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________________ २३० सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं माणिय- जोइस - भवणवासि वंतरवई सपरिवारा इय जिण-महिमं काउं सव्वे वच्चंति स - द्वाणं ||१४४३|| जाए पहाय - समए मेह- नरिंदेण नियय-नयरीए । नच्चंत - नारि-नियरं वदावणयं कयं रम्मं ||१४४४ || जं गब्भ-गए नाहे जणणीए सोहणा मई जाया । तेण सुमइ त्ति नामं पइद्वियं सामिणो पिउणा || १४४५ || वारं वारं बालं पेच्छंतो मेह नरवइ नाहं । मन्नइ अमय - महद्दह - निमज्जमाणं व अप्पाणं ||१४४६ ॥ राया कयाइ कंठे कयाइ हियए कयाइ उच्छंगे । सीसे कयाइ धारइ महग्घ - माणिक्कमिव सामि || १४४७|| पहुणो सुरंगणाओ धाविउं कंति-सलिल-वावीओ । सक्क- गिराए पासं देहच्छाय व्व न मुयंति || १४४८ || अंकाओ उत्तरिऊण धाविओ पिंडधाविरिं धाविं ( ? ) | खेएइ निब्भओ सो सीहिं केसरि-किसोरु व्व || १४४९|| कीलाए धावमाणस्स सामिणो अग्गओ सुर- कुमारा । धावंति वलिय-गीवा करि-कलहस्सेव पडिकारा || १४५० ।। लीलाए पाडिए तेसु भणंतेसु रक्ख रक्खति । नर - कुंजरो सकरुणो सिसू वि सदया सया वि जिणा || १४५१ || दप्पण-गय-पडिबिंबं रय-मल-पासेय रोय रहियं पि । सुरहित्तणमवहंतं कहं पहु-देहस्स होइ समं ।। १४५२ || पहुणो नीरायमणस्स परिचयं पाविउं व संजायं । गो-खीर- हार-धवलं रुहिरं मंसं च देहत्थं ||१४५३ || - आहारो नीहारो य मंस चक्खूण जं अपच्चक्खो । कित्तेमि कित्तियं तं पहुणी लोउत्तरं चरियं ||१४५४|| पहुणो नीसास - समीरणेण सुरहीकयम्मि गयणयले । तियस तरु- कुसुम - परिमल-भंतीए भमंति भमर - गणा || १४५५|| सामी सिसुत्तणं लंघिऊण सूरो पहाय-समयं व । विप्फुरिय- फार तेयं कमेण तरुणत्तणं पत्तो || १४५६ || For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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