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________________ ३१२ ससिकलाए वृत्तं - तुह मुह- चंदरस पलोयणेण अम्हाण माणस - समुद्दे । तह सुहय ! समुल्लसिओ विरमिस्सइ जह न कईया वि || २१६७ || सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं महुसिरीए भणियं निय - निय- घरेसु अम्हं वच्चंतीणं सरीरमेत्तेण । ठाही मणं तुहच्चिय पासे बद्धं तुह गुणेहिं ||२१६८ || एवं भणिऊण गयाओ निय-निय ठाणेसु सव्वाओ । पहाए अत्थाण-मंडव - निसन्नस्स रन्नो विन्नत्तं पडिहारेण देव ! आलाण- खंभं उम्मूलिऊण वियरिओ मत्त - हत्थी, पयट्टोऽसमंजसं काउं । तहाहि खणु पवणु व्व गुरुवेगेण जाइ, खणु निच्चलंगु सेलो व्व ठाइ । खणु गिंभु व रयभरु विक्खिरेइ, खणु घणु व गज्जिओ वित्थरेइ || २१६१|| पडिहारं हणइ घण-जव मरह, मुसुमूरइ तरल-तुरंग थहं । मूलइ मूलह विवि-वग्ग, मेढ - हट्ट - भवणं भंजइ समग्ग || २१७०।। न गणेइ बालु विलवंतु करुणु, संहरइ तार- तरलच्छु तरुणु । छड्डइ न बुहु कंपिर- सरीरु, महिला समूहु मारइ अभीरु ||२१७१ || नव वारइ निदणु न हु धणडु परिहरइ न मुक्खु न वा वियड्डु | उक्खिविय वियडु दढ - सुंड - दंडु, तं दंड - पाणि जसु कोव - चंडु ॥ २१७२॥ इय कय- असमंजसु कोव-परव्वसु मयजल सिंचिय-महिवलउ । तु मत्त मयालु भमिरु निरग्गलु कुणइ अकालि वि पुरि पलउ || २१७३ || रन्ना वुत्तं- जो इमं वसीकरेइ तस्स मयणसिरिं धूयं देमि । तं सोऊण पयट्टा पयंड-पोरुसुब्भडा बहवे सुहडा । गया गइंदस्स पासे । ते तस्स पज्जलिय जलणस्स व तेयमसहमाणा ठिया दूरओ । इओ य कुमारो सुत्त विउद्धो करि वुत्तंतं मुणिऊण करिसिक्खा - वियक्खणत्तणेण कोउगक्खित्त-चित्तो पत्ती तयभिमुहं । दिट्ठो तेण हत्थी । Jain Education International — For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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