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________________ ८० के वि पुणो पुन्नवसा अवच्च-विरहे वि सुत्थिया हुंति । कूडाभिमाण- नडिओ सुय कज्जे खिज्जए मूढो ||४१३|| सोऊण सव्वमेयं विचिंतियं विजयसेण-राएण || उचियमणं देवीए अवच्च विसयम्मि जं खेओ ||४९४ || जओ सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं - निक्कवड - विक्कमे पुव्व-पुरिस- वंसप्परोह- मूलसमे । वेरि-कुल-कमल-मउलण- चंदे गुण- गण - कयाणंदे ||४९५ ।। पुत्तम्मि समारोविय - रज्जभरा धम्म- मग्ग- पडिवन्ना । इह परभवे य पावंती निव्वुई के वि कयपुन्ना ||४१६|| इमं च दुल्लहं जओ, मम एत्तिय काले वि पउरासु वि पणइणीसु न एक्कस्स वि कुलालंकरणस्स पुत्तस्स संपत्ती जाया । ता अच्छउ सेसं । ४३ एवं चिहिए किं करेमि ? कं समाराहेमि ? कत्थ वच्चामि ? कस्स साहेमि ? को वा उवाओ ? ति खणं किंकायव्वयावमूढ- माणसो होऊण तक्कालमेव अंगीकय-सत्तभावो परिभाविउं पवत्तो— परलोय-पवन्नाणं जइ वि सुएहिं न होइ साहारी । जम्हा मयाण उवरिं गओ वि न गओ दुहं कुणइ ||४९७| " तहवि हु पुव्व - नराहिव-संताणुच्छेय- दुक्खमक्खिवइ । मज्झ मणो पुव्व-नरिंद- रक्खियं खोणि-वलयं व ||४१८ || एत्थंतरे तरणि-मंडलमत्थगिरि-मत्थयत्थमालोईउण समागओ सभवणं राया । अणप्पसुओवाय-वियप्प-कप्पणा - परिगय-मणस्स रन्नो वोलीणा रयणी, जायाइं सिहंडि कारंडव - चउर चक्क - कीर-कुलकोलाहलाउलाई दिसामुहाई, वियलंत - पहापसरो विच्छाईभूओ तारयानियरो, पसरिया सिंदूर- पूर सच्छहा सूर-सारहि पहा, पहयाइं माणिणीमाण - ४" निम्महणसूराइं पहाय मंगलतूराई । समुग्गओ कमेण कमलवणनिद्दलण - पब्बल - पहा-पसरो दिणयरो | 1 Jain Education International ४७ तो उद्विऊण राया रयण-विणिम्मविय-वासभवणाओ । - पाभाइय- किच्चो, पहाण- परियण- परिक्खित्ती ||४११|| अत्थाण - मंडव-तलं गंतूण अणेग- मणिगणाइन्ने । सूरो व्व पुव्व-पव्वय सिहरे सिहासणम्मि ठिओ ||५०० || For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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