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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं विनाय-दुक्कय-फलो जिणागमाराहणं च्चिय करिस्सं । को मुणिय-विस-विवागो अमयं पाउं न वंछेइ ? ||२६४१।। तो निय-रज्जे ठविओ नरवइणा नंदणो अमरसेणो । विहिणा गहिया दिक्खा ससिप्पहायरिय-पासम्मि ||२६५०।। जयं चरे जयं चिट्टे जयमासे जयं सए । जयं भुजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ।।२६५१।। इय आगमाणुसारेण सव्व-कज्जे जयं पयतो । पढइ गुणेइ सुणेइ य निच्चं चिय आगमं एसो ||२६५२|| नरसुंदर-रायरिसी सुय-पारावार-पारगो जाओ । गुरुणा गुरुगुण-कलिओ त्ति जाणिउं निय-पए ठविओ ॥२६५३|| मिच्छत्त-तिमिर-मंडल-संहरण-परायणो दिणमणि व्व ।
अविरइ-रयणि-विवक्खो पडिबोहइ भविय-कमलाई ॥२६५४|| निप्पाईऊण सीसे वर-सीसं निय-पयम्मि ठविऊण । तुलिऊण य अप्पाणं तुलणाए पंचभेयाए ||२६५५।। जिणकप्पं पडिवन्नो सरीरमत्ते वि निम्ममो भयवं । गामम्मि एगराइ नगरे पुण पंचरायं च |२६५६।। भवणम्मि विहरिऊणं पज्जंते पायवोवगमणेण । कय-काय-परिच्चाओ सव्वहविमाणमणुपत्तो ॥२६५७|| आगममणुसीलंतो वि सीलवंताण उत्तम-जणाणं । संगं न परिहरेज्जा उत्तम-गुण-लाभमिच्छंतो ||२६५८।। उत्तम-जण-संसग्गं मुत्तुं जो अत्तणो महइ कुसलं । मूढो सलिलेण विणा सो वंछइ सस्स-निप्फत्तिं ॥२६५१।। गुणि-संसग्गपरेणं गुण-बहुमाणो धुवं कओ होइ । जेण गुणिणो गुणाण य एगत्तं भासियं समए ॥२६६०।। गुणलाभ-लालसेणं गुणि-संसग्गो सया वि कायव्वो । जं संकमंति लोए संगेण गुणा य अगुणा य ॥२६६१।। जो जारिसेण मित्तिं करेइ अचिरा स तारिसो होइ । कुसुमेहिं सह वसंता तिला वि तग्गंधिणो जाया ||२६६२।।
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