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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं उप्पन्नो पुत्तत्तेण तो सुहं हरिस-निब्भरा देवी । गब्भं परिवहइ वहति सयल-लोया वि आणंदं ।।२८८६।। अह पडिपुल्ने समए पसत्थ-दियहम्मि पसवए देवी । जाओ तणओ निय-तणु-पहा-पहणिय-भवण-तिमिरो ।।२८८७।। तो वद्धावइ चेडी तुहिदाणं निवेण तं दिल्लं । आसत्तम-वेणीए भुज्जंतं जं न निहाइ ||२८८८।। तो आणत्तो मंती नयरे वद्धावणं करावेहि । गुरु-रिद्धि-पबंधेणं तेणावि करावियं तं पि ||२८८१।। तं जहाकाराहराई सोहावियाई, बंदियाइं सयल मोयावियाई । सव्वत्थ पयट्टिय हसोह, सम्माणिय दाणिण मग्गणोह ||२८१०।। सुव्वंति निरंतर तूर-घोस, नच्चंति तरुणि-जण जणिय-तोस । निव्वत्तिय घरि घरि तोरणाइं, कय निब्भर-रत्था-सोहणाई।।२८११।। पुर-मग्ग सित्त चंदण-जलेण, घण-घसिण-रयण-मय-पेसलेण । पविसंति निरंतर अक्खवत्त, रंजिज्जहि कुंकुमि लोय-गत्त ।।२८१२।। तिय-चच्चर-नच्चिर-वामणयं, मय-घुम्मिर-कंचुइ-हासणयं । गुण-कित्तण-वावड-बंदिगणं, परिपूइय-नायर-वुड्डजणं॥२८१३|| गुरु-देवय-पूयण-पत्तजसं, जण-भुत्त-मणिच्छिय-भोज्जरसं । जिय-लोयह विम्हय-संजणणं, हुयमेरिसयंसुय-जम्म-दिणं ॥२८१४|| एसो नीसेस-गुणे धरइ त्ति गुणधरो त्ति तो नामं । कुमरस्स तस्स समए पइट्ठियं गुरु-विभूईए ||२८१५|| देहेण गुणोहेण य जह जह कुमरो पवट्ठए कमसो । तह तह मणोरहा वि हु वटुंति मणे पिउ-जणस्स ||२८१६|| समए समप्पिओ सो कलोवज्झायस्स सुह-मुहुत्तम्मि । तेण य सव्व-कलाओ गहियाओ थेव-दियहेहिं ।।२८१७|| अह जोव्वणम्मि पत्तस्स तस्स सो अंगचंगिमो जाओ । जेण कओ नरनारी-गणाण चित्ते चमक्कारो ||२८१८||
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