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सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं चत्तारि नाइ पुरिसत्थ मुत्त । तिवि सिक्खिय-सयल-कला-कलाव
तारुन-पत्त सुंदर-सहाव ।।७२।। १७१५।। अह अन्न-दियहि पसरिय-विवेउ
नरनाहु चित्ति चिंतवइ एउ । मइ पुव्व-जम्मि किउ कवणु धम्मु
जिं रज्जु पत्तु अच्चंत-रम्मु ||५३।।१७१६।। एत्थंतरि मुणिय-विवाग-समउ
चउनाण-जुत्त जण-जणिय-पमउ । संपत्तु तत्थ गय-सयल-दोसु
गुरु जंगमु व धम्मघोसु ।।५४ ।।१७१७।। आगमणु मुणिवि तसु वसुहनाहु
विप्फुरिय-फार-हरिस-प्पवाहु । गुरु-रिद्धिहिं गुरु-पय-नमण-हेउ
संचलिउ चउहि भज्जहिं समेउ ||१५||१७१८|| महिमंडल-निहिय-निडालवटु
गुरु पेक्खिवि पणमइ ताव लहु । कल्लाण-वल्लि नव-नीरवाहु
गुरुणा वि दिण्णु तसु धम्मलाहु ।।६।।१७११|| गुरु-पासि निसन्नउ भणइ राउ
मह एत्तिउ कसु कम्मह विवाउ । गुरु कहइ हूउ जिण-नमणु स ज्जु
तुह पुव्व-जम्मि तिण पत्तु रज्जु ।।१७।।१७२०।। फलु अज्ज वि एयह लडु थेवु
जमणंतरु होहिसि पवरु देवु । तो भुंजिवि वर-सुर-मणुय-सोक्खु
सत्तमइ लहिस्ससि जम्मि मोक्खु ।।५८।।१७२१।। इय सुणिवि पहिहिण पत्थिवेण
गुरु-कम्म-गंठि भिन्नउ खणेण ।
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