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________________ सुमनाह-चरियं जो कुमर-गुण- कित्तण-वावारेणं दिणाइं न गमेइ । सो नत्थि तम्मि नयरे बालो तरुणी तहा बुड्डी ||२८९९ || खयरर- सुर-सुंदरीओ विक्कम सोहग्ग-चाव - चंगाई | भरियाई चंद-कर-निम्मलाई गायंति कुमरस्स ||२९००|| अह देविलाए जीवो तत्तो उव्वहिऊण नरगाओ । परिभमिओ संसारं दुक्खत्तो हीण जोणीसु || २१०१ || काऊण पुव्व - जम्मे तहाविहं किं पि सुकय-तं - लेसमिमो । जाओ कुमार-धावीए नंदणो जोणगो नाम || २१०२ || सो वि कुमरेण समं पवडिओ जोव्वणम्मि संपत्ती । पुव्व-भवब्भासेणं तम्मि सिणेहो कुमारस्स ||२९०३|| कुमरम्मि पउसो जोणगस्स सो को वि माणसे वसइ । जव्वसओ सो चिंतइ कुमरस्स विणासणोवा ||२१०४ || एत्तो य अपडुदेहा संपन्ना किंचि कुणी देवी । नाउं इमं वइयरं विगप्पियं किंपि समईए || २१०५ || अंसु - जलाविल- नयणी साम-: -मुहो जोणगो विसन्नो व्व । दीहं नीससिऊणं एगंते जंपए कुमरं ||२१०६ || ૪૩ किं कुमर ! करेमि अहं ? कत्थ व वच्चामि मंदभग्गोहं ? । अहह ! अइ-निंदणेज्जं हय-विहिणो विलसियं विसमं ||२१०७ || तो कुमरेणं वुत्तं वयंस ! विहिणा किमेयमवरद्धं ? | कहसु ममावि हु तो जोगणेण वृत्तं - कह कहेमि ? || २१०८|| जं कहिउं पि न तीरइ एयं कहियं पि को व सद्दहिही ? | तो कुमरेण भणियं किमेरिसं जंपसि वयंस ? || २909 || एत्तिय - दिणाई किं कयमसद्दहाणं कयावि तुह वयणे ? | तो जोणगो पयंपइ जइ एवं कुमर ! तो सुणसु ॥२९१०|| अज्ज गिलाण - सरीरा भणिया देवेण कुमुइणी देवी । किं तुह देहम्मि दुहं ? सा जंपइ किंपि न दुहं मे ||२९११|| तत्तो निब्बंधेणं रख्न्ना पुट्ठाइ तीइ परिकहियं । सवण-विसयं पि पत्तो कुमरो दूमेइ मह हिययं ||२११२ || For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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