियमउव्वं ।।१६३५।। अनियट्टिकरणमइसय-विसुद्धिरुवं तओ समणुभविउं । अंतोमुत्तमेत्तं कालं ते मोक्ख-तरु-मूलं ॥१६३६।। कारणमणंत-सोक्खाण वारणं तिक्ख-दुक्ख-लक्खाण । सम्मत्तं रयणनिहिं रोर व्व लहंति कयपुन्ना ||१६३७।। पत्ते वि हु सम्मत्ते एगाए अयरकोडिकोडीए । पलियपुहत्ते खवियम्मि देसविरई पवज्जति ।।१६३८|| संखिज्ज-सायरेसुं गएसु तत्तो लहंति चारित्तं । उवसमसेणिं पुण तित्तिएसु तह खवगसेणिं च ||१६३१|| इय जाणिऊण दुलहं जिणधम्मं तम्मि उज्जयं(मं) कुणह । मा पुण वि पमायवसा निवसह एगिदियाईसु ||१६४०।। लढुं जिणधम्म विसय-परवसा हारवंति जे मूढा । ते जलनिहि-मज्डा-गया नावं भिंदंति लोहकए ।।१६४१|| इय धम्मकहं सोउं चमर-नरिंदाइणो जणा बहवे । पडिबुढ्दा बैंति जिणिंद ! जंपियं अवितहं तुमए ||१६४२।। ता अम्हे सामि ! तुमं दिक्खा-हत्थावलंब-दाणेण ।
दुह-लहरि-रउद्दाओ नित्थारसु भव-समुद्दाओ ||१६४३|| तओ ते सव्वे वि दिक्खिया भयवया जाया चमरप्पमुहा मुणिणो । संपन्नाओ विमल-मइ-प्पमुहाओ अज्जाओ | पवना सव्वविरई महारायप्पमुहेहिं मणुस्से हिं । गुणवइ महादेवी-पमुहाहिं महिलाहिं अब्ने हिं य बहुएहिं तिरिक्खेहिं देसविरई पडिवघ्नं, देवेहिं देवीहिं सम्मइंसणं । भयवं
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
चमरप्पमुहाणं सयस्स मुणिवराणं पुव्वभव - पुन्नोदएण गणहर-पयजोग्गयं जाणिऊण उप्पाय - विगम-धुवत्त- रूवं सयल - सुय - सायरसार- रयणभूयं पयत्तयं परुवेइ । ते वि य तयणुसारेण दुवालसंगाई विरयति । चउव्विह- देवनिकाय - परिवुडो घेत्तूण दिव्वगंध-चुन्नपुन्नं सुवन्न थालं उवडिओ सक्को ।
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अह उद्विऊण भयवया विणओणएसु उत्तमंगेसु चमराईणं गणहराणं चुन्नक्खेवं कुणंतेण सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सव्व दव्व-गुण-नयपज्जवेहि अणुओगाणुन्ना गणाणुन्ना य दिन्ना । सूर कर पहय-दुंदुहिनिनाय पुरस्सरं सुरेहिं सुरंगणाहिं नरेहिं नारीहिं य कओ तेसिं चुन्नखेवो । ते वि कयंजलिउडा भयवओ वयणाणि सम्मं पडिच्छंति । भयवं पि पुणो पुव्वाभिमूहो सिंहासणे निसन्नो अणुसहिगब्भं धम्मदेसणं करेइ |
एत्यंतरे पुन्ना पोरिसी
आढयप्पमाणी अखंड - कलमसालि-कणविणिम्मिओ मणिमय- थाल - विणिवेसिओ सुर-पक्खित्त-सुगंधवासवासिय दियंतरी तरुण पुरिस समुक्खित्तो सच्चवीरिय महाराय कारिओ देवदुहि - निनाय - भरिय बंभंडमंडलो मंगल मुहल महिलाणुगओ समंतओ नायर - नियर-परिवारिओ पुव्वदुवारेण पविडो बली । ठिया धम्म- देसणा । पयाहिणीकाऊण भयवंतं तस्स पुरओ पक्खित्तो तिक्खुत्तो बली । तस्सद्धं नहयले चेव चायगेहिं व जलहर-जलदेवेहिं गहियं, अद्धद्धं धरणि- निवडियं सच्चवीरिएण रन्ना, सेसं पुण पागय-जणेणं । बलि - माहप्पेण पुव्वुप्पन्ना आमया विणरसंति । नवा पुण छम्मासं जाव न हवंति ।
भणियं च
राया व रायमच्चो तस्सासइ पउर जणवओ वा वि । दुब्बलि खंडियबलि छडिय - तंदुलाणाढ्यं कलमा ||१६४४ || भाईयपुणाणिआणं अखंड - फुडियाण फलगसरियाणं । कीरइ बली सुरा वि य तत्थेव छुहंति गंधाई || १६४५ || भवणवइ - वाणमंतर - जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं । नरनारि- गणेहिं तहा समंतओ भत्तिभरिएहिं || १६४६ ||
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सुमहनाह-चरियं
कय-परिवेढो चल्लइ तूर - निनाएण पूरिय- दियंतो । आनंदिय-सयल - जिओ जिणिंदचंदाण पवर- बली || १६४७।।
·
बलि- पविसण - समकालं पुव्वद्दारेण ठाइ परिकहणा । निउणं पुरओ पाडण - अद्धद्धं अवडियं देवा ||१६४८ || अद्धद्धं अहिवइणो अवसेस होइ पागयजणस्स । सव्वामयप्पसमणी कुप्पइ नऽन्नो वि छम्मा || १६४९|| उडिऊण भयवं कमलायरो व्व महुयरेहिं चउव्विह-सुरेहिं परिगओ गओ उत्तर- दुवारेण ईसाण-कोणे कणय - रयण-सालंतर- डिए देवच्छंदए निसन्नो मणिमय- सिलावट्टए ।
अह पहुणो पयवीढे विणिविडो पढम - गणहरी चमरी । नव-जलहर - महुर- सरेण देसणं काउमारद्धी ||१६५०||
२४७
जओ
खेय - विणोओ सीस-गुण-दीवणा पच्चओ उभयओ वि । सीसायरिअ-कमो विय गणहर कहणे गुणा होंति || १६५१ || रावणीय-सीहासणे निविट्ठो य पायपीढम्म | जेट्ठो अन्नयरो वा गणहारि कहेइ बीयाए ||१६५२ || संखाईए वि भवे साहइ जं वा पुरो उ पुच्छिज्जा । नणं अणाइसेसा वियाणई एस छउमत्थी ||१६५३ || भणियं चं भयवया गणहरेण संजमसिरी-कुलहरेण । सयल - सुरासुर - किन्नर -नर-संकिन्नाइ परिसाए || १६७४ || भो भो भव - पारावार - पार - गमणम्मि कयमणा तुभे । सेवह उवएस-पयाइं पोयभूयाई एयाई || १६५५ ।। तहाहि
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ર૪૮
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं
पाठांतर : १. पणमेज्जइ ल. रा. ॥ २. गुरुएण ल. रा. ।। ३. पुक्काओ ल. रा. ॥ ४. पायंते ल. रा. ॥ ५. तिल्लेहिं ल. ६. सिंहासणे ल. रा. ।। ७. मिल्लेइ ल. रा. ॥ ८. सोवबियाणं रुप्पमयाणं सुवन्नरयणमयाणं रुप्परयणमयाणं सुवन्नरुप्परयणमयाणं भोमाणं पा. ।। १. गेण्हंति द. पा. || 10. परिपुण्णेहिं ल. रा. ॥ ११. धम्मेल्ल द. पा. || १२. मिल्लइ द. पा. ।। १३. रच्छा . रा. पा. || १४. 'भयवओ......पयाहिणीकाऊण' पाठ मात्र द. पा. ॥ १५. मिल्हिऊण ल. रा. १६. पहुपारणए य हाणे द. पा. ।। १७. रयणवीटं द. पा. ॥ १८. किरिण द. पा. रा. || १५. गाथा १५४६-४८ द. पा. प्रतिमा ज छे । २०. भेज्ज० दे. पा. ।। २१. पावायरिएहिं ल. रा. ॥ २२. मिल्लंति ल, रा. ॥ २३. पिहिं ल. रा. ।
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सत्तमो पत्थावो
भत्ती तित्थयराण दाणममलं सीलं तवो भावणा,
हिंसालीय-अदत्त-मेहुण-महारंभाण संरंभणं । सिद्धंतामयपाणमुत्तमजणासंगो गुरुवासणं,
कोहाईण विणिग्गहो तह णमोक्कारस्स आराहणं ||१६५६|| धम्मत्थिणो अणुहाणमाइमं तत्थ तित्थयर-भत्ती । जं सा कयग-फलं पिव सम्मत्त-जलं कुणइ विमलं ||१६५७|| उत्तम-गुण-बहमाणो पयमुत्तमसत्त-मज्झयारम्मि । उत्तम-धम्म-पसिद्धी भत्तीए वीयरागाणं ||१६५८|| एक्को वि उदग-बिंदू पक्खित्तो खीरसायरम्मि जहा । जायइ अक्खयरूवो एवं भत्ती जिणिंदाणं ||१६५१।। सुद्धे खेत्तम्मि जहा पइन्नगं होइ बहुफलं बीयं । सद्धा-जलेण सित्तं जिणम्मि तह भत्ति-बीयं पि ||१६६०|| जं जं मणाभिरामं दीसइ इह पयइसुंदरं किं पि । तं तं जिण-भत्तीए फलंति नत्थेत्थ संदेहो ||१६६१।। भत्तीए जिणवराणं गलंति पुव्वज्जियाइं पावाइं । सग्गाऽपवग्ग-सोक्खाणं भायणं होइ तो जीवो ||१६६२|| अच्छउ दूरे जिणभवण-पडिम-ण्हवणऽच्चणाईयं किच्चं । जिण-पणमणं पि कल्लाणकारणं सुंदरस्स जहा ||१६६३|| तहा हि-
. [1. जिनभक्ती सुंदर-कथा ] अस्थि मणिवइ-विसय-मज्झाम्मि मणिवइआ वर नयरि ।
मणि-निबद्ध जिण-भवण मणहर | गंभीर परिहा-वलय फलिह-पवर-पायार-सुंदर |
तहिं सुत्थिओ नामिण वसई रिद्धिविसिहउ सेहि । जसु घरि जिण-मुणि-भत्तिपरु बालु वि सम्मदि(दि)हि ।।१||१६६४|| तासु मंदिरि अस्थि कम्मयरु
नय-विणय-संकेअहरु ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सुंदरो त्ति दुच्चरियचत्तउ .
सहुँ ति सेहिण सुत्थिइण सो कयाइं मुणिपासि पत्तउ । तिणि आयलिउ मुणिवयणु जो पणमिवि जिणनाहु । भोयणु कुणइ सु अन्न-भवि न लहइ दुह-दव-दाहु ।।२।।१६६५।। जेम्व तिसियह निसिरु पयपूरु
परमत्थु(न्नु) र्जिव भुक्खियह । जेम्व रोग-गहियह वरोसहु ।
ओहेण तं मुणि-वयणु चित्ति लग्गु तिम्व तसु सुहावहु । सो परिपालिवि तं वयणु जावजीवु संपुन्नु । पयइ-कसाय-विमुक्क-मणु कमिण विवन्नु सउन्नु ।।३।।१६६६।। अत्थि नामिण नयरि तक्खसिल पडिवक्ख-वच्छयल-सिलमणि
सिलोह संबद्ध सुरहर । हरिणच्छि-हरिणंकमुह-महिलचक्क-चंकमण-मणहर | घणरस-पूरिय-परिह-बहु पुरिसु व पवरायारु । जहिं ठिय लहरि-भुयालयहि परिरंभिवि पायारु ।।४।।१६६७।। तहिं तिविक्कमु अत्थि नरनाहु तइलोक्त-विक्खाय-जसु
दलिय-सयल-बलिराय-विक्कमु । करपंकय-संगहिय-संखचक्कु नावइ तिविक्कमु । तासु सुमंगल-देवि पिय कोमल-कमल-दलच्छि । रूव-विणिज्जिय-जय-रमणि कणयच्छवि नं लच्छि ।।५।।१६६८। तासु कुविखहिं जीवु सुंदरह उप्पन्नु ।
प्रत्तत्तणिण निसहिं तहिं जि देवीए दिउ । पविसंतु मुह-पंकरहि ।
पुन्नकलसु सिविणइ विसिहउ । सुह-परिबुद्धहिं तीए तउ सुविणउ कहिउ पियस्सु । तिण वुत्तउ तुह सुहनिलउ होसइ पुत्तु अवस्सु ||६||१६६१।। तं सोउं तुहा तीए समयम्मि दोहलो जाओ । गयखंध-गया मिठेण राइणा धरिय-सियछत्ता ||७||१६७०।।
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सुमइनाह-चरियं
पूरिय-समग्ग-मग्गण-मणोरहा रइय-चारु-नेवच्छा । पेच्छामि अगालच्छणमुज्जाणे विहरमाणा हं ।।८||१६७१।। तो नरिं दिण गरुय-नेहेण संपाडिय दोहलय,
उचिय-कालि सा पुत्तु पसवइ ।। विलसंत-तेयप्पसर पहय-तिमिरु पुन्व व्व दिणवइ । तं निसुणिवि नरवइ हुयउ हरिसाऊरिय-काउ | सुय-जम्मिण जणु हरिसियइ इयरु वि किं पुण राउ ||9||१६७२।। ठांवि ठांवि वर-मंच रइज्जहिं । .
पहि पहि मुत्तिय-सत्थिय दिज्जहिं । घरि घरि वंदणमाल निबज्झहिं ।
पगि पगि कप्पूरागुरु डज्झहिं ||१०||१६७३।। हट्टसोह सव्वत्थ वि किज्जइ ।
गयण-विलग्ग पडाय ठविज्जइ । रायमग्ग कुंकुम-रसि सिच्चहिं ।
कामिणी पीणपओहर नच्चहिं ||११||१६७४।। वज्जहिं तूर सद्द-भरियंबर |
पविसहिं अक्खइवत्त निरंतर । पउर पढंत छत्त परिवारिय ।
नयरुज्झायई ति य निवारिय ||१२||१६७५।। असण-वसण-तंबोलिहिं सायर ।
सम्माणिज्जहि सयल वि नायर | भमहिं महल्लय कय-बहु-वग्गण ।
पढहिं दाण-हरिसिय-मण मग्गण ||१३||१६७६।। इय निय-पुरि राइण गुरु-अणुराइण विरइउ पुतह जम्मछणु । अह वाइउ कित्तिउ परभवि तित्तिउ विहिउ जेण
जिण-पय-नमणु ||१४||१६७७|| जं गब्भ-गए देवी-सुयम्मि नयराओ निग्गया सुहिया । तत्तो निग्गयसुहिउ ति तस्स पिउणा कयं नामं ।।१५।।१६७८।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं कुमरु वदृइ ससि व सिय-पक्खि ।
संपत्त-संपुन-कलु कमिण तारु तारण्णु पावइ । अह तरस असरिस भणिवि ।
रायकन्न न वरेइ नरवइ । जं वच्छरु छण-वंचणिण पाव-पसंगिण धम्मु । नासइ दियहु कुभोयणिण कुकलत्तिण पुण जम्मु ||१६||१६७१।। एउ निसुणइ धूय वासवह वेसालिपुरि-सामियह ।
कामकित्ति-नामेण मणहरा तो निय-पिउ विन्नवइ ।
पहवेसु तसु मई सयंवर | तिण पहविय पयट्ट पहि, सुय निग्गयसुहिएण । सोयासंघिय-पेम्मगुण भणि हरिसिउ हियएण ||१७||१६८०।। संभरायण तीइ पट्टविउ ।
वर-विप्पु जाइवि पुरउ | राउ तेण विन्नत्तु सायरु ।
जं सामि सरियाइ न हु अन्नु ठाणु मिल्लेवि सायरु । इय चिंतेविणु अणुचिय वि एइ सयंवर एस । पइं कायव्वु न खेउ फुडु बहुखम हुति नरेस ||१८||१६८१|| संभरायण-वयण-विनास-परितुहइ ।
नरवइ भणइ उचिय चेव सायरह सुरसरि । को एत्थ खेउ त्ति मणु मुणिवि
निवहं संपत्त पुरवरि । सा परिणीया मणह पिय पिउ-वयणिण कुमरेण | गुरु-उवइहु मणिहु तह गिण्हइ को न खणेण ? ||११||१६८२|| तह परोप्पर-जाय-वीसंभ-संभोय-सुहलालसह जंति दियह । अह सुणिवि दुज्जउ रणसूरु नामिण निवइ वलिउ
कुमरु तज्जय-समुज्जउ । कुमरिण रणि सो निग्गहिउ कोहु व पसम-गुणेण । तुहु तिविक्कमु विक्कमेण निग्गयसुहियह तेण ।।२०।।१६८३।।
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२५३
सुमइनाह-चरियं रज्जभारह जोग्गि पइ पुत्ति परलोय-कज्जज्जम-मणि
मणुय-जम्म-फलु लेमि संपइ । इय जंपिवि पुहइवइ नियय-रज्जु कुमरह समप्पइ । गुरु-पय-मूलि तिविक्कमु वि जिणमय-दिक्ख पवन्नु । विसय-सोक्खु तह मोक्खु पहु सेविउ जाणइ धन्नु ।।२१।।१६८४|| तो निरंतर विसय-वासत्तु नरनाहु
निग्गयसुहिउ गमइ कालु । अह समइ अन्नहि गुण-गब्विय
दूय जुवराय मंति अप्पाणु वन्नहिं । इहु अम्हह दक्खत्तणिण पालइ रज्जु पमत्तु । पवणह विणु नणु पज्जलइ जलणु वि कित्तियमत्तु ।।२२||१६८५।। एउ निसुणिवि भणिउ नरवरिण
जुवराउ नामिण मयणु सुमइ-मंति तह दूउ सुवयणु ।
वसिहुउ विक्खेव विणु मह पयावमेत्तेण अरियणु । ता देसहँ दंसण-विसइ कोउगु फुरइ उदग्गु । इय जंपिवि सो संचलिउ करि-रह-तुरय-समग्गु ।।२३।।१६८६।। नगर-गिरि-सर-सरिय पेक्खंतु
निय-देस-सीमंति गउ ते भणेइ मणि मज्या वसेण ।
असहाय चत्तारि जण भमहु देस अम्हे अकिंचणा । तिहिं जंपिउ पहु पूरियइ वासण एह समत्त । रज्ज सुत्थु विरइवि चलिय ते कंचीपुरि पत्त ||२४||१६८७।। भूवइणा भणियं भोयणाई को तुम्ह अज्जु कारविही । जंपियमिमेहिं सो च्चिय जं देवो आणवेइ त्ति ||२५||१६८८।। दक्खो त्ति तओ दूओ आणत्तो पट्टणे पविहो सो | तम्मि दिणे तत्थ महो बहुओ वणियाणं ववहारो ||२६||१६८१।। पुडग बंधेउं एकु अखमो त्ति सो दुक्कओ हहि ।
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२५४
तसु कुणइ तत्थ पुडगाइ-बंध | लट्ठोत्ति बहुमन्नियउ तिण विदत्तु वणिएण बहु धणु । भोयण - समइ समुहिइण जंतिण तिण निय-गेहि । दूउ पयंपिउ पाहुणय अम्हिहिं सहुं घरि एहि ||२७|| १६९०|| तेण वुत्तउ तिन्नि अन्नेवि मह मित्त चिडंति बहिरं । तु ते वि वाणिइण जंपिउ हक्कारिय ते वि । तिण भोयणाइं तं दिण्णु जं पिउ |
तहिं दविणव्वउ वाणियह हूउ सवायउ दम्मु । जं पावइ फलु पत्तिउ जिण विहिउ विसहु वि कम्मु ||२८|| १६९१।।
बीय- दिणि गय ते वि रयणउरि ।
नर
आणत्तु भोयण - विसइ सुंदरी त्ति जुवराइण । - वेसिण तं नियइ मगह-गणिय गरुयाणुराइण । धूय मुणिवि नर - रमण मण चिंताभर मुक्काई । निब्बंधिण जुवराउ घरि हक्कारिउ अक्काइं ||२१||१६१२|| तत्थ पेच्छइ जुवइ जुवराउ कमलारुण-करचलण कुंभि-कुंभ- विब्भम - पउहर । कंदोहदलसम - नयण वयण- 1 T- विजिय-संपन्न - ससहर । तीए सहत्थिण कणयमय आसणि दिन्नि निविडु | आदत्तउ तिण तीइ सहुं जूय-विणोउ विसि ||३०|| १६९३|| अक्खजूइण तेण अक्खित्त सा उचिअ - वेलहिं ।
-
-
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
भाइ पाणनाह मज्जेसु संपइ ।
अन्ने वि अच्छंति बहि मज्झ मित्त
जुवराउ जंपइ, सा बुल्लइ आवंतु तिवि, हक्कारिय तो झत्ति । मज्जण - भोयण- पमुह तह विरइय गुरु-पडिवत्ति ||३१|| १६९४|| तत्थ दम्महं लग्ग सयपंच
पंचेउरि नयरि गय ते वि तईयदिणि तो पसाइण । आणत्तु मइमंतु भणि भोयणत्थु वरमंति राईण | धम्माहिगरण सो वि गउ मइगुण जहिं अग्घंति । बुद्धिपहाण जि हुंति नर ति किंव कुकम्मु कुणंति ||३२|| १६१५||
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सुमइनाह-चरियं
तत्थान देस-वणिउ बालावच्चो दुभज्जओ अ मओ । तत्तो सुयमाया हं सुयमाया हं ति भणिरीणं ||३३||१६१६|| भज्जाणं ववहारो जाओ किरियाउ संति नो तेण छिज्जइ । नसो(तओ) विसल्ला नरिंद-पमुहा पुर-पहाणा ||३४|१६१७।। ताव सुमइणा भणिउ साणंद
छिंदामि ववहारु हउं तेहि होउ एवं ति वुत्तउं ।
सो भणइ दारउ दविण दुन्नि भाग कीरहु । निरुत्तउ तं मन्नइ लोहिण इयर, न हु नेहिण सुय-माय । सुमइ भणइ निन्दा जणणि, लुन्दा पुण कयमाय ||३५||१६१८।। मुणिवि मंतिण छिन्न ववहारु
नरनाहिण रंजिइण भोयणाई पडिवत्ति सव्वह । हक्कारिवि आयरिण विहिय विहिवि चउसहस-दम्मह || दियहि चउत्थइ ते वि गय गयउरि-नयरि पविट्ठ । नवरि नरिंदु सयं गयउ सुत्तु असोगह हिह ||३६||१६११।। एत्थु अवसरि सामि गयपुरह
निप्पुत्तु पंचत्तु गउ पंच-दिव्व अहिसित्त लोइण |
नीसेस पुरि परिभमिवि ताई पत्त अह दिव्वजोइण । नगरुज्जाणि असोग-तलि अपरावत्तिय-छाउ । पडिवन्नउ पुल्लिक्कनिहि पंचिहिं दिविहिं वि राउ ।।३७।।१७००।। पुरि पवेसिउ पुर-पहाणेहिं
अहिसित्तउ रज्जि तसु तासु कन्न कन्नत-लोयण
परिणेइ पंकय-वयण जयसिरि ति संपत्त-जोयण । गउरवि भोयण पमुहि तह लग्गउ दम्मह लक्खु । विणु पुनह नहि अण्णुगुणु रज्ज-समप्पण-दक्खु ||३८||१७०१|| तासु कइवय दिण अइक्वंत पालंतह रज्जसिरि ।
न व निवुत्ति जणयाण धरसहि ।
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રષદ
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पडिहार आणत्त तिण ताडह त्ति तो ते वि पहसहि । चित्ति सकोविण चित्तगय आणत्ता पडिहार | तिहिं ताडिय अविणीय नर दितिहिं गाढ पहार ।।३१।।१७०२।। एम्व पिच्छिवि तासु माहप्पु गिण्हति गन्वुद्धर वि धरणि-निहिय-सीसेण सासणु । किं होइ जणु अवसु वसि जणिउ जा न पोरुस-पयासणु । अह ते वुत्त नरेसरिण तुम्ह गुणह फलु एउ । लज्जिय तिवि अण्णोण्ण मुह पेक्खिवि पावहिं खेउ ||४01|१७०३।। अवर-वासरि दोहिं पुरसेहिं विन्नत्तु ।
__ नरवइ रहसि अस्थि अत्थ सुत्थिय जणुत्तमु । सिरिनयरु नामिण नयरु रयण-भवण-किरिणोह-हय-तमु । तहिं नरकेसरि नामु निवु पुरपरिहुब्भडबाहु । जसु अत्थि छज्जइ समरभरि अरि-ससि-कवलण-राहु ।।४१||१७०४|| ।। तासु अच्छइ देवि महलच्छि तसु कुखिहिं संभविय ।
दुहिय सव्व-लक्खण-समल्लिय निय-रूव-निज्जिय-तिजय पंकयच्छि जयलच्छि-सन्निय । तं पइ कहिउ निमित्तिइण जो परिणिस्सइ एह । तासु वसुंधर सयल वसि होसइ निस्संदेह ||४२।। १७०५।। तासु कन्नह महइ सयमेव नरकेसरि परिणयणु अणुचियं ति वारिउ पहाणिहि । सावज्ा आणत्त तिण तह वि तेहिं मइगुण-निहाणिहिं । संरक्खिय पच्छन्न तसु तं पुणु तिण विन्नाउ । कुविउ कयंतु व तहँ उवरि तो नरकेसरि राउ ||४३||१७०६।। तिहिं पहाणिहिं एउ विनत्तु नरकेसरि कुनय-निहि विसय-लुद्ध निद्धम्म-सेहरु । तुहुँ विसय-अणहीण-मणु धम्मवंतु नयलच्छि-कुलहरु । अम्हे एयह रक्खसह रक्खि करिवि कारुन्नु । दुत्थिय-जण-अब्भुदरणु धीर पयंपहि पुन्नु ||४४||१७०७।।
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सुमहनाह-चरियं
एयं परिचयामो अंगेणेवागए तुमम्मि इहं ।
चिंतामणिम्मि पत्ते कायमणी को न परिहरइ ? ||४५ || १७०८।।
तो हरिसिउ नरिंदो अणेण वागए तुम मित्ति ।
एयं सत्त - परिक्खण- फलं ति अवधारिए चित्ति ||४६ || १७०१ || तो निजुंजिवि रज्ज-वावारि
मइमंत-मंति- प्पमुह अणुकहेवि सब्भावु भूवइ । वीरक्करस- रसिय मणु असिसहाउ सह तेहिं वच्चइ । मंतिहिं तत्थ पडिच्छियउ परिणाविउ जयलच्छि । परदेसि वि पुन्नग्गलहं पट्ठि न छड्डइ लच्छि ||४७||१७१०|| तिर्हि पयासिउ सयल-नयरम्मि नरनाहु निग्गयसुहिउ चिर नरिदि सयमवि पलाणइ ।
अणुरत - नायर - नियरु रज्ज-सुक्खु अक्खंडु माणइ । तसु जयलच्छि रमंतयह कइवय दिण वोलीण । तक्खसिलह अन्नह समइ आगय पुरिस पवीण ||४८ || १७११|| तेहिं पणमिवि निवइ विन्नत्तु
पहु वेढिय तक्खसिल सूरतेय नामिण नरिंदिण |
तं मुणिवि निग्गयसुहिउ कुविउ चलिउ सामंतवंदिण । थेव-दिणेहिं य लक्खियउ तक्खसिलहिं संपत्तु । सूरतेउतिण रणि जिणिवि बदु बलिहु वि सत्तु ||४९|| १७१२|| पुणु विमुक्कउ करिवि सक्कारु
कारुण्ण-रस- सायरिण, सो वि तस्स नामेण जसमइ उत्तुंग - थणहर तुलिय-कणय- कलस निय-धूय वियरइ । लेइ सयं पुण आण तसु सूरतेओ अइजाणु | वणिउ व कयविक्कय करिउ जीवावइ अप्पाणु ||४०|| १७१३॥ इय निग्गयसुहिउ महानरेसु
अकिलेस - वसीकय - बहुय - देसु ।
पत्तीहिं चउहि सहुं विविह-भोय
अणुवइ अदि- विओय सोय ||११|| १७१४||
उप्पन्न कमेण इमाण पुत्त
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं चत्तारि नाइ पुरिसत्थ मुत्त । तिवि सिक्खिय-सयल-कला-कलाव
तारुन-पत्त सुंदर-सहाव ।।७२।। १७१५।। अह अन्न-दियहि पसरिय-विवेउ
नरनाहु चित्ति चिंतवइ एउ । मइ पुव्व-जम्मि किउ कवणु धम्मु
जिं रज्जु पत्तु अच्चंत-रम्मु ||५३।।१७१६।। एत्थंतरि मुणिय-विवाग-समउ
चउनाण-जुत्त जण-जणिय-पमउ । संपत्तु तत्थ गय-सयल-दोसु
गुरु जंगमु व धम्मघोसु ।।५४ ।।१७१७।। आगमणु मुणिवि तसु वसुहनाहु
विप्फुरिय-फार-हरिस-प्पवाहु । गुरु-रिद्धिहिं गुरु-पय-नमण-हेउ
संचलिउ चउहि भज्जहिं समेउ ||१५||१७१८|| महिमंडल-निहिय-निडालवटु
गुरु पेक्खिवि पणमइ ताव लहु । कल्लाण-वल्लि नव-नीरवाहु
गुरुणा वि दिण्णु तसु धम्मलाहु ।।६।।१७११|| गुरु-पासि निसन्नउ भणइ राउ
मह एत्तिउ कसु कम्मह विवाउ । गुरु कहइ हूउ जिण-नमणु स ज्जु
तुह पुव्व-जम्मि तिण पत्तु रज्जु ।।१७।।१७२०।। फलु अज्ज वि एयह लडु थेवु
जमणंतरु होहिसि पवरु देवु । तो भुंजिवि वर-सुर-मणुय-सोक्खु
सत्तमइ लहिस्ससि जम्मि मोक्खु ।।५८।।१७२१।। इय सुणिवि पहिहिण पत्थिवेण
गुरु-कम्म-गंठि भिन्नउ खणेण ।
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૨૬
सुमइनाह-चरियं
सह सहयरीहिं सम्मत्त पत्तु पडिवन्नु कमेण य सावगत्तु । जिणपुज्ज-कयायरु जीवदयावरु वसुहाहिवु निग्गयसुहिउ। मुणिसेवासत्तउ पाव-विरत्तउ पावइ सव्वु वि गुरु-कहिउ ||५||
||१७२२।। जिणभत्ति-पहावेण वि दाणम्मि समुज्जमो विहेयन्वो । जं धम्मसिद्धि-बीयं पढममुदारत्तणं भणियं ||१७२३|| यतः
औदार्यं दाक्षिण्यं पाप-जुगुप्सा च निर्मलो बोधः । लिङ्गानि धर्म-सिद्धेः प्रायेण जनप्रियत्वं च ||१७२४।। दालिदं कुवियं व तेसिमणिसं नालोयए संमुहं, नो मिल्लेइ घरंकमंकवडिया दासि व्व तेसिं सिरी । सोहग्गाइ गुणा चयंति न गुणाबद्ध व्व तेसिं तणुं, जे दाणम्मि मई कुणंति मणुया सग्गापवग्गावहे ||१७२५।। दाणं पुण नाणाभयधम्मोवटुंभ-भेयओ तिविहं । रयणत्तयं व सग्गापवग्ग-सुहसाहयं नाणं ||१७२६।। तत्थ दुभेयं मिच्छानाणं च सम्मनाणं च । जं पाव-पवित्तिकरं मिच्छानाणं तमक्खायं ||१७२७।। तं च इमं वेज्जय-जोइसत्थ-रस-धाउकाय-कामाणं । तह नदृसत्थ-विग्गहम्मि गयाण परूवर्ग सत्थं ॥१७२८|| जं जीवदया-मूलं समग्ग-संसार-मग्ग-पडिकूलं । भावरिउहियइ-सूलं तं सम्मं नाणमुद्दिडं ।।१७२१|| तं पुण दुवालसंगं नेयं सव्वण्णुणा पणीयं ति । मोक्खतरु-बीयभूओ धम्मो च्चिय वुच्चए जत्थ ।।१७३०।।किञ्चसम्मत्त-परिग्गहियं सम्म-सुयं लोइयं तु मिच्छ-सुयं । आसज्जओ सोयारं लोइय-लोउत्तरे भयणा ||१७३१।। नाणं पि तं न नाणं पावमई होइ जत्थ जीवाणं । न कयावि फुरइ रयणी सूरम्मि समुग्गए संते ||१७३२।। नाणं मोह-महंधयार-लहरी-संहार-सूरुग्गमो, नाणं दिह-अदिह-इह-घडणा-संकप्प-कप्पडुमो ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं नाणं दुज्जय-कम्म-कुंजर-घडा-पंचत्त-पंचाणणो, नाणं जीव-अजीव-वत्थु-विसरस्सालोअणा लोयणं ||१७३३।। नाणं धम्म-विरुद्ध-बुद्धि-नलिणी-संकोअ-चंदायवो, नाणं भद्द-परंपरा-वणलया-उल्लास-धारा-धरो । नाणं जम्म-जराय-दुक्ख-पडली-कंतार-दावानलो, नाणं भीम-भवंध-कूव-कुहरुत्तारे करालंबणं ||१७३४।। नाणेण पूण्ण-पावाई जाणिउं ताण कारणाइं च । जीवो कुणइ पवित्तिं पुन्ने पावाओ विणियत्तिं ||१७३५।। पुल्ने पवत्तमाणो पावइ सग्गापवग्ग-सोक्खाई । नारय-तिरिय-दुहाण य मुक्कइ पावाओ विणियत्तो ||१७३६।। जो पढइ अउव्वं सो लहेइ तित्थंकरतमन्नभवे । जो पुण पढावइ परं सम्म-सुयं तस्स किं भणिमो ||१७३७।। जो उण साहिज्जं भत्त-पाण-वरवत्थ-पोत्थयाइहिं । कुणइ पढ़ताणं सो वि नाण-दाणं पयट्टेइ ||१७३८।। नाणमिणं दिताणं गेण्हताणं च मोक्खपुर-दारं । केवलसिरी सयं चिय नराण वच्छत्थले लुढइ ।।१७३१|| सम्म नाणेण वियाणिऊण एगिंदियाइए जीवे | ताणं तिविहं तिविहेण रक्खणं अभयदाणमिणं ||१७४०।। जीवाणमभयदाणं जो देइ दयावरो नरो निच्चं । तस्सेह जीवलोए कत्तो वि भयं न संभवइ ।।१७४१|| आउं दीहमरोगमंगमसमं रुवं पगिढ़ बलं, सोहग्गं तिजगुत्तमं निरुवमो भोगो जसो निम्मलो । आएसिक्व-परायणो परियणो लच्छी अविच्छेयणी, होज्जा तस्स भवंतरे वियरए जो सव्व-जीवाभयं ||१७४२|| जीवाइ विणा चावं व मंडलग्गं व तिक्ख-धाराए । जीवदयाइ विहूणं विहलं सव्वं अणुहाणं ।।१७४३।। जं नव-कोडी-सुद्धं दिज्जइ धम्मिय-जणस्स अविरुद्धं । धम्मोवग्गह-हेउं धम्मोवहभदाणमिणं ।।१७४४।।
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तं असण- पाण-ओसह-सयणासण-वसहि वत्थ- पत्ताइं । दायव्वं बुद्धिमया भवण्णवं तरिउकामेण || १७४५ || तं पुण देयं सज्झाय-ज्झाण-निरयरस चत्त- संगस्स जो तेण उवग्गहिओ तव संजम - भारमुव्वहइ || १७४६ ।। कम्म- लहुअत्तणेणं सो अप्पाणं परं च तारेइ । कम्मगुरुं अतरंतो सयं पि कह तारए अन्नं ।।१७४७।। तं दायग- गाहग-काल-भाव- सुद्धीहिं चउहिं संजुत्तं । निव्वाण - सोक्ख-कारणमणंतनाणीहिं पन्नत्तं || १७४८ || जो देइ निज्जरत्थी नाणी सद्धाजुओ निरासंसो । मयमुक्का जोग्गं जइजणस्स सो दायगो सुद्धो || १७४९ || जो देइ धेणु - खेत्ताइं जइजणाणुचियमेय विवरीओ । सो अप्पाणं तह गाहगं च पाडेइ संसारे ||१७५०|| जो चत्त- सव्व - संगो गुत्तो वि जिइंदिओ जियकसाओ । सज्झाय - झाण-निरओ साहू सो गाहगो सुद्धो || १७५१ || पुव्वुत्त-गुण- विउत्ताण जं धणं दिज्जए कुपत्ताणं । तं खलु धुव्वइ वत्थं रुहिरेण च्चिय रुहिर - लित्तं ॥१७५२ ।। सुन्नं (द्धं) सुहं पि दाणं होइ कुपत्तम्मि असुह-फलमेव । सप्पस्स जहा दिव्न्नं खीरं पि विसत्तणमुवेइ || १७५३ || तुच्छं पि सुपत्तम्मि उ दाणं नियमेण सुहफलं होइ । जह गावीए दिन्नं तणं पि खीरत्तणमुवे ||१७७४ || दिनेण जेण जइया जइजण देहस्स होइ उवयारो । भत्तीए तम्मि काले जं दिज्जइ काल - सुद्धं तं ।।१७५५ ।। काले दिन्नरस पहेणयस्स अग्घो न तीरए काउं । तरसेवाथक्क-पणामियस्स गिण्हंतया नत्थि || १७५६ || कालम्मि कीरमाणं किसिकम्मं बहुफलं जहा होइ । कालम्मि तहा दिन्नं दाणं पि हु बहुफलं नेयं ॥१७५७ ।। अप्पाणं मन्नंती कयत्थमेगंत - निज्जरा हेउं ।
जं दाणमणासंसं देइ नरो भावसुद्धं तं ।।१७५८।।
सुमइनाहचरियं
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૨૬૨
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं महया वि हु जत्तेणं बाणो आसन्न-लक्खमहिगिच्च । मुक्को न जाइ दूरं इय आसंसाए दाणं पि ||१७५१।। मोक्खत्थं जं दाणं तं पइ एसो विही मुणेयव्वो । अणुकंपा-दाणं पुण जिणेहिं कत्थ वि न पडिसिद्धं ।।१७६०।। जं भावेण विसुद्धं पत्ते थेवं पि दिज्जए दाणं । होइ सुदत्तस्स व तं महल्ल-कल्लाण-संजणयं ।।१७६१।।तहाहि
[२. विधि-दाने सुदत्त-कथा] अत्थि पुरं सागेयं जं निच्चं धणय-लक्ख-कयसोहं । एक्वेणं चिय धणएण भूसियं हसइ अयल(अलय)पुरिं ||१७६२।। तस्सिं सुदत्त-नामो कम्मयरो पयइभद्दओ आसि । दाणरुई सो निच्चं खिज्जइ अधणो त्ति चित्तेण ||१७६३|| हयविहिणो दुविलसिय-दुर्ग पि एयं विडंबणा बीयं । किविणाण धणं तह निदणाण दाणम्मि जं वंछा ||१७६४|| सो कहाणयणत्थं वच्चइ दरम्मि भोयणं गहिउं । दाऊण किंचि कस्सइ तं भुंजइ दाणसीलो त्ति ||१७६५।। अह अन्न-दिणे दिहो पडिमा-पडिवनगो रिसी तेण । जाओ से बहमाणो वीसमिओ तत्थ स मुहत्तं ||१७६६|| भिक्खाए रिसी चलिओ उवणीया तस्स तेण तो भिक्खा | उवओग-सुदि-पुव्वं पडिच्छिया तेण सा मुणिणा ।।१७६७।। तो हरिसिओ सुदत्तो मन्नइ हियए कयत्थमप्पाणं । घरमागएण तेणं कहियमिणं नियय-घरिणीए ||१७६८|| अणुमोइयं इमीए तए फलं जीवियरस पत्तं ति । तं भावंताण ताणं को वि कालो अइक्वंतो ||१७६१।। अह मरिऊण सुदत्तो साकेए एत्थ चेव नयरम्मि | निय-तेय-पसर-निज्जिय-रविणो सिरितेय-नरवइणो ||१७७०।। भाणुमई-देवीए निसग्ग-सोहग्ग-संगयंगीए । कुविखम्मि समुप्पल्लो सिप्पउडे मोत्तिय-मणि व्व ||१७७१।।
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सुमइनाह-चरियं
૨૬૩ तीए च्चिय रयणीए अणाइ दिहो मुहेण पविसंतो ।। सुविणम्मि रयण-रासी निय-तेयप्पसर-हय-तिमिरो ||१७१२।। दहण सुह-विउद्धाइ साहिओ पिययमस्स विहि-पुव्वं । भणिया अणेण सुंदरि ! तेयस्सी ते सुओ होही ।।१७७३।। तीए पडिस्सुयं तं लदो रन्ना दिणम्मि तम्मि निही । समयम्मि समुप्पन्नो देवीए दोहलो एवं ।।१७७४|| परितोसियऽत्थिवग्गा कीलामि नई-तडेसु सह रब्ला । सो पूरिओ निवेणं धन्नाणं न दुल्लह किंपि ||१७७५|| कीलंताणं ताणं च नाइदूरे नई-तडी पडिया । तत्थ मणि-कणय-पुन्ना उम्मिंठा कलस-संघाया ||१७७६|| गब्भो महप्पभावो त्ति विम्हयं उवगओ जणो सव्वो । समयम्मि सा पसूया जाओ तणओ भवणतेओ ||१७७७।। कयमुचियं करणेज्जं मासे पुलम्मि निम्मियं नामं । वसुतेओ त्ति निवेणं सम्माणिय-सयल-लोएणं ।।१७७८।। देहोवचएण इमो कलाकलावेण तह य वहंतो । रमणीयण-माण-मडप्प-मोडणं जोव्वणं पत्तो ||१७७१।। सा तस्स पुव्वघरिणी कोसंबीए पुरीए पवराए । जुगबाहु-निव-पियाए विमलवईए सुया जाया ||१७८०।। तत्तो अ कयं मयणमंजरि त्ति नाम इमीए जणएहिं । सिक्खिय-कला-कलावा सा वि ह जोव्वणमणुप्पत्ता ||१७८१|| अह 'राढाहिव-जयमंगलस्स पुत्तेण रूवजोत्तेण । मंगलराएण कया पुच्छिओ मागहो एक्लो ।।१७८२।। देसतंराइं तुमए भद्द ! भमंतेण किं पि जइ दिहं । कन्ना-रयणं ता कहसु तेण भणिओ' सुण कुमार ! ||१७८३।। कोसंबी-नयरीए जुगबाहु-नरिंद-नंदिणि-मिसेण । केणावि हेउणा का वि सुरवहू एत्थ अवयरिया ||१७८४|| जीए विरहे सुरिंदो नयण-सहस्स-छलेण उव्वहइ । मयणग्गि-तत्तमंगं निव्वविउं नलिण-पत्ताई ॥१७८५।।
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૨૬૪
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तं सोऊणं मंगलराएण वियंभियाणराएण | मग्गाविया सपणयं सा कल्ला नियय-पुरिसेहिं ।।१७८६।। अवसउणो ति न दिन्ना रन्ना जुगबाहुणा तओ बाला । वर-भत्तार-निमित्तं आराहइ रोहिणिं देविं ||१७८७|| कुणइ नियमोववासे सुदुक्करे सुयइ भूमि-सयणिज्जे । निच्चं जवेइ पुरिसाणुराय-संवायणं मंतं ||१७८८।। अच्छइ अ नागवल्ली-आलिंगिय-पूग-पायव-तलम्मि । इय किच्च-निच्चलाए कयवइ(कइवय) दियहा अइक्वंता ||१७८१।। अह सागेए नयरम्मि मंतगोतो ति साहगो पत्तो । बिल्लाइहोममेसो करेइ पुरपरिसरुज्जाणे ||१७१०।। वसुतेएणं वर-तुरय-वाहणत्थं गएण सो दिहो । जं तस्स न संपज्जइ तं दिज्जह एवमाइहं ||१७११|| तं पुच्छिऊण तत्तो सव्वं संपाडियं निउत्तेहिं । वरिसम्मि गए पुणरवि वसुतेएणं इमो दिहो ||१७१२|| अज्ज वि न होइ सिद्धि त्ति कोउगेणं गओ तया तम्मि । नमिउं कुमरो तं भणइ भद्द ! किं साहसि तुमं ति ||१७१३।। सो भणइ जक्खिणिमहं कुमार ! परमेसरि पसाहेमि । कुमरेण वुत्तमित्तिय-कालेण वि सिज्झाए किं न ? ||१७१४|| उत्तमसिद्धी खु इमा कह सिजाइ इत्ति साहगो भणइ । वसुतेएणं भणियं बिल्लाइं तिन्नि अप्पेहि ||१७१५।। तेणावि अप्पियाइं गुरुओ एयरस संकिलेसो त्ति । भणिऊण हुणियमेगं न खमो दुक्खियमिमं दहुं ।।१७१६|| इय बीयं पि हु बिल्लं हुणियं तो निग्गया तणु-पहाहिं । पायडिय-दियंता दिव्व-जविखणी जलण-कुंडाओ ||१७१७।। भणियमणाए-भण ते किं कीरइ ? तो भणेइ वसुतेओ । आइसइ साहगो जं इय भणिऊणं गओ कुमरो ||१७१८।। उवयरिऊण परेसिं जं पच्चुवयार-भीरुणो गरुया । तत्तो हुंति निरीहा तं तेसिं चरियमच्छरियं ||१७99।।
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૨૬૩
सुमइनाह-चरियं
भणिओ य साहगो जक्खिणीए आइससु जं मए कज्जं । सो भणइ ताव चिहउ कायव्वं कहसु मह एयं ||१८००।। तमए किमेत्तिएण वि कालेण न दंसणं पि मह दिण्णं । कुमरस्स पुण किलेसं विणा वि एवं तुमं सिद्धा ? ||१८०१।। अक्खेइ जविखणी निच्छिओ खु एसो सिरं पि होमेज्जा । तईयाए वाराए इमरस सिज्योज्ज जइ नाहं ||१८०२।। अह साहगो वि चिंतइ महाणुभावो इमो महासत्तो । जइ वि न किं पि अवेक्खइ स-भत्ति-पयडण-कए तह वि ।।१८०३।। कोउगमित्त-फलं देमि रूवपरिवत्तिणिं महाविज्जं । तो तस्स सबहुमाणं तेण सा सहिउँ दिण्णा ||१८०४|| तेणावि माणणिज्जा जणाण एवंविहं ति पडिवण्णा | अह मयणमंजरीए तम्मि दिणे रोहिणी तुहा ||१८०५|| तो रोहिणीए तीसे वसुतेओ दंसिओ सुविणयम्मेि । भणियं च तीए भद्दे तुह होही एस भत्तारो ||१८०६।। वसुतेयस्स वि कुमरस्स दंसिया मयणमंजरी सुविणे । भणियं च तीए- एसा भविस्सए तुज्ा घरिणित्ति ||१८०७।। दोण्हं पि साहियाइं ठाण-कुलाईणि ताण देवीए । एसो य पच्चओ जं कयवय-दियहेहिं एहिं ति ||१८०८।। तुह रायपुत्ति ! वरगा इमस्स पिउ-पेसिया पहाण-नरा । . एहिं ति दायगा तुह इमीए पिउ-पेसिया कुमर ||१८०१।। आरोग्गोदग्ग-जलनिहि-समुत्थ-मुत्ताहलोह-निम्माया । दिन्ना य देवयाए तीए एक्कावली एक्का ||१८१०।। संलत्तं च इमीए ति सत्त-वाराहिवासिय-जलेण । सत्थाइ-पहारा तक्खणेण रुज्झति अहिसित्ता ||१८११|| तुम्हे दुवे वि मोत्तुं न य परिभोगोचिया परस्स इमा । इय जंपिऊण पत्ता अंदसणं रोहिणी देवी ||१८१२|| गोसम्मि विउद्धा मयणमंजरी नियइ निय-करे तुहा । मोत्तियमालं गलियं व रिक्खमालं नहयलाओ ।।१८१३।।
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૨૬૬
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं वसुतेय-कुमर-घरिणि त्ति मन्नए सहलमत्तणो जम्मं । साहियमिमीय सव्वं सवित्थरं निय-वयंसीणं ।।१८१४|| ताहिं पि जणणि-जणयाण साहियं ते वि हरिसिया हियए तेहिं पेसिया तीए दायगा निय-पहाणनरा ||१८१५||" वसुतेय-पिउ-जणेण य इमीए वरगा तहेव पहविया । एगेहिं सबहुमाणं दिण्णा अवरेहिं पडिवण्णा ||१८१६।। मुणिओ इमो वइयरो मंगलराएण मयण-विहुरेण । गच्छंति गिहिस्सं ति चिंतिउं सज्जिया धाडी ॥१८१७।। अह सा विच्छड्डेणं परिणयणत्थं पिऊहिं पहविया । देव्व-वसेणं पत्ता मंगलरायरस धाडीए ||१८१८|| काऊण रणं अविभाविऊण निय-जोग्गयं इमा बाला | गहिया मंगलराएण रयणमाल व्व काएण ||१८११।। सो वच्चंतो आसमपयम्मि आवासिओ तओ तत्थ । दहण तावसिं मयणमंजरी रहसि नेऊण ||१८२०।। नमिउं निय-वृत्तंतं कहिउं अब्भत्थिऊण रोवंती । एक्लावलिं सदुक्खं समप्पए तावसी-हत्थे ॥१८२१।। भणियं च तीए उचियस्स एयमप्पेज्जसु त्ति सप्पणयं । उवरोहसीलयाए पडिच्छिया तावसीए इमा ||१८२२|| वोलीणं तं दियह अह बीय-दिणम्मि देव्व-जोगेण | तुरगेणं अवहरिओ समागओ तत्थ वसुतेओ ||१८२३।। दिहो य तावसीए महाणुभावो त्ति लक्खिओ एसो । विहिया गुरु-पडिवत्ती उचिओ एगावलीए त्ति ||१८२४|| उवणीया तस्सेसा पडिच्छिया तेण पुच्छिया य इमा । कत्तो एस त्ति सदुक्खमक्खिओ वइयरो तीए ||१८२५|| तं सोउं वसुतेओ अहो असच्चरियमेयमेयस्स । कुविओ राढाहिव-नंदणस्स लग्गोऽणुमग्गेण ||१८२६।। सो मिलिओ अडवीए चिंतियमेएण ताव पेच्छामि । राय-सुयाए चित्तं तओ करिस्सं जहाजोत्तं ||१८२७।।
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सुमइनाह - चरियं
रुवपरिवत्तिणीए विज्जाए वामणो इमो जाओ । कुड्डावणो त्ति दासीहिं दंसिओ रायकन्नाए ।।१८२८ ।।
पुव्वभवब्भास-समुल्लसंत-हरिसाए पुच्छिओ तीए । कत्तो तुमं ति तेण वि भणियं सागेय- नयराओ || १८२१ || ससुरकुलाओ पत्तो त्ति हरिसिया मयणमंजरी चित्ते । पुणरवि वाहिज्जइ दइय- विरह - संताव-पसरेणं ॥ १८३०|| भणिया य तेण किं रायपुत्ति ! लक्खिज्जसे विसण्ण व्व । दीहं नीससिऊणं पयंपियं रायकन्नाए ||१८३१||
मज्झ विसायकहाए अलं महाभाग ! मंदभग्गाए । तो बाह-दुद्दिण-मुही सगग्गया झत्ति संजाया ||१८३२|| वामणगेणं चिंतियमेस विसाओ इमीए मज्झ कए । वामणत्तणेण कामस्स तह वि जंपियमिणं तेण || १८३३|| मा वच्च विसायं रायपुत्ति ! तुह वइयरो मए निसुओ । वसुतेयस्स तुमं जं दिन्ना तुह जणणि जणएहिं |१८३४|| मंगलराएणं पुण अवहरिया अंतरा पहे जंती । जुत्तं इमं पि मन्ने इमो न सामन्न- पुरिसो त्ति || १८३५|| निरुवायमिणं कज्जं च एवमिमिणा अवस्स होयव्वं । सुव्वइ पुराण- कहासु एवमित्थीण परिणयणं ||१८३६ || किं च मए वसुतेओ दिहो सुंदरयरो इमो तत्तो । ता सुंदरतर - लाभो न विसायकरो विवेगीण || १८३७|| इय चिंतिऊण वच्चसु हरिसं ति पयंपिरम्मि वामणगे । रोस - फुरियाहरा मयणमंजरी जंपए एवं ||१८३८|| सागेयाओ तुममागओ त्ति तह वामणंगधारि ति । कन्न - कडुयं पि सुव्वइ तुज्झ मए एत्तियं वयणं || १८३१ || जं च न सामन्न-नरो मंगलराओ त्ति सच्चमेयं ति । किं सामन्न - नरो वि हु पयट्टए इय अणायारे ॥। १८४०|| कह व निस्वायमेयं निमेस मित्तेण जं चइज्ज॑ति । पाणा तणं व ता कहमवरसमेवं इमं होइ || १८४१ ||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं भणियत्थविवज्जासो वि किं न सुव्वइ चिरंतण-कहासु । न य दिहो वसुतेओ तुमए मयणो व्व ख्वेण ||१८४२।। तो मंगलरायमिमं तत्तो सुंदरयरं तुमं भणसि । कणगाओ मणहरं रीरियं पि जइ भणसि ता भणसु ।।१८४३।। ता भणिएण अलं ते अत्था वि य मणहरत्तणं वयसु । वसुतेएणं चिंतियमहो मणं मे पिययमाए ||१८४४।। ता किं कहेमि अप्पाणमहव एयं न जुज्जए जम्हा । एगागि त्ति इमीए होइ दुहं थी-सहावेण ||१८४५|| इय चिंतिऊण भणियं-सुयणु ! मए लक्खियं न तुह चित्तं । मरिसेउ सुंदरी ता सिज्ाउ तुह वंछियं कज्जं ||१८४६।। अहवा समीहियं आगिईई एयाइ सिज्झाए चेव ।। एत्तो य साहणं साहणं ति तुमुलो समुच्छलिओ ||१८४७।। एगेण पुच्छियं करस संतियं साहियं च अवरेण । वसुतेय-राय-पुत्तरस एयमह चिंतए कुमरो ||१८४८।। पत्ता नंदण-पमुह त्ति जंपए रायपुत्ति ! भव धीरा । जायं समीहियं हिय-नंदणो आगओ तुज्झ ||१८४१।। अहयं पि तप्पउत्तो तुह-प्पउत्तिं गदेसिउं पत्तो । वच्चामि त्ति भणंतो विणिग्गओ वामणो तत्तो ||१८५०।। तो अज्जउत्त-संबंधि-जणो त्ति विलिया मणम्मि रायसुया । निय-साहणस्स मिलिओ वसुतेओ नियय-रूवेण ||१८५१।। कहिओ निय-सुहडाणं नंदण-पमुहाण तेण वुत्तंतो । जंपति कयंतभड व्व ते वि कोवुब्भडा एवं ||१८५२|| कुविओ तस्स कयंतो जग्गवियं(ओ) तेण केसरी सुत्तो । तेण विसविसम-विसहर-फण-मणिणो वाहिओ हत्थो ||१८५३।। तेणऽप्पा पबल-जलंत-जलण-जालावईए पविखत्तो । जेणऽम्ह सामि-दईया अवहरिया राय-विवसेण ||१८५४।। ता चलह इमं हंतुं काल-विलंबो न जुज्जए काउं । रोगा खला य खेमं न कुणंति अणुक्खया खिप्पं ।।१८५५।।
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રદ
सुमइनाह-चरियं
कुमरो जंपइ मा होह ऊसुया दप्प-दूसहा सुहडा । पेसिज्जउ पढमं को वि रायनीइ ति से दूओ ||१८५६।। दूयस्स साम-वयणेहिं हेउ-दिहंत-जुत्ति-जुत्तेहिं । कहमवि मंगलराओ जइ बुज्झउ वराओ जा ||१८५७।। मरइ गुलेण वि तस्स देज्ज को नाम कालकूड-विसं । इय मंतिऊण दूओ मंगलरायस्स पट्टविओ ||१८५८।। तेणावि तत्थ गंतुं मंगलराओ पयंपिओ एवं । वसुतेय-कुमारो रायपुत्त ! आणवइ नेहेण ||१८५१|| मलिणिज्जिइ जेण कुलं कलुसिज्जइ कुंदसुंदरा कित्ती । कवलिज्जइ गुण-निवहो कुणंति सुविणे वि तं न बुहा ।।१८६०।। अविभाविऊण रागंधबुद्धिणा आयइं तए भद्द । अवहरिया मज्या पिया अप्पिज्जउ नत्थि ते दोसो ||१८६१|| तह सिक्खवेमि अहमवि रत्ते 'रच्चिज्जइ ति जुत्तमिणं । जं पुण विरत्तचित्ते रमइ मणं तं जणो हसइ ।।१८६२।। वसुतेए रत्ता मयणमंजरी कमलिणि व्व सूरम्मि । तुज्झ पओसरस व संगमं पि पमिलाइ कमलमुही ||१८६३|| न य पडिवन्नं नय-संगयं पि वसुतेय-सासणं तेण । थेवमिणं ति सहरिसो सो दुक्को कुमर-सेन्नस्स ||१८६४।। थेव-दलेण वि गुरु-विक्कमेण कुमरेण निजिउं बद्धो । पबलो वि अरी जम्हा धम्मेण जओ न पावेण ||१८६५|| अह लग्ग-गुरु-पहारं वसुतेयं मयणमंजरी दहुं । गहिया हरिस-विसाएण सायरं साहए एवं ।।१८६६।। एतो य नाइ-दूरे तवोवणे तावसीइ हत्थम्मि । एगावली मए नाह अप्पिया देवया-दिण्णा ||१८६७।। ता तीइ इमो समओ त्ति जंपिओ साहिओ पभावो से । भणियं कुमरेण पिए सा मज्ा समप्पिया तीए ।।१८६८।। सा तेण दंसिया मयणमंजरीए समप्पिया तह य । पुव्व-कहिओ पओगो कओ य तीए जले खिविउं ||१८६१।।
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२७०
रायसुयाए धावी समागया तं जलं गहेऊण | कुमरो जंपइ पढमं मंगलरायरस उवणेहि ||१८७०|| कुमरो महाणुभावो त्ति चिंतयंतीए तीए उवणीयं । तत्तो मंगलराओ खणेण जाओ पउण - देहो ||१८७१ ॥ अवयारपरे वि परे कुणंति उवयारमुत्तमा नूणं । सुरहेइ चंदण - दुमो परसु मुहं छिज्जमाणो वि || १८७२ || तत्तो नंदण - पमुहा सुहडा पउणीकया बल - दुगे वि । तेणं चिय सलिलेणं पच्छा वसुतेय कुमरो वि || १८७३ || संपूईऊण मुक्को मंगलराओ इओ य वसुतेओ । घेत्तूण मयणमंजरिमुवागओ एत्थ सागेए || १८७४ || अह " गुरुय - विभूईए परिणीया मयणमंजरी तेण । उप्पन्नो वीसंभो संभोएंताण दोन्हं पि ।। १८७५ ।। जाओ कमेण पुतो तो नत्तुय-वयण दंसण- कयत्थो । सिरितेओ तं रज्जे ठविऊण तवोवणं पत्तो ||१८७६ ||
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
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जाओ महा- नरिंदो वसुतेओ तेय तुलिय- दिणनाहो । पणमंत - पउर- पत्थिव-मत्थय-मणि-लीढ- पयवीढो ॥। १८७७।।
अह अन्न- दिणे रनो कणगमय- गवक्ख- सन्निसन्नस्स । केसे विवरंतीए देवीए पलोइयं पलीयं || १८७८ || भणियं च देव दूओ समागओ तो पलोयइ दिसाओ । वसुतेय - महीनाहो ससंभमं तार- तरलच्छी ||१८७१ || तो मयणमंजरीए भणियं बहु- समर-लद्ध - विजओ वि । किं दूय-समागम-सज्झसेण जाओ सि तरलच्छी ||१८८०।। हसिऊण भणइ राया नाहं जाओ भएण तरलच्छो । किंतु तुमं जं पिच्छसि अहं न पेच्छामि दूयमिणं || १८८१|| न य पुव्वमकहिओ को वि मज्झ पासं समुल्लिउं लहइ । न य तुझ देवि दिट्ठी मह दिट्ठीए विसिद्वयरा ||१८८२|| एएण हेउणा हं कुऊहलाउलिय- लोयणो जाओ ।
सा भाइ नाह नाहं मणुस्स दूयं तुह कहेमि || १८८३ ||
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ર૭ ૧
सुमइनाह-चरियं
नवरं पलियं दहूण धम्म-दूओ मए समक्खाओ । देवीए दावियं पलियमिंदु-किरणुज्जलं रण्णो ||१८८४।। तं दहण नरिंदो हिम-संगम-दह-कमल-सम-वयणो । इत्ति तरंगिय-नयणो संजाओ बाह-सलिलेण ||१८८५।। तं फुसमाणा चेलंचलेण हसिऊण जंपए देवी । जइ लज्जसे जराए तो पडहं देव दावेमि ||१८८६।। जो देवं किल वुटुं भणिही तस्संग-निग्गहं काहं । तो भणइ निवो सुंदर ! जुत्तमिणं निविवेयाण ||१८८७।। जम्हा जयम्मि जीवा मूढा वुहृत्तणेण लज्जंता । पुण वि तरुणत्त-लुदा खिज्जति रसायण-निमित्तं ||१८८८।। वलि-पलिय-नासहेउं कुणंति तणुमद्दणोसहाईणि । "चंकम्मति सलीलं पुरओ तरुणीण तरुण व्व ||१८८१।। पुहा परेण बहुयं पि बिंति ते थेवमत्तणो जम्मं । गयजोव्वणा वि पयडंति उज्वणे जोव्वण-वियारे ||१८१०।। देवि ! मह पुव्व-पुरिसा अदिह-पलिया पलित्त-पूलं व । रज्जं परिहरिऊणं परलोय-समुज्जया जाया ||१८११।। जं पुण पयाण-कम्मं विलंघिउं रज्जमेत्तियं कालं । विहियं मए महंतो तं जाओ मह मणे मच्चू ।।१८१२|| ता संपइ पज्जत्तं रज्जेण विवेय-सेल-वज्जेण । परिचत्त-'सयल-संगो परलोय-हियं करिस्सामि ||१८१३|| इय नरवइ-वयणं मयणमंजरी सवण-दुस्सहं सोउं । परसु-निकत्त-वलय व्व धस त्ति धरणीयले पडिया ||१८१४।। विहिय-सिसिरोवयारा सत्थीभूया पयंपए एवं । जं पलिय-दंसणेणं मए कओ एस परिहासो ||१८१५।। तं नियइ-तुरंगेहिं निय-नयरे सज्जिया मए धाडी । तह नियइ-करेहिं मए अंगारायट्टणं विहियं ||१८१६।। ता काऊण पसायं देव ! इमं मा परिच्चयसु रज्जं । परिहासे वि कए किं जुज्जइ निव्वक्वरं काउं ||१८१७।।
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૨૭૨
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं भाइ निवो देवि ! इमम्मि जम्म- जर मरण - पमुह - दुह - बहुले । मज्झ भवे निंब - दुमे व्व सव्वकटुए रमइ न मई || १८१८ || ता वज्जिऊण रज्जं परलोय-हियं अवस्स कायव्वं । जं उभय- लोय - सहलं सलहिज्जइ माणुस जम्मं || १८९९ ।। एत्तो य तस्स पडिबीह- समयमवगच्छिऊण चउनाणी । नामेण अमरतेओ समागओ तत्थ आयरिओ || १9001
कहिओ पुरोहिणं तो हरिसवसुल्लसंत- रोमंचो | सह मयणमंजरीए तन्नमणत्थं गओ राया ||१९०१ ||
कहिओ गुरुणा धम्मो गंठि- विभेएण परिणओ ताण । वेरग्गाइसएण य संजाओ चरण - परिणामो ||११०२ ।। जिणभवण-संघपूया पुव्वं ठविऊण निय-सुयं रज्जे । देवीए सह पवन्नो राया दिक्खं गुरु- समीवे ॥। ११०३ || परिवालिय-सामन्नो काउं तिव्वं तवं गओ सग्गं । तह अपरिवडिय - धम्मो नर- सुर- रिद्धीओ भोत्तूण || १९०४ || अविउत्तो देवीए वसुतेओ सत्तमे मणुय - जम्मे । विहिदाण-धम्मबीय- प्पभावओ सिद्धिमणुपत्ती || १९०५ || सीलजुयाणं दाणं दितो जो पालए सयं सीलं । तेणं सोहग्गोवर संपत्ता मंजरी नूणं || १९०६ ||
जलणो वि जलं जलही वि गोप्पयं पव्वओ वि समभूमी । भुयगो वि कुसुममाला विसं पि अमयं सुसीलाण || १९०७ ।। तियसा वि सीलकलियं नमंति भिक्खायरं पि भत्तीए । निय सेवया वि वसुहाहिवं पि मुंचति चूयसीलं ||११०८ || सलहिज्जंति जणेहिं विसुद्धसीला मया वि आचंदं । गरहिज्जति पुणो सीलवज्जिया जीवमाणा वि || १९०१ || विप्फुरइ ताण कित्ती लहंति ते सग्ग- मोक्ख सोक्खाई । सीलं ससंक- विमलं जे सीलवइ व्व पालंति ||११||
तहाहि
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सुमइनाह-चरियं
૨૭૩ [३. शीले शीलवती-कथा] अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वासवपुरं व विबुहजणाणंदणं नंदणपुरं नयरं, तत्थ दरियारि-करि-कुंभत्थल-दलणसमुच्छलिय-मुत्ताहलच्चिय-रणंगणो अरिमद्दणो राया, तत्थ दया-दाणदक्खिन्नाइ-गुण-रयण-रयणायरो रयणायरो सेही ।
तस्स निय-सरीर-सुं देर-गुण-विणिज्जिय-सिरी जयसिरी भारिया । ताणं च पुव्वभवोवज्जिय-पुन्नपब्भार-पाउब्भवंत-सयलसमीहियत्थाणं पंचप्पयारं विसय-सुहमणुहवंताणं वच्चंति वासरा, केवलं निरवच्चत्तण-दुहं दूमेइ मणं सेहिणो' ।
अन्नया भणिओ भज्जाए- अज्जउत्त ! अस्थि एत्थेव नयरुज्जाणे अजियजिणिंद-मंदिर-दवारदेसे अजियबला देवया । सा य अपुत्ताण पुत्तं, अवित्ताण वित्तं, अरज्जाणं रज्जं, अविज्जाण विज्जं, असोक्खाण सोक्खं, अचक्खूण चक्, सरोयाण रोयक्खयं देइ खिप्पं | किं बहुणा ? जं जस्स समीहियं तं तस्स वियरइ, तो तुमं पि किमेवमुव्वेयमुव्वहसि ? कुणसु तीए उवाईयं जेण चिंतियत्थ-सिद्धी होइ । सेहिणा भणियं-पिए ! सुह सुमरावियं तए । तओ सो एहाय-विलित्तो सेय-दुकूल-निवसणो सपरियणो पूओवगरणं गहाय गओ जिण-भवणं, कया अजियसामिणो पडिमाए घण-घुसिण-घणसार-सिरिखंड-कत्थूरिया-अगुरु-कुसुमाईहिं ण्हवणच्चणाइ-महिमा | समागओ अजियबलाए अग्गओ सेट्ठी । तं च तहेव अच्चिऊण भणियमणेण-भयवइ । जइ तुह पसाएण मह पुत्तो भविस्सइ ता अहं जिणधम्मपरो ते महंत-भत्तिं करिस्सं । तुह संतियं च नामं पुत्तस्स दाहामि त्ति । तप्पभिई च पाउब्भूओ गब्भो घरिणीए । जाओ कालक्कमेण पुत्तो । कयं वद्धावणयं । पुल्ने य मासे कया महया विच्छड्डेणं जिणभवणे जत्ता । अजियजिणस्स अजियबलाए य चलणाणं पुरओ "मोत्तूण पृत्तं तस्स कयं अजियसेणो त्ति नामं | तप्पभिइं च जाओ जिणधम्म-परायणो सेही । सह जणय-मणोरहे हिं वुड्डिमुवाग ओ अजियसेणो । सो य सिक्खिय-कला-कलावो लावन्न - लच्छि-संपन्नं पवन्नो तारुल्नं । तस्स य सयल-जणब्भहियं रुवाइ-गुणगणं पिच्छिऊण चिंतियं "से हिणा-'जइ एस मह नंदणो निय-गुणाणुरुवं कलत्तं न लहइ, ता इमस्स अकयत्था गुणा । जओ
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सामी अविसेसब्लू अविणीओ परियणो परवसत्तं ।
भज्जा य अणणुरुवा चत्तारि मणस्स सल्लाइं ||११११|| एवं चिंतयंतस्स तस्स समागओ एगो वाणिउत्तो । पणमिऊण निविहो समीवे | पुढो य सेहिणा ववहार-सरुवं । कहियं च तेण सव्वं । अन्नं च, तुज्झा आएसेण गओ हं कयंगलाए नयरीए, पयट्टो ववहरिउं । जाओ जिणदत्त-"सेहिणा ववहारो | अन्नया निमंतिओ हं भोयणत्थं, तेण गओ तग्गेहं । दिहा य तत्थ चंदकंतेण वयणेण पउमराएहिं हत्थेहिं पाएहिं य पवालेणं सिरेणं दिप्पमाण-हिरण्णएणं नियंबेणं सूवलेणं अंगणं मयण-महाराय-भंडार-मंजूस व्व संचारिणी एगा कन्नगा । पूहो य मए सेट्ठी- का एस ? ति । सेहिणा भणियं- भद्द ! मह धूया-मिसेण मुत्तिमई एसा चिंता । जओ
किं लटुं लहिही वरं पिययमा किं तस्स संपज्जिही, किं लोयं ससुराईयं निय-गुणग्गामेण रंजिस्सए । किं सीलं परिपालिही पसविही किं पुत्तमेवं धुवं, चिंता मुत्तिमई पिऊण भवणे संवड्डए कन्नगा ||१११२।।
एसा य सरीर-संदरिम-दलिय-देवरमणी-मडप्फरा, सहावओ गुणप्पिया पियाला विणीया, नीयजण-संसग्ग-रहिया, हियाहियवियार-कुसला, सलाहणिज्ज-सीला सीलमइ ति गुणनिप्पन्न-नामा | बालत्तणओ वि पुव्वकय-सुकय-वसेण सउणरूय-पज्जवसाणाहिं कलाहिं सहीहिं च पडिवन्ना । इमीए य अणुरुवं वरमलहंतस्स मे अच्चंतं चिंता वियंभइ । अओ मए एसा वि चिंत त्ति वुत्ता । मए भणियं-सेहि ! मा संतप्प । अत्थि नंदणपूरे रयणायर-से द्विणो विसिह-रुवाइगुणगणेण लोउत्तरो त्ति विस्सुओ [सुओ] अजियसेणो । सो य तुह धूयाए अणुरुवो वरो त्ति । जिणदत्तेण वुत्तं- भद्द ! तुमए महामहंतचिंता-समुद्द-निमग्गरस पवर-वरोवएस-बोहित्थेण नित्थारो कओ | ता तुम चेव पमाणं । ति भणंतेण तेण अजियसेणस्स सीलमइं दाउं पेसिओ जिणसेहरो पुत्तो मए समं, सो य इहागओ चिहइ । ता जहाजुत्तमाइसउ सेही । से हिणा वुत्तं-जिणदत्तो व्व तुमए अहं पि चिंता-समुद्दाओ नित्थारिओ । ता हक्कारेसु जिणसेहरं । तेणावि आणिओ एसो । सगोरवं दिला अणेण अजियसेणस्स सीलमई । अजियसेणेणावि तेणेव सह
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सुमइनाह-चरियं गंतूण कयंगलाए परिणीया सीलमई । घेत्तूण तं आगओ स-नयरं । भुंजए भोए । अइक्वंतो कोइ कालो । कयाइ मज्झ-रत्ते घडं घेत्तूण गिहाओ निग्गहा सीलमई । केत्तिय वेलाए आगया दिहा ससुरेण । चिंतियं- नूणं एसा कुसीला | पभाए गिहिणीए समक्खं भणिओ रहसि पुत्तो- वच्छ ! तुहेसा घरिणी कुसीला, जओ, अज्ज मज्हा-रत्ते निग्गंतूण कत्थइ गया आसि । ता एसा न जुज्जए गिहे धरिउं 1 जओ
घण-रस-वसओ उम्मग्ग-गामिणी भग्ग-गुण-दुमा कलुसा । महिला दो वि कुलाई कूलाइं नइ व्व पाडेइ ||१११३|| ता पराणेमि एयं पिईहरं । पुत्तेण वुत्तं-ताय ! जं जुत्तं तं करेसु । भणिया वहुया । आगया सीलमई । 'भद्दे ! सिग्घं पेसेज्जसु' त्ति तुह जणय-संदेसओ । ता पहाए चलसु जेण तुमं सयं पराणेमि | सा वि रयणि-निग्गमणेण ममं कुसीलं संकमाणो एवमाइसइ ससुरो, पेच्छामि ताव एयं पि ति चिंतिऊण चलिया रहारूढेण सेहिणा समं । वच्चंताणि ताणि पत्ताणि नईए । सेहिणा वुत्तं-वच्छे ! पाणहाओ मुत्तूण नई ओयरसु । तीए न मुक्काओ ताओ । सेहिणा 'अविणीय' ति चिंतियं । अग्गओ गच्छंतेहिं दिहं पढम-वत्ता-पइन्नं अच्चंत-फलियं मुग्ग-खेत्तं । सेहिणा भणियं-अहो ! फलियं मुग्ग-खेत्तं | सव्व-संपया खेत्तसामिणो । तीए भणियं-एवमेयं जइ न खद्धं ति । सेहिणा चिंतियं-अक्खयं पेक्खंती वि खदं ति अक्खइ । अओ असंबद्ध-प्पलाविणी । गयाइं एगं रिद्धिस्थिमिय-पमुईय-जण-संकुलं नगरं । "सेहिणा भणियं-अहो रम्मत्तणमिमस्स !| तीए भणियं-जइ न उव्वसं ति । सेहिणा चिंतियंउल्लुंठ भासिणी इमा । गयाइं अग्गओ, दिहो आगच्छं तो परूढाणेगप्पहारो पहरणकरो कुलपुत्तओ । सेहिणा वुत्तं-अहो ! सूरो एस पुरिसो । तीए भणियं-अत्थि ताव कुटिओ । सेहिणा चिंतियं-किं न सूरो सो जो सत्थेहिं कुहिज्जइ ? परं अजुत्तजंपिरी इमा । गयाइं अग्गओ । नग्गोह-तले वीसंतो सेही । इअरी उण नग्गोह-छायं छड्डिऊण ठिया दूरे । सेहिणा भणियं-अच्छसु छायाए । न तत्थ हिया । सेहिणा चिंतियं-सव्वहा विवरीय त्ति । "पत्ताई य गाममेगं | वहूए वुत्तो सेट्ठीएत्थ मे माउलगो चिहइ । तं जाव पेच्छामि ताव तुब्भे पडिवालह त्ति । गया मज्ो, दिहा माउलगेण । ससंभमं भणिया-वच्छे ! कत्तो तुमं ?
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तीए भणियं-ससुराओ ससुरेण समं पत्थियम्हि । तेण भणियं-कत्थ ते ससुरो ? तीए वुत्तं-बाहिं चिहइ | गओ तत्थ माउलगो । हक्वारिओ सायरं सेट्ठी । स-कसाओ त्ति अणिच्छंतो वि नीओ गरुय-निब्बंधेण गेहं । भोयणं काऊण आगओ बाहिं । मज्झन्न-समओ त्ति वीसमिओ रहब्भंतरे | सीलमई वि निसन्ना रहच्छायाए । एत्थंतरे करीरत्थंबावलंबी पुणो पुणो वासए वायसो । भणियं णाए-अरे काय ! किं न. थक्कसि करयरंतो ?
एक्के दुन्नय जे कया तिहि नीहरिय घरस्स ।
बिज्जा दुब्लय जइ करउं तो न मिलउं पियरस्स" ||१११४|| - सुयमिणं सिहिणा | भणिया सा- वच्छे ! किमेवं जंपसि ? वहूए भणियं- न किंचि । सिट्ठिणा भणियं- कहं न किंचि ? वायसमुद्दिसिऊण एक्वे दुलय त्ति जं पढियं तं साभिप्पायं । वहुए वुत्तं- जइ एवं, ता सुणउ ताओ
सोरब्भगुणेणं छेय-घरसणाईणि चंदणं लहइ । रागगुणेणं पावइ खंडण-कढणाइ मंजिहा ||१११५|| तियसेहिं तोयरासी महिओ रयणायरत्तण-गुणेण । जं पुण गुणेण कीरस्स कीरए पंजरे क्खेवो ||१११६।। कणगमदब्भत्त-गुणेण खिप्पए पावयम्मि पुणरुत्तं । रमणीअत्त-गुणेणं विंदइ मुत्ताहलं वेहं ||१११७।।
एवं ममावि गुणो सत्तू संजाओ, जओ, सयल-कला-सिरोमणिभूअं सउणख्यं अहं मुणेमि । तओ अइक्वंत-दिण रयणीए सिवाए रसंतीए साहियं जहा- नईए पूरेण वुज्झमाणं मडयं कड्डिऊण सयं आहरणाणि गिण्हसु, मम भक्खं तं खिवसु । इमं सोऊण गयाहं घेत्तूण घडगं, तं च हियए दाऊण पविहा नई, कड्डियं मडयं, गहियाणि आहरणाणि, खित्तं सवं सिवाए, आगया गिह, आभरणाणि घडए खिविऊण निक्खयाणि खोणीए । एवं एक्व-दुब्लयस्स पभावेण समागया एत्तियं भूमि, संपयं तु वासंतो वायसो कहइ जहा-एयरस करीरथंबस्स हेहा दस सुवन-लक्खप्पमाणं निहाणमत्थि । तं घेत्तूण मम करंबय-घडं देसु त्ति । इमं सोऊण सहसा समुहिओ सेही । भणइ- वच्छे ! सच्चमेयं ? वहुए जंपियं-किं अलियं जंपिज्जए तायपायाणं पुरओ ?
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सुमइनाह-चरियं अहवा हत्थत्थे कंकणे किं दप्पणेणं ? ति निहालेउ ताओ । तओ ठिओ तत्थेव सेट्ठी। गहियं निहाणं रयणीए | अहो मुत्तिमंती इमा लच्छि त्ति जायबहुमाणो आरोविऊण वहुं रहे नियत्तो सेही । पत्तो नग्गोहं । पुच्छिया वहू-किं न तुमं इमस्स छायाए ठिया ? वहूए अक्खियंरुक्ख-मूले अहिदंसाइ-भयं, विरामणे चोराइ-भयं, हेहओ कागबगाईविट्ठा-पडण-भयं । दरहियाणं तु न सव्वमेयं । पूणो पुहं सेहिणा सूरमुद्दिस्स-अत्थि ताव कुट्टिओ ति तए जंपियस्स को परमत्थो ? तीए वुत्तं- न हि कुटिओ त्ति सूरो किंतु पढमं जो न पहरइ । नगरं दर्ण सेहिणा वुत्तं- कहमेयमुव्वसं ? ति । तीए वुत्तं-जत्थ नत्थि सयणो सागय-पडिवतिकारओ तं कहं वसिमं । खेत्तं दहूण पुहं से हिणाकहमेयं खलं ? ति । तीए वुत्तं- ववहरगाओ दव्वं वुडीए कड्डिऊण खेत्त-सामिणा खद्धं ति खद्धं । नई दहण भणियं सेहिणा-किं तए नईए पाणहाओ न मुककाओ ? । तीए जंपियं-जल-मज्झे कील-कंटगाइब्ने न दीसइ त्ति । समागओ गिहं सिही । दंसियाइं तीए महि-निहित्तघडगाभरणाइं । तुढेण सिहिणा घरिणीए सुयस्स य सव्वमाविक्खिऊण कया घरसामिणी ।
__अन्नया खणभंगुरत्तणेण सव्वभावाणं पइसमइ दिसरारुत्तणेण आउकम्मुणो, अनिवारिअ-पसरत्तणेणं कयंतस्स कय-सव्व-सत्तक्खामणो पंच-नमोक्वारपरो पंचत्तमुवगओ सेट्ठी | सिरी वि तश्विओगसोग-संगलंत-बाह-पज्जाउलच्छी, तुच्छ-जले मच्छलिय व्व भववासे रई अलहंती, पवन-तिव्व-तव-विसेस-सोसिय-तणू पत्ता परलोयं । अजियसेणो वि अम्मा-पिऊ-मरण-दसिय-मणो ताण परलोय-किच्चं काऊण सविसेस-जिणधम्मपरो जाओ ।
अह अरिमद्दण-नरिंदो अत्थाण-मंडवोवगओ एगूणपंचसयाणं मंतीणं पहाणभूयं मंतिं मग्गमाणो नायरए, पत्तेयं पुच्छइ- भो ! भो ! जो ममं पाएण पहणइ तरस किं कीरइ ? ति । ते वि अविनाय-परमत्था जंपति-देव ! किन्न सारीरो निग्गहो कीरइ ? पुढो य अजियसेणो । तेण वुत्तं-परिभाविऊण क हिस्सं । गिहमागं तूण राय-पसिणुत्तरं पुट्ठा सीलमई । तीए चउविह-बुद्धि-संपन्नाए भणियं जहा-तस्स माणुसस्स महतो सक्लारो कीरइ । भत्तुणा पुहं-कहमेयं ? | तीए वुत्तं-वल्लहाए __विणा नत्थि अन्नरस ‘रायाणं पाएण पहणेमि'त्ति चिंतिउं जोग्गया, किं
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पुण पहरिउं
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं । गओ रायसहाए सो । कहियं पुव्वुत्तं । तुहो राया कओ अणेण सव्व-मंतीण सिरोमणी ।
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अन्नया तस्स रायस्स विउत्थिओ सीहरहो पच्चंतो राया । तस्सोवरिं चलंत - मत्तमयगल- मयजलासार- सित्त-महियलो, तरल - तुरयखुरक्खय-खोणि- रेणु - घण- पडलापूरिय नहंगणी, संचरंत रहसि हरधवल - धयवडाया - बलायापंति-मणहरो, गहिर- वज्जिराउज्ज - गज्जि - जज्जरिय- बंभंड - भंडोयरो नव- पाउसो व्व चलिओ राया । अजियसेणी य दिट्ठो सीलमईए चिंताउरो, पुच्छिओ चिंताए कारणं । तेण वृत्तं - गंतव्वं मए रन्ना समं । तुमं घेत्तूण वच्चंतरस मे घरं सुनं । तहा जइ वि तुमं अक्खलिय-सीला तह वि एगागिणी गिहे मोत्तूण वच्चंतस्स न मे मणनिव्वुई । अओ चिंताउरो म्हि । सीलमईए वुत्तं
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जलणो वि होइ सिसिरो रवी वि उग्गमइ पच्छिम- दिसाए । मेरु- सिहरं पि कंपइ उच्छल्लइ धरणिवीढं पि || १९१८|| जायइ पवणी वि थिरो मिल्लइ जलही वि नियय-मज्जायं । तह वि मह सील-भंगं सक्को वि न सक्कए काउं ||१8१8|| तह वि तुमं मण - निव्वुइ - हेउं गिण्हसु इमं कुसुममालं । मह सील - पभावेण अमिलाण च्चिय इमा ठाही || १९२०|| जइ पुण मिलाइ तो सील खंडणं निम्मियं ति जंपंती । सा खिवइ निय-करेहिं पइणो कंठे कुसुममालं || १९२१|| तो अजियसेण-मंती सीलमई मंदिरम्मि मुत्तूण | निव्वुय-चित्तो चलिओ सह अरिमद्दण- नरिंदे ||११२२ || अणवरय-पयाणेहिं तम्मि पएसम्मि नरवई पत्तो । जत्थ न हवंति कुसुमाई जाई - सयवत्तियाईणि || १९२३ || दहूण कुसुममालं अमिलाणं अजियसेण-कंठम्म । तं भणइ निवो कत्तो तुह अमिलाणा कुसुममाला ||१९२४|| अच्छरियं गरुयमिणं "मए गवेसावियाई सव्वत्थ । निय - पुरिसे पडविडं तह वि न पत्ताइं कुसुमाई || १९२५ || जंपइ मंती जा मह पियाइ पत्थाण-वासरे खित्ता । मिलाइ तीए सीलप्पभावेण || १९२६।।
सच्चिअ माला न
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सुमइनाह-चरियं
तं सोउं नरनाहो "विम्हिय-हियओ गए अजियसेणे । निय-नम्ममंति-मंडलमालवइ वियारसारमिणं ।।११२७।। जं अजियसेण-सचिवेण जंपियं तं किमेत्थ संभवइ ? | कामंकुरेण वुत्तं कत्तो सीलं महिलियाणं ? ||११२८।। ललियंगएण भणियं सच्चं कामंकुरो भणइ एयं । रइकेलिणा पलत्तं देवस्स किमित्थ संदेहो ? ||११२९।। भणियमसोगेणं पहवेसु मं देव ! जेण सीलमइं । वियलिय-सीलं काउं देवस्स हरामि संदेहं ।।११३०।। तो नरवइणा एसो आइहो अप्पिऊण बहु-दव्वं । पत्तो य नंदणपुरे सीलवईए गिहासन्ने ||११३१|| गिण्हइ गेहं गख्यं कंठ-पघोलंत-पंचमुग्गारो । किन्नरगीयाण गुणं गायइ गीयं गवक्ख-गओ ||११३२|| पयडिय-उज्जल-वेसो पलोयए साणुराय-दिडीए । निच्चं पयासए चाय-भोग-दुल्ललियमप्पाणं ||११३३।। एवं बहुप्पयारे कुणइ इमो चेहिए तओ एसा । चिंतइ नूणं मह सील-खलणमिच्छइ इमो काउं ||११३४|| फण-फणि-रयणुक्खणणं व जलण-जालावली-कवलणं व ।
केसरि-केसर-गहणं व दुक्करं तं न मुणइ जडो ||११३५।।
पेच्छामि ताव कोउगं ति चिंतिऊण पयट्टा तं पलोइउं । असोगो वि सिद्धं मे समीहियं ति मन्नंतो पहवेइ दूई ।
भणिया य तीए सीलवई- भद्दे ! कुसुमं व थेवकाल-मणहरं जोव्वणं, ता इमं विसय-सुहासेवणेण सहलं काउं जोतं । भत्ता य तुह रना समं गओ । एसो य सुहओ तुमं पत्थेइ । तीए चिंतियं-सुहओ त्ति सुहु हओ वराओ जं एरिसे पावे पयट्टइ । दूईए भणियं
पसयच्छि ! पसीयसु मयण-जलण-जाला-कलाव-संतत्तं । निययंग-संगमामयरसेण निव्ववसु मम गत्तं ||११३६|| सीलमईए वुत्तं जुत्तमिणं किंतु परपुरिस-संगो । कुल-महिलाण अजुत्तो दन्व-पसंगो व्व साहूण ||११३७।।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं नवरं इमो वि कीरइ जइ लब्भइ मग्गियं धणं कह वि । उच्छिदं पि हु भत्तं भक्खिज्जइ नेह- लोहे ||११३८ || तीए वुत्तं मग्गसि कित्तियमेत्तं धणं तुमं भद्दे ? | सीलमई जंपइ अदलक्खमिहि समप्पेउ || १९३१|| गहिऊण अद्ध-लक्खं निसाए पंचम - दिणे सयं एउ | जेण अपुव्वं वियरेमि रइ सुहं तस्स सुहयस्स || १९४० ।। तीए कहियमेयं असोगस्स । तेणावि समप्पियं अद्ध-लक्खं । सीलमईए वि गूढओ अप्प - पच्छन्न- पुरिसेहिं खणाविआ खड्डा । ठाविआ तीए उवरि वर- वत्थ- पच्छाइआ अवुणिय - खट्टा । पंचम - दिण - रयणीए दाऊण अद्ध- लक्खं आगओ असोगो । निविट्ठो खट्टाए । धस त्ति निवडिओ खुड्डाए । सीलमई वि तस्स दयाए दिणे दिणे देइ दोरबद्धसरावेण भोयणं ।
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इओ य मासे पुन्ने अरिमद्दण-नरिंदेण भणिया नम्ममंतिणो किं नागओ असोगो ? । तेहिं वुत्तं न याणीयइ कारणं । रइकेलिणा वुत्तंदेह ममाएसं जेणाहं साहेमि सिग्धं चेव चिंतियत्थं । रन्ना बहुं दव्वं अप्पिऊण विसज्जिओ सो | आगओ नयरे । सो वि लक्खं दाऊण तहेव 1 निविडो खट्टाए | "निवडिओ खड्डाए । एवं ललियंगय- कामंकुरा वि लक्खं लक्खं दाऊण पडिया खड्डाए । असोग [गाइ सकम्मेण ] कमेण चेव ससोगा चिद्वंति । अरिमद्दण- नरिंदो वि वसीकाऊण सीहरहं समागओ निय - नयरं । भणिया य सीलमई कामंकुराईहि
जे अप्पणी परस्स य सत्तिं न मुणंति माणवा मूढा । वर - - सीलवंति जं ते लहंति तं लद्धमम्हेहिं || १९४१ ||
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ता दिहं तुह माहप्पं । सिद्धा अम्हे । करेहि पसायं । निस्सारेहि एक्कवारं नरयाओ व्व विसमाओ इमाओ अगडाओ । तीए वृत्तं - एवं करिस्सं जइ मह वयणं करेह । तेहिं वुत्तं - समाइस जं कायव्वं । तीए वुत्तं - जयाहं एवं होउ ति भणेमि तया तुब्भेहिं पि एवं होउ त्ति वत्तव्वं । पडिवन्नमणेहिं । तीए वुत्तो मंती- निमंतेहि रायाणं । तेण तहेव कयं । आगओ राया । कया पडिवत्ती । तीए य पच्छन्नं कया भोयणाइ सामग्गी । रन्ना चिंतियं-निमंतिओ हं ताव न दीसए भोयणोवक्कमी को वि । ता किमेयं ? ति । तीए य खड्डाए काऊण कुसुमाईहिं पूयं, भो
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सुमइनाह-चरिय
૨૮૧
भो ! रसवई सव्वा वि होउ । तेहिं भणियं एवं होउ ति । आगया रसवई । रन्ना कयं भोयणं । तओ पुत्र्व - पउणीकयाई तंबोल - पुप्फविलेवण - वत्थाहरणाई जाई च चत्तारि लक्खाई इच्चाइ सव्वं पि होउ त्ति । ती य जंपिए खड्डा गएहिं जंपियं एवं होउ ति सव्वं दुक्कं । समप्पियं रन्नो | चिंतियं अणेण - अहो ! अउव्वा सिद्धी । जं खड्डा - समुडियं वयणाणंतरमेव सव्वं संपज्जइत्तिविम्हियमणेण पुट्ठा सीलमई- भद्दे ! किमेयमच्छेरयं ? ति । तीए वुत्तं देवं । मह सिद्धा चिडंति चत्तारि जक्खा । ते सव्वं संपाडंति । रन्ना वुत्तं - समप्पेहि मे जवखे जेण रसवईपमुहं ममावि अकिलेसेण संपज्जइ । तीए वृत्तं देव ! देवस्संतियं चेव सव्वं, तो गिण्ह जक्खे । तुट्ठो राया गओ नियावासं । तीए वि ते चच्चिया चंदणेण अच्चिया कुसुमेहिं चउसु चुल्लगेसु चत्तारि विक्खित्ता सगडे आरोविऊण वज्जंतेहिं तूरेहिं संझाए नीया रायभवणं । पभाए य अज्ज जक्खा भोयणाई दाहिंति त्ति निवारिया रन्ना सूअया । राइणो भोयण - समए सयं कुसुमाईहिं पूईऊण चुल्लगाई भणियं - 'रसवई होउ' । चुल्लग - गएहिं वुत्तं एवं होउ ति । जाव न किंपि होइ, रन्ना विलक्खवयणेण उग्घाडियाइं चुल्लगाई । दिडा छुहा सुसियत्तणेण पणड-मंससोणिया फुडोवलक्खिज्जमाण- अहि-संचया पयड दीसंत-नसाजाला गिरिकं दर-सोयरोयरा "खामक वोला मिलाण-लोयणा असंसत्तसीयवायत्तणेण विच्छाय - कायच्छविणो विसन्न-चित्ता पयाव - चत्ता चत्तारि जणा । अहो ! न हुंति एए जक्खा, किंतु रक्खस त्ति भणतेण भणिओ अणेहिं राया-देव ! न जक्खा न रक्खसा अम्हे, किंतु कामंकुराइणो तुह वयंसयत्ति जंपंता पडिया पाएसु । रन्ना वि सम्मं निरूवं तेण उवलक्खिऊण भणिया सविम्हयं भद्दा ! कहं तुम्हाणं एरिसी अवत्था
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या ? | हिं पि कहिओ जहा - वित्तो वुत्तंतो । हक्कारिऊण रन्ना 'अहो ते बुद्धि - कोसल्लं ! अहो ते सील-परिपालण पयत्तो ! अहो ते विवेयसारया ! अहो ते उभयलोय-भयालोयणप्पहाणय ! त्ति सलाहिया सीलमई, वुत्तं च अमिलाण - कुसुममाला- दंसणेण पयडं पि ते सीलमाहप्पं । असद्दहंतेण मए चेव इमे पद्वविया, तो न कायव्वी कोवो त्ति खमाविया । तीए वि धम्मदेसणं काऊण पडिबोहिओ राया । रायनम्मसचिवा य कराविया सव्वे परदार- निवित्तिं । खमाविया विसेसओ कामंकुराइणो रण्णा य । सक्कारिया सीलमई गया सद्वाणं ।
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૨૮૨
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं अन्नया समागओ गंधगओ व्व कलहेहिं चंदो व्व नक्खत्तेहिं रायहंसो व्व कलहंसेहिं परिवारिओ पवर-समणेहिं मण पज्जवनाणमुणिय-मणुयाइ-मण-वियप्पणो पणयपाणि-कप्पडुमो दमघोसो आयरिओ | गओ तस्स वंदणत्थं समं सीलमईए अजियसेणो । वंदिऊण गुरु सेस-साहुणो य निविहो उचिय-देसे । भणिया गुरुणा सीलमईभद्दे ! धन्ना तुमं पुनभवब्भासाओ चेव ते सील-परिपालण-पयत्तो । मंतिणा वुत्तं-भयवं ! कहमेयं ? ति । वागरियं गुरुणा
कुसउरे नयरे कुसलाणुहाण-लालसो पावकम्म-करणालसो सुलसो सावओ | तस्स विणय-दया-दाण-सील-सद्धाइ-गुणावज्जियजसा सुजसा भज्जा | ताणं च घरे पयइ-भद्दओ दुग्गो कम्मयरो । दुग्गिला से घरिणी । कयाइ सुजसाए समं गया दुग्गिला साहुणीणं सयासं । कया सुजसाए तत्थ सवित्थरं पुत्थय-पूया पसत्थ-वत्थकुसुमाईहिं, वंदिया चंदणा पवत्तिणी । कयं उववास-पच्च वखाणं, पणमिऊण पुच्छिया दुग्गिलाए पवत्तिणी- भयवइ ! किमज्ज पव्वं ? | भणियं भयवईए- अज्ज सियपंचमी सुयतिहि त्ति सा जिणमए समक्खाया। एयाइ नाणपूया तवो य जहसत्ति कायव्वो । . .
इह पुत्थयाइं जे वत्थ-गंध-कुसुमच्चएहिं अच्चति । . . ढोयंति ताण पुरओ नेवज्जं दीवयं दिति ||१९४२।। सत्तीए कुणंति तवं ते हंति विसुद्ध-बुद्धि-संपन्ना । सोहग्गाइ-गुणड्डा सव्वन्नु-पयं च पाविति ||११४३।। तो दुग्गिलाए वुत्तं धन्ना मह सामिणी इमा सुजसा । अत्थि तवे सामत्थं जीसे धम्मत्थमत्थो य ||१९४४|| अम्हारिसो उण जणो अधणो तवकरण-सत्तिरहिओ य । किं कुणउ मंदभग्गो पवत्तिणीए तओ भणियं ||११४५।। सत्तीए चाग-तवं करेसु सीलं तु अप्पवसमेयं । पर-नर-निवित्तिरुवं जावज्जीवं तुमं धरसु ||११४६।। अहमि-चउद्दसीसु य तिहीसु तह निय-पई पि वज्जेसु । एवं कयम्मि भद्दे ! तुमं पि पाविहिसि कल्लाणं ।।११४७।। पडिवन्नमिणं तीए मनंतीए कयत्थमप्पाणं । गेहंगयाइ कहियं निय-पइणो सो वि तं सोउं ||११४८।।
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सुमइनाह - चरियं
तुट्ठमणो बहुमन्नइ तए फलं जीवियरस पत्तं ति । भाइ य अओ परमहं काहं परदार - परिहारं ||१९४९ पव्वतिहीसु इमासु अ विरइस्सं निय-कलत्त - नियमं पि । इय कय-नियमेहिं तेहिं कमेण पत्तं च संमत्तं || १५० ।। अह दुग्गिला विसेसुल्लसंत-सद्धा सयं तवं काउं । पूएइ पुत्थए सुयतिहिसु तद्दियह - वित्तीए || १९५१|| काण दो वि मरिउं सोहम्मे सुरवरत्तणं लहिउं । चईऊण दुग्गय जीवो जाओ सि तुमं अजियसेणो || १९५२ || एसा य दुग्गिला तुह सीलमई भारिया समुप्पन्ना । नाणाराहणवसओ विसिद्ध-मइभायणं जाया ||१९५३ || तो जाय - जाइसरणेहिं तेहिं भणियं- मुणिंद ! जं तुमए । अवखायं तं सच्चं तो एवं वागरेइ गुरु || १९५४ ||
जइ देसओ वि परिवालियरस सीलस्स फलमिणं पत्तं । ता कुह पयत्तं सव्वओ वि परिपालणे तस्स || १९५७ || तं सव्व-संग- परिहाररूव- दिक्खाइ होइ गहणेण । तेहिं भणियं - पसायं काउं तं देहि अम्हाणं || १९५६ | तो दिक्खियाइं दोन्नि वि गुरुणा संवेग - परिगय- मणाई | पालंति जावजीवं अकलंकं सव्वओ सीलं || १९५७ ।।
२८३
मरिऊण बंभलोयं गयाइं भोत्तूण तत्थ दिव्व-सुहं । तत्तो चुयाइं दोन्नि वि निव्वाणपयम्मि पत्ताई || १९५८ || जो विमल - सील - पालण समुज्जओ उज्जमं तवे कुज्जा । सो किं भन्नइ "इक्कं सीहो अन्नं व प्रक्खरिओ ? ।।१९५९।। जह कंचणस्स जलणो कुणइ विसुद्धिं मलावहरणेणं । जीवरस तहेव तवो कम्म-समुच्छेय-करण ||१६|| कम्माई भवंतर - संचियाइं तुहंति किं तवेण विणा ? | डज्झति दवानलमंतरेण किं केणवि वणाई ? || १९६१ || अगणिय-तणुपीडेहिं तित्थयरेहिं तवो सयं विहिओ । कहिओ तह तेहिं चिय तित्थयरत्तण- निमित्तमिमो ॥११६२||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं कुसुमसमाओ तियसिंद-चक्ववत्तिणाइ-रिद्धीओ । जाणसु तव-कप्पमहीरुहस्स सिवसुक्ख-फलयरस ||११६३।। जं पुव्वज्जिय-पाव-पव्वय-पवी जं काम-दावानलज्जाला-जाल-जलं जमुग्गकरणग्गामाहि मंतक्खरं । जं पच्चूह-समूह-मेह-पवणो जं लद्धि लद्धीलयामूलं तम्मि तवम्मि निम्मलमई कुज्जा न को आयरं ? ||११६४|| कयदुक्कओ वि पुव्वं कुणमाणो दुक्करं तवं जीवो । पावइ विउल-सुहाई निब्भग्गो एत्थ दिहंतो ||१९६५।। तहा हि
[४. तपश्चरणे निर्भाग्य-कथा]
अस्थि धायइ-संडे दीवे पुव्व-भरहक्खेते अयलग्गामे सीहो गाम-चिंत ओ । तस्स सिंहला जाया । जाया य इमा२२ कयाइ आवन्नसत्ता । एत्तो य सत्तूहिं वावाइओ गामचिंतओ । 'अवहडं घरसारं । गहियं गो-महिसाइ धणं । सिंहला वि निद्धणत्तणओ किच्छेण पाणवित्तिं कुणमाणा पसूया दारयं ।
जं गब्भगए य जणओ इमंमि निहणं गओ सह धणेणं । ता एसो निब्भग्गो ति जंपिओ सयल-लोएण ||१९६६|| तं चेव तस्स नामं गयं पसिद्धिं गओ य सो वुझिं । मह-दुक्ख-समुदएणं संजाओ अह-वारिसिओ ||११६७।। अह तस्स मया माया भिक्खं भमिउं इमो समाढत्तो । न य किंपि लहइ कत्थइ तत्तो गामाउ निक्खंतो ||१९६८।। पत्तो य देवगामे दिहो दत्तेण जणय-मित्तेण ।
भणिओ य- मज्डा गेहे चिहसु चारेसु महिसीओ ||११६१|| तओ चारिउं पवत्तो । अन्नया महिसीहिं समं नीओ चोरेहिं दूरं । तत्थ बंधिऊण अल्लबद्धेण धव-रुक्खेण समं मुक्को अरल्ने । ठिओ छुहा-तिसा-किलंतो सत्त-रत्तं । भवियव्वया-वसेण चम्मलुद्ध-सियालेण खद्ध-बद्धबंधणो नियत्तो । भिक्खं भमंतो पत्तो देवग्गामं । कहिओ जेण
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सुमइनाह-चरियं
૨૮૬ चोर-वुत्तंतो दत्तस्स । पत्ते पाउसे कराविओ करिसणं, बुद्धि-विरहाओ बीयं पि न संपन्नं । सगडं समप्पिऊण पेसिओ कप्पासाणयणत्थं । नियत्तस्स दवग्गिणा दडं सगडं । भिक्खं भमंतो पत्तो दत्त-सगासे । अप्पिऊण धणं पेसिओ समुद्दे पवहणेण । फुर्ट पवहणं । लद्धफलहखंडो सत्त-रत्तेण तरिऊण समुदं भमंतो पत्तो वग्घउरं नयरं | ठिओ रयणीए देवउले । तत्थ रन्नो वग्घदमणस्स विंझउर-सामिणा समरसेणेण समं विग्गहो । अओ हेरिओ ति संकमाणेहिं तलारेहिं गहिऊण गुत्तीए बूढो । अद्धमासाओ मासाओ वा गासमेत्तं लहंतो ठिओ वरिसमेगं । अच्चंत-छुहा-पीडिओ जाओ निरुस्सासो मओ त्ति चत्तो मसाणे । सिसिर-पवणो वलद्ध-चेयणेण य दिड तत्थ करंबय-सरावं । भक्खियमणेण | उहिऊण तओ पलाणो चिंतिउं पवत्तो
हा हा ! पुव्व-भवेसुं दुक्कम्मं केरिसं मए विहियं ? | पावेमि पाववसओ जं वसणुतिरिवडिं एवं ॥१९७०।। गब्भगयस्स वि पढमं जणओ निहणं गओ सह धणेणं । तत्तो सिसुत्तणे मह पंचत्तमुवागया जणणी ॥११७१।। पिउमित्तेण करुणावसेण जे जे धणज्जणोवाए । कारविओ हं सव्वेसु तेसु पत्तोम्हि वसणाई ।।१९७२|| तुल्ले वि माणुसत्ते तुल्लेसु वि पाणि-पाय-पमुहेसु । संपन्न-वंछिय-धणा कुणंति अवरे वर-विलासे ||१९७३।। अहयं पुण कयपावो पावेमि न कत्थई भमंतो वि । गासं पि तेण दियहे गमेमि निच्चं छुहाभिहओ ||११७४।। ता इमिणा जम्मेणं नीसेस-दुहाण ठाणभूएण | निव्विलोहं इण्हेिं मरामि केणइ उवाएण ||११७५।। इय चिंतिऊण चलिओ तुंगं गिरिमेगसिंगमारुहिउं ।
मरण-कयज्झवसाओ निब्भग्गो निब्भर-विसाओ ।।११७६।। एत्थंतरे पवाईओ सुरहि-मारुओ । पढे सुरेहि गंधोदयं, कयं दसद्धवन्न-कुसुमवासं । ताडियाओ गयणे ढुंदहीओ | गज्जियं एगसिंगगिरिणा । किमेयमच्चब्भुयं ति चिंतयंतो जाव वच्चइ अग्गओ तात विडो कणय-कमल-निविहो चउन्विह-देवनिकाय परिवुडो धम्मं वागरमाणो
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૨૮૬
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं माणदेवो केवली । गओ तस्स पासे समुल्लसंत-हरिसो निवडिओ चलणेसु । भणिओ भयवया
दक्खद्दओ त्ति मरणं वंछसि दक्खाण खंडण-निमित्तं । दुक्खाइं पुवकय-कम्म-जोगओ हुंति जीवस्स ।।११७७।। म्मं पुण अक्खवियं छड्डइ परभवगयस्स वि न पहिं । सग्गं गच्छंतेण वि खरेण सह दावणं जाइ ।।११७८।। तुमए य पुरा विहियं मुणीण दाणंतराय-करणेण । .
लाभंतराय-कम्मं गासं पि न पावसे तेण ।।१९७१।। निब्भग्गेण भणियं-भयवं ! कहमेयं ? केवलिणा वुत्तं-भद्द ! पुक्खवरद्ध-पुश्वभरहे रहउरे नयरे नरिंद-सुंदरी-वयणारविंद-चंदो चंदावीडो राया | तस्स य सयल-कु सत्थ-वासणा-वासियप्पा अप्पडिहय-पावकम्मेच्छो मिच्छत्ताच्छाईय-विवेओ वेयविहिय-विहिनिरओ निरयपह-पसुवह-समुज्जओ जयहरो मित्तो । सो कयाइ गओ उज्जाणं । दिहो तत्थ तेण पंचसय-साहु-परिगओ गओ व्व अक्खलियसुयदाण-पसरो निज्जिय-वम्मीसरी सूरी । सोवहासं पणमिओ उवविसिऊण भणिओ-कहसु किंपि'। गुरुणा वुत्तं
मुह-ससि-पवेस-सुविणोवमाइं दुलहं नरत्तणं लहिउं । देव-गुरु-धम्म-पडिवज्जणेण सहलं विहेयव्वं ।।१९८०।। देवो य वीयराओ अहारस-दोस-वज्जिओ अरहा । तं पणमंता पावंति देवपालो व्व कल्लाणं ।।११८१|| तहाहिजंबुद्दीवे दीवे भरहे वासम्मि मज्झिमे खंडे | सुरपुर-पराजय-समत्थमस्थि हत्थिणाउरं जयरं ||११८२।। रेहति य रुक्खाइ मणाइं वयणाइं तह सरीराइं । लोयरस जत्थ मज्झे उज्जाणाइं न उण बाहिं ||१९८३।। तत्थ सीहरहो रायाजस्स करवाल-दंडेण खंडिया निवडिया रणमहीए । अरि-कुंजर-दंता अंकुर व्व छज्जति जस-तरुणो ||११८४।।
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૨૮૭
सुमइनाह-चरियं
तस्सऽत्थि माणणिज्जो जिणदत्तो सावओ पवर-सेही । नामेण देवपालो तरस घरे अत्थि गोपालो ।।११८५।। सो जिणदत्तं दई धम्मपरं किंचि भद्दओ जाओ । पंच-परमेहि-मंतं च सिक्खए मुणि-समीवम्मि ||११८६।। अह वित्थारियरंभो निलंभिओगाढ-गिंभ-संरंभो । तडिकय-घण-परिरंभो वियंभिओ पाउसारंभो ||१९८७।। जत्थ घण-धूम-संगय-नहंगणो गख्य-विज्जुलय-जालो । खज्जोय-फुलिंग-जुओ पहिय-दुमे दहइ मयण-दवो ||११८८।। जत्थ लहिऊण उदयं पाडंति तडडुमे गिरि-नईओ |
दूमंति कन्न नीया वित्थरिया महिहरेहिं तो ||११८१।। तम्मि पाउसे गावी-चारणत्थं गओ गोवालो गिरि-निगुंजे । दिहं तत्थ नई-पूर-खणिय-खोणी-णिप्पएसे पसरंत-कंति-चुंबण-चउरेहिं व विहुरेहिं अंसत्थल-विलसिरेहिं रेहतं हरिणंकमंडल-मणहरं जुगाइदेवस्स वयणं । तुहेण खणियाई पासाइं । पयडीकया सव्वंगं पडिमा । काऊण पेढं ठविया तत्थ एसा, उवरि विरईया कुडी । चिंतियं च-'धल्लोहं जस्स मे परवसस्स सयं देवाहिदेवेण दंसणं दिन्नं । ता मए जावज्जीवं इमं दर्ण पुज्जिऊण य भुत्तव्वं' । एवं कय-निच्छयस्स अइक्वंतो कोइ कालो । कयाइ वासासु सत्तरत्तं निरंतरं संजाया वुढी । अन्तरा पूरवसेण नई अपारा संपन्ना | देवपालो देवस्सादंसणेण अकय-भोयणो ठिओ सत्तदिणाइं । अहम-दिणे नियत्ते नई-पूरे गंतूण बाहिं देवं दहण पुज्जिऊण य पणओ सो । एत्थंतरे गयणंगण-गएण भणिओ जहासलिहियवंतरेण-वच्छ ! तुहोहं तुह इमिणा निच्छएण, ता मग्गसु वरं । गोवालेण वुत्तं-'देहि मे रज्जं'। 'भविस्सइ ।'ति भणिऊण तिरोहिओ वंतरो । गोवालो अणुदिणं देवं पूएइ ।
अन्न-दिणे अपुत्तो राया मओ | पहाणेहिं पंच-दिव्वाइं अहिसित्ताई। भमंताई ताई पत्ताई तत्थ पहर-दुग-समए गावीसु दुज्झमाणासु जत्थऽविच्छिन्न-वड-विडविच्छायाए पसुत्तो गोवालो | तओ हेसिओ हएण, गलगज्जियं गएण, ढलियं सयं चेव चामरेहिं , उवरि ट्ठियं सरयससि-सवत्तेण आयवत्तेण, कलसं पलोटिऊण हत्थिणा खंधमारोविओ गोवालो । वत्थाहरणे हिं अलंकरिऊण पहाणे हिं पवेसिओ नयरं ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं निवेसिओ पट्टे । कंबल-लहि- करंबय-मडक्विया-दंडिखंड-पभिईणि गोदोहियाहिं घेत्तुं सेहिस्स घरम्मि नीयाइं । गोवाल त्ति काउं न को वि तस्स आणं करेइ । हक्कारिओ अणेण सेही । सो वि अवन्नाए नागच्छद। 'केवलं मम गोवालो तुमं' ति पयडणत्थं कंबल-करंब-मडकियादंडिखंडाईणि रयणीए सीहदुवारे सिहिणा तोरणीकयाणि । चिंतियं देवपाल-देवेण-'जेण मे रज्जं दिन्नं तमेव देवं विनवेमि'त्ति गओ जुगाइदेव-पडिमा-पासं । कप्पूरागरु-कुसुमुच्चएहिं अच्चिऊण विन्नवेइ'भयवं ! जहा तुमए मह महारज्जमेयं दिन्नं तहा आणिस्सरियं पि देहि. जेण रज्जं थिरी होइ । वंतरेण अंतरिक्ख-हिएण भणियं-'मट्टियमयमयगलारूढो रायवाडियं करेज्ज । सो य मज्ा प्पभावेण चलिस्सइ,तओ सव्वो वि जणो तुहाणं करेस्सइ ।
एवं सोच्चा तुहो देवपालो समागओ रायभवणे, आणवेइ कुलाले जहा-करेह मे रायवाडिया-जोग्गं उदग्गं मयगलं सिग्यमेव । कओ सो तेहिं । 'मट्टियमय-मयगलारूढो राया रायवाडियं करिस्सइ' ति जाओ जणप्पवाओ । सामंत-मंति-मंडलियाइणो इणमत्थं सुच्चा हसिउं पयट्टाजो २ मट्टियमय-मयगलमारुढो रायवाडियं राया काउं वंछइ सो एस अवितहं चेय" गोवालो | कोउगवसेण बहुओ गामेहिं तो समागओ लोओ, दे उल-गो उर-घरसिर- गवक्ख-रुक्खे सु आरूढो । जो इसियविणिच्छिय-सुह-दिणम्मि कम्मयर-नियर-उक्खित्तो सालंगणी-समीवे हत्थी आणाविओ रण्णा | चित्तिओ विचित्त-वन्नएहि चित्तयर-गणेण, अलंकिओ मणिकयण-भूसणेहिं, सज्जिओ कंचण-गुडासारीहिं, कओ विचित्त-चिंध-चिंचईओ । अवरे वि सज्जिया कुंजरा । पहविया नरिंदाईणं पक्खरिया तुरया । सन्नद्धा सुहडा । पउणीकया रहवरा । पडिहारं पेसिऊण हक्कारिओ सेही । अप्पणो समं कराविओ सिंगारं । अंकुसं घेत्तूण राया निविहो अग्गासणे पच्छासणे निवेसिओ सेही ।
एत्थंतरे चलिओ सुवन्न-सेलो व्व जंगमो हत्थी । विहिओ महंतविम्हयवसेण लोएण जयसहो । वज्जंताओज्ज-निनाय-भरिय-भुवणे समग्ग-सिन्न-जुओ ठाणे ठाणे कीरंत-मंगलो निग्गओ राया, पत्तो जुगाइदेवस्स अग्गओ । गयवराओ ओइलो, तं अच्चिऊण पणमइ नरिंद-सामंत-मंति-जुओ | पुणरवि गयमारुढो ढलंत-सिय-चामरो
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सुमइनाह-चरियं
૨૮૬ धरिय-छत्तो पुर-सुंदरीण तन्हाउरेहिं नयणेहिं पज्जंतो नच्चंत-रमणिचक्वं तेणेव कमेण मंदिरं पत्तो । उत्तरिऊण गयाओ जिणदत्तं जंपए सिटिं-'तुह गोवालेण मए एसो नयरम्मेि भामिओ हत्थी । एत्तो परं तब्भे खंभे अग्गलह गयमेयं' । तत्तो सेही गहिऊण अंकुसं 'हिज हिज' त्ति वागरइ । एक्वं पि पयं न चलइ । गओ सो विलक्खत्तं ।
दहुं इमं पहारं असंभवं देवपाल-देवस्स । सव्वे वि निवा आणं वहति सीसेण कुसुमं व ||१990।। कणयमयं पासायं जुगाइदेवरस कारिऊण इमो । जओ जिणधम्मपरो कालेण मओ गओ सुगइं ||११११||
गुरुणा विणा न सम्मं जाणिज्जइ उभय-भव-हियं कज्जं । तम्हा गुरुम्मि गरूओ बहुमाणो होइ कायव्वो ||१११२|| कहियं पि कुणंतो निय-मईए सुद्धो व्व दुक्खमणुहवइ । तं चेव कुणंतो गुरु-गिराइ सुहभायणं होइ ||१११३।। जंबुद्दीवे भरहे मज्झिम-खंडे अखंड-गुणपरमं । पउमपुरं नामेणं पायालपुरं व तायपयं ||१९१४||
तत्थ पउमरहो राया, जस्स असि-भिन्न-अरि-करि-कुंभत्थलगलिय-मुत्तिय-गणेण बीएण जणिया समर-भूमि-पडिएण कित्तिलया । तत्थ पउमं व पउमा-निकेयणं पउमो सेही । वयण विणिज्जिय-पउमा पउमसिरी से भज्जा पुश्व-भवारो विय-पुन्न-पायव-फलं विसय-सुहं भुजंताण ताण जाओ सुद्धो नाम पत्तो । समए कय-कलागहणो पत्तो जोव्वणं । परिणाविओ विसिट्ठ-वणिय-धूयं रइ-सरिस-रुवं जणियजण-मणाणंदं णंदं नाम ।
कयाइ परलोय-पह-पत्थिएण पउमेण वुत्तो पुत्तो- 'वच्छ ! निसामेसु ममोवएसे' | घेत्तूण संपुडं निविहो पुरउ पुत्तो । सिहिणा वुत्तं'मिडं भुंजियव्वं १ सुहं सोयव्वं २ दिन्नं न मग्गियव्वं ३ भज्जा बंधिऊण पिट्टियव्वा ४ दंतेहिं घरस्स वाडी विहेयव्वा ५ गामे गिहं कायव्वं । ६ गंगातलं खणियव्वं ७ पाडलि पुत्ते मम मित्तस्स सोमस्स पासे गंतव्वं ८ ।'
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२१०
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सुद्धेण लिहिया इमे अट्ठ वि उवएसा । इह-गुरु-देवया-सुमरण-परो परलोयं गओ सेट्ठी । पउमसिरी वि तन्विओग-सोगाउल-मणा कमेण गया पंचत्त ।
तओ 'मिहं भुंजियव्वं'ति पढमो ताओपएसो तं करेमि ति चिंतंतो सो भक्खइ दुक्ख-दलण-दक्खाओ दक्खाओ, कय-सुक्खपूरं खजूरं, अमंद-सुंदेराई नालेराई, अमय-विंडबयाई अंबयाई, विहिय-हरिसतरंगाइं नारंगाई, मिलिय-सक्वरामयलाई कयलाइं, मण-मोयगे मोयगे, दिहि-दाण-सज्जाइं खज्जाइं, पीइ-विप्फारण-फुरुक्वियाउ सुरुक्वियाउ, पमोय-संपाडण-पंडियाउ मंडियाउ, संसार-सारं कंसारं, छुहा-पसरखंडए मंडए, घय-सित्त-दालिं कलमसालिं, अरोयग-संजणाई वंजणाई, घण-सिणे हाणुवेहे पलेहे, विसिह-तित्ति-घडयाई वडयाई, महुरिमगुणब्भहियाइं कढिय-दुद्ध-दहियाइं । एवं जं जं मिटं तं तं भुंजंतेण तेण पारद्धो रिद्धिव्वओ । 'सुहं सोयव्वं' ति बीयमुवएसं कुणंतेण तेण वुहिसीय-घम्मागम्मे हम्मे निम्म विओ विउलो कणयमओ पल्लंको । खित्ताओ तदुवरि सोवहाणाओ मत्तहंस-रूयतलीओ । सुयइ तासु सेच्छाए सुद्धो । न चिंतए धणज्जणं । 'दिन्नं न मग्गियव्वं'ति तईयमुवएसं कुणंतो सो न मग्गए कस्स वि पासे पुव्व-दिन्नं । एवं पि तुहए दव्वं । 'भज्जा बंधिऊण पिट्टियव्वा' ति चउत्थमुवएसं कुणंतेणं तेण कयाई कम्मि वि अवराहे कुविएण बाल-रज्जूए बंधिऊण नंदा तहा पिट्टिया जहा मोत्तूण तग्गिहं गया पिईहरं । तस्विरहे सच्छंदो परियणो वि विणासए दव्वं । 'दंतेहिं घरस्स वाडी कायव्व' त्ति पंचममुवएसं कुणंतेण महग्घे महंते दंति-दंते किणिऊण कराविया वाडी । एवं पि कओ दव्वव्वओ | 'गामे गामे घरं कायव्वं' ति छहं उवएसं कुणंतेण पारद्धाइं बहुयगामेसु गिहाइं । एवं जाओ दव्वव्वओ | 'गंगातलं खणियव्वं' ति सत्तमोवएस-करणत्थं अत्थं घेत्तूण गओ गंगातई, कम्मयरेहिं तो, खणावियं गंगातडं । जाओ सव्वहा निद्धणो । पत्तो निय-घरं । विमुक्को परियणेण । न मनिज्जइ जणेण । पावए पए पए पराभवं । विसन्नचित्तो पत्तो पाडलिपुत्ते पिउमित्तस्स सोमस्स पासं । दिद्वो मित्तेण मलिणजिण्ण-वत्थो दुत्थावत्थो सुद्धो । कयप्पणामो ससिणेहमालिंगिऊण सुहासणत्थो पुच्छिओ-वच्छ ! किमेवं दुग्गओ व्व दीससि ? | सुद्धेण वुत्तं-'अहं इमिणा कम्मेण जणओवएसे कुणंतो एयमवत्थं गओ ।'
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सुमहनाह-चरियं
२११
तेणेव समं समागओ सोमो पउमपुरं । भणिओ सोमेण सुद्धो- 'सच्चं चेव सुद्धो सि । न याणसि उवएस - परमत्थं, तं पुण कहेमि-देव-गुरुचलणच्चणेण अत्थोवज्जणेण य जामदुगं गमिऊण जिने पुव्व-भुत्तभत्ते उइन्नाए छुहाए अतिहिदाण-पुव्वं सयणेहिं समं जं भुज्जइ तं मिहं' ति भन्नइ । 'दुपय- चउप्पयाइ परिग्गह- सारवणेण दिणायव्वयचिंतणेण देव-गुरु-संभरणेण य जाममेक्कं जग्गिऊण जं सुप्पइ तं सुहं सोयव्वं' ति वुच्चइ । अब्भहिय - मुल्लं सुवन्नाइ - गहणगं घेत्तूण परस्स परिमियं दायव्वं । तओ सो सयं चेव गहिय- दव्वं दाऊण अप्पणी सुवन्नाइ मग्गइ | अओ 'दिन्नं न मग्गियव्वंट' ति सीसइ | महिलाए पहारो न दायव्वो । अह कह वि कोव-वसेण दिज्जइ ता अवच्चबंधणेण बद्धाए चेव दिज्जइ । अन्नहा घरं मोत्तूण सा वच्चइ | एवं 'भज्जा बंधिऊण पिट्टियव्व' त्ति साहिज्जइ । वियसिय मुहेहिं लोयस्स उज्जला दंता दंसियव्वा तओ सो जाय-सिणेही वसणे पत्ते रक्खगो होइ । एवं 'दंतेहिं वाडी कायव्व' त्ति अक्खिज्जइ । गामे गामे नियगुणग्गामेण को वि सयणो कायव्वो जो तत्थ- गयाणं सम्माणं कुणइ । एवं 'गामे गामे घरं कायव्वं' ति कहिज्जइ । वच्छ ! अत्थि पिउपरियण-मज्झाओ को वि ? सुद्धेण वृत्तं - अत्थि थेरी एक्का । हक्कारिया सा । पुच्छिया सोमेण । आसि गंग त्ति नामेण का वि ? | तीए वुत्तंआसि सेहिस्स वल्लहा धवला गंगा-तरंग तरला तुरंगी गंगा नामा | पुणो वुत्ता- किं तीए बंधणद्वाणं ? | थेरीए दंसियं । तं खणावियं सोमेण । लद्धं सुवण्ण- लक्ख-प्पमाणं निहाणं । जाओ महाधणी सुद्धी । आणिया साणंदेण नंदा, विसज्जिओ पुज्जिऊण उवएसपरमत्थ- वागरणं गुरु सोमो ।
इहभव-हियत्थ-कहगा वि पुज्जणिज्जा जणस्स हुंति गुरु | किं पुण परभव - सुह- हेउ - धम्म-उवएसगा जइणो || १९९५।।
जे चत्त- सव्व-संगा पंच- महव्वय- भरुव्वहण-वसहा । ते च्चिय मुणिणो गुरुणी न उ सेसा विसय - विवसति ||१९९६ ॥ धम्मो जीवदय च्चिय नर-: - सुर-सिव - सुक्ख कारणं भणिओ । तं कुणमाणी पावेइ अमरसीहो व्व कल्लाणं || १९९७ ।।
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૨૬૨
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं जंबुद्दीवे भरहे दाहिणभायस्स मज्झिमे खंडे । अमरनयरं व रम्मं अमरपुरं अत्थि वर-नयरं ||१११८।। विलयाउलाइं वित्थिन्न-पत्त-पुन्लाइं पवर-सालाई । जत्थ भवणाई मज्झे वणाई बाहिं विरायंति ।।११११।। तत्थ सुग्गीवो राया । मेहं व सजलधारं रण-गयण-समुन्नयं तमालनिहं । दहूण जरस खग्गं पलाइयं रायहंसेहि ||२000।। तस्स अन्नन्न-कलत्त-कुविख-संभूया दुवे पुत्ता | समरसीहो अमरसीहो य पत्ता दो वि जोव्वणं ||२००१।। कयाइ परलोयं गए जणए जेहो त्ति निविट्ठो समरसीहो रज्जे । सो य निकरुणो पारद्धि-गिद्धो रज्जकज्जाइं पि अचिंतयंतो चिहइ । अमरसीहो उण पाणिदया-परोपरोवयार-निरओ निरयगमण-निबंधणं बंधणं पिव पावं परिहरंतो कालं गमेइ | कयाइं तुरय-वाहणत्थं निग्गओ नगरबाहिं, तरुच्छायाए वीसमंतो पेच्छए छगलं पुरिसेण निज्जंतं । सो य निय-भासाए बुब्बुयइ । कुमारेण करुणाए मोयाविओ । तहावि बुब्बुयंतो न थक्वइ । कुमरेण भणिओ पुरिसो
किं नेसि छगलमेयं ?' सो जंपइ-होइ पसुवहो जल्ने । सग्गफलो तो हंतुं तम्मि इमं, अह भणइ कुमरो- ||२००२।। जइ पसुवहेण सग्गो लब्भइ ता केण गम्मए नरए । न हि हिंसाओ अण्णं गरूयं पावं पयंपंति ॥२००३।। एत्थंतरम्मि पत्तो सोम-मुणी तत्थ दिव्वनाण-जुओ । कुमरो भणइ- विवायं एस मुणी छिंदिही अम्ह ||२००४।। भणिओ मुणिणा छगलोखड्ड खणाविय सई छगल सइं आरोविय रुक्ख । पई जि पवत्तिओ जन्नु सइं किं बुब्बुयहि मुरुक्ख ? ! ||२००५।। इमं सोच्चा ठिओ तुहिक्को छगलो । विम्हिएण कुमरेण वुत्तं-भयवं ! एस छगलो किं तुम्ह पढियमित्तेण चेव तुण्हिोक्को ठिओ ? | साहुणा वुत्तं- भद्द ! रुद्दसम्मो नाम इमस्स पुरिसस्स पिता आसि । तेण खणावियं
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२१३
सुमइनाह-चरियं इमं तलायं | पालीए आरोविया रुक्खा | पइवरिसं पवत्तिओ जल्लो, जत्थ छगलगा वहिज्जति । सो कालेण मओ । जाओ छगलगो । हणिओ इमिणा इत्थेव जल्ने । एवं हओ पंचसु भवेसु । छहो पुण इमो भवो । संपयं अकामनिज्जराए लहुकय-कम्मो जाईसरो इमं भणइ-पुत्तया ! किं मारेसि मं ? तुह पियाहं । जइ न पत्तियसि ता करेमि अहिनाणं । दंसेमि निहाणं । जं मए तुह परोक्खं निक्खयं अस्थि । पुरिसेण वुत्तं- भयवं ! जइ सच्चमेयं ता दंसेउ एसो । जं इमं सुच्चा चलिओ छगलगो गओ गिहभंतरं, निहाण-प्पएसं पाएहिं पहणेइ । खणिए लद्धं निहाणं । जायपच्चओ पडिवल्लो सम्मत्तं पुरिसो | कुमरेण वुत्तं- भयवं ! जइ सत्थविहियस्स वि पसुवहस्स एरिसो दारुणो परिणामो ता मए कायव्वा जीवदया । छगलो साहुपासे धम्म सोच्चा कय-भत्त-पच्चक्खाणो मओ गओ सग्गं । उवगारि त्ति करेइ कुमररस सन्निज्मं । एवं वच्चए कालो |
अह जंपइ छगल-सुरो भासुर-मणि-मउड-कुंडलाहरणो । रयणीए रायपुत्तं गयणे होऊण पच्चक्खो ||२००६।। एसो राया गरूयं जणाणुरायं तुमंमि असहंतो । अच्चंत कूरचित्तो चिंता तुह मारणोवाए ||२००७।। ता मुत्तुं नयरमिणं संपइ देसंतरं तुमं वच्च । समए पुण रज्जमिणं तुमए च्चिय उदरेयव्वं ।।२००८।। इय सुरगिराइ कुमरो विमलेण अमच्च-नंदणेण समं । नयराओ निक्खंतो कमेण कुंडिलपुरं पत्तो ||२00१।। तम्मि समए महंतं असिवं तत्थऽत्थि तस्स पसमकए । "पुरदेवयाइ पुरओ पसुवहमाणवइ भाणु निवो ||२०१०।। तं पारद्धं दहुँ कुमरो करुणाइ हिंसगे भणइमा हणह इमे, ते बिति-'को तुमं वारगो अम्ह ? ||२०११।। निव-वयणेण पसुवहं कुणिमो निव-वयणओ य विरमामो' । इय भणिऊण पयट्टा काउं ते पसुवहं पुरिसा ||२०१२|| तो थंभिया भुया ताण कुमर-वयणाओ छयल-अमरेण । सुच्चा अच्छरियमिणं भाणु निवो तत्थ संपत्तो ।।२०१३।।
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२१४
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं दिहो कुमरो अमरो व्व तेण रमणीय-रूव-संपन्नो । सो वि नमिउं नरिदं जंपइ किमिमे हणिज्जंति ॥२०१४।। न हि पसुवहेण असिवं नियत्तए अवि य वड्डए बाढं । लोए पलीवणं पिव पलाल-पूलप्पसंगेण ॥२०१७।। वज्जरइ भाणुराओ-'नियत्तिही भद्द ! कहमिणं असिवं ? । कुमरो जंपइ-'एत्तो अवयरिया देवया कहिही ॥२०१६|| आणाविया कुमारी रन्ना कुमरेण मंडले ठविया । सिरिखंड-कुसुम-पमुहेहिं पूईया जंपए एवं ॥२०१७।। वसइ कमलि कलहंसि जिम्व जीवदया जसु चित्ति । तसु पय-पक्खालण-जलिण होसइ असिव-निवत्ति ॥२०१८।। अह भाणु निवो जंपइ भद्द ! मणे वसइ जस्स जीवदया । सो कहमिह नायव्वो ? अत्थि उवाओ भणइ कुमरो ||२०१५|| दंसणिणो सव्वे वि हु मेलसु तो मेलिया इमे रज्ला । 'पुरोभमंतीइ वि अंगणाए सकज्जलं दिहिजुयं न व त्ति ? ।' पढियं इमा समस्सा कुमरेण समप्पिया तेसिं ||२०२०।। 'चक्टुं चहुई थणमंडलम्मि अणुक्खणं तेण मए न नायं ।' पुरोभमंतीइ वि अंगणाए सकज्जलं दिहिजुयं न व त्ति ? ।।२०२१।। एवं निय-निय-चित्ताणुसारओ जुवइ-वण्णणपरेहिं । परतित्थिएहिं बहुहा कयं समस्साइ पुव्वद्धं ॥२०२२|| भवियव्वयावसेणं सोममुणी छगल-पुन्वभव-कहगो । तत्थाऽऽगओ अणेण वि पुव्वद पूरियं एवं ॥२०२३।। 'मग्गे तसत्थावर-जंतु-रक्खावविखत्त-चित्तेण मया न नायं । पुरोभमंतीइ वि अंगणाए सकज्जलं दिहिजुयं न व' ति ।।२०२४|| कुमरो भणइ-'इमेसुं कस्स मणे फुरइ देव ! जीवदया ?' | राया जंपइ-जिणमुणिमिणं विमोत्तुं न अन्नेसिं ।।२०२५।। अन्लेसिं पि इमरस व मणम्मि जइ विप्फुरिज्ज जीवदया । वयणं पि तारिसं होज्ज न उण सिंगाररस-पवरं ||२०२६||
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सुमइनाह-चरियं
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तो मुणि-पय-पवखालण-जलेण अब्भुक्खियं नयरमखिलं । असिवं खलु उवसंत राया परिओसमावन्नो || २०२७|| जंपइ कुमरं - 'तुममुत्तमो त्ति सामन्नाओ जइ विनायं । तह वि तुह मुणिउमिच्छइ ठाण- कुलप्पमुहमेस जणी || २०२८| पुर-कुल- पिउप्पमुहं कुमर संतियं कहइ सव्वमवि विमलो । निय-धूयं कणगवई रन्ना परिणाविओ कुमरो || २०२१ || कुमरस्स कुणइ करि तुरय- कणय- वत्थाइ - वियरणं राया । इय तत्थ सुहं चिह्न विसयासेवणपरो कुमरो || २०३०||
अह पुरिसा अमरपुराओ आगया तत्थ तेहिं विन्नत्तो । कुमरो तुमम्मि नगराओ निग्गए सो समरसीहो || २०३१|| पारद्धिपरी रज्जं रक्खइ न परेहिं विद्दविज्जंतं । कुणइ अणीइं च सयं पयाओ तत्तो विरताओ || २०३२|| तो मिग-हणण- छलेणं पारद्धि-परव्वसो पहाणेहिं । सिलाइएहिं हणिउं नीओ सो झत्ति पंचत्तं ||२०३३ || तो तत्थ तुमं गंतूण नियय-रज्जं अणाहमुद्धरसु । इय सोच्चा संचलिओ कुमरो चउरंग-बल - कलिओ || २०३४ || संपत्ती अमरपुरे पट्टम्मि निवेसिओ पहाणेहिं ।
काऊण चिरं रज्जं जिणधम्मपरो गओ सुगई || २०३५ || जीवदया - रहिओ इह भवे वि निहणं गओ समरसीहो । तं पुण कुणमाणो मंगलाई पत्तो अमरसीहो || २०३६ ||
देव-गुरु- धम्म- कज्जे निजुंजिऊणं छलंति जे लच्छिं । लच्छीहरो व्व सेट्ठी लहंति कल्लाण-लच्छिं ते ॥२०३७|| अत्थित्थ भरहखेत्ते नयरं लच्छीपुरं बुह समिद्धं । मुत्तूण जलावासं जलहिं जस्सिं वसइ लच्छी || २०३८|| लच्छिविलासी राया तत्थ पयावानलो तवो जस्स । रिउ - रमणि - नयण-नीरप्पवाह-सित्तो" वि पज्जलइ || २०३१||
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૨૬૬
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तत्थ जिणधम्म-निहो सिही लच्छीहरो महासत्तो । तरस कमल त्ति भज्जा कमलमुही कमलदल-नयणा ||२०४०।। अह अन्नया निसाए सिय-वत्थाभरण-भूसिया नारी । दिहा तेण पसुत्तेण पुच्छिया-का तुमं भद्दे ? ||२०४१।। तीए वुत्तं- 'अहयं तुह गिहलच्छी' तओ भणइ सेही । किमिहाऽऽगया सि ? सा भणइ-तुह गिहाओ गमिस्सामि ।।२०४२|| इय कहणत्थं सेही सत्तपहाणो त्ति पण्हिणा हणिउं । जंपइ-'जइ पच्छा वि हु वच्चसि वच्चेसु ता इण्डिं ||२०४३|| पुरिसा ते च्चिय वुच्चंति जे विरत्ते जणे न रच्चंति । तम्मि वि जे अणुरायं कुणंति तेसिं फुससु लीहं ||२०४४|| ता अन्नत्थ-गया सा पच्चूसे जाव उहिओ सेही । निम्मविय-निच्च-किच्चो ववहारत्थं पलोएइ ॥२०४५।। धण-कण-कप्पड-चोप्पड-कणग-प्पमुहं न पिच्छए किंचि । तत्तो चिंतइ एवं जइ वि वराई गया लच्छी ।।२०४६।। तह वि गर्य भह सत्तं न किंपि अओ करेमि ववसायं । तो पाडिवेसियाओ उच्छिन्नं मग्गए किंचि ||२०४७।। घेत्तूण तेण धूवण-लवण-प्पमुहाई मत्थए पिडगं । काऊण भमइ पुर-पाडएसु कय-विक्वय-निमित्तं ||२०४८|| उच्छिन्नमप्पियं गेहमागओ विहिय-देव-गुरु-पुज्जो । अतिहीण किंचि दाउं लाभेणं चिय कुणइ वित्तिं ।।२०४१।। इय पइदिणं कृणंतो तम्मि पुरे पउर-लाभ-विरहाओ । पिडगं रिरम्मि काउं हिंडइ आसण्ण-गामेसु ॥२०५०।। एवं कालो वच्चइ सा लच्छी किवण-मंदिरम्मि गया । सयमणुवभोज्जमाणा परस्स कस्स वि अदिज्जंती ।।२०५१।। खड्डाए पक्खित्ता सहमाणा तिक्ख-दुक्खमुव्विग्गा । चिंतइ चित्ते एवं-'अहो ! अजुत्तं मए विहियं ॥२०५२।। जं सो महाणुभावो मुक्को ता संपयं पि तस्स घरे । वच्चामि किंतु सो मह दाही निण्हुत्ति न पवेसं ।।२०५३।।
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सुमइनाह-चरियं
ता केणावि उवाएण पुव्वमणुकूलयामि तं गंतुं । तो गामाओ इंतस्स सेहिणो वडतरुस्स तले ।।२०५४।। रमणीय-रमणि-रुवं काउं अइ-सिसिर-सलिल-संपुण्णं । धरिउं करे करवियं ठिया तओ सिहिणा दिहा ||२०५५।। कावि परित्थी एस ति चिंतिउं वडतरुस्स दूरेण । सेही गओ तओ सा बीय-दिणे अभिमुहं गंतुं ||२०५६।। सिहिं जंपइ सिही वि वच्चए उत्तरं अदाऊण | तईय दिणे पुण गाढं चलणेसु विलग्गिउण ठिया ||२०५७।। सिही भणइ तुमं का ? सा जंपइ सिहि ! तुज्झ घरलच्छी । तुह गेहमागमिस्सामि भणइ सेही अलं तुमए ।।२०५८।। जाइकलियं न इच्छसि कमलग्गं मयसि अक्कमारूढे । विवरीय-सरुवे लच्छिभमरि तं वंदणेज्जा सि ||२०५१।। ता मज्झा चलण-जुयलं भद्दे ! मुत्तूण दूरमोसरसु । लच्छी भणइ पसीयसु मह मन्नसु निय-घरागमणं ||२०६०।। गरूयस्स तुज्झ जुज्जइ किं काउं पणय-पत्थणा विहला । इय निब्बंधे विहिए सिही जंपइ-तुमं चवला ||२०६१|| गंतुं जया समीहसि तए तया वच्छरेण एक्वेण । पुरओ मह कहियव्वं-सिहि ! अहं गंतुकाम त्ति ||२०६२|| पडिवन्नमिणं लच्छीइ जंपियं सेहिणा वि जइ एवं । ता आगच्छसु भद्दे ! अह सेही आगओ गेहं ||२०६३|| तम्मि दिणे सविसेसं करेइ सिहिस्स गोरवं घरिणी । जं कमलच्छी लच्छी पेच्छइ सो पावए पूयं ।।२०६४।। निच्चं पि वल्ल-तेल्लाइं असण-दुत्थस्स तुज्झ जोग्गाणि | जा अज्ज मुग्ग-तंदुल-घयाणि आणेमि हटाओ ||२०६५|| ता खाणुमिणं वच्छेण उक्खयं निक्खणेसु उंडयरं । इय जंपिऊण सिहिं संपत्ता सिहिणी हट्टे ।।२०६६।। सिही वि दरं दितो निहाण-कलसस्स कंठयं नियइ । तो उक्खणिऊण निहिं निय-भवणभंतरे खिवइ ॥२०६७।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं निहि-दव्वेणं घय-तंदुलाइं आणाविउं पुणो पउरं । कय-देवातिहि-दाणे भुंजइ घरिणीए सह सेठी ||२०६८।। तत्तो दिणाओ आरब्भ पसरिया तस्स मंदिरे लच्छी । सो वि सयं तं भुंजइ वियरइ सुहि-सयण-दीणाण ||२०६१।। इय लच्छि-फलं लिंतस्स तस्स कालो बहू अइक्वंतो । अह रयणीए उवसप्पिऊण लच्छी भणइ सिहिं ।।२०७०।। मोत्तूण तुमं अन्नत्थ वच्छरंते अहं गमिस्सामि । इय सोच्चा पच्चूसे सिही दाऊण बहु-दव्वं ।।२०७१।। जिण-मंदिरं महंतं सिग्धं कारवइ सुत्तहारेहिं । वत्थान-पत्त-दाणं विसेसओ कुणइ समणाण ।।२०७२।। सिद्धत-पुत्थयाइं लिहाविउं जइजणस्स अप्पेइ । जीवाण अभयदाणं दव्वं दाऊण कारवइ ||२०७३।। तह बंधु-मित्त-बंदियण-दीण-दुत्थाण वियरिउं सव्वं । कच्छुट्टयं च काउं सुत्तो तण-सत्थरे सेही ।।२०७४।। पुणरवि पत्ता लच्छी ख्यमाणा सिहिमुल्लवइ एवं- । देव-गुरु-धम्म-कज्जे तुमए दाऊण छलियाहं ।।२०७५।। नग्गा भुग्गा वच्चामि कत्थ अन्नत्थ ? ता न वच्चिस्सं । दासि व्व अंकवडिया तुज्झा घरे चेय चिहिस्सं ॥२०७६।। सेही जंपइ-जं तुज्झ रुच्चए तं करेसु, किं बहुणा' । तत्तो सिहिस्स घरे लच्छी पुव्वं व वित्थरिया ॥२०७७।। इय लच्छीहर सेही लच्छिं देव-गुरु-धम्म-कज्जेसु । छलिऊण चिरं पत्तो कमेण सग्गं च मोक्खं च ।।२०७८।। एवं सोच्चा संजायमच्छरो जयहरो निवं भणइ । वनंति इमे समणा नियए च्चिय देव-गुरु-धम्मे ।।२०७१।। मनंति न उण अन्ने ता कुण एयाण भिक्ख-पडिसेहं । वच्चंति जेण अन्नत्थ तो निवो दावए पडहं ||२०८०।। जो समणाणं भिक्खं दाही तस्संग-निग्गहं काहं । राय-भएण न केण वि दिना भिक्खा तया तेसिं ||२०८१।।
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सुमइनाह-चरियं
लाभंतराय - कम्मं निबिडं तप्पच्चयं जयहरेण । बद्धं तओ निसाए विसूइया तस्स संजाया || २०८२|| तो तक्खणेण तिव्वा सव्वंगं वेयणा समुप्पन्ना । नरयम्मि नायरस्स वि पाएणं जा न संभवइ || २०८३॥ तं जहा
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फुट्टइ सीसं तुहंति व्व संधिणो भज्जंति व अद्वीणि उम्मूलिज्जंति व्व लोयणाइं छिज्जंति व्व अंताई भज्जंति व्व कुक्खिणो दलिज्जंति व्व दसणा जलणेण डज्झति व्व सव्वंगाई । तओ विरसमारसंतो रक्ख- रक्ख ति दीणं पयंपतो केणावि अकय-परित्ताणो पत्तो पंचत्तं सो । उप्पन्नो पढमे नरए । तओ उवट्टी सरीसिवो होऊण गओ बीए । तओं पक्खी होऊण गओ तईए । तओ सीहो होऊण गओ चउत्थे । तओ उरगो होऊण गओ पंचमे । तओ इत्थी होऊण गओ छडे । तओ मच्छो होऊण गओ सत्तमे ।
इय तिरिय नारएसुं मणुएसु वि दुक्खिएसु सो भमिओ । सव्वत्थ छुहा-तण्हा - किलामिओ च्चिय गओ मरणं ॥ २०८४।। सो य तुमं जाओ गामचिंतग सुयत्तणेण निब्भग्गो । जइ वि असंख-भवेसुं तुमए तं कम्ममणुभूयं ॥२०८५ || तहवि अइ- संकिलिद्वासएण बद्धं ति अणणुभूयं पि । अज्जवि अत्थि पभूयं तेण तुमं दुक्खिओ वच्छ ! || २०८६|| तो जाय - जाइसरणो संविग्ग-मणो भाइ निब्भग्गो । अत्थि उवाओ किं वा वि तुट्टए जेण तं कम्मं ? ||२०८७|| केवलिणा वागरियं-अत्थि उवाओ तवो खु कम्म-खए । जं होइ खओ तेसिं तवसा उ निकाईयाणं पि ॥२०८८|| सो य तवो बारसहा छहि छहि बज्झंतरंग-भेएहिं । आराहिज्जइ समणत्तणेण सम्मं समग्गो वि || २०८९|| निब्भग्गो भणइ - अहं जइ जुग्गो ता ममं कुणसु समणं । जेणाऽऽराहेमि तवं गुरुणा वृत्तं तुमं जोग्गो ||२०१०|| जओ
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अइ-कूरज्झवसाया जे च्चिय समणत्तणस्स न हु जोग्गा । भवियव्वयावसेण लहंति जोग्गत्तणं ते वि || २०११ ||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं एवं भणिऊण विहिपुव्वं दिक्खिओ इमो करेइ नियमं जहाजहल्लेण वि मासाओ पारियव्वं ति । . कयनियमो पइदिणं भिक्खं भमिऊण समणाणं भत्तपाणं अप्पंतो पारणग-दिणे वि मणुलमन्नमन्ने सिं चेव दिंतो सो दुवालसविहं तवं आराहिं तो जीविऊण वरिस-लक्खं समाहिणा मओ समाणो असमाणसुहसारं सहस्सारं "गओ सुरलोयं जाओ इंद-सामाणिओ ||
इह जंबुद्दीवे दीवे भारहवासम्मि मज्झिमे खंडे । पुरमत्थि पइहाणं लोउत्तर-संपया-ठाणं ||२०१२।। वागरणं व चउक्काइ-पवरमत्थडवन्न-संकिन्नं । नवरं निवाय-उवसग्ग-वज्जियं जणइ जं चोज्जं ||२0१३।। तत्थत्थि पत्थिवो दुत्थ-सत्थ-नित्थरण-रित्थ-वित्थारो । नामेण मलयकेऊ केउ व्व विवक्ख-निवईणं ।।२0१४|| जस्स करे करवालो छज्जइ ताविच्छ-गुच्छ-सच्छाओ । समरम्मि हढायडिय-जयलच्छी-वेणि-दंडो व्व ।।२0१५।। तस्सत्थि विलासवई सुंदेर-विलास-मंदिरं देवी । जीए पिय-वयण-जियं अमयं अमयं फुडं जायं ॥२०१६।। सो य निब्भग्ग-जीवो अहार-सागरोवमाइं भोत्तूण । दिव्व-सुखं चुओ समाणो समुप्पल्लो तीए गब्भे ||२०१७।।
दिहो य देवीए तीए चेव रयणीए वयणे पविसमाणो पुन्नकलसो । गब्भाणुभावेण य पणया तस्स सीमंत-सामंता, पयडीहूयाणि पुन्व-नरिंद-निहित्ताणि पणह-निहाणाणि । निहणं गया पच्चत्थिणो । जाओ सो कालक्कमेण । कयं वद्धावणयं । सुविणाणुसारओ पइडियं से पुन्नकलसो ति नामं, वडिओ देहोवचएणं कला-कलावेण य ।
नीलुप्पल-दल-नयणो निल्लंच्छण-छणससंक-सम-वयणो । परिहोवम-भुयजुयलो कणयसिला-विउल-वच्छयलो ||२०१८।। सव्वंगं अमएण व विणिम्मिओ जणिय-जण-मणाणंदो । पत्तो गुणसंपन्नं तारुघ्नं पुन्नकलसो सो ||२०११|| सो जत्थ कीलणत्थं पुरम्मि परिभमइ मयण-समरूवो । सयल-विलयाओ वियरंति तत्थ अणुमग्ग-लग्गाओ ||२१००||
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सुमइनाह-चरियं
तरस पुरे वियरंतस्स पूरयंति व्व मुत्तिय-चउक्के । धावंतीओ तरुणी रहस-सतुटुंत-हारेहिं ।।२१०१।। तहसण-रहस-पहाविरीहिं पउरंगणाहिं रायपहा | अच्चिज्जति निरंतर-ल्हसंत-धम्मेल्ल-कुसुमेहिं ||२१०२।। कह वि पहे वच्चंतं जा पेच्छइ कामिणी कूमारमिणं । उव्वहइ हरसिमेसा संपत्त-तिलोय-रज्ज व्व ||२१०३।। लीलाइ च्चिय जं जं पलोअए बालियं इमो सुहओ । सा सा गणइ निरग्गल-सोहग्ग-समग्गमप्पाणं ||२१०४।। रमणीओ रयणीसु वि सुविणे तं पेच्छिऊण सहस त्ति । एते स एइ कुमरो त्ति जंपमाणीओ उहंति ||२१०५।।
अन्नया निय-पासाए पसं डि-सिंहासण-निसन्नस्स कुमारस्स समीवमुवागओ एगो पुरिसो । पणमिऊण विन्नत्तमणेण-कुमार ! अत्थि सावत्थी नयरी, तत्थ जिणच्चण-पसत्तो उदारसत्तो मुणि-पय-भत्तो मुणिय-जीवाजीवाइ-तत्तो जिणदत्तो सावओ । अहं पि तत्थेव वत्थव्वओ तस्स मित्तो मित्तसेणो । सो य कयाइ अकय-कत्थूरियाइ-विलेवणो वि अविहिय-कुसुमामेलो वि सुरहि-परिमल-वासिय-दियंतरो दहण पुढो मए मित्त ! किं निमित्तो ते एरिसो परिमलो ? भणियमणेण-मित्त ! अस्थि मे सिद्धो सव्वाणुभूई नाम जक्खो | तेण समं गयणंगणे गयारूढो नंदीसराईसु सासय-जिण-पडिम-वंदणत्थं वच्चामि । तत्थ निरंतरं देवा अवयरंति, सुरकुसुम-सोरब्भ-वासियत्तणेण मे एवं विहो परिमलो त्ति । वुत्तो सो मए-जइ एवं ता देहि मे तस्स साहण-मंतं । दिल्लो अणेण मंतो । साहिओ साहण-विहीं । कया मए छम्मासं जाव पुन्वसेवा | अओ परं सव्व-लक्खणोवेएण महासत्तेण उत्तर-साहगेण साहिज्जइ । मए य सयल-महियलं गवसंतेण तुमं चेव तारिसो पर-पत्थणा-भंग-भीरू य दिहो । ता पसायं काऊण तहा करेसु जहा मे मंतसिद्धी हवइ त्ति । पडिवन्नमिणं कुमारेण । आगया कण्ह-चउद्दसी, गहिय-खग्गो साहगेण समं गओ कुमारो मसाणं,
जंविया-जलण-जालोलि-लीढं वरं, चंडवेयाल-कय-तंडवाडंबरं ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं फार-फेक्वार-भीसण-सिवा-संकुलं, मडय-मंसासणक्खित्त-डाइणि-कुलं |२१०६ ।।
तत्थ. आलिहियं मंडलं साहगेण । मुक्को रत्त-कणवीर-कुसुमुक्करो । दिण्णावसाणे दीवया । कया दिस-रक्खा | ठिओ खग्ग-वग्ग-करो कुमारो । ठवियं मंडले मडयं । तम्महे पज्जालिओ जलणो । खित्ताओ मंत- पुव्वं आहुईओ । तओ किलिकिलियं भूएहिं । नच्चियं वेयालेहिं । हसियं रक्खसे हिं । मिलियं वग्ध-वराह- हय-हरिण-फेरंड-तुंडाहिं डाइणीहि ।
तह वि न जा खुब्भइ मंतसाहगो ताव उठ्ठियं मडयं । खिविउं तमेव कक्खाए धावियं पुव्व-दिसहुत्तं ||२१०७।। तो कोववसुग्गीरिय-खग्गो लग्गोऽणुमग्गओ कुमरो । रे ! जासि कत्थ ? मह होसु सम्मुहो' इय पयंपंतो ||२१०८।। तन्वयणं अवगणिय मडयं वच्चंतयं गयं रन्ने । तहवि पडिवन्न-पालणपरो ति न नियत्तए कुमरो ||२१09।। तो साहगं विमोत्तुं पडियं मडयं महीए सहस त्ति । अह फुरिय-रयण-मउडो मणि-कुंडल-लीढ-गंडयलो ||२११०।। मयजल-परिमल-मिलियालि-जाल-मुहलं गइंदमारूढो ।
सव्वाणुभूइ जक्खो जंपइ होऊण पच्चक्खो-||२१११|| कुमार ! तुह इमिणा अविमुक्त -परोवयार-क्क मेण विक्कमेण रंजिय-मणो सिद्धो हं ।।
कुमारेण वुत्तं-भद्द ! साहगरस सिज्मसु ।
जक्खेण वुत्तं-नत्थि एयस्स जोग्गया । तुमं पुण पुन्नग्गलो | अहं तुहाएसकारी निच्च-सन्निहिओ वहिस्सं । तुह समीवहियस्स इमस्स वि सव्वं समीहियं होहि त्ति । भुयाए घेत्तूण कुमारो साहगो य आरोविओ हत्थि-क्खंधं । भणियं-कुमार ! अस्थि वित्थिन्न-पुन्न-पब्भार-पुरिसपाओब्भवं ता विदब्भ-विसए धरणि-रमणि-मणि-कुंडल-पवरं कुंडलउरं नयरं । तत्थ वेरि-नरिंद-करिंदमियारी दमियारी राया । तस्स वयणविणिज्जिय-वियसिय-कमला कमलादेवी । रज्ज-कज्ज-संदब्भपगब्भो नाणगब्भो मंती । मुणिचंदसूरि-पासे पवन्नं रला संम्मत्तं ।
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सुमइनाह-चरियं
अन्नया जाया आवन्नसत्ता कमलादेवी, पत्तो पसव - समओ
इओ य अवाय- बहुलत्तेण सरीरस्स समुप्पन्नो पुव्व-कय-कम्मदोसओ दूसही सयल-मंतोसहासज्झो राइणो रोगो । भवियव्वयावसेणं संकाइ - दोस- दूसिय सम्मत्तो पत्तो पंचत्तं राया । जाओ जक्खो । सो य अहं । आभोईओ मए पुव्व-भवो । अत्थि देवीए गब्भे पुत्तो त्ति बुद्धीए मंतिणा पालिज्जतं दिहं रज्जं । जाया देवीए धूया । विसन्ना देवी । धीरविया मंतिणा- देवि ! पुत्तो जाओ त्ति पयासिऊण "धूयं चेव रज्जं कारविस्सं । धरियव्वा तए इमा पुत्त-वेसेण । कारिओ नयरे पुत्तजम्मूसवो । कयं कामसेणो त्ति नामं । सा य संपयं संपन्न -चंद - सुंदरमुही जाया जोव्वणाभिमुही । ता तुमं तत्थ गंतूण परिणेसु तं । पडिवण्णं कुमारेण । अग्गओ गहियंकुसेण जक्खेण पिओ निसन्नेण साहगेण गय - पहि- गओ गयणे चलिओ कुमारी । पत्तो कुंडलउरं परिसरुज्जाणे । दिन्ना जक्खेण रूव-परिवत्तिणी विज्जा कुमारस्स, भणियं च - तए इत्थीरूवेण परिणेयव्वा इमा । कयं कुमारेण कण्णा-रूवं । जक्खेण य विउव्वियं करि तुरय-रह-पाइक-परिणयं सिनं । सिक्खविऊण पेसिओ साहगो नाणगब्भ-मंति- पासे । भणिओ अणेण सो जहा- सिंहलदीवाओ सिंहलेसरेण कामसेण- रन्नो खवाइसयं सोऊण पेसिया सयंवरा पुब्नकलसी कन्ना, ता तहा करेहि जहा राया तं परिणेइ । पडिवन्नं मंतिणा । विसज्जिओ साहगो । सयं च गओ देवी- सयासं, कहिओ सयंवर - कन्नागमण-वुत्तंतो किं कायव्वं ? ति विसन्ना देवी । वुत्ता मंतिणा- देवि ! धीरा होहि । जओ, असुहस्स कालहरणं होइ । ता इमं चैव पत्तयालं जं इमीए करग्गहणं कारविज्जइ कामसेण राया । पच्छा जहाजोत्तं करिस्सामो । जइ पुण इमं न कीरइ तो विन्नाय - वत्थु - परमत्था पच्चत्थिणी अम्ह रज्जं विद्दवंति त्ति निच्छिऊण भणिया रहसि कामसेणावच्छे ! तुमं राय त्ति सोऊण साणुराया रायकन्ना सयंवरा पत्ता, तुमए य रज्ज - रक्खवणत्थं पुरिसवेसेणं चेव सा परिणेयव्वा । पडिवन्नमिमीए । जाणावियं साहगस्स । जक्खेण विउव्विओ विवाह - मंडवो
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मरगय-परिगय- वलही - वलओ विलसंत- जलय- पडलो व्व । कणयमय-खंभ-कलिओ थिर- रेहिर-विज्जु - दंडो व्व || २११२ ||
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३०४
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं मुत्तावचूल-निचिओ निब्भर-निवडंत-नीर-धारो व्व । वंचंत-चामर-निचओ धवल-बलायावलिधरो व्व ।।२११३।। विउलिंदनील-निम्मिय-तलो नवुब्भिन्न-तण-सणाहो व्व । पसरंत-विविह-रयणंसु-भासुरो भासुर-धणु-जुओ व्व ।।२११४|| वज्जंत-तूर-निग्योस-संगओ गरुय-गज्जि गहिरो व्व । गयणंगणग्ग-लग्गो पाउस-समओ व्व सो सहइ ||२११५|| तयणंतरं च बहु अत्थि-सत्थ-दिज्जंत-दविण-संघायं । वर-वसण-असण-तंबोल-दाण-पीणिय-पणय-वग्गं ||२११६|| नच्चंत-पउर-तरुणी-थणहर-तुटुंत-हार-दंतुरियं ।
दोसु वि पक्खेसु कयं वद्धावणयं हियय-सुहयं ।।२११७॥
गणावियं विवाह-लग्गं, पत्ते य तम्मि जक्ख-कय-रमणीहिं पमक्खणत्थं मुत्तिय- चउक्छ - चच्चिक्वि य - चउरिया- रइय-रंगावलि - निवेसियाए सेय-दुगूल्ल-छन्नाए आसंदियाए ठविओ कुंकुम कुमारीवेसधारी कुमारो, निवेसिया से मणिपट्टए चलणा । कयवच्छीउत्तेण न हयम्मं पमक्खिया दहिय-घय-दुद्धं कुर-वावड-कराहि रत्तंसुयनिवसणाहिं वरंगणाहिं हविया पुप्फ-फल-सलिल-कलियकणयकलसे हि । ओ मिणिया सव्वंगं पुन्नवत्तेण, दिल्ला य अक्खया उत्तिमंगे, आढत्तो पसाहण-विही । पाडिओ पाएसु कामसेणो व्व साणुराओ जावयरसो । कणयकं ति-मणहराओ-कयाओ कुंकु मेण पुणरुत्त-पिंजराओ । जंपियाओ लिहियाओ घण-कलसेसु कत्थूरियाए पत्तले हाओ । अणुराग-संगयाणंदेणेव काले अमीस-गोसीसचंदणेण निम्मज्जियं मुहकमलं । कयं कज्जल-रयंजियं लोयण-जुयं । ससहरे हरिणो व्व रेहए वयणे कओ कत्थूरिया-तिलओ । कमलेसु भसलमंडलाइं व सहति चलणेसु पिणद्धाइं मरगय-मणि-नेउराइं । पडिवनाओ नह-किरण-दुगुणिय-किरण-रयणालं कि याहिं कणय-बिंटियाहिं अंगुलीओ । सुर-उसव-तूरं व बद्धं नियंबे मणि-किंकिणी-जाल-मुहलं मे हला-दामं । नह-भल्लि-संगयं गुलि - सरसणाहे सु मयण-भडभत्थएसु भुएसु भासंति बंधव-बद्धाणि मणि-कंकणाणि | जण-नयणहरिण-वागुराओ व्व बद्धाओ बाहु-सरियाओ | कंठावलंबिणा घणुच्छंगसंगिणा नाहि-निवेसं फरिसंतेण पत्तं गुणित्तण-फलं हारेण | कामरहस्स
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सुमइनाह-चरियं
३०५ चक्काई व सोहंति सवणालंबियाई मणि-कुंडलाइं । एवं जाव पुन्नकलसी पसाहिज्जइ ताव पसाहण-निउणाहिं वार-विलयाहिं पसाहिओ कामसेण-राओ । आसन्नं पाणिग्गहण-मुहुत्तं ति जोइसिएहिं निवेइए देवीए मंतिणा य समं मत्त-करि-कं धराधिरूढो वजंत-तूर-रवबहिरिअंबरो, पवण-पणच्चंत-धय-विरायंत-रहवरारुढ-रायलीयपरियरिओ, धरिय-धवलायवत्तो पत्तो विवाह-मंडवं । धरिओ तस्स द्वारे गहियग्घ-सक्कारेणं रामायणेणं । मग्गिओ आयारिमं, मग्गिअब्भहियं दाऊण ओइन्नो करिवराओ । भग्गा भिउडी कंचण-मुसलेणं | गओ तत्थ जत्थ सियवत्थ-पच्छाइयाणणा अत्थि पूनकलसी । काराविओ अविरुद्ध-को उयाइं । मग्गिओ मुहच्छ वि-फे डावणियं । तेण दिलमायारिमं । फेडिया मुहच्छवी । दिहा पुन्नकलसी । पुन्नकलसेणावि साणुरायं पेच्छिऊण तं चिंतियं ।
रमणिज्जा एसा पुरिसवेस-पच्छाइयस्सरुवा वि ।
सरयब्भ-पडल-छल्ला वि सोहए किं न ससिलेहा ? ||२११८|| कामसेणेणावि लग्ग-समए गहिया करे पुन्नकलसी | चिंतियं कामसेणाए- अहो ! किमेयं न महिला-कर व्व इमीए कोमलं करकमलं, किंतु धणु-गुण-किणंकियं पुरिसस्सेव लक्खिज्जइ ? | फुरइ मे वाम-लोयणं । ता अणुकूल-दिव्व-विलसियं किंपि एयं संभावेमि त्ति चिंतयंतीए मुत्तिएहिं व सेयबिंदूहिं विभूसियं भालवहं । पुलयंकुरेहिं कयं कयंब-कुसुम-समं सरीरं | थरहरियं थोव-घणुब्भेयं हिययं । तओ
चचचलसु चउरियाए दददईए मा विलंबए ताहे । जजजलणे पज्जलिए भभभमिमो मंडलाइं वयं ||२१११।। इय खलियक्खर-सुहयं पयंपमाणा खलंत-गइ-पसरा । घेत्तूण कामसेणा करे कुमारं गया तत्थ ||२१२०|| पारद्धं परिभमिउं वहू-वरं मंडलाइं चत्तारि । अघडिय कंचण-कोडी दिन्ना जक्खेण पढमम्मि ||२१२१|| बीयम्मि हार-कुंडल-कडिसुत्तय-कडय-पमुहमाभरणं । तइयम्मि थाल-कच्चोल-सिप्पि-पमुहं रयय-भंडं ||२१२२|| पर्टसुयाइ वत्थं विविहं तुरियम्मि मंडले दिन्नं । मंती वि पुन्नकलसीए कुणइ अइ-गरूयमुवयारं ||२१२३।।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
वत्थ-विलेवण- तंबोल- कुसुम-पमुहो जणाण उवयारो । हरिस - विहवाणुरुवो विहिओ दोहिं पि पक्खेहिं ||२१२४|| वित्ते वीवाह - महे महंत -करि-कंधराधिरूढमिणं । संजणिय-जणाणंदं वहूवरं पविसइ पुरम्मि || २१२५ || तद्दंसण- कोऊहल - कलिय-मणो नयर-नारि-नर-नियरो | चडिओ गवक्ख - गोउर-घरसिर- पायारमंचेसु || २१२६ || जंपइ परोप्परमिणं विहिणो निम्माणं कोसलं सहलं । अज्ज अणुरूवमेयं वहूवरं जेण संघडियं ॥ २१२७|| किंतु वरो जो एसो अधीरदिट्ठी अणुद्धयाहारो । सो सज्झसवस - वसणावरिय तणू नज्जइ वहु व्व || २१२८ ।। जा उण बहुया सा धीर - लोयणा मेह- छन्न-तवणो व्व । तेय - पसरं वहंती "गरूयं लक्खिज्जइ वरो व्व || २१२९|| एवं पयंपमाणे नयर-जणे जणिय- मंगलायारं । सुर- मिहुणं व विमाणे वहूवरं निय-घरे पत्तं ॥ २१३०|| सूरं पयाव- जुत्तं कुमरं दहुं तिरोहियप्पाणं । जाओ सहस्सरस्सी तिरोहिओ हारिवडिउ व्व ॥ २१३१|| पसरिय - कुमुयामोए मयंक कर नियर - निहय-तम-विसरे । उल्लसिय-कामिणी-मण-मयण - प्पसरे पओसम्मि || २१३२||
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सव्वुत्तम कणयमयं मणि- कुट्टिम - मुक्क - सुरहि - कुसुमभरं । रयणपईव -सणाहं मयणाहि विलित्त - वर - भित्तिं ||२१३३ ॥ रइय-विचित्त-वियाणं पहंसुय - पिहिय-कंचणखंभं । विद्दुम- पल्लंक - निहित्त-हंसतूली- विरायंतं ॥ २१३४ || कलहो अमय - पडिग्गहमोलंबिय- मालईय-मउल - मालं । डज्झंतागरु-कप्पूर- पूर-परिमल-महग्घवियं ||२१३५|| घणसार-सार घण पूग पूग- तंबोल- वीडय - समेयं । वड्डय - सुरहि - विलेवण-संपन्न - सुवन्न- कच्चोलं ||२१३६|| कहमेएसिं रइसुह- समागमो वेस - पिहिय-पयईणं ।
होहि त्ति कोउगेण व कलियं पारावय - कुलेणं ||२१३७||
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३०७
सुमइनाह-चरियं
वासहरमेरिसं सो संपत्तो कामसेण-नरनाहो ।
करगहण-समय-संजाय-पुरिस-संका-कलिय-हरिसो ||२१३८।। विसज्जिऊण परियणं निविहो सीहासणे । सज्झसवसेण जाव न किंचि जंपइ ताव हसिऊण वृत्तं पुन्नकलस-कुमारेण-कमलच्छि ! एत्तियकालं तुमए पुरिसवेसेण भोलविओ मुद्ध-जणो । छइल्ल-जणो उण न पारीयइ पयारिउं | ता संपयं परिच्चय पुरिस-वेसं । कामसेणाए वुत्तं- तुमं पि परिच्चय इत्थी-वेसं । कुमारेण वुत्तं- कहं तए पुरिसो त्ति जाणिओ हं? | तीए वुत्तं- करगहण-समए फरिस-विसेसेण | अहं पुण तए कहं महिल ति लक्खिया ? | अक्खिओ जवख-वुत्तंतो कुमारेण । जायाई दोवि पयइरूवाइं।
अवरोप्परं नियंताणि ताणि रुवं सहाव-रमणिज्जं । दोन्नि वि अणमिस-नयणाई अमर-मिहुणं विडंबंति ॥२१३१।।
इत्थी पुरिसो जाओ त्ति विम्हिया, अहो ! मे दिव्वमणुकूलं ति तुहा, .. चिराओ सणाहा जाय ति निब्भया, इत्थीए पुरिसत्तणं दुघडं मन्नंतस्स जणरस किमुत्तरं करेस्सं ति सविसाया, रुवाइ-गुणेहिं ममब्भहिओ त्ति सलज्जा, मह कडक्ख-लक्खीकओ कामाउरो जाओ ति गम्विया, पढम समागमो त्ति ससज्झसा, किमित्थ होहि त्ति सवियक्का, पइरिक्वे लदो त्ति ऊसुया, कहं तोसियव्वो त्ति चिंताउरा- एवं विविह-वियप्प-संकुल-मणा ओणयमुही भणिया कुमारेण
उन्नामहि मुहचंदु मुद्धि ! बंदिणउ पयदृउ, संमुहु पिच्छि मयच्छि ! कमल-दल-बुट्टि विसदृउ । जंपसु किंपि सकं पि दप्पु परहुय परिवज्जउ, पयइहि तणु तणुयंगि ! कणगु कालिम पडिवज्जउ ||२१४०।। इय भणिउं पल्लंकंम्मि कामसेणा निवेसिया तेण । अणुवत्तिया य तह जह जाया रइ-समर-सोंडीरा ||२१४१।। सा सुहमय व्व रयणी अणुरायमइ व्व पमयमईय व्व । अनोन्न-मंतिताणं ताणं खणद्धं व वोलीणा ||२१४२।। तओ पढियं मागण
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पुव्व-दिसा-संगं पाविऊण संपत्त-गुरु-पयावभरो । सूरो मुसुमूरिय-तिमिर-मंडलो पायडो होइ ।।२१४३।। एवं सोऊण विउदो कुमारो । भणिओ कामसेणाए- नाह ! करेसु इत्थी-रुवं । कयमणेण तं । कामसेणा वि गया जणणी-पासं । तं इत्थी-वेस-धारिणिं दडूण चमक्किया चित्ते जणणी 'हदी किमेयं ?'ति रहसि ठाऊण पूण पूच्छए धूयं । तीए वि अक्खिओ सव्वो वि वईयरो । तुहा जणणी । आहूओ मंती । कहियं तस्स वि सव्वं । देवी मंती पत्ताई वासहरं | दिहो इत्थीरूवधरो मारो व्व सुकुमारो । भणिओ कामसेणाएनाह ! पयडे सु साहावियं रुवं । पयडियमणेण । विम्हिय-मणेहिं भणियमणेहिं -
अणुकूले दिव्वे कइयवं पि पुरिसस्स सुह-फलं होइ । पडिकूले तम्मि पुणो सच्चं पि भवे अणत्थ-फलं ।।२१४४||
एत्थंतरे तरणि-मंडल-दिप्पमाणो, माणिक्व - कुंडल-विलीढकवोल-मूलो, वच्छत्थली-विलसमाण-महप्पमाण-हारो नहंगण-गओ पभणेइ जक्खो- 'अहं हि दमियारी मरिऊण सव्वाणुभूई जक्खो जाओ । मए य तुम्होवरि सिणेहं वहतेण एत्तियं कालं रक्खियं रज्जं । संपइ पइहाणपुर-सामिणो मलयके उणो पुत्तो पुन्नकलसो नाम कुमारी कामसेणाए पवरो वरो त्ति रज्ज-रक्खणत्थं" तुम्ह समप्पिओ, ता इमस्स आणाए समं वट्टियव्वं' ति भणिऊण तिरोहिओ जक्खो | तन्वयणसवण-ववगय-भंतीहिं पडिवन्नो कुमारो देवी-मंतीहिं ।
जक्खाइहो गुण-कुलहरं व अंगीकओ ति किं चोज्जं ? | पडिवज्जइ को न जए मिहं विज्जोवइडं च ||२१४५।। विहियं वद्धावणयं पुणो वि अह पालए इमो रज्जं । पंचप्पयार-विसए सेवइ सह कामसेणाए ।।२१४६।। पुन्नकलसं पि जाणइ जणो इमो कामसेण-राओ त्ति । पुन्नकलस ति सरिसत्तणेण तह कामसेणं पि ॥२१४७||" सो मंतसाहगो मित्तसेण-नामो कओ कुमारेण ।। दंडवई तस्स य नियय-नंदणी मंतिणा दिन्ना ||२१४८।। अइक्वंतो कोइ कालो । जाओ पुत्तो कामसेणाए । वीरसेणो त्ति
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सुमहनाह-चरियं कयनामो वडिउं पवत्तो । अन्न या कुमारेण वुत्तो मित्तसेणो-मित्त । देसंतरदंसण-कोउगं मे महंतमत्थि । निच्च-सन्निहिएण जंपियं जक्खेण'जइ एवं ता हत्थि-खंधमारोहसु जेण तं पूरेमि'त्ति भणिऊण कुमारो समारोविओ समं मित्तसेणेण सह हत्थि-खंधे । पयट्टो पुव्व-कमेण गणयंगणे गंतुं । गामागर-नगर-गिरि-सरि-सरोवर-विरायमाणं मेइणीवलयमवलोयंतो पत्तो कंचणमय-पायार-परिक्खित्तं कंचणपुरं । जं फलिह-विणिम्मिय-पढम-भूमि-उवरि-हिएहिं भवणेहिं गयण-गएहिं व मणि भासुरेहिं सुरपुर-सिरिं वहइ । तं च दहण भणिओ पुन्नकलसेण जक्खो- सव्वुत्तमं नयरमेयं । ता इमस्स दंसणेणं करेमो नयण-निम्माणं सहलं । ‘एवं करेह' त्ति भणंतेण जक्खेण उत्तारिया हत्थि-खंधाओ कुमारसाहगा । तिरोहिओ जक्खो । ते वि पविट्ठा पुरब्भंतरं । कोउगविखत्त-चित्ता सयल-वासरं पेच्छिऊण नयर-सिरि रयणीए पसुत्ता मयण-देवउले |
एत्तो य तम्मि नयरे राया रिउ-निद्द-निद्दलण-सूरो । नामेण सूरसेणो सूरो व्व पयाव-दुव्विसहो ।।२१४१।। तस्सऽत्थि वसंतसिरी देवी तीए य कुक्खि-संभूया । तइलोक्छ-तिलयभूया धूया नामेण मयणसिरी ||२१५०।। तीए वयंसियाओ कामलया-ससिकला-महुसिरीओ । दंडाहिव-मंति-पहाण-सेहि०-धूयाओ जह-संखं ॥२१५१|| . तत्थऽत्थि उवज्झाओ विज्जाणंदो त्ति विबुह-विक्खाओ । तस्स समीवे सम्म कुणंति ताओ कलग्गहणं ॥२१५२|| अह तत्थ सत्थवाहो वेसमण-समाण-रिद्धि-वित्थारो । सागरदत्तो नामेण सागरो गुरु-गुण-मणीणं |२१५३।। तस्स य समुद्ददत्तो पुत्तो पुत्तो व्व जलहि-धूयाए । सो वि कलाओ गेण्हइ विज्जाणंदरस पासम्मि ||२१५४|| पडिदियह-दसणेणं सहास-वीसंभ-"जपणेणं च | कन्लाण ताण जाओ समुद्ददत्तम्मि अणुराओ ||२१५५।। जओअइ दंसणाओ पीई पीईए रई रईइ वीसंभो । वीसंभाओ पणओ पंचविहो वट्टए मयणो ||२१५६।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं मंतंति ताओ एवं परोप्परं अम्ह निब्भरं नेहो । तो अम्हाण विवाहं जइ पियरो कारविरसंति ||२१५७।। ता होही विरहो भिन्न-भिन्न-ठाणेसु दिन्नाण । जइ पुण सयं पि एक्वं परिणेमो किंपि नर-रयणं ॥२१५८।। तत्तो परोप्परं विरह-विरहियाओ सुहेण चिहामो । एसो य सयल-रूवाइ-गुण-जुओ सत्थवाह-सुओ ।।२१५१||
ता इमं चेव परिणेमो' त्ति मंतिऊण कहिओ तस्स सब्भावो । पडिवण्णं तेण । 'अज्जेव रयणीए सोहणं मुहत्तं' ति तुमए मयण-देवउले परिणेयव्वाओ अम्हे उ,' त्ति कओ ताहिं तेण समं संकेओ । विनायमिणं कुरंगएण पासवत्तिणा पत्तिणा, कहियं सत्थवाहस्स, अत्थंगए गयणलच्छि-मणि-कुंडले चंडंसु-मंडले, वियंभमाणे भमरमाला-सामले तिमिरपडले, पाहरिय-दिहिं वंचिऊण विवाहोवगरण-वग्ग-कराए वियक्खणाए चेडीए समं समागयाओ मयणसिरि-प्पमुहाओ कन्नाओ मयण-देवउले । अच्चिओ चारु-कुसुमाईहिं कुसुमाउहो । सत्थवाह-सुओ वि कयतक्वालो चिय-सिंगारो वच्चंतो वणियकुलाणुचियमेयं ति चिंतिऊण सत्थवाहेण खित्तो घरब्भंतरे । दिण्णं दुवारे तालयं । ताओ य कण्णगाओ तत्थ समुद्ददत्तं अपेच्छमाणीओ भणं ति-हला वियक्खणे ! गवेसहि समुद्ददत्तं । तओ तीए पईव-हत्थाए गवसंतीए दिहो मत्तवारणे पसुत्तो साहग-सहाओ कुमारो । भणियमणाए- अत्थि एसो कुरंगय-परिगओ पसुत्तो । इमं च सोच्चा समागयाओ सव्वाओ जाव दीवुज्जोएण पेच्छंति ताव भणियं मयणसिरीए- न एस समुद्ददत्तो, किंतु तत्तो विअंभियरूवो भयवं मयणो | कामलयाए वुत्तं-सो अणंगो सुव्वइ, एसो सव्वंग-सुंदरो, ता धुवं लच्छिवल्लहो । ससिकलाए वुत्तं-सो जणदणो त्ति पसिद्धो, एसो जणाणंदणो, ता नूणं संकरो । महुसिरीए भणियं-सो वि विरूवक्खो अक्खिज्जइ, एसो उण कमल-दल-विलास-नयणो, ता निच्छियं सुरिंदो । मयणसिरीए वुत्तं -सो वि नयण-सहस्स-दसियसव्वंगो, ता एस अन्नो को वि । इमं च ताणं परोप्परालावं सोऊण भणियं साहगेण
एसो न कामएवो न केसवो न गिरिसो न वा सक्को । किंतु तणओ पइहाण-सामिणो मलयकेउस्स ||२१६०।।
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३११
सुमइनाह-चरियं
नामेण पुन्नकलसो निसग्ग-सोहग्ग-भग्ग-मयणमओ । चाय-चमक्विय-भुवणो विक्कम-कमला-विलास-हरो ||२१६१|| ता साहिलासमनोन्न-वयण-पंकय-पलोयणा-पुव्वं । भणियं इमाहिं - मयणेण भत्ति-तुहेण अम्हाणं ।।२१६२।। उवणीओ एस वरो ता एयं उहवेहि जेणऽम्हे | परिणेमो संपइ भद्द ! सोहणं वदृए लग्गं ||२१६३|| उहविओ साहगेण कुमारो, दहणं कलाओ चिंतिउं पवत्तो- किं एयाउ पायालवासुव्विग्गाओ नायकन्नाओ ? किं गलिय-गयणंगणगमणविज्जाओ विज्जाहर-वहुओ ? किं वा कुविय-सुरवइ-सावपरिभट्ठाओ तियसंगणाउ ? ति चिंतयंतो जाव चिहइ ताव मुणियभावाए भणिओ मयणसिरि-चेडीए विअक्खणाए- कुमार ! किं वियप्पेसि ? | एसा खु सूरसेणस्स रन्नो कला मयणसिरी । एसा दंडाहिव-धूया कामलया । एसा मंति-पुत्ती ससिकला । एसा सिहि-सुया महुसिरी । एयाहिं सत्थवाह-पुत्तेण समुद्ददत्तेण समं कओ विवाह-संकेओ, सो य दिव्ववसओ न आगओ ।
जं वणिय-पुत्त-मेत्तं मग्गंतीहिं तुमं नरिंद-सुओ । पत्तो तं तरुमेत्तं गवेसमाणीहिं कप्पतरू ||२१६४||
करिमेत्तं पत्थंतीहिं सुरकरी, वंछिरीहिं जलमेतं अमय-रसो, मणिमेत्तऽस्थिणीहिं चिंतामणी लदो | ता करेसु करग्गहणेण एयाण सहले मणोरह' त्ति भणंतीए समप्पियाइं पारणेत्त-वत्थाइं, नियत्थाई कुमारेण | बद्धं मयणफल-सणाहं करे कंकणं, गयाइं कामएवस्स पुरओ, कयं कुमारेण तासिं चउन्हं पि पाणिग्गहणं, विहिओ तक्वालोचिय विही । भणियं च मयणसिरीए
जइ वि तुमं देसंतर-परिभमणपरो तहा वि अम्हाणं । हियए तहा पविठ्ठो नीहरसि जहा न ह खणं पि ||२१६५।। कामलयाए वुत्तंबहय-महिलाहिं रुद्धं हिययं बहु-वल्लहस्स तुह सुहय ! | अम्हं पि तस्स कोणे तहा वि वियरेज्ज ओगासं ॥२१६६||
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ससिकलाए वृत्तं -
तुह मुह- चंदरस पलोयणेण अम्हाण माणस - समुद्दे ।
तह सुहय ! समुल्लसिओ विरमिस्सइ जह न कईया वि || २१६७ ||
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
महुसिरीए भणियं
निय - निय- घरेसु अम्हं वच्चंतीणं सरीरमेत्तेण ।
ठाही मणं तुहच्चिय पासे बद्धं तुह गुणेहिं ||२१६८ ||
एवं भणिऊण गयाओ निय-निय ठाणेसु सव्वाओ ।
पहाए अत्थाण-मंडव - निसन्नस्स रन्नो विन्नत्तं पडिहारेण देव ! आलाण- खंभं उम्मूलिऊण वियरिओ मत्त - हत्थी, पयट्टोऽसमंजसं काउं । तहाहि
खणु पवणु व्व गुरुवेगेण जाइ, खणु निच्चलंगु सेलो व्व ठाइ । खणु गिंभु व रयभरु विक्खिरेइ, खणु घणु व गज्जिओ वित्थरेइ || २१६१||
पडिहारं हणइ घण-जव मरह, मुसुमूरइ तरल-तुरंग थहं । मूलइ मूलह विवि-वग्ग, मेढ - हट्ट - भवणं भंजइ समग्ग || २१७०।। न गणेइ बालु विलवंतु करुणु, संहरइ तार- तरलच्छु तरुणु । छड्डइ न बुहु कंपिर- सरीरु, महिला समूहु मारइ अभीरु ||२१७१ || नव वारइ निदणु न हु धणडु परिहरइ न मुक्खु न वा वियड्डु | उक्खिविय वियडु दढ - सुंड - दंडु, तं दंड - पाणि जसु कोव - चंडु ॥ २१७२॥ इय कय- असमंजसु कोव-परव्वसु मयजल सिंचिय-महिवलउ । तु मत्त मयालु भमिरु निरग्गलु कुणइ अकालि वि पुरि पलउ || २१७३ || रन्ना वुत्तं- जो इमं वसीकरेइ तस्स मयणसिरिं धूयं देमि । तं सोऊण पयट्टा पयंड-पोरुसुब्भडा बहवे सुहडा । गया गइंदस्स पासे । ते तस्स पज्जलिय जलणस्स व तेयमसहमाणा ठिया दूरओ । इओ य कुमारो सुत्त विउद्धो करि वुत्तंतं मुणिऊण करिसिक्खा - वियक्खणत्तणेण कोउगक्खित्त-चित्तो पत्ती तयभिमुहं । दिट्ठो तेण हत्थी ।
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सुमइनाह-चरियं
जो सत्त-करुत्तुंगो नव-कर-दीहो ति-हत्थ-वित्थिन्नो । दस-हत्थ-परीणाहो सत्तंग-पइहिओ भद्दो ||२१७४|| आरोविय-धणुवंसो वीसनहो नह-विलग्ग-कुंभयडो । महुपिंगच्छो लक्खण-सएहि वालेहिं चउहिं जुओ ||२१७५|| गओ गयस्सऽग्गओ कुमारो । हक्किओ अणेण करी । धाविओ तयभिमुहं, पक्खित्तमुत्तरिज कुमारेणऽपरिणओ तत्थ हत्थी आहओ कुलिस-कढिणेण मुहिणा पहि-प्पएसे । चलिओ कुमराभिमुहं करी । भामिओ कुलाल-चक्कं व मंडल-परिब्भमिरेण कुमरेण, परिस्संतो य ठिओ लेप्पमओ व्व निच्चलो मयग्गलो । आरुढो केसरि-किसोरो व्व विज्जुक्खित्त-करणेण करिणो खंधे कुमारो | बद्धमासणं । गयाणुचरेहिं समप्पियं अंकूसं । तओ सलहिज्जतो नायर-जणेण, साहिलासमवलोइज्जमाण-मुहकमलो विलयाहिं, चलिओ रायभवणामिभम्हं । वद्धाविओ य राया लोएहिं जहा-देव ! अमरकुमारागारेण निरुवमविक्कम-गुणागारेण केण य पुरिस-रयणेण हत्थी वसीकओ त्ति । इओ य पहाए दिहा नव-विवाह-नेवच्छा परियणेण रायकन्ना, कहिया जणणीए । तीए वि तहा दहण पुडा-वच्छे ! किमेयं ? | जाव न किंपि जंपइ मयणसिरी ताव कहियं सव्वं पि वियक्खणाए । देवी वि वियक्खणाए समं गया रन्नो समीवं । विन्नत्तमिणं जहा- देव ! दंडवइ-मंति-सिहि-धूयाहिं समं मयणसिरीए एगत्थ-पढणेण जाओ अच्चंत-सिणेहो । एयाहिं च परोप्पर-विरह-कायराहिं पइहाणपुर-पहुणो मलयके उणो पुत्तो पुल कलसो नाम भवियन्वया-वसेण अज्ज रयणीए परिणीओ । रन्ना वुत्तं- ममावि एसो चेव मणोरहो आसि । परं रहसग्गलेण एवमाइडं जहाजो इमं हत्थिं वसीकरेइ तस्स मए मयणसिरी दायव त्ति | ता संपयं पइल्ला इमा कहं नित्थरियव्व ति चिंताउरो जाव चिट्ठइ राया ताव पत्तो रायभवणंगणे कुमारो । दिहो रन्ना । अहो ! असरिसी रूव-संपया, अहो ! निरुवमो विक्कमो इमस्स | ता को एसो ? ति | विन्नत्तं वियक्खणाएदेव ! एसो चेव पुलकलसो जेण अज्ज रयणीए परिणीया मणयसिरी । पहाण-पुरिसे हिं भणियं - जुज्जए एयं, जओ एसो नवविवाहकं कणालंकिय-करो दीसइ त्ति । रन्ना वुत्तं- सोहणं संपन्नं । जं पुन्नकलस-कुमारेणं चेव हत्थी वसीकओ । अओ पत्तोहं संपयं पइन्ना
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३१४
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
महन्नवस्स पारं ति जंपंतेणं आइडं जहा - कुमार ! हत्थिं खंभे अग्गलिऊण इहागच्छ । कुमारो वि तहेव काऊण पणओ नरिंदरस | रन्ना वि ससिणेहमालिंगिऊण निवेसिओ समासन्न दिन्न - सुवन्नासणे । भणियं च
जइ वि तुमं अप्पाणं कुमार ! अम्हाण न हु पयासेसि । तहवि चरिएण लोउत्तरेण इमिणा पयडिओ सि ॥ २१७६ ।। अप्पाणमपयंडतो वि होइ पयडो गुणेहिं सप्पुरिसो । छन्नो वि चंदण-दुमो किं न कहिज्जइ परिमलेण ? || २१७७॥৷ कुमारेण वुत्तं -
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जं एसो मत्त करी कुविय कयंतो व्व दुस्सहो वि मए । विहिओ वसमं तं सामि ! तुम्ह चलणाणुभावेण || २१७८||
जं निग्गुणो वि पयडेइ गुणलवं तं गुरुण माहप्पं । पंगू वि गयणमक्कमइ अक्कमंडल - गओ अरुणी ||२१७७ || रन्ना वुत्तं
'वच्छ ! तुम मयणसिरीए सयं चेव परिणीओ, संपयं पुण मए वि तुज्झ इमा दिन्न' त्ति भणिऊण पसत्थ- वत्थेहिं महग्घ- रयणालंकारेहिं करि तुरयाइ - दाणेण सक्कारिऊण विसज्जिओ पवरावासे । कुमारो पत्तो सह मयणसिरीए । इमं च सोच्चा सेणावइ-सचिव-सेट्ठीहिं पि सम्माणपुव्वं समप्पियाओ निय-निय धूयाओ । भुंजए ताहिं समं भोए ।
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अह अन्नया कुट्टिम - सन्निविड- सुवन्नसीहासण- सन्निसन्नो । नरेसरो पेच्छइ सूरसेणो नहंगणे वब्भयदब्भमब्भं ||२१८०|| कमेण तं सज्जण-संगयं, व वुडिं गयं निब्भर - पूरियासं । गज्जंतमुल्लासिय-विज्जुलेहं, काउं पयहं सहस त्ति वुद्धिं ||२१८१|| एत्यंतरे उल्लसिओ समीरो, कप्पं व कालप्पभवो व्व तिव्वो । समाहयं तेण य तक्खणेण तमक्कतूलं व कहिं पि नहं ||२१८२ | दहूण तं चिंतइ सूरसेणो, वेरग्ग-मग्गोवगओ मणम्मि । लोयम्मि एएण निदंसणेणं, नीसेस-भावाण विणस्सरत्तं ||२१८३||
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पावाई दोगच्च - निबंधणाई, भोगत्थिणो जस्स कए कुणति । अभिक्खणं तं पि असारमंग, रोगा विलुंपंति घुण व्व कटुं ||२१८४|| विमोहिया जेण जणा मणम्मि, हियाहियं किं पि न चिंतयंति । तं जीव्वणं झत्ति जरा कराला, दवग्गि- जाल व्व वणं दहेइ || २१८५|| रसायणाइणि कुणंति जस्स, थिरत्तणं-काउमणा मणुस्सा | मयं व वग्घेण गसिज्जमाणं, तं मच्चुणा रक्खइ जीवियं को ? || २१८६ | जीए कए भूरि किलेस जालं, कुणंति मेल्लंति तणं व पाणे । पणस्सए सा सहसा पयंड- वायाहया दीव - सिहि व्व लच्छी ॥ २१८७॥ जेणावलित्तो विसएक्कचित्तो, परित्थि-संगं पि करेइ मूढो । खणेण तं खिज्जइ धाउ-खोहे, हिमागमे पंकरुहं व रूवं || २१८८|| किलिस्सए जस्स कए कुणंतो, विचित्त चाडूणि परस्स जीवो । लढूण थेवं पि विलीय- वन्हिं, विणिज्जए तं मयणं व पेम्मं || २१८१|| किच्चं अकिच्चं व न जम्मि पत्ते, पलोयए पीयसुरो व्व जीवो । पहुत्तणं तु तं पणडे, पुन्ने घणे सेलनई रओ व्व ||२१|| एगत्थ रुक्खे व्व कुटुंबवासे, कालंकियं तं पि खग व्व बंधू | ठाऊण वच्चति चउग्गईसुं, चउद्दिसासुं च सकम्मबद्धा || २१११|| एवं अणिच्चं सयलं पि वत्थं वियाणमाणस्स दुहेक्कगेहे । गे पलित्ते व्व भवम्मि मज्झ, जुत्तो पमाओ न खणं पि काउं || २११२|| एत्तो य पत्तो फल- - फुल्ल - हत्थो, उज्जाणपालो नमिउं भणेइ | सूरी तसत्थावर-जंतु - चत्ते, लीलावणे तुम्ह समागओ त्ति || २११३|| जो तारएहिं व मुणीहिं जुत्तो, निच्छिन्न- सम्मोह - महंधयारी | कारुन्न- पीऊस-पसन्नमुत्ती, चंदो व्व नामेण पसन्नचंदो || २११४|| तं सूरसेणी सुणिऊण तरस, तोसेण दाउं दविणं अणग्धं । गओ गयक्खंध - गओ गुरूणं, नमंसणत्थं गुरु-भत्ति - जुत्ती ||२११५|| उज्जाण - मज्झोवगओ नरिंदो करिंद - खंधाउ समुत्तरेइ । आलोयमेत्तुज्झिय-रायचिंधो, गुरुण पाए पणमेइ सम्मं || २११६।। तो धम्मलाभं भवदाव- दाह-नवंबुवाहं वियरेइ सूरी । नमंसिऊणं मुणिणो विसेसे, राया निसन्नो उचियासणम्मि ||२११७||
सुमइनाह-चरियं
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
पयासयंतो विलसंत दंत-कंतीहिं हारं व तवस्सिरीए । घणोह - निग्घोस गहीर-घोसी- - गुरु विधम्मं कहिउंपवत्तो ॥ २११८|| माइंदजालं व विलोलमेयं, वियाणमाणो वि भवस्सरूवं । निव्वाण - मग्गे न पयट्टए जो, दिडेहिं चोरेहिं मुसिज्जए सो || २१११।। माणुस्स - जम्मं लहिउं दुलंभं, गमेइ जो भोगसुहस्स कज्जे । सो वायसुड्डावण-कारणम्मि, खिवेइ चिंतारयणं व मूढो ||२२००|| नियत्तिउं वंछइ भोग-तण्हं, सेवाऍ जो मूढमणो मणुस्सो । समीहए सो जलणस्स तित्तिं, संपाईउं दारु- समुच्चएण || २२०१|| संतोस - सुक्खं स - वसं विमोत्तुं, परव्वसं भोग- सुहं सुहत्थी । संपत्थर जो अमयं चइत्ता, करेइ सो हालहलाहिलासं ॥२२०२॥
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धम्मं असारेण सरीरएण, जो साहए मोक्ख - सुहेक्क - हेउं । किणेइ सो मत्त - करि खरेण, चिंतामणिं काण - कवडएण || २२०३ || जो पावकम्मुज्जमिं दियाणं, सकज्जलुद्धाण कए करेइ । सो मूढबुद्धी निय-कंठदेसं, हणेइ तिक्खेण कुहाडएणं ||२२०४|| लद्धे नरत्ते व समीहियत्थं, संसाहगे साहइ जो न मोक्खं । पत्तो वि सी रोहणपव्वयम्मि, न लेइ माणिक्कमणग्घमोल्लं ||२२०५ || मोत्तूण जो रज्जमवज्ज - मूलं तवं न कुज्जा सिव- सुक्ख - हेउं । लढूण धत्तूर - तरुं सुरुवखो, सो कप्परुक्खं पि परिच्चएज्जा ||२२०६ ।। एवं गुरूणं वयणं सुणित्ता, नरेसरी जंपर सूरसेणी । धम्मत्थिणो मज्झ तुहोवएसो, वाउ व्व जाओ सिहिणी सहाओ || २२०७।। काऊण तो संपइ रज्जसुत्थं, गिण्हामि दिवखं तुह पाय-मूले । गुरू पयंपेइ महाणुभाव !, मणोरहो सिज्झउ ते अविग्घं ||२२०८ ।। गंतूण गेहम्मि पहाण-लोयं, हक्कारिडं जंपइ सूरसेणो । अहं हि संसार - विरत्तचित्तो, रज्जं विमोत्तूण वयं गहिस्सं || २२0१।। पुत्तो न मे दिव्व-वसेण जाओ, एक्को वि जं रज्जपए ठवेमि । ता संपयं एत्थ निवेसइस्सं, भत्तारमेयं मयणस्सिरीए || २२१०|| रज्जम्मि पुन्नकलसं अहिसिंचिऊण,
तेणेव निम्मविय-निक्खमणप्पवंचे |
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सुमइनाह-चरियं लीलावणे पविसिऊण गुरुण पासे,
दिक्खं पवज्जइ नरेसर सूरसेणो ||२२११|| गहिय-दुविह-सिक्खो सो सरीराणवेक्खो,
विविह-तव-पसत्तो निच्चलोदारसत्तो । परम-पसम-रम्मो निहियाऽसेस-कम्मो,
धुवमणुवम-सोक्खं जाइ कालेण मोक्खं ||२२१२|| पुन्नकलसो वि गुरु-समीवे पवनो देसविरइं परिपालइ रज्जं, सेवए मयणसिरी-पमुह-पत्तीहिं सह विसयसुहं । जाओ कमेण मयणसिरीए नंदणो | तस्स कयं मयणवम्मो त्ति नामं ।
__४'कयाइं कंडल उराओ करह-समारूढा समागया पुरिसा । विनत्तोऽणेहिं पुन्नकलसो- देव ! देउर-सामिणा नरसिंहेण रन्ना पेसिओ। दूओ नाणगब्भ-मंति-पासे । भणियं अणेण-देवो नरसिंहो आणवेइ एवं जहा-एत्तियं कालं तए पुत्त-ववएसेण काराविया रायकन्ना रज्जं । तं च न विलायं मए, संपयं पुण रायकल्लाए अविनाय-कुलक्कमेण केणावि पुत्तमुप्पाईऊण रज्जं कारवेसि । अहो ! ते बुद्धि-कोसल्लं । तो जइ रज्जरस कुसलं वंछसि ता मे दंडं देसु । अह न देसि ता नूणं विणस्ससि । मंतिणा वुत्तं-'जइ ते दंड-गहण-वंछा ता देवो दमियारी दंडं किं न मग्गिओ ? संपयं पुण बालरज्जं दहण दंडं मग्गसि, ता तुमं छलं नेसि नरसारमे ओ न नरसीहो । जं पुण महाराय-मलयके उ-कुलके उभूयं पुन्नकलस-कुमारं अविनाय-कुलक्कम जंपसि तं तुमं जमदंडाभिलासी, ता न देमि दंडं । वच्च, कहेसु निय-सामिणो जं ते रुच्चइ तं करेसु' त्ति वोत्तूण विसज्जिओ दूओ । अम्हे वि तुम्ह पासं पेसिया । अओ परं देवो पमाणं ति । कुमारेण वुत्तं-गच्छह तुब्भे, न कायव्वं नरसिंह-भयं । नियत्ता ते । पुन्नकलसो वि तत्थ रज्जसुत्थं काउण पुव्वं सव्वाणुभूईपउणीकय-कुंज रारूढो पत्तो तत्थ जत्थ दूय-वयण-सवण-कुविओ कुंडलपुरं पइ पत्थिओ देवउर-परिसरे आवासिओ चिहइ नरसिंहो । किमेस एरावणारूढो सयं सुरिंदो एइ ? ति विम्हयवसुप्फुल्ल-लोयणेण से नलोएण पलोइज्जमाणो अवयरिओ नरसिंहस्स पुरओ । भणियं कुमारेण-अरे ! अविनाय-कुलक्कम ममं जंपसि । ता जइ कुलक्कम ४४मुणिउमिच्छसि ता उहेहि [करेहिं] करे करवालं । मम भुयाओ चेव
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं कहिस्संति कुलं । तओ 'अरे ! गेण्हह इम' ति भणंतो गहिय-खग्गो उहिओ नरसिंहो । विविह-पहरण-विहत्थ-हत्था पयहा पहरिउं सुहडसत्था । नरसिंहं विणा थंभिया सव्वे सव्वाणुभूइणा ।
उग्गीरिय-खग्गा के वि के वि चक्कलिय-चंड-कोदंडा । उक्खित्त-मोग्गरा के वि चित्त लिहिय व्व संजाया ||२२१३||
नरसिंहेण 'किं न पहरंति ?'भणिया सुहडा । वुत्तं कुमारणकिमेएहिं किमिप्पाएहिं पाइक्वेहिं ? अहं तुमं च दो वि जुज्झामो । पयट्टा दो वि जुज्ािउं । कहं ?
वग्गंति दो वि हक्वंति दो वि पहरंति दो वि खग्गकरा । दो वि गयणंगणे उप्पयंति निवयंति ते दो वि ||२२१४|| दक्खत्तणओ खग्गेण तरस खग्गं तड ति तोडित्ता ।
नरसिंह-नरिंदो पाडिऊण कुमरेण तो बद्धो ||२२१५।। मुक्ता सिद्ध-गंधव्वे हिं गयणाओ कुमरस्सोवरि कुसुमवुढी । सव्वाणुभूइणा उत्थंभिया सुहडा | पवना कुमार-सरणं । नरसिंहो वि मुक्को सक्वारिउ कुमारेण । भणियं च तेण- कुमार !
जं तुह मए सरूवं अयाणमाणेण अणुचियं भणियं । तेण असच्चरिएणं सक्केमि न दंसिउं वयणं ||२२१६।। ता वणवासं वच्चामि मज्झ गिण्हेसु रज्जसिरिमेयं । नीसेस-विसय-पवरं परिणेसु सुयं व रायसिरिं ।।२२१७।। कुमरेण वुत्तमेयं पालसु रज्जं करेसु मा खेयं । सुहडस्स भूसणं न उण दूसणं रणमहीवडणं ||२२१८।। कल्ला-परिणयण-कए जं तुममाणवसि तं पुण करिस्सं । जम्हा गुरुण वयणं अलंघणिज्जं बुहा बिंति ।।२२११।। रना वुत्तं सच्चं जइ गुरु-वयणं अलंघणिज्जं ते ।
रज्जसिरिं रायसिरिं च दो वि गिण्हसु तुमं ततो ||२२२०।। तओ कुमारेण परिणीया रायसिरी पडिवन्नं च रज्जं । गओ नरसिंहो तवोवणं । कुमारो वि तत्थ नमंत-सामंत-मंति-सेविज्जमाण-पायकमलो पालए रज्जं । सेवए रायसिरीए समं विसए । जाओ कमेण पुत्तो । पइद्वियं तस्स देवसीहो त्ति नामं । अन्नया पिउ-पासाउ समागया पहाण-पुरिसा ।
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सुमइनाह-चरियं विनत्तमणेहिं जहा- देव ! वत्तमकहिऊण निग्गए तुमम्मि महंतं सोयसंभारं पत्तो मलयकेउदेवो, देवी य विलासवई अणवरय-बाह-सलिलधोय-कवोलमूला ठिया एत्तियं कालं । संपयं पुण अपडुदेहो देवो जाओ । अओ तुम्ह आहवणत्थं पेसिया अम्हे देवेण । इमं च सोच्चा विसनो कुमारो । सव्वाणुभूइ-पउणीकय-करिवरारुढो साहग-समे ओ पत्तो पइहाणं । पणया अणेण जणणि-जणया । निवेसिओ जणएण रज्जे । सयं च पंच-परमेहि-सुमरणपरो परलोगं गओ मलयकेउ राया । एवं पुलकलसो चउण्ह-रज्जाणं जाओ अहिवई । निय-पयाव-सहायं साहगं सेणावइं पेसिऊण साहियाइं तेण अन्लाई पि बहूणि रज्जाइं । आणियाओ पुत्तेहिं समं पुव्व-परिणीय-पत्तीओ | अन्नाओ वि परिणीयाओ पउराओ रायकन्नाओ | भुंजंतस्स तस्स ताहिं समं विसय सुक्खं जाया अवरे वि पवर-पुत्ता । जिण-मुणि-पूया-पहाणस्स तिवग्गसारं रज्जमणुपालयंतस्स अइक्वंता बहवे वास-लक्खा ।
अन्नया तुरय-वाहियालीओ नियत्तेण नयर-मझो मासक्खमणपारणए परियडतो दिहो पुन्नकलसेण एगो महरिसी जो य जूयमेत्त-महि निहिय-लोयण-जओ देह-परिकम्म-रहिओ दया-संजुओ तिव्व-तवसुसिय-वस-मंस-सोणिय-वओ अहि-चम्मावसेसो विसिहव्वओ | तो भत्तिवसुल्लसिय-रोमंचेणं मुत्तूण तुरयं नरिंदेण वंदिओ मुणी । मुणिणा वि अभिणंदिओ सो धम्मलाभेण । तत्तो कहिं पि मए एरिसं समणरुवं दिडं ति चिंतयंतेण सुमरिओ पुव्व-भवो जहा- मह चेव पवन सामन्नस्स तिव्व-तवच्चरणेण सोसियंगस्स एरिसं रूवमासि, तवप्पभावेण सुरलोयसुहं भुंजिऊण इमं रज्जरिद्धिं पत्तो म्हि, ता संपयं तं चेव तवमणुचरिस्सं ति चिंतिऊण भणिओ मुणी- भयवं ! कत्थ तुम्ह गुरुणो ? मुणिणा वुत्तं- इहेव कुसुमसारुज्जाणे पभासायरिया समोसढा चिहति । रन्ना निवेसिओ निय-पए पुन्नकुंभो नाम निय-नंदणो | काराविया जिणहरेसु महिमा । विसेसओ अमारिघोसणा-पुव्वं दिल्नं जहिच्छियं दीणाईण दाणं । महाविभूईए पभासायरिय-पासे पवना दिक्खा ।
काउं इमो तिव्व-तवं विवल्लो सव्वट्ठसिद्धम्मि गओ विमाणे । तओ चुओ लद्ध-मणुस्स-जम्मो महाविदेहे लहिही सिवं पि ।।२२२१|| जीए च्चिय संजुत्तं दाणं सीलं तवं च जीवाण । जायइ निव्वाण-फलं तं भावह भावणं भविणो ||२२२२।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं वंझ बिति जहिच्छ-सत्थ-पढणं अत्थावबोहं विणा, सोहग्गेण विणा मडप्पकरणं दाणं विणा संभमं । सब्भावेण विणा पुरंधि-रमणं नेहं विणा भोयणं, एवं धम्म-समुज्जमं पि विबुहा सुद्धं विणा भावणं ।।२२२३।। उभय-भवेसु असुद्धा निदिहा भावणा दुह-निमित्तं । स च्चेय सुक्ख-मूलं सुद्धा जह खुड्डगाईण ||२२२४।। तहाहि
[५. भावनायां क्षुल्लकादि कथा] अत्थि इह भरहवासे संकेय-निकेयणं व साकेयं । नयरं पिहुलच्छीणं पि हु लच्छीणं वर-मुणीणं ||२२२५।। वेरि-करि-पुंडरीओ परिपंडुर-पुंडरीय-रुद्ध-दिसो । सिरि-केलि-पुंडरीयं तत्थ निवो पुंडरीओ त्ति ।।२२२६।। तस्स भुयदंड-कुंडलिय-चंड-कोयंड-कंड-तुंडेहिं । खंडिय-विपक्ख-मुंडो कंडरीओ अत्थि जुवराओ ||२२२७।। कंता कांचण-कंती ससिकंता नाम पुंडरीयस्स । तीए सुओ जसभद्दो भद्दगइंदो व्व दाणपरो ||२२२८।। भद्द-गुण-विढत्त-जसा जसभद्दा भद्द-हत्थि-समगणणा | जाया जाया वर-सील-मंडणा कंडरीयस्स ।।२२२१।। जिस्सा सरीर-सुंदरिम-दलीअ-दप्पाओ देव-रमणीओ । लज्जंतीउ व्व न दंसयंति लोयम्मि अप्पाणं ||२२३०।। तं कहवि पूंडरीओ दहं लावन्न-लच्छि-कुल-भवणं । मयण-सर-विहुर-चित्तो चिंतिउमेवं समाढत्तो ||२२३१|| चंदो इमीए मुह-पंकएण जित्तो समुद्द-सलिलम्मि । मज्जइ निच्चं पि कलंक-पंक-पक्खालणत्थं व ||२२३२।। एईए बालाए लोयण-लायन्न-लीह-"लुद्धाइं । मुद्धाइं मयकुलाइं वणवास-वयं व सेवंति ||२२३३|| एईए अहर-हरियारुणिम-मरहाई लज्जमाणाई । बिंबफलाइं उब्बंधणं व वल्लीसु विरयंति ||२२३४।।
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सुमइनाह-चरियं
__ता जइ इमीए सह विसयसुहं सेवेमि ता अत्तणो जीवियं सहलं मलेमि । तओ सो इमीए कुसुम-तंबोल-विलेवणाईणि पेसिउं पयहो । सा वि गुरु त्ति तं पइ निग्वियारा सव्वं गिण्हइ । अन्नया अविभाविऊण उभय-लोग-भयं भणिया रन्ना-सुंदरि ! ममं पडिवज्जसु । तीए वुत्तंमहाराय ! जो मे भत्तुणा तुमं पडिवल्लो सो मए पुव्वं पडिवब्लो । रब्ला वुत्तंमणुस्सभावेण ममं पडिवज्जसु । तीए वुत्तं- अणेय-समर-निव्वूढ-साहसं तुमं मणुस्सं को न पडिवज्जइ ? | रन्ना वुत्तं-ममं पई पडिवज्जसु । तीए वुत्तं-जो तुमं सयल-पुहवीए पई सो ममावि पई चेव ।
रना वुत्तं-कमलच्छि ! अलं परिहासेण | मयण-जलण-जालापलित्त-गत्तं ममं नियंग-संगमामय-रसेण निव्ववेस त्ति । तीए वत्तंदेव ! मा एवं आणवेसु | गरुओ तुमं, मेढिभूओ भुवणस्स । समुद्दो व्व मा विलंघेसु मज्जायं । विलंधिय-मज्जाए तुमम्मि समुद्दे य जायए जगप्पलओ | तुह भएणं च नाएण वट्टए लोओ | यतः
इदं प्रकृत्या विषयैर्वशीकृतं परस्पर-स्त्री-धन-लोलुपं जगत् । सनातने वर्त्मनि साधु-सेविते प्रतिष्ठते भूप-भयोपपीडितं ।।२२३५।। नयो वशीकर्तुमलं वपुस्थितं निजेन्द्रिय-ग्राममपेतसत्पथं । विदूरदेशस्थमपास्त-पौरुषो विपक्षवर्ग स कथं विजेष्यते ।।२२३६।।
ता अलं इमिणा कुल-कलंक कारिणा दुग्गइ-निबंधणेणं दुरज्झवसाएणं । परिचत्तो एस मग्गो खुद्द-सत्तेहिं पि । पइदिणपत्थंतस्स तस्स अन्नया जंपियं अणाए-किमेयस्स वि भाउणो न लज्जसि ? | तओ चिंतियं रना-नूणं कंडरियासंकाए ममं न पडिवज्जए, ता वावाईऊण तं गिण्हामि एयं देविं । तहेव काऊण भणिया एसावावाईओ भयो मए भय-कारणं ते । ता संपयं किं पयंपिहिसि ? | तीए चितियं-हद्धी इमिणा विलाएण मह कए गुणनिही अज्जउत्तो वावाईओ । ता जाव न एसो सीलखंडणं करेइ ताव अन्नत्थ वच्चामि । तओ आवनसत्ता सावत्थी-गामिणा सत्थेण सह गंतुं पयहा । कमेण पत्ता सावत्थीए । तत्थ विजिय-सयलंतरारिसेणो अजियसेणो आयरिओ । मुत्तिपुर-वत्तिणी कित्तिमई पवत्तिणी । जसभद्दा वि पत्ता तीए समीवं । वंदिया सा सविणयं तीए | अहो ! असरिसाए आगिईए रायपुत्तीसरिच्छे हिं लक्खणे हिं इमीए एरिसी अवत्थ त्ति चिंतिऊण भणियं
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
पवत्तिणीए - वच्छे ! का तुमं ? कत्तो वा इहागयासि ? । तीए वि कहियं जहावत्तं सव्वं पि । पवत्तिणीए वुत्तं -
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धन्नासि तुमं वच्छे ! जा एवं सीलपालण-निमित्तं । मिल्लसि जलण-पलीविय-पलाल पूलं व रज्जं पि ॥ २२३७।।
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जं सयलोवद्दव - सेल-दलण दंभोलि-दंड- दुप्पेच्छं । जं पुव्व-भवज्जिय- पाव - दप्प - विज्झवण - घण-तुल्लं ||२२३८ ||
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जं सग्ग - सोक्ख - तरु- मूलमुत्तिमं मंदिर - दुवारं । सम्म तम्मि निच्चं जत्तो जुत्तो च्चिय बुहाणं ||२२३१||
तीए य संविग्ग - मणाए पडिवन्नं समणत्तणं । तओ अपत्थासिणो वाहि व्व वड्डिउं पवत्तो गब्भो । पुच्छिया " पवत्तिणीए - भद्दे ! किमेयं ? ति । तीए वुत्तं - पुव्वं चेव निय-पइ-संगमेण मे एस गब्भी जाओ । परं वय - विग्धो मा होउ त्ति न मए अक्खाओ । सावय- घरे पच्छन्ना ठिया, पसूया एसा दारगं । कमेण वडुंतो जाओ सो अट्ठ-वारिसिओ । गाहिओ साहु-किरियं । पसत्थ-वासरे य पव्वाविओ सूरिणा । गहिय - दुविहसिक्खो पत्तो जोव्वणं, कम्मवसओ पडिवन्नो वियारेहिं । यतः
यौवने वर्त्तमानस्य विकलस्यापि देहिनः ।
विकारः स्फुरति प्रायो नाविकाराय यौवनं ॥ २२४ ॥
तओ न तरामि पव्वज्जं काउं, सेवेमि विसए, पच्छा पुणो वि पव्वज्जं काहं ति चिंतिऊण खुडएण निवेइयमिणं जणणीए । तीए वुत्तंवच्छ ! मा एवं पलवसु । आयरिओ जाणिस्सइ अकुलीणो त्ति गणिस्स । पवत्तिणी सुणिस्सइ, अविणीओ त्ति भणिस्सइ । सयणा मुणिस्संति, लज्जिया भविस्संति । सेस लोगो संभलिस्सइ, पवयण - निंद करिस्सइ । किञ्च
दिण पंच करिव विसओवभोगु, संपाइवि अणप्पह पाव-जोगु ।
नीसंख-कालु दुह - लक्खरुवि,
वसियव्वु वच्छ ! नरयंध - कूवि ॥ २२४१ ।।
पइ - जम्म-मरण - - कल्लोल- मत्तु, भव- जलहि भमिवि मणुयत्तु पत्तु ।
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૨૨ રૂ.
सुमइनाह-चरियं
परिहरिवि विसयफलु वासु लेहि, किं कोडि कवडिइ हारवेहि ।।२२४२।। चारित्तु चइवि जो विसय-सुक्खु, परिणाम-विरसु सेवेइ मुक्खु । सो पियइ दुहु जर-गहिउ सुटु, सो भक्खइ मंसु गलंत-कुहु ।।२२४३।। मुह-महुरु चएविणु विसय-सुक्खु पेरंत-विडंबण-बहुल-दुक्खु । धरि चरणु वच्छ ! वज्जिवि पमाउ जिम्व नरइ न पावहि पच्च वाउ ।। २२४४।। खुड्डएण वुत्तं-अहं पि जाणेमि सव्वमेयं, परं न तरामि पावो पवज्जं काउं।
जणणीए भणियं-तहा वि मज्या कए बारस-वरिसाणि कुणसु वयं । तीए उत(व)रोहेण ठिओ सो तेत्तियं कालं | पुणो वि पुच्छए जणणिं । तीए वुत्तं-मम सामिणिं पवत्तिणिं पुच्छ । पुट्ठा पवत्तिणी । तीए वि भणियंजा दोस-भुयंग-करंडियाओ तइलोक्क-विडंबण-पंडियाओ । वालुंकि-वाल-वंकुड-मणाओ तडि-भंगुर-जीविय-जोव्वणाओ ||२२४५।। संझब्भलेह-खण-रागिणीओ नरयंध-कूव-रिउ-वत्तिणीओ | निम्मल-विवेय-रवि-बिम्ब-मेह महिलासु तासु को कुणइ नेहु ? ।। २२४६।।
खुड्डएण वुत्तं-किं करेमि ? | न सक्नेमि दक्वरं वयं काउं | पवत्तिणीए वि पडिक्खाविओ दुवालस-वरिसाणि | पुलेसु तेसु पुच्छियाए पवत्तिणीए पेसिओ उवज्झाय-पासे । तेणावि भणियंजो जोव्वणु जाव सरीरु सत्थु जा विंदहि इंदिय-निय-नियत्थु । ता वच्छ ! कुणसु संजमि पवित्ति किं कूवु खणिज्जइ घरि पलित्ति ।।२२४७।। वज्जे वि सव्वु सावज्जु कम्मु जो वच्छ ! न जोव्वणि कुणइ धम्मु । सो मरण-कालि परिमलइ हत्थु गुणि तुदृइ जिम धाणु कुपत्थु ।।२२४८।।
खुड्डएण भणियं - सच्चमिणं तहावि न सक्नु णोमि वयं काउं । उवज्झाएण भणियं-ममावि देसु बारस-वरिसाणि । ठिओ सो तित्तियं कालं | पूणो पूछो उवज्झाओ । तेण भणियं-गुरु पुच्छ | गओ गुरुसमीवं । साहिओ निययाभिप्पाओ । तेणावि भणियंपरिहरिवि चरणु परिणई अपच्छ जं विसय-तुच्छ वंछेसि वच्छ ! । जलबिंदु-मित्त-सुहालस-लुद्ध तं जलहि-तुल्ल दुहं लेसि सुद्ध ।।२२४१।।
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૨૨૪
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं विसउवभोग-भोलविय-चित्तु चारित्तु वच्छ ! वजिवि पवित्तु । बहु पाव कुणंतु अणंतु कालु भवरग्नि सहिस्ससि दुक्ख-जालु ।।२२५०।। अवगणिवि नरय-दुहु अप्पमेउ जं विसय समीहसि निव्विवेउ । अणवेक्खिय लउड-पहारु लुन्दु तं वच्छ ! बिडालु व पियसि दुन्दु ।।२२५१।। सिद्धंतु पढसु परमत्थं सुणसु चल-करणग्गाम-निरोहु कुणसु । मण-मक्कड-नियमण-संकलाओ परिभावसु बारस भावणाओ ||२२५२।। चलु जीविउ जोव्वणु धणु सरीरु जिंम कमल-दलग्ग-विलग्गु नीरु । सुविणिंदयालसमु पिय-पसंगु मा वच्छ ! कुणसु चारित्त-भंगु ।।२२५३।। पिउ-माय-भाय-सुकलत्त-पुत्तु पहु परियणु मित्तु सणेह-जुत्तु । संपत्तइ मरणि न कोवि सरणु परिपालसु निच्चल-चित्तु चरणु ।।२२५४।। राया वि रंकु सयणो वि सत्तु जणओ वि तणओ जणणि कलत्तु । भवरंगि नडु व बहुरुवु जंतु पेच्छेवि म मुज्झसु तवु वयतु ।।२२५५।। एकल्लउ८ पावइ जीव जम्मू एकल्लउ मरइ विढत्त-कम्म् । एकल्लउ परभवि सहइ दुक्खु इय सुणिवि म वंछहि विसय-सुक्खु ।।२२५६|| जहिं जीवह पउंजिअत्तु देहु तहिं किं न अन्नु धणु सयणु गेहु । इय जाणिवि गय-विसयाभिलासु तुहु वच्छ ! होहि संजमि दढासु ।।२२५७|| वस-मंस-रुहिर-चम्महि-बद्ध नव-छिड्ड-झरंत-मलावणद्ध । असुइस्सरुव-नर-थी-सरीर परिभाविवि संजमु धरहि धीर ||२२५८।। मिच्छत्त-जोग-अविरइ-पमाय-मय-कोह-लोह-माया-कसाय । पावासव सव्वि वि परिहरेसु चारित्ति चित्तु निच्चलु करेसु ||२२५१।। जह मंदिरि रेणु तलाइ वारि पविसइ न वच्छ ढक्विय-दुवारि । पिहियासवि जीवि तहा न पावु इति चिंतिवि थिरु करि चरण-भावु ।।२२६०।। परवसु अनाणु जं दुहु सहेइ तं जीयु कम्मु नणु निज्जरेइ । बहु खव्वइ जिइंदिउ तवु चरंतु इय चिंतिवि चिहसु वउ धरंतु ।।२२६१।। जहि जम्मणु मरणु न जीवि पत्तु तं नत्थि ठाणु बालग्गु मत्तु । उड्डाहो चउदस रज्जु लोगि बुज्झतु म मुज्झहि चरण-जोगि ||२२६२।।
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सुमइलाह- चरियं
सुह- कम्म निउइण कहवि लद्ध विसयास करेविणु पुणवि रद्ध | जलनिहिभुय - रयणु व दुलह - बोहि चल - 1 -चित्तु समंजसि वच्छ ! होहि ||२२६३|| धम्मो त्ति कहंति जि पावु पाव ते कुगुरु मुणसु निद्दय-सहाव | पई पुनहि दुल्लहु सुगुरु पत्तु तं मा चएसु तुहु विसयसत्तु ॥ २२६४||
तथा
पैशाचिकमारव्यानं श्रुत्वा गोपायनं व कुलवध्वाः । संयमयोगैरात्मा निरन्तरं व्यावृतः कार्यः ||२२६५||
३२५
एवं पि पन्नविओ जाव न मेल्लइ विसय वंछं ता सूरिणा वि दुवालस वासाणि धरिओ । पुन्नेसु तेसु गमणत्थं पुच्छिओ सूरी । पुणो कया धम्मका । न से परिणया । मुक्को गुरुणा । तओ अहो ! से कम्मगरूयत्तणं जेण एत्तिएणावि कालेण नावगया विसय-तण्हा । ता जत्थ तत्थ वा कम्मयरो व्व मा किलिस्सउ त्ति चिंतिऊण कहिओ पुव्व-वुत्तंतो जणणीए । भणिओ य- वच्छ ! एयं पुव्वाणीयं मुद्दाए सह कंबल - रयणं घेत्तूण वच्चसु साकेए पुंडरीयराय समीवं । तह त्ति पडिवज्जिऊण गहियदव्व-लिंगो कमेण पत्तो 'तत्थ पओस समए । पच्चूसे नरनाहं पेच्छिस्सामि त्ति ठिओ जाणसालाए । अह रायसभाए पारद्धं पेच्छणयं । निसन्ना नरिदाइणो । आढतो पुव्वरंगो । पणच्चिया नट्टिया । कोउहल्लेण गओ खुड्डओ, सव्व रायं ( इं ) च नच्चंतीए तीए आवज्जिया रायाइणो । वित्तो साहु - सद्दी । अच्चंत खिन्ना सा पभाए पयलाईउमारदा । तओ से जणणीए - 'अव्वो ! तोसिओ रंगो । विद्वत्तो जसो । ता मा पयलायंती लोगाओ निंदं पावउ' त्ति नहियाए पडिबोहणत्थं पढिया एसा गीईया -
-
सुहु गाईयं सुठु वाईयं सुडु नच्चियं सामसुंदरि ! । तुममणुपालिय दीह राइ आउ सुविणं ते मा पमाय || २२६६ ||
इमं सोऊण पडिबुद्धा नहिया, इमे खुड्डयाइणो । तुट्ठेण खुड्डएण लक्खमोल्लं खित्तं कंबल - रयणं । जसभद्देण रायसुएण कुंडल-जुयलं । सिरिकंताए इब्भघरिणीए हारो । जयसंधिणा सचिवेण कडय - जुयं । कन्नवालेण मिंठेण अंकुसो । सव्वाणि वि लक्खमुल्लाणि । अणुचियदाणओ य पुच्छियाणि रन्ना पभाए सव्वाणि । तओ खुड्डएण साहिओ पुव्व - वुत्तंतो जाव विसयाहिलासी पडविओ तुज्झ समीवं जणणीए । इमं
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રૂ.૨૬
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं च सोच्चा पच्चागय-चरण-परिणामेण मए दिण्णं कंबल-रयणं ।
रना बहुमन्निऊण भणिओ-गिण्हसु रज्ज, करेसु अंतेउरं, उवभुंजसु विसए, पच्छिम-वयम्मि करेज्ज पव्वज्जं ।
खुड्डएण भणियंजं चिर-कालं धरियं चिंतारयणं व चिंतियत्थकरं । विसय-तुस-भोयण-कए तं सीलं विक्विणेमि कहं ? ||२२६७।।
रायसु ओ जंपइ- 'अज्जं कल्लं वा तुमं वावाईऊण रज्ज गिहिस्सामि'त्ति कयसंकप्पो पडिबुद्धो अहं गीईयाए । रल्ला वुत्तं-अलं वियप्पेण । देमि ते रज्जं । सो वि न इच्छइ ।
सिरिकंता भणइ- बारस वरिसाणि पउत्थरस पइणो अज्जं कल्लं वा पुरिसं पवेसेमि जाव इमाए गीईयाए पडिबोहिया । रन्ना वुत्तं-करेसु इच्छं । तीए वुत्तं-अलं एरिसीए इच्छाए ।
अमच्चो भणइ- अन्नेहिं नरिंदेहिं सह मिलामि त्ति चिंतयंतो गीईयाए पडिबुद्धो ।
मिठो भणइ-पच्चंत-नरिंदेहिं भिल्लो हं जहा पट्टहत्थिं देसु मारेसु वा । तं च काउकामो गीईयं सुच्चा अलं मे इमिणा दुरज्ावसाएण त्ति पडिबुदो ।
पच्छा सव्वेसिं कया खुड्डएण धम्मदेसणा । संजाया चारित्तपरिणामाणि चत्तारि वि पव्वावियाणि, अन्ले य कया बहवे सावया । घेत्तूण ताणि गओ गुरु-सयासं खुड्डओ । कहिओ सव्व-वुत्तंतो गुरुणो । बहुमन्नियाणि सव्वाणि तेण | वेरग्ग-वसुल्लसिय-सुह-भावाणि ताणि पालिऊण अकलंकं सामन्नं काऊण तिव्वं तवं गयाणि देवलोगं कमेण मोक्खं पि । खुड्डगाईणं पुव्विं असुह-भावणा आसि, पच्छा वेरग्गोवगयाणं सुह-भावणा । जइ असुह-भावणाए ताणि पयटिंसु असुह-कज्जेसु तो असुह-कम्म-गलहत्थियाणि वच्चिंसु असुह-गई | किंतु सुह-भावणाए काउं सव्वाणि सुह-समायारं सुह-कम्मवसे ण गयाणि सुह- गई खुड्डगाईणि ||
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सुमइनाह-चरियं
૩ ૨૭
पाठांतर : १. कंतमुकित्तिमइ मणहरा पा. ।। २. 'रायाहिव' रा. ।। ३. वृत्तं ल. रा. ४. 'ते वि.....निय-पहाणनरा ।' पाठ मात्र द. पा. मां. ५. रंजिज्जइ पा. || ६. गरुय. पा. ।। ७. चक्वम्मति पा. ।। ८. सयल-भोगो ल. रा. || 3. सिहिणो ल. रा. || १०. मुत्तूण ल. रा. || ११-१२ -- १३. सिट्टिणा ल. रा. ।। १४. पत्ता य ल. रा. ।। १५. पियस्स द. पा. ।। १६. 'मए....कुसुमाई' पाठ मात्र द. पा. मां. १७. विम्हय द. ॥ १८. पडिओ पा. ।। ११. खीणकवोला ल. रा. ॥ २०. परिपालियरस द. पा. || २१. एक्वं ल. रा. ॥ २२. सा कयाइ ल. रा. ।। २३. अवहओ घरसारो ल. रा. ।। २४. मट्टिय-मयगला0 ल.रा. ।। २५. चेव ल. रा. || २६. निम्माविओ ल. रा. ॥ २७. छगलो ल. रा. ॥ २८. पुरदेवयाए ल. रा. || २१. पत्तो ल. रा. || ३०. सेही ल. रा. || ३१. वंदणिज्जा ल. रा. ।। ३२. नग्गा सुग्गा ल. रा. ॥ ३३. काही पा. ।। ३४. समणो पा. ।। ३५. सहस्सारे ल. ।। ३६. एयं ल. रा. ॥ ३७. गुरुयं ल. रा. ३८. रज्ज-करणत्थं ल. रा. ।। ३१. गाथा २१४७ ल. रा. मां नथी. ४०. सिहि ल. रा. ॥ ४१. वीसंभ-पणयणेणं ल. रा. ॥ ४२. सत्थाह ल. रा. ।। ४३. कयाइ ल. || ४४. सुणिउ० ल. रा. ॥ ४५. मुद्धाइ पा. ।। ४६. पुच्छियं रा. ॥ ४७. वासाणि ल. रा. || ४८. एक्वल्लउ द. ल. ॥
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अहमो पत्थावो
जो तिक्ख-दुक्ख-विसरुक्ख-बीयभूयं न वज्जए हिंसं । दाणाइं तस्स सव्वं पि निप्फलं कासकुसुमं व ॥२२६८।। तिव्वं पि तवं नाणं पि निम्मलं दुक्करं पि चारितं । तुस-खंडणं व विहलं नरस्स हिंसासमेयस्स ॥२२६१।। जो जीववह-निवित्तिं करेइ सो लंघिऊण वसणगणं । नर-सुर-सिव-सुक्खाइं पावइ देवप्पसाउ व्व ।।२२७०।।
[१. अहिंसायां देवप्रसाद कथा] अत्थि इह जंबुदीवे भरहे पंचाल-विसय-अवयंसं । परचक्क-अकय-कंपं कंपिल्लं नाम वर-नयरं ||२२७१|| जत्थ मणिभवण-भित्तीसु पेच्छिउं अत्तणो वि पडिबिम्बं । पडिजुवइ-संकिरीओ कुप्पंति पिएसु मुद्धाओ ||२२७२।। अणुवत्तिय-नयधम्मो आजम्म-परोवयार-कयकम्मो । मयरद्धओ व्व रम्मो जयवम्मो नाम तत्थ निवो ||२२७३।। करिकुंभ-दलण-संसत्त-मुत्तिओ जस्स संगरे खग्गो । सत्तूण सग्ग-मग्गो व्व सहइ नक्खत्त-संकिल्लो ॥२२७४|| मुद्ध-हसिएण जीए हसियं व जयम्मि लज्जियं अमयं ।
अप्पाणं न पयासइ जयावली तस्स सा देवी ॥२२७५।। सो तीए सह विसय-सुहमणुहवंतो चिहइ । अन्नया दिहो देवर सुविणगो- केणावि दद्वेण छिन्नं राइणो सि, तं च मउड-रयण-पज्जलंतं पडियं ममुच्छंगे, ससंभमाए मए उव्वाईयं । विउद्धा ससज्ासा देवी । मुणिया रन्ना, पुच्छिया- किमेयं ? त्ति । सोगेण रोविउं पवत्ता । समासासिया रना । पुच्छिया अवसरे | साहियं जहहियमिमीए । रन्ला भणियं- अलमेत्थ' सोगेण । मउडधरो ते महाराओ पुत्तो भविस्सइ । चिंतियं अणेण- ममावि आसन्न-मरणं इमिणां सुविणेण सुइज्जइ । तहावि ववसाओ चेव एत्थ जुत्तो
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सुमइनाह-चरियं
૩૨૬ त्ति अइक्वंतो कोइ कालो | जाया आवनसत्ता महादेवी । इओ य सूरसेणो नाम गोत्तिओ पहाण-सामंते वसीकाऊण तेहिं समं समागंतूण नगर-रोहं करेइ । तओ रन्ना अप्पणो अवलुत्तं बुज्झिाऊण खणाविया देवी-गिहाओ सुरंगा उम्मिट्टा मसाणे ठयाविया रन्ना दंसिया महादेवीए । भणिया य एसा-देवि ! पबलो वेरी । विसमा कज्जगई । न नज्जइ किं पि होइ । ता कालं नाऊण एयाए तए गंतव्वं । पडिवघ्नं देवीए। पत्तो वेला-मासो | पारद्धे परेण नगरभंगे जयवम्मो निग्गंतूण जुज्ािओ विवन्नो य । उद्धाईओ कलयलो । सुरंगाए नहा देवी निग्गया मसाणे । भएण पसूया । जाओ से दारओ । निव-मुद्द-कंबल-रयण-वेढिओ मुक्को मसाणे । ठिया लयंतरिया देवी । इओ य तत्थ नयरे भद्दो सेही । तस्स सुभद्दा भज्जा । सा य निंदू । सिहिणा आराहिया कुलदेवया । तीए तुहाए वुत्तं- मयगब्भ-परिहवणत्थं गओ जं दारयं पिच्छसि तं गिव्हिज्जसु त्ति । तत्थ-गएण गहिओ सिट्टिणा । एयं दहण गया महादेवी ।
खणमित्त-दिहनहा' रिद्धी सुमणोवलद्ध-रिद्धिं व्व । अधुवो निय-निय-पुर-चलिय-पहिय-मेलो व्व पियमेलो ||२२७६।। अप्प-पर-समुत्थ-अवाय-लक्ख-मज्झम्मि वट्टमाणं जं । तडिलय-ललियं च थिरं खणं पि जीयं तमच्छरियं ।।२२७७।। चिंतयंती निव्वेएण जाया तावसी । इओ य सिद्विणा स-भज्जाए वि अणाविक्खिय-सब्भावं जीवइ चेव एसो ति समप्पिओ सुभद्दाए दारओ | अइक्वंतो मासो, कयं वद्धावणयं, देवया-पसाएण लदो त्ति तस्स दिन्नं देवप्पसाओ त्ति नामं । वडिओ एसो देहोवचएणं कलाकलावेण य । पत्तो जोव्वणं । आगच्छंति तस्स सिहि-कन्नगाओ । नाणुरुवाओ त्ति न इच्छइ ताओ सेही ।
_एत्थंतरे तत्थागओ नेमित्तिओ | कओ अणेण लोयाण पच्चओ । सुंदरो त्ति सुओ सूरसेणेण । सद्दाविओ सगोरवं । मुहिभेयाईहि नायं सुंदरत्तं । पुच्छिओ एगते-किमेयं रज्जं मम वंस-पइहं न व ? त्ति । नेमित्तिगेण वृत्तं- न खेओ कायव्वो । सत्थ-परतंता अम्हे । रन्ना वुत्तंको इत्थ अवसरो खेयस्स ? । निमित्तगेण वुत्तं- जइ एवं ता न ते वंसपइडं ति । रला वुत्तं- को उण एयं करस्सिइ ? | नेमित्तिगेण भणियं
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३३०
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं जो ते अदमासेण गोउलं भिल्लेहिं हीरतं रविखस्सइ, तहा ते पुत्ताण आणं न करिस्सइ, तहा रयणउर-सामिणो पुलचंदरस धूयाओ परिणेस्सइ त्ति ।
एवमेयं ति अवधारिऊण भणिओ रल्ला नेमित्तिगो- नेयं अन्नस्स पुरओ जंपियव्वं । पडिवन्नमिणं तेण । पुजिओ एस रना । निग्गओ रायकुलाओ पट्टणाओ य । पेसिया सूरसेणेण गोउलं निय-पुत्ता, भणिया य-मासं जाव तुब्भेहिं गोउलं रक्खियन्वं । गया ते अवन्नाए चेव अपरिवारा तत्थ | अद्धमासे गए पमत्ताण ताण हढं गोउलं भिल्लेहिं । सयण-विवाह-कज्जे गएण मग्गे हीरंतं दहण परक्कम-पहाणयाए नियत्तियं तं देवप्पसाएण | सुओ एस वुत्तंतो रन्ना | भद्दसेहि-पुत्तो देवप्पसाओ रज्जधरो त्ति अवगयमेयस्स । निय-पुत्तेहिं नयरे काराविओ अगालूसवो | भमिओ पडहगो-'जो एत्थ तरुणो नीहरइ कीलिउं तस्स रायपुत्ता पसायं कुणंति, जो पुण एवं न करेइ तस्स न क्खमंति ।' एयं सोऊण निग्गया बहवे नायर-कुमारा । न निग्गओ देवप्पसाओ । भणिओ जणणि-जणएहिं-वच्छ ! निग्गच्छ, पेच्छ रायपुत्तूसवं । विसमं खु रायउलं । तेण भणियं-सीसं मे दुक्खइ । अओ परं न जंपियं नेहेण एएहिं ।
बीय-दियहे सुयं देवप्पसाएण जहा- रयणउरे नयरे पुन्नचंदस्स रन्नो धूयाओ लच्छिमइ-कंतिमइ-नामाओ गंधजुत्तीए अईव-कुसलाओ भणंति इमं -जो अम्हे हिं कयाणं गंधाणं विसेसं जाणेइ तं चेव परिणिस्सामो, न अन्नं पुरिसमेत्तं । पेसिया ते गंधा बहूणं रायपुत्ताणं । न नाओ य तेहिं ताण समं विसेसो य, ताओ न परिणिज्जति । एयवईयरेण दुक्खिओ राया, भमइ य तत्थ पइदिणं पडहगो-'जो एएसिं गंधाणं विसेसं जाणइ तस्स दिज्जति एयाओ समं रज्ज-अद्धेण'। एयं सोऊण चिंतियं देवप्पसाएण- कहं मए तत्थ गंतव्वं ? ति चिंतासमागओ गओ उज्जाणे ।
एत्थंतरे ऊसवानीसरण-कुविएण रल्ला पेसिया पुरिसा । आगया ते । भणिओऽणेहिं सेही-कत्थ देवप्पसाओ राइसासणाइक्ठमणकारी ? | दुहो खु सो पावो, ता वावाइयन्वो त्ति आइहा अम्हे देवेण सूरसेणेण । सिहिणा वुत्तं-गओ सो कल्लं चेव माउलग-पाहुणो रयणउरं । एह अहं
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सुमइनाह-चरियं
३३१ चेव रायपासं गच्छामि । देवप्पसायरस पासे माउलग-संदेसाओ तए इओ चेव रयणउरे गंतव्वं ति गहिय-सिक्खं पच्छन्न-पुरिसं पेसिऊण गओ सेही । कहियमिणमेव तेण रल्लो । न अन्नहा नेमित्तिय-वयणं ति चिंतियं रना-'तहा वि सामनीई एत्थ उवाओ' त्ति भणिओ सेट्ठी- लहुं तं सुयं आणेहि त्ति । सिद्विणा वृत्तं- 'जं देवो आणवेइ' त्ति । असंभंतो गओ सेट्ठी सगिहं । देवप्पसाओ वि अणुकूल-जणयाएस - तुह-चित्तो गओ रयणउरं । पविहो बंधुदत्त -माम-गिहं । कयं उचिय-करणिज्जं । भणियमणेण-ममावि दंसेहि ते गंधे । मामगेण हक्कारिऊण गंध-चेडिं दरिसाविया ते देवप्पसायरस । तेणावि सुहम-परिक्खाए वियाणिया सम्म निरूविऊण | भणियं च-एए एत्थ गंधा परिणया दव्वा वि निम्मविया महं तीए | एएण पुण पच्चग्ग-दव्वगया बालाए एगे पयट्टाविति मंथरं, अन्ने पुण सिग्घं । परिभोग-जोग्गा पुण दुवे वि | गंध-चेडीए वुत्तं-को एत्थं पच्चओ ? | देवप्पसाएण वृत्तं-आणाविज्जंतु भमरा | आणाविया भमरा । मुक्का गयणाओ पढम' गंधा, पडिय-मित्ता गहिया भमरेहिं निलीणा परमलएण ते । मुक्का बिया गंधा, निवडमाणा गहिया भमरेहिं । वियंभिया इओ तओ ते । को एत्थ भावत्थो ? त्ति पुच्छियं गंध-चेडीए । गभीरो मणो हरो य एयाहिं संभोगो त्ति साहियं देवप्पसाएण । पेसियाणेण एयासिं साहारण-दव्व-क्कया पडिगंधा । साहारणो एस अम्हाणं ति वियाणियमेयाहि । उयार-वियवखणो महाणुभावो त्ति जाओ एयाणमणुराओ ।
विनायमिणं रन्ना पुण्णचंदेण, चिंतियं च-धणवंतो वि एस वाणिओ, न य एवं उदार-विन्नाणवंतो वाणिओ होइ । न य मुद्ध-रायकल्लाणं अणभिजाए अणुराओ संभवइ । ता कहमेयं ? ति चिंतंतस्स पत्तो कंबल-रयणं जयवम्म-नाम-मुदं च घेत्तूण देवप्पसायरस कित्तिम-मामगो बंधुदत्त-सिही । भणियं च णेण- देव ! समागओ मे भगिणिवइपेसिओ कंपिल्लपुराओ पुरिसो । कहियं च तेण-तत्थ सूरसेण-रला विणा वि दोसं गहिओ ते भगिणीवइ । तेण य महावसण-संगएण विनत्तंएस' देवप्पसाओ महाराय-जयवम्मावसाण-समए जयवम्म-नाम-मुद्दासणाहं कंबलरयण-संगओ देवयाप्पसाएण लद्धो मए मसाणे । नाममुद्दा-चिंधेण य जाणिओ एस महाराय-जयवम्म-सुओ त्ति । भएण य
कस्सइ अकहिऊण संवडिओ । न याणामि य एत्थ तत्तं । किंतु एओवरि
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं महतो निब्बंधो सूरसेणस्स । सो य तेण धिप्पमाणो कहवि वाजेण मए पेसिओ । ता एवंविहं एयं वत्थु ति निवेईयं देवरस । रक्खियन्वो पयत्तेण सूरसेणाओ एसो । एवं भणिऊण उवणीया नाम-मुद्दा कंबल-रयणं च ।
जयवम्म-पुत्तो मे भाइणिज्जो एसो ति तुहो राया । सुह चिंतियं मए जं न एवं उदार-विनाण-वंतो वाणियगो होइ त्ति चिंतिऊण भणियं रना- भो सिहि ! संदिसह तस्स सिद्विणो जहा साहुकयं जमेवं एवंविहं वुत्तंतं जाणावियं । अलं च संपइ कुमारं पइ सूरसेण-संरंभेण | सव्वहा जम्ममोचियं तं अहमित्थ काहं ति सद्दाविओ देवप्पसाओ । दिहो रन्ना । अणुहरइ जयवम्मरस त्ति आणंदिओ राया । पयासियं जणे सव्वमेयं । दिनाओ कन्नगाओ । वत्तो वीवाहो ।
एत्थंतरे समागया सूरसेण-पेसिया अहिमरा कइवय-दिणेहिं । उज्जाणे गयस्स कुमारस्स मालागारच्छलेण दुक्ला एए । सूरसेणो कुद्धो ति आसने जंपियमिमेहिं । कुमारो वि दुक्को इमाणं | पाडिया एए । एसो वि लदो दाहिण-भुय-प्पहारेण । एयं सोऊण आगओ राया । अद्धवावाईया अहिमरा । किमे एहिं खुडेहिं वावाईएहिं ति वारिया कुमारेण | अभयं दाऊण पुहा रन्ना- फुडं साहह केण पउत्ता तुब्भे ? त्ति । सूरसेणेण त्ति साहियं अहिमरेहिं । जणय-वेरिओ त्ति कुविओ कुमारो । विन्नत्तो णेण पुन्नचंदो-देहि मे विक्खेवं जेण निज्जाएमि जणयवेरं । पुन्नचंदेण वुत्तं-सयमेव गच्छामि किमेत्थ विक्खेवेण । सोहण-दिणे निग्गओ राया । पत्तो अणवरय-पयाणेहिं कंपिल्लं । आसनेण भणिओ सूरसेणो-'रज्जं मोत्तूण धम्मं करेहि' त्ति । न इच्छियमिणं सूरसेणेण । जाओ संगामो | महाविमद्देण जिओ सूरसेणो | गाढप्पहार-पीडिओ मओ य । अंगीक यं रज्जं देवप्पसाएण । ठवियाओ पुव्व-नीईओ । आणंदियाओ पयाओ । वसीकया पच्चंत-सामंता । जाओ महाराओ देवप्पसाओ । सहावेण चेव दयावरो न हिंसए जीवे ।।
अन्नया नयरस्स ईसाण-भाए उग्गमंत-रवि-सहस्स-पहाण-पुरो व्व भासुरो दिहो उज्जोओ । रन्ना किमेयं ति जाणणत्थं पेसिओ पडिहारो | सो वि गंतूण आगओ साहेइ- देव । अज्ज कुसुमकरंडउज्जाणे दमसारस्स मुणिणो समुप्पन्नं केवलनाणं । अवयरिया तत्थ तियसा । एस ताण समुज्जोओ । पहाए तस्स केवलिणो चलणारविंढ
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सुमहनाह-चरियं वंदणेण कयत्थमप्पाणं करिस्सं ति चिंतयंतस्स रनो पणहा अविरइ व्व कसाय-पिसाय-पसर-विरयणी रयणी, वियलिओ मोह व हणियसम्मदिहि-प्पयारो अंधयारो, वियसियं भविय-जण-मणं व पुव्व-बद्धविणिंत-पाव-पडल-भसलगणं कमलवणं, समुग्गओ विवे ओ ग्व पयासिय-सयल-पयत्थ-पूरो सूरो | तो
राया सिंधुरक्खंध-परिगओ धरिय-धवल-वर-छत्तो । चलिओ चलंत-सिर-चारु-चामरो अमरनाहो व्व ।।२२७८।। गच्छंतेण य रला दिहो चलिउ पि अक्खमो क्खामो । वयण-विणिग्गय-दसणो मसिकसिणो सूण-कर-चलणो ||२२७१।। किमि-कुछ-विणह-तणू भमडंत-असंख-मक्खिया-छन्नो । दमगो पहंमि एगो पच्चक्खो पाव-पुंजो व्व ॥२२८०।। अह चिंतियं निवेणं फुरंत-कारुल-पुन्न-हियएणं । पुव्वभव-दुक्वय-फलं अणुभवइ अहो वराओ त्ति ||२२८१।। सो उज्जाणे पत्तो परिचत्त-समत्त-रायवर-चिंधो । सुर-कय-कमल-निसन्नं दमसारं नमइ केवलिणं ॥२२८२।। उचियासणे निसनो पुच्छइ पह-दिह-दमग-पुव्वभवं । भयवं पि कहइ दिप्पंत-दंत-कंति-छुरिय-गयणो ||२२८३।।
अत्थि धन्नउरं नयरं । तत्थ जयपालो राया । तत्थ दुवे कुलपुत्तया भायरो सामदेवो वामदेवो य । स-कम्म-निरया कालं गर्मिति । अन्नया दुब्भिक्खे भणिओ सामदेवो वामदेवेण- भाय ! भोयणाभावाओ न नित्थरिज्जइ । ता पारद्धिं काऊण वित्तिं कप्पेमो त्ति गया अडविं । पारद्धा पारद्धी । हरिणं दहण मुक्को सरो वामदेवेण । न लग्गो हरिणस्स । भवियव्वयावसेण निवडिओ विडवंतरियस्स काउस्सग्गहियस्स मुणिणो अग्गओ । सरं अन्नेसंतेहिं तेहिं दिहो नासग्ग-निविहदिही पलं बिय-बाहु-जुयलो अहो मुहु फुरंत-कर-नहं महूह-रज्जूहिं नारय-नियरं उद्धरिउकामो मुणी । तओ सामदेवो सामवयणो 'अहो ! 'अकज्जं कयं । जइ जइणो सरो लग्गेज्ज तो नरएवि अम्ह ठाणं न होज्ज' ति भणंतो पणमिऊण मुणिं खामेइ । मुणी वि जोग्गयं नाऊण पारिय-काउस्सग्गो धम्मं कहेइ
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
नरयपुर-सरल-सरणी अवाय संघाय वग्घवण-धरणी । नीसेस - दुक्ख - जणणी हिंसा जीवाण सुह-हणणी ||२२८४।।
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जो कुणइ परस्स दुहं पावइ तं चेव सो अनंत-गुणं । लब्भंति अंबयाई न हु निंबतरुम्मि "ववियम्मि ||२२८५|| जो जीव-वहं काउं करेइ खणमित्तमत्तणो तित्तिं । छेयण-भेयण-पमुहं नरय-दुहं सो चिरं सहइ || २२८६|| जं दोहग्गमुदग्गं जं जण लोयण दुहावहं रूवं । जं अरस-सूल - खय-खास सास-कुडाइणी रोगा ||२२८७।।
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जं कन्न - नास - कर चलण-कत्तणं जं च जीवियं तुच्छं । तं पुव्वारोविय-जीव- दुक्ख - रुक्खस्स फुरइ फलं ||२२८८|| भवजलहि - तरी- तुल्लं महल्ल-कल्लाण- दुम- अमय-कुल्लं । संजणिय - सग्ग- सिव-सुवख समुदयं कुणह जीवदयं ||२२८१||
इय सोउं पडिबुद्धेण सामदेवेण गरूय-सदाए । गहिया गुरु-पासे निरवराही जीवरस वह - विरई ||२२१०||
मुणिणा वुत्तं- सम्मं पालिज्जसु जेण नियम-भंगम्म । होइ गरुओ अणत्थो एत्थ य कुंदो उदाहरणं ||२२११|| तहाहि
अत्थि सुरट्ठा - विसए अणुमंजी पुरवरी सुरपुरि व्व । जीए सुपव्व - कलिया मणिमय-निलया विमाण व्व || २२१२ ||
तीए य कुंदो कम्मयरो | भज्जा से मंजरिया । सो य पयइभद्दओ विणीओ । अन्नया समागओ तत्थ मेहघोसो आयरिओ । ठिओ विवित्ते काणणे । कट्ठाइ - निमित्तं वच्चंते दिडो कुंदेण । 'अहो ! धन्नो' त्ति बहुमन्निओ अणेण । भत्तीए इंत जंतो पिच्छइ तयं । भव्वो त्ति कया से गुरुणा धम्मदेसणा । पडिबुद्धी एसी । 'गिण्हामि किंचि वयं 'ति चिंतियमणेण । गहिया मज्ज - मंस - विरई । गओ स-गिहं । आगओ से सालगो पाहुणगो । कयं मंजरीए पाहुन्नगं । रद्धं मंसाई । उवविद्या दो विभुत्तुं । अद्ध-परिविडं मंसं पडिसिद्धं कुंदेण । 'सालगो
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सुमहनाह - चरियं
वि न गिहिस्सइ त्ति बला दिनं मंजरीए । तदुवरोहेण च ओहयमण - संकप्पेण भक्खियं कुंदेण । जाओ से अणुतावो । निसाए नीससंतो भणिओ मंजरीए- किमेवं नीसससि ? | साहिओ अणेण वुत्तंतो । 'वय- भंगो कओ' त्ति महंतो मे संतावो त्ति उव्विग्गा से भज्जा वि । भणियं तीए कीस तए एयं मे न कहियं ? | अहं पि पावे पाडियम्हि । गोसे पुच्छिऊण गुरुं जमेत्थ जुत्तं तं करिस्सामो । किमेइणा नीससिएण ? । जुत्तमेयं ति चिंतियं कुंदेण । पहाया रयणी । लज्जा - पराहीणी वि नीओ एस गुरु-सगासं भज्जाए । वंदिऊण गुरुं लज्जेण उ चिट्ठई । तओ गुरुणा भणिओ- कीस तुमं एवं ? ति । तेण वुत्तं- भयवं! पावो अहं । न जुत्तं मे संभासणं । गुरुणा वुत्तं- कीस ? ति । भज्जाए साहिओ वुत्तंतो । गुरुणा चिंतियं- सोहणाणि एयाणि जेसिं ईइसो परिणामो । भणियं चालं एत्थ उव्वेण । किं तुट्ठो वितंनू न संधिज्जइ ? । किं असुइविलित्तो पाओ न धुव्वइ ? | तुज्झं पि अभाव - दोसओ अप्पो बंधो । इच्चाइ कया एएसिं धम्म- देसणा । संविग्गाणि दुवे वि । गहिया दोहिं पि मज्ज-मंस - विरई । परिवालिया भावओ । अहाऊयक्खएण मओ कुंदी | समुप्पन्नो 'सिरिकंठ-विसए जयंतीए नयरीए कुरुचंदस्स रन्नो मंगलार महादेवीए पुत्तत्तेणं । दिट्ठो अणाए सुविणयम्मि तीए चेव रयणीए रायहंसो वयणे पविसमाणो । सुह-विउद्धार साहिओ जहाविहिं रन्नो । भणिया तेण सुंदरि ! रायहंसो ते पुत्तो भविस्सइ । पडिस्सुयमिमीए । परितुट्ठा चित्तेण । अइक्कंतो कोइ कालो । जाओ से दोहलो- 'करेमि जिणमुणि- पडिवत्तिं ।' संपाडिओ से रन्ना । पसूया एसा । जाओ दारगो । कयं वद्धावणयं । समए पइद्वियं नामं दारगस्स सुविणाणुसारेण रायहंसो त्ति । समाइडं महारज्जं नेमित्तिगेण । अइक्कं तो कोइ कालो । जाव चैव न जोव्वणं पावइ ताव मरणपज्जवसाणयाए जीवलोगस्स मओ से पिया । अणुगमिओ मंगलाए बालो रायहंसो त्ति ठिओ रज्जम्मि एयस्स चुल्लबप्पो सिरिचंदो । कओ तेण एसो जुवराओ । इओ य वय-भंग - कम्मदोसेण मम पुत्तस्स रज्ज-परिपंथी एसो त्ति जाओ चुल्लबप्प - घरिणीए रज्जादेवीए रायहंसम्मि कोवो । दिव्न्नं कम्मणं । अचिरेण गहिओ एस जलोयर - वाहिणा । उम्माहिओ राया । पारद्धो किरिया कम्मो । न य
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
वाही नियत्तइ । अह सत्तुणा पच्चंत विसओ हओ त्ति गओ धाडीए राया । दुग्ग-भूमिबलेण न सो जिप्पइ त्ति जाओ तत्थेव निग्गहो । एत्थंतरे देवी - भावन्नुणा परिहूओ एस परियणेण । न से को वि किंचि वि करेइ । चिंतियं अणेण मम घरं चेव विदेसो ता वरं सो चेव विदेसो त्ति छिड्डेण निग्गओ रायगेहाओ नगरीओ य । महया किलेसेण गामाओ गामं भमंतो गओ उज्जेणीए । तत्थ अईव घत्थो वाहिणा परिसक्किउं पि न सक्कइ । ठिओ देवउले । तत्थ लोओ दयाए देइ मंडगाइ । एवं महाकिलेसेण अइक्कंतो कोइ कालो ।
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सा वि पुव्व - जम्म घरिणी मंजरी अहाऊयक्खएण मया समाणी समुप्पन्ना इमीए चेव उज्जेणीए महासेणस्स रन्नो सेणाए महादेवीए देइणि त्ति धूया । इमीए वि वियंभिओ वयभंग - कम्म- दोसो | दंतुब्भेय-काले गहिया अंबा रेवईहिं दढं । कयाई उचिय - विहाणाई । तहावि न से दुक्खक्खओ जायइ । एवं दुक्ख पीडियाए जाओ जोव्वण - समओ । एत्थंतरे सयमेव मुक्का मणागं वाहिणा । तओ मायाए अहियं पसाहिया राउले रमंती चिट्ठइ । ईओ य राया महासेणो सेवग जणं पुच्छइ-कस्स पुनेहिं रिद्धिं तुभे विलसह ? । ते वि भणति - देव ! तुम्ह पुन्नेहिं । तओ संपूईय विसज्जेइ राया । अन्नया दिडमिणं देइणीए । हसिऊण भणियमणाए - अहो ! तायस्स मुदया, जो एवमे एहिं विप्पयारीयइ | सुयमेयं माइ सवत्ति - चेडीए । भणियं अणाए - सामिणि ! का एत्थ विप्पयारणा ? किं न एवमेयं ? ति । देइणीए भणियं न पर- पुने हिं कोवि सिरिं भुंजइत्ति परमत्थो । कहियमिणं चेडीए रन्नो । कुविओ राया ! सद्दाविया देइणी | भणियाऽणेण - कस्स पुन्नेहिं तुह एसा सिरी ? । तीए वुत्तं - ताय ! परमत्थओ अप्प - पुन्नेहिं । जओ सव्वे पाणिणो स- कयाणि सुकड - दुक्कडाणि भुंजंति, निमित्तमित्तं चेद एत्थ परोति । एयं सोऊण अहियं कुविओ राया । सद्दावियाऽणेण दंडवासिया, भणिया य सगोरवंभो ! जो कोइ तुब्भेहिं दिट्ठो एत्थ नयरीए अच्चंत दुक्खिओ सत्तो तमित्थ सिग्घं आणवेह । तेहिं वुत्तं जं देवो आणवेइ । न अन्नो इओ वि दुक्खिओ त्ति आणिओ रायहंसी । दंसिओ रन्ना । भणियं अणेण- अहो ! जहिच्छिओ एसी । अवन्नाए दंडि-खंड परिहाविऊण परिणाविओ देइणिमाणत्तो य समं तीए निव्विसओ । विसेसेण वुत्ता देइणी- माणेसु अप्प - पुन्नाई । तीए वुत्तं - जं तुमं आणवेसि । किलेसेण निग्गयाणि नगरीओ | मिलियाणि
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सुमइनाह-चरियं
३३७ उत्तरावहगामि-सत्थेहिं । दिहो देइणीए सत्थवइ । कहिओ से वुत्तंतो, भणिओ य सबहुमाणं- जाव ताय-संतिगं विसयं उत्तरामो ताव तए नेयव्वो एस मे भत्तारो । पडिवन्नं सत्थवाहेण । समप्पिओ से महिसगो । कमेण पत्ताणि अन्न-रडं । आवासिओ सत्थो अडवीए । देइणी वि भत्तारं गिव्हिऊण ठिया तयासन्ने भूयमाया-पीढे । कओ तीए तरु-पल्लवेहिं सत्थरो, नुवन्नो तत्थ एसो । समागया से निद्दा । देइणी वि सीसं से कुरुमालती चिहइ ।
इओ य जा पुव्वं कुमार-माया मंगलादेवी कुरुचंद-मरणे मया समाणी तद्देसे वंतरी समुप्पन्ना । तीए दिहो रायहंसो पच्चभिन्नाओ य । तओ दिव्व-सत्तीए विउव्वियं इंदजालं, वम्मियाओ उहिओ सप्पो । भणियं अणेण- अरे ! दुरप्प सप्प ! कीस तए एस रायपुत्तो विणासिओ ? नत्थि कोइ इत्थ जो एयस्स राईगाओ पीसिऊण तक्वेणं देइ | एवं सोऊण तम्मुहहिएण भणियं सेय-सप्पेण- अरे किण्ह सप्प ! कीस तए एयं अहिहियं दव्वं ? | नत्थि एत्थ कोइ जो एयं खणिऊण लेइ । सुयमिणं देइणीए । रायउत्तो एसो त्ति हरिसिया एसा । चिंतियं अणाए-अहो ! सच्चमेयं
परस्परं च मर्माणि ये न रक्षति मानवाः । त एव निधनं यान्ति वाल्मीको दरसर्पवत् ||२२१३।।
ता मए लद्धो रोगक्खओवाओ | वोलीणाणि अम्हे ताय-विसयं । ता एत्थेव क हिं चि करे मि कि रियं एयस्स । अन्ने समाणीए गामाइ दिहमासनमेव गोउलं । अब्भत्थिओ तस्स सामी एय वईयरे । पडिवनमणेण गहिया य धूय त्ति देइणी । पुच्छिउण सत्थवाहं ठिया एसा गोउले । पारद्धो किरिया-कम्मो । थेव-कालेणेव पउणो रायहंसो विज्जाहरो विव अन्नो चेव संवुत्तो । अहो ! एस पावक्खओ त्ति तुहा देइणी । अइक्वंता कइ वि दियहा विसिह-गोरसाहारेण । को कत्थ तुमं ? ति पत्थावेण पुच्छिओ देइणीए । साहिओ अणेण सब्भावो । चिंतियं देइणीए- अणुकूलो संपयं एयरस विहि ति जुत्तं सदेस-गमणं । भणिओ य एसो- कूलहरं ते वच्चऽम्ह । तेण भणियं- एवं करेमो किंतु गोउलवइणो अणुवगरिए न गमणं जुत्तं । देइणीए चिंतियं- महासत्तो एसो । भवियव्वमेयरस संपयाए । साहिओ से निहि-वइयरो । खणिऊण
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३३८
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं दिन्नं दविणं गोउलवइणो । कमेण पत्तो जयंतीए । ठिओ आरामे सहयार - छायाए । आगया से निद्दा |
एत्थंतरे अपुत्तो मओ राया सिरिचंदो । अहिवासियाणि दिव्वाणि, निग्गयाणि नगरीओ, गयाणि जत्थ रायहंसो । दिट्ठो अपरियहंतीए सहयारच्छायाए । एसो पडिवन्नो दिव्वेहिं, पमोएण पवेसिओ नयरीए । कओ से रायाभिसेओ । पुन्न-बलेण मणोरमो सामंताईण । अइक्कंतो कोइ कालो | जयंती नवो राय त्ति सुयमिणं महासेणेण । पेसिओ से दूओ'सिग्घं रायाणं धणभंडारं पेसिऊण मम भिच्चो होहि जुज्झासत्तो वा होसु' त्ति गओ दूओ । भणिओ अणेण जहाइडं रायहंसो । पडिभणियमणेणगुरूओ तुह सामी । अओ न किंचि अहं पढमं करेमि, पारद्धे उण विग्गहे तक्कालोचियं अवुत्तो चेव करिस्सामि त्ति विसज्जिओ दूओ । पत्तो एस उज्जेणिं । निवेईयमिणं महासेणस्स । कुविओ एस । तद्दियहे चेव निग्गओ उज्जेणीओ । पयट्टी अणवरय-पयाणएहिं । सुयमिणं निउत्तपुरिसेहिं तो देइणीए । निवेइयं रन्नो रायहंसस्स । भणिओ य एसीसंदेसगाणुरूवं करेहि । देहि तुमं पि तदभिमुहं पयाणयं । रायहंसेण वुत्तंजुत्तमे । समालोचियं समं सामंताईहिं । विग्गह-विहाणेण निग्गओ रायहंसो दुगुण-प्पयाणगेहिं । लंघिऊण सविसय-संधिं मिलिओ महासेण कडगरस बीय - दियहे चेव 1 पवत्तमाओहणं । महया विमद्देण जिओ महासेणी, पाडिऊण बद्धो य । सद्दावियाऽणेण देइणी, भणिया य - किमित्थ जुत्तं ? ति । तीए भणियं संपूईऊण विसज्जणं सज्जणस्स | 'एवं' ति पडिवन्नं रन्ना । सयमेव भग्गा प्पहारा, बद्धा वणपट्टगा ।
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एत्यंतरे समागया देइणी । चलणेसु निवडिऊण भणिओ रायाताय ! तुझ आसीसाए एसा अहं माणेमि अप्प - पुन्नाई । देइणि पच्चभिन्नाया रख्न्ना । 'जस्स मए एसा दिन्ना तं मोत्तूण अन्नो इमीए पई कओ' त्ति लज्जिओ राया । तस्स भावं नाऊण कहिओ सव्व - वुत्तंतो देइणीए । एस कुरुचंद - पुत्तो रायहंसी, एसा वि महासेण-धूयत्ति हरिसिया सामंताइणो । अहो ! मए न सोहणमणुचिडियं ति विलिओ महासेणी । एवमेयं सव्वो अप्प - पुन्नाई माणइ त्ति जंपियमणेण । पउणवणो विसज्जिओ महासेणो । भणियमणेण गच्छामि अहं वणं, मम
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सुमइनाह-चरियं
पुत्ता पुण ते भिच्च त्ति । एवं जाया अणेग मंडल - सिद्धी । रायाहिराओ संवुत्तो । जाओ देइणीए जोग - पुत्तो । दिव्न्नं तस्स रायमयंको त्ति नामं । कयाइ जाया इमरस चिंता कस्स पुण कम्मुणो एस विवागो ? ति ।
एत्थंतरे मुणिय-तप्पडिबीह समओ समागओ भयवं चउनाणी नाणभाणू आयरिओ । ठिओ जयंती - भूसणे तिलउज्जाणे । निवेईओ रनो पुरोहिण । समं देइणीए गओ तत्थ राया । सुओ तदंतिगे धम्मो । परिणओ पुव्व-पओगेण । पुच्छियं जम्मंतर - कयं सुह- दुक्ख - निमित्तं साहियं गुरुणा । जायं जाईसरणं । एवमेयं ति साहियं परियणस्स । पडिबुद्धी बहुजणो वयभंग विवाय-सवणेण । जाया सिद्धंतसवणेच्छा | गहियाइं अणुव्वयाई । काराविया धम्माहिगारा । बहुकालमणुपालिय सावगत्तं, दाऊण पुत्तस्स रज्जं पव्वइओ रायहंसो सम देइणीए पहाण - परियणेण य । पालिउं सामन्नं काऊण कालमासे कालं गओ बंभलोए, कमेण सिद्धो य ।
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एवं वयभंग - विवागं सोऊण सामदेवेण वुत्तं- भयवं । पाणप्पणासे वि नाहं वयभंगं काहं ति कय- निच्छओ गओ गिहं । वामदेवो उण कम्मदोसओ अपडिवन्न- गुरुय-वयणो पयट्टो पाणिवहे । भक्खए मंसं । तं तहाविहं दहूण ठिओ भिन्नो सामदेवो । कुविओ तदुवरिं वामदेवो । पत्तो पारद्धिपियरस जयपालस्स रन्नो समीवं । पन्नत्तोऽणेण राया- देव ! सामदेवो इमं भणइ- 'जो पारद्धिं करेइ सो पावो' त्ति । तओ कुद्धो राया । हक्कारिओ सामदेवो । नीओ पारद्धिद्वाणे' । वुत्तो रन्ना - जइ पारद्धिं करेसि ता ते सायं करेमि । सामदेवेण वृत्तं - जो पाणिवहेण होइ तेण पज्जत्तं पसाएण । रन्ना वुत्तं- अप्पेह पहरणं । जइ न पहरइ हरिणाइणो तो एसेव हणियव्वो । तहेव कए निउत्तेहिं जाव पहणिज्जंतो वि न पहरए सामदेवो ताव चिंतियं रन्ना-न एस लोभेण भएण वा जीवे वहेइ ता सोहणी अंगरक्खो होइ त्ति कओ अंगरक्खो । कमेण तेण राया वि गाहिओ जीव - वह - विरइं । एवं पालिऊण निरईयारं गहियवयं सामदेवो मओ, गओ सोहम्मं । वामदेवेण वि कया वि पारद्धिगएण हओ निरवराहो वराहो सरेण । सो वि रोसारुणो धाविऊण अभिमुहं चंदकला - कुडिलाहिं दादाहिं छिंदए तस्स जंघाओ, पडियरस य फालए पोहं । तओ वामदेवो रुद्दज्झाणोवगओ मओ, गओ पढमं नरयं । सामदेव-जीवो य
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सुरलोयाओ चुओ समुप्पन्नो तुमं महाराओ । वामदेव-जीवो य नरयाओ उवट्टिऊण जाओ एस दमगो । अओ चेव इमं दहण ते समुप्पल्लो मणागं सिणेहो । अच्चुक्कडयाए य पावकम्मरस न कओ कोइ एयरस उवयारो । पावप्पभावेण य भमिस्सइ एस दीहं संसारं ।
तुमए उण पुव्व-भवे जं विहिया थूल-जीववह-विरई । तं वसण-सयाइं तुमं विलंघिउं रज्जमणुपत्तो ||२२१४|| ता जाय-जाइसरणो राया जंपइ मुणिंद ! जं तुमए । अक्खायं तं सच्चं पच्चक्खं मज्झ संजायं ।।२२१५।। संपइ पसीय भयवं ! पयच्छ मे सव्व-जीव-वह-विरई । गुरुणा भणियं-सावय ! सा वय-गहणेण संभवइ ||२२१६।। रना भणियं-तं पि हु गिहिस्सं रज्ज-सुत्थयं काउं । तत्तो जयस्स रज्जं दाउं विजयस्स जुवरजं ॥२२१७।। गिण्हइ सयं राया दिक्खं दमसार-केवलि-सयासे । कय-तिव्व-तवो पत्तो सग्गं च कमेण मोक्खं च ||२२१८।। हिंसं परिच्चयंतो जो न अलियं विवज्जए जीवो । सो दोत्तडीए नहो निवडइ वग्घस्स मुह-कुहरे ||२२११।। भुयगो व्व अलियवाई होइ अवीसासभायणं भुवणे । पावइ अकित्ति-पसरं जणयाण वि जणइ संतावं ॥२३००।। सच्चेण फुरइ कित्ती सच्चेण जणम्मि होइ वीसासो । सग्गापवग्ग-सुहसंपयाओ जायंति सच्चेण ||२३०१।। सच्चवसेणं तियसा आणाए किंकर व्व वहति । लिप्पपडिय व्व न कमंति मत्त-करि-केसरि-प्पमुहा ॥२३०२।। जायइ सिल व्व सरिया पंकय-पत्तं व पहरणं होइ । न दहइ जलं व जलणो न दसइ रज्जु व्व कसिणाही ॥२३०३।। सच्चाणुभाव जा ओहिनाण-विनाय-ववहियत्थ-गणो | जायइ जणस्स पुज्जो अकुलो वि कुलाल-सद्दो व्व ||२३०४।। तथाहि
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सुमइनाह-चरियं
[२. सत्ये कुलाल कथा]
इह जंबुद्दीव-भरहम्मि अंग जणवय-वयंस- संकासा । परचक्क-अकय-कंपा चंपा नामेण अत्थि पुरी ||२३०५ || भावि सिरि-वासुपुज्जुप्पत्तिं नाउं व जत्थ भीएहिं । नं कयं कयावि दुब्भिवख-मारि - डमराईएहिं पयं ||२३०६ || तत्थ य राया अरिराय - चंपओ रायचंपओ नाम । छज्जइ भुय - खंभे जस्स जयसिरी सालभंजि व्व ||२३०७ || सोहग्ग-हत्थिसाला दुत्थिय-जण- दुक्ख - रुख - दवजाला । ससि - विमल-गुण-विसाला चंपयमाला पिया तस्स ||२३०८ कन्ना पंकयनयणा ससिवयणा ताण कुंदसम - रयणा । वित्थरिय - विषय - रयणा वर गुण रयणा रयणमाला || २३०९।।
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तीए "लायन्न - तरंगिणीए विलसंत- नयण - कमलाए । कीलइ मयणो तिहुयण- विजय- परिस्सम-पसमणत्थं ||२३१०|| तीए य सयल - कला - कोसल्ल- कोस-तुल्लाए विसेसओ कव्वविणोय- पत्त- पगरिसाए चिंतियं
अवियड-पई पोढंगणाण गुणियाण निग्गुणो सामी । चाईण य दालिद्दं तिन्नि वि गुरुयाइं दुक्खा ||२३११||
ता जो कव्व - विणोएण मे मणं हरिस्सइ सो मए परिणेयव्वो ति कया पइन्ना । विन्नाय - वृत्तंतेण पिउणा कओ सयंवर मंडवो । आगया कलाकलाव - कुसला बहवे रायपुत्ता, निसन्ना सयंवर मंडवे । निविट्ठो
या सहा- नायगी । ठिया पहाण-बुहा । संपत्ता कंति - कडप्पेण पयासयंती सयल - दिसाओ रयणमाल व्व रयणमाला । निविट्ठा पिउपायवीढे । पढिया तीए गूढ - चउत्थ- पाया गाहा जहा
जं कय-भुवणाणंद समुद्द - महणम्मि देव - विंदम्म | अमयमुल्लसियं तं [वल्लह - मुह- दंसणं अमयं] ||२३११|| जाण मुद्धमयं ।
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एवं पढिऊण भणिया रायपुत्ता- लहेह चउत्थ- पायं । ते वि य नियमइ - विहवाणुरुवं परिभाविउं पवत्ता । कोसंबी - सामिणो विजयवम्मुणो
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं नंदणेण सिरिनंदणेण लहिऊण पाढियं जहा- वल्लह-मुह-दसणं अमयं ।'
भणियं बुहे हिं - अहो ! लहण-वेगो कुमारस्स सिरिनंदणस्स । रंजिया रयणमाला । भणियमणाए-कुमार ! तुमं पढसु । तेणावि पढियंनिःसीम-कान्ति-सलिला वर-नयनोत्पल-विलास-रमणीया । हसिता ननराजी (वनराजी) वा,............ ||२३१३।। एवं पढिऊण भणियं-'लहेसु चउत्थ-पायं ।' तीए वि लहिऊण भणियं-'सरसीव मनो हरति बाला' | भणियं सहासएहिं -अहो ! कुमरीए मइ पगरिसो । पुणो पढियं कुमारीए पसिणुत्तरंपृच्छत्युज्ज्वलदशना प्रमोदिताः शौर्य-विनय-मुख्य-गुणैः । राजानः किं कुर्वंत्यनुजीविजनाय ? || सिरिनंदणेण भणियं-'कुं ददति'। कुं पृथ्वीं ददति ||२३१४|| तेणावि पढियं पसिणोत्तरं । किं सर्पास्पदमायुधं ? मुसलिनः किं दुर्लभं ? किं निधेर्वाराकं निगदंति ? कर्दम-रुचिं खादंति किं, निर्गुणाः ? । किं सौभाग्यतरं, तरोरकुशलं कं वक्तुमाचक्षते ?, सच्छिद्रं तृणभेदमाहरिह किं साधुं विदुः कीदृशम् ? ||२३१५।।
[अष्टदल कमल जातिः ।] रायपुत्तीए परिभाविऊण भणियं-'विहतकोपदवानलं' |
सहासएहिं भणियं-अहो ! दुण्हं पि करण-भेयण-कुसलया । सहानायगेण भणियं-जुत्तो एयाणं संबंधी | कस्स वा नाभिमया पूगपायवमारुहंती नागवल्ली ? | रना दिन्ना सिंरिनंदणस्स रयणमाला | वत्तो वीवाहो | संपूईऊण विसज्जिया सेस-रायपुत्ता । धरिओ य सिरिनंदण-कुमारो सगोरवं रन्ना । तया य गिम्ह-समओ
जहिं दुह-नरिंदु व सयल-भुवणु परिपीडइ तिव्व-करेहिं तवणु । जहिं दूहव-महिल व्व जण-समग्ग संतावइ लूय सरीर-लग्ग ||२३१६।।
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सुमइनाह-चरियं
जहिं तण्हा-तरलिय-पहिव हंत अणुसरहिं सरस पेम्व जेम्व कंत । जहिं चंदणु चंदु जलदहारु सज्जणु व दिति आणंदु फारु ।।२३१७।। जहिं सेवहिं धारा जंतु नीरु जण सिसिरु नाइ कामिणि-सरीरु । जहिं दक्खा वाणय पियहिं महुरु गुरु-वयण नाइ भवताव-विहुरु ||२३१८।। जहिं नियय-कडक्ख-समुज्जलेण घणसार-सार-चंदण-जलेण । सिच्चंतउ तरुणिहिं तरुण-लोउ
संताव-चत्तु पावइ पमोउ ।।२३११।। तत्थ गिम्हे गओ कीलणत्थं पमयवणं सिरिनंदण-कुमारो समं रयणमालाए । सा य कीला-पमत्ता छलन्नेसिए गहिया खुद्ददेवयाए परसुनिकिन्न -चंपयलय व्व पडिया महीवहे । सित्ता खिरिखंड जलेणं तप्परिमल-लुद्धा इव गाढयरमहिहिया तीए निरुद्धा वाणी । तओ लिप्पमइय व्व निप्फंद-नयणा न किंचि जंपइ । नीया राय-भवणं । नाय-वुत्तंतेहिं जणणि-जणएहिं आहूया वेज्जा मंतवाइणो य । पउत्तो तेहिं विविहोवयारो । न जाओ कोवि विसेसो । विसन्ना जणणि-जणया रोविउं पयत्ता
हा वच्छे ! सयल-कला-कलाव-कोसल्ल-भूसिय-सरि । पत्तासि दिव्ववसओ कहमिहेिं एरिसं वसणं ? ||२३२०।। अमयं पि जस्स पुरओ न चेव महुरत्तणेण हरइ मणं । तं जायमम्ह दुलहं तुह वयण-विणिग्गयं वयणं ॥२३२१|| पत्तासि जयवडायं अखलिय-पसरेण जेण बुह-मज्झे । तं कइया तुह वयणं कय-सवण-सुहं सुणिस्सामो ||२३२२|| रायाणं तहाविहं दहण भणियं मंतिणा- देव ! आसन्नेसु सीमग्गामे अत्थि गुणनिप्फन्न-नामो सच्चपालो नाम कुलालो । तस्स य सच्चवयण-पयंपणाणुभावेण समुप्पन्नमोहिनाणं । सो य तेण नाणेण नाणाविहं
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
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छिंदेइ संदेहे । ता सो पुच्छिज्जउ रयणमालाए वाहि-विगमोवायं । रन्ना वृत्तं - सद्दावेहि तं । मंतिणा भणियं निरीहत्तणेण न सो कस्सइ समीवमुवेइ । अइसय-नाणत्तणेण पूयारिहो सो अओ तत्थ गम्मउ । तओ धूयं घेत्तूण चंपयमाला संगओ गओ तत्थ राया । कय पडिवत्ती निविडो तस्स पुरओ । एत्थंतरे तिव्व-तव-सुसिय-देहो जड-मउड-धरी समागओ तत्थ एक्को रिसी । कुलालेण भासिओ-भद्द ! तुह कुसलं ? |
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"विमलवईए इह पेसिओ सि तुह तव - - अदड्ड- देहाए । जं पभणसि तं सच्चं ति जंपए पंजली जडिलो || २३२३|| अह विम्हय - रसवसओ नरेसरो जंपर किमेयं ति । तो साहए कुलालो मूलाओ जडिल - वुत्तंतं ॥ २३२४||
विंझाडवी मज्झे संडिल्लो तावसो तवं तवइ । कइया वि इमस्स सिरे विहिया विद्वा सउलियाए ||२३२५ || सा कोव - परवसेणं इमिणा हुंकारमित्तओ दवा | नाउं तं निय-सत्तिं तुट्ठो पत्तो य तिउरिपुर्ति || २३२६ ||
भिक्खा कए पविट्ठो भवणे धणदेव - पवर- सङ्घस्स । तस्स जिण धम्म-निरया घरिणी विमला विमलसीला ||२३२७||
घरकम्म - वावडाए चिरेण भिक्खा इमीए उवणीया । तद्दहणत्थं मुक्को उ इमिणा कुविएण हुंकारो ||२३२८|| हसिऊण भ्रणइ विमला- महरिसि ! ना हं खु सउणिया होमि । विंझाडवीए दहा जा तुह हुंकारमेत्तेण || २३२९||
तो तावसेण भणियं भद्दे ! जाणसि तुमं कहं एयं ? | तीए वुत्तं - कहिही सुसीमगामे तुह कुलालो || २३३०|| तो आगओ "इहेसो नरिंद विमलाइ विमल - सीलेण । संजायमवहिनाणं ममावि सच्चप्पभावेण || २३३१||
नाणेण तेण अम्हे जाणामो दो वि ववहिअं वत्थं । तो रन्ना भणियमहो माहप्पं सच्चसीलाण ||२३३२||
एवं नाणाइसय - रंजिएण दंसिया रयणमाला कुलालस्स । पुट्ठो सो वाहिणो कारणं तव्विगमोवायं च । भणियमणेण - महाराय ! महई कहा ।
तहाहि
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सुमइनाह-चरियं
अत्थि सत्थिमई - सन्निवेसो । तत्थ दया दाण-दक्खिन्नाइगुण-जुत्तो देवगुत्तो वाणिओ । गुत्ता से भज्जा, देविला भइणी । सा य परिणीयमेत्ता चेव चत्ता भत्तुणा चिट्ठइ भायगेहे । निउत्ता तेण दाणाइकज्जे । कयाइ गिहमागयाओ भिक्खत्थं साहुणीओ । भिक्खं दाऊण पुट्ठाओ कत्थ तुब्भे वसह ? ति । साहुणीहिं भणियं जिणदत्त - सिडि - जाणसाला । तत्थ अम्ह पवत्तिणी विमलवई चिट्ठति । अवरहे गया तत्थ देविला, वंदिऊण पवत्तिणिं निसन्ना पुरओ । भणिउं पवत्ताभयवई ! बहु - सत्थ- परिकम्मिय - मईओ तुब्भे । ता कहेह किं पि वसियरण- जोगं । पवत्तिणीए भणियं भद्दे ! अणुचियमिणं साहुणीणं । जओ
जोइस निमित्त - अक्खरकोऊयाए सभूईकम्मेहिं । करणाणुमोयणेहिं य साहुस्स तवक्खओ होइ ||२३३३||
किं च, धम्मो चेव परमं वसीकरणं । जओ
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सोहग्गं आरोग्गं आउं दीहं मणिच्छिया लच्छी । भोगा विउला सुर-सिव-सुहाई लब्भंति धम्मेण ||२३३४||
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एवमदिणं धम्मं सुणंतीए वियलिओ कम्म गंठी, नियत्ता विसयवासणा, पडिवन्नो सम्मत्तमूलो गिहत्थधम्मो | कहेइ देवगुत्तस्स जिणधम्मं । सो वि अदिन्न - पडिवयणो ठिओ अहोमुहो । देविला वि पइदिणं वच्चए जिण मंदिरे । पूएइ जिणिंद-पडिमाओ, पज्जुवासए जइ-जणं, सुणेइ सिद्धं तं वज्जेइ मिच्छत्तं, करेइ अट्ठमभार दिवसस्स वेयालियं । सिणेहलंघिओ न किं पि जंपए देवगुत्तो । अन्न- दिणे भणिया तेण देविलाभइणि ! जिण-धम्मो चेव सग्गापवग्ग- कारणं । न सेस धम्म त्ति जं भणसि तं ते राग-दोस- विलसियं संभावेमि । को वा दोसो रयणि-भोयणे जेण न भुज्जइ ? । तओ भणियं जिणधम्म-कुसलाए देविलाए
·
पुट्ठो परेण महुरं उच्छु कडुयं च कहइ जइ लिंबं ।
तो रागदोस - विलसियममस्स किं होज्न पुरिसस्स ? || २३३५|| जइ को वि सीयलं सलिलमुण्हमनलं व सव्वमुल्लवइ । ता तस्स होज्ज किं रागदोस- विप्फुरिय-लेसो वि || २३३६ ||
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं इय जीवदया - परमं जिण-धम्मं सग्ग- मोक्खपुर-मग्गं । पसुवह-परूवग-मिच्छदिडि - धम्मं च कुगइ-पहं ||२३३७|| जंपंताण जाणं अवितह - वत्थुस्सरूव-भणणाओ । रागो वा दोसो वा न एत्थ परमत्थओ अत्थि ||२३३८।। वत्थु - सहावो एसो जत्थ दया विसय-निग्गही जत्थ | सो धम्मो मोक्खपही सेसो संसारमग्गो त्ति ||२३३१|| निसि-भोयणम्मि दोसे समासओ संपयं निसामेसु । नयनिद्दोसं वत्युं को वि सकन्नो परिच्चयइ ? ||२३४०|| रक्खस-भूय-पिसाया निसाए हिंडंति अक्खलिय-पयारा । उच्छिन्नमेएहिं तत्थ कहं होइ भोत्तव्वं ? || २३४१|| चिउ ता परलोओ रयणीए भोयणं कुणंताणं । इह लोए वि अणत्था हवंति जे ते निसामेहि || २३४२||
मेहं पिपीलिया हंति जूया कुज्जा जलोयरं । करेइ मच्छिया वंर्ति कुडरोगं च कोलिओ || २३४३ || कंटओ दारुखंडं च विहेइ गल वेयणं । वंजणतो निवडिओ तालुं विधइ "विछिओ ||२३४४|| विलग्गो य गले वालो सरभंगाय जायए । इच्चाइणी दिड-दोसा हवंति निसि भोयणे ||२३४५ ||
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जइ वि हु पिपीलियाई दीवुज्जोयम्मि किं पि दीसंति ॥ तह वि तस - थावराणं सुहुमाणं दंसणं कत्तो ? ||२३४६|| भणियं च
संतिसंपा इमा सत्ता अदिस्सा मंस चक्खुणो । तेसिं संरक्खणद्वाए वज्जियं निसि - भोयणं ||२३४७॥
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जइ वि हु फासूय-दव्वं कुंथू पणगा तहावि दुप्पस्सा | पच्चक्खनाणिणो वि हु राई भत्तं परिहरति ॥ २३४८ || चिडंति चरंते च्चिय जे मणुया वासरे निसाए य । विरइ - परिचत्त-चित्ता माणुसवेसेण ते पसुणो ||२३४१ ||
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सुमइनाह-चरियं
पसुणो वि केवि रयणीए भोयणं परिहरति पायेण । तेहिं तो हीणयरा मणुया जीए "य भुंजंता || २३५०||
धम्मत्थिणी सया वि हु रयणीए भोयणं परिहरति । जिणधम्म - बाहिरेहिं वि जम्हा इणमणुचियं भणियं ||२३७१ ||
तद्यथा
त्रयी तेजोमयो भानुरिति वेदविदो विदुः । तत्करैः पूतमखिलं शुभं कर्म्म समाचरेत् ॥ २३५२||
नैवाहुति र्न च स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनं । दानं वा विहितं रात्रौ भोजनं तु विशेषतः || २३५३ || दिवसस्याष्टमे भागे मंदीभूते दिवाकरे । नक्तं तद्विजानीयात् न नक्तं निशिभोजनं ||२३५४ || दैवैस्तु भुक्तं पूर्वाह्न मध्याह्ने ऋषिभिस्तथा । अपराह्ने तु पितृभिः सायाह्ने दैत्य - दानवैः || २३५५ || संध्यायां यक्षरक्षोभिः सदा भुक्तं कुलोदहः । सर्ववेलमतिक्रम्य रात्रौ भुक्तमभोजनं ||२३५६|| आयुर्वेदेप्युक्तं
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हन्नाभिपद्मसंकोचश्चचण्डरोचिरपायतः ।
"ततो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि ॥ २३५७|| मुत्तूण दिणं पुत्ताहिलासिणो जे निसाइ भुंजंति । तण्हा-पसम-निमित्तं पियंति ते जलण-जालाओ ||२३५८|| जे भुंजंति निसाए निदम्मा ते लहंति परलोए । मज्जार- काय - कोसिय-सुणह - वराहाइ- तिरियत्तं ॥ २३५९ ॥ जे रयाणि - भोयणाओ कुणंति विरइं विसुद्ध - सदाए । ते अकिलेसेण लहंति अद्ध- जम्मोववास- फलं ||२३६०।
एवं सोऊण पडिवन्नो देवगुत्तेण जिणधम्मो । गहियं निसिभोयण - विरइ-वयं । कुलक्कमागयं आयारं मोयाविओ नणंदाए मह पह त्ति कुविया तब्भज्जा । गया पिईहरं ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं अन्नया वुत्तो देविलाए देवगुत्तो- भाय ! गंतूण ससुरकुलं आणेसु निय-घरिणिं । गओ सो तत्थ संझाए । तम्मि य माहमास-सोहग्गसत्तमि-दिणाओ समारब्भ सोहग्ग-निमित्तं रयणि-चरम-जाम-मुहुत्तमेतं कालं आकंठ-जलावगाहेण सग्गाहारेण य ठिया सत्त-दिणाणि देवगुत्तस्स सालिया । सत्तमो सो वासरो । पडिवन्न-तव-विसे साए पारण-निमित्तं पारद्धो समारंभो । तत्थ पुण एस कप्पो- अखंड-सालितंदुलेहिं तव्वेल-दुद्ध-पारिहटि-दुद्वेण रदं पायसं महुणा सह पईवाइवज्जियाए रयणीए भोत्तव्वं । तओ भोयणत्थमुवविहं सव्वं कुडुंबयं । हक्कारिओ देवगुत्तो । न पडिवघ्नं तेण । सावओ त्ति उवहसिओ सालएहिं । कर-परामरिसेण भुंजिउमाढत्ता ससुराइणो |
एत्थंतरे निवडिओ भवियव्वयावसेण मुह-गहिय-मूसओ वलहर णाओ ससुर-भायणोवरि सप्पो | उसिण-पायस-ताव-पीडिएण सप्पेण मुक्को मूसओ । अह पविखत्तो ससुरेण कवल-गहणत्थं भायणे हत्थो, डक्को सप्पेण । खद्धो खदो ति पुक्करियं तेण । आणिओ पईवो । दिहा भायण-मज्झे सप्प-मूसया । विस-वियार-विघायण-सामग्गिं कृणंताणं चेव ताण उवरओ सो । अक्वंद-सद्द-भरिय-भवणोयरं कयं उद्धदेहियं । सव्वे हिं पि भणियं-सोहणो देवगुत्त-धम्मो । तेहिं पि पडिवनं रयणिभोयण-विरमणं | भज्जं गहिऊण समागओ देवगुत्तो गिहं । गुत्ता वि 'पडिवनो मए जिण-धम्मो'ति भणंती साणंदा नणंदाए पडिया पाएसु । वच्चए कालो । देविलाए य सुद्ध-वणिय-भज्जा वज्जा नाम वयंसिया । कयाइ गया तग्गिहं । देविलाए दिहा अन्न-पुरिसेण समं वज्जा, गए य तम्मि सिक्खविया देविलाए
संतोस-चत्त-चित्तत्तणेण अजिइंदिया तुमं भद्दे ! | जं ससिणेहं अन्नं समीहसे कुणसि तमजुत्तं ||२३६१।।
इमं च तक्वालागएण सुयं सुद्धेण । नूणं अन्नासत्त त्ति चिंतिऊण परिचत्ता इमा । विसनाए तीए कहियं देविलाए । तीए वुत्तं- मा करेसु खेयं । अहं ते पई पन्नविस्सामि । भणिओ देविलाए सुद्धो- भो किमेवं मिसेहिं अवमाणेसि ? । तेण भणियं-अलं मे "इमाए दुहसीलाए । दुहसीला खु महिला विणासेइ संतइं, करेइ वयणिज्जं, मयलेइ कुलं, वावाएइ दईयं । ता किं उभयलोग-गरहियाए तीए परिग्गहेणं ? ति ।
परिचता ते पई पन्नविरतण भणिय-अलइ वणिज्जं. मल, ति
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सुमइनाह-चरियं देविलाए वुत्तं- कहं मुणसि जहा एसा दुहसील ? त्ति । तेण भणियंकिमेत्थ जाणियव्वं ? । सुया मए तुमं सिक्खवंती जहा- संतोस-चत्तचित्तत्तणेण इच्चाइ । देविलाए वुत्तं- अहो ! ते पंडियत्तणं । अहो ! वियारक्खमया । अहो ! सिणेहाणुबंधो । मए एसा तम्मि दिणे जरकला-कलिय त्ति निवारिया सिणिद्धं भोयणं भुजंती । तए उण एद्दहमेत्तेण वि अन्न-पुरिसासत्त त्ति संभाविया । सव्वहा सुसील त्ति एसा मुणियव्वा । तओ सो सुन्दो पुव्वं व तीए उवरि साणुराओ जाओ ।
एत्थंतरे बद्धं देविलाए कूड-सक्खि-दाण-दोसओ मूयत्तण-जणयं तिव्व-कम्मं । अह देवगुत्तो देविला गुत्ता य पालिऊण सावगत्तं गयाणि सोहम्मं । तओ चुओ देवगुत्तो तुमं समुप्पन्नो । गुत्ता य चंपयमाला देवी जाया । देविला उण रयणमाला धूय त्ति । एयं सोऊण तिण्हं पि जायं जाईसरणं । रन्ना भणियं- भद्द ! सच्चं सव्वमेयं । संपयं कहेसु इमीए मूयत्तण-विगमो कहं भविस्सइ ? ति । भणियं कुलालेण- तित्थयरसमागमेणं असिवोवसमो हवइ ति मं घेतूण गच्छ अउज्झनयरिं । तत्थ अभिनंदण-तित्थयरो सयं विहरइ त्ति । राया वि सक्वारिऊण कुलालं गओ अउज्झाए । वंदिओ भयवं । तप्पभावओ य पणहा खुद्ददेवया । जाया सहावत्था रयणमाला |
इय कूड-सक्खि-जणिएण कम्मुणा देविलाए मूयत्तं । दहण विरत्ताई तिन्नि वि दिक्खं पवनाई ||२३६२। कय-तिव्व-तवच्चरणाइं समये साहिय-समाहि-मरणाइं । माहिंद-देवलोयं पत्ताई कमेण मोक्खं पि ||२३६३|| जीव-वहमलिय-वयणं च चइउकामो वि न क्खमो चइउं । सो पुरिसो जो पर-धणमदत्तमवहरइ मूढप्पा ||२३६४।। दोहग्गमंगछेयं दासत्तं दीणया दरिदत्तं । दुग्गइ-गमणं च नराण होइ परदव्व-हरणेण ॥२३६५।। एक्कस्स चेव दुक्खं मारिजंतस्स होइ खणमेक्वं । जावज्जीवं सकुडंबयस्स पुरिसस्स धणहरणे ।।२३६६।। परदव्व-हरण-पावडुमस्स वह-बंध-मरण-पमुहाई । वसणाई कुसुम-नियरो नारय-दुक्खाइ फल-रिद्धी ॥२३६७।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं जग्गंतो सुत्तो वा न लहइ सोक्खं दिए निसाए वा । संका-छुरियाए छिज्जमाण-हियओ धुवं चोरो ||२३६८।। जो हरइ परस्स धणं बहिरंगं जीवियं स तेण हओ । दविण-विगमम्मि जम्हा वच्चइ खयमंतरंग पि ||२३६१।। जो परदव्वमदिन्नं न गिण्हए लोह-निग्गह-पहाणो । अल्लियइ इमं कल्लाणमालिया नागदत्तं व ॥२३७०।।
[३. अस्तेये नागदत्त-कथा]
वाणारसी पुरी अत्थि सुरयणालंकिया सुरपुरि व्व । तत्थ जियारि य राया सक्कु व्व न जो अवज्जकरो ॥२३७१।। रनो गोरवठाणं दक्खिन-विवेय-विणय-रयणनिहीं । धणउ व्व धण-समिद्धो धणदत्तो तत्थ वर-सेही ॥२३७२|| घरिणी तस्स धणसिरी सिरि व्व स्वेण विणय-कुलभवणं । दो वि दयापवणाइं जिणसासण-रंजिय-मणाइं ।।२३७३।। विसय-सुहं भुजंताण ताण पुत्तो गुणालओ जाओ । नामेण नागदत्तो नागकुमारो व्व रूवेण ||२३७४|| . बालत्तणे वि जिणवयण-भाविओ भवविरत्त-चित्तो सो । परिणेउं न पवज्जइ ख्ववईओ वि कन्नाओ ||२३७५।। सो अन्नया भमंतो समाण-निय-मित्त-मंडल-समेओ । नंदणवण-संकासे सहसंबवणम्मि संपत्तो ।।२३७६|| . जम्मि कुसुमेहिं तरुणो कुसुमाई महुरसेहिं सोहंति । भमरेहिं महुरसो महुर-गुंजिएहिं च भमरगणा ।।२३७७|| काऊण तम्मि नाणाविहाओ कीलाओ सो खणं एक्वं । तस्स य मज्झभायम्मि संठियं जिणहरं पत्तो ||२३७८।। जं कणय-खंभ-कलियं नाणा-मणि-खंड-मंडियं सहइ । जिणभत्तीए सक्वेण पेसियं सुरविमाणं व ||२३७१।। अह तम्मि पविसमाणेण तेण एक्का पलोइया कन्ना । जिमपूयं कुणमाणी रइ व्व स्वेण पच्चक्खा ||२३८०।।
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सुमइनाह-चरियं
चिंतियं चएइए मणोहर-वयणकंति-विजियाइं कणय-कमलाई । सेवंति अमरसरियं विसेस-सोहा-निमित्तं व ||२३८१।। पूयं कुणमाणीए सिवतरुबीयस्स वीयरायस्स । तीए वि विम्हय-रसाउलाए दिहीए सो दिहो ॥२३८२।। एत्थंतरम्मि तेलोक्व-विजय-पसरिय-मयस्स मयणस्स । दोण्हं पि हियय-लक्खेसु निवडिया बाण-रिछोली ||२३८३।। काउं जिणिंद-पूयं सा बाला मयण-बाण-विहुरंगी । सुइरं सिणिद्ध-दिही नागदत्तं पलोयंती ||२३८४|| चलिया निय-गेहं पइ मत्थइ रइयंजली पणमिऊण | भत्तीए नागदत्तो वि जिणवरं थोउमाढत्तो ||२३८५।। दिहे तुमम्मि भुवणेक्कनाह ! निहयंतरंग-रिउवग्गे । संसार-जलनिही गोपयं व जाओ उ सुहुत्तारो ||२३८६।।
तओ
नयणच्छेरयभूयं जिणपूया-कोसलं सलहिऊण | विम्हयवसेण पुहा निय-मित्ता नागदत्तेण ||२३८७।।. कस्सेसा वर-कन्ना पूया-विलाणमेरिसं जीए ? | एसो अणुरत्तो पुच्छइ त्ति मित्तेहिं तो भणियं ॥२३८८।। नागवसू नामेसा पुत्ती पियमित्त-सत्थवाहस्स । कन्ना निय-खवेणं सुर-रमणीणं कयावना ||२३८५।। बालत्तणओ वि इमा नीसेसकलाहिं पियसहीहिं च । खणमेवं पि अमुक्वा भुवणस्स वि विम्हयं कुणइ ||२३१०।।
किंतु,
एक्वो इमीए दोसो जं तुमए सरिस-गुण-कलावेण । पडिकूल-दिव्व-जोग्ग अज्ज वि पावइ न संबंधं ॥२३११|| अणुरूव-वर-विउत्ता रेहइ महिला न सुंदरंगी वि | माणिक्कमणग्धं पि हु न लहइ सोहं विणा कणगं ||२३१२।।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
तम्हा वयंस! जुज्जइ तुह एईए परिग्गहो काउं । असहाएण न तीरइ काउं धम्मो वि पुरिसेण || २३१३ || . नागदत्तेण भणियं - भो ! मा एवं पलवह । न मए अणुरागबुद्धीए पुट्ठा, किंतु एईए जिणिंद - पूया - कोसल्लं अतुल्लं दद्दूण एवं संलत्तं । तुब्भेहिं पुण पेम्म-परव्वसेहिं अन्नहा संभावियमिणं ति पयंपतो नागदत्तो पत्तो निय- घरं । सा य नागवसू कन्ना नागदत्तस्स निरुवम - रूवलावन्न- खित्त-चित्ता तं चैव चिंतयंती कया कामेण परव्वसा न पयट्टए भोयणाइ किरियासु, न पावए निसासुं पि निद्दासुहं, मणिमय - पंचालिय व्व चिट्ठए- निच्चिट्ठा | चंदण - जलद्दाईहिं कय-सिसिरोवयारा वि दढं देह-दाहमुव्वहइ । कसिणपक्ख ससिलेह व्व झिज्जए पइदिणं । विसन्ना सयणा । रहसि पुट्ठा सहीहिं निब्बंधेणं । तओ पुच्छंति एगओ पियसहीओ अन्नत्थ वारए लज्जा, इय वग्घ - दुत्तडी - नाय - निवडिया किं करेमि अहं ?- एवं वोत्तूण ठिया मोणेण ।
३५२
अह विन्नायभावाए अमरसिरीए सहीए भणिया एसा - हुं, विन्नायं मए सहि ! सहसंबवणुज्जाणे नागदत्तेण तुह अवहरियं हिययं । अहो ! जत्थ वाणियगा वि चोरा तत्थ किं कीरइ ? | तुज्झ वि लज्जाकरमिणं न जुत्तं वत्तुं । तया वि मए तुहं दिडिभावेण मुणियमिणं, परं लज्जाए न जंपियं इत्तियं कालं । तहेव ( ता होउ ) सुवीसत्था तुह गुणसंदोह -रज्जुसंदाणियं दंसेमि तं अनयकारिणं । इमं सोऊण अहो ! सहीणं छइल्लत्तणं ति भणंती जाया परम्मुही नागवसू । एवं संठविऊणं तं कहिओ तज्जणयाणं वुत्तंतो । तेहिं वुत्तं - उचिओ चेव अम्ह धूयाए नागदत्तेण संबंधी । कमलायरे रमंती रायहंसी कस्स नाणुमय ? त्ति भणिऊण पत्तो पियमित्तो धणदत्त - गेहं । दहूण अब्भुडिओ धणदत्तेण, कया आसणाइ पडिवत्ती । भणिओ य-किमागमण-पओयणं ? | पियमित्तेण वृत्तं- एक्कं ताव तुम्ह दंसणं, अवरं अत्थि मे नागवसू नाम कन्ना, तं तुह सुयस्स दाउं । ता पडिच्छ तुमं । होउ मह धूयाए तुह तणण अणुरुव-संबंधो । धणदत्तेण भणियं पियमित्त ! जुत्तं वृत्तं तए । ममावि बहुमयमेयं । कस्स वा न पडिहाइ लच्छी घरंगणमाविसंती ? किंतु मह पुत्तो संसार - विरत्त - चित्तो न पडिवज्जइ परिणयणं । अन्नेसिं पि बहूणं महंत - सेट्ठीणं विसिहाओ वि कन्नाओ न पडिवन्नाओ अणेण । परं पुणो
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३५३
सुमइनाह-चरियं वि भणिस्सं- ति वोत्तूण विसज्जिओ पियमित्तो । तेणावि कहिऊण पुव्व-वुत्तंतं भणिया धूया- वच्छे ! मुंच तम्मि अणुरायं । जओ- .
दुल्लह-जणम्मि पेम्मं खलम्मि मित्ती जडम्मि उवएसो । कोवो य समत्थ-जणे निरत्थओऽणत्थ-हेऊ य ||२३१४|| तीइ वि कया पइल्ला सो च्चिय परिणेइ मं न उण अलो ।
अहवा जं सो काही अहं पि त चिय करिस्सामि ||२३९५||
अह नयरारक्खगेण वसुदत्तेण दिहा घरंगण-गया नागवसू । तओ कओ सो कामेण परवसो गओ पियमित्त-गेहं ।
अब्भत्थिओ अणेण पियमित्तो- देसु मे नयणच्छरियभूयं नियधूयं । मग्गेसि जेत्तियं देमि तेत्तियं ते धणं । पियमित्तेण भणियं-'न मे धणेण कज्जं । को वा तुमं जामाउगं नाभिनंदइ ?, किंतु दत्ता मए धणदत्तस्स पुत्तस्स नागदत्तस्स कन्ना, ता न तए एत्थ खिज्जियव्वं'ति भणिउण विसजिओ वसुदत्तो । सो य तयाणुरत्तो नागदत्त-हणणत्थं छिद्दाणि मग्गिउं पवत्तो ।
अन्नया आसवाहणिया-निग्गरस जियसत्तु-रलो निवडियं कुंडलं । घरागएण नायं रना । भणिओ नयरारक्खगो-'कहिं पि निवडियं कुंडलं, निभालेसु तं' । 'जं देवो आणवेइ' त्ति भणिऊण उग्घोसावियं नयरे वसुदत्तेण-'जेण रन्नो कुंडलं कहिं पि पत्तं सो समप्पेउ जइ जीवियमिच्छइ'। नयर-परिसरे र गवेसणत्थं सव्वत्थ निउत्ता नरा ।
इओ य नागदत्तो अहमीए पडि वन्न-पोस हो संझाए पडि मं पडिवज्जिउकामो उज्जाण-मज्ाहियं जिणहरं पहिओ । गच्छंतेण य तेण दिहं पह पहा-पूर-पूरिय-दिसामंडलं कुंडलं । दहूण ते नागदत्तो नियत्तिऊण पयट्टो अन्न-मग्गेण । नियत्तमाणो य दिहो दिव्व-जोगओ वसुदत्तेण । गओ सो सासंक-माणसो तं पएसं | जाव दिहं कुंडलं । पहहचित्तो८ तं घेत्तूण तं 'अहो लद्धो मए नागदत्त-मारणोवाओ' त्ति चितयंतो गओ तत्थ जत्थ पडिमा-पवनो नागदत्तो । मुक्वं तस्स पासे कुंडलं । कहियं रनो- देव ! गहिय-कुंडलो पत्तो नागदत्तो, ता जं आणवेह तं कीरइ ? त्ति सुच्चा वज्जाहओ व्व विसनो चिंतए राया-हा ! किमेयं ? ति । न संभवइ नागदत्ते एयं । एसो य तं सकुंडलं कहेइ । ता एत्थ जुत्तो वियारो त्ति आणाविओ रब्ना नागदत्तो । दिहो कंठावलंबिणा
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं हिययंबरचुंबिणा विवेय-रविमंडलेणेव कुंडलेणं । पुट्ठो सबहुमाणं वुत्तंतमेयं । पडिमा-पडिवल्लो त्ति न किं पि जंपए एसो ।
भणिओ राया महल्लएहिं - देव ! अज्ज वि इमस्स नियमो न पूरइ त्ति चिहह जाव सूरोदयं । ठिओ राया । उग्गओ सूरो । चिंतियं नागदत्तेण'जइवि निरवराहस्स मे दिन्नं अब्भक्खाणं इमिणा तहावि मए न तं वत्तव्वं, जओ परदोस-कित्तणं उभयलोय-दुक्खावहं । न य किं पि इमिणा कयं मे। सव्वो वि सकय-कम्म-फलमेव भुंजइ । ता सिरच्छेए वि न मए परदोसो वत्तव्वो'त्ति कय-निच्छओ पुणो पुणो पुठो वि न जंपए । कुद्धेण रला आणत्तो वज्झो । तुटेण आरक्खिएण रत्तचंदणाणुलित्तो तणमसिकय-विविह-मुंडो सिर-धरिय-छित्तरय-छत्तो गलोलंबिय-सरावमालो विरस-वज्जंत-डिडिमो उग्घट-रायकुंडलावराहो रासहारुढो ओयारिओ राय-पहे । घर-पुर-"पायाराइ-सिहरहिओ नायर-जणो जंपिउं पवत्तोअहो ! वियार-मूढया रनो । अहो ! मइब्भमो मंतिप्पमुहाणं । पेच्छ केरिसं अकज्जं ? ति ।
अमयाओ वि होज्ज विसं मुंचिज्ज व सिहिकणे मयंको वि । न य कहवि नागदत्तो करेज एवंविहमकज्जं ।।२३१६।। जइ कहवि दुज्जगा सज्जणम्मि दोसं ठवंति अलियं पि । तह वि हु वियार-निउणा सच्चवियं तं न मन्नति ||२३१७।। जइ होइ महापुरिसाण एरिसाणं पि एरिसं वसणं । परिहरणिज्जो ता सव्वहा वि भववास-विसरुक्खो ||२३१८।। एवं पयंपमाणे जणम्मि जंतेण नागदत्तेण । सध्वविया नागवसू पिउमंदिर-कुट्टिम-तलम्मि ||२३११।। विगलंत-बाहबिंदूण नयण-कमलाण पाडिसिद्धीए । थणएहिं रूयंतेहिं व करताडण-तुट्टहारेहिं ||२४००।। परिणेइ न मं जइ वि हु तहावि नयणेहिं दीसिही सुहओ । तुहाहमेत्तिएण वि तं पि न मे खमइ दुइ-विही ।।२४०१।। इय विलवंती मुच्छाए महियले पडइ रुद्ध-करणगणा । पिय-वसणमपेच्छंती विहिणा विहिओवयार व्व ॥२४०२।। नागदत्तो वि दहण तीए तहाविहं चेहं आवज्जिय-मणो चिंतए एवं
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सुमइनाह-चरियं
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'जइ एयं वसणं अहं लंघेज्ज ता इमं बालं परिणिऊण पच्छा वयं चरिस्सं । अह न लंघेज्ज ता सागारं सिद्ध-पच्चक्खं पच्चक्खामि चउव्विहाहार' ति कय-पच्चक्खाणो पत्तो वज्झाणं । नागवसू वि वेगेण संठविऊण अप्पाणं पूईऊण जिणपडिमाओ ठिया सासणदेवयाराहणत्थं काउसग्गेण । नागदत्तो विक्खित्ती सूलाए आरक्खिएण । भग्गा सासणदेवयाए सूला । तओ उल्लंबिओ तरु- साहाए। एसो तुट्टी पासओ । तओ आहओ खग्गेण गीवाए । जाओ खग्गप्पहारो हारो । तओ तस्स कओ साहुवाओ लोएण । भीया निव-निउत्ता नरा । सुणियमेयं रन्ना ।
तत्थागंतूण काऊण पडिवत्तिं पुट्ठो नागदत्तो निब्बंधेणं - कहेसु, को एस वृत्तंतो ? | नागदत्तेण वुत्तं वसुदत्तस्स जइ अभयं देसि ता कहेमि । पडिवन्नमेयं रन्ना । कहिओ कुंडलावलोयणाइओ तेण वईयरो । तुट्ठेण रन्ना निवेसिओ करेणु-पडीए अप्पणी पासे । पवेसिओ गुरु - विभूईए नयरीए । नीओ रायभवणं । सक्कारिऊण पडविओ निय- गेहं । वसुदत्तो वि निव्वासिओ निय-देसाओ । गिहागयस्स नागदत्तस्स नागरा आगच्छंति वद्धाविया । पियमित्तो वि पत्तो पियपुच्छओ । कहिओ नागवसू -कय- काउस्सग्ग-वुत्तंतो । संजाय-सिणेहेण परिणीया नागवसू नागदत्तेण । भुंजए तीए समं भोए ।
अन्नया गवक्ख-गयरस पिययमाए समं नागदत्तस्स पच्चासन्नघरे कयंतेण हरिणा हरिणो व्व हरिओ वणिय-तणओ । जाओ अक्कंदवो । भणियं भज्जाए - नाह ! किमेयमइ - विरसं सुव्वइ ? | भणियं नागदत्तेण - सुयणु,
जस्स भएण अणागय-जत्तो काउं समीहिओ वि मए । न कओ मूढेण इमं वि चिट्ठियं तस्स जमहरिणो ||२४०३ || नहि गणइ इमो सुहियं न दुक्खियं न सधणं न धणहीणं । न नराहिवं न रंकं दवो व्व सव्वं वणं दहइ || २४०४।। इय पभवंते एयम्मि विसय-पडिसेवणं महामोहो । सिर- पज्जलियम्मि हुयासणम्मि को सुयइ निच्चितो ? || २४०५ ।। जइ वि सयं न पहुप्पइ एसो तह वि हु करेइ जण - पीडं । सिंह व्व जरा डिंभ व्व वाहिणो तस्स परिवारो ॥२४०६ ||
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३५६
सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
ता आसन्ने पडिओ मयच्छि ! जह मुच्छियाण विसएसु । एसो मच्चुमइंदो तह निवडइ जा न अम्हं पि || २४०७ || ता एय भएणं चिय पलाण मुणि-पहिय- पहय- मग्गेणं । वच्चामो मुक्खपुरं जत्थ पवेसो न एयरस || २४०८|| अह भणइ पिया- तुह घरे णिसिद्धमित्तत्थिणी गमह सच्चं । सिद्धमिहलोइय - सुहं अओ परं को इह पसंगो || २४०१ || नय सागरोवमेहिं वि हुंति वियण्हा सुरा वि विसयाणं । तम्हा संतो सो च्चिय निवारओ विसय-तण्हाए || २४१०|| ता नाह ! कुरु समीहियमहं पि सज्जा तुहाणुमय-मग्गा । पिय-पडिकूला वित्ती जओ निसिद्धा कुलवहूणं ||२४११|| तो भाइ नागदत्तो साहु पिए ! जंपियं तुमए । ता दिन्न - महादाणा जणिय- जिण-पडिम - पूयाई || २४१२ || घेत्तूण सव्व-विरइं गुरु-पाय- मूले,
काऊण तिव्व-तवमंग- सुहाणंवेक्खं । पत्ताइं दोन्नि वि दिवं च सिवं च पच्छा,
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निच्छिन्न- कम्म - दढ - संकल- बंधणाई || २४१३ ||
जीववहालिय-परधणहरण- नियत्तो वि मेहुणासत्तो । सत्तो वियाणियव्वो समत्त पावासवाचत्तो ||२४१४||
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अगणिय - कज्जाऽकज्जा निरग्गला गलिय- उभय- लोय-भया । मेहुण- प्रसत्त-चित्ता कं पावं जं न कुव्वंति || २४१५|| आवायमित्त - महुयर परिणामे दिन्न - तिक्ख- दुक्खभरा । को सेवए सकन्नी किंपाग फलं व विसय- सुहं ? || २४१६|| संदत्तं दोहग्गं इंदियच्छेयं सरीर-बल- हाणि ।
दुग्गइ - गइं च जीवा पावंति अबंभचेरेण || २४१७ ||
जो महिला संगेणं नियत्तिउं वंछए विसय-तण्हं । घय-भोयणेण अहिलसइ पसमिउं सो अजिन्न जरं ॥ २४१८|| जो सव्व-रमणि - परिहार- अक्खमो चयइ पर कलत्तं पि । पावइ उभय-भवेसुं सो रणसूरो" व्व कल्लाणं || २४१९|| तहाहि
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सुमइनाह-चरियं
३५७ [४. शीले रणवीर-कथा) अत्थि इह जंबुद्दीवे भारहवासम्मि मज्झिमे खंडे । अमरपुरं नामेणं नयरं नय-रंजिय-जणोहं ||२४२०।। सुरभवण-पइहिय-पउमराय-कलसुल्लसंत-किरणेहिं । पयडइ गयणंगण-पायवस्स जं पल्लव-विलासं ||२४२१|| तत्थ परिपंथि-पत्थिव-पयाव-दव-जलण-पसम-जलवाहो । पुरपरिह-दीहबाहो रणपालो नाम नरनाहो ||२४२२।। जस्स कर-मंडणं मंडलग्गमवलोईङ पि न खमंति । सूरस्स व गरुय-भयाउलाई रिउ-कोसिय-कुलाइं ||२४२३।। तस्सत्थि धीरसोहार देवी देवंगण व्व वर-रूवा । नवरं विलास-लालस-लोयण-पंकय-कयाणंदा ||२४२४|| पुव्व-भवज्जिय-सुकयाणुरूव-वर-विसय-सेवणपराण ताणं तणओ जाओ रणवीरो नाम विक्खाओ ||२४२५।। सो मयण-सरिस-रूवो सयल-कला-कुलहरं विणय-पवरो । सूरो चाई दक्खो दक्खिन्ननिहीं थिरो गहिरो ||२४२६।। नवरं जूय-व्वसणेण दूसिओ तस्स गुण-गणो सव्वो । ससिणो व्व कलंकेणं खारत्तेणं जलहिणो व्व ||२४२७।। अगणिय-गुरु अणलज्जो अकलिय-निदा-छुहा-तिसा-दुक्खो । जूय-रय-परिक्खित्तो निच्चं चिय रमइ सो जूयं ॥२४२८।। अन्न-दियहम्मि रल्ला भणिओ सो वच्छ ! बुद्धिमंतेण । जुत्ताजुत्त-वियारणपरेण पुरिसेण होयव्वं ॥२४२१।। तुज्डा गुण-रयण-निहिणो निहीण-जण-सेवियं इमं जूयं । न हु सहइ असुइ-असणं हंसरस व वायसायरियं ॥२४३०।। जं कुल-कलंक-बीयं गुरु-लज्जा-सच्च-सोय-पडिणीयं । धम्मत्थ-काम-चुक्कं दाण-दया-भोय-परिमुक्तुं ||२४३१।। पिय-माय-भाय-सुय-भज्ज-मोसणं सोसणं सुह-गुणाणं । सुगइ-पडिववखभूयं ते जूयं पुत्त ! परिहरसु ||२४३२।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरहयं तह वि रणवीर-कुमरो कुणइ निवित्तिं न जूय-वसणाओ । उवएसेण वि पायं नराण दुपरिच्चया पयई ॥२४३३।। ता जूय-वसण-अणियत्त-माणसं पेच्छिऊण तं कुमरं ।
जूय-पडिसेह-पडहो नयरम्मि दवाविओ रन्ना ||२४३४||
अहिमाण-धणत्तणेण इमं पि पराभवं मनं तो खग्ग-सहाओ विणिग्गओ नयराओ कुमारो । परिभमंतेण तेण दिहा एगत्थ-मग्गे तक्वरेहिं विद्दविज्जंता दुवे मुणिणो । निक्कारण-करुणा-कलिय-मणेण'अरे ! उभय-लोय-विरुद्धं किमेयमारब्द्धं ?'ति भणंतेण हक्विया तक्करा | कयं युद्धं । पुरिसक्लार-प्पहाणयाए एक्वेणावि केसरणिा करिणो व्व तक्करा नासिया सव्वे कु मारेण । नीया खेमेण वसिमं मुणिणो । भणियमणेहिं -भद्द ! भवया निय-जीविय-निरवेक्खेण रक्खिया अम्हे ता महासत्तो तुमं । इमिणा सच्चरिएण भविस्ससि भायणं सयल-संपयाणं । अओ किं पि पत्थेमो । तेण भणियं-आइसह भयवं !। मुणीहिं वुत्तंपंचण्हं पाणिवहाईणं पावासवाणं निवितिं करेस । कूमारेण वृत्तं-भयवं ! गुरुकम्मो हं । न क्खमो सव्वेसिं पि निवित्तिं काउं । एक्वं पुण" परिस्थि-वज्जणं जावज्जीवं करिस्सं । मुणीहिं वुत्तं-'भद्द ! इमं चेव दुक्करं कायर-नराणं, कारणं सयल-कल्लाणाणं, निवारणं वसण-सयाणं, निबंधणं सग्गापवग्ग-सुह-संपयाणं ।
कमलाण सरं रयणाण रोहणं तारयाण जह गयणं ।
पररमणि-वज्जणं तह गुणाण जंपति जम्म-पयं ॥२४३५।।
ता इमं कुणंतेण तए कयं चेव सव्वं । पालेज्जसु सम्ममेयं' ति अणुसासिऊण गया अन्नत्थ साहुणो । कुमारो वि पत्तो कोसलाविसयभूसणं सिरिउरं नयरं ।
जं गणयग्ग-विलग्गं विलंघिउ पविखणो वि न खमंति । लंधिज्जइ पायारो सो तस्स कहं विवक्खेहिं ||२४३६||
तत्थ महसेणो राया । कुमारो वि पयहो पुव्वब्भासेण जूय-वसणे तहवि असंपज्जंत-धणो एगवीस-कणय-कोडीण सामिणो सिरिपुंजसेहिणो गिहे खणिऊण खत्तं पविहो निसीहे । जाव पईवहत्थाए घरिणीए दिण्ण-ववहार-लेक्खयं निरिक्खंतो पुत्तस्स पासे दिहो सेट्ठी । पुणो पुणो
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सुमहनाह-चरियं गणंतस्स वि पुत्तस्स न पुज्जए विसोपओ तओ कुविओ सेही । गहिय चम्मलही पुट्ठी हओ पुत्तस्स । चिंतियं रणरिण-अहो ! लोहंधबुद्धिणो वणिणो धण-कज्जे पुत्तं पि हणंति । ता
आजानु-लंबित-मलीमस-हाटकानां, __ मित्रादपि प्रथम-याचित-भाटकानाम् । पुत्रादपि प्रियतमैकवराटकानां,
___ मुष्णाति कः किल धनानि किराटकानाम् ? ||२४३७।। तओ गओ तन्नयर-तिलयभूयाए पभूय-धण-सामिणीए लीलावईए वेसाए भवणं । दिहा सा दीवुज्जोएण गलंत-पूयप्पवाह-विहियमच्छिया-जाल-तुहिणा कुहिणा सह पसुत्ता | चिंतियं चऽणेण
जा निय-तणूं पि तणमिव धणलुद्धा निग्गुणं गणइ गणिया । तन्नो विहीणसत्तो सत्तो किं कोवि होइ जए ? ||२४३८।। जा निय-तण-निरवेक्खा लुद्धमणा कुट्ठिणा वि सह सुवइ । वेसाइ तीइ नूणं धणहरणे फुट्टिही हिययं ॥२४३१।। तओ निग्गओ कुमारो | पहाया रयणी । गंतूण संबुज्जाणं गहिया गोहा । पुच्छे बंधिऊण वरत्तं रत्तीए खित्ता रायमंदिरोवरि । विलग्गा सा वलहियाए । वरत्ताए लग्गिऊण चडिओ गवक्खेण जाव तत्थ, ता तदुवरि पसुत्तस्स रलो अन्नासत्ता उत्तिन्ना वसंतसेणा महादेवी । वेईया रन्ना । तओ पेच्छामि ताव किं करेइ एस ? त्ति उवउत्तो राया । दिहो देवीए नियदेहाभरण-रयणालोएण लोयणाणंद-जणणो रायपुत्तो । को एसो दिव्वागिइ ? ति अणरत्ता एयम्मेि | दिहा एसा रायपुत्तेण | भणियं च णाए-को तुम ? ति । तेण भणियं-जो एयाए वेलाए परघरं पविसइ । महादेवीए चिंतियं-चोरो एसो विसिहो य, तो अलं मज्झ अवरेण । वरं एसो चेव रामिओ त्ति । पेसिया साहिलासा दिहि-दूई । भणिया कुमारेणका तुमं ? ति । तीए भणियं-रनो पत्ती वसंतसेणा महादेवि त्ति । संविग्गो कुमारो । भणियं चऽणेण-माया मम तुमं । तीए भणियंकेण कज्जेण ? ईयरेण वुत्तं-परकलत्ताओ विरओ अहं, किं पुण रनो महादेवीए ? । तीए भणियं-किमेवं धम्मिट्ठो चोरियं करेसि ? । इयरेण वुतं-विचित्ता कम्म-परिणई । तीए भणियं-अलं इमिणा उत्तरेण । सव्वहा पडिवज्जसु ममं । अन्नहा न तुमं ईओ खेमेण वच्चसि । इयरेण
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
वुत्तं - अंगीकयमिणं, किमन्नहा एयाए वेलाए परघरे पविसीयइ ? |
इच्चाइणा वइअरेण निरागरिया महादेवी । सुयमिणं सव्वं रन्ना । अणविक्खिऊण आयइं अक्कंदियं महादेवीए । सकलयलं उद्विया पाहरिया । रन्ना उवरिं ठाऊण भणियं भो ! भो ! अविणासेण चोरं गिण्हह । भणिओ पाहरिगेहिं कुमारो भो ! अविणासगा अम्हे तुज्झ, तो - आउहं । कुमारेण भणियं-न मुंचामि । किंतु अपहरंतो अनासंतो य तुब्भेहिं समं चिट्ठामि । तेहिं भणियं एवं होउं । पहाया स्यणी । उग्गओ गयणमणी । काऊण गोसकिच्चं ठिओ राया अत्थाईयाए । सद्दाविओ चोरो । आगओ सो । दिट्ठो रन्ना । अहो ! उदारो त्ति चिंतियमणेण । एरिसो वि चोरियं करेइ त्ति जंपियं मंति- पमुहेहिं । रन्ना वुत्तं-भो ओसरह तुभे । अहमेयं किंचि पुच्छामि । ओसरिओ लोओ । सुहासणत्थो भणिओ कुमारो रन्ना - भो ! को तुमं ? ति । तेण वुत्तं कम्मओ चेव अवगए किं पुणरुत्त- पुच्छाए ? । रन्ना भणियं परोप्पर विरुद्धं ते चरियं ति पुच्छामि । कुमारेण चिंतियं - 'नूणं विन्नाओ रन्ना रयणि वृत्तंतो, ता एवमुल्लवइ । गुरुत्थाणिओ य एसो, अओ जहद्वियमेव साहेमि' त्ति चिंतिऊण मग्गिऊण य देवीए अभयं साहिओ सव्वो वि निय-वुत्तंतो तुडेण रन्ना पुत्ती ति पडिवन्नी कुमारो । दिन्नो से महाविसओ । कया करि तुरय-रह- पाइक - सामग्गी । जाओ सयल जण सम्मओ । चिंतियमणेण
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सयल-जय-वच्छलेहिं गुरुहिं करुणापरेहिं तेहिं अहं । जं पर कलत्त - नियमं कराविओ तस्स फलमेयं ॥ २४४०॥ इह लोयमित्त - सुहया चिंतामणि- कामधेणु - कप्पदुमा | उभय-भव - सुहकरेहिं गुरूहिं कह हुंतु सारिच्छा ||२४४१ || जाण गुरु-वयण-मंतक्खराइं हियए सयावि निवसति । पररमणि- रक्खसीहिं ते वि य न नरा छलिज्जंति ॥२४४२|| इय चिंतिऊण जइजण पयपंकय-सेवणुज्जओ जाओ । पडिवज्जइ सम्मत्तं कमेण रणवीर-वर कुमरो ॥२४४३ ! |
अन्नया सामंत- सेणावइ - पमुह सुहड - कोडि-संकिन्नाए सहाए निसन्नस्स रन्नो महसेणस्स बालमित्तो बंधुदत्तो सेट्ठी समागओ । पणामिय- पाहुडो पणमिऊण रायाणं निविट्ठो उचियासणे । पुट्ठो रन्ना
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सुमइनाह-चरियं
३६१ सेहि ! सागयं ते । । सेहिणा वुत्तं-देवपायाणं पसाएण । रन्ना वुत्तं-किं चिराओ दिहो सि ? । तेण वुत्तं-संववहारेण समुद्द-परतीरं पत्तोम्हि । पूणो वि पुच्छिओ कोऊहलाउलिय-माणसेण रन्ना-सिहि ! दिहं तए किंचि कहिं चि अच्चब्भुयं ? | तेण भणियं-देव ! सुयमेगं न उण दिडं । रना भणियं-किं सुयं ? । तेण भणियं-न चएमि कहिउं । रन्ना भणियंसुयं न कहिउं तीरइ ति कारणेण होयव्वं । तेण वुत्तं-देव ! एवं ति । रना वुत्तं-वीसत्थो होऊण साह । अलं आसंकाए । अप्पाण तुल्लों मम तुमं । तेण भणियं-देव ! जइ एवं ता सुण,
रयणीए वहंते जाणवत्ते कज्जओ अवगच्छामि-कहिं चि दीवे सुओ अच्चंत मणहरो सद्दो 'किं करेमि ? अमणुस्सा पुहई' त्ति, सुणमाणस्स मे वेगेण वोलियं जाणवत्तं । ता देव ! पुहईवयम्मि 'अमणुस्सा पुहइ'त्ति अच्चब्भुयं ति । इमं च सोच्चा ससोयं नीससियं रखना । पलोइया समंतओ सामंत-सेणावइ-पमुहा सुहडा | अविसओ एस अम्हं ति न किंपि जंपियमिमेहिं । नाइदूरोवविहो उहिओ रणवीर-कुमारो | भणियमणेणदेव ! देहि आणतिं जेण दंसेमि देव ! तत्थ मणुस्सं ति । रन्ना वुत्तं-साहु वच्छ ! साहु । एवं करेहि ति दिन्नं निय-गलग्गमाभरणं | महा पसाओ ति भणंतो पणमिऊण उडिओ रणवीर-कुमरो । पुच्छि ओ अणेण बंधुदत्तो-कत्थ सो तए सुओ ? त्ति साहिओ अणेण समुद्देसो । साहसपहाणयाए निग्गओ खग्ग-सहाओ रणवीरो । कमेण पत्तो समुद्दतीरं । दिहो तत्थ रयणकूडो पव्वओ ।।
किं कल्लोल-भूयाहिं बाहिं रयणायरेण पक्खिविउं । रइयाइं रयण-कूडाइं तेहिं एसो रयणकूडो ? ||२४४४|| किं च तरंग-करेहिं इमस्स रयणाई रयणकूडस्स । अणवरयं गेण्हंतो जलही रयणायरो जाओ ? ||२४४५।। इय चिंतंतो चित्ते कुमरो दिवसावसाण-समयम्मि । आलिंगिय गयणसिरि आरूढो रयणकूड-गिरिं ||२४४६।। कुमरेण तत्थ दिहं घण-कंचण-खंभ-पंति-दिप्पंतं । रयणमय-कुहिम-तलं फलिह-सिला-संघ-संघडियं ॥२४४७।। पन्नत्ति-देवयाए आययणं गयण-मग्ग-संलग्गं । इंतेहिं जंतेहिं जणेहिं दुस्संचरं निच्चं ॥२४४८।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं खयर-नरनाह-मंडलिय-मंति-सामंत-सेहि-पमुह-जणा । पन्नत्ति-देवयं पूईऊण सेवंति सकलत्ता ||२४४१।। सोहग्गं आरोग्गं रज्जं विज्जं तणुब्भवं विभवं । अन्नं पि वंछियत्थं तुट्ठा सा देइ तेसिं पि ।।२४५०।। तत्थ भवणे पविठ्ठो कुऊहलाउलिय-लोयणो कुमरो ।
पन्नत्ति-देवयं पणमिऊण खणमेक्वमुवविहो ||२४५१।। रयणि त्ति कयावस्सगो पसुत्तो तत्थेव । अइक्वंता रयणी । उहिओ एसो । कयं गोसकिच्चं । निज्झाइया दिसि-पहा । दिहा पुव्व-दिसाए धूली । थेव-वेलाए महंतं आस-साहणं । तं मज्झे आस-विमाणं । तत्थ तह-कुरंग-लोयणा कन्नगा समागया देवयायणं । अवयरिऊण विमाणाओ गया पन्नत्ति-देवया-समीवं । वंदिऊण पन्नत्तिं ठिया कंचि कालं । दिहोऽणाए रुवेण अमरो व्व कुमारो । मिलिया दोण्हं पि परोप्परं दिही । न बुल्लाविओ इमीए । ससिणेह त्ति वियाणिया कुमरेण । मज्जिऊण विभूईए पूइया कन्नगाए पन्नत्ती । वित्थरिओ पुरओ विविहफल-नेवज्ज-बंधुरो बली । विहियं दुवेहिं पि भोयणं । एवं नीसेसं दिवसावस्सयं कयमेएहिं, केवलं असंभासेण परोप्परं जाव रयणीए अत्थुयं सयणेज्जं ननु वज्जइ एसा । घुम्मति से निदाए लोयणाई । - एत्थंतरे भणियं रणवीरण-भणामि किं च निल्लज्जयाए अहं । को पुण तुम्ह महाणुभावाण वि एस एरिसो वुत्तंतो ? | नीससियं, न जंपियं इमीए। कुमारेण वुत्तं-कहियमिणं तुमए अहं पुण अत्थं नावगच्छामि । तीए भणियं-केरिसी परायत्ताण महाणुभावया ? | कुमारेण भणियं-कहं परायत्तं त्ति नावगच्छामि । कन्नगा कुमारमालोइऊण रोविउमारद्धा । समासासिया सहीए । भणियं अणाए-महाभाग ! सुण इमीए" वुत्तंतं ।
गंगा-जउणा-जोगं नीले गयणम्मि धवल-किरणेहिं । "उवसंसिउं वियतो वेयहो नाम अत्थि गिरी ॥२४५२|| तत्थत्थि सुवित्थिन्नं सुवन्न-पायार-पवर-पेरंतं । नह-लच्छी-लीला-२"नेउरं व लीलापुरं नयरं ॥२४५३।। तम्मि नमंत-निरंतर-विज्जाहर-मउलि-मिलिय-पयकमलो | जयसिरि-लीलानिलओ लीलाचिंधो ति नरनाहो ||२४५४||
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संतला कारणं । बाह-जल्हा मए एसा विद्वाण
सुमइनाह-चरियं
तस्स धूया एसा लीलावई कनगा य । इमीए जेह-बहिणी लीलादेवी । सा य परिणीया लच्छिपुर-सामिणा किसोर-विज्जाहरेण । सो पणहो वज्जिय-लज्जो विज्जाहर-समरे । उवहसिओ सेस-विज्जाहरभडेहिं । लजिया इमीए भगिणी लीलादेवी । तं पिच्छिऊण चिंतियं इमीए- ममावि एरिसो भत्ता न होइ तहा करेमि त्ति । तायं पुच्छिऊण आगया एत्थ । आराहिया अणाए पन्नत्ती देवया । जाया वराभिमुही । मग्गिया इमीए- भयवइ ! मा मज्झ अमणुस्सो भत्ता होज्ज । पडिसुयं देवयाए, भणियं च- वच्छे । रणवीरो ते भत्ता भविस्सइ, किंतु अत्थि तुहाभिओगिय-कम्म-सेसं । तदएण छम्मासं ते किलेसो होही । तओ न तए संतप्पियव्वं, जओ तं किलेसं सो चेव ते भत्ता पणासिस्सइ । एयं सोऊण पहहा वि दूमिया एसा | गया स-नगरं । ठिया कंचि कालं ।
अन्नया अरुणोदए दिहा मए एसा विद्दाण-वयण-कमला | पत्थावे पुच्छिया कारणं । बाह-जल-भरिय-लोयणाए साहियं अणाए- सहिं ! वसंतलीले ! अज्ज सुविणए चिय केणावि महा-विगरालेण नीयाऽहं समुद्दतीरं । दिहो य तत्थेगो मए कावालिगो । भणिया अहं तेण-सुंदरि ! अहं आयाससिद्धी नाम "महावयग-चूडामणी । साहिओ मए कन्नारयणाकरिसगो दिव्व-मंतो | तेण सव्वुत्तम त्ति आणिया तुमं । ता पसयच्छि ! पसायं काउं पडिवज्ज मं गुरुसिणेहं | भुंजसु मणहरे भोए । तिजयस्स वि सामिणी होसु । मए भणियं-महावयगस्स विरुद्धमेयं । तेण भणियं- किं तुह इमीए चिंताए ? | विरुद्धमविरुद्ध वा अहं चेव जाणामि । एवं भणमाणो वि न इच्छि ओ सो मए । तेण गहिया कत्तिगा । धाविओ मम सम्मुहं । मए भणियं-अमणुस्सा पुहइ त्ति । अन्नहा कहं तुममेवं ववहरसि ? । तओ ‘अधन्ना तुमं जा अच्चंताणुरत्तं ममं एवं अवहरिसि । तहा वि न "मिल्ले मि एत्थाणुबंधं, छम्मासे हिं आगरिसियव्वा मए तुमं'ति भणमाणेण मोहिया अहं अणेण । थेव वेलाए दिहो एत्थ अप्पा, निरूजा य जाया । ता तक्वेमि तं एयं भयवईवागरणं । एयमित्थ कारणं । एवं कहिऊण विसन्ना एसा । मए चितियंअवितहो पन्नत्ति-देवयाएसो । न अन्नहा काउं तीरइ । ता एत्थ इमं पत्तयालं देवयाए चेव समीवे चिट्ठम्ह जेण तप्पभावेण वोलेइ उवसग्गो ।
तओ अम्हे इहा गया । जाव इहावि सो चे व वुत्तं तो ।
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३६४
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं आगरिसिज्जइ एसा पइदिणं ति । एएण कारणेणं जंपियमिमीएकेरिसी परायत्ताए महाणुभावय त्ति । एयं सोऊण हरिसिओ रणवीरो । भणियं अणेण- मा उन्वेयं उव्वहसु । नेह ममं तत्थ जेण तस्स दुरप्पणो दंसेमि दुन्विलसिय-फलं ति । तीए भणियं- अत्थि एयं, किंतु विसमो एस कावालिगो । रणवरिण भणियं- अलं तस्स विसमत्तणेण | नेह ममं तहिं ति । तीए चिंतियं- सो चेव एसो रणवीरो भविस्सइ । अभिरमइ सामिणीए इमम्मि दिही । उदार-धीरो एसो । पुन्ना य पायेण छम्मासा | ता जुत्तमेयं ति चिंतिऊण जंपियं इमीए- एवं करेम्ह । परितुद्दो रणवीरो । आगओ मंताहवण-समओ | चलियाओ विज्जाहरीओ | नीओ ताहिं रणवीरो | मुक्को एक्क-पासे । आढत्तो कावालिगेण पुव्व-वइअरो । पुव्वं व जंपियं इमीए-'अमणुस्सा पुहइ' त्ति । एवं सोऊण उढिओ रणवीरो । भणियमणेण- कहं देवे चंडमहासेणम्मि पहवंते अमणुस्सा पुहइ ? त्ति ।
रणवीर-कुमारेण पुण वि वुत्तु, कावालिगु कवडनिहाणु धुत्तु । चिरकालु करेविणु बहु अकज्जु, रणकारणि संपइ होहि सज्जु ॥२४५५।। कावालिगु निसुणिवि कुमर-वयणु, ठिउ सम्मुहु रोसारुणिय-नयणु । तडि-तेय-तरल-कत्तिय-करालु, सो कुमरिण दिहउ नाइ कालु ॥२४५६।। ता कुमरु वि मेल्लइ खग्ग-दंडु, करि धरिवि छुरिय दुक्कउ पयंडु ।। जे सत्त-गुणुत्तम-नर हवंति, असमाण-जुज्झु ते न हि करंति ।।२४५७।। वग्गंति दोवि हक्वंति दोवि, पहरंति दोवि वंचंति दोवि। ओहटिवि वेगिण मिलहिं बे वि, उप्पइवि नहंगणि पडहिं बे वि ।।२४५८।। कुमारेण निवाडिओ तो कमेण, कावालिगु उक्वड-विक्कमेण । पावेण पडणु धम्मिण जइत्तु, जं वयणु एउ सव्वओ पवित्तु ।।२४५१।। सुर-सिद्ध-खयर तो जायतुहि, कुमरोवरि मेल्लहिं कुसुम-वुहि । गयणंगणि जयजयकारु कुणहिं, रणवीर-कुमर-सच्चरिउ "थुणहि ।।२४६०।। कावालिगु पच्छायाव-सहिओ, कुमरं पइ जंपइ कोव-रहिओ । अहिलसिय एह जं तुह कलत्तु, तसु पावह फल मई एउ पत्तु ॥२४६१।।
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सुमइनाह - चरियं
हउं पाव-पसत्तु चरित्त - चुक्कु, परिचत्त - लज्जु मज्जाय-मुक्कु । पडिवन्न-वउ वि जो वय-निरासु,
इणपरि करेमि महिलाहिला
||२४६२||
ते धन्न सलक्खण सत्तवंत, सच्चरिय जगुत्तम कित्तिमंत । परदार पलोइवि जाहं चित्तु न वियारलवु वि पावइ पवित्तु || २४६३ || इय पयडिय पाइण पच्छायाविण वागरमाणु महावइओ । रणवीर- कुमारिण विक्कमसारिण कोमल वयणिहिं संठविओ || २४६४||
भद्द ! न तए संतप्पियव्वं, जओ दुज्जओ मयरद्धओ, उद्दामो इंदियग्गामो, वियारोव्वणं जोव्वणं, वामो कम्म परिणामो । इमाई पडिवन्न-वयं पि विडंबंति पुरिसं, कारविंति मज्जाया- लंघणं, लहाविंति पइट्ठा - भंसं । तथाहि
प्रजापतिः स्वां दुहितरम कामयत् ॥
अज्न वि तुमं जोग्गो जो संपयं पि संपन्न - पच्छायावो पावकारिणं अप्पाणं निंदसि ।
जे अवगय- परमत्था सयमेव समायरंति नाSकिच्चं । ते पुरिसा कित्तिज्जति उत्तमा कित्ति कुलभवणं ||२४५५|| जे वसण- दंसणाओ परोवएसं च पाविऊण नरा । विरमंति अकज्जाओ गिज्जंती उत्तमा ते वि || २४५६ || वसणं संपत्ता विहु वारिज्जंता वि सेस लोएण | कुव्वंति जे अकिच्चं पुरिसा वुच्चंति ते अहमा ||२४६७ ||
३६५
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कावालिगो वि कुमार चरिय- चमक्किय-चित्तो कुमारस्स गयणगामिणिं विज्जं दाऊण गओ सिरिपव्वयं । कुमारो साहिऊण विज्जं विईय- वुत्तंतेण लीलाचिंध - विज्जाहर - नरिंदेण दिन्नं गहिऊण लीलावई विमाणारूढी समागओ सिरिउरं । साहिओ सव्वो वि वइयरो चंडमहासेणस्स । हरिसिओ राया । सद्दाविओ णेण बंधुदत्तो, भणिओ यमिलइ एस सहो ? ति । तेण वुत्तं देव ! एवमेयं । अवगयं रन्नो 'रणवीरं विणा न अन्नो मणुस्सो त्ति' । कओ महंतो पसाओ इमस्स । भुंजए एसो उदार - भोए लीलावईए समं । पसरिओ लोगवाओ
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३६६
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं "भोग्गं जं जस्स लोयम्मि अदिद्वं वस्सओ भवे । नियमा भुंजइ तं सो अन्नदीवुब्भवं पि हु ।।२४६८।। अह अन्नया निसाए पच्छिम-जामम्मि सुत्त-पडिबुद्धो । चिंतइ चित्तम्मि इमं चंडमहासेण-नरनाहो ||२४६१।। करि-तुरय-रह-समिद्धं नमंत-सामंत-लीढ-पयवीढं । संपत्त-वंछियत्थं जं परिपालेमि रज्जमहं ||२४७०।। जय जीव देव सामि त्ति जंपिरा पहरण-प्पहाणकरा । मणुयत्तणे वि तुल्ले अवरे विरयंति मह सेवं ||२४७१।। तं पुव्व-भवे सुकयं कयं मए किंपि ता न तं जाव । विलयं वच्चइ सयलं पुणो वि अज्जेमि ताव नवं ।।२४७२।। अत्थेण जह विढप्पइ अत्थो धिप्पंति जह गएहिं गया ।
अज्जिज्जइ तह सुकयं सुकएण चिरंतणेण नवं ॥२४७३।।
एवं चिंतंतस्स रल्लो पहाया रयणी । समुग्गओ कमलायर-विबोहविहियायरो दिवायरो | उज्जाणवालेणाऽऽगंतूण विन्नत्तो राया- देव ! उज्जाणे समागओ गंभीर-देसणा-गज्जि-मणहरो जलहरो व्व गुणहरो नाम "गणहरो । गओ राया तव्वंदणत्थं । वंदिऊण तं निसन्नो पुरओ । पारद्धा गुरुणा धम्मदेसणा
लढूण माणुसत्तं विसयासत्तो न जो कुणइ धम्मं । रोहण-गओ वि रयणं मोत्तुं सो गेहए उवलं ।।२४७४।। तो संविग्ग-मणेणं रन्ना नमिऊण जंपियं-भयवं ! । पव्वज्जा-गहणेणं सहलं मणुयत्तणं काहं ।।२४७५।।
गुरुणा वुत्तं- मा पडिबंधं करेह त्ति । गंतूण गिहं नत्थि अन्नो पुत्तो त्ति ठविऊण रज्जे रणवीरं पवनो दिक्खं । रणवीरो य सयल-भूवालपणय-पय-पंकओ कय-जिणिंद-धम्मप्पभावणो पालए रज्जं । कयाई तम्मि नयरे पयर्ट महंतं पलीवणं । न नियत्तए कहं पि । आउलीभूओ पउर-जणो । तओ जइ न मए परकलत्तं कामियं ता उवसम भयवं जलण !, न अन्नह त्ति सविऊण सित्तं तहिं सलिलं चुल्लएहिं तं रणवीर-नरिदेण | उवसंतं तक्खणा चेव । अन्नया जायं दारुणं असिवं । तं पि पुव्वुत्त-सवह-साविय-सलिलाभिसेएण नयरस्स उवसामियं । पत्ता
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सुमइनाह-चरियं परदार-सहोदरो त्ति कित्ती "रला । सुरा वि किंकरत्तं कुणंति त्ति जाओ एयरस गरुओ जणाणुराओ | .
एगया गयकंधराधिरूढेण रन्ना दिहा रायमग्गे संचरंता चोर-भयविमोइया मुणिणो । पच्चभिजाणिऊण वंदिया सविणयं । ताण अणुमग्ग-लग्गो गओ वसहिं । निसन्नो पुरओ, भणिउं पवत्तो यभयवं ! अवितह-वयणा तुब्भे | तुब्भेहिं 'भविस्ससि सयल-संपयाभायणं'ति जं आइहं तं तह त्ति जायं । जं च परकलत्त-नियम काराविओ अहं, तस्स दिहं विसिहं फलं इहावि मए | मुणीहिं वुत्तं- महाराय
तियस-कय-सन्निहाणं सुर-नर-सिवसोक्खं-अक्खय-निहाणं । दुग्गइ-दार-पिहाणं सीलं सयल-व्वय-पहाणं ||२४७६।। विप्फूरइ पहावो ताव इत्तिओ देसओ वि सीलस्स | जं सव्वओ वि सीलं माहप्पं तस्स किं भणिमो ? ||२४७७|| वेरग्गोवगएणं भणियं रन्ना विवज्जिउं रज्जं । संपइ तुम्ह समीवे पडिवज्जे सव्वओ सीलं ।।२४७८|| तो लीलावइ-पुत्तं रणसेणं ठाविऊण रज्जम्मि । विहिपुव्वं पडिवन्नो चरणं रणवीर-नरनाहो ||२४७१|| सुत्तत्थ-पढण-निरओ तवच्चरण-करण-उज्जुत्तो । अण्हाण-केसलुंचण-भूसयण-किले सिय-सरीरो ||२४८०।। तह वि हु लायन्नं वहइ किंपि न कित्तिमं महासत्तो । रेणुकण-गुंडियं पि हु कणगं किं झामलं होइ ? ||२४८१।। गाम-नगरागराइसु रणवीर-महारिसी विहरमाणो । अणुराय-परवसाहिं पत्थिज्जइ पंकयच्छीहिं ॥२४८२।। तह वि न पावइ खोहं गुणाइरित्ताओ निय-चरित्ताओ । मेरु व्व सठाणाओ समीर-लहरीहिं हम्मंतो ।।२४८३।। इय अकलंकं सीलं सुइरं परिपालिऊण रणवीरो । संलेहण-दुग-पुव्वं पज्जंते अणसणं काउं ||२४८४|| मरिऊण समाहिपरो पाणयकप्पम्मि सुरवरो जाओ । तत्तो चओ समाणो कमेण मोक्खं च संपत्तो ॥२४८५।।
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जो मेहुण - विणिवित्तिं काउं कम्मं समीहए पुरिसो । नरय-पवेस- दुवारं परिग्गहो तेण मुत्तव्वो || २४८६|| रमणीयणम्मि रागं विणा न संभवइ मेहुणं जम्हा । मुच्छा-ममत्त-राया परिग्गहस्सेव पज्जाया ||२४८७ || जं च परिग्गह- निग्गह-भणणेणं मेहुणं पि पडिसिद्धं । चाउज्जामो धम्मो तेणं चिय कारणेण भवे || २४८८ ||
दुक्ख - विसरुक्ख - मूलं जत्ती मणुओ महंतमारंभं । कुणइ असंतुहमणो परिग्गहं तं परिच्चयह || २४८९ || देव - गुरु- धम्म-तत्तं कज्जाकज्जं हियाहियं सम्मं । चेयन्न - सुन्न - चित्ता न मुणंति परिग्गह-ग्गहिला ||२४१०|| सारीरियाई दुखाइं जाई जाई च मण - समुत्थाइं । सव्वाण ताण हेउं परिग्गहं बिंति तित्थयरा ||२४९१ ।। जह जह वड्डुइ बाहिं परिग्गहो मोह - बहुल-हिययस्स । तह तह नरस्स अंतो वुद्धिं पावेइ पावभरो || २४१२ || जीवो भवे अपारे गरुय परिग्गह-भरेण अक्कंतो । दुह-लहरि - परिक्खित्तो बुड्डइ पोओ व्व जलहिम्मि ||२४९३ || धम्माराम - खयं खमा- कमलिणी-संघाय - निग्घायणं, मज्जाया- तडिपाडणं सुह-मणोहंसस्स निव्वासणं । वुद्धिं लोह - महन्नवरस खणणं सत्ताणुकंपा - भुवो, संपाडेइ परिग्गही गिरि-नई- पूरो व्व वडुंतओ ||२४९४|| जो गरुयारंभकरं परिग्गहं परिहरेइ संतुहो । सो होइ सयल - कल्लाण-भायणं देवदत्तो व्व || २४९५ ॥ तहाहि
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
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[५. परिग्रहविरतौ देवदत्त कथा]
अत्थि इह जंबुदीवे भारहखित्तम्मि कासि - विसयम्मि । वाणासि त्ति नयरी नयरिद्धि-विसिद्ध-जणकिन्ना ॥२४१६||
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सुमइनाह-चरियं
तीए नमंत-सामंत-मउलि-मणि-किरण-छुरिय-पयवीढो । जणिय-रिउरमणि-विरहो नामेणं दढरहो राया ||२४१७|| रेहंति दिसवहुओ निचियाओ जस्स जस-पयावेहिं । धवलारुणेहिं चंदण-घुसिणेहिं रंजियाओ व्व ||२४१८।। तस्स मणे मणिमय-दप्पणि व्व विमले सयावि संकंता । सीलाइ-गुणक्वंता ससिकंता नाम वर-कंता ||२४११।। तत्थऽत्थि दत्त-नामो सुवन्न-कोडीण एक्कवीसाए । सामी सम्मदिही विसिह-चरिओ पवर-सिही ।।२५००।। तस्स सुजस त्ति भज्जा निरवज्जा विप्फुरंत-गुरु-लज्जा | निम्मविय-धम्म-कज्जा गुरु-पयपंकय-नमण-सज्जा ||२५०१|| संते वि रयण-कंचण-विणिम्मिए भूसणाण पब्भारे । सा बहुमन्नइ निच्चं एक्वं चिय भूसणं सीलं ||२५०२|| पुव्वभवोवज्जिय-पवर-पुन्न-संपन्न-वंछियत्थाण । ताणं तणओ जं नत्थि तेण दम्मिज्जए हिययं ||२५०३।। आराहिया य संभवजिण-भवण-पइडिया सुय-निमित्तं । दुरियारि-देवया तेहिं तीए तुहाइ तो भणियं ॥२५०४।। होही गुण-रयण-निही सव्वुत्तम-पुन्नभायणं पुत्तो । नवरं तुम्ह भविस्सइ कित्तिय-कालं पि तश्विरहो ||२५०५।। इय देवयाए वयणं सोउं संजाय-गरुय-हरिसो वि । निय-पिययमाए सहिओ किंचि विसल्लो मणे सिट्ठी ||२५०६।।
पहाण-सुविणय-सूइओ पाउब्भूओ सुजसाए गब्भो, नवण्हं मासाणं "अद्भहमाण-राइंदियाणं पज्जंते समुप्पन्नो सयण-जणाणंदेण सह नंदणो । पारद्धं वद्धावणयं ।
वज्जति निरंतर तूर सत्थ,
वियरंति लोय तंबोल हत्थ । बज्ांति वारि तोरण पसत्थ,
दिज्जति जणह मणवंछियत्थ ।।२५०७।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सिच्चंति घरंगण पहरिसेण,
___घणसार-घुसिण-चंदणरसेण ।। दिज्जति पउर-घय-सालि-दालि,
___मयनाहि-तिलय किज्जंति भालि ||२५०८।। थणबद्ध-पघोलिर-तार-हार, पायडिय-विविह-करणंगहार । घण-कुंकुंम-कद्दमि घर-दुवारि,खुप्पंत-चलण नच्चंति नारि ।।२५० ।।
एवं मासं जाव कए वद्धावणए मास-पज्जते य पारद्धे नामकरणूसवे सयल-जण समक्खं विविह-रयणाहरण-भूसिय-सरीरा विसे सुज्जल-वेसा सुय-दंसणुक्वंठियस्स सिहिणो जाव कर-संपुडे संपाडेइ सुयं सुजसा, ताव तीए बला बाहुवल्लीओ मोडिऊण अवहडो बालओ केणावि अदिहेण | तओ सुजसा सुय-विओग-सोग-भरक्वंता परसु-निक्वत्त-चंपयलय व्व पडिया झड त्ति धरणीए । सेही वि तहाविहमसमंजसं दहुमचयंतो व्व मुच्छा-निमीलियच्छो मोहमुवगओ । बंधुजणो वि अक्वंद-सद्द-गब्भिणं पयहो तेसिं सिसिरोवयारेहिं" | कहवि लद्ध-चेयणो सेही विलविउमारद्धो । तथाहि
काऊंण बहु-किलेसे हा वच्छ ! मणोरहेहिं विविहेहिं । संपत्तो कह मए रोरेण महानिहि व्व तुमं ॥२५१०।। . केणावि अकारण-वेरिएण करुणा-विमुक्त-हियएण । मज्डा अउल्लेहिं कहं एक्लपए चेव अवहरिओ ? ||२५११।। दाऊण इमो पुत्तो मज्हा अपुत्तस्स दिव्व ! जं हरिओ । अंधस्स नयण-जुयलं काऊण तमुक्खयं तुमए ||२५१२।। हा दिव्व ! मह विलीयं किं दिलं जं तए सुयमिसेण || आरोविऊण भवणे कप्पतरु एस अवहरिओ ? ||२५१३।। जइ अवहरिउं पुणरवि हय-विहि ! तुमए विचिंतियं आसि । ता तणय-रयणमेयं पढम चिय अप्पियं कीस ? ||२५१४।। सुजसा वि कहवि संपत्त-चेयणा सोय-सिढिल-सव्वंगा । विलुलंत-कुंतलबभत्त-कुसुम-कत्थूरि महिवद्या ।।२५१५।। घण-बाह-सलिल-बिंदूहिँ निवडिरेहिं थणत्थले हारं । करयल-पहार-तुटुं अणुसंधंति व्व विलवेइ ।।२५१६।।
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सुमइनाह - चरियं
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हा चंद्रवयण ! हा कमलनयण ! हा वच्छ ! लच्छि - कुलभवण ! | हा निय-वंस - विभूसण! हा किसलय- अरुण-कर-चरण || २५१७।। खिविऊण ममं दीणं दुस्सह- सोयानलम्मि पजलंते । अगणिय जणणि- सिणेहो पुत्त ! तुमं कत्थ पत्तो सि ? || २५१८|| निल्लक्खणा अहं चिय निब्भग्ग - सिरोमणी अहं चेव । जं परिहरिऊण ममं वच्छ ! तुमं कत्थ वि गओ सि ? || २५११|| हा तणय ! जणणि वच्छल ! जीवंती लोयणेहिं एएहिं । किं तुज्झ वयण - कमलं कयाइ पुणरवि पलोइस्सं ||२५२०|| खणंतरेय गयणयल-गयाए कुलदेवयाए वुत्तं- भो भो ! किमेवं सोयमुव्वहह ? | जओ
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सयल - सुरासुरेहिं पि दुरइक्कमो कम्म- परिणामो । ता अवलं बेह धीरयं । तहा जो विसम सप्प-दहं रायसुयं वीस वरिस - पज्जंते जीवाविस्सइ, सो अम्ह नंदणी इय मणे धरह । एवं सोउं पि सोयसायरावगाढाई दो वि कालं गमंति । इओ य भद्दसालपुरे एगवीससुवन्न - कोडि - सामी भद्दो सेडी, भद्दा से भारिया । दुन्नि वि परमसावगाणि । निरवच्चो त्ति संतावमुव्वहइ सिट्ठी । भद्दाए भणिओकिमेवं संतावमुव्वहसि ? | अन्नं परिणेसु । सिहिणा भणियं - तुह अवच्चेण मे निव्वुइ । तओ तीए आराहिया कुलदेवया । तुट्ठाए तीए भणिया भद्दा - भद्दे ! नत्थि तुह गब्भ-संभवो । जइ भणसि ता अन्नं तक्खणुप्पन्नं सुयं संपाडेमि । भद्दाए भद्द - सिद्धि - सम्मए वुत्तं एवं करेसु । आणिऊण समप्पिओ देवयाए दत्त-नंदणी । गूढगब्भा मे घरिणी पसूय- त्ति भणतेण भद्देण कयं वद्धावणयं । देवया दत्तो त्ति विहियं तस्स देवदत्तो त्ति नामं । वडिओ देहोवचएणं कलाकलावेण य । अवि य, चाई भोई सदओ सूरो सरलो सहाव-गंभीरो | लायन्न - पुन्न- देहो पच्चक्खो पंचबाणो व्व || २५२१||
-
बालत्तणओ वि इमो गुरु- पयमूले पवन्न- सम्मत् । कुणइ तिकालं जिण-पडिम-पूयणं सेवए मुणिणो || २५२२|| निसुणइ पवयण सारं धण-बीयं ववइ सत्त - 1 - खित्तीए । साहम्मिएस रज्जइ विहल - जणुद्धरणमायरइ || २५२३||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरहयं अह अन्नया पयट्टो महु-समओ जणिय-तरुण-जण-पमओ । नच्चंत-लय-निवहो व्व पवण-चल-किसलय-करेहिं ॥२५२४।। सहयार-मंजरीओ सहति परिभमिर-भमर-सहियाओ । मयणानल-जालाओ व्व जम्मि पसरंत-धूमाओ ||२५२५।। उत्तर-दिसा-पसत्तं सूरं दहण खेय-विहुराए । दाहिण-दिसाइ पसरइ नीसासो इव मलय-पवणो ||२५२६।। उद्दाम-काम-परवस-माणिणि-माणप्पवास-पडहो व्व । सहयार-काणणेसुं वियंभिओ परहुया-सद्दो ।।२५२७|| जग्गविय-जोव्वण-मओ सुव्वइ सव्वत्थ चच्चरी-सद्दो । रज्जाभिसेय-तूरं व कुसुमकोदंड-नरवइणो ॥२५२८।। एवंविहे वसंते मयण-महूसव-पलोयण-निमित्तं ।
उज्जाणे संपत्तो नयर-जणो परियण-समेओ ||२५२१।। देवदत्तो वि मित्त-विंद-परिगओ तत्थ पयट्टो विचित्त-कीलाहिं कीलिउं । कंदुग-कीलाह कीलंतेण तेण सुओ पुरओ काए" वि कन्नगाए परियणस्स हाहारवो जहा- अत्थि को वि सत्तसत्तमो सप्पुरिसो जो इमिणा दह-विज्जाहरेण निज्जमाणिं अम्ह सामिणिं रक्खेइ ? | देवदत्तेण समुप्पन्न-कारलेण कणय-कं दुगेणेव तहा पहओ मम्मप्पएसे खेयरो जहा तस्स तव्वेयणा-विहत्थरस हत्थाओ निवडिया सरोवरोवरि कन्नगा । बुडं ती बाहाए घेत्तू ण क णय-सिलायल-विउले ण निय-हियएण नवुभिन्न-थण-मणहरं तीए हिययं संपीडं तेण देवदत्तेण उत्तारिया जलाओ । परितुहो कन्नगा-परियणो । पुणो पुणो साहिलासं तीए पलोइज्जमाणो पच्चुवयार-भीरु-हियओ गओ अन्नत्थ देवदत्तो । यतः
इयमुच्चधियां विज़ुभते महती कापि कठोर-चित्तता ।
उपकृत्य भवंति निःस्पृहाः परतः प्रत्युपकारभीरवः ।।२५३०।। कन्नगा वि णीया सयणेहिं सगिहं ।
नवरं सलिलुत्तारण-समए संपत्त०- गाढ-जोगाण | हिययाण परावत्तो संजाओ ताण दोण्ह पि ||२५३१||
एगया उववणे कुसुम-सेज्जा-निसनस्स तं चेव चंद-सुंदर-मुहिकन्न गं चिंतयं तस्स वयं स - कय-क यलिदल-पवणरस देवदत्तस्स
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सुमइनाह-चरियं समीवमागया कन्नगाए पियसही पियमई । निसन्ना पुरओ भणिउं पवत्तासेद्विपुत्त ! अस्थि एत्थ एक्ववीस-सुवन्न-कोडि-सामी सामदेवो सेट्ठी । गुणसिरी से भज्जा | ताणं च अपुत्ताणं एक्वा चेव गुणमई कल्ला । दुहविज्जाहरेण हीरमाणी रक्खिया तुमए । सा य गया निय-गेहं अणवरयं दीण-मुक्क-नीसासा । कत्थ वि रइमलभंती परिचत्तासेस-वावारा रहसि मए संलत्ता- पियसहि ! संताव-कारणं किं ते ? | तीए वि कहियमेयंसहि ! मह हिययम्मि गुरु-दुक्खं ।
निय-जीविय-निरवेक्खं जं जीविय-दायगस्स गुणनिहिणो । तस्स अकयन्नुयाए पच्चुवयारो मए न कओ ||२५३२।। निय-कंठ-कंदलाओ वत्थाभरणाइं तस्स पढविउं । कीरउ पच्चुवयारो संपयमवि भइणि ! किं नहं ? ||२५३३।। तीए वुत्तं-जं मज्झ तेण सुहएण जीवियं दिन्नं । तं चेव तस्स दिज्जइ जइ तत्तो पडिकयं होइ ॥२५३४|| हसिऊण मए भणियं- पियसहि . ! तं चेव देसु किमजुत्तं ? |
तो इयरीए भणियं-दिन्नं चिय सहि ! मए एयं ||२५३५।। इमस्स अत्थस्स संवायणत्थं निय-कंठ-कंदलाओ उत्तारिऊण इमं पसरंत-कंति-कडप्प-कय-तिमिरावहारं समप्पिऊण पेसिया तुम्ह पासं ।
ता सुहय ! गुणाहारं लोउत्तर-चित्त-मणहरं हारं । हिययं व मह सहीए निय-हियय-विभूसणं कुणसु ||२५३६।। घेत्तूण देवदत्तो वि तोस-वियसंत-माणसो हारं । भुय-जुयलं व पियाए आरोवइ अप्पणो कंठे ||२५३७।। जणइ चंद-चंदण-कयलीदल-कुसुमसत्थरेहिं न । जो संतावो उवसंतो इमिणा हारेण सो नहो ।।२५३८।। अप्पेइ पियमईए कंठाभरणं सुवन्न-रयणमयं । भणइ इय निय-सहीए समप्पियव्वं इमं तुमए ।।२५३१।। कहियव्वं तह एयं जह- एस जणो दुहं गमइ दियहे ।
तुममलहंतो हंसो व्व नलिणिमुप्फुल्ल-कमल-मुहिं ||२५४०।। तओ पहिह-हियया गया पियमई । कहिऊण सव्वं गुणमईए समप्पियं कंठाभरणं । परितुहाए ठावियं कंठे इमीए । एवं अनुन्न
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पसत्थ-पयत्थ-पेसणेण पवड्डमाण-मण-पमोयाण ताण गएसु कइवयदिणेसु सामदेवेण सयं गंतूण घरं भणिओ भद्द सिट्ठी- अम्ह पुव्वं पि तुह सुयरस निय-धूयं दाउं मणं आसि | संपयं पूण खयराओ रक्खंतेण इमिणा विक्कमेण किणीया एसा । ता पडिच्छ तुमं सुयस्स जुग्गं मे धूयं । पडिच्छिया सा भद्द-सिहिणा । वत्तो वीवाहो । भुंजए भोए गुणमईए समं देवदत्तो | कयाइ जिन्नुज्जाणे गाढप्पहार-विहुरो कंठ-गय-पाणो दिहो देवदत्तेण जोगी । सत्थीकओ भणिउं पवत्तो- जोगप्पा नाम जोगीऽहं । जोगसिद्धी मे भज्जा । कायसिद्धि-निबंधणं आउवुड्डि-कारणं कालवंचणा-पवणं पवण-निरोहाईयं जोग-मग्गं गुरूवइडं अणुचिलुतो जाव चिहामि ताव मिलिओ मे जोगसारो जोगी । कया तेण मए सह कवडमित्ती । नत्थि जोगीणं अकज्जं अखज्जं अपेज्जं अगम्मं च किंचि त्ति भणंतेण कराविओ हं मज्जपाणं । ममं मज्ज-मत्तं गाढप्पहारेहि पहणिऊण मओ त्ति मुत्तूण चित्तूण मे भज्जं जोगसिद्धिं पणहो जोगसारो । देवदत्तेण वुत्तं- भद्द ! अणुचियमिणं मज्ज-पाणं । जओ
नच्चइ गायइ पहसइ पणमइ परिभमइ सुयइ वत्थम्मि । तूसइ रूसइ निक्वारणं पि मइरा-मउम्मत्तो ||२५४१|| जणणिं पि पिययमं पिययमं पि जणणिं जणो विभावंतो । मइरा-मएण मत्तो गम्मागम्मं न याणेइ ।।२५४२।। न हु अप्प-पर-विसेसं वियाणए मज्जपाण-मूढ-मणो | बहुमन्नइ अप्पाणं पहुं पि निब्भच्छए जेण ||२५४३|| वयणे पसारिए साणया वि विब्भमेण मुत्तंति । पह-पडियरस सव्वस्स दुरप्पणो मज्जमत्तस्स ॥२५४४।। धम्मत्थ-काम-विग्धं विहणिय-"मइ-कित्ति-कंति-मज्जायं । मज्जं सव्वेसिं पि हु भवणं दोसाण किं बहुणा ? ||२५४५।। जा कायसिद्धि-बुद्धी जल-गय-ससि-बिंब-गहण-वंछा सा । पच्चक्खेण सरीरे विणस्सरे दीसमाणम्मि ||२५४६।। जं कयगं तमणिच्चं ति जुत्तिओ भंगुरत्तणे सिद्धे । कायस्स थिरीकरणं सुरचाव-सिरीकरण-तुल्लं ।।२५४७।।
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सुमइनाह - चरियं
ता मोत्तूण कुबुद्धिं जीवदया सच्च पमुह-गुण-पवरे । सयल - सुह- हेउभूए जिणिंद-धम्मे महं कुणसु || २५४८|| इय सोउं पडिबुद्धो जिणिंद-धम्मं पवज्जए जोगी । बहुमन्नइ धम्म - गुरु त्ति देवदत्तं गुरु-गुणडुं || २५४१ || भणियं चजो जेण सुद्ध-धम्मम्मि ठाविओ संजएण गिहिणा वा । सो चैव तस्स भन्नइ धम्मगुरू धम्मदाणाओ ।। २५५०||
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1
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वुत्तं च जोगप्पणा - अत्थि मे दुवे पढिय-सिद्धा मंता भूय - निग्गहो विस-घायणो य । महासत्त ! सत्ताणुकंपापरो तुमं इमेहिं पि परोवयारं करिस्ससि, ता गिण्हाहि इमे । देवदत्तो वि तदुवरोहेण गिण्हइ मंते । अन्न- दिणे दिडा विद्दाण-वयणा गुणमई पुच्छिया देवदत्तेण - पिए किमुव्वेय कारणं ? । तीए भणियं- अज्जउत्त ! सुण, अत्थि एत्थेव एक्कवीस - सुवन्न - कोडि सामी सोमिलो सेट्ठी । सोमा तस्स भज्जा | ताणं अपुत्ताण एक्का पउमसिरी कन्ना । सा मे बालसही अज्ज पबल - भूयवियारेण पीडिया पाण-संसए वह । तेण वुत्तं - अत्थि मे भूय-निग्गहमंती, ता तुह वयणेण तं पउणीकरेमि । तीए वुत्तं महा पसाओ । गंतूण तीए कहियं सोमिलस्स । सो वि देवदत्तं घेत्तूण गओ पउमसिरी- समीवे । देवदत्तेणावि कया मंडलाइ - सामग्गी । धरिया मुद्दा । सुमरिओ मंतो । आहयं सरिसवेहिं पत्तं । हसिऊण जंपियं पत्तेण जो हं सयल-नयरमंतवाईहिं पि न सक्किओ मोयाविउं तं ममं मोयावेसि ? अहो ! ते मूढया । देवदत्तेण सुहुयरं सुमरिओ मंतो । तप्पभाव- पराभूएण भणियं भूएण एवं बलामो डीए मोयावंतस्स जं ते करेमि तं पेच्छेज्जसु त्ति । जंपमाणं पवण - पहयं पायव-पक्क पत्तं व कंपिऊण पडियं पत्तं पुहवीए । दिडो इमीए साहिलासं पउम-दल-दीहराए दिडीए देवदत्तो | तेणावि साणुरायं पलोइया इमा | अन्नोन्न- पिच्छंताण ताण कामग्गहो सरीरम्मि सो संकंतो जायाइं जेण दोन्नि वि परवसाइं । लक्खियमिणं सोमिलेण । एयरस कामग्गहस्स निग्गहे अहं चेव समत्थो त्ति चिंतिऊण देवदत्तस्स मत्थए अक्खयक्खेवं कुणंतेण दिन्ना पउमसिरी, परिणीया इमिणा विभूईए य । वच्चए कालो ।
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कयाइ निसाए पत्ती पल्लंके, पच्छा पिच्छए अप्पाणं तरंतं गुरुतरंगाए गंगाए । नूणं पुव्वावरद्ध-भूएण इह पक्खित्तो हं ति चिंतंतो
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं भवियन्वयावसेण लद्ध-फलहगो लग्गो वाणारसी-परिसरे । परिस्समेण निच्चेयणो व्व चिहइ । इओ य तत्थ अस्थि एक्ववीस-सुवन्न-कोडिसामिणी कवड-कुलहरं धरण-सत्थवाह-घरिणी नागिला नाम । तीए पुत्तो सागरदत्तो जाणवत्त-भंगेण समुद्दे विवल्लो । समागया तस्स मयस्स वत्ता | चिंतियं नागिलाए तत्थुप्पन्न-बुद्धीए- पुत्त-मरण-वृत्तंतमपयासंती पुरिसंतरेणावि उप्पाईऊण पुराण-सत्थ-पन्नत्ते खेत्तजे पुत्ते रन्ना घेप्पमाणं धणं रक्खेमि त्ति | तओ तदत्थं गंगातीर परिब्भमंतीए तीए दिहो तदवत्थो देवदत्तो । रयणीए उप्पाडिऊण आणिओ निय-गेहे । कंठे लग्गिऊण रोयंती भणिउं पवत्ता- वच्छ सागरदत्त ! केरिसं अवत्थं पत्तो सि ? तुह जाणवत्त-भंगं सोऊण सोय-विहुरा अहं रयणीए कुलदेवयाए वुत्ता-मा खेयमुव्वह । तुह पुत्तो सागरदत्तो गंगाए आगमिस्सइ | तओ मए गंगातीर गवसंतीए तुमं दिहो सि । भणिया सागरदत्त-भज्जा- पिच्छ वच्छे ! लच्छिमइ ! तुह पई । सलिल-संगेण अन्नारिसो व्व संजाओ, ता तुमए पुव्वं व निवियप्पं कायव्वा इमरस सव्व पडिवत्ती । अम्मो ! जं तुमं आणेवेसि त्ति भणंती पयट्टा काउं तहेव लच्छिमई । देवदत्तो वि पेच्छामि इमं पि विहि-विलसियं ति चिंतंतो सरुवं अप्पणो अपयासंतो भुंजए भोए लच्छिमईए समं । ठिओ पच्छन्नो वरिस-तिगं । जाया दुन्नि पुत्ता लच्छिमईए | चिंतियं लोहंधलाए नागिलाए- एयम्मि पुरिसे विज्जमाणे न होइ ममायत्तं वित्तं, ता उवाएण वावाएमि एयं ति । तक्वरो त्ति कओ कोलाहलो । आगया दंडवासिया । दंसिओ ताण देवदत्तो । नीओ अणेहि रायभवणं । दिहो रन्ना | चिंतियं च- न होइ इमाए आगिईए चोरो त्ति । पुच्छिओ सायरं- भद्द ! को एस वुत्तंतो ? | कहं परदोसं पयासेमि त्ति पुणो पुणो पुच्छिओ वि न किंपि जंपए जाव देवदत्तो ताव आणत्तो वज्झो । विरस-डिडिमेण वज्जंतेण निज्जए नयरमज्ोण |
विसमो विहि-वावारो उब्वियणेज्जो न कस्स संसारो । जं एरिसा वि पुरिसा लहंति एयारिसं वसणं ||२५५१|| अविवेओ नरनाहो अवियारा मंतिणो पहाणा य । निब्भग्गमिणं नयरं जमेरिसा वि हु वहिज्जति ॥२५५२।। एवं पयंपमाणे नायर-जणे पत्तो वा-हाणं देवदत्तो । एत्थंतरे
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सुमइनाह-चरियं
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डक्को उक्कड विस-विसहरेण मेहरहो नाम रायपुत्ती । आहुया बहवे मंतवाइणी । पउत्ताओ तेहिं किरियाओ । न जाओ कोवि विसेसो । तओ 'जो मह पुत्तं " सप्प-दहं जीवावेइ तस्स निय-धूयं कणयसिरिं अद्धरज्जं च देमि' त्ति उग्घोसणा पुव्वं दवाविओ रन्ना पडहगो, वज्जूंतो य समागओ तं पएसं । तं सोऊण चिंतियं देवदत्तेण
काउं परोवयारं जसं च पुन्नं च पाविउं विउलं । जइ परलोयं वच्चामि एस ता किंन्न पज्जत्तं || २५५३ ||
तओ भणिअं - भद्दा ! अत्थि ताव मे विसावहार-मंतो, डक्को य एसो रायपुत्त भुयंगमेण । तो एयं अहं जीवावेमि जेण मे परलोय-पत्थियस्स इमं चैव संबलं होइ । भणियं अणेहिं - जइ एवं ता छिवेसु पडहगं । छित्तोऽणेण सो । नीओ रायपासं । जीवाविओ रायपुत्तो । परितुट्ठो राया सपुर - जणवओ । रन्ना भणियं भद्द ! पुव्वं आगिइए संपयं पुण गुणेहिं विन्नाओ मए महापुरिसो तुमं, ता परिणेसु मे धूयं । मंतीहिं वुत्तं - कहं अविन्नाय कुलक्कमस्स रायकन्ना दिज्जई ? त्ति |
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एत्यंतरे 'सप्पडक्कं रायपुत्तं जीवावियं' सोऊण संभरिय- देवयावयणो पत्तो दत्त- सेट्ठी । देवदत्तावहार-समणंतरमेव भद्द-सेट्ठी वि भद्दसाल - नयराओ निग्गओ । सव्वत्थ गवेसंतो समागओ तत्थ । देवदत्तं पडुच्च मम नंदणो त्ति भणियं दुवेहिं पि । रन्ना वुत्तं - अहो ! अयं कहं तुम्ह दोहं एक्को नंदणो ? दत्तेण वुत्तं- देव ! जायमित्तो इमो अवहडो केणावि । देवया - कहिएण अहिडक्क - रायपुत्त जीवावणाहिन्नाणेण विन्नाओ मए वीसइम वरिसाओ । भद्देण भणियं देव ! संवयइ एयं, जओ न मे घरिणी- जाओ इमो, किंतु कुलदेवयाए बालओ चेव समप्पिओ । सत्तरस - वरिसाई वसिओ मह घरे, पच्छा कत्थ वि गओ ति गवेसंतेण वरिस-तिग-पज्जते अज्ज दिट्ठो ।
एत्थंतरे समागया पुत्त- दुग समेया लच्छिमई । विन्नत्तो रायादेव ! एस मे भत्ता सागरदत्तो नाम समुद्द- परतीरं पत्थिओ बोहित्थ - भंगे लद्ध-फलगो गंगाए आगओ सासुयाए दिहो । जाव इमं इमिणा पुत्तदुगं । अज्ज उण अहं निसाए पिईहरे पसुत्ता । पच्छा न याणामि किंपि संपन्नं । दिट्ठो य एसो वज्झद्वाणं निज्जमाणो । इओ य तं पुत्त- दुगं विप्फारिय- लोयण - जुयं पसारिय-भुयं देवदत्तस्स उच्छंगमारूढं । भण
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३७८
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं भणियं-भद्दे ! न एस सागरदत्तो किंतु देवदत्तो । रना वुत्तं- कहमेयं ?। देवदत्तेण कहिओ भूयावहाराइओ चोरंकार-पज्जंतो सव्वो वि नियवुत्तंतो । रन्ना विनाय-कुल-सीलेण 'अहो ! पुन्ननिहि' त्ति पसंसिऊण दिना निय-धूया कणयसिरी, समप्पियं करि-तुरय-रह-वत्थाहरणसंगयं अद्ध-रज्जं, भणिया य दत्त-भद्द-सेहीणो
एक्वेण देवदत्तो जाओ अवरेण वडिओ एसो । ता दोण्हं पि हु पुत्तो न विवाओ एत्थ कायव्वो ।।२५५४|| भणिया लच्छिमई वि हु तुज्झ पई सासुयाए जो दिलो । सो सागरदत्तो विय दहव्वो देवदत्तो वि ।।२५५५।। जा एरिसे वि पुरिसे चोरंकारं चडावए चंडा । सा तुमए कायव्वा भवणाओ नागिला बाहिं ॥२५५६।। तह सामदेव-सोमिल-वणिणो विनाय-वईयरा तत्थ । घेत्तुं निय-धूयाओ संपत्ता धण-कुटुंब-जुया ।।२५५७।। एवं स देवदत्तो दढाणुरत्ताहिं चउहिं भज्जाहिं । इंदो व्व अच्छराहिं अणिंदिए भुंजए भोए ||२५५८।। तत्तो कमेण भद्दो सुवन्न-कोडीओ एक्कवीसं पि || दाऊण देवदत्तस्स गुरु-समीवम्मि पव्वइओ ॥२५५१।। पुव्वुत्त-कणय-कोडी-सहियाओ समप्पिऊण धूयाओ ।
जे सामदेव-सोमिल-सिहिवरा ते वि पव्वइया ||२५६०।। - एवं दत्त-भद्द-सामदेव-सोमिल-सागरदत्ताणं पत्तेयं एक्ववीससुवन-कोडीओ संजायाओ । सव्व-संखाए पंचुत्तर-कोडि-सयस्स अद्ध-रज्जस्स य सामी देवदत्तो कारवेइ पुरे पुरे सुकय-लच्छिलीलावणाई जिण-भवणाई । पइहावए तेसु अप्पडिमाओ कणय-रयणपडिमाओ । पूयए ताओ भुवणच्छरियभूयाहिं अप्पयार-पूयाहिं । विरएइ विहिय-पाव-विरह-जुत्ताओ रहजत्ताओ । वियरेइ साहूण कम्मवाहि-विउडणसहाइं५४ पवर-वसहि-वत्थ-भत्त-पाणोसहाई । लिहावए विहणिय-मोहधंत्तं सिद्धंतं । निम्मवेइ निम्महिय-पावसल्लं साहम्मिय-वच्छल्लं । पयट्टेइ पयडिय-सम्मवुब्भावणाओ पवयणपभावणाओ । सम्माणेइ मणप्पमोय-जणए जणणि-जणए । विहेइ
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सुमइनाह-चरियं
३७१ दुत्थिए सुत्थिए । संपाडेइ निरुवयारं परोवयारं । सेदए मणोरहाणं पि अविसए पंचप्पयार-विसए । एवं तिवग्गसारं मणुय-जम्म-फलं उवभुंजंतस्स अइक्वंतो कोइ कालो ।
अह पाव-पसर-पसमण-समण-समेओ समागओ सूरी । नामेण विजयसिंहो परमय-मयगल-विजय-सिंहो ||२५६१।। सुअनाणं सम्मत्तं चरित्तमहप्पयारमेक्वेक्वं ।। बारसविह-तव-जुत्तं इह छत्तीसं गुणे धरइ ।।२५६२।। जं निजिओ अणंगो सव्वंगोवंग-संगएण जए । लीलाए तेण गुरुणा मन्नेमि न किंपि तं चोज्जं ||२५६३।। पत्तो य देवदत्तो जणेहिं सम्मं नमंसए सूरी । तत्तो पुरो निसनो पारद्धा देसणा गुरुणा ||२५६४|| जिनेन्द्र-पूजा गुरु-पर्युपास्तिः सत्त्वानुकंपा प्रशमानुरागः ।
सुपात्र-दानं श्रुतिरागमस्य नृजन्म-वृक्षस्य फलान्यमूनि ।।२५६५।। पत्थावे पुहं दत्तेण- भयवं ! किं कारणं जं अम्हेहिं सुअ-विओगदुहं पावियं ? | गुरुणा भणियं- सोम ! सुण,
__ आसि आसापुरे नयरे जिणधम्म-भावियमई चंदो गहवई । रेवई से भज्जा | ताणं च चंदणो नाम नंदणो । ताणि कयाइ वसंते कीलणत्थं गयाणि उज्जाणे । तत्थ कीलंतेहिं तेहिं तरुनिकुंज-मज्झाओ भएण पलायमाणं अहिणवुप्पन्न-हरिण-पोयगेण समं दिहं हरिण-मिहुणं । भणियं भज्जाए- अज्जउत्त ! बालरस मम" सुयरस कीलणकए गिन्हाहि मणहरं हरिण-बालयं । तेणावि धाविऊण पलाइउमचयंतं गहिऊण तं समप्पियं पियाए । हरिण-मिहुणं पि तविओग-विहुरं महंत-दुक्खमावन्नं अवच्च-सिणेहेण । पासेसु परिब्भमंतं पेच्छिऊण वीस-पाणी-पलपज्जते करुणाए मुक्को तेहिं हरिण-डिंभो मिलिओ जणणि-जणयाण । एय-दुच्चरिय-पच्चयं बद्धं तेहिं अवच्च-विओग-फलं असुह-कम्मं । सो य चंदणो पत्तो जोव्वणं ।
कईया वि काणणे मुणिवरो झाणवावडो दिहो । धम्मो व मुत्तिमंतो विउल-सिलावदृ-विणिविहो ||२५६६।। तो वंदिऊण विहिणा पुरओ होऊण पंजिलउडेण ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं भणियं- भयवं ! वेरग्ग-कारणं तुम्ह किं जायं ? ||२५६७।। मुणिणा भणियं- सुण सोम ! अस्थि एत्थेव भरहवासम्मि । धम्म-धण-कोसभूया कोसंबी नाम वर-नयरी ||२५६८।। तीए य आसि सिही तावस नामो त्ति भूरि-विभवभरो । निच्चं पमाय-बहुलो विवेय-वियलो अकय-धम्मो ||२५६१|| धण-कण-कणय-कुडंबय-भवणाइ-परिग्गहम्मि गिद्धमणो । विहलं नर-जम्मं गमइ किंचि दाणाइ-निरओ सो ||२५७०।। अदृज्ाणोवगओ मरिऊणं सूयरो समुप्पन्नो । नियए च्चिय गेहे तम्मि तस्स चंकम्ममाणस्स ॥२५७१।। पुव्वाणुभूय-सयणप्पएस-दसणवसेण संजायं । जाईसरणं पत्तो य पियर-कज्जम्मि पारद्धे ॥२५७२|| रद्धप्पायाए रसवईए परिवेसणे समासन्ने । मज्जारीए मंसं हरियं तो सूवयारीए ||२५७३।। गहवइ-भएण वेला-वइक्वमं तत्थ रक्खमाणीए । मंस-निमित्तं पच्छन्नमेव निहओ वराहो सो ॥२५७४।। मरिऊण तहाविह-कोव-परिगओ तम्मि चेव गेहम्मि । जाओ भुयंगमो गवल-भसल-ताविच्छ-सच्छाओ ||२५७५।। तत्थ वि तं चेव गिहं दहुँ भय-संभमाभिभूयस्स | परिणाम-विसेसेणं जाईसरणं समुप्पन्नं ।।२५७६।। कम्म-विवागरस विचित्तयाए गहिओ न सो कसाएहिं । अणुतप्पियं च तेणं पुणो पुणो नियय-हिययम्मि ||२५७७|| दिहो घर-दासीए सप्पो सप्पो ति कलयलो विहिओ । मुग्गर-वावड-हत्था समागया तयणु कम्मयरा ॥२७७८|| वावाईओ य तेहिं तहाविहाकाम-निज्जरा-वसओ । मरिऊण नियय-पुत्तस्स नागदत्ताभिहाणस्स ॥२५७१।। बंधुमई-नामाए पियाए गब्भे सुओ समुप्पलो । जाओ समए विहियं असोगदत्तो ति से नामं ॥२५८०।।
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सुमइनाह-चरियं
दहण जणय-जणणिं परियण-भवणाइ वरिस-पज्जाओ । भवियन्वया-वसेणं पुव्व-भवे सुमरए एसो ||२५८१।। चिंतियमणेण चित्ते- सुण्हा जणणी सुओ पिया जत्थ । तं संसार-सरूवं धिरत्थु नड-पिच्छण-सरिच्छं ।।२५८२।। ता वहुयं वि य जणणिं सुयं च तायं कहं पयंपेमि ? | एएण कारणेणं पडिवन्नं तेण मूयत्तं ।।२५८३।। जाओ य लोगवाओ अहो ! इमो मूयगो त्ति सव्वत्थ । एवं तस्स दुवालसमइक्वंताई वासाई ।।२५८४|| तत्थ चउनाणजुत्तो समागओ समणवंद-परियरिओ । पाव-दवानल-मेहो मुणिनाहो मेहनाह त्ति ॥२५८५।। इमिणा मुणिऊण मणं असोगदत्तस्स पेसिओ पासे । गेहम्मि नागदेवस्स वयणे कुसलो रिसी एक्को ||२५८६।। भणिओ य रिसी गुरुणा असोगदत्तो घरंगण-निविहो । तुमए पयंपियव्वो- कुमार ! सुण गुरु-वयणमेयं ।।२५८७।। तावस ! किमि[मि?]णा मोणव्वएण ? पडिवज्ज जाणिउं धम्मं । मरिऊण सूयरोरग जाओ पुत्तस्स पुत्तो त्ति ॥२५८८।। गंतूण तेण रिसिणा गुरु-संदेसो निवेइओ तस्स । नमिउं इमिणा भणियं- कत्थ गुरु ? तो मुणी भणइ ||२५८।। चिहइ कुमार ! सक्लावयार-चेइयहरे गुरू धम्मं । "वागरमाणा तो भणइ मूयगो एह गच्छम्ह ||२५१०।। दहण मूयगं जंपमाणमेयस्स विम्हिया सयणा | चिंतियमिमेहिं -गरूओ अहो ! पभावो मुणिवरस्स ||२५११।। ता वच्चउ गुरु-पासे कइया सोहणतंर भवे तत्थ । गंतूण मूयगो तं नमइ गुरुं पुच्छए तत्तो ॥२५१२|| भयवं ! कहं पुण तुमं मह वुत्तंतं मुणेसि ? तो गुरुणा । भणियं- नाणबलेणं तत्तो विम्हय-रसं पत्तो ॥२५१३।। जंपइ असोगदत्तो नाणाइसओ अहो ! तुह अउव्वो । तो मेहनाह-गुरुणा कहिओ जिण-देसिओ धम्मो ||२५१४||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरहयं सो हं असोगदत्तो पडिबुद्धो सावगत्तणं पत्तो । इय निय-चरियं वेरग्ग-कारणं ताव मह एयं ।।२५१५।। अन्नं च दुल्लहबोहि त्ति बोहियव्वो अहं तए एवं । सुर-भव-कय-संकेओ लहु-भाया मज्हा संजाओ ||२५१६।। सो कहवि न पडिबुद्धो बहुप्पयारं पि बुज्झवंतस्स |
तत्तो निम्विनो हं पडिवनो संजमं एसो ||२५१७|| चंदणेण भणियं- भयवं ! अवगयं वेरग्ग-कारणं । जइ परिग्गहगिद्धाणं एवंविहाओ विडंबणाओ हुंति, ता मए परिमिय-परिग्गहेण होयव्वं । अओ कहसु कइविहो परिगहो हवइ त्ति ? । कहिओ गुरुणा-धण-धन्न-खेत्त-वत्थु-रुप्प-सुवन्न-दुपय-चउप्पय-कुप्पभएहिं नव-विहो परिग्गहो हवइ त्ति । चंदणेण पडिवघ्नं असोगदत्तमुणि-पासे परिग्गह-परिमाणं । पालए निरईयारं । इओ य अणिच्चयाए जीव-लोगस्स चंदो रेवई य काऊण जिण-धम्मं गयाणि सोहम्मं । चंदणो वि धण-भवण-सयणाइ-परिग्गहे अगिद्धो संतुहचित्तो कुडुंब-वत्तणाइरित्तं वित्तं जिण-मुणि-जणाइ-धम्महाणेसु वियरंतो समाहिणा मरिऊण तत्थेव गओ | चंदजीवो य देवलोगाओ चविऊण तुमं दत्तो समुप्पन्नो । रेवई-जीवो य सुजसा जाया, चंदणो पुण तुम्ह नंदणो देवदत्तो जाओ । जं हरिण-मिहुणस्स हरिण-पोयगो वीस-पल-मित्तं कालं विजोजिओ तेण तुम्हं पि वीस-वासाइं पुत्त-विओगो जाओ । देवदत्तो वि अभग्ग-परिग्गह-परिमाण-फलेण किले सं विणा वि विउल-रिद्धि-भायणं जाओ । एवं सोऊण तिण्हं पि दत्त-सुजसादेवदत्ताणं जायं जाईसरणं । दत्तेण भणियं
जइ एत्तियमेत्तस्स वि संजायं दुक्कडस्स फलमेयं । ता गरुय-दुक्कडाणं परिणामो केरिसो होही ? ||२५१८|| गुरुणा वुत्तं-गुरु दुक्कडाण जीवा तिरिक्ख-नरएसु । पावंति फलं विउलं चिरकालं तिक्ख-दुक्ख-हया ||२५११।। तो दत्तेणं वुत्तं- बहु-दुक्कड-संकडं घरावासं । वज्जित्ता पडिवज्जे पव्वज्जं तुज्झ पयमूले ||२६००।।
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३८३
सुमइनाह-चरियं
अह भणइ देवदत्तो-परिग्गहो देसओ मए चत्तो । पुव्व-भवे संपइ पुण चयामि तं सव्वओ वि अहं ।।२६०१।। गुरुणा वुत्तं-जुत्तं तत्तो ठविऊण निय-पए पुत्तं । गिण्हेइ देवदत्तो दिक्खं सह-जणणि-जणएहिं ॥२६०२।। काऊण तवं तिव्वं तिनि वि पत्ताइं लंतयं कप्पं । तत्तो सुमाणुसत्तं लभ्रूण गयाइं मोक्खं पि ||२६०३।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं
पाठांतर : १. अलमित्थ ल. रा. ।। २. नदिहा द. पा. ।। ३. पढमं ल. रा. ।। ४. बिय गंधा द. पा. ।। ५. एसो ल. रा. ॥ ६. अकज्जं जइ द. पा. ॥ ७. ठवियम्मि पा.; पवियम्मि रा. ।। ८. सिरिकंत-विसए द. पा. ।। 9. पारखिहाणं ल. रा. ।। १०. लावन्न ल. रा. || ११. सीलवईए द. पा. || १२. इहं सो ल. रा. || १३. जेण ल. रा. ॥ १४. विच्छिओ ल. रा. ।। १५. उ ल. रा. ।। १६. अतो ल. रा. ॥ १७. एआए ल. रा.॥ १८. पहहतुहो द. पा. || ११. पायार-सिहर ल. रा. || २०. ओलंबिओ ल. ।। २१. रणवीरो ल. रा. ।। २२. वीरसोहा ल. रा. ॥ २३. पि ल. रा. || २४. वित्थारिओ ल. रा. ।। २५. इमाए द. पा. ॥ २६. उवदंसिउं ल. रा. ।। २७. निउरं पा. ।। २८. महावइग द. पा. || २१. मिल्हेमि ल. रा. || ३०. मेल्हइ ल. रा. || ३१. मेल्हइ ल. रा. ॥ ३२. मुणहिं ल. रा. ॥ ३३. वियारलवो द. पा. ॥ ३४. गणधरो ल. ॥ ३५. रन्नो ल. रा.॥ ३६. अद्धहम द. पा. ।। ३७. निक्वित्त ल. रा. ३८. सिसिरोवयारेसु द. पा ॥ ३१. कीए ल. रा. || ४०. संपन्न ल. रा. ॥ ४१. नइ- ल. रा. ॥ ४२. मुत्तूण ल. रा. ॥ ४३. सप्पदडं द. पा. ।। ४४. विउट्टणसहाई पा. ॥ ४८. पत्त- ल. रा. ॥ ४६. मे द. पा. ।। ४७. वागरमाणो पा. रा.॥
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नवमो पत्थावो
विप्फरइ परिग्गह-विरमणम्मि मण्यस्स माणसं जस्स । संतोस-रस-निमित्तं सिद्धंतो तेण सोयन्वो ||२६०४।। जेसिं न मोह-तिमिरं जिण-वयण-रसंजणेण अवहरियं । मोक्ख-पहं सम्ममसम्मदिहिणो ते न पेच्छंति ||२६०५|| बुटुंति भव-समुद्दे जम्म-जरा-मरण-जलभर-रउद्दे । जीवा गुण-परिणदं जिण-पवयण-पोयमलहंता ||२६०६|| अजरामरत्त-जणगं जिण-वयण-रसायणं न जा पीयं । ताऽकम्म-वाहि-विगमेण निव्वुई जायए कत्तो ? ||२६०७|| मिच्छत्त-तमच्छन्ने भुवणे जिण-मइ-पईव-परिहीणा । जीवा अदिह-मग्गा दुग्गइ-गड्डाइ निवडति ||२६०८|| लढुं जिणिंद-वयणं चिंता-रयणं व चिंतियत्थकरं । न लहंति जंतु-निवहा कयावि दोगच्च-दुक्खाइं ||२६०१।। न देवं नादेवं न गुरुमकलंक न कुगुरूं, न धर्म नाधर्मं न गुण-परिणद्धं न विगुणं । न कृत्यं नाकृत्यं न हितमहितं नापि निपुणं । विलोकंते लोका जिनवचन-चक्षुर्विरहिताः ।।२६१०।। सिद्धंत-मंतमायनिऊण सवन्नु-देसियं जीवो । नरसुंदरो व्व जायइ विगय-महा-मोह-विस-पसरो ॥२६११|| तहाहि
[1. आगम-विराधनाराधनायां नरसुंदरराज-कथा]
अत्थि इह जंबुदीवे भारहखेत्तम्मि धरणि-रमणीए । कंचण-कंची-तुल्ला कंचण-नामेण अत्थि पुरी ||२६१२।। तत्थ नरसुंदरो मंदरो व्व राया महीहर-पहाणो । परबल-जलहिं महिऊण जेण आयडिया लच्छी ॥२६१३।। सो नाहियवाई बंध-मोक्ख-गुरु-देव-पुन्न-पावाई। जीवं च न मन्नइ परभवाणुगं भूय-वइरित्तं ।।२६१४।।
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૨૮૬
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तरस य पुरंदरस्स वसुललिय-लायन्न-लच्छि-पडिहत्था । कमल-दल-लच्छी सुरसुंदरि व्द रइसुंदरी देवी ॥२६१५।। सुमइ त्ति तस्स मंती निय-मइ-माहप्प-विजिय-सुरमंती । जिणवयण-भाविय-मणो समणोह-निसेवणप्पवणो ||२६१६ ।। इओ य अस्थि चंडउरे नयरे चंडसेणो नाम सामंतो । तस्स मंत-तंतकुसलो बाल-मित्तो अत्थि एक्को जोगी । कयाइ नरसुंदर-नरिंद-सेवानिम्विन्लेण तेण भणिओ जोगी जहा- मे हियय-सल्ल-तुल्लं नरसुंदरं वावाएहि । जोगिणा वुत्तं- एवं करेमि । तओ तुटेण तेण दिन्नं नियंगलग्गमाभरणं । सो य जोगी आगओ कंचीपुरी, ठिओ एगत्थ मढे। अणेण कोउगप्पओगे हिं जणेइ जणस्स विम्हयं । पत्तो पसिद्धिं । सद्दाविओ रन्ना, उचियासण-निसलो य पुच्छिओ सविणयं- जोगिंद ! कत्तो तुमं ? । जोगिणा वुत्तं-सिरि-पव्वयाओ । तुह जोगि-जणे भत्तिं सोऊण इहागओ । पुणो वि भणियं रन्ना- अत्थि का वि दिव्व-सत्ती ? । जोगिणा वुत्तं- बाढं | तहाहि
रत्तीए वि दिणं दिणे वि रयणिं दंसेमि सेलेऽखिले, उप्पाडेमि नहंगणे गहगणं पाडेमि भूमीयले । पारावारमहं तरेमि जलणं थंभेमि रुंभेमि वा,
दुव्वारं परचक्कमत्थि न जए तं मज्झ जं दुक्करं ||२६१७।। एत्थंतरे नम्म-सचिवेण भणियं- जोगिंद ! गरुयं गलगजिं करेसि । किं गह-पव्वयप्पमुहेहिं पाडिएहिं उप्पाडिएहिं वा ? | मह बंभणी रूसिऊण गामंतरं गया । जं विणा न केवलं भवणं, भुवणं पि मे सुल्नं । तो जइ तं आणेसि ता ते सव्वं सद्दहेमि । जोगिणा सुमरिओ आगिहि-मंतो। आणीया मंडए कुणंती कणिका-लित्त-हत्था बंभणी । अहो ! जोगिणो दिव्वा सत्ति ति पयंपमाणो पणच्चिओ नम्मसचिवो' । जाय-विम्हएण भणियं रन्ना- अस्थि कालवंचणोवाओ ? | जोगिणा वृत्तं- गिण्ह दिक्खं जेण तं देमि | पडिवन्ना रन्ना दिक्खा । दिन्नो उवएसो जोगिणा जहा- नियदेहे बारस-अंगुलाई नीहरइ पविसइ दसेव पवणो । तं विवरीयं जो कुणइ स वंचए कालो ।
इय कूडब्भम-मोहिय-मणस्स नरसुंदरस्स नरवइणो । पाणिवह-प्पमुहासवपरस्स परलोय-विमुहस्स ||२६१८।।
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सुमइनाह-चरियं
वच्चंतेसु दिणेसुं विस्संभगयस्स मज्ज-मज्याम्मि । दाऊण विसं विसमं इत्ति पणहो सयं जोगी ।।२६१ ।। राया वि विस-वियारेण पीडिओ विगय-चेयणो जाओ । हाहारवं कुणंता मिलिया सव्वे पहाण-जणा ||२६२०।। हक्वारिया अणेहिं सपच्चया मंतवाइणो बहवे । विस-निग्गहोवयारो सवित्थरं तेहिं पारद्धो ||२६२१।। नवरि संजाओ विहलो ऊसर-खित्तम्मि बीय-निवहो व्व |
पुरिसम्मि वीयरागे तरुणीण कडक्ख-नियरो व्व ||२६२२।। विसन्ना मंतिणो | अक्कंद-सद्द-गब्भिणं करयल-पहय-थणवट्टतुत-हार-दंतुरिय-भूमियलं मिलियमंतेउरं । मओ ति करिणीखंधमारो विऊण निओ मसाणं राया । ठविओ जाव चंदणागुरु-कढनिचियाए चियाए ताव उम्मिल्लिय-लोयणो तक्खणुप्पन्न-चेयणो चईऊण चियं जंपिउं पवत्तो-किमेयं ? ति । पणमिऊण भणियं सुमइ-मंतिणादेव ! तुम्ह उग्ग-विसं दाऊण [नहो] दुह-जोगी, बहुप्पयारे विसनिग्गहोवयारे कुणंताणं पि अम्ह न जाया तुब्भे सचेयणा, ता अओ परं जं कीरइ तं काउमाढत्तं । रन्ना वुत्तं- संपयं वण-पवण-संगेणावि कहं अहं निव्विसो जाओ ? | सुमइणा वुतं-देव ! दिव्वो जाणइ, किंतु मए एयं सूयं आसि जहा- तिव्व-तव-बलूप्पन्न-विविह-लद्धीणं मुणीणं अंग-लग्ग-पवण-संगेणावि निव्विसा हुंति जंतुणो त्ति । रब्ना वुत्तंउवरिभाए पलोएह, अत्थि किं के वि मुणिणो ? | निउत्त-पुरिसे हिं गवेसिऊण कहियं जहा- देव ! पुप्फागरुज्जाणे संपयं चेव चंदो व्व तारएहिं, रायहंसो व्व कलहंसे हिं, सुरकुंजरो व्व कुंजरेहिं, मूणीहिं परियरिओ पवित्त-चरिओ दिग्व-नाणलच्छि - वरिओ समोसरिओ ससिप्पहायरिओ । रना वुत्तं- तप्पभावो संभाविज्जइ जं अहं निविसो जाओ, ता वच्चामि तस्स पासं । गओ सपरिवारो राया, वंदिऊण निसन्नो पुरओ । पारदा गुरुणा देसणा
स्वर्ण-स्थाले क्षिपति स रजः पादशौचं विधत्ते, पीयूषेण त्रिदशकरिणं वाहयत्येन्धभारम् । चिन्तारत्नं विकिरति करादायसोड्डायनाथ, यो दुष्प्रापं गमयति मुधा मर्त्य जन्म प्रमत्तः ||२६२३।।
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३८८
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं राज्ञोक्तं-भगवन् ! इदं न मे चित्त-चमत्कारमारचयति भूतचतुष्टयाऽतिरिक्तस्य परलोकयायिनो जीवस्याऽसत्त्वात् । तथाहि-जीवो नास्ति प्रत्यक्ष-गोचरातीतत्वात् आकाशकुसुमवत् । यच्चास्ति, न तत् प्रत्यक्षगोचरातीतं, यथा-भूतचतुष्टयम् |
गुरुणोक्तम्-भद्र ! किमयं जीवो भवतः प्रत्यक्षं गोचरातीत उत सर्वेषाम् । तत्र यदि भवत् प्रत्यक्षा-गोचरातीतत्वान्नास्ति तदा देशकाल-स्वभाव-विप्रकृष्टानां प्रभूत-भू-भू धरादीनामप्यभावप्रसंगस्तेषामपि भवत् प्रत्यक्षेणाग्रहणात् । अथ सर्व-जनप्रत्यक्षगोचरातीतत्वान्नास्ति इत्युच्यते तदसिद्धम् । सर्व-जनप्रत्यक्षाणां भवद् प्रत्यक्षत्वात् । अथ तान्यपि ते प्रत्यक्षाणि तदा तवैव सर्वज्ञजीवस्य प्रसंगः । किं चेदं चैतन्यं किं भूतानां स्वभाव उत कार्य ? न तावत् स्वभावस्तेषाम चेतनत्वात् । न च कार्यं भूतानुरूपाऽभावात् । अथ समुदितेभ्यो भूतेभ्यश्चैतन्य मुत्पद्यते यथा मद्याङ्गेभ्यो मदशक्तिस्तदप्ययुक्तम् । यतो यद्येषु प्रत्येकं नास्ति तत्र तेभ्यः समुदितेभ्योपि स्याद्यथासिकताकणेभ्यः तैलं मद्याङ्गेषु च प्रत्येकमपि मदशक्ति-सद्भावात् । सर्वानुभवसिद्धं चेदं चैतन्यं यस्य कस्य चित्स्वभावः । स भूत-चतुष्टय-व्यतिरिक्तः परलोकयायी जीवः ।।
रना भणियं-जइ परलोयं जाइ जीवो, अत्थि ता मे पिया पाणिवहप्पमुह-महापाव-निरओ नरए समुप्पल्लो तुम्ह मएणं, सो कहं ममं पावाओ न नियत्तेइ ? |
गुरुणा वुत्तं-जहा कोइ महावराहकारी गुत्तीए खित्तो न निय-बंधवे पिच्छिउं पि पावइ, किं पुण जंपिउं ? | एवं नारया वि कम्म-परतंता नरगाओ निग्गंतुं पि न लहंति ।
रना वुत्तं- जइ एवं ता मे जणणी जिण-धम्मपरा जीवदया-निरया सग्गं गया, सा कहं ममं न पडिबोहेइ ? |
गुरुणा वुत्तं - सग्गे निसग्ग-सुंदर-सुरंगणा-पेम्म-परवसा गरुय-रिद्धि-अक्खित्त-चित्ता असमत्त-प्पओयणा मणुयाण हीणकज्जा दग्गंधयाए य तिरियलोयस्स जिण-पंचकल्लाण-समोसरणाइ-वज्जं नेच्छंति अवयरणं सुरा ।
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सुमइनाह-चरियं
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रन्ना भणियं - मए एगो चोरो खयरो व्व सुहुम-खंडीकओ, न य दिट्ठो तत्थ कोइ भूय- वइरित्तो जीवो ।
गुरुणा वृत्तं - केणावि अरणि कडं खंडीकयं, न दिट्ठो तत्थ अग्गी । अवरेण महणप्पओगेण उडविओ । जइ मुत्ता वि पयत्था संता वि न दीसंति, ता अमुत्तस्स जीवस्स अदंसणे को विरोहो ? |
रन्ना भणियं - एगो चोरो मए जीवंतओ चेव लोह-मंजूसाए पक्खित्तो । ढक्कियं मंजूसा, जउसारिया पयत्तेण । अइक्कंतो कोइ कालो जाव सो तत्थेव विवन्नो, किमिपुंजो जाओ, तत्थ देहे चेव विणो । जइ पुण कोइ जीवो घड-वडग - -तुल्लो तओ निग्गओ पविट्ठो वा होज्ज, तओ लोह - मंजूसाए तदणुरूवं छिडं हवेज्ज' । न य तं दिहं । ता नज्जइ न भूय- वइरित्तो जीवो ।
गुरुणा वृत्तं - एगम्मि नयरे कोइ संखिगो संखं धमेइ । तस्स एरिसो विन्नाणाइसओ जेण अगोयरगयाणं कन्ने चिय धमेइ । अन्नया रन्नो वच्चहरकाले धमिओ संखो ! कन्ने चिय धमेइ त्ति आसंकाए वच्चनिरोहेण रुद्धो सो राया । वज्झो सो आणत्तो । तेण भणियं देव ! दूरे धमेमि, परं कन्नमूले चिय पडिहाइ । विसिद्धा खलु मे लद्धी अत्थि । जइ न पच्चओ ता विन्नासेउ देवो । तओ रन्ना खित्तो कुंभीए संखिगो, ढक्किऊण जउसारिया एसा । पच्छा धमाविओ, सुओ संख सद्दो सव्वेहिं । निरुविया कुंभी, न दिहं निग्गमण छिड्डुं । तहा लोह - पिंडे धमिए केण छिड्डेण अग्गी पविट्ठो जेण सो अग्गिवन्नो जाओ ? । एवमिहावि सद्दाओ अग्गीओ य सुहुमस्स जीवस्स निग्गमे पवेसे वा न विरोहो ।
रन्ना भणियं - अन्नो चोरो वावायण-काले तोलिओ, पच्छा गलकरमोडणेण वावाईओ । पुणो वि तहेव तोलिओ । जाव जत्तिओ पुव्वं तत्तिओ पच्छा वि, अओ नज्जइ न तत्थ घडचडगोवमो कोइ गओ त्ति ।
गुरुणा वृत्तं- एगेण गोवालेण कोउगेण एगो दिइपुडो वायस्स भरिऊण तोलाविओ, पच्छा विरिक्को पुणो वि तोलाविओ, जाव जत्तिओ विरिक्को वि तेत्तिओ । जइ फासिंदिय - गब्भत्तणेण मुत्तस्स पवणस्स सब्भावो सब्भावेसु न तोल्ल-विसेसो ता अमुत्तस्स जीवस्स तुल्लविसेस - विरहे को विरोहो ? । तम्हा सव्व पाणिणं सरीराइरित्तो ससंवेयणाणुभव - पच्चक्खो चेयन्नरूवो गमणाइ चिट्ठा - लिंगो पवणी
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पडागमो पयलणलिंगो अत्थि जीवो त्ति सद्दहियव्वं ।
रन्ना वुत्तं - भयवं ! मोह पिसाओ मह नहो तुह वयण- मंतेहिं । नवरं नाहियवायं कमागयं कहं विवज्जेमि ? |
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
गुरुणा वृत्तं - एयं न किंचि नरनाह ! सइ विवेगम्मि । वाही दालिद्दं वा कमागयं मुच्चए किं न ? || २६२४||
तहा
केइ पुरिसा भमंता धणत्थिणी अणुकमेण दहूण लोहं तओ रुप्प - कणए पुव्वग्गहिए वि मुत्तूण || २६२५|| रयणाइं गिहिऊण य एगे संपत्तिभायणं जाया । अवरे तहा अकाऊण दुत्थिया सोयमणुपत्ता || २६२६ || एवं तुमं पि नरवर ! कमागयं कुग्गहं अमिल्लतो । पुव्वं व संपयं पिहु मा दुग्गइ - दुक्खमणुहवसु || २६२७|| रन्ना भणियं पुव्वं दुग्गइ दुक्खं कहं मए पत्तं ? | गुरुणा वृत्तं सुण सोम ! एत्थ भरहम्मि 'नवगामे || २६२८||
-
आसि कुलपुत्तओ अज्जुणो त्ति मित्तो सुहंकरो तस्स । सो सावओ कयावि हु समागया साहुणो तत्थ || २६२९|| भणिओ सुहंकरेणेवमज्जुणो मित्त ! मुणि सयासम्मि । वच्चामो निसुणामो जिण भणियं आगमं तत्थ || २६३०|| तो अज्जुणेण भणियं - मित्त ! मे मुणियमागम-सरुवं । धुत्तेहिं कया कव्वा कालेण य आगमा जाया ||२६३१|| एवं पयंपमाणेण तेण असुहं समज्जियं कम्मं । आउक्खएण मरिऊण अज्जुणो बुक्कडो जाओ || २६३२ || निययम्मि चेव भवणे अज्जुण-पुत्तेण पियर - कज्जम्मि । हणिऊण माहणाणं दिनो तो रासहो जाओ || २६३३||
भारं वाहिज्जतो खुहा- पिवासाउलो कुलालेण । विद्या - भक्खण-निरओ गमेइ सो दुत्थिओ कालो || २६३४|| कइया वि गुरुभरेणं पडिओ सो भंडएसु भग्गेसु । कुविएण कुलालेणं तहा हओ लउड-घाएहिं ॥ २६३५||
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सुमइनाह-चरियं
जह पत्तो पंचत्तं तो गड्डा-सूयरो समुप्पन्नो । भक्तो असुइं चिय लोहंतो असुइ-पंकम्मि ||२६३६|| आहेsय-सुणहेहिं निहओ दद-दसण-धरिय-कन्न - जुओ | सो विरसमारसंतो मरिउं करहो समुप्पन्न ||२६३७||
गुरु-भार- वहण - खित्तो नइ - दुत्तडि पडण- दलिय सव्वंगो । कन्न - कडुयं रडंतो दुस्सह-पीडाए मरिऊण || २६३८|| जाओ गोब्बर - गामे गोधण वणियस्स मूयगो पुत्ती । बहुसो वि नडिज्जंतो अणेय - अविवेय- लोएहिं || २६३१ || निय-जीविय- निव्विन्नो कूवे पडिऊण मरणमणुपत्ती । जाओ नंदिग्गामे ठक्कुर-गेहम्मि दास-सुओ || २६४०|| कइया वि मज्ज - विवसो अमुणंतो अप्प - पर - 1 - विसेसमिमी | निय ठक्करमुक्कोसइ असब्भ-वयणेहिं पुणरुतं ॥२६४१ || कुविएण ठक्करेणं छिन्ना जीहा इमस्स दासस्स । अह पीडा - विहुरंगी सो अइसयनाणिणा मुणिणा || २६४२|| दहूण महुर- वयणेहिं भासिओ भद्द ! कुणसि किं खेयं ? | जम्हा कयं तए च्चिय जं कम्मं तस्स फलमेयं ॥ २६४३|| तहाहि
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अज्जुण - जम्म - विणिम्मिय-आगम-निंदा-फलेण जाओ सि । छागो खरो वराहो करहो तह [य] मूयगो दासो || २६४४|| एवं सोच्चा सो जाय जाईसरणो मुणिं पणमिऊण । पच्छायाव - परिगओ अप्पाणं निंद बहुसो || २६४५ || पंच-परमिहि-मंतं मुणिणा दिन्नं मणम्मि धरमाणो । मरिऊण एस जाओ तुममिह नरसुंदरी राया || २६४६ || पुव्व-भवब्भासेणं नाहियवाओ इहावि तुह जाओ । एयं सोउं जायं जाईसरणं नरवइस्स ||२६४७|| भणियं अणेण - भयवं ! अवितहमेयं तए जमुवइहं । ता मुत्तुं रज्जमिणं चरेमि चरणं तुह समीवे ॥२६४८||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं विनाय-दुक्कय-फलो जिणागमाराहणं च्चिय करिस्सं । को मुणिय-विस-विवागो अमयं पाउं न वंछेइ ? ||२६४१।। तो निय-रज्जे ठविओ नरवइणा नंदणो अमरसेणो । विहिणा गहिया दिक्खा ससिप्पहायरिय-पासम्मि ||२६५०।। जयं चरे जयं चिट्टे जयमासे जयं सए । जयं भुजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ।।२६५१।। इय आगमाणुसारेण सव्व-कज्जे जयं पयतो । पढइ गुणेइ सुणेइ य निच्चं चिय आगमं एसो ||२६५२|| नरसुंदर-रायरिसी सुय-पारावार-पारगो जाओ । गुरुणा गुरुगुण-कलिओ त्ति जाणिउं निय-पए ठविओ ॥२६५३|| मिच्छत्त-तिमिर-मंडल-संहरण-परायणो दिणमणि व्व ।
अविरइ-रयणि-विवक्खो पडिबोहइ भविय-कमलाई ॥२६५४|| निप्पाईऊण सीसे वर-सीसं निय-पयम्मि ठविऊण । तुलिऊण य अप्पाणं तुलणाए पंचभेयाए ||२६५५।। जिणकप्पं पडिवन्नो सरीरमत्ते वि निम्ममो भयवं । गामम्मि एगराइ नगरे पुण पंचरायं च |२६५६।। भवणम्मि विहरिऊणं पज्जंते पायवोवगमणेण । कय-काय-परिच्चाओ सव्वहविमाणमणुपत्तो ॥२६५७|| आगममणुसीलंतो वि सीलवंताण उत्तम-जणाणं । संगं न परिहरेज्जा उत्तम-गुण-लाभमिच्छंतो ||२६५८।। उत्तम-जण-संसग्गं मुत्तुं जो अत्तणो महइ कुसलं । मूढो सलिलेण विणा सो वंछइ सस्स-निप्फत्तिं ॥२६५१।। गुणि-संसग्गपरेणं गुण-बहुमाणो धुवं कओ होइ । जेण गुणिणो गुणाण य एगत्तं भासियं समए ॥२६६०।। गुणलाभ-लालसेणं गुणि-संसग्गो सया वि कायव्वो । जं संकमंति लोए संगेण गुणा य अगुणा य ॥२६६१।। जो जारिसेण मित्तिं करेइ अचिरा स तारिसो होइ । कुसुमेहिं सह वसंता तिला वि तग्गंधिणो जाया ||२६६२।।
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सुमइनाह-चरियं
अंबस्स य लिंबस्स य दोण्हं पि समागयाइं मूलाई । संसग्गीय विणहो अंबो लिंबत्तणं पत्तो ।।२६६३।। इय जाणिऊण निउणेण परिहरंतेण नीय-संसग्गं । आमलगमाहणेण व उत्तम-संगो विहेयन्वो ||२६६४|| तहाहि
[२. उत्तम-सेवायां दिवाकर-कथा]
अत्थित्थ भरहवासे बंगा नामेण जणवओ विउलो । तस्स पुरी विस्सपुरी चउब्भुओ माहणो तीए ॥२६६५।। तस्स य दिवायरो नाम नंदणो तेण विमलमईणा वि । तरुणत्तणे न सम्मं पढिया विज्जा अणज्जेण ॥२६६६॥ मरण-समयम्मि पिउणा भणिओ सो-वच्छ ! उभयभव-सुहया । विज्जा सयल-जणाणं विप्पाण पुणो विसेसेण ||२६६७|| वरं गर्भ-स्रावो वरमृतुषु नैवाभिगमनं, वरं जातः प्रेतो वरमपि च कन्यैव जनिता । वरं वन्ध्या भार्या वरमगृहवासे प्रयतितं, न चाऽविदान् रूप-द्रविण-बल-युक्तोऽपि तनयः ॥२६६८|| विज्जारहिओ य तुमं परस्स सेवाए वट्टिहसि नूणं । ता उत्तमस्स संगं करेज्ज मुत्तूण नीय-जणं ॥२६६१।। तेण पडिस्सुयमेयं चिंतियमह नीय-संगमे दोसं । पेच्छामि जेण पच्छा निच्चल-चित्तो अहं होमि ||२६७०।। तत्तो इमो पयट्टो भइह जरठक्कुरस्स सेवाए । घडिया तद्दासेणं पिंगल-नामेण सह मित्ती ॥२६७१।। विहिओ तहा सिणेहो तग्घरदासीए मित्तसेणाए । सो रायचारिगो ठक्कुरेण ठविओ वियहो त्ति ||२६७२|| जयनयर-नयरपहुणो वियारधवलस्स निच्च-सन्निहिओ । रंजवइ वयण-विन्नास-कोसलेणं इमो लोयं ||२६७३।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं अन्यदा-'समाज-शील-व्यसनेषु सख्यं'। एयस्स पुव्व-पाया पुट्ठा रन्ना सहाए दिव्व-वसा । केणइ न तत्थ पढिया पढिया य दिवायरेण इमे ।।२६७४|| मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति, गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरङ्गैः । मूर्खा श्च मूर्खः सुधीयः सुधीभिः [समानशीलव्यसनेषु सख्यम् ।।२६७५।। एवं पढिए तुडेण राइणा जंपिओ इमो-मग्ग । किं ते देमि ? दिओ वि हु जंपइ पहु-कज्ज-सज्ज-मणो ।।२६७६।। देव ! मह सामिणो नत्थि जीवणं तस्स जीवणं देसु । साहति हि सप्पुरिसा पहु-कज्जं अभणयंता वि ||२६७७।। चुलसीइ-गाम-जोग्गस्स तस्स रन्ना लिहावणेण विणा । अहहम-गाम-सएहिं संगयं सिरिउरं दिन्नं ॥२६७८।। तो "ठक्कुरस्स पासे भट्टो गामं इमरस सो देइ । जंपइ य-तुह अहं पि हु एक्वं कज्जं करिस्सामि ||२६७।। तेण भणियं-पसाओ ति मज्जमत्तस्स पिंगलस्स दढं । गालि-पयाणपरस्स य कयाई कोवं गओ राया ||२६८०।। आढत्तो से जीहा-छेयं काउं दिवायरेण तओ । भणियपसाएण इमो विमोइओ मित्त-नेहेण ||२६६१|| अह जाया गब्भवई दासी तीसे मऊर-मंसम्मि । संपत्तो दोहलओ दियरस अक्कोसिउं कहिओ ||२६८२।। सो भणइ-नत्थि अन्नो रन्नो कीलाकलाविणं मत्तं । तो तं चिय गिह-पत्तं निहणिस्सं तुह सिणेहेण ||२६८३।। भवणंगणे भमंतं पुरओ दासीए गिहिउं मोरं । बाहिं गंतूण इमं दिवायरो ठवइ देवउले ||२६८४|| अन्नं मंसं दासीए देइ सा पुन्नदोहला तुहा । एत्तो य गवेसिज्जइ मोरो लब्भइ न जा ताव ||२६८५।। कुविएण दाविओ ठक्कुरेण पडहो मऊर-वुत्तंतं । जो कहइ तस्स दिज्जइ दम्महसयं च अभयं च ||२६८६।।
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सुमइनाह-चरियं
अह न कहइ सो पच्छा नायम्मि सरीर-निग्गहो दंडो । सोऊण इमं चित्तम्मि चिंतए मित्तसेणा वि ||२६८७।। संपइ कहिज्जमाणे लाभो पच्छा उ निग्गहो होही । तत्तो वरं इयाणिं कहेमि तो कहियमेईए ॥२६८८।। रुहो य ठक्कुरो माहणरस तो पडहगम्मि वज्जते । कहियं सब्भावं पिंगलस्स गेहम्मि स निलुक्को ॥२६८१।। तो ठक्कुरेण भणियं-को तं लहु लहइ ? जंपए दासो । देव ! लहेमि अहं तो दिवायरो तेण आणीओ ||२६१०।। अणुवकए उवयारं कुणंति जे ते जए सलाहिज्जा । उवयारिणि अवयारीण 'पुणो न नामं पि घेत्तव्वं ॥२६११|| अह ठक्कुरो पयंपइ कयग्घतिलओ दिवायरस्स लहुं । उप्पाडह नयणाई छिंदह हत्थे य पाए य ||२६१२|| जं आणवेइ देवो तं कीरइ इय पयंपए दासो । लग्गो य परियणो देव ! खमसु से एक्कमवराहं ||२६१३|| न खमेइ ठक्कुरो परियणेण भणिओ पुणो वि करुणाए । जं आणवेइ देवो दंडं अवरं तं करेमो ||२६१४|| तो ठक्कुरेण भणियं-न इमा वत्ता वि तस्स निब्बंधे । भणइ इमो-जइ एवं ता तं चिय मोरमाणेउ ||२६१५।। तो मोरमप्पिओ ठक्कुरस्स पाएसु निवडिउं भट्टो । भणिओ य ठक्कुरेणं तुह अवराहो इमो खमिओ ||२६१६|| मा पुण एवं काहिसि पडिवनमिणं दिवायर-दिएण । दिहो दोसो नीयाण संगमतो गओ तत्तो ||२६१७।। पत्तो य मंगलउरे समग्ग-मंगल-समग्गले जत्थ । देहावयवं मोत्तुं बाहं लोया न याति ॥२६१८|| तत्थत्थि पुन्नचंदो राया चंदो व्व कय-जणाणंदो । वर-नीईलया-कंदो पडिवक्ख-पयाव-दव-कंदो ॥२६१।। गुणचंदो नामेणं तस्स सुओ विस्सुओ बहुसुओ वि । उत्तमगुणो त्ति तमिमं दिवायरो सेवए कुमरं ||२७००।।
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३१६
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
तेण मणोरहदत्तो सिद्धी मित्तीकओ विसिहोति । विहिया वसंतसेणा विलासिणीए य सह मित्ती || २७०१ ||
अह अन्नया कुमारो हरिओ विवरीयसिक्ख - तुरएण । तस्साणुमग्ग - लग्गो दिवायरो धाविओ ने ||२७०२ ||
वच्चंतेण दिवायरेणं एक्कामलगीए गहियाणि तिन्नि आमलगाणि, मुक्कवग्गो य ठिओ आसो । मिलिओ कुमारस्स दिवायरो वच्चति सणियसणियं । तण्हाभिभूएण भणिओ दिवायरो रायपुत्तेण कहिं चि अत्थि पाणियं ति । निरूविऊण साहियं दिवायरेण-देव ! न ताव दीसइ । सुकुडतालुगस्स कुमारस्स दिन्नमेगमामलगं । आसायंतो गओ थेव - भूमि कुमारो । पुणो वि पुच्छिए पुणो वि दिव्न्नं बीयं । पुणो वि तईयं । उत्तिन्ना कंतारं | रायपुत्तेण चिंतियं नत्थि एयाण आमलगाण अग्घो, मा विस्सरहि त्ति तिसंझं सुमरेइ । कमेण जाओ राया रायपुत्तो । कओ णेण दिवायरी मंती | अइक्कंतो कोइ कालो । परूढा पीई सह सिद्विणा विलासिणीए य | संपन्नाइं दोण्हं पि अंतेउराइं । जाओ पुत्तो नरवइस्स | सो मंति-गेहे बहुसो कीलइ । दिट्ठो आवन्नसत्ताए मंतिघरिणीए । गब्भदोसेण जाओ कुमार-मंसे दोहलो इमीए । न साहिओ दिवायरस्स । दुब्बलीभूया एसा । पुट्ठाए साहिओ तस्स । तेण भणियं कित्तियमेयं ? | वीसत्था चिसु त्ति । तीए पिच्छंतीए गहिओ रायपुत्ती । संगोविओ पयत्तेणं । दिनं अन्नं मंसं । संतुट्ठा भट्टिणी । पुन्नो से दोहलो । कया पच्छन्न- भूमिहरे जेण न किंचि वुत्तंतं जाणइ ।
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इओ य रायभोयणवेलाए गवेसिज्जइ रायपुत्तो । निरूविओ मंतिगेहे । मंतिणा भणियं आगओ आसि, गओ तयाणिं चेव । एवमेयं ति पडिवन्नं रन्ना । मूलसुद्धीए गवेसिज्जइ जाव। दिट्ठो मंति-गेहे पविसंतो न उण नीहरंतो त्ति जाओ पवाओ, मुणिओ मंतिणा । तओ गंतूण साहियं मणोरहदत्तस्स जहा- 'भट्टिणीए दोहलय - कज्जे मए कुमारो वावाईओ'त्ति को एत्थ उवाओ ? । तेण भणियं - तुहिक्को अच्छसु । एवं वसंतसेणाए वि साहिओ । तीए वि इमं चेव भणियं । पयट्टो पडहगो - 'जो कुमारवुत्तंतं साहेइ तस्स जं मग्गियं दिज्जइ । पच्छा नाए लेससंगेणावि सरीर - निग्गहो' । सुओं सो वसंतसेणाए । चिंतियं तीए गरूओ निबंधो देवरस | नं इमं अजाणियं अच्छइ, तो छिवेमि पडहगं, जेण इओ चेव
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सुमइनाह-चरियं समप्पइ कहा । मम पुण जं होइ तं होउ'त्ति छित्तो पडहगो । निवेईयं रनो-देव ! मए वावाईओ त्ति । सो पुण गहिओ कडीए पडिओ मओ य । गहिया वसंतसेण ति जाओ लोगप्पवाओ । सुओ मणोरहदत्तेण, चिंतियं च-आढत्तो भट्ट-परियणो ता किं इमिणा ? | अहमेयं पवज्जामि । जेण इओ चेव समप्पइ कह त्ति । मित्त-परिरक्खण-फलं मणुयाण जीवियं, जेण भणियं च
निरर्थकाय चपलस्वभावा यास्यन्ति सद्यः स्वयमेव नाशं ।
तएव यान्ति क्रिययोपयोगं प्राणाः परार्थे यदि किं न लब्धं ? ।। २७०३।। तओ गंतूण निवेइयं रनो-देव ! मए वावाइओ त्ति । सोऊण दद्दरपडणेणं ति । 'मिलियाणि परोप्परं । अन्नोन्नं दसति । रन्ना सद्दाविओ मंती । कहियमेयरस किमेवमेयं ? ति । तेण भणियं-देव ! विसिहाण विसिहत्तणं । रल्ला भणियं-कहं ? ति नावगच्छामि । मंतिणा भणियंइमिणा वइयरेणं कुमारो मए वावाईओ | एएसिं पूण अनिमित्तो आरंभो त्ति । परियणेण खिंसिओ मंती-अरे दह ! एद्दहमित्तस्स कप्पस्स एयं तए ववसियं ? ति । रना अंबाडिओ परियणो य-बंभणेण बंभण-परिरक्खणं न थेवं कज्ज | अरे : मम सरीरदोहगो जो भट्ट किंचि वि भणइ । मणोरहदत्त-वसंतसेणाहि भणियं-देव ! महापसाओ | रन्ना भणियंपइहमेगमामलगं ति विसज्जिओ भट्टो ।
अन्नया उचिय-वेलाए नागच्छइ त्ति गओ तग्गिहं राया । कओ उचिओवयारो भट्टेण | पत्थावेण भणियं रन्ना-भट्ट ! जं अहं जाचेमि तं तए दायव्वं ति । भट्टेण भणियं-आणवेउ देवो | रन्ना भणियं-'तारिसी वीसत्थय त्ति । भट्टेण भणियं-देव ! उत्तमो तुमं । कि मित्थ अवरं भणीयइ ? | साहिओ वुत्तंतो । समप्पिओ दारगो । रन्ना भणियं-केरिसी ध्यम उत्तमया जो एवं आमलग-संकित्तणेण अकंडे चेव बुलुबुलो ? ! उत्तमो तुमं मणोरहदत्त-वसंतसेणा य । एवमइक्वंतो कोइ कालो | उत्तमसंबंधो हिओ ति परिणयं दिवायरस्स ।
अन्नयाजाया इमस्स चिंता-करेमि सव्वुत्तमस्स संबंधं । इय परिणामाओ गयं किलिहकम्मं खओवसमं ॥२७०४।।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
तस्स पडिबोह- समयं मुणिउं मुणिविंद - परिगओ पत्तो । कय-भविय-जणाणंदी आणंदो नाम आयरिओ || २७०५ ।। सो वंदिउं सबहुमाणमणेण पुट्ठो । सव्वुत्तमं कहसु मे गुरुणा वि सिहो । माणुस्स-खेत्त- -कुल- जाइ-बलायु-बुद्धिआरुग्ग- रूव-सवणाइ कमेण धम्मो || २७०६ || एयस्स सो परिणओ करुणापहाणी तस्संतीए सविणयं इमिणा पवन्नो । राया वि तेण विहिओ पडिबोहिऊण सुरसावगत्त पडिवंति पवित्तचित्तो ॥ २७०७ ।। एवं उत्तम - संगमेक्करसिओ सव्वन्नुणा वन्नियं, धम्मं दुक्कय-कम्म- तेल- कुलिसं सव्वुत्तमं सेवियं । कल्लाणं लहिउं इहेव तिदिवं जम्मंतरे पाविउं, पज्जायेण दिवायरो दियवरो पत्तो पयं सासयं ॥ २७०८ || सव्वुत्तमो य धम्मो जाणिज्जइ जेण गुरु- सयासाओ । तत्तो हियमिच्छंतो गुरु- पयसेवापरो होज्जा || २७०१ || गुरु- देसणावरतं वर-गुण-गुच्छं विणा गहीराओ । संसार - कूव - कुहराओ निग्गमो नत्थि जीवाण ॥ २७१०|| गुरुणो कारुन्न- घणस्स देसणा-पयभरेण सित्ताण । भविय - दुमाणं पसमेइ झत्ति मिच्छत्त-दावग्गी || २७११|| भव - अडवि - निवडियाणं जाण गुरु मग्गदेसओ नत्थि । मोहदिस - मोहमूढा कह ते पावंति मोक्खपुरं ? || २७१२ || गुरु-भत्तिं अकुणंता कुगइं जीवा लहंति पुणरुत्तं । तं च कुणंता सुगई " विमलमई एत्थ दिहंतो || २७१३||
[३. गुर्वाराधनयोर्विमलमति-कथा]
अत्थि इहेव जंबुदीवे वराड - विसयम्मि जयपुरं नयरं । जं सुरपुरं व बहु - विबुह - संकुलं केवलमणिंद || २७१४||
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सुमइनाह-चरियं
तत्थ निवो सिरिचूलो नरिंद-चूलग्ग-लग्ग-पयमूलो । जण-अणूकूलो करिदंत-मुसल-वियलिय-जलहि-कूलो।।२७१५।। तस्स बहु-वन्नणिज्जो जिणदत्तो नाम अत्थि वर-सेही । जिण-समण-चलण-कमलो जो भसल-विलासमुव्वहइ ।।२७१६।। तस्स वरुण त्ति घरिणी वर-सीलाभरण-भूसिय-सरीरा । ताण सुया विउलमई मइजिय-सुयदेवि-मइपसरा ||२७१७।। जिणदत्तस्स कयावि हु विहवो दिव्वाणुभावओ तुट्टो । तो रन्ना तस्स पर धणमित्तो ठाविओ सेही ||२७१८|| जस्स पुरो वेसमणं समणं व अकिंचणं जणो भणइ । दहूण जस्स एवं तणं व मयणं पयंपेइ ॥२७११।। अह कित्तियम्मि काले गयम्मि पत्तो कयाइ हेमंतो । अग्यविय-तिल्ल-कुंकुम-कामिणिथण-जलण-पावरणो ||२७२०।। अइ-सिसिर-पवण-कंपंत-गत्त पेवखेविण भवणि समत्त सत्त । वियसंत-कुंद-"कलियामिसेण जो हसइ गरुय-विम्हयवसेण।।२७२१|| हिम-पीडिय पंथिय जहिं असेस, भुयमंडल-पीडिय-हियय-देस । निय-कंत निच्चु मणि निवसमाण, पडिहासहि नं परिरंभमाण ॥२७२२।। जहिं तरुणिहिं घण-घुसिणंगराओ, निम्मविय सीय-संगम-विधाओ। मणि मज्झिय मंतु पियाणुराओ, न निग्गओ बाहिरि निव्ववाओ।।२७२३।। संतावकरु वि जहिं जणह जलणु, हिम-पीड-हरो त्ति पमोय-जणणु । जं कहवि अणिहु वि होइ इहु, सियवाओ जिणिंदिहिं तेण दिहु ।।२७२४।।
तम्मि हेमंते धणमित्तेण [सह] समागओ नगर-बाहिं जिणदत्तो । दिहं हिम-पवण-सीयल-सलिल-निब्भरं सरोवरं । भणियं धणमित्तेणजो इह सरोवरे आकंठ-बुड्डो रयणिं वसेइ तस्साहं दीणार-लक्खं देमि । ततो धणलुद-बुद्धिणा भणियं जिणदत्तेण-अहं वसिस्सं । जओ
अगणिय-सरीरपीडा अणविक्खिय-सयल-लोय-वयणेज्जा ।
लच्छी-लव-लुद्ध-मणा मणुया न कुणंति किमकज्जं ? ||२७२५|| तओ निसाए तहेव ठिओ सरोवरे जिणदत्तो । पच्चूसे गंतूण भणइ धणमित्तं-देसु मे दीणार-लक्खं । ठिओ हं सरोवरे निसाए | धणमित्तेण
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं भणियं-को इत्थ पच्चओ ? | जिणदत्तेण वुत्तं-तुह गिह-गवक्खे जामिणी-जाम-चउक्वं पि पज्जलंतो पईवो मए दिहो त्ति पच्चओ । धणमित्तेण वुत्तं- पईव-पलोयणेण ते सियं पणलं, अओ न देमि । जइ तुमं तं न पलोयंतो ता अहं ते दीणार-लक्खं देमो । विलक्खीभूओ जिणदत्तो गओ स-गिहं । कहियमेयं निय-धूयाए । तीए वुत्तं-मा करेसु खेयं ।
__ अन्न-दिणे सामग्गिं काऊण निमंतिओ भोयणत्थं धणमित्तो । आढत्तो भोत्तुं । सिणिद्ध-सलवण-भोयणाओ पिवासिएण मग्गियं अणेण जलं । विउलमईए वृत्तं- सीयल-सलिल-समग्गाओ अग्गओ गग्गरीओ इमाओ पेच्छिऊण वुच्छिन्न-तण्हो होसु । धणमित्तेण वुत्तंकिमेयासिं दंसणेण पणस्सइ तन्हा ? । विउलमईए हसिऊण भणियंजइ पईव-दंसणेण सीयं पणस्सइ, ता एयासिं दंसणेण कि न तुण्हावगमो होइ ? ति । अहो ! इमीए मइ-माहप्पं ! । कयं कयपडिकयं । ता पुणो वि कायव्वं किं पि विप्पियं मए इमीए । संपयं तु न अल्लो उवाओ ति चिंतिऊण भणियं धणमित्तेण- गिण्ह लक्खं, पाएसु पाणियं । तहेय कयं विउलमईए । भुत्तुत्तरं[दाऊण] धणं मग्गिओ धणमित्तेण जिणदत्तो- 'देसु मे परिणयणत्थं धूयं ।' 'आलोविऊण देमि' त्ति भणिऊण जिणदत्तेण भणिया रहसि धूया-वच्छे ! लक्ख-गहणविलक्खो इमो तह विडंबणं काउमिच्छंतो तुमं परिणेउं मग्गइ त्ति संभावेमि, ता किं कायव्वं ? | तीए वुत्तं-देसु ममं । करिस्सं अहं सव्वत्थ-सुत्थं । दिन्ना तेण | परिणीया इयरेण । विवाहाणंतरं चेव खित्ता भवणब्भंतर-कए कुवए, भणिया य-इह हिया कंगु-कूरमाणयं खायंती कप्पासं कत्तंती ताव चिट्ठ जाव ते पुत्तुप्पत्ती होइ । पच्छा निग्गच्छिज्जा । सयं पुण पत्थिओ अत्थोवज्जणत्थं, पत्तो तामलित्तीए अच्छे । इयरीए धणमित्त-चित्तं नाऊण अणागयं खणाविया पिइहराओ सुरंगा । तीए निग्गंतूण गया सिग्धं तामलित्तीए । धणमित्तावास-पासे पासायं घेत्तूण ठिया विउलमई । पेसिया सिविखविऊण अणाए निउणिया निय-चेडी धणमित्त-पासं । भणिओ तीए इमो- अम्ह सामिणी कामलया नाम गुणाणुराइणी न पुरिस-मित्ते चक् पि खिवइ, अज्ज पुण तुमं दहूण साणुराया जाया ।
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सुमइनाह-चरियं
ता सुहय ! तं मयच्छिं निय-संग-सुहारसेण निव्ववसु । जेण पर-पत्थणा-भंग-भीरुणो हुंति सप्पुरिसा ||२७२६।। तो पत्तो धणमित्तो तग्गेहं गहिय-अवरवेसाए । तीए वि रंजिओ तह एक्कचित्तो जहा जाओ ||२७२७|| भुंजइ उदार-भोए अह जाओ ताण नंदणो एक्को । पडिबोहिओ इमीए जिणिंद-धम्मम्मि धणमित्तो ||२७२८।। तो संवेग-परिगओ जंपइ जं परिणिऊण विउलमई । कूव-कुहरम्मि खित्ता मए अकज्जं तमायरियं ||२७२१।। ता तं कूवाओ कहिऊण पुणरवि इहागमिस्सामि । इय भणिउं संपत्तो जयउर-नयरम्मि धणमित्तो ||२७३०।। आगंतूण पविठ्ठा पुव्वं चिय कूवयम्मि विउलमई । आयडिया य इमिणा कूवाओ नरयरुवाओ ||२७३१|| दिहा पुत्त-जुया सा तो विम्हिय-माणसेण संलत्तं । माइंदजाल-तुल्लं किमेयमवरुप्पर-विरुद्धं ? ||२७३२|| विउलमईए कहिओ सव्वो निय-वइयरो तओ तुहो । धणमित्तो भणइ-अहो ! मइ-माहप्पं मह पियाए ||२७३३।। घरसामिणिं विहेउं तं चिय भुंजइ अणुत्तरे भोए । जिणपूया-गुरुसेवा-कउज्जमो गमइ दियहाई ॥२७३४।। अह तत्थ दिव्वनाणोवलद्ध-भव-भावि-भाव-सब्भावो । भवदेवो नाम गुरू नयरुज्जाणे समोसरिओ ||२७३५।। पत्तो धणमित्तो तस्स वंदणत्थं कलत्त-संजुत्तो । तं वंदिउं निसलो धम्मकहं सोउमाढत्तो ||२७३६।। पुच्छइ समयं लहिउं-किं विहियं मह पियाए पुव्व-भवे ? | जेण विसुद्धा बुद्धी भोगा विउला य संपत्ता ||२७३७|| गुरुणा वुत्तं-सोम ! सुण,
आसि कुसउरे नयरे भाणुदेवस्स सिहिणो अपुत्तस्स रोहिणी धूया । सा य विहवा, ववहारे करेइ पिउणो साहिज्जं । कयाइ नव-जोव्वणे वट्टमाणो मयणो व्व रूवेणं समागओ गिहं देसंतराओ वणियपुत्तो । तं च
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
दहूण अविवेय- बहुलयाए जोव्वणस्स चंचलयाए इंदियगामस्स, तुच्छयाए इत्थी - सहावस्स, अगणिय- गुरुयण - लज्जाए, अकलियकुलकलंकार, अविभाविय - उभय-भवदुहाए पेसिया साहिलासा दिट्ठी रोहिणीए । निज्झाईओ सुइरं वणिय पुत्तो । लक्खियमिणं भिक्खानिमित्तं तक्कालं गिहागएण सीलसार-मुणिणा । जओ
जइ वि न समइ न जंपइ निहुयं झाएइ हियय - मज्झम्मि । मयणाउस्स्स दिडी लक्खिज्जइ तह वि लोएण || २७३८ ।। जं सविलासा दिडी जं सज्झसवस विसंठुला वाणी । सेय - जल - बिंदु - संदोह - दंतुरं जं नडालयलं ॥ २७३१||
जं दंसिय-थणवहं पुणरुत्तं उत्तरिज्ज-संठवणं ।
जं मयण - केलि - वावी - सणाहि नाहीइ पाडणं || २७४०|
"
जं असिटिल-केसकलाव-बंधणं उल्लसंत-भुय-मूलं । तं लक्खिज्जइ रमणीण को वि चित्ते चहुट्टो ति || २७४१ || अहो दुज्जओ मयण-पसरो त्ति चिंतंतो निग्गओ सीलसार मुणी । कमेण अहिगय- समत्त सुत्तत्थो ठविओ गुरुणा सूरिपए । गामागरनगरेसु विहरंतो आगओ कुसउरे । निग्गया नागरा । नमिऊण निसन्ना पुरओ । पारदा धम्म- कहा गुरुणा । पडिबुद्धा बहवे जणा । पणमिऊण भणियं रोहिणीए - भयवं ! देहि मे सम्मत्तं ।
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गुरुणा भणियं पुव्वं अइयारालोयणं कुणसु भद्दे !! भवजलहि- पोयभूयं पच्छा पडिवज्ज सम्मत्तं || २७४२ || जह सुविसुद्धे कुड्डे लिहियं चित्तं विहाइ रमणिज्जं । तह निरइयार - जीवे सम्मत्तं गुणकरं होइ || २७४३|| जह लंघण - हणिय- रसस्स रोगिणी ओसहं गुणाय भवे । आलोयणा - विसुद्धस्स धम्म-कम्मं तहा सयलं ।। २७४४ ।। एवं सोऊण इमा आलोयइ बालभावओ विहियं । सव्वं चिय अइयारं दिहि-वियारं वि मोत्तूण || २७४५ || गुरुणा वृत्तं सम्मं आलोयसु तीइ जंपियं भयवं । किमसम्म ?, भणइ गुरु- वीसरियं किं तयं भद्दे ||२७४६||
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सुमइनाह - चरियं
जं तइया वणिपुत्तो तुमए दिट्ठो दढाणुराएण । मुणियं मए वि एयं भिक्खत्थं तुह गिह- गएण || २७४७ || १३ सा भणइ वणि- पुत्तो न मए मयणाउराइ सच्चविओ । किं आलोएमि ? तओ भणइ गुरू- किं तए न सुया ? || २७४८ ।। मण- चिंतिय-अइयारं अकहेत्ता गारवेण गुरु-पुरओ । तिव्व-तवच्चरण-रया वि लक्खणज्जा गया कुगई || २७४१||
तहाहि
धरणिपइडिय - नयरे आसि निवो जंबुदाडिमो नाम । देवी य सिरिमई से बहु पुत्ता किंतु नत्थि सुया ||२७५०|| कुलदेवय- उवाईय-सएहिं धूया कमेण संजाया । सुलक्खण त्ति नामेणं लक्खणा तेहिं सा वुत्ता ||२७५१|| अइ-वल्लह त्ति काउं तीए रन्ना सयंवरो विहिओ । चउरी - मज्झम्मि मओ तब्भत्ता दिव्व- जोएण || २७५२|| राया वि सोग - विहुरो भयमाणिं लक्खणं भणइ एवं । वच्छे ! मच्चुमुवेंतं सक्को वि न सक्कए खलिउं ॥ २७७३ || ता पुत्ति ! तुज्झ एयं पुव्वज्जिय-कम्म- परिणइ - वसेण । विहवत्तं संजायं नीसेस- दुहाण जं ठाणं ॥ २७७४|| चरसु तवं कुणसु दयं दाणं वियरेसु रयसु जिण - पूयं । पढसु य वेरग्ग- सुयं उब्भड वेसं विवज्जेसु || २७५५ || विहवाण छड्डियाण य पउत्थवईयाण तह य समणीणं । धम्म-निरयाण दियहा जंता वि हु नेव नज्जंति || २७५६ || इय पन्नविया रन्ना धम्मपरा लक्खणा गमइ कालं । अह तत्थ तित्थनाही केवलनाणी समोसरिओ || २७५७।।
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गओ राया जंबुदाडिमो वंदणत्थं सपरिवारो । वंदिऊण निसन्नो सहाणे । परूवियं भयवया संसारासारत्तणं । संविग्गो राया पवन्नी सदारो सपुत्तो लक्खणाए समं दिक्खं । अप्पियाणि सव्वाणि थेराणं । तेहिं पि समणीओ पवत्तिणीए । पढंति सुत्तं कुणंति तिव्व तवं । कयाइ पयट्टाई गणि- जोगे ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं अन्नया तीए असज्झाइयं ति काउं न पेसिया पवत्तिणीए उद्देससमुद्देस-मंडलीए लक्खणज्जा । ठिया वसहि-कोणे । एत्थंतरे तीए असुह-कम्म-रासि-आयडियं पिव आगयं चडय-मिहुणयं । दिलं विविह-कीलाहिं कीलंतं । चिंतियं तीए-धन्नाणि एयाणि जाणि सच्छंदं कीलंति कयत्थ-जीवियं व । दुल्ललियाए जा एवं चाडुएहिं लालिज्जइ निय-पिएण | ममावि इमे दहण जायं परम-सुहं ।
एयाणं दंसणे पि हु पुरिसपरो(रि) सो व्व जणइ मे हरिसं । जं पुण सेवाए सुहं इमाण तमहं न याणामि ॥२७५८।। ता किं जिणेण एयाण दंसणं वारियं मुणिजणस्स । मन्नेमि वीयरागो मुणइ सरागाण न हु दुक्खं ॥२७५१।।
अहवा अजुत्तं मए चिंतियं । अहह ! एयाण दंसणेणावि चलियं मह चित्तं, जाया परिस-वंछा, ता सुंदरं कयं जिणेहिं जं वारियं एरिसाण दंसणं । पादा अहं जं इमं पि महापावं बहुमन्ने मि । आलोएमि गुरु-पूरओ त्ति चिंतिऊण चलिया, ताव खुत्तो पए कंटओ । ठिया एसा, चितिउं पवत्ता य-अहं खु रायधूया अखंडिय-सीला सव्वत्थ विक्खाया, तो जइ मे जणणी-जणया जाणिस्संति ता लज्जिस्संति । अओ न जुत्तं कस्स वि पुरओ [कहिउं ?] । अईयार-धरणे स-सल्लत्तणं, कहणे य लाघवं । ता किं करेमि ? | हं, परव्ववएसेण पुच्छामि गुरुं जहा-जो एवं चिंतेइ तस्स किं पायच्छित्तं ? । तं च सोऊण करेमि सयमेव तवच्चरणेण सुद्धिं । तवो एत्थ कारणं, किं पागड करणेणं ? ति । तहे व पुच्छि ऊण तवं काउमारद्धा | जाव पत्ता संवच्छराणि छहऽहम-दसम-दुवालसे हिं सोसिय-सरीरा । सच्छंद-पायच्छित्तेणं सकलुसा मया लक्खणज्जा । समुप्पन्ना एगम्मि नयरे कुट्टिणी-चेडाए सुया खंडोहा नाम । पत्ता जोव्वणं । कयाइ चिंतियं कुट्टिणीए-इमा चेडा रूव-लायन्न-संपन्ना । मम धूयाए जे रमणा आगच्छंति ते इमं साहिलासं पलोयंति, न मम दारियं, ता इमीए नासं कन्नं उहं च छिंदेमि जेण न इमं कामुय-जणा पलोयंति । अहवा न जुत्तमेयं । मम धूया तुल्ला एसा, ता निज्जासेमि । इमं पि न जुत्तं, जओ अन्नत्थ वि सुरूव त्ति लहिस्सइ थामं । ता सीवेमि इमीए जोणिं, नियलाणि य देमि जेण निगडिया न सक्कइ अन्नत्थ गंतुं । एवं चिंतिऊण पसुत्ता कुट्टिणी । इमं च सव्वं खुड्डाए करुणाए केणइ
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सुमइनाह-चरियं वाणमंतरेण सुविणे सिहं । पहाए पणहा खंडुहा । भमंती छम्मासेण पत्ता संखडं नाम खेडं । तत्थ दिहा एगेण महाधणेण रंडासुएणं । काऊण निय-परिग्गहे नीया निय-घरं । तस्स पुव्वभज्जा ईसाए चिंतेइ
वरं कूवे झंपा वरमनलजाला-कवलणं, वरं सूला-भेओ वरमसिण(मसणि)दंडस्स पडणं । वरं खग्गच्छेओ वरमुरग-तुंडेण डसणं, रमंतो मा दिहो तहवि अवराए सह वरो ||२७६०।।
मग्गए छिद्दाणि । अन्नया निब्भर-पसुत्तं खंडुटिं दहण चुडलिं दत्तं च घेत्तूण धाविया । चुडुलिं गुज्झा-मज्झे घत्तिऊण दत्तेण फालेमाणी ताव गया जाव हिययं तं फुरफुरंतिं दहण पुणो वि तत्त-लोह-कुसीताए जोणीए कुट्टिया मया दुक्खेण खंडोहा । तओ तीए सरीरगं खंडिऊण पक्खिवई" सा साणाईणं । एत्थंतरे समागओ रंडासुओ, तं च तारिसं असमंजसं दहण संविग्गो पडिवनो जिण-दिक्खं, कय-तिव्वतवच्चरणो गओ सुगई । लक्खणा-जीवो वि भमिऊण चिरं संसारं सहिऊण तिरिय-नरगाइसु तिक्ख-दुक्खाई सेणिय-"जीव-तित्थयरतित्थे सिज्झिास्सइ ।
ता गुरु-पुरओ दोसं सम्ममणालोईउं भव-समुद्दे । मा निवडसु छेयगंथ-अक्खिया लक्खणज्ज व्व ।।२७६१|| आलोयणा-परिणओ सम्मं संपहिओ गुरु-सयासे | जइ अंतरा वि कालं करेज्ज आराहओ तहवि ||२७६२।। आगंतुं गुरु-मूले जो पुण पयडेज्ज अत्तणो दोसे । सो जइ न जाइ मोक्खं अवस्सममरत्तणं लहइ ||२७६३।। काऊण पाव-कम्मं सम्ममालोइऊण गुरु-पुरओ ।
पत्ता अणंत-जीवा सासय-सोक्खं च निव्वाणं ॥२७६४|| ता मोत्तूण नियडिं आलोयसु दिहि-वियारं । तओ पुणो पुणो मे दोसमुग्गिरइ गुरु इमो त्ति कोवमावन्ना, कहं अहं अकयं कयं ति जंपेमि ? ति भणित्ता गया सहाणं रोहिणी । पइसमइ समुच्छलंत-मच्छरा अपडिवन-सम्मत्ता गुरुजण-हीलापरा परिचत्त-धम्ममग्गा मरिऊण समुप्पन्ना साणी । रिउ-काले विणहा तीए जोणी । तओ किमिकलेण
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं खज्जमाणी गलंत-पूय-मिलिय-मच्छिया-मंडला "सव्वत्थ-निच्छुब्भमाणा किच्छेण मया, समुप्पन्ना सप्पिणी । दवग्गि-दड्डा मया गया नरए । तओ वग्घी वाहेण हया गया पुणो नरए ।
इच्चाइ असंख-भवे सहमाणा तिक्ख-दुक्ख-लक्खाई । तिरिएसु नारएसु य परिभमिया रोहिणी एसा ||२७६५।। दोहग्ग-रोग-दालिद्द-सोग-पियविप्पओग-पमुहेहिं । दुक्खेहिं दुयं बहुसो इत्थी-जम्मम्मि संपत्ता ||२७६६।। कइयावि कुदेव-भवे परपेसत्तणकरे समुप्पन्ना । इय चउगइ-संसारं भमिऊण असंखकालमिमा ||२७६७।। उप्पन्ना धन्नउरे गामे गोवद्धणस्स गिहवइणो । धूयत्ताए एत्तो धनिय त्ति नामं कयं तीए ॥२७६८।। अह धनिया पवना तारुन्नं तरुण-लोय-मणहरणं । दिहा मयहर-पुत्तेण मग्गिया तह य परिणीया ||२७६१।। तीए य अंग-संगम्मि तस्स जाओ स को वि संतावो ।
जेणप्पा पजलिय-जलणकुंड-खित्तो व्व पडिहाइ ॥२७७०।। तओ विरत्तेण निव्वासिया सगेहाओ धनिया "रुयंती पत्ता पिईहरं । समासासिया पिउणा दिना निय-पिंडारस्स । भणिओ य सो-भद्द ! घरजामाउओ तुमं, मा मम धूयाए पणय-खंडणं करेसु त्ति । सो वि तीए सरीर-फरिस-मित्तेण जणिय-महंत-संतावो गामं पि मोत्तूण पणहो । विसन्ना धनिया । भणिया पिउणा- वच्छे ! तुह वच्छल्ल-तल्लिच्छेण मए अकज्जं पि कयं । तं पि तुह पुव्व-कम्मवसओ विहलं जायं,अओ खेयमकुणंती दाणाइ-धम्म-रया मह घरे चिह । तहेव चिहमाणीए वच्चए कालो । कयाइ गिहमागया साहुणो पुच्छिया इमीए-जाणह तुब्भे मंतं तंतं वा जेण परो वसीहवइ ? | तेहिं वुत्तं-जाणंति अम्ह गुरुणो जेण तेलोक्वं पि वसो होइ । धनियाए वुत्तं- कत्थ ते गुरुणो ? | मुणीहिं वुत्तंलीलागरुज्जाणे सीलागरा नाम समोसढा चिट्ठति । भुत्तुत्तरं गया पिउणा सह धनिया । वंदिऊण गुरुं निसन्ना पुरओ । भणियं अणाए- भयवं ! कहेह वसीयरण-विसयं मंतं तंतं वा । गुरुणा वुत्तं
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सुमइनाह-चरियं
तइलोक्क-वसीकरणो समत्त मणि चिंतियत्थ-संजणणो । . जिण-पन्नत्तो धम्मो मंतो तंतो व न हु अलो ||२७७१।। जेहिं विहिओ न धम्मो पुव्वं ते एत्थ दुत्थिया जीवा । किं पसरइ दालिदं चिंतारयणे वि संपत्ते ? ||२७७२|| गोवद्धणेण भणियं- पुव्व-भवे मह सूयाए किं विहियं । जेणेसा एवंविह-दोहग्ग-कलंकिया जाया ? ||२७७३।। भणइ गुरु-जमिमीए रोहिणि-जम्मे कया गुरु-अवन्ना । तीए फलेण लहिउं असंख-जम्मेसु दुक्खाइं ॥२७७४।। उप्पन्ना तव धूया इय सोउं जाय-जाइसरणाए । नमिऊण धनियाए अवितहमेयं ति संलत्तं ॥२७७५।। गुरुणा वुत्तंइहलोईए वि कज्जे देवं गुरु [च] नमंति जणा । किं पुण परलोय-पहे धम्मायरियं पईव-समं ||२७७६।। नाणस्स होइ भागी थिरयरओ दंसणे चरित्ते य । धन्ना आवकहाए गुरुकुलवासं न मुंचंति ॥२७७७।। छहहम-दसम-दुवालसेहिं मासद्ध-मासखमणेहिं । अकुणंतो गुरु-वयणं अणंत-संसारिओ होइ ||२७७८।। इय सोउं पुव्वकयाईयारमालोईऊण गुरुपुरओ । गहिउं गिहल्थधम्मं च धनिया कुणइ तिव्व-तवं ॥२७७१।। वत्थं भत्तं पाणं पत्तं सेज्जं च जं जमणुकूलं । तं तं गुरूण वियरेइ फासुयं एसणिज्जं च ||२७८०।। अह उल्लसंत-सद्धा संवेगपरा "पवजिउं दिक्खं । गुरुणो पवत्तिणीए य कुणइ आणं सबहुमाणं ॥२७८१।। किं बहुणा ? ऊसासाइ वजिउं अवर-सव्व-किच्चेसु । ते पुच्छिऊण सम्मं पयट्टए धनिया धन्ना ||२७८२।। इय गुरुजण-आणाए विहिय-वया वीस-वरिस-लक्खाइं । मरिऊण धनिया सा सोहम्म-सुरालयं पत्ता ||२७८३।।
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं तत्तो चविऊण इमा विउलमई तुज्झ पिययमा जाया । गुरु-भत्ति - फलेणं विउल - बुद्धि-भोगेहिं संजुत्ता ||२७८४|| जो पुव्व-भवे गोवद्धणो त्ति जणओ इमीए कय- सुकओ । सग्गं गंतूण चुओ तुमं पइ एत्थ सो जाओ || २७८५|| इय सोउं धणमित्तो विउलमई तह य दोवि चिंतंति |
पिच्छणय- सरिच्छं धी । संसारस्स रूवमिणं || २७८६ ।। जम्मि जणओ वि भत्ता सुया वि भज्जा य जायए एवं | को तत्थ रमइ मइमं विडंबणा - भायणम्मि भवे ? || २७८७।।
इय संविग्गमणाई काउं जिण मंदिरेसु महिमाओ । कय- सव्व-संग- चागाई ताइं दिक्खं पवन्नाई || २७८८ ।।
गुरु - आणाए छट्ठट्ठमाई तिव्वं तवं विहेऊण । धमित्त विऊलमई य दोवि पत्ताइं निव्वाणं || २७८७ || गुरु- सेवं कुणमाणो वि जो न कोहग्गि-निग्गहं कुज्जा । दोगच्च-दलण- दच्छं धम्म-धणं दज्झए तस्स || २७१० बहिरम्मि मंतणं पिव रख्ने रुन्नं व तमसि नहं व । उवसम - रहिए जीवे धम्माणुडाणमिह विहलं || २७९१|| कज्जाकज्ज - वियारण- चेयन्नहरस्स विसहरस्सेव । कोवरस कोऽवगासं मइमं मण मंदिरे दिज्जा ? || २७९२ ||
सुटु जलणो जलंतो वि दहइ तं चेव जत्थ संलग्गो । कोह - जलणो उ जलिउं परमप्पाणं परभवं च || २७१३ || दुव्वयण- पूय-कलिओ कलुसज्झवसाय - किमिकुलाइन्नो । कोहो कोहो व्व धुवं धम्म- सरीरं विणासेइ || २७१४ || जिण-पवयण - मेह- समुब्भवेण पसमामएण कोव - दवं । विज्झवइ जो नरो होइ सिव-फलं तस्स धम्म-वणं ॥ २७१५|| कविलो व्व कोव - कलिओ इह-परलोए य लहइ दुक्खाई । उवसम सहिओ पुण केसवो व्व पावेइ कल्लाणं || २७१६||
तहाहि
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सुमइनाह-चरियं
[४. कोपोपशमयो कपिल-केशव-कथा]
इहेव जंबुद्दीवे भारहे वासे नाणामणि-खंड-मंडिय-पसंडि-पासायसंदब्भा विदब्भा नयरी । तत्थ सूरो वि न कमलोवयारओ, सोमो वि न दोसायरो, वसूहानंदणो वि न वक्को विक्कमसेणो राया । तस्स निरुवमरूव-लायन्नावगन्निय-सुरसुंदरी रइसुंदरी देवी । तीए सरयंद-कुंदसुंदर-गुणो गुणसेणो पुत्तो । लहुओ य तस्स सावक्लओ चंडसेणो भाया ।
सरल-सहावत्तणओ गुणसेणो गुणइ तम्मि जह नेहं । गुणसेणे उण न तहा "चंडसेणो कुडिलचित्तो ||२७१७।। बालत्तणओ वि हु विसय-सोक्ख-विमुहो मणम्मि गुणसेणो ।
जणणि-जणय-उवरोहण गेहवासम्मि संवसइ ।।२७५८।। एगया उग्ग-विस-वियार-जणिय-तिव्व-वेयणो मुच्छानिमीलियच्छो निवडिओ धरणिवहे गुणसेणो | कओ परियणेण महतो कोलाहलो । तं सोऊण 'हा ! किमेयं ?' ति संखुद्धचित्तो समागओ राया । दिहो तहाविहावत्थगओ गुणसेणो । लक्खिय-विस-वियारेण रन्ना वाहरिया मंत-तंत-कु सला पहाण-विज्जा । क ओ ते हिं तन्नियत्तणोवयारो । कहवि जाओ सच्छ-सरीरो गुणसेणो । पहिहहियएण रला वत्थाभरण-दाणेण तोसिऊण विसज्जिया विज्जा । केण कयमकज्जं ? ति पयहा परियणे गवेसणा | जाए ववहारे निच्छियमिणं जहा- चंडसेणकुमार-कारियमेयं ति । गुणसेणो तप्पभिइ वियंभियविसय-विराग-चित्तो चिंतिउं पवत्तो
धी संसार-सरूवं जम्मि महामोह-तरलिया जीवा । विसयामिस-लुद्धमणा कज्जमकज्जं व न मुणंति ||२७११।। मह संपइ पज्जत्तं किंपागफलोवभोग-तुल्लेहिं । मुहमहुरेहिं परिणाम-दुक्खहेऊहिं विसएहिं ।।२८००।। जइ कहवि पुन्नवसओ सुगुरुणं दंसणं मह हविज्जा । तो तेसिं पयमूले पव्वज्जमहं पवजिरसं ||२८०१।।
एवमइक्वंतेसुं कइवइ-दिणेसु समागओ तत्थ दिव्वनाण-मुणियतिकालसरूवो व्व हसिय-वम्महो महंत-पुन्न-पब्भारु पावणिज्ज
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पायरा(?) जीवो जीवाणंदो नाम गणहरो । गओ तस्स वंदणत्थं गुणसेणो । दिहोऽणेण भयवं सुरकय-कमल-निसनो । नमिऊण तं तवाल-वियंभमाण-पमोयभर-निब्भरो भालवह-निविट्ठ-करसंपुडो भणिउं पवत्तो
धन्नो हं मुणिनाह ! लोयण-जुयं जायं कयत्थं इमं, संपत्ता मह पाणि-पंकय-तले कल्लाणमालाऽखिला | संपन्नो मह गोपयंमि व सुहत्तारो भवंभोनिही, जं दिहो सि विसिह-पुन्नवसओ धम्मो व्व मुत्तो मए ||२८०२|| एवं थोऊण गुरुं पणमिऊणं सेस-साहुणो निविहो गुणसेणो । पारद्धा गुरुणा भवपबंध-विद्धंसणी धम्म-देसणा । लद्धावसरेण पहुं गुणसेणेण- भयवं ! जं एस लोओ चंडसेणं पडुच्च वागरइ तं तहेव न व ? त्ति । गुरुणा भणियं- तहेव । गुणसेणेण भणियं- भयवं ! अच्चंतकरुणापरस्स वि ममोवरि कोवमुव्वहइ एसो । किमित्थ कारणं ? | गुरुणा भणियं - पुत्वभवब्भत्था तुह इमम्मि करुणा इमस्स य तुमम्मि कोवोऽनिमित्तं । गुणसेणेण वुत्तं- भयवं ! कहमेयं ? | गुरुणा वुत्तंसोम ! सुण,
इहेव जंबुद्दीवे अवर-विदेहे पुक्खलावइ-विजए मंगलउर-नयरं, तत्थ हरि व्व विसाल-वच्छत्थल-निलीण- लच्छी वि सलालसो हरिविक्कमो राया । तत्थ पसत्थ-सत्थ-पारगो पुरोहिओ सोमदत्तो । तस्स सोमिला-कुच्छि-संभवा कविल-केसवाभिहाणा दुवे पुत्ता । समए समप्पिया उवज्झायस्स । तत्थ कविलो मंद-मइत्तणेण बह-कालेणावि न किं पि सम्मं गेण्हइ । केसवो पुण निउण-बुद्धित्तणेण थेव-कालेणावि सुसिक्खियं करेइ | तओ कविलो पए पए उवहसिज्जइ सेस-छत्तेहिं । दूमिज्जइ हियएणं | एसो ममं उवहसावेइ ति वहइ केसवं पइ पओसं । पउहचित्तो नियत्तो पढणाओ । केसवो पूण अवगय-सव्वत्थ-परमत्थो जाओ | अह कालगए जणए गुणाहिओ त्ति निवेसिओ पुरोहिय-पए रना । जाओ रायप्पमुह-महायण-सम्मओ एसो । गुणि त्ति विउसो त्ति सुद्धबुद्धि त्ति परहिय-रओ त्ति कु सलाणुहाणपरु त्ति के सवो कित्तिमणुपत्तो ।
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सुमइनाह-चरियं
जह जह जसवाओ केसवस्स सव्वत्थ वित्थरइ । गरूओ तह तह कविलरस मणम्मि मच्छरो दूरमुच्छलइ ।।२८०३।। गुण-लद्ध-पूयमवलोईउं परं सिखए खलो न गुणो । गुणवंतम्मि पउस्सइ अहह ! अउव्वो खल-सहावो ||२८०४|| अन्नम्मि दिणे कविलो मच्छरवसगो विसिह-जण-पुरओ । जंपतो दोसे केसवस्स जणणीए संलत्तो ||२८०५।। रे वच्छ कविल ! पुरिसेण अत्तणो कुसलमहिलसंतेण । संतमसंतं व परस्स दूसणं नेव वत्तव्वं ।।२८०६।। परदोसग्गहणेणं सगुणो किं होइ निग्गुणो संतो । जइ पुण गुणी सयं चिय ता किं परदोस-गहणेण ।।२८०७।। परदोस-जंपणेणं रिद्धी जा होइ तीए पज्जत्तं । सगुण-विढत्तं सुयणस्स भूसणं वक्कलं पि दढं ||२८०८।। जं गुणनिहिणो निय-बंधवस्स दोसे पयंपसि असंते । तं कुणसि तुमं तणमिव लहुयं लोयम्मि अप्पाणं ||२८०१।। एवं पन्नविओ वि हु नियय-सहावं अमुंचमाणो सो । घय-सित्तो व्व हयासो बाढं रोसेण पज्जलिओ ॥२८१०।। उवएस-सहस्सेण वि पिसुणो सुयणत्तणं न पावेई ।
परिकम्मिओ वि बहुसो काओ किं मरगओ होइ ? ||२८११।। तओ सिणे ह-पेसलं पि के सवं पडुच्च पच्चवायं चिंतंतस्स कविलस्स वच्चंति दियहा । केसवो उण थेवं पि संकिलेसं परिहरंतो कालं गमेइ । एगया गओ उज्जाणे कीलणत्थं विविह-कीलावक्खित्त-चित्तो य रयणीए पहओ छुरियाए के णावि । क ओ परियणेण कोलाहलो । किमयं ति पहाविया विविह-पहरण-विहत्थ-हत्था रायपुरिसा । सो वि पलायमाणो अकज्जकरण-संखुद्ध-हिययत्तणेण खलं त- गइप्पसरो सरोस -मुक्क हक्वारव-रउद्देहिं गहिओ रायपुरिसे हि । समप्पिओ तलवरस्स । कविलो त्ति उवलक्खिओ तेण । निवेइओ रब्नो । तओ चिंतियं रना-अहो ! उभयलोग-विरुद्धमायरणं महाकुलप्पसूयस्स वि इमस्स । के सवो वि नीओ नियघरं । परियणेण पारद्धा वण"तिगिच्छा । समागओ घरं राया । पुट्ठो केसवो सरीर-पउत्ति । महंतं
.
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
संतावमुव्वहंतेण रन्ना भणियं- जमेरिसे पुरिसे सयल सत्त-संतोसकारए परपीडा - परम्मुहे कविलस्स दुरप्पणी इमं विरुद्धायरणं ति तं महंतमच्छरियं ।
૪૧૨
अहवा किं अच्छेरं ? समत्त - जियलोय - लोयण- सुहस्स । हरिणकस्स कवलं गहकल्लोलो कुणइ किं न ? ||२८१२ || तो केसवेण वुत्तं- तेण नराहिव ! न किंचि अवरद्धं । केवलमिणं पुराकय- कडुकम्म वियंभियं मज्झ || २८१३ || जं "पुव्वे दुक्कम्मं कयं मए किंपि परिणयं तमिमं । कहमन्नहा न कुज्जा पीडमिमो सयल-लोयस्स ? ॥२८१४|| जं जेण पुव्व- जम्मे सुहमसुहं वा समज्जियं किंपि । तं चैव सोऽणुभुंजइ निमित्तमेत्तं परो होइ || २८१७ ||
ता न हु इमरस दोसो दोसो मह चेव पुव्व-पावस्स ।. जेण इमं कारविओ एसो नरनाह ! परमत्थी || २८१६ ||
पहठ- मुहपंक एण भणियं रन्ना - अहो ! मे फुरंत पसमावेगो केसवस्स विवेगो, विसुद्धा बुद्धी, अच्चब्भुयं चरियं जमेवंविहावराहकारगे वि ईसि पि न पओसो | अहवा,
सुयणो न याणइ च्चिय कोवं काउं परे विरुद्धे वि । किं मुयइ कयाइ मयंक - मंडलं जलण-कण - वुडि ? ||२८१७|| दूमिज्जंतो वि हु दुज्जणेहिं सुयणो न जंपए कडुयं । निप्पीलिओ वि उच्छू महुर-रसं चिय समुग्गिरइ ॥ २८१८||
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एवं खणमेकं ठाऊण गओ राया सगिहं । केसवो वि जाओ पउणसरीरो । कविलो वि अकज्जकारि त्ति निव्वासिओ नयराओ रन्ना । परिब्भमंतो पत्तो महाडविं । तत्थ ससिकला - कुडिल- दाढा - कडप्पदुप्पेच्छ - मुह-कु हरेण पाविओ पंचत्तं पंचाणणेण । "मरिऊण रुद्दज्झाणोवगओ गओ रयणप्पहार पुढवीए । दहूण निय-बंधवस्स चरिय - पावासवं केसवो संवेगोवगओ गुणड-गुरुणो पासे गिहत्थोचियं धम्मं संपडिवज्जिऊण विहिणा तं पालिऊणं चिरं पंचत्तं लहिउं समाहिसहिओ सोहम्मकप्पं गओ ।
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सुमहनाह - चरियं
अह जंबुद्दीव-भरहे नयरी नामेण अत्थि मायंदी | मायंद-पमुह - पायव-सोहिय सव्वोउय-धड्ढा ||२८११ || सरयब्भ-विब्भमादब्भ- भवण-पंतिप्पहा - समूहेण । निय - रिद्धीए जा सुरपुरं पि रेहइ हसंति व्व ||२८२०|| तत्थऽअस्थि पवर- सेट्ठी विसिद्ध-निय - विहव- हसिय- वेसमणो । समण-पय-पज्जुवासण विहिय-मणो माणिभद्दो त्ति ||२८२१|| तस्स घरिणीए दक्खिवन्न-दाण- विणयाइ - गुण-कलावेण । भुवणम्मि लद्ध - निम्मल-जसाइ सुजसाइ गब्भम्मि ||२८२२|| सोहम्माओ चविउं केसव-जीवो सुओ समुप्पन्नो । जाए वद्धावणयं विहियं रिद्धिप्पबंधेण || २८२३||
अह वडिउमादत्तो कुबेरदत्तो त्ति विहिय - नामो सो । चंदो व्व सयल - जियलोय लोयणाणं कयाणंदी ||२८२४॥ समए समप्पिओ सो कलोवज्झायस्स तो कलग्गहणं । थेव - दियहेहिं तेणं विहियं अह जोव्वणं पत्तो ||२८२५ || एत्तो य कविल-जीवो नरगाओव्वहिउं भरहवासे । वासवपुरग्गलाए कयंगलाए वर पुरीए || २८२६ || धणसार-धणसिरीणं वर-धूया देविल त्ति संजाया । जोव्वणभरम्मि पत्ता कुबेरदत्तेण परिणीया ||२८२७|| पुव्वभवब्भासेणं अत्थि मई तीए कुबेरदत्तस्स ।
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जह देविलाए उवरि कुबेरदत्ते न तह तीए ||२८२८||
४१३
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अन्नया पिउ-घरे चिडंतीए देविलाए आणयण-निमित्तं कयंगलाए गओ कइवय - पुरिस-सहाओ कुबेरदत्तो । कय-सक्कारो ठिओ तत्थ कइवय - दिणाणि नाणाविह विणोएहिं । आनंदिओ गुण-कलावेण ससुर-वग्गो, नवरं दूमिया मणम्मि देविला । पत्थिओ पसत्थ- दियहे कुबेरदत्तो सनयरं । न गंतुमिच्छए देविला । भणिया अम्मा-पिऊहिंवच्छ ! धन्ना तुमं जीए उदग्ग-सोहग्ग- गुणनिही सयल-कलाकोसल्ल- कोसो वल्लहो लदो ता कीस विसायमुव्वहसि ? | वच्च भत्तुणा समं ससुरहरं, तत्थ गयाए य तुमए कायव्वा गुरुयणस्स सुस्सूसा, न लंघियव्वा सव्वत्थ उचिय- पडिवत्ती, मोत्तव्वा कुसील
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४१४
सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं संसग्गी, परिहरियव्वं परघर-गमणं, न वत्तव्वं परस्स दूसणं, न दूमियव्वो कडुय - वयणेहिं परियणो, न वहियव्वं गरूयावराहे वि भत्तुणो पडिकूल - वित्तीए, न खंडियव्वं पाण-संसए वि सीलं । तत्तो सोऊण इमं पवन्नमाणा अणिच्छमाणी वि सद्धिं कुबेरदत्तेण पत्थिया देविला ।
मग्गे वच्चंतीए माहे गामदुग - विचालम्मि । भणिओ कुबेरदत्तो-नाह ! ममं बाहए तन्हा ||२८२९ ।। जइ कहवि संपयं पिय ! पावेमि न पाणिउं तओ पाणा । वच्चंति मज्झ नूणं कुबेरदत्तेण तो धरिउं ॥ २८३०|| निय - वाहणं सहाया पयंपिया-पाणिउं गवेसेह तो सव्वे वि पयट्टा गवेसिउं रख्न्न - मज्झम्मि ||२८३१|| ते वि हु परिब्भंता जलत्थिणो दूर-देसमणुपत्ता | सयमवि कुबेरदत्तो पिया-समेओ समुत्तरिउं ||२८३२ || सगडाओ परियडंता मग्गतडे वग्गडे वियडमयडं । पेच्छइ तण-संछन्नं तो एवं पिययमं भणइ ||२८३३|| अत्थत्थि अंध - कूवे नीरं नवरं न तीरए घेत्तुं । तो तीए संलत्तं मह मोयग गग्गरिं रित्तं ॥ २८३४ || काऊण उत्तरिज्जेहिं बंधिउं खिवसु कूव - मज्झमि । कड्डे जलं तह वि हु विहुरा तण्हाए जेणाहं ॥ २८३५|| तं सो तहेव काउं जा कूवे खिवइ गग्गरिं गरूयं । तो तीए पक्खित्तो कुबेरदत्तो तहिं कूवे ||२८३६|| पच्छाहुत्तं चलिया संपत्ता पिउहरं रुयंती सा । अम्मा-पिऊहिं पुट्ठा विसाय-भर- निब्भर - मणेहिं ॥ २८३७|| वच्छे ! स्यसि किमेवं ? कुसलं जामाउयस्स गुणनिहिणो ? | वच्चंताणं मग्गे किं को वि उवद्दवो जाओ ? ||२८३८।। तो तीए अलिय-विसाय-वस-विसहंत-बाह सलिलाए । संलत्तमिणं - हा हा ! हयम्हि विहिणा विणासेण || २८३१|| वच्चंताण म्ह हे सुन्नारन्ने गवेसिउं सलिलं । दूरं गएसु वंठेसु तो समुग्गीरिय- किवाणा ||२८४०||
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सुमइनाह-चरियं
चोरा समागया झत्ति अज्जउत्तो चउद्दिसं तेहिं । पहरिउमारद्धो तो अहं पि भय-संभमुब्भंता ||२८४१|| नट्ठा कहेण इहं समागया अह समग्ग-सयण- गणो । सोउं इमं महंतं संपत्ती सोग-संतावं ||२८४२ ||
विलवइ कुबेरदत्तस्स गुण-गणं निय-मणम्मि सुमरंतो । सुपुरिस-चूडामणिणो पिच्छ अह ! केरिसं जायं ? ||२८४३ || हयविहि हयास निग्धिण कीस तए तस्स कयमिणं वसणं । एसा वि कित्तणिज्जा अभग्गवंताण धूरि वंछा ||२८४४ || इच्चाइ विलविऊणं संठविउं देविला मिउ-गिराहिं । खित्ता रसोइहरए बोडित्ता मत्थयं तीए || २८४५||
तो खिन्न - सव्व गत्ता मसिमलिणिय-वत्थ- हत्थ - पायतला । कालं गमेइ दुक्खत्त- माणसा देविला बाढं ||२८४६ ||
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इओ य पडिनियत्ता ते वंठा विसंठुलं कुबेरदत्त - सुन्नं सगड पेच्छिऊण 'अहो ! चोर- विलसियमेयं' ति विसन्नचित्ता गया सनयरं, सिहं जहाइडं सिट्ठिणो । विसन्नो सो । कुबेरदत्तो वि अंधकूवे पक्खित्तो पंचनमोक्कार - प्पभावेण अक्खय सरीरो निवडिओ नीर- मज्झे । उत्तरिऊण ठिओ तस्स एग - देसे । बीय-दिणे समागओ तत्थ सुगुत्त - सत्थवाहो । आवासिओ तत्थ पएसे । तओ कूवाओ सलिलमागरिसिउं पवत्ता सत्थपुरिसा भणिया कुबेरदत्तेण - भो भो ! नित्थारह ममं इमाओ कूवाओ । नायत्तंत समागओ तत्थ सत्थवाहो । नित्थारिओ तेण, नीओ नियावासं, पुट्ठो य सायरं-भद्द ! संसारे व्व दुत्तरे कहं अंध- कूवे निवडिओ तुमं ? | तेण वुत्तं- तण्हाभिभूओ जलमायडुंतो निवडिओऽहमित्थ । पडिवन्नो पुत्तो त्ति सत्थवाहेण, काराविओ न्हाण-भोयणाईयं, नियंसाविओ महामुल्ल - दुगुल्ल-जुयलं धरिओ अप्पणी पासे ।
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अन्नया कुबेरदत्तेण भणिओ सत्थवाहो - जइवि तुह तायनिव्विसेसस्स समीवे वट्टमाणस्स मे मण- निव्वुइ तहा वि मह विरहे अम्मा- पियरो दुक्खं जीवंति त्ति । ता विसज्जेसु मं । विसज्जिओ सत्थवाहेण गओ स-नयरं । आनंदियाणि जणणि-: -जणया । कयं वदावणयं । मिलिया सयण वग्गा । कमेण समागओ निय-धूयं गहाय
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૪૧દ
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं ससुरो । वद्धाविओ कुबेरदत्तो वत्थाभरणप्पयाणेण, पुट्ठो य कुसलोदंतं । तेणावि देविला-चरियं निगृहंतेण कहियं किंपि । गओ सो स-नयरं । ठिया देविला । कवड-नेहप्पयंसणेण आवज्जिओ कुबेरदत्तो । कयाइ कुसग्ग-लग्ग-जलबिंदु-चंचलत्तणेणं जीवियश्वस्स सुरासुरेहिं पि अप्पडिहय-प्पसरत्तणेणं मच्चुणो पंच-नमोक्कार-सुमरणपरो परलोयमग्गं पवनी माणिभद्द-सेही । कमेण सुजसा वि जससेसा जाया । कुबेरदत्तो वि सुविणिंदयाल-विब्भमं जीवलोयमवलोयंतो विसं व विवाग-विसमं विसय-वासंग-सोक्खमवगच्छंतो तप्पभिइ-वियंभियसविसेस-संवेग-वासणो सुगुरु-समीवे पडिवन्न-देसविरई उवासगपडिमाराहण-कओज्जमो कालं गमेइ । देविला वि कसाय-कलुसियमणा मणागं पि अणियत्त-विसयाहिलास-पसरा सराग-हियया हियाहिय-वियार-वज्जिया जिइंदिय-मुणिजणासायणपरा परलोय-भयविप्पहीणा हीणायार-निरया निरंकु सा कु सीलजण-संसग्गं च अहिलसमाणा समाण-सीलम्मि दुग्गिलाभिहाण-कुलपुत्तगम्मि संपलग्गं चिहइ । अइक्वंतो कोइ कालो ।।
एगया गरुयावराह-कु विएण रन्ना उब्बंधाविओ दुग्गिलो । कुबेरदत्तो वि तम्मि दिवसे चउद्दसि ति पडिमं पडिवजिऊण नियघरासन्न-सुन्नघर-कोणम्मि ठिओ धम्मज्झाण-परायणो 1 इयरी वि रयणीए गहिऊण फुल्ल-विलेवणाईणि निग्गया गेहाओ वच्चंती य दिहा तलवरेण । कहिं एसा वच्चइ ? त्ति चिंतंतो लग्गो तीए पिढओ । इयरी वि गया तं पएसं जत्थ सो दुग्गिलो उब्बद्धो चिहइ । आरुहिऊण रुक्ख-साहाए अलंकरिऊण तं फूल्लाईहिं अच्चंताणरत्तचित्ता चुंबिउं पवत्ता । एत्थंतरे के लिप्पिय-वंतरेण मय-सरीरमणुपविसिऊण खंडियं दंतग्गेहिं नासग्गं तीए । इयरी वि विरसमारसंती नियत्ता, पत्ता नियगेहं । दिहं च सव्वमेयं तलवरेण | पहायप्पायाए रयणीए पोक्वरंती गया राउलं । पुहा रन्ना-किमेसा पुक्करइ ? त्ति । वागरियमणाए- मह दुरप्पा पई एक्क-पल्लंक-पसुत्ताए अज्ज निसाए नासियं छिंदिऊण कहिं पि पणहो । आणत्तो रन्ना तलवरो-गवेसेहि तं । आएसो त्ति भणित्ता पयत्तो तं गवेसिउं । दिहो तेण तहेव पडिमापवन्नो कुबेरदत्तो । आणीओ भुयाए घेत्तूण रन्नो समीवं । भणिओ रन्ना-किं तुमए निरवराहाए नासा छिन्न ? त्ति । कुबेरदत्तेण चिंतियं- 'अहो ! पावाए वियंभियं । ।
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सुमइनाह-चरियं
जं अप्पणा करणं पावेणं पाविउं अणत्थमिणं । अप्पाणं निद्दोसं कुणइ तमारोवइ ममं पि ||२८४७|| ता मह अलं इमीए कहाए पावाए पाव-जणणीए' । इय चिंतिऊण चित्ते कुबेरदत्तो तहेव ठिओ ||२८४८।। रना पुणो वि पुठो जाव पयंपइ न किं पि स महप्पा । तो तीए पलत्तमिणं-किमुत्तरं कुणइ कयपावो ? ||२८४१।। एसो देवस्स पुरो कवडेण ठिओ अवलंबिउं मोणं । ता देव ! निम्वियारं इमं अकज्जं कयं इमिणा ||२८५०।। तो रन्ना वागरियं- तलवर ! एयरस निग्गहं कुणसु । जेण विणा अवराहं पावेण विडंबिया बाला ||२८५१।। तो तलवरेण वुत्तं- इमस्स गुणरयण-रोहणगिरिस्स । न वहति वहत्थं पत्थिविंद ! हत्था मह विहत्था ||२८५२।। तो नरवरेण वुत्तं-किं कारणमित्थ तलवर ! कहेसु । तो तलवरेण सव्वं कहियं रनो रयणि-वित्तं ।।२८५३|| भणियं पुणो वि तेणं एत्थत्थे देव ! पच्चयं काही ।
मयग-मुहे चिट्ठतं अज्ज वि तं नासिया सयलं ||२८५४|| तओ रन्ना पेसिओ पच्चइय-पुरिसो, दिहं च तं मयग-मुहे नासग्गं । सिहं तेण जहादिहं रनो । कुण रला निव्वासिया सनयराओ देविला । कुबेरदत्तो उण 'अहो ! परदोस-पयंपण-परम्मुहो एस'त्ति संतुह-हियएण संपूईओ रन्ना । पत्तो सगेहं परिभाविउं पवत्तो
धिद्धी । भवस्सरुवं जम्मि महामोह-परवसा संता | पीयमइर व्व जीवा कज्जमकज्जं न मुणंति ||२८५५।। गिरि-सरि-पय-पूरं पिव समूलमुम्मूलयंति धम्म-वणं । उम्मेिं ठ-मत्त-करिणो व्व उप्पहेणं पयति ।१२८५६।। पेक्खंति समुक्खय-चक्खुणो व्व सग्गापवग्ग-मग्गं नो । विसवेग-विहुरिया विव हिओवएसं पि न सुणंति ||२८५७।। अगणिय-जण-वयणेज्जा तं किं पि समायरंति किं बहुणा ? | इह-परलोए य हवंति भायणं जेण दुक्खाण ||२८५८।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं किञ्च, खलमेत्ति व्व खणेणं विहडइ चुडलि व्व जणइ संतावं । मइर व्व कुणइ मोहं नइ व्व नीयं सरइ लच्छी ।।२८५१।। जाण कए कूणसि तुमं रे ! जीव ! बहुप्यार-पावाइं । सयणा सिणेहहीणा खणेण ते सत्तूणो हुति ||२८६०।। जं पुण सरीरमेयं वरवत्थाहरण-भूसणाईहिं । अणवरयमुवयरिज्जइ तं पि असासयमसारं च ||२८६१।। एगत्थ कहवि परिमोइया वि अन्नत्थ लग्गइ खणेण । दूरेण होइ सुहया महिला कंथारि-साह व्व ।।२८६२।। विसया विसं व परिणाम-दुक्ख-जणगा अवस्स मोत्तव्वा । ते उण सयं विमुक्वा न कुणंति मणस्स संतावं ।।२८६३|| ता भव-निबंधणेणं धण-सयण-सरीर-जुवइ-विसयाणं । पडिबंधेणं इमिणा न किंचि कज्जं ममेयाणिं ||२५६४|| एवं विरत्तचित्तो कुबेरदत्तो समुल्लसिय-सत्तो । दाऊण दविण-निचयं चेईहराइसु ठाणेसु ||२८६५।। चारित्त-रयण-रोहणगिरीण सिरिभुवण-भूसण-गुरूणो । पयमूले पडिवल्लो पव्वज्जं पावगिरि-वज्जं ||२८६६।। अहिगय-समत्त-सुत्तो गीयत्थो गुरुयणं अणुनविउं । जिणकप्पं कुणमाणो पत्तो पच्चंत-गामम्मि ||२८६७।। तो देविलाए दिहो परिब्भमंतीए तत्थ दिव्ववसा । काउसग्गेण ठिओ बाहिं गामस्स जक्खहरे ।।२८६८।। तो विस-धूम-पओगं काउं कुवियाए तीए रयणीए । मुणिणो विणासणत्थं जक्खहरं सव्वओ पिहियं ।।२८६१।। विसधूव-धूम-संसग्ग-जाय-गुरु-वेयणो स मुणि-सिंहो । नाऊणमप्पणो मरण-समयमुल्लसिय-सुह-भावो ।।२८७०।। सिद्ध-समक्ख-समुद्धरिय-सव्व-सल्लो महव्वउच्चारं । काउं सो पच्चक्खइ सयमेव चउग्विहाहारं ।।२८७१।।
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सुमइनाह-चरियं
भावेई इमं रे जीव ! सव्व सत्तेसु तं कुणसु मित्तिं । मा कत्थ वि रोस वहसु देविलाए विसेसेण ॥ २८७२ || उवयारिणी तुहेसा जं नरयाइसु अवस्स - खवणिज्जं । तं कम्ममुईरेउं इहावि निहवइ किर एसा ||२८७३ || जइ उण इमाइ उवरिं करेसि रोसं चिरं तवं तविरं । ता हारिहिसि सुवन्नं धम्मिय पिहु एक्क- फुक्काए ||२८७४|| संसारम्मि अणते अनंतसो नारएसु तिरिएसु । जाएण तए सहियाइं जाई तिक्खाई दुखाइं ||२८७५ || तयविवखाए दुक्खं थोवमिणं धीरिमं तओ धरिउं । सहसु सयं कडु - कम्मं ललियमेयं विचिंतंती ||२८७६|| एवं समाहिपत्तो कुबेरदत्तो महामुणी मरिउं । जाओ सणकुमारे कप्पम्मि महडिओ देवो ||२८७७|| अह देविला कयत्थं अप्पाणं मुणिवहेण मन्नंती । भयवेविरी पलाणा रन्ने तत्थेव रयणीए ||२८७८|| डक्का भुयंगमेणं मया समाणी किलिड परिणामा | तो वालुयप्पभाए उप्पन्ना नरय- पुढवीए ॥ २८७१ || अत्थि इह जंबुदीवे भारहवासे विसिद्ध-सुरभवणं । कंचणपुरं सुरपुरं व सुरयणालंकियं नयरं ||२८८०|| तत्थत्थि सूरराओ जय-लच्छि - विलासिणी - विलास-रओ । सरय-ससि-किरण-निम्मल - जस-धवलिय-सयल - दिस-वलओ || २८८१||
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जइ होज्ज न सत्तासो करचंडो वा न होज्ज जइ सूरो । गुणओ वि होज्ज तुल्लो तत्तो सो सूररायस्स ||२८८२|| तरस नरिंदरस दुवे दइयाओ दिव्व - रूय- रम्माओ । रइ - पीइउ व मयणस्स गउरि-गंगाउ व हरस्स ॥ २८८३|| पढमा तत्थ कमलिणी अवरा नामेण कुमुइणी देवी । दो वि उवरोह - साराओ सूररायस्स दईयाओ ||२८८४|| एतो सणकुमाराकप्पाउ चूओ कुबेरदत्त - जिओ । गब्भम्मि कमलिणीए सुह-सुविणय-सूइओ संतो ||२८८५ ।।
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४२०
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं उप्पन्नो पुत्तत्तेण तो सुहं हरिस-निब्भरा देवी । गब्भं परिवहइ वहति सयल-लोया वि आणंदं ।।२८८६।। अह पडिपुल्ने समए पसत्थ-दियहम्मि पसवए देवी । जाओ तणओ निय-तणु-पहा-पहणिय-भवण-तिमिरो ।।२८८७।। तो वद्धावइ चेडी तुहिदाणं निवेण तं दिल्लं । आसत्तम-वेणीए भुज्जंतं जं न निहाइ ||२८८८।। तो आणत्तो मंती नयरे वद्धावणं करावेहि । गुरु-रिद्धि-पबंधेणं तेणावि करावियं तं पि ||२८८१।। तं जहाकाराहराई सोहावियाई, बंदियाइं सयल मोयावियाई । सव्वत्थ पयट्टिय हसोह, सम्माणिय दाणिण मग्गणोह ||२८१०।। सुव्वंति निरंतर तूर-घोस, नच्चंति तरुणि-जण जणिय-तोस । निव्वत्तिय घरि घरि तोरणाइं, कय निब्भर-रत्था-सोहणाई।।२८११।। पुर-मग्ग सित्त चंदण-जलेण, घण-घसिण-रयण-मय-पेसलेण । पविसंति निरंतर अक्खवत्त, रंजिज्जहि कुंकुमि लोय-गत्त ।।२८१२।। तिय-चच्चर-नच्चिर-वामणयं, मय-घुम्मिर-कंचुइ-हासणयं । गुण-कित्तण-वावड-बंदिगणं, परिपूइय-नायर-वुड्डजणं॥२८१३|| गुरु-देवय-पूयण-पत्तजसं, जण-भुत्त-मणिच्छिय-भोज्जरसं । जिय-लोयह विम्हय-संजणणं, हुयमेरिसयंसुय-जम्म-दिणं ॥२८१४|| एसो नीसेस-गुणे धरइ त्ति गुणधरो त्ति तो नामं । कुमरस्स तस्स समए पइट्ठियं गुरु-विभूईए ||२८१५|| देहेण गुणोहेण य जह जह कुमरो पवट्ठए कमसो । तह तह मणोरहा वि हु वटुंति मणे पिउ-जणस्स ||२८१६|| समए समप्पिओ सो कलोवज्झायस्स सुह-मुहुत्तम्मि । तेण य सव्व-कलाओ गहियाओ थेव-दियहेहिं ।।२८१७|| अह जोव्वणम्मि पत्तस्स तस्स सो अंगचंगिमो जाओ । जेण कओ नरनारी-गणाण चित्ते चमक्कारो ||२८१८||
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सुमनाह-चरियं
जो कुमर-गुण- कित्तण-वावारेणं दिणाइं न गमेइ । सो नत्थि तम्मि नयरे बालो तरुणी तहा बुड्डी ||२८९९ || खयरर- सुर-सुंदरीओ विक्कम सोहग्ग-चाव - चंगाई | भरियाई चंद-कर-निम्मलाई गायंति कुमरस्स ||२९००|| अह देविलाए जीवो तत्तो उव्वहिऊण नरगाओ । परिभमिओ संसारं दुक्खत्तो हीण जोणीसु || २१०१ || काऊण पुव्व - जम्मे तहाविहं किं पि सुकय-तं - लेसमिमो । जाओ कुमार-धावीए नंदणो जोणगो नाम || २१०२ || सो वि कुमरेण समं पवडिओ जोव्वणम्मि संपत्ती । पुव्व-भवब्भासेणं तम्मि सिणेहो कुमारस्स ||२९०३|| कुमरम्मि पउसो जोणगस्स सो को वि माणसे वसइ । जव्वसओ सो चिंतइ कुमरस्स विणासणोवा ||२१०४ ||
एत्तो य अपडुदेहा संपन्ना किंचि कुणी देवी । नाउं इमं वइयरं विगप्पियं किंपि समईए || २१०५ || अंसु - जलाविल- नयणी साम-: -मुहो जोणगो विसन्नो व्व । दीहं नीससिऊणं एगंते जंपए कुमरं ||२१०६ ||
૪૩
किं कुमर ! करेमि अहं ? कत्थ व वच्चामि मंदभग्गोहं ? । अहह ! अइ-निंदणेज्जं हय-विहिणो विलसियं विसमं ||२१०७ ||
तो कुमरेणं वुत्तं वयंस ! विहिणा किमेयमवरद्धं ? | कहसु ममावि हु तो जोगणेण वृत्तं - कह कहेमि ? || २१०८|| जं कहिउं पि न तीरइ एयं कहियं पि को व सद्दहिही ? | तो कुमरेण भणियं किमेरिसं जंपसि वयंस ? || २909 || एत्तिय - दिणाई किं कयमसद्दहाणं कयावि तुह वयणे ? | तो जोणगो पयंपइ जइ एवं कुमर ! तो सुणसु ॥२९१०||
अज्ज गिलाण - सरीरा भणिया देवेण कुमुइणी देवी । किं तुह देहम्मि दुहं ? सा जंपइ किंपि न दुहं मे ||२९११|| तत्तो निब्बंधेणं रख्न्ना पुट्ठाइ तीइ परिकहियं ।
सवण-विसयं पि पत्तो कुमरो दूमेइ मह हिययं ||२११२ ||
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૪૨૨
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
जह जह सुणेमि नामं इमरस तह तह स मज्झ संतावो । संभवइ जो न तीरई कहियं पि किमंग पुण सहिउं ॥ २९१३|| एयम्मि पुणो दिट्ठे जाइ तं किं पि मह मणे दुक्खं । मन्नामि जं न नरएस नारयाणं पि संभवइ ||२९१४ || जइ जीवियाए कज्जं मए तुमं ता करेसु कुमरस्स । नामं पि जहा न सुव्वइ अन्नह मम" जीवियं नत्थि || २११५।।
एवं देवीए जंपियंमि देवेण पभणिया देवी - |
मा कुणसु देवि ! खेयं तहा जइरसं जहा न तुमं ||२११६ || नामपि सुणसि कुमरस्स तस्स हक्कारिओ अहं तत्तो । देवेण पणय-पुव्वं एगंते पभणिओ एवं ||२११७|| एएण कारणेणं कुमरो देसंतरं जहा कुणइ । तं तह तुमं पयंपसु अम्हे पुण नियय-जीहाए || २११८ || न चएमो वोत्तुमिमं कुमराभिमुहं भणिज्जसि तुमं तो । आएसो त्ति भणित्ता समागओ कुमर ! तुह पासं ||२९१९|| तत्तो जमित्थ जुत्तं तं कुणसु तओ विचिंतए कुमरो । नूणं महिलाओ इमाओ गरूय- दुच्चरिय - भरियाओं ||२१२०|| जे के वि अणत्थपयं दोसा सुव्वंति सव्व - लोयम्मि । तेसिं निवासभूमी सव्वेसिमिमाओ महिलाओ || २१२१ || अन्नो होज्ज न होज्ज व कयाइ दोसो सहावतुच्छाणं । महिलाण मच्छरो उण निच्चं पि न मुंचए चित्तं ||२१२२ || अहवा किं एएणं ? सच्चिय परमोवयारिणी मज्झ । जं देस - दंसणे मह पुव्वं पि कुऊहलं आसि ||२९२३|| जओ
निय - पुन्न - परिक्खा देसभास नाणं संसत्त-माहप्पं । नव-नव - कुऊहलाई न विणा देसंतरगमेण ||२९२४|| तत्तो न इमा जइ पन्नवेज्ज एवं कमेण मह तायं । ता नेह - निब्भर - मणी ताओ कह मं विसज्जेज्ज ? ।।२१२५।।
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सुमइलाह- चरियं
एवं विचिंतिऊणं कस्स वि अनिवेइऊण नयराओ । खग्गसहाओ कुमरो विणिग्गओ जोणगेण समं ||२९२६ ||
वच्चंतो य कमेणं पहे परिव्वायगस्स तो मिलिओ । अन्नन्न - संकह- खित्त-माणसा जंति ते सव्वे ||२९२७।।
पत्ता गम्मि सन्निवेसे । ठिओ बाहिं गुणधरो । गया परिव्वायगजोणगा मज्झभाए भोयणत्थं । गहियं जोणगेण भोयणं, दोन्नि मोयगा य इमं गुणंधरस्स दाहामि त्ति चिंतिऊण पक्खित्तमेगम्मि मोयगे विसं । समागओ गुणंधर- सयासं । मइब्भमेणं दिन्नो निव्विसो मोयग़ो गुणंधरस्स, भुत्तो य अप्पणा सविसो । तव्वसेण मुच्छा - समुच्छिन्नचेयणो निमीलिय- लोयणो निवडिओ महीए जोणगो । हा ! किमेयं ? ति पज्जाउलो जाव चिट्ठइ गुणधरो ताव काऊण भोयणं पत्तो परिव्वायगो । दिट्ठो तेण तहावत्थो जोणगो । लक्खिय-विसवियारेण करुणाए कओ तन्नियत्तणोवयारी । जाओ सो समासत्थो । जं तेण गुणंधररस चिंतियं तं तरसेव जायं । जओ
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चिंतेइ जो मूढमई दुरप्पा अपावचित्तस्स परस्स पावं ।
तेणेव पावेण हयस्स तस्स तं अप्पणी चेव पडेइ पायं ॥ २१२८||
तिन्नि वि पयट्टा गंतुं । कमेण पत्ता समंतओ भमंत-मत्त मायंगवग्घ- सिंघ-संघाय - संकुलं महाडविं । तत्थ पुरओ वच्चंतं परिव्वायगं पडुच्च कुविय-कयंतो व्व उद्धाइओ करचवेडा - भीएण घोण उवाइणीकएहिं वज्जतंतूहिं व कडारेहिं केसरेहिं करालकंधरो नियहरिण - विणास - संकिएण हरिणंकेण पणामियाहिं कलाहिं व कुडिलाहिं दाढाहिं दुप्पेच्छो, अतुच्छ - पुच्छच्छड - छोडणुत्तट्ठाए पुहवीए समप्पिएण पिय- पुत्तेण पडिवन्नो, भयमुत्तिणा मंगलेणं व फुलिंगपिंगलेण नयणजुगलेण भीमाणणी पंचाणणो । 'भद्द गुणंधर ! परित्तायसु ममं' ति अक्कंदियं परिव्वायगेण । तओ निसियग्ग-खग्गमुग्गीरिऊण गरूयसत्तयाए भद्द ! मा बीहसु' त्ति बिंतेण गुणंधरेण हक्किओ केसरी । सो वि रोसवस - विवसो पहाविओ गुणंधराभिमुहं । दिट्ठो जोणगेण । अहो ! सोहणं संवृत्तं जमेस केसरिणा संरुद्धो । सो एस ओसहं विणा वाहिविगमो त्ति चिंतिऊण पणडो जोणगी । गरूय-सत्तयाए अचिंत - सामत्थयाए पुन्नोदयस्स खग्गेण दुहा काऊण कुमारेण पंचत्तमुवणीओ
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं पंचाणणो । खेमेण चलिया कुमार- परिव्वायगा । पत्ता दोवि वसिमं । भणिओ परिव्वायगेण कुमरी - भद्द ! रंजिओ हं इमिणा तुह सच्चरिएण । जओ
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संसय- तुलाए आरोविऊण निय-जीवियं पि सप्पुरिसा । कुव्वंति तुमं व परस्स पाण-संरक्खणं के वि ||२९२९||
ता महासत्त ! भणामि किं पि तुमं । कुमरेण जंपियं- आइसउ अज्जी जं किंपि करणिज्जं । परिव्वायगेण वृत्तं- अत्थि मे दोन्नि विज्जाओ पढियसिद्धाओ, एक्का विस-निग्धायणी अवरा जल- थंभणी य । ताओ गिण्ह तुमं जेण सुपत्त- निक्खेवेण कयत्थमप्पाणं मन्नेमि । 'अलंघणीय वयणा गुरुणो' त्ति भणतेण दो वि विज्जाओ विहाणपुव्वं गहियाओ कुमरेण । गओ परिव्वायगो अन्नत्थ । कुमरो वि पत्तो जयपुरं नयरं ।
जं कामिणी - मुहं पिव सुदीहरच्छं सुहालय-सणाहं । रयण-समिद्धं जं पुण अनासडंडं तमच्छरियं ॥ २९३०|| पडिवक्ख - नराहिव तरुणि- नयण-नीरप्पवाह- सित्त व्व । सव्वत्थ वित्थरिया भुवण-वणे जस्स कित्तिलया ||२९३१|| सो य जसेण नरिंदो परिपालइ तम्मि जयपुरे रज्जं । देवी जयावली मणसिहंडि - जलयावली तस्स ||२९३२|| ताए धूया तइलोक्क - तिलयभूया अणन्नसमरूया । नाणं ससिलेहा जण - नयणाणंदकर-देहा ||२१३३|| सा माहवी - पमुह सहियणेण सद्धिं मणोरमुज्जाणे । कुसुमुच्चयं कुणंती दहुं चंपाहिवस्स सुयं ||२१३४|| जणगावमाण - वसओ समागयं तत्थ कणयसिह - नामं । मयणसर - ताडियंगी कहकहवि नियत्तिउं सगिहे ॥ २९३५|| सेज्जाए निवडिया नीसहेहिं अंगेहिं सयणलोएण । पुडा सरीर वुत्तं मोणं काउं ठिया तत्तो || २१३६|| अह माहवीए भणिया रहसि असब्भाविणी सहि ! किमेवं । जाया तुमं ममावि हु जं कहसि पुरो न सब्भावं ||२१३७ ||
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सुमइनाह-चरियं
तह वि सरीराऽसत्थ-कारणं तुज्झ सहि ! मए नायं । जं रायसुय-पलोयण-कुऊहलक्खित्त-चित्ताए ||२१३८।। कुसुमसर-पूयणत्थं न कओ कुसुमुच्चओ तए नूणं । तेण तुह कमलवयणे कुविओ कुसुमाउहो भयवं ||२१३१|| तेणावि ताडिया निय-सरेहिं जाया सि तो असत्थ-तणू । एइए लक्खियाहं ति लज्जिया चिंतए कुमरी ||२१४०।। अद्धच्छि-पिच्छियाइं दूरे चिहंतु वंक-भणियाई । ऊसरियं पि मुणिज्जइ वियड-जण-संकुले गामे ||२१४१|| तो भणिया रायसुयाए माहवी-सहि ! तुमं वियड्डा सि । मुणसि सयं चिय ता नत्थि ते रहस्सं अओ सुणसु ।।२१४२|| एगत्तो अणुराओ पेलइ लज्जा खलेइ अन्नत्तो । इय वग्घ-दुत्तडी-नाय-निवडिया किं करेमि अहं ? ||२१४३।। तो माहवीइ भणियं-धीरत्तं रायउत्ति ! मा मुयसु । तह कहवि जइस्समहं जइ झत्ति समीहियं लहसि ॥२१४४।। इय जंपिऊण एसा रायसुय-समीवमुवगया सिग्छ । दिहो सो अच्चत्थं मयणावत्थाए अणुरागो ||२१४५।। रायसुयाए सरूवं सव्वं तीए निवेइयं तस्स । तस्स विय सरूवं सव्वमक्खियं रायधूयाए ||२१४६।। अह माहवीइ तेसिं काल-विलंबाऽखमत्तणं नाउं ।
कामभवणे निसीहे विहिओ परिणयण-संकेओ ||२९४७।। तओ जायाए रयणीए केणइ अमुणिज्जंती अविनाय-रयणिविभागा अपत्ते वि मज्डा-रत्ते परिणयणाणुरूवोवगरण-हत्थाए माहवीए अणुगम्ममाणा मंदमंदुम्मुक्क-चलणा समागया कामाययणे ससिलेहा । कया कुसुमाउहस्स पूया । माहवीए वि भवणब्भंतरं करेण परामुसंतीए पत्तो पुव्व-पसुत्तो तत्थ गुणधरो । पुव्वुत्त-रायउत्त-संकियाए य सवणमूले ठाविऊण८ भणिओ-अहो ! किमेवं विलंबेसि ? | अवक्कमइ एस हत्थग्गह-मुहुत्तो । एयं च सुच्चा गुणधरेण चिंतियं- मन्ने एसा वराई पुव्वकय-संकेय-परिस-बुद्धीए ममं समुल्लवइ । ता जावऽज्ज वि सो न आगच्छ इ ताव करेमि एय-वयणं ति चिंतिऊण उहि ओ एसो ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं समप्पियाइं पवर-वत्थाभरणाइणि माहवीए कु मरस्स । तेण वि 'पुव्वभवारोविय-सुकय-कप्पमस्स को वि कुसुमुग्गमो इमो' त्ति मंतिऊिण नियत्थाई ताई । नीओ तीए एस कुसुमाउह-समीवं । कारिओ रायकल्लाए करगहणं । कओ सव्वो वि तक्वालोचिय-विही । भणियं माहवीए-रायउत्त ! जइ वि अविरुद्धो एस मग्गो तहावि गुरुयणअणाउच्छाए सयं कीरंतो न "संतोसं जणइ ति, ता संपयमिहावत्थाणमणुचियं । तओ निग्गओ रायउत्तो ताहिं समं । वच्चंताणं पहे पहाया रयणी । समुग्गओ कमलबंधवो । सम्मं निरूविओ निरुवमरूव-लावण्ण-सुन्नियामर-मरटो गुणधरो रायकन्नाए । किमेयं ? ति पलोईयं मुहं माहवीए । 'असमिक्खियं कयं'ति विसन्ना माहवी । भणिया रायधूयाए- भद्दे !
मा कुणसु किं पि खेयं कायमणिं पइ पसारिए हत्थे । जइ चडइ मरगय-मणी पुन्नवसा किं तओ नहँ ? ||२१४८।। भोत्तुं गुड-मोयगमुज्जयाइ जइ खंड-मोयगो लद्धो ।
ता किं हरिसावसरे कायव्वो होइ मणखेओ ? ||२१४१।।
गणंधरेण निरूविया अहरिय-रइ-रंभा-रूव-सरंभा रायधूया । चिंतियं- अहो ! अणब्भा वृद्धि ति । एवं अन्नोन्न-दंसण-खित्त-चित्ताई पत्ताइं तामलित्तिं । ठियाइं तत्थ | परुढो परोप्परं पणओ | एगया मिलिओ जोणगो रायउत्तस्स । तेणावि नीओ नीयावासं पुट्ठो- भद्द ! कुसलं ? | तओ 'हा ! तहाविहं वसणमणुपत्तो वि जीवइ इमो !' त्ति अंतोदूमिय-मणेण बाहिं कवड-नेहं पयासंतेण भणियमणेण-रायउत्त ! कुसलं संपयं तुह दंसणेण । जओ
एत्तिय-कालं तुह विरह-जलण-जाला-पलित्त-हियएण । पत्तं दुहं मए जं तं मा रिउणो वि पावंतु ||२१५०।। तुह सुद्धिकए रच्नं भमिओ गामाइरसु भमिरेण । कहवि पुरा-कय-पुलोदएण दिहो सि अज्ज तुमं ||२१५१|| गुणधरेणाऽवि सिहो निय-वुत्तंतो जोणगस्स । एवं वच्चंतेसु दिणेसु जोणगेण समं गओ गुणधरो मयण-महसवं पलोईउं । परिब्भमंतेण दिहा सहयार-वीहियाए विबुद्धारविंद-सुंदर-मुही कुम्मुनय-कमा कमलदलविसालच्छी लच्छी विव मणोरमा नाम राय-कलगा । तीए अ तप्पई
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૪ર૭
सुमइनाह-चरियं पेसिया पीऊस-वुहि व्व दिही साहिलासं । ठिओ सो तत्थ वाजेण । भणिओऽणेण जोणगो- मित्त !
नूणमिमीए निरग्गल-निसग्ग-सोहग्ग-भग्ग-गव्वाओ ।
लज्जाइ सुर-वहूओ अदिस्सभावं पवन्नाओ ||२१५२।।
जोणगेण वुत्तं - तुमं महिला-लंपडो संवुत्तो ता एवं मन्ने सि । पेसियमिमीए कुमरस्स कविंजलाए हत्थे तंबोलं । गहियं गुणधरेण । किमेत्थ जुत्तं ति जाव चिंतइ ताव उम्मूलिऊण खंभं वियरिओ मत्त हत्थी। कयमणेण असमंजसं । आउलीहूओ जणो । समागओ सहयार-वीहिमुद्देसं भउब्भंत-लोयणो पलाणो कन्नगा-परियणो | न पलाणा रायकन्ना । धाविओ तं पइ हत्थी । अद्धगहिया इमा । तेण धाहावियं परियणेणअत्थि को वि महासत्तो सप्पुरिस-चूडामणी चउद्दसी-जाओ जो अम्ह सामिणिं कयंत-विब्भमाओ इमाओ रक्खेइ ? |
तो धाविऊण हत्थी पच्छिम-भागम्मि रायपुत्तेण । मुट्ठीइ तहा पहओ तयभिमुहं सो जहा चलिओ ।।२१५३।। तं वंचिऊण तत्तो नीया अन्नत्थ तेण रायसुया । नित्थारिया कयंताणुगारि-करिसंभमाहिं तो ||२१५४|| मुंचइ न मुंचमाणो वि रायकन्ना गुणधर-कुमारं । आणंद-सुंदरेहिं पुणरुत्तं नियइ नयणेहिं ॥२१५५।। तत्तो अन्नत्थ-गए गयम्मि मिलिओ अ परियणो तीए । तेणावि सरुवं किंचि लक्खियं ताण दोण्हं पि ।।२९५६।। तम्मि समयम्मि पढियं केणावि हु मागहेण जह एसो ।
जयइ गुणंधर-कुमरो सूर-नरिंदरस वर-पुत्तो ||२१५७।। एत्थंतरे तरुण-पउरेहिं पारद्धं परुप्पर-विइब्न-सिंगय-जलप्पहारमुक्क-सिक्कार-मणहरं हरिणमय-घुसिण-घणसार-घणचंदणुम्मिस्ससलिले हिं छंटणं । गओ दिसोदिसं सव्व-लोगो । गुणधरो वि पत्तो नियावासं । अन्न-दियहे पेसिओ गुणंधरेण रायकन्ना-पउत्ति-निमित्तं जोणगो रायसुयावासस्स पेरंते परिसक्वंतो दिहो कविंजलाए । तओ सो एस तस्स सुहय-से हरस्स सहयरो त्ति बहुमाणपुव्वं हक्कारिऊण नीओ रायकला-समीवं । दिन्नं सगोरवमासणं । दिहा तेण रायकन्ना । केरिसी ?
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पल्लव-सयणेज्ज-गया मुणाल-वलया मुणालमय-हारा । कय-कयलिदलावाया चंदण-रस-सित्त-सव्वंगी ।।२९५८।। दीहं नीससमाणा अलद्ध-लक्खं खणं निरिक्खंती । परिचत्त-कलब्भासा परिहरिआहरण-तंबोला ||२१५१।। परियणमणालवंती अहाण-विइन्न-सुन्न-हुंकारा । विरह-विहुरा सदीणा दिण-धूसर-ससि-विवन्न-मुही ।।२१६०।। निद्दा-सुहं निसासु वि अपावमाणा दिणाइं गमयंती । कहवि गुणधर-गुण-संकहासु कय-पहरिसुङरिसा ||२१६१।।
भणिया कविजलाए- सामिणि ! तस्स सुभग्ग-चूडामणिणो मित्तो पेसणेणागओ । एयमायनिऊण वलिय-कंधरं साणंदं पलोईऊण भणियं रायकन्नाए- भद्द ! सागयं ते, कुसलं ते मित्तस्स ? तहा को एस तुह मित्तस्स ववहारो ? जं एक्कसो दंसणं दाऊण पुणरुत्तं अणुरत्त-जणस्स वत्ता वि न पुच्छीयइ ? । इसिं हसिऊण कविंजलाए भणियं
जं सामिणि ! तुम्हाणं मणमवहरियं ति तेण सो सुहओ । अवराहिणमप्पाणं मुणिऊण अदंसणीहुओ ||२१६२।। रायसुयाए वुत्तं-अवराहपयं कहं न सो होज्जा ? | जेणाहं अइ-दुसहे विरह-हुयासम्मि पक्खित्ता ||२१६३|| तो जइ तं पेक्खिस्संतो भुयपासेण बंधिउं निबिडं ।
काहं तहा जहा सो मणभवणाओ न नीहरइ ॥२१६४|| जोणगेण वुत्तं- देसंतरागओ मह मित्तो तेण अपरिचिय-रायकुलेसु पवेसं नो सक्कइ त्ति अवनमुणा(?) दंसणं कयं | कविंजलाए भणियंतुम्ह गवसणत्थं सव्वत्थ नयरे पेसिओ परियणो मए, परं पउत्ति-मित्तं पि नोवलद्धं । ता कहेसु कया समित्ते ण ' मम सामिणीए दंसणं कारविस्सामि ? | जोणगेण वुत्तं-कल्लं कुसुमागरुज्जाणे मित्तमहं नइरसं । तुमए मयणपूया-ववएसेण सामिणी नेयम्वा, जेण दंसणं दोण्हं पि होइ ।
___ एत्थंतरे कंचुइणा आगंतूण विन्नत्तं-कुमरि । देवी तुह अस्सत्थं सरीरं सोऊण अधिईए वत्तं पुच्छिउमणा आगच्छइ एसा । तओ विसजिओ जोणगो निग्गओ तओ ठाणाओ । चिंतियमणेण-अहो ! विसमं विहिणो
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सुमइनाह-चरियं विलसियं ति ।
जह जह अहं उवाए चिंतेमि गुणधरस्स वसणकए । तह तह दिव्वो वि इमो अहिययरं कुणइ कल्लाणं ॥२१६५।। किं ववसाएण न किंचि विक्कमेणं मईए पज्जत्तं । एक्वं चिय देहीणं सुहमसुहं वा कुणइ दिव्वं ||२१६६|| तहावि न तरामि इमस्स महब्भुदयं दहुं, एसा य रायधूया इमस्स अच्चंताणुरत्ता । इमीए सयासाओ महंतो अब्भुदओ संभाविज्जइ, ता अन्नहा दुग्गाहेमि एयं । तओ कित्तियं पि वेलं विलंबिऊण बाहिं, अत्थमिए मायंडमंडले विसंभमाणे भुवणब्भंतरम्मि तमालमाला-सामले तिमिर-मंडले मलिणमहो पत्थिओ आवासं । इओ य नागओ जोणगो त्ति संभंतो आवासाओ निग्गओ गुणधरो । मिलिओ जोणगस्स । पुहो कुमरेण सो -मित्त ! किमत्तिअ-वेलं ठिओसि बाहिं ? । कुविएण व जोणगेण वुत्तं-कीस जाणसि तुमं ? | दुनया वि तुज्झ अज्ज वि फलंति । अहं पुण अकय-पावो पावेमि वसणं । संभंतेण भणियं गुणंधरेण- मित्त ! वीसत्थो होउ, कहेसु किं संवत्तं ? । जोणगेण भणियं- इओ गओहं तुहाएसेण, रायसुया-वास-पेरंते, परिसक्वंतो दिहो रायपुरिहिं, तओ अरे ! सो एस रायविरुद्धकारिणो पुरिसस्स सहयरो, ता धरेमो इमं, पच्छा तं पि लहिस्सामो त्ति भणंतेहि कयंत-भडेहि व्व भिउडि-भीम-भालवहेहिं बद्धोऽहं तेहिं पुढो य कत्थ सो तुज्या नायगो जेण करि-संभम-मोयणा-ववएसेण चिरं परिरंभिया राय-धूया ? | तओ न याणेमि त्ति जंपियं मए । बाढं कयत्थिओ हं तेहिं तहावि मए न किंचि वुत्तं । संपयं सकज्ज-पज्जाउलाण तेसिं दिहि वंचिऊण निग्गओहं । ता कुमर ! सच्चं कहेमि
जयसेण-रायधूयं हरिउं वसणं न जं तुमं पत्तो । तं पाणिएण दीवो पज्जलिओ किं न चिंतेसि ? ॥२१६७|| जइ जीविएण कज्जं ता वच्चसु पवहणं समारुहिउं । दीवंतरम्मि संपइ अन्नह ते जीवियं नत्थि ॥२१६८।।
सरल-हिययत्तणे ण पडि वज्जिऊण तव्वयणं गओ गुणं धरो जोणगेण समं वेलाउलं । आरुढा दोवि अचल-सत्थवाह-संतिए तक्वाल-मुक्के पवहणे ।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं वच्चंति जाव दीवंतरम्मि ते दो वि तत्थ आरुढा । ता जोणगेण दुहाभिसंधिणा मज्झरत्तम्मि ||२१६१।। पवहण-तडे निविहो सरीरचिंता-कए विकरुणेण । खित्तो गुणंधरो धीरमाणसो जलहि-मज्झम्मि ||२१७०।। तो खणमेक्वं ठाउं महंत-कोलाहलो कओ तेण । भाया गुणंधरो मे अहह ! कहं सायरे पडिओ ? ||२९७१|| ता किं करेमि ? कस्स व कहेमि ? कं वा उपालभामि अहं ? । इय किंचि विलविऊणं तुहमणो जोणगो चलिओ ||२९७२||
अह अन्न-दिणे दुज्जण-वयण व्व सज्जण-गुणेहिं सामलीकयं गयणं घणेहिं, कुविय-कयंत-जीहाहिं व विप्फुरियं विज्जूहिं, तुच्छपुरिसो व्व कहवि दाणं दाऊण गलगजिं काउं पयट्टो जलहरो, खलो व्व लद्धप्पसरो समुच्छलिओ कालियावाओ, पीयमइरो व्व जाओ जलही विसंतुल-पयप्पयारो । तओ तड त्ति फुटुं महिला-हिअय-गयगुज्झं पिव पवहणं । जोणगो वि भवियव्वया-निओगेण लद्ध-फलगो सत्त-रत्तेण समुत्तरिऊण जलहिं लग्गो तीर, चिंतिउं पवत्तो य
गरूया वि आवया मह दूमेइ इमा न माणसं किं पि । ज पविखत्तो खिप्पं गुणधरो सायरम्मि मए ||२१७३।। खिवियं गुणधरं जलनिहिम्मि मन्नइ कयत्थमप्पाणं । अह कुणइ दमगवित्तिं रज्जं व पहिह-चित्तो सो ॥२१७४|| जओपयइ खलस्स एसा सहिऊण सयं किलेसजायं पि ।
हणिउं अप्पाणं पि हु परस्स जं कीरए दुक्खं ॥२८७५।। सिहिप्पवेसं घण-घाय-कुट्टणं सराण-संगं दढ-मुहि-पीडणं । खलो किवाणो पर-मारणुज्जओ सहेइ नूणं वसणं न कित्तियं ? ।।२१७६।।
इओ य गुणधरेण सुमरिया जलथंभिणी विज्जा । तप्पभावेण जलोवरि तरंतो दिहो पहाय-समए दोहिं विज्जाहरेहिं उप्पाडिओ, नीओ सुवेल-पव्वयं ।
घण-निद्ध-पत्तलाई जम्मि विरायंति तरु-निउंजाइं । सूर-भएण व तिमिराई मिलिय-दग्गं पवनाई ||२१७७।।
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E૧
मरगय-सिलायलुल्लसिय-किरण-जालाई गयण - लग्गाई । जम्मि रवि-रह- तुरंगा लिहंति हरियंकुर भमेण || २१७८||
सुमइनाह-चरियं
तत्थ वित्थिन्न - रयण - खंड - खचिय-खंभ-संभव- पहा- पहयंधयारपसरं पसंडि-पासायं आरोविऊण 'सामि ! एस अम्हेहिं सलिलोवरि तरंतो पत्तो महाभागो 'त्ति भणतेहिं मुक्को अणेग - विज्जाहर परिगयस्स पुरओ वाउवेग - विज्जाहरस्स । तेणावि ससमंभममब्भुहिऊण आलिंगिओ गाढं, निवेसिओ पवरासणे भणिओ य- भद्द ! गुणंधर ! सागयं ते । तओ कहमेसो ममं जाणइं त्ति विम्हय - खित्त - चित्तेण वृत्तं गुणंधरेण- सागयं तुम्ह दंसणेण | आणत्तो निय-परियणो खयरेसरेण करेह न्हाणभोयणोवयारमेयस्स । कमल-कोमल-करयलेहिं खयरगणेहिं गुणंधरो अब्भंगिओ गंध - तिल्लेहिं सुगंध - दव्वेहिं उव्वट्टिऊण, हविओ कणग- भिंगार- मुह - विणिग्गय-गंधोदएहिं । नियत्थ-पसत्थ- वत्थो वित्थिन्न - मंडवे वाउवेग - विज्जाहरेण सह दिव्व रसवईए भोत्तुमादत्तो ।
एत्थंतरे तिरिच्छच्छि-विच्छो हेहिं समुच्छलंत-मच्छ रिंछोलि - छाइयं पिव दिसिचक्कं गुणंती समागया गयण - गामिणी मणिमयालंकारकिरण - करंबिय - भवणब्भंतरा तत्थ विज्जुलेहा कन्नगा । सा य भुंजंतस्स निय - बंधुणो वाउवेगस्स समीवे हत्थ साडयं गहिऊण ठिया । दिट्ठो तीए गुणधरो अच्चंत सुंदरागारों त्ति गरुय-1 - विम्हिय खित्त-चित्ताए पुणरुत्तं पलोईउं साहिलासाए दिट्ठीए चिंतियं च
तइलोक्क - तिलय - भूयं रूयं दहुं इमस्स मयणो वि । लज्जाए विलीण-तणू नूणमणंगत्तणं पत्तो ॥ २१७९|| -
गुणधरो वि विज्जुलेहा -लावन्नावलीयण-परव्वसी मयणसरसल्लिय- मणी चिंतिउं पवत्तो- अहो ! चंगिमा अंग-सन्निवेसस्स । अहो ! महुरिमा मुहकमलस्स । अहो ! लवणिमा लोयणाणं ।
चिइ सइ सन्निहिया किं विज्जादेवया इमा का वि ? | विज्जाहरेण इमिणा सत्तेण वसीकया संती ? ||२९८०
जइ पुण अणन्न - सरिसं रूवमिणं होज्ज माणुसीणं पि । ता सुरलोय - निमित्तं मुहा किलिस्संति मूढमणा ||२९८१|| इच्चाइ चिंतयंतो कय-भोयणो कर - कलिय- तंबोलो खयरेण समं
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
निसन्नी महल्ल - पल्लंके । विविह विणोएहिं गमिऊण खणं भणिओ वाउवेगेण - भद्द ! अत्थि किंचि वत्तव्वं ? गुणधरेण वुत्तं- सम्मं भणसु निव्वियग्धं ।
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विज्जाहरेण वुत्तं- वेयड्डो नाम पव्वओ अत्थि । नवरयण - कूड - सिहरग्ग-भग्ग-रवि-रह तुरंग-पहो ॥२९८२|| तत्थऽत्थि रयणसालं नयरं नय-रम्म खयर रमणीयं । रमणीयण - रयणाहरण-किरण निम्मविय- सुर- चावं ||२१८३|| साहिय- समग्ग-विज्जो विज्जाहर-मउलि-मिलिय-पयकमलो । धम्मत्थ-काम-निरओ जलणसिंहो तत्थ खयरिंदो || २१८४|| तस्सत्थि चंदकंता कंता सयलावरोह- कयसोहा । सोहग्ग - रयणखाणी ताण सुओ वाउवेगो हं ||२१८५ || किंच मह लहुय - बहिणी लहूकयाऽमर- पुरंधि-रूवमया । मयणस्स हत्थि भल्लि व्व विज्जुलेह त्ति नामेण || २१८६ ।। संपत्त - जोव्वणा सा पत्थिज्जइ पउर- तरुण खयरेहिं । ताएण चिंतियं तो जस्स न दिज्जइ इमा बाला || २१८७|| सो वि करिस्सइ कोवं ति रोहिणी देवया तओ पुट्ठा । साहेसु देवि ! होही को एत्थ वरो मह सुयाए ? ||२९८८ || तो देवयाए कहियं सुवेल-पव्वय-समीव- देसम्मि । "पेच्छसि जं नररयणं समुद्द - सलिलोवरि तरंतं || २१८९ || होही गुणधरो नाम सो वरो नूण विज्जुलेहाए । तो ताएणाणत्तो इहागओ हं सपरिवारो || २९९०|| गहिऊण विज्जुलेहं तो एत्थ विऊव्विऊण पासायं । चितेण मए खलु चउद्दिसं पेसिया पुरिसा ||२९९१ || जलनिहि - गवेसणत्थं तेहिं भमंतेहिं तो तुमं दिहो । सलिलोवरि तरंतो समप्पिओ मह इहाणेउं ||२११२|| ता मज्झ पत्थणाए करग्गहं कुणसु विज्जुलेहाए । जेणऽम्ह जणयलोओ लहेइ मण - 1 - निव्वुई सव्वो ॥२९९३||
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सुमइनाह-चरियं
तत्तो गुणधरेणं वुत्तं वियसंत-वयण-कमलेण । भो । सव्वहाणुकूले कज्जम्मि किमित्थ वत्तव्वं ? ||२११४|| एक्वं ता कज्जमिणं मण-इडं तुम्ह पत्थणा दुईया । तं भुविखयाए" सयमवि निमंतणेणं समं जायं ।।२९१५।। ता भद्द ! जणो एसो करिस्सई नूण जं तुमं भणसि । जं पुण जुत्ताऽजुत्तं तमेत्थ जाणसि तुमं चेव ||२११६।। तो खयरेणं वुत्तं- जुत्तमिणं सव्वहा जओ भद्द !! कहिओ सि देवयाए एक्वं अन्नं बहुगुणो सि ||२११७।। वर-रूव-संपयालोयणाओ नायं तुम बहुगुणो त्ति । जत्थागिई गुणा तत्थ हुंति जम्हा इअ पसिद्धी ||२९१८|| दहुं विणयमउव्वं विसुद्ध-कुल-संभवो ति नायमिणं । जम्हा अकुलीणाणं न होइ विणओ त्ति जणवाओ ||२१११।। तत्तो गुणंधरेणं लज्जोणय-कंधरेण संलत्तं ।। का रूव-संपया मह को वा विणओ गुणा के वा ? ||३000।। किंतु गुण-रयण-रोहण-सुयणाण सिरोमणी तुम जेण । तेणुव्वहसि महायस ! विगुणे वि परम्मि परिओसं ||३००१|| किंच तुमं विमलगुणो मुणसि तओ जंपिउं पियं चेव ।
न कयाइ अमयकिरणो अन्नं अमयाउ पज्झरइ ||३००२|| इच्चाइ सुह-संक हाहिं गमिऊण खणमेक्कं वाउवेगेण आणत्तो निय-परियणो जहा-'करेह सिग्धं विवाह-सामग्गिं, जेण अज्जेव संझाए सोहणं लग्गं ति कीरइ करगहण-मंगलं' । तओ लग्गो समग्गो परियणो निय-निय-वावारेसु ।
इओ य भोयण-मंडवाओ विज्जुलेहा गुणंधराओ हीण-गुणमप्पाणं मन्नमाणी किंचि विसन्न-माणसा पत्ता पासाउवरिमतलं, तत्थ य संतावनीसहेहिं अंगे हिं दीहण्ह-नीसास-विसोसियाहरा निसन्ना सिज्जाए | दिहा तहहिया निउणियाए भणिया-'सामिणि ! किमेवमुग्विग्गा विव लक्खीयसि ? | तओ वामयाए मयणस्स विज्जुले हाए भणियं- 'न याणामि किंपि, केवलं भोयण-मंडवं गयाए मम सो को वि महंतो संतावो संजाओ जो कहिउं पि न तीरइ'। तओ तीए कया कयलिदल-पवण
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४३४
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं जलद्दाइ सिसिरोवयारा । पुणो चलणेसु लग्गिऊण भणियं निउणियाएसामिणि ! कहेह को एत्थ परमत्थो ? । निब्बंधे कए कहियमणाए जहासुयं मए अज्ज समुद्दे तरंतो को वि सप्पुरिसो लद्धी । देवयाए कहिओ त्ति पारो मह बंधुणा महंतो तस्स उवयारो । भोयण-मंडवं गयाए अ मए मयणब्भहिय- रुवाइ - गुणी पच्चक्खीकओ नयणेहिं । तं अप्पणी अब्भहिय-गुणं पेच्छमाणीए मणम्मि जाया मे चिंता किमेस मं पडिवज्जिस्सइ न व ? त्ति । तमेयं मे विसाय-कारणं । निउणियाए भणियं - सामिणि ! मुंच विसायं जओ
जइ गिरिसुयं गिरीसो नेच्छइ सिरिवच्छलंछणो लच्छिं । मयरद्धओ रई तो तुमं पि नायरइ सो सुहओ ||३००३||
किं च भोयण - मंडवे तुह समीवडियाए मयण-परवसत्तणं तरस तुमं पेच्छमाणस्स सक्खा वेअलक्खित्तं । एत्थंतरे आगंतूण चउरियाहिहाणाए चेडीए भणियं - सामिणि ! जुवराओ आणवेइ- 'अज्जेव संझाए पाणिग्गहण - लग्गं, ता संपयं कीरंतु सरीर-सक्कार मंगलाई । विज्जुलेहा तहेव काउमाढत्ता । लग्ग समए समागए महाविभूईए परिणीया गुणंधरेण । दिन्नं वाउवेगेण तीए गुणंधरस्स य सुवन्न - रयणालंकारवत्था य वित्थिण्ण-वत्थुजायं । ठिओ तत्थेव कयवइ (कइवय ) - दिणाई | अन्नया गुणधरेण वृत्तो वाउवेगो - तामलित्तीए नयरीए ममं पराणेहि । तओ तेण तक्खणा विउव्वियं विउल-मणि-दिप्पमाणं महप्पमाणं विमाणं । आरोविओ गुणधरो निउणिया- चउरियाहिं चेडीहिं समं विज्जुलेहा, सुवन्न - रयणाइयं च आणिऊण तामलित्तीए कुसुमागरुज्जाणे मुक्काई सव्वाइं । तओ वाउवेगो विओग - विगलंतंसुजलाविल-लोयणो गुणंधरविसज्जिओ संतो पत्तो सठाणं । गुणधरो वि वाउवेग-गुणावज्जियहियओ तव्विरहे सुन्नं व अप्पाणं मन्नए । अरइ-विणोयणत्थं वण- पेरंतेसु परिब्भमंतेण तेण दिडं पिट्ठलग्ग - सिर- पिट्ट - कुट्टण - पयट्ट - रूयमाणरमणि-चक्कं । अक्कंद - सद्द - रउद्द- पुरिस-परंपरा-परिगयं मयगं, तूरसद्द - सवणाओ जीवमाणं निज्जइत्ति नाऊण पुट्ठो गुणंधरेण पासवत्ती पुरिसो भद्द ! को एवं कयंतातिही संवुत्तो ? केण वा निमित्तेण ? |
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तेणावि नाय - वुत्तंतेण वृत्तं सोम ! सुण, अत्थि एत्थ रिद्धिवित्थरावहत्थिय - वेसमणी समग्ग-मग्गण-मणोरहाइरित्त-वित्तप्पयाण
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सुमइनाह-चरियं
पत्त-कित्ति - पब्भार- भरिय - भुवणब्भंतरो निरंतर दया- दक्खिन्नाइगुण-रयण-रयणायरो रयणायरो" सेट्ठी । तस्स चउण्हं पुत्ताणं उवरि मणोरह-सएहि समुप्पन्ना संपन्न - ससि-निम्मलेणं निय-गुण- कलावेणं सयल - रमणि चक्क - चूडामणी मणिप्पभा कण्णगा, जीए निरुवम - रूवं पेच्छंता अणिमिसेहिं नयणेहि अणिमिसनयणि (णा) त्ति पसिद्धिमुवगया सुरवरा नूणं । सा य संपयं कुसुमाउह - महाराय लीलावणे जोव्वणे वट्टमाणी निय- घरासन्नुज्जाण- मज्झ गया नाणाकीलाहिं कीलमाणी डक्का उक्कड - विस-विसहरेण । तव्वियार-वस-नद्व चेयणा परसुनिक्कत्त - चंपयलय व्व धस त्ति निवडिया धरणीए । कओ परियणेण हाहारवी । तं सोऊण ससंभमो समागओ सेट्ठी । मिलिओ समग्गसयण - वग्गो । दिट्ठा तयवत्था कन्नगा । समाहूया पहाण - गारुडिया । विहिपुव्वं पढियाइं तेहिं गारुडाइ, पउत्ताओ विविहोसहीओ, बद्धाओ मणीओ, कओ जल-जंतप्पओगो । परं सव्वं पि नीराग पुरिस-पउत्तं सकाम-कामिणी - कडक्खियं व, नीरस जण - पुरओ पढियं सुभासियं व ऊसर - खित्ते निक्खित्तं बीयं व, निप्फलं संपन्नं । पुणो वि सिद्विणा पडहग- दाण-पुव्वं उग्घोसावियं नयरीए जहा जो सेडि-धूयं जीवावेइ तरस सेही जं मग्गियं पयच्छेइ । अवि य,
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जो वरडिं पि ज याणइ आहुओ सो वि सिद्विणा तत्थ । नेहाउराण अहवा केत्तियमेत्तं मणुस्साणं ? || ३००४ ||
तेहिं पि जं कायव्वं तं कयं सव्वं । तहावि न जाओ को वि विसेसो । तओ पच्चवखाया सव्वेहिं । वियलियासा बंधुणो । हा मच्चो मुद्धो त्ति भणतो घरिणीए रयणवईए समं मुच्छा-निमीलयिच्छो निवडिओ महीए रयणसारो । परियण कओवयार-लद्ध - चेयणो सोग-संगलंतंसुजल-पज्जाउल - कवोलो 'हा वच्छे ! चंद-चारु-वयणे ! हा विसहकंदो दल - दीह - नयणे ! नयणेहिं इमेहिं कत्थ पुणरुत्तं पलोइयव्वा सि त्ति पलवमाणो खणं मुच्छिओ खणं सत्थो तं धूया सरीरगं अग्गिणा सक्कारिउमणिच्छं तो भणिओ सयण- वुड्डेहिं - 'महाभाग ! परिच्चयसु ३३ विओय- सोयं । अवलंबेहि धीरियं ।
तुम्हारिसावि पुरिसा जइ विहुरिज्जंति दढ - सोएणं । ता कत्थ थिरं होही धीरतमणिंदियं भुवणे ||३००५ ||
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
किंच सुरासुरेहिं पि अप्पsिहयप्पसरो मच्चू ता संठवेसु अप्पयं, मुंचसु नेह - कायरत्तणं । करेसु धूया सरीरगस्स सक्कारं । इच्चाइपन्नविओ संतो कहवि तमेयं काउं ववसिओ सेट्ठी । गुणंधरेण वुत्तं- तूरसह-सवणाओ नायं मए जहा - 'सजीवमेयं ति । तओ जो एयं जाणइ सो कयाइ जीवणोवायं पि जाणिस्सइ त्ति चिंतिऊण भणियं पुरिसेणमहासत्त ! अत्थि किं कोवि जीवणोवाओ ? । गुणंधरेण वृत्तं - अत्थि ताव मंतो, कज्ज - सिद्धीए पुण दिव्वो पमाणं, ता पउंजेमि मंतं जइ धरावेसि मयगं । पुरिसेण सिग्घं गंतूण चियाए आरोविज्जमाणं धरावियं, भणिओ य सेट्ठी - अत्थि एगो सप्पुरिसो जो इमं जीवावेइ । पच्चुज्जीविएणेव भणियं सेहिणा - कहि सो ? । पुरिसेण वुत्तं - एसो एइ ।
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एत्थंतरे पत्तो तत्थ गुणंधरी, दिडो लोएण । 'अहो ! भद्दागिइ' त्ति विम्हिओ एसो । नूणं जीविया मणिप्पभ त्ति । जाओ समासत्थो सव्वलोओ । करावियं मंडलं गुणंधरेण । ठाविया तत्थ कन्ना । कओ सयं सिहा - बंधो । सुमरिऊण मंतं भणिया एसा - उट्ठेहि जणणीए मुहसोहं देहि त्ति । उडिया एसा गहिया सुवन्न-वालगा, तीए दिनं मुह-सोहणं, हरिसिओ सव्व - लोओ, वायावियं तूरं । तं च वारावियं गुणंधरेण । नणु किमणेण ? | अज्जवि सविसा एसा, इमं पुण मए मंत- सामत्थं दंसियं, न उण किंपि कम्मं करेमि । लोएण भणियं - महापभावो तुमं ति । ता जीवावेहि इमं । पाडिया पुणो उत्तरिज्जाहरण-विस- संकामणेण दंसियं कंचि वेलं जणाण खेडुं । जीवाविया सा परमत्थेणं । हरिसुप्फुल्ललोयणाए अणाए पलोईओ साहिलासं कुमारो, तेणावि विम्हिय-मणेण मणिप्पभा ।
अवरोप्परं नियंताण ताण फुरिओ सको वि मयणाही । डक्काई जेण जायाइं दोवि सुन्नाई सहसति ||३००६ ||
जायं महावद्धावणयं ।
चलिओ गुणधरो सद्वाणं । जओ
अच्छरियगरा गरूया उवयारं जं परस्स काऊण | पच्चुवयार भएणं दूरं तत्तो पलायंति ||३००७ || पडिबोहए दिणिंदो कमलाई किंपि निच्छए तत्तो । वरिसंति जए जलया न किंचि तत्तो समीहंति || ३००८।।
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सुमइनाह - चरियं
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तम्हा न सामन्नपुरिसो एसो त्ति चिंतिऊण सिडिणा भुयाए घेत्तूण भणिओ गुणधरो - 'महासत्त ! पवित्तेसु निय-पय-पंक एहिं मज्झ भवणं । एत्तिएणावि कयत्थमप्पाणमहं मन्नामि । गुणंधरेण वुत्तं - अत्थि एवं, किंतु सकज्ज - वावडत्तणेण गंतव्वं मए । सेहिणा वज्जरियं परत्थसंपाडणं चेव तुम्हारिसाण सकज्जं ति निब्बंध काऊण सेहिणा नीओ पुरिसेण समं सघरं गुणंधरो । काराविओ ण्हाण - भोअणाइयं । तदवसाणे भणिओ
जं अन्न न सक्कइ मह एक्कं तं पियं कयं तुम । अन्नं पि कुणसु सुयणा कुणंति नहि पत्थणा - भंगं ||३०० ||
कुमरो जंपइ सज्जोम्हि तत्थ एसी कंहेसु जं किच्चं । सिट्ठी साहइ सुपुरिस ! एवं परिणेसु मह धूयं ||३०१०||
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गुणंधरेय पलोइयं पुरिस - मुहं । पुरिसेण वृत्तं महाभाग ! सव्वस्स अलंघणीय-वयणो सेट्ठी रयणायरो गुणागरो गरुओ य तुमं । ता कीरउ जमेस वागरइ | गुणंधरेण वुत्तं- जइ एवं तो तुमं जं किं पि जाणसि त्ति । पहिs - हियएण सेहिणा महंतो अम्हाणमणुग्गहो ति भणं तेण हक्काराविओ नेमित्तिओ । कहियं च तेण- तम्मि चेव दिणे संझाए सोहणं लग्गं । तम्मि महा-विभूईए मणिप्पभाए पाणिग्गहणं कराविओ गुणधरो । सेहिणा पयट्टाविओ महूसवो । दिज्जंति महादाणाई । किज्जति सयण - सम्माणाइं । नच्चंति चारु-तरुणीओ । गिज्जंति मंगलाई । रइज्जति गुरु- देवया - पूयाओ । एवं पमोय - पगरिसं पत्ते विवाह - महूसवे दुई - दिवसे विसिह - नेवच्छ-विच्छाईय-सुरकुमारी दिट्ठो गुणंधरो कहिंचि तत्थ सपओअणाऽऽगयाए माहवीए । विम्हयवसुप्फुल्ल- लोयणाए गंतूण साहियं जहादिहं ससिलेहाए । सा विय पवहंत हरिस-मच्छरा माहवीए समं समागतूण ममेस भत्तारो त्ति भणंती घेत्तूण भूयाए गुणंधरं पत्थिया सभवणं । ममेस जामाउगोत्ति भणतो निय-धूयाए मणिप्पभाए समेओ लग्गो पिडओ सेट्ठी ।
इओ य विज्जुलेहा निउणियाए समं गुणंधरं गवेसमाणी समागया तत्थ । सा वि तं दहूण ममेस भत्तारो त्ति भणंती लग्गा अवर-भूयाए । परोप्परं च विवयमाणाइं दिट्ठाई ताइं तलारेण । नियाणि रायउलं दंसियाणि रन्नो । पणमिओ अणेहिं राया । रन्ना पुट्ठो सेट्ठी- भद्द
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं किमेयं ? ति । तेण वुत्तं-देव ! मह धूया मणिप्पभा एसा सप्पेण डक्का पच्चक्खाया सव्व-गारुडि एहिं मय त्ति नीया मसाणे, जीवाविया इमिणा महासत्तेण । परमोवयारि त्ति परिणाविओ एसो मए महंतपत्थणाए एयं चेव धूयं । पुहा राइणा ससिलेहा । सा वि लज्जाभरोणयमुही जाव न किं पि जंपइ ताव भणियं माहवीए- महाराय ! एसा मह सामिणी महाराय-जणयसे ण-धूया, इमस्स भज्जा, इमिणा सद्धिं इहागया । ठिओ य एत्थ एसो कइवय-दिणाणि, गओ य पच्छा कहिं चि त्ति न नाओ । एय-विरहे य मह सामिणीए तं किंपि दुक्खमणुभूयं जं कहिउं पि न तीरइ । अज्ज पुण बहूय-कालाओ पुलोदएण एस दिहो । पुढा विज्जुलेहा । तीए वि लज्जावसेण सयं मोणमवलंबिऊण दिहिसन्नाए निउत्ता निउणिया । तीए जहा- वेयड्ड-पव्वए रयणसालनयर-सामिणो रयण-खेयरिंदरस" धूया इमा, जहा देवयाए कहिओ इमीए स वरो, जहा वाउवेगेण बंधुणा समं सुवेल-पव्वए संपत्ता, जहा समुहे तरंतो एस लद्धो, जहा इमिणा परिणीया इमा, जहा वाउवेगेण विमाणमारोविऊण कल्लं कुसुमागरुज्जाणे आणिऊण मुक्लाइं दोवि, जहा अकहिऊण गओ गवेसंतीए अज्ज दिहो तहा सव्वमावेइयं ।
तओ राया विम्हयरसावहिय-हियओ चिंतिउं पवत्तो- अहो ! एयरस अच्चब्भूयं चरियं | अहो ! अच्चंत-चारुत्तण-तणीकयाणंग-चंगिमा तणुलया । अहो ! अणन्नसरिसो पुन-पगरिसो, ता नणं इमिणा महासत्तेण केणावि महग्य-गुणमणि-महल्लवेश "विसालकुल-संभवेण होयव्वं ति चिंतयंतस्स रन्नो समीवमागया कविंजला, दिहो अणाए गणं धरो, पच्चभिजाणिऊण हरिसवस-विसहत-वयण-कमलाए भणियमणाए-देव ! सो एसो सूर-नरेसरस्स तणओ गुणधरो नाम नीसे स-कला-कुसलो सोहग्ग-महो अही धीरो जेण करि-संभममोयणाओ कुमरीए जीवियं दिन्नं । तं निक्कयत्थमिव हिययमप्पियं तीए व इमस्स ।
जम्मि सुहयम्मि कुमरी चिहइ अणुराय-निब्भरा निच्चं । सा जस्स चरिय-संकित्तणेण वोलेइ दियहाइं ||३०११|| जरस गुण-रयणनिहिणो विरह-हुयासेण पलित्त-सव्वंगी । जलण-पलित्ताई व दिसमुहाई मण्णइ मणे कुमरी ||३०१२||
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सुमइनाह-चरियं
पत्थिज्जती वि महानरिंद-तणएहिं गुण-महग्घेहिं । निप्पडिम-देहसुंदेर-दलिय-कंदप्प-दप्पेहिं ||३०१३।। तप्परिनयण-निमित्तं जणणीहिं सहीहिं परियणेणं च । देवस्साएसेणं बहुयं पि भणिज्जमाणा वि ||३०१४|| मोत्तूण जं सरि मह जलणो चेव लग्गइ न अल्लो । इय निच्छियं विहेउं एत्तिय-कालं ठिया कुमरी ||३०१५|| "एयं च निच्छयं जाणिऊण कणगप्पभाइ देवेण । जस्स गवेसण-हेउं चउद्दिसं पेसिया पुरिसा ||३०१६।। संपइ सयमेव समागओ इहं अज्ज दिव्व-जोएण । एसो सो रायसुओ, जं जुत्तं तं कुणउ देवो ||३०१७।। एक्वं अहियं पि कपिजलाए परिओस-निब्भरो राया । जंपइ "कविंजले साहु साहु तुमए इमं कहियं ||३०१८।। जओजं सिरि-सूर-नरिंदस्स परम-मित्तस्स निद्धचित्तस्स । पुत्तो समागओ इह अम्हेहिं न याणिओ पुव्विं ||३०११।। तं पि मणे अम्हाणं अज्जवि सल्लं व सल्लए बाढं । जं च करि-संभमाओ विमोइयाऽणेण मह धूया ||३०२०।। तस्स सुकयस्स उचियं अम्हेहिं न किंचि जं कयमिमस्स । तं सामनजणाण वि मग्गेण न वट्टिया अम्हे ||३०२१|| अणुवकए वि परेसिं कुव्वंति उवयारमुत्तमा लोए ।
उवयारे उवयारो चरियमिणं पागयजणस्स ||३०२२|| तं पि पमाय-परव्वस-माणसेहिं अम्हेहिं नायरियं ति । अहो ! अकयनुत्तणं । कुमरेण वुत्तं-देव ! तुम्हाण व तुमेयं न जुज्जए || जओ
गरुयाण मणपसायं विओसमेत्तं ति गरुय-सम्माणं । दाणाइ-पयारेण उ रंजिज्जइ पागओ लोओ ||३०२३।। सुद्धाण सुद्ध-भावो सुद्धस्स परस्स कुणइ परिओसं | चंदम्मि अदितम्मि वि दिहे वियसंति कुमुयाइं ॥३०२४।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सोऊण मण-पसाओ तुम्ह ममोवरि न विहडए चेव ।
न कयावि नियय-मेरं लंघइ रयणायरो नूणं ||३०२५।। रना भणियं- कुमार । संपयं इणमेव पत्तयालं जहा कणगप्पहाए कुमरीए कीरउ करग्गहणं । कविंजलाए भणियं- सोहणं भणइ देवो । कुमरेण वुत्तं- जुत्तमेव जाणंति वोत्तुं महापुरिसा । केवलं ससिलेहापमुहाओ पुच्छसु इमाओ । रन्ला भणियं- कविंजले ! उचियमाह कुमारो जओ पुव्वं पि कलहंतीओ दीसंति, ता इमाओ पुच्छमरिहंति | कविंजलाए समीवमुवसप्पिऊण भणिया ससिले हा- भद्दे ! पढम-घरिणी तुम कुमारस्स, ता अणुमन्नसु रायधूयं । तीए भणियं- किमहं निवारेमि ? | किं वा ममं पुच्छिऊण एयाओ वि परिणीयाओ, ता किंपि जं मणस्स रोयइ तं करेउ ति ।
ततो भणिया विज्जुलेहा । तीए भणियं- जं अज्जउत्तस्स बहुमयं तं ममावि बहुमयं चेव | नाहं अज्जउत्तस्स पडिकूलभासिणी । तओ पुट्ठा से द्विधूया | तीए लज्जावस-खलंतक्खराए वुत्तं अव्वत्त-सई- किमहं जाणामि ? केवलं जं इमाण दोण्हं पि अणुमयं तं मे मत्थयस्सोवरि ति। पहह-मुहपंकयाए कविंजलाए भणिओ राया- देव ! सव्वाहिं पि बहुमल्लियं कणगप्पहाए कुमरीए करग्गहणं । तत्तो हरिसियमणेणं तहा सव्वासिं पि तुम्हाण साहारणो एस भत्ता, अओ परोप्परं परिचत-चित्तसंतावाहिं तुब्भेहिं पिया विव वट्टियव्वं ।
अन्नं च अओ उडे तुम्हे सव्वाओ मज्झ धूयाओ । होउ चउत्थी अहिणी एसा कणगप्पहा तुम्ह ||३०२६।। एवं जंपतेणं गुणधरो पूइओ नरिंदेणं । ताओ चिय सव्वाओ वत्थाभरणाइ-दाणेण ||३०२७।। रन्ना विसज्जिओ सो गओ सभज्जो गुणधर-कुमारो । कणयमय-खंभ-कलिए राय-समप्पिय-वरावासे ||३०२८|| संवच्छरिय-विणिच्छिय-पहाण-लग्गे गुणधरो रना ।
परिणाविओ महा-वित्थरेण कणगप्पहं धूयं ||३०२१।। दिन्नं च रन्ना तीए पसत्थ-वत्थ-कणग-रयणालंकाराइ पभूयं, कुमारस्स वि दिन्नं सहरसं करिवराणं सहस्सं रहाणं अणेग-गामागर
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सुमइनाह-चरियं नगर-संकुलो पसाईकओ विसओ । तओ चउहिं पत्तीहि समं पंचप्पयारं विसयसुहं सेवंतस्स वच्चंति वासरा | कयाइ कणगप्पहाए भणिओ कुमारो जहा- कल्लं कुसुमागरुज्जाणे तुम्ह कुमार-दंसणं कारविस्सं ति पडिवज्जिऊण गओ तया जोणगो । बीय-दिणे तत्थगयाए मए न दिहा तुब्भे न य जोणगो, ता को एत्थ परमत्थो ? |
तओ कवडप्पहाणय-जोणगस्स मल्ने कुमुइणी देवी को विएण ताएण देसंतरं कराविओहं ति तं पि कवडमेव काऊण परदेसं ४°गहाविओ । एत्थ वि अलियमेव वोत्तूण पवहणं आरोहाविओ पच्छा जलहिम्मि पक्खित्तो । ता तस्स दरप्पणो पज्जत्तं कहाए । कहा वि पाविहाणं पावहेउ त्ति चिंतिऊण भणियं कुमारेण- तेण अलियवाइणा मह पुरो तं किंपि जंपियं जेणाहं पि तेण समं दीवंतरं पत्थिओ । कणगप्पहाए भणियं- संपयं सो वराओ कहिं ? ति । कुमारेण वुत्तं-तस्स नामं पि न गहियव्वं ।
अह अन्नया निसलो अत्थाणे सुहड-कोडि-संकिल्लो । विनत्तो पडिहारेण भू-नमिय-मउलिणा कुमरो ||३०३०।। देव ! दुवारे चिहइ सिरि-सूरनरिंद-पेसिओ पुरिसो । कुसलमई नामेणं को आएसो हवइ तस्स ? ||३०३१|| मुंच तुरियं ति वुत्ते तेण स मुक्को समागओ तत्थ । उवलक्खिऊण कुमरेण तोस-परितोसमुवगूढो ||३०३२।। उचियासणे निसलो पुट्ठो कुमरेण सो कुसलवत्तं । सिरि-सूरराय-कमलिणिदेवी-पमुहस्स लोयरस ||३०३३|| पुढेण तेण कहियं कुसलं सव्वं पि कुमर ! तुह रज्जे । एयं चेव अकुसलं दीससि नयणेहिं जं न तुमं ||३०३४|| नूणं नयराओ तओ पुरोहियं तुज्डा निग्गयं सोक्खं । अन्नह सुही कह तुमं नयरं च दुहेण अक्वंतं ? ||३०३५।। तुह विरहे रुयमाणीए कमलिणीए कुमार ! देवीए । घोरंसुएहिं घण-निवडिरेहिं हाराइयं हियए ! ||३०३६|| बाहजल-भरिय-नयणो सुन्न-मणो मुक्क-दीह-नीसासो । तुह विरह-दुक्खमेयं दिव्ववसा सहइ देवो वि ||३०३७।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तं नत्थि किं पि ठाणं जए गवेसाविओ न जत्थ तुमं । निय-पुरिसे पेसेउं तह वि पउत्ती न तुह पत्ता ||३०३८।। संपइ सागरदत्तेण सत्थवाहेण एय नयरीए । पत्तेण तत्थ कहिया तुज्झ पउत्ती इमा सव्वा ||३०३१।। तो तुज्झा आणणत्थं कुमर ! अहं पेसिओ नरिंदेण । ता काऊण पसायं तत्थ पहुच्चह "लहुं तुब्भे ||३०४०।। अह कइवय-दिवसब्भंतरम्मि पत्तो सि तत्थ जइ न तुमं । ता मन्ने जीवंते अम्मा-पिउणो न पेच्छिहसि ||३०४१।। एवं सोउं वज्जाहउ व्व विमणो विचिंतए कुमरो । पेच्छ मए केरिसयं सुक्खं जणयाण संजणियं ||३०४२|| जइ जीवियं पि दिज्जइ पच्चुवयारो न जाण तह वि भवे । ताण पियराण दुक्खं मए कयं ही ! अपरिमाणं ||३०४३|| एवं विचिंतिऊणं भूयाए घेत्तूण कुसलमइ-दूयं । पत्तो झत्ति कुमारो महसेण-नरिंद-पाासम्मि ||३०४४|| कहियं च सव्वमेयं सो पुरिसो दंसिओ य पच्चक्खं । ता नाउमुचिय-समयं काऊण महंत-सम्माणं ||३०४५।। कणगप्पभा-समेओ अणेग-करि-तुरय-रहप्पयाइ-जुओ । अइ-नेह-निब्भरेण वि विसजिओ राइणा कुमरो ||३०४६।। पइदियह-पयाणेहिं कुमरो निय-नयर-पासमणुपत्तो । कुसलमइणा वि पुरओ गंतुं वद्धाविओ राया ||३०४७।। तो हरिस-वियसियच्छो सव्व-समिद्धीए निग्गओभिमुहो । चउ-पणइणी-समेओ पणओ कुमरो नरिंदरस ||३०४८।। आलिंगिऊण रना तत्तो आणंद-निब्भर-मणेण ४२ आरोविओ गइंदे कुमरो सहिओ पणइणीहिं ||३०४१।। सिर-धरिय-धवल-छत्तो ढलंत-सिर-चारु-चामरुप्पीलो । नयरीए पविसंतो पियाहिं सह गयवरारुढो ||३०५०।। सलहिज्जंतो नायर-जणेण सो विविह-वयणेहिं । तं जहा
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सुमइनाह-चरियं
कहं कुमरो एगागी वि निग्गओ एरिसिं सिरि पत्तो । अहवा पुव्व-भवज्जिय-सुकयाणं कित्तियं एयं ? ||३०५१।। जम्मंतर-समुवज्जिय-पुन्न-गुणागरिसिया खणं लच्छी । भवणे वणे विदेसे न मुयइ पहिं सुपुरिसाण ||३०५२|| एयाउ सउन्नाओ पत्ताउ जाउ कुमर-घरिणितं । दिणयर-समागमे कमलिणीउ पावंति परभागं ||३०५३।। कुमरो वि कयत्थो च्चिय इमाउ जायाओ जस्स जायाओ । मुत्ताहि परिगओ जह सहइ मणी केवलो न तहा ॥३०५४।। एवं सलहिज्जंतो पत्तो कुमरो घरम्मि मिलिओ य । हरिसिय-मणेण सयणाण कमलिणीदेवि-पमुहाण ||३०५५।। पियराण कहियमेयं भमिओ हं देस-दसण-निमित्तं । जं च तहिं अणुभूयं कुमरेण निवेइयं तं पि ||३०५६।। इय तोसिय-सयल-जणो कुमरो चिहइ पगिह-विसय-सुहं । भुंजंतो ताहिं समं ससिलेहा-पमुह-भज्जाहिं ।।३०५७।। इअ बहु-कालम्मि गए उज्जाणे तुरय-वाहणं काउं । निवइ-कुमराण सहयार-तरुतले वीसमंताण ||३०५८।। दुंदुहि-झुणी पयट्टो सुयंधि-सिसिरो पवाइओ पवणो । गंधोदएण सित्ता भूमी खित्ताई कुसुमाइं ।।३०५१।। विहियं सुवन्न-कमलं तो सुर-नर-निवह-नमिय-कम-कमलो । कल्लाणकोस-नामो उवविहो केवली तत्थ ||३०६०।। नाउमिणं निव-कुमरा गंतुं हरिसभर-निब्भरा तत्तो । तं पणमिउं निसन्ना अन्ने य नरामरा बहवे ||३०६१।। तो केवलिणा सिय-दंतपंति-किरिणोह-दलिय-तिमिरेण । पारद्धा धम्म-कहा संसार-विराय-संजणणी ||३०६२।। भो भो भव्वा ! संसार-सायरे दुक्ख-सलिल-संपुल्ने । जम्म-जरा-मरण-समुल्लसंत-कल्लोल-लल्लक्के ||३०६३।। कोह-वडवग्गि-दग्गे मोह-महावत्त-भीसण-सरुवे । माण-गिरि-दुग्गमम्मी घण-माया-वल्लि-दुल्लंघे ||३०६४||
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं धण-मुच्छ-मच्छरिंछोलिच्छाईए पावपंक-पडिहत्थे ।४४ राग-महोरग-रुद्धे विविहामय-मयर-दुप्पेच्छे ||३०६५।। अणवरय-पडंत-महंत-आवया-सयसहस्स-संकिने । दुद्धर-विसय-पिवासुच्छलंत-वेला-पसर-विसमे ।।३०६६।। किच्छेण परिभमंता धम्म लळूण जाणवत्तं व । आयरह किन्न तुब्भे जेण लहुं लहह सिव-पासं ||३०६७|| "एयं सोउं संविग्गमाणसो नरवरो भणइ कुमरं । पुव्वं पि याऽऽसि भवचारयाउ चित्तं विरत्तं मे ||३०६८।। संपइ केवलिणो पुण वयणं सोउं दढं अहं मन्ने । पासं व गेहवासं विसं व विसमं विसय-सोक्खं ||३०६१।। रज्जं गलरज्जुं पिव बंधं पिव निद्ध-बंधु-संबंधं । ता कुणसु तुमं रज्जं अहं तु दिक्खं गहिस्सामि ||३०७०।। कुमरेण तओ वुत्तं-ताय ! विरत्तो अहं पि गिहिस्सं । दिक्खं गुरु-पय-मूले पालसु रज्जं तुमं चेव ||३०७१।। रना भणियं- पढमं वय-गहणं काउमुचियमम्हाणं । पच्छा तुमं पि कुज्जा कुमर ! तुमं को निवारेही ? ||३०७२।। धम्मो वि कीरमाणो कमेण सोहं समुव्वहइ लोए । कुमरेण तो पलत्तं- सुह तए जंपियं ताय ! ||३०७३|| किंतुपिउणा अकए धम्मे कुणइ सुओ तं न नत्थि इय नियमो । लग्गे पलीवणे किं पलायमाणाण को वि कमो ? ||३०७४|| ता पसिऊण विसज्जसु ताय ! ममं संजमग्गहण-हेउं । तो गहिऊण भुयाए रन्ला भणिओ इमं कुमरो ||३०७५।। वच्छ ! परिणय-वओ हं वय-गहणे होसु तं मह सहाओ । दुप्पडियारा पिउणो त्ति एयमत्थं जइ मुणेसि ||३०७६|| रज्जभर-समुव्वहणे नत्थि समत्थो तुमं विणा अन्नो । कह मुच्चंति पयाओ कमागयाओ अणाहाओ ? ||३०७७।।
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सुमइनाह-चरियं
एवं जुत्तीहिं पयंपियम्मि रन्ना पयंपए कुमरो । जइ एवं ताय ! तओ कुणसु तुमं जं मणोभिमयं ॥३०७८।। तो हरिस-निब्भरेणं रखा कुमरो निवेसिओ रज्जे । विहिणा सयं पवना दिक्खा केवलि-चलण-मूले ||३०७१।। सम्मत्तमूल-सावयधम्म गहिउँ गुणधर-नरिंदो । नमिऊण य केवलिणं संपत्तो नयरि-मज्झम्मि ||३०८०।। तो केवली वि अन्नत्थ विहरिओ सूररायरिसि-सहिओ । अह काउं तिव्व-तवं सूररिसी सग्गमणुपत्तो ||३०८१।। अह विच्छाईकय-रायमंडलो फुरिय-दसदिसि-पयावो । परिपालइ हयदोसो सूरो व्व गुणधरो रज्जं ||३०८२|| नव-नव-जिणभवणाई कारवइ समुद्धरेइ जिल्लाइं । सव्वत्थ-वित्थरेणं रहजत्ताओ पयट्टेइ ||३०८३।। पूएइ साहु-वग्गं पव्व-दिणे पोसहं कुणइ सम्मं । जिणधम्मम्मि परं पिहुजणं पयट्टावए बहुयं ॥३०८४।। एवं जिणिंद-धम्मं कुणमाणेणं महापयत्तेणं ।। रना गुणधरेणं केसिं न कओ चमक्कारो ? ||३०८५।। अह चिरकालं परिपालिऊण रज्जं गुणंधर-नरिंदो । ससिलेहा-अंगरुहं जसोहरं ठाविउं रज्जे ||३०८६।। कल्लाणकोस-केवलि-पासे पडिवज्जिऊण पव्वज्जं । जाओ गीयत्थ-मुणी सम्मं गुरुणा अणुब्लाओ ||३०८७|| जिणकप्पं पडिवन्नो विहरंतो बहुविहेसु देसेसु । पत्तो कुसग्ग-गामे काउस्सग्गे ठिओ बाहिं ॥३०८८।। एत्तो य जोणगेणं परिब्भमंतेण दमगवित्तीए । दिहो सो अज्ज वि जीवइ ति रोसं वहतेणं ।।३०८१।। अह अत्थमिओ भाणू वियंभिओ भसल-सामलच्छाओ । गयणंगणे तमोहो तह मोहो जोणगस्स मणे ||३०१०।। लउडेण हओ सो जोणगेण तो भग्गमुत्तिमंगं सो । अह वेयणा सरि संजाया जीवियंतकरी ||३०११।।
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
सो मरण- समयमालोइऊण कय तयणुरूव कायव्वो । अवलंबिय- गुरुसत्तो चिंतिउमेवं समादत्तो ||३०९२ || मा कुणसु जीव ! खेयं दीणत्तं दूरओ परिच्चयसु । तस्स च्चिय फलमेयं तए कयं जं पुरा पावं ||३०१३ || एत्ती अनंतगुणियं नरएस निरंतरं महादुक्खं । छेयण-भेयण- पमुहं सहियं तुमए अकामेण || ३०१४ || तिरियत्तणेऽणुभूयं अणंतसो जं तए दुहं दुसहं । तेण न कोवि गुणो तुह संजाओ परवसत्तणओ ||३०१५ || इहिं जिण - वयणामय-संपन्न - विवेय- वियलिय कसाओ । सम्ममहियासमाणो अणंत-गुण-निज्जरं लहसि ||३०९६ || कम्मं कुणइ सयं चिय तरस फलं भुंजए सयं जीवो । तो किं परे पओसो विवेगिणो जुज्झए काउं ||३०१७ || रे जीव ! तए पुव्विं समज्जियं किंपि जं असुह-कम्मं । तं निवइ इमो तुह अगणंतो अप्पणी बंधं ॥ ३०१८ || एस परमोवयारी ता जोग्गो गरुय तुडिदाणरस । एयम्मि जइ पउस्ससि ता लहसि कयग्घ - धुरि-लीहं ॥ ३०९९|| इय तत्त-भावणाए गुरु वेयण विहुरिओ वि सुहझाणो । मंदरगिरि-थिर चित्तो सरीरमेत्ते वि अममत्तो ||३१००|| हा कम्मबंध - हेऊ इमस्स जाओ अहं वरायस्स । उवसग्गकारए विहु इय अणुकंपं परिवहंतो ||३१०१ || मुत्तूण पूइ - देहं समाहिणा सो गुणंधरो समणो । तेत्तीस - - सागराऊ सव्वहविमाणमणुपत्ती ||३१०२ ||
अह जोणगी तहाविह अकज्ज करणा सयं पि संखुद्धो । तुरियं पलायमाणो विसम - नई दुत्तडीहिं तो ||३१०३ || तह निवडिओ दुरप्पा नईइ मज्झे जहा हियय-देसे । चिक्खल्ल-२ - खुत्त-तिक्खग्ग- खयर - बेर खाणुणा भिन्नो || ३१०४|| अह तिव्व-वेयणं सो वि सहंतो जीविऊण तिन्नि दिणे । मरिऊण नारओ छह-नरय- पुढवीए संजाओ || ३१०५ ||
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सुमइनाह-चरियं
अह सो गुणंधर - जिओ सव्वद्वाओ तुमं समुप्पन्नो । उव्वहिऊण तत्तो नरगाओ जोणगस्स जिओ || ३१०६ ।।
भमिऊणं संसारं पुव्व-भवे किंचि कय-सुकय-लेसो । जाओ कुमर ! तुह इमो लहुओ सावक्कओ भाया ||३१०७ || पुव्व-भवेसु बहूसु कओ पओसो तुमम्मि जं इमिणा । तेणेव भासेणं इमस्स सो इह भवे जाओ ||३१०८|| जं पुण तऽणुकंपा विहिया एयम्मि पुव्व - जम्मेसु । तेणेव हेउणा तुह स च्चिय इहिं पि विप्फुरिया || ३१०९ || जओ
एक्कं पि भवे जीवे गुणं च दोसं च जो जमायरइ । जम्मंतरम्मि नूणं रमइ मणो तरस तत्थेव ||३११०|| पढमं थोवं थोवं गुणो व दोसो व होज्ज जो जस्स । पइजम्मब्भासेणं पगरिस पत्तो स तस्स भवो ||३१११|| एएण कारणेणं दूरं मोत्तूण दोसलेसं पि । कायव्वी बुद्धिमया गुणेसु पइसमयमब्भासी ||३११२ || एवं सोउं संजाय - जाइसरणी भणइ गुणसेणो । भयवं जं तुब्भेहिं कहियं तं अवितहं सव्वं ॥ ३११३|| पुव्वं पि विसय- वासंग - सुह - परम्मुह-मणो अहं आसि । पुव्वब्भवरसवणाओ इण्हिं तु विसेसओ भयवं ||३११४ || तत्तो जणणी - जणए सविणयमापुच्छिऊण गुणसेणो । सव्वविरहं पवन्नो जीवाणंदायरिय-पासे ||३११५|| पडिवन्न - दुविह-सिक्खो परीसहे दुस्सहे वि सहमाणो । तिव्व-तवच्चरण-रओ अहिगय-नीसेस - सुत्तत्थ ||३११६ || उभय-भव - दुक्ख - हेउं कोव विवागं मणे वि भावतो । उवसग्गकारए वि हु परम्मि करुणं चिय कुतो ||३११७|| सिवपासायारोहण- निस्सेणिं खवगसेणिमारुढो ।
खविय - चउघाइकम्मो उप्पाडइ केवलं नाणं ||३११८ ||
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४४८
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तियस-कय-कणय-कमले उवविठ्ठो धम्मदेसणं कुणइ । भाणु व्व भविय-कमलाण मोह-निदं वि निद्दलइ ||३१११|| विहरइ भुवणम्मि चिरं कमेण सेले सिकरणमणुपत्तो । चत्तारि भवोवग्गहकराणि कम्माणि निम्महइ ॥३१२०।। तुद्देसु कम्मलेवेसु सो मुणी सयल-लोय-सिरि-भूयं । निव्वाण-पयं पावइ तुंबं व जलस्स उवरितलं ||३१२१|| अह चंडसेण-कुमरो अविणयसीलो पलोयए जं जं । रमणीय-वयर-मणिमय-वत्थ-सुवन्नाइ अन्ने सिं ||३१२२।। तं तं सव्वं गिण्हइ तो पिउणा वारिओ रिउ व्व तओ । कुवियमणो खग्गेणं सीसं छिंदेइ जणयस्स ||३१२३।। रज्जे सयं निविहो पाविहो कुनयवारण-पहाणे । हणइ पहाणे तत्तो सो तेहिं उवेक्खिओ संतो ||३१२४।। गहिऊण वइरिएहिं कुंभीपागेण पाविओ निहणं । रुद्दज्झाणोवगओ सत्तम-नरयम्मि संपत्तो ||३१२५।। कोवं परिहरमाणो वि माणवो माण-वज्जणे सज्जो । जइ होज्ज तो लभिज्जा इह-परलोए य कल्लाणं ।।३१२६|| माणत्थदो अंतोनिविह-संकु व्व कुणइ पणिवायं । न हु जणणी-जणयाणं न गुरुण न देवयाणं पि ||३१२७|| माणहो उडमुहो गयणम्मि गणंतओ व्व रिक्खाइं । अनिरिक्खिय-सुह-मग्गो भवावडे पडइ किं चोज्जं ? ||३१२८|| पुत्तं पि य विणयपरं परं व गणिऊण जणणि-जणया वि । चिरगोवियत्थ-वित्थार-भायणं कहवि न कुणंति ||३१२१।। गुरुणो विज्जं सिप्पाइं सिप्पिणो नदृसूरिणो नहें । गीयाई गायणा वि हु न माणिणं सिक्खवंति नरं ||३१३०।। रायाऽमच्चाईणं पि सेवओ माणवज्जिओ चेव । लहइ मणवंछियत्थं पुरिसो इयरो पुण अणत्थं ॥३१३१।। माणी उव्वेवकरो न पावए कामिणीण कामसुहं । इत्थीण कामसत्थेसु संकमणं मद्दवं जम्हा ||३१३२।।
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सुमइनाह-चरियं
मोक्खतरु-बीयभूओ माणथडस्स नत्थि धम्मो वि । धम्मस्स जओ समए विणओ च्चिय वल्लिओ मूलं ।।३१३३।। जाइ-कुल-रूव-बल-सुय-तव-लाभिस्सरिय-अहमय-मत्तो । तव्विवरीयं कम्मं बंधइ लीलावइ व्व जीओ ||३१३४|| तहाहि
[५. मान-विपाके लीलावती-कथा]
अत्थि इह जंबुदीवे कासी-नामेण जणवओ जत्थ । उल्लंघयंति निय-वइमुच्छलियाओ न निवलयाओ ||३१३५।। विरसपुरी तत्थ पुरी जत्थुज्जाणेसु कुसुमिय-तरुणं । परिमल-हरण-प्पवणो पवणोच्चिय वुच्चए चोरो ||३१३६।। तत्थ नरसुंदरो नरवई [अत्थि] जस्स भोग-दुल्ललिओ । उव्वहइ भूमिभारं मुयंगराय व्व भुयदंडो ।।३१३७।। वेरि-पयावानल-पसम-पच्चले जस्स असिलया-सलिले । जस-रायहंस-सहिया विलसइ हंसि व्व जयलच्छी ॥३१३८।। मयणस्स व भुवणमणोरमस्स पाणप्पिया पिया तस्स । अणुरूव-रूवलीला रइ व्व लीलावई देवी ॥३१३१।। तीए सह विसय-सुहं उव जंतस्स तस्स संपत्तो । सत्तच्छय-परिमल-मिलिय-भसल-विसओ सरय-समओ ||३१४०।। हंसउलाई विलसंति जत्थ गयणे तमाल-दल-नीले । कुमुयाइं सरवरम्मि व फेण-पडलाइं जलहिम्मि ॥३१४१।। जत्थ ससी सविसेसं जोण्हं लढूण जणइ जय-हरिसं । विमला रिद्धिं पत्ता कस्स व न कुणंति उवयारं ||३१४२।। जं लड़े रयरहिउं गुरु व हिययाइं पंक-कलुसाइं ।
सहसा जायाइ जलासयाण सलिलाई विमलाइं ||३१४३|| तम्मि सरए गओ राया रायवाडियाए । दिहं अणेण परिसुस्समाणं चिंचियंतेण मंडुक्ल-वंद्रेण संगयं पल्ललं । जाया से करुणा 'अहो ! एए पइदिणं मच्चुणो आसन्नीभवंति । न केवलं एए अम्हे वि एवमेव त्ति नियाविया ते पयत्तेण विउल-जलासयं । सुत्तविउद्धस्स जाया से चिंता
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४५०
पल्लल- समाणो जीवलोगो, सुस्सइ इह पइदिणं आउएवं ववत्थिए उवाओ ? गहिओ तत्त - जिन्नासाए ।
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं -सलिलं । को पुण
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एत्थंतरे समागओ तत्थ चउनाणी भयवं युगंधरायरिओ, ठिओ सहसंबवणे चेइए | निवेइओ से पुरोहिएण । गओ तत्थ राया वंदिऊण गुरुं निसन्नो पुरओ । कहिओ गुरुणा धम्मो । परिणओ पुव्वप्पओगेण रन्नो । तओ पुत्तं रज्जे ठविऊण समं लीलावईए पंचहिय-पत्थिव-सएहिं पव्वइओ एसो । अहिगय- समग्ग-सुत्तत्थो जाओ महायरिओ । अणुजाणियाणि गुरुणा से पंच विसयाणि सिस्साणं । लीलावई वि जाया पवत्तिणी । रायपत्ति त्ति समुव्वहइ गव्वं, बंधइ नीयागोयं । एवं अइकंतो कोइ कालो ।
उज्जय विहारि ति विन्नत्तो गुरु सीसेहिं भयवं । वट्टमाण- जोगेहिं जम्मंतरे वि अम्हे तए पडिबीहियव्व त्ति । अणंतराएण पडिवन्नं गुरुणा । उचिय- कालेज गयाइं सव्वाइं सुरलोगं । तओ इहेव भरहे संपज्ञमाणमणवंछिय-विसए अत्थि अत्थि - जण - पीणणत्थं अत्थवइ - वित्थारियकणय- कोसा कोसंबी नयरी । तत्थ निय-जस-पसरोवहसिय-सरयचंदो देवचंदो नाम नरिंदो । तस्स बहु- कज्न करण- सायरो बुद्धिसायरो मंती । तस्स कणयकंतिमई संतिमई भज्जा | सुरलोयाउ चविऊण तीए उयरे सरोरुहे रायहंसो व्व अवयरियो आयरिय-जीवो जाओ । कालक्कमेणं कयं से नामं संखायणो ति । इयरे वि समुप्पन्ना वाणारसीए नयरीए माहण - कुलेसु । लीलावई वि जाया उसभपुरे नीया - गोयकम्म-वसेण माणिभद्द-सिहिणो गेह दासीए सुया मयणमंजरी नाम |
BABY
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अइक्कं तो कोइ कालो । बालभावे चैव संखायणस्स मओ बुद्धिसायरो | अहिडियं मंतिपयं अनेण । कयाइ सो गच्छमाणो महारिद्धीए दिट्ठो संतिमईए । परुइया एसा भणिया संखायणेण - अंब ! कीस रोयसि ? । तीए भणियं पुत्त ! एसा तुह पिउ-संतिगा रिद्धी अनेण गहिया । तेण भणियं कहं एसा पुणो पाविज्जइ ? | तीए भणियं पुत्त ! विज्जाए । तेण भणियं अंब ! मा रोयसु, अहं विज्जमहिस्सामि । तीए भणियं पुत्त ! सुंदरमेयं । तेण भणियं - अंब ! एत्थ नयरे अहिणव मंति भएण न कोवि ममं पाढेइ, ता वच्चामि देसंतरं । न एत्थ अंबाए खेओ कायव्वो । तीए चिंतियं एवमेयं, भणियं
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सुमनाह-चरियं
च - पुत्त ! जइ एवं ता वच्च तुमं उसभपुरं । तत्थ तुह पिइमित्तो वेयगब्भो माणो परिवसइ । सो चउद्दस - विज्जाद्वाण पारगो तस्स पासं गच्छाहि । तत्थ ते विज्जा अयत्तेण भविस्सइ । पडिसुयमणेण । गओ एसो उसभपुरं । दिट्ठी वेयगब्भो । निवेइओ तस्स अप्पा । तेण चिंतियं पुत्ततुल्लो खु एसो विसिद्वाहारोचिओ य चक्कधर - वित्ती य अहं, तो न एयरस मह गेहे ठिई हवइ । अओ अब्भत्थेमि एय-भोयणकए सिरिमंतसिरोमणिं माणिभद्दं । पाढेमि य सयं निब्बंधेण । अणुहियमिणं इमिणा । सबहुमाणं पडिवन्नं माणिभद्देण । विणीय त्ति निरूवियासेसं चेव दासी मयणमंजरी - परियायावन्ना पुव्वजम्म पत्ती लीलावई, जहा तए एयस्स अवखेवेण अणुकूलं कायव्वं । पडिस्सुयमिमीए । हरिसिया एसा तद्दंसणेण । जओ
आयइं लोयह लोयणई जाई सरइं न भंति ।
अप्पिइं दिss मउलियहिं पिय दिट्ठरं विहसंति || ३१४४||
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अइक्कंतो कोइ कालो । पढियप्पयोगं घत्था जाओ पयाणुसारी एसो । समुप्पन्नो संखायणस्स दासीए समं पणओ । गाढ - रत्ता य तम्मि एसा न अन्नं पुरिसं कामेइ । अणुरागपरा इमीए जुवाणा उवणस्संति दविणजायं, न इच्छइ त्ति कुविया से जणणी । समागए वसंते भणिया इमीए - पुत्ती ! मुंच मम संतिगं आहरणाई । मग्गेहि अन्नं निय-दईयस्स पासे, तप्पभावेण य सुवण्ण- लक्ख- दाणेणं जेऊण गणियाओ आरुह वसंत - दोलं । मुक्कं मयणसुंदरीए आहरणं, एवं निबद्धो य सउण - गंठी । हसिया सहियाहिं, विसन्ना एसा । समागया रयणी । सुत्ता समं संखायणेण न एइ से निद्द त्ति लक्खिया संखायणेण भणिया यपिए! किमेयं ? ति । तीए वुत्तं न किंचि । निब्बंधेण पुच्छियाए साहिओ वईयरो | भणिया संखायणेणं- पिए ! थेवमिणं कज्जं । आहरेमि तुमं थेव-कालेणेव सव्वुत्तमाभरणेहिं, पूरेमि य गुरुजण मणोरहं । तीए वुत्तं - आहरिया चेव तए भत्तारेण गुरुजण-मणोरहापूरणे उण दिव्वो पमाणं ।
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एवं सोऊण चिंतियं संखायणेण - को पुण इहोवाओ ? अच्चासन्नो दोला - दिवसो । सव्वहा गुरु-देवाणुभावेण सोहणं भविस्सइ । पत्तो एसो । दिट्ठो अणेण रयणीए चरम- जामे सुविणओ- 'किल कुंजरेण चडाविऊण नियक्खंधे नीओ नयर-नंदणोज्जाणं । मुक्को तत्थ
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं कीलापव्वय-सिहरे । तओ गुलुगुलियं अणेण । समागया तत्थ सव्वाभरण-संगया मयणमंजरी । तओ वेइयमणेण । सु ओ "विचित्तमंगलुग्गार-महुरो नयर-देवया-पहाउय तूर-रवो, हरिसिओ चित्तेण | थेव वेलाए य पहाया रयणी । कयं गोसकिच्चं । निग्गओ नयराओ | गओ उज्जाणंतरं । दिहो अणेण नग्गोह-हिहओ तुट्ट-पासपडि ओ मूढाए वेयणाए कंठ गय-पाणी बंभसिद्धी नाम साहगपरिवायगो, संवाहिओ अणेण, वेईयं बंभसिद्धिणा, उहिओ एसो, भणिओ संखायणेण- भयवं ! किमेयं ? ति । तेण भणियं- भद्द ! महापाव-विलसियं । सुण कहमेयं -
सेविओ मए सुगहिय-नामो दुवालस-संवच्छरे अणेग-संसिद्धविज्जो पवणसिद्धी नाम गुरू | कओ य मे तेणाणग्गहो, दिना तेलोक्कचिंतामणी विज्जा, अविहेस्सरी य साहणी । साहिओ साहणोवाओ । पारद्धो य एत्थ गंगा-महानई-तीरे जाव तत्थ समुप्पन्नं विग्छ । विसुमरियं तीए एवं पयं, कालगओ य भगवं गुरू । तओ अकल्लाणभायणो म्हि निव्वेएण मए एवमुल्लंबिओ अप्पा । तुट्टो य मे पासओ | नाहिलसिय-मरणसंपत्ती वि ति महा-पाव-विलसियं । संखायणेण भणियं- भयवं ! किं तं विज्जं अन्नो न कोइ जाणइ ? तेण भणियंएवं, अओ चेव मरणमिडं ति । संखायणेण भणियं-एवं पि जुत्तो पुरिसकारो, न पुण मरणं । तेण भणियं- महापाव-संगयाणं न एसो फलइ, महापाव-संगओ य अहं । अन्नहा कहं विज्जा-पय-नासो । मयसमाणो य पुरिसो अहिलसिय-फलहीणो, ता गच्छ तुमं । अहं पुणो वावाएमि अत्ताणं । संखायणेण भणियं- भयवं ! न जुत्तमेयं । अन्नं च विनवेमि भगवंतं-किं अत्थि एस कप्पो जं सा विज्जा अन्न-समक्खं पढि ज्जइ ? | तेण भणियं-अस्थि, किंतु को गुणो एएण ? | संखायणेण भणियं- भयवं ! जइ एवं ता पढसु एक्वसिं, महंतो मे पमोओ भवइ । गुणो य एसो भगवओ, पमोयहेऊ महापुरिसा, एवं ति । पढिया परिव्वायगेण, लद्धं पयं संखायणेण, सुमरावियं परिव्वायगस्स, तुट्ठो एसो, भणियं अणेण-भो महापुरिस ! गुरूओ तुमं मम | एरिसो य एत्थ कप्पो नादिनाए गुरु-दक्खिणाए एसा अब्भसिज्जइ, सिद्धाइ मे धाउव्वायाइणो खुद्दप्पओगा । ता भण किं ते संपाडेमि ? ।।
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सुमइनाह-चरियं
संखायणेण चिंतियं-धित्तव्वं किंचि एत्थ, अन्नहा अलद्धसममेव एयं पयं पत्थावो य एस दक्खिणा-गहणस्स, न अन्नहा मे पियाए आहरणाई होइ । ता जुत्तमेव एयरस निय-वुत्तंत-साहणं ति चिंतिऊण साहिओ वुत्तंतो | परितुहो परिव्वायगो । भणियं अणेण-सिद्धो मे रसिंदप्पओगो । अत्थि इहासन्नमेव तं खेत्तं, ता पभाए संपाडेमि ते दस-सुवन्न-लक्खे । अत्थि य मे जक्खिणी-दिल्लो दिव्वालंकारो, तं पुण इयाणिं चेव गिण्ह तुमं पि । समप्पिओ अलंकारो । गहिओ संखायणेण । भणिओ य एसो परिव्वायगेण- गच्छ, समप्पेहि एवं ताव घरिणीए, पभाए कम्मयरे घेत्तूण लहं आगच्छेज्जसु ति । एवं ति पडिवघ्नं संखायणेण, गओ एस, समप्पिओ मयणमंजरीए अलंकारो । भणिया य एसा-पिए ! गुरुजणाणुभावेणेव पुन्नप्पाओ ते गुरुजण-मणोरहो वि । एवमवगच्छिय न संतप्पियव्वं पियाए । परितुहा मयणमंजरी वि ।
न तहा वित्त-लाभेण जहेह-भत्तार-गुण-पयडणाए ।
उवणीयं आहरणं जणणीए विम्हिया एसा ||३१४५।। न एस सामन्न-माणुसो त्ति चिंतियमिमीए । विभूसिया मयणमंजरी । अइक्वंतो वासरो । बीय-दियहे गओ परिव्वायग-समीवं । उवणीयं परिव्वायगेण जहुत्तं सुवघ्नं । गहियं संखायणेण । नेयावियं मयणमंजरिगिहं । समप्पियमिमीए, इमीए वि जणणीए । परितुद्वा एसा । मयणतेरसीए दाऊण सुवन्न-लक्खं आरोहाविया वसंतदोलं मयणभंजरी इमीए । अहो ! धन्ना एस त्ति जाओ लोगप्पवाओ । तन्ने हेण अणायरी विज्जागहणे संखायणस्स । एवमइक्कं तो कोइ कालो विसयसुहमणुहवंतस्स । पसूया मयणमंजरी । जाओ से पुत्तो ।
__ इओ य कोसंबीए कोडिन्नायरिय-पासे पडिबुद्धा संखायण-जणणी संतिमई । पडिवन्ना अणाए विणयमइ-पवत्तिणि-समीवे पव्वज्जा । पवत्तिणीए सह विहरमाणी समागया सा उसहपुरं । गोयर-विणिग्गया दिहा संखायणेण । 'हंत ! अंबा एस'त्ति जायसंवेगो लज्जिओ नियवुत्तंतेण 'अहो ! अकज्जं मए अणुहियं, न संपाडिया गुरुजणाण संपयं पि, जमेसा आणवेही तमहं करिस्सं'ति चिंतिऊण वंदियाऽणेण, धम्मलाभिओ संतिमईए । विनत्ता संखायणेण एसा- अंब ! पमाई अहं इत्तियं कालं आसि, संपयं समाइस जमहं करेमि । संतिमईए वुत्तं-पुत्त !
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं करेहि सफलं मणुय-जम्म-संखायणेण 'किं पुण एयरस फलं ?' ऊहापो हप्पहाणेण जाणियं सव्वहा अत्थाइवागेण धम्मो, तं च अकुणमाणस्स माणुसत्तणं विहलं ! धम्मो य सव्वुत्तमो पुरिसत्थो । अहह ! उज्झिाओ मए विसय-परवसेणं ति गहिओ महंतेण पच्छायावेण, विसोहिया कम्माणुबंधा, समुप्पन्नं अपुवकरणं, उल्लसिया खवगसेढी, जायं केवलनाणं, कया केवलि-महिमा अहासन्निहिय-देवेहिं । तुहा से जणणी । इमं सोऊण समागया मयणमंजरी, पडिबोहिया य पुव्व-भवकहणेण | जाया समणोवासिगा | माण-विवागं सोऊण संविग्गो लोओ।
इओ य ते वाणारसि-माहणा परित्तसंसारयाए संजाय-संवेगपरिणामा धम्माऽरन्ने आसमपए जाया तावसा, चिहंति महातव-विहाणेण संसयमावला य महापयत्थे सु । आभोई यमिणं के वल-नाणेण संखायणेण | तप्पडिबो हणत्थं पुठव-सिंगारेण पयट्टो एस पत्तो धम्मारनं । दिहो भगवं तावसेहिं - 'महाणुभावो'त्ति वंदिओ सहरिसेहिं । सुरकय-कणय-कमल-निसल्लो पुच्छिओ सविणयं- भयवं ! जीवाण का माया ? को वा पिया ? तहा को मरिउ वियाणइ ? | अन्नं च किं जीवियं सेयं किं वा मरणं ति ? | भयवया वुत्तं- देवाणुप्पिया ! जीवाणं परमत्थओ माया निद्दा, पिया हंकारो | तेहिं जाया माया-कोह-कामाइणो धावि बालहार-तुल्ला ।
तहा, जो जीवियं वियाणइ सो मरिउं पि । जओ जो जीवमाणो धम्मं करेइ तस्स सुहो मरण-समओ त्ति || जीविय-मरणाण उ मरणं सेयं । जीवंताण नियमा संसारो, मयाण पुण मोक्खो ||
एयं सोऊण पडिबुद्धा तावसा, दिक्खिया केवलिणा, कम्मक्खयं काऊण गया सव्वे वि मोक्खं ति ।
अह मयणमंजरी वि हु कमेण पुत्तम्मि जोव्वणं पत्ते । मुणिउं माण-विवागं थेवं पि हु गुरु अणत्थ-फलं ॥३१४६।। सव्वविरइं पवना तिव्व-तवच्चरण-खविय-कम्म-मला । केवलनाणं उप्पाडिउण परमं पयं पत्ता ||३१४७।। कोवरहिओ वि माणुज्डीओ वि मायाए जइ न वट्टेज्जा । होज्ज सिवमग्ग-संदण-समग्ग-धम्मस्स तो जोग्गो ||३१४८||
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धम्मवण - जलण-जाला मोह-महा-मयगला गलण-साला । कुगइ-वहू-वरमाला माया सुहमइ - हरण - हाला ||३१४९।। अविवेय - रायहाणी माया मण-तणु- समुत्थ- दुह - खाणी । कित्ति - कयली - किवाणी करुणा-कमलिणिवण हिमाणी ॥ ३१५० ।। माया- परिणामपरा परवंचणमायरंति जे मूढा । ते वंचयंति सग्गाऽपवग्ग- सुक्खाणमप्पाणं ||३१५१||
थेवक कवडपरो निबिडं निवडंतमावयालक्खं । पिक्खड़ न सिरे लगुडं पयं पिबंतो बिडालो व्व ।। ३१५२ ।। उदयं लहंति लीलाए अणुसरता सरं व सरलत्तं । खिज्जंति निद्दयं पुण कवडं अवडं व सेवंता ||३१५३|| धणलव-लुद्धा कवडेण मुदजण- विप्पयारण-प्पहाणा । पावंति पावमइणो संखो व्व असंख - दुखाइं ||३१५४|| तहाहि
सुमइनाह-चरियं
[६. मायायामनिग्रहनिग्रहयो : शंख-कथा]
इत्थेव भरहवासे विस्सपुरं नयरमत्थि वित्थिन्नं । मेरुतणय व्व रेहंति जत्थ सोवन्न-पासाया ||३१५५ ।। कंपिल्लो तत्थ दिओ नंदा से भारिया सुओ ताण । संखो व्व कुडिल - हियओ संखो नीसंख - दोस - हिं ।। ३१५६ ||
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सो बालगो चेव मायावी तेहिं तेहिं पयारेहिं परवंचणेक्क- चित्तो पत्तो जोव्वणं । किंपि धाउव्वायाइ- पओगं सिविखऊण भमंतो गओ गयउरं । दिट्ठोऽणेण तत्थ चंदण वणिओ, भणिओ य-भद्द ! इमिणा वाणिज्जकिलेसेण बहुणा वि न होइ दालिद्दच्छेओ । जइ पुण मह वयणे पयट्टसि ता अलं किलेसेणेव तुमं महिडिओ होसि । चंदणेण वुत्तं- जं तुमं आणवेसि तं करेमि । संखेण वृत्तं - अत्थि मे सुवन्न-सिद्धी, ता पच्चयत्थं आणेसु एक्कं सुवन्न-गदियाणयं जेण तं दुगुणं काऊण दंसेमि । आणिओ अणेण सो । कया सामग्गी । संखेणाऽवि हत्थ - लाघवेण
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं निय-कणगं खिविऊण दंसिया दुन्नि गदियाणगा । विम्हिओ चंदणो, आढत्तो अणेण य संखस्स आयरो ।
पुणो वि वुत्तो संखेण एसो- दिहं तए ओसह-सामत्थं ? इत्तिएणेव किलेसेण "बहुयं पि सुवन्नं होइ । चंदणेण आणियं सुवन्न-सयं । धम्मियं चंदण-समक्खं सयलं पि रत्तिं, चरम-जामे य निद्दा-विलुत्त-चेयणे चंदणे धित्तूण सुवन्नं पणहो संखो, वच्चंतो य पउमाडवीए पत्तो, चोरेहिं गहिऊण सुवन्नं विणासिओ । उप्पलो तीए चेव ससगो । चंदणो वि निग्गओ निव्वेएण निय-नयराओ । कयाइ भमंतो पत्तो तमुद्देसं । बुभुक्खापरिगओ निसल्नो कुरवय-तले दिहो ससगेण । ईहापोह-मग्गणाए जायं से जाईसरणं । मओ सो माणस-दुक्खेण । पईऊण खदो चंदणेण । उववन्नो एसो गंगातडे नउलो । अइक्वंतो कोइ कालो | अन्नया तमुद्देसं आगओ चंदणो। दिहो तहाविह-फल-भक्खण-पवणेण नउलेण । जायं जाईसरणं, समागया वेयणा । विहुणियं वयणं । पडियाओ दाढाओ, गहियाओ चंदणेण । कयाइ अहिदहो, ताहिं जियाविओ एसो मग्गमिलिएण खसदेसुब्भवेण वाईएण | तव्वेयणाए मओ नउलो, समुप्पन्नो हिमवंत-पव्वए चमरो | अइक्वंतो कोइ कालो ।
अन्नया दारिदाभिभू ओ आगओ तमुद्दे सं चंदणो । दिहो महाखयंकिय-पुच्छ-भागेण चमरेण । जायं जाईसरणं । संखोहेण विहुयाई अंगाइं । पडियं पुच्छं चमरस्स । गहियं चंदणेण । तहाविहठक्करस्स तप्पयाणेण निच्छूढा आवया । तव्वेयणाए मओ चमरो । उप्पन्नो गिद्धकूड-गिरिम्मि कणगमिगो | अइक्वंतो, कोइ कालो । अन्नया खयवाहि-गहिओ गओ तत्व चंदणो, दिहो कणगमिगेण । "जायजाईसरणो मिगो वीसत्थो वावाईओ सवरेण, उप्पन्नो मलयपव्वए मणिसप्पो । सबरेण वि दिन्नं कणगमिग-चम्मं चंदणस्स | पउणो य सो तेण जाओ । अइक्वंतो कोइ कालो । अन्नया अत्थत्थी गओ तत्थ चंदणो, दिहो वाहि-पीडि एण मरण-समए सप्पेण, जायं जाईसरणं, उज्वेल्लियमओ सप्पो उप्पल्लो सो पीलाडवीए चित्तगो । गहिओ मणीचंदणेण, विक्किओ, लद्धा अत्थमत्ता । अन्नया गुरु-नियोगेण चित्तगो खल्ला-निमित्तं गओ । तत्थ चंदणो दिहो जंत-गहिएणं चित्तगेणं, संजायं जाईसरणं, संखोभेण गाढयरं पडिओ पासगे, मसो गलग्गह
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सुमइनाह-चरियं
पीडाए, उप्पन्नो चंपाए सउलगो । भिल्लेहिंतो गहियं चित्तग-चम्म चंदणेण । कयाइ महिलाए सुवन्नाभरणं मग्गिओ । तयत्थी परिब्भमंतो पत्तो चंपं चंदणी ठिओ नगरुज्जाणे । इओ य पुव्वुत्त- सउलगेण दिट्ठा नरिंद-पत्ती मुक्केण कणय कडि सुत्तगेण ण्हायंती, गहिऊण कडि - सुत्तगं वच्चंतेण दिट्ठी चंदणी, जायं से जाईसरणं, उप्पन्नो ईसि संवेगो, पडियं कडिसुत्तयं संभंतस्स, गओ स-नीडं, निसन्नी तर्हि, डक्को पुव्वागएण पन्नगेण, मरिऊण उप्पन्नो चंपाए चेव कत्तियस्स माहणस्स भद्दा भारियाए पुत्तत्तणेण । गहियं चंदणेण कडिसुत्तगं, समप्पियं पिययमाए ।
कयाइ पडिबुद्धी विणीय- देवगुरु- समीवे चंदणी पव्वईओ य पढियसुत्तो पत्तो सूरिपयं जाओ चउनाणी । इओ य सउलग - जीवबडुगो जाओ जोव्वणत्थी । एत्थंतरे जाणिऊण परिवाग - समयं समागओ चंपं चंदणायरिओ । निग्गओ वंदणत्थं नरिंदो चंदवाहणो, तेण समं सउलग - बडुगो य । सुओ तदंतिगे धम्मो, संविग्गो ईसि राया बडुगो य । अइसयनाणि त्ति पुच्छिओ राइणा-भयवं । एत्थ समरूवाइगुणजुयाओ वि गरूय-रायधूयाओ न वल्लहाओ, तहाविह रूवरहिया वि कीस वल्लहा किराएसर धूया गुंजावली, हत्थी य जयमंगलो ? अवेयदुवखाणि य एयाणि हवंति मम दंसणेण किं पुण एत्थ कारणं ? | एवं पुच्छिएण भणियं चंदणायरिएण- महाराय ! सुण एत्थ कारणं । गुंजावलीए नेहाणुबंधी इयरस्स मायाए ओघसन्ना । तहाहि
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आसि कालावल्लहे गामे कालसेणो चंडालो, कयाइ दिट्ठा तेण कालमुह - चंडालस्स संकरी जाया । जायाणुरागेण कालसेणेण हढेण हरिऊण घरिणी कया सा । सहाव मद्दवज्जव - जुओ उचिय- कागाइ, बलि-दाण-संपउत्तो तहाविहं अवरं पावं अकाऊण मओ कालसेणो समुत्पन्नो सीहगुहाए पल्लीए मोरूओ नाम सबर - दारओ सहावओ सच्चवाई | तत्थ य पल्लीवइस्स परोप्परं असहमाणा दुवे पहाणा सबरा चंडीसरो चंडिगो य । संकरी वि समुप्पन्ना चंडीसरस्स हंसिया नाम धूया, जोव्वणत्था दिन्ना मोरुयस्स, पुव्व- - भवब्भासेण जाया अच्चंत - वल्लहा |
अह अन्नया कयाई चिंतइ चंडीसरी मणे एवं । चंडं चंडिगमेयं हणेमि केणइ उवाएण ||३१५७ ||
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
एगपय-बद्धराओ सव्वत्थ वि कुणइ पाडिसिद्धिं जो । तं हियइ सल्लभूयं माणधणा पेक्खिउं न खमा ||३१५८ ||
तेण भणिओ मोरुओ जहा पल्लीवइस्स पुरओ अहं इमं भणिरसं जहेस चंडिगो तुह वेरिणा सह संबंधं करेइ । इत्थत्थे तए सखेज (साहेज्जं ) कायव्वं । मोरुएणावि सच्चवाइत्तणेण न पडिवन्नं तं । तओ कुविएण चंडीसरेण उद्दालिया निय- दुहिया हंसिया । मोरुओ वि तव्विरहे महंतं संतावमावन्नो मरिऊण समुप्पन्नो एगसिंग - गिरि-समीवे पाणइज्ज -पल्लीए दंगिक-सुओ वीरसेणो नाम । हंसिया वि तहा मोरुयस्स मरणं सोऊण उब्बंधणेण मया समाणी समुप्पन्ना अन्नदंगिक - दुहिया सारसिंगा नाम, पिउणा दिन्ना धाडिगाभिहाणस्स पिउच्छासुयस्स । कयाइ दिडो इमीए वीरसेणो । पुव्वभवब्भासेण" जायाणुरागा धाडिगं मोत्तूण पविडा वीरसेण घरे । वीरसेणस्स य मित्तो कुरवो नाम । सो मायावी अणुज्जुओ उजुयं वीरसेणं अइसंधइ तेहिं तेहिं प्पगारेहिं ।
अन्नया सारसिगाए समं गहण - पव्वे पहाणत्थं गओ तित्थं वीरसेणो । आगच्छंतस्स उडिओ सीहो, वावाईओ सो तेण । तओ छुरिय उप्पाडिऊण ठिओ सारसिगाए पुरो, भणिया य एसा - 'वावाएमि तुमं जइ कस्सइ अग्गओ बोल्लिहिसि एयं सिंह - विणास - वईयरं । तीए भणियं'न बोल्लेरसं' | चिंतियं अणाए अहो ! महाणुभावो एसो । अन्नया हण हरिया सा, धाडिगेण कयं वद्धावणयं । भज्जा आणीय त्ति प्रवत्तमावाणगं । फुरंतो धाडिगेण दूरओ कंडेण भिन्नो मूसगो । तओ तं घेत्तूण नच्चिरं पवत्तो दंसेइ सारसिगाइ, चिंतियं अणाए- अहो पुरिसाणमंतरं ।
एगे सिंहं पि विणासिऊण निय-पोरिसेण लज्जंति । अवरे हणिउं पुण मूसगं पि हरिसेण नच्चंति ||३१५१||
विरत्ता धाडिगस्स । हढेण घेप्पमाणी तेण तदत्थं जलणं साहिऊण मया सारसिंगा उववन्ना वंतरेसु । सुयमिणं वीरसेणेण । तओ घेत्तूण तीए अडिगाई गओ गंगं वीरसेणो, जायं तत्थ साहु-दंसणं, अणुसासिओ तेणेसो । अहाऊयक्खएण मओ गंगातीर उववन्नो वंतरेसु । कुरवो वि कुडवाहिघत्थी जलणं पविसिऊण मओ समुप्पन्नी वंतरेसु । पालिउं
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सुमइनाह-चरियं अहाऊयकालो तओ चविऊण वीरसेण-जीओ जाओ तुमं राया, सारसिगा-जीवो वि किराएसर-- धूया गुंजावली, कुरव-जीवो वि जयमंगलो हत्थी । ता एवं गुंजावलीए नेहाणुबंधो । इयरस्स वि मायाए ओघसन्ना एत्थ कारणं ।
जं कालसेण-जम्मे हढेण हरिऊण संकरि घरणिं । नरवर ! तुमए खित्तो विओग-दुक्खम्मि कालमुहो ।।३१६०।। तं दोसु भवेसु तए वि पावियं पिययमा-विरह-दुक्खं । जं कीरइ सुहमसुहं व तरस लब्भइ फलं नूणं ||३१६१|| जं च तुमं पुव्वं वंचिऊण कुरवेण भक्खियं दव्वं । तेणेस वाहणं तुह जाओ जयमंगलो हत्थी ||३१६२|| इय सोउं संविग्गो राया बडुगो य जंपियं रब्ला । भयवं ! किमित्थ जुत्तं ? अह जंपइ चंदणायरिओ ||३१६३।। कहिऊण पुव्व-वइयरमेसिं कुसलप्पवत्तणं कुणसु । एवं ति जंपिउणं गुरु-भणियमणुहियं रन्ना ||३१६४।। एत्थंतरम्मि जायं जाईसरणं इमस्स बडुगस्स । सो संविग्गो नमिउं निय-वुत्तंतं कहइ गुरुणो ||३१६५।। गुरुणा वुत्तं-जाणामि अहमिणं, आगओ अओ चेव । तुज्झ पडिबोहणत्थं तं सोउं विम्हिओ राया ||३१६६।। पडिबुद्धो बडुगो वि हु जंपइ- भयवं ! किमित्थ मह जुत्तं ? | भणइ गुरू- माया-निग्गहेण जिण-धम्म-पडिवत्ती ।।३१६७।। एवं ति अब्भुवगयं इमिणा तो सावगत्तणं गहियं । तं पालिऊण विहिणा मरिउं सोहम्ममणुपत्तो ||३१६८।। तत्तो चविओ लहिउं सुनरत्तं नियडि-निग्गह-पहाणो । काऊण वयं कम्मक्खएण मोक्खं गओ एसो ||३१६१।। इय कोह-माण-माया-रहिओ वि ह जइ न वज्जए लोहं । लोहं व जले जीवो तो बुड्डुइ दुत्तरम्मि भवे ||३१७०।। दन्नय-फारफणेणं विवेय-जीविय-विणास-दक्खेणं । लोह-भुयगेण डक्का न मुणंति हियाहियं जीवा ||३१७१।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं ससिकर-धवला वि गुणा निययासय-दाहकारए लोहे | आवटंति जलकणा लोहम्मि व जलण-संतत्ते ।।३१७२।। लोह-तिमिरोह-उवहय-विवेय-नयणा अदिह-सुहमग्गा । निवडंति नरा नरयंधकूव-कुहरम्मि किं चोज्जं ? ||३१७३।। जह इंधणेहिं जलणो जलेहिं जलही न जायए तित्तो । तह जीवो बहुएहिं वि धणेहिं संतोस-परिचत्तो ||३१७४|| दुरिय-दविण-कोसं सोग-धूयप्पओसं सुकय-हियय-सूलं आवया-वल्लि-मूलं । नय-नलिण-तुसारं दुग्गई-गेहदारं भवविडवि-जलोहं सूरिणो बिंति लोहं ||३१७५।। जीवा लोहालिद्धा लहंति तिक्खाइं दुक्ख-लक्खाइं । लोह-विहीणा य सुरासुर व्व सुरसिद्धि-सोक्खाइं ||३१७६|| तहाहि
[७. लोभ-विपाकस्य जयाजये च सुरासुर-कथा]
अत्थित्थ कत्तियपुरं पुरं पुरंधीण पीण-थणवहं । मोत्तूण जत्थ न परो पावइ करपीडणं को वि ||३१७७।। तत्थत्थि "नंदसेणो विप्पो छक्कम्म-करण-तल्लिच्छो । तस्स पिया अणुरत्ता गोरी गोरि व्व गिरिसस्स ||३१७८।। पुत्ता सुरो य असुरो ताण अह ते गया पढण-हेउं । कोल्लाग-सन्निवेसे पढंति सम्मं गुरु-समीवे ।।३१७१।। तत्थ अरिमद्दणो राया । तस्स सिरिया देवी भज्जा । सा य चउत्था(?) अदिह-रिद्धि-साहण-फलं अदिह-वयगं । तत्थ एस कप्पो
अदिह-पुव्वा बडुगा अदिह-रयणा य भरिय-कच्चोला । उवरि-दिल्लेण आहार-जाएण पसिज्जंति कयमिमीए ||३१८०।। एएसिं निग्गयाए कच्चोले गहिऊण अंगुलि-पक्खेवेण नायमिणं सुरेण | चिंतियं अणेणं-'असुरस्स वि कच्चोलं रयणगब्भं' ति | ता तं गेण्हिय एयं वावाइस्सं । पेच्छामि ताव के रिसं तदीयं ति मग्गिओ असुरो
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सुमइनाह-चरियं
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कच्चोलं समप्पियं असुरेण । चिंतियं अणेण वीसासेमि ताव एवं कच्चील - समप्पणेणं जेण एसो वि मे निय-कच्चोलं समप्पेइ । तओ घेत्तूण वावाइ (य) स्सं सुरं ति । एवं दूसिय चित्ता गया दुवे वि आरामं । न जाओ वावाइणप्पओगो । जंपियं असुरेण भुंजामो त्ति । न एत्थ अन्नो उवाओ ता इमं एत्थ पत्तकालं ति भणियं सुरेण- अरे ! भुत्तमम्हेहिं मदीए कच्चोले अन्नं चेव हेडओ ता तुमं पि निरूवेहि । निरूवियं हरिसिएण असुरेण, दिहाणि रयणाणि, गहिओ अहियं संकिलेसेण । दूसियचित्तेहिं चेव अन्नोन्न-वावायण-निमित्तं मायाए आलोचियमिमेहिं एत्थेव निहाणीकरेमि ताव इमाणि कच्चीलाणि रयणाणि य तओ जहाजुत्तं अणुचिस्सिम्ह एवं ति अणुचिडियमिमेहिं निरूवंति अन्नोन्नं वावायणप्पगारे |
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अन्नया हिंडमाणा गया अंधकूव-समीवं । तं पलोयंतो पेल्लिओ सुरेण असुरो, पडिओ असुरो, घेत्तूण सुरं, मया दुवे वि अट्टज्झाणेण समुप्पन्ना एत्थेव सप्पा, परिग्गहियं ओहसन्नाए दुवेहिं पि दव्वं, रमंति तत्थुसे धिईए | अन्नया जायं परोप्परं दंसणं । कुविया लोह - सन्नाए । महा- कलहेण वावन्ना परोप्परं, उप्पन्ना तत्थेव मूसगा । परिग्गहियं ओह-सन्नाए दुवेहिं पि दव्वं । अभिरमइ तत्थ दुण्हं पि । कालेण जायं दंसणं । मोह - वासणाए कलहिऊण परोप्परं विवन्ना, जाया तस्सासन्न - पुक्खरिणीए मंडुक्का । तओ सन्नाए रमंति निहाण-देसे, अन्नया जायं दुहं [ ओह - ] पि दंसणं, पुव्व वासणाए रुट्ठा परोप्परं, कलहिऊण मया, सम्मोहेण जाया तदासन्ने संखणगा, ओह सन्नाए समागया दव्व-देसं, चिट्ठेति सुहेण । कयाइ मिलिया कुद्धा, ओह-सन्नाए मया, कायपीडाए उववन्ना तदासन्ने कुंथुगा, तहेव समागया दव्व देसं । इच्चाइ समाणं " पुव्वेण, नवरं उववन्ना तत्थेव कोल्लुगा । ते वि एवं चेव मया । नवरं उपपन्ना एए तत्थेव पउमाछोडा, ओह सन्नाए ओइण्णा दोन्हं पि पायसा । अन्नया अणाभोगेण उक्खया मालिगेण मया अहाऊंयक्खएण, उववन्ना तस्सेव पुत्ता जाया । कालक्कमेणं पत्ता वय विसेसं समागच्छंति आरामं, तूसंति निहाणुद्देसे, तद्देसकए कलहंति परोप्परं, न विरमंति पिइवयणेणावि । एवमइक्कंतो कोइ कालो | अन्नया समागओ तत्थ मयंकसेणो नाम केवली रायरिसि कुमरो, ठिओ तदारामभूसणस्स बउल
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं तरुणो तले । सूर-कय-कणय-कमल- निविडो मालिगेण समं पुत्तेहि गओ तस्संतियं एसो, वंदिऊण केवलिं निसन्नो पुरओ चिंतिउं पवत्तो यअहो ! भयवओ निरुवम रूवसंपया । अहो ! सव्व-लक्खणालंकिया कायलच्छी । अहो ! पसम पीऊस पर पेसला दिट्ठी । अहो ! कायर
नरुक्कंपकारओ दुक्कर - किरिया -कलाव करण-परक्कमो । अहो ! सयलसत्त-साहारणं धम्म वागरणं । तः विसाल-भूवाल-कुल- संभवेण भवियव्वं भयवयं ति । भणियं अणेण भयवं ! सामन्नेणावगओ निगुणो एस संसारो । जं तुब्भे मुत्तूण इमं सयल तइलोक्कालंकारकप्पा कुसुमाउह - महाराय - लीलावणे नव जोव्वणे वि पवन्ना दुरणुचरं चारित्तभरं विसेसओ पुण किं निव्वेय कारणं ? ति । गुरुणा वागरियं - भद्द ! संसारम्मि निव्वेय कारणं पुच्छसि । जओ
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दव - दहण - पलित्ते काणणे व् भवणे व सप्प-सय- किन्ने । संसारे दुक्ख - सहस्स - संकुले को न निव्विन्नो ? ||३१८१|| जम्म-जराऽऽमय-मरण-प्पमुहेहिं दुहेहिं विद्दविज्जति । जत्थ जणा तम्मि भवे कस्स सयन्नस्स रमइ मई ? || ३१८२|| तो मालिगेण भणियं जइ वि हु एवं तहावि पाएण । न विसेस - कारणेणं विणा इमं वज्जए को वि ? || ३१८३||
गुरुणा भणियं - जइ इत्तिओ महाभाग तुज्झ निब्बंधो । तो तं पि समासेणं कहिज्जमाणं निसामेसु || ३१८४ | ! तहाहि -:
समतड-विस वसुहा-वहुए विउले नडालपट्टे व । पट्टिक्रं पुरमत्थि टिक्कगं पिव सुवन्न- जुयं ||३१८५|| तत्थत्थि सूरसेणी राया सूरो व्व पसरिय-पयावो । संवरइ अणह - मग्गे जं एसो तं महच्छरियं ||३१८६|| तस्सत्थि पिया ललिया जीसे नयणेहि निज्जियाइं व । कमलाणि मयकुलाणि य निच्चं सेवंति वणवासं ||३१८७|| दुनि सुया जाया ताण अमरसेणो मयंकसेणी य । अह संविग्गमणाइं ठविउं रज्जे अमरसेणं ||३१८८||
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सुमहनाह-चरियं
राया ललियादेवी य दोवि संजमभरं पवन्नाइं । सो हं मयंकसेणो संसार-विरत्त-चित्तो वि ||३१८ ।। चिहामि अमरसेणस्स भाउणो नेह-निगडिओ गेहे । अन्न-दियहम्मि रना महानिहाणं सुयं तत्थ ||३११०।। तेण खणावियमेयं न य लद्धं दूमिओ मणे एसो । पडहं पुरे दवावेइ लेउ जो सक्वए को वि ||३१११।। तस्सेव निहाणमिणं ति तो मए राइणो अभिप्पायं ।
सविसायमसत्तीए इणमाणत्तं ति नाऊण ||३११२।। ता गिहिऊण उवणेमि एयमेयस्स त्ति पारद्धो उवाओ । खित्ता संखणगा तेसिं ठाणेण । महातिल्ल-दीवग-पडणेण य लद्धं निहाणं । मए उवणीयं रन्नो । न गहियं अणेण, तुज्झ चेव एयं ति जंपियं सासूयं, न लक्खिओ मए भावो । पसाओ त्ति दिन्नं तं दीणाईण । कुविओ राया चित्तेण | जाया ममोवरि वावायणिच्छा । लक्खिया मे परियणेण | निवेइया हियबुद्धीए । न सद्दहियं मए | पेसिओ अह आडविगस्स दुग्गरलो उवरि विक्खेवेण भणिओ महंतगेहिं पसत्ते वावायणप्पओगो अवहीरियं तं मए, गओ दग्गरनो उवरि वसीकओ मए । आगच्छंतेण गिरिगुहाए दिहो केवलि-रिसी । सुओ तदंतिगे धम्मो | अइसय-नाणि त्ति पच्छिओ रिसी-भयवं ! ममं पइ रनो मारणाभिलासो त्ति किं सच्चं ? रिसिणा वुत्तं-सच्चं । संविग्गो अहं चित्तेण । न जाओ तद्वरि कोवो | पुच्छिओ पुणो वि रिसी- भयवं ! किमित्थ कारणं न मे पओसो एयम्मि ? संपयं पि गुरु-भत्ती चेव । रिसिणा वुत्तं- लोभाणुबंधो एयरस कारणं, तुज्झ उण निल्लोभस्स एयम्मि भत्ती चेव । तहा हि___अस्थि अत्थि-जण-सुलह-समग्गाहारो अणिंदिय-दियवग्गाहारो महुसित्थं नाम अग्गाहारो । तत्थ तुब्भे खंदिल-सोमिला नाम सहोदरभाउणो वेयपाढिणो दरिद्दा य निव्वेएण गया उत्तरावहं, चउब्वेय त्ति तत्थ पूइया जणेणं । पयहा निय-देसमागंतुं । तद्द०व-लोभेण विणह खंदिलस्स चित्तं । चिंतियमणेण-'वावाएमि सोमिलं, गिण्हेमि केवलो दव्वं ।' तओ गिलाणस्स ते पिज्जाए छुढं घयं, वाउजरो त्ति जाओ तुमं तेण पउणो मओ य । एसो पहे पुरओ पयट्टो पडिऊण "तण-छिन्नरुवे कूवे पाव-परिणामेण समुप्पन्नो रयणप्पहाए । इमं च दहूण वेरग्गिओ
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं तुमं विरओ असुहाणुडाणाओ, तदुद्देसेण दाऊण दाणं मओ अहाऊयक्खएणं उप्पन्नो सोहम्मे । पालिउं अहाऊयं चुओ देवलोगाओ, उप्पन्नो लाडविसए भरूयच्छे पट्टणेब्भ-सिद्धदत्तस्स नाइत्तगस्स नम्मयाए भारिया पुत्तो । पइद्वावियं ते नामं मणोरहदत्तोति ।
एत्यंतरे एसो वि नरगाओ उव्वहिऊण उप्पन्नो तत्थेव कुंडलगस्स वाणियगस्स टंकीसरीए भारियाए पुत्तो, कयं दोणगो त्ति से नामं । पत्ता दोवि जोव्वणं, जाया परोप्परं पीई । संते वि विहवे अहिमाणमेत्तेण वि दविण- निमित्तं गया सिंहलदीवं । कम्म धम्म- संजोएण विढत्ताणि रयणाणि, पयट्टा निय- देसमागंतुं । रयण - लोहेण विणद्वं दोणगस्स चित्तं । चिंतियमणेण - 'वावाएमि मणोरहदत्तं गेण्हामि केवलो रयणाणि ।' गओ कम्मणिज्जे भोयण-निमित्तं । कारावियाओ तेण संभियकमोदिगाओ, छूढमे गाए विसं । ताओ गिण्हिय आगओ आरामं । सुत्ताहिदहस्स दिन्ना ते विसकमोदिगा । 'विषस्य विषमौषधमिति' न मओ तुमं तीए, मओ य एसो तदजिन्नविसूईयाए । असुहज्झवसाएण उप्पन्नो सक्करप्पभाए । वेरग्गिओ तुमं एय वईयरेण विरओ भोगसुहाओ । कयमेयस्स उददेहियं । मओ कालक्कमेण, उप्पन्नो सणकुमारे, पालिय-महाऊयं चुओ देवलोगाओ, उप्पन्नो दक्खिणावहे काबेरीनयरीए सोमिलरस माहणस्स गंगाए भारियाए पुत्तो । कयं से नामं आइच्चदत्तो त्ति ।
एत्यंतरे इयरो वि नरगाओ उव्वट्टिय उप्पन्नो एत्थ चेव देवदत्तस्स माहणस्स संवुक्काए भारियाए पुत्ती । ठावियं से नामं धणंजओ ति । उवज्झाय- पुत्ती एसो त्ति गोरवेसि तुममेयं । एवमइक्कंतो कोइ कालो । एत्थंतरे पडिबुद्धो तुमं संगयायरिय-समीवे, जाओ सावगी तुह पीइवाजेण एसो वि । अन्नया कुसाइ - निमित्तं गया अडविं । तं गहाय आगच्छमाणा वीसमिया निग्गोह- हिडओ । तत्थ अकम्हा सुवन्न- भरियगोणि-संगया समागया वेसरी । खिविऊण गोणिं पलाणा । दिट्ठमिणं
भेहिं । चलंत निही एसो त्ति तुट्ठा तुब्भे, रत्तिं नस्सामो त्ति संपहारिऊण संगोविया करमद्द - जालीए, पयट्टा नयरिहुत्तं ।
एत्यंतरे विणद्वं चित्तं धनंजयस्स, चिंतियमणेण-वावाईऊण आइच्चदत्तं केवलो" गिहिस्सं ति रुद्दज्झाण- दूसियरस वोलिओ दियहो,
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सुमइनाह-चरियं पयट्टा दोवि रयणीए, एत्थुद्देसे वावाइस्सं ति आसारिया कुंठी धणंजएण | एत्थंतरे उग्गविसेण डक्को सप्पेण इमो | दहो दही त्ति जंपियमणेण | विसनो तुमं । मओ एस, थेव वेलाए उप्पन्नो वालुगप्पभाए । गहिओ तुमं संवेगेण, अहो अहो ! असारो ति चत्तो विसय-संगो । विणिजोजियं दव्वं धम्महाणेसु । पवई ओ गुरु-समीवे । पालिय-महाऊयं मओ सिदंतविहिणा, उप्पन्नो माहिदे । आउक्खएण चुओ देवलोगाओ, उप्पलो मरहह-विसए एलउरे पट्टणे सूरधम्मस्स सिहिणो सिरीए भारियाए पुत्तो । कयं चंदवम्मो त्ति ते नामं । सावग-कुलुप्पत्तीए लहुं चेव पाविओ तए जिण-धम्मो ।
एत्थंतरे इयरो वि उव्वहिऊण नरगाओ एत्थेव पट्टणे समुप्पलो वाणियग-पुत्तो, कयं से नामं कडुगो त्ति । जाया पीई लेहसालाए | पत्ता दोवि जोव्वणं । कयाइ गया बोहित्थेण परतीरं । विढतं दविणजायं । तहसणेण विणहं कडुगस्स चित्तं । चिंतियमणेण-रयणीए पक्खिवामि समुद्दे चंदवम्मं तं । एक्विगा-कए उहियं मुणिऊण भवियन्वयावसेण तस्सच्छायं चेव संरंभेण पेल्लंतो पडिओ सयं समुद्दे कडुगो, मरिऊण समुप्पन्नो पंकप्पभाए । एय-वईयरेण संविग्गो तुमं, परिचत्ता विसया, पवहृत-संवेगो, काऊण उचिय-किच्चं पव्वईओ तुमं । अहाऊयं पालिऊण मओ समुप्पल्लो बंभलोए । आउक्खएण चुओ तत्तो, उप्पल्लो दक्खिणावहे पइहाणे पट्टणे रुद्ददेवरस माहणरस चंदजसाए पुत्तो । कयं पउमदेवो त्ति ते नामं । सावगकुलुप्पत्तीए पडिबुद्धो बालभावे |
एत्थंतरे इयरो वि नरगाओ उव्वटिऊण एत्थेव पट्टणे उप्पल्लो माहण-सुओ । कयं से नामं दत्तगो त्ति | अभिजाय-सुओ ति गारवेसि एयं । अन्नया पाविओ मडग-साहण-मंतो तुब्भेहिं साहिओ, किण्हचउद्दसीए कड्डिऊण मंतो मडगं, जायं सुवनं । संपयं पहायं ति संगोविऊण पविहा दोवि नगरं । एत्थंतरे विणहं चित्तं दत्तगस्स । चिंतियमणेण-वावाएमि पउमदेवं तओ केवलो गिहिस्सं । ठिओ संकिलिहो दियहं । अमुगत्थामे रयणीए मिलिस्सामो ति संपहारिऊण बद्धा रयणीए वट्टा, वीसत्थ-वावायण-तल्लिच्छो सकू टिगो चेव वावाईओ असणीए, उप्पन्नो धूमप्पभाए । तइंसणेण संविग्गो तुमं पुव्वं व पवईओ, उप्पन्नो महासुक्के, आउक्खएण चुओ देवलोगाउ, उववल्लो
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं पुव्वदेसे कन्नसुवन्नए नयरे धणदेवरस इब्भस्स लच्छिकंताए पुत्तो । कयं रिद्धिदेवो त्ति ते नामं । सावग-कुलुप्पत्तीए बालगस्स चेव जाया धम्मपरिणई ।
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एत्यंतरे इयरो वि नरगाओ उव्वहिऊण समुप्पन्नो एत्थेव नयरे वाणियग-सुओ, कयं से नामं खलुगो त्ति । जाया तुम्हाण पीई, कुलग्गओ त्ति गारवेसि तुममेयं । एसो वि तुह पीईए देइ किंचि समणाईणं । अन्नया गया तुब्भे ववहारपडियाए कामरूवं । विदत्तं तत्थ दविणजायं । तं भूयं दहूण विणडं खलुगस्स चित्तं चिंतियमणेणवावाएमि रिद्धिदेवं, तओ केवलो चेव गिहिस्सामि दव्वं ति । तहा संकिलिड - चित्तेण चिंताए चैव कया बहवे वहोवाया । अन्नया निप्पिडंता कामरूवाओ आरूढा डुंगरं, दिट्ठा तत्थ महंती टंकछिन्न-दुत्तडी, खलुगेण चिंतियं - इओ पाडइस्सामि गत्ताए रिद्धिदेवं । तप्पाडणत्थं गत्तं पलोयंतो भमणीए निवडिओ खलुगो, मओमहा-रुद्दज्झाणेण उववन्नो तमप्पभाए पुढवीए | तुमं पि तन्निमित्तं गहिओ संवेगेण परिचत्ता विसया, विणिओजियं दविणजायं, पव्वइओ निय-थामे, अहाऊयमणुपालिऊण मओ समाणो उववन्नो अच्चुए । आउक्खएण तओ देवलोगाओ चविऊण तुमं मयंकसेणो, खलुगो वि उव्वहिऊण नरगाओ जाओ अमरसेणी । एवं एयरस एवंविहा लोह-सन्ना पओसरस कारणं, तुझं पि अमरसेणोवरि भत्तीए एवंविहो कुसलब्भासोति ।
एवं सोऊण मए संविग्ग-मणेण केवली पुट्ठो ।
भयवं ! कहेसु एवं ववत्थिए मज्झ किं जुत्तं ? ||३१९३ || केवलिणा वागरियं- अप्पहियं धम्ममेव सेवेसु । भणियं मए - मुणीसर ! रन्नो सेवा न किं जुत्ता ? ||३११४||
केवलिणा संलत्तं- पज्जत्तं नरवइस्स सेवाए ।
जेणेस संकिलिस्सइ अहियं सेविज्जमाणो वि ||३१९५ ||
तुह वहहेउं आरोग्गसिद्धि-विज्जो अणेण पविओ सो वि हु विसिह - धम्माणुवत्तगो तावसो जाओ ||३१९६ || मिलिही तुज्झ पभाए स तावसो तो गुरू मए पुट्ठो । कत्थ गमिस्सइ राया ? भणइ गुरु- सत्तम महीए || ३१७७ ||
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४६७
सुमइनाह-चरियं
भणियं मए- अहं पुण कत्थ गमिस्सामि ? सामिणा भणियं- । अहविह-कम्म-मुक्तो तुमं गमिस्ससि पयं परमं ||३११८।। तो संविग्गेण मए काऊण समग्गमुचिय-करणिज्जं । परलोग-हिया गहिया गुरु-पयमूलम्मेि पव्वज्जा ||३१११।। तं एयं संजायं निव्वेय-विसेस-कारणं मज्झ । गुरु-चरियमिणं सोउं सव्वे संवेगमावला ||३२००।। तो मालिगेण भगवं निय-नंदण-कलह-कारणं पुढो । कहियं च तेण निहि-दसणेण सव्वे वि पडिबुद्धा ||३२०१।। भणियं अणेहिं - भयवं । किं जुत्तं अम्ह ? भगवया वुत्तं-| सव्वाणत्थनिबंधण-लोभच्चागेण धम्मो त्ति ||३२०२।। एयं सोउं सुगुरु-वयणं मालिगो पुत्तजुत्तो, लोभच्चायावहिय-हियओ गिण्हए सावगत्तं । ते उज्जुत्ता जिणमुणिगणाराहणे जीवियंते, जाया सव्वे पवर-विबुहा बंभलोयम्मि कप्पे ||३२०३।। मुक्क-कसाय-चउक्को वि पंच-परमेहि-सुमरणं मणुओ । जो कुणइ भत्तिमंतो पावइ सो चेव कल्लाणं ||३२०४।। तेसिं न प्पहवंति भूय-पमुहा सक्वंति सीहाइणो, काउं किंपि न विप्पियं पहरिउं पच्चत्थिणो न क्खमा । संपज्जंति न वाहिणो दवजलुप्पीला न दाउं दुहं । दक्खा जे परमिहि-मंतमणिसं झायंति सुद्धासया ||३२०५।। पंच-परमेट्ठि-पंचाणणरस संभरणमेत्तओ चोज्जं । पंचत्तं जंति दुरओ दुरिय-दोघट्ट-थट्टाई ||३२०६।। निवडंति आवया-निवह-भीसणं भवसमुद्दमुद्दामं । सोसइ न परो परमेडिमंत-वडवानलं मुत्तुं ||३२०७।। मुत्तूण खविय-नीसेस-पाव-संगं दुवालसंगं पि । सरइ परमेहि-मंतं चोद्दसपुवी वि पज्जते ||३२०८।। पंच-परमेहि-मंतं सरमाणो माणवो मणे निच्चं । नर-सुर-मोक्ख-सुहाई पावेइ पुलिंद-मिहुणं व ||३२०१।।
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४६८
तहाहि
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
[८. नमस्कार - विषये पुलिन्द्र - मिथुन - कथा]
अत्थि मही- महिला - केलि - पुक्खरे पुक्खरद्ध-भरहद्धे । रिद्धि-समिद्धो सिद्धावडु त्ति गामो जय - पसिद्धी || ३२१०|| तत्थागओ निरंकुस कसाय-दावानलेण डज्झतं । मेो व्व निव्ववंतो भुवण-वणं वयण धाराहिं ॥३२११ || देस - कुल - जाइरूवी संघयणी धिई-जुओ अणासंसी । अविकत्थणी अमाई थिर-परिवाडी - गहिय वक्को ॥३२१२|| जिय-परिसो जिय- निद्दो मज्झत्थो देस-काल- भावण्णू आसन्न -लद्ध-पइभो नाणाविह - देसभासन्नू ||३२१३|| पंचविहे आयारे जुत्तो सुत्तत्थ - तदुभय - विहिन्नू । आहरण- हेउ-उवणय-नय-निउणो गाहणा- कुसलो || ३२१४|| ससमय-परसमय-विऊ गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो | इय छत्तीस-गुण- जुओ सूरी सिरि-अजियदेवो ति || ३२१५।। तम्मि समयम्म पत्तो वासारत्तो विउत्त-मण- - दमणो । नव-केयग-कुडय-कयंबुब्बु - विरोलं व निउरंबो || ३२१६ || जम्मि पटु-पवण- - पिंडार - पिल्लियाओ भमंति गयण-वणे | पदाण- पहाणाओ महीसीओ व मेहमालाओ || ३२१७।। तडि छुरियं घण-माणाइं तेजयंतीइ पाउससिरीए । खज्जोया गयणयले फुरंति फारा फुलिंग व्व || ३२१८ || विलसंत-विज्जुलेहा हेमाहरणाइ मेहमालाए । गयणम्मि बलायाओ सहंति मुत्तावलीओ व्व ॥ ३२११ || आयहि (डि) य-सुरचावो धारा-सर-धोरणीहिं अणवरयं । पहणेइ विरहि - हरिणे वाहजुवाणो व्व जलवाही || ३२२०।। महि - महिला मेह- पिएण सरल- धारा-करेहिं छिप्पंती । उब्भिन्न- "नव-वणंकुर मिसेण रोमंचमुव्वहइ || ३२२१||
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४६१
सुमइनाह-चरियं
तत्तो सूरी संजम-विराहणं पिच्छिऊण मग्गम्मि । मग्गइ वसहिं गामम्मि तम्मि गामाहिव-सगासे ||३२२२।। गामवई जंपइ- साहु वसहि-दाणम्मेि किं फलं होइ ? । वागरइ गुरु- गख्यं दाणाणमिणं वसहि-दाणं ||३२२३|| जओअसणाइ देइ बहुओ मुणीण गेहंगणम्मि पत्ताणं । अंगीकय-सयलभरो वसहिं पुण वियरए विरलो ||३२२४।। तक्कर-सीयायव-वाय-वुहि-रोगाइ-विद्दवेहिं तो । साहूण कुणइ रक्खं वसहिं निरुवद्दवं दितो ॥३२२५।। जं तत्थ ठिया मुणिणो पढंति सुत्तं कुणंति धम्मकहं । संजमजोगेहिं निरंतरेहिं साहंति परलोयं ||३२२६।। जं तत्थ मुणि-समीवे संमत्तं सावगत्तणं चरणं । अन्नं अभिग्गहं वा भवियगणो गिहए गरुयं ||३२२७।। जं तत्थ ठियाणं मुणिवराण अन्ने वि भावओ भविया । पत्तं भत्तं पाणं वत्थं तह ओसहं दिति ॥३२२८॥ पुन्नस्स तस्स हेऊ सेज्जाए दाइगो इमेण इमो । संसार-सायरं तरइ तेण सिज्जायरो वुत्तो ||३२२१।। एवं सोउं गामाहिवेण वसही समप्पिया गुरुणो । बहु-साहु-जुओ सो तत्थ पाउसं काउमाढत्तो ||३२३०।। मासोववासु केवि मुणि कुणंति, केवि दल्लिमास निरसणं गर्मति । केवि तिनि केवि चत्तारि मास, चिटंति विसय-सुह-निप्पिवास ||३२३१|| तह मज्झि साहु दमसार-नामु, गिरि-गुहहिं जाइ परिहरिवि गामु । चउमासं तहिं ठिओ असण-मुक्कु, सज्झायज्झाणपरु गुह-निलुक्कु ||३२३२|| अह तत्थ पुलिंदय-मिहुण पत्तु, तिण दिइ साहु सो पवरसत्तु ।
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४७०
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं मुणि-दंसणि तक्खणि गलिउ पावु तसु, मिहुणह मणि हुयउ सुह-भावु ||३२३३।। मुणिणा वि मुणिवि तं भत्तिमंतु, उवइहु पंच-परमेहि-मंतु । सो लग्गु पुलिंदय-मिहुण-चित्ति अमओ व्व पवंचिय-परम-तित्ति ||३२३४।। मुणिणा पुणो वि वुत्तं इमो त्तिकालं मणम्मि सरियव्वो । जेण चिरंतण-पावक्खएण पावेह कल्लाणं ||३२३५।। एयं सोऊण पुलिंद-मिहुणयं किंचि जाय-सुहभावं । पंच-परमिहि-मंतं सरइ ति-संझं सबहुमाणं ||३२३६|| तस्स प्पभावओ च्चिय पावमकाउं तहाविहं तिव्वं । कालेण मयं एयं मुणि-उवयारं सुमरमाणं ||३२३७|| इह चेव भरहवासे नयरं मणिमंदिरं पवरमत्थि । वित्थिन्ल-कूव-वावी-सरोवराराम-रमणिज्जं ।।३२३८।। जत्थत्थि जणो वसणी दाणे भीरू अकज्ज-करणम्मि । गुण-विढवणे अतित्तो निम्मल-जस-अज्जणे लुद्धो ।।३२३१|| पर-पत्थणे अयाणो परमहिला-दंसणम्मि जच्चंधो । परधण-हरणे पंगू परदोस-पयासणे मूओ !!३२४०।। तं परिपालइ राया रायमयंको मयंक-समकित्ती । सरभस-नमंत-पत्थिव-मत्थय-मणि-लीढ-पयवीढो ||३२४१।। पल्लविय व्व असिलया अरि-करि-कुंभत्थलीण रुहिरेण । मुत्तिय-नियरेणं कुसुमिय व्व रेहइ रणे जस्स ।।३२४२।। विजय त्ति तस्स भज्जा जीए हसंतीए उणयमुहीए । दुगुणेइ दंत-कंती थणवढे हारलट्ठीओ ||३२४३।। तीए गब्भे गिरिकंदरे व्व सीहो पुलिंद-जीवो सो । सीहसुविणय-पयासिय-गुणमाहप्पो समुप्पलो ||३२४४|| जायरस तस्स विहियं वद्धावणयं महाविभूईए । नामं च कयं सुविणाणुसारओ रायसीहो त्ति ||३२४५।।
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४७१
सुमइनाह-चरियं
लिवि-गणिय-प्पमुहाओ सउणरुयं ताओ तेण गुरुपासे । बावत्तरी कलाओ अकिलेसेणेव गहियाओ ||३२४६।। मइसार-मंति-पुत्तो सुमई नामेण तस्स पिय-मित्तो । नीसेस-कला-कुसलो बालत्तणओ वि संजाओ ||३२४७।। संपत्तो तारुघ्नं कुमरो लायन्न-लच्छि-परिपुल्नं । जं तरुणी-लोयण-छप्पयाण पंकेरुह-वणं व ||३२४८।। तइंसणूसुयाओ मग्गं रमणीओ पेच्छमाणीओ । नयणेहिं कुणंति निहित्त-नील-नलिणोवहारं व ॥३२४१।। तस्स भमिरस्स दंसण-सतण्ह-तरुणीण सहइ वयणेहिं । गयणं गवक्ख-निक्खंतरहिं ससि-लक्ख-निचियं व ॥३२५०।। गायंति थुणंति निहालयंति इायंति तं मइच्छीओ । तहवि मणागं पि मणं मुणि व्व न कुणइ इमो तासु ||३२५१।। अन्न-दिणम्मि कुमारो मित्तेण समं विणिग्गओ बाहिं । वाहिय-विविह-तुरंगो सहयार-तलम्मि वीसंतो ||३२५२।। दहुं पहियं पुच्छइ कत्तो वा कत्थ वा तुमं चलिओ । भमिरेण तए दिडं सूयं व अच्छेरयं किंचि ? ||३२५३।। पहिओ पणामपुव्वं उवविसिऊणं पुरो पयंपेइ ।
पसरंत-दंत-किरणेहिं हार-नियरं व विकिरंतो ||३२५४।। कुमार ! श्रूयतां । अस्ति प्रशस्त-समस्त-वस्तु -वास्तुभूतं भूतलालङ्कार-कल्पं कल्पद्रुमोपमान-मानवं नवयौवनाभिराम-रमणीरमणीयं मणीयमान-कनककलश-भूषणैः फणैरिव शेषस्याशेष-विशेषविलोकन-कुतूहले न भुवनमूलादिनिर्गतैः सहससङ्ख्येर्देवकुलैः संकुलं कुलभवनं सकल-पद्यानां पद्मपुरं नाम नगरं ।
असमलवलिराजीराजिता मन्दमन्दानिलवल-दल-कान्ताः सम्भृतालीहितार्थाः । पृथुल-कुच-मनोज्ञाः कस्य लोकस्य न स्युवनभुव इव भूरि प्रीतये यत्र नार्यः ॥३२५५।।
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૪૭૨
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं चैत्यान्यप्रतिमानि यत्र यतयः सूत्रार्थबद्धादराः । क्ष्मापालः परलोक-भीलुकमति वेलात्कुचेष्टाः स्त्रियः । श्रीमन्तो बहधा विपत्तिकलिता विप्रा न यज्ञक्रियानिष्णाताः सदनानि भोगिनिचितान्यन्यत्किमत्र स्तुमः ।।३२५६।। ततः पुरात्परमेश्वर- श्रीयुगादिदेवादिगणधरस्य कषाय-करिखंडनै क-पुण्डरीकस्य निर्वाणपद-प्राप्त्या पवित्रितं श्रीशत्रुञ्जय-तीर्थं प्रस्थितोऽस्मि यत्पुनराश्वर्यं किंचिदृष्टमिति पृष्टं तदप्याकर्णयतु कुमारः । तत्रैव पुरे प्रणत-नरपति-शत-मुकुट-मरकत-मरीचि-वीचि-चंचरीकचुम्बित-चरणपद्मः पद्मो राजा, . विजूंभितसयं ति यस्य कोपः सकोप-दुर्वात-इवातिचण्डः ।
येनारि नारीजन-यौवनानां जज्ञे वनानामिव निष्फलत्वं ।।३२५७।।
तस्य हृदय-कुशेशय-शायिनी विशुद्धोभयपक्ष-राजिनी राजहंसीव हंसी देवी ।
क्रीडत्यनङ्गन्दिरदस्तदङ्गे लावण्यसिन्धाविति तळयामि | उन्मज्जती भाति यदेतदीया कुम्भस्थली स्थूल-कुचस्थलेन ।।३२५८।। तयो (जानयो भॊगान् विश्वविश्वातिशायिनः । यज्ञे सर्वाङ्गनाचूडारत्नं रत्नवती सुता ||३२५५|| यस्याः शरीर-सौद्र्यं विभाव्य भुवनाद्भुतम् । लज्जयेव न निर्यान्ति पातालानागकन्यकाः ॥३२६०।। भ्रमन्ति शक्तिमत्यो पि खे न विद्याधराङ्गनाः । दर्शनं न प्रयच्छन्ति कस्यापि सुरयोषितः ||३२६१।। कलाकलापे सकले कलयामास कौशलम् । सा क्रमान्मदनक्रीडावनं यौवनमापद ||३२६२।। अन्यदा वरयोग्येति सा मात्रा प्रेषिता सती । पितुःसभानिविष्टस्य प्रणिपातार्थमागमत् ||३२६३।। प्रणम्य पितरं तस्य पादान्ते निषसाद सा । तां लोकोत्तर-लावण्यां दृष्ट्वाऽमात्यमुवाच सः ||३२६४|| किं रूपेणानुरूपः स्यादिधिना क्वापि निर्मितः । अस्या योग्यो वरः कश्चिदिति ताम्यति मे मनः ।।३२६५।।
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सुमइनाह-चरियं
मन्त्रिणोक्तं- महाराज ! योग्यं यद्यस्य तस्य तत् । विधाय दूराच्चानीय विधिरर्पयति स्वयं || ३२६६|| अत्रान्तरे नृपस्याग्रे प्रेक्षणीयं व्यधान्नटः । बाला पुलिन्द्रवेषेण तं नृत्यन्तं व्यलोकयत् ॥३२६७ || ततो मूर्च्छामगात्पुत्री पपात पृथिवीतले । स्वस्थीचकार तां राजा चन्दन- व्यजनानिलैः ||३२६८ || साऽवोचत्तात ! सञ्जातं जातिस्मरणमद्य मे । अहमासं महाटव्यां पुलिन्द्री पूर्व-जन्मनि || ३२६१ || अभूद्भर्त्ता पुलिन्द्रो मे जीवितादपि वल्लभः । लेभे तं चेत्प्रियं पाणिग्रहं कर्त्तास्मि नाऽन्यथा || ३२७०।
इति पथिक - वचस्सु श्रोत्र - पात्रीकृतेषु, प्रशिथिल - सकलाङ्गः प्राप मूर्च्छा कुमारः । शिशिर -1 - पवन-योगात् स्वास्थ्यमासाद्य सद्यः, करजुषमिवमुक्तां पूर्वजातिं ददर्श || ३२७१।। अथैक-प्रीति-सम्पन्नः पथिकं प्रत्यभाषत । अग्रतः किमभूत्तत्र पथिकोप्युक्तवानिदम् ॥३२७२|| प्रतिज्ञां दुहितुः श्रुत्वा तादृशीं पद्म-पार्थिवः । कथं ज्ञेयः पुलिन्द्रोऽसाविति चिन्तापरोऽभवत् ।।३२७३।। अमुं वृत्तान्तमाकर्ण्य तल्लोभेन नृपात्मजाः । दूरादेत्याऽब्रुवन् पूर्व-भवे स्वस्य पुलिन्द्रताम् ।।३२७४।। पप्रच्छ राजपुत्री तान् कुमारान् कुटिलान्निति । केन पुण्येन युष्माभिर्लेभे सम्पत्तिरीदृशी || ३२७५।। तत्तेनाज्ञासिषुः सम्यक् पूर्वजन्म- पुलिन्द्रताम् । तेषां निश्चित्य तन्वंग्या कुतोऽपेक्षा पुलिन्द्रवत् ॥३२७६ || ततोऽलीकगिरोमर्त्या एवं सञ्चिन्त्य चेतसि । मर्त्यविद्वेषणी जज्ञे केवल स्त्रीवृता च सा ।। ३२७७।। सा तत्र विदधे धात्रा रमणीनां शिरोमणिः । कल्याणमूर्त्तिरत्र त्वं कुमार ! तिलको नृणाम् || ३२७८||
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४७४
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं यद्येषयोगं युवयोः कथञ्चिदन्योन्य सादृश्यवतो विदिध्यात् । तदाक्षणेनाऽननुरूपवस्तु. सम्बन्ध जं मार्टि निजं कलङ्कम् ।।३२७१।। इत्यद्भुतं वस्तु निवेद्य पान्थः कुमार ! गच्छाम्यहमित्युवाच । विदानपूर्वार्थ-निवेदक श्वेत्यस्मै निजागाभरणान्यदात् सः ।।३२८०।। विसृज्य पथिकं प्राप कुमारो निज-मंदिरे । द्रष्टुं रत्नवती बालामुपायं पर्यचिन्तयत् ।।३२८१।। अथ पौरैः रहस्येवं विज्ञप्तं भूपतेः पुरः ।। यत्र यत्र कुमारोयं भ्राम्यति क्रीडया पुरे ||३२८२।। उपेक्ष्याऽपरकार्याणि संत्यज्य रुदतः शिशून् । अनावृत्य गृह-दाराण्यकृत्वा कस्यचित् त्रपाम् ।।३२८३।। कुमार-रूप-लावण्य-सौभाग्य-हतचेतसः । धावंति विहितोन्मादास्तत्र तत्र पुरस्त्रियः ||३२८४|| तेनाऽसमंजसं जज्ञे सर्वत्र नगरेऽधुना । अतः केनाप्युपायेन कुमारो वार्यतां भ्रमन् ||३२८५।। ततोऽवादीत्प्रतीहारं कृतलोककृपो नृपः । राजसिंह-कुमारस्य पुरतः कथ्यतामिदं ॥३२८६|| गृहान्तरेऽवस्थातव्यं कलाऽभ्यासकृता त्वया । बहिर्विहरतः पुंसो गलन्ति सकलाः कलाः ||३२८७।। इत्यादेशं प्रतीहारः कुमारस्य न्यवेदयत् । तातः किमिदमादिक्षन्मामेत्येष व्यचिन्तयत् ||३२८८।। ततोऽस्य पौरवृत्तान्तं सुमतिः प्रत्यपीपदत् । अवाप्त निर्गमोपायः कुमारस्तमभाषत ।।३२८१।। गृहान्तरेऽवतिष्ठेति तातादेशश्च दुष्करः । कौतुकं च मम द्रष्टुं कन्यां पांथ-निवेदिताम् ।।३२१०।। पुण्यमानं गुणस्फूर्ति नानाभाषासु कौशलम् । स्वान्ययोरन्तरज्ञानं न च देशान्तरं विना ||३२११।।
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४७५
सुमइनाह-चरियं
ततो देशान्तरं यामीत्युक्तः सुमतिरब्रवीत् । अस्मिन्नर्थे सहायोस्मि कुमार ! कुरु वाञ्छितम् ||३२१२।। अनिवेद्यैव कस्यापि निशितासिकरो निशि । पुरात्सुमतिना सार्द्ध राजपुत्रो विनिर्ययौ ।।३२१३।। क्रमेण पृथिवीं क्रामलटव्यां देवतागृहे । प्रसुप्ता निशि शुश्राव साधकस्यार्त्तमारवम् ।।३२१४|| विभत्कृपां कृपाणं च कुमारस्तं प्रतिव्रजन् । साक्षाद्राक्षसमद्राक्षीत्कक्षा-निक्षिप्त-साधकम् ||३२१५।। तमूचे तिष्ट शिष्टात्मन्नमुं च मुञ्च साधकम् । साधकेनापराद्धं किं वराकेणामुना तव ? ।।३२१६|| राक्षसः स्माह- भद्रैष मां वशीकर्तुमुद्यतः ।। अयाचिषं महामांसं सप्तरात्रमुपोषितः ||३२१७।। तदेतन्नक्षमो दातुं महं चातिबुभुक्षितः । ततः कथममुं मुञ्चे त्वमेव परिभावय ||३२१८।। अवोचद्राजपुत्रस्तं- यद्येवं मुञ्च साधकम् । वितरामि महामांसं महात्मन्नहमेव ते ||३२११।। इत्युक्तः साधकं त्यक्त्वा प्रीतः प्रोवाच राक्षसः । देहि त्वमेव तद्यो गा निवर्त्तयति सोऽर्जुनः ||३३००।। कुमारः खड्गदण्डेन छित्त्वा सत्त्वमहोदधिः । निजाङ्गाज्जाङ्गलं यावत् प्रदातुमुपचक्रमे ।।३३०१।। तावज्जगाद सानन्दं राक्षसो नृपनन्दनम् । तुष्टोस्मि तव सत्त्वेन परप्राण-प्रदायिना !|३३०२।। वरं वृणु ततोऽवोचत् कुमारो राक्षसं प्रति । तुष्टो सि यदि मेऽभीष्टं साधकस्य तदा कुरु ||३३०३।। करिष्यामीत्यसौ जल्पन् अमोघं देवदर्शनम् । इत्यस्मै राक्षसश्चिन्तारत्नं दत्वा तिरोदधे ||३३०४।। निवृत्य राजपुत्रोपि तत्रैवायतने ययौ । अतिवाह्य निशाशेषं समित्रश्चलितोऽग्रतः ॥३३०५।।
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४७६
जसः ||३३०१॥
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं चिन्तारत्न-प्रभावेण सम्पन्नाशेषवाञ्छितः । स्वराज्य इव सर्वत्र विलसन्विजहार सः ।।३३०६।। पुरं रत्नपुरं प्राप रत्नप्रासाद-सुन्दरम् । राजरोहणशैलो यस्याऽवकरकूटवत् ।।३३०७।। ददर्श सर्व सौवर्णं तत्र मन्दिरमर्हतः । रत्नोत्कर्ष-गुणं दृष्ट्वा मेरोः श्रृङ्गमिवागतम् ।।३३०८।। तत्र गर्भगृहे जैनी प्रतिमां रत्ननिर्मिताम् । भून्यस्त-मस्तको नत्वा तुष्टुवे तुष्टमानसः ||३३०१।। प्रशमरस-निमग्नं दृष्टि-युग्मं प्रसन्नं, वदन-कमलमङ्कः कामिनी-सङ्ग-शून्यः । करयुगमपि यत्ते शस्त्र-सम्बन्ध-वन्ध्यं, तदसि जगति देवो वीतरागस्त्वमेव ||३३१०।। ततस्तच्चैत्यमालोक्य कौतुकाक्षिप्तलोचनम् । श्रावकं पृष्टवानेकं केनेदं भद्र ! कारितम् ? ||३३११।। सो वा दीन्मणिपीठेऽस्मिन् निविश्य श्रूयतामिदम् । आसीदिह यशोभद्रः श्रेष्ठी श्रावकपुङ्गवः ||३३१२।। तस्य सूनुः शिवो नाम गुरुभिः शिक्षितोऽप्यसौ । द्यूतादिव्यसनासक्तो धर्म न प्रतिपन्नवान् ||३३१३।। सपित्रोक्तो यदाभ्येति विपत्तिस्तव दस्तरा । तदा त्वं तदिघातार्थं नमस्कारममुं स्मरेः ।।३३१४|| ततः पित्रनुरोधात् सनमस्कारमधीतवान् । पिताऽपि तस्य कालेन स्वर्गलोकमुपागमत् ।।३३१५|| शिवो दुर्ललितैः पुंभिः सङ्गतो मधुपैरिव । धनं विनाशयामास वनं मत्त इव दिपः ।।३३१६।। अन्यदा तद्गृहासन्ने त्रिदण्डी विदधे स्थितिम् । स शिवं निर्द्धनं दृष्ट्वा कृपापर इवावदत् ||३३१७।। भद्र ! त्वं हेतुना केन विषन्न इव दृश्यसे ? शिवः प्रोवाच संतोष-साधनं नास्ति मे धनं ||३३१८।।
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४७७
सुमइनाह-चरियं
तं परिव्राजकोऽवादीत् करोषि यदि मे वचः । विदधे ते तदा वश्यां गृहदासीमिव श्रियम् ||३३११।। शिवोऽवोचत्तवादेशं करिष्याम्येष निश्चितम् । दारिद्रयं मे प्रयातु त्वत्प्रसाद-गलहस्तितम् ।।३३२०।। परिवाडवददच्छ यद्येवं शवमक्षतम् । लभस्व क्वापि स प्रापदुदद्धं पुरुषं द्रुमे ||३३२१|| तस्मै न्यवेदयत्सो पि त्रिदण्डी शिवमब्रवीत् । अद्य कृष्ण-चतुर्दश्यां स्मशानं नय तं शवम् ||३३२२|| बलि-प्रदीप-पुष्पादि-पूजोपकरणं तथा । नीतं सर्वं शिवेनापि ययौ तत्र त्रिदण्ड्यपि ||३३२३।। यत् क्वचित् शरदभौघ शुभ्रादभास्थिदंतुरम् । क्वचित् स्थितानलज्वाला-जाल-पल्लविताम्बरम् ||३३२४।। क्वचित्कलित-कंकाल-काल-वेताल-भीषणम् । क्वचित्क्रीडद्ताशङ्क-शाकिनी-कुल-सङ्कुलम् ||३३२७।। क्वचिद्राक्षसदुर्वीक्ष्यं क्वचिद्भूतभयानकम् । क्वचिन्मघूक-पूत्कारं क्वचिद् घोर-शिवारवम् ||३३२६।। चक्रेऽस्मिन मण्डलं दत्त दीप-दीपक-मण्डलम् । तस्मिन्निवेशितस्तीक्ष्ण-करवाल-करः शवः ||३३२७।। शव-पादतलाभ्यङ्गकर्मण्यादिश्य तं शिवम् । मन्त्रं संस्मर्तुमारेभे त्रिदंडी ध्याननिश्चलः ॥३३२८|| स्मशानं प्रचुरापायं निशितासिकरः शवः । त्रिदण्डी क्रूरकर्मा चेत्येवमालोचयत् शिवः ||३३२१।। ततः पित्रा समादिष्टामनिष्टहननक्षमाम् । सोऽस्मरं तत्परः पञ्च-परमेष्टि-नमस्क्रियाम् ||३३३०।। क्षणान्तरे परिव्राजः प्रौढमन्त्र-प्रभावतः ।। चचाल किञ्चिदुत्तस्थौ तथैवन्यपतच्छवः ||३३३१|| शवस्य पतने किञ्चिद्धिचिन्त्य क्षणमात्मनः । त्रिदंडी स्मर्तुमारेभे मन्त्रमेष विशेषतः ।।३३३२।।
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४७८
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
जपान्ते पुनरुत्थाय निपपात पुनः शवः । परिव्राट् शिवमप्राक्षीत् मन्त्रं कञ्चन वेत्सि किं ?||३३३३॥ शिवोऽजानन्नमस्कार - माहात्म्यमिदमब्रवीत् । नवेधीति ततोऽत्यर्थं त्रिदण्डी मन्त्रमस्मरत् ||३३३४|| शिवस्याशिवमाधातुं नमस्कार - प्रभावतः । नाशकत्किमपि क्रुद्ध - वेतालो वेष्टितः शवः ||३३३५|| ततोऽसौ खड्गदण्डेन क्षणात् मुण्डं त्रिदण्डिनः । छित्वाधः पातयामास फलं तालतरोरिव ||३३३६|| परिव्राजक - देहोऽथ सुवर्णपुरुषोऽभवत् । तमादाय गृहं प्राप शिवः शव-समन्वितः ||३३३७|| तस्याङ्गैरन्वहं कृत्यैः प्रातः प्रातर्पुनर्नवैः । दानं भोगांश्च कुर्वन् सचैत्यमेतदकारयत् ||३३३८|| राजपुत्रोऽवदत्पञ्चनमस्कार - प्रभावतः । मुक्तं विघ्नविघातेन शिवः प्राप परां श्रियम् ||३३३१|| ततोऽसौ राजपुत्रोऽगात्पुरं क्षितिप्रतिष्ठितम् । तदानन्दमयं दृष्ट्वा मर्त्यं कञ्चन पृष्टवान् ||३३४०|| किं कारणमिदं प्रोद्यत्पताकं प्रतिमन्दिरम् । दृश्यते कनकस्तम्भ - निबद्ध - मणितोरणम् ||३३४१|| तेनोचे श्रूयतामस्मिन् पुरेऽस्ति नृपतिर्बलः । बलाभुज इवाऽशेष-विपक्ष दलनक्षमः ||३३४२|| तस्यैकदा पुरारक्षः पुरासन्नसरिज्जलैः । ऊह्यमान - महामानं मातुलिङ्गं व्यलोक्यतः ||३३४३ || प्रविश्यातस्तदादाय सोऽर्पयामास भूभुजे ।
वर्ण- गन्ध-रसोत्कृष्टं तत् दृष्ट्वा मुमुदे नृपः ||३३४४ || सदत्वाऽमै श्रियं प्राप्तं कुद्रमिति पृष्टवान् । नद्यामित्युक्तवानेष ततोऽमुं पार्थिवोऽवदत् ||३३४५ || अन्वेषय वनं मौलं यत्रेदमुदपद्यते ।
ऊर्ध्वभागे व्रजन्नेष नद्यास्तीरे ददर्श तत् ||३३४६ ॥
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४७१
सुमइनाह-चरियं
प्रविश्य तत्र गृह्णाति यः फलं मृत्युमेति सः । इत्याचख्यौ पुरा रक्षः पुरतः पृथिवीपतेः ||३३४७।। राज्ञो चेऽवश्यमानेयमेकैकं प्रत्यहं त्वया । प्रवेश्य तत्र वारेण पुरस्यैकैकमानुषम् ||३३४८।। फलादानेऽन्वहं तस्मिन् एकैको म्रियते पुमान् । कियत्यपि गते काले पुरलोके विषीदति ।।३३४१।। वारको जिनदासस्य श्रावकस्य समाययौ । ययौ तत्र विवेशान्तः सनमस्कारमुद्गृणात् ।।३३५०।। तन्निशम्य स्मरन पूर्वभव-व्रतविराधनम् । वनाधिष्टायक क्षुद्र व्यन्तरः प्रतिबुद्धवान् ||३३५१।। प्रत्यक्षीभूय नत्वा च श्रावकं स मुदाऽवदत् । दास्यामि फलमेकैकं स्थानस्थस्यैव तेऽन्वहं ||३३५२|| असौ व्यावृत्य वृत्तान्तं नृपस्य च न्यवेदयत् । प्राप्नोत्युच्छीर्षक शश्वदेकैकं व्यन्तरात् फलम् ||३३५३|| तदर्पयति राज्ञे स तुष्टेनाऽनेन पूजितः । अकालमृत्यु-विश्रान्त्या कारितश्चोत्सवः पुरे ||३३५४।। इति निशम्य महोत्सव-कारणं, नृपसुतो निजगाद जगत्यहो । इह भवे पि विपादित-विप्लवं, स्फुरति पञ्च-नमस्कृति-वैभवम् ।।३३५५।। ततो राजसुतो प्राप वसंतपुर-पत्तनम् । तत्राऽपश्यज्जनं सर्वं नमस्कार-परायणम् ||३३५६।। सोऽवोचत्सुमतिर्मित्र लोकः पञ्चनमस्क्रियाम् । निःशेषोऽपि पठत्यत्र तत्रार्थे विद्धि कारणम् ||३३५७।। सो पि सम्यक् परिज्ञाय कुतो पि पुरुषादिदम् । रूपनिर्जितमारस्य कुमारस्य पुरोवदत् ।।३३५८।। इहासीनृपतिर्नाम्ना जितशत्रु र्गुणैरपि । तस्य भद्रा महादेवी नामतो गुणतोऽप्यभूत् ।।३३५१।।
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४८०
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पुरे त्रैवाऽभवच्चौरः प्रचण्डश्चण्डपिङ्गलः । सोन्यदाऽप्रविशभित्वा भांडागारं महीभुजः ||३३६०।। हत्वा तस्मादसौहारं नक्षत्रश्रेणिसोदरम् । गणिकायाः कलावत्याः प्रविवेश निवेशनम् ||३३६१|| सा श्राविका तया साई भेजे भोगान् स तस्करः । अथाऽऽययौ कृतातोद्यमातङ्गानङ्ग-त्रयोदशी ।।३३६२।। तस्यां विनिर्ययुर्वेश्याः सर्वाः संभृतमूर्तयः । दिक्चक्रे शक्रचापालीस्तत्रान्यैर्मणिभूषणैः ।।३३६३।। पुष्पदामेव कामस्य तं हारं हृदि बिभ्रती । जेतुं कामापराः सर्वाः कलावत्यपि निर्ययो ||३३६४|| हारं दृष्ट्वा महादेव्याः दासी तस्यैन्यवेदयत् । सा राज्ञः कथयामास प्रतीहारमुवाच सः ||३३६५।। केन सार्द्ध वसत्येषा तद्विज्ञाय जगाद सः । चण्डपिङ्गल-चौरेण ग्राहयामास तं नृपः ॥३३६६।। शूलया भेदयामास ततो दध्यौ कलावती । मम दोषेण शूलायां रोपितश्चण्डपिङ्गलः ||३३६७।। अतो मे परिहत्यै तमपरैः पुरुषैरलम् । साम्प्रतं साम्प्रतं दातुमस्य पञ्च-नमस्क्रियाम् ||३३६८।। तां ददौ सा निदानं च कारयामास तस्करम् । नमस्कारवशादस्य स्यात्पुत्रो नृपतेरिति ॥३३६१।। ततो ऽस्यैव नरेन्द्रस्य महादेव्याः सुतोऽभवत् । तस्य चक्रे प्रबन्धेन पिता जन्म-महोत्सवम् ||३३७०।। नामं च प्रथितानन्दं पुरन्दर इति व्यधात् । कलावत्यपि बालस्य यस्य क्रीडनधात्र्यऽभूत् ।।३३७१।। दध्यौसाऽस्य समःकालो मृत्योः गर्भस्य वाऽभवत् । ततः कदाचिदेषः स्यात् स एव मम वल्लभः ।।३३७२।। रामयन्ती जगादैषा मा रुदश्चण्डपिङ्गल ! | इति श्रुत्वा मुहुर्वाचं जातिस्मरणमाप सः ।।३३७३।।
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४८१
सुमइनाह-चरियं
अथ गते जितशत्रु-नृपे दिवं, नृपतिरत्र बभूव पुरन्दरः । परिहताऽन्य-मनुष्य-समागमा, मेयमवेत्यबभाज कलावतीम् ।।३३७४।। फलमिदं परमेष्टि-नमस्कृतेः, क्षितिपतिर्यदभूवमहं महान् । इति वदन् जिनधर्म-कृतोद्यमः, पठति तामनुवेलमयं नृपः ||३३७५।। पुरजनोऽपि ततः परमेष्ठिनां, स्तुतिमयं पठति प्रथितादरः । शुभमथाशुभमाचरति ध्रुवं, यदवनेरधिपस्तदपि प्रजाः ||३३७६।। इति निशम्य जगाद नृपात्मजः, शुभमिदं सुमते कुरुते जनः । इह भवेऽन्यभवे च महोदयं, दिशति पञ्च-नमस्कृतिरङ्गिनां ||३३७७।। यथैष चौरः परमेष्ठिमन्त्रप्रभावतो भूमिपतिर्बभूव । पुरा पुलिन्द्रो पि तथाधुनाहं जातोस्मि भूपाल-कुले विशाले ||३३७८।। कुमारमूचे सुमतिः कथं ते, पुलिन्द्रभावः समजायते ति । सोऽस्याचचक्षे परमेष्टिमन्त्रलाभान्वितं पूर्व-भवं समग्रम् ||३३७१।। उवाच सुमतिः सत्यं चलितो मतिपूर्वकम् । परिणेतुं पूराजन्म-पत्नी रत्नमती भवान् ।।३३८०।। परं पुरुषरूपेण पुरुषद्वेषिणी कथम् । द्रष्टुं रत्नवती लभ्या कुमार परिभावय ||३३८१||
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४८२
सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
कुमारोऽवोचदत्रार्थे दैवमेव कृतोद्यमम् । प्रार्थने दुर्लभार्थस्य चिन्ता हि विफला नृणाम् ||३३८२|| ततः प्रचलितो राजसिंहः सुमतिना समम् । महादर्शमिवाटव्याः प्रापदेकं सरोवरम् ||३३८३|| विराजयति यदुत्फुल्ल-पङ्कजाकर - मण्डितम् । व्योमेव तारकाकीर्णं विश्रान्तं पृथिवीतले ||३३८४|| ऊर्ध्या संभाव्य शुष्यन्तमब्धिं पूरयितुं पुनः । मन्ये यन्निर्ममे धात्रा पृथुलः पाथसांनिधिः || ३३८५ || तत्र'' कृत्वा जलक्रीडां तीरे चूततरोस्तले । विश्रान्तस्तत्क्षणान्निद्रां प्राप भूपालनन्दनः || ३३८६ | | कुसुमस्तोम मुञ्चित्वं न लतान्तरित - विग्रहः । सुमतिः पुनरद्राक्षीत्तत्र खेचरमागतम् ||३३८७।। सुकुमारं समालोक्य लोक- लोचन - रोचनम् । चिन्तयामास चेत्कान्ता ममानुपदमागता ||३३८८|| द्रक्ष्यत्येनं तदेतस्मिन्ननुरागं करिष्यति । अतस्तत्प्रतिषेधार्थं नारीरूपं करोम्यमुम् ||३३८१||
ततस्तटलतागुल्मात्समादायौषधीमसौ ।
घृष्ट्वोपले जलेनाऽस्याः छटया तं स्त्रियं व्यधात् ||३३१०||
गते विद्याधरे प्राप तत्कान्ता साऽपि वीक्ष्य ताम् । स्त्रीरूपां निज- सौन्दर्य - निर्जितामरयोषिताम् ||३३११।। निवृत्ती वर्त्मनानेन दृष्ट्वैतां मम वल्लभः । एतस्यामनुरक्तौ मां मात्याक्षीदिति खेचरी ॥। ३३१२।। तथैवान्यौषधीयोगात कृत्वा स्त्रीं पुरुषं ययौ । दृष्ट्वैतत्सुमतिः सम्यक् तज्जग्राहौषधिव्दयम् ||३३१३|| कुमारस्य प्रबुद्धस्य दर्शयन्तौषधीयुगम् । तं विद्याधर - वृत्तान्तं मन्त्रिपुत्रोव्यजिज्ञपत् ||३३१४ || ततः पद्मपुरं प्राप तत्राऽस्याव्दास्तिकाञ्चने । चिन्तारत्नानुभावेन जातः सर्व मनोरथः ।।३३९५ ।।
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४८३
सुमइनाह-चरियं
एकदा केवल स्त्रीभिः विविधायुधपाणिभिः । दूरादुत्सार्यमाणेषु नृषु लोचनगोचरात् ||३३१६।। सुखासन-समासीना चैत्यं रत्नवती ययौ । स्त्रीरूपौ तावुभौ तत्र गत्वा पूर्वमवस्थितौ ||३३१७।। जिनेन्द्र-बिम्बमानW पुष्प-धूपाक्षतादिभिः । कुमारममरीतुल्य-दर्शनं व ददर्श सा ||३३१८।। चिरं निरूप्य सानन्दं निजगाद नृपात्मजा । कुमारस्त्रीमपूर्वेव भवती प्रतिभाति मे ||३३११।। किं सदैवात्रवास्तव्या समायाताऽथवान्यतः । मित्रस्त्री निजगादैषा स्थानादत्रागताऽन्यतः ||३४००।। रत्नवत्यवदद्भद्रे त्वत्सखी मम सम्मुदम् । दृष्ट्वापि तनुते तेन समन्यैतु मया समम् ||३४०१।। रत्नवत्या सहावासे जग्मतुः कृत्रिम-स्त्रियौ । तया रचित-सन्माने चिरं तत्रैव तस्थतुः ||३४०२।। अथैकदा कुमारस्त्री राजकन्यामभाषत । न ज्ञायते पुलिन्द्रः स तव पूर्वभव-प्रियः ||३४०३|| ऋते कञ्चन-भर्तारं कन्यका कान्तिमत्यपि । विना सुवर्ण-सम्बन्धं मणीव न विराजते ||३४०४|| ततः कंचिज्जगन्नेत्रा नन्दनं नृपनन्दनम् । विशाल-कुल-संभूतं परिणेतुं त्वमर्हसि ||३४०५।। राजकन्या जगादैवं मुक्त्वा पूर्वभव-प्रियम् । न शक्रमपि भर्तारं करोमीत्येष निश्चयः ||३४०६।। उवाचैवं कुमारस्त्री यद्येवं यौवनं वृथा । भोगशून्यं तवारण्ये मालत्या मुकुलं यथा ||३४०७।। राजकन्याऽवदच्चित्तविश्रान्तौ क्रियते प्रियः । सामेत्वद्यैव संजज्ञे किमन्येन प्रयोजनम् ||३४०८।। अभाविष्ट कुमारस्त्री तव पूर्वभव-प्रियः । अभिज्ञानेन केनैष विज्ञेय ? इति कथ्यताम् ||३४०१।।
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४८४
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सावोचद्येन पुण्येन जाताहं राजकन्यका । तद्यो वेत्ति स विज्ञेयो मम पूर्वभव-प्रियः ||३४१०।। आचचक्षे कुमारस्त्री मृगाक्षि मुनि-भाषितम् । स्मृत्वा पञ्च-नमस्कारं त्वं राजदुहिताऽभवः ||३४११।। ततो रत्नवती बाढं विस्मय-स्मेर-लोचना । चन्द्रलेखां सखी प्रोचे पश्याश्चर्यमिदं महत् ।।३४१२।। मवृत्तान्तमयं वेत्ति किं स्वतः परतोऽथवा ?। सखी जगाद वेत्त्येषा स्वत एवेति मे मतिः ||३४१३।। यदस्यां चित्त-विश्रान्तिर्वर्तते तेऽतिशायिनी । यदस्याः पुरुषस्यैव वचनादि-विचेष्टितम् ||३४१४।। यदस्याः निकटे कामविकारास्तु स्फुरन्ति ते । ये प्रोक्ताः कामशास्त्रेषु स्त्रीणां दयित-सङ्गमे ||३४१५।। तथाहिस्त्री कान्तं वीक्ष्य नाभी प्रकटयति मुहुर्विक्षिपन्ती कटाक्षान्, दोर्मूलं दर्शयन्ती रचयति कुसुमापीडमुक्षिप्तपाणिः । रोमाञ्च-स्वेद-मुंभाः श्रयति कुच-तट-भंसि वस्त्रं विधत्ते, सोत्कण्ठं वक्ति नीवीं शिथिलयति दशत्योष्टमङ्गं भनक्ति ।।३४१६|| तत्कारणेन केनापि तव पूर्वभव-प्रियः । सोयं पुंस्त्वं तिरोधाय स्त्री-रूपं कृत्रिमं व्यधात् ।।३४१७।। सलज्जं रत्नवत्याथ संज्ञिता प्राञ्जलिः सखी । व्यजिज्ञपदमुं नाथ स्वं रूपं दर्शयाद्यमे ||३४१८।। द्वितीयौषधि-योगेन स्त्रीत्वं संत्यज्य कृत्रिमम् । नटाविव प्रपन्नौ तौ रम्यं स्वाभाविकं वपुः ||३४११।। वीक्ष्यामरकुमाराभं कुमारं राजकन्यका । आनन्द प्राप तं यस्य त्रैलोक्यमपि संकटम् ||३४२०।। चन्द्रलेखाऽवदद्यदन्नाथ रूपं प्रकाशितम् । विधायानुग्रहं तद्वत् कुलाद्यपि निवेद्यताम् ||३४२१।।
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सुमइलाह- चरियं
कुमारादेशतो देश-पुर-जाति- कुलादिकम् । पान्थ - वृत्तान्त-संयुक्तं सर्वं सुमतिरब्रवीत् ||३४२२|| अमुं वृत्तान्तमाकर्ण्य भूपतिस्तुष्टमानसः । ददौ कन्यां कुमाराय कुमारोऽप्युदवाह ताम् ||३४२३||
भूभुजा कृत-सत्कारः करीन्द्रादि-प्रदानतः । रत्नवत्या समं भोगान् बुभुजे भूप- नन्दनः || ३४२४|| अन्यदा प्रहितः पित्रा प्रतीहारः कृतानतिः । कुमारस्यापयामास लेखं तं सोऽप्यवाचयत् ॥ ३४२५ ।। स्वस्ति श्री मणिमन्दिरात् पुरवरात् प्रालेय शैलोन्नत-, प्राकाराग्र- निषन्न - खेचरवधू निध्यात सौधाद्भूतान् । श्रीमान् राजमृगाङ्क-भूपतिरति प्रोत्तुङ्ग - देवाश्रये, श्रीमत्पद्मपुरे कुमारतिलकं श्रीराजसिंहं मुदा || ३४२६|| सोत्कण्ठं परिरभ्य जल्पति यथाऽस्माकं समुज्जृम्भते, क्षेमः किन्तु भवदियोग-विधुरा कंष्टेन चेष्टामहे । वल्गदार्द्धक- वर्द्धितोज्जवलधियः संप्रत्यसंगस्थिति वाञ्च्छा मोचयमेत्य सत्वरमतस्त्वंराज्यमङ्गीकुरु || ३४२७|| तो रायसिंह - कुमरो सविणयमापुच्छिऊण पउम - निवं । करि-रह- तुरंग - पायक्क-चक्क - टिविडिकिओ चलिओ || ३४२८।। पत्ती पुरं पविडो सहरयणवईए गयगओ तत्थ । इंद व्व सईए सुरपुरम्मि एरावणारूढो ||३४२९||
४८५
पणमइ गुरुण चलणे सिर चुंबिय महियलो वहू - सहिओ । अहिदिओ य तेहिं आसीसादाणपुव्वमिमो ||३४३०|| राया रायमयंको चिंतइ कुमरं निवेसिउं रज्जे । ववगय-सयल - वियप्पो संपइ धम्मुज्जमं काहं ||३४३१|| अह पणमिऊण उज्जाणपालओ विन्नवेइ नरनाहं । उज्जाणे संपत्ती सूरी गुणसायरो नाम ||३४३२|| मज्झ अहो अणुकूलं दिव्वं जं आगओ गुरू समए । इय चिंतिऊण रज्जम्मि रायसिंहं सुयं ठवइ ||३४३३||
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४८६
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं दाऊण महादाणं काउं जिणमंदिरेसु पूयाओ । करि-कंध-गओ रब्ना समनिओ रायसीहेण ।।३४३४।। उज्जाणे संपत्तो दहं गुरुं गयाओ ओइल्लो । नमिऊण विणयपुव्वं रायमयंको इमं भणइ ।।३४३५।। भयवं भवन्नवाओ जम्म-जरा-मरण-लहरि-हीरंतं । नित्थारसु इत्ति ममं वय-बोहित्थ-प्पयाणेणं ॥३४३६।। गुरुणा वि वयं दिन्नं रायमयंकस्स राइणो विहिणा । तह साहु-वग्ग-जोग्गा पइदिण-किरिया समुवइहा ||३४३७।। अह सम्मत्त-पवित्तो गिहत्थ-धम्मो गुरुण पयमूले । रयणवई-सहिएणं पडिवनो रायसीहेण ।।३४३८।। भणियं च तेण- भयवं ! निच्चं सावगजणोचियं किच्चं । अम्हं पि कहसु तत्तो मुणिनाहो कहिउमाढत्तो ||३४३१।। पुट्विं पुलिंद-जम्मे जं संभरिऊण पिययमा-सहिओ । कय-भवण-चमक्कारं संपइ पत्तो सि रज्जसिरि ।।३४४०।। पंचपरमेट्ठि-मंतं सुत्तविउद्धो सरेज्जं तं सहो । उभय-भवेसुं कल्लाण-कारणं जो विणिदिहो ।।३४४१।। को हं ? किं मज्या कुलं ? को देवो ? को गुरु ? य को धम्मो ? | काइं च अणुव्वयाई ? इय अणुसरणं मणे कुज्जा ||३४४२।। सुइभूओ निय-घर-चेईयाइ निमज्जिऊण पूइज्जा । सुरहि-कुसुमेहिं तत्तो विहिणा चिइवंदणं कुज्जा ||३४४३।। काउं पच्चक्खाणं सत्तीए जिणालयम्मि वच्चेज्जा । पविसिज्ज तत्थ विहिणा वियरेज्ज पयाहिणा-तियगं ||३४४४।। अट्ठप्पयार-पूयाए जिणवरं पूईऊण वंदेज्ज । वच्चेज्ज गुरु-समीवे करेज्ज तेसिं इमं विणयं ।।३४४५।। दहुं अब्भुट्ठाणं आगच्छंताण सम्मुहं जाणं । सीसे अंजलिकरणं सयमासण-ढोयणं कुज्जा ||३४४६।। निवसेज्ज निसल्नेसु गुरुसु वंदणमुवासणं ताण ।। जं ताणं अणुगमणं इय विणयं अहहा कुज्जा ।।३४४७।।
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सुमइनाह - चरियं
पच्चक्खाणं पयडेज्ज ताण पासे सुणिज्ज सिर्द्धतं । तत्तो करेज्ज वित्तिं गिहागओ धम्म- अविरुद्धं ॥ ३४४८ ।। मज्झण्हे पुण काउं जियपूयं अतिहिसंविभाग - वयं । फासेज्ज तासु एसणिय असण- दाणेण साहूण ||३४४९|| पंचनमोक्कारं सुमरिऊण निरवज्ज-भोयणं कुज्जा । कुसलेहिं समं सम्मं सत्थ-रहस्सं वियारिज्जा || ३४५०|| संझाए पुणरवि चेईयाइं संपूईऊण वंदिज्जा । विहियावस्सय कम्मो करेज्ज सज्झायमेगमणी || ३४५१ || समयम्मि पंचपरमेहि-मंत सुमरण-परायणो निद्दं । थेवं सेवेज्ज अबंभचेर - परिवज्जओ पायं ||३४५२|| चम्महि-मंस-वस-मज्ज-सुक्क सोणिय पुरीस-मुत्त-हरं । जुवइ - सरीर-सरुवं निद्दा- विगमे वि चिंतिज्जा ||३४५३ || बालत्तणओ वि पवन्न - बंभचेराण विजिय-मयणाण | वज्जिय- महिलाणं महरिसीण सीलं सलाहिजा ||३४५४||
दोसेण जेण जेणेस जिप्पए तरस तस्स पडियारं । चिंतेज्ज कयपमोओ मुणीसु तद्दोसमुक्केसु || ३४५५|| तहा,
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अरिहंतो च्चिय देवो मुणिणो च्चिय सीलसंगया गुरुणी । जीवदय च्चिय धम्मो जम्मे जम्मे मह हवेज्न ||३४५६ || सम्मत्त - पवित्त-मणो हवेज्ज चेडो वि तह दरिद्दी वि । मिच्छत्त छन्न- मई मा राया चक्कवट्टी वि ||३४५७||
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को सो हवेज्ज दियहो जम्मि अहं सव्व-संग- परिहारं । काउं पडिवज्जिस्सं गुरु- पयमूलम्मि पव्वज्जं ? ।। ३४५८ ।। कईया दुवालसंग गिहिस्समहं गुरूण वयणाओ । कमलाओ महुयरं महुयरो व्व मयरंद - संदोहं ? ।। ३४५९ ।। दुव्वयणाइं सुणंतो घरे घरे फुरिय- असम-पसम-रसो । भिक्खागओ सहिस्सं बावीस परीसहे कईया ? || ३४६०|| बाहु व्व कया काहं उवग्गहं भत्त- पाण- दाणेण ? | साहूण कया वीसामणं च काउं सुबाहु व्व ? ||३४६१||
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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं कईया ममम्मि निसिकय-काउस्सग्गे थिरम्मि थंभे व्व । पुर -परिसरे करेस्संति कंध- कंडूयणं वसहा ? || ३४६२ || सम- सुह- दुक्खो सम कणय पत्थरो सम सपक्ख पडिवक्खो । सम - तरुणि-तणुक्केरी सम- मोक्ख-भवो कया होहं ?||३४६३ ॥ गुण- पगरिसमारोढुं पसम सुहाराम - अमय- वुडि - समं । इय सिवपुर-गमण - रहे मणोरहे माणसे कुजा ||३४६४ || एवं अहोरत विहिं कुणंतो पलित्त-गेहं व भवं मुणंतो । लढूण सुद्धिं खविऊण दुक्खं गिही वि पावेइ कमेण मोक्खं || ३४६५।। एवं गुरूवएस कुणमाणो रायसिंह - नरनाहो । अप्पsिहय-प्पयावो चिरकालं पालए रज्जं ||३४६६ || पंचपरमेहि-मंताणुभावओ दुज्जया वि नरवइणो । लीलाए तस्स आणं वहंति सेसं व सीसेण ||३४६७ || कुसुमेहिं वणं व सरं व पंकएहिं नहं व रिक्खेहिं । भुवणं जिणभुवणेहिं विभूसियं कारए एसो || ३४६८|| पाविय-वय- परिणामो कयाइ एसो गओ गिलाणत्तं । मरणावसरं मुणिऊण अप्पणी रायसिंह - निवो || ३४६९ || रयणवई - अंगरुहुं पयावसीहं निवेसए रज्जे ।
परलोय - मग्ग- आराहणत्थमह वाहरेइ गुरु || ३४७०|| नमिऊण भणइ एवं- भयवं ! समओचियं ममाइससु । तत्तो वागरइ गुरू पज्जंताराहणं एयं ||३४७१|| आलोयसु अईयारे वयाइं उच्चरसु खमसु जीवेसु । वोसिरसु भावियप्पा अट्ठारस-पावठाणाई || ३४७२ || चउसरणं दुक्कड गरिहणं च सुकडाणुमोयणं कुणसु । सुह- भावणं असणं पंचनमोक्कार-सरणं च || ३४७३ || नाणम्मि दंसणम्मि य चरणम्मि तवम्मि तह य विरियम्मि | पंचविहे आयारे अइयारालोयणं कुणसु || ३४७४ ||
काल- विणयाइ- अद्वप्पयार-आयार - विरहियं नाणं । जं किं पि मए पढियं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४७७ ।।
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सुमइनाह-चरियं
४८१
नाणीण जं न दिन्नं सइ सामत्थम्मि वत्थ-असणाई । जं च विहिया अवना मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४७६।। जं पंचभेय-नाणस्स निंदणं जं इमस्स उवहासो । जं च कओ उवघाओ मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४७७।। नाणोवगरणभूयाण कवलिया-फलय-पुच्छयाईण । आसायणा कया जं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४७८।। जं सम्मत्तं निस्संकियाइ अहविह-गुण-समाउत्तं । धरियं मए न सम्म मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४७१।। जं न जणिया जिणाणं जिण-पडिमाणं च भावओ पूया । जं च अभत्ती विहिया मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ॥३४८०।। जं विरइओ विणासो चेइयदव्वस्स तं विणासंतो । अन्नो उवेक्खिओ जं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४८१।। आसायणं कुणंतो जं कहवि जिणिंद-मंदिराईसु । सत्तीए न निसिद्धो मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ॥३४८२।। जं पंचहि समिईहिं गुत्तीहिं तीहिं संगयं सययं । परिपालियं न चरणं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४८३।। एगिंदियाण जं कहवि पुढवि-जल-जलण-मारुय-तरुणं । जीवाण वहो विहिओ मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४८४।। किमि-संख-सुत्ति-पूयर-जलूय-गंडोलया-ऽलसप्पमुहा । . हणिया बिइंदिया जं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४८५।। गद्दहय-कुंथू-जुया-मंकुण-मक्कोड-कीडियाईया । निहया तिइंदिया जं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४८६।। कोलियय-कुत्तिया-तिड्ड-मच्छिया-सलह-छप्पयप्पमुहा । चउरिदिया हया जं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४८७।। जलयर-थलयर-खयरा आउट्टि-पमाय-दप्पकप्पेहिं । पंचिंदिया हया जं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४८८।। जं कोह-लोह-भय-हास-परवसेणं मए विमूढेण । भासियमसच्च-वयणं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४८१।।
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४१०
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं जं कवडवावडेहिं मए परं वंचिऊण थेवं पि । गहियं धणं अदिग्नं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४१०।। दिव्वं व माणुसं वा तेरिच्छं वा सरागहियएणं । जं मेहुणमायरियं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ।।३४११|| जं धण-धन्न-सुवन्न-प्पमुहम्मि परिग्गहे नवविहे ति । विहियं मए ममत्तं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४१२।। जं राईभोयण-विरमणाइ-नियमेसु विविहरुवेसु । खलियं मह संजायं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४१३।। बाहिरमभिंतरयं तवं दुवालसविहं जिणुद्दिडं । जं सत्तीए न कयं मिच्छा मे दुक्कडं तरस ||३४१४|| जोगेसु मोक्खपय-साहगेसु जं वीरियं न य पउत्तं । मण-वाया-काएहिं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ||३४१५|| • पाणाइवायविरमण-पमुहाई तुमं दुवालस-वयाई । सम्मं परिभावंतो भणसु जहागहिय-भंगाई ||३४१६।। खामेसु सव्व-सत्ते खमेसु तेसिं तुमं वि गयकोवो । परिहरिय-पुव्ववेरो सव्वे मित्ते त्ति चिंतेसु ||३४१७।। पाणाइवायमलियं चोरिक्वं मेहुणं दविण-मुच्छं । कोहं माणं मायं लोहं पेज्जं तहा दोसं ||३४१८।। कलहं अब्भक्खाणं पेसुल्नं अरइ-रइ-समाउत्तं । पर-परिवायं माया-मोसं मिच्छत्त-सल्लं च ||३४११।। वोसिरसु इमाइं मोक्ख-मग्ग-संसग्ग-विग्घभूयाई । दुग्गइ-निबंधणाई अहारस-पावहाणाइं ||३५००।। चउतीस-अइसय-जुया जे केवलनाण-मुणिय-परमत्था । सुरविहिय-समोसरणा अरहंता मज्ा ते सरणं ।।३५०१|| चउविह-कसाय-चत्ता चउवयणा चउप्पयार-धम्मकहा । जे चउगइ-दुह-दलणा अरहंता मज्डा ते सरणं ||३५०२।। जे अह-कम्म-रहिया अट्ठ-महापाडिहेर-पडिपुन्ना । अह-मयहाण-विरया अरहंता मज्या ते सरणं ।।३५०३।।
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४११
सुमइनाह-चरियं
भवखेत्ते अरुहंता भावारि-प्पहणणेण अरिहंता । जे तिजय-पुयणिज्जा अरहंता मज्ा ते सरणं ||३५०४।। तरिऊण भवसमुदं रउद्द-दुह-लहरि-लक्ख-दुल्लंघं । जे सिद्धि-सुहं पत्ता ते सिद्धा इंतु मह सरणं ||३५०५|| जे भंजिऊण तव-मुग्गरेण निबिडाई कम्म-नियलाई । संपत्ता मोक्ख-सुहं ते सिद्धा हुंतु मह सरणं ||३५०६।। झाणानल-जोगेण जाओ निद्दड-सयल-कम्म-मलो । कणगं व जाण अप्पा ते सिद्धा हुंतु मह सरणं ||३५०७।। जाण न जम्मो न जरा न वाहिणो न मरणं न वाऽऽबाहा । न य कोहाइ कसाया ते सिद्धा हुंतु मह सरणं ॥३५०८।। काउं महुयर-वित्तिं जे बायालीस-दोस-परिसुद्धं । भुंजंति भत्तपाणं ते मुणिणो हुंतु मह सरणं ||३५०१|| पंचिंदिय-दमणपरा निज्जिय-कंदप्प-दप्प-सर-पसरा । धारंति बंभचेरं ते मुणिणो हुंतु मह सरणं ॥३५१०।। जे पंचसमिइ-समिया पंचमहव्वय-भरुव्वहण-वसहा । पंचमगइ-अणुरत्ता ते मुणिणो हुंतु मह सरणं ||३५११।। जे चत्त-सयल-संगा सम-मणि-तण-मित्त-सत्तुणो धीरा । साहति मुक्ख-मग्गं ते मुणिणो हुंतु मह सरणं ||३५१२।। जो केवलनाण-दिवायरेहिं तित्थंकरहिं पन्नत्तो । सव्व-जगज्जीव-हियओ सो धम्मो होउ मह सरणं ॥३५१३।। कल्लाण-कोडि-जणणी जत्थ अणत्थप्पबंध-निद्दलणी । वन्निज्जइ जीवदया सो धम्मो होउ मह सरणं ॥३५१४।। जो पावभरक्वंतं जीवं भीमम्मि कुगइ-कूवम्मि । धारेइ निवडमाणं सो धम्मो होउ मह सरणं ।।३५१५।। सग्गापवग्ग-पुर-मग्ग-लग्ग-लोयाण सत्थवाहो जो । भवअडवि-लंघणखमो सो धम्मो होउ मह सरणं ॥३५१६।। एवं चउण्हं सरणं पवनो, निम्विन्न-चित्तो भवचारयाओ ।
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४१२
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं जं दक्वड किं पि समक्खमेमि, निंदामि सव्वं पि अहं तमिण्हेिं ||३५१७।। जं एत्थ मिच्छत्त-विमोहिएण, मए भमंतेण कयं कृतित्थं । मणेण वायाइ" कलेवरेणं, निंदामि सव्वं पि अहं तमिण्हेिं ।।३५१८।। पच्छाईओ जं जिणधम्म-मग्गो, मए कुमग्गो पयडीकओ जं । जाओ अहं जं पर-पावहेऊ, निंदामि सव्वं पि अहं तमिण्डिं ||३५११।। जंताणि जं जंतुवहावहाई, हलुक्खलाईणि मए कयाइं । जं पोसियं पाव-कुंटुंबयं च, निंदामि सव्वं पि अहं तमिण्हेिं ||३५२०।। जिणभवण-बिब-पुत्थय-संघ-सरूवाए सत्त-खित्तीए । जं ववियं धण-बीयं तमहं अणुमोयए सुकयं" ||३५२१।। जं सुद्ध-नाण-दंसण-चरणाइं भवन्न-वप्पवहणाई । आराहियाइं सम्मं तमहं अणुमोयए सुकयं ||३५२२।। जिण-सिद्ध-सूरि-उवज्झाय-साहु-साहम्मिय-पवयणेसु । जं विहिओ बहुमाणो तमहं अणुमोयए सुकयं ||३५२३।। सामाइय-चउवीसत्थयाई आवस्सयम्मि छब्भए । जं उज्जमियं सम्मं तमहं अणुमोयए सुकयं ||३५२४|| पुवकय-पुन्न-पावाण सुक्ख-दुक्खाण कारणं लोए । न य अन्नो को वि जणो इय मुणिय कुणसु सुहभावं ||३५२५।। पुव्वं दुच्चिन्नाणं कम्माणं वेइयाण जं मोक्खा । न पुणो अवेइयाणं इय मुणिउं कुणसु सुहभावं ||३५२६।। जं तुमए नरए नारएण दुक्खं तितिक्खियं तिक्खं । तत्तो कत्तियमेत्तं इय मुणिउं कुणसु सुहभावं ||३५२७।।
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४१३
सुमइनाह-चरियं
जेण विणा चारित्तं सुयं तवं दाण-सीलमवि सव्वं ।। कासकुसुमं व विहलं इय मुणिउं कुणसु सुहभावं ||३५२८।। जं भुंजिऊण बहुयं सुरपव्वय-पमुह-पव्वएहिंतो । तित्ति तए न पत्ता तं चयसु चउविहाहारं ।।३५२१।। जं सुलहो जीवाणं सुर-नर-तिरि-नरय-गइचउक्के वि । मुणिउं दुल्लह-विरइं तं चयसु चउव्विहाहारं ||३५३०।। छज्जीवनिकाय-वहे अकयम्मि कहं पि जो न संभवइ । भवभमण-दुहाहारं तं चयसु चउन्विहाहारं ||३५३१।। "चत्तम्मि जम्मि जीवाण होइ करयल-गयं सुरिदत्तं । सिद्धि-सुहं पि हु सुलहं तं चयसु चउव्विहाहारं ||३५३२|| नाणाविह-पावपरायणो वि जं पाविऊण अवसाणे । जीवो लहइ सुरत्तं तं सरसु मणे नमोक्कारं ||३५३३।। जेण सहारण गयाण परभवे संभवंति भवियाण । मणवंछिय-"सोक्खाइं तं सरसु मणे नमोक्कारं ||३५३४|| सुलहाओ रमणीओ सुलहं रज्जं सुरत्तणं सुलह । "एक्वो च्चिय जो दुलहो तं सरसु मणे नमोक्वारं ||३५३५।। लद्धम्मि जम्मि जीवाण जायए गोपयं व भवजलही । सिवसुह-सच्चंकारं तं सुरसु मणे नमोक्कारं ||३५३६।। एवं गुरुवइडं पज्जंताराहणं निसुणिऊण । वोसह-सव्व-पावो तहेव आसेवए एसो ||३५३७|| पंचपरमेहि-सुमरण-परायणो पाविऊण पंचत्तं । पत्तो पंचमकप्पम्मि रायसिंहो सुरिंदत्तं ||३५३८|| रयणवई वि हु तेण क्वमेण तेणेव सह मया रना । अत्थंगयम्मि चंदे कयावि किं चिट्ठए जोण्हा ? ||३५३१।। एसा वि तत्थ कप्पम्मि तस्स सामाणियत्तणं पत्ता । तत्तो चुयाइं दोन्नि वि कमेण मोक्खं लहिरसंति ।।३५४०।।
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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं
पाठांतर : १. तरस सचिवो ल. \\ २ हविज्ज ल. रा. \\ ३. निवगामे द. ॥ ४. जरठक्कर पासे ल. || ५. परं न. ल. रा. || ६. भणियं ल. रा. || ७. जगिमं द. पा. || ८. निलियाणि ल. रा. || 9. तारिसा पा. ।। १०. विपुलमई-विउलमई द. पा. || ११. कंदलियामिसेण द. पा. || १२. विवाहाणंतरे ल. रा. ॥ १३. भासइ वणिय-पुत्तो ल. रा. || १४. सरूव ल. ॥ १५. परिखिवइ ल. रा. ।। १६. जीव-तित्थे द. पा. || १७. सव्व निच्छुभमाणा ल. || १८. रोयंती ल. रा. ।। ११. पडिवज्जिउं ल. रा. || २०-२१ चंदसेणो ल. रा. || २२. चिगिच्छा द. पा. || २३. पुव्वं द. पा. रा. ।। २४. कारविउं रा. ।। २५. मरिऊण नरयं गओ । केसवो पुण गुरुणो पासे... ल. रा. ॥ २६. मे द. पा. ।। २७. आएसु ल. रा. ॥ २८. ठाऊण द. पा. ॥ २१. संतसंतोसं द. पा. रा. ।। ३०. पिच्छसि ल. रा. || ३१. भुक्खियाइ ल. रा. ॥ ३२. कथामा आगळ 'रयणसारो' पाठ आवे छे. ३३. परिच्चयसु सोयं । ल. रा. ॥ ३४. कज्जं ल. रा. || ३५. रयण कहि पि एस सिह खेयरिदस्स द. पा. ३६. विमल ल. रा. ॥ ३७. सुंदेरु द. ल. रा. ॥ ३८. एयं ल. || ३१. कविंजलाए साहु तुमए ल. रा. ॥ ४०. सहाविओ ल. रा. ।। ४१. दुयं ल. रा. ॥ ४२. 'अलिंगिऊण....... मणेण' आटलो पाठ ल. रा मां नथी. ४३. भवणवाम्मि ल. ॥ ४४. पडिहच्छे ल. रा. ॥ ४५. एवं ल. || ४६. गहिऊण ल. || ४७. जी इ द. ।। ४८. तत्थ ल. रा. ।। ४१. पब्बले द. पा. || ५0. मणमंछयित्थ-विसए द. पा. ।। ५१. चित्तमंगलुं० ल. रा. ॥ ५२. सिद्धाओ ल. रा. ।। ५३. बहुयं पि सुवल्लं । एवं सोऊण तेणावि नीयं अइ-बहुय-सुवल्लं । कया सामग्गी । केणावि पयारेण चंदणं वंचिउं गहिऊण सुवल्नं पणहो. ल. रा. || ५४. जायं जाईसरण द. पा. || ५५. पूवब्भासेण ल. रा. ।। ५६. लहिऊण ल. || ५७. भद्दसेणो रा. ।। ५८. पुव्वेणमेव रब्ने उववल्ला ल. रा. ॥ ५१. तत्थ जिल्लरूवे ल. रा. ॥ ६०. केवलगो ल. रा. ॥ ६१. वसणंकुर ल. रा.।। ६२. ततः ल. रा. ।। ६३. मवृत्तान्तमियं द. पा. ।। ६४. यथोक्ताः रा. ।। ६५. वायाए द. पा. || ६६. गाथा ३५२१-३५३१ सुधी द. पा. मां नथी. ६७. जेण करण जीवाण द. पा. || ६८. सुक्खाइं पा. ।। ६१. एसो च्चिय ल. रा. ||
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दसमो पत्थावो
एवं अहारस-पय-मयं मोक्ख-सोवाण-पंति, मोक्खत्थीणं कुणइ चमरो देसणं जाव सम्मं । पत्तो सूरो पडिहय-तमो ताव वोमस्स मज्झं,
को मज्ात्थो नहवइ जए तारिसे देसगम्मि ? ||३५४१|| पुनाए य बीय पोरिसीए विरए धम्म-कहणाओ चमर- गणहरे सुराऽसुरा गया नंदीसरं । तत्थ सासय-जिण-पडिमाणं महिमं काऊण पत्ता सदाणं । भयवं पि आगासगएणं पूरओ चक्कमंतेणं धम्मचक्वेणं, आगासगएणं धवलायवत्तेणं, आगासगएणं फलिहमरणं सपायवीढेणं सिंहासणेणं, आगासगएहिं सेय-वर-चामरे हिं, अणेग-सुर-कोडिसमुक्खित्तेणं पुरओ पयट्टेणं पवण-पणच्चंत-महापडाएणं पडाईयासहस्स-परियरिएणं रयणज्झएणं बह-समण-समणी-संघेण चंदो व्व नक्खत्त-ताराचक्वेण परिवुडो विहरिओ तओ ठाणाओ | विहरंतस्स य तस्स बहुमाणेण व नमति मग्ग-पायवा । अंतरंग-कं ट यसमच्छेयच्छेयस्स भयवओ भएण व अहोमहा चिठंति कंटया | सगुणसिरोमणिणो सामिणो सेवय व्व पयाहिणा संपज्जति सउणा | कंदप्पपरिपंथिणो पहुणो सयल-काल-कय-कंदप्प-साहेज्जा वराह-विहुर व्व सेवत्थं निय-निय-समय-समुब्भव-पुप्फ-फल-पाहुड-पयाण-पुव्वं जुगवं पि उवहिया उउणो । तिजय-रक्खणुज्जयस्स जय-गुरुणो पुव्वकय-तिजग-जगडण-दोस-खामणत्थं व अणुकूलत्तणं पवन्ना सद्दरूव-गंध-रस-फासा । परमेसरस्स सुरहि-वयण-परिमल-लुद्धो व धावए पिडओ पवणो । अणहवुहि-संगयस्स अबालभावस्स य भयवओ जुत्तं चेव न वहति नहा वाला य । गंधसिंधुरस्स व गंधेण सेस-सिंधुरा नासंति अरहओ पभावेण ईइवेरामय(?) मारिय-वुहि-अइवुहिदुब्भिक्ख- डमर-पमुहा उवद्दवा । उच्चिह-सुरलोय-सुलहचिरंतणामयरस-पाण-लालसा जहन्न ओ वि कोडि-संखा समीवं न मेल्लंति अमयभोइणो ।
इय चउतीसाए अइसएहिं सहिओ हिओवएसपरो । पर-उवयार-विहाणेण जंगमो कप्परुक्खो व्व ।।३५४२।।
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४१६
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं केरल-कलिंग-कुंतल-तिलंग-कन्नाड-लाड-भोडेसु । बंगंग-मगह-मालव-मरहट्ठ-सुरह-गउडेसु ||३५४३।। अन्नेसु वि विविहेसुं देसेसु सुहावहो विहरमाणो । केसिं पि सव्वविरई निहि व्व रयणासयं दितो ||३५४४|| पंचाणव्वय-साहं गण-सिक्खा-कुसुमममल-मोक्ख-फलं । केसि पि देसविरई कप्पलयं पि समप्पंतो ||३५४५।। पायडिय-विसुद्ध-पहं दुरंत-दोगच्च-दुक्ख-निद्दलणं । केसि पि महारयणं वियरमाणो य सम्मत्तं ।।३५४६।। इय भविय-समूहं धम्ममग्गे ठवंतो, तियस-कय-पसंसो संसउच्छेयच्छेओ । कुसमय-परचक्वं अक्वमंतो कमेणं, गमइ सुमइनाहो वास-लक्खे बहूए ।।३५४७।। अह अत्थि एत्थ भरहे कोसलदेसम्मि कुसलकोसम्मि । साकेयं नाम पुरं रिद्धीए पुरंदरपुरं व ।।३५४८11 तत्थ समरसीहो राया । समरम्मि जो समग्गे विवक्ख-वग्गे पलायमाणम्मि । संमुहमप्पाणं चिय पेक्खइ करवाल-संकंतं ।।३५४१|| तस्स दमयंती देवीपसुवइणो सुर-सरि-जल-संसित्तो भाल-नयण-सिहि-तत्तो | जल-जलण-वयं कुणइ व्व ससहरो जीए मुह-विजिओ ||३५५०।। तस्स रनो तीए सह विसय-सुहं सेवंतस्स वच्चंति वासरा । अन्नया देवीए सुहपसुत्ताए सुविणए किरण-कलाव-कवलिय-तिमिर-मंडलं दिलं मणि-कुंडलं, पडिबुद्धाए साहियं रनो । तेण वुत्तं- देवि ! मणि-कुंडलं व महि-महिला-मंडलं पुत्तो ते भविस्सइ । तीए वि देव-गुरुप्पसारण एवं होउ त्ति बहुमन्नियं रन्नो वयणं । पाउब्भूओ गब्भो । समए य देहप्पहा-पूरेण तिमिर-दारओ जाओ तीए दारओ । इमस्स नालनिक्खिवणत्थं खणिज्जंते खोणीयले निग्ग ओ महग्य-रयण-संगओ निही । सुविणय-निहि-लाभाणुसारेण कयं से निहिकुंडलो त्ति नामं । वडिओ सो देहोवचएण कलाकलावेण य, पत्तो तरुणी-नयण-कुरंग
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सुमइनाह-चरियं
कीलावणं जोव्वणं ।
तणुते तुलियतवणेज्ज पुंज कंतीसु तह वि तरुणीसु । चक्खुं पि खिवइ न मुहा मुणि व्व निहिकुंडल - कुमारो ||३५५१ ।। सो बालकाल - परिसीलियं पि सयले कलाकलावम्मि । कुणमाणो अब्भासं मयणस्स न देइ अवयासं || ३५५२ ।। अन्या दिव्वाणुभावेण दिव्व- कन्नयं सुविणए दहूण तदणुरत्तो पत्तो रणरणयं न पावए कत्थ वि रई । मुणियमिणं पिउणा । पहाणरायकन्ना-पडिच्छंदाण आणयत्थं पेसिया सव्वत्थ पुरिसा । आणिऊण दंसिया तेहिं ते कुमारस्स । न जाओ कत्थ वि सुविण-दिड- कन्नगासंवाओ । कयाइ भवणुज्जाण कयलीवणे निसन्नरस कुमारस्स आगओ पुरिसो । पणमिऊण निविडो पुरओ, दंसिया अणेण चित्तवट्टिया । दिहं तत्थ कुमारेण सुविण - दिड- कन्नगाणुरूवं रूवं । भणियं च विम्हओफुल्ल-लोयणेण- अहो ! चित्तकला - कोसल्लं चित्तयरस्स, जेण सयल - भुवणच्छरियभुयं लिहियमेयं रूवं । पुरिसेण वुत्तं- कुमार !
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चित्तयरस्स न किंचि विचित्तकरं चित्तकम्म- चउरतं । दहुम्मि पडिचच्छंदं सम्मं लिहियं न जेण इमं || ३५५३|| एकस्स पयावइणो वन्नसु विन्नाण कोसलं एत्थ । जेण पडिच्छंदयमंतरेण बाला विणिम्मविया ||३५५४ ||
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कुमारेण वृत्तं कुविय सुरवइ- साव- पब्भट्ठ किं अच्छर ? किं खयर गलियविज्न गयणाओ निवडिय ? पायालह नीहरिय नागकन्न किं नाग - विनडिय ?
मह आगरसइ एह मणु तं लोहु व अयकंतु ।
अवर - रमणि पवर विनिइवि जं किल आसि पसंतु ।। ३५५५ ।। ता भद्द ! कहेसु का एस ? त्ति ।
पुरिसेण वृत्तं कुमार ! सुण, महाराय समरसीहाएसेण रायधूयाए पडिच्छंदाणयणत्थं गओ अहं कुणाल-विसए सावत्थीए नयरीए । तत्थ अरिचक्क चडयसेणी हरिसेणो राया, तस्स कणय-कमणिज्ज-काय-कंती कंतिमई कंता । ताणं धूया पुरंदरजसा । सा य अहिगय-कलाकलावा पत्त - जोव्वणा । जणाओ कुमार । तुह कित्तिं सोऊण पुरिसंतरस्स नाम
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४१८
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं पि न सहइ । न य निय-मणोगयं कस्स वि कहइ । जाया जणयस्स चिंता । भणिया अणेण मंतिणो-एत्थत्थे चिंतेह किंपि उवायं । मंतीहिं वुत्तं-देव ! दंसिज्जंतु इमीए रायकुमाराण पडिच्छंदया जइ कत्थ वि रागं करेज्ज । पेसिऊण पुरिसे आणाविया ते, दंसिया इमीए, न कत्थ वि वीसंता दिही । तुह पुण पडिच्छंदए दिहे थंभिय व्व ठिया, समुल्लसिओ सव्वंगं पुलओ, जायं सेय-जल-बिंदु-संदोह-सुंदरं भालवडं, वियंभिओ चंदण-जलद्दाइ-सिसिरोवयाराणं पि असो देह-दाहो ।
तुममेव चिंतयंती तुज्झ गुण-कित्तणं चिय कुणंती ।
तुममेव आलिहंती गमेइ दियहाइं सा बाला ||३५५६।। . दिहा य मए सा तदवत्था, तप्पडिच्छंदं च लिहिऊण समागओहं ति । तस्विसयं अणुरागं मुणिऊण कुमारस्स रन्ना मग्गिऊण वरिया पुरंदरजसा । विवाहत्थं महासामग्गीए चलिओ निहिकुंडलो | वच्चंतो रनमज्झे अवहरिओ तुरएण, पिच्छए गिरि-निकुंजे पज्जलंतं जलणं । गओ तत्थ कोउगेणं, दिहो चउकोण-दिन-दीवए दिप्पंत-जलण-कुंड-सणाहे मंडले निविहो कावालिगो, तस्स पुरओ भय-कंपंत-गत्ता एगा जुवई । चिंतियं कुमारेण
किमिमा बाला स च्चिय सुविणे हिते य जा मए दिहा । अन्ना वा ? नवधूयत्तणेण तीए असंभवओ ||३५५७।। विहिविलसियाण चित्तत्तणेण संभवइ सा वि किं अहवा । रक्खेमि रक्खसाओ व एयाओ तं च अन्नं वा ||३५५८।। इओ य कत्तियं कहिऊण भणियं कावालिगेण-'कुणसु दिहं जीवलोयं, सरसु इहदेवयं । एय-पज्जवसाणो ते जीवलोओ' त्ति । सा वि हा ताय ! हरिसेण महाराय ! हा पाणनाह ! निहिकुंडल कुमार । एसा असरणा अहं विवज्जामि त्ति जंपंती परुन्ना । तओ सा चेव एसा हरिसेण-धूया ते(मे) पिययमेति निच्छिऊण खग्गवग्गकरो हक्कारवभयंकरो रे रे अणज्ज ! किमेयमकज्जमारद्धं ?'ति भणंतो धाविओ कुमारो । तं च दहण मरण-भीओ पणट्ठो कावालिगो । पुरंदरजसा वि कहिऊण निय-वुत्तंतं आसासिया कुमारेण । पुच्छिया य- भद्दे ! कहमेयमवत्थं पत्ता सि ? । तीए वुत्तं-कुमार ! रयणीए सुहपसुत्ता अहं कहं पि हरिया इमिणा । पडिबुद्धाए य दिहो एत्थ एसो, पुव्वं पि तुह गुणे
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सुमहनाह - चरियं
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सोऊण समप्पिओ मए अप्पा । संपयं पुण तए विक्कमेण किणीया अहं ति । कुमारो वि तं घेत्तूण आगओ आवासं, कमेण पत्तो सावत्थीए । संजाय - दुगुण- हरिसेण रण्णा परिणाविओ पुरंदरजसं । सक्कारिओ करितुरय-रह- सुवन्नाइ दाणेण । आगओ स नगरं । सेवए तीए सह विसयं । कयाइ समर-वावारेण परलोयं पवन्ने समरसीहे निसन्नी रज्जे निहिकुंडली |
जे न पवन्ना सेवं कउज्जमाणं पि पुव्वनिवईणं । ते वि हु पयावमेत्तेण तस्स आणापरा जाया ।। ३५५९ ।।
अन्नया नंदिवर्द्धणायरिय-समीवे धम्मदेसणं सुणिऊण सहकंताए पवन्नो सावगत्तणं । कारेइ जिणाययणे, ठावेइ तेसु जिण-पडिमाओ, कारवेइ रहजत्ताओ, पूएइ चउव्विह-संघं, करेइ जिणसासण-प्पभावणं । जाओ य तस्स सुओ पुन्नजसो ।
अह तत्थ तित्थनाही सुमई निम्महिय-सयल - जण - कुमई । विहरतो संपत्ती पडिबोहंतो भविय-वग्गं ॥ ३५६० ।।
कयं देवेहिं समोसरणं, उवविडो भयवं पयाहिणा - पुव्वं सिंहासणे, वदाविओ निउत्त- पुरिसेण राया । दाऊण तस्स तुडिदाणं गयकं धराधिरूढो गओ भयवओ वंदणत्थं । पंचविहाभिगमेण पविडो समोसरणे, ति - पयाहिणा-पुव्वं पणमिऊण निविडो स-ठाणे । निसन्नाए दुवालसविहाए परिसाए पुरओ पारदा भयवया देसणा
I
ते धत्तूर - तरुं वपंति भवने प्रोन्मूल्य कल्पद्रुमं, चिन्तारत्नमपास्य काच शकलं स्वीकुर्वते ते जवात् । विक्रीय त्रिदशाधिराज - करिणं क्रीणन्ति ते रासभं, ये लब्धं परिहृत्य धर्म्ममधमा धावन्ति भोगाशया ॥ ३५६१||
तो रन्ना निहिकुंडलेण समयं लद्धूण पुट्ठो इमं-, सामी किं सुकयं कयं पिययमा जुत्तेण पुव्वं मए ? | जेणाऽसेस - नरिंद-मत्थय-मणी-लीढ-कमांभोरुहं,
-
पत्तं रज्जसुहं पुरंदरजसा जाया य मे वल्लहा || ३५६२ ||
सामिणा वृत्तं - अत्थि महाधणं नाम वणं । तत्थ जिणपणमणत्थमागयाहिं अच्छराहिं व मणि- सालिभंजियाहिं रेहंत-कणयखंभं
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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं नाहि-नरिंद-नंदण - जिणचंद - पडिमाए मणोहर - चेईहरं । तस्स उववणमज्झे आसि एगं कीर - मिहुणं । तं च कयाइ जिणिंद-पडिमं दहूण पहि-मणं माणुस - भासाए परोप्परं जंपिउं पवत्तं
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अव्वो अपुव्वमेयं रूवं नयणाण अमयवुडिसमं । अम्हेहिं जेहिं दिहं सहलं चिय जीवियं तेसिं || ३५६३ ॥
ता निच्चं पि पिच्छिस्समाणो इमं ति । पिच्छंताण पिच्छंताण गलिओ मोह-गंठी ।
फुरियं मणे - 'करसइ देवाहिदेवस्स पडिमा इम' त्ति ।
पत्ते य वसंते चंचूर्हि चूयमंजरीओ घेत्तूण तेहिं दिन्नाओ पडिमा - मत्थए । एवं तणु-कसायाण ताण अइक्कंतो कोइ कालो । कयाइ कीरो मरिऊण जाओ तुमं, कीरी वि जाया पुरंदरजसा । एयं सोऊण जायं दोहं पि जाईसरणं । रन्ना वुत्तं- तहाविह - विवेय- वियलत्तणेण अप्पमिणं नियाणं फलं पुण विउल- रज्ज-रिद्धि-लक्खणं महंतं ति । सामिणा वुत्तं - अज्ज वि थोवं पत्तं तए फलं वीयराय - पूयाए । पुन्नाणुबंधि- पुन्नाणुभावओ पाविहिसि बहुयं ॥ ३५६४ || तहाहि
एतो पिया - समेओ सोहम्मं वच्चिरं तओ चविओ । पुव्वविदेहे पुंडरिगिणीए निवचंद - निवइस्स || ३५६५ ।। सिरिचंदाए पियाए होहिसि ललियंगओ तुमं पुत्तो । देवी वि एत्थ विजए मणिनिहि-नयरम्मि रम्मम्मि || ३५६६ ।। सिव - राइणो सिवाए देवीए सुंदरा सुया होही । नाणुम्मायंती उम्मायंती तरुणलोयं ॥ ३५६७||
मयरद्धय-निहि-कलसायमाण- थणमुल्लसंत-लायन्नं । सा तारुन्नं पत्ता तो जणणी- जणिय - सिंगारा || ३५६८।। पिउ-पाय- पणमणत्थं वच्चिस्सइ सो वि तीए रूवसिरिं ॥ सयल - जयब्भहियं पिच्छिऊण चिंतिस्सए एयं || ३५६९ || मन्ने न को वि उचिओ वरो इमीए नरिंद - तणएसु । जुत्तो सयंवरो ता वरउ वरं तत्थ इच्छाए ।।३५७०।।
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५०१
सुमइनाह-चरियं
एवंकए न दोसो अणुचिय-वर-दाणओ मह हवेज्ज ।
तत्तो निवचंद-निवो सयंवरामंडवं काही ||३५७१।। मिलिस्संति तत्थ बहवे रायपुत्ता, तेसिं मज्यो चत्तारि- चउसु विज्जासु कुसला- जोइसे सीहो, विमाण-निम्माणे पुहइपालो, गारुडे अजो, धणुव्वेए ललियंगओ । उम्मायंती वि कयसिंगार-तिरच्छच्छविच्छोहेहिं समुच्छलंत-मच्छरिछोलि-संछन्ना लायन्न-जलहि-लहरि व्व तत्थागया वागरिस्सइ- जोइस-विमाण-गारुड-धणन्वेय-विज्जाण मझे जो एगाए वि विज्जाए कुसलो सो मम वरो होउ त्ति । तओ ललियंगो राहावेहं काऊण धणुव्वेय-कोसल्लं दंसिही ।
तस्स खिविस्सइ कंठे एसा गंधंध-महुयर-रवेण ।
ललियंग-धणुव्वेयं सलाहमाणिं व वरमालं ||३५७२।। एत्थंतरे काम-परवसो कामं कुरो नाम खेयरो उम्मायं तिं अवहरिस्सइ । तओ तीए जणगलोगो ललियंगय-पमुहा य रायपुत्ता परिहयमत्ताणं मन्नंता विसायं गमिस्संति । तत्थ जोइसिओ जेण जत्थ वा सा नीया तं कहिस्सइ । विमाणकारी विमाणं करिस्सइ । जोइसियकहिय-मग्गो विमाणारूढो ललियंगओ गमिस्सइ, वच्चंतो य हिमवंतपव्वए पेक्खिस्सइ सखेयं खेयरेण पायवडिएण पसाइज्जमणिं उम्मायंतिं । तओ धणुदंडहत्थो ललियंगो भणिस्सइ एयं-'अरे दुरायार ! परकलत्तं हरिऊण मणुस्सो होसु ।' कामंकुरो करवालकरो भविस्सइ संमुहो ।
मिल्लिस्सइ ललियंगो तहा सरं खेयरं पइ सरोसो । जह भिंदिऊण सो तं सहस त्ति परेण नीहरिही ॥३५७३|| तेणेव बाण-मग्गेण तस्स पाणा वि निक्खमिस्संति ।
को वा सदोस-ठाणाओ लड़छिद्दो न नीहरइ ? ||३५७४।। ललियंगो वि उम्मायं तिं विमाणारूढ माणिऊण समप्पिस्सइ पिउणो । तं च रयणीए भुयंग-डक्कं जीवाविरसइ गारुडिओ | एत्थंतरे कओवयारा चत्तारि वि रायसुया तीए विवाह-कए विवायं करिस्संति । 'कस्सेसा दिज्जउ ?'त्ति चिंताउरे गुरुयणे भणिस्सइ उम्मायंती-'जो मए समं परलोयमणुसंधइ सो मे पइ होउ ।'त्ति । तओ ललियंगओ पुन्वभवारूढ-सिणेहो इमं पि पडिवजिऊण पविसिस्सइ तीए सह चियाए । पज्जालिए जलणे पुव्वकय-सुरंगादारेण दो वि नीहरिस्संति ।
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૬૦૨
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं इयरे वि 'मया रायधुय' त्ति कयनिच्छया गमिस्संति सठाणं । परिणिस्सइ ललियंगओ उम्मायंतिं । तीए सह समागयं ललियंगयं निय-नयरे निवचंद राया सयं दिक्खा-गहणेण कओज्जमो ठविस्सइ निय-रज्जे । ललियंगो वि उम्मायंतीए सह विसए सेवंतो चिरं रज्जं पालिऊण . सरयब्भ-पडलं पढमं पवड्डमाणं पच्छा पवणाहयं तक्खण-विणहं च पेच्छंतो विरत्तो चिंतिस्सइ जहा
घण-पडलमिणं जह वडिऊण पवणाहयं गयं विलयं ।
तह चेव रूव-जोव्वण-सिरीओ सहसा पणस्संति ||३५७५।।
ता सुकयं चेव काउं जुज्जइ ति चिंतापरस्स तस्स आगमिस्सइ सिरिहर-नाम तित्थयरो | तस्संतिए देसणं सोऊण नियपुत्त-दिन-रज्जो भज्जाए समं ललियंगो दिक्खं गिहिस्सइ । तिव्व-तव-च्चरणपराणि मरिऊण ईसाणदेवलोए दोवि देवत्तं लहिस्संति । तओ चुओ ललियंगयजीवो धाईसंडे पुव्व-विदेहे रयणावईए पुरीए रयणनाह-रन्नो कमलावईए देवीए देवसेणो नंदणो । निरुवमेणं रूवेणं ललिएणं लायनेणं उदग्गेणं सोहग्गेणं महल्लेणं कलाकोसल्लेणं तो सियत्थि-संघाएणं चारणं गुरुयणाणंद-जणएणं विणएणं अलद्धहीलेणं सीलेणं सयल-सुर-नरखेयराणं पि सलाहणिज्जो भविस्सइ | उम्मायंती-जीवो य वेयड-पव्वए उत्तर-सेढीए मणिकुंडल-नयरे मणिवइणो रन्नो मणिमालाए देवीए चंदकंता कब्जा होही । सा य विज्जाहर-मुहाओ देवसेणस्स गुणे सोऊण अणुराग-परवसा खेयराणं नामं पि न सहिस्सइ । भूगोयर-अणुरत्त ति निंदिस्संति तं खेयरा | पन्नविस्संति सयणा जहा- असरिसगुणो ते देवसेणो ति । तहावि न विरमिस्सइ तदणुबंधाओ । तओ चिंतिस्सइ गुरुजणो- अत्थि ताव चंदकंताए देवसेणे पेम्मं । जइ तस्स वि एवं पइ हवेज्ज ता सुंदरं ।
प्रेमरम्यमुभयोः समं दिशोर्जायते यदिह चाषपिच्छवत् ।
एकतस्तु न चकास्ति साध्वपि ध्यामपृष्टमिव बहिणच्छदम् ।।३५७६।। - तओ तस्स पेम्म-परिक्खण-पुव्वं आणयणत्थं पेसिस्सइ चित्तमायं नाम खेयरं । सो वि चंदकंताए पडिच्छंदयं घेत्तूण गमिस्सइ रयणावईए नयरीए । दंसिस्सइ देवसेणस्स पडिच्छंदयं । सो वि तं दहूण विम्हियमणो भणिस्सइ इमं- भद्द ! अच्चब्भूयं रूवमेयं कीए संतियं ? ति ।
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सुमइनाह-चरियं
५१३ . चित्तमाओ भणिस्सइ- मायंगीए । वियक्तिऊण भणिस्सइ देवसेणो
नूणं कावि विसुद्ध-वंस-पभवा पंकेरुहच्छी इमा ?, मायंगि त्ति कहेसि जं पुण तुमं मायं ति मन्ने मि तं । मायंगी जइ होज्ज ता मह कहं एसा पमोयं मणे ?, उल्लासेइ जओ हरेइ हिययं हंसस्स किं वायसी ? ||३५७७।।
एवं सोऊण मुणिय-देवसेण-चित्तो चित्तमाओ विउव्विय-तालतरुदीहदेहो देवसेणं उक्खिविस्सइ, नइस्सइ मणिकुंडल-नयरे । तओ खेयरिंदो गरुय-रिद्धीए चंदकंताए करग्गहणं कारविस्सइ महासकारेण । कित्तियं पि कालं धरिऊण, गुरुयण-दंसणूसुयं सुयाए चंदकंताए समं विमाणारूढं नियपुरीए पराणिस्सइ ।
तीए सह देवसेणो विसय-सुहं सेविही विहिय-नेहो । अह सग्ग-गए जणए रज्जं परिपालिही सुइरं ||३५७८|| पिउ-पेसिएहिं वर-गंध-कुसुम-पमुहेहिं चंदकंताए ।
भोगो होही समए कुल-कप्पतरु ति तुह पुत्तो ||३५७१।। कयाइ किं कर-खयर-पमाय-दोस ओ अहिणव-भो गंगाणं कुसुमाईणं असंपत्तीए वासिएहिं पि तेहिं चंदकंता करिस्सइ सिंगारं । सो य अच्चंत-मणहरो न भविस्सइ । तओ सहीजणो परिहासं विहिस्सइ जहा-देवि ! न वल्लहा तुमं पिउणो जमेवं भोगंगाण परिहाणी । चंदकंता वि तक्खणेण वेरग्गं वच्चिहीही पिया वि मे मंद-नेहो जाओ ।
जत्थ सिणेहाभावं नियय-अवच्चेसु वच्चइ पिया वि । निय-कज्ज-नेहलाणं का गणणा तत्थ सेसाणं ? ॥३५८०।।
एवं भव-विरत्त-चित्तं चंदकंतं पेच्छिऊण राया वि विसय-विमुहो होही । एत्थंतरे विउलजसो तत्थ तित्थयरो समागमिस्सइ । तओ पुत्तं रज्जे ठविऊण देवसेणो देवी-सहिओ तस्संतीए वयं गेण्हिस्सइ ।
कय-तिव्व-तवच्चरणो वेयावच्चम्मि निच्चमुज्जुत्तो । सो देवसेण-समणो अजिस्सइ चक्विणो भोए ||३५८१।। सो जीवियावसाणे पाविस्सइ बंभलोय-इंदत्तं । देवी वि चंदकंता होही सामाणिओ तस्स ।।३५८२।।
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५०४
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं भोत्तूण तत्थ अक्खंड-सोक्खमाउक्खए तओ चविउं । धाईसंडे पुग्विल्ल-मंदरासन्न-विजयम्मेि ||३५८३।। अमरावईपुरीए सिरिसेण-निवस्स सुजस-भज्जाए । गय-वसहाइ-चउद्दस-सुविणय-पायडिय-चक्विपओ ||३५८४।। सो देवसेण-देवो पियंकरो नाम नंदणो होही । देवी-जीवो पुण सुमइ-मंति-पुत्तो य पियमित्तो ||३५८५।। पुव्व-भवब्भासवसेण ताण होही परोप्परं पीई । अह सिरिसेणो दहुं जरा-वियारं निय-सरि ||३५८६।। चिंतिस्सइ जस्स कए विवेय-वियलेहिं कीरए पावं | तं पि अधुवं सरीरं तम्हा धम्मो धुवो सरणं ||३५८७।। तत्तो रज्जे ठविउं पियंकरं गेण्हिही सयं दिक्खं । कय-तिव्व-तवच्चरणो लहिही कालेण निव्वाणं ॥३५८८।। होही कमेण चक्की पियंकरो विजिय-विजय-छक्खंडो । पियमित्तो मंति-सुओ इमरस मंतित्तणं काही ॥३५८१।। सेणावइ गाहावइ पुरोहिय गय तुरय वडइ इत्थी ।
चक्वं छत्तं चम्मं मणिकागिणि खग्ग दंडो य ||३५१०।।
पुग्विल्लाणं सत्तण्हं पंचिदियाणं पच्छिमाणं सत्तण्हं एगिंदियाणं रयणाणं
नेसप्प पंडुए पिंगले य सव्व-रयणे य महापउमे । काले य महाकाले माणवग महानिही संखे ।।३५११|| इमाणं नवण्हं निहीणं, सोलसण्हं अंगरक्ख-सहस्साणं, बत्तीसाए मउडबद्ध-रायसहस्साणं, बत्तीसाए रायकला-सहस्साणं, बत्तीसाए जणवयधूया-सहस्साणं, बत्तीसाए नाडय-सहस्साणं, तिण्हं तेसहाणं सूवयार-सयाणं, अहारसण्हं से णिप्पसेणीणं, पत्तेयं चउरासीए करितुरय-रह-लक्खाणं, छन्नवईए पायक-कोडीणं, बत्तीसाए जणवयसहस्साणं, नवनवईए दोणमुह-सहस्साणं, अडयालीसाए पट्टणसहस्साणं, चउवीसाए कवड्ड-सहस्साणं, चउवीसाए मडंब-सहस्साणं, चउवीसाए आगर-सहस्साणं, सोलसण्हं खेड-सहस्साणं, चउद्दसण्हं संवाह-सहस्साणं, छन्नवईए गाम-कोडीणं, छप्पन्नाए अंतरोदगाणं,
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सुमइनाह-चरियं
५०५ एगूणपन्नासाए कुरूज्जाणं च । सामी चिरं चक्कवट्टि-भोए भुंजिस्सइ पियंकरो ।
अन्नया तित्थयर-पउत्ति-निउत्त-पुरिसा विनविस्संति तं-देव ! कुसुमसारुज्जाणे सयल-सुरासुरिंदविंद-वंदिज्जमाण-चलणारविंदो सिवंकरो अरहा समोसढो । तेसिं तोसभर-निब्भरो चक्की अद्ध-तेरसकोडीओ तुहिदाणं दाऊण सपरिवारो जिणिंद-वंदणत्थं वच्चिही ।
नमिऊण तित्थनाहं पुरो निसनो य पुच्छिही चक्की । चक्वित्तं कह पत्तं कहं च मे वल्लहो मंती ? ||३५१२|| तो जिणवरो कहिस्सइ तुमए कीरीजुएण कारण । विहिया जिणिंद-पूया इच्चाई पुव्वभव-चरियं ||३५१३|| किञ्च, पुव्वं पुल-दुमो दुवेहिं वविओ तुब्भेहिं काऊण जं, पूयं तित्थयरस्स चूय-कुसुमुक्केरेण कीरत्तणे । तरसेमं कुसुमं नरामर-सुहं चक्वित्त-मंतिस्सिरी, पजलंतं लहिउं लहिस्सह धुवं निव्वाण-सुखं फलं ||३५१४।। तयणु जिण-समीवे चक्कवट्टी खणेणं, विसयसुह-विरत्तो पुत्त-निविखत्त-रज्जो । सह निय-सचिवेणं गिहिउं साह-दिक्खं, गलिय-सयल-पावो पाविही मोक्ख-सोक्खं ||३५१५।। इय भूय-भाव-चरियं निययं निहिकुंडलो सह पियाए । सोऊण विसय-विमुहो निय-सुय-संठविय-रज्जभरो ||३५१६|| सुमइ-जिण-चलण-मूले गिण्हइ दिक्खं भवुक्खणण-दक्खं । कय-तिव्व-तवो समए मरिउं सोहम्ममणुपत्तो ||३५१७।। तत्तो साकेयाओ पुराओ अन्नत्थ विहरिओ भयवं । तियस-कय-कणय-कमलेसु नवसु संठविय-कम-कमलो ||३५१८।। सव्वत्तो पसरिय-गुरु-कसाय-दावानलेण डज्झतं । भुवणं वणं व निव्वइ-वयण-धाराहि मेहो व्व ॥३५११|| एगेण दाहिणेणं करेण वरदो परेण सत्तिधरो । वामेण गाणगेयं पासं अवरेण वहमाणो ||३६००।।
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५०६
सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
तुंबरू नामा जक्खो धवलंगो गरुडवाहणो निच्चं । कुणइ सिरि-सुमइ - तित्थंकरस्स तित्थम्मि सन्निज्झं || ३६०१ ||
वरदा एगेण करेण दाहिणेण परेण पासधरा । वज्जउरंकुस - कलिएहिं वाम- हत्थेहिं रेहंती || ३६०२ || नामेण महाकाली कमल- निसन्ना सुवन्नवन्न-तणू । सासणदेवी सिरि- - सुमइ-नाह - तित्थम्मि संजाया || ३६०३ ॥ विहरंतरस भयवओ वीस-सहस्साहियाई साहूण । मोक्खपय-बद्ध - लक्खाइं तिन्नि लक्खाई जायाई || ३६०४।। सीलवईणं मत्थय मणीण समणीण मोहसमणाणं । जायाइ पंचलक्खा तीस-सहरसेहिं संजुत्ता || ३६०५ || केवलनाणीण गुणोह - रयण-खाणीण महुरवाणीणं । जणिय - जण - पावहाणीण हुंति तेरस - सहस्साई || ३६०६|| मणपज्जवनाणीणं चारित्तनरिंद- रायहाणीणं ।
जायाइं दस - सहस्साइं अद्ध-पंचम - सयाई च ॥३६०७।। एक्कारस-सहस्साइं पुन्निक्कनिहीण ओहिनाणीणं । चउसयजुया चउद्दसपुव्वीण दुवे तह सहस्सा || ३६०८ || वेव्विलीणं विलसंत-महंत - पसमरिद्धीणं । वरबुद्धीणं चउसय सहिया अद्वारस-सहस्सा || ३६०१ || परवाइ - पराजय- जाय-जयपसिद्धीण वायलद्धीणं । पंचास - अहिय- चउसय सहियाइं दस सहरसाई ॥३६१०।। एक्कासीई - सहस्साहियाइं लक्खाइं सावयाण दुवे | पंचेव य लक्खा सावियाण सोलस - सहस्सजुया ||३६११|| केवलनाणुप्पत्तीए पुव्वलक्खं दुवालसं गूणं । वीसाए वरिसेहिं य रहियं विहरइ पहू भुवणे || ३६१२|| निव्वाण-गमण - समयं निययं नाऊण सुमइ तित्थयरो | निय - परिवार समेओ सम्मेय- गिरिम्मि संपत्तो || ३६१३ ।। जो पवणाहय - बहु-विडविविडव - निवडंत - कुसुम - नियरेण । सोहइ पहुणो भत्तीए पाय-प्यं व विरयंतो || ३६१४||
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५०७
सुमइनाह-चरियं
रयणमय-सिहर-दूरुच्छलंत-निज्झारण-नीर-पूरेण । हरिसेण सहइ सामिस्स मज्जणं काउकामो व्व ||३६१५।। वर-पउमराय-फलिहिं दनील-किरणेहिं रेहइ जिणस्स । घुसिण-सिरिखंडमय-मयविलेवणं विरयमाणो व्व ||३६१६।। रवि-किरणाहय-रविमणि-समुत्थ-जलणेण डज्झमाणेहिं । कप्पूरागरु-दारुहिं धूवमुग्गाहयंतो व्व ||३६१७।। पवणुव्वेल्लिर-पल्लव-करेहिं नहें पयासयंतो व्व । गायंतओ व्व कुसुमावसत्त-भसलावलि-रवेण ॥३६१८।। तं सम्मेय-महीहरमारूढो जिणवरो तओ तत्थ । सुर-जोइसियासुर-वंतरेहिं विहियं समोसरणं ॥३६११।। तत्थ निसनो सिंहासणम्मि सूरो व्व उदय-सेलम्मि । वयण-किरणेहिं पयडइ भावाणं अवितहं एवं ॥३६२०।। तथाहिस्वाम्यं स्वप्नसमं समागम-सुखं सन्ध्याभलेखा-मुखम्, तारुण्यं करि-कर्ण-ताल-तरलं लक्ष्मी तडिद्धंगुरीम् । आयुर्वायुचलं बलं कुसलता-लग्नाम्बु-बिन्दूपमम्, मत्वा विश्वमशाश्वतं वितनुत क्षेमाय धर्मोद्यमम् ||३६२१|| इय धम्मदेसणामयरसेण संपीणिऊण भविय-गणं । आरुहइ पहू तुंगं सिगं सम्मेय-सेलस्स ||३६२२|| तत्थ पसत्थ-सिलाए समं सहस्सेण केवलि-मुणीणं । पउमासणोवविहो सुमइ-जिणो अणसणं कुणइ ||३६२३।। अह बत्तीस सुरिंदा सामाणिय-पमुह-देव-परियरिया । निय-तणू-पहा-पयासिय-गयणयला तत्थ संपत्ता ||३६२४|| सह अच्छराहिं वंदंति सामिणं संथुणंति गायति । नच्चंति पुरो बहुमाण-निब्भरा पज्जुवासंति ||३६२५।। इंतेहिं नियत्तेहिं देव-देवी-गणेहिं संछन्नं । सम्मेय-सेल-सग्गंतरालमुव्वहइ सग्ग-सिरिं ||३६२६।। मासंते ज्झायंतो सुक्वज्झाणस्स चरम-भेयमिमो । लहु-पंचक्खर-भणणप्पमाण-सेले सिमारूढो ।।३६२७।।
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५०८
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं चित्तस्स सुद्ध-नवमीए रयणिनाहे पुणव्वसु-गयम्मि । लढूण नाण-दंसण-सुह-विरिय-चउक्वयमणंतं ।।३६२८।। निहविय-भवोवग्गाहिय-कम्म-वेयणिय-नाम-गोत्ताऊ । सह साहु-सहस्सेणं सुमइ-जिणिंदो सिवं पत्तो ||३६२१।। सिद्धिगइ-नामधेयं सिद्धंतधरेहिं जं समक्खायं । हिमहार-धवल-वन्नं उत्ताणिय-छत्त-संठाणं ॥३६३०।। पणयालीसा जोयण-लक्ख-पमाणं च जं विणिद्दिडं । जं अह-जोयणाई बाहल्लं वहइ मज्झम्मि ||३६३१|| कमसो हायंते तम्मि मच्छिया-पत्त-तणुयरं अंते । जम्म-जरा-रोग-विओग-सोग-मरणेहिं रहियं जं ||३६३२।। जं कोह-माण-माया-लोहुब्भव-दुक्खलक्ख-परिचत्तं । ईसा-विसाय-भय-मयण-मोह-रइ-अरइ-परिहरियं ||३६३३|| निद्दा-खुहा-पिवासा-विसयासाणिहजोग-मुक्वं जं । तस्संतिम-अहम-जोयणस्स पज्जंत-कोसो जो ॥३६३४|| तस्स वि छठे भागे भणियमवहाणमखिल-सिद्धाणं । जेसिं न इंदियाइं न इंदियत्था न य सरीरं ।।३६३५।। भवतणु-तिभागहीणावगाहणो नाणदंसण-सरुवो । तेसिं मज्झे भयवं जाओ जीवप्पएस-घणो ||३६३६।। तत्तो निव्वाणगयं मुणिऊण जिणेसरं सुमइनाहं | बत्तीसा वि सुरिंदा समनिया देवदेवीहिं ॥३६३७।। हिययब्भंतर-पसरिय-सोयानल-डज्झमाण-सव्वंगा । मिल्लंति अद्ध-कहं व बाह-संदोह-नीसंदं ||३६३८।। वेउन्विय-बाह-जलप्पवाह-संसित्त-सयल-महिवलया । गख्य-सरेण रूयंता सद्देक्कमयं कुणंति जयं ।।३६३१।। तहा एत्तिय-कालं ति-जयं आसि सणाहं तुमम्मि विहरंते । संपइ सिवपय-पत्ते नाह अणाहं इमं जायं ||३६४०।। तइं तइलोक्व-पईवे निव्वाण-गयम्मि नाह भविय-गणो । कह मोह-तमोह-घणे संचरिही मोक्ख-मग्गम्मि ? ||३६४१||
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सुमइनाह - चरियं
तइं अत्थमिए सूरे व्व केवलालीय-पयडिय-पयत्थे । मोहंधयार - रुद्धं तिहुयणमेयं कहं होही ? || ३६४२ || भीम-भवाडवि-मज्झे कसाय-तक्करगणेण अम्हाणं । लूडिज्जंताण तुमं मुत्तुं को रक्खणं काही ? || ३६४३ || उद्धरणखमो वि तुमं भुवणं भव - कूव - निवडियं मत्तुं । जं पत्तो मोक्खे तुह तं किं जुत्तं दयानिहिणो ? || ३६४४ || मोह- नरिंद-निरुद्धे कुवासणा-लोहसंकला - बद्धे । भवचारयाउ तुममंतरेण को कड्डिही अम्हे ? || ३६४७ || नाह ! तुमं कप्पतरू संसार - मरुत्थलम्मि जाओ वि । संपइ गओ सि कत्थ वि अहह अहन्ना इमे अम्हे || ३६४६ ॥ निस्संख- दुक्खलहरी - भीमे भवसायरम्मि बुडुंतं ।
जं छड्डिऊण भुवणं पत्तो सि सिवं न तं जुत्तं ||३६४७|| एवं चउव्विह सुरा खयरा मणुया य सह निय-पियाहिं । सिरि सुमइनाह - विरहे विलवंति महंत सोएण ॥ ३६४८||
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५०१
मोक्खपयं संपत्ते पहुम्मि धम्मोवएसमलहंते ।
विलवइ सव्वो वि जणो निय-कज्जं वल्लहं जेण || ३६४९|| तत्तो सुरेसरेहिं खीरोयप्पमुह-नीरपूरेण ।
घण- घुसिण-गंध-मीसेण सामिणो देहमहिसित्तं || ३६५०|| मयणाहि -सणाहेणं लित्तं हरियंदणेण सव्वत्तो । सोरब्भ-गुण-निवासेहिं वासियं पवर- वासेहि || ३६५१|| धूवेहिं धूवियं देवदारु- कप्पूर - अगुरु- पमुहेहिं । संछाइयं अदूसेण सव्वओ देवदूसेण ॥ ३६५२ || मंदार पारियाय-संताणय-पमुह-कुसुममालाहिं । संपूईऊण ठवियं देवच्छंदम्मि रयणमए || ३६५३ || तं उक्खिविउं इंदा किंकरसुर-पहय-तूर- संद्देण । गोसीस - चंदणागुरु- निचियाए चियाए ठावंत || ३६७४ || एवं असेस किच्चं काउं सामाणिएहिं देवेहिं । चियगासु ठावियाई सेस जईणं सरीराई || ३६५५||
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५१०
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं तो अग्गिकुमारेहिं सुहेण जलणो चियासु पक्खित्तो । पज्जालियाओ एयाओ वाउणा वाउकुमरेहिं ॥३६५६।। अह सुमइनाह-देहस्स मंस-रुहिरम्मि झामिए मुत्तुं । मेहकुमारेहिं जलं सुरेहिं विज्झाविया चियगा ||३६५७।। तत्तो गिण्हइ पहुणो उवरिल्लं दाहिणं हणुं सक्को । चमरिंदो हेहिल्लं व गिण्हए दाहिणं हणुगं ||३६५८।। वामं ईसाणिंदो उवरिल्लं हिहिमं बली लेइ । सेसहवीस-दंते कमेण गिण्हंति सेसिंदा ||३६५ ।। सेसऽहियाणि देवा रक्खं पुण खेयरा नरा लिंति । अहमहमिगाए उवसग्ग-वग्ग-निग्घायण-निमित्तं ।।३६६०।। माणवग-खंभ गयदंत-निहिय-सक्वय-समुग्गयगणेसु । वयरमएसु सुरिंदा ठवंति जत्तेण सकहाओ ||३६६१।। पूयंति ताओ निच्चं जइ तेसिं कोइ परिभवं कुज्जा । तो तन्हवण-जलेणं कुणंति ते अप्पणो रक्खं ।।३६६२।। लोए वि कप्परुक्खो संकप्पियमप्पए वणसई वि । चिंतारयणं उवलो वि वियरए चिंतियं वत्थु ।।३६६३।। संजणइ तक्खणेणं कामियमत्थं पसू वि कामदुहा । ददुर-सप्पाइ-मणी अहि-सरूवो वि हणइ विसं ॥३६६४।। तणरुवाओ वि हु ओसहीओ साहेति हत्थबद्धाओ । जरहरण-वसीयरण-प्पमुहाई महंत-कज्जाइं ॥३६६७।। इय जइ वि चेयणाण वि विसिह-गुण-लेस-वज्जियाणं पि । साइसय-कज्ज-करणप्पवण विप्फुरइ माहप्पं ॥३६६६|| ता केवलनाणधराण जइ जिणिंदाण तव-समिद्धाण । देहावयवा साहंति वंछियं तत्थ किं चोज्जं ? ||३६६७।। पहु-सक्वारहाणे तियसा थूभं कुणंति रयणमयं । रयणमयं पहु-पडिमं तदुवरि ठविऊण पुज्जति ||३६६८।। उक्वीरइ मोक्ख-सिलायलम्मि नामं च लक्खणाइं च । वज्जेणावज्जहरस्स वज्जपाणी-जिणिंदस्स ||३६६।।
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सुमइनाह-चरियं
तत्तो य जंति नंदीसरम्मि दीवे सुरासुरा सव्वे | सासय-जिणभवणेसुं कुणंति अढ़ाहिया-महिमं ॥३६७।। अह चित्तम्मि धरंता टंकुक्किन्नं व सुमइ-जिणनाहं । निय-निय-परिवारजुया निय-निय-ठाणेसु वच्चंति ||३६७१।। कुमरते दसलक्खा पुव्वाणं सुमइ-सामिणा गमिया । एगूणतीस लक्खा रज्जम्मि दुवालसंगजुया ||३६७२|| एगं च पुव्वलक्खं कयं चरित्तं दुवालसंगूणं । चालीस पुव्वलक्खा सव्वाओ भयवओ एवं ॥३६७३।। अभिनंदण-निव्वाणाउ सुमइनाहस्स निव्वुई जाया । इह सागरोवमाणं गएसु नवकोडि-लक्खेसु ॥३६७४|| अह सामि-विरह-विहुरिय-चित्तस्स चउन्विहस्स संघस्स । चमरो पढम-गणहरो एवं अणुसासणं कुणइ ॥३६७५।। कम्म-नियलाई छित्तूण भीम-भव-चारयाओ निक्खंतो । संपत्तो जत्थ पहू सासयमाणंदमय-सोक्खं ॥३६७६।। तम्मि पहु-परम-पय-गमण-वासरे गख्य-मंगलप्पसरे । पडिहय-सोयावसरे किं न पमोयं मणे कुणह ||३६७७।। तत्तो पुच्छइ संघो- परम-पए केरिसं सुहं भयवं ? | चमरो पयंपए- सुणह इत्थ अत्थम्मि दिहतो ||३६७८।। को वि नरिंदो निय-पट्टणाओ विवरीय-सिक्ख-तुरएण । . अडवीए पक्खित्तो खुहा-तिसा-पीडिओ संतो ||३६७१।। पायव-तलम्मि पडिओ केणावि पुलिंदएण करुणाए । विहिओ पउणसरीरो वर-सलिल-फलप्पयाणेण ॥३६८०।। मिलियम्मि नियय-सेल्ने नेइ कयन्नु त्ति तं निवो नयरे । ठावइ मणिपासाए परिहावइ पट्टवत्थाई ॥३६८१।। वर-मोयग-पमुहेहिं दिव्वाहारेहिं पीणइ पुलिंदं ।। तह वि न सो लहइ रई निय-जम्मसुवं सुमरमाणो ||३६८२।। मुणिऊण इमं रन्ना विसज्जिओ सो नियं गओ अडविं । मिलिओ सयणाण इमेहिं पुच्छिओ- कत्थ पत्तो सि ?' ||३६८३।।
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૧૨
सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं सो कहइ-'नरवरेणं नयरे नीओ म्हि' ते पयंपंति-| 'केरिसयं तं नयरं ?' सो बुल्लइ-'पल्लितुल्लं ति' ||३६८४|| ते बिति-'कत्थ वसिओ ?' सो जंपइ-'मणिमयम्मि पासाए ।' ते बिंति-'केरिसो सो ?'सो जंपइ-'उडव-सारिच्छो' ||३६८५।। ते बिति-'किं परिहियं तुमए ?'सो भणइ-'पट्टवत्थाई' । ते बिंति-'केरिसाइं ?' सो जंपइ ।-'वक्वल-समाई' ||३६८६।। ते बिति-'किं चि भुत्तं ?'सो जंपइ-'मोयगा' भणंति इमे'ते केरिसा ?'पुलिंदो जंपइ-'परिपक्व-बिल्ल-समा' ||३६८७।। इय अडवि-पसिद्धेहिं दिहतेहिं अदिह-नयराणं । अह सो सयणाण पुरो नयर-सरूवं परुवेइ ॥३६८८।। तह अमुणिय-सिद्ध-सुहाण सिद्धि-सुक्खं पि अणुवमत्तेण । वुत्तुमसक्वं पि कहेमि किंपि जयपयड-नाएण ||३६८५।। सयलाऽऽहि-वाहि-रहिओ महुराहारेहिं पीणिय-ससरीरो । तरुणो कलासु कुसलो वियड-मित्तेहिं परियरिओ ||३६१०।। सुणमाणो संपीणिय-कन्नं किन्नर-कयं सरस-गेयं । पेच्छंतो बहुविह-हावभाव-रम्मं रमणि-नटें ||३६११|| कुसुम-मयणाहि-घणसार-चंदणामोय-मोइयप्पाणो । कप्पूर-पारिपरिगय-पगिह-तंबोल-सुरहि-सुहो ||३६१२|| पटुंसुय-पच्छाईय-महल्ल-पल्लंक-हंसतूलि-गओ । पेसलए सन्निहिय-कार्मिणी-विहिय-चडुकम्मे ||३६१३|| इय अणुकूले विसए सेवंतो जं सुहं जणो लहइ । तं एक्व-सिद्ध-सुक्खस्स होइ नाणंतभागो वि ||३६१४।। भणियं चजं च कामसुहं लोए जं च दिव्वं महासुहं । वीयराय-सुहस्सेहाणंतभागे न अग्घई ||३६१५।। एवं निम्मिय-निक्कलंक-भुवणालोयम्मि अत्थंगए, सव्वनुम्मि दिणेसरे व्व चमरो चारित्त-चूडामणी । तत्तेयं लहिऊण मोक्ख-पयवी पज्जोयणो पच्चलो, लोए मोह-महंधयार-नियरं दीवो व्व विद्धंसए |॥३६१६।।
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५1३
कत्थाहं जड - बुद्धि धाम चरियं ? सव्वन्नुणो कत्थ वा ?, नाऊणं पि इमं इमं विरईयं हासावहं जं मए ।
तं एयरस पभावओ च्चिय जणे सोहं परं पाविही,
लढुं सिप्पउडं न किं जललबो मुत्ताहलं जायए ? || ३६९७|| एवं पंचम - तित्थनाह-चरियं संवेय-संजीवणं, संसारण्णव- लंघण-प्पवहणं कल्लाण-वल्ली -घणं । जो वक्खाणइ जो सुणेइ तह जो वाएइ जो ज्झायए, भुत्तूणं मणुयामरे सुरसुहं सिद्धिं पि सो पावए || ३६१८|| * * *
सुमइनाह- चारय
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चन्द्रार्कौ गुरुवृद्धगच्छनभसः कर्णावतंसौ क्षिते
धुर्यौ धर्मरथस्य सर्वजगतस्तत्त्वावलोके दृशौ । निर्वाणावसथस्य तोरणमहास्तम्भावभूतामुभा
वेकः श्रीमुनिचन्द्रसूरिरपरः श्रीमानदेवप्रभुः || ३६९९|| शिष्यस्तयोरजितदेव इति प्रसिद्धः
सूरिः समस्तगुणरत्ननिधिर्बभूव । प्रीति यदम्रिकमले मुनिभृङ्गराजि
रास्वादितश्रुतरसा तरसा बबन्ध || ३७०० | श्रीदेवसूरिप्रमुखा बभूवुरन्येऽपि तत्पादपयोजहंसाः । येषामबाधारचितस्थितीनां नालीकमैत्रीमुदमाततान ||३७०१ ||
विशारदशिरोमणेरजितदेवसूरिप्रभो
विनेयतिलकोऽभवद्विजयसिंहसूरिर्गुरुः ।
व्यभेदि न कदाचन स्मरशरैर्यदीयं मनः ॥३७०२॥
जगत्त्रयविजेतृभिर्विमलशीलवर्मावृतं
गुस्तस्य पदाम्भोजप्रसादान्मन्दधीरपि । श्रीमान्सोमप्रभाचार्यश्चचरित्रं सुमतेर्व्यधात् ॥ ३७०३|| प्राग्वाटयन्वयसागरेन्दुरसमप्रज्ञः कृतज्ञः क्षमी
वाग्मी सूक्तिसुधानिधानमजनि श्रीपालनामा पुमान् । यं लोकोत्तरकाव्यरञ्जितमतिः साहित्यविद्यारतिः श्रीसिद्धाधिपतिः कवीन्द्र-तिलकं भ्रातेति च व्याहरत् ||३७०४ ||
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१४
सारसोमप्पहार - विरइय सूनुस्तस्य कुमारपालनृपतिप्रीतेः पदं धीमता -
मुत्तंसः कविचक्रमस्तकमणिः श्री सिद्धपालोऽभवत् । यं व्यालोक्य परोपकारकरुणासौजन्यसत्यक्षमा--
दाक्षिण्यैः कलितं कलौ कृतयुगारम्भो जनो मन्यते ॥३७०५।। तस्य पौषधशालायां पुरेऽणहिलपाटके । निष्प्रत्युहमिदं प्रोक्तं पदार्थान्त (?)......... ॥३७०६।। अनाभोगात्किञ्जित्किमपि मतिवैकल्यवशतः
किमत्यौत्सुक्येन स्मृतिविरहदोषेण किमपि । मयोत्सूत्रं शास्त्रे यदिह किमपि प्रोक्तमखिलं
क्षमन्तां धीमन्तस्तदसमदयापूर्णहृदयाः ॥३७०७।।
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