________________
३५१
सुमइनाह-चरियं
चिंतियं चएइए मणोहर-वयणकंति-विजियाइं कणय-कमलाई । सेवंति अमरसरियं विसेस-सोहा-निमित्तं व ||२३८१।। पूयं कुणमाणीए सिवतरुबीयस्स वीयरायस्स । तीए वि विम्हय-रसाउलाए दिहीए सो दिहो ॥२३८२।। एत्थंतरम्मि तेलोक्व-विजय-पसरिय-मयस्स मयणस्स । दोण्हं पि हियय-लक्खेसु निवडिया बाण-रिछोली ||२३८३।। काउं जिणिंद-पूयं सा बाला मयण-बाण-विहुरंगी । सुइरं सिणिद्ध-दिही नागदत्तं पलोयंती ||२३८४|| चलिया निय-गेहं पइ मत्थइ रइयंजली पणमिऊण | भत्तीए नागदत्तो वि जिणवरं थोउमाढत्तो ||२३८५।। दिहे तुमम्मि भुवणेक्कनाह ! निहयंतरंग-रिउवग्गे । संसार-जलनिही गोपयं व जाओ उ सुहुत्तारो ||२३८६।।
तओ
नयणच्छेरयभूयं जिणपूया-कोसलं सलहिऊण | विम्हयवसेण पुहा निय-मित्ता नागदत्तेण ||२३८७।।. कस्सेसा वर-कन्ना पूया-विलाणमेरिसं जीए ? | एसो अणुरत्तो पुच्छइ त्ति मित्तेहिं तो भणियं ॥२३८८।। नागवसू नामेसा पुत्ती पियमित्त-सत्थवाहस्स । कन्ना निय-खवेणं सुर-रमणीणं कयावना ||२३८५।। बालत्तणओ वि इमा नीसेसकलाहिं पियसहीहिं च । खणमेवं पि अमुक्वा भुवणस्स वि विम्हयं कुणइ ||२३१०।।
किंतु,
एक्वो इमीए दोसो जं तुमए सरिस-गुण-कलावेण । पडिकूल-दिव्व-जोग्ग अज्ज वि पावइ न संबंधं ॥२३११|| अणुरूव-वर-विउत्ता रेहइ महिला न सुंदरंगी वि | माणिक्कमणग्धं पि हु न लहइ सोहं विणा कणगं ||२३१२।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org