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सुमहनाह-चरियं
एयं परिचयामो अंगेणेवागए तुमम्मि इहं ।
चिंतामणिम्मि पत्ते कायमणी को न परिहरइ ? ||४५ || १७०८।।
तो हरिसिउ नरिंदो अणेण वागए तुम मित्ति ।
एयं सत्त - परिक्खण- फलं ति अवधारिए चित्ति ||४६ || १७०१ || तो निजुंजिवि रज्ज-वावारि
मइमंत-मंति- प्पमुह अणुकहेवि सब्भावु भूवइ । वीरक्करस- रसिय मणु असिसहाउ सह तेहिं वच्चइ । मंतिहिं तत्थ पडिच्छियउ परिणाविउ जयलच्छि । परदेसि वि पुन्नग्गलहं पट्ठि न छड्डइ लच्छि ||४७||१७१०|| तिर्हि पयासिउ सयल-नयरम्मि नरनाहु निग्गयसुहिउ चिर नरिदि सयमवि पलाणइ ।
अणुरत - नायर - नियरु रज्ज-सुक्खु अक्खंडु माणइ । तसु जयलच्छि रमंतयह कइवय दिण वोलीण । तक्खसिलह अन्नह समइ आगय पुरिस पवीण ||४८ || १७११|| तेहिं पणमिवि निवइ विन्नत्तु
पहु वेढिय तक्खसिल सूरतेय नामिण नरिंदिण |
तं मुणिवि निग्गयसुहिउ कुविउ चलिउ सामंतवंदिण । थेव-दिणेहिं य लक्खियउ तक्खसिलहिं संपत्तु । सूरतेउतिण रणि जिणिवि बदु बलिहु वि सत्तु ||४९|| १७१२|| पुणु विमुक्कउ करिवि सक्कारु
कारुण्ण-रस- सायरिण, सो वि तस्स नामेण जसमइ उत्तुंग - थणहर तुलिय-कणय- कलस निय-धूय वियरइ । लेइ सयं पुण आण तसु सूरतेओ अइजाणु | वणिउ व कयविक्कय करिउ जीवावइ अप्पाणु ||४०|| १७१३॥ इय निग्गयसुहिउ महानरेसु
अकिलेस - वसीकय - बहुय - देसु ।
पत्तीहिं चउहि सहुं विविह-भोय
अणुवइ अदि- विओय सोय ||११|| १७१४||
उप्पन्न कमेण इमाण पुत्त
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