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कल्याणसारसवितानहरेक्षमोह कान्तारवारणसमानजयाद्यदेव । धर्मार्थकामदमहोदयवीरधीर सोमप्रभावपरमागमसिद्धसूरे ।।
वसंततिलका छंद में रचे गये इस एक श्लोक की टीका में उन्होंने उस एक पद्य के १०६ विभिन्न अर्थ निकाल के दिखलाये हैं, जिनमें २४ तीर्थंकर, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीन हिन्दु देव तथा चौलुक्यनृप जयसिंह, कुमारपाल, अजयपाल आदि परक अर्थ शामिल हैं। शतार्थ काव्य की रचना के कारण सोमप्रभ का 'शतार्थिक' उपनाम भी हो गया था । ( ४ ) शृंगारवैराग्यतरंगिणी -
इसमें विविध छंदों के ४६ पद्यों में नैतिक उपदेशोंका संकलन है । इसमें कामशास्त्रानुसार स्त्रियों के हाव-भाव व लीलाओं का वर्णन कर उनसे सतर्क रहने का उपदेश दिया गया है । इस पर आगरा के पं. नन्दलाल ने संस्कृत टीका लिखी है । (५) कुमारवालपडिबोह -
कुमारपालप्रतिबोध-इसे जिनधर्मप्रतिबोध और हेमकुमारचरित भी कहते हैं। इसमें पाँच प्रस्ताव हैं। यह प्रधानतः प्राकृत में लिखी गद्य-पद्यमयी रचना है। पाँचवाँ प्रस्ताव अपभ्रंश तथा संस्कृत में है। इसमें ५४ कहानियों का संग्रह है । ग्रंथकारने दिखलाया है कि इन कहानियों के द्वारा हेमचन्द्रसूरि ने कुमारपाल को जैनधर्म के सिद्धान्त और नियम समझाये थे । इसकी अधिकांश कहानियाँ प्राचीन जैन शास्त्रों से ली गइ हैं। इसमें श्रावक के १२ व्रतों का महत्त्व सूचित करने के लिए तथा पाँचपाँच अतिचारों के दुष्परिणामों को सूचित करने के लिए कहानियाँ दी गई हैं। अहिंसाव्रत के महत्त्व के लिए अमरसिंह, दामनक आदि, देवपूजा का माहात्म्य बताने के लिए देवपाल-पद्मोत्तर आदि, सुपात्रदान के लिए चन्दनबाला-मृगावती आदि, द्युतक्रीडा का दोष दिखलाने के लिए नल, परस्त्री-सेवन का दोष बतलाने के लिए द्वारिकादहन तथा यादवकथा आदि कथाएँ दी गई हैं। अन्तमें विक्रमादित्य, स्थूलभद्र, दशार्णभद्र की कथाएँ भी दी गई हैं । अपने समय में प्रचलित कई लोककथाओं का भी कर्ताने कुशलतापूर्वक धर्मबोध के लिए विनियोग किया है।
१. “सोमप्रभोमुनिपतिविदितः शतार्थी" । -मुनिसुंदरसूरिकृतगुर्वावली,
"ततः शतार्थिकः ख्यातः श्रीसोमप्रभसूरिराट् ।" -गुणरत्नसूरिकृत क्रियारत्नसमुच्चय । २. निर्णयसागर प्रेस, मुंबई, ई.स. १९४२ । ३. श्री सोमप्रभाचार्य - विरचितः कुमारपालप्रतिबोधः - संपा. मुनि जिनविजय, गायकवाड
ओरिएन्टल सिरीझ, बरोडा, १९२० ।
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