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________________ ११० सिरिसोमप्पहसूरि-विरइयं मरिउं मुच्छा-दोसेण सुणहिया निय-घरे समुप्पन्ना । सा गंगिला महेसरदत्तस्स निरग्गला गिहिणी ||११७१।। सच्छंदा अच्छंती गुरुजण-रहियम्मि नियय-गेहम्मि । अन्लेण नरेण समं संघडिया १३७पेच्छए तं च ।।११७२।। कह वि महेसरदत्तो कीलंतिं तेण सह तओ कुविओ । को वा कोवं न कुणइ निय-घरिणी-परभवं दहुं ? ||११७३।। सो य महेसरदत्तेण अद्धपहओ कओ तओ नहो । गंतूण नाइ-दूरम्मि निवडिओ चिंतए एवं ||११७४।। अहह ! मए पावेणं कयं अकज्ज इमं ति संविग्गो । निंदतो अप्पाणं विचित्तयाए य कम्मरस ||११७५।। उवसंत-मणो मरिउं तीए च्चिय गंगिलाए गब्भम्मि । निय-बीएणं तक्खण-भुत्त-विमुक्काए उप्पल्लो ।।११७६।। कालक्कमेण जाओ पुत्तो अइ-वल्लहो त्ति काऊण | वहइ महेसरदत्तो उच्छंगेणं पहिह-मणो ||११७७।। अह अन्नया महेसरदत्तेणं जणय-किच्चमारदं । सो जणय-जीव-महिसो किणिऊण विणासिओ तत्थ ।।११७८।। विप्पाण बंधवाण य दिन्नाई महिस-मंसखंडाई । पिउणो तित्ति-निमित्तं पिया वि खज्जइ अहो मोहो ||११७१।। अह पुत्तं उच्छंगे काउं आसायए सयं मंसं । माउ-सुणियाइ पुरओ ठियाइ अहीणि पविखवइ ।।११८०।। भक्खेइ सा वि तुहा अह मासक्खमण-पारणय-हेउं || साहू अइसय-नाणी कह वि पविठ्ठो गिहं तस्स ||११८१|| नियइ महेसरदत्तं एक्कमणो चिंतइ य निय-चित्ते । अल्लाणमहह ! एसो जं सत्तुं वहइ उच्छंगे ||११८२।। भक्खइ पिउणो मंसं, सुणियाए देइ जणय-अहीणि । सा वि निय-भत्तुणो अट्ठियाइं भक्खेइ तुट्ठ-मणा ||११८३।। इय चिंतिऊण साहू विणिग्गओ तयणुमग्गओ गंतुं । भणइ महेसरदत्तो- 'भयवं ! भिक्खा न किं गहिया ? ||११८४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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