SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समय के गूर्जरनरेश कुमारपाल आदि भी उनका बहुमान करते थे। उन्होंने अपनी विशिष्ट कविप्रतिभासे कई संस्कृत, प्राकृत ग्रंथों की रचना की थी। वे भगवान महावीर से चलनेवाली अपने गच्छ की पट्टपरंपरा के ४३वें पट्टधर आचार्य थे। उनके बाद उनकी पट्ट-परंपरा में ४४ वें पट्टधर आचार्य जगच्चन्द्रसूरि हुए, जिन्हें प्रकृष्ट तपश्चर्या के कारण उदयपुर के राणा ने 'तपा' बिरुद दिया था। उन्हीं के समय से बृहद्गच्छ 'तपगच्छ' नाम से प्रसिद्ध हुआ। सोमप्रभसूरिकी कृतियाँ - __सोमप्रभसूरि की पाँच रचनाएँ - (१)सुमतिनाथ चरित्र (२) सूक्ति-मुक्तावली, (३) शतार्थ काव्य, (४) शृंगारवैराग्यतरंगिणी, (५) कुमारपालप्रतिबोध मिलती हैं। सोमप्रभसूरिकी पाँच प्राप्त रचनाओं में सुमतिनाथचरित प्रथम रचना है और संभवतः वह कुमारपाल के शासनकाल में रची गई थी। अंतिम रचना कुमारपालप्रतिबोध वि. सं. १२४१(ई. स. ११८५)में लिखी गई होने का उल्लेख खुद कर्ताने किया है। अन्य रचनाएँ इन दो रचनाओं के मध्य में रची गई थी। इनमें क्रमशः सूक्तिमुक्तावली, शतार्थकाव्य तथा शृंगारवैराग्यतरंगिणी का समावेश होता है। सुमतिनाथचरित्र का विस्तृत परिचय देने से पूर्व दूसरी रचनाओं का साधारण परिचय दिया जा रहा है। (२) सूक्तिमुक्तावली १०० संस्कृत श्लोक प्रमाण यह रचनाका दूसरा नाम 'सिंदूरप्रकर' है। भर्तृहरि के वैराग्यशतक की शैली से रची गई इस कृति में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शील, सौजन्य, क्षमा, त्याग, वैराग्य आदि के बोधक सरल एवं सरस सुभाषितों का संग्रह है। हृदयहारि कोमल पदावली के कारण जैन एवं जैनेतरों में भी यह सूक्तिसंग्रह ने स्थान बनाया था। कर्ता सोमप्रभ की सौ पद्योंकी कृति होने के कारण इसका ‘सोमशतक' नाम भी प्रचलित था। 'सिन्दूरप्रकर' शब्द से प्रारंभ होने के कारण इसका 'सिन्दूरप्रकर' नाम अधिक प्रसिद्ध हुआ। (३) शतार्थ-काव्य - शतार्थ काव्य आचार्य की तृतीय कृति है । इस चमत्कृतिपूर्ण रचना में एक सौ अर्थ जिसमें निहित हैं ऐसे एक श्लोक की रचना करके उस पर आचार्य ने अपनी टीका लिखी है । श्लोक इस प्रकार है१. कुमारपाल-प्रतिबोध- संपा. आ. जिनविजयजी, प्रस्तावना । २. अनेकार्थ-साहित्य-संग्रह, प्राचीन साहित्योद्धार ग्रंथावली, पुष्प-२, अहमदाबाद से प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy