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________________ सुमइनाह-चरियं धन्नाओ कयत्थाओ महिलाओ ताओ जीवलोयम्मि | ताणं चेय" सुलद्धं नूणं माणुस्सर्य जम्मं ||४७९ || निय - कुच्छि - पसूयाइं समम्मणुल्लावगाई डिभाई । थण - दुद्ध - लुद्धयाइं लुलंति वच्छत्थले जाण ॥४८०॥ -- कोमलेहिं करेहिं घेत्तूण ताणि धन्नाओ । ठविऊण निय- उच्छंगे चुंबंति मुहं अवच्चाणं ||४८१|| नव-कमल एक्का अहं अहन्ना विलक्खणा निग्गुणा अकयपुन्ना । एगस्स वि नो जीए जायरस पलोइयं वयणं || ४८२|| जओ ३७ लोयम्मि लहइ सोहं पुत्तवई जारिसं कुरुवा वि 1 लक्खंसेण वि कत्तो निरवच्चा तं सुरूवा वि ||४८३ || सोहग्गमुदग्गं रूवमणुवमं सुंदरी य सिंगारो । सुय वज्जियाण सव्वं पि निप्फलं कास - कुसुमं व ||४८४|| विविह-मणि - कणय - भूसण- जुया वि जुवई विणा अवच्चेण | न विराय वल्लिर - पल्लवा वि वल्लि व्व फलहीणा ||४८५|| विसयाण विसद्दुम- सन्निहाण अमओवमं फलं “इक्कं । जं गुण- रयण-निहाणस्स होइ तणयस्स संपत्ती ||४८६ ।। एवं अवच्च विसयं खेयं काउं सुदंसणादेवी । "सयमवि विवेय-मग्गे संठविउं कहवि निय-चित्तं ॥ ४८७|| भणिउं पुणो पयट्टा धिद्धी मे मंतियं इमं सव्वं । पेच्छह मह केरिसयं भवाभिनंदित्तणं जायं ||४८८|| . जाणिय- जिण-वयणाए विही- महामोह विलसियं मज्झ । अहह अविवेयवसओ पम्हुडमिणं मए सव्वं ||४८९ || जहापरलोए जीवाणं पुत्तेहिं न होइ कोइ साहारो । निय य-सुकय- दुक्कयाइं जम्हा भुंजंति तत्थ गया ||४०|| दो गच्च - ४० गत्त - पडिओ "सयंकय-कुकम्म - पेल्लिओ संतो । नित्थारिज्जइ जीवो न कोई पुत्तेहिं परलो ||४९१|| इह - लोए वि सुएहिं न तारिसी को वि होइ पडियारो । संतेहिं सुएहिं जओ कम्मवसा दुत्थिया के वि ||४१२ || Jain Education International 199 - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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