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अह दत्तस्सुप्पन्नो दाहजरी पुव्व-कम्म- दोसेण । न नियत्तए कहं पि हु सयण गणो आउलीहुओ ||३१४|| पव्वाइयाइ पासे पुच्छइ किं-संभवो इमस्स जरो ? |
कह वा नियत्तिही ? कहसु भयवइ ! अणुग्गहं काउं ||३१५ ।। सा वि हु पवंच - निउणा परमक्खर सुमरणं च काऊण । जंपइ न रूसियव्वं सव्वमिणं देवया कहइ ||३१६||
सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
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एयरस लहुय-भज्जा पर पुरिस-पसंग - लालसा - लुद्धा । निदम्मा कवडपरा निक्करुणा चिंतए एवं ||३१७ ||
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सच्छंदमणिच्छिय- सुक्ख - विग्घभूयं हणामि' दत्तमिणं । सुय-जणणि त्ति अहं चिय पच्छा घर - सामिणी होहं ॥ ३१८|| निस्सारिडं सवत्तिं भुंजिस्सं हियय-वंछिए भोए । तत्तो कत्तो वि इमीइ सिक्खिऊणं कयं जंतं ||३९९|| तव्वसओ दुव्विसहा जाया एयस्स दाहजर - पीडा । जइ पत्तियह न एयं तत्तो दंसेमि पच्चवखं ||४००|| 'पव्वाइयाइ नीसेस - कवड - कुसलाइ चुल्लि - पासम्मि । सयमेव पुव्व-निक्खयमुक्खणिउं दंसियं जंतं ||४०१|| सयणेहिं इमा भणिया भयवइ ! पउणं करेसु दत्तमिणं । पव्वाइयाए* वुत्तं जं तुब्भे भणह तं काहं ||४०२ || नवरं एसा भद्दा वसइ घरे जाव ताव न हु दत्तो । पउण- सरीरो होही ता निस्सारह इमं सिग्घं ||४०३ || तो पावे ! पइघाइणि ! मा दंससु नियय- वयणमुज्झ घरं । झ्य गरहिऊण बहुसो सयणेहिं घराओ निच्छूढा ||४०४|| पत्ता पुरस्स बाहिं बाह-जलाउलिय- लोयणा भद्दा । पइ - पुत्त-विरह- हुयवह - जालावलि - डज्झमाण मा ||४०५ || जीव ! तए इह - जम्मे तहाविहं किं पि दुक्कयं न कयं ॥ निक्कारणं च कस्सइ न को वि उप्पायए दुक्ख ||४०६ | ता पुव्व-भवारोविय- दुक्कम्म- दुमरस फलमिणं नूणं । एवं विचिंतयंती जा चिट्ठइ चूय-तरु- मूले ॥ ४०७॥
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