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________________ ૨૬૮ सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं चत्तारि नाइ पुरिसत्थ मुत्त । तिवि सिक्खिय-सयल-कला-कलाव तारुन-पत्त सुंदर-सहाव ।।७२।। १७१५।। अह अन्न-दियहि पसरिय-विवेउ नरनाहु चित्ति चिंतवइ एउ । मइ पुव्व-जम्मि किउ कवणु धम्मु जिं रज्जु पत्तु अच्चंत-रम्मु ||५३।।१७१६।। एत्थंतरि मुणिय-विवाग-समउ चउनाण-जुत्त जण-जणिय-पमउ । संपत्तु तत्थ गय-सयल-दोसु गुरु जंगमु व धम्मघोसु ।।५४ ।।१७१७।। आगमणु मुणिवि तसु वसुहनाहु विप्फुरिय-फार-हरिस-प्पवाहु । गुरु-रिद्धिहिं गुरु-पय-नमण-हेउ संचलिउ चउहि भज्जहिं समेउ ||१५||१७१८|| महिमंडल-निहिय-निडालवटु गुरु पेक्खिवि पणमइ ताव लहु । कल्लाण-वल्लि नव-नीरवाहु गुरुणा वि दिण्णु तसु धम्मलाहु ।।६।।१७११|| गुरु-पासि निसन्नउ भणइ राउ मह एत्तिउ कसु कम्मह विवाउ । गुरु कहइ हूउ जिण-नमणु स ज्जु तुह पुव्व-जम्मि तिण पत्तु रज्जु ।।१७।।१७२०।। फलु अज्ज वि एयह लडु थेवु जमणंतरु होहिसि पवरु देवु । तो भुंजिवि वर-सुर-मणुय-सोक्खु सत्तमइ लहिस्ससि जम्मि मोक्खु ।।५८।।१७२१।। इय सुणिवि पहिहिण पत्थिवेण गुरु-कम्म-गंठि भिन्नउ खणेण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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